मगर मनु सब जानती थी. वह यह भी जानती थी कि शुभेंदु वरसोवा में किसी कंसलटैंट से नहीं, रूपा नाम की एक टीचर से मिलने जाते हैं.
‘‘मैं उन की पत्नी हूं. उन को बाहर और भीतर से जानती हूं. मैं ने तुझ से कहा तो था. वास्तविकता क्या है. तुझे इस का एहसास भी नहीं हो सकता.’’
‘‘पर मनु, तू ऐसी दोहरी जिंदगी कैसे जी लेती है, मैं समझ नहीं पा रही हूं,’’ सबकुछ जानते हुए उस जहर को अपने गले से कैसे उतार रही है.’’
‘‘वसु ये मजबूरियां… औरत के लिए 2 ही रास्ते हैं, या तो चुप रह कर घर की शांति हर कीमत पर खरीदती रहे या फिर काट ले खुद को इन सब से. पर वह अकेले जी भी कहां पाती है?’’
‘‘मैं तो नहीं मानती… तू पढ़ीलिखी है. आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर भी है. छोड़ दे शुभेंदु को.’’
‘‘और अपने बच्चों को उसी वंचित बचपन की तृष्णा भुगतने दूं, जो मैं ने भुगती थी? वसु चिडि़या भी अपने बच्चों की देखभाल तब तक करती है जब तक ये उड़ना नहीं सीख जाते. मेरे मातापिता ने तो आज तक मेरी सुध ही नहीं ली. जिस उम्र में लड़कियां गुड्डेगुडि़यों के ब्याह रचाती हैं, मैं ने उस उम्र में दरदर की ठोकरें खाई हैं. कई बार मन विचलित हुआ था. यदि मुझे पाल नहीं सकते थे तो जन्म ही क्यों दिया था? नहींनहीं… मैं शुभेंदु से कभी तलाक नहीं लूंगी… मैं ने अपनी नियति से समझौता कर लिया है.’’
कैलिफोर्निया में बराबर उस के मेल मिलते रहते थे मुझे. कई बार फोन पर भी बात हुई, लेकिन शुभेंदु से तलाक लेने की बात उस ने कभी नहीं की. फिर ऐसा क्या घटा जो वज्र जैसी छाती को चीर गया. बच्चों की खातिर कराहते वैवाहिक बंधन का निर्वहन करने का दम भरने वाली मनु स्वयं कैसा कठोर निर्णय ले बैठी? क्या पतिपत्नी का जुड़ाव नासूर बन कर ऐसी लहूलुहान पीड़ा दे गया कि अब दूसरा कोई विकल्प ही नहीं रह गया था.
अचानक टैक्सी रुकने की आवाज ने मुझे ऊहापोह की यात्रा से लौट आने के लिए विवश कर दिया. मेल पर भेजे पते को खोजती हुई मैं सही स्थान पर पहुंच गई थी.
दिल्ली के एक पौश इलाके में स्थित बहुमंजिला इमारत में उस का सुंदर सा फ्लैट था. घर की सजावट देख कर लगा उस के पास जीविका के सभी साधन हैं. किसी की दया की मुहताज नहीं है वह. टेबल पर लगे फाइलों के ढेर, बारबार बजती फोन की घंटी उस की मसरूफियत के साफ परिचायक थे.
कुछ ही देर में मनु मेरे सामने थी. उसे आलिंगन में ले कर उस के माथे को चूम लिया मैं ने… उस की आंखों से आंसू बहने लगे. आंसू दांपत्य की टूटन और उस से उत्पन्न हताशा के सूचक थे या किसी अपने करीबी से मिलने की खुशी में तनमन भिगो गए थे, नहीं जान पाई थी. 20 साल के इस अंतराल में बहुत कुछ दरक गया था. सबकुछ पूछने ही तो आई थी उस के पास.
काफी समय इधरउधर की बातों में ही निकल गया. कभी वह पलाश के बारे में पूछती कभी मेरे बेटे सुहास के विषय में. मैं कनखियों से उस के दिव्यरूप को निहार रही थी. वही गौर वर्ण, मृगनयनी सी आंखें… कुल मिला कर अभी भी किसी पुरुष को आकर्षित कर सकती थी. वही मृदुभाषिता, वही सौम्य व्यवहार कुछ भी तो नहीं बदला था. उस की मांग का सिंदूर, कलाइयों में खनकती लाल चूडि़यां और माथे पर लाल बिंदिया देख कर मन शंकित हो उठा था. ये निशानियां तो पति के वजूद की सूचक हैं. फिर मेल.
मुझे अपने प्रश्नों के उत्तर तलाशने में ज्यादा इंतजार नहीं करना पड़ा. उस का शांत चेहरा सहसा कठोर हो गया. होंठों पर जबरन बनावटी मुसकान बिखेरती मनु धीमे स्वर में बोली, ‘‘वसु, बचपन में एक पोंगा पंडित की कहानी पढ़ी थी, जिस ने वरदान के महत्त्व को न समझ कर उसे व्यर्थ ही खो दिया था. कहानी का अंत कुछ इस प्रकार से था कि दान सदा सुपात्र को ही देना चाहिए. वरना देने वाले और पाने वाले दोनों का ही कल्याण नहीं होता.’’
