मोहब्बत से नफरत

धर्म के नाम पर प्रेम का गला किस तरह घोंटा जा रहा है, उस का एक एक्जांपल दिल्ली के पास नोएड़ा में मिला. एक युवती की दोस्ती जिम मालिक से हुई और दोनों में प्रेम पनपने लगा. लडक़ी की शिकायत है कि उस ने अपना नाम ऐसा बताया जिस से धर्म का पता नहीं चलता था पर वह सच बोल रही है, यह मुश्किल है. जिस से प्रेम होता है उस की बहुत सी बातें पता चल जाती हैं खासतौर पर जब उस के घर तक जाना हो जाए.

अगर युवतियां इतनी अंधी हों कि जिस के फ्लैट में अकेले जा रही हैं, उस का आगापीछा उन्हें नहीं मालूम, तो उस से कोई हमदर्दी नहीं होनी चाहिए. इस मामले में युवती ने बाद में जबरन धर्म परिवर्तन कराने की कोशिश और शादी का झांसा दे कर रेप करने का चार्ज लगा कर लडक़े को गिरफ्तार करा दिया. पूरा मामला संदेह के घेरे में लगता है. यह तो हो ही सकता है कि जब लडक़ी के घरवालों को पता चले कि लडक़ा पैसे वाला जिम मालिक है पर मुसलमान है तो उन्हें विरादरी से आपत्तियां मिलने लगें. जिस तरह का हिंदूमुसलिम माहौल आज बना दिया गया है, उस से लडक़ेलड़कियों को चाहे फर्क नहीं पड़ता लेकिन उन दोनों के रिश्तेदारों को अवश्य पड़ता है.

आजकल कानून भी ऐसे बना दिए गए हैं कि हिंदूमुसलिम की शादी, जो सिर्फ स्पैशल मैरिज एक्ट में हो सकती है, में मजिस्ट्रेट ही हजार औब्जैक्शन लगा देता है. लडक़ेलडक़ी को कई अवसरों में नो औब्जैक्शन सर्टिफिकेट लाने पड़ेंगे जो बिना परिवार की सहायता से मिलने असंभव हैं. उत्तर प्रदेश तो हिंदूमुसलिम विवाह पर बहुत ही नाकभौं चढ़ाता है. मुसलिम मौलवी भी इस तरह की शादी नहीं चाहते क्योंकि वे भी चाहते हैं कि शादी में उन का कमीशन बना रहे. नए युवा समाज, परिवार व कानून के दबाव को नहीं झेल पाते. दोनों के रिश्तेदारों को धमकियां दी जाने लगती हैं. पुलिस दोनों तरफ के रिश्तेदारों को गिरफ्तार करने की बात करने लगती है. बुलडोजर तो है ही जो शादी के सपनों को कैसे ही एक झपट्टे में तोड़ सकता है.
प्रेम हिंदूमुसलिम दोनों के धर्मों के ठेकेदारों को नहीं भाता. वे चाहते हैं कि शादियां तो धर्म के बिचौलियों से ही तय हों ताकि जिंदगीभर उन्हें घर से कुछ न कुछ मिलता रहे. स्पैशल मैरिज एक्ट में हुई शादी के बच्चों का कोई धर्म नहीं रह जाता है और यह धर्म को कैसे मंजूर होगा. इसलिए वे प्रेम ही नहीं चाहते और शादी पर धर्मांतरण का शिगूफा छेड़ देते हैं.

टेबल टेनिस का सितारा हैं मनिका बत्रा

कहते हैं पूत के पांव पालने में ही दिखाई दे जाते हैं. इस कहावत को चरितार्थ करते हुए मनिका बत्रा ने अपने भाई बहन को टेबल टेनिस खेलते हुए देखा और उसे ऐसे आत्मसात कर लिया कि आज मनिका बत्रा ओलंपिक खेलों में अपनी उपस्थिति दर्ज करा चुकी है, वहीं विश्व में भारत का लगातार प्रतिनिधित्व करके हार जीत की मजे लेते हुए खेल की दुनिया में एक ऐसा सितारा बन गई है जो बड़ी दूर से आभा फैला रहा है.

यह सच है कि अंतरराष्ट्रीय स्पर्धाओं में देश के अनेक खिलाड़ी अपने प्रभावशाली प्रदर्शन से खेलों के नक्शे पर भारत का नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखा रहे हैं. इधर भारतीय महिला खिलाड़ियों ने  खास तौर से देश का परचम दुनिया में लहराया है. एक महत्वपूर्ण  भारतीय महिला खिलाड़ियों में गिने जाने वाली मनिका बत्रा ने  अब एक और ऊंचाई हासिल करते  हुए एशियाई कप टेबल टेनिस में कांस्य पदक हासिल किया है और खास बात यह है कि आप ऐसा करने वाली भारत की पहली महिला खिलाड़ी हैं.

मनिका बत्रा ने अपने सधे हुए खेल से खेल प्रेमियों का कई दफा दिल जीता है. यही कारण है कि भारत सरकार द्वारा वर्ष 2020 में देश के सबसे बड़े खेल सम्मान  “मेजर ध्यान चंद खेल रत्न” पुरस्कार से सम्मानित किया गया. यहां रेखांकित करने वाली बात यह है कि मनिका बत्रा ने बैंकाक, थाईलैंड में खेली गई इस प्रतियोगिता में महिला सिंगल्स का सेमीफाइनल मुकाबला हारने के बाद भी हिम्मत नहीं हारी और कांस्य पदक के लिए हुए मुकाबले में जापान की हीना हयाता को हरा कर  तीसरा स्थान हासिल कर लिया . इस तरह  इतिहास में कोई भी मेडल जीतने वाली देश की पहली महिला खिलाड़ी मनिका बत्रा बन गई.

शिखर पर है मनिका

स्मरण रहे कि एशियाई कप टेबल टेनिस प्रतियोगिता के पुरुष वर्ग में भारत को देश के  खिलाड़ी चेतन बबूर ने पदक दिलाया था. बबूर वर्ष 1997 में पुरुष सिंगल्स के फाइनल तक पहुंच गए और उन्होंने रजत पदक हासिल किया था. , तत्पश्चात वर्ष 2000 में चेतन बबूर ने एक बार फिर कांस्य पदक जीतकर भारत के पदकों की संख्या में वृद्धि कर दिखाई .

टेबल टेनिस में देश में आज एक सितारे का रूतबा हासिल कर चुकी मनिका बत्रा का जन्म पंद्रह जून 1995 को देश की राजधानी दिल्ली में हुआ. मनिका परिवार में  तीन भाई-बहनों में सबसे छोटी हैं. बड़ी बहन आंचल और भाई साहिल टेबल टेनिस के अच्छे खिलाड़ी थे और उन्हीं की प्रेरणा से नन्हीं मनिका ने भी पांच साल की उम्र से ही टेबल टेनिस खेलना शुरू कर दिया.

और आगे परिवार ने उनका समर्पण देख कर , भविष्य की एक प्रतिभावान खिलाड़ी की छवि देखकर मनिका को बहुत कम उम्र में ही टेबल टेनिस का बाकायदा प्रशिक्षण दिलाने का फैसला किया . खास बात यह है कि मनिका को किशोरावस्था में ही माडलिंग के कई प्रस्ताव मिले, लेकिन उन्होंने जीवन में हमेशा टेबल टेनिस को महत्व दिया  और यहां तक कि उन्हें खेल पर अपना पूरा ध्यान केंद्रित करने के लिए अपनी पढ़ाई भी बीच में ही छोड़ दी . यही समर्पण है कि आज मनिका बत्रा खेल की दुनिया में महत्वपूर्ण मुकाम रखती है और भारत सरकार ने उन्हें सम्मानित किया.

मनिका के खाते में एक और उपलब्धि  दर्ज है, वह अपने हमवतन खिलाड़ी एस ज्ञानशेखरन के साथ मिश्रित युगल विश्व वरीयता क्रम में नंबर पांच पर पहुंचीं और किसी भारतीय जोड़ी के लिए टेबल टेनिस विश्व रैंकिंग में यह अब तक की शीर्ष वरीयता है.

मनिका बत्रा ओलंपिक खेलों में देश का प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं. 27 साल की मनिका बत्रा विश्व में 44 वें नंबर की खिलाड़ी हैं और उन्हें टेबल टेनिस के खेल में देश की अब तक की सबसे प्रतिभा पूर्ण तथा सफलतम महिला खिलाड़ी माना जाता है. देश को मनिका से और भी बहुत ज्यादा आशाएं हैं और अभी उनके पास भविष्य में समय भी है कि वे अपना और बेहतर प्रदर्शन दिखा सकें.

मुसलिम विवाहों के झगड़े और कोर्ट

माना जाता है कि मुसलिम विवाहों के झगड़ों के मामले आपस में सुलटा लिए जाते हैं और ये अदालतों में नहीं जाते पर अदालतें शादीशुदा मुसलिम जोड़ों के विवादों से शायद आबादी के अनुपात से भरी हुई हैं. ये मामले कम इसलिए दिखते हैं कि गरीब हिंदू जोड़ों की तरह गरीब मुसलिम जोड़े भी अदालतों का खर्च नहीं उठा सके और पतिपत्नी एकदूसरे की जबरदस्ती सह लेते हैं.

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल में एक मामले में एक मुसलिम पति को पत्नी को अपने साथ रहने को मजबूर करने का हक देने से इंकार कर दिया क्योंकि उस पति ने दूसरी शादी भी कर ली थी और इसलिए पहली पत्नी अपने पिता के घर चली गर्ई थी. पहली पत्नी अपने पिता की इकलौती संतान है और उस के पिता ने मुसलिम कानून की जरूरत के हिसाब से जीते जी सारी संपत्ति बेटी को उपहार कर दी थी.

हालांकि अदालत ने कुरान का सहारा लिया, पतिपत्नी के मामलों में झगड़ों में धर्म को लिया ही नहीं जाना चाहिए क्योंकि धर्म ने जबरन एक आदमी और औरत के साथ रहने के अनुबंध पर सवार हो चुका है. शादी का न तो मंदिर से कोई मतलब है, न चर्च से, न मुल्ला से, न ग्रंथी से, शादी 2 जनों की आपसी रजामंदी का मामला है.

और जब रजामंदी से किसी की शादी की है कि दोनों किसी तीसरे को अपने संबंधों के बीच न आने देंगे तो यह माना जाना चाहिए, बिना चूं चपड़ के. कानून को पतिपत्नी के हक देने चाहिए लेकिन कौट्रैंक्ट एक्ट के हिसाब से, धर्म के हिसाब से नहीं. पति पत्नी के अधिकार एकदूसरे पर क्या हैं और वे अगर संबंध तोड़ें तो कौन क्या करेगा क्या नहीं, यह इसी तरह तय करना चाहिए जैसे पार्टनरशिप एक्ट, कंपनिज एक्ट, सोसायटीज एक्ट में तय होता है. धर्म बीच में नहीं आता. शादी न भगवानों के कहने पर होती है न भगवानों के कहने पर टूटती हैं.

