बच्चों में ऐसे डालें हैंडवौश की आदत

बच्चों के नन्हें-नन्हें हाथ जहां प्यारे-प्यारे से लगते हैं, वहीं वे जर्म से भी भरे होते हैं, क्योंकि वे अकसर मिट्टी में खेलते हैं. उन का दिमाग हर समय शरारतों में लगा रहता है. ऐसे में उन्हें मस्ती की इस उम्र में शरारतें करने से तो नहीं रोक सकते लेकिन उन्हें हैंडवौश का महत्त्व जरूर बता सकते हैं. अकसर संक्रामक रोग का कारण गंदगी व हाथ नहीं धोना ही होता है और इस कारण कई बच्चे बीमार व मृत्यु के शिकार हो जाते हैं. ऐसे में हैंडवौश की हैबिट इस अनुपात को आधा करने में सहायक हो सकती है.

हाथों में सब से ज्यादा जर्म

हाथों में 2 तरह के रोगाणु होते हैं, जिन्हें सूक्ष्मजीव भी कहा जाता है. एक रैजिडैंट और दूसरे ट्रैजेंट सूक्ष्मजीव. जो रैजिडैंट सूक्ष्मजीव होते है, वे स्वस्थ लोगों में बीमारियों का कारण नहीं बनते हैं, क्योंकि वे हमेशा हाथों में रहते हैं और हैंडवौश से भी नहीं हटते, जबकि ट्रैजेंट सूक्ष्मजीव आतेजाते रहते हैं. ये खांसने, छींकने, दूषित भोजन को छूने से हाथों पर स्थानांतरित हो जाते हैं. फिर जब एक बार कीटाणु हाथों को दूषित कर देते हैं तो संक्रमण का कारण बनते हैं. इसलिए हाथों को साबुन से धोना बहुत जरूरी है.

ये भी पढ़ें- 12 टिप्स: किचन को बनाएं जर्म फ्री

न्यूजीलैंड में हुई एक रिसर्च के अनुसार, टौयलेट के बाद 92% महिलाएं व 81% पुरुष ही साबुन का इस्तेमाल करते हैं, जबकि यूएस की रिसर्च के अनुसार सिर्फ 63% लोग ही टौयलेट के बाद हाथ धोते हैं. उन में भी सिर्फ 2% ही साबुन का इस्तेमाल करते हैं. ऐसे में जरूरी है कि आप पानी व साबुन से हैंडवौश की आदत डालें ताकि आप के बच्चे भी आप को देख कर यह सीखें. क्या हैं ट्रिक्स, जो बच्चों में हैंडवौश की आदत डालेंगे:

फन विद लर्न

आप अपने बच्चों को सिखाएं कि जब भी बाहर से आएं, टौयलेट यूज करें. जब भी किसी ऐनिमल को टच करें, छींकें, खांसें तब हैंडवौश जरूर करें वरना कीटाणु बीमार कर देंगे. आप भी उन के इस रूटीन में भागीदार बनें. उन से कहें कि जो जल्दी हैंडवौश करेगा वही विनर बनेगा. अब देखते हैं तुम या मैं, यह फन विद लर्न गेम उन में हैंडवौश की हैबिट को डैवलप करने का काम करेगा.

स्मार्ट स्टूल्स

कई घरों में हैंडवौश करने की जगह बहुत ऊंची होती है, जिस कारण बच्चे बारबार उस जगह जाना पसंद नहीं करते. ऐसे में आप उन के लिए स्मार्ट सा स्टूल रखें, जिस पर चढ़ना उन्हें अच्छा लगे और वे उस पर चढ़ कर हैंडवौश करें. साथ ही टैप्स में स्मार्ट किड्स फौसिट ऐक्सटैंड, जो बर्ड्स की शेप के आते हैं लगाएं. ये सब चीजें बच्चों को अट्रैक्ट करने के साथसाथ उन में हैंडवौश की आदत डालने का काम करती हैं.
जर्म फ्री हैंड्स

‘जर्म मेक मी सिक’ क्या तुम चाहते हो कि तुम्हें जर्म बीमार कर दें और तुम उस कारण न तो स्कूल जा पाओ और न ही दोस्तों के साथ खेल पाओ? नहीं न, तो फिर जब भी हैंडवौश करो तो सिर्फ पानी से ही नहीं, बल्कि साबुन से रगड़रगड़ कर अपनी उंगलियों, हथेलियों व अंगूठों को अच्छी तरह साफ करो. इस से तुम्हें जर्म फ्री हैंड्स मिलेंगे.

ये भी पढ़ें- घर को महकाएं कुछ ऐसे

टीच बाई ग्लिटर मैथड

अगर आप के बच्चे अच्छी तरह हैंडवौश नहीं करते हैं तो आप उन्हें ग्लिटर के माध्यम से जर्म के बारे में समझाएं. इस के लिए आप उन के हाथों पर ग्लिटर डालें, फिर थोड़े से पानी से हैंडवौश कर के टौवेल से पोंछने को कहें. इस के बाद भी उन के हाथों में ग्लिटर रह जाएगा, तब आप उन्हें समझाएं कि अगर आप अच्छी तरह हैंडवौश नहीं करेंगे तो जर्म आप के हाथों में रह कर के आप को बीमार कर देंगे.

फन सौंग्स से डालें आदत

अपने बच्चों में फन सौंग्स गा कर हैंडवौश की हैबिट डालें. जैसे जब भी वे खाना खाने बैठें या फिर टौयलेट से आएं तो उन्हें हैंडवौश कराते हुए कहें,

वौश योर हैंड्स, वौश योर हैंड्स

बिफोर यू ईट, बिफोर यू ईट,

वौश विद सोप ऐंड वाटर, वौश विद सोप ऐंड वाटर,

योर हैंड्स आर क्लीन, यू आर रैडी टू ईट,

वौश योर हैंड्स, वौश योर हैंड्स,

आफ्टर टौयलेट यूज, वौश योर हैंड्स विद सोप ऐंड वाटर,

टू कीप डिजीज अवे.

यकीन मानिए ये ट्रिक आप के बहुत

काम आएंगे.

अट्रैक्टिव सोप डिस्पैंसर

बच्चे अट्रैक्टिव चीजें देख कर खुश होते हैं. ऐसे में आप उन के लिए अट्रैक्टिव हैंडवौश डिस्पैंसर लाएं, जिसे देख कर उन का बार-बार हैंडवौश करने को मन करेगा.

ये भी पढ़ें- 6 टिप्स: मौनसून में रखें घर का खास ख्याल

किराए के घर में इन 4 चीजों से बचना है जरूरी

अपने घर के लिए सुविधाएं जुटाने से पहले ज्यादा हमें सोच-विचार की जरूरत नहीं होती, लेकिन अगर किराए के घर में रह रहे हैं, तो कोई भी सामान लेने से पहले सोचना जरूरी होता है. किराए के घर में अगर समझदारी के साथ सुविधाएं जुटाई जाएं, तो शिफटिंग के समय आने वाली परेशानियों से बचा जा सकता है. जरूरी नहीं कि हर घर एक जैसा ही हो, इसलिए फर्नीचर से लेकर इलैक्ट्रौनिक सामान तक सब कुछ ऐसा होना चाहिए कि किसी भी घर में फिट हो सके. साथ ही शिफटिंग के टाइम पर आप टूटफूट का खतरे से बच सकें.

1. सजावटी सामान से करें परहेज

झूमर, लाइट्स एवं कंदील आदि बहुत नाजुक होते हैं. घर को सजाने के लिए इस सामान से परहेज करें, क्योंकि शिफटिंग के समय इस के टूटने का खतरा सब से ज्यादा रहता है. कांच या चीनीमिट्टी के गमलों के बजाय मिट्टी के गमले लेना उचित रहता है, क्योंकि ये जल्दी टूटते नहीं और अगर टूट भी जाएं तो ज्यादा नुकसान नहीं होता.

ये भी पढ़ें- किचन की सफाई के लिए नींबू है बेस्ट

2. बिजली के उपकरण का भी रखें ध्यान

फ्रिज, टीवी, कंप्यूटर, पंखा व कूलर जैसे बिजली के आवश्यक उपकरणों के अलावा अन्य सामान, जैसे ए.सी., माइक्रोवेव, गीजर इत्यादि बहुत आवश्यकता पड़ने पर ही खरीदें. शिफ्ंिटग के दौरान ये महंगे उपकरण जल्दी खराब होते हैं और इन को ठीक करवाने में पैसा भी ज्यादा खर्च करना पड़ता है. इस के अलावा बिजली का बिल बढ़ाने में भी इन उपकरणों का खासा योगदान होता है.

3. सोच समझकर ही लें वाहन

अपना घर लेने तक अगर बहुत ज्यादा आवश्यकता न हो तो चौपहिया वाहन लेने से परहेज करें, क्योंकि अधिकतर किराए के मकानों में पार्किंग की सुविधा नहीं होती और पब्लिक पार्किंग पहले से ही बुक होती है. ऐसे में अगर आप वाहन गली में या सड़क के किनारे खड़ा करेंगे, तो वह गैरकानूनी होने के साथसाथ असुरक्षित भी रहेगा.