‘‘लेकिन, यहां इस कहानी का क्या मतलब है?’’
‘‘शुभेंदु वह पात्र नहीं था, जो मेरे प्रेम, समर्पण, त्याग और निष्ठा को समझ पाता.’’
‘‘लेकिन, तूने तो उसे मन से अपनाया था.’’
‘‘लोग तो पत्थर को पूजते हैं. लेकिन मैं ने जीतेजागते इंसान को पूजा था. समझ में नहीं आता, ऐसी क्या कमी रह गई मेरी पूजा में, जो जीताजागता इंसान पत्थर निकला,’’ वह आंखों से शून्य में ताकती रही.
‘‘जाने दे मनु, जो तेरे योग्य ही नहीं था उसे खोने का दुख क्यों?’’
मैं ने उसे सांत्वना देने के लिए कहा. मगर वह अपने में ही खोई बोलती रही. ‘‘शुभेंदु ने कभी पैसा नहीं कमाया. मैं चुप रही. मेरे शरीर को जागीर समझ कर पीड़ा दी. मैं अपने होंठ सिले रही. मेरी कमाई को अपनी रखैल पर लुटाते रहे. मैं ने उफ तक नहीं की कि लोगों को अगर भनक भी लग गई कि लड़की का पिता बदचलन है, तो साइना की शादी में अड़चन पड़ेगी.
‘‘विराम और साइना पिता के संबंध में कई प्रश्न पूछते. उन के अनर्गल वाक्यों के मर्म को समझने की चेष्टा करते. मैं बड़ी ही सतर्कता से उत्तर देती उन के प्रश्नों के. उन के मन में मैं ने पिता का ऐसा रूप साकार किया कि आदरणीय हो उठे थे उन के मन में. शायद कोई भी महिला अपने पति का अनादर अपने बेटी या बेटे से नहीं करवाना चाहती.
‘‘कई संभ्रांत परिवारों से मुझे आमंत्रण मिलते. आखिर मेरा भी कोई वजूद है और फिर प्रतिष्ठा, मान, यश, धन सबकुछ तो था मेरे पास. लेकिन जी नहीं करता था कहीं जाने का. लोग पति से संबंधित प्रश्न पूछते, तो क्या उत्तर देती उन्हें? मेरा पति, मुफ्त की रोटियां तोड़ने वाला एक आलसी पुरुष है या एक शक्की, क्रोधी, चरित्रहीन व्यक्ति के रूप में परिचय देती.
‘‘एक कुशल योद्धा की तरह मैं ने हर कर्त्तव्य का पालन किया और फिर मैं ने तो एक सभ्य, सुसंस्कृत और शिक्षित व्यक्ति से ब्याह किया था और उस ने असभ्यता की हर सीमा का उल्लंघन किया. मेरी अनमोल धरोहर मेरे बच्चों तक को छल से मुझ से दूर कर दिया.
‘‘शुभेंदु के मन में मेरे लिए घृणा थी, प्यार नहीं, नीचा दिखाने की चाहत थी. एकतरफा संबंध था हमारा. संबंध भी नहीं समझौता कहो इसे?’’
‘‘आजकल शुभेंदु कहां है?’’
‘‘कुछ दिन पहले तक तो रूपा के घर पर ही था. बच्चे सिंगापुर चले गए तो उस की रहीसही शर्म और मर्यादा भी समाप्त हो गई. रूपा की मौत के बाद वह आया था मेरे पास. मेरे पैर पकड़ कर बोला कि तुम मेरे अंधेरे जीवन की चांदनी हो. एक ऐसी चांदनी, जो सीखचों में कैद रही. अब तुम मेरे जीवन को अपनी चांदनी से नहला कर मेरे गुनाह माफ कर दो.’’
‘‘मैं चुप रही तो, शुभेंदु ने फिर से हाथ जोड़ कर विनती की कि इस बुढ़ापे के प्रभात में तुम्हें छोड़ कर मेरा अब कोईर् सहारा नहीं. आंखों की रोशनी कम हो गई है. अंधा हो जाऊंगा.
‘‘तब मैं ने कहा कि शुभेंदु, संध्या के धूमिल पहर में कोई सवेरे का वरदान मांगे, तो यह उस की भूल है. तुम्हें बहुत देर से होश आया है. मुझे इन रंगीन और झूठी बातों से बहुत दूर रहना है समझे. मुझे बहकाना बंद करो. मेरी आंखों की पट्टी खुल चुकी है.’’
मनु की तरह ऐसी कई औरतें हैं, जो समय रहते गलत बात का विरोध नहीं कर पातीं. पता नहीं क्यों? शायद मन में छिपा डर कोई कदम उठाते समय फैल कर उन की शक्ति को कम कर देता है या फिर संस्कारगत दब्बूपना जागृत हो कर उस की समग्र सोचनेसमझने की ताकत कम कर देता है. काश, मनु ने भी इस सच को समझा होता तो आने वाली कई समस्याओं से छुटकारा पा लेती.
मनु के स्वर में छिपी पीड़ा मुझे गहरे तक कचोट गई. तेज डग भरती, मन ही मन कामना करती मैं उठ खड़ी हुई कि सुखद हो इस आत्मविश्वासी नारी की एकाकी यात्रा.