‘‘अबतो तेरी शादी को 2 साल हो गए हैं. आखिर तू कब तक मु झ से छोटीछोटी बातों पर सलाह लेता रहेगा, हर काम के बारे में पूछता रहेगा… इस तरह दूध पीता बच्चा बनने से तो काम नहीं चलेगा. अब तो मेरा पल्लू छोड़,’’ अपनी सास को पति पर इस तरह झुं झलाते देख कावेरी मन ही मन मुसकरा उठी.
कावेरी उस समय अपने कमरे की झाड़पोंछ कर रही थी जब वल्लभ ने आ कर कहा था कि उसे अपने दोस्तों को अपनी प्रोमोशन की पार्टी देनी है और तुम सारी व्यवस्था कर लेना. तब उस ने हमेशा की तरह अपनी सास पर बात डालते हुए कहा था कि मांजी से पूछ लो और यह भी पूछ लेना कि क्याक्या बनेगा तथा बाजार से कितना सामान आएगा.
वल्लभ तो सदा से यही कहता और चाहता था कि मां की ही चले, इसलिए कावेरी को मात्र सूचना दे कर वह मां से पूछने चला गया. मगर आज आशा के विपरीत मां की तरफ से हिदायतें मिलने के बजाय डांट पड़ी तो वह हैरान रह गया. मगर कावेरी खुश थी कि इतने वर्षों में ही सही उस की तरकीब काम तो आई.
जब कावेरी का वल्लभ के साथ विवाह हुआ था तो वह सरकारी दफ्तर में अच्छे पद पर काम करता था. एक मध्यवर्गीय परिवार की लड़की जैसा घरवर चाहती है, उसी के अनुरूप था वह. एक ननद थी जिस की शादी हो चुकी थी. घर में सिर्फ सासससुर थे और कोई बड़ी जिम्मेदारी नहीं थी. कावेरी के मातापिता इस विवाह से संतुष्ट थे तो वह खुद भी खुश थी. लेकिन विवाह के 2 दिन बाद ही वह जान गई कि उस के उच्च पदासीन पति की डोर उस की मां के हाथों में है. पति ही नहीं ससुर तक की नकेल सास के हाथों में है. घर में उन्हीं की चलती है. अपना दबदबा बनाए रखने की उन्हें आदत सी हो गई है.
वल्लभ हर बात मां से पूछ कर करता था. यहां तक कि सोना, नहाना, जानाआना, क्या खाना है, क्या पहनना है, हर चीज पर मां की हुकूमत थी. मां अपने इकलौते बेटे पर ममता लुटाती हैं, ठीक है पर उन की ममता का घेरा इतना जकड़ा था कि उस में किसी का सेंध लगाना नामुमकिन तो था ही, साथ ही इस के बाहर न आने के कारण वल्लभ डरपोक भी बन गया था. मां की हर बात उस के लिए अंतिम होती थी. फिर चाहे वह सही हो या गलत. कावेरी मांबेटे के रिश्ते के बीच नहीं आना चाहती थी, पर मां को उन दोनों के बीच आते देख कावेरी छटपटा जाती.
मां उन्हें अकेली भी नहीं छोड़ती थीं. या तो उन के कमरे में बैठी रहतीं या फिर बेटे को कमरे में बुला लेतीं. पति की निकटता की चाह में कावेरी मन ही मन कुढ़ती रहती.
वल्लभ से कहती तो वह लड़ता, ‘‘तुम मांबेटे के बीच कांटे बोना चाहती हो? मां सही ही कहती हैं कि बीवी के आते ही मां का साम्राज्य खत्म हो जाता है, पर मैं ऐसा नहीं होने दूंगा. इस घर में वही होगा जो मां चाहेंगी.’’
कावेरी ने बहुत सम झाने की कोशिश की कि मां अपनी जगह हैं और पत्नी अपनी जगह पर मां की उंगली पकड़ने के आदी वल्लभ को उस की कोईर् बात सम झ न आती. घर में तो सास चिपकी ही रहतीं पर कहीं बाहर जाना होता तो भी साथ रहतीं. कावेरी की हर बात में नुक्स निकालना और वल्लभ को भड़काना तो जैसे उन का शौक बन गया था. पति सुख क्या होता है, कावेरी सम झ ही नहीं पा रही थी. अपने बेटे के सारे काम वे खुद करतीं.
