कर ले तू भी मुहब्बत

लेखिका- मेहा गुप्ता

कर ले तू भी मुहब्बत- भाग 3

लेखिका- मेहा गुप्ता

उस दिन अवि और मुसकान दोनों बहुत ही खुश थे. अब उन दोनों के बीच चैटिंग भी बढ़ने लगी थी. पहले मिनटों… फिर घंटों… जिन बातों का कोई मतलब नहीं होता है, उन्हें करने में भी अजीब सुकून मिलता. एक अजीब सा इंतजार रहता दिनभर और नजरें फोन के नोटिफिकेशंस पर टिकी रहतीं. इस तरह से हर संडे मिलते हुए भी कई महीने हो गए थे.

अब कुछ महीनों से मुसकान के साथ कुछ अलग होने लगा था… एक मदहोशी सी उस पर छाई रहती, क्योंकि प्यार फिजाओं में घुल गया था. ऐसा इस से पहले उस ने कभी महसूस नहीं किया था. वह काफी बदलने लगी थी. पढ़ाई से पहले अवि से चैटिंग उस की प्राथमिकता बन गया था. वह रूम में भी हमेशा वेलड्रेस्ड रहती, क्या पता, कब अवि उसे वीडियो काल कर दे.

“तुम ने टीशर्ट बहुत अच्छी पहन रखी है,” एक दिन कैफे में मुसकान ने कहा.

“हां, मम्मा की पसंद है. वो हैं ही इतनी सुपर्ब… वे अच्छे से जानती हैं कि मेरे लिए क्या अच्छा है और क्या बुरा. मेरी सारी शौपिंग वे ही करती हैं.”

इस के पहले भी मुसकान ने महसूस किया था कि उस की मम्मी की बात आने पर वह कुछ ज्यादा ही उत्साही हो जाता था और मम्मी की तारीफों के पुल बांधने लगता. और उस की कोई भी चैट मम्मी के जिक्र के बिना पूरी नहीं होती थी.

इस तरह एहसासों में डूबतेउतरते मुसकान फोर्थ ईयर में आ गई. समय ने, साथ ने और किस्मत ने उन दोनों के बीच प्रेम अंकुरित कर दिया था, जिस से मुसकान की आंखों में भविष्य के सपने उग आए थे.

“मम्मीपापा मेरा ग्रेजुएशन पूरा होते ही शादी कर देना चाहते हैं. और अब तो मेरी जौब भी लग गई है. वो मुझे एग्जाम के तुरंत बाद अपने पास बुला लेंगे,” उस ने लगभग रोआंसी आवाज में कहा था.

“तुम अपनी मम्मी से हमारे बारे में कब बात करने वाले हो?” रोजाना की पहली चैट में मुसकान का यह पहला सवाल होता था.

“हां, जल्द ही…” अवि का भी रोज यही जवाब होता. फिर एक दिन अवि के मुंह से मुसकान को वो शब्द सुनने को मिले, जिन्हें सुनने के लिए मुसकान के कान तरस गए थे.

“मम्मा को तुम बहुत पसंद आई हो और उन्होंने हमारे रिश्ते को हरी झंडी दे दी है,” सुनते ही मुसकान इतनी खुश हो गई कि उस ने फोन पर ही उसे एक बड़ी सी स्मूच दे डाली. यह उन के बीच की पहली स्मूच थी. उन दोनों के बीच का रिश्ता अगले मुकाम यानी शादी की ओर बढ़ रहा था, जिस की डोर अब पूरी तरह से मुसकान ने अपने हाथ में ले ली थी.

“हे शोना… तुम्हारे लिए बहुत बड़ी खुशखबरी है… तुम एक मिलियेनर की बीवी बनने जा रही हो. मुझे एक बहुत ही अच्छी जौब करने का मौका मिला है.”

एक दिन फोन कर के अवि ने मुसकान से कहा था. वैसे तो अवि बहुत उत्साही था… जिंदगी से भरपूर… पर, उस दिन उस की आवाज में गजब का आत्मविश्वास था.

“वाओ कोन्ग्रेट्स… कौन सी जौब है? कौन से शहर में है?” मुसकान ने भी उस की धुन पर थिरकते हुए एक ही सांस में कई सवाल दाग दिए.

“मेरे होमटाउन में… मुंबई में,” सुन कर मुसकान कुछ अनमनी सी हो गई.

“तुम्हें पता है ना… मेरा प्लेसमेंट दिल्ली में हुआ है. यह जौब लाखों दिलों का सपना होता है और मुझे कितनी आसानी से मिल गई है.”

“तुम तो इतने ब्राइट हो, तुम्हें दिल्ली में भी आसानी से कोई जौब मिल जाएगी, पर मेरे लिए नई जौब ढूंढ़ना बहुत मुश्किल होगा.”

“तुम्हारी हर डिमांड ऐक्सेप्टेबल है जान… सिवा इस के… इतनी बड़ी कुर्बानी मत मांगो मुझ से. मैं अपनी मां को अकेले छोड़, इतनी दूर दिल्ली नहीं रह सकता. मैं दुनिया की सारी खुशियां तुम्हारे कदमों में बिछा दूंगा. इतनी मेहनत करूंगा कि तुम्हें नौकरी की जरूरत ही नहीं पड़ेगी. फिर भी तुम अपनी संतुष्टि के लिए करना चाहो तो छोटीमोटी कोई भी जौब तो तुम्हें कहीं भी मिल जाएगी.”

“मेरे एम्बिशंस का… मेरे सपनों का कोई मोल नहीं…? जिस की खातिर मैं ने इतनी मेहनत की है.

“और तुम्हारी मम्मा अकेली कहां हैं…? तुम्हारे पापा हैं ना उन के साथ. और जब तुम चाहोगे, हम उन से मिलने मुंबई चले जाएंगे… फ्लाइट से सिर्फ एक घंटे की तो दूरी है. और फिर मैं भी तो अपनी मम्मा को छोड़ कर तुम्हारे साथ दिल्ली में रहूंगी, जबकि तुम जानते हो, मैं भी सिंगल चाइल्ड हूं और मैं भी हमेशा उन के साथ रहना चाहती हूं,” कहते हुए मुसकान की आवाज भर्रा गई थी.

“कैसी बच्चों जैसी बातें कर रही हो तुम? तुम दुनिया में ऐसी पहली लड़की थोड़ी हो, जो ऐसा करने जा रही है.”

मुसकान ने सिर्फ बाय कहा और फोन दिया. फिर उन दोनों के फोन की स्क्रीन्स पर एक सन्नाटा सा छा गया था. फिजाओं में जहां अभी तक एक नशा सा घुला हुआ था, खुश्की सी आ गई थी.

मुसकान ना तो अवि का काल ऐक्सेप्ट कर रही थी और ना ही उस के मैसेज का जवाब दे रही थी. उसे बहुत बुरा लग रहा था. उसे लगा, अचानक उस के ख्वाबों के दरख्त पर किसी ने पत्थर मार कर उस में लगे सब से ताजा और सुर्ख फूल को तोड़ उस की पंखुड़ियों को बिखेर दिया हो.

“हर चीज की हद होती है, अभी तो हमारी शादी भी नहीं हुई है. ये सारा दिन मम्मीमम्मी करता रहता है. कोई चैट ऐसी नहीं गई होगी, जब उस की मम्मी का जिक्र ना आया हो… मम्मी के पहलू में ही बंधे रहना था, तो मेरी जिंदगी में आया ही क्यों?” खुद से बड़बड़ाती हुई वह रोने लगी थी.

मुसकान ने खुद को पढ़ाई में व्यस्त कर लिया था, जिस से अवि की यादों से उस का सामना ना हो जाए. पर अवि के प्यार के पौधे की जड़ें मुसकान के दिल में इतने गहरे तक पैठ गई थीं कि उस की प्रेम के पौधे पर जबतब उस की याद के फूल खिल आते थे.

एक दिन उस के जेहन में एक मासूम सा खयाल आया. अगर वह अपनी मां से इतना प्यार करता है, तो यह तो मेरे लिए खुशी की वजह होनी चाहिए कि उसे रिश्तों की इतनी कद्र है या वह परिवार के प्रति अपनी जिम्मदारियों को समझता है. वह परिवार से बढ़ कर अपने कैरियर को अहमियत देता, तो उस के जैसे जीनियस को देश या विदेश में कहीं भी इस से बेहतर नौकरी के अवसर मिल सकते थे. जब वह अपनी मां से इतना प्यार करता है, तो उस से कितना प्यार करेगा. और वह खुद भी तो अपनी मम्मी से कितना प्यार करती है और दिन में कितनी ही बार उन से फोन पर बात कर हर छोटी सी बातों में उन की राय लेती है. जब वो खुद मम्माज गर्ल है, तो उसे अवि के मम्माज बौय होने पर इतना एतराज क्यों है. हर इनसान की कोई ना कोई कमजोरी होती है और उस में खुद में भी तो कितनी कमियां हैं… वह चाह कर भी कभी अवि जितनी स्मार्ट नहीं बन सकती और अवि महानगरीय वातावरण में पलाबढ़ा है… बावजूद इस के अवि उसे दिलोजान से चाहता है.

उस ने बिना एक भी पल गवाए अवि को मैसेज कर दिया, “विल यू मैरी मी…?”

उस का फोन “मैसेज सेंट” दिखा रहा था, पर आधा घंटा बीत जाने पर भी अवि की तरफ से कोई जवाब ना मिलने पर उस के मन में उदासी सी छा गई, पर उसे अपने प्यार पर पूरा भरोसा था.

“कहीं ऐसा तो नहीं… अवि ने मैसेज ही ना पढ़ा हो…” पर वह इस सचाई को भी नहीं झुठला सकती थी कि जिस वक्त उस ने मैसेज किया था, उस वक्त अवि औनलाइन था. इतनी देर से उस की आंखों की कोरों पर टिके आंसू ढुलकने को बेताब होने लगे थे. उन दोनों के होस्टल्स की दूरी एक घंटे की थी. ठीक अगले एक घंटे में मुसकान के फोन पर अवि का वीडियो काल था. मुसकान की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. वह लाल गुलाबों का बुके लिए उस की होस्टल की सामने वाली सड़क पर खड़ा था.

अवि ने उस का विश्वास नहीं तोड़ा था, शायद उस का मैसेज पढ़ते ही वो उस से मिलने के लिए निकल गया था. वह दौड़ कर अवि के पास गई और उस के गले से लग गई… कभी ना बिछुड़ने के लिए, मुसकान खुश थी. देर से ही सही, पर उसे अपने सपनों का राजकुमार मिल ही गया. उस ने महसूस किया कि फिजाओं में फिर से मदहोशी सी छाने लगी थी और उस के ख्वाबों के उस दरख्त पर फिर से ढेरों फूल उग आए थे… पहले से ज्यादा ताजा और सुर्ख.

कर ले तू भी मुहब्बत- भाग 2

 

भले ही आकाश के दिल में उस के लिए कोई जगह नहीं थी, सिर्फ अट्रैक्शन था, पर वह नादान तो आकाश की नशीली बातों को प्यार समझ बैठी थी.

अब वह भी चाशनी में भीगे हुए दुनिया के सब से मीठे अल्फाज… मुहब्बत का स्वाद चख लेना चाहती थी. अपने दिल के कोरे पेपर पर किसी का नाम लिख देना चाहती थी. इसलिए उस ने भी आकाश का नाम अपने दिलोदिमाग और लैपटौप से झटक कर अलग कर दिया और फिर से अपना टिंडर अकाउंट खोल कर बैठ गई.
उस की नजर फ्रेंड सजेशन पर गई. उस ने तुरंत वह प्रोफाइल खोली. नाम था क्रिश और वह एमबीए का छात्र था.

इस बार वह कोई गलती नहीं करना चाहती थी. वो कहते हैं ना, दूध का जला छाछ भी फूंकफूंक कर पीता है. उस ने अपनी समझदारी का परिचय देते हुए क्रिश का फेसबुक और इंस्टा अकाउंट भी खंगाल डाला. इस तहकीकात के दौरान उस ने जाना कि वो एक पढ़ाकू किस्म का लड़का है, जिस ने ओलिंपियाड जैसी कई कंपटीशन का प्रथम खिताब अपने नाम कर रखा था. इस के सिवा वह भी मुसकान की तरह साहित्यप्रेमी था. कई प्रसिद्ध हिंदी और अंगरेजी साहित्यों के रिव्यू उस की वाल पर थे.

मुसकान ने सोचा कि कला प्रेमी है… वह जरूर ही बहुत डीसेंट होगा और प्यार की रूहानी गहराई को समझता होगा… ना कि सिर्फ जिस्मानी संबंध बनाने को इच्छुक होगा. उस ने राइट स्वाइप कर दिया, क्रिश भी जैसे बरसों से इसी पल की तलाश में था, तुरंत इट्स अ मैच का नोटिफिकेशन मुसकान की स्क्रीन पर आ गया.

“मुसकानजी, हम ने आप को आप के कालेज के एन्यूअल फंक्शन में देखा था, तब से ही आप को दिल दे बैठे हैं. और आप हम पर भरोसा रखिएगा… ये सिर्फ फ्लर्ट नहीं हम आप से सच्चीमुच्ची का प्रेम करते हैं.

“आप यकीन मानिएगा, आप हमारा पहला और आखिरी प्यार हैं. टिंडर और फेसबुक पर कब से आप को रिक्वेस्ट भेज कर आप के जवाब में राहों में फूल बिछा कर बैठे हैं.

“आप को एक सीक्रेट बताएं… आप के दीदार के लिए तो कई दीवाने कालेज छूटने के वक्त कालेज गेट के बाहर मंडराते रहते हैं. उन में से एक हम भी हैं…

“और आप इतनी हसीन हैं कि जब आप पास से गुजरती हैं तो लगता है कि इत्र की शीशी खोल कर किसी ने हमारे बीच रख दी हो, जिस में हम डूबतेउतरते रहते हैं,” क्रिश ने शरमाते हुए कहा था.

उस की इस मासूमियत भरी दरियाफ्त पर मुसकान हंसे बिना नहीं रह पाई थी.

“तो आप बिहार से हैं…?”

“ओ… हो… तो आप भी हम में उतनी ही इंट्रेस्टेड हैं और हमारी पूरी कुंडली भी निकाल चुकी हैं .”

“नहीं क्रिश, ऐसी कोई बात नहीं है. इनसान की भाषा उसे खुद ब खुद बयान कर देती है. बाय द वे… आई लव्ड योर नेम… क्रिश.”

“थैंकयू… वैसे, हमारा गुड नेम तो कृष्णा है, पर यहां मुंबई आ कर अपनेआप क्रिश में तबदील हो गया. हम यहां पोपुलर ही इतने हैं. बचपन से ही मैथ्स विषय में हमारी पकड़ बहुत मजबूत रही है. मुश्किल से मुश्किल सवाल भी हम चुटकियों में सोल्व कर जाते हैं.”

“ओ वाउ… दैट्स वंडरफुल .. मे गौड कंटीन्यू टू शावर ब्लेससिंग्स औन यू.”

“हां मुसकानजी, आप को हम सच बताएं, तो यह सब ऊपर वाले से मांगी मनौती का ही परिणाम है,” कहते हुए उस ने अपने दोनों हाथ जोड़ लिए.

मुसकान ने देखा कि उस ने अपने हाथों में ग्रहों को रिझाने के लिए अलगअलग अंगूठी और गले में भी तावीज पहन रखा था. पर फिर भी क्रिश उसे संस्कारी और एक भला लड़का लगा. देखने में भी वह ठीकठाक था, क्योंकि इस से पहले उस का पाला आकाश से पड़ा था, जो अल्ट्राफास्ट था. धीरेधीरे दोनों के बीच चैटिंग बढ़ने लगी. दोनों एकदूसरे के साथ अधिक समय व्यतीत करने लगे.

“अच्छा मुसकानजी बाय… मैं आप से शाम को बात करूंगा,” एक दिन चैट के दरमियान क्रिश ने मुसकान से कहा.

“अरे, अचानक ऐसे क्यों बाय…?” मुसकान ने पूछा.

“वो क्या है ना, मुझे एग्जाम का फार्म भरना है. सवा 6 बजे का समय बहुत अच्छा है और 6 बज कर 10 बज चुके हैं, वरना शुभ समय टल जाएगा.”

डिसकनेक्ट होने के बाद मुसकान सोचने पर मजबूर हो गई थी. अपने कैरियर के लिए सजग होना अच्छी बात है… पर क्रिश का इतना अंधविश्वासी होना उसे रास नहीं आया. उसे लगने लगा कि क्रिश एक नेकदिल लड़का है और दोस्ती के लिए विश्वसनीय भी है, पर उस के सपनों का राजकुमार तो हरगिज नहीं है. अब वह काफी मायूस थी और शायद सीरियस भी…

पर, अब वह हार मानने वाली नहीं थी, वह भी अन्य लड़कियों की तरह अपने कालेज की ऐक्साइटिंग लाइफ जीना चाहती थी, जिस से वह अब तक महरूम थी. बायजू उस के फोन के ऐपस्टोर की लिस्ट में सब से नीचे चला गया था और उस की जगह कुछ महीनों से टिंडर ने ले ली थी.

वह कुछ सोच पाती, तभी उस की नजर अपने मेल बौक्स पर गई. उस में अरविंद के कई मेल्स थे, वह श्रीराम कालेज में पढ़ता था. वैसे तो उस का नाम अरविंद था, पर सब प्यार से उसे अवि बुलाते थे.

“उफ्फ,” उस ने पिछले कई दिनों से अपना मेल बौक्स ही चैक नहीं किया था. अवि ने उसे पोयट्री के सारे चैप्टर्स के नोट्स भेजे थे, जो अगले महीने होने वाले एग्जाम में आने वाले थे.

अवि और उस की पहचान ‘थौट बबल’ नाम के एक फेसबुक ग्रुप, जो लिटरेचर के स्टूडेंट्स द्वारा बनाया गया था, के जरीए हुई थी. वह एमए करने के बाद पीएचडी कर रहा था, इसलिए उस की अन्य स्टूडेंट्स और प्रोफैसर्स से काफी पहचान थी. वह मुसकान के लिए टौपर्स द्वारा बनाए नोट्स मेल कर दिया करता था. वह दूसरे लड़कों से बिलकुल अलग था. जहां दूसरे लड़के सोशल मीडिया पर नईनई गर्लफ्रैंड्स बनाने और आभासी रिश्ते निभाने में व्यस्त रहते थे, वहीं वो पार्टटाइम जौब कर अपना खर्च खुद निकालता था और अपना बचा हुआ समय लाइब्रेरी में बिताता था.

गोराचिट्टा, लंबा, स्मार्ट और बिलकुल स्ट्रेटफोर्वर्ड. पहली बार में ही वह चौकलेटी लगा था मुसकान को. इसलिए वह दिन में कई बार अवि का फेसबुक अकाउंट खोलती थी.

एक साल से ऊपर हो गए थे फेसबुक पर दोनों की दोस्ती हुए, वह मुसकान का कितना खयाल रखता था और मुसकान भी तो उस के मैसेज का, उस के काल्स का कितनी बेसब्री से इंतजार करती थी. यह प्यार नहीं तो और क्या था.

अवि ने लफ्जों से शायद कुछ ना कहा हो, पर वह बिना कहे उस की जरूरतों को, उस की परेशानियों को समझ जाता था. कितनी नासमझ निकली वो, जो उस की फिक्र में छिपे प्यार के कंपन को महसूस ही नहीं कर पाई थी. अकसर हम वही सुनते हैं, जो बात हमारे कान सुन पाते हैं, पर किसी के मौन में छिपे… अनकहे शब्दों को महसूस ही नहीं कर पाते, जो शब्दों से भी अधिक संजीदा होते हैं. उस का बुक कैबिनेट तो रोमांटिक साहित्य का दरिया था, जहां से सिर्फ मुहब्बत के अलगअलग एहसासों की लहरें उठा करती थीं. कैबिनेट में सब से ऊपर रखी किताब, जो उस ने हाल ही में पढ़ी थी, से कुछ पंक्तियां बहती हुई सी आईं और उसे झकझोर गईं…
“राज खोल देते हैं
नाजुक से इशारे अकसर,
कितनी खामोश
मुहब्बत की जबान होती है…”

उसे लगा, उस का साहित्य प्रेम बेकार ही गया… जब वह खुद के दिल में दस्तक दे रही प्यार की आहट को महसूस नहीं कर पाई.

अभी फेयरवैल पार्टी की तो बात है. उस ने अवि को खुद की तरफ अपलक निहारते हुए पकड़ लिया था. वह समझ गई थी कि अवि की पलकों में भी एक नया ख्वाब जन्म ले रहा है. उस के पूरे बदन में एक सिहरन सी दौड़ गई.

“चलो मुसकान, एक सेल्फी हो जाए,” कहते हुए अवि उस का हाथ पकड़ते हुए गार्डन में ले आया. उस के स्पर्श ने मुसकान की रूह को अंदर तक भिगो दिया था. वो दोनो पार्टी के बाद भी कैफे में बैठ कर घंटों बातें करते रहे.

“क्या हम हर संडे यहां कैफे में मिल सकते हैं?” उस के प्रणय निवेदन के साथ ही मुसकान के दिल में भी नई ख्वाहिशें मचलने लगी थीं.

कर ले तू भी मुहब्बत- भाग 1

यह कहानी है दिल्ली के प्रसिद्ध लेडी श्रीराम कालेज की, जहां मुसकान अपनी 3 सीनियर्स के साथ गर्ल्स होस्टल में रहती थी. उस का पहली मेरिट लिस्ट में ही एडमिशन हो गया था. वह बहुत ऐक्साइटेड थी, क्योंकि लाखों युवा दिलों की तरह उस का भी सपना था कि वह इस कालेज में पढ़ कर अपने सपने पूरे कर पाए. वह मेरठ से थी.

शुरू में तो उसे महानगर की चकाचौंध का हिस्सा बनने में वक्त लगा था, पर उस की रूममेट्स के अत्यधिक कूल होने के कारण जल्दी ही उस की तीनों के साथ अच्छी जमने लगी थी. कौफी बनाना, बाजार से छोटेमोटे सामान लाना, यहां तक कि अपनी दीदी के कपड़े धोना तक के काम उस के ही हिस्से में थे. वे उस की मेंटर, गाइड और बड़ी बहनें थीं. उन की गाइडेंस में ही उस की फुल जींस घुटनों तक की शार्ट्स और टौप्स की साइज कटते हुए क्रॉप टौप पर और आस्तीन तो गायब ही हो गई थी.

सालभर में ही वह अपने नए हैयरस्टाइल और स्वैग के साथ अपनी घरेलू और डेढ़ फुटी इमेज से बाहर निकल कर एक बेहद ही खूबसूरत दोशीजा में बदल गई थी… जिसे देखते ही किसी के भी मुंह से अनायास ही ‘सो क्यूट’ निकल जाया करता था. ऊपर वाले ने उसे बला की खूबसूरती से नवाजा
था. वह सिर्फ जबान से ही नहीं बोलती थी… उस की बोलती तीखी आंखों के साथ उस के कानों में पहनी जाने वाली बड़ीबड़ी बालियां भी उस के बोलने पर, मुसकराने पर चहक उठती थीं. वह अन्य लड़कियों से बिलकुल अलग थी. लड़कों से कतराने वाली, कालेज कैंपस की रंगीन चकाचौंध से अलगथलग रहने वाली और हर वक्त किताबों में डूबी रहने वाली.

उस दिन कालेज की फेयरवैल पार्टी थी. वहां की फिजाओं में मानो एक नशा सा घुल गया था. कालेज कैंपस में उस की तीनों सीनियर्स की आखिरी रात थी. मौसम में जुदाई की एक कसक सी थी, पर उदास हो कर कोई भी इस पल को खोना नहीं चाहता था. पार्टी के बाद हग्ज और किसेज की बौछारें हो रही थीं. कुछ फिर से मिलने की… तो कुछ सोशल मीडिया से जुड़े रहने की… तो कुछ जिंदगीभर एकदूसरे का साथ निभाने का वादा किए बिछुड़ रहे थे. रूम में आ कर भी पार्टी की खुमारी उतरने का नाम नहीं ले रही थी.

मुसकान ने मोबाइल की घड़ी पर नजर डाली. रात के एक बज रहे थे. पर तीनों में से कोई भी सो कर अपना वक्त जाया नहीं करना चाहती थीं. वो तीनों एक ही पलंग पर औंधे पड़े आपस में कोई वीडियो शेयर कर रही थीं और एकदूसरे से इशारों में बातें कर रही थीं और कभी मुंह पर हाथ लगा कर जोर से हंस पड़तीं. जैसे ही मुसकान उन के पास कौफी के मग ले कर आई और उस ने वीडियो के बारे में उत्सुकता दिखाई, “आप लोग क्या देख रहे हो?”

“बेबी… ये पोर्नवोर्न तेरे बस की बात नहीं है… तू टीवी पर डोरेमोन देख,” कहते हुए तीनों हाई फाइव देते हुए जोर से हंस पड़ीं.

‘इस में इतना हंसने वाली कौन सी बात है?’ वह मन ही मन बुदबुदा उठी. इस बीच फ्रेंच किस… वाइल्ड सैक्स, फक, क्रश जैसे शब्द उस के कान से टकराए थे, जो उस की डिक्शनरी में बिलकुल नए थे. उन शब्दों का अर्थ गूगल पर सर्च कर उन का मतलब जान लेने के बाद उस के दिल की बगिया में भी खुशबूदार फूल खिलने लगे थे.

‘बस, अब बहुत हो गया जिंदगी को सीधी चाल से चलते हुए… अब मैं भी सब को दिखा दूंगी कि मैं भी बड़ी हो गई हूं.’

बस यह खयाल बारबार उस के मन को छूने लगा था. फेसबुक और इंस्टा पर तो उस का अकाउंट था ही… इस बार उस ने टिंडर पर अपना अकाउंट बनाने की सोची, जिस में उस की साथ वाली लड़कियों ने तो महारत हासिल कर रखी थी. वह सेल्फी स्टिक उठा लाई और अलगअलग पोज और आउटफिट्स में कम से कम सौ क्लिक्स ले डालीं. फिर उन में से सब से अच्छी फोटो पसंद कर टिंडर पर अपनी प्रोफाइल बनाई और लौगइन कर दिया. इस के साथ ही उस की स्क्रीन पर कई प्रोफाइल उभरे… प्रोफाइल्स काफी इंट्रेस्टिंग थी. उस ने थोड़ी हिम्मत कर, ऊपर वाले का नाम ले उस ने एक प्रोफाइल पर राइट स्वाइप कर उसे सुपर लाइक कर दिया. उस का दिल जोरों से धकधक करने लगा. डर के मारे उस ने अपनी आंखें भींच लीं. कुछ ही पलों में ‘इट्स अ मैच’ का नोटिफिकेशन उस की मोबाइल स्क्रीन पर उभरा और अगले ही पल एक मैसेज आ गया, “व्हाट अ ब्यूटीफुल स्माइल… इट परफेक्ट मैचेस विद योर नेम सैक्सी.”

सैक्सी विशेषण उस के लिए बिलकुल नया था. वह एक बार को तो घबराई, पर फिर एक स्माइली के साथ रिप्लाई किया, ” थैंक्स…”

“मुझे थैंक्स नहीं, कुछ और चाहिए …” मुसकान की स्क्रीन पर फिर से एक मैसेज पौपअप हुआ.

“क्या…?”

“मुसकान… तो फिर कौफीहाउस पर मिलते हैं स्वीटहार्ट.”

“मिलना… डूड, आप शायद भूल रहे हैं… इट्स अवर फर्स्ट चैट… कुछ सेकंड पहले तो हम जुड़े हैं और आप मिलने की बात कर रहे हैं.”

“जान, आप भी शायद भूल रही हैं. आप टिंडर पर हैं और यह एक डेटिंग ऐप है.”

‘ज्ज्ज्जान…’ उसे लगा, यह शब्द सुन कर तो उस की जान ही निकल जाने वाली है, पर उस ने कुछ हिम्मत दिखाते हुए रिप्लाई किया, “क्यों ना हम पहले एफबी पर फ्रेंडशिप करते हैं… फिर डेटिंग करेंगे…”

“क्या बेबी… तुम भी… ओके. एनीथिंग फोर यू, पर मेरी एक शर्त है.”

“क्या शर्त है…?”

“तुम मुझे वीडियो काल कर एक किस करोगी.”

मुसकान को समझ नहीं आ रहा था कि वह कैसे रीऐक्ट करे? वह बड़ी असमंजस में थी… घबराहट के मारे उस के हाथ कांपने लगे थे. उस ने बाय कह कर फोन डिसकनेक्ट कर दिया. पर उस के बाद दोनों के बीच फेसबुक पर चैट का सिलसिला चल पड़ा, जो एक हफ्ते तक चला. पर आकाश ने 8वें दिन उसे मिलने के लिए राजी कर ही लिया.

उस ने अपनी जिंदगी की पहली डेटिंग के लिए पिंक ट्यूनिक पसंद की थी. आकाश पहले से ही कैफे में बैठा उस का इंतजार कर रहा था. उस पर नजर पड़ते ही अपने होंठों के बीच दबी सिगरेट को निकाल जूतों से मसल दी और लपक कर उसे बांहों में भर कानों पर… गालों पर किस करने लगा.

सिगरेट की असहनीय बदबू के भभके ने उसे आकाश से खुद को अलग करने के लिए मजबूर कर दिया. वैसे भी वो इन सब के लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं थी.

“तुम हर लड़की से इसी तरह मिलते हो क्या?”

“हर लड़की से नहीं. तुम तो मेरी गर्लफ्रेंड हो… तो मेरा तुम पर हक है,” कहते हुए वह फिर से उस के होंठों को चूमने लगा.

मुसकान ने धीरे से खुद को अलग किया और ठगी हुई सी आकाश की ओर ताकने लगी. उस की आंखों में आंसू थे, जिन्हें देख कर आकाश को भी कुछ झुंझलाहट सी होने लगी थी.

“तुम इन सब में इंट्रेस्टेड नहीं थी, तो डेटिंग पर आई ही क्यों?”

“मुझे फर्स्ट डेटिंग पर ये सब एक्सपेक्टेड नहीं था.”

“और मुझे भी लेडी श्रीराम कालेज की लड़की से इतना दकियानूसीपन और पिछड़ापन एक्सपेक्टेड नहीं था,” कहते हुए उस ने अपनी बाइक स्टार्ट की और तेजी से वहां से निकल गया, मुसकान को और उस की भीगी पलकों को बहुत पीछे छोड़ कर.

पर दूसरी तरफ, पूरे 2 दिन लगे थे मुसकान को इन सब से उबरने में.

2 दिन बाद जब वह सामान्य हुई, तो उस ने अपना टिंडर का अकाउंट खोल आकाश को मैसेज करना चाहा, तो उसे पता चला कि वो आकाश द्वारा ब्लौक कर दी गई थी.

उस ने पहली बार ब्रेकअप के बाद की उदासी का स्वाद चखा था.

 

शुभस्य शीघ्रम: कौनसी घटना घटी थी सुरभि के साथ 

हैडऔफिस से ब्रांच औफिस के कर्मचारियों को अचानक निर्देश मिला कि इस काम को आज ही पूरा किया जाए, तो काम पूरा करते रात के 10 बज गए. नई नियुक्त सुरभि को उस के घर छोड़ने की जिम्मेदारी मैं ने ले ली, क्योंकि मेरा और उस का घर आसपास है.

मैं सुरभि के साथ घर के लिए रवाना हुआ, तो वह चुप बैठी थी. बातचीत मैं ने शुरू की, ‘‘तुम ने एम.बी.ए. कहां से किया सुरभि?’’

‘‘जी, वाराणसी से.’’

‘‘यहां फ्लैट में रहती हो या पी.जी. में?’’

‘‘सर, पी.जी. में.’’

‘‘घर पर कौनकौन है?’’

‘‘सर, मैं अकेली हूं.’’

‘‘हांहां यहां तो अकेली ही हो. मैं तुम्हारे घर के बारे में पूछ रहा हूं.’’

‘‘जी, मैं अकेली ही हूं.’’

‘‘क्या मतलब सुरभि, घर पर मम्मीपापा, भाईबहन तो होंगे न?’’

‘‘सर, मेरा कोई नहीं. मेरे पापा बहुत पहले चल बसे थे. 4 माह पहले मां का भी देहांत हो गया. मैं उन की इकलौती संतान हूं,’’ उस का चेहरा दुख से मलिन हो गया तथा आंखें सजल

हो गईं.

‘‘ओह सौरी, मैं ने तुम्हें दुखी कर दिया.’’

हम दोनों के बीच कुछ देर चुप्पी पसर गई. फिर चुप्पी तोड़ते हुए मैं ने पूछा, ‘‘तुम्हें, फिल्में देखना पसंद है?’’

‘‘सर, टीवी पर देख लेती हूं. मेरा टीवी हर समय औन रहता है.’’

‘‘ओहो, पूरे समय टीवी का शोर. सिरदर्द नहीं हो जाता तुम्हें?’’

‘‘नहीं सर, बंद टीवी से हो जाता है. शांत वातावरण में मुझे अपने दुखदर्द कचोटते हैं.’’

उस ने इतनी गमगीन गंभीरता से यह बात कही तो मैं ने कहा, ‘‘सही बात है, स्वयं को व्यस्त रखने का कोई बहाना तो चाहिए ही. मैं भी हर समय म्यूजिक सुनता रहता हूं.’’

फिर थोड़ी देर में उस का पी.जी. आ गया तो उस ने नीची नजरों से मुझे थैंक्स कहा और गाड़ी से उतर गई. मैं भी उसे बाय, गुडनाइट कहता हुआ आगे निकल गया.

अगले दिन से हम दोनों की ही नजरों में एकदूसरे के लिए कुछ विशेष था. मुझ से नजरें मिलते ही वह नजरें झका लेती थी. मौका देख कर मैं ने कहा, ‘‘सुरभि, हम दोनों का औफिस आनेजाने का रास्ता एक ही है. हम रोज साथ में आनाजाना कर सकते हैं. हां मैं इतना दावे के साथ कह सकता हूं कि तुम मुझ पर विश्वास कर सकती हो.’’

उस ने मुसकराते हुए नीची नजरों से सहमति प्रकट कर दी.

फिर हम दोनों साथसाथ ही आनेजाने लगे.

हमारे बीच अपनत्व पनप चुका था. एक दिन मैं ने पहल करते हुए कहा, ‘‘सुरभि, हमें मिले ज्यादा समय तो नहीं हुआ, किंतु मेरा मन रातदिन तुम्हारे नाम की माला जपता रहता है. मैं तुम्हें चाहने लगा हूं और तुम से शादी करना चाहता हूं. मैं तुम्हारे मन की बात भी जानना चाहता हूं. और हां, मेरा नाम राज है, वही बोलो. ये सर, सर क्या लगा रखा है?’’

मेरे इतना कहने पर भी वह खामोश रही तो मैं ने उस के कंधे पर हाथ रख पूछा, ‘‘क्या बात है, सुरभि खामोश क्यों हो?’’

मेरा अपनत्व पा कर वह फफक कर रो पड़ी, ‘‘राज सर, मेरा बलात्कार हो चुका है. मैं कलंकित हूं. मुझे कोई कैसे स्वीकार करेगा? मैं इस कलंक को पूरी उम्र ढोने के लिए मजबूर हूं…’’

मैं ने उस के होंठों पर अपना हाथ रखते हुए कहा, ‘‘सुरभि, स्वयं को संभालो. मैं तुम्हें अपनाऊंगा. तुम से शादी करूंगा. स्वयं को हीन न समझे. चलो सब से पहले थोड़ा पानी पी कर स्वयं को संयत करो.’’

वह पानी पी कर कुछ शांत हुई, किंतु आंसू बहाती रही.

‘‘देखो सुरभि, तुम्हारे गुजरे कल से मेरा कोई सरोकार नहीं है, लेकिन मैं तुम्हारे साथ अपना आज और आने वाला कल संवारना चाहता हूं. किंतु हां, जो हादसा तुम्हें इतना दुखी कर गया है, उसे अवश्य बांटना चाहूंगा. तुम अपनी आपबीती, बे?िझक मुझे बताओ. तुम्हारे सामने तुम्हारा दोस्त, हितैषी, हमदर्द बैठा हुआ है.’’

वह धीमे स्वर में बोली, ‘‘राज, हमारे गांव में दादा साहब के यहां मेरे पापाजी अकाउंटैंट का काम करते थे. उन के बेटे बाबा साहब भी अपने पिता की तरह पापाजी की ईमानदारी की बहुत इज्जत करते थे और दोनों ही पापाजी से मित्रवत व्यवहार करते थे. एक दिन काम करते हुए अचानक पापाजी का दिल का दौरा पड़ने से देहांत हो गया. उन दोनों ने हम लोगों की सहायता के लिए हर माह पैंशन देने की घोषणा करते हुए आदेश दिया कि जब तक वे दोनों हैं तब तक पैंशन हमारे परिवार को दी जाए.

‘‘पैंशन से हम लोगों का घर खर्च चलने लगा, फिर 3 सालों में दादा साहब एवं बाबा साहब का निधन हो गया तो उन का बेटा शहर से गांव आ गया और कामकाज देखने लगा.

‘‘उस दिन हर माह की तरह मैं पैंशन लेने पहुंची थी. मैं बहुत खुश थी, क्योंकि मेरा 12वीं का रिजल्ट आ गया था और मुझे बहुत अच्छे अंक मिले थे. वहां काम करने वाले रजत से मालूम हुआ कि मुझे पैंशन लेने लंच टाइम में पुन: आना होगा, क्योंकि अभी छोटे साहब बाहर गए हुए हैं.

‘‘मैं लंच टाइम में दोबारा वहां पहुंची तो देखा वह बैठा हुआ जैसे मेरा इंतजार ही कर रहा था. मुझे देखते ही बोला, ‘बधाई हो सुरभि, सुना है तुम्हारे बहुत अच्छे नंबर आए हैं.’

‘‘मैं ने पैंशन की बात कही तो बोला, ‘अरे बैठो, खड़ी क्यों हो? थोड़ा शरबत तो पी लो. इतनी दुपहरिया में तो आई हो.’

‘‘फिर शरबत का एक गिलास उस ने स्वयं उठा लिया तथा दूसरा मेरी ओर सरका दिया.

‘‘मैं यह सोच कर कि ये बडे़ लोग हैं, इन की कही बातों को मानना चाहिए शरबत पी गई. फिर जब होश आया तो स्वयं को निर्वस्त्र पाया. मेरे ऊपर वह दरिंदा भी निर्वस्त्र पड़ा हुआ था. सारा माहौल देख कर व अपनी शारीरिक पीड़ा से इतना तो समझ सकी कि इस दुष्ट ने मेरा सर्वनाश कर दिया है.

‘‘मेरी दशा घायल शेरनी सी हो रही थी, पर वह दरिंदा मेरी बरबादी का आनंद

लेता हुआ बोला, ‘मुफ्त में पैसा ले जाती है तो अच्छा लगता है. आज अपना हक वसूल लिया

तो काटने दौड़ती है. खबरदार, चुपचाप निकल ले. वह तेरे बाप की पैंशन रखी है, तेरी कीमत

भी बढ़ा कर उस में रख दी है. गिन ले, कम

लगे तो और ले ले. जो कीमत कहेगी दे दूंगा. बहुत आनंद मिला. तू ने मुझे अपना प्रशंसक

बना लिया है. तू तो मुझे पहली नजर में ही भा

गई थी…’ और न जाने क्याक्या वह निर्लज्ज बकता रहा.

‘‘उस के पैसे वहीं छोड़ कर, लड़खड़ाते कदमों से मैं जब घर पहुंची तो उस वक्त मां के पास पासपड़ोस की औरतें भी बैठी हुई थीं. मैं मां के गले लग कर फफकफफक कर रोती हुई सब बोल गई. मां के साथ सभी ने मेरी आपबीती सुन ली तो वे अपनेअपने ढंग से सभी ढाढ़स बंधा कर चली गईं. मां पत्थर की मूर्ति सी बन गईं.

‘‘2 दिनों तक हम मांबेटी, अपने दुख के साथ घर में अकेली बंद पड़ी रहीं. जो पासपड़ोस रातदिन हमारे घर आताजाता रहता था, कोई झंकने नहीं आया, जैसे हमारे घर में छूत की बीमारी हो गई हो. 2 दिनों बाद पड़ोस की राधा दीदी खाना ले कर आईं और बोलीं, ‘भाभी,

यों पत्थर बनने से काम नहीं चलेगा. दिल को मजबूत करो. बिट्टो की हिम्मत बन कर उसे

राह दिखाओ, मेरा कहा मानो तो इस गांव से दूर चली जाओ.’

‘‘दीदी का अपनत्व पा कर, मां के दिल में जमा दर्द आंखों से आंसू बन कर बह निकला. वे रोते हुए बोलीं, ‘दीदी, जिस गांव को अपना रक्षक मानती थी, वही तो इज्जत का भक्षक बन बैठा, अब मैं अकेली विधवा, एक जवान, खूबसूरत लड़की को ले कर कहां जाऊं?’

‘‘दीदी, मां को सस्नेह गले लगा कर बोलीं, ‘भाभी, यों हिम्मत हारने से काम नहीं बनेगा. यहां रातदिन इसी कुकर्म की चर्चा से जीना दूभर हो जाएगा. बिट्टो अच्छे अंक लाई है. यहां का घरबार बेच कर, वाराणसी चली जाओ. उसे पढ़ाओ, पैरों पर खड़ा करो. भैया भी तो यही चाहते थे. भाभी, उन का सपना पूरा करना भी तो तुम्हारा कर्तव्य है.

‘‘मां पर उन की बातों का अवश्य कुछ असर हुआ, जिस से वे कुछ शांत हो गईं. फिर धीरे से बोलीं, ‘घर के लिए इतनी जल्दी ग्राहक ढूंढ़ना भी कठिन है, सौ बातें उठेंगी.’

‘‘तो वे बोलीं, ‘भाभी, तुम उठने वाली बातों की चिंता छोड़ो, बिट्टो का जीवन संवारने की सोचो. बहुत से लोग हैं जो घरजमीन खरीदना चाहते हैं. तुम तो जाने की तैयारी करो. हां इस बात का पूरा ध्यान रखना कि किसी को कानोकान खबर न हो कि तुम कहां जा रही हो.’

‘‘दीदी की मदद से गांव का सब काम निबटा कर हम वाराणसी आ पहुंचे. यहां थोड़ी भागदौड़ के बाद मां को एक बुटीक में काम मिल गया और मुझे अच्छे कालेज में ऐडमिशन. दोनों अपनेअपने काम में तनमन से लग गईं.’’

राज, यह मां ने ही कहा था कि कभी शादी के निर्णय का समय आए, तो अपने साथी को अवश्य बता देना. अन्य किसी के सामने कभी भी इस दुष्कर्म की चर्चा न करना.’’

यह कह कर सुरभि खामोश हो गई तो मैं ने उस के हाथों पर हाथ रखते हुए कहा, ‘‘मैं तुम्हें और तुम्हारी मां की हिम्मत को तहे दिल से सलाम करता हूं. रोज ही टीवी पर, पेपर्स में इस तरह की दुर्घटनाएं सुनने, पढ़ने को मिल जाती हैं. हमेशा से पुरुष वर्ग स्त्रियों पर इस तरह के जुल्म करता रहा है.

‘‘इन ज्यादतियों की जड़ें हमारे धार्मिक ग्रंथों से भी जुड़ी हुई हैं. रामायण में वर्णित है कि सीता को रावण हरण कर ले जाता है तो उन के पति राम उन की पवित्रता की अग्निपरीक्षा लेते हैं. उस के बाद भी उन्हें त्याग कर वनवास हेतु मजबूर कर दिया जाता है.’’

वह दिन शनिवार का दिन था. हम दोनों लगभग 2 बजे औफिस से निकले थे और अब समय 4 से ऊपर हो चुका था. हम दोनों का मन भी कसैला हो गया था तथा कुछ भूख भी लग आई थी, इसलिए हम पास के रैस्टोरैंट में चले गए. वहां सुरभि ने आहिस्ता से कहा, ‘‘राज, मैं अपने कलंक से आप का जीवन बरबाद नहीं करना चाहती. मुझे माफ कीजिएगा, मैं बेवजह आप की राह में आ गई.’’

‘‘कैसी बातें करती हो सुरभि’’, मैं ने उस के करीब आ कर कहा, मैं तहेदिल से तुम से प्यार करने लगा हूं. प्यार कोई सूखा पत्ता नहीं होता, जो हवा से उड़ जाए. वह तो मजबूत चट्टान सा अडिग होता है, जो अनेक तूफानों का सामना कर सकता है.

‘‘एक अनजान पुरुष ने तुम्हारे साथ दुष्कर्म किया, उस से तुम कैसे कलंकित हो

गई? उस की सजा तुम क्यों पाओगी? जो भी सजा मिलनी चाहिए, उस दुष्कर्मी को मिलनी चाहिए, तुम स्वयं को हीन न समझे, मैं तुम्हारे साथ हूं. हम दोनों मिल कर एक खुशहाल दुनिया बसाएंगे, जहां घृणा तिरस्कार नहीं, सिर्फ प्यार और विश्वास होगा.’’

‘‘राज, आप को विश्वास है कि आप के मातापिता मुझ जैसी लड़की को अपनाएंगे, स्वीकार करेंगे?’’ उस ने अपनी शंका धीरे से व्यक्त की.

‘‘हां, मुझे पूरा विश्वास है. वे दोनों बहुत समझदार हैं और दकियानूसी विचारों के नहीं हैं. मेरे परिवार में मेरे कुछ कजिंस ने अंतर्जातीय विवाह किए तो उस मौके पर सारे परिवार को समझने का काम मेरे मम्मीपापा ने ही किया.

‘‘मैं अपने मम्मीपापा को अपने प्यार

अपने निर्णय के बारे में तो बताऊंगा. मुझे पूरा विश्वास है कि जीवन और समाज के प्रति

मेरी इस सकारात्मक सोच, मेरी पहल का वे स्वागत करेंगे.’’

मैं ने प्यार से उस का हाथ अपने हाथों में

ले कर कहा, ‘‘सुरभि, मेरी इस सकारात्मक

पहल में मेरा साथ दोगी न? मेरी हमसफर बन कर मेरा संबल बनोगी न? यदि मम्मीपापा को समझने में थोड़ा समय लग जाए, तो मेरा इंतजार करोगी न?’’

उस ने मुसकराते हुए सहमति से सिर हिला दिया.

मैं ने गाड़ी की रफ्तार बढ़ाते हुए कहा, ‘‘चलो, फिर आज ही तुम्हें मम्मीपापा से मिलवा देता हूं, देरी क्यों करना, शुभस्य शीघ्रम.’’

वह खिलखिला कर हंस पड़ी. उस की हंसी में मेरी खुशी समाहित थी, इसलिए वह खुशहाल जीवन की ओर इशारा करती प्रतीत हो रही थी.

हयात: रेहान ने क्यों थामा उसका हाथ

‘‘कल जल्दी आ जाना.’’

‘‘क्यों?’’ हयात ने पूछा.

‘‘कल से रेहान सर आने वाले हैं और हमारे मिर्जा सर रिटायर हो रहे हैं.’’

‘‘कोशिश करूंगी,’’ हयात ने जवाब तो दिया लेकिन उसे खुद पता नहीं था कि वह वक्त पर आ पाएगी या नहीं.

दूसरे दिन रेहान सर ठीक 10 बजे औफिस में पहुंचे. हयात अपनी सीट पर नहीं थी. रेहान सर के आते ही सब लोगों ने खड़े हो कर गुडमौर्निंग कहा. रेहान सर की नजरों से एक खाली चेयर छूटी नहीं.

‘‘यहां कौन बैठता है?’’

‘‘मिस हयात, आप की असिस्टैंट, सर,’’ क्षितिज ने जवाब दिया.

‘‘ओके, वह जैसे ही आए उन्हें अंदर भेजो.’’

रेहान लैपटौप खोल कर बैठा था. कंपनी के रिकौर्ड्स चैक कर रहा था. ठीक 10 बज कर 30 मिनट पर हयात ने रेहान के केबिन का दरवाजा खटखटाया.

‘‘में आय कम इन, सर?’’

‘‘यस प्लीज, आप की तारीफ?’’

‘‘जी, मैं हयात हूं. आप की असिस्टैंट?’’

‘‘मुझे उम्मीद है कल सुबह मैं जब आऊंगा तो आप की चेयर खाली नहीं होगी. आप जा सकती हैं.’’

हयात नजरें झुका कर केबिन से बाहर निकल आई. रेहान सर के सामने ज्यादा बात करना ठीक नहीं होगा, यह बात हयात को समझे में आ गई थी. थोड़ी ही देर में रेहान ने औफिस के स्टाफ की एक मीटिंग ली.

‘‘गुडआफ्टरनून टू औल औफ यू. मुझे आप सब से बस इतना कहना है कि कल से कंपनी के सभी कर्मचारी वक्त पर आएंगे और वक्त पर जाएंगे. औफिस में अपनी पर्सनल लाइफ को छोड़ कर कंपनी के काम को प्रायोरिटी देंगे. उम्मीद है कि आप में से कोई मुझे शिकायत का मौका नहीं देगा. बस, इतना ही, अब आप लोग जा सकते हैं.’’

‘कितना खड़ूस है. एकदो लाइंस ज्यादा बोलता तो क्या आसमान नीचे आ जाता या धरती फट जाती,’ हयात मन ही मन रेहान को कोस रही थी.

नए बौस का मूड देख कर हर कोई कंपनी में अपने काम के प्रति सजग हो गया. दूसरे दिन फिर से रेहान औफिस में ठीक 10 बजे दाखिल हुआ और आज फिर हयात की चेयर खाली थी. रेहान ने फिर से क्षितिज से मिस हयात को आते ही केबिन में भेजने को कहा. ठीक 10 बज कर 30 मिनट पर हयात ने रेहान के केबिन का दरवाजा खटखटाया.

‘‘मे आय कम इन, सर?’’

‘‘जी, जरूर, मुझे आप का ही इंतजार था. अभी हमें एक होटल में मीटिंग में जाना है. क्या आप तैयार हैं?’’

‘‘जी हां, कब निकलना है?’’

‘‘उस मीटिंग में आप को क्या करना है, यह पता है आप को?’’

‘‘जी, आप मुझे कल बता देते तो मैं तैयारी कर के आती.’’

‘‘मैं आप को अभी बताने वाला था. लेकिन शायद वक्त पर आना आप की आदत नहीं. आप की सैलरी कितनी है?’’

‘‘जी, 30 हजार.’’

‘‘अगर आप के पास कंपनी के लिए टाइम नहीं है तो आप घर जा सकती हैं और आप के लिए यह आखिरी चेतावनी है. ये फाइल्स उठाएं और अब हम निकल रहे हैं.’’

हयात रेहान के साथ होटल में पहुंच गई. आज एक हैदराबादी कंपनी के साथ मीटिंग थी. रेहान और हयात दोनों ही टाइम पर पहुंच गए. लेकिन सामने वाली पार्टी ने बुके और वो आज आएंगे नहीं, यह मैसेज अपने कर्मचारी के साथ भेज दिया. उस कर्मचारी के जाते ही रेहान ने वो फूल उठा कर होटल के गार्डन में गुस्से में फेंक दिए. ‘‘आज का तो दिन ही खराब है,’’ यह बात कहतेकहते वह अपनी गाड़ी में जा कर बैठ गया.

रेहान का गुस्सा देख कर हयात थोड़ी परेशान हो गई और सहमीसहमी सी गाड़ी में बैठ गई. औफिस में पहुंचते ही रेहान ने हैदराबादी कंपनी के साथ पहले किए हुए कौंट्रैक्ट के डिटेल्स मांगे. इस कंपनी के साथ 3 साल पहले एक कौंट्रैक्ट हुआ था लेकिन तब हयात यहां काम नहीं करती थी, इसलिए उसे वह फाइल मिल नहीं रही थी.

‘‘मिस हयात, क्या आप शाम को फाइल देंगी मुझे’’ रेहान केबिन से बाहर आ कर हयात पर चिल्ला रहा था.

‘‘जी…सर, वह फाइल मिल नहीं रही.’’

‘‘जब तक मुझे फाइल नहीं मिलेगी, आप घर नहीं जाएंगी.’’

यह बात सुन कर तो हयात का चेहरा ही उतर गया. वैसे भी औफिस में सब के सामने डांटने से हयात को बहुत ही इनसल्टिंग फील हो रहा था. शाम के 6 बज चुके थे. फाइल मिली नहीं थी.

‘‘सर, फाइल मिल नहीं रही है.’’

रेहान कुछ बोल नहीं रहा था. वह अपने कंप्यूटर पर काम कर रहा था. रेहान की खामोशी हयात को बेचैन कर रही थी. रेहान का रवैया देख कर वह केबिन से निकल आईर् और अपना पर्स उठा कर घर निकल गई. दूसरे दिन हयात रेहान से पहले औफिस में हाजिर थी. हयात को देखते ही रेहान ने कहा, ‘‘मिस हयात, आज आप गोडाउन में जाएं. हमें आज माल भेजना है. आई होप, आप यह काम तो ठीक से कर ही लेंगी.’’

हयात बिना कुछ बोले ही नजर झुका कर चली गई. 3 बजे तक कंटेनर आए ही नहीं. 3 बजने के बाद कंटेनर में कंपनी का माल भरना शुरू हुआ. रात के 8 बजे तक काम चलता रहा. हयात की बस छूट गई. रेहान और उस के पापा कंपनी से बाहर निकल ही रहे थे कि कंटेनर को देख कर वे गोडाउन की तरफ मुड़ गए. हयात एक टेबल पर बैठी थी और रजिस्टर में कुछ लिख रही थी.

तभी मिर्जा साहब के साथ रेहान गोडाउन में आया. हयात को वहां देख कर रेहान को, कुछ गलत हो गया, इस बात का एहसास हुआ.

‘‘हयात, तुम अभी तक घर नहीं गईं,’’ मिर्जा सर ने पूछा.

‘‘नहीं सर, बस अब जा ही रही थी.’’

‘‘चलो, जाने दो, कोई बात नहीं. आओ, हम तुम्हें छोड़ देते हैं.’’

अपने पापा का हयात के प्रति इतना प्यारभरा रवैया देख कर रेहान हैरान हो रहा था, लेकिन वह कुछ बोल भी नहीं रहा था. रेहान का मुंह देख कर हयात ने ‘नहीं सर, मैं चली जाऊंगी’ कह कर उन्हें टाल दिया. हयात बसस्टौप पर खड़ी थी. मिर्जा सर ने फिर से हयात को गाड़ी में बैठने की गुजारिश की. इस बार हयात न नहीं कह सकी.

‘‘हम तुम्हें कहां छोड़ें?’’

‘‘जी, मुझे सिटी हौस्पिटल जाना है.’’

‘‘सिटी हौस्पिटल क्यों? सबकुछ ठीक तो है?’’

‘‘मेरे पापा को कैंसर है, उन्हें वहां ऐडमिट किया है.’’

‘‘फिर तो तुम्हारे पापा से हम भी एक मुलाकात करना चाहेंगे.’’

कुछ ही देर में हयात अपने मिर्जा सर और रेहान के साथ अपने पापा के कमरे में आई.

‘‘आओआओ, मेरी नन्ही सी जान. कितना काम करती हो और आज इतनी देर क्यों कर दी आने में. तुम्हारे उस नए बौस ने आज फिर से तुम्हें परेशान किया क्या?’’

हयात के पापा की यह बात सुन कर तो हयात और रेहान दोनों के ही चेहरे के रंग उड़ गए.

‘‘बस अब्बू, कितना बोलते हैं आप. आज आप से मिलने मेरे कंपनी के बौस आए हैं. ये हैं मिर्जा सर और ये इन के बेटे रेहान सर.’’

‘‘आप से मिल कर बहुत खुशी हुई सुलतान मियां. अब कैसी तबीयत है आप की?’’ मिर्जा सर ने कहा.

‘‘हयात की वजह से मेरी सांस चल रही है. बस, अब जल्दी से किसी अच्छे खानदान में इस का रिश्ता हो जाए तो मैं गहरी नींद सो सकूं.’’

‘‘सुलतान मियां, परेशान न हों. हयात को अपनी बहू बनाना किसी भी खानदान के लिए गर्व की ही बात होगी. अच्छा, अब हम चलते हैं.’’

इस रात के बाद रेहान का हयात के प्रति रवैया थोड़ा सा दोस्ताना हो गया. हयात भी अब रेहान के बारे में सोचती रहती थी. रेहान को अपनी तरफ आकर्षित करने के लिए सजनेसंवरने लगी थी.

‘‘क्या बात है? आज बहुत खूबसूरत लग रही हो,’’ रेहान का छोटा भाई आमिर हयात के सामने आ कर बैठ गया. हयात ने एकबार उस की तरफ देखा और फिर से अपनी फाइल को पढ़ने लगी. आमिर उस की टेबल के सामने वाली चेयर पर बैठ कर उसे घूर रहा था. आखिरकार हयात ने परेशान हो कर फाइल बंद कर आमिर के उठने का इंतजार करने लगी. तभी रेहान आ गया. हयात को आमिर के सामने इस तरह से देख कर रेहान परेशान तो हुआ लेकिन उस ने देख कर भी अनदेखा कर दिया.

दूसरे दिन रेहान ने अपने केबिन में एक मीटिंग रखी थी. उस मीटिंग में आमिर को रेहान के साथ बैठना था. लेकिन वह जानबूझ कर हयात के बाजू में आ कर बैठ गया. हयात को परेशान करने का कोई मौका वह छोड़ नहीं रहा था. लेकिन हयात हर बार उसे देख कर अनदेखा कर देती थी. एक दिन तो हद ही हो गई. आमिर औफिस में ही हयात के रास्ते में खड़ा हो गया.

‘‘रेहान तुम्हें महीने के 30 हजार रुपए देता है. मैं एक रात के दूंगा. अब तो मान जाओ.’’

यह बात सुनते ही हयात ने आमिर के गाल पर एक जोरदार चांटा जड़ दिया. औफिस में सब के सामने हयात इस तरह रिऐक्ट करेगी, इस बात का आमिर को बिलकुल भी अंदाजा नहीं था. हयात ने तमाचा तो लगा दिया लेकिन अब उस की नौकरी चली जाएगी, यह उसे पता था. सबकुछ रेहान के सामने ही हुआ.

बस, आमिर ने ऐसा क्या कर दिया कि हयात ने उसे चाटा मार दिया, यह बात कोई समझ नहीं पाया. हयात और आमिर दोनों ही औफिस से निकल गए.

दूसरे दिन सुबह आमिर ने आते ही रेहान के केबिन में अपना रुख किया.

‘‘भाईजान, मैं इस लड़की को एक दिन भी यहां बरदाश्त नहीं करूंगा. आप अभी और इसी वक्त उसे यहां से निकाल दें.’’

‘‘मुझे क्या करना है, मुझे पता है. अगर गलती तुम्हारी हुई तो मैं तुम्हें भी इस कंपनी से बाहर कर दूंगा. यह बात याद रहे.’’

‘‘उस लड़की के लिए आप मुझे निकालेंगे?’’

‘‘जी, हां.’’

‘‘यह तो हद ही हो गई. ठीक है, फिर मैं ही चला जाता हूं.’’

रेहान कब उसे अंदर बुलाए हयात इस का इंतजार कर रही थी. आखिरकार, रेहान ने उसे बुला ही लिया. रेहान अपने कंप्यूटर पर कुछ देख रहा था. हयात को उस के सामने खड़े हुए 2 मिनट हुए. आखिरकार हयात ने ही बात करना शुरू कर दिया.

‘‘मैं जानती हूं आप ने मुझे यहां बाहर करने के लिए बुलाया है. वैसे भी आप तो मेरे काम से कभी खुश थे ही नहीं. आप का काम तो आसान हो गया. लेकिन मेरी कोई गलती नहीं है. फिर भी आप मुझे निकाल रहे हैं, यह बात याद रहे.’’

रेहान अचानक से खड़ा हो कर उस के करीब आ गया, ‘‘और कुछ?’’

‘‘जी नहीं.’’

‘‘वैसे, आमिर ने किया क्या था?’’

‘‘कह रहे थे एक रात के 30 हजार रुपए देंगे.’’

आमिर की यह सोच जान कर रेहान खुद सदमे में आ गया.

‘‘तो मैं जाऊं?’’

‘‘जी नहीं, आप ने जो किया, बिलकुल ठीक किया. जब भी कोई लड़का अपनी मर्यादा भूल जाए, लड़की की न को समझ न पाए, फिर चाहे वह बौस हो, पिता हो, बौयफ्रैंड हो उस के साथ ऐसा ही होना चाहिए. लड़कियों को छेड़खानी के खिलाफ जरूर आवाज उठानी चाहिए. मिस हयात, आप को नौकरी से नहीं निकाला जा रहा है.’’

‘‘शुक्रिया.’’

अब हयात की जान में जान आ गई. रेहान उस के करीब आ रहा था और हयात पीछेपीछे जा रही थी. हयात कुछ समझ नहीं पा रही थी.

रेहान ने हयात का हाथ अपने हाथ में ले लिया और आंखों में आंखें डालते हुए बोला, ‘‘मिस हयात, आप बहुत सुंदर हैं. जिम्मेदारियां भी अच्छी तरह से संभालती हैं और एक सशक्त महिला हैं. इसलिए मैं तुम्हें अपनी जीवनसाथी बनाना चाहता हूं.’’

हयात कुछ समझ नहीं पा रही थी. क्या बोले, क्या न बोले. बस, शरमा कर हामी भर दी.

रूठी रानी उमादे: क्यों संसार में अमर हो गई जैसलमेर की रानी

रेतीले राजस्थान को शूरवीरों की वीरता और प्रेम की कहानियों के लिए जाना जाता है. राजस्थान के इतिहास में प्रेम रस और वीर रस से भरी तमाम ऐसी कहानियां भरी पड़ी हैं, जिन्हें पढ़सुन कर ऐसा लगता है जैसे ये सच्ची कहानियां कल्पनाओं की दुनिया में ढूंढ कर लाई गई हों.

मेड़ता के राव वीरमदेव और राव जयमल के काल में जोधपुर के राव मालदेव शासन करते थे. राव मालदेव अपने समय के राजपूताना के सर्वाधिक शक्तिशाली शासक थे. शूरवीर और धुन के पक्के. उन्होंने अपने बल पर  जोधपुर राज्य की सीमाओं का काफी विस्तार किया था. उन की सेना में राव जैता व कूंपा नाम के 2 शूरवीर सेनापति थे.

यदि मालदेव, राव वीरमदेव व उन के पुत्र वीर शिरोमणि जयमल से बैर न रखते और जयमल की प्रस्तावित संधि मान लेते, जिस में राव जयमल ने शांति के लिए अपने पैतृक टिकाई राज्य जोधपुर की अधीनता तक स्वीकार करने की पेशकश की थी, तो स्थिति बदल जाती. जयमल जैसे वीर, जैता कूंपा जैसे सेनापतियों के होते राव मालदेव दिल्ली को फतह करने में समर्थ हो जाते.

राव मालदेव के 31 साल के शासन काल तक पूरे भारत में उन की टक्कर का कोई राजा नहीं था. लेकिन यह परम शूरवीर राजा अपनी एक रूठी रानी को पूरी जिंदगी नहीं मना सका और वह रानी मरते दम तक अपने पति से रूठी रही.

जीवन में 52 युद्ध लड़ने वाले इस शूरवीर राव मालदेव की शादी 24 वर्ष की आयु में वर्ष 1535 में जैसलमेर के रावल लूनकरण की बेटी राजकुमारी उमादे के साथ हुई थी. उमादे अपनी सुंदरता व चतुराई के लिए प्रसिद्ध थीं. राठौड़ राव मालदेव की शादी बारात लवाजमे के साथ जैसलमेर पहुंची. बारात का खूब स्वागतसत्कार हुआ. बारातियों के लिए विशेष ‘जानी डेरे’ की व्यवस्था की गई.

ऊंट, घोड़ों, हाथियों के लिए चारा, दाना, पानी की व्यवस्था की गई. राजकुमारी उमादे राव मालदेव जैसा शूरवीर और महाप्रतापी राजा पति के रूप में पाकर बेहद खुश थीं. पंडितों ने शुभ वेला में राव मालदेव की राजकुमारी उमादे से शादी संपन्न कराई.

चारों तरफ हंसीखुशी का माहौल था. शादी के बाद राव मालदेव अपने सरदारों व सगेसंबंधियों के साथ महफिल में बैठ गए. महफिल काफी रात गए तक चली.

इस के बाद तमाम घराती, बाराती खापी कर सोने चले गए. राव मालदेव ने थोड़ीथोड़ी कर के काफी शराब पी ली थी.

उन्हें नशा हो रहा था. वह महफिल से उठ कर अपने कक्ष में नहीं आए. उमादे सुहाग सेज पर उन की राह देखतीदेखती थक गईं. नईनवेली दुलहन उमादे अपनी खास दासी भारमली जिसे उमादे को दहेज में दिया गया था, को मालदेव को बुलाने भेजने का फैसला किया. उमादे ने भारमली से कहा, ‘‘भारमली, जा कर रावजी को बुला लाओ. बहुत देर कर दी उन्होंने…’’

भारमली ने आज्ञा का पालन किया. वह राव मालदेव को बुलाने उन के कक्ष में चली गई. राव मालदेव शराब के नशे में थे. नशे की वजह से उन की आंखें मुंद रही थीं कि पायल की रुनझुन से राव ने दरवाजे पर देखा तो जैसे होश गुम हो गए. फानूस तो छत में था, पर रोशनी सामने से आ रही थी. मुंह खुला का खुला रह गया.

जैसे 17-18 साल की कोई अप्सरा सामने खड़ी थी. गोरेगोरे भरे गालों से मलाई टपक रही थी. शरीर मछली जैसा नरमनरम. होंठों के ऊपर मौसर पर पसीने की हलकीहलकी बूंदें झिलमिला रही थीं होठों से जैसे रस छलक रहा हो.

भारमली कुछ बोलती, उस से पहले ही राव मालदेव ने यह सोच कर कि उन की नवव्याहता रानी उमादे है, झट से उसे अपने आगोश में ले लिया. भारमली को कुछ बोलने का मौका नहीं मिला या वह जानबूझ कर नहीं बोली, वह ही जाने.

भारमली भी जब काफी देर तक वापस नहीं लौटी तो रानी उमादे ने जिस थाल से रावजी की आरती उतारनी थी, उठाया और उस कक्ष की तरफ चल पड़ीं, जिस कक्ष में राव मालदेव का डेरा था.

उधर राव मालदे ने भारमली को अपनी रानी समझ लिया था और वह शराब के नशे में उस से प्रेम कर रहे थे. रानी उमादे जब रावजी के कक्ष में गई तो भारमली को उन के आगोश में देख रानी ने आरती का थाल यह कह कर ‘अब राव मालदेव मेरे लायक नहीं रहे,’ पटक दिया और वापस चली गईं.

अब तक राव मालदेव के सब कुछ समझ में आ गया था. मगर देर हो चुकी थी. उन्होंने सोचा कि जैसेतैसे रानी को मना लेंगे. भारमली ने राव मालदेव को सारी बात बता दी कि वह उमादे के कहने पर उन्हें बुलाने आई थी. उन्होंने उसे कुछ बोलने नहीं दिया और आगोश में भर लिया. रानी उमादे ने यहां आ कर यह सब देखा तो रूठ कर चली गईं.

सुबह तक राव मालदेव का सारा नशा उतर चुका था. वह बहुत शर्मिंदा हुए. रानी उमादे के पास जा कर शर्मिंदगी जाहिर करते हुए कहा कि वह नशे में भारमली को रानी उमादे समझ बैठे थे.

मगर उमादे रूठी हुई थीं. उन्होंने स्पष्ट कह दिया कि वह बारात के साथ नहीं जाएंगी. वो भारमली को ले जाएं. फलस्वरूप एक शक्तिशाली राजा को बिना दुलहन के एक दासी को ले कर बारात वापस ले जानी पड़ी.

रानी उमादे आजीवन राम मालदेव से रूठी ही रहीं और इतिहास में रूठी रानी के नाम से मशहूर हुईं. जैसलमेर की यह राजकुमारी रूठने के बाद जैसलमेर में ही रह गई थीं. राव मालदेव दहेज में मिली दासी भारमली बारात के साथ बिना दुलहन के जोधपुर आ गए थे. उन्हें इस का बड़ा दुख हुआ था. सब कुछ एक गलतफहमी के कारण हुआ था.

राव मालदेव ने अपनी रूठी रानी उमादे के लिए जोधपुर में किले के पास एक हवेली बनवाई. उन्हें विश्वास था कि कभी न कभी रानी मान जाएगी.

जैसलमेर की यह राजकुमारी बहुत खूबसूरत व चतुर थी. उस समय उमादे जैसी खूबसूरत महिला पूरे राजपूताने में नहीं थी. वही सुंदर राजकुमारी मात्र फेरे ले कर राव मालदेव की रानी बन

गई थी. ऐसी रानी जो पति से आजीवन रूठी रही. जोधपुर के इस शक्तिशाली राजा मालदेव ने उमादे को मनाने की बहुत कोशिशें कीं मगर सब व्यर्थ. वह नहीं मानी तो नहीं मानी. आखिर में राव मालदेव ने एक बार फिर कोशिश की उमादे को मनाने की. इस बार राव मालदव ने अपने चतुर कवि आशानंदजी चारण को उमादे को मना कर लाने के लिए जैसलमेर भेजा.

चारण जाति के लोग बुद्धि से चतुर व वाणी से वाकपटुता व उत्कृष्ट कवि के तौर पर जाने जाते हैं. राव मालदेव के दरबार के कवि आशानंद चारण बड़े भावुक थे. निर्भीक प्रकृति के वाकपटु व्यक्ति.

जैसलमेर जा कर आशानंद चारण ने किसी तरह अपनी वाकपटुता के जरिए रूठी रानी उमादे को मना भी लिया और उन्हें ले कर जोधपुर के लिए रवाना भी हो गए. रास्ते में एक जगह रानी उमादे ने मालदेव व दासी भारमली के बारे में कवि आशानंदजी से एक बात पूछी.

मस्त कवि समय व परिणाम की चिंता नहीं करता. निर्भीक व मस्त कवि आशानंद ने भी बिना परिणाम की चिंता किए रानी को 2 पंक्तियों का एक दोहा बोल कर उत्तर दिया—

माण रखै तो पीव तज, पीव रखै तज माण.

दोदो गयंदनी बंधही, हेको खंभु ठाण.

यानी मान रखना है तो पति को त्याग दे और पति को रखना है तो मान को त्याग दे. लेकिन दोदो हाथियों को एक ही खंभे से बांधा जाना असंभव है.

आशानंद चारण के इस दोहे की दो पंक्तियों ने रानी उमादे की सोई रोषाग्नि को वापस प्रज्जवलित करने के लिए आग में घी का काम किया. उन्होंने कहा, ‘‘मुझे ऐसे पति की आवश्यकता नहीं है.’’ रानी उमादे ने उसी पल रथ को वापस जैसलमेर ले चलने का आदेश दे दिया.

आशानंदजी ने मन ही मन अपने कहे गए शब्दों पर विचार किया और बहुत पछताए, लेकिन शब्द वापस कैसे लिए जा सकते थे. उमादे जो इतिहास में रूठी रानी के नाम से प्रसिद्ध है, अपनी रूपवती दासी भारमली के कारण ही अपने पति राजा मालदेव से रूठ गई थीं और आजीवन रूठी ही रहीं.

जैसलमेर आए कवि आशानंद चारण ने फिर रूठी रानी को मनाने की लाख कोशिश की लेकिन वह नहीं मानीं. तब आशानंदजी चारण ने जैसलमेर के राजा लूणकरणजी से कहा कि अपनी पुत्री का भला चाहते हो तो दासी भारमली को जोधपुर से वापस बुलवा लीजिए. रावल लूणकरणजी ने ऐसा ही किया और भारमली को जोधपुर से जैसलमेर बुलवा लिया.

भारमली जैसलमेर आ गई. लूणकरणजी ने भारमली का यौवन रूप देखा तो वह उस पर मुग्ध हो गए. लूणकरणजी का भारमली से बढ़ता स्नेह उन की दोनों रानियों की आंखों से छिप न सका. लूणकरणजी अब दोनों रानियों के बजाय भारमली पर प्रेम वर्षा कर रहे थे. यह कोई औरत कैसे सहन कर सकती है.

लूणकरणजी की दोनों रानियों ने भारमली को कहीं दूर भिजवाने की सोची. दोनों रानियां भारमली को जैसलमेर से कहीं दूर भेजने की योजना में लग गईं. लूणकरणजी की पहली रानी सोढ़ीजी ने उमरकोट अपने भाइयों से भारमली को ले जाने के लिए कहा लेकिन उमरकोट के सोढ़ों ने रावल लूणकरणजी से शत्रुता लेना ठीक नहीं समझा.

तब लूणकरणजी की दूसरी रानी जो जोधपुर के मालानी परगने के कोटड़े के शासक बाघजी राठौड़ की बहन थी, ने अपने भाई बाघजी को बुलाया. बहन का दुख मिटाने के लिए बाघजी शीघ्र आए और रानियों के कथनानुसार भारमली को ऊंट पर बैठा कर मौका मिलते ही जैसलमेर से छिप कर भाग गए.

लूणकरणजी कोटड़े पर हमला तो कर नहीं सकते थे क्योंकि पहली बात तो ससुराल पर हमला करने में उन की प्रतिष्ठा घटती और दूसरी बात राव मालदेव जैसा शक्तिशाली शासक मालानी का संरक्षक था. अत: रावल लूणकरणजी ने जोधपुर के ही आशानंद कवि को कोटडे़ भेजा कि बाघजी को समझा कर भारमली को वापस जैसलमेर ले आएं.

दोनों रानियों ने बाघजी को पहले ही संदेश भेज कर सूचित कर दिया कि वे बारहठजी आशानंद की बातों में न आएं. जब आशानंदजी कोटड़ा पहुंचे तो बाघजी ने उन का बड़ा स्वागतसत्कार किया और उन की इतनी खातिरदारी की कि वह अपने आने का उद्देश्य ही भूल गए.

एक दिन बाघजी शिकार पर गए. बारहठजी व भारमली भी साथ थे. भारमली व बाघजी में असीम प्रेम था. अत: वह भी बाघजी को छोड़ कर किसी भी हालत में जैसलमेर नहीं जाना चाहती थी.

शिकार के बाद भारमली ने विश्रामस्थल पर सूले सेंक कर खुद आशानंदजी को दिए. शराब भी पिलाई. इस से खुश हो कर बाघजी व भारमली के बीच प्रेम देख कर आशानंद जी चारण का भावुक कवि हृदय बोल उठे—

जहं गिरवर तहं मोरिया, जहं सरवर तहं हंस

जहं बाघा तहं भारमली, जहं दारू तहं मंस.

यानी जहां पहाड़ होते हैं वहां मोर होते हैं, जहां सरोवर होता है वहां हंस होते हैं. इसी प्रकार जहां बाघजी हैं, वहीं भारमली होगी. ठीक उसी तरह से जहां दारू होती है वहां मांस भी होता है.

कवि आशानंद की यह बात सुन बाघजी ने झठ से कह दिया, ‘‘बारहठजी, आप बड़े हैं और बड़े आदमी दी हुई वस्तु को वापस नहीं लेते. अत: अब भारमली को मुझ से न मांगना.’’

आशानंद जी पर जैसे वज्रपात हो गया. लेकिन बाघजी ने बात संभालते हुए कहा कि आप से एक प्रार्थना और है आप भी मेरे यहीं रहिए.

और इस तरह से बाघजी ने कवि आशानंदजी बारहठ को मना कर भारमली को जैसलमेर ले जाने से रोक लिया. आशानंदजी भी कोटड़ा गांव में रहे और उन की व बाघजी की इतनी घनिष्ठ दोस्ती हुई कि वे जिंदगी भर उन्हें भुला नहीं पाए.

एक दिन अचानक बाघजी का निधन हो गया. भारमली ने भी बाघजी के शव के साथ प्राण त्याग दिए. आशानंदजी अपने मित्र बाघजी की याद में जिंदगी भर बेचैन रहे. उन्होंने बाघजी की स्मृति में अपने उद्गारों के पिछोले बनाए.

बाघजी और आशानंदजी के बीच इतनी घनिष्ठ मित्रता हुई कि आशानंद जी उठतेबैठे, सोतेजागते उन्हीं का नाम लेते थे. एक बार उदयपुर के महाराणा ने कवि आशानंदजी की परीक्षा लेने के लिए कहा कि वे सिर्फ एक रात बाघजी का नाम लिए बिना निकाल दें तो वे उन्हें 4 लाख रुपए देंगे. आशानंद के पुत्र ने भी यही आग्रह किया.

कवि आशानंद ने भरपूर कोशिश की कि वह अपने कविपुत्र का कहा मान कर कम से कम एक रात बाघजी का नाम न लें, मगर कवि मन कहां चुप रहने वाला था. आशानंदजी की जुबान पर तो बाघजी का ही नाम आता था.

रूठी रानी उमादे ने प्रण कर लिया था कि वह आजीवन राव मालदेव का मुंह नहीं देखेगी. बहुत समझानेबुझाने के बाद भी रूठी रानी जोधपुर दुर्ग की तलहटी में बने एक महल में कुछ दिन ही रही और फिर उन्होंने अजमेर के तारागढ़ दुर्ग के निकट महल में रहना शुरू किया. बाद में यह इतिहास में रूठी रानी के नाम से प्रसिद्ध हुई.

राव मालदेव ने रूठी रानी के लिए तारागढ़ दुर्ग में पैर से चलने वाली रहट का निर्माण करवाया. जब अजमेर पर अफगान बादशाह शेरशाह सूरी के आक्रमण की संभावना थी, तब रूठी रानी कोसाना चली गई, जहां कुछ समय रुकने के बाद वह गूंदोज चली गई. गूंदोज से काफी समय बाद रूठी रानी ने मेवाड़ में केलवा में निवास किया.

जब शेरशाह सूरी ने मारवाड़ पर आक्रमण किया तो रानी उमादे से बहुत प्रेम करने वाले राव मालदेव ने युद्ध में प्रस्थान करने से पहले एक बार रूठी रानी से मिलने का अनुरोध किया.

एक बार मिलने को तैयार होने के बाद रानी उमादे ने ऐन वक्त पर मिलने से इनकार कर दिया.

रूठी रानी के मिलने से इनकार करने का राव मालदेव पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा और वह अपने जीवन में पहली बार कोई युद्ध हारे.

वर्ष 1562 में राव मालदेव के निधन का समाचार मिलने पर रानी उमादे को अपनी भूल का अहसास हुआ और कष्ट भी पहुंचा. उमादे ने प्रायश्चित के रूप में उन की पगड़ी के साथ स्वयं को अग्नि को सौंप दिया.

ऐसी थी जैसलमेर की भटियाणी उमादे रूठी रानी. वह संसार में रूठी रानी के नाम से अमर हो गईं.

पैबंद: क्या रमा ने पति को छोड़ दिया

घंटी बजी तो दौड़ कर उस ने दरवाजा खोला. सामने लगभग 20 साल का एक नवयुवक खड़ा था.

उस ने वहीं खड़ेखडे़ दरवाजे के बाहर से ही अपना परिचय दिया,”जी मैं मदन हूं, पवनजी का बेटा. पापा ने आप को संदेश भेजा होगा…”

“आओ भीतर आओ,” कह कर उस ने दरवाजे पर जगह बना दी.

मदन संकोच करता हुआ भीतर आ गया,”जी मैं आज ही यहां आया हूं. आप को तकरीबन 10 साल पहले देखा था, तब मैं स्कूल में पढ़ रहा था.

“आप की शादी का कार्ड हमारे घर आया था, तब मेरे हाईस्कूल के  ऐग्जाम थे इसलिए आप के विवाह में शामिल नहीं हो सका था. मैं यहां कालेज की पढ़ाई के लिए आया हूं और यह लीजिए, पापा ने यह सामान आप के लिए भेजा है,”कह कर उस ने एक बैग दे दिया. बैग में बगीचे के  ताजा फल, सब्जियां, अचार वगैरह थे.

उस ने खूब खुशी से आभार जता कर बैग ले लिया और उस को चायनाश्ता  वगैरह सर्व किया.

इसी बीच उस ने जोर दे कर कहा,”तुम यहीं पर रहो. मैं तुम्हारे पापा को कह चुकी हूं कि सबकुछ तैयार मिल जाएगा. तुम अपनी पढ़ाईलिखाई पर ध्यान देना.”

मदन यह सुन कर बस एक बार में ही मान गया मानों इसी बात को सुनने के  लिए बैचेन था. वह उठा और जल्दी से अपना सब सामान, जो उस ने बाहर बरामदे मे रखा था भीतर ले आया.

उस दिन मदन अपना कमरा ठीक करता रहा. कुछ ही देर बाद वह वहां अपनापन महसूस करने लगा था मगर उस का दिल यहां इतनी जल्दी लग जाएगा यह उस ने सोचा ही नहीं था.

अगले दिन मदन को उस ने अपने पति से मिलवाया. मदन हैरान रह गया कि वे मकान के सब से पिछले कमरे मे खामोश लेटे हुए थे.

‘कमाल है, कल दोपहर से रात तक इन की आवाज तक सुनाई नहीं दी,’मदन सोचता रहा .

उस ने मदन की सोच में व्यवधान डालते हुए कहा,”दरअसल, बात यह है कि यह दिनभर तो सोते रहते हैं  और रातभर जागते हैं. मगर कल कुछ ऐसा हुआ कि दिनभर और रातभर सोते ही रहे.”

वह मदन के आने से बहुत ही खुश थी. 2 लोगों के सुनसान घर में कुछ रौनक तो हो गई थी.

1 सप्ताह बाद एक दिन मदन रसोई में आ कर उस का हाथ बंटाने लगा तो वह हंस कर बोली,”अभी तुम बच्चे हो. तुम्हारा काम है पढ़ना.”

जवाब में उस ने कहा,”हां, पढ़ना तो मेरा काम जरूर है मगर इतना भी बच्चा नहीं हूं मैं, पूरे 21 बरस का हूं…”

उस ने आश्चर्य से देखा तो मदन बोला,”12वीं में 1 साल खराब हो गया था इसलिए वरना अभी कालेज में सैकेंड ईयर में होता.”

“हूं…” कह कर वह चुप हो गई.

एक दिन बातोंबातों में मदन ने उस से पूछा,”आप के पति को क्या हुआ है? वे कमरे में अकसर क्यों रहते हैं?”

“वे बिलकुल फिट थे पहले तो. अच्छाखासा कारोबार देख रहे थे. हमारा सेब और चैरी का बगीचा है.  उस से बहुत अच्छी आमदनी होती है.

“हुआ यह कि ये पिछले साल ही पेड़ से गिर पड़े. सब इलाज करा लिया है… कंपकंपा कर चल पाते हैं फिलहाल तो.

“10 कदम चलने में भी पूरे 10 मिनट लगते हैं. इसलिए अपने कमरे में ही चहलकदमी करते हैं. सप्ताह में 2 दिन फिजियोथेरैपी कराने वाला आता है बाकी फिल्में देखते हैं, उपन्यास पढ़ते हैं.

“धीरेधीरे ठीक हो जाएंगे. डाक्टर ने कहा है कि समय लगेगा पर फिर आराम से चलने लगेंगे.”

“ओह…”

मदन ने यह सुन कर उन की तरफ देखा. वह जानता था कि मुश्किल से 4-5 साल ही हुए होंगे इन के विवाह को. उस ने अंदाज लगाया और अपनी उंगली में गिनने लगा.

वह फिर बोली,”हां 4 साल हो गए हैं इस अप्रैल में. याद है ना तुम्हारी 10वीं के पेपर चल रहे थे तब.

“और उस से पहले भी मैं आप से नहीं मिला था. शायद 7वीं में पढ़ता था तब एक बार आप को देखा था. आप पापा के पास कुछ किताबें ले कर आई थीं.”

“हां…हां… तब तुम्हारे पापा मेरे इतिहास के शिक्षक थे और मैं उन को किताबें लौटाने आई थी. उस के बाद मैं दूसरे स्कूल में जाने लगी थी और तुम्हारे पापा मेरे अध्यापक से मेरे भाई बन गए थे.”

दिन गुजरते रहे. मदन को वहां रहते 5 महीने हो गए थे. वह यों तो लड़कपन के उबड़खाबड़ रास्ते पर ही चल रहा था लेकिन यह साफ समझ गया था कि इन दोनों की खामोश जिंदगी में फिजियोथेरैपिस्ट के अलावा वही है जो थोड़ाबहुत संगीत की सुर, लयताल पैदा कर रहा था.

मदन ने देखा था कि बगीचे में काम करने वाले ठेकेदार वगैरह भी एकाध बार आए थे और कोई बैंक वाला भी आता था, पर कभीकभी.

मदन आज बिलकुल ही फुरसत में था इसलिए वह गुनगुनाता हुआ रसोई में गया और चट से उस की दोनों आंखें बंद कर के उस के कानों में मुंह लगा कर बोला,”रमा, आज मैं कर दूंगा सारा काम. तुम इधर आओ…यहां बैठो, इस जगह…” और वह हौलेहौले रमा के मुलायम, अभीअभी धुले गीले और खुशबूदार बालों को लगभग सूंघता हुआ उस को एक कुरसी पर बैठाने लगा लेकिन रमा उस को वहां बैठा कर खुद उस की गोद में आसीन हो गई.

दोनों कुछ पल ऐसे ही रहे. न हिलेडुले  न कुछ बोले बस, चुपचाप एकदूसरे को महसूस करते रहे. 2 मिनट बीते होंगे कि कहीं से कुछ खांसने की सी आवाज आई तो दोनों चौंक गए और घबरा कर रमा ने मदन को अपनेआप से तुरंत अलग किया हालांकि मदन की इच्छा नहीं थी कि वह उस से अलग हो.

मदन मन ही मन बीती दोपहर की उस मधुर बेला को अचानक याद करने लगा और उस के चेहरे पर एक शरारती मुसकान तैर गई. रमा ने यह सब ताड़ लिया था वह उस के दाहिने गाल पर एक हलकी सी चपत लगा कर और बाएं गाल पर मीठा सा चुंबन दे कर उठ खड़ी हुई.

उसी पल मदन भी यह फुसफुसाता हुआ कि दूसरे गाल से इतनी नाइंसाफी क्यों, अपनी जगह से खड़ा हो गया और उस के बगल में आ कर  काम करने लगा.

रमा के बदन में जैसे बिजली कौंध रही थी. वह कितनी प्रफुल्लित थी, यह उस का प्यासा मन जानता था. वह तो ऐसे अद्भुत अनुभव को तरस ही गई थी मगर मदन ने उस का अधूरापन दूर कर दिया था. तपते  रेगिस्तान में इतनी बरसात होगी और इतनी शानदार वह खुद बीता हुआ  कल याद कर के पुलक सी उठी थी.

खांसने की आवाज दोबारा आने लगी थी. वह 2 कप चाय ले कर मदन को प्यार से देखती हुई वहां से निकली और पति के कमरे तक पहुंच गई. मदन चाय की चुसकियां लेते हुए  अपने लिए नाश्ता बनाने लगा.

उस ने जानबूझ कर 2 बार एक छोटी कटोरी फर्श पर गिराई मगर रमा उस के इस इशारे को सुन कर भी उस के पास नहीं गई.

पति की दोनों हथेलियों को सहलाती हुई रमा उन में मदन की देह को महसूस करती रही और अपनेआप से बोलती रही,’प्यार हमारे जीवन में बिलकुल इसी तरह आना चाहिए किसी उन्मुक्त झरने की तरह,’उस के भीतर गुदगुदहाट सी मदहोशी छा रही थी.

लेकिन रमा इस बात से बिलकुल ही  बेखबर थी कि पति को उस का अनजाना सा स्पर्श उद्वेलित कर रहा था. वे कल से एक नई रमा को देख कर हैरान थे.

इस पूरे हफ्ते रमा ने और भी कुछ नयानया सा रूप दिखाया था. वह उन की तरफ पीठ कर के लेटती थी मगर अब तो वे दोनों बिलकुल आमनेसामने होते थे.

यह वही रमा है… वे हैरान रह गए थे. उन को याद आ रहा था कि जिस को अपने पति की इतनी सी गुजारिश भी नागवार गुजरती थी, जब वे कहते थे कि रमा मेरी दोनों हथेलियां थाम लो ना… रमा वे कुछ सैकेंड अनमने मन से उन को अपने हाथों में पकड़ लेती और फिर करवट ले कर गहरी नींद में खो जाती थी.

अब आजकल तो चमत्कार हो रहा था. रमा जैसे नईनवेली दुलहन सी बन चुकी थी और उस के ये तेवर और अंदाज उन को चकित कर रहे थे.

मदन भी जो शुरूशुरू में उन से कभीकभार ही एकाध सैकेंड को ही  मिलता था, वह अब कंधे भी दबा रहा था, चाय भी पिला रहा था.

एक दिन रसोई से कुछ अजीब सी आवाजें आ रहीं थीं जैसे 2 लोग लड़ाई कर रहे हों लेकिन बगैर कुछ बोले वे पहले तो हैरान हो कर कल्पना करते रहे फिर छड़ी के सहारे हौलेहौले वहां तक पहुंचे तो देख कर स्तब्ध ही रह गए. वहां 2 दीवाने एकदूसरे मे खोए हुए थे और इतना कि उन दोनों में से किसी एक को भी उन के होने की आहट तक नहीं थी.

वे वापस लौट गए तो कुछ कदम चलने के बाद अपने कमरे के पास ही अचानक ही लड़खङा गए.

खट…की सी आवाज आई. इस आवाज से मदन चौंक गया था मगर रमा की किलकारी गूंज उठी थी,”10 कदम में भी उन को पूरे 10 मिनट लगते हैं…”

और फिर 2 अलगअलग आवाजों की  खिलखिलाहट कोई दैत्य बन कर रसोई से दौड़ कर आई और अपना रूप बदल लिया. अब वह छिछोरी हंसी उन के कानों में गरम तेल बन कर दिल तक उतरती चली गई. सीने की जलन से तड़प कर वे चुपचाप लेट गए. आंखें बंद कर लीं, दोनों मुट्ठियां कस कर भींच ली और लेटे रहे मगर किसी भी हालत में एक आंसू तक नहीं बहने दिया.

रमा को जो जीवन एक लादा हुआ जीवन लग रहा था अब वही जीवन फूल सा, बादलों सा, रूई के फाहे सा लग रहा था. वह मदन के यहां आने को कुदरत के किसी करिश्मे की तरह मान चुकी थी.

मदन को यहां 1 साल पूरा होने जा रहा था और रमा अब खिल कर निखरनिखर सी गई थी.

सुबहशाम और रातरात भर पूरा जीवन मस्ती से सराबोर था. बस एक ही अजीब सी बात हो रही थी…

रमा ने गौर किया कि इन दिनों पति शाम को जल्दी सो जाते हैं. इतना ही नहीं वे अपने दोनों हाथ तकिए में बिलकुल छिपा कर रखते हैं.

कशमकश- भाग 4: क्या बेवफा था मानव

वसुधा ने अपने आंचल के छोर से आनंद की आंखों से बहते आंसुओं को पोंछा और मन ही मन कहा, ‘तुम मुझे कमजोर नहीं कर सकते.’

‘‘मानव, तुम जानते हो मैं मौके की तलाश में हूं. आज जब आनंद कौन्फ्रैंस में जाएगा तो मैं पैसे निकाल लूंगी. तुम मुझे बारबार फोन मत करो.’’ वसुधा मानव से फोन पर बात कर रही थी और जल्द से जल्द बात पूरी करना चाह रही थी.

रात को फिर वसुधा के फोन की घंटी बज गई. दूसरी ओर मानव था, ‘‘आनंद मुझे भी कौन्फ्रैंस में ले गया. सो, मुझे न वक्त मिला और न ही मौका,’’ वसुधा ने बताया.

‘‘और कल तुम क्रूज पर जा रही हो? फिर?’’

‘‘तुम्हें यह भी मालूम है?’’ वसुधा चकित थी.

‘‘अंधा हूं, इसलिए मैं ने किराए पर आंखें ली हुई हैं ताकि मेरी आंखें न होने का कोई फायदा न उठा सके. मेरे आदमी तुम्हारे आसपास रहेंगे. मुझे तुम पर विश्वास है तुम मुझे पैसे दे दोगी. वैसे भी आनंद के मरने के बाद सबकुछ हमारा ही होगा. कल शाम को 3 बजे तुम क्रूज के डेक पर पहुंचोगी, वहां आनंद का पैर फिसलेगा और वह समंदर की लहरों में समा जाएगा. उधर आनंद खत्म, इधर करण का काम तमाम. होस्टल की खिड़की से मासूम गिर पड़ेगा और…’’

‘‘यह क्या कह रहे हो तुम,’’ वसुधा लगभग चीखते हुए बोली.

‘‘शांत वसुधा, शांत, तुम्हें तो मेरे दिमाग की दाद देनी चाहिए. आनंद के मरने के बाद करण भी तो आधी दौलत का हिस्सेदार रहेगा और फिर बारबार तुम्हें तुम्हारे अतीत की याद दिलाता रहेगा.’’

‘‘तुम ऐसा नहीं करोगे,’’ वसुधा ने ऊंची आवाज में कहा तो अनायास ही आनंद की आंख खुल गई, ‘‘किस पर गुस्सा कर रही हो?’’

‘‘कोई नहीं, यों ही, होस्टल की वार्डन का फोन था.’’

क्रूज पर ठीक 2 बजे वसुधा के कमरे की घंटी बजी, ‘‘मैडम, हाई टी तैयार है. आप साहब को ले कर डेक पर आ जाएं.’’

‘‘यहां तो बिन मांगे मोती मिल रहे हैं. वसुधा, चलो.’’

‘‘नहीं, हम नहीं जाएगे, मेरे सिर में दर्द है.’’

‘‘तो साहब आप आ जाइए. हम ने आप के लिए ही तो सारा इंतजाम किया है.’’

‘‘नहीं, साहब भी नहीं आएंगे. कह दो जा कर हम नहीं आएंगे, किसी सूरत में भी नहीं.’’

आनंद अचरज से वसुधा को देखने लगा, ‘‘तुम्हें अचानक क्या हो गया? क्यों बेचारे को डांट रही हो?’’ वसुधा को मानो अपनी भूल का एहसास हुआ, ‘‘मेरे सिर में दर्द है और तुम डेक पर ठंडीठंडी हवा खाओगे अकेलेअकेले?’’

वसुधा ने कहा तो आनंद ने वेटर से चले जाने को कहा.

‘‘ऐसा कैसे हो सकता है मानव, माना कि तुम्हारी आंखों की खराबी के बावजूद तुम आंखें दान दे सकते हो और ये करण की आंखों से मैच भी करती हैं, पर हर काम का एक तरीका होता, नियम होता है. कायदाकानून भी तो कोई चीज होती है. यों हम जीतेजी तुम्हारी आंखें उसे नहीं दे सकते.’’

‘‘क्यों नहीं दे सकते डाक्टर. मैं तो वैसे भी नहीं देख सकता. मेरी आंखें सिर्फ सजावट के लिए हैं, मेरे लिए बेजान हैं, बेकार हैं, अगर इन से उस नन्हे बच्चे की आंखों की रोशनी मिल सकती है, तो क्यों नहीं?’’

‘‘मुझे कौंसिल में बात करनी पड़ेगी, मानव.’’

‘‘ठीक है डाक्टर. पर कृपया मेरी मदद करो. समझो कि बरसों पहले जो खुशी मैं किसी को देना चाह रहा था, उसे देने का समय अब आया है.’’

कौंसिल ने जल्द ही अपना फैसला सुना दिया. नियम के मुताबिक, किसी जिंदा इंसान की आंखें किसी और को नहीं दी जा सकतीं. सिर्फ मृत्यु के बाद ही ऐसा हो सकता है और यह कानून विश्व के हर देश में लगभग एकजैसा ही है.

मौसम की खराबी और लगातार होती बारिश की वजह से क्रूज अपनी रफ्तार और दिशा दोनों खो बैठा था. संपर्क सूत्र भी न के बराबर थे. इसलिए वसुधा को करण से बात न कर पा सकने का बेहद मलाल था. किनारे पहुंचते ही उस ने सब से पहले करण को फोन साधा. मगर बात न हो पाई. ‘‘शायद क्लास में होगा,’’ आनंद ने कहा तो वसुधा ने हामी भरी.

स्कूल के बाहर ही उन की टैक्सी को रोक लिया गया और आगे पैदल जाने की हिदायत दी गई. आनंद ने सामान उठाया और स्कूल की तरफ चल पड़े. रास्ते में एक शख्स से रास्ता रोकने का कारण पूछा तो पता चला कि कोई हादसा हो गया था. खिड़की से गिर कर किसी की मौत हो गई थी.

वसुधा चिंतित हो गई. आनंद ने पुलिस वाले से तहकीकात की तो उस ने सिर्फ इतना बताया कि जो मरा उस की मरने की उम्र नहीं थी.

भारी कदमों से और आशंकित मन से वसुधा ने स्कूल प्रांगण में प्रवेश किया. एक अजीब सी भयावह खामोशी छाई हुई थी. न बच्चों का शोर, न अफरातफरी, न भागदौड़ का माहौल. बाहर ही रमया नजर आई तो वसुधा भाग के उस तक पहुंची. उसे देख मानो रमया के सब्र का पैमाना छलक गया, ‘‘मैडम, सब खत्म हो गया.’’

‘‘क्या हुआ, करण कहां है, कहां है वह, ठीक तो है न?’’

‘‘मैं यहां हूं मम्मी,’’ वसुधा के कानों में रस भरती आवाज आई तो उस ने उसी दिशा में नजरें घुमा दीं, सामने करण खड़ा मुसकरा रहा था. ‘‘वाह मम्मी, लाल साड़ी में तो आप लालपरी लग रही हैं.’’

‘‘अच्छा ठीक है, मस्का छोड़ और बता, कैसा है तू?’’ वसुधा ने उतावलेपन से पूछा, मगर अगले ही पल ठिठक गई ‘‘तुझे कैसे पता चला कि मैं ने लाल साड़ी पहनी है.’’

‘‘क्योंकि काले चश्मे के अंदर से करण की आंखें देख पा रही हैं. ठीक वैसे ही जैसे आप की और मेरी,’’ यह रमया की आवाज थी. वसुधा को सहसा विश्वास ही नहीं हुआ. उस ने कस के करण को भींच लिया. उस की आंखों से आंसू रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे. ‘‘कैसे हुआ यह सब. और यहां हादसा कौन सा हुआ…’’

‘‘सब बताती हूं, मगर पहले करण को वापस अंदर बैड पर जाना होगा. करण

की आंखों पर जोर नहीं पड़ना चाहिए, आंनदजी आप को भी करण के साथ जाना पड़ेगा, कागजी कार्यवाही पूरी करनी है.’’

मानव के कमरे में प्रवेश करते ही वसुधा का कलेजा मानो मुंह तक आ गया. सामने मानव की तसवीर पर हार चढ़ा हुआ था. वसुधा वहीं सोफे पर धम्म से बैठ गई. एकटक उस ने उस की तसवीर को निहारा और फिर कहा, ‘‘मैं सब समझ गई. मैं समझ गई कि उस ने कितना बड़ा बलिदान किया मेरी गृहस्थी को बचाने के लिए, शायद इसीलिए उस ने खुद को एक खुदगर्ज प्रेमी के रूप में पेश किया. मगर उस की मौत…’’

‘‘अस्पताल और मैडिकल बोर्ड के कानून के मुताबिक, एक जिंदा इंसान अपनी आंखें दान नहीं कर सकता. उस रात मानव ने मुझे फोन किया, ‘रमया, जो हालात हैं उस में अगर मैं इस दुनिया से चला जाता हूं तो वसुधा, उस की ब्याहता जिंदगी, उस की गृहस्थी बच जाएगी. साथ ही, करण को आंखे मिल जाएंगी, वह देख पाएगा और उस के साथसाथ वसुधा की जिंदगी का भी अंधेरा दूर हो जाएगा. उस की खोई हुई तमाम खुशियां उसे मिल जाएंगी, मेरी मौत उसे उस कशमकश से हमेशा के लिए आजाद कर देगी जिस ने उस का सुख, चैन, मन की शांति सब छीन लिया है. मेरी मौत पूरे परिवार को एक नई जिंदगी दे पाएगी, मेरी जिंदगी तो वैसे भी बेकार है, जीना और न जीना सब बेमानी है. उस का इस से अच्छा इस्तेमाल क्या होगा?’

‘‘‘लेकिन मानव, तुम ऐसा नहीं कर सकते. हम कुछ और रास्ता तलाश करेंगे. प्लीज, अपनी जान देने  के बारे में सोचना भी मत, तुम्हारी जान पर किसी और का भी हक है?

‘‘‘जानता हूं. मगर तुम्हीं ने तो कहा था कि मेरे ओझल हुए बगैर वसुधा को अपना परिवार नजर नहीं आएगा. मुझ पर आखिरी एहसान करना, थोड़ी ही देर में एक जोरों की आवाज आएगी. शायद, उस आवाज में मेरी चीख भी शामिल होगी. तुम बिना समय गंवाए, नीचे लौन में चली जाना, मैं लाश बन कर वहीं तुम्हारा इंतजार करूंगा. मेरी जेब में एक पत्र मिलेगा, उस में लिखा होगा कि मेरी आंखें करण को दी जाएं.’

‘‘मैं उस के आगे नहीं सुन पाई और बेहताशा भागती हुई लिफ्ट की ओर पहुंची. मैं चीखती जा रही थी, ‘मानव सर आत्महत्या कर रहे हैं, कोई उन्हें रोको.’ इस के पहले कि कोई कुछ समझ पाता, एक आवाज और हृदयविदारक चीख सुनाई पड़ी और फिर सबकुछ शांत हो गया.

रमया और वसुधा दोनों आंसुओं के सैलाब में फोन की घंटी बजने

तक बहती रहीं. आनंद ने फोन

पर कुछ कहा, जिसे वसुधा मुश्किल से सुन पाई.

अगले दिन दिल्ली की फ्लाइट पकड़ने के लिए वसुधा, करण और आनंद हवाईअड्डे पर पहुंच चुके थे. रमया ने लिपट कर रोती हुई वसुधा को एक लिफाफा दिया जिस में मानव की तसवीर थी. मानव की इच्छा थी कि यादगार के तौर पर उस की यह तसवीर करण को दी जाए और उस से कहा जाए कि बड़ा हो कर अगर हो सके तो वह एक आंखों का डाक्टर बने और जीवन की आपाधापी में से वक्त निकाल इस अस्पताल में आ कर अंधेरे से लड़ते हुए बच्चों को रोशनी की किरण दिखाए.

कशमकश- भाग 3: क्या बेवफा था मानव

एक शाम मानव ने रमया को बुला भेजा. रमया ने अपने ओवरकोट की जेब से चाबी निकाली और मानव के फ्लैट का दरवाजा खोला, सामने कोने में मानव सोफे पर धंसा हुआ था.

‘‘सर, आप ने याद किया?’’

‘‘आओ रमया, नए स्टूडैंट्स की मैडिकल हिस्ट्री अस्पताल को भेज देना और उन से कहना, डोनर्स की लिस्ट भी अपडेट कर लें.’’

‘‘आप कुछ परेशान लग रहे हैं, सर?’’

‘‘रमया, तुम्हें याद है मैं ने एक बार तुम्हें अपनी कहानी सुनाई थी, उस कहानी में जो लड़की थी…’’

‘‘वो वसुधा है और एक बार फिर उस बेचारी के बुझे हुए अरमानों ने पंख फैलाए हैं.’’

‘‘ओह, तो तुम सब जानती हो. मगर यह गलत है, मुझे उसे रोकना है. मैं नहीं चाहता कि उस का परिवार टूटे. लेकिन मैं यह समझ नहीं पा रहा कि कैसे उसे रोकूं. मुझे डर है कि कहीं वह अपने पति से वो सब न कह दे जो उसे नहीं कहना चाहिए. मुझे समझ में नहीं आ रहा कि यह कैसे मुमकिन हो पाएगा. लगता है वसुधा बहुत दूर निकल गई है, जहां से उसे उस का परिवार, परिवार वालों की खुशियां, कुछ भी नजर नहीं आ रहीं.’’

‘‘सर, आप जो चाहते हैं वह तभी हो पाएगा जब आप उस की जिंदगी से दूर चले जाएं, ओझल हो जाएं उस की जिंदगी से आप.’’

‘‘तुम ठीक कहती हो रमया. मुझे उस की जिंदगी से दूर ही नहीं, बहुत दूर जाना पड़ेगा.’’

‘‘सर, अगर आप को मेरी कहीं भी कोई भी जरूरत हो तो मुझे बेझिझक कहिएगा. मैं अगर आप की मदद कर पाई तो मुझे बेहद खुशी महसूस होगी.’’

‘‘रमया, मैं अंधा जरूर हूं लेकिन मैं मन की आंखों से तुम्हारे मन को देख पा रहा हूं. मैं जानता हूं कि तुम्हारी भावनाएं क्या हैं. तुम्हारे ढेरों एहसान हैं मुझ पर. फिर भी मैं ने तुम्हारे एहसासों को अनदेखा किया. जानती हो क्यों, क्योंकि मैं नहीं चाहता कि तुम अपनी जिंदगी अंधेरे के सहारे गुजारो, जबकि कई जगमगाते सितारे तुम्हारी राह तक रहे होंगे. मेरा साथ तुम्हें सिर्फ दुख और तकलीफों के अलावा कुछ नहीं दे सकता.’’

‘‘रोशनी में जल कर मरने वाले परवानों से पूछिए. मेरा दावा है कि वे रोशनी में तिलतिल कर मरने के बजाय अंधेरे में सुकून से मरना चाहेंगे,’’ रमया की आंखें से आंसू बह निकले.

‘‘तुम रो रही हो रमया, मत रोओ रमया, आंसू बचा कर रखो. मेरा साथ देना है तो ये आने वाले वक्त में काम आएंगे, इन्हें संजो कर रखो.’’

मानव ने वसुधा को फोन करवा के बुलाया. वसुधा मानो आने के लिए तैयार ही थी. ‘‘आओ वसुधा, मैं ने तुम्हारे और अपने रिश्ते के बारे में, भविष्य के बारे में बहुतकुछ सोचा. ईमानदारी से कहूं तो मैं आज तक एक पल के लिए भी तुम्हें भुला नहीं पाया हूं और आज जब तुम मुझे इस हाल में अपनाने को तैयार हो, तो मैं इस मौके को खोना नहीं चाहूंगा, करीब पा कर फिर मैं तुम्हें दूर नहीं कर पाऊंगा.’’

वसुधा को विश्वास ही नहीं हुआ, उसे मानो मनमांगी मुराद मिल गई थी. ‘‘मैं जानती थी मेरे प्यार में ताकत है, सचाई है. मैं कल ही वकील से…’’

‘‘नहीं वसुधा, अदालत के चक्कर, वकीलों की झंझट, उस से होने वाली रुसवाई और बदनामी की आग में मैं तुम्हें झुलसने नहीं दूंगा. मैं ने कुछ और ही सोचा है. वह तभी हो पाएगा जब तुम्हें साथ देना गवारा हो, तुम्हें सही लगे तो ठीक है वरना मेरी तरफ से तुम आज भी आजाद हो.’’

‘‘क्या सोचा है तुम ने, मैं हर हाल में तुम्हारे साथ हूं.’’

‘‘खून, कत्ल…’’

‘‘खून…आनंद का?’’ वसुधा सकते में आ गई.

‘‘हां वसुधा, और कोई रास्ता भी तो नहीं है. तुम सोच कर जवाब देना, कोई जबरदस्ती नहीं है. मेरे आदमी यह काम बखूबी कर देंगे, किसी पर शक नहीं जाएगा, न तुम पर न मुझ पर. कल भारतीय राजदूतावास में एक कार्यक्रम है जिस में भारत से कई व्यवसायी शिरकत कर रहे हैं, और दल को लीड करने वाला कोई और नहीं, तुम्हारा पति है, तुम्हारे बच्चे करण का पिता. वही आनंद, जिस के साथ तुम ने शादी का बंधन बांधा था और जिसे तुम अब तोड़ने जा रही हो. मैं चाहता हूं कल ही तुम्हारा पति तुम्हारा एक्स पति हो जाए. बस, तुम करीब एक लाख डौलर का इंतजाम कर दो.’’

वसुधा को शांत देख मानव ने आखिरी दाव फेंका, ‘‘आज अगर मैं अंधा न होता तो बढ़ कर तुम्हारे करीब आ जाता, अक्षम हूं, असहाय हूं वरना आनंद को खत्म करने के लिए मेरे दो बाजू ही काफी थे. आनंद को राह से हटा कर हम एक नई जिंदगी शुरू कर देते जहां सिर्फ हम होते, सिर्फ मैं और तुम.’’

‘हम नई जिंदगी जरूर जिएंगे,’ वसुधा ने मन ही मन यह सोच कर निर्णय लेते हुए कहा, ‘‘मैं कुछ न कुछ जरूर करूंगी.’’

अगले रोज आनंद को आते देख, खुशी और परेशानी के मिलेजुले भाव वसुधा के चेहरे पर आजा रहे थे, ‘‘यों अचानक. मुझे इत्तला तो दी होती.’’ वसुधा ने पूछा तो आनंद ने बेफिक्री से जवाब दिया, ‘‘मिलने का मजा तो तब ही हो जब मुलाकात अचानक हो. दरअसल, यहां एक औफिस का काम निकल आया, मैं ने सोचा, क्यों न एक टिकट में 2 काम किए जाएं. कहां है हमारा चश्मेबद्दूर. करण कुमार?’’ आनंद ने इधरउधर नजरें दौड़ाते हुए पूछा.

‘‘होस्टल में, उसे छुट्टी दिलाना यहां बहुत मुश्किल है.’’

‘‘कोई बात नहीं. हम सिंगापुर घूमेंगे. यह देखो क्रूज का टिकट. यहां से मलयेशिया, इंडोनेशिया…तब तक वीकैंड आ चुका होगा. तब हम अपने जिगर के टुकड़े के पास होंगे.

‘‘वैसे, करण कैसा है? उम्मीद है वो नर्वस नहीं होगा. हमेशा की तरह खुश. हर हाल में मस्त,’’ आनंद की आंखें नम थीं.

‘‘तुम थक गए होगे, थोड़ा आराम कर लो,’’ वसुधा ने सुनीअनसुनी करते हुए कहा, कमरे में सामान रखते हुए वसुधा मानो मुद्दे की बात करने को बेताब थी, ‘‘मेरे अकाउंट में एक लाख डौलर ट्रांसफर कर दो. कुछ फीस वगैरह देनी है.’’

‘‘जरा मैसेज पढ़ लिया करो मैडम. आप के अकाउंट में कल ही 2 लाख डौलर डाले हैं. वैसे, फीस, होस्टल चार्जेज सब मैं औनलाइन दे चुका हूं. अब एक लाख डौलर से किसी की जान लेने का इरादा है क्या?’’ आनंद एक पल के लिए रुका, फिर हौले से बोला, ‘‘जानती हो, दौलत के बारे में मेरी क्या सोच है? लोगों की दौलत आतीजाती रहती है, मगर मैं ने जो दौलत कमाई है वो मेरे पास से कभी नहीं जाएगी. उसे मुझ से कोई छीन नहीं सकता.’’

‘‘ऐसा कौन सा इन्वैस्टमैंट कर दिया तुम ने जिस पर तुम्हें इतना ऐतबार है?’’

‘‘तुम, वसुधा तुम, मेरी जिंदगी की सब से बड़ी दौलत, सब से बड़ा इन्वैस्टमैंट तुम हो, जो आज भी मेरी है, कल भी रहेगी और मरते दम तक मेरी ही रहेगी.’’ वसुधा को काटो तो खून नहीं.

‘‘बस, अब एक ही चाहत है हमारा करण जल्द ही अपनी आंखों से यह दुनिया देखे. अंधेरों से निकल कर उजाले में आए?’’ आनंद ने कहना जारी रखा.

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