सोच से आगे- भाग 2: आखिर कौन था हत्यारा

अगली सुबह पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी आ गई. रिपोर्ट के मुताबिक डा. समर की मौत रात 2 और 3 बजे के बीच हुई थी और हत्या के समय मरने वाली ने अपने बचाव में पूरा जोर लगाया था, जिस से उन की 2 अंगुलियां भी घायल हो गई थीं. अंगुली में 3-4 घाव थे.

मैं ने लाश को अस्पताल के स्टाफ के हवाले कर दिया. अब उस का अंतिम संस्कार तो डा. शमशाद को ही करना था, क्योंकि डा. समर के आगेपीछे कोई नहीं था.

एक बात पर मुझे हैरानी थी कि उन का पति इकबाल अभी तक नहीं आया था. उस की अपनी पत्नी से अनबन जरूर थी, लेकिन ऐसे समय तो उसे आना ही चाहिए था. मैं ने कांस्टेबल मंजूर को इकबाल को थाने बुलाने के लिए कहा.

कुछ देर बाद आ कर उस ने बताया कि इकबाल न तो फ्लोर मिल में है और न ही अपने घर. उस की कोठी मिल के पास ही थी, जिस में वह अपनी मां और बहन के साथ रह रहा था. बहन का पति अरब में नौकरी करने गया हुआ था.

मैं 2 सिपाहियों को ले कर उस की कोठी पर पहुंच गया. उस समय हम पुलिस वर्दी में नहीं थे. मैं ने नौकर को अपना परिचय दिया तो उस ने हमें तुरंत अंदर बुला लिया. इतनी बड़ी कोठी में इकबाल की मां जिन की उम्र 60 के लगभग थी और करीब 40 साल की बहन ही रहती थीं.

मैं ने कोठी में मौजूद बूढ़ी महिला से कहा, ‘‘आप लोगों में से कोई भी डा. समर की लाश नहीं लेने आया.’’

उस बूढ़ी महिला ने जवाब दिया, ‘‘साहब, जब वह हम से नाता तोड़ कर चली गई तो फिर गंदले पानी में हाथ डालने से क्या फायदा.’’

‘‘क्या आप के बेटे ने उसे तलाक दे दिया था?’’

‘‘मैं ने तो उसे कई बार कहा, लेकिन वह टालमटोल कर देता था.’’

मैं ने इकबाल की छोटी बहन से पूछा, ‘‘बीबी, तुम्हारा भाई कहां है?’’

‘‘क्या आप भाईजान पर शक कर रहे हैं?’’ उस ने पूछा.

मैं ने गुस्से से कहा, ‘‘मैं जो पूछ रहा हूं, तुम केवल उस का ही जवाब दो.’’

‘‘वह कतर गए हैं.’’ उस ने बताया.

‘‘इतनी जल्दी जाने की क्या जरूरत थी?’’ मैं ने उस से पूछा.

इस सवाल पर तो वह नहीं बोली पर उस की मां ने जवाब दिया, ‘‘वह तो कई दिनों से जाने के लिए कह रहा था लेकिन उसे मिल के कामों से फुरसत ही नहीं मिल रही थी.’’

मैं ने भांप लिया था कि मांबेटी दोनों झूठ बोल रही हैं. कोई न कोई गड़बड़ जरूर है जो ये झूठ का सहारा ले रही हैं. मैं ने उन से कहा, ‘‘देखो, मुझे सचसच बता दो. मैं आप की इज्जत का खयाल कर के यहां वर्दी में नहीं आया. मैं चाहता तो आप को थाने में भी बुला सकता था.’’

उस की मां ने अपनी बेटी को चुप रहने के लिए कहा और बोली, ‘‘साहब, बात यह है कि वह कुछ दिनों से परेशान था. वजह यह कि मिल की 2 मशीनें खराब हो गई थीं और मिल में रखे कुछ गेहूं भी काले पड़ गए थे. वह कोई बात बताता नहीं था.’’

मैं ने उन से 2-3 बातें और पूछीं और वहां से लौटते समय उन से कह दिया कि इकबाल जब भी घर आए तो उसे थाने भेज देना. थाने लौटने के बाद मैं ने एएसआई असलम को पूरी जानकारी देते हुए पूछा कि अब क्या करना चाहिए. उस ने कहा, ‘‘सर, हमें एक चक्कर मिल का भी लगा लेना चाहिए.’’

मैं ने कहा, ‘‘तुम ने मेरे मुंह की बात छीन ली. ऐसा करो तुम वहां जा कर पूरी स्थिति की जानकारी लो और मुझे कल तक रिपोर्ट जरूर करो.’’

अगले दिन एएसआई असलम ने कहा, ‘‘सर, मामला बिलकुल उलटा है. मिल तो बहुत फायदे में चल रही है. न कोई मशीन खराब है और न ही वहां गेहूं खराब हुआ है.’’

मैं सोचने लगा कि जब ऐसी बात है तो मांबेटी ने झूठ क्यों बोला. कहीं ऐसा तो नहीं कि इकबाल ने ही अपनी मां और बहन से झूठ बोला हो. मैं ने एएसआई से कह कर मिल के जनरल मैनेजर को थाने बुला लिया.

2 घंटे बाद जनरल मैनेजर मेरे सामने बैठे थे. मैं ने उन से कहा, ‘‘आप को यह तो मालूम होगा कि मैं ने आप को यहां किसलिए बुलाया है?’’

‘‘जी, मैं समझ गया कि आप इकबाल साहब के बारे में पता करेंगे.’’ उस ने कहा.

‘‘वह कहां गए हैं?’’ मैं ने पूछा.

‘‘सर, इस बार तो वह मुझे भी चकमा दे गए, पता नहीं कहां चले गए.’’ उस ने कहा.

‘‘आजकल वह परेशान क्यों थे?’’ मैं ने अगला सवाल किया.

‘‘यह तो मुझे भी नहीं पता लेकिन लगता है कि वह अपनी पत्नी के बारे में ज्यादा चिंतित थे.’’ वह बोला.

‘‘लेकिन उन की मां और बहन ने तो उन की पत्नी का जीना हराम कर दिया था, इसलिए वह दुखी हो कर घर से चली गई थी. हो सकता है, मांबेटी ने उस की हत्या करवा दी हो.’’ मैं ने कुरेदा.

‘‘नहीं सर, उन में ऐसा करने की हिम्मत नहीं है.’’ उस ने कहा.

‘‘जैसे ही इकबाल के बारे में कुछ पता लगे तो हमें सूचना देना.’’ कह कर मैं ने जनरल मैनेजर को थाने से भेज दिया.

इस के अगले दिन इकबाल थाने आ गया. वह 30-32 साल का सुंदर जवान युवक था. उस के चेहरे पर परेशानी साफ दिखाई दे रही थी. उस ने आते ही कहा, ‘‘सर, मैं ने सुना है कि समर की हत्या हो गई. किस ने की है उस की हत्या? क्या आप ने हत्यारे का पता लगा लिया?’’ आते ही उस ने कई सवाल किए.

मैं ने उस की आंखां में देखते हुए कहा, ‘‘पहले आप यह बताइए कि अचानक कहां गायब हो गए थे?’’

उस ने कहा, ‘‘यह एक लंबी कहानी है. मुझे लगता है, आप मुझे समर का हत्यारा समझ रहे हैं?’’

‘‘आप ठीक समझ रहे हैं, जब कोई पास का संबंधी या रिश्तेदार अचानक गायब हो जाए तो शक उसी पर जाता है. आप अपनी कहानी सुनाओ, हम यहां कहानी सुनने के लिए ही बैठे हैं.’’

इस के बाद उस ने अपनी कहानी सुनानी शुरू की, ‘‘साहब, मुझे समर से प्रेम हो गया था. मैं ने उस से शादी की और घर ले आया. लेकिन मेरी मां और बहन को वह एक आंख नहीं सुहाई. वह उसे टौर्चर करती रहती थीं. खासतौर पर उस का अस्पताल जाना उन्हें बिलकुल पसंद नहीं था. वे दोनों रातदिन मेरे कान भरती रहती थीं और कहती थीं कि मैं उसे तलाक दे दूं.’’

‘‘आप भी तो उस पर शक करते थे कि वह डा. आतिफ में दिलचस्पी लेती है.’’ मैं ने बीच में ही टोका.

‘‘आप को यह बात किस ने बताई?’’ वह बोला.

‘‘किसी ने भी बताई हो, आप अपनी बात कहो.’’

‘‘नहीं सर, बात दरअसल ऐसी है कि मेरी मां और बहन ने मेरा इतना दिमाग खराब कर दिया था कि मैं भी उस पर शक करने लगा. वह मेरे व्यवहार से तंग आ कर अस्पताल के क्वार्टर में रहने लगी. मुझे अगर यह पता होता कि…’’ उस ने कहा.

सोच से आगे- भाग 1: आखिर कौन था हत्यारा

एक दिन मैं थाने में बैठा था कि एक व्यापारी एक लड़के को पकड़ कर लाया और बोला, ‘‘सर, यह लड़का चोरियां करता है. आज मैं ने इसे रंगेहाथों पकड़ा है.’’

व्यापारी के जाने के बाद मैं ने लड़के की ओर देखा. सर्दियों का मौसम था, वह जो कोट पहने हुए था, उस से लगता था कि वह गरीब घर का है. उस की उमर भी यही कोई 20 बरस रही होगी. मैं ने उस से पूछा कि क्या वह वास्तव में चोर है?

उस ने कहा, ‘‘सर, मैं वास्तव में चोर हूं और दुकानों से सामान चुराता हूं. वजह यह है कि मेरी रीढ़ की हड्डी में दर्द रहता है, जिस से मैं कोई काम नहीं कर सकता.’’

उस की बात सुन कर मैं ने उस से कहा, ‘‘ओए चोर की औलाद, तूने तमाम विकलांगों को सड़क पर सामान बेचते हुए देखा होगा. तू भी ये काम कर सकता है.’’

उस की बातों से मुझे लगा कि वह किसी अच्छे गुरु का चेला है, जिस ने उसे पाठ पढ़ा रखा है. मैं ने हवलदार को बुला कर कहा, ‘‘इसे अभी लौकअप में बंद कर दो, सुबह को इस से पूछताछ होगी.’’

फिर मैं ने उस से कहा, ‘‘अच्छी तरह सोच ले, झूठ बोला तो तेरी हड्डियों का चूरमा बना दूंगा.’’

अगले दिन जब मैं थाने आया तो पता लगा कि वह चोर लौकअप से फरार हो गया है. मेरा गुस्सा आसमान छूने लगा. मैं ने रात की ड्यूटी वाले कांस्टेबलों को बुला कर पूछा, ‘‘बताओ, उसे किस ने फरार कराया है.’’

सब ने यही कहा कि हमें पता नहीं है. अलबत्ता जाहिद नाम के एक कांस्टेबल ने कहा, ‘‘सर, लौकअप का दरवाजा टूटा मिला है. इस से तो यही लगता है कि वह दरवाजा तोड़ कर भाग गया.’’

मैं ने सब कांस्टेबलों को जाने दिया और उसी को पकड़ लिया. उस से जब कड़ाई से बात की तो उस ने कहा कि सर रात को एक व्यक्ति आया था, जो बहुत धनी लगता था. उस ने 10 हजार रुपए दिए और उसे छुड़ा ले गया.

मेरे कमरे में एएसआई असलम भी बैठे थे. उन्होंने उस पर चिल्लाते हुए कहा, ‘‘तुम ने यह कैसे समझ लिया कि तुम इतना बड़ा अपराध कर के बच जाओगे.’’

‘‘सर, बात यह है कि जो व्यक्ति रात को यहां आया था, उस ने मुझ से कहा था कि तुम्हारा कुछ नहीं बिगड़ेगा, उस की पहुंच ऊपर तक है.’’ जाहिद ने बताया.

मैं ने थाने में आने वाले व्यक्ति का हुलिया और पता पूछ कर नोट कर लिया और यह जानकारी मैं ने अपने उच्चाधिकारियों को भी दे दी. जिस के बाद कांस्टेबल जाहिद को निलंबित कर दिया गया.

इस घटना के छठे दिन सूचना मिली कि हमारे थाने के पास एक प्राइवेट अस्पताल की लेडी डाक्टर समर की किसी ने छुरा घोंप कर हत्या कर दी है. डा. समर इकबाल की पत्नी थीं, पतिपत्नी दोनों में अनबन रहती थी और वह अस्पताल के ही एक क्वार्टर में रह रही थीं.

सूचना मिलने पर मैं 2 सिपाहियों को साथ ले कर उस के क्वार्टर पर पहुंच गया. वह 2 कमरों का क्वार्टर था. एक कमरे में एक बैड पर उस की लाश पड़ी थी. लाश को देख कर लगा कि हत्या किसी ऐसे आदमी ने की है, जो उस से बहुत नफरत करता था. 2 घाव दिल के पास थे, एक पीठ की ओर था और 2 अंगुलियां भी घायल थीं.

साफसाफ ऐसा लग रहा था कि हत्या के समय लेडी डाक्टर ने अपने आप को बचाने की भरपूर कोशिश की थी. कमरे के बाहर अस्पताल के डाक्टर और नर्सिंग स्टाफ इकट्ठा था. मैं ने आवश्यक काररवाई कर के लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी. वहां मौजूद स्टाफ से मैं ने अलगअलग पूछताछ की. लेडी डाक्टर शमशाद और डा. आतिफ मुझे काम के लगे. उन दोनों को कमरे में बिठा कर उन से कुछ सवाल किए. ऐसा लग रहा था जैसे डा. समर की हत्या का उन दोनों को बहुत दुख था.

मैं ने डा. शमशाद से पूछा कि क्या डा. समर इस कमरे में अकेली रहती थीं? उन्होंने बताया, ‘‘नहीं, वह मेरे साथ रहती थीं.’’

‘‘क्या रात भी आप उन के साथ थीं?’’ मैं ने पूछा.

‘‘नहीं, रात मैं उन के साथ नहीं थी क्योंकि कल एक एक्सीडेंट का केस आ गया था. मैं और डा. आतिफ उस के औपरेशन में सुबह तक व्यस्त थे.’’ उन्होंने बताया.

‘‘इस का मतलब है कि डा. समर मरने वाली रात को बिलकुल अकेली थीं.’’ मैं ने पूछा.

‘‘हां, अकसर ऐसा होता है कि इमरजेंसी में हम दोनों में से एक की ड्यूटी रात की लग जाती है.’’ डा. शमशाद ने कहा.

मैं ने उस सर्जन से पूछा कि आप के विचार में इन की हत्या किस ने की होगी? वह कहने लगीं कि कुछ कहा नहीं जा सकता. मुझे बड़ी हैरानी है कि इतनी शरीफ जो सब के काम आती हों, उन की हत्या इतनी क्रूरता से कौन कर सकता है.

‘‘अच्छा, यह बताइए, इन का पति इकबाल करता क्या है?’’ मैं ने उन से अगला सवाल किया.

‘‘सर इकबाल एक फ्लोर मिल का मालिक है. एक दिन वह हमारे अस्पताल में रोगी बन कर आया था. डा. समर ने उस का इलाज किया. उसी बीच दोनों में प्रेम प्रसंग हो गया और बात शादी तक पहुंच गई.’’

डा. शमशाद ने वहां पर मौजूद डा. आतिफ की ओर देखते हुए कहा, ‘‘इकबाल को यह शक था कि उस की पत्नी डा. आतिफ में रुचि ले रही है.’’

मैं ने 2-3 बातें पूछ कर कमरे को दोबारा ध्यान से देखना शुरू किया. कमरे में मेज पर चाय के 2 खाली कप और पानी के 2 खाली गिलास रखे हुए थे. मैं ने डा. शमशाद से उन के बारे में पूछा तो उन्हें भी कप देख कर हैरानी हुई. मैं ने और ध्यान से देखा तो ऐशट्रे में सिगार का बुझा एक टुकड़ा भी मिला. इस का मतलब था कि रात में वहां कोई मर्द भी था, जो हत्या करने आया होगा. यह बात तय थी कि मरने वाली उस आदमी को जानती थी.

कमरे को सील करने से पहले मैं ने कांस्टेबल से सिगार के टुकड़े को सुरक्षित रखने के लिए कहा. मैं ने एएसआई को बुला कर कहा कि तुम उस फरार आदमी का पता करो और एक परचा उस की ओर बढ़ाते हुए कहा कि इस में जो हुलिया लिखा है, उस का स्कैच भी बनवाओ.

लिवइन रिलेशनशिप- भाग 3: क्यों अकेली पड़ गई कनिका

‘ओह मां, जब भी घर आती हूं आप यह शादीशादी की रट लगानी शुरू कर देती हो. आगे से मैं आना बंद कर दूंगी. मु झे नहीं करनी शादी. शादी, बच्चे, ससुराल, मायका, मैं ये सब मैनेज नहीं कर सकती. मैं जैसी हूं वैसी ही रहूंगी. मैं बस कमाओ, खाओ, पिओ और मौज करो में यकीन करती हूं और शायद मैं इसी के लिए बनी भी हूं.’

‘पर बेटा, ऐसा नहीं है, शादीब्याह कोई  झं झट नहीं है. शादी तो प्यार का दूसरा नाम है. एकदूसरे के लिए कुछ कर गुजरने की चाहत होती है. विवाह समाज द्वारा मान्यताप्राप्त है जो आप को एक पार्टनर देता है जिस से एक ओर जहां आप अपनी शारीरिक जरूरतें पूरी करते हो वहीं दुखसुख को बांटते हो और जहां आप अपना सुरक्षित भविष्य प्राप्त करते हो. विवाह करने में ही जीवन का असली सुख है, बेटा,’ मां ने अपना अनुभवयुक्त ज्ञान उसे देने की कोशिश की थी.

‘इन सब दकियानूसी बातों में मु झे यकीन नहीं. यह कहां की तुक है कि एक आदमी को ही पूरी जिंदगी हवाले कर दो.’

मां आगे और भी कुछ बोलना चाहती थीं पर वह उन की बातों को अनसुना कर के कमरे से बाहर चली गई. पहली बार उसे लगा कि वह मां की नजरों का सामना नहीं कर पाई.

सोचतेसोचते कब उस की आंख लग गई, उसे पता ही नहीं चला. दरवाजे की घंटी की आवाज से उस की नींद खुली. दरवाजा खोला तो सामने रोनित खड़ा था. कनिका 2 कप कौफी ले आई. और बोली, ‘‘रोनित, अब हम क्या करेंगे?’’

‘‘हां कनु, मु झे भी सम झ नहीं आ रहा. डाक्टर ने प्रैग्नैंसी के साथसाथ और भी तो कितनी बीमारियां बताईं तुम्हें, डायबिटीज, मोटापा, बीपी आदि. और ये बीमारियां तो पूरी जिंदगी तुम्हारा साथ नहीं छोड़ने वालीं. अब तुम सोच लो, क्या करना है?’’

‘‘क्या करना है, मतलब? जो करना है हम दोनों को करना है,’’ कनिका ने लगभग  झुं झलाते हुए कहा.

‘‘तो क्या करूं, तुम से शादी कर लूं? यह मौजमस्ती तुम ने अपने से की थी. मैं ने तुम्हें फोर्स नहीं किया था. जो तुम मु झ पर अपना गुस्सा निकाल रही हो. जो किया है, अब भुगतो. जिस लड़की ने शादी से पहले ही सबकुछ मु झे सौंपने में तनिक भी संकोच नहीं किया, वह लड़की तो शादी के बाद भी न जाने किसकिस को…’’ कह कर रोनित अपना बैग उठा कर कमरे से बाहर निकल गया. कनिका रोनित के बदले रूप को अचरज से देखती रह गई. निढाल हो कर वह बिस्तर पर गिर गई. उस की आंखों से आंसू बह निकले. तभी फोन की घंटी बजी. उठाया, तो उस की सहेली आयशा थी.

‘‘हैलो कनु, क्या हुआ 2 दिनों से औफिस क्यों नहीं आ रही हो?’’

उस की आवाज सुनते ही कनिका अपनेआप को रोक नहीं सकी और फूटफूट कर रोने लगी. उसे रोता सुन कर आयशा घबरा गई और बोली, ‘‘चल, मैं आधे घंटे में तेरे पास पहुंचती हूं.’’

आधे घंटे में आयशा उस के सामने थी. कनिका के बिखरे बाल, सूजी आंखें और अस्तव्यस्त कपड़े देख कर वह हैरत से बोली, ‘‘क्या हुआ? यह क्या हालत बना रखी है? लग रहा है जैसे महीनों से बीमार है.’’

‘‘आयशा, सब खत्म हो गया. मु झे कुछ सम झ नहीं आ रहा क्या करूं. लग रहा है खुद को ही खत्म कर लूं,’’ कहते हुए कनिका ने रोतेरोते सारी दास्तान आयशा को कह सुनाई.

उस की बातें सुन कर आयशा बोली, ‘‘अच्छा, यह बात है, तभी 2 दिनों से रोनित कुछ अपसैट है और तेरे बारे में पूछने पर भी कुछ नहीं बोला. पर कनु, इस में गलती तो तेरी ही है. मैं ने कितना सम झाया था. पर तु झे तो लिवइन रिलेशनशिप का जनून चढ़ा था. कनु, आजादी और उच्छृंखलता में बहुत बारीक सा अंतर होता है. तू ने तो हमेशा ही आजादी का गलत मतलब निकाल कर मस्ती और ऐयाशी का जीवन जिया है.

‘‘कनु, जिम्मेदारियों से भागना जिंदगी नहीं है. विवाह जिम्मेदारी निभाना नहीं है, बल्कि सम्मानसहित जीवन जीने का नाम है. तू ने चंद जिम्मेदारियों के डर से अपना पूरा जीवन ही दांव पर लगा दिया. अब बता कहां गई तेरी बिंदास और मस्तीभरी जिंदगी और कहां गया लिवइन रिलेशनशिप में साथ देने वाला तेरा वह मस्तीखोर साथी. तेरे साथ दिनरात रहने के बाद भी आज तु झे मुसीबत में छोड़ कर भाग गया न. कनु, कुछ भी हो, अंत में भोगना स्त्री को ही पड़ता है.’’

‘‘आयशा, तू सही कह रही है. आज मु झे इस हालत में छोड़ कर रोनित खुद बड़े आराम से घूम रहा है. फंस तो मैं गई. अब क्या करूं? ऊपर से मु झे ताना दे रहा है कि मैं ने जो किया, अपनी मरजी से किया. ठीक है, मैं ने मरजी से किया, पर क्या इस में रोनित का कोई दोष नहीं?’’ कनिका ने आयशा का हाथ पकड़ कर दर्दभरी नजरों से पूछा.

‘‘कनु, जब हम घर से बाहर आते हैं तो अपनी सुरक्षा की जिम्मेदारी हमारे ऊपर स्वयं होती है. भले ही मर्द कितना भी दोषी क्यों न हो, हमारे भारतीय समाज में दोषी स्त्री को ही माना जाता है. अब तेरे पास इस बच्चे को जन्म देने के अलावा चारा भी क्या है. रोनित ने अपने व्यवहार से जता दिया है कि वह अब तु झे पूछेगा भी नहीं,’’ आयशा ने कहा तो कुछ देर तक शांत रहने के बाद कनिका किसी तरह हिम्मत कर के उठी और हाथमुंह धो कर आयशा से बोली, ‘‘तू सही कह रही है. जो मैं ने किया है उसे भोगना तो मु झे पड़ेगा ही. अब इसे जन्म तो देना ही होगा.’’

कनिका ने अगले दिन से औफिस जाना शुरू कर दिया. इस बीच उस ने कई बार रोनित से संपर्क करने का प्रयास किया, परंतु कोई नतीजा नहीं निकला. बाद में उस के साथियों से पता चला कि उस ने दूसरी कंपनी जौइन कर ली है.

9 माह बाद कनिका ने एक खूबसूरत सी बेटी को जन्म दिया. उसे पालने के साथसाथ उस ने एक एनजीओ भी प्रारंभ किया जो अनाथ बच्चों को शिक्षित करने के साथसाथ स्कूल और कालेज जा कर बालिकाओं को उन के कैरियर बनाने की शिक्षा तो देता ही था, साथ ही, महानगरों में रह कर उन्हें कैसे अपने अस्तित्व की रक्षा करनी है, के प्रति जागरूक भी करता था. वहां वह बालिकाओं को बताती थी कि आजादी का मतलब उच्छृंखलताभरी जिंदगी, अस्तव्यस्त लाइफस्टाइल और ऊलजलूल कपड़े पहनना नहीं, बल्कि अपने विचारों की आजादी है. जिंदगी का असली मजा जीवन में आने वाली चुनौतियों से भागना नहीं, बल्कि उन का सामना करने में है.

पार्ट टाइम जॉब: क्या मनोज का कत्ल हुआ था

दुबलापतला श्याम श्रीवास्तव उर्फ पेपर वाला सवेरेसवेरे रोज की तरह मनोज के कमरे में अखबार देने के लिए दाखिल हुआ. उस ने दरवाजा खोलते ही मनोज की लाश पंखे से लटकी देखी.

इस के बाद अफरातफरी मच गई. कुछ ही समय में एंबुलैंस और पुलिस की गाडि़यों का काफिला, जिस में सीनियर इंस्पैक्टर श्रीप्रकाश, सबइंस्पैक्टर परितेश शर्मा और हवलदार बहादुर सिंह जैसे कई काबिल अफसर शामिल थे, मौका ए वारदात पर पहुंचा.

घर के बाहर लोगों का हुजूम देख कर पुलिस को समझने में देर न लगी कि यही वह जगह है, जहां से उन्हें फोन किया गया था.

पुलिस को देख कर भीड़ एक ओर हट कर खड़ी हो गई. फोन करने वाले श्याम से जब पूछताछ की गई, तो उस ने बताया कि वह शुरू से ही हर रोज मनोज के कमरे में अखबार डालने आता है, पर आज जैसे ही उस ने अखबार देने के लिए दरवाजा खोला, वैसे ही सामने उसे मनोज पंखे से फांसी पर लटका हुआ मिला.

सीनियर इंस्पैक्टर श्रीप्रकाश को अखबार वाले श्याम का बयान थोड़ा खटका. इतने में ही आसपास रह रहे छात्रों से सूचना मिली कि मनोज का पूरा नाम मनोज दास है और अभी कुछ ही महीनों पहले वह कोलकाता से दिल्ली पढ़ने के लिए आया था और आते ही इस स्टूडैंट हब में कमरा किराए पर ले कर रहना शुरू कर दिया था. उस के साथ यहां और कोई नहीं आया था.

मनोज के पिताजी ही उसे शुरू में यहां कमरा किराए पर दिलवा कर गए थे. मनोज यहीं पर अपनी कोचिंग किया करता था.

मनोज की लाश को फौरन जांच के लिए फौरैंसिक लैब भेज दिया गया और उस के कमरे के सामान की छानबीन शुरू कर दी गई.

साइबर ऐक्सपर्ट की मदद से मनोज की कौल हिस्ट्री निकाल ली गई. उन के पिता का नंबर तलाश कर उन्हें सूचना भिजवा दी गई.

पर, एक नंबर था, जिस से मनोज दिन में कई बार बातें किया करता. उस नंबर को ट्रेस करने के बाद सिर्फ  इतना ही मालूम हुआ कि वह नंबर दिल्ली का ही है. इस से ज्यादा पता लगाना मुश्किल था, क्योंकि वह नंबर बिना किसी आइडैंटिटी के खरीदा  गया था.

कमरे की छानबीन से कुछ खास सुबूत तो हाथ न लगा, पर एक बात अभी भी इंस्पैक्टर श्रीप्रकाश के मन में किसी सवाल की तरह घूमे जा रही थी और वह थी अखबार वाले श्याम का बयान, क्योंकि अमूमन अखबार वाला अखबार बालकनी में फेंक देता है या दरवाजे के नीचे से सरका देता?है. उसे इतनी फुरसत कहां होती है, जो सब के हाथ में अखबार पकड़ाए और क्या मनोज ने दरवाजा खोल कर खुदकुशी की थी?

सीनियर इंस्पैक्टर श्रीप्रकाश ने हवलदार को इस श्याम अखबार वाले पर नजर रखने को कहा और साथ ही, खबरियों को भी इस की जानकारी निकलवाने का आदेश दिया.

उधर अगले ही दिन की फ्लाइट से मनोज के मातापिता दिल्ली पहुंचे और थाने जा कर अपना परिचय दिया. अपने बेटे की चादर से ढकी लाश देख कर मनोज के मातापिता का रोरो कर बुरा हाल हो गया.

पुलिस ने मनोज के मातापिता को दिलासा दी और पूछताछ के लिए सीनियर इंस्पैक्टर श्रीप्रकाश के पास ले आए.

मनोज के पिता पुरुषोत्तम दास और माता संगीता दास ने बताया कि मनोज बचपन से ही पढ़ाईलिखाई में काफी होशियार था, जिस के चलते उन्होंने उसे पढ़ने के लिए दिल्ली भेजा था.

इंस्पैक्टर श्रीप्रकाश ने मनोज से मिलतेजुलते और कई सवाल पूछे और फिर उन के बेटे की लाश उन्हें सौंप दी.

अभी मनोज के मातापिता को लाश के साथ विदा किया ही गया था कि एक खबरी से खबर मिली, जिस में उस ने बताया, ‘‘साहब, श्याम का असली रोजगार अखबार बेचना नहीं है. इस के अलावा वह और भी कई गैरकानूनी धंधों में शामिल है, पर पूरी तरह से नहीं.’’

हवलदार बहादुर सिंह ने भी यही बताया, ‘‘श्याम का पिछले कई सालों से छोटीमोटी चोरीचकारी और छीनाझपटी के लिए थानों में नाम आता रहा है, पर इस का नाम ऐसे किसी संगीन मामले में नहीं पाया गया है.’’

सीनियर इंस्पैक्टर श्रीप्रकाश के इशारे पर आधी रात को ही श्याम को घर से उठवा कर थाने में बुलवा लिया गया. शुरुआत में किसी भी सवाल का सही जवाब न मिलने पर श्याम को रिमांड में लेने को कहा गया, जिस से डर कर उस ने तोते की तरह सबकुछ सच उगलना शुरू कर दिया.

बात कुछ महीने पहले की है. श्याम छोटामोटा जेबकतरा था, पर इस काम में आगे जातेजाते उस की मुलाकात कई गैरकानूनी धंधे करने वाले गिरोह से हुई. उन्हीं में से एक था विकी छावरा उर्फ ‘सिकंदर’ जिस का काम बड़ेबड़े रईसजादों के लिए ड्रग्स और लड़कियों की तस्करी करना था. इस काम के लिए उसे दलाल की जरूरत थी.

श्याम भी जानता था कि बड़े कामों में पैसा भी बड़ा है, ऊपर से खुद का भी अलग ही रोब होता है महल्ले वालों में. उस ने धीरेधीरे सिकंदर के करीब  आना शुरू कर दिया और देखते ही देखते उस का खास और भरोसेमंद आदमी बन गया.

श्याम का काम ड्रग्स सप्लाई करने के लिए लड़के तलाशना था और किसी भी तरह उन्हें अपने साथ काम करने के लिए मजबूर करना था, जिस के चलते उस ने अखबार बेचने का काम शुरू कर दिया, जिस से घर से दूर यहां पढ़ने आए छात्रों से बातचीत कर उन के नजदीक आया जाए और नएनए लड़के तैयार किए जाएं.

तकरीबन 5 महीने पहले मनोज भी यहां पढ़ने के लिए आया था. यों तो सभी अपने साथियों के साथ रहा करते थे, पर मनोज अकेला था, जिस से  श्याम का काम कुछ हद तक आसान हो गया था.

कुछ दिनों की दोस्ती में बातों ही बातों में श्याम को पता लगा कि मनोज माली तंगी झेल रहा है, जिस के लिए उसे छोटेमोटे पार्टटाइम जौब की

तलाश है.

श्याम ने भी लगे हाथ अपना पत्ता फेंक दिया और कहा, ‘देख मनोज, तुझे पार्टटाइम जौब चाहिए, तो मैं दिलवा सकता हूं. बस डिलीवरी का काम है. पैसा भी किसी फुलटाइम जौब से कम नहीं मिलेगा.’

‘भैया, फिर तो मैं तैयार हूं,’ मनोज ने कहा.

‘अरे, जहां का पता दिया जाए, वहां पर एक छोटी सी थैली पहुंचानी है,’ श्याम ने झूठी हंसी हंसते हुए कहा.

मनोज काम करने के लिए तैयार हो गया. उसे लिफाफे में कुछ दिया जाता और साथ ही एक परची पर पता भी लिख कर दे दिया जाता.

मनोज वह छोटी सी थैली पैंट की जेब में डाल कर उसे दिए गए पते पर छोड़ आता, जिस के बदले में उसे अच्छीखासी रकम नकद मिल जाती.

ऐसे ही कुछ महीनों तक यह सिलसिला चलता रहा. एक दिन मनोज के जेहन में आया कि आखिर छोटी सी थैली में ऐसी क्या कीमती चीज है, जिस के लोग इतने रुपए दे देते हैं.

उस ने थैली को खोल कर देखा. उस के अंदर सफेद चूर्ण सा दिखने वाला कोई पदार्थ था.

मनोज पढ़ालिखा था. उसे शक हो गया कि कहीं यह उसी चीज की थैली तो नहीं, जिस के बारे में उस ने कई फिल्मों में देखा है. उस का शक तब और भी पक्का हुआ, जब उस ने उस सफेद चूर्ण से दिखने वाले पाउडर को सूंघ कर देखा और एहसास हुआ कि उस से इतने दिनों से एक गैरकानूनी काम करवाया जा रहा है.

उस ने तुरंत श्याम को फोन कर धमकी दी कि वह सुबह होते ही उस का भांड़ा फोड़ देगा और उस के खिलाफ केस करेगा.

इधर, श्याम ने यह सारा माजरा सिकंदर को फोन कर के बताया. सिकंदर एक शातिर मुजरिम था. उसे ऐसे हालात से भी मुनाफा कमाना खूब अच्छी तरह से आता था.

उस ने कुछ गुरगे भेज कर मनोज को अपने पास बुलवाया और खूब मीठीमीठी बातों से आदरसत्कार किया.

मनोज नहीं जानता था कि श्याम के भी ऊपर कोई है, जो इन चीजों का मास्टरमाइंड है. सिकंदर की दबंगई देख कर उस का भी दिल सहम गया. उसे महसूस हुआ कि वह ज्यादा पैसा कमाने के चक्कर में कैसे लोगों के चक्कर में फंस चुका है.

सिकंदर ने मीठी जबान में कहा, ‘अरे, क्या है भाई. पढ़ेलिखे हो, समझदार हो, यह पुलिस की धमकी देते हुए अच्छे लगते हो क्या? अच्छा, यह लो, इसे ले जाओ अपने साथ और मजे करो.’

सिकंदर ने अपने बगल में खड़ी एक खूबसूरत लड़की को पकड़ मनोज की ओर धकेल दिया. उस लड़की को देख मनोज का भी दिल बहक सा गया और वह सिकंदर के दिए हुए तोहफे को मना नहीं कर सका.

मनोज उसे अपने घर ले आया. उस लड़की ने मौका पा कर मनोज को बेहोश कर दिया और बाहर हाथ में रस्सी लिए उस लड़की के इशारे ओर देख रहे श्याम और सिकंदर को जैसे ही कमरे के अंदर से उस लड़की का फोन आया, वे दोनों चुपचाप मनोज को रस्सी के सहारे पंखे से लटका कर अपनेअपने ठिकाने पर लौट गए.

अगले दिन योजना के मुताबिक श्याम अनजान आदमी की तरह मनोज के कमरे में अखबार देने गया और खुद शक के घेरे से बाहर निकलने के लिए सामने से पुलिस को फोन कर दिया.

इतना बताने के बाद ही हवलदार बहादुर सिंह फौरैंसिक रिपोर्ट ले कर हाजिर हुआ, जिस में साफसाफ  लिखा था, ‘मौत बेहोशी की हालत में हुई है’.

चक्रव्यूह: क्या हुआ था सुशील के साथ

यौन दुराचार के आरोप में निलंबन, धूमिल सामाजिक प्रतिष्ठा और एक लंबी विभागीय जांच प्रक्रिया के बाद निर्दोष साबित हो कर फिर बहाल हुए सुशील आज पहली बार औफिस पहुंचे. पूरा स्टाफ उन के सम्मान में खड़ा हो गया, मगर उन्होंने किसी की तरफ भी नजर उठा कर नहीं देखा और चपरासी के पीछेपीछे सीधे अपने केबिन में चले गए. आज उन की चाल में पहले सी ठसक नहीं थी. वह पुराना आत्मविश्वास कहीं खो सा गया था.

कुरसी पर बैठते ही उन की आंखों में नमी तैर गई. उन के उजले दामन पर जो काले दाग लगे थे वे बेशक आज मिट गए थे मगर उन्हें मिटातेमिटाते उन का चरित्र कितना बदरंग हो गया, यह दर्द सिर्फ भुक्तभोगी ही जान सकता है.

कितना गर्व था उन्हें अपनी ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा पर, बहुत भरोसा था अपने व्यवहार की पारदर्शिता पर. हां, वे काम में सख्त और वक्त के पाबंद थे. मगर यह भी सच था कि अपने स्टाफ के प्रति बहुत अपनापन रखते थे. वे कितनी बड़ी खुशफहमी पाले हुए थे अपने दिल में कि उन का स्टाफ भी उन्हें बहुत प्यार करता है. तभी तो उन्हें अपने चपरासी मोहन की बातों पर जरा भी यकीन नहीं हुआ था जब उस ने रजनी और शिखा के बीच हुई बातचीत ज्यों की त्यों सुना कर उन्हें खतरे से आगाह किया था. उन्हें आज भी वह सब याद है जो मोहन ने उस दिन दोनों की बातें लगभग फुसफुसा कर कही थीं…

‘इन सुशील का भी न, कुछ न कुछ तो इलाज करना ही पड़ेगा. जब से डिपार्टमैंट में हेड बन कर आए हैं, सब को सीट से बांध कर रख दिया है. मजाल है कि कोई लंचटाइम के अलावा जरा सा भी इधरउधर हो जाए,’ शिखा की टेबल पर टिफिन खोलते हुए रजनी ने अपनी भड़ास निकाली.

‘हां यार, विमल सर के टाइम में कितने मजे हुआ करते थे. बड़े ही आराम से नौकरी हो रही थी. न सुबह जल्दी आने की हड़बड़ाहट और न ही शाम को 6 बजे तक सीट पर बैठने की पाबंदी. अब तो सुबह अलार्म बजने के साथ ही मोबाइल में सुशील का चेहरा दिखाई देने लगता है,’ शिखा ने रजनी की हां में हां मिलाते हुए उस की बात का समर्थन किया.

‘याद करो, कितनी बार हम ने औफिस से बंक मार कर मैटिनी शो देखा है, ब्यूटीपार्लर गए हैं, त्योहारों पर सैल में शौपिंग के मजे लूटे हैं. और तो और, औफिसटाइम में घरबाहर के कितने ही काम भी निबटा लिया करते थे. अब तो बस, सुबह साढ़े 9 बजे से शाम 6 बजे तक सिर्फ फाइलें ही निबटाते रहो. लगता ही नहीं कि सरकारी नौकरी कर रहे हैं,’ रजनी ने बीते हुए दिनों को याद कर के आह भरी.

‘और हां, सुशील सर पर तो तुम्हारी आंखों का काला जादू भी काम नहीं कर रहा, है न,’ शिखा ने जानबूझ कर रजनी को छेड़ा?

‘सही कह रही हो तुम. विमल सर तो मेरी एक मुसकान पर ही फ्लैट हो जाते थे. सुशील को तो यदि बांहोें में भर के चुंबन भी दे दूं न, तब भी शायद कोई छूट न दें,’ रजनी ने ठहाका लगाते हुए अपनी हार स्वीकार कर ली.

‘शिखा मैडम, आप को साहब ने याद किया है,’ तभी मोहन ने आ कर कहा था.

‘अभी आती हूं,’ कहती हुई शिखा ने अपना टिफिन बंद किया और सुशील के चैंबर की तरफ चल दी.

‘साहब का चमचा,’ कह कर रजनी भी बुरा सा मुंह बनाती हुई अपनी सीट की तरफ बढ़ गई.

सुशील को एकएक बात, एकएक घटना याद आ रही थी. रजनी उन के औफिस में क्लर्क है. बेहद आकर्षक देहयष्टि की मालकिन रजनी को यदि खूबसूरती की मल्लिका भी कहा जाए तो भी गलत न होगा. उस की मुखर आंखें उस के व्यक्तित्व को चारचांद लगा देती हैं. रजनी को भी अपनी इस खूबी का बखूबी एहसास है और अवसर आने पर वह अपनी आंखों का काला जादू चलाने से नहीं चूकती.

मोहन ने ही उन्हें बताया था कि 3 साल पहले जब रजनी ने ये विभाग जौइन किया था तब प्रशासनिक अधिकारी मिस्टर विमल उस के हेड थे. शौकीनमिजाज विमल पर रजनी की आंखों का काला जादू खूब चलता था. बस, वह अदा से पलकें उठा कर उन की तरफ देखती और उस के सारे गुनाह माफ हो जाते थे.

विमल ने कभी उसे औफिस की घड़ी से बांध कर नहीं रखा. वह आराम से औफिस आती और अपनी मरजी से सीट छोड़ कर चल देती. हां, जाने से पहले एक आखिरी कौफी वह जरूर मिस्टर विमल के साथ पीती थी. उसी दौरान कुछ चटपटी बातें भी हो जाया करती थीं. मिस्टर विमल इतने को ही अपना समय समझ कर खुश हो जाते थे. रजनी की आड़ में शिखा समेत दूसरे कर्मचारियों को भी काम के घंटों में छूट मिल जाया करती थी, इसलिए सभी रजनी की तारीफें करकर के उसे चने के झाड़ पर चढ़ा रखते थे.

लेकिन रजनी की आंखों का काला जादू ज्यादा नहीं चला क्योंकि मिस्टर विमल का ट्रांसफर हो गया. उन की जगह सुशील उन के बौस बन कर आ गए. दोनों अधिकारियों में जमीनआसमान का फर्क. सुशील अपने काम के प्रति बहुत ईमानदार थे और साथ ही, वक्त के भी बहुत पाबंद, औफिस में 10 मिनट की भी देरी न तो खुद करते हैं और न ही किसी स्टाफ की बरदाश्त करते. शाम को भी 6 बजे से पहले किसी को सीट नहीं छोड़ने देते.

जैसा कि अमूमन होता आया है कि लंबे समय तक मिलने वाली सुविधाओं को अधिकार समझ लिया जाता है. रजनी को भी सुशील के आने से कसमसाहट होने लगी. उन की सख्ती उसे अपने अधिकारों का हनन महसूस होती थी. उसे न तो जल्दी औफिस आने की आदत थी और न ही देर तक रुकने की. उस ने एकदो बार अपनी अदाओं से सुशील को शीशे में उतारने की कोशिश भी की मगर उसे निराशा ही हाथ लगी. सुशील तो उसे आंख उठा कर देखते तक नहीं थे. फिर? कैसे चलेगा उस की आंखों का काला जादू? इस तरह तो नौकरी करनी बहुत मुश्किल हो जाएगी. रजनी की परेशानी बढ़ने लगी तो उस ने शिखा से अपनी परेशानी साझा की थी. तभी मोहन ने उन की बातें सुन ली थीं और सुशील को आगाह किया था.

उन्हीं दिनों विधानसभा का मौनसून सत्र शुरू हुआ था. इन सत्रों में विपक्ष द्वारा सरकार से कई तरह के प्रश्न पूछे जाते हैं और संबंधित सरकारी विभाग को उन के जवाब में अपने आंकड़े पेश करने पड़ते हैं. साथ ही, जब तक उस दिन का सत्र समाप्त नहीं हो जाता,

तब तक उस विभाग के सभी अधिकारियों व उन से जुड़े कर्मचारियों को औफिस में रुकना पड़ता है. हां, देरी होने पर महिला कर्मचारियों को सुरक्षित उन के घर तक पहुंचाने की जिम्मेदारी जरूर विभाग की होती है. इस बाबत सुशील भी हर रोज उन के लिए कुछ टैक्सियों की एडवांस में व्यवस्था करवाते थे.

रजनी के अधिकारक्षेत्र में ग्रामीण महिलाओं के लिए चलाई जाने वाली महत्त्वपूर्ण विकास योजनाओं की जानकारी वाली फाइलें थीं. इसलिए सुशील की तरफ से उसे खास हिदायत थी कि वह बिना उन की इजाजत के औफिस छोड़ कर न जाए. और फिर उस दिन जो हुआ उसे भला वे कैसे भूल सकते हैं.

‘साहब ने आज आप को फाइलों के साथ रुकने के लिए कहा है,’ मोहन ने जैसे ही औफिस से निकलने के लिए बैग संभालती रजनी को यह सूचना दी, उस के हाथ रुक गए. उस ने मन ही मन कुछ सोचा और सुशील के चैंबर की तरफ बढ़ गई.

‘सर, आज मेरे पति का जन्मदिन है, प्लीज आज मुझे जल्दी जाने दीजिए. मैं कल देर तक रुक जाऊंगी,’ रजनी ने मिन्नत की.

‘मगर मैडम, हमारे विभाग से जुड़े प्रश्न तो आज के सत्र में ही पूछे जाएंगे. कल रुकने का क्या फायदा? लेकिन आप फिक्र न करें, जैसे ही आप का काम खत्म होगा, हम तुरंत आप को टैक्सी से जहां आप कहेंगी वहां छुड़वा देंगे. अब आप जाइए और जल्दी से ये आंकड़े ले कर आइए,’ सुशील ने उस की तरफ एक फाइल बढ़ाते हुए कहा. रजनी कुछ देर तो वहां खड़ी रही मगर फिर सुशील की तरफ से कोई प्रतिक्रिया न पा कर निराश सी चैंबर से बाहर आ गई.

‘सर, क्या मैं आप के मोबाइल से एक फोन कर सकती हूं? अपने पति को देर से आने की सूचना देनी है, मैं जल्दबाजी में आज अपना मोबाइल लाना भूल गई,’ रजनी ने संकोच से कहा.

‘औफिस के लैंडलाइन से कर लीजिए,’ सुशील ने उस की तरफ देखे बिना ही टका सा जवाब दे दिया.

‘लैंडलाइन शायद डेड हो गया है और शिखा भी घर चली गई. पर

खैर, कोई बात नहीं, मैं कोई और व्यवस्था करती हूं,’ कहते हुए रजनी वापस मुड़ गई.

‘यह लीजिए, कर दीजिए अपने घर फोन. और हां, मेरी तरफ से भी अपने पति को जन्मदिन की शुभकामनाएं दीजिएगा,’ सुशील ने रजनी को

अपना मोबाइल थमा दिया और फिर

से फाइलों में उलझ गए. रजनी उन

का मोबाइल ले कर अपनी सीट पर

आ गई. थोड़ी देर बाद उस ने मोहन के साथ सुशील का मोबाइल वापस

भिजवा दिया और फिर अपने काम में लग गई.

‘रजनीजी, आज आप अभी तक औफिस नहीं आईं?’ दूसरे दिन सुबह लगभग 11 बजे सुशील ने रजनी को फोन किया.

‘सर, कल आप के साथ रुकने से मेरी तबीयत खराब हो गई. मैं 2-4 दिनों तक मैडिकल लीव पर रहूंगी, रजनी ने धीमी आवाज में कहा.

‘क्या हुआ?’ सुशील के शब्दों में चिंता झलक रही थी.

‘कुछ खास नहीं, सर. बस, पूरी बौडी में पेन हो रहा है. रैस्ट करूंगी तो ठीक हो जाएगा. मैं अलमारी की चाबियां शिखा के साथ भिजवा रही हूं. शायद आप को कुछ जरूरत पड़े,’ कह कर रजनी ने अपनी बात खत्म की.

2 दिनों बाद सुशील के पास महिला आयोग की अध्यक्ष सुषमा का फोन आया जिसे सुन कर सुशील के पांवों के नीचे से जमीन खिसक गई. रजनी ने उन पर यौन दुराचार का आरोप लगाया था. रजनी ने अपने पक्ष में सुशील द्वारा भेजे गए कुछ अश्लील मैसेज और एक फोनकौल की रिकौर्डिंग उन्हें उपलब्ध करवाई थी. सुशील ने लाख सफाई दी, मगर सुषमा ने उन की एक  न सुनी और रजनी की लिखित शिकायत व सुबूतों को आधार बनाते हुए यह खबर हर अखबार व न्यूज चैनल वालों को दे दी. सभी समाचारपत्रों ने इसे प्रमुखता से प्रकाशित किया.

चूंकि खबर एक बड़े प्रशासनिक अधिकारी से जुड़ी थी और वह भी ऐसे विभाग का जोकि खास महिलाओं की बेहतरी के लिए ही बनाया गया था, सो सत्ता के गलियारों में भूचाल आना स्वाभाविक था. न्यूज चैनलों पर गरमागरम बहस हुई. महिलाओं की सुरक्षा व्यवस्था पर खामियों को ले कर विपक्ष द्वारा सरकार को घेरा गया. सुशील के घर के बाहर महिला संगठनों द्वारा प्रदर्शन किया गया. सरकार से उन्हें बरखास्त करने की पुरजोर मांग की गई.

सरकार ने पहले तो अपने अधिकारी का पक्ष लिया मगर बाद में जब रजनी के मोबाइल में भेजे गए सुशील के अश्लील संदेश और फोनकौल की रिकौडिंग मीडिया में वायरल हुए तो सरकार भी बैकफुट पर आ गईर् और तुरंत प्रभाव से सुशील को सस्पैंड कर के एक उच्चस्तरीय जांच कमेटी का गठन किया गया. मामले की निष्पक्ष जांच के लिए एक महिला प्रशासनिक अधिकारी उपासना खरे को जांच अधिकारी बनाया गया.

उपासना की छवि एक कर्मठ और ईमानदार अधिकारी की रही थी. उसे इस से पहले भी ऐसी कई जांच करने का अनुभव था. साथ ही, एक महिला होने के नाते रजनी उस से खुल कर बात कर सकेगी, शायद उसे जांच अधिकारी नियुक्त करने के पीछे सरकार की यही मंशा रही होगी.

इधर सुशील के निलंबन को रजनी अपनी जीत समझ रही थी. उस ने एक दिन बातों ही बातों में शेखी मारते हुए शिखा के सामने सारे घटनाक्रम को बखान कर दिया तो शिखा को

सुशील के लिए बहुत बुरा लगा. उधर शर्मिंदगी और समाज में हो रही थूथू के कारण सुशील ने अपनेआप को घर में कैद कर लिया.

उपासना ने पूरे केस का गंभीरता से अध्ययन किया. सुशील और रजनी के अलगअलग और एकसाथ भी

बयान लिए. दोनों के पिछले चारित्रिक रिकौर्ड खंगाले. पूरे स्टाफ से दोनों के बारे में गहन पूछताछ की और सुशील के पिछले कार्यालयों से भी उन के व्यवहार व कार्यप्रणाली से जुड़ी जानकारी जुटाई.

मोहन और शिखा से बातचीत के दौरान अनुभवी उपासना को रजनी की साजिश की भनक लगी और उन्हीं के बयानों को आधार बनाते हुए उस ने रजनी को पूछताछ के लिए दोबारा बुलाया. इस बार जरा सख्ती से बात की. थोड़ी ही देर के सवालजवाबों में रजनी उलझ गई और उस ने सारी सचाई उगल दी.

‘मैं ने औफिस के लैंडलाइन फोन की पिन निकाल कर उसे डेड कर दिया. फिर बहाने से सुशील का मोबाइल लिया और उस से अपने मोबाइल पर कुछ अश्लील मैसेज भेजे. दूसरे दिन जब सर ने मुझे फोन किया तो मैं ने उन की बातों के द्विअर्थी जवाब देते हुए उस कौल को रिकौर्ड कर लिया और फिर उन्हें सबक सिखाने के लिए सारे सुबूत देते हुए महिला आयोग से उन की शिकायत कर दी. नतीजतन, वे सस्पैंड हो गए. इस कांड से सबक लेते हुए नए अधिकारी भी मुझ से दूरदूर रहने लगे और मुझे फिर से मनमरजी से औफिस आनेजाने की आजादी मिल गई,’ रजनी ने उपासना से माफी मांगते हुए यह सब कहा. अब यह केस शीशे की तरह बिलकुल साफ हो गया.

‘रजनी, तुम्हें शर्म आनी चाहिए. तुम ने ऐसी गिरी हुई हरकत कर के महिलाओं का सिर शर्म से नीचा कर दिया. तुम ने अपने महिला होने का नाजायज फायदा उठाने की कोशिश कर के महिला जाति के नाम पर कलंक लगाया है. तुम्हें इस की सजा मिलनी ही चाहिए…’ उपासना ने रजनी को बहुत ही तीखी टिप्पणियों के साथ

दोषी करार दिया और सुशील को बहाल करने की सिफारिश की. उपासना ने अपनी जांच रिपोर्ट में रजनी को बतौर सजा न सिर्फ शहर बल्कि राज्य से भी बाहर स्थानांतरण करने की अनुशंसा की.

मामला चूंकि सरकार के उच्चस्तरीय प्रशासनिक अधिकारी से जुड़ा था और आरोप भी बहुत संगीन थे, इसलिए मुख्य सचिव ने व्यक्तिगत स्तर पर गुपचुप तरीके से भी मामले की जांच करवाई और आखिरकार, उपासना की जांच रिपोर्ट को सही मानते हुए सुशील को बहाल करने के आदेश जारी हो गए, हालांकि उन का विभाग जरूर बदल दिया गया था. रजनी का ट्रांसफर दिल्ली से लखनऊ कर दिया गया.

रजनी ने कई बार मौखिक व लिखित रूप से विभाग में अपना माफीनामा पेश किया, मगर आरोपों की गंभीरता को देखते हुए विभाग ने उस का प्रार्थनापत्र ठुकरा दिया और आखिरकार रजनी को लखनऊ जाना पड़ा.

आज भले ही सुशील अपने ऊपर लगे सभी आरोपों से बरी हो चुके हैं मगर महिलाओं को ले कर एक अनजाना भय उन के भीतर घुस गया है. महिलाओं के प्रति उन के अंदर जो एक स्वाभाविक संवेदना थी उस की जगह कठोरता ने ले ली. वे शायद जिंदगीभर यह हादसा न भूल पाएं कि महज काम के घंटों में छूट न देने की कीमत उन्हें क्याक्या खो कर चुकानी पड़ी.

सुशील ने मुख्य सचिव को पत्र

लिख कर अपील की कि या तो

उन के अधीन कार्यरत सभी महिलाओं को दूसरे विभाग में ट्रांसफर कर दिया जाए या फिर उन्हें ही

ऐसे सैक्शन में लगा दिया जाए

जहां महिला कर्मचारी न हों. आखिर दूध का जला छाछ भी फूंकफूक कर पीता है.

स्वाभाविक है यह मांग नहीं मानी गई और सालभर बाद सुशील ने सरकारी नौकरी छोड़ दी और अपना छोटा सा कंसल्ंिटग का व्यवसाय शुरू कर दिया. एक औरत ने इस तरह उन की कमर तोड़ दी कि अब वे पत्नी व बेटी से भी आंख नहीं मिला पाते हैं.

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इच्छाधारी बाबा: मंदिर में कौनसा गोरख धंधा चल रहा था

मंदिर के ऊपरी भाग में बने स्पैशल कमरे से नीचे का सारा नजारा दिखाई देता था. वे इस कमरे में आराम करते हुए मंदिर में आने वाले भक्तों को देखते रहते थे. वैसे तो उन्हें मर्द भक्तों से इतना मतलब नहीं रहता था, पर उन में से वे केवल ऐसे भक्तों पर ही निगाह गड़ाए रहते थे, जो उन्हें पैसे वाला दिखाई देता था. इस से उलट वे मंदिर में आने वाली उन लड़कियों और औरतों को खास निगाह से देखते थे, जो गरीब घरों की होती थीं.

वे अपने कमरे से ही उन के चेहरे को पढ़ लेते थे. उन में से जिन में उन्हें कोई उम्मीद नजर आती, उन्हें अपने दूसरे कमरे में बुला लिया जाता. इस दूसरे कमरे से ही इस कमरे तक आने का सफर तय होता था. वे ‘इच्छाधारी बाबा’ कहे जाते थे.

अब थोड़ा ‘इच्छाधारी बाबा’ का इतिहास जान लेते हैं. उस का असली नाम मूलचंद था. वह शुरू से ही शानशौकत से जीने के सपने देखा करता था, पर वह ज्यादा पढ़लिख नहीं पाया था, तो उसे जो सरकारी नौकरी मिली, वह क्लर्क की थी.

यह नौकरी भी मूलचंद को इस वजह से मिल गई थी कि उस के पिताजी भी सरकारी नौकर थे और रिटायर होने से पहले एक हादसे में उन की मौत हो गई थी.

मूलचंद को आसानी से नौकरी मिली तो उस के सपने जोर मारने लगे. अपने सपनों को पूरा करने के लिए उस के पास घपला करने के अलावा और कोई दूसरा रास्ता नहीं था.

क्लर्क की तनख्वाह तो इतनी होती नहीं कि वह उस में ऐशोआराम की जिंदगी बिता सके. घपला किया और पकड़ा गया.

मूलचंद ने जितने रुपयों का घपला किया था, उन को अपने एक दोस्त  के पास रख दिया था, ताकि  अगर  वह पकड़ा भी जाए तो उस के पैसे महफूज रहें.

मूलचंद को भरोसा था कि वह पकड़े जाने के बाद इन्हीं पैसों की रिश्वत खिला कर अपनेआप को बेदाग साबित कर लेगा, पर ऐसा हुआ नहीं. न केवल उसे नौकरी से निकाल दिया गया, बल्कि उस के खिलाफ पुलिस थाने में रिपोर्ट भी दर्ज करा दी गई. रिपोर्ट दर्ज होते ही उस के पैरों तले की जमीन खिसक गई. डर के मारे वह फरार हो गया.

पुलिस मूलचंद को ढूंढ़ती फिर रही थी और वह यहांवहां छिपते हुए दिन काट रहा था. पुलिस के साथ आंखमिचौली के दौरान ही वह एक मंदिर के पुजारी के पास पहुंचा. उस पुजारी ने उसे छिपने में बहुत मदद की.

बाद में मूलचंद को पता चला कि वह पुजारी खुद भी सालों से ऐसे ही पुलिस से छिपता फिर रहा है. उस ने तो अपनी पत्नी का ही खून कर दिया था.

मूलचंद ने भी सोचा, ‘कितने लोग ऐसे ही अपनेआप को छिपाए हुए हैं, तू भी यही चोला पहन ले…’

मूलचंद तब तक वहां छिपा रहा, जब तक उस के बाल और दाढ़ीमूंछ नहीं आ गई. फिर एक दिन वह भगवा चोला पहन कर वहां से निकल पड़ा. उस ने अपना नया नाम ‘इच्छाधारी बाबा’ रख लिया था. अब उसे पुलिस का कोई डर नहीं था.

‘इच्छाधारी बाबा’ ने अपना जो नया ठिकाना बनाया, वह एक रईस रम्मू का पुरखों का मंदिर था. इस मंदिर में बहुत सारी जमीन लगी हुई थी. इस जमीन को रम्मू ही जोतता था और सारा पैसा अपने इस्तेमाल में ही खर्च करता था.

रम्मू को अपने पुरखों से इस वजह से चिढ़ होती थी कि इतनी सारी जमीन मंदिर में लगा दी और इतनी कीमती जमीन पर मंदिर बना दिया. वह मंदिर जिस जगह पर बना था, उस की कीमत आज लाखों रुपए में हो गई थी.

धीरेधीरे जब रम्मू ने मंदिर में खर्चा कराना बंद कर दिया, तो महल्ले के लोगों ने चंदा इकट्ठा कर के मंदिर  को चलाने की जिम्मेदारी अपने कंधे पर ले ली.

कहीं मंदिर पूरी तरह से हाथ से न निकल जाए, इस भावना के चलते रम्मू मंदिर में अपना दबदबा बनाए रखता था. उसे एक ऐसे आदमी की तलाश थी, जो मंदिर से आमदनी करा सके.

मूलचंद यानी ‘इच्छाधारी बाबा’ से रम्मू की एक डील हुई थी. ‘इच्छाधारी बाबा’ ने उसे हर साल एकमुश्त मोटी रकम देने का लिखित करार कर दिया था. इस के बदले रम्मू ने पूरा मंदिर उसे सौंप दिया.

रम्मू का भार हलका हो गया. अब उसे अपने पुरखों से इतनी नाराजगी भी नहीं रही. इसी बीच ‘इच्छाधारी बाबा’  मंदिर से पैसा कमाने की कला सीख चुका था.

वह महल्ला अच्छे लोगों का था, इसलिए ‘इच्छाधारी बाबा’ को अपनी कमाई को ले कर कोई शक था भी नहीं. अब समाज में इज्जत भी मिलने लगी थी. वह तू से आप हो गया था.

रम्मू ने ‘इच्छाधारी बाबा’ की योजना के मुताबिक उन्हें बड़ी धूमधाम और उन से जुड़ी अनेक कहानियों का प्रचार कर मंदिर में बैठा दिया. मंदिर में एक पंडित था रामलाल, जो कुछ मंत्र वगैरह पढ़ लेता था. वह मंदिर में भगवान की पूजा करता और अपना पंडिताई धर्म निभा लेता. सपने तो वह भी बहुत सारे पाले हुए था, पर उस के पास ‘इच्छाधारी बाबा’ की तरह खुद पर यकीन और चालाकियां नहीं थीं.

‘इच्छाधारी बाबा’ को एक ऐसा ही आदमी तो चाहिए ही था, इसलिए उन्होंने उस पंडित रामलाल के सिर पर अपना हाथ रख कर यह भी सम झा दिया कि अगर उस ने उन के कामों में रोड़े अटकाए तो उस की खैर नहीं.

रामलाल वैसे भी ‘इच्छाधारी बाबा’ को देख कर घबरा चुका था, उन की धमकी को सुन कर और भी घबरा गया. वह ‘इच्छाधारी बाबा’ के पैरों में गिर गया और कसम खा ली कि बाबा के न केवल सारे कामों में वह हिस्सेदार बनेगा, साथ ही हर राज को भी बरकरार रखेगा.

‘इच्छाधारी बाबा’ को अपना जलवा बनाने में ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी. वे जल्दी ही सम झ गए थे कि जो अपने चेहरे पर जितनी मुसकान लिए रहता है, उस के दिल में उतने ही दर्द छिपे होते हैं. उन्हें केवल उन दर्दों को कुरेदना ही था.

एक औरत सविता पर उन की निगाह पहले ही दिन पड़ गई थी. वह मंदिर गाहेबगाहे आ जाती थी और जोरजोर से बातें करती और हंसती रहती. ‘इच्छाधारी बाबा’ ने सविता को ही अपना पहला शिकार बनाया.

सविता के कोई औलाद नहीं थी और उम्र भी ढलती जा रही थी. पति दूसरे शहर में काम करता था. वह 15 दिनों में एक बार ही आता, वह भी एक दिन के लिए.

सविता ने यह सब ‘इच्छाधारी बाबा’ को बता दिया. उस की बातें सुन कर बाबाजी की हवस जाग गई. फिर एक दिन सविता को अपने कमरे में बुला कर बाबाजी ने उस की कोख में अपना बीज रोप दिया.

सविता की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. वह पेट से हो गई और बाबाजी के लिए खिलौना बन गई. वे जब चाहते, उसे बुला लेते और अपने कमरे में मौज करते.

सविता का पेट अब बाहर की ओर निकला दिखाई देने लगा था. बाबाजी का मजा खत्म हो गया था. सविता ने एक दूसरी औरत को उन के कमरे में पहुंचा दिया था. धीरेधीरे ‘इच्छाधारी बाबा’ के पास औरतों की लाइन लगने लगी.

‘इच्छाधारी बाबा’ की नजर अब नवीन पर गई. नवीन के पास धनदौलत की कोई कमी नहीं थी. वह सुबह फैक्टरी जाने के पहले मंदिर में आ कर भगवान के दर्शन करता था.

‘इच्छाधारी बाबा’ की निगाह उस पर गड़ चुकी थी. वैसे तो वे बहुत ही कम सुबह जल्दी सो कर उठते थे और कभीकभार ही सुबह की पूजा में शामिल होते थे. पर अब वे रोज आने लगे थे.

नवीन को अपने जाल में फंसाने के लिए ‘इच्छाधारी बाबा’ को ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी. सविता ने नवीन के लिए एक खूबसूरत लड़की का इंतजाम कर दिया था.

‘इच्छाधारी बाबा’ के कमरे में नवीन की मुलाकात उस लड़की से कराई गई और उन के बिस्तर पर जाते ही वीडियो बना लिया गया. नवीन अब बाबाजी के लिए सोने का अंडा देने वाली मुरगी बन चुका था.

इस मंदिर को और बड़ा नवीन ने ही कराया था. इसी दौरान बाबाजी ने ऊपरी भाग में अपने लिए एक ऐसा कमरा बनवा लिया था, जिस की कांच की दीवारों से वे तो बाहर  झांक सकते थे, पर कोई और बाहर से कमरे में नहीं  झांक पाता था. कमरे की मोटी कांच की दीवारों के अंदर से बहुत जोर की आवाज भी बाहर नहीं निकल पाती थी.

‘इच्छाधारी बाबा’ की दुकानदारी चल निकली थी. मंदिर में भक्तों का जमावड़ा बढ़ने लगा था और पैसा बरसने लगा था. बाबाजी ने पैसा कमाने का एक और खेल चालू कर लिया था. उन के पास अब औरत भक्तों की तादाद खूब  हो गई थी. इन में वे तो शामिल थीं ही, जिन की गोद भर चुकी थी और वे भी थीं, जिन्हें केवल बाबाजी के साथ से मजा मिलता था.

‘इच्छाधारी बाबा’ ने अपने अमीर भक्तों तक इन औरतों को पहुंचना शुरू कर दिया. बाबाजी के पास उन सब औरतों के वीडियो तो थे ही, इसलिए चाह कर भी वे उन के आदेश को मानने से इनकार नहीं कर पाती थीं. बाबाजी को इस नए कारोबार से ज्यादा आमदनी हो रही थी.

रम्मू ने जब अपना पुरखों का मंदिर ‘इच्छाधारी बाबा’ को किराए पर दिया था, तब उसे भी उम्मीद नहीं थी कि बाबाजी इस मंदिर को इतना चमत्कारिक बना देंगे कि पैसा बरसने लगेगा. उसे तो लग रहा था कि कुछ ही दिनों में बाबाजी मंदिर छोड़ कर भाग खड़े होंगे, पर अब जब मंदिर की चर्चा दूरदूर तक होने लगी थी, तो उसे बाबाजी से जलन होने लगी थी. उसे लगने लगा था कि वह ठगा गया है. वह अब उन्हें मंदिर से भगाने की जुगत में लग गया था.

एक दिन ‘इच्छाधारी बाबाजी’ अपने भक्तों के साथ नाच रहे थे. उन्होंने जिस औरत का हाथ पकड़ा हुआ था, उसे वे पहली निगाह में ही पसंद कर चुके थे. उन्होंने अपने कांच वाले कमरे से ही उस औरत को एक बच्चे और मर्द के साथ आते देख लिया था.

उस औरत की उम्र ज्यादा नहीं थी. उस के लंबे बाल कमर के नीचे तक लहरा रहे थे. बाबाजी ने उस औरत को दर्शन देने का मन बना लिया था, इसलिए वे अपने कमरे से नीचे आ गए थे.

उस औरत ने अपने सिर पर आंचल रख कर पूरी श्रद्धा के साथ बाबाजी के चरणों पर अपना सिर रख दिया और बाबाजी ने आशीर्वाद देने के बहाने उस की पीठ को सहला दिया.

इस के बाद बाबाजी उस औरत का हाथ पकड़ कर नाचने लगे. मंदिर के अहाते में जमा सभी भक्त भी बाबाजी के साथ नाच रहे थे. वे उसे यहांवहां छू रहे थे. वह औरत भी उन्हें छूने का भरपूर मौका दे रही थी.

थोड़ी देर के बाद वह औरत बाबाजी के कमरे में उन के सामने बैठी थी. बाबाजी उसे एकटक निगाहों से देख रहे थे. जैसे ही उन्होंने उस औरत के चेहरे पर आने वाली लट को हटाते हुए अपनी बांहों में लेने की कोशिश की, तभी उस औरत ने अपनी कमर में छिपी पिस्तौल को निकाल कर बाबाजी के माथे पर अड़ा दिया.

‘इच्छाधारी बाबा’ अभी भी मदहोश ही थे. उन्होंने पिस्तौल की परवाह किए बिना एक बार फिर उस औरत को बांहों में लेने की कोशिश की, पर अब की बार पिस्तौल से गोली निकल चुकी थी, जो तेज आवाज के साथ कांच की दीवार से जा टकराई.

गोली की आवाज बाहर नहीं गई थी, पर अंदर ही उस ने इतना धमाका किया था कि बाबाजी का सारा नशा गायब हो चुका था.

‘इच्छाधारी बाबा’ को गिरफ्तार कर लिया गया था. दरअसल, पुलिस ने ही यह सारा प्लान बनाया था. वह खूबसूरत औरत एसपी थी, जिस ने बाबाजी को अपने मोह जाल में फंसाया था.

पुलिस ने एक दिन पहले ही कुछ औरतों को एक होटल से गिरफ्तार किया था. उन्होंने ही मंदिर में चल रहे इस गोरखधंधे का खुलासा किया था. बाबाजी के कमरे से गंदी किताबों के अलावा नशीली दवाएं भी बरामद हुई थीं. ‘इच्छाधारी बाबा’ का पुराना कच्चाचिट्ठा भी खुल चुका था.

अधूरी मौत: शीतल का खेल जब उस पर पड़ा भारी

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कम्मो: राजेश ने क्या किया था

कम्मो ने रसोई का काम निबटाया और राजेश के कमरे में आ गई. वे टैलीविजन पर खबरें देख रहे थे.

‘‘मैं जा रही हूं बाबूजी, 9 बजने वाले हैं,’’ कम्मो ने कहा.

‘‘ठीक है कम्मो, जरा देखभाल कर घर जाया करो रात को. आजकल ऐसा ही जमाना है.’’

‘‘बाबूजी, मुझे अकेले कोई डर नहीं लगता. मैं ऐसे लोगों से बखूबी निबटना जानती हूं,’’ कम्मो ने राजेश की ओर देखते हुए कहा और कमरे से बाहर निकल गई.

कुछ देर बाद राजेश उठे और दरवाजा बंद कर बिस्तर पर बैठ गए.

राजेश की उम्र 62 साल हो चुकी थी. 2 साल पहले वे एक सरकारी महकमे से अफसर रिटायर हुए थे. परिवार में पत्नी कमला और 2 बेटे विकेश और विजय थे. दोनों बेटों को पढ़ालिखा कर इंजीनियर बनाया. दोनों ने बेंगलुरु में नौकरी कर ली. दोनों की शादी कर दी गई और वे अपनी पत्नियों के साथ खूब मजे में रह रहे थे.

जब तक पत्नी कमला का साथ रहा, राजेश को कुछ भी कमी महसूस न हुई. नौकरी के दौरान खूब पैसा कमाया. बड़ा 4 कमरों का मकान बना लिया. पिछले साल एक दिन कमला को हार्ट अटैक हुआ और अस्पताल पहुंचने से पहले ही दम तोड़ दिया.

कमला के मरने के बाद राजेश बिलकुल अकेले हो गए. दिन तो किसी तरह कट जाता, पर रात काटनी बहुत मुश्किल हो जाती.

विकेश और विजय ने बारबार फोन कर के उन को अपने पास बुला लिया. दोनों के घर एकएक महीना बिता कर वे फिर यहां अपने मकान में आ गए.

सुबह का नाश्ता, सफाई, पोंछा व कपड़ों की धुलाई का काम जमुना करती थी. दोपहर व शाम का खाना शांति बनाती थी.

एक दिन राजेश ने कहा था, ‘जमुना, मैं चाहता हूं कि तुम किसी ऐसी काम वाली को ढूंढ़ दो जो सुबह

9 बजे से रात के 8 बजे तक रहे. सुबह नाश्ते से रात के खाने तक के सारे काम कर सके.’

‘ठीक है बाबूजी, मैं तलाश करूंगी,’ जमुना ने कहा था.

एक दिन सुबह जमुना एक औरत को ले कर आई.

जमुना ने कहा, ‘बाबूजी, यह कम्मो है. जब मैं ने यहां काम के बारे में बताया तो यह तैयार हो गई. यह सुबह 9 बजे से रात के 8 बजे तक रहेगी.’

राजेश ने कम्मो की तरफ देखा. सांवला रंग, गदराया बदन, मोटीमोटी आंखें. उम्र तकरीबन 30-32 साल. माथे पर बिंदी और मांग में सिंदूर.

अगले दिन सुबह कम्मो आई तो राजेश अखबार पढ़ रहे थे.  कम्मो ने ‘नमस्ते बाबूजी’ कहा.

‘आओ कम्मो,’ राजेश ने उसे देखते हुए कहा, ‘बैठो.’

कम्मो वहां रखी कुरसी पर बैठ गई.

‘कम्मो, जरा अपने बारे में कुछ बताओ?’  राजेश ने पूछा.

‘बाबूजी, मेरा नाम कामिनी है, पर सभी मुझे कम्मो कहते हैं. मैं बिहार में पटना के पास ही एक गांव की रहने वाली हूं. मैं ने 10वीं तक पढ़ाई की है. मैं ने अपने मातापिता को नहीं देखा. वे दोनों मजदूरी करते थे. एक दिन एक मकान का लैंटर टूट गया तो उस में दब कर दोनों मर गए. मकान मालिक ने मेरे मामा को

3 लाख रुपए दे दिए थे तब मेरी उम्र

5 साल थी. मामामामी ने ही पाला है.

‘18 साल की उम्र में मामा ने मेरी शादी पास के ही एक गांव में कर दी. शादी के 3 महीने बाद मेरे पति की सड़क हादसे में मौत हो गई. कुछ समय बाद देवर मोहन के साथ मेरी शादी हो गई. वह शहर में एक फैक्टरी में काम करता था. रोज सुबह चला जाता और शाम को लौटता था.

‘मेरी सास नहीं थी. एक दिन दोपहर का खाना खा कर मैं आराम कर रही थी तो अचानक ही ससुर ने मुझे दबोच लिया. मैं ने बहुत मना किया, पर वह नहीं माना. मैं ने इस बारे में पति मोहन को बता दिया.

‘उन दोनों की लड़ाई हो गई. इस लड़ाई में ससुर के हाथ से मोहन की हत्या हो गई. ससुर को पुलिस ने पकड़ लिया. मैं वहां उस घर में अकेली कैसे रहती, इसलिए मैं अपने मामामामी के पास लौट गई.

‘कुछ महीने बाद एक आदमी मामा के घर आया. वह आदमी मेरी तरफ ही देख रहा था. मामा ने मुझे बताया कि यह किशनलाल है. मुजफ्फरनगर का रहने वाला है. यह सब्जी बेचने का काम करता है. इस की घर वाली को पीलिया हो गया था. इलाज कराने पर भी वह बच नहीं सकी. घर में 20 साल का बेटा कमल है. वह 7वीं क्लास तक ही पढ़ सका, किसी दुकान पर नौकरी करता है.

‘मामा ने एक मंदिर में मेरी शादी किशनलाल से कर दी. मैं अपने पति के साथ यहां आ गई. मुझे बाद में पता चला कि मेरे मामा ने इस शादी के लिए 40,000 रुपए लिए थे.

‘मेरी शादी कर के मामा बहुत खुश था कि रुपए भी मिल गए और छाती पर बैठी मुसीबत भी टल गई.

‘एक दिन मुझे पता चला कि मेरे ससुर को हत्या के जुर्म में उम्रकैद की सजा हो गई है. यहां सब ठीकठाक चल रहा था. पहले तो मेरा पति कभीकभार शराब पी कर आता था, पर धीरेधीरे उसे रोज पीने की आदत पड़ गई. वह जुआ भी खेलने लगा था.

‘पति ने रेहड़ी लगानी बंद कर दी. मंडी वालों का कर्ज सिर पर चढ़ गया था. घर में जो जमापूंजी, जेवर वगैरह रखे थे, मंडी वालों को दे कर पीछा छुड़ाया. इस के बाद मैं ने घरों में काम करना शुरू कर दिया,’ कम्मो ने अपने बारे में बताया.

‘ठीक है कम्मो, अब तुम घर का काम संभालो.’

‘बाबूजी, इतनी देर तक अपनी दुखभरी कहानी सुना कर मैं ने आप के सिर में दर्द कर दिया न? आप कहें तो सब से पहले मैं आप के लिए बढि़या सी चाय बना दूं?’ कम्मो ने हंसते हुए कहा था. राजेश मना नहीं कर सके थे.

कम्मो ने घर में काम करना शुरू कर दिया. सुबह नाश्ते से ले कर रात के खाने तक सभी काम बहुत सलीके से करती थी. उसे राजेश के यहां काम करते हुए 2 महीने हो चुके थे.

अकसर फर्श की सफाई करते हुए जब कम्मो पोंछा लगाती तो उस के उभार ब्लाउज से बाहर निकलने को

हो जाते.

राजेश कुरसी पर बैठे हुए अखबार पढ़ रहे होते तो उन की नजरें उभारों पर टिक जातीं. वे इधरउधर देखने की कोशिश करते, पर फिर भी उन की नजर कम्मो की गदराई जवानी पर आ कर ठहर जाती. वे अखबार की आड़ ले कर एकटक उसे देखते रहते.

कम्मो भी यह सब जानती थी कि बाबूजी क्या देख रहे हैं. वह चुपचाप अपने काम में लगी रहती मानो उसे कुछ पता ही न हो.

एक दिन कम्मो ने राजेश से कहा, ‘‘बाबूजी, कमल के पापा की तबीयत ठीक नहीं चल रही है. उस को किसी अच्छे डाक्टर को दिखाना पड़ेगा.’’

‘‘क्या हो गया है उसे?’’

‘‘भूख नहीं लगती. कमजोरी भी आ गई है. महल्ले का डाक्टर कह रहा था कि शराब पीने के चलते गुरदे खराब हो रहे हैं.’’

‘‘जब इतनी शराब पीएगा तो गुरदे तो खराब होंगे ही.’’

‘‘बाबूजी, मुझे कुछ पैसे दे दीजिए.’’

‘‘कितने पैसे चाहिए?’’

‘‘5,000 रुपए दे दीजिए. डाक्टर की फीस, टैस्ट, दवा वगैरह में इतने तो लग ही जाएंगे.’

‘‘ठीक है, रात को जब घर जाएगी तो मुझ से लेती जाना.’’

कम्मो ने चेहरे पर मुसकान बिखेर कर कहा, ‘‘बाबूजी, आप बहुत अच्छे इनसान हैं जो हम जैसे गरीबों की कभी भी मदद कर देते हो.’’

‘‘जब तुम यहां इतना अच्छा काम कर रही हो तो मेरा भी फर्ज बनता है कि मैं तुम्हारी मदद करूं,’’ राजेश ने कम्मो की तरफ देखते हुए कहा.

कुछ दिन बाद राजेश का एक पुराना दोस्त मदनलाल दिल्ली से आया. वह उन का पुराना साथी था. वह भी सरकारी नौकरी से रिटायर हुआ था.

कम्मो चाय व कुछ खाने का सामान ले कर आई और मेज पर सजा कर

चली गई.

चाय पीतेपीते मदनलाल ने कहा, ‘‘यार राजेश, यह नौकरानी तो एकदम पटाखा है. कहां से ढूंढ़ कर लाए हो?’’

‘‘बस अपनेआप ही मिल गई.’’

‘‘तुम्हारी किस्मत तो बहुत ही तेज है डियर, जो ऐसी जबरदस्त नौकरानी मिल गई. एकदम हीरोइन लगती है. अगर

मैं तुम्हारी जगह होता तो ऐसी मस्त नौकरानी से खूब मजे लेता. अरे भाई, हमारे पास रुपएपैसे की कमी नहीं है. हमारी औलादें खूब मजे में हैं. वे बढि़या नौकरी पर हैं. हम क्यों और किस के लिए कंजूसी करें? हमें भी तो अपनी बाकी जिंदगी हंसीखुशी और मजे में गुजारनी चाहिए.’’

राजेश ने कोई जवाब नहीं दिया. कुछ देर बाद कम्मो चाय के खाली बरतन उठाने आई तो मदनलाल उस की तरफ एकटक देखता रहा.

‘‘अच्छा राजेश डियर, मैं चलता हूं,’’ एक घंटे बाद मदनलाल बोला.

‘‘वापस दिल्ली कब जाना है?’’

‘‘शाम को ही लौट जाऊंगा. अगर तुम रात को कम्मो को यहीं रोक सको तो मैं भी रुक जाऊंगा.’’

‘‘यार, लगता है कि तुम मेरी नौकरानी को भगा कर ही रहोगे.’’

‘‘यह तुम्हें छोड़ कर कहीं नहीं जाएगी, क्योंकि तुम जैसे इनसान बहुत कम हैं जो किसी की मजबूरी का फायदा नहीं उठाते. यह भी हो सकता है कि यह किसी दिन तुम्हारी मजबूरी का फायदा उठा ले.’’

‘‘वह कैसे?’’

‘‘मैं क्या बताऊं, यह तो समय ही बताएगा,’’ मदनलाल ने कहा और हंसते हुए राजेश से विदा ली.

रात का खाना खा कर राजेश आराम कुरसी पर बैठे थे. उन के दिमाग में मदनलाल की बातें घूमने लगीं. उन

की आंखों के सामने कम्मो का हंसतामुसकराता चेहरा, गदराया बदन, ब्लाउज से बाहर निकलते उभार आने लगे. दिल और दिमाग में अजीब सी बेचैनी होने लगी. वे आराम कुरसी पर सिर पकड़ कर बैठ गए.

