Mother’s Day Special: मुक्ति-भाग 1

टनटनटन मोबाइल की घंटी बजी और सुनील के फोन उठाने के पहले ही बंद भी हो गई. लगता है यह फोन भारत से आया होगा. भारत क्या, रांची से, शिवानी का. शिवानी, वह मुंहबोली भांजी, जिस के यहां वह अपनी मां को अमेरिका से ले जा कर छोड़ आया था. वहां से आए फोन के साथ ऐसा ही होता रहता है. घंटी बजती है और बंद हो जाती है, थोड़ी देर बाद फिर घंटी बज उठती है.

सुनील मोबाइल पर घंटी के फिर से बजने की प्रतीक्षा करने लगा है. इस के साथ ही उस के मन में एक दहशत सी पैदा हो जाती है. न जाने क्या खबर होगी? फोन तो रांची से ही आया होगा. बात यह थी कि उस की 90 वर्षीया मां गिर गई थीं और उन्होंने बिस्तर पकड़ लिया था. सुनील को पता था कि मां इस चोट से उबर नहीं पाएंगी, इलाज पर चाहे कितना भी खर्च क्यों न किया जाए और पैसा वसूलने के लिए हड्डी वाले डाक्टर कितनी भी दिलासा क्यों न दिलाएं. मां के सुकून के लिए और खासकर दुनिया व समाज को दिखाने के लिए भी इलाज तो कराना ही था, वह भी विदेश में काम कर के डौलर कमाने वाले इकलौते पुत्र की हैसियत के मुताबिक.

वैसे उस की पत्नी चेतावनी दे चुकी थी कि इस तरह हम अपने पैसे बरबाद ही कर रहे हैं. मां की बीमारी के नाम पर जितने भी पैसे वहां भेजे जा रहे हैं उन सब का क्या हो रहा है, इस का लेखाजोखा तो है नहीं? शिवानी का घर जरूर भर रहा है. आएदिन पैसे की मांग रखी जाती है. हालांकि यह सब को पता था कि इस उम्र में गिर कर कमर तोड़ लेना और बिस्तर पकड़ लेना मौत को बुलावा ही देना था.

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शिवानी ने सुनील की मां की देखभाल के नाम पर दिनरात के लिए एक नर्स रख ली थी और उन्हीं के नाम पर घर में काफी सुविधाएं भी इकट्ठी कर ली थीं, फर्नीचर से ले कर फ्रिज, टीवी और एयरकंडीशनर तक. डाक्टर, दवा, फिजियोथेरैपिस्ट और बारबार टैक्सी पर अस्पताल का चक्कर लगाना तो जायज बात थी.

सुनील की पत्नी को इन सब दिखावे से चिढ़ थी. वह कहती  थी कि एक गाड़ी की मांग रह गई है, वह भी शिवानी मां के जिंदा रहते पूरा कर ही लेगी. कमर टूटने के बाद हवाखोरी के लिए मां के नाम पर गाड़ी तो चाहिए ही थी. सुनील चुप रह जाता. इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता था कि शिवानी की मांगें बढ़ी हुई लगती थीं किंतु उन्हें नाजायज नहीं कहा जा सकता था.

शिवानी अपनी हैसियत के मुताबिक जो भी करती वह उस की मां के लिए काफी नहीं होता. मां के लिए गांवों में चलने वाली खाटें तो नहीं चल सकती थीं, घर में सीमित रहने पर मन बहलाने के लिए टीवी रखना जरूरी था, फिर वहां की गरमी से बचनेबचाने को एक एनआरआई की मां के लिए फ्रिज और एसी को फुजूलखर्ची नहीं कहा जा सकता था.

अब यह कहां तक संभव या उचित था कि जब ये चीजें मां के नाम पर आई हों तो घर का दूसरा व्यक्ति उन का उपयोग ही न करे? पैसा बचा कर अगर शिवानी ने एक के बदले 2 एसी खरीद लिए तो इस के लिए उसे कुसूरवार क्यों ठहराया जाए? फ्रिज भी बड़ा लिया गया तो क्या हुआ, क्या मां भर का खाना रखने के लिए ही फ्रिज लेना चाहिए था?

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आखिर मां की जो सेवा करता है उसे भी इतनी सुविधा तो मिलनी ही चाहिए थी. पर उस की पत्नी को यह सब गलत लगता था. सामान तो आ ही गया था, अब यह बात थोड़े थी कि मां के मरने के बाद कोई उन सब को उस से वापस मांगने जाता?

सुनील के मन के किसी कोने में यह भाव चोर की तरह छिपा था कि यह फोन शिवानी का न हो तो अच्छा है, क्योंकि वहां से फोन आने का मतलब था किसी न किसी नई समस्या का उठ खड़ा होना. साथ ही, हर बार शिवानी से बात कर के उसे अपने में एक छोटापन महसूस हुआ करता था.

अपनी बात के लहजे से वह उसे बराबर महसूस कराती रहती थी कि वह अपनी मां के प्रति अपने कर्तव्य का ठीक से पालन नहीं कर रहा. केवल पैसा भेज देने से ही वह अपने दायित्व से मुक्त नहीं हो सकता था, भारतीय संस्कृति में पैसा ही सबकुछ नहीं होता, उस की उपस्थिति ही अधिक कारगर हो सकती थी. और यहीं पर सुनील का अपराधबोध हृदय के अंतराल में एक और गांठ की परत बना देता. इस से वह बचना चाहता था और शायद यही वह मर्मस्थल भी था जिसे शिवानी बारबार कुरेदती रहती थी.

शिवानी का कहना था कि उसे तथा उस के पति को डाक्टर डांट कर भगा देते थे, जबकि सुनील की बात वे सुनते थे. सुनील का नाम तथा उस का पता जान कर ही लोग ज्यादा प्रभावित होते थे, न कि मात्र पैसा देने से. आजकल भारत में भी पैसे देने वाले कितने हैं, पर क्या अस्पताल के अधिकारी उन लोगों की बात सुनते भी हैं? सुनील फोन पर ही उन लोगों से जितनी बात कर लेता था वही वहां के अधिकारियों पर बहुत प्रभाव डाल देती थी.

इस के अतिरिक्त उस का खुद का भारत आना अधिक माने रखता था, मां की तसल्ली के लिए ही सही. थोड़ी हरारत भी आने पर मां सुनील का ही नाम जपना शुरू कर देती थीं.

शिवानी को लगता कि वह अपना शरीर खटा कर दिनरात उन की सेवा करती रहती है, जबकि उसे पैसे के लालच में काम करने वाली में शुमार कर के मां ही नहीं, परोक्ष रूप से सुनील भी उस के प्रति बहुत बड़ा अन्याय कर रहे हैं. यह खीझ शिवानी मां पर ही नहीं, बल्कि किसी न किसी तरह सुनील पर भी उतार लेती थी.

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कुछ ही महीने पहले की बात थी. जिस दिन मां की कमर की हड्डी टूटी थी, अस्पताल में जब तक इमरजैंसी में मां को छोड़ कर शिवानी और उस के पति डाक्टर के लिए इधरउधर भागदौड़ कर रहे थे कि फोन पर इस दुर्घटना की खबर मिलने पर सुनील ने अमेरिका में बैठेबैठे न जाने किसकिस डाक्टर के फोन नंबर का ही पता नहीं लगा लिया बल्कि डाक्टर को तुरंत मां के पास भेज भी दिया. ऐसा क्या वहां किसी अन्य के किए पर हो सकता था?

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Mother’s Day 2020: मां-सुख की खातिर गुड्डी ममता का गला क्यों घोटना चाहती हैं?

रात के 10 बजे थे. सुमनलता पत्रकारों के साथ मीटिंग में व्यस्त थीं. तभी फोन की घंटी बज उठी…

‘‘मम्मीजी, पिंकू केक काटने के लिए कब से आप का इंतजार कर रहा है.’’

बहू दीप्ति का फोन था.

‘‘दीप्ति, ऐसा करो…तुम पिंकू से मेरी बात करा दो.’’

‘‘जी अच्छा,’’ उधर से आवाज सुनाई दी.

‘‘हैलो,’’ स्वर को थोड़ा धीमा रखते हुए सुमनलता बोलीं, ‘‘पिंकू बेटे, मैं अभी यहां व्यस्त हूं. तुम्हारे सारे दोस्त तो आ गए होंगे. तुम केक काट लो. कल का पूरा दिन तुम्हारे नाम है…अच्छे बच्चे जिद नहीं करते. अच्छा, हैप्पी बर्थ डे, खूब खुश रहो,’’ अपने पोते को बहलाते हुए सुमनलता ने फोन रख दिया.

दोनों पत्रकार ध्यान से उन की बातें सुन रहे थे.

‘‘बड़ा कठिन दायित्व है आप का. यहां ‘मानसायन’ की सारी जिम्मेदारी संभालें तो घर छूटता है…’’

‘‘और घर संभालें तो आफिस,’’ अखिलेश की बात दूसरे पत्रकार रमेश ने पूरी की.

‘‘हां, पर आप लोग कहां मेरी परेशानियां समझ पा रहे हैं. चलिए, पहले चाय पीजिए…’’ सुमनलता ने हंस कर कहा था.

नौकरानी जमुना तब तक चाय की ट्रे रख गई थी.

‘‘अब तो आप लोग समझ गए होंगे कि कल रात को उन दोनों बुजुर्गों को क्यों मैं ने यहां वृद्धाश्रम में रहने से मना किया था. मैं ने उन से सिर्फ यही कहा था कि बाबा, यहां हौल में बीड़ी पीने की मनाही है, क्योंकि दूसरे कई वृद्ध अस्थमा के रोगी हैं, उन्हें परेशानी होती है. अगर आप को  इतनी ही तलब है तो बाहर जा कर पिएं. बस, इसी बात पर वे दोनों यहां से चल दिए और आप लोगों से पता नहीं क्या कहा कि आप के अखबार ने छाप दिया कि आधी रात को कड़कती सर्दी में 2 वृद्धों को ‘मानसायन’ से बाहर निकाल दिया गया.’’

‘‘नहीं, नहीं…अब हम आप की परेशानी समझ गए हैं,’’ अखिलेशजी यह कहते हुए उठ खडे़ हुए.

‘‘मैडम, अब आप भी घर जाइए, घर पर आप का इंतजार हो रहा है,’’ राकेश ने कहा.

सुमनलता उठ खड़ी हुईं और जमुना से बोलीं, ‘‘ये फाइलें अब मैं कल देखूंगी, इन्हें अलमारी में रखवा देना और हां, ड्राइवर से गाड़ी निकालने को कहना…’’

तभी चौकीदार ने दरवाजा खटखटाया था.

‘‘मम्मीजी, बाहर गेट पर कोई औरत आप से मिलने को खड़ी है…’’

‘‘जमुना, देख तो कौन है,’’ यह कहते हुए सुमनलता बाहर जाने को निकलीं.

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गेट पर कोई 24-25 साल की युवती खड़ी थी. मलिन कपडे़ और बिखरे बालों से उस की गरीबी झांक रही थी. उस के साथ एक ढाई साल की बच्ची थी, जिस का हाथ उस ने थाम रखा था और दूसरा छोटा बच्चा गोदी में था.

सुमनलता को देखते ही वह औरत रोती हुई बोली, ‘‘मम्मीजी, मैं गुड्डी हूं, गरीब और बेसहारा, मेरी खुद की रोटी का जुगाड़ नहीं तो बच्चों को क्या खिलाऊं. दया कर के आप इन दोनों बच्चों को अपने आश्रम में रख लो मम्मीजी, इतना रहम कर दो मुझ पर.’’

बच्चों को थामे ही गुड्डी, सुमनलता के पैर पकड़ने के लिए आगे बढ़ी थी तो यह कहते हुए सुमनलता ने उसे रोका, ‘‘अरे, क्या कर रही है, बच्चों को संभाल, गिर जाएंगे…’’

‘‘मम्मीजी, इन बच्चों का बाप तो चोरी के आरोप में जेल में है, घर में अब दानापानी का जुगाड़ नहीं, मैं अबला औरत…’’

उस की बात बीच में काटते हुए सुमनलता बोलीं, ‘‘कोई अबला नहीं हो तुम, काम कर सकती हो, मेहनत करो, बच्चोें को पालो…समझीं…’’ और सुमनलता बाहर जाने के लिए आगे बढ़ी थीं.

‘‘नहीं…नहीं, मम्मीजी, आप रहम कर देंगी तो कई जिंदगियां संवर जाएंगी, आप इन बच्चों को रख लो, एक ट्रक ड्राइवर मुझ से शादी करने को तैयार है, पर बच्चों को नहीं रखना चाहता.’’

‘‘कैसी मां है तू…अपने सुख की खातिर बच्चों को छोड़ रही है,’’ सुमनलता हैरान हो कर बोलीं.

‘‘नहीं, मम्मीजी, अपने सुख की खातिर नहीं, इन बच्चों के भविष्य की खातिर मैं इन्हें यहां छोड़ रही हूं. आप के पास पढ़लिख जाएंगे, नहीं तो अपने बाप की तरह चोरीचकारी करेंगे. मुझ अबला की अगर उस ड्राइवर से शादी हो गई तो मैं इज्जत के साथ किसी के घर में महफूज रहूंगी…मम्मीजी, आप तो खुद औरत हैं, औरत का दर्द जानती हैं…’’ इतना कह गुड्डी जोरजोर से रोने लगी थी.

‘‘क्यों नाटक किए जा रही है, जाने दे मम्मीजी को, देर हो रही है…’’ जमुना ने आगे बढ़ कर उसे फटकार लगाई.

‘‘ऐसा कर, बच्चों के साथ तू भी यहां रह ले. तुझे भी काम मिल जाएगा और बच्चे भी पल जाएंगे,’’ सुमनलता ने कहा.

‘‘मैं कहां आप लोगों पर बोझ बन कर रहूं, मम्मीजी. काम भी जानती नहीं और मुझ अकेली का क्या, कहीं भी दो रोटी का जुगाड़ हो जाएगा. अब आप तो इन बच्चों का भविष्य बना दो.’’

‘‘अच्छा, तो तू उस ट्रक ड्राइवर से शादी करने के लिए अपने बच्चों से पीछा छुड़ाना चाह रही है,’’ सुमनलता की आवाज तेज हो गई, ‘‘देख, या तो तू इन बच्चोें के साथ यहां पर रह, तुझे मैं नौकरी दे दूंगी या बच्चों को छोड़ जा पर शर्त यह है कि तू फिर कभी इन बच्चों से मिलने नहीं आएगी.’’

सुमनलता ने सोचा कि यह शर्त एक मां कभी नहीं मानेगी पर आशा के विपरीत गुड्डी बोली, ‘‘ठीक है, मम्मीजी, आप की शरण में हैं तो मुझे क्या फिक्र, आप ने तो मुझ पर एहसान कर दिया…’’

आंसू पोंछती हुई वह जमुना को दोनों बच्चे थमा कर तेजी से अंधेरे में विलीन हो गई थी.

‘‘अब मैं कैसे संभालूं इतने छोटे बच्चों को,’’ हैरान जमुना बोली.

गोदी का बच्चा तो अब जोरजोर से रोने लगा था और बच्ची कोने में सहमी खड़ी थी.

कुछ देर सोच में पड़ी रहीं सुमनलता फिर बोलीं, ‘‘देखो, ऐसा है, अंदर थोड़ा दूध होगा. छोटे बच्चे को दूध पिला कर पालने में सुला देना. बच्ची को भी कुछ खिलापिला देना. बाकी सुबह आ कर देखूंगी.’’

‘‘ठीक है, मम्मीजी,’’ कह कर जमुना बच्चों को ले कर अंदर चली गई. सुमनलता बाहर खड़ी गाड़ी में बैठ गईं. उन के मन में एक अजीब अंतर्द्वंद्व शुरू हो गया कि क्या ऐसी भी मां होती है जो जानबूझ कर दूध पीते बच्चों को छोड़ गई.

‘‘अरे, इतनी देर कैसे लग गई, पता है तुम्हारा इंतजार करतेकरते पिंकू सो भी गया,’’ कहते हुए पति सुबोध ने दरवाजा खोला था.

‘‘हां, पता है पर क्या करूं, कभीकभी काम ही ऐसा आ जाता है कि मजबूर हो जाती हूं.’’

तब तक बहू दीप्ति भी अंदर से उठ कर आ गई.

‘‘मां, खाना लगा दूं.’’

‘‘नहीं, तुम भी आराम करो, मैं कुछ थोड़ाबहुत खुद ही निकाल कर खा लूंगी.’’

ड्राइंगरूम में गुब्बारे, खिलौने सब बिखरे पडे़ थे. उन्हें देख कर सुमनलता का मन भर आया कि पोते ने उन का कितना इंतजार किया होगा.

सुमनलता ने थोड़ाबहुत खाया पर मन का अंतर्द्वंद्व अभी भी खत्म नहीं हुआ था, इसलिए उन्हें देर रात तक नींद नहीं आई थी.

सुमनलता बारबार गुड्डी के ही व्यवहार के बारे में सोच रही थीं जिस ने मन को झकझोर दिया था.

मां की ममता…मां का त्याग आदि कितने ही नाम से जानी जाती है मां…पर क्या यह सब झूठ है? क्या एक स्वार्थ की खातिर मां कहलाना भी छोड़ देती है मां…शायद….

सुबोध को तो सुबह ही कहीं जाना था सो उठते ही जाने की तैयारी में लग गए.

पिंकू अभी भी अपनी दादी से नाराज था. सुमनलता ने अपने हाथ से उसे मिठाई खिला कर प्रसन्न किया, फिर मनपसंद खिलौना दिलाने का वादा भी किया. पिंकू अपने जन्मदिन की पार्टी की बातें करता रहा था.

दोपहर 12 बजे वह आश्रम गईं, तो आते ही सारे कमरों का मुआयना शुरू कर दिया.

शिशु गृह में छोटे बच्चे थे, उन के लिए 2 आया नियुक्त थीं. एक दिन में रहती थी तो दूसरी रात में. पर कल रात तो जमुना भी रुकी थी. उस ने दोनों बच्चों को नहलाधुला कर साफ कपडे़ पहना दिए थे. छोटा पालने में सो रहा था और जमुना बच्ची के बालों में कंघी कर रही थी.

‘‘मम्मीजी, मैं ने इन दोनों बच्चों के नाम भी रख दिए हैं. इस छोटे बच्चे का नाम रघु और बच्ची का नाम राधा…हैं न दोनों प्यारे नाम,’’ जमुना ने अब तक अपना अपनत्व भी उन बच्चों पर उडे़ल दिया था.

सुमनलता ने अब बच्चों को ध्यान से देखा. सचमुच दोनों बच्चे गोरे और सुंदर थे. बच्ची की आंखें नीली और बाल भूरे थे.

अब तक दूसरे छोटे बच्चे भी मम्मीजीमम्मीजी कहते हुए सुमनलता के इर्दगिर्द जमा हो गए थे.

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सब बच्चों के लिए आज वह पिंकू के जन्मदिन की टाफियां लाई थीं, वही थमा दीं. फिर आगे जहां कुछ बडे़ बच्चे थे उन के कमरे में जा कर उन की पढ़ाईलिखाई व पुस्तकों की बाबत बात की.

इस तरह आश्रम में आते ही बस, कामों का अंबार लगना शुरू हो जाता था. कार्यों के प्रति सुमनलता के उत्साह और लगन के कारण ही आश्रम के काम सुचारु रूप से चल रहे थे.

3 माह बाद एक दिन चौकीदार ने आ कर खबर दी, ‘‘मम्मीजी, वह औरत जो उस रात बच्चों को छोड़ गई थी, आई है और आप से मिलना चाहती है.’’

‘‘कौन, वह गुड्डी? अब क्या करने आई है? ठीक है, भेज दो.’’

मेज की फाइलें एक ओर सरका कर सुमनलता ने अखबार उठाया.

‘‘मम्मीजी…’’ आवाज की तरफ नजर उठी तो दरवाजे पर खड़ी गुड्डी को देखते ही वह चौंक गईं. आज तो जैसे वह पहचान में ही नहीं आ रही है. 3 महीने में ही शरीर भर गया था, रंगरूप और निखर गया था. कानोें में लंबेलंबे चांदी के झुमके, शरीर पर काला चमकीला सूट, गले में बड़ी सी मोतियों की माला…होंठों पर गहरी लिपस्टिक लगाई थी. और किसी सस्ते परफ्यूम की महक भी वातावरण में फैल रही थी.

‘‘मम्मीजी, बच्चों को देखने आई हूं.’’

‘‘बच्चों को…’’ यह कहते हुए सुमनलता की त्योरियां चढ़ गईं, ‘‘मैं ने तुम से कहा तो था कि तुम अब बच्चों से कभी नहीं मिलोगी और तुम ने मान भी लिया था.’’

‘‘अरे, वाह…एक मां से आप यह कैसे कह सकती हैं कि वह बच्चों से नहीं मिले. मेरा हक है यह तो, बुलवाइए बच्चों को,’’ गुड्डी अकड़ कर बोली.

‘‘ठीक है, अधिकार है तो ले जाओ अपने बच्चों को. उन्हें यहां क्यों छोड़ गई थीं तुम,’’ सुमनलता को भी अब गुस्सा आ गया था.

‘‘हां, छोड़ रखा है क्योंकि आप का यह आश्रम है ही गरीब और निराश्रित बच्चों के लिए.’’

‘‘नहीं, यह तुम जैसों के बच्चों के लिए नहीं है, समझीं. अब या तो बच्चों को ले जाओ या वापस जाओ,’’ सुमनलता ने भन्ना कर कहा था.

‘‘अरे वाह, इतनी हेकड़ी, आप सीधे से मेरे बच्चों को दिखाइए, उन्हें देखे बिना मैं यहां से नहीं जाने वाली. चौकीदार, मेरे बच्चों को लाओ.’’

‘‘कहा न, बच्चे यहां नहीं आएंगे. चौकीदार, बाहर करो इसे,’’ सुमनलता का तेज स्वर सुन कर गुड्डी और भड़क गई.

‘‘अच्छा, तो आप मुझे धमकी दे रही हैं. देख लूंगी, अखबार में छपवा दूंगी कि आप ने मेरे बच्चे छीन लिए, क्या दादागीरी मचा रखी है, आश्रम बंद करा दूंगी.’’

चौकीदार ने गुड्डी को धमकाया और गेट के बाहर कर दिया.

सुमनलता का और खून खौल गया था. क्याक्या रूप बदल लेती हैं ये औरतें. उधर होहल्ला सुन कर जमुना भी आ गई थी.

‘‘मम्मीजी, आप को इस औरत को उसी दिन भगा देना था. आप ने इस के बच्चे रखे ही क्यों…अब कहीं अखबार में…’’

‘‘अरे, कुछ नहीं होगा, तुम लोग भी अपनाअपना काम करो.’’

सुमनलता ने जैसेतैसे बात खत्म की, पर उन का सिरदर्द शुरू हो गया था.

पिछली घटना को अभी महीना भर भी नहीं बीता होगा कि गुड्डी फिर आ गई. इस बार पहले की अपेक्षा कुछ शांत थी. चौकीदार से ही धीरे से पूछा था उस ने कि मम्मीजी के पास कौन है.

‘‘पापाजी आए हुए हैं,’’ चौकीदार ने दूर से ही सुबोध को देख कर कहा था.

गुड्डी कुछ देर तो चुप रही फिर कुछ अनुनय भरे स्वर में बोली, ‘‘चौकीदार, मुझे बच्चे देखने हैं.’’

‘‘कहा था कि तू मम्मीजी से बिना पूछे नहीं देख सकती बच्चे, फिर क्यों आ गई.’’

‘‘तुम मुझे मम्मीजी के पास ही ले चलो या जा कर उन से कह दो कि गुड्डी आई है…’’

कुछ सोच कर चौकीदार ने सुमनलता के पास जा कर धीरे से कहा, ‘‘मम्मीजी, गुड्डी फिर आ गई है. कह रही है कि बच्चे देखने हैं.’’

‘‘तुम ने उसे गेट के अंदर आने क्यों दिया…’’ सुमनलता ने तेज स्वर में कहा.

‘‘क्या हुआ? कौन है?’’ सुबोध भी चौंक  कर बोले.

‘‘अरे, एक पागल औरत है. पहले अपने बच्चे यहां छोड़ गई, अब कहती है कि बच्चों को दिखाओ मुझे.’’

‘‘तो दिखा दो, हर्ज क्या है…’’

‘‘नहीं…’’ सुमनलता ने दृढ़ स्वर में कहा फिर चौकीदार से बोलीं, ‘‘उसे बाहर कर दो.’’

सुबोध फिर चुप रह गए थे.

इधर, आश्रम में रहने वाली कुछ युवतियों के लिए एक सामाजिक संस्था कार्य कर रही थी, उसी के अधिकारी आए हुए थे. 3 युवतियों का विवाह संबंध तय हुआ और एक सादे समारोह में विवाह सम्पन्न भी हो गया.

सुमनलता को फिर किसी कार्य के सिलसिले में डेढ़ माह के लिए बाहर जाना पड़ गया था.

लौटीं तो उस दिन सुबोध ही उन्हें छोड़ने आश्रम तक आए हुए थे. अंदर आते ही चौकीदार ने खबर दी.

‘‘मम्मीजी, पिछले 3 दिनों से गुड्डी रोज यहां आ रही है कि बच्चे देखने हैं. आज तो अंदर घुस कर सुबह से ही धरना दिए बैठी है…कि बच्चे देख कर ही जाऊंगी.’’

‘‘अरे, तो तुम लोग हो किसलिए, आने क्यों दिया उसे अंदर,’’ सुमनलता की तेज आवाज सुन कर सुबोध भी पीछेपीछे आए.

बाहर बरामदे में गुड्डी बैठी थी. सुमनलता को देखते ही बोली, ‘‘मम्मीजी, मुझे अपने बच्चे देखने हैं.’’

उस की आवाज को अनसुना करते हुए सुमन तेजी से शिशुगृह में चली गई थीं.

रघु खिलौने से खेल रहा था, राधा एक किताब देख रही थी. सुमनलता ने दोनों बच्चों को दुलराया.

‘‘मम्मीजी, आज तो आप बच्चों को उसे दिखा ही दो,’’ कहते हुए जमुना और चौकीदार भी अंदर आ गए थे, ‘‘ताकि उस का भी मन शांत हो. हम ने उस से कह दिया था कि जब मम्मीजी आएं तब उन से प्रार्थना करना…’’

‘‘नहीं, बिलकुल नहीं, बाहर करो उसे,’’ सुमनलता बोलीं.

सहम कर चौकीदार बाहर चला गया और पीछेपीछे जमुना भी. बाहर से गुड्डी के रोने और चिल्लाने की आवाजें आ रही थीं. चौकीदार उसे डपट कर फाटक बंद करने में लगा था.

‘‘सुम्मी, बच्चों को दिखा दो न, दिखाने भर को ही तो कह रही है, फिर वह भी एक मां है और एक मां की ममता को तुम से अधिक कौन समझ सकता है…’’

सुबोध कुछ और कहते कि सुमनलता ने ही बात काट दी थी.

‘‘नहीं, उस औरत को बच्चे बिलकुल नहीं दिखाने हैं.’’

आज पहली बार सुबोध ने सुमनलता का इतना कड़ा रुख देखा था. फिर जब सुमनलता की भरी आंखें और उन्हें धीरे से रूमाल निकालते देखा तो सुबोध को और भी विस्मय हुआ.

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‘‘अच्छा चलूं, मैं तो बस, तुम्हें छोड़ने ही आया था,’’ कहते हुए सुबोध चले गए.

सुमनलता उसी तरह कुछ देर सोच में डूबी रहीं फिर मुड़ीं और दूसरे कमरों का मुआयना करने चल दीं.

2 दिन बाद एक दंपती किसी बच्चे को गोद लेने आए थे. उन्हें शिशुगृह में घुमाया जा रहा था. सुमन दूसरे कमरे में एक बीमार महिला का हाल पूछ रही थीं.

तभी गुड्डी एकदम बदहवास सी बरामदे में आई. आज बाहर चौकीदार नहीं था और फाटक खुला था तो सीधी अंदर ही आ गई. जमुना को वहां खड़ा देख कर गिड़गिड़ाते स्वर में बोली थी, ‘‘बाई, मुझे बच्चे देखने हैं…’’

उस की हालत देख कर जमुना को भी कुछ दया आ गई. वह धीरे से बोली, ‘‘देख, अभी मम्मीजी अंदर हैं, तू उस खिड़की के पास खड़ी हो कर बाहर से ही अपने बच्चों को देख ले. बिटिया तो स्लेट पर कुछ लिख रही है और बेटा पालने में सो रहा है.’’

‘‘पर, वहां ये लोग कौन हैं जो मेरे बच्चे के पालने के पास आ कर खडे़ हो गए हैं और कुछ कह रहे हैं?’’

जमुना ने अंदर झांक कर कहा, ‘‘ये बच्चे को गोद लेने आए हैं. शायद तेरा बेटा पसंद आ गया है इन्हें तभी तो उसे उठा रही है वह महिला.’’

‘‘क्या?’’ गुड्डी तो जैसे चीख पड़ी थी, ‘‘मेरा बच्चा…नहीं मैं अपना बेटा किसी को नहीं दूंगी,’’ रोती हुई पागल सी वह जमुना को पीछे धकेलती सीधे अंदर कमरे में घुस गई थी.

सभी अवाक् थे. होहल्ला सुन कर सुमनलता भी उधर आ गईं कि हुआ क्या है.

उधर गुड्डी जोरजोर से चिल्ला रही थी कि यह मेरा बेटा है…मैं इसे किसी को नहीं दूंगी.

झपट कर गुड्डी ने बच्चे को पालने से उठा लिया था. बच्चा रो रहा था. बच्ची भी पास सहमी सी खड़ी थी. गुड्डी ने उसे भी और पास खींच लिया.

‘‘मेरे बच्चे कहीं नहीं जाएंगे. मैं पालूंगी इन्हें…मैं…मैं मां हूं इन की.’’

‘‘मम्मीजी…’’ सुमनलता को देख कर जमुना डर गई.

‘‘कोई बात नहीं, बच्चे दे दो इसे,’’ सुमनलता ने धीरे से कहा था और उन की आंखें नम हो आई थीं, गला भी कुछ भर्रा गया था.

जमुना चकित थी, एक मां ने शायद आज एक दूसरी मां की सोई हुई ममता को जगा दिया था.

Mother’s Day 2020: मम्मी की पूजा का गान नहीं उनकी मदद करें

मदर्स डे जब से भारतीय शहरी परिवारों में भी सेलिब्रेट होने लगा है तब से इस दिन के आते ही सोशल मीडिया से लेकर ट्रेडिशनल मीडिया तक में हर जगह माँ का गुणगान शुरू हो जाता है. क्या आम क्या खास. ज्यादातर लोग इस दिन अपनी माओं को बड़े पूजा भाव से याद करते हैं.सेलेब्रिटीज तो खास तौरपर अपनी माओं को धन्यवाद के सुर में, कृतार्थ होने के अंदाज में याद करते हैं. लेकिन सब नहीं तो यही ज्यादातर लोग बाकी दिनों में माँ को मशीन की तरह अपने लिए खटने देते हैं. तब उन्हें उनका जरा भी ख्याल नहीं आता.आदर का यह दैविक अंदाज बहुत खराब है.इसमें एक किस्म से तथाकथित हिन्दुस्तानी होशियारी छिपी है कि जिसकी अनदेखी करनी हो उसकी पूजा शुरू कर दो.

अगर वास्तव में हम अपनी मां को बहुत प्यार करते हैं और जाहिर है करते हैं, तो हम इस बात का संकल्प लें कि भले हम अपनी मां की पूजा न करें लेकिन उसे मशीन की तरह अपने लिए अकेले नहीं खटने देंगे.तमाम घरेलू कामकाज में उसकी मदद करेंगे. मां के कामों में हाथ बंटाने का संकल्प किसी भी मदर्स डे के लिए मां को हमारा बेस्ट गिफ्ट होगा. सवाल है ये सब कैसे होगा या हो सकता है आइये देखते हैं.

1. बच्चों की इस नवाबियत के हम भी हैं जिम्मेदार

तमाम बच्चे कोई काम करना तो दूर खुद उठाकर एक गिलास पानी तक नहीं पीते.उनको यह काम बहुत मुश्किल काम लगता है.आखिर क्यों ? क्योंकि हम उन्हें कभी ऐसा सिखाते नहीं.लड़कों को तो खास तौरपर.लड़के अपनी तरफ से घर का कोई कामकाज करने भी लगें और धोखे से उसमें कोई ऐसा काम शामिल हो जो अक्सर महिलायें करती हैं तो ज्यादातर घरों में छूटते ही कहा जाएगा, ‘क्या जनानियों वाले काम कर रहा है.दरअसल हमारे यहाँ लड़कों और लड़कियों कि परवरिश ही ऐसी की जाती है कि वह एक खास तरह की कंडीशनिंग में ढल जाते हैं. जबकि पैरेंटिंग कि समझ कहती है कि घर के काम को बच्चों के से करवाकर हम उनमें जिम्मेदारी का अहसास विकसित कर सकते हैं.

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2. वास्तविकता को साझा करें

बच्चों को घर की परिस्थितियों से अनभिज्ञ कौन रखता है ? खुद हम.यह सोचकर कि उनके मासूम कंधों पर जिम्मेदारियों का बोझ अभी से क्यों डालें ? लेकिन यह भी सच है कि इन्ही परिस्थतियों से जब हम तनावग्रस्त होते हैं तो अपना गुस्सा सबसे ज्यादा बच्चों पर ही उतारते हैं.तब उन्हें समझ ही नहीं आता कि माजरा क्या है ? बहरहाल कहने की बात यह है कि घर चलाने के बारे में उनसे तमाम वास्तविकताओं को साझा करके हम उन्हें ज्यादा जिम्मेदार और ज्यादा संवेदनशील बना सकते हैं. यही नहीं समय समय पर हमें उनके साथ घर की तमाम परिस्थितियों पर विचार विमर्श भी करना चाहिए.

3. जाके पैर पड़ेगी बिंवाई वही समझेगा पीर पराई

याद रखिये यदि आप चाहती हैं कि बच्चे आपके श्रम का महत्व समझें तो उन्हें भी श्रम करने दें.वे खुद श्रम करने के बाद ही किसी के श्रम का महत्व समझ पायेंगे. हमें इस बात को हमेशा याद रखना चाहिए कि बच्चे अपने आसपास का माहौल देखकर सीखते हैं. इसलिए जरुरी है कि हम उन्हें ये माहौल खुद प्रदान करें. हाँ,एक बात और सिर्फ बच्चे से किसी घरेलू काम में हिस्सा लेने की उम्मीद करना नाइंसाफी होगी.बेहतर होगा कि आप भी बच्चे के साथ उस काम में शामिल हों. लेकिन इस बात की समझ भी जरुरी है कि बच्चों पर घर के कामों में शामिल होने के लिए बहुत दबाव कभी न डालें. अगर वे पूछें तो उन्हें यह भी बताएं आखिर क्यों उनसे यह सब करवाया जा रहा है. यह सब इसलिए भी जरुरी है क्योंकि रोजगार के हर क्षेत्र में महिलाएं पुरुषों का वर्चस्व तो तोड़ रही हैं. लेकिन घर का मोर्चा ज्यादातर महिलाओं को आज भी अकेले ही संभालना पड़ता है.परिवार के लोगों से जो सहयोग उन्हें मिलना चाहिए, वह नहीं मिल रहा है.

4. इसके लिए जरुरी है कि मानसिकता बदले

घर का काम सिर्फ महिलाओं का नहीं है-बच्चों को यह सीख बचपन से दें.क्योंकि आज के दौर में महिलाएं शिक्षा, पत्रकारिता, कानून, चिकित्सा या इंजीनियरिंग के क्षेत्र में तो उल्लेखनीय सेवाएं दे रही हैं. पुलिस और सेना में भी पुरुष सैनिकों से कंधा मिलाकर चल रही हैं.लेकिन ज्यादातर महिलाओं को पेशेवर जिम्मेदारियों के साथ ही घर की जिघ्म्मेदारी भी वैसे ही उठानी पड़ती है,जैसे उनकी माओं और दादियों को उठानी पड़ती थी.सवाल है फिर क्या बदला ? ऐसा बदलाव किस काम का जिसमें कोई एक पिसकर रह जाए.वास्तव में इससे उनके स्वास्थ्य पर विपरीत असर पड़ता है. तब लगता है कि महिलाए बिना मतलब ही दो नावों में सवार हैं. इस उलझन से बचने के लिए अपने बच्चों की सोच बदलें जिससे वो आपकी पूजा करने के भाव से निकलकर सहयोग करने की भावना में आयें.बदलते वक्त ने महिलाओं को आर्थिक, शैक्षिक और सामाजिक रूप से सशक्त किया है लेकिन जब तक यह मानसिकता बनी रहेगी सब बेकार है.

5. बच्चों के लिए नौकरी न छोंड़े 

कारोबारी संगठन एसोचैम द्वारा किए गए एक सर्वे के मुताबिक मां बनने के बाद 40 प्रतिशत महिलाएं अपने बच्चों को पालने के लिए नौकरी छोड़ देती हैं.यह फैसला तात्कालिक रूप से भले न असर डाले लेकिन दीर्घकालिक स्तर पर यह फैसला महिलाओं द्वारा अपने हाथ से अपने पैर पर मारी गयी कुल्हाड़ी साबित होता है.क्योंकि इसकी वजह से एक तो उनमें आगे चलकर पर्सनैल्टी टेंशन पैदा होता है,साथ ही वैयक्तिक आर्थिक तंगी का भी सामना करना पड़ता है.बाद में ऐसी महिलाओं के लिए घरेलू मोर्चे पर परिवार को खुश रखने की जिम्मेदारी बन जाती है.कहा जाता है तुम्हे और क्या करना है.इससे सेहत पर असर पड़ता है. स्वास्थ विशेषज्ञों के अनुसार नौकरी बीच में छोड़ देने वाली महिलायें इस तनाव में कई किस्म की बीमारियों का शिकार हो जाती हैं.

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एसोचैम के ही एक और सर्वे के अनुसार 78 फीसदी ऐसी महिलाओं को कोई न कोई सेहत संबंधी समस्या पैदा हो जाती है.मसलन 42 फीसदी को पीठदर्द, मोटापा, अवसाद, मधुमेह, उच्च रक्तचाप की समस्या घेर लेती है.ऐसी 60 प्रतिशत महिलाओं को 35 से 45 साल की उम्र के बीच तक दिल की बीमारी का खतरा 10 फीसदी ज्यादा बढ़ जाता है. वास्तव में तनाव से भर जाने वाली ऐसी 80: महिलायें किसी किस्म का व्यायाम नहीं करतीं.लब्बोलुआब यह कि बच्चे आपको देवी मानकर पूजा न करें बल्कि इंसान समझकर मदद करें जिससे आपका जीवन खुशहाल रहे इसके लिए किसी और को नहीं बल्कि खुद आपको ही प्रयास करना होगा.

Mother’s Day 2020: मैं अपनी मां के त्याग को कभी नही भुला सकती- पूजा चोपड़ा

भारत में सदियों से ‘पितृसत्तात्मक सोच’के साथ साथ ‘वंश चलाने के लिए लड़की नहीं लड़का चाहिए’की सोच हावी रही है. इसी सोच के साथ लड़की के पैदा होते ही उसे मार दिया जाता रहा. अथवा लड़कियो की भ्रूण हत्याएं होती रही हंै. इसी चलन के चलते पूरे देष के अन्य राज्यों के मुकाबले पंजाब और हरियाणा में लड़कों के अनुपात में लड़कियों की संख्या बहुत कम रहती रही. यह अलग बात है कि कुछ वर्षों में इसमें सुधार आया है. अब कई नए कानून बनने व वक्त के साथ आए सामाजिक बदलाव के चलते लड़के व लड़कियों में काफी समानता की बातें होने लगी है.

मगर आज से पैंतिस वर्ष पहले 2009 की ‘मिस इंडिया’ विजेता और चर्चित फिल्म अभिनेत्री पूजा चोपड़ा का जब पंजाबी परिवार में जन्म हुआ था, तो उनके पिता ने लड़की होने के नाते उन्हे मार डालने की कोशिश की थी. पर पूजा चोपड़ा की मां नीरा चोपड़ा के विरोध के चलते पूजा चोपड़ा के पिता ने पूजा,  पूजा की बड़ी बहन शुब्रा और उनकी मम्मी नीरा को सदैव के लिए छोड़ दिया था. पूजा की मम्मी ने उसके बाद नौकरी कर अकेले ‘सिंगल पैरेंट्स’की हैसियत से उनकी परवरिश की. आज पूजा चोपड़ा एक जाना पहचाना नाम बना हुआ है. फिल्म अभिनेत्री होने के साथ साथ पूजा चोपड़ा दूसरी लड़कियों की भलाई के लिए भी कार्यरत हैं.

हाल ही में पूजा चोपड़ा से एक्सक्लूसिब मुलाकात हुई, तब उनसे उनकी जिंदगी व उनकी मां को लेकर हुई बातचीत इस प्रकार रही.

हमारे यहां लड़की के पैदा होते ही उसकी हत्या करने या भ्रूण हत्याएं होती रही हैं. कुछ हद तक आपके साथ भी ऐसा ही हुआ. आपका जन्म होते ही आपके पिता आपको व आपकी मम्मी को हमेशा के लिए छोड़ दिया था. आपको इस बात का पता कब चला कि आपके साथ ऐसा हुआ था?

-हम लोग पंजाबी परिवार से हैं. पंजाब और राजस्थान में हर कोई सिर्फ लड़के की मांग करता है. वह कहते है कि उन्हे मुंडा/लड़का चाहिए. मेरे पिता की भी ही इच्छा थी. जब मेरा जन्म हुआ, उस वक्त मुझसे बड़ी मेरी एक बहन शुब्रा चोपड़ा पहले से थी. जिसके चलते जब मैं पैदा हुई थी, तो मेरे डैडी, उनके मम्मी डैडी खुश नहीं हुए थे. सभी ने कहा कि  दूसरी कुड़ी हो गई. मुझे व मेरी मम्मी(नीरा चोपड़ा) को अस्पताल में देखने कोई नहीं आया था. हमारे यहां परंपरा है कि नवजात बच्चे को पुराने कपड़े पहनाए जाते हैं, मगर मेरे डैडी या ग्रैंडफादर वगैरह कोई भी मेेरे लिए कपड़े लेकर नहीं आया थ. मम्मी ने बताया कि उनके बगल वाले बेड पर एक लेफ्टिनेंट की पत्नी थी, उसने पुराने कपड़े मुझे पहनाए थे. जब मम्मी मुझे लेकर अस्पताल से घर पर गईं, तो माहौल अच्छा नहीं था. घर पहुंचने पर पापा ने कहा था कि, ‘यह लड़की नहीं चाहिए. इसको मार डालो. ’मम्मी ने कहा था, ‘नहीं यह तो मेरी बच्ची है. मैं इसको कैसे मार दूं. ’इस पर डैडी ने कहा था, ‘नहीं. . मुझे लड़का चाहिए. हम तीन बच्चे पैदा ही कर सकते. इसे मार दो, क्योंकि मुझे लड़की नहीं चाहिए. हम लड़के लिए फिर से कोशिश करेंगे. ’लेकिन मेरी मम्मी ने मना किया कि वह अपनी बेटी को नही मार सकती. फिर तीसरे दिन मतलब जब मैं 20 दिन की थी, मम्मी किचन में काम कर रही थी. मम्मी ने देखा कि डैड मुझे कुछ कर रहे थे. वास्तव में मेरी दीदी ने मम्मी को बताया. मम्मी ने किसी तरह मेरे डैड के हाथों से मुझे छुड़ाया.

 

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Can safely say, something’s in life just never change 😝 #majorthrowback #throwbackthursday

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फिर मम्मी ने उसी समय पुराने, उन दिनों अल्यूमिनियम का ट्रंक होता था, उसमें कपड़े डाले. मुझे गोद में लेकर दीदी का हाथ पकड़कर डैड से कहा कि ‘मैं घर से जा रही हूं. यदि नही गयी, तो आप मेरे बच्चों को मार देंगे. ’इस पर मेरे डैड ने रोका नहीं बल्कि कहा-‘इस घर से बाहर जा रही है, यह तो अच्छी बात है. मैं यही चाहता हूं. पर वापस मत आना. अगर वापस आएगी भी तो बड़ी बेटी शुब्रा को ही लेकर आना. ’मां ने कहा कि, ‘हमारी दो बेटिया हैं. मैं इन दोनो के बिना नहीं रह सकी. ’फिर मां वहां से चल दी. डैड ने भी रोका नहीं. कुछ दिन बाद मेेरे डैड ने दूसरी षादी कर ली. उसके बाद मम्मी ने ही हम दोनों को अकेले पढ़ाया, लिखाया व बड़ा किया. उन्होने हम दोनो को अच्छी परवरिश दी और हम आज इस मुकाम पर हैं.

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हमें अच्छी परवरिश देने के लिए मेरी मम्मी ने नौकरी करनी शुरू कर दी थी. मेरी मम्मी आज भी पुणे के ‘मेन लाइन चाइना’में काम कर रही हैं. दीदी की शादी हो गई है.  दीदी खुश है. डैड से मैं कभी मिली नहीं. मैंने डैड की फोटो जरूर देखी है, पर मैं कभी भी उनसे मिली नहीं.  मैंने उनसे कभी भी फोन पर भी बात नहीं की. मेरे डैड या उनके परिवार के किसी भी सदस्य ने हम लोगों से कभी संपर्क नहीं किया.

2009 में जब मैं ‘मिस इंडिया’ चुनी गयी और टीवी पर मेरी मां के इंटरव्यू आए, तब मेरे डैड के परिवार से मेरी बुआ ने मेरी मम्मी को फोन करके पूछा था कि, ‘यह चोपड़ा की दूसरी बेटी है. ’. बुआ ने टीवी में मुझे देखकर नही पहचाना था, क्योंकि वह मुझसे कभी मिली ही नहीं थी. पर मेरे जन्म से पहले उन्होने मम्मी के संग कई वर्ष बिताए थे. मम्मी के इंटरव्यू तो हर जगह हुए थे, ताकि सबको पता चले मेरी कहानी क्या है. मम्मी से कई न्यूज चैनल ने इंटरव्यू लिया था. उन्होंने मम्मी को पहचाना. मेरी बुआ ने मम्मी से पूछा कि, ‘यह चोपड़ा की छोटी वाली लड़की है. ’इस पर मां ने कहा कि, ‘जी वही बेटी है, जो तुमको नहीं चाहिए थी. ’मिस इंडिया’से मिली शोहरत से मम्मी बहुत खुश थीं. मैं आज भी कोशिश करती हूं कि उनको खुश कर सकूं. क्योंकि मुझे लगता है जो सैक्रिफाइस उन्होंने हमारे लिए किया है, वह कम लोग ही करते हैं.  मेरे लिए मम्मी और दीदी ने बहुत त्याग किया है. उसको मैं कभी वापस नहीं कर पाऊंगी. मैं कभी भी उनके द्वारा किए गए सैक्रिफाइस को भुला नहीं सकती.

किस उम्र में आपको पहली बार अहसास हुआ कि आपकी मम्मी व आपके साथ आपके पिता ने ऐसा किया था. और उस वक्त आपकी अपनी क्या प्रतिक्रिया थी?

-पिता के कृत्य के बारे में मम्मी ने मुझसे कभी नहीं कहा. मेरी बहन ने मुझे बताया था. मेरी मम्मी ने कभी भी मुझे इन सारी बातों के बारे में नहीं बताया था. उन्होने मुझे कभी अहसास भी नहीं होने दिया था कि मेरे जन्म की वजह से मम्मी ने इतनी मुश्किलें सहन की है. उन्होने मुझे इसका अहसास आज तक नहीं कराया. लेकिन जब मैं नौंवीं कक्षा में थी, तब मैंने महसूस किया कि मेरी बहन मेरे से बहुत ज्यादा कड़क है. मेरी बहन चाहती है कि मैं पढ़ाई में फर्स्ट आउं. वह चाहती है कि एलोकेशन,  ड्रामा, गायन में भी पहले पायदान पर रहॅूं. जब मैं पढ़ने की बजाय मस्ती करती थी, तो दीदी कहती थी, ‘मुझे पता है कि मुझे क्या करना है. पर तुझे नहीं पता तेरी वजह से मम्मी ने इतना सब कुछ सहा है. तेरी वजह से यह सब हुआ है. ’यूं तो वह भी छोटी थी. मुझसे सिर्फ 8 साल ही बड़ी है.  पर उस समय वह कॉलेज में थी. तो उसको ऐसा लगता था कि मैं ऐसा कुछ काम करूं, जिसकी वजह से मेरी मम्मी को गर्व महसूस हो. दीदी के जेहन में यह बात थी. मम्मी नौकरी पर चली जाती थी, पर दीदी मेरे साथ रहती थी. नौवीं क्लास में जब दीदी ने मुझे टुकड़ों टुकड़ों में थोड़ा-थोड़ा बताया, तो मुझे अपने डैड पर बहुत गुस्सा आया. जब मैं कॉलेज में पढ़ने के लिए पहुंची, तब पूरी कहानी सही ढंग से पता चली कि मेरे जन्म के बीस दिन बाद ही मेरे डैड ने हम सभी को लावारिस कर दिया था.

लेकिन मेरी दीदी ने मुझे हर चीज के लिए बहुत आगे बढ़ाया. मैं पढ़ाने में तेज थी. अपनी दीदी की वजह से ड्रामा और एलोकेशन में बहुत अच्छी थी. ‘मिस इंडिया’बनने में  मेरी दीदी और मेरी मम्मी दोनों ने मेरा सहयोग दिया था. पर मेरी दीदी मुझे बहुत ज्यादा आगे धकेलती रहती थी. वह बार बार यही कहती थी कि ‘तुम्हें कुछ करना है. . . तुम्हें कुछ करना है. . ’मेरी दीदी आज भी कहती हंै कि मुझे अभी और आगे जाना है. मेरी मम्मी और मेरी दीदी, मेरी जिंदगी में बहुत महत्वपूर्ण हिस्सा रहे हैं और हमेशा रहेंगे.

आपकी मम्मी ने आपको कुछ नहीं बताया. लेकिन आपकी दीदी ने बताया होगा कि आपकी मम्मी को किस ढंग के ताने सुनने पड़ते थे? या किस तरह की तकलीफ से गुजरना पड़ा?

-जब हमारे डैड ने हमें छोड़ा, उस वक्त दीदी आठ साल की थी. समझदार नहीं थी. इसलिए दीदी को भी इतना ज्यादा याद नहीं है. पर जो दीदी को याद था, वह सब मैने आपको अभी बताया. डैड का घर छोड़कर मेरी मम्मी हम लोगों को लेकर नाना  नानी के घर गयी थीं. तेा जब हम नानी के घर गए थे, उस वक्त नानी के घर पर जो बातें होती थी, उन्हें मैं तो एक माह की भी नहीं थी, इसलिए समझ नहीं सकती थी. लेकिन दीदी तो सुनती थी. जब कोई बच्चा 8 – 9 साल का हो, तो उसको कुछ बातें समझ में आती हैं. दीदी ने मुझे बताया कि वह  अक्सर मम्मी और मामा के बीच हाने वाली बातें सुना करती थी. नानी के साथ होने वाली बातें भी सुनती थीं.  लेकिन मेरी मम्मी ने कभी भी मुझसे या दीदी से इस बारे में कुछ नही कहा.

आप ऐसे पिता के लिए क्या कहना चाहेंगी?

-ऐसे पिता या पुरूष के बारे में कुछ न कहना ही बहुत होगा. यह सच है कि मम्मी ने मुझे और दीदी को आज इस मुकाम तक पहुंचाया है, जहां मैंने अपना खुद का मुकाम हासिल किया है. मम्मी ने अकेले काम कर कर हम दोनों को इस मुकाम तक पहुंचाया है. उन्होने मुझे और दीदी को इतनी अच्छी पढ़ाई शिक्षा दी है. इतनी अच्छी परवरिश दी है. उन्होंने हमे लोगों से नफरत नहीं, प्यार करना सिखाया.  मुझे लगता है कि यही मेरे पिता के लिए एक जवाब है. मैं यह नहीं कहूंगी यह उनके लिए तमाचा है. पर यह अपने आप में उनके लिए एक जवाब है. मेरी मम्मी ने भी कुछ ना कहकर भी बहुत कुछ कह दिया है.

आपके जीवन में घटी इस घटना को 35 वर्ष बीत चुके हैं. अब समय व समाज बदला है. इस बदले हुए समय में आप क्या-क्या महसूस कर रही हैं?

-बहुत सारी चीजें बदल गई हैं. बहुत ज्यादा चीजें बदल गई हैं. उन दिनों जब लड़कियां शादी करती थीं, तो वह स्वतंत्र नहीं थी. कामकाजी नहीं थी. उस समय वह पूरी तरह से अपने पति पर निर्भर थीं. आज ऐसा नही है. आज सब कुछ बदल गया है.  आज अगर आपको तलाक लेना है,  तो ले सकते हो, कोई आपके उपर छींटाकशी नही करेगा. आज सब कुछ बराबरी में होता है. मेरी मम्मी ने मेरे डैडी से कुछ नही लिया. स्त्री धन भी नहीं लिया था. कोई हर्जाना, कुछ भी नहीं लिया था. सिर्फ एल्यूमीनियम के ट्ंक में दो जोड़ी कपडे़, मुझे व दीदी को लेकर ही घर सेे निकली थीं. मुझे लगता है कि आज की औरतें बहुत स्वतंत्र हैं. उनको नीचा नहीं दिखाया जाता. ‘तलाकशुदा’के टैग को पहले बहुत बुरा माना जाता था, अब ऐसा नहीं है. लड़कियों को आज बराबरी का हक देते हैं. अगर आज से 30-35 वर्ष पहले लड़कियों को मार दिया जाता था, तो मैं यह नहीं कहूंगी कि आज यह एकदम बंद हो गया है. अभी भी ऐसा हो रहा है, पर उस तादात में नही. . अब रेशियो बहुत ज्यादा कम हो गया है. मेरी राय में यह बदलाव बहुत अच्छा है. मुझे लगता है कि आने वाले समय में इसमें काफी बदलाव आएगा. समाज ज्यादा अच्छा होगा, बेहतर होगा. लड़कियों को समानता मिलेगी. लड़की हो या लड़का बच्चे हैं और दोनो आगे जाकर माता पिता का नाम रोशन करेंगे, यह सोच विकसित होगी.

लड़की और लड़के को समान नजर से देखा जाए, इसके लिए आप क्या करना चाहेगी?

-मुझसे जितना संभव है, वह मैं आज तक करती आ रही हूं. आगे भी करती रहूंगी. ‘मिस इंडिया’जीतने के बाद मै ‘मिस वल्र्ड’के सेमी फाइनल तक पहुंची थी, पर पैर फ्रैक्चर हो जाने के चलते मैं ‘मिस वल्र्ड’बनने से वंचित रह गयी थी. पर उस वक्त मुझे दस हजार अमरीकन डालर मिले थे, जिसे मैने ‘नन्ही कली’सस्था को दान कर दिए थे. मैं भी ‘नन्ही कली’से जुड़ी हुई हॅूं. मैं ‘नन्ही कली’के कुछ बच्चों को पढ़ाती हूं, जिनके छमाही और वार्षिक रिजल्ट मेरे ईमेल पर आते रहते हैं. मैं ‘नन्ही कली’की अपनी लड़कियों की पढ़ाई और उनकी एक्स्ट्रा एक्टिविटी के बारे में लगातर जानकारी लेते रहती हॅूं. जहां भी औरतों को कुछ करना होता है, चाहे पढ़ाई करनी हो, हेल्थ हाइजीन हो, जितना भी मुझसे संभव हो पाता है, मैं थोड़ा भी सहयोग दे सकती हूं मैं हमेशा ऐसे चैरिटेबल इंस्टिट्यूट के साथ काम करती हूं.

आपकी जिंदगी पर भी छोटी सी फिल्म बनी है. क्या आपने इस फिल्म को देखा है?

-मैं ऐसा नहीं कहूंगी कि यह मेरी जिंदगी पर है. क्योंकि असली स्ट्रगल/संघर्ष तो मेरी मां का था. मैं तो सबसे छोटी थी, मुझे तो मेरी मम्मी और दीदी ने बचाया है. दुनिया वालों की बातें, कड़वाहट वगैरह सब कुछ मेरी मम्मी ने सहा है. मुझे लगता है कि यह सब आज से 30 -35 वर्ष पहले बहुत मुश्किल रहा होगा. लेकिन जब मेरी मम्मी हमारे सामने आती थी, तो उनके चेहरे पर हमेशा मुस्कुराहट रहती थी. हमने कभी भी मम्मी को रोते हुए नहीं देखा. हमारे सामने तो वह कभी नहीं रोई. दीदी ने भी मुझे बहुत प्रोटेक्ट किया. तो यह मेरी जिंदगी का संघर्ष नहीं है.

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कनाडियन फिल्म मेकर निशा पाहुजा ने डाक्यूमेंटरीनुमा नब्बे मिनट की फिल्म‘‘वर्ल्ड बिफोर हर’’2012 में बनायी थी. निशा पाहुजा 2009 में ‘मिस इंडिया’से मेरी यात्रा को देखने के साथ ही मेरी जिंदगी को भी समझ रही थीं. मेरी जिंदगी की कहानी पहली बार मेरे ‘मिस इंडिया’जीतने पर ही सामने आयी थी. निशा की इस फिल्म को अनुराग कश्यप ने प्रजेंट किया था. इस फिल्म के लिए निशा ने मेरी मम्मी से इंटरव्यू किया था. इस फिल्म को देखते वक्त मेरी आंखों में भी आंसू आ गए थे.  मुझे लगता है मेरी मम्मी इस फिल्म की हीरो हैं.

आपने अपनी मम्मी के संघर्ष के चलते या अपनी दीदी की सलाह पर ‘मिस इंडिया’’के लिए तैयारी की थी?

-दोनों की ही नहीं थीं. दरअसल मेरा ही मन था. मेरे दिल ने कहा कि मुझे‘मिस इंडिया’के लिए कोशिश करनी चाहिए. मम्मी तो आज भी यही कहती है कि, ‘आपको जो करना है,  वह करो. जिसमें आपकी खुशी हो,  वह करो. ’जब मेरी मौसी कहती हैं कि अब पूजा की भी शादी करा दो, तो मेरी मम्मी कहती हैं, ‘नहीं, अगर बेटी को जिंदगी में कुछ करना है, तो वह करे. मैं जबर्दस्ती उसकी षादी नहीं करूंगी. पूजा खुश है, तो उसी में मेरी खुशी है. ’मेरी दीदी को शादी करनी थी. हम पंजाबी हैं, मगर दीदी को कैथलिक लड़के से शादी करनी थी. मम्मी ने उससे कहा कि यदि वह इस शादी से खुश रह सकती है, तो कर ले. और आज वह सच में बहुत खुश है.

जब मैं छोटी थी. जब मैं स्कूल में पढ़ती थी, तब मैं अपनी मम्मी से कहती थी कि मुझे आईएएस ऑफिसर बनना है. जब मैं कॉलेज में गई, तो मैंने मम्मी से कहा कि मुझे मॉडलिंग करना है. मम्मी ने कहा ठीक है. जब ‘मिस इंडिया’में जाने की बात कही, तो भी उन्होने कहा ठीक है. मैंने मम्मी से कहा कि ‘मिस इंडिया’प्रतियोगिता में मुझे भाग लेना है, तो मम्मी ने कहा ठीक है. यह तो अच्छी बात है. मतलब मैं और दीदी चाहे जो करना चाहे, जिंदगी में मेरी मम्मी ने मना नहीं किया. आज अगर मैं मम्मी से कह दूं कि मुझे फिल्म इंडस्ट्री छोड़कर बिजनेस करना है, तब भी मेरी मम्मी कहेंगी कि ठीक है. वह बहुत सहयोगी है. उन्होने हमें इतना इंटेलीजेंट व  इतना स्ट्रांग बनाया है कि मुझे पता है कि उन्हे मुझ पर यकीन है कि हम गलत राह पर नही जाएंगे. हम हमेशा अच्छा काम करेंगें. हम ऐसा कोई काम नहीं करेंगे, जिससे उनकी इज्जत या लाज पर आंच आए.  वह हमेशा कहती है कि वह हमेशा मुझे सहयोग देंगी, फिर मै चाहे जो काम करना चाहे. इससे ज्यादा सहयोग एक लड़की अपनी मां से क्या मांग सकती है.

Mother’s Day 2020: फैशन के मामले में आलिया भट्ट से कम नहीं हैं उनकी मम्मी

बौलीवुड एक्ट्रेसेस फैशन के मामले में किसी से कम नहीं हैं, चाहे वह दीपिका पादुकोण, प्रियंका चोपड़ा हो या आलिया भट्ट. अब बौलीवुड एक्ट्रेस आलिया की बात करें तो वह किसी फैशन दिवा से कम नही हैं. वह सोशल मीडिया पर अपने अपने फैशन के लेटेस्ट लुक शेयर करती रहती हैं, लेकिन उनकी मां यानी सोनी राजदान भी फैशन के मामले में आलिया से कम नहीं हैं.

सोनी राजदान वैस्टर्न के साथ-साथ इंडियन ड्रैसेस भी कैरी करती हैं, जिसकी फोटोज वह अपने सोशल मीडिया पर शेयर करती हैं. इसीलिए आज हम आपको सोनी राजदान के सिंपल और इंडियन लुक्स के बारे में बताएंगे, जिसे आप चाहें तो किसी पार्टी, शादी या कहीं घूमने के लिए ट्राय कर सकती हैं.

1. पिंक कुर्ते के साथ सोनी का ये लुक करें ट्राय

मौनसून में अक्सर लेडीज ब्यूटीफुल ड्रैसेस पहनना पसंद करते हैं. अगर आप कुछ सिंपल, लेकिन कुछ फैशनेबल पहनना चाहती हैं तो आप सोनी राजदान का ये लुक ट्राय कर सकती हैं.

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2. वाइट फ्रिल सूट करें ट्राय

गरमी में लाइट कलर जितना दिल को सुकून देता हैं, उतना ही फैशनेबल लुक भी देता है. अगर आप भी अपने आप को कूल लुक देना चाहतीं हैं तो आप सोनी राजदान का ये वाइट फ्रिल सूट के साथ प्लाजो या लैगिंग का कौम्बिनेशन बना कर ट्राय कर सकती हैं.

3. सोनी राजदान का लौंग फ्लौवर प्रिंट मैक्सी ड्रैस करें ट्राई

अगर आप कहीं मार्केट या घूमने जा रहे हैं तो आप सोनी राजदान की ये फ्लौवर प्रिंट लौंग मैक्सी ड्रैस भी ट्राय कर सकती हैं. ये लुक आपको फैशनेबल के साथ-साथ ट्रैंडी भी बनाएगा.

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4. सोनी राजदान का साड़ी लुक भी करें ट्राय

 

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Ready to step out !

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अगर आप किसी शादी में जा रहीं हैं और आप सिंपल के साथ-साथ एलिगेंट भी दिखना चाहती हैं तो सोनी राजदान का ये ग्रे सिल्क साड़ी लुक आपके लिए परफेक्ट रहेगा और इसके साथ सिंपल मेकअप आपके लुक को कम्प्लीट भी करेगा.

वहीं सोनी राजदान के फिल्मी करियर की बात करें तो  बौलीवुड एक्ट्रेस आलिया की मां के रोल में वह फिल्म राजी में भी नजर आ चुकीं हैं.

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Mother’s Day 2020: प्रैग्नेंसी के बाद खुद को ऐसे फिट रखती हैं सोहा अली खान

मां बनना हर महिला के लिए एक अलग एहसास होता है, जिसके लिए वह हर तरह के दर्द और प्रौब्लम झेल जाती हैं. और जब वह मां बनती हैं तो सारे गम और दर्द भुला देती है, लेकिन अक्सर देखा गया है कि  प्रैग्नेंसी के बाद लेडिज हेल्दी हो जाती है और उनका वजन बढ़ जाता है. जिसके कारण वह डिप्रेशन का शिकार होने लगती हैं. पर बौलीवुड में कुछ ऐसी एक्ट्रैसेस भी हैं जो मां बनने के बाद भी एकदम फिट है. जो महिलाओं को इन्सपीरेशन देती हैं. तो आइए जानते है एक बेटी की मां बनने के बाद भी बौलीवुड एक्ट्रेस सोहा अली खान अपने आप को कैसे फिट रखती हैं. और साथ ही उनका को फिटनेस सीक्रेट भी है…

आपकी फिटनेस का राज क्या है?

मैं तनाव ज्यादा लेती हूं और बच्चे के पीछे भागती रहती हूं, क्योंकि अभी इनाया चलने फिरने लगी है. इससे मैं अधिक फिट रहती हूं. इसके अलावा थोड़ी वर्कआउट बीच-बीच में कर लेती हूं.

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गर्मी के मौसम में अपनी फिटनेस को कैसे बनाये रखती है?

गर्मी में सनस्क्रीन का प्रयोग करती हूं, क्योंकि एक उम्र के बाद सूर्य की किरणें स्किन के लिए हानिकारक हो जाती है. इसके अलावा स्किन को मौइस्चराइज करना, मेकअप को उतारना और एक अच्छी नींद लेना बहुत जरुरी होता है. लिक्विड यानी तरल पदार्थ का ज्यादा से ज्यादा सेवन करना गरमी में जरूरी होता है.

 गृहशोभा के जरिये नयी मां बनने वाली महिलाओं को क्या संदेश देना चाहती है?

हर मां अपने बच्चे के लिए अच्छा करती है. आपके आस-पास रहने वाले आपको हर तरह के निर्देश देंगे,लेकिन आपको अपने ऊपर विश्वास होना जरुरी है कि आप बच्चे के लिए जो करेंगे वह सही करेंगे. साथ ही हर मां को अपने ऊपर भी ध्यान देने की जरुरत है.

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