4. पालतू जानवर का शौक है बेकार

किराए के घर में पालतू जानवर रखने का शौक न ही पालें तो बेहतर होगा, क्योंकि अधिकतर घरमालिक इस की इजाजत नहीं देते. इस के अलावा दूसरा सब से बड़ा कारण यह है कि अगर आप को घर ग्राउंड फ्लोर के बजाय ऊपर की किसी मंजिल पर मिला है, तो पालतू जानवर को समयसमय पर बाहर ले जाना आप के लिए सिरदर्द बन सकता है. इसीलिए किराए के घर में जाने से पहले इन बातों का ध्यान जरूर रखें. ताकि बिना परेशानी किराए के घर में सुकून से रहें.

ये भी पढ़ें- ऐसे करें इलैक्ट्रौनिक चिमनी की केयर

लड़कियां कहां करती हैं खर्च

पहनावे में ब्रैंडेड जींस, नाभि दिखाता टौप, पांव में डै्रस से मैच करती जूतियां, कानों में बड़े डैंगलर्स, होंठों पर रंग बदलती लिपस्टिक, हाथ में महंगा लेटैस्ट डिजाइन का मोबाइल और फिटनैस निखारने के लिए स्लीमिंग सैंटर, ब्यूटीपार्लर और फिटनैस सैंटर की मैंबरशिप. एक मौड कहलाने वाली लड़की का यह साजोसामान है. लुक्स निखारने के लिए अब छोटे शहरों की लड़कियां भी भारीभरकम खर्च करने लगी हैं. ऐसे खर्च के लिए लड़कियां हर माह कम से कम 6 से 8 हजार रुपए तक का बजट रखती हैं.

अब स्कूल और कालेज के समय से ही ये खर्च बढ़ रहे हैं. नौकरी करने वाली लड़कियों के लिए तो ऐसे खर्च उन की मजबूरी है. निजी नौकरियों में लड़कियों की बढ़ती मांग के कारण यह जरूरी भी हो गया है. पहले नौकरी करने वाली लड़की अपने काम को ही प्राथमिकता देती थी. आज के समय में उस को काम के साथसाथ खुद को प्रैजेंटेबल रखना होता है जिस के लिए उसे टिपटौप बन कर रहना पड़ता है.

कई विज्ञापन और फैशन शो में काम कर रही कानपुर की रहने वाली शिखा शुक्ला कहती हैं, ‘‘टिपटौप रहना समय और काम दोनों की जरूरत बन गया है. अब इस के बिना काम नहीं चलता है. अपने लुक्स को निखारने के लिए सब से ज्यादा खर्च कौस्मैटिक पर करना पड़ता है. कौस्मैटिक जितनी अच्छी क्वालिटी का होता है उतना ही महंगा होता है. यह महंगा इसलिए इस्तेमाल किया जाता है क्योंकि खराब कौस्मैटिक का त्वचा पर बुरा प्रभाव पड़ता है.’’ शिखा मानती है, ‘‘हर माह कम से कम 2 बार लड़की को ब्यूटीपार्लर जरूर जाना पड़ता है जहां पर उस की पूरी बौडी का ट्रीटमैंट एकसाथ हो जाए.’’

जागरूकता जरूरी

लड़कियों के पहनावे को ले कर अब परिवार पहले की तरह से टीकाटिप्पणी नहीं करते हैं. वे लड़कियों की जरूरत को देखते हुए सहयोग भी कर करते हैं. आज के समय में औनलाइन शौपिंग के जरिए लड़कियां किफायती शौपिंग करने लगी हैं. ऐसे में वे अपने बजट के हिसाब से स्मार्ट शौपिंग करती हैं.

ये भी पढ़ें- अगर आप भी हैं पेइंग गेस्ट तो ऐसे सजाएं अपना घर

स्किन रोग विशेषज्ञ डाक्टर पंकज गुप्ता कहते हैं, ‘‘सुंदर दिखने के लिए टीनएज से ही जो लड़कियां कौस्मैटिक का जरूरत से ज्यादा प्रयोग कर रही हैं वह ठीक नहीं है. इस का स्किन पर खराब प्रभाव पड़ता है. कई बार स्किन इतनी खराब हो जाती है कि बाद में वह किसी भी तरह से ठीक नहीं हो पाती. ऐसे में लड़कियों को यह बात समझने की जरूरत है.’’

लड़कियों के खर्च पर देखने वाली बात यह है भी होती है कि अगर लड़की जरूरत से ज्यादा खर्च कर रही हो तो उस को देखें और जानने की कोशिश करें कि वे इतना सारा खर्च कैसे कर रही हैं. आज के दौर में लड़कियों का शोषण करने वाले भी कम नहीं हैं. लालच दे कर लोग लड़कियों को फंसा लेते हैं जो बाद में बहुत नुकसानदेय हो जाता है. अभी भी समाज लड़कियों को ले कर बहुत उदार नहीं हैं. लड़कियों को हर फैसला बहुत सोचसमझ कर करना चाहिए. बड़ी होती बेटी को अच्छाबुरा समझाने का काम एक समझदार मां का होता है. लड़की को अच्छेबुरे का पता चल जाता है तो वह आने वाली परेशानियों से बच सकती है.

शुरुआत में लड़कियों को यह समझ नहीं आता कि कोई उन की मदद क्यों कर रहा? उन को मुफ्त में गिफ्ट क्यों दे रहा? जब एक बार लड़की उन के जाल में फंस जाती है तो वे उन का शोषण करते हैं. लड़कियों को यह बात समझनी जरूरी है कि कोई भी काम मुफ्त में नहीं होता है. ऐसे में कोई गिफ्ट उन को भारी न पड़े, यह सोचना जरूरी है.

कभी भी अपने पेरैंट्स से कोई बात न छिपाएं. लड़कियों के लिए मुसीबत तभी से शुरू होती है जब वे अपने पेरैंट्स से बात छिपाने लगती हैं. अपने ऊपर खर्च करें पर खर्च के लिए ऐसे किसी की मदद न लें जो बाद में मुसीबत बन जाए.

कहां कैसे खर्च

प्रति माह करती हैं लड़कियां  (रुपए में)

मोबाइल फोन  500

कौस्मैटिक    500-1,000

ब्यूटीपार्लर    2,000-3,000

स्लिमिंग सैंटर 1,000-2,000

पोशाक और एसेसरीज 1,000-2,000

कन्वैंस 600-800

सुंदरता के साथ फिटनैस जरूरी

आप सुंदर और ग्लैमरस कपडे़ तभी पहन सकते हैं जब आप की बौडी का शेप ठीक रहे. इस के लिए फिटनैंस सैंटर या जिम जाना बहुत जरूरी होता है. अच्छे फिटनैस सैंटर की सालाना सदस्यता लेना ठीक रहता है. सालाना सदस्यता से यह काम काफी किफायती दाम में पड़ जाता है. आज के जमाने में अपने को दूसरे पर भारी साबित करने के लिए गुड लुक्स और स्मार्ट होना जरूरी होता है. इस के लिए अगर कुछ पैसा खर्च करना पड़ता है तो कोई खराब बात नहीं है.

आखिर लड़कियां नौकरी कर के जो पैसा कमा रही हैं उसे अपने में क्यों न खर्च करें. आप हर तरह के फैशनेबल कपडे़ तभी पहन सकती हैं जब आप की बौड़ी फिट हो.

ये भी पढ़ें- 5 टिप्स: कुछ ऐसे तेज करें चाकू की धार

कई सौंदर्य प्रतियोगिताएं जीत चुकी अनीता सिंह कहती हैं, ‘‘लड़कियों को पहले अपने खर्चो के लिए घर में पैसा मांगना पड़ता था जिस से उन को घर वालों की डांट भी सहनी पड़ती थी. अब लड़कियां अपने पैसे खर्च कर रही हैं तो घर के लोग भी ज्यादा टीकाटिप्पणी नहीं करते हैं. लड़कियां सब से ज्यादा खर्च अपने मोबाइल और पोशाकों पर करती हैं. पहले लोग सिंपल लिविंग और हाई थिंकिंग पर चलते थे पर आज हाई लिविंग और हाई थिंकिंग की बात होती है. मोबाइल अब केवल बात करने के लिए ही नहीं रह गए, उन में तमाम अच्छे फीचर्स आ गए हैं. ऐसे में हर साल नया मोबाइल जरूरी हो गया है.’’

जो लड़कियां पढ़ रही हैं उन की भी पूरी कोशिश रहती है कि वह पार्टटाइम जौब कर अपने खर्च पूरा कर सकें. इस तरह की लड़कियां भी चाहती हैं कि उन का पहनावा ऐसा रहे जिस से लोग उन को नोटिस करें. लड़कियों को एक ही चीज रोज देखना और पहनना पसंद नहीं होता है. वे बदलाव चाहती हैं. बीकौम कर चुकी एक निजी कंपनी में काम कर रहीं स्वाति गुप्ता इस बदलाव को ही पर्सनल ग्रूमिंग मानती हैं. लुक्स निखारने में लगीं ये लड़कियां पहनावे, मेकअप और कौस्मैटिक के अलावा बातचीत करने और चलनेफिरने में भी बदलाव लाना चाहती हैं. लड़कियां मानती हैं कि जमाना आगे बढ़ रहा है. कुछ जरा सी कमी रह जाती है तो लगता है जैसे कहीं पिछड़ापन न रह जाए. ऐसे में वे जमाने के साथ कदम से कदम मिला कर चलना चाहती हैं.