कुछ देर बाद कम्मो ने कमरे में आ कर कहा, ‘‘क्या हुआ बाबूजी? लगता है, आप की तबीयत खराब है.’’

‘‘सिर में दर्द हो रहा है,’’ राजेश ने झूठ बोल दिया.

‘‘मैं आप का सिर दबा देती हूं. आप बिस्तर पर लेट जाइए. माथे पर बाम भी लगा देती हूं.’’

राजेश बिस्तर पर लेट गए. कम्मो ने उन के माथे पर बाम लगाते हुए कहा, ‘‘बाबूजी, यह सिरदर्द ज्यादा सोचने से होता है, आप ज्यादा न सोचा कीजिए. भला आप को क्या कमी है? आप को किस बात की चिंता है? फिर इतना क्यों सोचते हैं आप?’’

राजेश के एक हाथ की उंगलियां कम्मो की कमर पर चलने लगीं.

‘‘बाबूजी, यह क्या कर रहे हैं आप?’’ कम्मो ने राजेश की ओर देखते हुए कहा.

‘‘कुछ नहीं कम्मो, आज मन बहुत बेचैन हो गया है,’’ राजेश ने धड़कते दिल से कम्मो को अपनी ओर खींच लिया. कम्मो ने मना नहीं किया.

कुछ देर बाद कम्मो ने कमरे से बाहर निकलते हुए कहा, ‘‘अच्छा बाबूजी, अब मैं चलती हूं.’’

‘‘ठीक है, जाओ,’’ राजेश ने कहा और बिस्तर पर लेटेलेटे वे बहुत देर तक उन पलों के बारे में सोचते रहे जो अभी कम्मो के साथ बिताए थे.

सुबह कम्मो आई तो एकदम नौर्मल थी. रात की घटना की कोई नाराजगी उस के चेहरे पर न थी.

यह देख राजेश को तसल्ली हुई कि कम्मो नाराज नहीं है.

एक रात कम्मो ने घर जाने से पहले राजेश के पास आ कर कहा, ‘‘बाबूजी, आप से एक बात कहनी थी.’’

‘‘हांहां, कहो.’’

‘‘पहले यह बताइए कि आप की तबीयत तो ठीक है न? कहो तो आप का सिर दबा दूं?’’ कम्मो ने राजेश की ओर देखा.

राजेश ने उसे अपनी तरफ खींच लिया. कुछ देर बाद कम्मो बिस्तर से उठ कर जाने लगी तो राजेश ने पूछा, ‘‘तुम कुछ कह रही थी न कम्मो?’’

‘‘हां बाबूजी, कमल फलों की रेहड़ी लगाना चाहता है. अगर आप कुछ मदद कर दें तो वह रेहड़ी लगा लेगा.’’

‘‘कितने रुपए में लग जाएगी रेहड़ी?’’

‘‘तकरीबन 15,000 रुपए…’’

‘‘ठीक है, कल ले जाना रुपए.’’

‘‘बाबूजी, आप बहुत अच्छे इनसान हैं,’’ कम्मो ने कहा और मुसकराते हुए चली गई.

एक महीने बाद काम करतेकरते कम्मो को अचानक उलटी हो गई.

राजेश ने कम्मो को बुला कर पूछा, ‘‘क्या बात है कम्मो? तबीयत तो ठीक है न?’’

‘‘बाबूजी लगता है कि मैं पेट से हो गई हूं. मुझे महीना भी नहीं हुआ है.’’

‘‘तुम डाक्टर से चैकअप कराओ. शाम को नर्सिंग होम में चली जाना. नर्सिंग होम से सीधे अपने घर पहुंच जाना. मुझे मोबाइल पर बता देना जैसा भी डाक्टर बताता है.’

रात को राजेश को कम्मो ने सूचना दे दी कि वह पेट से हो गई है.

अगले दिन सुबह जब कम्मो काम करने आई तो राजेश ने उसे अपने कमरे में बुलाया.

कम्मो बोली, ‘‘बाबूजी, आप ने मेरे साथ संबंध बनाए तो उसी के चलते मैं पेट से हो गई हूं. अब मेरे पेट में आप का बच्चा पल रहा है.’’

‘‘कम्मो, यह तुम कैसे कह सकती हो कि यह मेरा ही बच्चा है, यह तुम्हारे पति का भी तो हो सकता है.’’

‘‘बाबूजी, कमल का पापा तो

3 महीने से मेरे पास आया ही नहीं, वह बीमार रहता है.’’

‘‘कम्मो, मेरा कहा मानोगी…’’

‘‘कहिए बाबूजी?’’

‘‘तुम अपना बच्चा गिरवा लो.’’

‘‘नहीं बाबूजी, मैं बच्चा नहीं गिराऊंगी. मैं हत्या नहीं कराऊंगी. चाहे यह बेटा हो या बेटी, मैं इसे पालपोस कर बड़ा करूंगी.

‘‘मेरा कहना मान लो कम्मो, तुम बच्चा गिरा दो.’’

‘‘नहीं बाबूजी, आप मुझे ऐसी सलाह न दें. इस के पैदा होने पर मैं सभी को बता दूंगी कि इस का पापा कौन है, क्योंकि इस की शक्ल आप से मिलेगी.’’

‘‘अगर मुझ से शक्ल न मिली तो…?’’

‘‘तो मैं इतनी भोली भी नहीं हूं जो चुपचाप बैठ जाऊंगी. मैं सब से पहले इस बच्चे का डीएनए टैस्ट कराऊंगी और मीडिया को बता दूंगी कि यह बच्चा भी आप की जायदाद का वारिस है,’’ कम्मो ने राजेश की ओर देखते हुए कहा. उस के चहरे पर मुसकान थी.

यह सुन कर राजेश को पसीना आ गया. वे तो कम्मो को बहुत भोली समझ रहे थे, पर यह तो जरूरत से ज्यादा समझदार व चालाक है. इस ने तो उसे ही जाल में फंसा दिया है.

राजेश ने कहा, ‘‘सुनो कम्मो, जो होना था हो गया. अब तुम यह बताओ कि इस मुसीबत से बचने के लिए मैं तुम्हें कितने रुपए दे दूं?’’

‘‘बाबूजी, मुझे आप पर तरस आता है. आप बस 5 लाख रुपए दे दो. मैं बच्चा गिरवा दूंगी.’’

‘‘5 लाख रुपए…? क्या कह रही हो तुम? पागल हो गई हो क्या?’’

‘‘बाबूजी, मैं नहीं उस रात तो आप पागल हो गए थे जिस का नतीजा मेरे पेट में पल रहा है.’’

‘‘मैं तुम्हें 5 लाख तो नहीं, 50,000 रुपए दे सकता हूं.’’

‘‘बाबूजी, आप की इज्जत और आप के इस बच्चे की कीमत महज 50,000 ही है क्या?’’

इस के बाद सौदेबाजी हुई और कम्मो 2 लाख रुपए लेने पर मान गई.

राजेश ने दोपहर को बैंक से 2 लाख रुपए निकाल कर कम्मो को दे दिए.

‘‘बाबूजी, मैं कल ही सफाई करा लूंगी. इस के बाद 5-7 दिन मुझे आराम भी करना पड़ेगा.’’

‘‘कोई बात नहीं, तुम अपने घर पर आराम कर लेना.’’

‘‘मैं किसी दूसरी कामवाली को

भेज दूंगी, ताकि आप को कोई परेशानी न हो.’’

‘‘तुम किसी को न भेजना. मैं कुछ दिन के लिए बेंगलुरु चला जाऊंगा अपने बेटे के पास,’’ राजेश ने कुढ़ते हुए कहा.

कम्मो चुपचाप काम में लग गई.

राजेश ठगे से कुरसी पर बैठ गए. उन को अपने किए पर पछतावा हो रहा था. अपनी इज्जत बचाने के लिए उन्हें

2 लाख रुपए देने पड़े. कम्मो ने उस रात की भरपूर कीमत वसूली है.

कुछ दिन बेटे के पास बेंगलुरु में रहने के बाद फिर वापस यहीं लौटना है. यहां लौट कर फिर अकेलापन घेर लेगा. अब तो इस अकेलेपन को दूर करने का कुछ न कुछ उपाय करना ही होगा.

अगले दिन से ही राजेश ने अखबार व इंटरनैट पर ऐसे वैवाहिक विज्ञापन देखने शुरू कर दिए जिन में विधवा, छोड़ी गई व तलाकशुदा औरतों को जीवनसाथी की तलाश थी. उन को लग रहा था कि बाकी की जिंदगी अकेले बिना साथी के काटना बहुत मुश्किल होगा.

प्रेमजाल: रमन के साथ कौनसी ठगी हुई थी

“पर तुम मुझे आज प्यार करने से क्यों रोक रही हो? आज तो हमारी सुहागरात है…” 45 साल के रमन ने अपनी नईनवेली बीवी तान्या से कहा.

तान्या सिर झुकाए बैठी रही तो एक बार फिर रमन ने अपने होंठों को उस की ओर बढ़ाया, तो वह पीछे हटते हुए बोली, “नहीं, यह सब अभी नहीं… मैं आप का साथ नहीं दे सकती.”

“पर क्यों?” रमन ने हैरान हो कर पूछा.

“दरअसल, मुझे अभी पीर बाबा की दरगाह पर चादर चढ़ानी है. उस से पहले मैं आप के साथ संबंध नहीं बना सकती.”

“अच्छा तो ठीक है… पर कम से कम गले तो लगा लो,” रमन ने अपनी बांहें फैलाते हुए कहा.

“जी नहीं, अभी कुछ भी नहीं,” कहते हुए तान्या हलके से शरमा गई.

रमन की पहली बीवी केतकी की मौत एक सड़क हादसे में हो गई थी और उस की 7 साल की बेटी रिंकी के सिर में काफी चोट आई थी. बेटी की जान तो बच गई, पर सिर पर चोट लगने से उस की आवाज जाती रही.

वैसे तो रमन अपनी बीवी की मौत के बाद इतना ज्यादा गमजदा हो गया था कि उसे कुछ भी होश नहीं था, पर आसपड़ोस और रिश्तेदारों ने उसे समझाया कि जो होना था हो चुका है, अब अपनेआप को संभालो. तुम्हें भले ही एक बीवी की जरूरत न हो, पर तुम्हारी बेटी को अभी भी एक मां की जरूरत है, इसलिए तुम्हें जल्द से जल्द शादी कर लेनी चाहिए.

बेटी को एक मां जरूरत है… यह बात रमन को अच्छी तरह समझ में आ गई थी, इसलिए उस ने मैट्रीमोनियल साइटों पर अपने लिए बीवी की खोज शुरू कर दी और जल्द ही उस की खोज पूरी भी हो गई जब उसे तान्या का फोन नंबर और दूसरी जानकारी एक मैट्रीमोनियल साइट पर मिली.

रमन ने तान्या से बात की और अपने बारे में बिना कुछ छिपाए सबकुछ बता दिया. तान्या ने भी रमन को अपने बारे में जो बताया वह यह था कि उस के मांबाप बचपन में ही गुजर गए थे. मामामामी ने ही उसे पालापोसा है और इस दुनिया में वह और उस का भाई मयूर ही हैं.

रमन ने तान्या के मामामामी से मिल कर रिश्ता पक्का करने की बात कही तो तान्या ने उसे बताया कि वे दोनों उस के छोटे भाई के साथ मलयेशिया घूमने गए हैं. हां, तान्या ने अपने भाई मयूर की बात रमन से वीडियो काल पर जरूर करा दी थी और तान्या की दास्तान सुन कर रमन को काफी अपनापन सा लगने लगा था.

कुछ दिनों के बाद तान्या ने भी शादी के लिए हां कर दी थी. रमन तान्या जैसी मौडर्न और खूबसूरत लड़की पा कर खुश था, क्योंकि तान्या रमन के साथ कंधे से कंधा मिला कर चलने वाली लड़की साबित हुई. उस ने जल्द ही रमन के बिजनैस में भी दिलचस्पी लेना शुरू कर दिया था और समयसमय पर बेबाकी से रमन को अपनी राय दिया करती, जिस पर रमन अमल भी करता था.

तान्या ने रमन की मदद करने के नाम पर उस के बैंक की डिटेल और खातों के बारे में जानकारी भी ले ली थी.

एक दिन तान्या ने रमन को बताया कि उस का भाई मयूर आने वाला है, इसलिए उसे मयूर को रिसीव करने बसस्टैंड जाना होगा.

तकरीबन 2 घंटे के बाद मयूर, तान्या और रमन एकसाथ बैठ कर चाय पी रहे थे. इस दौरान रमन की आंखें यह देख कर बारबार भर आ रही थीं कि अपने भाई मयूर के आने की खुशी और उस की खिदमत करने के बीच में भी तान्या उस की बेटी रिंकी का बराबर ध्यान रख रही थी.

रमन ने यह भी महसूस किया था कि तान्या और मयूर दोनों एकदूसरे की भावनाओं की काफी कद्र करते हैं और उन के मन में प्रेम और आदर का भाव भी है.

पहली पत्नी की मौत के बाद रमन ने औरत के शरीर का सुख नहीं जाना था और तान्या ने अब भी मन्नत के नाम पर रमन से शारीरिक दूरी बना रखी थी. अब यह दूरी मयूर के आ जाने से और भी ज्यादा बढ़ गई थी.

एक दिन जब रमन शाम को मयूर से मिलने उस के कमरे में गया तो रमन ने देखा कि मयूर मोबाइल फोन पर किसी लड़की से वीडियो काल कर रहा था. रमन को यह समझते देर नहीं लगी कि यह लड़की मयूर की गर्लफ्रैंड है.

रमन ने वहां से हट जाना ही उचित समझा, पर मयूर ने उसे हाथ पकड़ कर बिठा लिया.इतना ही नहीं, मयूर ने अपनी गर्लफ्रैंड से अपने जीजाजी की बात भी कराई.

वीडियो काल खत्म करने के बाद मयूर रमन से मुखातिब हुआ और पूछा, “जीजाजी, लड़की कैसी लगी?”

“बहुत सुंदर है,” रमन ने कहा.

“दरअसल, एक बात मैं दीदी से कहने में हिचक रहा हूं… मेरी गर्लफ्रैंड नमिता अभी नईनई दिल्ली में आई है और उस के पास रहने के लिए कोई अच्छी और महफूज जगह नहीं है… आप कहें तो मैं उसे यहीं ले आऊं…”

“अरे… हांहां… क्यों नहीं…” मयूर ने यह बात कुछ इस अंदाज में कही थी कि रमन उसे मना नहीं कर पाया और उस ने नमिता को घर लाने की इजाजत दे दी.

मयूर नमिता को घर ले आया था. 3 कमरों का यह मकान जहां कुछ दिनों पहले तक एक खामोशी छाई रहती थी वहां आज कितनी चहलपहल थी, यह देख कर रमन बहुत खुश था और यही खुशी उसे अपनी बेटी रिंकी के चेहरे पर भी दिखाई देती थी, जब वह नमिता के साथ खेलती थी.

नमिता, रिंकी और तान्या एक कमरे में सोते थे, जबकि मयूर और रमन दूसरे कमरे में.

घर के कामों में तो नमिता का जवाब नहीं था. वह तान्या से भी कुशल थी. चाहे रमन को शेविंग किट देनी हो या फिर गाड़ी की चाबी, हर समय नमिता ही तैयार रहती. रमन ने तान्या से कहा भी कि तुम से पहले मेरी आवाज तो नमिता सुन ही लेती है, इस पर तान्या सिर्फ मुसकरा कर रह गई.

रमन और नमिता के बीच नजदीकियां बढ़ रही हैं, ऐसा ही कुछ अहसास होने लगा था तान्या को.

“क्या बात है… आजकल नमिता तुम्हारे आसपास ही घूमती रहती है… कहीं कुछ दाल में काला तो नहीं है?” तान्या ने शरारती लहजे में पूछा.

“हां भई… क्यों नहीं… नमिता जैसी खूबसूरत जैसी लड़की से कौन नहीं इश्क करना चाहेगा,” बदले में रमन ने भी चुटकी ली और दोनों हंसने लगे.

एक दिन रमन औफिस में काम कर रहा था कि तान्या का फोन आया, ‘रिंकी की तबीयत अचानक खराब हो गई है, जल्दी से घर आ जाओ.’

रमन सारा कामकाज छोड़ कर जल्दी से घर पहुंचा तो उस ने देखा कि रिंकी तो आराम से नमिता के साथ बैठी खेल रही थी.

“पर मुझे तो तान्या ने फोन किया था कि रिंकी की तबीयत खराब है…” रमन ने नमिता से कहा.

“जी… और इसीलिए हम लोग रिंकी को ले कर डाक्टर को दिखा भी ले आए… एक इंजैक्शन लगा है… और तब से रिंकी को आराम भी हो गया है. दीदी और मयूर पास वाले मैडिकल स्टोर से दवा लाने गए हैं,” नमिता ने रमन को बताया, “आप थकेथके से लगते हैं… बैठिए, मैं आप के लिए चाय बना कर लाती हूं,” यह कह कर नमिता चाय बनाने चली गई और रमन अपनी बेटी को खेलता देख कर खुश होता हुआ सोफे पर पसर गया.

नमिता चाय ले आई थी. चाय पीते ही रमन को नींद सी आने लगी और वह सोफे पर हो ढेर हो गया. वह कितनी देर सोया होगा, उसे कुछ होश नहीं था, पर जब उस की आंख खुली तो उस के शरीर के सभी कपड़े गायब थे और नमिता भी तकरीबन बिना कपड़ों के बैठी हुई रो रही थी. दूसरी तरफ मयूर बैठा हुआ था.

“यह सब क्या है नमिता?” पूछता हुआ परेशान था रमन.

“मेरी इज्जत लूटने के बाद यह सवाल करते हुए तुम्हें शर्म नहीं आती…” नमिता की आंखों में शोले उबल रहे थे.

“क्या मतलब है तुम्हारा?” रमन चीखा.

“मतलब साफ है जीजाजी, आप ने नमिता को अकेला पा कर उस की इज्जत लूट ली है और यह रहा इस का सुबूत,” यह कह कर मयूर ने अपना मोबाइल फोन रमन की आंखों के सामने घुमाया तो उसे देख कर रमन की आंखों के सामने अंधेरा छा गया.

मोबाइल फोन की तसवीरो में रमन नंगी हालत में नमिता पर छाया हुआ नजर आ रहा था. कुछ इसी तरह की और तसवीरें भी थीं, जिन से साफ हो रहा था कि नमिता का रेप रमन ने किया है.

“अब हम क्या करेंगे… किस को मुंह दिखाएंगे… मैं दीदी और रिंकी को बुला कर लाता हूं और ये तसवीरें सोशल मीडिया पर डाल देता हूं, ताकि आप की सचाई सब को पता चल सके,” गुस्से में भरा मयूर बाहर की ओर लपका, तो रमन ने मयूर को पकड़ लिया, “नहींनहीं, बाहर किसी को यह सब मत बताओ…”

पर मयूर तो गुस्से से उबाल रहा था. वह नमिता को इंसाफ दिलाने की बात करने लगा. रमन को अपनी बदनामी का डर सताने लगा था.

रमन का मन तो एक पिता का था, पर दिमाग एक बिजनैसमैन का था, इसलिए उस ने जल्दी ही मयूर से विनती की कि वह यह बात तान्या और रिंकी से न कहे और न ही तसवीरें सोशल मीडिया पर डाले.

मयूर तो इसी ताक में था. उस ने कहा कि नमिता को इस घटना से बहुत सदमा लगा है. उस का इलाज कराने के नाम पर उस ने फौरन ही 30 लाख रुपए की मांग कर दी.

“पर ये तो बहुत ज्यादा हैं?” रमन बोला.

“आप की इज्जत से ज्यादा तो नहीं…” मयूर ने कहा.

“पर वादा करो कि तसवीरें तुम तान्या को नहीं दिखाओगे…” रमन ने कहा.

“आप के सामने ही डिलीट कर देंगे और हम यहां से चले भी जाएंगे, पर पैसा मिलने के बाद,” मयूर बोला.

रमन तुरंत ही पैसों का इंतजाम करने में जुट गया और मयूर के खाते में पैसे ट्रांसफर करते ही उस से तसवीरों को डिलीट करने को कहा. मयूर ने भी उन तसवीरों को उसी के सामने डिलीट कर दिया.

हालांकि रमन के काफी पैसे इस डील में चले गए थे, फिर भी उसे चैन की सांस मिली कि कम से कम उस की बीवी और बेटी को इस कांड की भनक नहीं लगी थी.

मयूर और नमिता रमन के घर से जा चुके थे और घर की रौनक फिर से लौट आई थी. तान्या अब भी रिंकी का ध्यान रख रही थी, यह देख कर रमन को सुकून मिला था.

खाना खा कर रमन जल्दी ही सो गया था, पर रात में प्यास लगने के चलते अचानक उस की आंख खुली. रसोईघर में जाते समय उस के कानों में आवाज पड़ी. यह तान्या के हंसने की आवाज थी.

तान्या फोन पर बोल रही थी, “तुम चिंता मत करो नमिता, अभी तो सिर्फ तुम ने ही 30 लाख झटके हैं इस रमन नाम के बेवकूफ आदमी से, अभी देखो मैं भी ड्रामा फैला कर इसे और ठगती हूं. और फिर तेरे बदन की गरमी भी तो मुझे बहुत दिन से नहीं मिली है… जब तुझ से मिलूंगी तो सारी कसर निकाल लूंगी…”

ये बातें सुन कर रमन सन्न रह गया था. उसे समझते देर नहीं लगी कि वह भयंकर ठगी का शिकार हो गया है.

पर रमन के पास इन सब बातों के लिए कोई सुबूत नहीं था और अगर वह तान्या से कुछ कहता तो मामला बिगड़ सकता था, इसलिए वह मन ही मन उस से निबटने का प्लान बनाने लगा.

अगले दिन जब तान्या बाथरूम में नहाने के लिए घुसी, उसी समय रमन ने तान्या का लैपटौप खोला और उस की छानबीन करने लगा. लैपटौप को खंगालना आसान नहीं था, पर फिर भी रमन को काफी जानकारी मिल गई, जिस से यह पता चल गया कि तान्या, नमिता और मयूर का एक गैंग है, जो विधुर, बड़ी उम्र के पैसे वालों और कुंआरे लड़कों को मैट्रीमोनियल साइट पर खोज कर उन से मेलजोल बढ़ाते हैं और फिर मयूर, नमिता और तान्या ठीक उसी तरह से लोगों को भी ठगते हैं, जिस तरह से उन्होंने रमन को ठगा था.

लैपटौप पर नमिता और तान्या के कुछ ऐसे वीडियो थे, जिन से यह पता चलता था कि वे दोनों समलैंगिक हैं.

“तो इसीलिए तान्या को मेरे साथ सैक्स करने से परहेज था,” कहते हुए रमन का माथा ठनक गया था.

रमन ने इन सारी चीजों की जानकारी पुलिस को दे दी, जिस पर पुलिस ने अपनी तफतीश भी शुरू कर दी थी.

फिर अचानक एक दिन जैसे ज्वालामुखी फटने का नाटक शुरू कर दिया तान्या ने… उस ने मोबाइल फोन पर रमन और नमिता की वही तसवीरें रमन को दिखाईं और बोली, “आप जैसे मर्द, जो दूसरी लड़कियों को देख कर लार गिराते हैं, को मैं अच्छी तरह जानती हूं… रेप कर दिया आप ने इस बेचारी का, तभी तो मयूर और नमिता रातोंरात मुझ से बिना मिले ही चले गए.”

“क्या होगा अगर रिंकी को यह सब पता चल जाए तो? मुझे आज ही तुम से तलाक चाहिए,” तान्या की आवाज ऊंची होती जा रही थी.

“रिंकी को कुछ मत बताना, नहीं तो वह मेरे बारे में क्या सोचेगी… मैं तुम्हें तलाक दे दूंगा,” रमन ने गिड़गिड़ाने की ऐक्टिंग की.

“ठीक है. मैं अपने वकील से तुम्हारी बात कराती हूं. वह तुम्हें तलाक का सारा खर्चा बता देगा,” यह कह कर तान्या ने अपने वकील का नंबर डायल किया.

वकील ने रमन को समझाया कि अपनी बीवी को तलाक देने में उस का बहुत पैसा खर्च हो जाएगा, क्योंकि सारे सुबूत रमन के खिलाफ हैं और फिर गुजारा भत्ता भी देना होगा, इसलिए बेहतर है कि वह कोर्ट के बाहर ही तान्या से समझौता कर ले.

वकील की आवाज सुन कर रमन यह जान गया था कि फोन पर कोई वकील नहीं, बल्कि अपनी आवाज को बदल कर मयूर ही बोल रहा था.

रमन ने तान्या से कोर्ट के बाहर समझौता करने की बात कही तो तान्या ने पूरे 5 लाख रुपए ले कर मामला रफादफा करने की बात कर दी.

“ठीक है. तुम मुझे आजाद कर दो, मैं तुम्हें 5 लाख रुपए दे दूंगा… पर रिंकी को कुछ मत बताना,” रमन ने कहा.

रमन कमरे में आ कर सोने का नाटक करने लगा, पर नींद उस की आंखों से कोसों दूर थी. वह किसी भी तरह से इस गैंग का परदाफाश करना चाहता था, पर इस शातिर गैंग से कैसे पार पाना है, इसी के तानेबाने में रमन रातभर डूबा रहा.

अगली सुबह रमन ने तान्या को अपने साथ बाहर चलने को कहा और सीधा आर्य समाज मंदिर ले आया, जहां पर नमिता एक लड़के के साथ शादी रचाने जा रही थी. रमन ने तान्या का हाथ मजबूती से पकड़ा हुआ था, ताकि वह वहां से भाग न सके.

“अरे दोस्त, इस दुलहन से तुम किसी मैट्रोमोनियल साइट पर मिले होगे?” रमन ने दूल्हे से सीधा सवाल किया.

“पर आप कौन हैं और ऐसा क्यों पूछ रहे हैं?” उस लड़के ने पूछा.

“मैं कौन हूं, यह खास बात नहीं है, बल्कि इस समय तुम्हारा यह जानना जरूरी है कि तुम इस समय एक ठग दुलहन के गैंग के शिकंजे में फंसने वाले हो…” कहते हुए रमन ने आपबीती सुनानी शुरू कर दी, “ये लड़कियां, जो असल में लैस्बियन हैं, इस मयूर नाम के लड़के के साथ मिल कर मैट्रीमोनियल साइट पर मौजूद मर्दों से शादी कर के उन्हें अपना शिकार बनाती हैं, पति पर रेप करने का आरोप लगाती हैं, उसे बेहोश कर के उस का फर्जी वीडियो बना कर ब्लैकमेल करती हैं…” रमन बोले जा रहा था, जबकि अपनी पोल खुलते देख कर मयूर, तान्या और नमिता ने वहां से भागने की कोशिश की.

रमन द्वारा बुलाए जाने के चलते वहां पहले से ही मौजूद पुलिस ने उन तीनों को गिरफ्तार कर लिया और कड़ाई से पूछताछ में उन्होंने अपना गुनाह भी कुबूल कर लिया.

इस घटना से रमन को इतना तगड़ा झटका लगा कि उस ने फिर से शादी न करने की कसम खाई और अपनी बेटी रिंकी का खुद ही ध्यान रखने का फैसला किया.

रमन ने अपने साथ हुई ठगी को सोशल मीडिया और लोकल अखबारों में भी छपवाया, ताकि लोग ठगी और ब्लैकमेलिंग के इस तरह के फर्जी प्रेमजाल से बच सकें.

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