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कावेरी करना चाहती तो कहतीं, ‘‘तू 2 दिन की आई छोकरी मेरे बेटे पर हक जमाना चाहती है? अरे, इतना बड़ा तो मैं ने ही किया है न इसे? इस की जरूरतों से वाकिफ हूं मैं… तू क्या जाने कितना नमक या मिर्च खाता है यह.’’
कावेरी चुप रहती. आंसुओं को बंद कमरे में बहने देती. हद है… कैसी मां हैं… बेटे से इतना लगाव था तो शादी क्यों की थी. असल में वल्लभ को किसी के साथ बांटना उन्हें पसंद न था. सास के दबदबे से आतंकित कावेरी सदा डरीसहमी रहती. नववधू के चेहरे पर जो लालिमा और रौनक होती है वह कावेरी के चेहरे पर कभी नजर नहीं आई. उस का निजी तो कुछ था ही नहीं. उन दोनों की आपस की बातों को सास कुरेदकुरेद कर पूछतीं. कावेरी शर्म से गड़ जाती जब सास उस के कमरे की चीजों को उलटतीं.
एक दिन तो कावेरी यह सुन कर सन्न रह गई जब सास ने कहा, ‘‘खबरदार जो मेरे बेटे के साथ ज्यादा सोई. दिनबदिन कमजोर होता जा रहा है वह… अपने ही पति को खाने पर तुली हुई है.’’
कावेरी का मन चिल्लाने को करता पर पति ही साथ न था तो विद्रोह कैसे करती. ससुर उसे करुण दृष्टि से देखते और स्नेह से उस के सिर पर हाथ फेर देते तो पत्नी की िझड़की खाते, ‘‘बहू के साथ मिल कर कौन सा प्रपंच रच रहे हो… याद रखना मेरी सत्ता कोई नहीं छीन सकता है.’’
कावेरी सम झ गई थी कि अगर उसे इस घर में रहना है तो चुप रहने के सिवा उस के पास और कोई रास्ता नहीं है. सास मानो उस के धैर्य की परीक्षा ले रही थीं. वे चाहती थीं कि कावेरी उन के खिलाफ कुछ बोले और वल्लभ उस से नफरत करने लगे. मगर कावेरी पति के थोड़ेबहुत प्यार को खोना नहीं चाहती थी. इसलिए सास की किसी भी बात का प्रतिकार नहीं करती.
वल्लभ उसे एक नन्हे शिशु जैसा लगता जो कुएं के मेढक के समान था,
जिस ने स्वयं रास्ता खोजना सीखा ही न था. कावेरी को यह सोच कर हैरत होती कि वह नौकरी कैसे कर पाता है. उस का मन होता कि वह वल्लभ के काम में उस की हिस्सेदार बने पर वह सारी बातें मां को बताता.
कावेरी कुछ पूछती तो िझड़क देता, ‘‘अपनी हद में रहो, बेकार के सवालजवाब करना मु झे पसंद नहीं.’’
‘‘मैं तुम्हारी बीवी हूं वल्लभ, तुम्हारे दुखसुख की साथी. मैं हर क्षण तुम्हारे साथ बांटना चाहती हूं. फिर छोटीछोटी बातें ही नजदीकियां लाती हैं. जब मां को सब बता सकते हो तो मु झे क्यों नहीं?’’ अकेले में कभी कावेरी कुछ कहने का साहस करती तो वल्लभ आगबबूला हो मां के पास जा कर बैठ जाता.