फैशन का बदलता ट्रैंड

लुक्स निखारने में जुटीं लड़कियों का मानना है कि इस के लिए पहरावा आधुनिक होना बहुत जरूरी होता है. लेटैस्ट ट्रैंड के बारे में जानकारी देते हुए अभिनेत्री गरिमा रस्तोगी कहती हैं, ‘‘नए टैं्रड में स्कर्ट का जोर तेजी पर है. दूसरे नंबर पर जींस पैंट और फिर सब से नीचे डिजाइनर सलवार सूट का नंबर आता है. अब स्कर्ट के तमाम ऐसे डिजाइन सामने आ गए हैं जिन को पहन कर औफिस भी जाया जा सकता है. शहर में कहीं और जाना हो तो भी जा सकते हैं. स्कर्ट में जो फैब्रिक इस्तेमाल किया जाता है वह भी कुछ इस तरह का होता है कि जो आप को कूल और स्मार्ट दिखाता है. स्कर्ट ऐसा पहनावा है जिस को आराम से पार्टी में भी पहना जा सकता है. कई रंगों के स्कर्ट काफी सस्ते भी पड़ते हैं.’’

अपने लुक्स को निखारने के लिए लड़कियां जो खर्च करती हैं उस के लिए वे तमाम तरह से इंतजाम करती हैं. ज्यादातर लड़कियां पार्टटाइम जौब करती हैं. कुछ बच्चों को ट्यूशन पढ़ाती हैं. कुछ लड़कियां नौकरी करती हैं. कुछ लड़कियां अपने जेबखर्च में कटौती कर के लुक्स को निखारने लायक पैसे जमा करती हैं. अगर पैसे कम हों तो खर्च को कम करने के तरीके लड़कियों को खूब आते हैं. लड़कियों के इस तरह लुक्स निखारने में होने वाले खर्चों पर उन के घरपरिवार के लोग ज्यादा टीकाटिप्पणी नहीं करते हैं. कई मातापिता ऐसे भी हैं जो जरूरत के हिसाब से खर्च करने के लिए पैसा भी देते हैं.

ये भी पढ़ें- 5 टिप्स: घर पर ऐसे करें गलीचों की सफाई

क्यों खास हैं खिलौने

खिलौने बच्चों की सोचने की क्षमता बढ़ाने के साथसाथ उन्हें कुछ नया करने के लिए भी प्रेरित करते हैं. जानिए, कौनकौन से खिलौने कैसे हैं मददगार:

टैलीफोन गेम

बच्चा अपने खिलौने वाले टैलीफोन को अपने पास पा कर बेहद खुश होता है. उस के चेहरे की मुस्कुराहट से उस की खुशी का अंदाजा लगाया जा सकता है. यह उस के लिए सिर्फ मनोरंजन का माध्यम ही नहीं, बल्कि वह इस के जरीए नंबर्स को पहचानने की भी कोशिश करता है और धीरेधीरे रिंग बजने का मतलब फोन उठाना और बात करना है, यह समझने लगता है. अपने खिलौने वाले फोन से झूठमूठ में अपने पेरैंट्स से बात करने की भी कोशिश करता है, जिस से उसे समझ आ जाता है कि फोन के माध्यम से वह किसी से भी बात कर सकता है.

ये भी पढ़ें- एक्सटीरियर पेंटिंग से बदलें घर का लुक

टी सैट

मां जब घर में मेहमानों के सामने चाय लाती है तो मां को ऐसा करता देख बच्चा भी यही सोचता है कि वह भी ऐसा कर पाता. ऐसे में टी सैट जहां बच्चों को नया खेल सिखाता हैं वहीं वे भी मां व घर के अन्य सदस्यों के लिए टी सैट में झूठमूठ की चाय बना कर परोसते हैं, जिस से खेलखेल में उन्हें मां के काम में हाथ बंटाना आता है.

मैडिकल किट

डाक्टरडाक्टर खेलना बच्चों को खूब पसंद आता हैं, क्योंकि जब उन के पेरैंट्स उन्हें बीमार होने पर डाक्टर के पास ले जाते हैं, तो डाक्टर उन का चैकअप कर के उन्हें दवा देने के साथसाथ इंजैक्शन भी लगाता है ताकि वे जल्दी ठीक हो जाएं. यह देख बच्चों के मन में भी ऐसा करने की इच्छा होती है. वे अपनी डौल को झूठमूठ में बीमार कर अपनी मैडिकल किट में से दवा देते हैं व इंजैक्शन लगाते हैं. वे इंजैक्शन लगाते समय यह भी एहसास कराने की कोशिश करते हैं कि इस से उसे दर्द नहीं होगा, बल्कि वह जल्दी ठीक हो जाएगी. यानी उन में इस के माध्यम से मैडिकल किट में रखी चीजों की समझ आ जाती है.

स्मार्टफोन

बच्चे कोई भी चीज जोरजबरदस्ती से सीखना पसंद नहीं करते, बल्कि वे अलग तरीके से सीखना चाहते हैं ताकि वे लर्न भी कर पाएं और उन्हें इस के साथसाथ फन भी मिले. ऐसे में वे स्मार्टफोन के जरीए नंबर्स के बारे में जानते हैं और उन में से निकलने वाली अलगअलग ध्वनि को भी पहचानने की कोशिश करते हैं, जो उन की कल्पनाशीलता को बढ़ाने का काम करती है.

ये भी पढ़ें- ताकि मानसून में भी बनी रहे घर की सेहत

म्यूजिकल गेम्स

बच्चा जन्म के बाद सिर्फ मां के स्पर्श को पहचानता है, लेकिन धीरेधीरे परिवार के हर सदस्य के स्पर्श व उन की आवाजों को पहचानना शुरू कर देता है. ठीक ऐसे ही म्यूजिकल गेम्स से विभिन्न आवाजों की पहचान करना भी सीखता है. म्यूजिक सुन उस के चेहरे पर मुसकान आ जाती है. इस तरह खिलौने बच्चों के विकास में अहम भूमिका निभाते हैं.

रैंट एग्रीमैंट: इन 7 बातों को न करें नजरअंदाज

किसी भी रेंट एग्रीमैंट को साइन करते समय या बनवाते समय मकानमालिक और किराएदार दोनों को ही कुछ जरूरी बातों का ध्यान रखना चाहिए. जैसे, मकानमालिक को जहां किराएदार से जुड़ी पूरी जानकारी होनी चाहिए, वहीं कहीं मकानमालिक कोई धोखा तो नहीं कर रहा. इस की जानकारी किराएदार को होनी चाहिए. दूसरा, कितने समय से कितने समय तक के लिए प्रौपर्टी किराए पर दी जा रही है, साथ ही बिजली, पानी व हाउस टैक्स का बिल कौन देगा. क्या वह किराए में ही सम्मिलित है या किराए से अलग है. यह स्पष्ट होना चाहिए.

1. क्लीन अक्षरों में हो रैंट एग्रीमेंट

किराया कितने समय बाद बढ़ाया जाएगा और कितना, यह सब भी रैंट एग्रीमैंट में साफ-साफ शब्दों में लिखा जाना चाहिए. मकानमालिक की सबलैटिंग से जुड़ी नीति के बारे में भी रैंट एग्रीमैंट में लिखा होना चाहिए. किराए के मकान के कायदेकानून की जानकारी होना आवश्यक ओ.पी. सक्सेना (ऐडीशनल पब्लिक प्र्रौसीक्यूटर, दिल्ली सरकार)

ये भी पढ़ें- क्या आपने देखी हैं शाहरूख खान और गौरी के घर की ये फोटोज

2. रेंट कंट्रोल एक्ट

यह कानून किसी भी रिहायशी या व्यावसायिक प्रौपर्टी, जो किराए पर ली या दी जाती है, उस पर लागू होता है और किराएदार एवं मकानमालिक के सिविल राइटस की रक्षा करता है. इस कानून का सही फायदा उस दशा में होता है, जब प्रौपर्टी का किराया रु. 3500 प्रति माह तक या इस से कम हो. यदि किराया रु. 3500 से ज्यादा है और किराएदार व मकानमालिक में कोई विवाद उत्पन्न होता है, तो अदालत का दरवाजा खटखटाना पड़ेगा.

3. रेंट एग्रीमैंट में प्रौफेशनल्स से जुड़वाएं ये चीजें

रैंट एग्रीमैंट नोटरी के वकील की मदद से बनवाया जा सकता है. इस में कुछ खास बातों का ध्यान में रखना आवश्यक है.

  • किराएदार व मकानमालिक का पूरा नाम व सही पता दर्ज हो. किराए के लिए निर्धारित की गई रकम के साथ डिपाजिट की गई सिक्योरिटी व एडवांस का जिक्र अवश्य हो.
  • यदि बिजल पानी का भुगतान किराए में नहीं है, तो इस का जिक्र भी आवश्यक है.
  • किराएदार से जबरन मकान खाली नहीं कराया जा सकता : रैंट एग्रीमैंट में एक महीने के नोटिस का प्रावधान होने के बावजूद कोई भी मकानमालिक किराएदार से जबरदस्ती मकान खाली नहीं करा सकता. यदि कोई मकानमालिक ऐसा करने की कोशिश करे, तो अदालत में उस के खिलाफ अर्जी दी जा सकती है और स्टे आर्डर लिया जा सकता है.

