तेज रफ्तार से आती बाइक को देख कर लोग तितरबितर हो गए.
‘‘अरे ओ, रुक जाओ. कैसे चला रहे हो गाड़ी? ऊपर चढ़े जा रहे हो, दिखता नहीं है क्या? थोड़े में बच गई, वरना आज तो रामप्यारी हो जाती.’’ हाथ नचाती जोरजोर से चिल्लाती लड़की को साथ चलने वाली लड़की ने हाथ पकड़ कर कुछ समझाना चाहा, मगर उस ने अपना हाथ छुड़ा लिया. बाइक वाला अचानक ब्रेक मार कर सर्र से पीछे मुड़ा और इन के सामने आ कर एक पैर जमीन पर रख कर रुक गया.
‘‘अरे, रामप्यारी मैडम, दूसरों को कुछ कहने से पहले जरा खुद को देखो. बीच सड़क पर ऐसे चल रही हो जैसे पियक्कड़ चलते हैं. यह आम रास्ता है, आप की खुद की जागीर नहीं.’’
‘‘हां, यह हमारी ही जागीर है. तुम कौन होते हो मना करने वाले, चोरी और सीना जोरी.’’
‘‘सही कहा मेरीरानी. तुम ने तो मेरे मुंह की बात छीन ली. अच्छा, यह सब छोड़ो. यह तो बताओ कि तुम्हारी पढ़ाई कैसी चल रही है? आज क्लास नहीं है, फिर क्यों सड़क नाप रही हो?’’
‘‘तुम्हें इस से क्या? मैं चाहे पढूं या सड़कें नापूं, मेरी मरजी. तुम्हें इस से क्या लेनादेना मिस्टर चंदूलाल?’’
‘‘ठीक है, समझ गया. लगता है बहुत दिन से शाहरुख खान की कोई फिल्म नहीं देखी. इसलिए आग उगल रही हो.’’
‘‘अरे जा, ऐसा कभी हो सकता है कि शाहरुख की फिल्म लगी हो और मैं न देखूं. अभी पिछले हफ्ते तो ‘माई नेम इज खान’ लगी थी और तुरंत मैं ने देख ली.’’
‘‘कैसी लगी? अच्छी है न?’’
‘‘अच्छी… महाबोर. उस की सारी फिल्में एक से एक हैं, मगर ये…’’
‘‘क्यों क्या हुआ?’’ उस ने मुसकराते हुए पूछा.
‘‘बिलकुल थर्ड क्लास. नहीं देखती तो अच्छा था, अब पछता रही हूं.’’
‘‘ऐसा क्या?’’ उस की हंसी छिपाए नहीं छिप रही थी, मगर मेरी अपनी ही धुन में बोले जा रही थी.
‘‘और क्या? बिलकुल शाहरुख की पिक्चर नहीं लगी. इतनी बोर तो उस की कोई पिक्चर नहीं है.’’
‘‘समझा. लड़कियों की आंखों में आंखें डाल कर रोमांटिक डायलौग्स बोलता हुआ, नाचतागाता, उन के दिलों पर राज करते रोमांटिक हीरो की छवि इस फिल्म में नहीं है. शायद इसलिए यह तुम्हें पसंद नहीं आई,’’ वह हंसता हुआ बोला.
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‘‘अरे, मैं तो भूल ही गई. यह मेरी सहेली नीरजा है. इस शहर और कालेज में नई आई है. मेरी ही कक्षा में है,’’ उस ने अपने साथ खड़ी लड़की की ओर इशारा करते हुए कहा.
‘‘जी, हां. मेरे पापा बैंक में हैं. इसलिए 3-4 साल से ज्यादा हम एक जगह रह ही नहीं सकते.’’
‘‘अच्छा, मैं चलता हूं. मेरी क्लास है बाय,’’ कह कर वह चला गया.
‘‘बड़ी अच्छी लगी आप लोगों की चुहलबाजी, बिलकुल बच्चों जैसी. तकरार तो है ही साथ में अपनापन भी है,’’ नीरजा ने हंसते हुए कहा.
‘‘ठीक कहा तुम ने नीरजा. देखा नहीं, कितने हक से वह इसे मेरीरानी कह रहा था,’’ पता नहीं रूमा कब आ गई थी साथ चलते हुए बोली, ‘‘अच्छा, यह तो बता मेरीरानी की च…’’
‘‘बस, रूमा बहुत हुआ. सीधीसादी बात को गोलगोल घुमाना, उस में अपने मन से रंग भर कर रंगीला, चटकीला बनाना कोई तुझ से सीखे.’’ लाख कोशिश करने पर भी मेरी अपने गुस्से पर परदा नहीं डाल सकी.
‘‘इस में इतना भड़कने की क्या जरूरत है? क्या केवल वही मेरीरानी कह सकता है, हम नहीं.’’ उस के स्वर में व्यंग्य नहीं था. वह हंसते हुए चली गई.
‘‘क्या हुआ मेरी? रूमा तो मजाक कर रही थी. तुम बुरा क्यों मान गई?’’ नीरजा उसे समझाने के अंदाज में बोली.
‘‘तुम नहीं जानती नीरू कि रूमा कितनी खतरनाक है. तुम अभी नई हो. यहां सबकुछ इतना सीधा नहीं है जितना दिखता है. वास्तव में यह रूमा चंदू के पीछे पड़ी थी.’’
‘‘पड़ी क्या थी, वह तो अब भी उस की दीवानी है. चंदू हां करे तो वह उस के पैरों में बिछ जाए, मगर वह ऐसी लड़कियों को भाव ही नहीं देता, तो यह चिढ़ती है और उसे बदनाम करने की कोशिश करती है,’’ मेरी बोली.
‘‘यह तो लड़केलड़कियों में आम बात है. यहां से निकलते ही सब लोग पिछली बातें भूल कर अपनीअपनी जिंदगी जीते हैं, लेकिन तुम पर वह क्यों व्यंग्यबाण चला रही थी?’’ नीरजा ने कहा.
‘‘उस की आदत है. छोटी सी बात को ले कर भी उसे लोगों की खिंचाई करना अच्छा लगता है. वास्तव में चंदू मेरे स्कूल का सहपाठी है. हम दोनों साथ खेलतेकूदते और लड़तेझगड़ते बड़े हुए हैं. एक बात बताऊं? स्कूल में मेरा नाम मेरीरानी ही था. कालेज में मैं ने रानी हटा कर मेरी रखा.’’
‘‘अच्छा, यह बात है? मगर रानी क्यों हटा लिया? मेरीरानी अच्छा तो लग रहा है.’’
‘‘तुम तो मुझे बनाने लगी. यह नाम बंगालियों में अकसर सुनने में आता है, मगर मुझे बड़ा अटपटा लगता था, क्योंकि स्कूल में मुझे सब लोग मेरीरानी कह कर चिढ़ाया करते थे, खासकर लड़के. इसीलिए मैं ने अपने नाम से रानी हटा लिया, केवल चंदू जानता है, इसीलिए कभीकभी अकेले में छेड़ता है.’’
‘‘और उस का नाम चंदूलाल… आज के जमाने में…’’
‘‘अबे, नहीं. उस का नाम तो चंद्रभान है.’’
‘‘यानी चांद और सूरज साथसाथ.’’
‘‘अरे हां, सच है. मैं ने तो आज तक गौर ही नहीं किया. सब उसे बचपन में चंदू कह कर बुलाते थे. हम जब लड़ते थे तब वह गाता था, ‘मेरीरानी बड़ी सयानी…’ और मैं गाती ‘चंदूलाल चने की दाल…’’ दोनों सहेलियां हंस पड़ीं.
नीरजा ने कलाई पर बंधी घड़ी की ओर देखा और उछल पड़ी. 5 मिनट की देरी हो चुकी थी. ‘‘अरे, बाप रे, अंगरेजी की मैम तो बहुत स्ट्रिक्ट हैं. वे तो कक्षा में घुसने नहीं देंगी. मेरी, जल्दी चलो.’’ दोनों कक्षा की ओर भागीं. अभी मैडम क्लास में नहीं आई थीं. क्लास में काफी शोर हो रहा था. दोनों बैठ गईं.
पीछे बैठी शीतल ने ‘हाय’ किया, लेकिन जवाब देने से पहले ही मैडम आ गईं. पीरियड समाप्त होते ही मेरी फ्रैंच क्लास में चली गई.
नीरजा की अब कोई क्लास नहीं थी. इसीलिए वह किताबें समेट कर घर जाने के लिए निकल पड़ी. शीतल भी साथ चलते हुए बोली, ‘‘चलो, नीरजा कैंटीन में चाय पीते हैं.’’
‘‘नहीं शीतल, मुझे जाना होगा. मम्मी राह देखती होंगी, बाय,’’ कह कर वह निकल गई. इतने दिन में वह समझ गई थी कि शीतल की पढ़ाई में कम और कालेज में भीड़ इकट्ठी करने, पार्टियों और फिल्म देखने में ज्यादा रुचि थी. शायद वह किसी करोड़पति से शादी कर के ऐशोआराम की जिंदगी जीने के इंतजार में थी.
उस दिन तो नीरू का मूड ही खराब हो गया. आखिर उस के मुंह से निकल गया, ‘‘सर, कितने दिन से मैं इस किताब के लिए लाइब्रेरी के चक्कर लगा रही हूं. किस के पास है यह किताब?’’
‘‘बेटा, मुझे याद नहीं है कि किस के पास है, जरा 2 मिनट रुक जाओ. मैं देख कर बताता हूं.’’
‘‘सर, यह किताब मेरे पास है. कल लौटा दूंगा,’’ सामने से आवाज आई. नीरू ने पलट कर देखा तो कोई लड़का पास ही मेज पर बैठा कुछ पढ़ रहा था. उस ने इस की बातें सुन ली थीं.
‘‘ऐसी कोई बात नहीं है. आप पढ़ने के बाद ही उसे वापस कीजिए. मैं सर से ले लूंगी,’’ नीरू ने सकुचाते हुए कहा.
‘‘मैं ने पढ़ ली है. मैं वापस देने ही वाला था, पर जरा लापरवाही हो गई. आई एम सौरी. कल ला दूंगा. आप ले लीजिएगा.’’
इस प्रकार हुआ था उस का आनंद से परिचय. बाद में पता चला कि वह शीतल का भाई है. कितना अंतर था उन दोनों में. शीतल जहां एक चंचल तितली की तरह थी, वहीं वह चरित्रवान आदर्श व्यक्ति का स्वरूप.
ऐसे व्यक्ति के पास लड़कियां अपनेआप को बिलकुल सुरक्षित महसूस करती हैं. वह नीरू को भा गया तो कोई आश्चर्य की बात नहीं है.
उस दिन क्लास खत्म होने के बाद जब नीरजा घर जाने के लिए निकली तो आकाश काले बादलों से ढका हुआ था.
4 बजे ही अंधेरा छा गया था. बूंदाबांदी शुरू हो गई थी. पता नहीं क्यों आज मेरी भी नहीं आई थी. हमेशा दोनों पैदल ही जाती हैं, क्योंकि दोनों के घर कालेज से ज्यादा दूर नहीं थे. वह जल्दीजल्दी घर की ओर जाने लगी. इतने में एक बाइक उस के पास आ कर रुकी.
‘‘बहुत तेज बरसात होने वाली है. आप को एतराज न हो तो मैं आप को घर छोड़ दूं?’’ यह चंदू की आवाज थी.
‘‘जी, नहीं. मैं चली जाऊंगी. घर पास में ही है,’’ वह दनदनाती हुई आगे बढ़ गई. अभी दो कदम भी नहीं चली थी कि तेज बरसात हो गई.
‘अब क्या करूं?’ नीरजा सोचने लगी, ‘चंदू के साथ चली जाती तो अच्छा था. किताबें भीग रही हैं.’ चंदू के बारे में लोगों की विरोधाभासी बातें सुन कर वह अब तक अपनी कोई राय नहीं बना पाई थी. पीछे से जोरजोर से कार के हौर्न की आवाज सुन कर वह पलटी.
‘‘नीरू, जल्दी अंदर आ जाओ,’’ शीतल ने आवाज दी. कार का दरवाजा खुला और वह लपक कर कार में बैठ गई. उस ने देखा अंदर रूमा भी बैठी थी. कार आनंद चला रहा था.
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‘‘क्या कह रहा था हीरो,’’ रूमा ने हंसते हुए पूछा.
नीरू ने कहा, ‘‘यही कि आइए, तेज बरसात होने वाली है. आप भीग जाएंगी. मैं अपने खटारे पर आप को घर छोड़ दूंगा.’’
‘‘लड़कियां पटाना तो कोई इस से सीखे,’’ दोनों जोरजोर से हंस पड़ीं. सामने लगे आईने में आनंद की मंदमंद मुसकराहट भी नीरू देख रही थी.
‘‘देखो नीरू, इस भंवरे से दूर ही रहना. चंदू मवाली, गुंडा और आवारा है. तुम्हारी सहेली मेरी तो उस की हिमायती है. कभी उस की बातों में न आना,’’ रूमा ने बड़ी आत्मीयता जताते हुए कहा.
‘‘बरसात बढ़ रही है, हम ने आप का घर देख लिया है फिर कभी जरूर आएंगे,’’ कह कर आनंद ने गाड़ी आगे बढ़ा दी.
2 दिन बाद मेरी कालेज आई. बहुत कमजोर हो गई थी. उसे मलेरिया हो गया था. वह आ तो गई थी मगर बैठ नहीं पा रही थी. बड़ी मुश्किल से 2 पीरियड निकालने के बाद उस ने घर जाने का निश्चय कर लिया. नीरू उसे रिकशे में बैठाने साथ गई. कालेज के मुख्य फाटक पर पहुंचने से पहले ही नीरू ने देखा कि एक पेड़ के नीचे चंदू, रूमा और अन्य 2-3 लड़कियां जोरजोर से हंस रही थीं. इतने में रूमा ने अपने हाथ से चंदू के बाल बिखेर दिए और उस का हाथ पकड़ कर जब चंदू ने उसे रोकना चाहा तो रूमा ने दूसरे हाथ से चिकोटी काट ली और सब हंसने लगे. नीरू ने सोचा, ‘अजीब लड़का है. कालेज में कृष्ण कन्हैया बना फिरता है. पढ़ता कब होगा.’
कालेज का युवा सम्मेलन कार्यक्रम बहुत अच्छा होता है. उस में तरहतरह के रंगारंग कार्यक्रम होते हैं. मेरी ने एक अंगरेजी नाटक में मुख्य भूमिका निभाई. शीतल, रूमा और कुछ अन्य लड़कियों ने मिल कर एक पश्चिमी नृत्य पेश किया. इसी कार्यक्रम में घोषणा की गई कि आनंद ने कालेज के पुस्तकालय के लिए 10 हजार रुपए का अनुदान दिया है.
पिछले वर्ष विभिन्न विभागों में प्रथम और द्वितीय स्थान प्राप्त करने वालों को इनाम दिए गए. अंत में खेल विभाग का नंबर आया. सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी और खेल सचिव के रूप में चंद्रभान शर्मा का नाम घोषित किया गया. जितनी तालियां उस के लिए बजीं उतनी तो शायद किसी और के लिए नहीं बजी थीं.
भीड़ को चीरते हुए चंद्रभान आगे आ रहा था. नीरू ने देखा, वह हमेशा की तरह बिंदास था. बाल बिखरे, कमीज कुछ अंदर, कुछ बाहर. हवा के झोंके की तरह चला आ रहा था वह.
एक अध्यापक ने उसे पकड़ा. उस की कमीज ठीक की, बाल संवारे और कहा, ‘‘तुम कहां रह गए थे? स्टेज के पीछे रहने को कहा गया था न? बाकी सारे इनाम के हकदार वही हैं.’’
‘‘जी, सर पीछे बैठा एक वृद्ध व्यक्ति बेहोश हो गया था. उसे अस्पताल पहुंचा कर आ रहा हूं,’’ उस ने जवाब दिया.
‘‘सर, यह हमारे कालेज का सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी और खेल सचिव है. हमें दोतिहाई पुरस्कार इसी की वजह से मिले हैं,’’ प्रिंसिपल साहब ने मुख्य अतिथि से परिचय कराते हुए कहा.
शीतल के बुलावे पर 3-4 बार नीरू को उस के घर जाना पड़ा. शीतल कालेज के चुनावों में सांस्कृतिक सचिव के पद के लिए चुनाव लड़ रही थी. वह यह कह कर नीरू को अपने घर ले जाती कि तेरे आइडियाज बहुत अच्छे हैं, तेरी प्लानिंग भी अच्छी है. चुनाव में जीतने के लिए तुम्हारी मदद की मुझे काफी जरूरत है.
नीरू किसी को भी ना नहीं कर सकती थी. मगर शीतल के नीरू को पटाने के और भी कारण थे, क्योंकि नीरू पढ़ने में अच्छी थी. वह चुनाव में व्यस्त होने के बहाने उस के नोट्स ले कर फोटोकौपी करवा लेती. दूसरा और जरूरी कारण यह था कि वह जानती थी कि आनंद की नीरू में रुचि है और आनंद ने ही उन दोनों की दोस्ती को प्रोत्साहित किया था.
पहली बार उन के घर को देख कर नीरू चकित रह गई. वे बहुत पैसे वाले लोग थे. सब के अलगअलग कमरे, अलगअलग गाडि़यां, अलग जीने के तरीके थे. किसी को दूसरे के बारे में पता नहीं, न ही वे एकदूसरे के जीवन में दखल देते थे. नीरू जब भी वहां जाती आनंद से अवश्य मिलती. वैसे भी आनंद का शालीन, संतुलित व्यवहार उसे भाने लगा था.
आजकल नीरू को शीतल के साथ चुनाव प्रचार के लिए कालेज के छात्रछात्राओं के घर जाना पड़ता था. दोनों कार से जाते, वापसी में शीतल उसे घर छोड़ देती. उस दिन शीतल की कार खराब हो गई थी इसलिए आनंद ने शीतल को एक घर के सामने छोड़ दिया.
‘‘यह किस का घर है?’’ नीरू ने पूछा.
‘‘मेघा का.’’
‘‘मेघा… हां, याद आया. परिचय तो नहीं है पर शायद आर्ट फैकल्टी में है.’’
‘‘हां, ठीक पहचाना. क्या करें, जरूरत पड़ने पर गधे को भी बाप बनाना पड़ता है,’’ कार लौक करते हुए शीतल ने कहा.
‘‘क्या?’’
‘‘कुछ नहीं. चलोचलो. आज हमें 3 घर निबटाने हैं.’’
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कार की आवाज सुन कर कोई बाहर आया. नीरू ने सोचा यही मेघा है, वह मुसकरा दी.
‘‘मेघा, यह नीरजा है, मेरी ही क्लास में है.’’
‘‘जानती हूं और मैं मेघा, जर्नलिज्म की छात्रा हूं. मैं आप को अकसर शीतल के साथ देखती हूं या पुस्तकालय में,’’ नीरू मुसकराते हुए सुन तो रही थी मगर उस का दिमाग तेजी से विचारों में उलझा हुआ था. इसे तो मैं अच्छी तरह जानती हूं. यह मेरी आंखों में बसी हुई है. कालेज में तो कई छात्र हैं उस लिहाज से नहीं. फिर… अचानक उसे याद आया, ‘‘हां, यह तो अकसर चंदू के स्कूटर पर नजर आती है.’’
‘‘आइए न अंदर,’’ उस के पीछे शीतल और नीरजा अंदर चल दीं. वहां एक प्रौढ़ा कुछ पढ़ रही थीं. मेघा ने अपनी मां से दोनों का परिचय कराया. उन्होंने बड़े प्यार से दोनों लड़कियों से बात की. थोड़ी देर बाद एक स्कूटर घर के आगे रुका, जिस से चंदू उतरा और घर के अंदर आ गया.
नीरजा देखती रह गई, ‘‘चंदू यहां…’’
‘‘नीरजा, यह मेरा भाई चंद्रभान है. मैं इन की छोटी बहन हूं, कोई मुझे जाने या न जाने इन्हें तो हर कोई जानता है.’’
‘‘शीतल आज तुम यहां… हमारा घर पवित्र हो गया. अरे, भई मेघा, इन लोगों को कुछ खिलायापिलाया या नहीं?’’
‘‘नहीं भैया, अभीअभी तो आए हैं,’’ इतने में मेघा की मां एक ट्रे ले कर आईं, जिस में पकौडे़ थे.
‘‘मां, मुझे बुला लेतीं. आप अब बैठिए, मैं चाय बना लूंगी.’’
‘‘ठीक है, ठीक है, पहले इन्हें खाने तो दे,’’ मां ने कहा.
मेघा ने उठ कर पकौड़ों की प्लेट शीतल के आगे बढ़ाई.
चंदू बोला, ‘‘लो शीतल, मां बहुत स्वादिष्ठ पकौड़े बनाती हैं. एक बार खाओगी तो बारबार मेरे घर आओगी, इन्हें खाने के लिए.’’
‘‘नहीं मेघा, पहले ही मेरा गला बहुत खराब है. ऐसावैसा कुछ खा लिया तो हालत और खराब हो जाएगी.’’
चंदू पकौड़ों की प्लेट ले कर खुद खाने लगा. ‘‘अरे भैया, नीरजा को दो,’’ मेघा ने टोका.
‘‘नहीं मेघा, क्यों उन्हें परेशान करती हो. जैसे ध्यानचंद वैसे मूसर चंद. मुझे अच्छे लगते हैं इसलिए मैं खा रहा हूं.’’
– क्रमश:
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