कुढ़तीचिढ़ती अपनेआप को कोसती कावेरी को लगता कि वह पागल हो जाएगी. कभी आत्महत्या करने का विचार आता. मायके लौटने का विकल्प उस के पास न था. मध्यवर्ग की यही बड़ी त्रासदी है कि अगर एक बार लड़की को विदा कर दिया तो उस के अकेले लौटने का प्रश्न ही नहीं उठता है. कौन मांबाप ब्याहता बेटी को रख सकते हैं? फिर कावेरी अपने अंतस के दुख कैसे बांटती, इसलिए भीतर ही भीतर कुढ़ती रहती.
फिर उसे लगा ऐसे तो समस्या का समाधान नहीं निकलेगा. जितना वह कुढ़ेगी या रोएगी, सास उतना ही उसे सताएगी और पति और विमुख होता जाएगा. ब्याह को तब 1 साल भी नहीं हुआ था कि उस के अंदर एक नया जीव सांस लेने लगा.
वल्लभ अपनी खुशी व्यक्त करना चाहता तो सास एकदम टोक देतीं, ‘‘बालबच्चे सभी के होते हैं. इस में इतनी खुशी की क्या बात है?’’
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अपने अंश की खुशी कावेरी अकेले ही बांटती. उस का मन करता कि वल्लभ उस के साथ आने वाले के लिए ख्वाब बुने. पर हर पल मां के साए में दुबका रहने वाला व्यक्ति अपने दिल की भावनाओं को व्यक्त कर पाना और बांट पाना कैसे सीख पाता.
‘नन्हे शिशु का आगमन एक सुखद माहौल में न हुआ तो’ यह सोच कर ही कावेरी कांप जाती. उसी की खातिर उस ने भी वल्लभ जैसा बनने का निश्चय किया. विरोध तो वह पहले भी नहीं करती थी. बस अब चुपचाप, निर्विकार ढंग से काम में लगी रहती. सास को यह बात खलती कि आखिर बहू उस के क्यों नहीं सलाह लेती या पलट कर कोई प्रतिक्रिया क्यों नहीं करती है.
असल में सास चाहती थीं कि बहू सारा दिन उन की चापलूसी करे. इस से उन के अहं को संतुष्टि मिलती कि बेटा ही नहीं, बहू भी उन की मुट्ठी में है. अपनी सत्ता छिन जाने का डर बुढ़ापे में ज्यादा गंभीर रूप ले लेता है. कावेरी उन के मनोभावों को ताड़ गई थी, इसलिए उस ने वैसा ही व्यवहार करना शुरू कर दिया, ‘जी मांजी, आप जो कहती हैं, वही सही है. ऐसा ही करूंगी,’ कहतेकहते उसे इस अभिनय में रस आने लगा. अगर इसी तरह घर में सुखशांति रह सकती है तो इस में बुराई क्या है. कावेरी ने ऐसा रुख अपनाया कि सास को लगे कि वही सर्वोपरि हैं.
‘मांजी दूध कितना लेना है, मांजी सब्जी कौन सी और कितनी बनेगी’ या ‘प्रैस वाली को कौन से कपड़े देने हैं?’ जैसे सवालों की बौछार वह सारा दिन करती रहती.
हमेशा अपनेआप में सिमटी रहने वाली बहू को इतना मनुहार करते और सम्मान देते देख वल्लभ की मां जहां हैरान हुईं वहीं संतुष्ट भी हुईं. अब उन्होंने वल्लभ के कान भरने छोड़ दिए थे. किस बात में कावेरी का दोष निकालतीं जब वह हर बात में उन की राय लेने लगी थी.
वल्लभ कावेरी की पीड़ा को न पहले सम झ पाया था न ही अब सम झ पाया. वह तो इसी में खुश था कि कावेरी हर बात मां की मरजी के अनुसार करती है.
‘‘तुम काफी बदल गई हो,’’ वल्लभ की निकटता कावेरी की सांसों को छू रही थी, खिन्नता और उदासी जो उन के कमरे में निजी क्षणों में बिखरी रहती थी, उस की जगह आत्मीयता ने ले ली थी.
‘‘मां कह रही थीं कि उन से हर बात पूछ कर करने लगी हो. देखों मैं शुरू से ही चाहता था कि मां को उचित सम्मान देना चाहिए. फिर पिताजी तक उन की हां में हां मिलाते हैं.’’
‘‘सही कह रहे हैं आप, पर आप को मेरी एक बात माननी होगी,’’ कावेरी ने डरतेडरते कहा.
‘‘क्या?’’ उस की पलकों को चूमते हुए वल्लभ ने पूछा.
‘‘आप बातबात पर चिढ़ना और नाराज होना छोड़ दें. इस से बच्चे पर बुरा प्रभाव पड़ता है.’’
‘‘बस इतनी सी बात है, जब तुम मां की बात मानने लगी हो तो फिर मैं भी न नहीं कहूंगा.’’
बांहों में समाई कावेरी का मन टीस उठा था. हर शब्द में मां का जिक्र और उन्हीं की वजह से पति का मिलता प्यार.
पहला बेटा हुआ तो सास खिल उठीं. कावेरी ने भी बड़ी चालाकी से मुन्ने
की सारी जिम्मेदारी उन पर डाल दी. कहती कि मांजी, मुन्ने का दूध का टाइम हो गया है, आप ठीक बनाती हैं, जरा बना दीजिए. मुन्ना रो रहा है, इसे आप ही संभालिए. फिर तो नैपी बदलने से ले कर हर काम कावेरी सास को सौंपती गई. हालांकि वह अपने बेटे का काम स्वयं ही करना चाहती थी पर जानती थी कि ऐसा करने पर मांजी मीनमेख निकालने लगेंगी या कहेंगी कि जैसे मैं ने तो बच्चे पाले ही नहीं हैं. वह किसी भी तरह की अप्रिय स्थिति से बचना चाहती थी.
एक दिन मुन्ना रात को रोने लगा और चुप ही न हुआ तो मांजी ने कहा, ‘‘ला मु झे दे, मैं इसे अपने पास सुला लेती हूं.’’
उस दिन के बाद से कावेरी ने मुन्ने को उन्हीं के पास सुलाना शुरू कर दिया. मां की ममता को भविष्य को सुखद करने के लिए कुछ समय दबाना आवश्यक हो गया था. वल्लभ तो इसी में खुश था कि मुन्ना मां के सुरक्षित हाथों में है.
सास की व्यस्तता बढ़ गई और कावेरी अभिनय में चतुर होती गई. पर मन ही मन डरती थी कि कहीं बच्चा भी पिता जैसा दब्बू बना तो क्या होगा पर एक विश्वास था कि आखिर कब तक मांजी अपना वर्चस्व जता तानाशाही चलाती रहेंगी.
उम्र बढ़ने पर शरीर भी जवाब देने लग जाता है और फिर जिस औरत ने सारी उम्र हुकूमत की हो और इसी कारण दिनरात एक कर दिए हों, वह थकने भी जल्दी लगती है. कावेरी महसूस करने लगी थी कि मांजी थकने लगी हैं. कई बार उस के कुछ पूछने पर झल्लाने लगतीं. लेकिन कावेरी अनजान बनी उन के सुपुर्द 10 काम और कर देती. घर की साम्राज्ञी की अवहेलना कैसे करती वह. वल्लभ भी बच्चे के साथ ज्यादा समय गुजारने लगा था. पिता बनने के बाद उस के व्यक्तित्व में सुधार आया था. उस का भी एक वजूद है, यह बात उसे झं झोड़ने लगी थी.
मांजी कहीं किसी रिश्तेदार के घर शादी में जाने की इच्छा प्रकट करतीं तो कावेरी झट से कह देती, ‘‘बच्चा आप के बिना कैसे रहेगा और फिर मैं अकेली बच्चे और घर को कैसे संभालूंगी या बच्चे को अपने साथ ले जाइए या…’’
वह अपनी बात अधूरी छोड़ देती तो मातृभक्त पत्नी को स्नेहसिक्त नजरों से ताकता वल्लभ कह उठता, ‘‘ठीक ही तो कह रही है मां, कावेरी. तुम्हारे बिना तो घर एक दिन में ही अस्तव्यस्त हो जाएगा.’’
फिर उन का जाना टल जाता.
हालांकि कावेरी को बाहर जाने की इजाजत नहीं मिलती थी पर अब वह स्वयं ही फिल्म के टिकट ले आता.
कावेरी कहती, ‘‘बच्चे के साथ मैं कैसे जाऊंगी. आप टिकट ले आए हैं तो मांजी को ले जाइए.’’
तब मांजी को ही कहना पड़ता, ‘‘मैं बच्चे को संभाल लूंगी, तुम दोनों चले जाओ.’’
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बेटे की खुशी की खातिर उन्हें बहू पर कमान ढीली करनी पड़ती. स्वयं उन्हें घूमने का बहुत शौक था पर अब बच्चे की वजह से कहीं नहीं निकल पाती थीं. पहले कावेरी को ढेर सारी चेतावनियां दे कर जाती थीं पर अब उन्हें लगने लगा था कि उन की आजादी छिनती जा रही है. बेटा भी बहू के निकट होता जा रहा है. पोते को न संभाले तो बेटा नाराज हो जाएगा और वह उन के रोब के साए से निकल गया तो क्या होगा, सोच कर ही वे कांप उठतीं. इसी कशमकश में बहू के ऊपर से सारे प्रतिबंध हटते गए.
मगर उस दिन तो हद हो गई जब उन की बहन की बेटी के ब्याह में जाने की बात उठी. कावेरी रोने लगी, ‘‘मांजी, हम आप के बिना क्या करेंगे… आप न जाएं, इन्हें भेज दें.’’
‘‘अरे, 2-3 दिनों में आ जाऊंगी,’’ वे जैसे कुछ राहत पाने को व्याकुल थीं. वैसे भी वल्लभ के जाने का मतलब था बहू भी उस के साथ जाएगी, वह भी बच्चे को छोड़ कर. पर वल्लभ अड़ गया कि वही जाएगा. उस का आत्मविश्वास देख कावेरी को खुशी हुई.मांजी का सम्मान करना ठीक है पर खुली हवा में सांस लेने का सब को अधिकार है, यह जताना भी बहुत जरूरी था. अपनी आजादी सभी को बहुत प्यारी होती है. फिर चाहे वह बच्चा हो या बड़ा.
कावेरी मर्यादाओं या सीमाओं का उल्लंघन करने में यकीन नहीं करती थी पर चाहती थी कि वल्लभ, बाबूजी और बच्चे का अपना एक व्यक्तित्व हो ताकि वे कुएं के मेढक न बनें. बाबूजी की दुखद स्थिति से वह परिचित थी. अपने वजूद को नगण्य होते देखना कितना पीड़ादायक होता है, मांजी को इस बात का एहसास कराना जरूरी था. एक कुहरा जो उन के रिश्तों में छाया था, जिस की वजह से सब घुटते रहते थे, उसे हटाना जरूरी था.
पलंग पर विचारों में डूबी कावेरी न जाने और कितनी देर बैठी रहती अगर वल्लभ आ कर उसे झं झोड़ता नहीं, ‘‘सुना न कि मां क्या कह रही हैं? यह अचानक मां को क्या हो गया है… अब क्या होगा… दोस्तों को क्या जवाब दूंगा. पार्टी नहीं दी तो वे मजाक उड़ाएंगे. वैसे भी…’’ उस ने बात अधूरी छोड़ दी.
‘‘आप चिंता न करें, सारा इंतजाम हो जाएगा. मां अब आराम चाहती हैं, मैं सब संभाल लूंगी,’’ आत्मविश्वास की किरणें और 2 सालों का धैर्य उस के चेहरे को दिपदिपा रहा था.
वल्लभ को लगा अब कुछ कहना या पूछना बेकार है. उसे अपने इर्दगिर्द छाया कुहारा छंटता सा महसूस हुआ.
कावेरी मन ही मन मुसकराई और फिर किचन की ओर चल दी.
‘‘वल्लभ कावेरी की पीड़ा को न पहले सम झ पाया था न ही अब सम झ पाया. वह तो इसी में खुश था कि कावेरी हर बात मां की मरजी के अनुसार करती है…’’
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