4. रिटीनेंसी का न हो केस

मकान लेने से पहले किराएदार को यह जान लेना आवश्यक है कि जिस से वह मकान ले रहा है, वही मकान का असली मालिक है. यदि ऐसा नहीं है, तो मकान किराए पर देने वाले के पास टीनेंसी का अधिकार होना चाहिए. यदि यह सावधानी न बरती जाए, तो मकान का असली मालिक बिना किसी नोटिस के मकान खाली करा सकता है.

ये भी पढ़ें- मैट्रेस खरीदने से पहले जान लें ये बातें

5. किराएदार की पूरी जानकारी

मकानमालिक के लिए आवश्यक है कि वह किराएदार की सही पहचान, मूल निवास, कार्यालय व आचरण के साथ इस बात की भी पूरी जानकारी जुटा ले कि वह किराया देने की हैसियत रखता है या नहीं. बाद में यदि किराएदार 1-2 महीने तक किराया नहीं भी दे पाता, तो मकानमालिक बिना अदालत का सहारा लिए मकान खाली नहीं करा सकता.

6. मकान की मैंटेनंस

मकान में होने वाली रिपेयरिंग व साल में एक बार रंगाईपुताई का दायित्व मकानमालिक का बनता है. किराएदार को कानूनन ये अधिकार प्राप्त हैं तथा इस के बारे में वह मकानमालिक को कह सकता है और रैंट एग्रीमैंट में भी इस का जिक्र कर सकता है.

7. किराए की बढ़ोतरी

रैंट एग्रीमैंट 11 महीने तक वैध होता है और नए एग्रीमैंट में पहले कानूनन किराए में 10% की वृद्धि का प्रावधान है. यदि मकानमालिक इस से ज्यादा किराया बढ़ाने का दबाव बनाता है, तो किराएदार को आपत्ति जताने का अधिकार है. किराया तय करने से पहले उस क्षेत्र के आसपास के मकानों से किराए का अंदाजा अवश्य लें.

ये भी पढ़ें- अच्छी हेल्थ के लिए घर में हो सही लाइटिंग

तकनीक के बहाने निजी जिंदगी में दखल

अमेरिकन कस्टम्स और बौर्डर प्रोटैक्शन देश के 20 टौप एअरपोर्ट्स पर फेशियल रिकोग्निशन यानी चेहरे की पहचान सिस्टम शुरू करने वाला है और अक्तूबर, 2020 तक लगभग सभी एअरपोर्ट्स पर ऐसा करने का इरादा है. कई देशों में है यह तकनीक अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, आस्ट्रेलिया, संयुक्त अरब अमीरात, जापान, चीन, जरमनी, रूस, आयरलैंड, स्कौटलैंड, स्विट्जरलैंड, फ्रांस, न्यूजीलैंड, फिनलैंड, हौंगकौंग, नीदरलैंड, सिंगापुर, रोमानिया, कतर, पनामा जैसे देशों में पहले से यह तकनीक काम कर रही है.

चीन में सब से पहले इस तरह की व्यवस्था की शुरुआत हुई थी. जरमनी इस तकनीक का इस्तेमाल आतंकियों की पहचान के लिए कर रहा है. अब भारत सरकार भी तकनीकी विकास और समय की बचत के नाम पर बायोमिट्रिक स्क्रीनिंग सिस्टम की इस व्यवस्था को एअरपोर्टों पर लागू करने का मन बना चुकी है.

बीआईएएल यानी बैंगलुरु इंटरनैशनल एअरपोर्ट लिमिटेड ने हाल ही में अपने एक ट्वीट में कहा कि अब आप का चेहरा ही आप का बोर्डिंग पास होगा. बैंगलुरु को भारत का पहला पेपरलैस एअरपोर्ट बनाने के लिए बीआईएएल ने विजनबौक्स से ऐग्रीमैंट साइन किया है.

ये भी पढ़ें- 4 टिप्स: वौलपेपर के इस्तेमाल से सजाएं घर

बीआईएएल की ओर से जारी एक स्टेटमैंट में कहा गया है कि बोर्डिंग के लिए रजिस्ट्रेशन को पेपरलैस बना कर हवाईयात्रा को आसान बनाने का प्रयास किया जा रहा है और इसी मकसद से यह सुविधा शुरू की गई है. बायोमिट्रिक टैक्नोलौजी द्वारा पैसेंजर्स के चेहरे से उन की पहचान होगी और वे एअरपोर्ट पर बिना किसी झंझट जा सकेंगे. इस के लिए उन्हें बारबार बोर्डिंग पास, पासपोर्ट या अन्य आइडैंटिटी डौक्युमैंट्स नहीं दिखाने पड़ेंगे.

सब से पहले अंतर्राष्ट्रीय हवाईअड्डों पर यह व्यवस्था लागू होगी. अपना पासपोर्ट और बोर्डिंग पास दिखाने के बजाय पैसेंजर्स को एक कैमरे के आगे खड़ा किया जाएगा. उन का एक फोटो लिया जाएगा और उसे गवर्नमैंट डाटाबेस में फाइल किए गए दूसरे फोटोज से कंपेयर किया जाएगा. इस तरह फोटोज के इस कंपैरिजन के आधार पर उस शख्स की पहचान पुख्ता की जाएगी.

भले ही इस बायोमिट्रिक स्क्रीनिंग के कई तरह के फायदे नजर आ रहे हों, मगर कहीं न कहीं यह हमारी प्राइवेसी पर सीधा अटैक करेगी. यह एक तरीका है जिस से हमारी टै्रकिंग की जा सकेगी यानी एक तरीके का ट्रैकिंग सिस्टम विकसित किया जा रहा है जो बहुत बड़े पैमाने पर काम करेगा.

प्राइवेसी इनवैडिंग टैक्नोलौजी एक तरह से हमारी निजी जिंदगी में घुसने का रास्ता है. यह एक तरह का जाल है, जिस के जरीए हमारे चेहरे को डाटा के रूप में इस्तेमाल किया जाएगा. ऐसा डाटा जिसे स्टोर किया जा सकता है, ट्रैक किया जा सकता है या फिर चोरी भी किया जा सकता है.

जनता भी इसे ले कर असमंजस की स्थिति में है. 2018 में करीब 2 हजार ऐडल्ट इंटरनैट यूजर्स पर किए गए सर्वे के मुताबिक 44% लोगों ने इस तरह के सिस्टम को अनफेवरेबल बताया जबकि 27% ने इसे फेवरेबल करार दिया.

भारत में सरकार कांग्रेस की हो या भाजपा की उन तकनीकों को जल्दी से जल्दी अप्लाई करने का प्रयास किया जाता है, जिन के जरीए सरकार आप की प्राइवेसी खत्म कर सके. आप को पता भी नहीं चलेगा और आप का फेस स्कैन कर लिया जाएगा. वह सालों सर्कुलेट होता रहेगा. कभी भी आप हैकिंग के शिकार बन सकते हैं और अनचाहे दखल के खौफ में जीने को विवश रहेंगे.

रेलवे पहले ही हो चुका है पेपरलैस

भारतीय रेलवे पहला सरकारी उपक्रम बना, जिस ने अपना कामकाज पेपरलैस किया. अक्तूबर, 2011 में आईआरसीटीसी (भारतीय रेलवे खानपान एवं पर्यटन निगम) ने सुविधा देते हुए कहा कि यात्रियों को अपने साथ काउंटर टिकट रखना जरूरी नहीं होगा. लोग मोबाइल पर एसएमएस या ईटिकट के जरीए यात्रा कर सकते हैं.

ये भी पढ़ें- क्रिएटिव आइडियाज से ऐसे संवारे घर

इस तरह के पहचान प्रमाण हेतु मोबाइल का प्रयोग प्राइवेसी या फ्रौड इंप्लिमेशन का जरिया नहीं बन सकता. मगर जब बात फेशियल्स रिकोग्निशन की आती है तो सवाल खड़े होने वाजिब हैं.

नजरिया बदलने की जरूरत है

अपने इकलौते युवा बेटे को एक असमय दुर्घटना में खो देने वाले वर्मा दम्पत्ति हर समय जोश और जिंदादिली से भरपूर नजर आते हैं. छोटे बड़े किसी भी समारोह में पहुंचकर वे अपने हरफनमौला स्वभाव के कारण वातावरण को खुशनुमा बना देते हैं. उनसे मिलकर हर इंसान सकारात्मकता से भर उठता है. अपने दिवंगत बेटे को याद करते हुए श्रीमती गीता वर्मा कहती हैं,”उसे जाना था सो चला गया, उसके बारे में ही सोचते रहेंगे तो जीना ही दूभर हो जाएगा….. तनाव.. अकेलेपन और फिर डिप्रेशन को गले लगाने से तो अच्छा है कि हम जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाएं ताकि हमारा जीवन तो सुचारू ढंग से चलता रहे.”

