रात में सुकून भरी नींद चाहिए, तो तुरंत अपनाएं ये 4 टिप्स

लेखिका- दीप्ति गुप्ता

दिनभर की थकान के बाद हर कोई सोचता है कि रात में अच्छी नींद आ जाए. लेकिन कुछ लोगों को चैन और सुकून की नींद नसीब नहीं होती. तमाम कोशिशों के बाद भी रात में घंटों बिस्तर पर करवटे बदलते रहते हैं. एक दो दिन ऐसा होना सामान्य है. लेकिन लगातार आपके साथ ये हालात बन रहे हैं, तो यह चिंता की विषय है. क्योंकि नींद की कमी आपको थका हुआ और सुस्त बना देती है. इतना ही नहीं अगले दिन आप ऊर्जा में कमी का अनुभव भी कर सकते हैं. कई रिसर्च बताती  हैं कि खराब नींद का असर आपके हार्मोन और मास्तिष्क के काम करने पर पड़ता है. तो अगर आप भी उन लोगों में से हैं, जिनकी स्लीपिंग साइकिल डिस्टर्ब हो रही है या नींद की कमी के कारण लो एनर्जी जैसा फील कर रहे हैं, तो यहां कुछ तरीके हैं, जिन्हें अपनाकर आप  रात में स्वभाविक रूप से बेहतर नींद ले पाएंगे.

1. सही रूटीन बनाएं-

यदि आपको स्वभाविक रूप से नींद नहीं आती, तो इसका मतलब है कि आपका स्लीपिंग रूटीन गड़बड़ है. बता दें कि आपकी बायोलॉजिकल क्लॉक शरीर की सभी चीजों को निर्धारित करती है. इसलिए आपको सोने का एक समय फिक्स करना चाहिए. ऐसा इसलिए क्योंकि जब एक बार आप अपने शरीर को ये बता देते हैं कि आप इसे किस समय आराम करने देंगे , तो यह आपके मास्तिष्क को रिलेक्स करने और आपको सोने में मदद करने के लिए उन संकेतों को किक करना शुरू कर देता है. इसलिए अगर आपको घंटों तक बिस्तर पर लेटे रहने के बाद भी नींद न आए, तो सबसे पहले साने और जागने का समय फिक्स करें.

2. दिनभर एक्टिव रहें-

जब आप पूरे दिन एक्टिव रहते हैं, तो शरीर थक जाता है और अंत में इसे आराम की जरूरत होती है. कई लोग एक्टिव रहने के लिए व्यायाम भी करते हैं. व्यायाम करने से शरीर एंडोर्फिन हार्मोन रिलीज करता है, जिससे आपको बहुत जल्दी नींद नहीं आती और आप जागे हुए रहते हैं. इसलिए वर्कआउट करते समय एक बात का ध्यान रखें कि इसे सोने के दो घण्टे के भीतर बिल्कुल न करें. यदि आप रोजाना व्यायाम नहीं करते हैं तो आप तेज चलने या एरोबिक  करने की कोशिश करें. इससे आपका सोने का समय बढ़ जाएगा और आपको गहरी नींद भी आ जाएगी.

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3. गर्म पानी से नहाएं-

शायद आप न जानते हों, लेकिन शाम ढलने के बाद सोने से कुछ घण्टे पहले आपके शरीर का प्राकृतिक तापमान कम हो जाता है और सुबह 5 बजे के करीब फिर से ज्यादा हो जाता है. इसलिए सोने से दो घ्ंाटे पहले गर्म पानी से नहाएं. ऐसा करने से आपके शरीर का तापमान बढ़ जाएगा. इसके तुंरत बाद तेजी से ठंडा होने की अवधि आपके शरीर को तुरंत आराम देती है. जब आप ऐसा करते हैं, तो शरीर के तापमान में गर्म से लेकर ठंडी तक की तेज गिरावट से नींद आने लगती है. इसलिए अगर आपको सोने में परेशानी हो रही है तो साने से 90 मिनट पहले गर्म पानी से नहाने की कोशिश करें.

4. चाय पीएं-

वैसे तो कहा जाता है कि चाय पीने से नींद उड़ जाती है, लेकिन जिन लोगों को नींद की समस्या है, डॉक्टर्स उन्हें सोने से पहले कैफीन फ्री चाय पीने की सलाह देते हैं. ऐसे में कैमोमाइल टी बढ़िया विकल्प है. यह मास्तिष्क में रिसेप्टर्स के साथ बातचीत करने के लिए जानी जाती है. इसके नियमित सेवन से आपको स्वस्थ और लगातार नींद की दिनचर्या बनाने में बहुत मदद मिलती है.

नींद आपके स्वास्थ्य में अहम भूमिका निभाती  है. अपर्याप्त नींद बच्चों और वयस्कों में मोटापे के जोखिम को बढ़ाती है. साथ ही इससे हृदय रोग और मधुमेह का खतरा भी बढ़ता है. ऐसे में यहां बताए गए टिप्स आपके लिए मददगार साबित हो सकते हैं.

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मेरी बेटी को स्किजोप्रेनिआ की बीमारी है, क्या इससे जौब या शादी में दिक्कत आ सकती है?

सवाल-

मेरी बेटी की उम्र 17 वर्ष है. पिछले 2 साल से वह स्किजोप्रेनिआ से पीडि़त है. वह बहुत ही असहज ढंग से बरताव करती है और रात में डर कर उठ जाती है. वह खुद इस समस्या से बाहर निकलना चाहती है. मुझे भी बहुत चिंता सताती है क्योंकि इस की वजह से बच्ची की पढ़ाई का भी नुकसान हो रहा है. आगे चल कर इस की जौब या शादी में दिक्कत आ सकती है. कृपया कर के बताएं क्या इस का कोई इलाज संभव है?

जवाब-

स्किजोप्रेनिआ एक गंभीर मानसिक रोग है. इस बीमारी से पीडि़त के निजी और सार्वजनिक जीवन पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है. आप की बच्ची के मामले में बिना जांच के कुछ भी कह पाना मुश्किल होगा क्योंकि बच्ची की स्थिति का पूरी तरह आंकलन किया जाएगा. मानसिक रोग में कुछ भी जनरल नहीं होता हर मरीज की परिस्थितियों और मानसिक स्थिति के मुताबिक जांच और उपचार किया जाता है.

अगर इनिशियल स्टेज है तो बीमारी का इलाज संभव है, लेकिन एडवांस स्टेज में इस बीमारी को पूर्ण  रूप से स्थाई इलाज थोड़ा कौंप्लैक्स होता है. लेकिन दवाओं और सही उपचार की मदद से इस के प्रभाव को काफी हद तक कम किया जा सकता है. इसलिए आप को निराश होने की आवश्यकता

नहीं है. बच्ची की उम्र कम है ऐसे में उस का अभी मैडिकल इलाज शुरू करवाएं तो आप स्थिति को नियंत्रित कर सकती हैं. परिवार के सदस्यों को भी समझाएं और तुरंत डाक्टर से सलाह लें.

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डा. अनुरंजन बिस्ट

सीनियर साइकेट्रिक्ट, फाउंडर, माइंड ब्रेन टीएमएस इंस्टिट्यूट

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दुनियाभर में कोरोनावायरस महामारी के समय में सोशल डिस्टेंसिंग, क्वारंटाइन और देश भर में स्कूलों के बंद रहने से बच्चे प्रभावित हुए हैं. कुछ बच्चे और युवा बेहद अलग-थलग महसूस कर रहे हैं और उन्हें चिंता, उदासी और अनिश्चितता का सामना करना पड़ रहा है. वे अपने परिवारों पर इस वायरस के प्रभाव को लेकर भय और दुख महसूस कर सकते हैं. ऐसे भय, अनिश्चितत, और कोविड-19 के प्रसार को नियंत्रित करने के लिए घर पर ही रहने जैसी स्थिति उन्हें शांत बैठे रहना मुश्किल बना सकती है. लेकिन बच्चों को सुरक्षित महसूस कराना, उनके हेल्दी रुटीन को बरकरार रखना, उनकी भावनाओं को समझना बेहद महत्वपूर्ण है. इस बारे में बता रहे हैं Kunwar’s Educational Foundation के educationist(शिक्षाविद्) राजेश कुमार सिंह.

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मेरा बेटे को शराब और सिगरेट की लत लग गई है, मैं क्या करूं?

सवाल

मेरे बेटे की उम्र 21 वर्ष है. वह गलत दोस्तों की संगति में आने की वजह से शराब और सिगरेट की लत का शिकार हो गया है. अब तो स्थिति यह हो गई है कि वह अपनी एडिक्शन की तलब पूरा करने के लिए चोरी भी करने लगा है. घर में किसी के भी पैसे बिना बताए उठा लेता है. मैं उस की इस स्थिति को देखते हुए खुद तनाव में आ गई हूं. कुछ समझ नहीं आता कि क्या करूं. कैसे उस को एडिक्शन से मुक्ति दिलाई जाए?

जवाब

जब हम एडिक्शन यानी लत की बात करते हैं तो इस का सीधा संबंध दिमाग से होता है. लत किसी भी चीज की हो सकती है. आप को यह समझना होगा कि एडिक्शन एक लत या आदत नहीं बल्कि बीमारी होती है. रही बात आप के बेटे की तो पूरी केस हिस्ट्री देखने के बाद उस की शारीरिक और मानसिक स्थिति का आकलन किया जा सकता है. उस से पता चलेगा कि शराब के कारण उस के शरीर पर कितना बुरा असर हुआ है. दूसरा यह पता लगाना भी जरूरी है कि शराब की वजह से डिप्रैशन या अन्य तरह की समस्या तो नहीं है. पहले उस की काउंसलिंग होगी फिर इलाज शुरू किया जाएगा.

आप घबराएं नहीं. एडिक्शन से आजाद होना मुश्किल तो है लेकिन नामुमकिन नहीं. अगर सही उपचार द्वारा कोशिश की जाए तो नशे की लत को छुड़ाया जा सकता है. टीएमएस थेरैपी के द्वारा नशे की लत को छुड़ाने में 100% रिजल्ट मिले हैं.

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पीयूष ने दोनों बैग्स प्लेन में चैकइन कर स्वयं अपनी नवविवाहित पत्नी कोकिला का हाथ थामे उसे सीट पर बैठाया. हनीमून पर सब कुछ कितना प्रेम से सराबोर होता है. कहो तो पति हाथ में पत्नी का पर्स भी उठा कर चल पड़े, पत्नी थक जाए तो गोदी में उठा ले और कुछ उदास दिखे तो उसे खुश करने हेतु चुटकुलों का पिटारा खोल दे.

भले अरेंज्ड मैरिज थी, किंतु थी तो नईनई शादी. सो दोनों मंदमंद मुसकराहट भरे अधर लिए, शरारत और झिझक भरे नयन लिए, एकदूसरे के गलबहियां डाले चल दिए थे अपनी शादीशुदा जिंदगी की शुरुआत करने. हनीमून को भरपूर जिया दोनों ने. न केवल एकदूसरे से प्यार निभाया, अपितु एकदूसरे की आदतों, इच्छाओं, अभिलाषाओं को भी पहचाना, एकदूसरे के परिवारजनों के बारे में भी जाना और एक सुदृढ़ पारिवारिक जीवन जीने के वादे भी किए.

हनीमून को इस समझदारी से निभाने का श्रेय पीयूष को जाता है कि किस तरह उस ने कोकिला को अपने जीवन का अभिन्न अंग बना लिया. एक सुखीसशक्त परिवार बनाने हेतु और क्या चाहिए भला? पीयूष अपने काम पर पूरा ध्यान देने लगा. रातदिन एक कर के उस ने अपना कारोबार जमाया था. अपने आरंभ किए स्टार्टअप के लिए वैंचर कैपिटलिस्ट्स खोजे थे.  न समयबंधन देखा न थकावट. सिर्फ मेहनत करता गया.

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उधर कोकिला भी घरगृहस्थी को सही पथ पर ले चली.

‘‘आज फिर देर से आई लीला. क्या हो गया आज?’’ कामवाली के देर से आने पर कोकिला ने उसे टोका.

इस पर कामवाली ने अपना मुंह दिखाते हुए कहा, ‘‘क्या बताऊं भाभीजी, कल रात मेरे मर्द ने फिर से पी कर दंगा किया मेरे साथ. कलमुंहा न खुद कमाता है और न मेरा पैसा जुड़ने देता है. रोजरोज मेरा पैसा छीन कर दारू पी आता है और फिर मुझे ही पीटता है.’’

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कोरोना होने के बाद मेरी मां के दिलोदिमाग पर बहुत गहरा असर हुआ है, मैं क्या करुं?

सवाल-

मेरी मां 54 वर्ष की हैं. कोरोना की सैकंड लहर के दौरान मेरे पापा को सीवियर इन्फैक्शन हो गया था. उन के लंग्स 80% तक इन्फैक्टेड हो गए थे. मेरे पापा वैंटीलेटर तक पहुंच गए थे, लेकिन काबिल डाक्टर की वजह से उन की जान बच गई. परंतु इस घटना का मेरी मां के दिलोदिमाग पर बहुत गहरा असर हुआ है. पूरा 1 वर्ष हो गया है, लेकिन मेरी मां सदमे से बाहर नहीं आ पा रही हैं. लगातार उन की दवा चल रही है. कृपया बताएं कि कोई अन्य उपचार विकल्प के द्वारा उन्हें ठीक किया जा सकता है?

जवाब-

कोविड-19 के कारण हर तरफ बीमारी और लौकडाउन की स्थिति ने लोगों के मानसिक स्वास्थ्य को काफी प्रभावित किया है, जिस का असर स्पष्ट तौर पर लोगों में तनाव, अवसाद और चिड़चिड़ेपन के रूप में देखा जाता है खासकर जब किसी अपने खास को लगभग डैथ बैड तक पहुंचा देखना उन के लिए बड़ा सदमा देने वाला साबित होता है. इस स्थिति में ज्यादा लंबे समय तक दवा का सेवन भी कई बार खतरनाक साबित होता है क्योंकि दवाओं के अपने साइड इफैक्ट्स होते हैं. ऐसे में आप के पास टीएमएस थेरैपी का विकल्प मौजूद है. यह एक यूएस एफडीए मान्यताप्राप्त थेरैपी है. इस थेरैपी में मैग्नेटिक ट्रीटमैंट कएल का इस्तेमाल किया जाता है.

यह चुंबकीय डिवाइस मस्तिष्क में एक कमजोर विद्युत प्रवाह उत्पन्न करता है जो उत्तेजना के स्थल पर न्यूरो सर्किट को ऐक्टिवेट करता है. यह थेरैपी डिप्रैशन को पूरी तरह से ठीक करने में दोगुनी कारगर साबित होती है और इस के साइड इफैक्ट्स भी नहीं होते. हर सप्ताह 1 या 2 सैशन के द्वारा आप की माता पूरी तरह ठीक हो सकती है.

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Top 10 Winter Health Tips in Hindi: सर्दियों के लिए टॉप 10 बेस्ट हेल्थ टिप्स हिंदी में

Health Tips in Hindi: इस आर्टिकल में हम आपके लिए लेकर आए हैं गृहशोभा की 10 Winter Health Tips in Hindi 2021. सर्दियों में हेल्थ से जुड़ी कई प्रौब्लम्स का सामना करना पड़ता है, जिसके लिए डौक्टर के चक्कर काटने पड़ते हैं. इसीलिए आज हम आपके लिए लेकर आए हैं Winter Health Tips, जिससे आपकी हेल्थ और फिटनेस बनी रहेगी. तो आइए आपको बताते हैं घर बैठे अपना प्रौफेशनल और होममेड टिप्स से हेल्थ का ख्याल कैसे करें. अगर आपको भी है Winter में अपनी हेल्थ बनाए रखनी है तो पढ़ें गृहशोभा की ये Winter Health Tips in Hindi.

1. Winter Special: सर्दियों में फ्लू से जुड़ी ये बातें जानती हैं आप?

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जैसे ही हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती है वैसे ही हम पर वायरस का हमला हो जाता है, जिससे हमें सर्दी, जुकाम, खांसी और कभी-कभी बुखार की समस्‍या हो जाती है, जो कई दिनों तक आपको परेशान करती हैं.

फ्लू

सुबह की सर्द हवाएं, वातावरण में नमी और चारों तरफ छाई धुंध ये बताती है कि सर्दी ने दस्‍तक दे दी है. ये तो आप सभी जानते होंगे कि सर्दी आते ही हमारे रहन-सहन में थोड़ा बदलाव आ जाता है. लेकिन सबसे जरूरी बात यह है कि हम अपनी सेहत का किस तरह से ख्‍याल रख रहे हैं.

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2. Winter Special: सर्दियों में पानी पीना न करें कम

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हमारा शरीर जिन तत्वों से बना है, उसमें जल मुख्य घटक है. अगर शरीर में जल की मात्रा कम हो जाए, तो जीवन खतरे में पड़ जाता है. इससे यह बात बिल्‍कुल साफ है कि पानी पीना हमारे लिए कितना जरूरी है. गर्मियों में प्यास अधिक लगती है तो लोग पानी भी खूब पीते हैं मगर सर्दियों में यह मात्रा कम हो जाती है. इसकी एक वजह यह है कि हमें इन दिनों प्यास नहीं लगती, जिसके कारण लोग पर्याप्‍त पानी नही पीते हैं. इस वजह से कई गंभीर समस्‍याओं का सामना करना पड़ता है.

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3. सर्दियों में ऐसे करें अपने दिल की देखभाल

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जैसे-जैसे तापमान गिरने लगता है, दिल का दौरा पड़ने का खतरा बढ़ने लगता है. ठंड का मौसम हृदय संबंधी समस्याओं के लिए जोखिम पैदा कर सकता है. यहाँ जानिए इससे संबंधित आवश्यक बातें.

ठंड का मौसम और हृदय स्वास्थ्य

ठंड का मौसम आपके हृदय की मांसपेशियों में ऑक्सीजन युक्त रक्त की आपूर्ति को कम कर सकता है. यह आपके हृदय को अधिक काम करने के लिए मजबूर कर सकता है; नतीजतन आपका दिल अधिक ऑक्सीजन युक्त रक्त की मांग करता है. दिल में ऑक्सीजन की कम सप्लाई होना फिर दिल द्वारा ऑक्सीजन की अधिक मांग हार्ट अटैक का कारण बनता है. ठंड रक्त के थक्कों को विकसित करने के जोखिम को भी बढ़ा सकती है, जिससे फिर से दिल का दौरा या स्ट्रोक हो सकता है.

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4. सर्दियों में होने वाली परेशानियों का ये है आसान इलाज

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सर्दी के मौसम में खांसी, जुकाम, गले की खराश, जैसी समस्याएं आम हैं. खराश की समस्या को जल्दी ठीक करना जरूरी है, नहीं तो ये खांसी का रूप ले लेती है. इस खबर में हम आपको बताने वाले हैं कि सर्दी, खांसी, खराश जैसी समस्याओं का दवाइयों के बिना, घरेलू नुस्खों की मदद से कैसे इलाज कर सकते हैं.

इसमें एंटीबैक्टीरियल गुण होते हैं. गले के इंफेक्शन और दर्द में अदरक काफी लाभकारी होता है. इसके लिए आप एक कप में गर्म पानी उबाल लें. उसमें शहद डाल कर मिलाएं और दिन में दो बार पिएं. कुछ ही दिनों में आपको अंतर समझ आएगा.

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5.सर्दियों में सताता है जोड़ों का दर्द ऐसे पाएं राहत

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उत्तर भारत में ठंड की दस्तक हो चुकी है. ठंड का मौसम वैसे तो अधिकतर लोगों के चेहरे पर मुस्कान ले आता है लेकिन दूसरी ओर कइयों की परेशानी का कारण भी बनता है. क्या ठंड का नाम सुन कर आप को भी जकड़े हुए जोड़ याद आते हैं? क्या ठंड आप को बीमारियों की याद दिलाता है?

ऐसा नहीं है कि ये समस्या केवल एक निर्धारित उम्र के लोगों को ही परेशान करती है. वास्तव में गतिहीन जीवनशैली के कारण ये समस्या अब हर उम्र के लोगों में देखने को मिल रही है. जोड़ों का दर्द ही नहीं बल्कि मांसपेशियों में दर्द, पीठ दर्द, सिरदर्द, गर्दन दर्द, तंत्रिका दर्द, फाइब्रोमायल्जिया आदि समस्याएं इस मौसम में बहुत ज्यादा परेशान करती हैं.

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6. सर्दियों में बड़े काम का है गाजर

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सर्दियों में गाजर सेहतमंद सब्जियों के श्रेणी में आता है , गाजर कंद प्रजाति की एक सब्जी है. गाजर विटामिन बी का अच्छा सोर्स है. इसके अलावा, इसमें ए, सी, डी, के, बी-1 और बी-6 काफी क्वॉन्टिटी में पाया जाता है. इसमें नैचरल शुगर पाया जाता है, जो सर्दी के मौसम में शरीर को ठंड से बचाता है. इस मौसम में होने वाले नाक, कान, गले के इन्फेक्शन और साइनस जैसी समस्याओं को दूर करने के लिए गाजर या इससे बनी चीजों का सेवन फायदेमंद साबित होता है. यह सब्जी सलाद, अचार आदि बनाकर उपयोग की जाती है. आप इसे सलाद के तौर पर खाएं या गाजर का हलवा बनाकर, दोनों ही फायदेमंद है. आयुर्वेद के अनुसार गाजर स्वाद में मधुर, गुणों में तीक्ष्ण, कफ और रक्तपित्त को नष्ट करने वाली है. इसमें पीले रंग का कैरोटीन नामक तत्व विटामिन ए बनाता है.

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7. सर्दियों में फायदेमंद है ताजा मेथी का सेवन

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सदियों में ताजा मेथी बाजार में आराम से मिलती है. मेथी की सुगंध और स्वाद भारतीय भोजन का विशेष अंग है. मेथी के पत्तों को कच्चा खाने की परंपरा नहीं है. आलू के साथ महीन महीन काट कर सूखी सब्ज़ी या मेथी के पराठे आम तौर पर हर घर में खाए जाते हैं. लेकिन गाढ़े सागों के मिश्रण में इसका प्रयोग लाजवाब सुगंध देता है, उदाहरण के लिए सरसों के साग, मक्का मलाई या पालक पनीर के पालक में.

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8. जानें क्या है सर्दियों में धनिया के ये 14 फायदे

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सर्दियों में धनिया हर किसी का पसंदीदा हो जाता है, सर्दियों में बाजार में धनिया की ताजी पत्तियां मिलती हैं, जिसका उपयोग हर तरह की सूखी और रसेदार सब्ज़ी में परोसते समय मिलाने और सजावट करने के लिए किया जाता है , साथ ही  धनिये की चटनी पूरे भारत में प्रसिद्ध है. आलू की चाट और दूसरी चटपटी चीज़ों में इसको टमाटर या नीबू के साथ मिलाया जा सकता है. सूप और दाल में बहुत महीन काट कर मिलाने पर रंगत और स्वाद की ताज़गी़ अनुभव की जा सकती है. हर तरह के कोफ्ते और कवाब में भी यह खूब जमता है. इसकी पत्तियों को पका कर या सुखा कर नहीं खाया जाता क्यों कि ऐसा करने पर वे अपना स्वाद और सुगंध खो देती हैं.

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9. सर्दियों में हेल्थ के लिए बहुत फायदेमंद है तेजपत्ता

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तेजपत्ता हल्का, तीखा व मीठा होता है. इसकी प्रकृति गर्म होती है. सर्दियों के समय यह मशाला आप के व्यंजन का स्वाद बढ़ाने के साथ ही आपको सर्दी जुखाम से बचाता है. सर्दियों के समय तेजपात हम सभी के लिए उपयोगी होता है, सर्दियों में थोड़ी से लापरवाही हुई नही कि आप सर्दी जुखाम के शिकार हो गये. तेजपात  कफ रोगों के लिए उपयोगी मसाला है.  इसे पिप्पली चूर्ण की एक ग्राम मात्रा में शहद के साथ लेने पर खाँसी-जुकाम में फायदा होता है.  आप सर्दियों में चाय के साथ इसे उबाल कर सेवन कर सकते है.

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10. 6 टिप्स: ऐसे रहें सर्दियों में हेल्दी

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इस मौसम में व्‍यायाम पर थोड़ा ध्‍यान देकर आप स्‍वास्‍थ्‍य संबंधी मामूली समस्‍याओं से भी बच सकते हैं. लेकिन अगर आपको हृदय संबंधी समस्‍या है, तो आपको अतिरिक्‍त सुरक्षा की आवश्‍यकता होती है. ऐसे में अगर आप अच्‍छा स्‍वास्‍थ्‍य चाहते हैं, तो यह मौसम सबसे अच्‍छा है. सर्दियों में स्‍वस्‍थ रहने के टिप्‍स –

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बढ़ते प्रदूषण में रखें अपना ख्याल

इस बार त्योहार खुशियों के साथ अपने साथ कुछ और भी लेकर आया है. यहां बात हो रही है, वातावरण में बढ़ते प्रदूषण की. दीवाली के बाद बढ़े हुए प्रदूषण ने हर बार के सारे आंकड़े पार कर दिए हैं. त्योहार खत्म होने के कई दिनों के बाद भी इसका असर खत्म होते नहीं दिख रहा है. ऐसे में सबसे ज्यादा चिंता का विषय कुछ है तो वह है आम लोगों की सेहत.

वैदिक ग्राम के डॉक्टर पीयूष जुनेजा का कहना है कि ऐसे समय में न केवल बीमार व्यक्तियों को बल्कि सेहतमंद लोगों को भी अपना ध्यान रखने की बहुत आवश्यकता है. बाहर की हवा में पटाखों के धुएं की वजह से रासायनिक पदार्थों में अचानक से काफी बढ़ोतरी हो गयी है. ये पदार्थ हवा में मिलकर हमारे फेफड़ों तक पहुंचते हैं, जिससे कई तरह की खतरनाक बीमारियां हो सकती हैं. हम कुछ छोटी-छोटी बातों को अगर ध्यान में रखें, तो इन चीजों के प्रभाव को कम कर सकते है. कुछ दिनों के लिए सुबह की सैर तथा खुली जगह पर व्यायाम ना करें, हवा के सीधे संपर्क में आने से बचें जिसके लिए बाहर निकलते वक्त अपने मुंह पर मास्क या कपड़ा बांध लें, अपने खाने में शहद, नींबू व गुड का प्रयोग करे जो एन्टीइन्फेक्शन का काम करेगा.

बदलते मौसम और बढ़ते प्रदूषण में अपने शरीर का ख्याल रखना अत्यंत ही जरूरी है. कुछ छोटे कदमों से आप घर में ही इसके खतरनाक प्रभावों को कम कर सकते हैं. एनडीएमसी की रिटायर डायरेक्टर डॉक्टर अल्का सक्ससेना कहती हैं कि इस प्रदूषित हवा से बचने के लिए काफी छोटी छोटी बातों का ध्यान रखना बेहद जरूरी है. जैसे घर की साफ सफाई समय से करें, सोने से पहले भाप का सेवन करें, जिससे दिन भर की गंदगी आपके फेफड़ों से निकल जाएगी. बाहर के खाने से पूरी तरह से दूर रहें. ज्यादा से ज्यादा घर पर बनीं गर्म चीजें ही खाएं. इन सब चीजों से आप अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ा सकेंगे, जो की आपको बीमारियों से दूर रखेगी.

एक कहानी ऐसी भी

अमित और उनकी पत्नी आकांक्षा मल्टिनैशनल कंपनी में काम करते हैं. दिल्ली में आने के बाद पति-पत्नी दोनों के करियर को परवाज मिली. बेटी सुगंधा के पैदा होने के बाद सब कुछ किसी परीकथा की तरह लग रहा था. एक दिन अचानक हल्की खांसी और बुखार के बाद 2 साल की सुगंधा को दमा डायगनोस हुआ. डॉक्टर ने बताया कि वह जिस इलाके में रह रहे हैं उसकी वजह से ही बच्चे को ऐसी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है और अगर वह यहीं रहते रहे, तो परेशानी बिगड़ सकती है. सुयश और आकांक्षा ने दिल्ली छोड़ कर बैंगलुरु ऑफिस में ट्रांसफर का मन बना लिया है. उनका कहना है कि इस शहर ने हमें बहुत कुछ दिया है लेकिन अपनी बेटी की कीमत पर अपना करियर हमें मंजूर नहीं है.

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हवा में मौजूद हैं ये आठ विलेन

1. PM10 :  पीएम का मतलब होता है पार्टिकल मैटर. इनमें शामिल है हवा में मौजूद धूल, धुंआ, नमी, गंदगी आदि जैसे 10 माइक्रोमीटर तक के पार्टिकल. इनसे होने का वाला नुकसान ज्यादा परेशान करने वाला नहीं होता.

2. PM2.5 : 2.5 माइक्रोमीटर तक के ये पार्टिकल साइज में बड़े होने की वजह से ज्यादा नुकसान पहुंचाते हैं.

3. NO2 : नाइट्रोजन ऑक्साइड, यह वाहनों के धुंए में पाई जाती है.

4. SO2 : सल्फरडाई ऑक्साइड गाड़ियों और कारखानों से निकलने वाले धुंए से निकल कर फेफड़ों को काफी नुकसान पहुंचाता है.

5. CO : कार्बनमोनो ऑक्साइड, गाड़ियों से निकल कर फेफड़ों को घातक नुकसान पहुंचाता है.

6. O3 : ओजोन, दमे के मरीज और बच्चों के लिए बहुत नुकसानदेह

7. NH3 : अमोनिया, फेफड़ों और पूरे रेस्पिरेटरी सिस्टम के लिए खतरनाक

8. Pb : लेड, गाडियों से निकलने वाले धुंए के आलावा मेटल इंडस्ट्री से भी निकल कर यह लोगों की सेहत को नुकसान पहुंचाने वाला सबसे खतरनाक मेटल हैं.

इन सबको औसत 24 घंटे तक नापने के बाद एक इंडेक्स तैयार किया जाता है. हमारे आसपास की हवा को नापने के लिए देश की सरकार ने एयर क्वॉलिटी इंडेक्स नाम का एक मानक तय किया है. इसके तहत हवा को 6 कैटगिरी में बांटा गया है.

– अच्छा (0-50)

– संतोषजनक (50-100)

– हल्की प्रदूषित (101-200, फेफडों, दमा और हार्ट पेशंट्स के लिए खतरनाक)

– बुरी तरह प्रदूषित (201-300, बीमार लोगों को सांस लेने में तकलीफ हो सकती है)

– बहुत बुरी तरह प्रदूषित (301-400, आम लोगों को सांस की बीमारी की शिकायत हो सकती है)

– घातक रूप से प्रदूषित (401-500, हेल्दी और बीमार दोनों ही तरह के लोगों के लिए खतरनाक)

घर का प्रदूषण

– किचन में लगे वेंटिलेशन फैन को देखें. अगर उस पर ज्यादा कालिख जम रही है तो जान जाएं कि किचन में हवा नुकसानदायक स्तर तक बढ़ चुकी है.

– एसी का फिल्टर और पीछे की तरफ की वेंट में अगर ज्यादा धूल या कालिख जमा हो रही है तो यह इस बात की ओर इशारा है कि घर बुरी हवा के निशाने पर है.

– बिजी हाईवे या सड़कों के किनारे बने मकान, कारखानों के करीब बने मकानों में स्वाभाविक तरीके से धूल और मिट्टी के साथ कार्बन पार्टिकल पहुंच जाते हैं.

क्या करें

– किचन में इलेक्ट्रॉनिक चिमनी लगवाएं

– किचन में बेहतर वेंटिलेशन रखें

– अगर घर के आसपास बिजी रोज या कारखाने हों तो खिड़की दरवाजों को हैवी ट्रैफिक के वक्त बंद रखें. इससे भले ही पूरा बचाव न हो लेकिन धूल-मिट्टी कम से कम घर में घुस पाएगी.

स्मॉग

स्मॉग शब्द स्मोक और फॉग से मिल कर बना है. मतलब यह कि जब वातावरण में मौजूद धुंआ फॉग के साथ मिल जाता है तब स्मॉग कहलाता है. जहां गर्मियों में वातावरण में पहुंचने वाला स्मोक ऊपर की ओर उठ जाता है, वहीं ठंड में ऐसा नहीं हो पाता और धुंए और धुंध का एक जहरीला मिक्चर तैयार होकर सांसों में पहुंचने लगता है. स्मॉग कई मायनों में स्मोक और फॉग दोनों से ज्यादा खतरनाक होता है.

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कैसे बचें

– बीमार हों या हेल्दी, हो सके तो स्मॉग में बाहर न निकलें. अगर निकलना ही पड़े तो मास्क लगा कर निकलें.

– सुबह के वक्त काफी स्मॉग रहता है. इसकी वजह अक्सर रात के वक्त वातावरण में जमा धुंए का न छंट पाना होता है जो सुबह की धुंध में मिल कर स्मॉग बना देता है. – सर्दियों में ऐसा अक्सर होता है इसलिए बेहतर होगा भोर (5-6 बजे) की बजाय धूप निकलने के बाद (तकरीबन 8 बजे) वॉक पर जाएं.

– सर्दियों में जहां एयर पल्यूशन ज्यादा रहता है वहीं लोग पानी भी कम पीते हैं. यह खतरनाक साबित होता है. दिन में तकरीबन 4 लीटर तक पानी पिएं. प्यास लगने का इंतजार न करें कुछ वक्त के बाद 1-2 घूंट पानी पीते रहें.

– घर से बाहर निकलते वक्त भी पानी पिएं. इससे शरीर में ऑक्सीजन की सप्लाई सही बनी रहेगी और वातावरण में मौजूद जहरीली गैसे अगर ब्लड तक पहुंच भी जाएंगी तो कम नुकसान पहुंचा पाएंगी.

– नाक के भीतर के बाल हवा में मौजूद बड़े डस्ट पार्टिकल्स को शरीर के भीतर जाने से रोक लेते हैं. हाईजीन के नाम पर बालों को पूरी तरह से ट्रिम न करें. अगर नाक के बाहर कोई बाल आ गया है तो उसे काट सकते हैं.

– बाहर से आने के बाद गुनगुने पानी से मुंह, आंखें और नाक साफ करें. हो सके तो भाप लें.

– अस्थमा और दिल के मरीज अपनी दवाएं वक्त पर और रेग्युलर लें. कहीं बाहर जाने पर दवा या इन्हेलर साथ ले जाएं और डोज मिस न होने दें. ऐसा होने पर अटैक पड़ने का खतरा रहता है.

– साइकल से चलने वाले लोग भी मास्क लगाएं. चूंकि वे हेल्मेट नहीं लगाते इसलिए उनके फेफड़ों तक बुरी हवा आसानी से पहुंच जाती है.

इन लक्षणों के होते ही ध्यान दें

– सांस लेने में तकलीफ होने पर या सीढ़ियां चढ़ते या मेहनत करने पर हांफने लगने पर

– सीने में दर्द या घुटन महसूस होने पर

– 2 हफ्ते से ज्यादा दिनों तक खांसी आने पर

– 1 हफ्ते तक नाक से पानी या छींके आने पर

– गले में लगातार दर्द बने रहने पर

इनको जरा बचा कर रखें

– 5 साल से कम बच्चों की इम्युनिटी काफी कमजोर होती है इसलिए उन्हें एयर पल्युशन से रिस्क ज्यादा होता है. इसलिए सर्दियों में उन्हें सुबह वॉक के लिए न ले जाएं.

– अगर बच्चे स्कूल जाते हैं अटेंडेंट्स से रिक्वेस्ट कर सकते हैं कि बच्चों को मैदान में खिलाने की बजाए इनडोर ही खिलाएं.

– धूल भरी और भारी ट्रैफिक वाली मार्केट्स में बच्चों को ले जाने से बचें.

– टू वीलर में बच्चों को लेकर न निकलें.

– बच्चों के कार में बाहर ले जाते वक्त शीशे बंद रखें और एसी चलाएं.

– बच्चों को भी थोड़ी-थोड़ी देर पर पानी पिलाते रहें जिससे शरीर हाइड्रेट रहे और इनडोर पल्युशन से होने वाला नुकसान भी कम हो.

– बच्चे जब बाहर से खेल कर आएं तो उनका भी मुंह अच्छी तरह से साफ करें.

– उम्रदराज लोगों को बिगड़ती हवा काफी परेशान कर सकती है.

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– प्रदूषण स्तर बढ़ने पर बाहर जाने से बचें.

– धूप निकलने के बाद ही घर से बाहर निकलें. धूप निकलने पर हवा में प्रदूषण स्तर नीचे आने लगता है.

– अगर किसी बीमारी की दवाएं ले रहे हैं तो लगातार लेते रहें. ऐसा न करने पर हालत खराब हो सकती है.

– सर्दी के मौसम में ज्यादा एक्सरसाइज (ब्रिस्क वॉक या जॉगिंग आदि) न करें.

– सर्दियों में अगर बाहर निकलना ही पड़े तो अच्छी क्वॉलिटी का मास्क लगा कर निकलें.

– टू व्हीलर या ऑटो में सफर की बजाय टैक्सी या कंट्रोल माहौल वाले मेट्रो या एसी बसों में ही यात्रा करें.

Winter Special: सर्दियों में फ्लू से जुड़ी ये बातें जानती हैं आप?

जैसे ही हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती है वैसे ही हम पर वायरस का हमला हो जाता है, जिससे हमें सर्दी, जुकाम, खांसी और कभी-कभी बुखार की समस्‍या हो जाती है, जो कई दिनों तक आपको परेशान करती हैं.

फ्लू

सुबह की सर्द हवाएं, वातावरण में नमी और चारों तरफ छाई धुंध ये बताती है कि सर्दी ने दस्‍तक दे दी है. ये तो आप सभी जानते होंगे कि सर्दी आते ही हमारे रहन-सहन में थोड़ा बदलाव आ जाता है. लेकिन सबसे जरूरी बात यह है कि हम अपनी सेहत का किस तरह से ख्‍याल रख रहे हैं.

जैसे ही हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती है वैसे ही हमारे ऊपर वायरस का हमला हो जाता है, जिससे हमें सर्दी, जुकाम, खांसी और कभी-कभी बुखार की समस्‍या हो जाती है, जो कई दिनों तक आपको परेशान करती हैं. इनसे जुड़ी कुछ बातें हैं जिन्‍हें जरूर जानना चाहिए.

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फ्लू वायरस

जब तक आपको सर्दी-जुकाम के लक्षण पता चलते हैं, हो सकता है एक दिन पहले ही इसके विषाणु (वायरस) आपके शरीर में फैल चुके हों. और ये वायरल आने वाले सात दिनों तक फैलते रहते हैं.

फ्लू की शुरूआत

सर्दी-जुकाम वाले मौसम आमतौर पर अक्‍टूबर के आखिरी सप्‍ताह से ही शुरू हो जाते हैं जो कि दिसंबर में काफी बढ़ जाते हैं. ये जनवरी में यह स्थिति शीर्ष पर होती है. इसके बाद फरवरी के आखिरी दिनों में यह समाप्‍त होने लगती है.

फ्लू संक्रमण

शोध के मुताबिक, फ्लू वायरस ठंड और शुष्‍क मौसम में पनपते हैं. जबकि गर्म मौसम में फ्लू का संक्रमण दर उच्च आर्द्रता और बारिश के साथ जुड़ जाते हैं. यानी मौजूद रहते हैं.

नेजल स्‍प्रे

नेजल स्‍प्रे को लंबे समय तक प्रयोग में नही लाया जा सकता है क्‍योंकि इसकी प्रभावशीलता ज्‍यादा समय तक नही होती है.

एंटीवायरल दवाएं

कुछ एंटीवायरल दवाएं हैं जो बच्‍चों और बड़ों को दी जा सकती है बशर्ते डॉक्‍टर की सलाह जरूर लें.

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जानें क्या है ब्रैस्ट कैंसर और इसका इलाज

ब्रैस्ट कैंसर तब होता है जब  कोशिका बढ़ती है और दो संतति कोशिकाओं का निर्माण करने के लिए विभाजित होकर स्तन में शुरू होता है. भारत में महिलाओं के बीच यह  एक प्रमुख कैंसर है, यह सर्वाइकल कैंसर के बाद दूसरे स्थान पर आता  है, लेकिन आश्वस्त रूप से, यदि शुरू के ही  स्टेज  (स्टेज I-II) में पता चलता है तो यह सभी प्रकार के कैंसर में से सबसे अधिक इलाज योग्य भी है. मेनोपॉज़  के बाद की महिलाएं (55 वर्ष से अधिक आयु) अधिक कमजोर होती हैं. हालांकि, कम उम्र की महिलाओं में भी इसका प्रचलन बढ़ रहा है. हर 2 साल में प्रिवेंटिव जांच अनिवार्य है, खासकर अगर तत्काल परिवार की महिला रिश्तेदार (दादी, मां, चाची या बहन) को कभी  कैंसर हुआ हो.लाइफलाइन लेबोरेटरी की एमडी (पैथ) एचओडी हेमेटोलॉजी, साइटोपैथोलॉजी और क्लिनिकल (पैथ) डॉक्‍टर मीनू बेरी के मुताबिक हालांकि यह रेयर है किन्तु  पुरुषों को भी स्तन कैंसर हो सकता है – डक्टल कार्सिनोमा और लोब्युलर कार्सिनोमा सबसे संभावित प्रकार हैं. महिला पुरुष दोनों में लक्षण कमोबेश समान होते हैं.

लक्षण

लक्षण गुप्त या स्पष्ट दोनों ही हो सकते हैं, क्योंकि अलग-अलग महिलाओं में अलग-अलग प्रकार के लक्षण हो सकते हैं . वे कैंसर के विकसित होने के लंबे समय बाद प्रकट हो सकते हैं. हालांकि, ज्यादातर मामलों में निम्नलिखित लक्षण आम हैं:

  • स्तन, बगल और कॉलर बोन पर या उसके आस-पास किसी भी गांठ और सूजन या सूजी हुई लिम्फ नोड्स की बिना देर किए डॉक्टर की जांच की जानी चाहिए. जरूरी नहीं कि हर गांठ एक कैंसर हो – लेकिन यह एक सिस्ट, फोड़ा या फाइब्रो-एडेनोमा (वसा जमा की एक चिकनी, रबड़ जैसी और सौम्य गांठ जो छूने पर चलती है) हो सकती है.
  • ‘संतरे के छिलके’ के जैसा कुछ दिखना या स्तन का धुंधला दिखना.
  • स्तन की त्वचा का मोटा होना, फड़कना, स्केलिंग, मलिनकिरण या चोट लगना.
  • दाने या जलन.
  • निप्पल से पानी या खूनी निर्वहन.
  • स्तन के आकार में परिवर्तन.
  • निप्पल को खींचा हुआ, खींचा हुआ या उल्टा निप्पल.
  • स्तन क्षेत्र में या उसके आसपास दर्द और कोमलता.
  • बाएं स्तन में गांठें अधिक सामान्य रूप से विकसित होती हैं.

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 रिस्क फैक्टर :

  • कैंसर का पारिवारिक इतिहास, और यदि किसी प्रथम श्रेणी की महिला रिश्तेदार (दादी, मां, चाची, या बहन) को ब्रैस्ट कैंसर हो गया हो.
  • मेनोपॉज़ के बाद 55 वर्ष से अधिक उम्र की महिलाओं को उच्च जोखिम होता है.
  • प्रारंभिक शुरुआत मेनार्चे (11-12 साल से पहले मेंस्ट्रुएशन की शुरुआत) देर से शुरू होने वाली मीनोपॉज (55 साल के बाद मासिक धर्म की समाप्ति).
  • स्तनपान का कोई पिछला इतिहास नहीं है.
  • धूम्रपान और शराब का सेवन.
  • अधिक वजन या मोटापा भी जोखिम को बढ़ा सकता है.

मेटास्टेटिक ब्रैस्ट कैंसर के लक्षण (कैंसर जो शरीर के अन्य भागों में फैल गया है), जिसके बारे में किसी को पता नहीं हो सकता है, इसमें सामान्य कमजोरी, सिरदर्द और बिना किसी प्रशंसनीय कारण के मतली, सांस लेने में परेशानी, पीलिया, त्वचा का पीलापन, सूजन शामिल हो सकते हैं. पेट, वजन घटाने, आदि

प्रिवेंटिव केयर

याद रखने वाला सबसे महत्वपूर्ण  फैक्ट यह है कि उपरोक्त लक्षणों और जोखिम कारकों में से एक या अधिक की उपस्थिति में प्रिवेंटिव जांच का अत्यधिक महत्व है. पारिवारिक इतिहास जैसे कुछ अपरिवर्तनीय जोखिम कारक हैं, लेकिन कुछ जोखिम कारकों को स्वस्थ जीवन शैली अपनाने से नियंत्रित किया जा सकता है.

– साबुत अनाज (मल्टीग्रेन आटा और ब्रेड, दलिया, जई, मूसली जैसे जटिल कार्बोहाइड्रेट के लिए जाएं), पालक, सरसों के पत्ते, मेथी के पत्ते, सलाद पत्ता, गोभी, ब्रोकोली, केल, और हरी पत्तेदार सब्जियां जैसे संतुलित आहार लें. फल जैसे केला, सेब, नाशपाती, पपीता, स्ट्रॉबेरी आदि. बादाम, अंजीर और अखरोट जैसे नट्स को आहार में शामिल करें.

– भरपूर शारीरिक गतिविधि आपको फिट रखेगी और मांसपेशियों और हड्डियों को ढीला होने से बचाएगी. फिट और एक्टिव रहने के लिए रोजाना 45 मिनट की ब्रिस्क वॉक करें और लाइट वेट ट्रेनिंग लें.

– धूम्रपान छोड़ें और अत्यधिक शराब के सेवन से बचें.

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Healthcare Tips: कोविड के इस मुश्किल समय में ख़ुद को कैसे सुरक्षित रखें?

त्योहारों का मौसम आ गया है और लोग छुट्टियों के मूड में आ चुके हैं. दीपावली की तैयारियां जोरों पर हैं, ऐसे में इस बात की जानकारी होना जरूरी है कि इस त्योहार को सुरक्षित, स्वस्थ और जिम्मेदार तरीके से कैसे मनाया जाए.

पारस हॉस्पिटल, गुरुग्राम के पल्मोनोलॉजी प्रमुख तथा सीनियर कंसल्टेंट डॉ अरुणेश कुमार ने इस पर अपनी राय देते हुए कहा, “चूंकि दिवाली सभी कम्यूनिटी को एक साथ लाती है, लेकिन महामारी की तीसरी लहर की शुरुआत अभी भी एक बड़ी चिंता का विषय बनी हुई है.  इसलिए स्वास्थ्य या सुरक्षा से समझौता किए बिना रोशनी का त्योहार मनाने के लिए उचित सावधानी और सावधानी बरतना ज़रूरी है.  दिवाली के दौरान किसी भी प्रकार की दुर्घटना या स्वास्थ्य पर नुक़सान से बचने के लिए कुछ सामान्य एहतियाती उपाय करना भी ज़रूरी है. ”

मैग्नेटो क्लीनटेक के सीईओ श्री हिमांशु अग्रवाल ने कहा, “दिवाली नजदीक आने से हमें प्रदूषण के स्तर में बढ़ोत्तरी होने से सावधान रहना चाहिए, यह प्रदूषण घर के अंदर और बाहर दोनों जगह मौजूद है और इसलिए खुद को उसी के अनुसार तैयार करें.  वैसे देखा गया है कि मुख्य रूप से बाहरी स्थानों में प्रदूषण पर ध्यान केंद्रित किया जाता है, हमें यह याद रखने की जरूरत है कि हमारे घरों के अंदर प्रदूषण का स्तर 5 गुना ज्यादा हो सकता है और यह हमारे रेस्पिरेटरी सिस्टम, हार्ट और इम्यूनिटी सिस्टम के लिए खतरनाक है.  वर्तमान समय में वायु प्रदूषण और भी खतरनाक है क्योंकि इससे कोरोनावायरस फैलने का खतरा कई गुना बढ़ जाता है.  दिवाली पर पटाखों से दूरी बनाए रखना नामुमकिन है, इसलिए  प्रदूषण रहित दिवाली उत्सव की वस्तुओं जैसे हरे और पर्यावरण के अनुकूल पटाखे और दीयों का विकल्प चुनना चाहिए.  चूंकि हम भी कुछ पटाखे घर के अंदर ही फोड़ते हैं, इसलिए हमें ऐसा करने से बचना चाहिए.  अपने घरों के अंदर धार्मिक गतिविधियों के लिए इको फ्रेंडली अगरबत्ती जलानी चाहिए.  जितना संभव हो सके घर में वेंटिलेशन में सुधार करना चाहिए.  हालांकि सबसे अच्छा विकल्प यह है कि अपने घरों में एक हाई क्वालिटी  वाला एयर प्यूरीफायर  उपकरण स्थापित किया जाए, जो न केवल हमारे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक दिवाली से संबंधित प्रदूषकों का खात्मा कर सकें, बल्कि यह भी सुनिश्चित कर सके कि हम दिवाली के बाद अपने घरों में भी स्वस्थ शुद्ध हवा में सांस लेते रहें. ”

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हेल्थकेयर विशेषज्ञों दुवारा पूरे उत्साह के साथ दिवाली का आनंद लेने के लिए 8 महत्वपूर्ण टिप्स दिए गए हैं.

फिजिकल डिस्टेंसिग बनाए रखें

दिवाली का त्योहार न केवल बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है बल्कि यह लोगों के रिश्तों को मजबूत करने के लिए उन्हे एक साथ लाता है.  हालाँकि इस दिवाली, चाहे कोई भी मज़ा और उत्साह हो, फिजिकल डिस्टेंसिग बनाए रखना महत्वपूर्ण है क्योंकि कोरोनावायरस की तीसरी लहर के खतरे को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता है.  फिजिकल डिस्टेंसिगदूरी कोविड-19 के फैलाव को कम करने में मदद करती है.  इसका मतलब है कि एक दूसरे से कम से कम 1 मीटर की दूरी बनाए रखना और भीड़-भाड़ वाली जगहों पर समय बिताने से बचना चाहिए.

मोमबत्ती या दीया जलाने से पहले सैनिटाइजर के इस्तेमाल से बचें

मोमबत्ती या दीया जलाने के दौरान विशेष रूप से अल्कोहल वाला सैनिटाइज़र का उपयोग नहीं करना चाहिए.  सैनिटाइज़र बहुत ज्वलनशील होता हैं और तुरंत आग पकड़ सकते हैं जिससे गंभीर आग का खतरा हो सकता है.  मोमबत्ती या दीया जलाने से पहले हमेशा हाथों को अच्छी तरह से धोना चाहिए.

मास्क लगाए रखें

कोविड-19 के फैलाव को रोकने के लिए एहतियाती उपाय बरतने के अलावा दिवाली के दौरान मास्क का उपयोग करना बहुत जरूरी है.  पटाखों के जलने से निकलने वाला धुंआ सांस की समस्या से जूझ रहे मरीजों को गंभीर समस्या पैदा कर सकता है और घरघराहट, खांसी या आंखों में जलन जैसे सांस संबंधी समस्याएं पैदा कर सकता है.

कपड़े ढंग से पहनें

दिवाली के दौरान लोग भव्य रूप से तैयार होते है, लेकिन सुरक्षित रूप से तैयार होना हमेशा महत्वपूर्ण होता है.  शिफॉन, जॉर्जेट, साटन और रेशमी कपड़े ऐसे ट्रेंडिंग कपड़े हैं जो त्योहारों के दौरान पहनना हर किसी को पसंद होता है, लेकिन ऐसे रेशों में आग लगने की आशंका ज्यादा होती है.  इसके बजाय सूती रेशम, सूती या जूट के कपड़ों को पहनना ज्यादा बेहतर होता है.  दिवाली समारोह के दौरान ढीले-ढाले कपड़ों से भी बचना चाहिए.

पोषणयुक्त और स्वस्थ भोजन खाएं

दिवाली में अक्सर मिठाई, स्नैक्स और अन्य आकर्षक चीज़ें बहुत खाई जाती  है.  इन चीज़ों को बहुत ज्यादा खाने से पेट खराब हो सकता है, गैस बन सकती है और हार्ट बर्न हो सकता है.  इसलिए पेट पर अनावश्यक दबाव डाले बिना दिन भर में थोड़ा थोड़ा भोजन करना  अच्छा होता है.  स्वस्थ, पोषक तत्वों से भरपूर खाद्य पदार्थ, फल और मेवे खाएं.  खुद को हाइड्रेट और ऊर्जावान बनाए रखने के लिए खूब पानी पिएं.  साथ ही नाश्ता और दोपहर का भोजन मिस न करें और हर तरह  की शारीरिक गतिविधि में भाग लें.

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पटाखे न जलाएं

भारत में दुनिया का सबसे ज्यादा वायु प्रदूषण है और दुनिया के 30 सबसे प्रदूषित शहरों में से 22 शहर भारत के हैं.  दिवाली के दौरान किसी भी प्रकार के पटाखे या कचरा जलाने से स्थिति और ख़तरनाक हो जायेगी.  पटाखे फोड़ने से निकलने वाले कार्बन के कण पहले से मौजूद एलर्जी को बढ़ा सकते हैं.  इसके अलावा वाष्प के कण लंबे समय तक नथुने से चिपके रह सकते हैं जो एलर्जिक राइनाइटिस की संभावना को बढ़ा सकते हैं और यहां तक ​​कि अस्थमा और ब्रोंकाइटिस के अटैक को भी बढ़ा सकते हैं.  साथ ही जश्न के नाम पर पटाखे फोड़ने से कोविड संक्रमित मरीजों की हालत और खराब हो सकती है.  प्रदूषण रेस्पिरेटरी सिस्टम को प्रभावित करता है और  कोरोनावायरस से भी सांस लेने में समस्या होती है.  कहा जाता है कि फेफड़ों के संक्रमण वाले लोगों में कोविड -19 के लिए प्री मोर्बिड कंडीशन होती है और उनके वायरस से संक्रमित होने की संभावना होती है.  इसलिए, इस कोविड में धुआं पैदा करने वाले पटाखों का फोड़ना विनाशकारी हो सकता है.

अपनी दवाओं को नियमित रूप से खाएं

दिवाली का त्यौहार अधिकांश परिवारों के लिए एक व्यस्त समय हो सकता है, यह महत्वपूर्ण है कि रोजमर्रा के कामों को न भूलें और समय पर दवाएं लेना याद रखें.  दवा खाने के लिए लोग अपने मोबाइल फोन पर रिमाइंडर भी सेट कर सकते हैं या रिमाइंडर नोट लिख सकते हैं और इसे बाथरूम के पीछे, सामने के दरवाजे या किसी अन्य जगह पर चिपका सकते हैं जहां यह ठीक से दिखाई दे.  अगर कोई व्यक्ति दवा लेना भूल जाता है, तो बेहतर होगा कि यथाशीघ्र दवा को खाएं  और तुरन्त अपने डॉक्टर से सलाह लें.

कोविड वैक्सीन लगवाएं

आपको चाहे कोविड हुआ हो या नहीं, आपको कोविड की वैक्सीन लगवानी बहुत ज़रूरी है.  इस बात के सबूत मिले हैं कि लोगों को पूरी तरह से टीका लगवाने से कोविड से बेहतर सुरक्षा मिलती है.  कोविड-19 की वैक्सीन किसी व्यक्ति को गंभीर रूप से बीमार होने से बचाने में भी मदद करती हैं.  वैक्सीन  लगवाने से अन्य लोगों को भी सुरक्षा  हो सकती है.

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महिलाओं से जुड़ी बीमारियों का इलाज बताएं?

सवाल-

मेरी भाभी को स्तन कैंसर है. मेरे लिए इस कैंसर की चपेट में आने का खतरा कितना है?

जवाब-

आनुवंशिक कारक स्तन कैंसर होने का खतरा 5-10% तक बढ़ा देता है. अगर आप की मां, नानी, मौसी या बहन को स्तन कैंसर है तो आप के लिए इस कैंसर की चपेट में आने का खतरा बढ़ सकता है. ऐसे में इन में से अगर किसी एक को स्तन कैंसर है तो बाकी सब को जरूरी जांचें कराने में देरी नहीं करनी चाहिए. लेकिन आप की भाभी को स्तन कैंसर होने से आप के लिए खतरा नहीं बढ़ता है क्योंकि आप का उन से सीधा कोई रक्त संबंध नहीं है.

सवाल-

मेरी उम्र 60 साल है. मेरी माहवारी बंद हुए 10 साल हो गए हैं. मुझे पिछले कुछ दिनों से सफेद पानी आ रहा है. यह कैंसर का लक्षण तो नहीं है?

जवाब

मेनोपौज यानी माहवारी बंद होने के बाद सफेद पानी आ सकता है. योनी से सफेद पानी निकालना हमेशा कैंसर नहीं होता. यह सामान्य संक्रमण भी हो सकता है. लेकिन अगर बहुत समय से सफेद पानी आ रहा है और बीचबीच में ब्लीडिंग भी हो रही हो तो यह कैंसर के कारण हो सकता है. आप तुरंत किसी स्त्री रोग विशेषज्ञा को दिखाएं. अल्ट्रासाउंड कराने के बाद ही पता चलेगा कि बच्चेदानी में कोई गांठ तो नहीं है.

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सवाल-

मुझे शारीरिक संबंध बनाने के बाद ब्लीडिंग होती है. इस का कारण क्या है?

जवाब-

शारीरिक संबंध बनाने के बाद होने वाली ब्लीडिंग सामान्य है. लेकिन अगर ब्लीडिंग अधिक हो रही है, नियमित रूप से हो रही है और माहवारी के बीच में भी हो रही है तो यह सर्वाइकल कैंसर का प्रारंभिक लक्षण हो सकता है. यह हमारे देश में स्तन कैंसर के बाद महिलाओं में होने वाला सब से सामान्य कैंसर है. इस के मामले 30-65 वर्ष की आयु की महिलाओं में अधिक देखे जाते हैं. आप अपनी जांच कराएं तभी सर्विक्स या बच्चेदानी में मुंह पर विकसित होने वाली किसी ग्रोथ या पौलिप के बारे में पता चलेगा.

सवाल-

पिछले कुछ दिनों से मेरे पेट में बहुत दर्द है. जांच कराने पर गर्भाशय में गांठ होने का पता चला है. यह गर्भाशय के कैंसर का संकेत तो नहीं है?

जवाब-

आप ने यह नहीं बताया कि आप की माहवारी नियमित है या नहीं. माहवारी के बीच में ब्लीडिंग तो नहीं हो रही है या माहवारी बंद तो नहीं हुई है. आप तुरंत किसी स्त्री रोग विशेषज्ञा को दिखाएं. सब से पहले आप के गर्भाशय में जो गांठ है उस की बायोप्सी कराई जाएगी. अगर उन्हें ऐंडोमीट्रियल कैंसर की आशंका होगी तो वह पेल्विस की एमआरआई कराने को कहेंगे. उस के बाद स्थिति स्पष्ट हो पाएगी.

सवाल-

मेरी उम्र 26 साल है. अल्ट्रासाउंड कराने पर पता चला है कि मेरे अंडाशय में गांठ है. क्या यह खतरनाक है?

जवाब-

अंडाशय हारमोंस से सीधे संबंधित होते हैं. हर महीने माहवारी के समय इन के आकार में बदलाव आता है. कभी इन का आकार बड़ा हो जाता है तो कभी छोटा. अगर दर्द लगातार बढ़ रहा है, कब्ज हो रही है या पेट फूल रहा है तो यह ओवेरियन कैंसर का लक्षण हो सकता है. डाक्टर आप को एक ब्लड टैस्ट ट्यूमर मार्कर कराने की सलाह देंगे. अगर यह बढ़ा हुआ है तो कैंसर की पुष्टि के लिए सीटी स्कैन कराया जाएगा.

सवाल-

मेरे परिवार में पिछले कुछ दिनों में 2 लोगों की कीमोथेरैपी हुई है. एक के बाल पूरे झड़ गए जबकि दूसरे के बाल बिलकुल नहीं झड़े हैं, ऐसा क्यों?

जवाब-

कीमोथेरैपी के बाद बाल उड़ना स्वाभाविक है. जिन के बाल झड़े हैं, उन को चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है क्योंकि यह स्थाई नहीं है. 60% मरीजों में ऐसा होता है. यह दवाइयों और आप के शरीर से संबंधित होता है. इस के बाद जो बाल आते हैं वह पहले से अच्छे, घने और डार्क होते हैं. कीमोथेरैपी के बाद कुछ लोगों के बाल नहीं झड़ते हैं. लेकिन घबराएं नहीं. इस का कतई यह मतलब नहीं है कि कीमोथेरैपी असर नहीं कर रही है.

सवाल-

मुझे डाक्टर ने रैडिएशन थेरैपी कराने के लिए कहा है. लेकिन मुझे डर लग रहा है?

जवाब-

रैडिएशन थेरैपी के उपचार की एक बहुत ही सुरक्षित प्रक्रिया है. रैडिएशन हाई ऐनर्जी रेज होती हैं. इन में कोई करंट नहीं होता है. आप डरे नहीं क्योंकि इस में जलन या गरमी नहीं लगती है. सीटी स्कैन की तरह 5 मिनट के लिए मशीन में जाते हैं, फिर बाहर आ जाते हैं.

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सवाल-

मेरी उम्र 45 साल है. पिछले कुछ समय से मेरे निपल से सफेद फ्ल्यूड डिस्चार्ज हो रहा है?

जवाब-

निपल से सफेद फ्ल्यूड डिस्चार्ज होना सामान्य नहीं है.

यह स्तन कैंसर का संकेत हो सकता है. स्तन कैंसर से संबंधित जांच कराने में देरी न करें. अल्ट्रासाउंड और बाकी जांच कराने पर ही पता चलेगा कि इस का कारण स्तन कैंसर है या नहीं.

सवाल-

मेरी बेटी को स्तन कैंसर है. अभी उस की शादी भी नहीं हुई है. सुना है कीमोथेरैपी के बाद मां बनना संभव नहीं होता है?

जवाब-

युवा मरीजों में कीमोथेरैपी के बाद अंडाशय के अंडे खत्म हो जाते हैं. ऐसी महिलाएं जिन की शादी नहीं हुई है या जिन का परिवार पूरा नहीं हुआ है और वे बच्चे की इच्छुक हैं तो उन्हें अपने ओवम या अंडे फ्रीज करा लेने चाहिए ताकि बाद में इन का इस्तेमाल किया जा सके. यह जरूरी नहीं है कि अंडे आप के शरीर में इंप्लांट हो जाएं, लेकिन इस से इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) से बच्चा पाना संभव है.

-डा. शुभम गर्ग

सीनियर औंकोसर्जन, फोर्टिस अस्पताल, नोएडा

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