एक आदमी और औरत जीवनभर एकदूसरे के साथ ही सुखी रहेंगे, यह जरूरी नहीं. शादी के बाद 50-60 या 70 सालों में बहुत कुछ बदल सकता है. पसंद बदल सकती है, स्तर बदल सकता है. शरीर बदल सकता है. जीवन साथी को हर मामले में ढोया जाए जबरन, यह गलत है. प्रेम में तो लोग एक पेड़ के लिए भी जान की बाजी लगा देते हैं, जिस के साथ सुख के हजारों पल बिताए हों, उस के साथ दुख में साथ देना कोई बड़ी बात नहीं.

मुसलिम जोड़े ने अदालत की शरण ली वह साबित करता है कि मुसलिम मर्द भी तलाक का हक कम इस्तेमाल करते हैं और जहां हक हो वहां खुला भी इस्तेमाल नहीं किया जाता. कट्टर माने जाने वाले मुसलिम जोड़े भी सेक्यूलर अदालतों की शरण में आते हैं. यह बात दूसरी कि बहुत सी अदालतों के जजों के मनों पर धार्मिक बोझ भारी रहता है, उस मामले में जज ने सही फैसला किया कि पतिपत्नी को साथ रहने घर मजबूर नहीं कर सकता, खासतौर पर तबजब उस ने दूसरी शादी भी कर रखी हो चाहे वह मुसलिम कानून समान हो.

आधी आबादी: न शिक्षा मिली न अधिकार

जुलाई, अगस्त 2022 में महिलाओं को ले कर 2-2 गुड न्यूज आई हैं- पहली रोशनी नेदार ने भारत की सब से अमीर महिला होने का गौरव हासिल किया है तो दूसरी ओर सावित्री जिंदल ने एशिया की सब से अमीर महिला होने का खिताब जीता है. इन दोनों महिलाओं की आर्थिक जगत में कामयाबी इशारा करती हैं कि महिलाएं आज सामाजिक और आर्थिक मोरचे पर पुरुषों से भी आगे निकल रही हैं.

लेकिन यह तसवीर का एक छोटा और अधूरा पहलू है क्योंकि जिस देश की आबादी 150 करोड़ से भी ज्यादा हो वहां की आधी आबादी यानी महिला शक्ति अभी भी आर्थिक मोरचे पर पुरुषों के मुकाबले बहुत कमजोर है.

इस के कारणों का विश्लेषण करेंगे तो शिक्षा ही एक ऐसा कारण नजर आता है, जो सालों से महिलाओं को पुरुषों से काबिलीयत में पीछे कर रहा है. भारत में महिलाओं की शैक्षणिक स्थिति का जायजा लेने जाएंगे तो आज भी देश के कसबों, गांवों में महिलाएं स्कूल जाने के बजाय चूल्हेचौके में अपने भविष्य को  झोंक रही हैं. यही वजह है कि आजादी के 75 सालों के बाद भी शिक्षा के मोरचे पर महिलाएं फेल हैं.

महिला साक्षरता दर में राजस्थान फिसड्डी

अगर बात करें महिला साक्षरता की तो देश के अन्य राज्यों की तुलना में राजस्थान की स्थिति काफी खराब है. आंकड़ों के अनुसार महिला साक्षरता दर में राजस्थान फिसड्डी राज्य की श्रेणी में आता है. ऐसा हम नहीं कह रहे बल्कि यह जनगणना के आंकड़े बताते हैं. राजस्थान के जालौर और सिरोही में महिला साक्षरता दर महज 38 और 39% है जो काफी कम है. हालत में अभी भी ज्यादा सुधार नहीं है.

बिहार का हाल भी बेहाल

एनएसओ की रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है कि बिहार में पुरुष साक्षरता दर महिलाओं से ज्यादा है. बिहार में जहां 79.7% पुरुष साक्षर हैं, वहीं सिर्फ 60% महिलाएं ही साक्षर हैं. बिहार में कुल ग्रामीण साक्षरता दर 69.5% है, वहीं शहरी साक्षरता 83.1% है.

बिहार में लगभग 36.4% लोग निरक्षर

बिहार में 36.4% लोग निरक्षर हैं. 19.2% लोग प्राथमिक स्कूल तक पढ़े, 16.5% लोग माध्यमिक तक, 7.7% उच्चतर माध्यमिक तक, 6% स्नातक तक. महिला निरक्षरता दर 47.7% है, जो पुरुषों की तुलना में लगभग 21% अधिक है.

 झारखंड की स्थिति भी खराब

अगर  झारखंड में महिला साक्षरता की बात करें तो वहां भी स्थिति अच्छी नहीं है. आज भी राज्य की 38% से अधिक महिलाओं को एक वाक्य भी पढ़ना नहीं आता है. अगर बात करें ग्रामीण क्षेत्रों की तो स्थिति और भी खराब है. वहां 55.6% महिलाएं पढ़नालिखना भी नहीं जानती हैं. इस का खुलासा भारत सरकार द्वारा 2019-2021 के बीच करवाए गए राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण से हुआ था.

आंध्र प्रदेश भी पीछे

आंध्र प्रदेश में महिला और पुरुष के बीच साक्षरता दर का अंतर 13.9% है. यह भी काफी ज्यादा है.

चौंकाने वाले फैक्ट्स

राष्ट्रीय सांख्यिकी की प्रकाशित रिपोर्ट में चौंकाने वाला खुलासा हुआ है. इस में सर्वेक्षण 2017 और 2018 के दौरान पुरुषों की साक्षरता दर 80.08% बताई गई, जबकि महिलाओं में यह आंकड़ा महज 57.6% दर्ज किया गया और अगर आज की बात करें तो आज भी साक्षरता के मामले में पुरुषों और महिलाओं में काफी अंतर देखने को मिलता है. जहां पुरुषों में साक्षरता दर 82.14% है, वहीं महिलाओं में यह प्रतिशत सिर्फ और सिर्फ 65.45% है जो काफी कम है.

महिलाओं और पुरुषों की साक्षरता दर

एनएसओ की तरफ से 2 साल पहले किए गए सर्वे में पता चला था कि केरल में 97.4% पुरुष साक्षर हैं, तो महिलाएं 95.2%. दिल्ली में 93.7% पुरुष तो महिलाएं 82.4%. आंध्र प्रदेश में 73.4% पुरुष, तो 59.5% महिलाएं. राजस्थान में 80.8% पुरुष, तो 57.6% महिलाएं. बिहार में 79.7% पुरुष, तो 60.5% महिलाएं साक्षर हैं.

उत्तर प्रदेश में न्यूनतम महिला साक्षरता वाले जिले: जनसंख्या की दृष्टि से उत्तर प्रदेश जो देश में नंबर 1 पर आता है, लेकिन आप 2011 की जनगणना के अनुसार आंकड़े जान कर हैरान रह जाएंगे क्योंकि हम आप को यहां के न्यूनतम महिला साक्षरता वाले जिलों से रूबरू जो करवा रहे हैं- श्रावस्ती में महिला साक्षरता दर 34.78%, बलरामपुर में 38.43%, बहराइच में 39.18%, बदायूं में 40.09%, रामपुर में 44.44% है. आंकड़े देख कर आप भी हैरान रह गए न.

अशिक्षित होने की वजह से महिलाओं को क्याक्या परेशानियां होती हैं

नौकरी न मिलना

जब महिलाएं पढ़ीलिखी नहीं होतीं, तब न तो उन्हें परिवार सम्मान देता है और न ही समाज. अपने अनपढ़ होने की वजह से वे कहीं नौकरी भी नहीं कर पातीं, जिस के कारण उन्हें मजबूरीवश अपनों की यातनाएं  झेलनी पड़ती हैं. सब उन्हें कुछ नहीं आता, कह कर बेवकूफ सम झते हैं. उन की किचन स्किल्स को कुछ नहीं सम झा जाता.

लेकिन अगर महिलाएं पढ़लिख कर अपने पैरों पर खड़ी हो जाएं, तब न तो उन्हें किसी की यातनाएं सहनी पड़ेंगी और न ही हर गलत बात में हां में हां मिला कर चलना पड़ेगा. वे अपने मन की कर पाएंगी और कुछ गलत होने पर उसे सहेंगी भी नहीं बल्कि उस के खिलाफ आवाज उठा पाएंगी जो समाज में महिलाओं के खिलाफ होने वाले अत्याचारों को कम करने और महिलाओं को स्ट्रौंग बनाने में मदद करेगा.

बच्चों को पढ़ाने में दिक्कत

अगर मां पढ़ीलिखी होगी तो वह अपने बच्चों को खुद पढ़ा कर अच्छी शिक्षा दे पाएगी. लेकिन अगर वे ही पढ़ीलिखी न हो तो न तो वह अपने बच्चों की पढ़ाई में मदद कर पाएगी, जिस कारण मां की बच्चों के साथ अच्छी ट्यूनिंग भी नहीं होगी.

स्कूलगोइंग बच्चे भी हमारी मां को कुछ नहीं आता, कह कर बेइज्जत किए बिना नहीं रह पाते हैं. ऐसे में मां लाचार और बेचारी बन कर रह जाती है, जबकि आज जरूरत है कि आप पढ़लिख कर आगे बढ़ें, खुद भी पढें और अपने बच्चों को भी आगे बढ़ने में खूब मदद करें.

अधिकारों के लिए लड़ने में असमर्थ

जब महिलाएं शिक्षित ही नहीं होंगी तो अधिकारों का ज्ञान कैसे होगा. जो जिसने जैसे बता दिया, बस उसी को पत्थर की लकीर मान कर बैठ गए. लेकिन अगर आप पढ़ीलिखी होंगी, तो आप अपने अधिकारों के लिए लड़ेंगी. न गलत सहेंगी और न गलत होने देंगी. इस से आप को सम्मान तो मिलेगा ही, साथ ही आप समाज में अपनी एक अलग जगह भी बना पाएंगी.

जबरन शादी के लिए मजबूर होना

जब लड़की पढ़ीलिखी नहीं होती तो उस के पेरैंट्स उस की जहां शादी तय करते हैं, उसे करनी पड़ती है. फिर चाहे लड़का उसे नापसंद ही क्यों न हो. लेकिन अगर लड़की पढ़ीलिखी होगी, तो वह अपने लिए सही पार्टनर का चुनाव खुद कर पाएगी. खुद आत्मनिर्भर होने के कारण कोई भी उस पर जोरजबरदस्ती नहीं कर पाएगा. उसे अपने लिए जो सही लगेगा, वह खुल कर अपनों के सामने राय रख पाएगी.

ये तो कुछ चुनिंदा कारण हैं और भी कई कारण हैं, जिस के कारण महिलाओं को मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. ऐसे में जरूरी है कि हम आजादी के 75 सालों का जश्न मनाने के साथसाथ खुद को कैसे अपने पैरों पर खड़ा करें, इस ओर भी गंभीरता से ध्यान दें.

बंदर भी करते है रिवेंज किलिंग, पढ़ें खबर

आपको जानकार हैरानी होगी कि केवल मानव जाति ही एक दूसरे की रिवेंज किलिंग नहीं करते, जानवर भी करते है. हालाँकि ऐसी घटनाएं कई बार बंदरों के साथ हुई है, जब उन्होंने अपने बच्चे की मरने की गम में रास्ते पर जाते हुए मनुष्य पर घात लगाकर वार किया, जिसमेवह खुद को बचाने में समर्थ नहीं हुए और उस इंसान की मृत्यु हो गयी.

ऐसी ही कुछ घटना घटी है महाराष्ट्र के बीड में, जहाँ तीन महीने से चली आ रही जंग अब ख़त्म हो चुकी है. 250 से अधिक पिल्लों की ‘रिवेंज किलिंग’में मार चुके दो खूंख्वार बंदरों को नागपुर वन विभाग ने पकड़ लिया है. इन बंदरों को नागपुर ले जाकर नजदीक के किसी जंगल में छोड़ दिया जाएगा.

बीड के लावूल गाँव में ये वार तब शुरू हुई जबकई कुत्तों ने मिलकर एक बंदर के बच्चे को मार डाला. इसके बाद ये दोनों बंदर जब भी किसी कुत्ते की पिल्ले को देखते थे, उन्हें उठा लेते थे और उन्हें किसी ऊँचे पेड़ या मकान के ऊपर ले जाकर नीचे गिरा देते थे. ऐसा करते-करते उन दो बंदरों ने तकरीबन 250 पिल्लों को मार डाला है.

गाँव वालों ने वन विभाग से इन बंदरों के बारें में शिकायत की, क्योंकि इन बंदरों ने पिल्लों को मारने के अलावा स्कूल जाने वाले कुछ बच्चों पर भी एटैक किया, ताकि लोग डरे और उन्हें इस काम में बाधा न डाले.

असल में बंदर किसी भी घटना को बहुत दिनों तक याद रखते है,उनकी याद रखने की शक्तितक़रीबन मनुष्य की तरह ही है. ऐसे में उनके बच्चे के साथ हुए किसी भी बात को वे सह नहीं पाते. कई बार उन्हें ये समझने में समय लगता है कि उनका बच्चा मर चुका है, क्योंकि मृत बच्चे को भी माँ अपने सीने से लगाये घूमती रहती है.

भगवान से उठ रहा भरोसा

भगवान को मानने और न मानने वालों को विश्वस्तरीय सर्वे के अनुसार विश्व में नास्तिकों का औसत हर साल बढ़ रहा है. नास्तिकों की सब से ज्यादा 50% संख्या चीन में है. भारत में भी नास्तिकों की संख्या बढ़ी है. इस के उलट पाकिस्तान में आस्तिकों की संख्या बढ़ी है. लेकिन अरबों की आबादी वाले देशों में महज कुछ लोगों की बातचीत के आधार पर एकाएक यह कैसे मान लिया जाए कि इन देशों में नास्तिकों अथवा आस्तिकों की संख्या परिवर्तित हो रही है?

आस्तिक और नास्तिकवाद के ताजा सूचकांक के मुताबिक इस तरह के भारतीयों ने भी बताया था कि वे धार्मिक नहीं और न ईश्वर में विश्वास रखते हैं. यह संख्या बढ़ रही है. पोप फ्रांसिस के देश अर्जेंटीना में खुद को धार्मिक कहने वालों की संख्या कम हुई है. इसी तरह खुद को धार्मिक बताने वालों की संख्या में दक्षिण अफ्रीका, अमेरिका, स्विट्जरलैंड, फ्रांस तथा वियतनाम में गिरावट भी आई है.

नास्तिक अथवा आस्तिकों की संख्या घटनेबढ़ने से देशों की सांस्कृतिक अस्मिताओं पर कोई ज्यादा फर्क पड़ने वाला नहीं है क्योंकि वर्तमान परिदृश्य में दुनिया की हकीकत यह है कि सहिष्णु शिक्षा के विस्तार और आधुनिकता के बावजूद धार्मिक कट्टरपन बढ़ रहा है, धार्मिक स्वतंत्रता पर हमले हो रहे हैं.

यह कट्टरता इसलामिक देशों में कुछ ज्यादा ही देखने में आ रही है. कट्टरपंथी ताकतें अपने धर्म को ही सर्वश्रेष्ठ मान कर भिन्न धर्मावलंबियों को दबा कर धर्म परिवर्तन तक के लिए मजबूर करती रही है. भारत, पाकिस्तान और बंगलादेश में अल्पसंख्यक हिंदुओं के साथ यही हो रहा है. कश्मीर क्षेत्र में मुसलिमों का जनसंख्या घनत्व बढ़ जाने से करीब साढ़े चार लाख कश्मीरी हिंदुओं को अपने पुश्तैनी घरों से खदेड़ दिया गया.

अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला

पाकिस्तान में हालात इतने बदतर हैं कि वहां उदारता, सहिष्णुता और असहमतियों की आवाजों को कट्टरपंथी ताकतें हमेशा के लिए बंद कर देती हैं. यहां के महजबी कट्टरपंथियों ने कुछ साल पहले अल्पसंख्यक मामलों के केंद्रीय मंत्री शहबाज भट्टी को पाकिस्तान के विवादास्पद ईशनिंदा कानून में बदलाव की मांग करने पर मौत के घाट उतार दिया था. शहबाज भट्टी कैथोलिक ईसाई थे. यह सीधेसीधे अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला था.

जनरल जिया उल हक की हुकूमत के समय बने इस अमानवीय कानून के तहत कुरान शरीफ, मजहब ए इसलाम और पैगंबर हजरत मोहम्मद व अन्य धार्मिक शक्तियों के बारे में कोई भी विपरीत टिप्पणी करने पर मौत की सजा सुनाई जा सकती है.

मलाला यूसुफ पर तो महज इसलिए आतंकवादी हमला हुआ था क्योंकि वह स्त्री शिक्षा की मुहिम चला रही थी.

चरम पर नस्लभेद

चीन में 50% नागरिकों का नास्तिक होना इस बात की तसदीक है कि नास्तिकता कोई गुनाह नहीं है क्योंकि चीन लगातार प्रगति कर रहा है. वहां की आर्थिक और औद्योगिक विकास दरें ऊंचाइयों पर है. अमेरिका के बाद अब चीन ही दुनिया की बड़ी महाशक्ति है. जाहिर है यदि नास्तिक होने के बावजूद किसी देश के नागरिक ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ हैं तो यह नास्तिकता देश के राष्ट्रीय हितों के लिए लाभकारी ही है.

यदि विकसित देशों की बात करें तो वहां केवल आर्थिक और भौतिक संपन्नता को ही विकास का मूल आधार माना जा रहा है, जबकि विकास का आधार चौमुखी होना चाहिए. सामाजिक, धार्मिक और शैक्षिक स्तर पर भी व्यक्ति की मानसिकता विकसित होनी चाहिए. पश्चिमी देशों में अमेरिका, ब्रिटेन और आस्टे्रलिया विकसित देश हैं. किंतु नास्तिकों की संख्या बढ़ने के बावजूद यहां रंगभेद और धर्मभेद के आधार पर वैमन्स्यता बढ़ रही है.

अमेरिका और ब्रिटेन में भारतीय सिखों पर हमले हो रहे हैं, जबकि आस्ट्रेलिया में उच्च शिक्षा प्राप्त करने गए भारतीय और पाकिस्तानी छात्रों पर हमलों की घटनाएं सामने आई हैं.

2014 से पहले धार्मिक स्वतंत्रता पर निगरानी रखने वाली अंतर्राष्ट्रीय समिति के एक अध्ययन की रिपोर्ट में माना गया था कि धार्मिक स्वतंत्रता के मामले में अपेक्षाकृत भारत अव्वल था क्योंकि यहां के लोग उदार थे.

सभी अल्पसंख्यक समुदायों के लोगों पर किसी भी किस्म की कानूनी पाबंदी नहीं हुई. अब उलटा हो रहा है. धर्म का उन्माद बढ़ रहा है. भारत की धर्मनिरपेक्षता की खोखली होती जड़ों से दुनिया सीख ले सकती है. जहां बहुधर्मी, बहुसंस्कृति और बहु जातीय समाज अपनीअपनी सांस्कृतिक विरासतों को सा?ा करते हुए साथ नहीं रह पा रहे हैं.

अनीश्वरवाद बनाम प्रत्यक्षवाद

कहने को भारतीय दर्शन के इतिहास में भौतिकवाद और आदर्शवाद की परस्पर विरोधी विचारधाराएं एक  साथ चली हैं. चार्वाक नास्तिक दर्शन का प्रबल प्रणेता था. चार्वाक ने बौद्धिक विकास के नए रास्ते खोले. उस ने अनीश्वरवाद बनाम प्रत्यक्षवाद को महत्ता दी. चार्वाक ने ही मुस्तैदी से कहा कि पृथ्वी, जल, अग्नि और वायु के अद्भुत समन्वय व संयोग से ही मनुष्य व अन्य जीव तथा वनस्पतियां अस्तित्व में आई हैं. जीवों में चेतना इन्हीं मौलिक तत्त्वों के परस्पर संयोग से प्रतिक्रियास्वरूप उत्पन्न हुई है. मगर चार्वाक ??के ग्रंथों को भी जला दिया गया और बौध मठों को भी तोड़ दिया गया.

विज्ञान मानता है कि संपूर्ण सृष्टि और उस के अनेक रूपों से उत्पन्न ऊर्जा का ही प्रतिफल है. जीवधारियों की रचना में अभौतिक सत्ता की कोई भूमिका नहीं है. चेतनाहीन पदार्थों से ही विचित्र व जटिल प्राणी जगत की रचना संभव हुई.

ईश्वर ने नहीं बनाया ब्रह्मांड

ब्रिटिश वैज्ञानिक स्टीफन हाकिंग ने कहा है कि ईश्वर ने ब्रह्मांड की रचना नहीं की है. इसे सम?ाने के लिए उन्होंने महामशीन ‘बिगबैंग’ में महाविस्फोट भी किया था. इस के जरीए उन्होंने ब्रह्मांड की उत्पत्ति के संदर्भ में भौतिक विज्ञान के गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत को मान्यता दी है. इस सिद्धांत के अनुसार लगभग 12 से 14 अरब वर्ष पहले संपूर्ण ब्रह्मांड एक परमाणविक इकाई के रूप में था.

इस से पहले क्या था, यह कोई नहीं जानता क्योंकि उस समय मानवीय समय और स्थान जैसी कोई वस्तु अस्तित्व में नहीं थी, समस्त भौतिक पदार्थ और ऊर्जा एक बिंदु में सिमटे थे. फिर इस बिंदु ने फैलाना शुरू किया. नतीजतन आरंभिक ब्रह्मांड के कण समूचे अंतरिक्ष में फैल गए और एकदूसरे को दूर भगाने लगे. यह ऊर्जा इतनी अधिक थी कि आज तक ब्रह्मांड विस्तृत हो रहा है. सारी भौतिक मान्यताएं इस एक घटना में परिभाषित होती हैं, जिसे बिगबैंग सिद्धांत कहते हैं.

धर्म बन गया व्यापार

दर्शन के विभिन्न मतों के ही कारण भारत में भगवान को नहीं मानना अपराध तो नहीं माना गया, इस कारण से किसी को फांसी नहीं दी गई पर उस का सामाजिक बहिष्कार हो जाता है. फिर भी भारत व अन्य देशों में नास्तिक बढ़ रहे हैं, तो इस स्थिति को अथवा नास्तिकों को बुरी नजर से देखने की जरूरत नहीं है क्योंकि नास्तिक दर्शन या नास्तिक व्यक्ति परलोक की अलौकिक शक्तियों से कहीं ज्यादा इसी लोक को महत्त्व देता है, कर्मकांड से दूर रहता है. लेकिन इस दर्शन में उन्मुक्त भोग की जो परिकल्पना है, वह सामाजिक व्यवहार के अनुकूल नहीं है.

नास्तिकों का अस्तित्व असल में धर्म व्यापार पर गहरा असर डालता है. मंदिरों के पंडे, चर्चों के फादर, मसजिदों के मुल्ला आदि सब मुफ्त की खाते हैं. अफसोस यह है कि नास्तिक खत्म नहीं होते क्योंकि नास्तिवाद से पैसा नहीं मिलता. पैसा तो नास्तिकों के गुरुओं को मिलता है.

प्रेम पर भारी धर्म से ट्रैजेडी

प्यार की राह पर चलने वाली 27 वर्षीय श्रद्धा का जो हश्र उस के प्रेमी आफताब ने किया वह एक नाकाबिले माफी जुर्म है जिस के लिए वह कतई हमदर्दी नहीं बल्कि सख्त से सख्त सजा का हकदार है ऐसा दुर्दांत और जघन्य हादसा अकसर नहीं होता, लेकिन जब हो गया तो हर किसी को दुख हुआ और सभी ने सड़क हादसों की तर्ज पर कुछ न कुछ कहा, लेकिन परंपरावादी लोग यही कहते नजर आ रहे हैं कि इस से तो अच्छा है कि प्यार किया ही न जाए और किया जाए तो पेरैंट्स की इजाजत ले ली जाए. पर यह कहना कम है, प्रमुखता से हल्ला यह मचाया गया कि हिंदू लड़कियों को मुसलिम लड़कों से प्यार नहीं करना चाहिए नहीं तो न केवल उन के बल्कि सनातन धर्म और संस्कृति के 35 टुकड़े होना तय है.सभ्य समाज के लिए कलंक मामला क्या है और क्यों व कैसे हुआ इस से पहले तरस उन लोगों की मानसिकता पर खा लेना जरूरी है जो इस बीभत्स कांड को लव जिहाद कहते लड़कियों को प्यार के रास्ते पर न चलने की नसीहत दे रहे हैं क्योंकि श्रद्धा हत्याकांड में भी अपना धर्म उन्हें खतरे में नजर आ रहा है. जाने क्यों और कैसे तंदूर कांड में मारी गई नैना साहनी के बाद यही धर्म सलामत बच गया था तब क्यों लड़कियों को नसीहतें धर्म गुरुओं ने नहीं दी थीं और न ही मीडिया वालों ने यह कहा था कि हमें शिकायत नैना से भी है.

सार यह कि अगर आफताब की जगह कोई आकाश या सूरज होता तो हल्ला इतना नहीं मचाया जाता और सनातन खतरे में नहीं पड़ता. ठीक इसी तरह श्रद्धा की जगह सलमा या सकीना होती. तो भी इसे हादसा मानने की कोई वजह नहीं होती. कितनी हास्यास्पद बात है कि अगर प्यार में हिंदू लड़का हिंदू लड़की की हत्या करे या मुसलिम लड़का मुसलिम लड़की की हत्या करे तो कोई आसमान नहीं फटता मानो यह उन का हक हो.

धर्म के ठेकेदार दरअसल में प्यार को कोस रहे हैं क्योंकि इन की दुकान की बुनियाद ही युवाओं की आजादी के विरोध से पड़ी है. दूसरे क्या भारतीय पेरैंट्स इतने उदार हो गए हैं कि संतान खासतौर से लड़की अगर कहेगी कि मु?ो फलां से प्यार हो गया है तो क्या ये ?ाट से उस की भावनाओं का सम्मान करते हुए शादी के लिए राजी हो जाएंगे?

नहीं पेरैंट्स हजार बातें करेंगे, सैकड़ों नुक्स जातिधर्म और गोत्र के निकालेंगे और आखिर में मुंह लटका कर कहेंगे कि तुम्हें कोई हक नहीं कि तुम हमारी प्रतिष्ठा और खुशियों का गला घोंट कर अपनी मरजी से शादी करो और घर बसाओ फिर जैसी तुम्हारी मरजी तुम जानो तुम्हारा काम जाने. किसी बुरे के हम जिम्मेदार नहीं होंगे.

अपवाद मामलों में ही ऐसा होता है कि पेरैंट्स बच्चे की खुशी और इच्छा पर तवज्जो देते जीवनसाथी के चुनाव पर खुले दिल से उस के फैसले का सम्मान करते हैं नहीं तो तादाद उन की  ज्यादा हैं जो हिंदी फिल्मों के मांबाप की तरह परवरिश की दुहाई देते संतान को इमोशनली ब्लैकमेल करने का पुराना हथकंडा इस्तेमाल करते हैं जो कभी कामयाब तो कभी नाकामयाब हो जाता है.

जिन मामलों में यह कामयाब होता है उन में ज्यादातर बेटी की जिंदगी दूभर होने का खतरा ज्यादा रहता है जो अपने अरमानों का गला घोंट कर पेरैंट्स जिस के गले बांध देते हैं उस के साथ बेमन से विदा हो जाती है. बेमन से इसलिए कि यह एहसास उसे रहता है कि वह शादी नहीं कर रही बल्कि पेरैंट्स के लिए त्याग, सम?ाता या सौदा कर रही है जो जन्म देने, परवरिश करने और शिक्षा दिला कर काबिल बनाने की कीमत है.

कौन है श्रद्धा

कौन है श्रद्धा लेकिन श्रद्धा भी दूसरी कई जागरूक युवतियों की तरह इस पचड़े में नहीं पड़ी इसीलिए उसे कोसने की एक बड़ी वजह कुछ लोगों को मिल गई जैसे उस की हत्या की इकलौती वजह पेरैंट्स की अनदेखी ही हो और उस ने एक मुसलिम युवक से प्यार करने के गुनाह की सजा बेरहम तरीके से भुगती जबकि सच कुछ और है कि दरअसल में लिव इन में रह रहे लाखों कपल्स की तरह उस की और आफताब की पटरी आपस में नहीं बैठ रही थी. श्रद्धा की गलती प्यार करना नहीं थी बल्कि प्यार और लिव इन में जरूरी सम?ादारी और सावधानियां न रखना थी.

श्रद्धा का पूरा नाम श्रद्धा वाकर है. वह महाराष्ट्र के पालघर की रहने वाली थी. आम मध्यवर्गीय परिवारों की युवती की तरह वह भी पढ़ाई पूरी करने के बाद नौकरी करने लगी थी. मास मीडिया में मास्टर डिगरी लेने वाली श्रद्धा को उस के सहपाठी उसे 4 जी गर्ल कहते थे. एक मल्टीनैशनल कंपनी के कौल सैंटर में मुंबई के मलाड इलाके में नौकरी कर रही बिंदास, हंसमुख  खूबसूरत और आकर्षक इस युवती की जानपहचान 2019 में अपने सहकर्मी आफताब से हुई जिस का पूरा नाम आफताब अमीन पूना वाला है.

यह जानपहचान जल्द ही प्यार में बदल गई और दोनों साथ जीनेमरने के वादे करते शादी के सपने देखने लगे. श्रद्धा को उम्मीद यह थी कि उस के पेरैंट्स इस शादी के लिए हां कर देंगे क्योंकि वे अपनी बिटिया को बहुत चाहते थे.

श्रद्धा के इस भ्रम या विश्वास कुछ भी कह लें को ?ाटका उस वक्त लगा जब पेरैंट्स ने सख्ती से मना कर दिया कि नहीं यह शादी नहीं हो सकती क्योंकि लड़का मुसलमान है. इस से श्रद्धा को जाहिर है दुख हुआ और वह निराश भी हुई. उस ने मांबाप को मनाने की हर संभव कोशिश की, लेकिन बात नहीं बननी थी सो नहीं बनी. तय है इसलिए कि पेरैंट्स एक मुसलिम युवक को दामाद स्वीकार नहीं कर पा रहे थे. इस मुकाम पर 2 ही बातें मुमकिन होती हैं. पहली तो यह कि मांबाप बेटी की बात मानते उसे अपनी जिंदगी जी लेने दें या फिर बेटी अपने प्यार की आहुति देते हुए मांबाप की बात मान ले.

श्रद्धा और उस के पेरैंट्स दोनों ही अपनी जिद पर अड़े रहे और धीरेधीरे उन के बीच रिश्ते की गरमाहट और बातचीत तक खत्म होने लगी. मांबाप की सम?ाइश की तह में अपना अहम और प्रतिष्ठा ज्यादा थी तो बेटी की जिद में भी नादानी और बेवकूफी कम नहीं थी जिस ने एक बर्बर हत्याकांड को जन्म दिया.

कौन है आफताब

मुंबई के ही मीरा रोड स्थित एक रिहायशी अपार्टमैंट में दीवाली के दिनों में पूना वाला परिवार वसई से रहने आया था. अपार्टमैंट्स में कौन रहने आया, कौन गया इस से आजकल कोई मतलब नहीं रखता जो महानगरीय संस्कृति का ही एक हिस्सा है. लोग ट्रक से सामान उतरते और चढ़ते सहजता से देखते रहते हैं. मुंबईया माहौल में पैदा हुए और पलेबढ़े आफताब का परिवार मीरा रोड शिफ्ट हो गया तो किसी ने ज्यादा नोटिस नहीं लिया और जिन्होंने लिया उन्हें यही सम?ा आया कि इस परिवार में 4 ही लोग हैं. मांबाप और 2 जवान बेटे (दूसरा आफताब का छोटा भाई) ये लोग ठीकठाक हैं, लेकिन बोलते ज्यादा हैं.

पेशे से फोटोग्राफर आफताब की डेटिंग ऐप पर श्रद्धा से पहचान और फिर कुछ मुलाकातों के बाद प्यार हो जाने पर वह भी हसीन सपने देखने लगा. लेकिन शादी की इजाजत उस के पेरैंट्स भी नहीं दे रहे थे इसे ले कर वह श्रद्धा की तरह तनाव में नहीं था यानी आने वाली जिंदगी को ले कर गंभीर नहीं था. श्रद्धा की तरह वह भी मध्यवर्गीय परिवार से था और महत्त्वाकांक्षी था. यह और बात है कि यह महत्त्वाकांक्षा हीनता और कुंठा में बदलती जा रही थी जिसे वह महसूस तो रहा था, लेकिन सम?ा नहीं पा रहा था.प्यार पर विरोध मुंबई महानगर है जहां युवाओं के इश्क और मुहब्बत के सीन कहीं भी देखे जा सकते हैं पार्कों, होटलों, बीच, सड़क और लोकल ट्रेनों में भी प्यार करते युवा इफरात से नजर आते हैं. इन्हीं में एक नाम श्रद्धा और आफताब का शुमार हो गया था जो अपने प्यार को शादी की मंजिल तक ले जाना चाहते थे इसलिए दोनों ने किसी से कुछ छिपाया नहीं था, लेकिन दोनों के परिवारजन इस के लिए तैयार नहीं थे और घर वालों की इच्छा के बाहर जा कर शादी करने की इन की हिम्मत नहीं पड़ रही थी, इसलिए एक दिन दोनों दिल्ली भाग गए. जहां जा कर पहले वे पहाड़गंज के एक होटल में रुके फिर उन्होंने महरौली इलाके में किराए का मकान ले लिया और बाकायदा पतिपत्नी की तरह रहने लगे, लेकिन उतने प्यार और शिद्दत से नहीं जितना कि प्यार होने के कुछ दिन बाद मुंबई में रहते थे.

ऐसा नहीं कि महरौली में रहते प्यार एकदम कम हो गया था बल्कि गलती दोनों तरफ से और बराबरी से हो रही थी. श्रद्धा चाहती थी कि वे दोनों जल्द से जल्द शादी कर लें पर आफताब उसे टाल रहा था. शायद ही नहीं तय है इस जिद के पीछे श्रद्धा का सोचना यह था कि एक बार शादी हो जाए तो उसे तो पहचान मिलेगी ही साथ ही समाज और परिवार वाले भी रिश्ते पर मुहर लगा देंगे क्योंकि अमूमन होता यही है कि लड़कालड़की लिव इन में रहते शादी कर लेते हैं तो शादी पर एतराज जताते रहने वाले पेरैंट्स भी ?ाक ही जाते हैं. महरौली शिफ्ट होने के बाद आफताब शादी से नानुकुर करने लगा तो श्रद्धा को चिंता होना स्वाभाविक बात थी. बात यहीं से बिगड़ी. श्रद्धा चाहती थी कि आफताब तुरंत शादी कर ले, लेकिन आफताब कुछ और ही सोच रहा था.

बड़ी भूल

लिव इन जिन शर्तों पर होती है उन में से एक खास यह है कि कोई भी एक पक्ष दूसरे पर बेजा हक नहीं जमाएगा पर श्रद्धा खुद को आफताब की ब्याहता सम?ाने की भूल करने के साथ दूसरी भी कई गलतियां कर रही थी. लक्ष्मण सहित वह अपने कुछ दूसरे फ्रैंड्स के संपर्क में भी थी, लेकिन मांबाप से तो जैसे उस का नाता टूट ही गया था. बिना डोली में विदा हुए ही वह उन के लिए पराई हो चुकी थी.

जाहिर है उसे यह सम?ा आ गया था कि बिना किसी ठोस वजह के आफताब शादी की बाबत उसे टरका रहा है. इस से वह और गुस्से और असुरक्षा से भर उठती थी क्योंकि अब दुनिया में आफताब के सिवा उस का कोई रह भी नहीं गया था. बात इस लिहाज से सच थी कि 3 साल एक मुसलिम युवक के साथ लिव इन में रहने के बाद उसे कोई नहीं स्वीकारता. उस तरफ के सारे दरवाजे उस के लिए बंद हो चुके थे.

जिद्दी श्रद्धा को अब पेरैंट्स से बात करने में भी हिचक होने लगी थी क्योंकि धीरेधीरे ही सही वे सही और वह गलत साबित होने लगी थी. इस वक्त वह कोई जौब भी नहीं कर रही थी इसलिए भी आक्रामक होने लगी थी. खर्चों को ले कर भी आए दिन दोनों ?ागड़ते रहते थे कि पैसा कौन खर्च करे. नौबत तो यहां तक आ गई थी कि रोज की सब्जीतरकारी खरीदने के लिए भी चिकचिक होने लगी थी.

नशे का आदी आफताब

उधर आफताब को श्रद्धा की यह कमजोरी पकड़ आ गई थी कि वह चारों तरफ से टूट चुकी है लिहाजा उस ने श्रद्धा पर हाथ उठाना भी शुरू कर दिया था. नशे के आदी इस नौजवान ने यह नहीं सोचा कि श्रद्धा ने उस के भरोसे पर दुनिया को ठुकरा रखा है. मारपीट और कलह अब रोजरोज की बात हो चली थी. लगता ऐसा था कि अपनेअपने हिस्से की प्यार भरी जिंदगी वे जी चुके हैं और अब तो दुश्मनी निभा रहे हैं.कसाई बना आशिक दुश्मनी इस हद तक बढ़ गई थी कि आफताब रोज श्रद्धा की पिटाई करने लगा था. इतना ही नहीं वह उस के जिस्म पर जलती हुई सिगरेटें भी दागने लगा था जैसे श्रद्धा का शरीर एशट्रे हो. श्रद्धा हर ज्यादती सहन कर रही थी, लेकिन जाने क्यों हैवान बनते जा रहे आफताब को छोड़ने को तैयार नहीं थी. अपने साथ हो रही हैवानियत का जिक्र उस ने लक्ष्मण सहित कुछ और दोस्तों से भी किया था. उसे यह भी लगने लगा था कि आफताब उसे मार डालेगा.

और फिर 18 मई को ऐसा हो भी गया.

इस दिन भी आफताब गांजे का नशा कर आया था. दोनों में फिर इस बात को ले कर कहासुनी हुई कि मुंबई से दिल्ली तक सामान ढुलाई के 20 हजार रुपए कौन दे. इस के बाद श्रद्धा ने जैसे ही फिर शादी करने की बात कही तो आफताब कसाई बन गया. पहले तो उस ने श्रद्धा का गला घोंट कर उस की हत्या की, फिर धारदार चाकू से इत्मीनान से लाश के 35 टुकड़े किए.

इस काम में उसे 2 दिन लगे. यह कितना प्रीप्लान्ड मर्डर था इस का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि आफताब ने लाश के टुकड़े रखने के लिए 300 लिटर का फ्रिज खरीदा था और उस की पेमैंट भी श्रद्धा के पैसों से की थी. उस ने 55 हजार रुपए श्रद्धा के अकाउंट से निकाले थे. हत्या करने के बाद भी नशे के लिए वह लगातार बियर पीता रहा था.

बाथरूम में खून बहाने के बाद उस ने श्रद्धा की लाश के टुकड़े फ्रिज में करीने से जमाए और रोज 2-2 टुकड़े ले जा कर महरौली के जंगल में फेंकता रहा. यह आइडिया उसे क्राइम सीरियलों से मिला था. वह रोज फ्रिज में रखे श्रद्धा के शरीर के टुकड़े और खोपड़ी देखता था. फ्लैट में बदबू न आए इसलिए कमरों में खुशबूदार अगरबत्ती और रूम फ्रैशनर का इस्तेमाल करता था.

साफ दिख रहा है कि सभ्य समाज से साइको किलर आफताब का नाता टूट चुका था. खुद को सजा से बचाने के लिए वह जुर्म छिपाने के तमाम टोटके कर रहा था. मसलन श्रद्धा के सोशल मीडिया पर कुछ न कुछ पोस्ट करना और उस के क्रैडिट कार्ड का बिल भरना वगैरह

शामिल हैं. बेटी की तलाश अब क्यों जब कई दिनों तक श्रद्धा से बात नहीं हुई तो पिता विकास मदन वाकर उस की तलाश में निकल पड़े. पहले मुंबई फिर बैंगलुरु और फिर दिल्ली की खाक उन्होंने छानी, लेकिन श्रद्धा उन्हें कहीं नहीं मिली. मिलती भी कैसे कहीं होती तो मिलती. उन्होंने महरौली थाने में भी बेटी की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई तो पुलिस इन्वैस्टिगेशन में आफताब फंस गया. पुलिस के सामने उस का एक यह ?ाठ भी नहीं चला कि श्रद्धा तो ?ागड़ा कर घर छोड़ कर चली गई कहां गई यह मु?ो नहीं मालूम.

अहिस्ताअहिस्ता पुलिस ने उस से उंगली टेढ़ी कर सब उगलवा लिया. आफताब ने भी खुद को कानून के फंदे में फंसता देख इंग्लिश में सच उगल दिया कि यस आई किल हर. श्रद्धा के पिता को मालूम था कि वह आफताब के साथ रह रही है 2021 में वह मां की मौत के बाद घर गई थी, लेकिन बाप बेटी के बीच खटास कम नहीं हुई. विकास ने कुछ दिन पहले उसे ताना सा मारते आफताब के बारे में पूछा भी था जिस का सीधा और सच्चा जवाब श्रद्धा ने देना जरूरी नहीं सम?ा था क्योंकि पिता उसे अपनाने नहीं बल्कि अपमानित करने आए थे कि देखो हमारी बात न मानने पर तुम्हारी क्या दुर्गति हो रही है.

असल में घर छोड़ते वक्त श्रद्धा ने पूरे आत्मविश्वास से कहा था कि अब मैं 25 साल की हो गई हूं और अपने फैसले खुद ले सकती हूं. तब तक श्रद्धा को उम्मीद थी कि आज नहीं तो कल आफताब शादी के लिए राजी हो ही जाएगा.

अब हादसे के बाद विकास व्यथित हो कर कह रहे हैं कि श्रद्धा अगर उन की बात मान लेती तो यह नौबत नहीं आती. पर यह वे नहीं सोच पा रहे कि अगर वे ही श्रद्धा की बात मान लेते तो भी यह नौबत नहीं आती. बहरहाल, श्रद्धा अब इस दुनिया में नहीं और आफताब पुलिस हिरासत में रहते अपना जुर्म स्वीकार करते जो बताता रहा उसे मीडिया ने श्रद्धा और आफताब से जुड़ी हर बात को एक धमाके की तरह पेश किया ताकि लोग उन का चैनल देखते रहें. इस कांड को धारावाहिक की तरह चलाया और दिखाया गया ताकि टीआरपी बढ़े.कुछ सबक कुछ सावधानियां

श्रद्धा की गलती आफताब से प्यार करना तो कतई नहीं थी, लेकिन उस की पहली बड़ी गलती लगातार जल्दबाजी में फैसले लेने की थी जिस की कीमत उसे जान दे कर चुकानी भी पड़ी. अगर वक्त रहते वह ठंडे दिमाग से सोचती तो इस हादसे से खुद को बचा भी सकती थी. ये गलतियां आए दिन लिव इन में रहने वाले करते हैं और बाद में पछताते नजर आते हैं. खासतौर से लड़कियों को तो इन बातों पर काफी सोच सम?ाकर फैसला लेना चाहिए.

-पैसा जीने के लिए अहम है इसलिए घर से अलग होने और लिव इन में रहने के लिए खुद के पास खासे पैसों का इंतजाम कर लेना चाहिए. सेविंग में सालभर के खर्च का पैसा होना चाहिए. यह फंड अपने पार्टनर पर उजागर करना जरूरी नहीं क्योंकि कभी भी अलगाव की नौबत आ सकती है. ऐसे में जमा पूंजी ही आप का सब से बड़ा सहारा और आत्मविश्वास रहेगी.

– प्यार कितना ही ज्यादा हो अपने पार्टनर से घर खर्च की बाबत यह पहले तय कर लेना चाहिए कि कौन किस काम पर कितना खर्च करेगा.

-प्यार में अंधे हो कर फैसले लेने से बचना चाहिए. जिंदगी जज्बातों से नहीं बल्कि व्यावहारिकता से चले तो ज्यादा सफल रहती है. लिव इन की जिंदगी तो वैसे भी दुधारू तलवार होती है. पार्टनर का ?ाकाब किसी दूसरी की तरफ होता दिखे तो उस पर रोकटोक ज्यादा कारगर साबित नहीं होती यानी व्यक्तिगत स्वतंत्रता लिव इन में अहम होती है.

-पार्टनर अगर किसी नशे का आदी हो तो उस के साथ ज्यादा दिनों तक चैन से रहना मुमकिन नहीं रह जाता. अगर वह नशे की लत न छोड़ पाए तो उसे ही छोड़ देना बेहतर होता है साथ ही खुद भी नशे से बच कर रहना चाहिए.

– अगर शादी करने की शर्त पर लिव इन में रहा जा रहा है तो शादी की डेट लाइन तय होनी चाहिए. इस के बाद भी पार्टनर शादी से नानुकुर करने लगे तो उस पर ज्यादा दबाव बनाने से

कोई फायदा नहीं होता. फिर उस के सामने यह रोना रोने के भी कोई माने नहीं रह जाते कि देखो तुम्हारे लिए मैं ने सबकुछ छोड़ दिया, सबकुछ तुम्हें सौंप दिया. अगर वह शादी के अपने वादे से मुकर रहा है तो निश्चित ही वेबफा है और वेबफाओं के साथ हंसीखुशी जिंदगी नहीं गुजारी जा सकती.

-सैक्स संबंध लिव इन में आपसी रजामंदी से बनते हैं, इसलिए इन्हें एहसान की तरह पार्टनर पर न थोपें क्योंकि इस में आप की सहमति भी शामिल थी. कोई भी बौयफ्रैंड इस आधार पर शादी के लिए वाध्य नहीं होता कि उस से आप के सैक्स संबंध रहे हैं.

– लिव इन में एकदूसरे की जिंदगी में आदतों और इच्छाओं पर नियंत्रण की एक सीमा होती है जो दोनों जानते हैं. इसलिए इस लक्ष्मणरेखा को न खुद क्रौस करें और न ही पार्टनर को यह अधिकार दें.

– किसी भी मुद्दे पर विवाद हो और कुछ कोशिशों के बाद भी न सुल?ो तो बजाय कलह और तूतू, मैंमैं करने के शांति से अलग हो जाना ज्यादा अच्छा रहता है और विवाद तभी होते हैं जब दोनों एकदूसरे की आजादी में दखल देने लगते हैं, एकदूसरे के विचारों से सहमत नहीं होते और अपने हिस्से के खर्चों से बचने की कोशिश करने लगते हैं.

– किसी के भी साथ कुछ ही दिन सही गुजारने के बाद किसी भी वजह से अलग होने का फैसला भावनात्मक रूप से तकलीफदेह हो सकता है, लेकिन यकीन मानें अगर अलग न हुआ जाए तो यह काफी विस्फोटक साबित होता है जैसाकि श्रद्धा और आफताब के मामले में हुआ.

कोई मिल गया इस का यह मतलब नहीं कि बाकी लोगों से रिश्ते खत्म हो गए. लिव इन अगर शादी न हो तो एक अस्थायी व्यवस्था है, इसलिए परिवारजनों और भरोसेमंद दोस्तों से संपर्क बनाए रखना अच्छा रहता है. अपने पार्टनर की भी बात उन से करवाते रहना चाहिए.

इन की प्रौब्लम धर्म या जाति नहीं थी बल्कि उस की जड़ में पैसे की कमी थी. शादी पर दोनों की सहमति न बनने ने इस में घी डालने का काम किया. इस हादसे से जुड़े कुछ सवालों के जबाब तो विशेषज्ञ मनोविज्ञानी भी नहीं दे पाएंगे कि क्यों श्रद्धा शारीरिक और मानसिक यातनाएं सहने के बाद भी आफताब से चिपकी रही और क्यों आफताब ने उसे इतने डरावने तरीके से मार डाला, जबकि इस का अंजाम वह जानता था. साफ दिख रहा है कि चाहे लिव इन हो या शादीशुदा जिंदगी मतभेद अगर दूर न हों तो अलग हो जाना सब से बेहतर रास्ता और फैसला होता है ताकि प्यार के रास्ते में कोई हादसा न हो.

जैसी सोच वैसी जिंदगी

जीवन एक आशीर्वाद है, इसे ‘सौ बरस तक जिओ’. सौ बरस तक जीने का लक्ष्य बना कर जीने के लिए बहुत कुछ करना पड़ता है. सभी अपने लिए बेहतर जिंदगी का सपना देखते हैं.

यदि आप खुद पर विश्वास रखते हैं, अपने जीवन में होने वाली संभावनाओं के प्रति जागरूक और प्रयत्नशील हैं तो खुश रहने की खोज में आप को सफलता जरूर मिलेगी. निम्नलिखित बातें अजीब जरूर लगेंगी किंतु उन पर विचार कर के उन के रहस्य को जानने की कोशिश करें :

– हर सही निर्णय उचित कार्यवाही के अभाव में बेकार है.

– असफलता आप के लिए लाभदायक हो सकती है.

– अपनी सोच के दायरे को विस्तृत और व्यावहारिक बनाएं.

– विचारों पर नियंत्रण रखें, संवेदनशील हों किंतु सीमा के भीतर. मुद्दा बना कर छोटीछोटी बातों में तुनकमिजाजी ठीक नहीं होती है.

– उत्तम भविष्य के निर्माण के लिए व्यवस्था और कार्यप्रणाली सुनिश्चित करें.

– मन की दुविधा को खत्म करना होगा.

– अपने मन को टटोलना होगा और जानना होगा कि वह क्या चाहता है.

– जीवन में संतुलन बना कर चलना जरूरी.

– अपने जीवन के प्रति ईमानदारी बरतें.

– बाहरी लालच, दबाव में न आएं.

– दूसरों की नकल नहीं करनी चाहिए, क्योंकि दूसरों की नकल करने वाले कभी आगे नहीं बढ़ पाते.

अपनी मानसिकता को परखें और संभालें

यहां उन बातों और विचारों का उल्लेख जरूरी है जो बातें मानसिकता को नकारात्मक तरीके से प्रभावित करती हैं. अच्छी मानसिकता स्वस्थ शरीर की प्राथमिक आवश्यकता है. जिस शरीर को सारी जिंदगी हमारे साथ रहना है, उसे स्वस्थ रखना हमारा कर्तव्य है.

सही खानपान, कसरत, साफसुथरा जीवन ऐसी बातें हैं जिन की अहमियत किसी से छिपी नहीं है. बुरी आदतें और व्यसन, जैसे तंबाकू व सिगरेट का सेवन, शराब, जरूरत से ज्यादा भोजन या फास्टफूड, ड्रिंक्स आदि ने हमारी दिनचर्या में शामिल हो कर शरीर को खोखला कर दिया है.

शीघ्र ही इन बुरी आदतों को छोड़ कर जीवन को व्यवस्थित करना चाहिए. कहते हैं, ‘शुभस्य शीघ्रम’.

प्रसिद्ध दार्शनिक बर्ट्रेड रसेल का कथन है कि खुशी एक मानसिक स्थिति है. यह बाहरी चीजों से नहीं मिलती है. इसलिए मानसिक स्थिति को स्वस्थ बनाइए.

स्टिमुलस रेसपौंस सिद्धांत

मशहूर प्रबंधन विशेषज्ञ और लेखक हैरोल्ड जे लेविट का मानना है कि व्यवहार इस बात पर आधारित होता है कि आप कैसा स्टिमुलस (प्रेरक तत्त्व) देते हैं चूंकि लोगों की प्रतिक्रिया (रैसपौंस) उस के अनुसार होती है. जैसे आप एक मित्र का स्वागत मुसकरा कर करते हैं तो आप ने अच्छा स्टिमुलस दे कर उसे प्रेरित किया. प्रतिक्रिया भी अच्छी होगी. वह दोगुने उत्साह के साथ आप से मिलेगा. बुझे मन से मिलेंगे तो उस की प्रतिक्रिया भी ठंडी होगी.

इस दृष्टिकोण से मधुर संगीत सुनना, पार्टियों में शामिल होना, खेलकूद में भाग लेना, सांस्कृतिक कार्यक्रम में हिस्सेदारी, आउटिंग, पिकनिक, सिनेमा आदि खुशनुमा जिंदगी के लिए अहम भूमिका निभाते हैं.

ट्रांसैक्शनल एनालिसिस

डा. एरिक बर्न और टौमस ए हैरिस ने यह सिद्धांत व विचार दिया है जिस के अनुसार व्यवहार का विश्लेषण करने के लिए हम 3 मानसिक स्थितियों को जानने का प्रयत्न करें. ये हर मनुष्य में पाई जाने वाली स्थितियां हैं, चाइल्ड ईगो स्टेट, एडल्ट ईगो स्टेट और पेरैंट ईगो स्टेट.

जब कभी कोई आप के संपर्क में आ कर आप से बात करता है, व्यवहार करता है, तो मुख्य रूप से वह इन तीनों में से एक ईगो स्टेट का इस्तेमाल कर रहा होता है. सही व्यवहार से दूसरे व्यक्ति की समझ या प्रतिक्रिया से या तो मतभेद पैदा होता है या अंडरस्टैंडिंग. इसे समानांतर और क्रौस ट्रांसैक्शन कहते हैं.

सही प्रतिक्रिया समानांतर व्यवहार और गलत प्रतिक्रिया क्रौस ट्रांसैक्शन के परिणामस्वरूप होती है. उदाहरण के लिए आप दूसरे व्यक्ति से क्रोध में बात करते हैं तो आप पेरैंट ईगो स्टेट से दूसरे की चाइल्ड ईगो स्टेट से बात कर रहे हैं. वह भी क्रोधित प्रतिक्रिया देता है यानी वह अपनी पेरैंट ईगो स्टेट से आप की चाइल्ड ईगो स्टेट से बात करता है. परिणाम होता है झगड़ा या मिसअंडरस्टैंडिंग. इस सिद्धांत को जानने वाले उचित व्यवहार करने में सक्षम हो जाते हैं.

प्रबंधन विशेषज्ञों के विचार

मशहूर लेखक और प्रबंधन विशेषज्ञ डा. स्टीव कूपर ने अपनी पुस्तकों में पौजिटिव नजरिया अपनाने के लिए निम्नलिखित बातों का उल्लेख किया है :

– यह जरूरी है कि आप लोगों के प्रति  रचनात्मक रवैया रखें और सहानुभूतिपूर्वक व्यवहार करें.

– आप जो बात करें वह काल्पनिक न हो कर, सत्य पर आधारित हो, व्यर्थ की गौसिप न हो.

– बात करने से पहले महत्त्वपूर्ण तथ्यों और जानकारी को इकट्ठा करें और सौहार्द स्थापित करने के उद्देश्य से व्यवहार करें.

– क्रोध पर नियंत्रण रखें. क्रोध उन्नति की राह में बाधक होता है.

– जैसे आप शरीर को आराम देते हैं, मन और मस्तिष्क को भी आराम दें.

– आत्मनिर्भर, खुश और संतुष्ट रहने की आदत डालें.

– आप की बातचीत और व्यवहार का मुख्य उद्देश्य सामंजस्यपूर्ण और अंडरस्टैंडिंग पैदा करना होना चाहिए तभी ये सब बातें अर्थपूर्ण लगेंगी.

– यदि किसी की कोई बात आप को परेशान करती है तो भी पौजिटिव सोच के जरिए अपना मानसिक संतुलन बनाए रखें.

– अपने बारे में स्वस्थ विचार रखिए. दूसरों की नकारात्मकता से इसे प्रभावित न होने दें.

प्रबंधन विशेषज्ञ शिव खेड़ा के अनुसार, ‘‘यह युग ‘सरवाईवल औफ द फिटैस्ट’ का है. जो गुणी और साहसी है वही जीवित रहने के युद्ध में जीतता है.’’