गीता जी के पति राजन वर्मा बैंक के रीजनल मैनेजर पद से रिटायर हुए हैं वे कहते हैं,”बेटा ही तो गया है हम तो अभी इसी धरती पर हैं, जो चला गया उसे लेकर बैठे रहने से तो जिंदगी नहीं चलने वाली , जिंदगी तो चलने का नाम है और वह हर हाल में अपनी डगर पर निर्बाध गति से चलती ही रहती है, हां बेटे के जाने के बाद एक पल को ऐसा लगा था मानो अब सब खत्म हो गया…..उसके बारे में सोचते सोचते कभी कभी तो हमें इतना तनाव हो जाता था कि रातों को नींद नहीं आती थी, घर में खाना नहीं बनता था और यदि किसी तरह बन गया तो खाने की इच्छा ही नहीं होती थी और उस खाने को यूं ही फेंक दिया जाता था….इसी तरह दिन गुजर रहे थे. फिर एक दिन लगा कि इंसान का जन्म बहुत मुश्किल से मिलता है और एक हम है कि अपनी इस खूबसूरत जिंदगी को यूं ही बर्बाद कर रहे हैं….इस तरह तो एक दिन बीमार होकर बेड पर आ जाएंगे. बस उस दिन दुःख, अवसाद, और तनाव को हटाकर हम यथार्थ में आ गए और फिर तो लगा कि अभी तो बहुत कुछ करना शेष है. और उसी दिन से हमारा जीवन को देखने का नजरिया बदल गया.”
अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए गीता जी कहतीं है,”विभू के रहते कभी हमें अपने बारे में सोचने का अवसर ही नहीं मिला, अब तो राजन भी अपनी नौकरी से रिटायर हो गए हैं. अब हम दोनों ने अपनी बागवानी, कुकिंग, और संगीत की हॉबी को तराशना प्रारम्भ कर दिया. 65 वर्ष की उम्र में हमने एक संगीत क्लास ज्वाइन की है, एक संगीत संस्थान से भी जुड़ गए हैं जिसके माध्यम से हम संगीत के स्टेज और फेसबुक लाइव प्रोग्राम्स करते हैं”

“घर बाहर के सभी कार्य हम पति पत्नी मिलकर करते हैं, अब तो सुबह होकर कब रात हो जाती है हमें पता ही नहीं चलता.अरे भई जिंदगी एक बार मिली इसे खूबसूरती से जीने में ही इसकी सार्थकता है.” राजन खुलकर हंसते हुए कहते हैं.

ये भी पढ़ें- 5 टिप्स: बर्तन धोते समय रखें इन चीजों का ख्याल

एक सफल कोचिंग संस्थान की मालकिन और अपने संस्थान में 25 लोगों को रोजगार देने वाली सफल महिला रोमा जी की उम्र उस समय 40 वर्ष की थी जब दिल का दौरा पड़ने से असमय उनके पति की मृत्यु हो गयी.वे कहतीं हैं,”उनके जाने के बाद लगा था कि ईश्वर ने उन्हें भी क्यों नहीं उठा लिया. कुछ माह तक तो जिंदगी बड़ी बेरंग और नीरस लगती रही. कोई संतान भी नहीं थी जिसके सहारे मैं जीवन काटने का सोचती. सच कहूं तो उस समय मुझे अपने से ज्यादा बदनसीब कोई दूसरा नजर ही नहीं आता था. फिर लगा कि इस संसार में अपनी मर्जी से जीना मरना नहीं होता और फिर जब जीना ही है तो घुटघुट कर और रो रोकर जीने की अपेक्षा शान से जीना चाहिए. अपने आपसे कड़ा संघर्ष करने के बाद अपने नकारात्मक विचारों पर मैंने विजय प्राप्त कर ली. शादी से पूर्व मैं अध्यापन कार्य से जुड़ी थी सो मैंने उसे ही पुनर्जीवित करने का विचार किया और स्वयं को अपडेट करने में जुट गई. कुछ समय बाद एक कोचिंग संस्थान से जुड़ी और दो वर्ष बाद अपना ही कोचिंग संस्थान खोल लिया. सामान्य विद्यार्थियों के अतिरिक्त मैं गरीब तबके के जरूरतमन्द छात्रों को निःशुल्क कोचिंग देती हूँ….यकीन मानिए अब समय कहाँ निकल जाता है मुझे ही पता नहीं चलता….जब मेरे संस्थान का कोई बच्चा किसी परीक्षा को पास करता है तो उससे मिलने वाला सुख अनिवर्चनीय होता है.”

वास्तव में अकेलापन कोई समस्या नहीं है बल्कि हमारे ही नकारात्मक विचारों से उत्सर्जित तरंगों द्वारा निर्मित एक अहसास, मनोभाव और विचार है. मनोवैज्ञानिक काउंसलर कीर्ति वर्मा कहतीं हैं, “इसकी शुरूआत तनाव से होती है और जब यह तनाव निरन्तर मन मस्तिष्क पर हावी रहता है तो इंसान तनावग्रस्त होकर अकेलेपन का शिकार हो जाता है…..और जब यह स्थिति लंबे समय तक रहती है तो फिर डिप्रेशन या अवसाद होने लगता है. इसलिए आवश्यक है कि हमें अपने ऊपर तनाव और अकेलेपन को हावी नहीं होने देना चाहिए. जैसे ही किसी भी कारण से तनाव से मन घिरने लगे तो उसे झिटककर आगे बढ़ने का प्रयास करना ही इससे बचने का सर्वश्रेष्ठ उपाय है. अक्सर लोग कहते हैं कि ,”जीवन एक संघर्ष अथवा कांटों का ताज है परन्तु 60 वर्षीया मृदुल आंटी को तो जीवन सदैव रंग बिरंगे फूलों से भरा एक गुलदस्ता ही प्रतीत होता है जिसमें गुलाब के कांटे हैं तो रजनीगंधा के फूलों की मखमली पत्तियां भी बस हमें उन्हें देखने का नजरिया भर बदलना है. सेंट्रल स्कूल के प्राचार्य पद से रिटायर, बेहद मिलनसार, खुशमिजाज,

हरफनमौला, चुस्त दुरुस्त, फैशनेबल आंटी को देखकर हर कोई यही सोचता था कि उनके जीवन में तो दुःख का साया भी नहीं हो सकता पर अपने अतीत के बारे में बताते हुए वे कहतीं हैं कि , “जब उनका बेटा मात्र 5 साल का था तो पति के दूसरी औरत से अफेयर के चलते पति को तलाक देना पड़ा फिर पूरा जीवन बेटे की परवरिश और स्कूल में चला गया. बेटा विदेश पढ़ने गया तो वहीं की एक लड़की से विवाह करके सैटल हो गया. स्कूल से रिटायर होने के बाद बेटे की जिद के कारण एकाध बार उसके पास गई भी परन्तु उनकी और मेरी जीवन शैली में बहुत अंतर है वहां मुझे मेरा अस्तित्व ही गुम हुआ जान पड़ता है इसलिए मैं अब यहीं रह रही हूं. एक प्राइवेट स्कूल में नौकरी करती हूँ और खूब देशाटन करते हुए अपना जीवन यापन कर रही हूँ. अकेलापन जैसा कोई शब्द मेरी डिक्शनरी में है ही नहीं और न इसे लेकर मुझे कभी कोई तनाव होता है….मेरे लिए इस जिंदगी से अधिक खूबसूरत कोई चीज हो ही नहीं सकती.’

कभी कभी कुछ लोग सब कुछ होते हुए भी अपने आप को अकेला महसूस करते हैं, वे अपने आप में ही खोए रहते हैं और अक्सर अनेकों बीमारियों को गले लगा लेते हैं. मध्यमवर्गीय परिवार में पली बढ़ी अंतर्मुखी प्रवृत्ति की भावना का विवाह एक अतिसम्पन्न परिवार में हुआ. बहुत प्रयास करने के बाद भी वहां सामंजस्य नहीं बैठा पाने के कारण वह तनावग्रस्त रहने लगी. वह कहती है,”मेरे घर में जहां मनचाही ड्रेस मिलने पर, मनचाहा खाना बन जाने पर या कहीं घूमने जाने जैसी छोटी छोटी खुशियों को सेलिब्रेट किया जाता था वहीं यहां हर समय बिजनेस और सम्पत्ति की बातें….. खुशी या खुश होने जैसे किसी शब्द से तो यहां किसी का परिचय ही नहीं था. यहां सेलेब्रेशन का तात्पर्य ही होटल की बड़ी बड़ी पार्टियां हैं जहां सजधजकर कठपुतली की भांति बैठे रहो. स्वयं को अभिव्यक्त न कर पाने के कारण मैं अंदर ही अंदर घुटने लगी थी जिससे मैं तनावग्रस्त रहने लगी…उन दिनों मुझे अपना जीवन निरुद्देश्य और बेकार लगने लगा था. एक दिन अपनी अंतरंग सखी के कहने पर मैंने अपना कालिज टाइम के शौक लेखन को फिर से प्रारंभ कर दिया ….बस उसके बाद से तो मेरे जीवन को मानो दिशा ही मिल गयी….सारा तनाव छूमंतर हो गया . आज मैं कुछ पत्रिकाओं की नियमित लेखिका हूं. जीवन मूल्यों पर आधारित दो पुस्तकों का प्रकाशन भी हो चुका है. अब मेरा जिंदगी के प्रति नजरिया ही बदल गया है, किसी पत्रिका या पेपर में छपने वाला आर्टिकल या कहानी मुझे असीम खुशी प्रदान करती है. मेरी जिंदगी से तनाव या अकेलेपन का नामोनिशान ही गुम हो चुका है.”

भोपाल के सिटी इलाके में रहने वाले अनमोल गुप्ता जी सहायक संचालक कृषि के पद से रिटायर हैं और अब एक नर्सरी के मालिक और आर्गेनिक ग्रीन संस्था के अध्यक्ष भी . ऑर्गेनिक सब्जियों की होम डिलीवरी करने के साथ साथ नर्सरी में आने वाले प्रत्येक ग्राहक को वे प्रत्येक पौधे को लगाने और देखभाल के तरीके बताते हैं और लोगों की डिमांड पर होम विजिट भी करते हैं. सुबह 8 बजे से लेकर रात्रि 10 बजे तक वे बेहद व्यस्त रहते हैं. सप्ताह का हर दिन गांवों में उगाई जाने वाली ऑर्गेनिक सब्जियों की देखरेख के लिए निर्धारित है.उनका इकलौता बेटा बहू दोनों मुंबई में सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं…. पत्नी का 2 वर्ष पूर्व देहांत हो गया तो बेटा जबर्दस्ती अपने साथ मुंबई ले गया. वे कहते हैं,”वहां दो माह में ही मैं तनावग्रस्त रहने लगा. उन दोनों के ऑफिस चले जाने के बाद होनेवाले अकेलेपन से मैं परेशान रहने लगा. मुझे लगने लगा कि यदि मैं और अधिक यहां रहा तो अवश्य डिप्रेशन में चला जाऊंगा..जिंदगी भर किसानों और खेतों के साथ रहने वाला मैं वहां की महानगरीय फ्लैट कल्चर में एडजस्ट ही नहीं हो पा रहा था. एक दिन उचित अवसर देखकर यही सच्चाई मैंने अपने बेटे बहू को बताई बड़ी मुश्किल से वे मेरी परेशानी को समझ पाए और वापस भोपाल भेजने को राजी हुए. यहां आकर लगा मानो मैं स्वर्ग में आ गया हूं. कृषि के क्षेत्र में आजीवन कार्य किया है अतः इसी में पूरी तरह से रम गया हूं. अब कब दिन रात होते हैं मुझे ही पता नहीं चलता. जीवन को तो उद्देश्य मिल ही गया है साथ ही मन में समाज के लिए कुछ कर पाने का संतोष भी है.”

इन लोंगों से मिलकर लगता है कि मानो जिंदगी में तनाव और अकेलेपन जैसी कोई समस्या है ही नहीं हमें सिर्फ अपने सोचने की दिशा को परिवर्तित करना है. अपने दिलो दिमाग में नकारात्मकता को किसी भी कीमत पर प्रवेश नहीं देना चाहिए बल्कि सृजनात्मकता और सकारात्मकता में निरन्तर वृद्धि करते रहना चाहिए. कभी कभी बच्चों के बहुत दूर चले जाने, किसी प्रियजन की असमय मृत्यु हो जाने, कठिन परिश्रम के बाद भी सफलता न मिल पाने पर जीवन के प्रवाह में अकेलापन, नैराश्य और खालीपन का आ जाना स्वाभाविक सी बात है परन्तु इससे बहुत अधिक समय तक प्रभावित होना स्वास्थ्य के लिए अत्यंत हानिकारक है. मनोवैज्ञानिकों और डॉक्टरों के अनुसार अकेलेपन से बी पी, शुगर, अनिद्रा जैसी बीमारियों के साथ साथ याददाश्त भी कमजोर होने लगती है. बेव एम डी के अनुसार अकेलेपन के कारण 26 प्रतिशत तक मृत्यु की और 32 प्रतिशत स्ट्रोक की आशंका बढ़ जाती है.इसलिए आवश्यक है कि जैसे ही यह खालीपन आपके मन मस्तिष्क में जगह बनाने लगे तो सचेत होकर स्वयं को सकारात्मक दिशा में लगा देना चाहिए ताकि समस्या और अधिक गम्भीर न हो.

-नजरिया बदलना है जरूरी

जीवन को देखने का नजरिया बदलें. अपनी ही स्थिति पर हरदम दुःखी होते रहने की अपेक्षा अपने से कमतर लोंगों को देखने की आदत डालें….आप पाएंगे कि आपसे अधिक सुखी इस संसार में कोई दूसरा है ही नहीं. सोनी टी वी के सुप्रसिद्ध धारावाहिक कौन बनेगा करोड़पति में एक खिलाड़ी के द्वारा दी गयी सुखी इंसान की परिभाषा सौ प्रतिशत सही है कि,” हाथ पैर और दिल दिमाग से मैं पूरी तरह फिट हूं इसलिए मैं स्वयं को इस संसार का सर्वाधिक सुखी इंसान मानता हूं.”वास्तव मैं दुख और सुख जीवन के दो पहलू हैं जिसमें कभी एक पहलू कमजोर होता है तो कभी दूसरा.

ये भी पढ़ें- स्मार्ट वुमंस के लिए बेहद काम की हैं ये एप्स

-दोस्तों और परिवार से मिलें

कोरोना ने हमें दोस्तों और परिवार की अहमियत को बखूबी समझा दिया है इसलिए जब भी समय मिले अपने परिवार और सदस्यों के साथ वक़्त अवश्य बिताएं. अपनी दोस्त मंडली के साथ घूमने जाएं, उन्हें भोजन पर बुलाएं, गेम खेले परन्तु केवल उन्हीं दोस्तों के साथ जिनसे मिलकर आपको खुशी मिलती हो.

-फिट रहना है जरूरी

हम सदियों से सुनते आए हैं कि निरोगी काया इस जीवन का सबसे बड़ा सुख है. कोरोना जैसी महामारी के बाद से शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को मज़बूत करना अत्यंत आवश्यक हो गया है और इसके लिए आवश्यक है कि आप प्रतिदिन कम से कम 40 मिनट स्वयं को दें. इस अवधि में आप इच्छानुसार वॉकिंग, जिमिंग, योगा अथवा व्यायाम करें.

-आहार भी हो पौष्टिक

अक्सर देखा जाता है कि अकेला इंसान अपने लिये भोजन बनाने में आलस्य करता है अथवा एक टाइम बनाकर दो या तीन टाइम तक बासी खाना खाया जाता है. ऐसा करने की अपेक्षा हरदम पौष्टिक और ताजा भोजन खाने का प्रयास किया जाना चाहिए.

-नकारात्मक लोंगों से दूरी बनाएं

नकारात्मकता जहां आपके सोचने समझने की शक्ति को क्षीण करके मन मस्तिष्क को तनावग्रस्त कर देती है वहीं सकारात्मकता असीम ऊर्जा का संचार करके मनुष्य की रचनात्मक शक्ति में वृद्धि करती है. इसके लिए आवश्यक है कि आप नकारात्मक लोंगों से दूरी बनाकर रखें क्योंकि ये लोग निराशा से भरे होते हैं और अपनी इसी विचारधारा की तरंगें वे आपके पास छोड़ जाते हैं जिससे आप भी प्रभावित हो जाते हैं. एक गृहिणी अनीता कहतीं हैं,”मैं निगेटिव लोगों से 2 फ़ीट की दूरी बनाकर रखती हूं क्योकि ये लोग जब भी मिलते हैं मेरे अच्छे खासे दिमाग में अपना कचरा छोड़ जाते हैं.”

-छोटी छोटी खुशियों को सेलिब्रेट करें

जीवन के प्रति सदैव सकारात्मकता से भरपूर रहने वाले एक अधिकारी मनोज जी कहते हैं,”मेरे लिए हर नया दिन एक उत्सव जैसा होता है.मेरी मीटिंग के सफल हो जाने पर, मनचाही मूवी देख लेने पर, दी गयी समय सीमा में कार्य पूर्ण हो जाने पर, या सप्ताहांत का अवकाश मुझे असीम खुशी देता है क्योंकि मेरी नजर में खुश होना या खुशी मनाना एक अहसास है जिसके लिए किसी बड़ी घटना, कार्य या बहुत पैसे का होना आवश्यक नहीं है. वे कहते हैं जब आप इन छोटी छोटी बातों से खुश होना सीख लेते हैं तो तनाव आपके आसपास तक नहीं फटक सकता.

-खुशी देना सीखें

किसी सहेली की कोई रेसिपी, कहानी या आर्टिकल के प्रकाशित होने पर या किसी की विवाह या जन्मदिन की वर्षगांठ पर मैसेज के स्थान पर फोन कॉल करके बधाई देना आपको सकारात्मकता से भर देगा. किसी भूखे को खाना खिलाना, गार्ड या मेड को गरमागरम चाय पिलाने से उसके चेहरे पर आई खुशी आपको अपरिमित ऊर्जा से भर देती है.

-जीवन को सरलतम तरीके से जियें

कुछ लोग जाति, धर्म और सम्पदा के कारण बेवजह का अहंकार पालकर अपने जीवन को दुरूह बना लेते हैं. इसकी अपेक्षा आप जीवन को जितने सरलतम तरीके से जिएंगे जीवन आपको उतना ही खूबसूरत प्रतीत होगा. लोगों से किसीभी मुद्दे पर स्वयम को सही साबित करने के लिए बेवजह की बहस और विवाद से बचें क्योंकि बहसें सदैव निरर्थक और अंतहीन होतीं हैं.

ये भी पढ़ें- किचन को रखें हमेशा क्लीन और स्टाइलिश

-उद्देश्यपरक जीवन जियें

अपनी हॉबीज को तराशकर स्वयम को प्रतिदिन एक टास्क दें मसलन आज आप नए पौधे लगाएंगी, कोई नई धुन या गाना सीखेंगी, या कोई नई रेसिपी ट्राय करेंगी, कोई नई मूवी देखेंगी. इसके अतिरिक्त उम्र कोई भी हो आप नया सीखने को सदैव तत्पर रहें क्योंकि किसी भी प्रकार की नकारात्मकता को दूर करने के लिए व्यस्तता ही सर्वोत्तम दवाई है.

-पत्र पत्रिकाएं पढ़ें

जैसा कि सर्वविदित है पत्र पत्रिकाएं इंसान की सबसे अच्छी मित्र होतीं हैं परन्तु सोशल मीडिया, टी वी और मोबाइल के अधिकतम प्रयोग के कारण हम निरन्तर इनसे दूर होते जा रहे हैं, किताबें हमें नई जानकारियां तो देती ही हैं साथ ही नकारात्मक विचारों से भी दूर रखतीं हैं. और इस प्रकार अपने नजरिये और सोचने की दिशा में थोड़ा सा परिवर्तन करके हम अपने इस बेशकीमती जीवन को और अधिक खूबसूरत बना सकते हैं.

रेंट एग्रीमेंट बनवाने से पहले जान लें ये 10 बातें

किराया पर रहना आज के समय में इनकम का एक अच्छा और बेहतर साधन है. आज जहां कोई भी मकान जैसी प्रौपर्टी का मालिक अपनी खाली पड़ी प्रौपर्टी को किराए पर देकर अपनी इनकम बढ़ा सकता है, वहीं दूसरी तरफ किराए के मकान उन लोगों के लिए वरदान समान हैं, जो पैसे न होने के कारण अपना आशियाना नहीं बना पाते. लेकिन किराए पर ऐसी प्रौपर्टी को लेते या देते समय जो सब से महत्त्वपूर्ण चीज होती है, वह है रैंट एग्रीमेंट.

रैंट एग्रीमेंट वह होता है, जो किसी भी प्रौपर्टी को किराए पर देने से पहले किराएदार और मकानमालिक के समझौते से तैयार किया जाता है. इस रैंट एग्रीमेंट में मकानमालिक की सारी शर्तें लिखित रूप में होती हैं, जिस पर मकानमालिक व किराएदार की सहमति के बाद ही दस्तखत होते हैं. रैंट एग्रीमैंट भविष्य के लिए लाभदायक सिद्ध होता है. अगर किसी भी प्रकार के बदलाव का प्रस्ताव मकानमालिक या किराएदार द्वारा रखा जाना हो, तो उस के लिए 30 दिन पहले नोटिस दिया जाता है.

ये भी पढ़ें- बेडशीट खरीदतें समय रखें इन 5 बातों का ध्यान

रैंट एग्रीमेंट में बहुत सी ऐसी बातों को ध्यान में रखना जरूरी होता है, जो मकानमालिक और किराएदार दोनों के लिए आवश्यक होती हैं. वे बातें इस प्रकार हैं :

1. रैंट एग्रीमेंट हमेशा स्टैंप पेपर पर ही बनायाजाता है. इस पर मकानमालिक और किराएदार दोनों के दस्तखत होने जरूरी होते हैं.

2. रैंट एग्रीमेंट में किराएदार व मकानमालिक का नाम साफसाफ लिखा होना चाहिए. साथ ही किराए पर दी जाने वाली जगह का पूरा पता भी दिया होना चाहिए.

ये भी पढ़ें- ‘फ्रेंडशिप डे’ पर अपने दोस्तों को दें ये ट्रेंडी गिफ्टस

3. रैंट एग्रीमेंट में किराए की ठीक जानकारी आवश्यक होती है, साथ ही किराया देने की समय अवधि की तारीख भी होनी चाहिए और किस दिन से विलंब शुल्क लगाया जाएगा, यह भी साफसाफ लिखा होना चाहिए.

4. रैंट एग्रीमेंट में किराएदार द्वारा जमा की जाने वाली सिक्योरिटी मनी का उल्लेख होना ही चाहिए.

5. तारीख व दिन से कितने समय के लिए प्रौपर्टी किराए पर दी जा रही है, यह लिखा होना भी बहुत जरूरी होता है.

6. मकानमालिक द्वारा क्याक्या सुविधाएं प्रदान की जा रही हैं, उस की जानकारी भी रैंट एग्रीमैंट में होनी चाहिए तथा प्रौपर्टी के साथ अन्य कौन सी सामग्री भी साथ प्रदान की जा रही है, जैसे पंखा, गीजर, लाइट फिटिंग आदि भी लिखे होने चाहिए.

7. किराएदार को घर छोड़ने या मकानमालिक द्वारा घर छुड़वाने से एक महीने पहले नोटिस देना जरूरी होता है.

ये भी पढ़ें- 6 टिप्स: मौनसून में ऐसे रखें अनाज को सेफ

8. मकानमालिक रैंट एग्रीमैंट बनवाने के लिए किसी वकील से भी बातचीत कर सकता है या स्टैंडर्ड रैंट एग्रीमैंट फार्म का प्रयोग कर सकता है.

9. रैंट के घर में रहने वाले व प्रयोग करने वाले 18 वर्ष की आयु से ऊपर के विवाहित और अविवाहित सभी सदस्यों के नाम रैंट एग्रीमैंट में लिखे जाते हैं, जिस से बाद में प्रौपर्टी की देखरेख की जिम्मेदारी सभी की हो और किराए से जुड़ी रकम भी किसी एक से ली जा सके.

10. मकान मालिक किराएदार के बारे में पूछताछ कर सकता है, जिस से वह उस से जुड़ी आसामाजिक गतिविधियों व आपराधिक पृष्ठभूमि को जान सके.

अगली कड़ी में पढ़ें- रेंट अग्रीमेंट से जुड़े कानून जानना भी है जरूरी

नैटिकेट्स का रखें ध्यान

नैटिकेट्स शब्द नैट और ऐटिकेट्स से मिल कर बना है और इस का मतलब है औनलाइन बिहेवियर के नियमों का पालन करना. जैसे रियल लाइफ में ऐटिकेट्स का पालन करना जरूरी होता है वैसे ही नैटिकेट्स, औनलाइन शिष्टाचार का पालन न करने से भी आप परेशानी में पड़ सकते हैं. इन नियमों का पालन करने से आप अपना औनलाइन टाइम ज्यादा अच्छी तरह ऐंजौय कर सकते हैं.

हाल ही की एक डिजिटल रिपोर्ट के अनुसार हम रोज लगभग 6 घंटे 42 मिनट औनलाइन बिताते हैं. हम अपने स्मार्टफोन, लैपटौप में चैटिंग, गेम्स, फोटो लेने, उन्हें शेयर करने और भी बहुत कुछ करने में व्यस्त रहते हैं. इतना औनलाइन रहने पर हमारा औनलाइन बातों में व्यस्त रहना स्वाभाविक है. हो सकता है ऐसे बहुत से लोग हों जो नैटिकेट्स न जानते हों और कई गलतियां कर रहे हों. उन्हीं के लिए हैं ये टिप्स:

– जब आप औनलाइन बात कर रहे हों तो अपनी भाषा का ध्यान रखें. यह न सोेचें कि आप को कोई देख नहीं रहा है तो आप कैसी भी भाषा का प्रयोग कर सकते हैं.

– बात को लंबा न खींचें. मतलब कि जरूरी बात करें. बेकार की लंबी, बोरिंग बातचीत से बचें.

– ईमेल, चैट, टैक्स्ट या सोशल मीडिया पोस्ट के कमैंट्स हों, सैंड बटन दबाने से पहले एक  बार हर चीज अच्छी तरह पढ़ें.\

ये भी पढ़ें-  वर्चुअल गेम्स: अगर आप हैं स्मार्ट तो हो सकता है फायदा

– टाइप करते हुए कैपिटल्स यूज न करें. इस से चिल्लाने की फीलिंग आती है. जैसे आप को अगर नेवर लिखना हो तो आप उसे कैपिटल में न लिखें. इस से जोर से बोलने वाली फीलिंग आती है और वह इन्सल्टिंग लगता है. आप किसी पर नैट पर चिल्लाएं या रियल लाइफ में सामने बैठ कर उसे अच्छा नहीं लगेगा.

– ईमल भेजते हुए सब्जैक्ट लाइन चैक कर लें. यह काम से संबंधित मेल्स के लिए जरूरी है, क्योंकि अगर आप सब्जैक्ट लाइन में हाय लिखती हैं तो हो सकता है उसे अर्जेंट न सम झा जाए और बाद में देखने के लिए छोड़ दिया जाए.

– न तो किसी के प्राइवेट फोटो या बातचीत शेयर करें और न ही पोस्ट. इस से किसी के साथ आप के रिश्ते खराब हो सकते हैं.

– औनलाइन दुनिया में स्पीड का ध्यान रखें. ईमेल्स और मैसेज का जवाब टाइम से दें, भले ही टौपिक अर्जेंट न हो, पर हफ्ते के अंदर जवाब जरूर दे दें. इग्नोर न करें.

– किसी को लगातार मेल्स न भेजें. किसी से अपने मेल्स पढ़वाने के लिए जबरदस्ती न करें. यह अशिष्टता है.

– शेयरिंग करें पर अपनी पर्सनल लाइफ की हर छोटी डिटेल शेयर करने से बचें.

– गौसिप न करें, जिन बातों पर आप को पूरी तरह विश्वास न हो कि वे सच हैं, उन की कहानियां न सुनाएं और कई बार अगर कोई सच बात आप को पता भी हो तो जरूरी नहीं होता कि आप शेयर करें ही.

– आप को कितनी भी जरूरत हो आप वैब से फोटो न चुराएं. हो सकता है उन का कौपीराइट हो और किसी ने इस पर बहुत मेहनत और टाइम लगाया हो. परमिशन लें और क्रैडिट भी दें.

ये भी पढ़ें- 4 टिप्स: झूलों से दें घर को नया और अट्रैक्टिव लुक

– कमैंट्स छोटे रखें, औनलाइन डिस्कशन के समय अपनी बात साफसाफ रखते हुए पोस्ट करें.

– किसी की फ्रैंड रिक्वैस्ट ऐक्सैप्ट करने से पहले अच्छी तरह सोच लें. फ्रैंड लिस्ट में ऐड करने के बाद अनफ्रैंड करना इन्सल्टिंग होता है.

जब तक रिश्ता बहुत खराब न हो जाए, अनफ्रैंड न करें.

जीवन बीमा को चुनने में आसान बनाएंगी ये 7 बातें

लेखक- सैफ अयान

लाइफ इंश्योरैंस फाइनैंशियल प्लानिंग के लिए सब से महत्त्वपूर्ण है. लाइफ इंश्योरैंस पौलिसी की बीमा राशि आप की मौत होने पर आप की गैरमौजदूगी में आप की आमदनी की कमी को पूरा कर के आप के परिवार को बिखरने से बचा लेगी. यदि आप ने कोई लोन लिया है तो उस की ईएमआई जाती रहेगी, आप ने अपने बच्चों के कैरियर के लिए जो सपना देखा वह पूरा हो पाएगा. आप की पत्नी को बुढ़ापे में किसी के आगे हाथ नहीं फैलाना पड़ेगा.

लाइफ इंश्योरैंस पौलिसीज कई तरह की होती हैं और यदि आप इन में से कोई पौलिसी खरीदने की योजना बना रहे हैं, तो आप को सही पौलिसी चुनने के लिए सब से पहले अपनी जरूरतों को सम झना चाहिए. एक इंश्योरैंस पौलिसी खरीदते समय इन महत्त्वपूर्ण बातों का ध्यान रखना चाहिए:

1. पौलिसी के प्रकार

लाइफ इंश्योरैंस पौलिसीज कई तरह की होती हैं-ऐंडोमैंट इंश्योरैंस प्लान, टर्म पौलिसी और यूएलआईपी स्कीम. आप को प्रत्येक पौलिसी के बीच का अंतर मालूम होना चाहिए. ऐंडोमैंट पौलिसी और यूएलआईपी जीवन सुरक्षा के साथसाथ निवेश लाभ भी प्रदान करती है, लेकिन एक टर्म प्लान, सिर्फ जीवन सुरक्षा प्रदान करती है, कोई मैच्योरिटी लाभ प्रदान नहीं करती है. यदि आप सिर्फ मुत्यु लाभ सुरक्षा प्राप्त करना चाहते हैं तो आप के लिए टर्म पौलिसी सब से उपयुक्त विकल्प है.

ये भी पढ़ें- फूलों के गुलदस्ते को ऐसे रखें फ्रेश

2. पौलिसी कितने समय के लिए

पौलिसी को कम से कम आप के रिटायरमैंट के दिन तक आप को सुरक्षा प्रदान करने में सक्षम होना चाहिए. उदाहरण के लिए यदि अभी आप की उम्र 25 साल है और आप 60 साल की उम्र में रिटायर होना चाहते हैं तो पौलिसी को आप को कम से कम 35 साल की सुरक्षा प्रदान करनी चाहिए. बाजार में ऐसी कई पौलिसियां उपलब्ध हैं, जो 75 साल की उम्र तक या उस से भी ज्यादा समय तक सुरक्षा प्रदान करती हैं. आदर्श रूप में इस का कार्यकाल कम से कम इतना लंबा तो होना ही चाहिए कि आप के कामकाजी सालों के दौरान आप को सुरक्षा मिल सके.

3. लाइफ इंश्योरैंस पौलिसी के साथ ऐड औन

एक लाइफ इंश्योरैंस पौलिसी के साथ उपलब्ध ऐड औन आप का पैसा बचा सकता है, जो आप को एक अलगथलग पौलिसी खरीदने में खर्च करना पड़ सकता है. उदाहरण के लिए दुर्घटना मृत्यु लाभ, गंभीर बीमारी सुरक्षा और आंशिक या स्थायी विकलांगता लाभ वाली लाइफ इंश्योरैंस पौलिसी आधारभूत पौलिसी के मूल्य को बहुत अधिक बढ़ा सकती है. इसलिए लाइफ इंश्योरैंस पौलिसी के साथ ऐड औन राइडर खरीदने से पहले आप को अपनी जरूरतों का जायजा ले लेना चाहिए.

4. क्लेम सैटलमैंट रेश्यो को समझें

क्लेम सैटलमैंट रेश्यो से इस बात का पता चलता है कि एक इंश्योरैंस कंपनी द्वारा पिछले साल कुल कितना प्रतिशत इंश्योरैंस क्लेम का निबटान किया गया था. सीएसआर जितना अधिक होता है, उतना ही बेहतर होता है. आईआरडीए हर साल क्लेम सैटलमैंट रेश्यो डेटा जारी करता है ताकि ग्राहकों को सही इंश्योरैंस कंपनी का चयन करने में मदद मिल सके. याद रखें कि आप का परिवार आप की मौत के बाद इंश्योरैंस के लिए क्लेम करेगा और यदि क्लेम रिजैक्ट होता है तो उस की वजह से पैदा होने वाली समस्याओं को हल करने के लिए उस समय आप वहां मौजूद नहीं होंगे.

5. प्रीमियम का खर्च

पौलिसी के प्रीमियम की जांच करें. बाजार में ऐसी कई लाइफ इंश्योरैंस पौलिसियां मौजूद हैं, जो बहुत कम प्रीमियम लेती हैं. सिर्फ कीमत के आधार पर पौलिसियों की तुलना न करें. सीएसआर, सेवा की गुणवत्ता, बीमा राशि, कार्यकाल, राइडर इत्यादि पर भी विचार करें. आप को अपनी क्षमता और जरूरत के अनुसार अच्छी से अच्छी पौलिसी लेने की कोशिश करनी चाहिए.

6. बीमा राशि में परिवर्तन

आमतौर पर जब कोई पौलिसी खरीदी जाती है तब उस की बीमा राशि नहीं बदलती है. आप एक ऐसी पौलिसी खरीदने पर विचार कर सकते हैं, जिस की बीमा राशि उस के कार्यकाल के दौरान बढ़ती रहती है. इस से आप को महंगाई के जोखिमों से अपने जीवन को अधिक प्रभावशाली ढंग से सुरक्षित रखने में मदद मिलती है. इसी तरह कुछ इंश्योरैंस कंपनियां आप को एक सीमित अवधि तक ही प्रीमियम देने के लिए कहती हैं और पौलिसी अवधि के अनुसार संपूर्ण कार्यकाल के दौरान जीवन सुरक्षा प्रदान करती हैं. सही पौलिसी चुनने के लिए आप को उस पौलिसी से जुड़ी सभी सुविधाओं और विशेषताओं की जांच कर लेनी चाहिए और बाजार में मौजूद इसी तरह की अन्य पौलिसियों के साथ उस की तुलना भी कर लेनी चाहिए.

ये भी पढ़ें- क्रिएटिव आइडियाज से ऐसे घर को संवारे

7. औनलाइन खरीदें या औफलाइन

औनलाइन या औफलाइन से पौलिसी खरीदने के अपनेअपने लाभ और नुकसान हैं. इसलिए कोई भी पौलिसी खरीदते समय उस पौलिसी की विशेषताओं, मूल्यों और सेवा की गुणवत्ता के बारे में जरूर जान लें. प्रीमियत संबंधी खर्च कम होने के कारण औनलाइन पौलिसियों की लोकप्रियता बढ़ती जा रही है. आप के लिए कौन सी पौलिसी सब से बेहतर है, इस का पता लगाने के लिए आप टैलीफोन पर उपलब्ध सलाहकारों की मदद ले सकते हैं. गलत पौलिसी खरीद लेने पर आप के आश्रितों को आर्थिक जोखिमों का सामना करना पड़ सकता है. अत: इस क्षेत्र से जुड़े विशेषज्ञों की राय ले कर ही सही पौलिसी खरीदें और अपने परिवार को आर्थिक सुरक्षा प्रदान करें.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें