Hindi Story Collection : खोया हुआ सच – सीमा के दुख की क्या थी वजह

Hindi Story Collection : सीमा रसोई के दरवाजे से चिपकी खड़ी रही, लेकिन अपनेआप में खोए हुए उस के पति रमेश ने एक बार भी पीछे मुड़ कर नहीं देखा. बाएं हाथ में फाइलें दबाए वह चुपचाप दरवाजा ठेल कर बाहर निकल गया और धीरेधीरे उस की आंखों से ओझल हो गया.

सीमा के मुंह से एक निश्वास सा निकला, आज चौथा दिन था कि रमेश उस से एक शब्द भी

नहीं बोला था. आखिर उपेक्षाभरी इस कड़वी जिंदगी के जहरीले घूंट वह कब तक पिएगी?

अन्यमनस्क सी वह रसोई के कोने में बैठ गई कि तभी पड़ोस की खिड़की से छन कर आती खिलखिलाहट की आवाज ने उसे चौंका दिया. वह दबेपांव खिड़की की ओर बढ़ गई और दरार से आंख लगा कर देखा, लीला का पति सूखे टोस्ट चाय में डुबोडुबो कर खा रहा था और लीला किसी बात पर खिलखिलाते हुए उस की कमीज में बटन टांक रही थी. चाय का आखिरी घूंट भर कर लीला का पति उठा और कमीज पहन कर बड़े प्यार से लीला का कंधा थपथपाता हुआ दफ्तर जाने के लिए बाहर निकल गया.

सीमा के मुंह से एक ठंडी आह निकल गई. कितने खुश हैं ये दोनों… रूखासूखा खा कर भी हंसतेखेलते रहते हैं. लीला का पति कैसे दुलार से उसे देखता हुआ दफ्तर गया है. उसे विश्वास नहीं होता कि यह वही लीला है, जो कुछ वर्षों पहले कालेज में भोंदू कहलाती थी. पढ़ने में फिसड्डी और महाबेवकूफ. न कपड़े पहनने की तमीज थी, न बात करने की. ढीलेढाले कपड़े पहने हर वक्त बेवकूफीभरी हरकतें करती रहती थी.

क्लासरूम से सौ गज दूर भी उसे कोई कुत्ता दिखाई पड़ जाता तो बेंत ले कर उसे मारने दौड़ती. लड़कियां हंस कर कहती थीं कि इस भोंदू से कौन शादी करेगा. तब सीमा ने ख्वाब में भी नहीं सोचा था कि एक दिन यही फूहड़ और भोंदू लीला शादी के बाद उस की पड़ोसिन बन कर आ जाएगी और वह खिड़की की दरार से चोर की तरह झांकती हुई, उसे अपने पति से असीम प्यार पाते हुए देखेगी.

दर्द की एक लहर सीमा के पूरे व्यक्त्तित्व में दौड़ गई और वह अन्यमनस्क सी वापस अपने कमरे में लौट आई.

‘‘सीमा, पानी…’’ तभी अंदर के कमरे से क्षीण सी आवाज आई.

वह उठने को हुई, लेकिन फिर ठिठक कर रुक गई. उस के नथुने फूल गए, ‘अब क्यों बुला रही हो सीमा को?’ वह बड़बड़ाई, ‘बुलाओ न अपने लाड़ले बेटे को, जो तुम्हारी वजह से हर दम मुझे दुत्कारता है और जराजरा सी बात में मुंह टेढ़ा कर लेता है, उंह.’

और प्रतिशोध की एक कुटिल मुसकान उस के चेहरे पर आ गई. अपने दोनों हाथ कमर पर रख कर वह तन कर रमेश की फोटो के सामने खड़ी हो गई, ‘‘ठीक है रमेश, तुम इसलिए मुझ से नाराज हो न, कि मैं ने तुम्हारी मां को टाइम पर खाना और दवाई नहीं दी और उस से जबान चलाई. तो लो यह सीमा का बदला, चौबीसों घंटे तो तुम अपनी मां की चौकीदारी नहीं कर सकते. सीमा सबकुछ सह सकती है, अपनी उपेक्षा नहीं. और धौंस के साथ वह तुम्हारी मां की चाकरी नहीं करेगी.’’

और उस के चेहरे की जहरीली मुसकान एकाएक एक क्रूर हंसी में बदल गई और वह खिलाखिला कर हंस पड़ी, फिर हंसतेहंसते रुक गई. यह अपनी हंसी की आवाज उसे कैसी अजीब सी, खोखली सी लग रही थी, यह उस के अंदर से रोतारोता कौन हंस रहा था? क्या यह उस के अंदर की उपेक्षित नारी अपनी उपेक्षा का बदला लेने की खुशी में हंस रही थी? पर इस बदले का बदला क्या होगा? और उस बदले का बदला…क्या उपेक्षा और बदले का यह क्रम जिंदगीभर चलता रहेगा?

आखिर कब तक वे दोनों एक ही घर की चारदीवारी में एकदूसरे के पास से अजनबियों की तरह गुजरते रहेंगे? कब तक एक ही पलंग की सीमाओं में फंसे वे दोनों, एक ही कालकोठरी में कैद 2 दुश्मन कैदियों की तरह एकदूसरे पर नफरत की फुंकारें फेंकते हुए अपनी अंधेरी रातों में जहर घोलते रहेंगे?

उसे लगा जैसे कमरे की दीवारें घूम रही हों. और वह विचलित सी हो कर धम्म से पलंग पर गिर पड़ी.

थप…थप…थप…खिड़की थपथपाने की आवाज आई और सीमा चौंक कर उठ बैठी. उस के माथे पर बल पड़ गए. वह बड़बड़ाती हुई खिड़की की ओर बढ़ी.

‘‘क्या है?’’ उस ने खिड़की खोल कर रूखे स्वर में पूछा. सामने लीला खड़ी थी, भोंदू लीला, मोटा शरीर, मोटा थुलथुल चेहरा और चेहरे पर बच्चों सी अल्हड़ता.

‘‘दीदी, डेटौल है?’’ उस ने भोलेपन से पूछा, ‘‘बिल्लू को नहलाना है. अगर डेटौल हो तो थोड़ा सा दे दो.’’

‘‘बिल्लू को,’’ सीमा ने नाक सिकोड़ कर पूछा कि तभी उस का कुत्ता बिल्लू भौंभौं करता हुआ खिड़की तक आ गया.

सीमा पीछे को हट गई और बड़बड़ाई, ‘उंह, मरे को पता नहीं मुझ से क्या नफरत है कि देखते ही भूंकता हुआ चढ़ आता है. वैसे भी कितना गंदा रहता है, हर वक्त खुजलाता ही रहता है. और इस भोंदू लीला को क्या हो गया है, कालेज में तो कुत्ते को देखते ही बेंत ले कर दौड़ पड़ती थी, पर इसे ऐसे दुलार करती है जैसे उस का अपना बच्चा हो. बेअक्ल कहीं की.’

अन्यमनस्क सी वह अंदर आई और डेटौल की शीशी ला कर लीला के हाथ में पकड़ा दी. लीला शीशी ले कर बिल्लू को दुलारते हुए मुड़ गई और उस ने घृणा से मुंह फेर कर खिड़की बंद कर ली.

पर भोंदू लीला का चेहरा जैसे खिड़की चीर कर उस की आंखों के सामने नाचने लगा. ‘उंह, अब भी वैसी ही बेवकूफ है, जैसे कालेज में थी. पर एक बात समझ में नहीं आती, इतनी साधारण शक्लसूरत की बेवकूफ व फूहड़ महिला को भी उस का क्लर्क पति ऐसे रखता है जैसे वह बहुत नायाब चीज हो. उस के लिए आएदिन कोई न कोई गिफ्ट लाता रहता है. हर महीने तनख्वाह मिलते ही मूवी दिखाने या घुमाने ले जाता है.’

खिड़की के पार उन के ठहाके गूंजते, तो सीमा हैरान होती और मन ही मन उसे लीला के पति पर गुस्सा भी आता कि आखिर उस फूहड़ लीला में ऐसा क्या है जो वह उस पर दिलोजान से फिदा है. कई बार जब सीमा का पति कईकई दिन उस से नाराज रहता तो उसे उस लीला से रश्क सा होने लगता. एक तरफ वह है जो खूबसूरत और समझदार होते हुए भी पति से उपेक्षित है और दूसरी तरफ यह भोंदू है, जो बदसूरत और बेवकूफ होते हुए भी पति से बेपनाह प्यार पाती है. सीमा के मुंह से अकसर एक ठंडी सांस निकल जाती. अपनाअपना वक्त है. अचार के साथ रोटी खाते हुए भी लीला और उस का पति ठहाके लगाते हैं. जबकि दूसरी ओर उस के घर में सातसात पकवान बनते हैं और वे उन्हें ऐसे खाते हैं जैसे खाना खाना भी एक सजा हो. जब भी वह खिड़की खोलती, उस के अंदर खालीपन का एहसास और गहरा हो जाता और वह अपने दर्द की गहराइयों में डूबने लगती.

‘‘सीमा, दवाई…’’ दूसरे कमरे से क्षीण सी आवाज आई. बीमार सास दवाई मांग रही थी. वह बेखयाली में उठ बैठी, पर द्वेष की एक लहर फिर उस के मन में दौड़ गई. ‘क्या है इस घर में मेरा, जो मैं सब की चाकरी करती रहूं? इतने सालों के बाद भी मैं इस घर में पराई हूं, अजनबी हूं,’ और वह सास की आवाज अनसुनी कर के फिर लेट गई.

तभी खिड़की के पार लीला के जोरजोर से रोने और उस के कुत्ते के कातर स्वर में भूंकने की आवाज आई. उस ने झपट कर खिड़की खोली. लीला के घर के सामने नगरपलिका की गाड़ी खड़ी थी और एक कर्मचारी उस के बिल्लू को घसीट कर गाड़ी में ले जा रहा था.

‘‘इसे मत ले जाओ, मैं तुम्हारे हाथ जोड़ती हूं,’’ लीला रोतेरोते कह रही थी.

लेकिन कर्मचारी ने कुत्ते को नहीं छोड़ा. ‘‘तुम्हारे कुत्ते को खाज है, बीमारी फैलेगी,’’ वह बोला.

‘‘प्लीज मेरे बिल्लू को मत ले जाओ. मैं डाक्टर को दिखा कर इसे ठीक करा दूंगी.’’

‘‘सुनो,’’ गाड़ी के पास खड़ा इंस्पैक्टर रोब से बोला, ‘‘इसे हम ऐसे नहीं छोड़ सकते. नगरपालिका पहुंच कर छुड़ा लाना. 2,000 रुपए जुर्माना देना पड़ेगा.’’

‘‘रुको, रुको, मैं जुर्माना दे दूंगी,’’ कह कर वह पागलों की तरह सीमा के घर की ओर भागी और सीमा को खिड़की के पास खड़ी देख कर गिड़गिड़ाते हुए बोली, ‘‘दीदी, मेरे बिल्लू को बचा लो. मुझे 2,000 रुपए उधार दे दो.’’

‘‘पागल हो गई हो क्या? इस गंदे और बीमार कुत्ते के लिए 2,000 रुपए देना चाहती हो? ले जाने दो, दूसरा कुत्ता पाल लेना,’’  सीमा बोली.

लीला ने एक बार असीम निराशा और वेदना के साथ सीमा की ओर देखा. उस की आंखों से आंसुओं की धारा बह रही थी. सहसा उस की आंखें अपने हाथ में पड़ी सोने की पतली सी एकमात्र चूड़ी पर टिक गईं. उस की आंखों में एक चमक आ गई और वह चूड़ी उतारती हुई वापस कुत्ता गाड़ी की तरफ दौड़ पड़ी.

‘‘भैया, यह लो जुर्माना. मेरे बिल्लू को छोड़ दो,’’ वह चूड़ी इंस्पैक्टर की ओर बढ़ाती हुई बोली.

इंस्पैक्टर भौचक्का सा कभी उस के हाथ में पकड़ी सोने की चूड़ी की ओर और कभी उस कुत्ते की ओर देखने लगा. सहसा उस के चेहरे पर दया की एक भावना आ गई, ‘‘इस बार छोड़ देता हूं. अब बाहर मत निकलने देना,’’ उस ने कहा और कुत्ता गाड़ी आगे बढ़ गई.

लीला एकदम कुत्ते से लिपट गई, जैसे उसे अपना खोया हुआ कोई प्रियजन मिल गया हो और वह फूटफूट कर रोने लगी.

सीमा दरवाजा खोल कर उस के पास पहुंची और बोली, ‘‘चुप हो जाओ, लीला, पागल न बनो. अब तो तुम्हारा बिल्लू छूट गया, पर क्या कोई कुत्ते के लिए भी इतना परेशान होता है?’’

लीला ने सिर उठा कर कातर दृष्टि से उस की ओर देखा. उस के चेहरे से वेदना फूट पड़ी, ‘‘ऐसा न कहो, सीमा दीदी, ऐसा न कहो. यह बिल्लू है, मेरा प्यारा बिल्लू. जानती हो, यह इतना सा था जब मेरे पति ने इसे पाला था. उन्होंने खुद चाय पीनी छोड़ दी थी और दूध बचा कर इसे पिलाते थे, प्यार से इसे पुचकारते थे, दुलारते थे. और अब, अब मैं इसे दुत्कार कर छोड़ दूं, जल्लादों के हवाले कर दूं, इसलिए कि यह बूढ़ा हो गया है, बीमार है, इसे खुजली हो गई है. नहीं दीदी, नहीं, मैं इस की सेवा करूंगी, इस के जख्म धोऊंगी क्योंकि यह मेरे लिए साधारण कुत्ता नहीं है, यह बिल्लू है, मेरे पति का जान से भी प्यारा बिल्लू. और जो चीज मेरे पति को प्यारी है, वह मुझे भी प्यारी है, चाहे वह बीमार कुत्ता ही क्यों न हो.’’

सीमा ठगी सी खड़ी रह गई. आंसुओं के सागर में डूबी यह भोंदू क्या कह रही है. उसे लगा जैसे लीला के शब्द उस के कानों के परदों पर हथौड़ों की तरह पड़ रहे हों और उस का बिल्लू भौंभौं कर के उसे अपने घर से भगा देना चाहता हो.

अकस्मात ही उस की रुलाई फूट पड़ी और उस ने लीला का आंसुओंभरा चेहरा अपने दोनों हाथों में भर लिया, ‘‘मत रो, मेरी लीला, आज तुम ने मेरी आंखों के जाले साफ कर दिए हैं. आज मैं समझ गई कि तुम्हारा पति तुम से इतना प्यार क्यों करता है. तुम उस जानवर को भी प्यार करती हो जो तुम्हारे पति को प्यारा है. और मैं, मैं उन इंसानों से प्यार करने की भी कीमत मांगती हूं, जो अटूट बंधनों से मेरे पति के मन के साथ बंधे हैं. तुम्हारे घर का जर्राजर्रा तुम्हारे प्यार का दीवाना है और मेरे घर की एकएक ईंट मुझे अजनबी समझती है. लेकिन अब नहीं, मेरी लीला, अब ऐसा नहीं होगा.’’

लीला ने हैरान हो कर सीमा को देखा. सीमा ने अपने घर की तरफ रुख कर लिया. अपनी गलतियों को सुधारने की प्रबल इच्छा उस की आंखों में दिख रही थी.

Hindi Kahani 2025 : रिश्तों का मर्म

 Hindi Kahani 2025 : मैं जब भी अनुराग को सुधांशु अंकल के साथ देखती तो न चाहते हुए भी मन में एक शक की लहर दौड़ जाती. बिल्कुल वही नुकीली नाक, ऊंचा माथा, भूरी आंखें और चौड़ी ठोढ़ी जैसे दोनों पड़ोसी नहीं बल्कि बापबेटे हों.

अनुराग यानी मेरे पति की सूरत मेरे ससुर से बहुत कम और हमारे पड़ोसी सुधांशु अंकल से काफी ज्यादा मिलती थी. मैं अक्सर सोचा करती कि इस बात की कोई तो वजह होगी. सुधांशु अंकल का वैसे भी हमारे घर के में बहुत आनाजाना है. उन की पत्नी की मौत 2 साल पहले हो गई थी. एक बेटा है जो नागपुर में अपनी पत्नी के साथ रहता है. इधर बीवी के जाने बाद से सुधांशु अंकल घर में अकेले ही रहते हैं. वैसे उन का ज्यादातर समय हमारे साथ ही गुजरता है. मां अक्सर अकेली भी सुधांशु अंकल के साथ बैठी बातें करती दिख जाती हैं. इस से मेरा शक और गहरा हो जाता.

मेरे ससुर काफी सीधे और शांत प्रवृत्ति के व्यक्ति हैं. मुझे वे कई बार बेचारे नजर आते हैं जो अपनी पत्नी और दोस्त की नजदीकियां इतनी सहजता से स्वीकार कर लेते हैं. मुझे सास के साथसाथ सुधांशु अंकल पर भी गुस्सा आता है. पत्नी नहीं है तो क्या पड़ोसी की पत्नी को अपना मान लेंगे या फिर कहीं उन की पत्नी इसी गम में तो नहीं चल बसी? तरहतरह की बातें मेरे दिमाग में चलती रहतीं. मन ही मन मैं ने सुधांशु अंकल और अपनी सास की एक अलग तस्वीर अपने दिमाग में बना ली थी.

“हैलो बेटा कैसे हो? हैप्पी दिवाली…” कहते हुए सुधांशु अंकल आए और सोफे पर पसर गए. न चाहते हुए भी मुझे उन के पैर छूने पड़े. फेक और गलत रिश्ते ढोने मुझे पसंद नहीं. मगर मैं क्या कर सकती थी. घर की बहू थी और अभी मेरी शादी को ज्यादा समय भी नहीं हुआ था.

“… और बेटा तुम्हारी सास कहां है? जरा बुलाना,” सुधांशु अंकल ने अखबार उठाते हुए कहा.

मुझे बड़ा गुस्सा आया. तल्ख़ आवाज में मैं ने कह भी दिया,” अंकल ऐसा लगता है जैसे आप बस मां से ही मिलने आते हो. कभी पिताजी और उन के सुपुत्र से भी मिल लिया कीजिए.”

“देख बेटा, मैं जानता हूं कि मेरा दोस्त अभी टहलने गया होगा और तेरा पति जिम में होगा. जाहिर है केवल तेरी सास ही घर पर होगी तो सोचा उन्हीं से मिल लूं.”

” तो अंकल आप ऐसे समय आते ही क्यों हो जब केवल मां मिले और कोई नहीं.”

“अरी यह क्या बकवास कर रही है बहू? तेरे सुधांशु अंकल इसी समय टहल कर लौटते हैं इतना तो पता होगा तुझे. जरूरी काम होगा सो वेट नहीं किया. इस में सवाल करने वाली भला कौन सी बात है? जा जरा चाय बना कर ला.”

मां सुधांशु अंकल के साथ जा कर लौन में बैठ गईं और बातचीत में तल्लीन हो गई. थोड़ी देर में पिताजी भी आ गए.

मुझे सब से पहले सुधांशु अंकल पर शक तब हुआ था जब एक दिन मैं ने उन्हें मां के साथ एक रेस्टोरेंट में देखा. उस दिन मैं ने यह बात आ कर अनुराग को भी बताई पर उस ने कोई रिएक्शन नहीं दिया. इतना कह कर चुप हो गया कि होगा कोई काम और तुम मां की जासूसी में क्यों रहती हो अपना देखो.

“जासूसी नहीं कर रही थी. जो नजर आया वह कह दिया,” मेरी आवाज़ में कड़वाहट थी.

एक दिन मैं ने वैसे ही जानने के लिए मां से पूछा,” अच्छा मां आप सुधांशु अंकल को कब से जानते हो?”

“कॉलेज टाइम से,” मां ने जवाब दिया.

“तो क्या वे आप के दोस्त थे?”

“हां बेटा, हम तीनों ही दोस्त थे.”

“ओके तो क्या वे तब से आप के पड़ोसी हैं?” मैं ने फिर से सवाल किया.

“नहीं बेटा, वे हमारे पड़ोसी तो 2 साल से हुए हैं. हमारे बगल वाला फ्लैट खाली था तो हम ने ही उन्हें खरीदने को कहा. वरना 20-22 साल तो उन्होंने शिफ्टिंग वाली जॉब की. कभी कहीं रहते थे तो कभी कहीं. रिटायरमेंट के बाद हमारे पड़ोसी बने तब तक भाभीजी का देहांत हो गया. ”

“मां मुझे तो लगता है पापा जी से कहीं ज्यादा वे आप के दोस्त हैं,” मैं ने कटाक्ष किया था.

मां ने एक तीखी नजर मुझ पर डाली और अपने काम में लग गईं. जाहिर है मेरी बात का मतलब वह अच्छी तरह से समझ रही थीं. मैं खुद चाहती थी कि वह यह बात समझें. मैं अक्सर सोचती कि अपने इस शक को कैसे परखूं? क्या सच में अनुराग और सुधांशु अंकल के बीच कोई रिश्ता है? और फिर एक दिन मुझे यह मौका मिल ही गया.

दरअसल हुआ यह कि उस दिन अचानक सुधांशु अंकल के सीने में दर्द हुआ तो उन्हें तुरंत अस्पताल ले जाया गया. पता चला कि उन्हें माइनर हार्ट अटैक आया था. मेरे घर के सभी सदस्य तुरंत अस्पताल भागे. मुझे भी जाना पड़ा. वहां अस्पताल की एक डॉक्टर कविता जो अंकल का इलाज कर रही थी मेरी कॉलेज की सहेली निकली.

हम ने कैंटीन में बैठ कर चाय पी और काफी देर तक एकदूसरे से बातें कर यादें ताज़ी करते रहे. इसी क्रम में मेरे मुंह से यह बात निकल गई कि कैसे अनुराग का चेहरा अंकल से मिलता है.

कविता ने तुरंत उपाय बताया,” ज्यादा सोचने की क्या बात है, अंकल का डीएनए टेस्ट करा ले.”

“मगर वह मानेंगे? ”

“मानेंगे या नहीं इस की चिंता मत कर. मैं उन का इलाज कर रही हूं. दूसरे टेस्ट के साथ डीएनए टेस्ट भी करा देती हूं. तब तक तू किसी बहाने अनुराग को जेनरल चेकअप के लिए अस्पताल ले आ. मैं अभी दूध का दूध और पानी का पानी कर दूंगी.”

“ओह थैंक यू सो मच डियर,” खुशी के मारे मैं उस के गले लग गई.

अगले ही दिन मैं अनुराग को ले कर कविता के पास पहुंची. कविता ने अनुराग का ब्लड सैंपल ले लिया. अगले दिन रिपोर्ट आनी थी. मैं पूरी रात सो न सकी. मेरी सास का एक बहुत बड़ा सीक्रेट जो खुलने वाला था. मैं उन की असलियत घर में सब के आगे लाना चाहती थी. मैं यह सोच कर बेचैन थी कि पता नहीं सच जान कर अनुराग को कितना बड़ा झटका लगेगा और पापा जी की कहीं तबियत ही न बिगड़ जाए. पर मैं भी क्या कर सकती हूं. सच सामने तो लाना ही होगा.

अगले दिन मैं सुबहसुबह अस्पताल पहुंच गई. कविता एक पेशेंट में व्यस्त थी. इंतजार के वे दोतीन घंटे बहुत बेचैनी भरे थे. दोपहर में कविता फ्री हुई तो उस ने मुझे बुलाया. मेरा दिल जोरों से धड़क रहा था जैसे मेरा रिजल्ट आने वाला हो.

“यह लो रिपोर्ट, तुम सही थी प्रिया. सुधांशु अंकल ही असल में अनुराग के पिता हैं.”

“यानी मेरा शक सही निकला,” मैं ने ठंडी सांस ली.

अब मुझे अपनी सास के इस राज से पर्दा उठाने का जरिया मिल गया था. मैं घर गई. शाम का समय था. सब घर में थे और मिल कर एक नाटक देख रहे थे जिस में सास बहू को थोड़े मर्यादा में रहने की सीख दे रही थी. मुझे मौका मिल गया.

मैं ने तुरंत कटाक्ष किया,” आजकल की तो सासों का तो पता ही नहीं चलता. वे इतनी सहजता से नाजायज रिश्ते को जायज बना देती हैं. इन सासों को सीख कौन देगा?”

मेरे मुंह से अचानक ऐसी बात सुन कर मां के साथसाथ पिताजी और अनुराग भी मेरा मुंह ताकने लगे.

मैं ने अपनी सास की तरफ देखते हुए कहा,” क्यों मां आप ने कभी अवैध रिश्ते नहीं रखे?”

” यह क्या बकवास कर रही हो प्रिया?’ ऐसे बात की जाती है मां से?” अनुराग चिल्लाया.

“सही बात ही कह रही हूं अनुराग. तुम्हें कितना भी चुभे पर सच तो यह है कि मां कोई दूध की धुली नहीं. सुधाकर अंकल के साथ नाजायज रिश्ता है इन का. ”

“प्रिया ..” गुस्से में अनुराग ने मुझे एक थप्पड़ जड़ दिया था.

पापा जी नजरें बचाते कमरे से बाहर निकल गए. मैं ने अनुराग के आगे रिपोर्ट रखते हुए कहा,” देख लो मैं सच कह रही हूं या झूठ, अपनी आंखों से देख लो.”

अनुराग ने रिपोर्ट पढ़ी और सकते में आ गए. सास चुपचाप बैठी टीवी देखती रहीं.

“मां सब की आंखों में धूल झोंक सकती हैं पर मेरी आंखों में नहीं. बहुत पुराना नाजायज रिश्ता चला आ रहा है इन के बीच…” मैं गुस्से में कुछ और कहती तब तक पिताजी सामने आ गए.

मेरे पास वाले सोफे पर बैठते हुए बोले,” बेटा धूल झोंकना तब कहा जाता है जब कोई काम छुप कर किया जाए.”

“यानी पापा जी आप को सब पता था, फिर भी आप ने कभी अपनी ज़ुबान नहीं खोली?”

“बेटा सिर्फ पता ही नहीं था बल्कि सच तो यह है कि मैं ने ही कहा था ऐसा करने को.”

“यह आप क्या कह रहे हैं पिताजी?” पिताजी की बात सुन कर मैं दंग रह गई थी.

” मैं सही कह रहा हूं बेटा अनुराग. ”

“सुनो कुछ न कहो. जाने दो,” मां ने उन्हें टोका था.

“कहना तो पड़ेगा मधु, ” पिताजी ने आज सब सच कह देने का मन बना लिया था.

मैं आश्चर्य से पिताजी की तरफ देख रही थी. उन्होंने कहा,” प्रिया असल में ऐसा करने के लिए मैं ने ही कहा था. हमें एक औलाद चाहिए थी और मैं मधु को संतान सुख नहीं दे पाया. तब हम ने तय किया कि बच्चा गोद ले लेंगे. मगर मैं मधु की संतान चाहता था. इसी दौरान मुझे एक पुरानी फिल्म से आइडिया आया. मैं ने एक दिन के लिए मधु को सुधांशु के करीब जाने की रिक्वेस्ट की और इस बारे में सुधांशु से भी बात की. मगर दोनों ही इस के लिए तैयार नहीं थे.

तब मैं ने बहुत मुश्किल से मधु को कसम दे कर इस बात के लिए तैयार कर लिया. एक रात सुधांशु हमारे घर आया तो मैं ने उस के साथ बैठ कर खूब शराब पी. मैं ने शराब इसलिए पी ताकि ऐसा करवा सकूं और इस दर्द को पी जाऊं. उधर सुधांशु को शराब इसलिए पिलाई ताकि नशे में उसे कुछ होश न रहे और मेरी योजना पूरी हो जाए. सुधांशु को तो यह बात पता भी नहीं कि उस रात ऐसा कुछ हुआ था. नशे की हालत में ही मधु और सुधांशु को कमरे में छोड़ कर मैं निकल गया. उस रात मैं ने जानबूझ कर मधु को सुधांशु की बीवी वाले कपड़े पहनाए थे और वैसा ही हेयरस्टाइल कराया था.

मधु ने बहुत मुश्किल से सुधांशु के करीब जाने की बात स्वीकारी थी. उस का दिल भी ऐसा करना स्वीकार नहीं कर रहा था. इधर नशे में सुधांशु ने मधु को अपनी पत्नी प्रीति समझ कर रिश्ता बनाया. मधु के गर्भ में अनुराग का आगमन हुआ.

आज तक हम दोनों पतिपत्नी ने यह बात सुधांशु से छिपा कर रखी है. बहू प्लीज उसे कुछ मत बताना.”

मैं कुछ बोलने की हालत में नहीं थी. पिताजी ने अपनी बात कह कर मेरी बोलती बंद कर दी थी. हमें पता भी नहीं चला कि कब सुधांशु अंकल ने दरवाजे के पीछे खड़े हो कर सारी बातें सुन ली थीं.

उन्होंने कमरे में प्रवेश किया और दोस्त को धक्का मारते हुए चीखे पड़े, “यह सब तूने क्या किया अरविंद ? ऐसा क्यों किया? मुझ से कह देता मैं अपना बेटा तुझे दे देता. पर इस तरह चोरीछिपे यह सब करवाना…. मैं तुझे कभी माफ नहीं कर पाऊंगा अरविंद. अब कभी तुझ से बात भी नहीं करूंगा. कभी नहीं आऊंगा तेरे घर तुझ से मिलने….,” कह कर वे चले गए.

घर में हर कोई हतप्रभ रह गया था. पिताजी खुद से नजरें नहीं मिला पा रहे थे तो मां ने खुद को एक कमरे में बंद कर लिया था. मैं खुद को दोषी मान कर ग्लानि महसूस कर रही थी मगर मेरी समझ में यह नहीं आ रहा था कि आखिर इस में इतनी बड़ी बात क्या हो गई? जो सच था वही तो सामने आया था.

अनुराग ने गुस्से में मुझ से कहा था,” अब खुशी मिल गई तुम्हें? तुम्हारे कारण पूरे घर में सन्नाटा पसर गया और दिलों में तूफान उतर आया. ”

“पर अनुराग मैं ने ऐसा क्या कर दिया? जो सच था वही तो सामने आया न.”

“कुछ बातें छिपी रहें तभी सही होता है प्रिया क्यों कि उस समय की परिस्थितियां या हालात हम नहीं समझ सकते. इस तरह वह बात सामने ला कर तुम ने बिल्कुल भी सही नहीं किया.”

मैं असमंजस में थी. अनुराग ने मुझे ही दोषी करार दिया था. मुझे समझ नहीं आ रहा था कि अब सब ठीक कैसे करूँ ? सास मुझ से बात करने को तैयार नहीं थी. सुधांशु अंकल ने भी घर आना बिल्कुल बंद कर दिया था और पिताजी मुझ से नजरें ही नहीं मिला रहे थे. दूरदूर भाग रहे थे. खाना तैयार कर सब को आवाज देती पर कोई खाने नहीं आता. फिर खुद ही जबरन अनुराग को खिला कर आती और अनुराग के हाथों मां और पिताजी के पास खाना भिजवाती.

ऐसे माहौल में मुझे भी बेचैनी लगने लगी थी. कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था. इस बीच पिताजी की तबीयत खराब हो गई. उन के पेट में दर्द था और बुखार भी आ रहा था. अनुराग ने बताया कि उन्हें पहले किडनी की प्रॉब्लम हो चुकी है. हम फटाफट उन्हें डॉक्टर के पास ले कर पहुंचे. रास्ते में अनुराग ने मुझे एक बात और बताई.

उस ने कहा,” कुछ साल पहले पापा की दोनों किडनी खराब हो गई थी. वे महीनों अस्पताल में रहे थे. मैं किडनी देना चाहता था पर उस में कुछ प्रॉब्लम आ गई और मेरी किडनी नहीं लग सकी. ऐसे में एक दिन सुधांशु अंकल आए. उस वक्त वे हैदराबाद में पोस्टेड थे पर पापा की तबियत के बारे में सुन कर दिल्ली आ गए. बिना किसी से सलाह लिए एक झटके में उन्होंने पापा को अपनी एक किडनी देने का फैसला लिया. सुधांशु अंकल की किडनी पापा के शरीर में काम कर रही है.”

सहसा ही मेरी आंखें भर आईं. मैं समझ गई थी कि इन की दोस्ती कितनी गहरी है. नाहक ही मैं ने इन के बीच दरार पैदा कर दी थी. पिताजी की यह हालत भी कहीं न कहीं उन के मन की उदासी का नतीजा ही है. मैं ने तय किया कि चाहे कुछ भी हो जाए मैं सुधांशु अंकल को वापस पिताजी की जिंदगी में ले कर आऊंगी.

शाम के समय बिना किसी को कुछ बताए मैं सुधांशु अंकल के पास पहुंच गई. वे उदास और खामोश से अपने कमरे में बैठे हुए थे.

मुझे देख कर उन्होंने आश्चर्य से मेरी तरफ देखा तो मैं उन के पैर पकड़ कर रोने लगी,” पिताजी आप ने मुझे एहसास दिला दिया है कि प्यार किसे कहते हैं. आप वाकई हमारे घर की ख़ुशियों की सब से जरूरी कड़ी हो. मैं ने आप के और मां के रिश्ते पर लांछन लगाने की कोशिश की जो सरासर गलत था. वाकई गलती मेरी थी. आप के बिना हमारा घर उजड़ा हुआ सा है. आप आ कर उस घर को फिर से आबाद कर दीजिए. उम्र भर के लिए आप की अहसानमंद रहूंगी. आप को मैं ने अपना तीसरा पिता माना है. पहले मेरे अपने पिता, फिर मेरे ससुर जो मेरे पिता के जैसे हैं और तीसरे आप जो सब से प्यारे पिता हैं. यह बात मैं दिल की गहराइयों से कह रही हूं. आप के बिना हमारा घर वीराना हो गया है. एक बार चलिए मेरे साथ. पिताजी अस्पताल में हैं. आप से जब तक बात नहीं होगी वह ठीक नहीं हो पाएंगे…”

“क्यों क्या हुआ उसे? कहीं किडनी की प्रॉब्लम तो नहीं ?,” घबरा कर सुधांशु अंकल ने पूछा.

“प्रॉब्लम तो वही है अंकल पर उस का सीधा नाता दिमाग से भी है. आप से मिल कर वे ठीक हो जाएंगे ऐसा मेरा विश्वास है. प्लीज आप मेरे साथ चलिए,” कहते हुए मैं ने उन के पैर फिर से पकड़ लिए. उन्होंने मुझे सीने से लगा लिया और तुरंत गाड़ी निकाली. हम दोनों अस्पताल पहुंचे.

पिताजी बेड पर थे और बगल में मां बैठी हुई थीं. अनुराग भी उदास सा पास ही खड़ा था. मेरे साथ सुधांशु अंकल को देखते ही सब के चेहरे खिल उठे. मां ने पिताजी को उठाया. उन्होंने धीमेधीमे पलकें खोलीं. सामने सुधांशु अंकल को देख एकदम से उन्हें अपने पास खींच लिया और दोनों हाथों में भींचते हुए सीने से लगा लिया. सब की आंखें रो रही थीं. मगर ये खुशी के आंसू थे.

सुधांशु अंकल ने पिताजी का हाथ थाम कर कहा,” अरविंद तू क्या सोचता है, तू ही प्यार करता है मुझ से? मैं प्यार नहीं करता? तेरे बिना मैं भी कहां जी पा रहा हूं. नहीं रह सकता मैं तुम दोनों के बिना,” कहते हुए उन्होंने मेरी सास की तरफ देखा तो वह भी करीब आ गईं.

“जानती है प्रिया हम तीनों तीन शरीर एक प्राण हैं. हम में से कोई भी अलग हुआ तो हमारा सब कुछ बिखर जाएगा,” सुधांशु अंकल ने अपनी भीगी पलकें पोंछते हुए मुझ से कहा.

” मैं एक बार फिर दिल से शर्मिंदा हूं सुधांशु अंकल. आप तीनों के गहरे प्यार को मैं समझ नहीं पाई. गलत बातें कह दीं. आज समझ आया कि एकदूसरे के बिना आप तीनों अधूरे हैं. आप ने एकदूसरे को संपूर्णता दी है. मुझे नाज है कि मैं इस घर में आई. आप सबों के प्यार की छाया में रह कर ही मैं खुश रह सकती हूं.”

मेरी बात सुन कर सास ने रोते हुए मुझे गले लगा लिया. पिताजी और अनुराग मेरी तरफ प्यार से देख रहे थे. आज मैं ने रिश्तों का मर्म समझ लिया था.

Famous Hindi Stories : तुम कैसी हो

Famous Hindi Stories : एक हफ्ते पहले ही शादी की सिल्वर जुबली मनाई है हम ने. इन सालों में मु झे कभी लगा ही नहीं या आप इसे यों कह सकते हैं कि मैं ने कभी इस सवाल को उतनी अहमियत नहीं दी. कमाल है. अब यह भी कोई पूछने जैसी बात है, वह भी पत्नी से कि तुम कैसी हो. बड़ा ही फुजूल सा प्रश्न लगता है मु झे यह. हंसी आती है. अब यह चोंचलेबाजी नहीं, तो और क्या है? मेरी इस सोच को आप मेरी मर्दानगी से कतई न जोड़ें. न ही इस में पुरुषत्व तलाशें.

सच पूछिए तो मु झे कभी इस की जरूरत ही नहीं पड़ी. मेरा नेचर ही कुछ ऐसा है. मैं औपचारिकताओं में विश्वास नहीं रखता. पत्नी से फौर्मेलिटी, नो वे. मु झे तो यह ‘हाऊ आर यू’ पूछने वालों से भी चिढ़ है. रोज मिलते हैं. दिन में दस बार टकराएंगे, लेकिन ‘हाय… हाऊ आर यू’ बोले बगैर खाना नहीं हजम होता. अरे, अजनबी थोड़े ही हैं. मैं और आशा तो पिछले 24 सालों से साथ में हैं. एक छत के नीचे रहने वाले भला अजनबी कैसे हो सकते हैं? मेरा सबकुछ तो आशा का ही है. गाड़ी, बंगला, रुपयापैसा, जेवर मेरी फिक्सड डिपौजिट, शेयर्स, म्यूचुअल फंड, बैंक अकाउंट्स सब में तो आशा ही नौमिनी है. कोई कमी नहीं है. मु झे यकीन है आशा भी मु झ से यह अपेक्षा न रखती होगी कि मैं इस तरह का कोई फालतू सवाल उस से पूछूं. आशा तो वैसे भी हर वक्त खिलीखिली रहती है, चहकती, फुदकती रहती है.

50वां सावन छू लिया है उस ने. लेकिन आज भी वही फुरती है. वही पुराना जोश है शादी के शुरुआती दिनों वाला. निठल्ली तो वह बैठ ही नहीं सकती. काम न हो तो ढूंढ़ कर निकाल लेती है. बिजी रखती है खुद को. अब तो बच्चे बड़े हो गए हैं वरना एक समय था जब वह दिनभर चकरघिन्नी बनी रहती थी. सांस लेने की फुरसत नहीं मिलती थी उसे. गजब का टाइम मैनेजमैंट है उस का. मजाल है कभी मेरी बैड टी लेट हुई हो, बच्चों का टिफिन न बन पाया हो या कभी बच्चों की स्कूल बस छूटी हो. गरमी हो, बरसात हो या जाड़ा, वह बिना नागा किए बच्चों को बसस्टौप तक छोड़ने जाती थी. बाथरूम में मेरे अंडरवियर, बनियान टांगना, रोज टौवेल ढूंढ़ कर मेरे कंधे पर डालना और यहां तक कि बाथरूम की लाइट का स्विच भी वह ही औन करती है. औफिस के लिए निकलने से पहले टाई, रूमाल, पर्स, मोबाइल, लैपटौप आज भी टेबल पर मु झे करीने से सजा मिलता है. उसे चिंता रहती है कहीं मैं कुछ भूल न जाऊं. औफिस के लिए लेट न हो जाऊं. आलस तो आशा के सिलेबस में है ही नहीं. परफैक्ट वाइफ की परिभाषा में एकदम फिट.

कई बार मजाक में वह कह भी देती है, ‘मेरे 2 नहीं, 3 बच्चे हैं.’ आशा की सेहत? ‘टच वुड’. वह कभी बीमार नहीं पड़ी इन सालों में. सिरदर्द, कमरदर्द, आसपास भी नहीं फटके उस के. एक पैसा मैं ने उस के मैडिकल पर अभी तक खर्च नहीं किया. कभी तबीयत नासाज हुई भी तो घरेलू नुस्खों से ठीक हो जाती है. दीवाली की शौपिंग के लिए निकले थे हम. आशा सामान से भरा थैला मु झे कार में रखने के लिए दे रही थी. दुकान की एक सीढ़ी वह उतर चुकी थी. दूसरी सीढ़ी पर उस ने जैसे ही पांव रखा, फिसल गई. जमीन पर कुहनी के बल गिर गई. चिल्ला उठा था मैं. ‘देख कर नहीं चल सकती. हरदम जल्दी में रहती हो.’ भीड़ जुट गई, जैसे तमाशा हो रहा हो. ‘आप डांटने में लगे हैं, पहले उसे उठाइए तो,’ भीड़ में से एक महिला आशा की ओर लपकती हुई बोली. मैं गुस्से में था. मैं ने आशा को अपना हाथ दिया ताकि वह उठ सके. आशा गफलत में थी. मैं फिर खी झ उठा, ‘आशा, सड़क पर यों तमाशा मत बनाओ. स्टैंडअप. कम औन. उठो.’ पर वह उठ न सकी. मैं खड़ा रहा. इस बीच, उस महिला ने आशा का बायां हाथ अपने कंधे पर रखा. दूसरे हाथ को आशा के कमर में डालती हुई बोली, ‘बस, बस थोड़ा उठने के लिए जोर लगाइए,’ वह खड़ी हो गई. आशा के सीधे हाथ में कोई हलचल न थी. मैं ने उस के हाथ को पकड़ने की कोशिश की.

वह दर्द के मारे चीख उठी. इतनी देर में पूरा हाथ सूज गया था उस का. ‘आप इन्हें तुरंत अस्पताल ले जाएं. लगता है चोट गहरी है,’ महिला ने आशा को कस कर पकड़ लिया. मैं पार्किंग में कार लेने चला गया. पार्किंग तक जातेजाते न जाने मैं ने कितनी बार कोसा होगा आशा को. दीवाली का त्योहार सिर पर है. मैडम को अभी ही गिरना था. महिला ने कार में आशा को बिठाने में मदद की, ‘टेक केअर,’ उस ने कहा. मैं ने कार का दरवाजा धड़ाम से बंद किया. उसे थैंक्स भी नहीं कहा मैं ने. आशा पर मेरा खिसियाना जारी था, ‘और पहनो ऊंची हील की चप्पल. क्या जरूरत है इस सब स्वांग की.

जानती हो इस उम्र में हड्डी टूटी तो जुड़ना कितना मुश्किल होता है?’’ मेरी बात सही निकली. राइट हैंड में कुहनी के पास फ्रैक्चर था. प्लास्टर चढ़ा दिया गया था. 20 दिन की फुरसत. घर में सन्नाटा हो गया. आशा का हाथ क्या टूटा, सबकुछ थम गया, लगा, जैसे घर वैंटिलेटर पर हो. सारे काम रुक गए. यों तो कामवाली बाई लगा रखी थी, पर कुछ ही घंटों में मु झे पता चल गया कि बाई के हिस्से में कितने कम काम आते हैं. असली ‘कामवाली’ तो आशा ही है. मैं अब तक बेखबर था इस से. मेरे घर की धुरी तो आशा है. उसी के चारों ओर तो मेरे परिवार की खुशियां घूमती हैं. शाम की दवा का टाइम हो गया. आशा ने खुद से उठने की कोशिश की. उठ न सकी.

मैं ने ही दवाइयां निकाल कर उस की बाईं हथेली पर रखीं. पानी का गिलास मैं ने उस के मुंह से लगा दिया. मेरा हाथ उस के माथे पर था. मेरे स्पर्श से उस की निस्तेज आंखों में हलचल हुई. बरबस ही मेरे मुंह से निकल गया, ‘‘तुम कैसी हो, आशा?’’ यह क्या, वह रोने लगी. जारजार फफक पड़ी. उस की हिचकियां रुकने का नाम नहीं ले रही थीं. उस के आंसू मेरे हाथ पर टपटप गिर रहे थे. आंसुओं की गरमाहट मेरी रगों से हो कर दिल की ओर बढ़ने लगी. उस के अश्कों की ऊष्मा ने मेरे दिल पर बरसों से जमी बर्फ को पिघला दिया. अकसर हम अपनी ही सोच, अपने विचारों और धारणाओं से अभिशप्त हो जाते हैं. यह सवाल मेरे लिए छोटा था, पर आशा न जाने कब से इस की प्रतीक्षा में थी. बहुत देर कर दी थी मैं ने.

Hindi Kahaniyan : हिसाब – बचपन की सहेली को देख कैसे गड़बड़ा गया हिसाब

Hindi Kahaniyan : ‘आज फिर 10 बज गए,’ मेज साफ करतेकरते मेरी नजर घड़ी पर पड़ी. इतने में दरवाजे की घंटी बजी. ‘कौन आया होगा, इस समय. अब तो फ्रिज में सब्जी भी नहीं है. बची हुई सब्जी मैं ने जबरदस्ती खा कर खत्म की थी,’ कई बातें एकसाथ दिमाग में घूम गईं.

थकान से शरीर पहले ही टूट रहा था. जल्दी सोने की कोशिश करतेकरते भी 10 बज गए थे. धड़कते दिल से दरवाजा खोला, सामने दोनों हाथों में बड़ेबड़े बैग लिए चेतना खड़ी थी. आगे बढ़ कर उसे गले लगा लिया, सारी थकान जैसे गायब हो गई और पता नहीं कहां से इतना जोश आ गया कि पांव जमीन पर नहीं पड़ रहे थे. ‘‘अकेली आई है क्या?’’ सामान अंदर रखते हुए उस से पूछा.

‘‘नहीं, मां भी हैं, औटो वाले को पैसे दे रही हैं.’’ मैं ने झांक कर देखा, वीना नीचे औटो वाले के पास खड़ी थी. वह मेरी बचपन की सहेली थी. चेतना उस की प्यारी सी बेटी है, जो उन दिनों अपनी मेहनत व लगन से मैडिकल की तृतीय वर्ष की छात्रा थी. मुझे वह बहुत प्यारी लगती है, एक तो वह थी ही बहुत अच्छी – रूप, गुण, स्वभाव सभी में अव्वल, दूसरे, मुझे लड़कियां कुछ ज्यादा ही अच्छी लगती हैं क्योंकि मेरी अपनी कोई बेटी नहीं. अपने और मां के संबंध जब याद करती हूं तो मन में कुछ कसक सी होती है. काश, मेरी भी कोई बेटी होती तो हम दोनों अपनी बातें एकदूसरे से कह सकतीं. इतना नजदीकी और प्यारभरा रिश्ता कोई हो ही नहीं सकता.

‘‘मां ने देर लगा दी, मैं देखती हूं,’’ कहती हुई चेतना दरवाजे की ओर बढ़ी. ‘‘रुक जा, मैं भी आई,’’ कहती हुई मैं चेतना के साथ सीढि़यां उतरने लगी.

नीचे उतरते ही औटो वाले की तेज आवाज सुनाई देने लगी.

मैं ने कदम जल्दीजल्दी बढ़ाए और औटो के पास जा कर कहा, ‘‘क्या बात है वीना, मैं खुले रुपए दूं?’’ ‘‘अरे यार, देख, चलते समय इस ने कहा, दोगुने रुपए लूंगा, रात का समय है. मैं मान गई. अब 60 रुपए मीटर में आए हैं. मैं इसे 120 रुपए दे रही हूं. 10 रुपए अलग से ज्यादा दे दिए हैं, फिर भी मानता ही नहीं.’’

‘‘क्यों भई, क्या बात है?’’ मैं ने जरा गुस्से में कहा. ‘‘मेमसाहब, दोगुने पैसे दो, तभी लूंगा. 60 रुपए में 50 प्रतिशत मिलाइए, 90 रुपए हुए, अब इस का दोगुना, यानी कुल 180 रुपए हुए, लेकिन ये 120 रुपए दे रही हैं.’’

‘‘भैया, दोगुने की बात हुई थी, इतने क्यों दूं?’’ ‘‘दोगुना ही तो मांग रहा हूं.’’

‘‘यह कैसा दोगुना है?’’ ‘‘इतना ही बनता है,’’ औटो वाले की आवाज तेज होती जा रही थी. सो, कुछ लोग एकत्र हो गए. कुछ औटो वाले की बात ठीक बताते तो कुछ वीना की.

‘‘इतना लेना है तो लो, नहीं तो रहने दो,’’ मैं ने गुस्से से कहा. ‘‘इतना कैसे ले लूं, यह भी कोई हिसाब हुआ?’’

मैं ने मन ही मन हिसाब लगाया कि कहीं मैं गलत तो नहीं क्योंकि मेरा गणित जरा ऐसा ही है. फिर हिम्मत कर के कहा, ‘‘और क्या हिसाब हुआ?’’ ‘‘कितनी बार समझा दिया, मैं 180 रुपए से एक पैसा भी कम नहीं लूंगा.’’

‘‘लेना है तो 130 रुपए लो, वरना पुलिस के हवाले कर दूंगी,’’ मैं ने तनिक ऊंचे स्वर में कहा. ‘‘हांहां, बुला लो पुलिस को, कौन डरता है? कुछ ज्यादा नहीं मांग रहा, जो हिसाब बनता है वही मांग रहा हूं,’’ औटो वाला जोरजोर से बोला.

इतने में पुलिस की मोटरसाइकिल वहां आ कर रुकी. ‘‘क्या हो रहा है?’’ सिपाही कड़क आवाज में बोला.

‘‘कुछ नहीं साहब, ये पैसे नहीं दे रहीं,’’ औटो वाला पहली बार धीमे स्वर में बोला. ‘‘कितने पैसे चाहिए?’’

‘‘दोगुने.’’ ‘‘आप ने कितने रुपए दिए हैं?’’ इस बार हवलदार ने पूछा.

‘‘130 रुपए,’’ वीना ने कहा. ‘‘कहां हैं रुपए?’’ हवलदार कड़का तो औटो वाले ने मुट्ठी खोल दी.

सिपाही ने एक 50 रुपए का नोट उठाया और उसे एक भद्दी सी गाली दी, ‘‘साला, शरीफों को तंग करता है, भाग यहां से, नहीं तो अभी चालान करता हूं,’’ फिर हमारी तरफ देख कर बोला, ‘‘आप लोग जाइए, इसे मैं हिसाब समझाता हूं.’’ हम चंद कदम भी नहीं चल पाई थीं कि औटो के स्टार्ट होने की आवाज आई.

मैं हतप्रभ सोच रही थी कि किस का हिसाब सही था, वीना का, औटो वाले का या पुलिस वाले का?

स्किन के लिए बेहद फायदेमंद है Body Butter, जानें इसके शानदार फायदे

Body Butter : त्वचा को मुलायम और पोषित बनाए रखने के लिए बाजार में कई तरह के मौइस्चराइजर उपलब्ध हैं लेकिन यदि आप प्राकृतिक और प्रभावी विकल्प की तलाश में हैं तो बौडी बटर और तेल सब से बेहतरीन समाधान हो सकते हैं. प्राकृतिक बौडी बटर और तेल त्वचा की गहराई से नमी बनाए रखते हैं जिस से त्वचा कोमल और स्वस्थ बनी रहती है.

पेश हैं, त्वचा के सूखेपन से बचाव के लिए टौप 5 प्राकृतिक बौडी बटर और तेल के बारे में जानकारी:

अरोमा मैजिक कोकोआ बटर और वैनिला बौडी बटर

कोकोआ बटर और वैनिला से भरपूर यह अल्ट्रानरिशिंग फौर्मूला त्वचा की इलास्टिसिटी और सौफ्टनेस को बनाए रखता है. यह स्ट्रैच मार्क्स को कम करने और त्वचा की रंगत सुधारने में मदद करता है. इस में कैरट सीड, व्हीट जर्म और कोकोनट औयल की शक्ति होती है जो त्वचा को गहराई से पोषण देती है. वैनिला इस में एक ऐंटीऔक्सीडैंट इमोलिएंट की तरह कार्य करता है और एक मीठी सुगंध छोड़ता है.

फायदे

त्वचा को गहराई से पोषण देता है.

त्वचा की इलास्टिसिटी में सुधार करता है.

स्ट्रैच मार्क्स और दागधब्बों को कम करता है.

स्वस्थ त्वचा को पुनर्स्थापित करता है.

नौनग्रीसी और एसपीएफ 15 युक्त.

गर्भावस्था के दौरान और बाद में उपयोग के लिए सुरक्षित.

अरोमा मैजिक कोल्ड क्रीम

गहराई से मौइस्चराइजिंग और हाइड्रेटिंग

त्वचा को कोमल बनाए रखने के लिए कोल्ड क्रीम सब से अच्छा विकल्प है. यह ड्राई और खुजली वाली त्वचा को आराम देती है और उसे युवा और कोमल बनाती है. इस में कोकोआ और शिया बटर, ऐलोवेरा, ग्लिसरीन, तिल का तेल और लैवेंडर व नेरोली ऐसैंशियल औयल्स शामिल हैं.

फायदे

त्वचा को गहराई से मौइस्चराइज करती है.

खुजली और रूखेपन से राहत दिलाते हैं.

त्वचा को मुलायम और जवां बनाए रखती है.

अरोमा मैजिक आमंड नरिशिंग क्रीम

त्वचा को पोषण देने वाला ऐंटीएजिंग फौर्मूला. यह क्रीम एंटीएजिंग गुणों से भरपूर है और त्वचा को स्वस्थ और सुपर सौफ्ट बनाती है. इस में मौजूद शहद, कैरट सीड औयल और बादाम तेल त्वचा को गहराई से पोषण देते हैं और नमी को बनाए रखते हैं.

इस के अलावा इस में नैरोली और जैस्मिन ऐसैंशियल औयल्स होते हैं जो त्वचा की चमक बढ़ाते हैं.

फायदे

त्वचा को पोषण और नमी प्रदान करती है.

फाइन लाइंस और  झुर्रियों को कम करती है.

उम्र बढ़ने के संकेतों को रोकती है.

जोजोबा औयल: त्वचा और बालों के लिए एक बहुपयोगी तेल

जोबोबा औयल हलका, मीठा और नट्टी सुगंध वाला तेल है, जिसे जोजोबा पौधे से निकाला जाता है. यह ऐसैंशियल औयल्स के साथ मिल कर एक बेहतरीन मसाज औयल के रूप में काम करता है. यह त्वचा की नमी को बनाए रखता है और उसे कोमल बनाता है. इस के ऐंटीइनफ्लैमेटरी और ऐंटीऔक्सीडैंट गुण मुंहासों और  झांइयों से लड़ने में मदद करते हैं.

फायदे

त्वचा और बालों को नमी प्रदान करता है.

त्वचा और सिर की तैलीयता को संतुलित करता है.

स्ट्रैच मार्क्स और  झुर्रियों से लड़ने में मदद करता है.

ग्रेप सीड औयल: त्वचा की टोनिंग और ब्राइटनिंग के लिए बेहतरीन उपाय

ग्रेप सीड औयल अंगूर के बीजों से निकाला जाने वाला कोल्डप्रैस्ड प्राकृतिक तेल है जो त्वचा को टाइट और टोन करने में मदद करता है. जब इसे अरोमाथेरैपी ऐसैंशियल औयल्स के साथ मिलाया जाता है तो यह

मसाज के लिए एक आदर्श विकल्प बन जाता है. यह मुंहासों को कम करने, उम्र बढ़ने के संकेतों से लड़ने और त्वचा को पोषण देने में सहायक है.

फायदे

त्वचा को टाइट, टोन और ब्राइट करता है.

मुंहासों को कम करने में मदद करता है.

उम्र बढ़ने के संकेतों से लड़ता है.

मसाज के लिए बेहतरीन विकल्प.

-ब्लौसम कोचर, सौंदर्य विशेषज्ञा 

Sonam Kapoor ने डियोर ऑटम शो में बिखेरा जलवा

Sonam Kapoor : बौलीवुड की आइकन और ग्लोबल फैशन म्यूज़ सोनम कपूर ने डियोर ऑटम शो 2025 में अपनी मौजूदगी से सभी का ध्यान आकर्षित किया.जापान की सांस्कृतिक राजधानी क्योटो में आयोजित इस शो में सोनम ने डियोर प्री-फॉल 2025 के शानदार परिधान में शिरकत की और अपने अंदाज़ में गरिमा व स्टाइल का संगम प्रस्तुत किया. वह इस शो में भाग लेने वाली एकमात्र बौलीवुड स्टार रहीं.

डियोर की ब्रांड एम्बेसडर के रूप में, सोनम ने एक बार फिर अपनी विशिष्ट एलिगेंस और सादगी का परिचय दिया. यह शो क्योटो के प्रसिद्ध टो-जी मंदिर में आयोजित किया गया, जिसमें सोनम कई प्रतिष्ठित मेहमानों के साथ शामिल हुईं.

सोनम को उनकी बहन रिया कपूर ने स्टाइल किया था. उन्होंने अपनी डियोर लुक की तस्वीरें सोशल मीडिया पर शेयर कीं, जिन्हें फैशन क्रिटिक्स और फैन्स से काफी सराहना मिली.

इस शो में भाग लेने पर सोनम कपूर ने कहा, जापान हमेशा मेरे दिल के बेहद करीब रहा है. शादी के बाद मैं अपने पति के साथ क्योटो कई बार आई हूं और यहां के लोगों की गर्मजोशी और अपनापन महसूस किया है.इस साल डियोर एम्बेसडर के तौर पर लौटना मेरे लिए और भी खास है.

ये कोई राज़ नहीं कि डियोर अपने फैशन शो को बेहद खास और यादगार बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ता. इन शोज़ में स्टाइल और सांस्कृतिक प्रामाणिकता का सुंदर संगम देखने को मिलता है. डियोर प्री-फौल 2025 शो भी इसका एक शानदार उदाहरण है. मारिया ग्राजिया चिउरी द्वारा प्रस्तुत यह कलेक्शन जापान की समृद्ध विरासत और डियोर की शाश्वत शैली को एक साथ पिरोता है.

पंजाबी कुड़ी Jasmine Bhasin मुस्लिम प्रेमी अली गोनी के प्यार में पड़कर हुई बेरोजगार….

Jasmine Bhasin : टीवी इंडस्ट्री की क्यूट भोली भाली सुंदरी पंजाबी कुड़ी जैस्मिन भसीन ने पंजाबी और तमिल फिल्मों में काम करने के बाद छोटे पर्दे के शो दिल से दिल तक सिद्धार्थ शुक्ला के साथ लोकप्रियता हासिल की थी . इसके अलावा भी जैस्मिन ने खतरों के खिलाड़ी, फीयर फैक्टर, और बिग बौस 14 के जरिए छोटे पर्दे पर अपार लोकप्रियता बटोरी , बिग बॉस 14 में ही जैस्मिन को मुस्लिम एक्टर अली गोनी से प्यार हो गया. अली और जैस्मिन के बीच शिद्दत वाला प्यार आज भी बरकरार है. लेकिन शादी में अड़चनों के चलते 6 साल के लंबे अफेयर के बाद भी जैस्मिन और अली गोनी ने लिव इन रिलेशनशिप में रहना तय किया.

आज भी हमारे समाज में हिंदू और मुस्लिम की शादी को लेकर तमाम अड़चनों का सामना करना पड़ता है जैसे कि हाल ही में जब सोनाक्षी सिन्हा ने मुस्लिम से शादी की तो सिर्फ सोनाक्षी को ही नहीं बल्कि उनके पूरे परिवार को ट्रोल किया गया . ऐसा ही कुछ जैस्मिन भसीन भी अली गोनी के साथ मोहब्बत के बाद झेल रही है.

जैस्मिन भसीन ने एक इंटरव्यू में बताया कि बिग बौस से पहले उनके पास बहुत काम था. लेकिन अली गोनी जो कि मुस्लिम है उससे मोहब्बत के बाद उनको काम मिलना बंद हो गया, क्योंकि कई सारे लोग जस्मीन की मोहब्बत के खिलाफ है. जिस वजह से बिग बौस 14 के बाद उनको टीवी सीरियलों में काम मिलना लगभग बंद हो गया, जैस्मिन के अनुसार मैं ओटीटी में भी काम करने की इच्छुक थी लेकिन कहीं भी मुझे पौजिटिव रिजल्ट नहीं मिला. मेरा मानना है कि जब मेरे घर वालों को हमारे रिश्ते से कोई एतराज नहीं है अली के घर वालों को हमारे रिश्ते से कोई एतराज नहीं है तो मैं लोगों की परवाह क्यों करूं.

फिलहाल मेरा खर्चा बिग बौस में कमाई हुई इनकम और इंस्टाग्राम के लिए बनाए गए कंटेंट के जरिए मिल रहे पैसों से खर्चा चल रहा है . मैं बहुत ही पौजिटिव हूँ इसलिए मैं हार नहीं मानती आज नहीं तो कल मुझे मेरी मेहनत का फल जरूर मिलेगा ऐसा मेरा मानना है.

डा. बुशरा अतीक : कैसर अनुसंधान को आगे बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई

Dr Bushra Ateeq : डा. बुशरा अतीक प्रमुख कैंसर जीवविज्ञानी और आणविक औंकोलौजिस्ट हैं. वर्तमान में वे भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) कानपुर में जैविक विज्ञान और जैव इंजीनियरिंग विभाग में बतौर प्रोफैसर कार्यरत हैं.

डा. अतीक का जीव विज्ञान के प्रति जनून उन के हाईस्कूल के वर्षों से ही स्पष्ट था, जिस के कारण उन्होंने आनुवंशिकी में उच्च शिक्षा प्राप्त की. इस क्षेत्र में पीएचडी करने के बाद वे अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) नई दिल्ली और राष्ट्रीय प्रतिरक्षा विज्ञान संस्थान (एनआईआई) सहित कई प्रतिष्ठित संस्थानों में पोस्ट डाक्टरल शोध में शामिल हुईं. उन्होंने कनाडा के मौंट्रियल में मैकगिल विश्वविद्यालय और बाद में मिशिगन विश्वविद्यालय के मिशिगन सैंटर फौर ट्रांसलेशनल पैथोलौजी में अपना शोध आगे बढ़ाया, जहां उन्होंने एक शोध अन्वेषक (जूनियर फैकल्टी) के रूप में भी काम किया. फरवरी, 2013 में उन्होंने आईआईटी कानपुर जौइन किया, जहां उन्होंने कैंसर अनुसंधान को आगे बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई.

डा. अतीक को मिला गृहशोभा इंस्पायर अवार्ड

लेखन पर कई पुरस्कार

डा. अतीक का शोध आनुवंशिक और एपीजेनेटिक परिवर्तनों को सम झने पर केंद्रित है. उन के काम ने आणविक लक्षण वर्णन और संभावित चिकित्सीय लक्ष्यों में महत्त्वपूर्ण खोजों को जन्म दिया है. उन के शोध विभिन्न मैडिकल जर्नल्स में प्रकाशित होते रहे और अभी भी लगातार हो रहे हैं.

डा. अतीक का काम प्रौस्टेट कैंसर के लिए बायोमार्कर की पहचान करने में महत्त्वपूर्ण रहा है, जिस से निदान और उपचारात्मक रणनीतियों में सुधार हुआ है. देश में 50 वर्ष से अधिक आयु के पुरुषों में प्रौस्टेट कैंसर की समस्या बढ़ती ही जा रही है. इस का पता अधिकतर तब लगता है जब परेशानी ज्यादा बढ़ जाती है. अब इस समस्या की चपेट में 30 वर्ष तक के युवा भी आने लगे हैं, जिस के पीछे लाइफ स्टाइल डिसऔर्डर (जीवनशैली विकार) बड़ी वजह है. महज 2-3 फीसदी मामलों में जेनेटिक कारण हैं.

डा. अतीक कहती हैं कि यदि समय पर इस का पता चल जाए तो संतुलित खानपान, व्यायाम और लक्षणों के आधार पर समस्या पर काबू पाया जा सकता है.

अनुवाद संबंधी शोध के प्रति डा. अतीक का समर्पण प्रयोगशाला खोजों और नैदानिक अनुप्रयोगों के बीच की खाई को पाटता है, जिस से कैंसर रोगियों के बेहतर प्रबंधन और उपचार की उम्मीद जगी है. डा. अतीक को अपने शोध और लेखन पर कई पुरस्कार मिले हैं.

कई मानों में प्रेरणास्रोत

चिकित्सा विज्ञान में विज्ञान और प्रौद्योगिकी के लिए शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार, एस. रामचंद्रन राष्ट्रीय जैव विज्ञान पुरस्कार, जैव प्रौद्योगिकी बसंती देवी अमीर चंद पुरस्कार, सीएनआर राव संकाय पुरस्कार, सईदा बेगम महिला वैज्ञानिक पुरस्कार, पीके केलकर अनुसंधान पुरस्कार प्रदान किया गया.

डा. बुशरा अतीक कई मानों में प्रेरणास्रोत हैं. उन के शोध में कैंसर बायोमार्कर्स, कैंसर जीनोमिक्स, नौनकोडिंग आरएनए, ड्रग टारगेट और प्रौस्टेट कैंसर जैसे विषय शामिल हैं. उन का काम प्रौस्टेट, स्तन और बड़ी आंत के कैंसर पर केंद्रित है. उन का शोध कैंसर बायोमार्कर और मौलेक्यूलर बदलावों पर आधारित है जिस से प्रौस्टेट और स्तन कैंसर में बढ़ोतरी होती है.

डा. बुशरा कहती हैं, ‘‘हमारी प्रयोगशाला कैंसररोधी उपचार के टारगेट्स की खोज करना चाहती है. इन टारगेट्स की पहचान से कैंसर का जल्द ही पता लगाया जा सकेगा और यह बेहद महत्त्वपूर्ण है क्योंकि जल्दी पता लगने से कामयाबी के साथ उपचार होने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं.’’

अदिति गुप्ता : मासिकधर्म से जुड़ी शिक्षा से लड़कियों को प्रभावित कर रहीं

अदिति गुप्ता एक ऐसा नाम है जिस ने लीक से हट कर समाज की सोच बदलने का जज्बा दिखाया और इस के लिए हर संभव कोशिश की. अहमदाबाद के ‘नैशनल इंस्टिट्यूट औफ डिजाइन’ की पूर्व छात्रा अदिति गुप्ता पिछले 12 वर्षों से मैंस्ट्रुअल ऐजुकेटर की भूमिका निभा रही हैं. उन्होंने मैंस्ट्रुपीडिया की सहस्थापना की. बचपन में पीरियड्स से जुड़े स्टिग्मा का सामना करने के बाद उन्होंने इसी फील्ड में कुछ करने की ठानी. उन्हें एहसास था कि इस विषय पर बातचीत करते समय लोग काफी असहज महसूस करते हैं.

पीरियड्स को ले कर लोगों के बीच काफी अंधविश्वास है और इस वजह से लड़कियों को काफी कुछ सहना पड़ता है. इसलिए अदिति ने मैंस्ट्रुपीडिया के माध्यम से मासिकधर्म से जुड़े मिथकों और वर्जनाओं के बारे में लोगों को शिक्षित करने का फैसला लिया. मैंस्ट्रुपीडिया एक ऐसी पहल है जो मासिकधर्म को कलंकमुक्त करने के लिए कौमिक पुस्तकों और संबंधित मीडिया का उपयोग करती है.

मैंस्ट्रुपीडिया की स्थापना

गढ़वा,  झारखंड में जन्मी अदिति गुप्ता अपने समाज में मासिकधर्म को ले कर व्यापक कलंक और गलत धारणाओं को देखते हुए बड़ी हुईं. एक प्राकृतिक जैविक प्रक्रिया के प्रति संकीर्ण सोच और वर्जनाओं के खिलाफ उन्होंने जंग लड़ने और लोगों को जागरूक करने का फैसला लिया और इसी क्रम में 2012 में अदिति गुप्ता और उन के पति तुहिन पौल ने मैंस्ट्रुपीडिया की सहस्थापना की. अदिति का विजन मासिकधर्म के बारे में बातचीत को सामान्य बनाना, कलंक को कम करना और लड़कियों और महिलाओं को ज्ञान के साथ सशक्त बनाना है.

अदिति को मासिकधर्म पर खुल कर चर्चा करते समय सामाजिक प्रतिरोध और संदेह का सामना करना पड़ा खासकर रूढि़वादी समुदायों में. मैंस्ट्रुपीडिया के जरीए बच्चों, मातापिताओं और शिक्षकों को संवेदनशील तरीके से मासिकधर्म के बारे में शिक्षित करने के लिए कौमिक पुस्तकों, कार्यशालाओं और डिजिटल सामग्री का उपयोग शुरू किया. मैंस्ट्रुपीडिया कौमिक अब भारत और दुनियाभर के 20+ देशों के स्कूलों और घरों में एक विश्वसनीय साथी के रूप में पहुंच रही है.

मासिकधर्म से जुड़ी शिक्षा 13 हजार से अधिक स्कूलों तक पहुंच चुकी है और मैंस्ट्रुपीडिया कौमिक्स और कार्यशालाओं के माध्यम से 1.5 मिलियन से अधिक लड़कियों को प्रभावित कर रही है.

सफलता की कहानी

अदिति फोर्ब्स इंडिया 30 अंडर 30 अचीवर हैं. उन्हें 2015 में बीबीसी की 100 सब से प्रभावशाली महिलाओं में से एक नामित किया गया था और वे शार्क टैंक इंडिया विजेता संस्थापक हैं. उन्हें 7 देशों में मासिकधर्म स्वास्थ्य और जागरूकता के क्षेत्र में अपने काम के मौडल को सा झा करने के लिए आमंत्रित किया गया है. उन्होंने थौमसन राइटर्स फाउंडेशन ट्रस्ट महिला सम्मेलन लंदन में ब्रेकिंग टैबू पैनल पर भी बात की. बिजनैस टुडे ने समाज में बदलाव लाने के लिए काम करने के लिए उन्हें बीटी के सब से शक्तिशाली महिला प्रभाव पुरस्कारों से सम्मानित किया.

गृहशोभा इंस्पायर अवार्ड

प्रेरणादायी और अचीवर महिलाओं के काम को सम्मानित करने के लिए इस 20 मार्च को दिल्ली के त्रावणकोर पैलेस में अवार्ड समारोह का आयोजन हुआ जिस में अदिति गुप्ता को होमप्रैन्योर अचीवर (गृहशोभा इंस्पायर अवार्ड) से नवाजा गया. इस अवार्ड को पा कर अदिति के चेहरे पर जो मुसकान थी वह उन की सफलता की कहानी कह रही थी.

Couple Goals : मेरी गर्लफ्रैंड नौर्मल नहीं है, लेकिन वह मुझसे शादी करना चाहती है, क्या करूं?

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सवाल-

मैं 22 वर्षीय युवक हूं. एक लड़की से प्यार करता हूं. वह भी मुझ से प्यार करती है. मैं ने उस लड़की से शादी का वादा भी किया था पर अब मुझे पता चला है कि वह नौर्मल नहीं है. इसलिए मैं ने उस से शादी करने का इरादा बदल लिया है. जब मैं ने उसे बताया कि मैं उस से शादी नहीं कर सकता तो वह रोने लगी. मैं ने उसे समझाने की बहुत कोशिश की पर वह समझने को तैयार ही नहीं है. कहती है कि शादी करेगी तो सिर्फ मुझ से वरना सारी उम्र कुंआरी रहेगी. मैं उसे कैसे बताऊं कि उस से मेरी शादी क्यों नहीं हो सकती? कृपया जवाब एसएमएस से दें.

जवाब

आप जिस लड़की से प्यार करते हैं और जिस के साथ शादी करने का मन बना चुके थे उसे अब छोड़ना चाहते हैं. यह निर्णय लोगों की सुनीसुनाई बातों को ले कर किया है या आप ने स्वयं अनुभव किया है कि वह लड़की सामान्य नहीं है? उस से शादी का इरादा बदलने के पीछे वजह जो भी हो आप उसे किसी मुगालते में न रखें. कोई भी बहाना बना सकते हैं. मसलन, आप के घर वाले इस रिश्ते के लिए राजी नहीं हैं वगैरहवगैरह. जहां तक आप के प्रश्न का उत्तर एसएमएस से देने की बात है, तो पहले भी गृहशोभा में कई बार स्पष्ट किया जा चुका है कि किसी भी पाठक के प्रश्न का उत्तर व्यक्तिगत रूप से देना मुमकिन नहीं है. प्रश्नों के उत्तर सिर्फ पत्रिका में ही प्रकाशित किए जाते हैं. अत: फोन, पत्र या फिर एसएमएस द्वारा उत्तर पाने की अपेक्षा न करें.

गर्लफ्रेंड ब्वॉयफ्रेंड के रिश्ते में हल्की फुल्की नोंक झोंक तो चलती ही रहती है. ये नोंक-झोंक प्यार को और मजबूत बनाती है. लेकिन कभी-कभी झगड़ा इतना बढ़ जाता है कि रिश्ता टूटने की कगार पर आ जाता है. वैसे तो झगडे में कोई एक जिम्मेदार नहीं होता गलती दोनों तरफ से ही होती है. लेकिन आज हम आपको बताएंगे वो बातें जिससे ब्वॉयफ्रेंड अपनी गर्लफ्रेंड से दूरी बनाने लगता है.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

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