मशहूर चित्रकार विन्सेंट वानगाग के इस कथन को याद रखें, ‘‘अगर हम सच्चे हैं तो हमारे साथ भलाई के सिवा कुछ हो ही नहीं सकता. भले ही हमारे हिस्से में दुख और घनघोर निराशाएं ही क्यों न आएं, जीवन को पूरे जोशोखरोश के साथ निर्बाध रूप से जीने का ही नाम जिंदगी है.’’

महिलाएं ऐसे करें अपनी सुरक्षा

आजकल समाचारपत्र और पत्रिकाएं महिलाओं के साथ बलात्कार, हत्या, छेड़खानी, यौन उत्पीड़न आदि घटनाओं की खबरों से भरी रहती हैं. विशेषरूप से नवयुवतियों, किशोरियों के लिए राह चलना मुश्किल हो गया है. कानून की पहुंच हर जगह सुलभ नहीं हो पाती और न ही उस की मदद समय से मिल पाती है. फिर ऐसी घटनाएं सामने होते हुए भी लोग तमाशबीन बने रहते हैं. ऐसे में युवतियों को अपनी सुरक्षा व संकट की स्थिति से निबटने के लिए खुद को तैयार रखना बहुत जरूरी हो गया है.

यहां कुछ ऐसी सावधानियों और सुरक्षा के उपायों के बारे में बताया जा रहा है, जिन के उपयोग से महिलाएं, युवतियां ऐसी अप्रिय स्थितियों का शिकार होने से बच सकती हैं:

लड़के व लड़कियों में मित्रता

शिक्षा के अवसर बढ़ने तथा सामाजिक परिवर्तनों के कारण आजकल युवकयुवतियों में मित्रता आम बात हो गई है. आजकल आधुनिक परिवार इस दोस्ती को बुरा भी नहीं मानते. पर ध्यान रखें कि जहां लड़कियों में मित्रता का भाव एक साथी, मददगार और निस्स्वार्थ दोस्त पाने का होता है, वहीं औसतन लड़कों का भाव सैक्स से प्रभावित होता है. ऐसी स्थिति में युवतियों के लिए युवकों से दोस्ती करने के दौरान निम्न बातों का ध्यान रखना बेहद जरूरी है:

शुरू में ही बहुत अधिक खुल जाना या अपने परिवार के बारे में सारी जानकारी देना उचित नहीं है. धीरेधीरे व सोचसमझ कर, परख कर आगे बढ़ना चाहिए.

शुरू में ही अपनी दोस्ती की सीमा साफ कर देनी चाहिए.

बहुत अच्छा होगा यदि अपने दोस्त को अपने पेरैंट्स से एक बार मिलवा दें.

अपने मित्र के साथ कभी एकांत जगह पर जाने का जोखिम न लें. और यदि जाना ही पड़े तो अपने मोबाइल से पेरैंट्स को सूचना अवश्य दे दें कि आप अमुक स्थान पर जा रही हैं और इतना समय लगेगा. फोन बौयफ्रैंड के सामने करें ताकि वह भी सुन सके. यदि आप के फोन के बाद वह गंतव्य स्थान बदलता है, तो आप को सावधान हो जाना चाहिए. कोई बहाना कर बदले स्थान पर जाना टाल दें.

अपने मोबाइल व पेरैंट्स के मोबाइल पर जीपीएस सिस्टम व रिकौर्डिंग सिस्टम अवश्य डाउनलोड करवा लें. बहुत से मोबाइलों में यह सुविधा पहले से उपलब्ध होती है.

डेटिंग पर जाते समय सावधानियां

शुरू में ही साफ कर दें कि किस स्तर तक आप सहज महसूस करेंगी.

ड्रिंक्स न लें. इस से आप की स्वयं की सुरक्षा की क्षमता पर फर्क पड़ता है. आप की सोचनेपरखने की क्षमता प्रभावित होती है.

ब्लाइंड डेट न लें तो अच्छा है. यदि लेना ही है तो अपनी फ्रैंड्स से लड़के के बारे में पूछ लें. ब्लाइंड डेट पर पब्लिक प्लेस पर ही जाएं. अनजान, सुनसान जगह व लड़के के कथित दोस्त के घर न जाएं.

ड्रिंक्स लेने के बारे में सावधानियां

पार्टी अथवा डेटिंग में कभी भी ऐसा ड्रिंक न लें जिसे कोई अनजान व्यक्ति दे या जो अलग से आप को दिया जाए. आजकल इस तरह की घटनाएं बहुत हो रही हैं, जिन में ड्रिंक्स में कोई नशीला पदार्थ मिला दिया जाता है. उस के नशे का लाभ उठा कर लोग मनमानी कर जाते हैं. ड्रिंक या तो वेटर की ट्रे से या फिर जहां सम्मिलित रखा हो वहां से लें.

अपने ड्रिंक को अकेला न रखें. यदि थोड़ी देर के लिए कहीं रखना ही पड़े तो ऐसी जगह रखें कि आप की निगाह में रहे अथवा किसी मित्र अथवा परिचति व्यक्ति को दे कर जाएं.

ड्रिंक में ड्रग्स का स्वाद पहचाना नहीं जा सकता. पर इन के लक्षणों को जरूर जाना जा सकता है. मसलन:

एक प्रकार के ड्रग के सामान्य लक्षण मांसपेशियों में कमजोरी, आवाज का लड़खड़ाना, हाथपांवों की गतिविधियों से नियंत्रण हटना यानी हाथ कहां जा रहा है, पैर किधर पड़ रहा है, इस पर से नियंत्रण खोना और सोचने की क्षमता का प्रभावित होना आदि होते हैं.

दूसरे प्रकार के ड्रग से उनींदापन, सिर भारी होना, मितली सी आना, चक्कर आना, तेजी से नींद आने लगना आदि लक्षण प्रकट होते हैं.

कभीकभी लोग कोल्डड्रिंक में ऐस्प्रिन या नींद लाने वाली गोलियां भी पीस कर मिला देते हैं. यह ड्रिंक बेहोशी की ओर ले जाता है.

लक्षण इसलिए बताए जा रहे हैं ताकि आप को जो ड्रिंक दिया जाए आप उस के हलके और थोड़ाथोड़ा रुक कर सिप लें. यदि आप को स्वाद में जरा सा भी चेंज महसूस हो या ऊपर बताए गए लक्षणों में से कोई भी लक्षण महसूस करें तो तुरंत ड्रिंक छोड़ दें और किसी सुरक्षित स्थान जहां ज्यादा लोग हों जाएं. किसी शुभचिंतक को बता दें ताकि जरूरत होने पर वह आप को डाक्टर के पास ले जा सके.

आप पानी अधिक पिएं. यदि उलटियां आती हैं तो किसी के साथ बाथरूम जा कर करें. तालू में उंगली से मालिश करें.

सड़क पर चलते समय सावधानियां

सदैव ऐसा रास्ता चुनें जिस पर हर समय लोगों की आवाजाही रहती हो, भले ही यह रास्ता थोड़ा लंबा क्यों न हो. शौर्टकट के चक्कर में सुनसान रास्ता न चुनें.

नाइट पार्टी में ज्यादा देर तक न रुकें.

यदि हो सके तो किसी रिश्तेदार, साथी, महिला को ले लें.

यदि आप को कभी ऐसा लगे कि एकाएक आप के आसपास लोगों का घेरा तंग हो रहा है या कुछ लोग अनापेक्षित रूप से पास आते जा रहे हैं, तो आप का उस जगह से हटना उचित रहेगा.

रात्रि में वाहन का चुनाव

प्राइवेट बस या जिस वाहन में बहुत कम यात्री बैठे हों उस में यात्रा न करें.

बस ज्यादातर बसस्टैंड से ही पकड़ें. रास्ते में कोई वाहन वाला आप को बैठने के लिए रास्ते में कहे तो भूल कर भी न बैठें.

यदि किसी टैक्सी या औटो में रात में बैठ रही हैं और अकेली हैं तो अपने मोबाइल से घर में फोन करें व वाहन का नंबर अवश्य बता दें और फोन पर जोरजोर से बोलें ताकि वाहन चालक भी सुन ले.

बसअड्डा में प्रीपेड वाहन मिलते हैं. इन्हें लेते समय रिकौर्ड में यात्री का नामपता, मोबाइल नंबर व वाहन नंबर दर्ज कर लिया जाता है.

इस के अतिरिक्त कैब सर्विस भी होती है, जो किलोमीटर के हिसाब से चार्ज करती हैं. कंपनी आप का नाम पता, फोन नंबर आदि सब नोट कर के आप को गाड़ी भेजती है और आप को गाड़ी का नंबर, ड्राइवर का नाम, मोबाइल नंबर आदि भी बताती है.

नाइट पार्टी में जाने के लिए बेहतर तो यह होगा यदि आप का अपना वाहन हो.

चलती गाड़ी में खींचने की कोशिश

ऐसा कुछ होने पर सब से पहले तो आप को यह ध्यान रखना है कि आप को अपना होशोहवास नहीं खोना है. आमतौर पर ऐसे लोग इसलिए कामयाब हो जाते हैं क्योंकि लड़कियां बहुत घबरा जाती हैं, अपना होशोहवास खो देती हैं. तब उन के हाथपांव काम नहीं करते. ऐसी स्थिति आने पर आप को 3 चीजें साथसाथ करनी चाहिए. पहली, मदद के लिए जितनी जोर से चिल्ला सकें चिल्लाएं, दूसरी, जितना प्रतिरोध हाथपांव, नाखूनों से कर सकें करें और तीसरी, अपने पैर को गाड़ी की बौडी से ऐसे अड़ा दें कि उन्हें आप को खींचने में कठिनाई हो.

सब से जरूरी यह है कि आप को जो भी 2-3 लोग खींच रहे हों उन में सब से निकट वाले को आप घायल कर दें. पैर से उस के अंग पर प्रहार करें, नाखूनों से उस के चेहरे विशेषकर आंखों पर आक्रमण करें, सैंडल की हील को पैर पर मारें.

आजकल युवतियों की सुरक्षा के लिए कई उपकरण भी उपलब्ध हैं, जिन से आप विकट स्थिति उत्पन्न होने पर अपने को सुरक्षित रख सकती हैं. इन में कुछ प्रमुख हैं:

डिस्टैंस अलार्म: आप के ऊपर खतरा आने पर अलार्म बहुत तेज आवाज में बजने लगता है. 100-200 गज के दायरे में इस की आवाज गूंजती है. इस से अपराधी दहशत में आ कर वहां से भागने की कोशिश करेगा क्योंकि अलार्म से बहुत लोगों को ध्यान आप की ओर आकर्षित होगा. लोग आप की सुरक्षा के लिए आप की ओर दौड़ना शुरू कर सकते हैं.

गन: यह छोटी गन (पिस्टल टाइप) है, जिस से सामने वाला बिजली का तेज करंट खाता है तथा वह कुछ देर (15 मिनट से ले कर आधे घंटे के लिए) तक निष्क्रिय हो जाता है. इस से आप को उस जगह से सुरक्षित हट जाने का अवसर मिलता है.

स्प्रे: ये कई प्रकार के होते हैं. बटन दबाने पर निकलने वाला स्प्रे बदमाशी करने वाले को थोड़ी देर के लिए निष्क्रिय कर देता है. उस के हाथपांव सुन्न हो जाते हैं. दूसरे प्रकार का स्प्रे जिस पर डाला जाए उसे थोड़ी देर के लिए अंधा कर देता है. इस में कैमिकल स्प्रे भी है और पिपर (कालीमिर्च) जैसी स्प्रे भी.

सैक्स पर चर्चा: वर्जित क्यों

महानगर में रहने वाली अधेड़ मानसी मध्यवर्गीय गृहिणी है. अपने फक्कड़ प्रोफैसर पति की सीमित आमदनी से उस की और घर की जरूरतें तो जैसेतैसे पूरी हो जाती हैं, लेकिन इच्छाएं और शौक पूरे नहीं होते. पैसों की तंगी अकसर इतनी रहती है कि वह अपनी 8 वर्षीय बेटी के स्कूली जूते भी फटने पर तुरंत नहीं खरीद पाती. इस के बाद भी उसे अपने सीधेसादे पति से कोई शिकवाशिकायत नहीं.

मगर मन में जो असंतुष्टियां पनप रही थीं वे उस वक्त उजागर होती हैं जब अपनी एक परिचित के जरीए वह पैसा कमाने की गरज से शौकिया देह व्यापार करने लगती है. सोचने में यह बेहद अटपटी सी बात लगती है कि सिंदूर से लंबी सी मांग भरने वाली एक भारतीय नारी यह तथाकथित गंदगी भरा रास्ता पैसा कमाने के लिए चुनेगी. वह भी खासतौर से 90 के दशक में जब सामाजिक खुलापन, उदारता या आजादी आज के मुकाबले 25 साल पिछड़े ही थे.

1997 में मशहूर निर्मातानिर्देशक बासु भट्टाचार्य ने एक ऐसी बात ‘आस्था’ फिल्म के जरीए कहने का जोखिम उठाया था जिसे उम्मीद के मुताबिक दर्शकों ने पसंद नहीं किया था, लेकिन कोई बात तो थी ‘आस्था’ में जो लोग उसे एकदम खारिज भी नहीं कर पाए थे और न ही असहमत हो पाए थे.

मानसी की भूमिका में रेखा ने जितनी गजब की ऐक्टिंग की थी उतनी ही अमर के रोल में ओम पुरी ने भी की थी. अभावों से जू?ाते मिडल क्लास पतिपत्नी के तमाम तरह के द्वंद्व उजागर करती इस फिल्म की एक अहम बात सैक्स उन्मुक्तता भी थी. मिस्टर दत्त के रोल में नवीन निश्छल थे जो मानसी के ग्राहक हैं. उन से मानसी की आर्थिक जरूरतें तो पूरी होने लगती हैं, लेकिन हैरतअंगेज तरीके से सैक्स संबंधी जरूरतें कई जिज्ञासाओं के साथ सिर उठाने लगती हैं. असल में दत्त सैक्स के मामले में काफी प्रयोगवादी और सब्र वाला मर्द है. वह मानसी पर भूखे भेडि़ए की तरह टूटता या ?ापटता नहीं है बल्कि बेहद कलात्मक ढंग से सैक्स करता है.

सैक्स पर चुप्पी क्यों

दत्त मानसी को नख से ले कर शिख तक चूमता है, उसे इत्मीनान से उत्तेजित करता है तो सैक्स सुख के समंदर में गोते लगाती मानसी को एहसास होता है कि इस मामले में अमर परंपरावादी और अनाड़ी है. लिहाजा वह दत्त से जो सीखती है उसे अमर पर आजमाने लगती है, जिसे इस तरह के लंबे फोर प्ले वाले सैक्स का कोई खास तजरबा नहीं है. लिहाजा आनंद के क्षणों में वह पत्नी से निहायत भोलेपन और मासूमियत से पूछ बैठता है कि तुम ने ये सब कहां से सीखा. मानसी इस सवाल को टाल जाती है और फिल्म इसी तरह आगे बढ़ती रहती है.

तब फिल्म समीक्षक और बुद्धिजीवी दर्शक यह तय नहीं कर पाए थे कि आखिर इस फिल्म के जरीए बासु भट्टाचार्य असल में कहना या बताना क्या चाह रहे हैं. एक पत्नी की सैक्स सीमाएं और दबी असंतुष्टि या एक गृहिणी का पार्टटाइम कौलगर्ल बन जाना. मुमकिन है ये दोनों ही बातें रही हों, लेकिन यह पहली फिल्म थी जिस में यह प्रमुखता से बताया गया कि एक पत्नी की भी सैक्स संबंधी अपनी चौइस और इच्छाएं होती हैं जो अकसर अव्यक्त रह जाती हैं. इस की अपनी पारिवारिक और सामाजिक वजहें भी हैं जो आखिरकर साबित यह करती हैं कि औरत सैक्स के मामले में भी शोषित और पुरुष पर निर्भर है.

समाज में गुनाह है

दौर कहने को ही नारी सशक्तीकरण का नहीं है बल्कि इस दिशा में बीते सालों में थोड़ा कुछ हुआ भी है. महिलाओं को अधिकार मिले हैं. मिले क्या हैं उन्होंने अपने दम पर हासिल किए हैं, वे अपने पैरों पर खड़ी हुई हैं, जायदाद और अपनी अलग पहचान भी बना रही हैं, अपने फैसले भी खुद ले रही हैं, लेकिन ये सब आधाअधूरा और एक वर्ग विशेष तक सीमित है जिस में सैक्स की चर्चा तक नहीं होती गोया कि वर्जनाओं से भरे समाज में यह अभी भी गुनाह है.

भोपाल की 55 वर्षीय एक सरकारी अधिकारी नाम न छापने की शर्त पर बताती हैं कि उन की शादी को 28 साल हो गए हैं. अब तो बेटी की भी शादी होने वाली है, लेकिन इन सालों में वे कभी पति को खुल कर अपनी सैक्स इच्छाएं नहीं बता पाईं कि उन्हें किस तरह से सैक्स पसंद है और आनंद देता है.

इन साहिबा को पति से कोई शिकायत नहीं है जो इन्हें बहुत चाहते हैं पर सैक्स के मामले में कुछ ऐसा हुआ कि अकसर सबकुछ पति की मरजी से हुआ और आज भी यही हालत है. ?ि?ाक की मारी औरत तो क्या इन की हालत मानसी जैसी है? तो कहा जा सकता है कि कम से कम पैसों के मामले में तो नहीं है, लेकिन इन्हें बिना किसी बाहरी जानकारी या दखल के यह एहसास तो है कि जिंदगी भले अच्छीखासी गुजरी पर कहीं एक अधूरापन रह गया जिसे पूरा करने के लिए न तो इन्होंने पहल की और न ही पति ने जरूरत महसूसी. इन्हें इस बात का डर था कि अगर सैक्स संबंधी इच्छा जताई तो पति इसे अन्यथा ले सकता है और शक भी कर सकता है.

वह अमर की तरह सहज भाव से नहीं पूछेगा कि ये सब कहां से सीखा बल्कि ताना मार सकता है कि तुम तो बिना मेरे बताए बहुत ऐक्सपर्ट हो गई हो. कोई भी पत्नी अपने वैवाहिक जीवन में इस तरह की कटुता नहीं चाहती इसलिए मशीनी ढंग के सैक्स का शिकार होती रहती है जिसे कहने वाले ड्यूटी सैक्स भी कहते हैं. इसे आनंददायक कहने की कोई वजह नहीं.

समाज की ज्यादती का शिकार तय है ऐसी लगभग 90% महिलाएं रूढि़वादी और सैक्स के मामले में भी पूर्वाग्रही समाज की ज्यादती का शिकार हैं जो महिलाओं को सैक्स संतुष्टि का उन का हक नहीं देता ठीक वैसे ही जैसे कभी शादी, तलाक, जायदाद और वोटिंग तक का नहीं देता था. सैक्स संतुष्टि पर कभी खुल कर बात न होने देना पुरुषों के दबदबे वाले समाज का एक और उदाहरण और मनमानी रही है जो सशक्तीकरण के फैशन और अनुष्ठान से कतई मेल नहीं खाती.

अधिकांश पुरुष भी सैक्स पोर्न फिल्मों से सीखते हैं जिन का सार यह होता है कि महिला आक्रामक और ताबड़तोड़ सैक्स से संतुष्ट होती है इस गलत धारणा का किसी मंच से कोई खंडन आज तक नहीं हुआ.

धर्म की तरह सैक्स भी निहायत जाति मसला है, फर्क इतना है कि धर्म का विस्तार किसी सुबूत का मुहताज नहीं लेकिन सैक्स का सिकुड़ापन कभी विस्तार ले पाएगा ऐसा लगता नहीं. कोई महिला अगर इस बाबत खुल कर बात करेगी तो उसे बिना किसी लिहाज के चालू, बेशर्म और चरित्रहीन तक करार दिया जा सकता है, जबकि दूसरे मामलों पर बोलने में पुरुषों के पास सिवा खामोश रह जाने या सम?ाता कर लेने के कोई और रास्ता नहीं रह जाता. सैक्स पर हल्ले का मकसद सच यह भी है कि तरक्की और अधुनिकता के तमाम दावों के बाद भी परिवारों और समाज में सैक्स पर चर्चा वर्जित है और अगर कोई लीक से हट कर कायदे की या नई पीढ़ी के लिए शिक्षाप्रद बात करता भी है तो उसे समाज संस्कृति और धर्म का दुश्मन घोषित करते हुए लोग उस पर मधुमक्खियों की तरह टूट पड़ते हैं.

इस की ताजी मिसाल सांसद और अपने दौर की कामयाब अभिनेत्री जया बच्चन हैं जिन्होंने एक शो के जरीए अपनी नातिन नव्या नवेली नंदा से यह कहा कि मु?ो कोई समस्या नहीं है अगर तुम्हारे बच्चे बिना शादी के हों. इतना कहना भर था कि भक्तों की नजर में वे धर्म और संस्कृति को नष्टभ्रष्ट करने वाली हो गईं.

सोशल मीडिया पर ऐसे वीडियोज की बाढ़ आ गई जिन में उन्हें पानी पीपी कर कोसा गया. ये सनातनी लोग कुंती और कर्ण जैसे दर्जनों पौराणिक किस्से और उदाहरण भूल गए जिन में कुंआरी मां बनना आम बात थी. यही बात महिलाओं की सैक्स इच्छाओं पर लागू होती है जिस के तहत उन का अपनी इच्छा जताना एक तरह की घोषित निर्लज्जता है. उन्हें बचपन से ही सिखा दिया जाता है कि सैक्स बुरी बात है और पति के अलावा किसी और से सैक्स करना तो और भी बुरी बात है. यह भी मान लिया गया है कि सैक्स की पहल करना और उस के तरीके तय करना मर्दों की जिम्मेदारी है, फिर चाहे महिला इस से संतुष्ट हो या न हो पर संतुष्टि प्रदर्शित करना ही उस का धर्म है

बराबरी की बात और दर्जा सशक्तीकरण का अहम हिस्सा है, लेकिन सैक्स में इस का न मिलना महिलाओं के पिछड़ेपन की बड़ी वजह है जिस के चलते उन में अपेक्षित आत्मविश्वास नहीं आ पाता. नए कपल्स एक हद तक इस का अपवाद कहे जा सकते हैं, लेकिन उन की संख्या अभी इतनी नहीं है कि किसी क्रांति का जनक उसे कहा जा सके.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें