विलियम की सिर्फ चमड़ी ही सफेद थी, मगर उस का दिल एकदम काला था. कई बार वह त्रिशा को भी गलत तरीके से छूना चाहा था, पर त्रिशा ने उसे वह मौका ही नहीं दिया. नताशा जितना त्रिशा को विलियम के करीब करना चाहती थी वह उतना ही उस से दूर भगाती थी. त्रिशा अपनी मां को समझाना चाहती थी कि विलियम अच्छा लड़का नहीं है. पर वह सुने तब न.
स्कौलरशिप के लिए हर्ष ने परीक्षा दिया था जिस में वह चुन लिया गया. कालेज की पढ़ाई पूरी होते ही 2 साल के लिए वह स्लौकरशिप पर स्विट्जरलैंड चला गया. त्रिशा भी बीबीए करने के बाद एमबीए करने 2 साल के लिए स्विट्जरलैंड चली गई.
वहां से लौटते ही दोनों परिवार की सहमति से विवाह बंधन में बंधने का फैसला कर चुके थे. त्रिशा ने अपना प्लान पहले ही डैडी को बता दिया था, पर मम्मी को बताने में उसे डर लग रहा था इसलिए सोचा वहां जा कर बताएगी.
लेकिन हर्ष से शादी की बात सुनते ही नताशा ने घर में कुहराम मचा दिया था. दोनों मांबेटी में इस बात को ले कर जंग छिड़ गई थी. न त्रिशा अपनी मां की बात को समझने को तैयार थी और न ही नताशा बेटी की भावनाओं को समझ रही थी.
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नताशा का कहना था कि हर्ष का रहनसहन, खानपान, पहनावा सबकुछ अलग है. दोनों परिवारों का कहीं से भी कोई मेल नहीं है. वह कैसे निभाएगी हर्ष के साथ? और तो और दोस्तरिशतेदारों में उन की हंसी उड़ेगी. लोग कहेंगे कि अपनी इकलौती बेटी की शादी हम ने अपने से छोटे परिवार में कर दिया.
लेकिन त्रिशा अपनी मां की एक भी बात सुनने को तैयार नहीं थी. उस का कहना था कि वह मर जाएगी पर हर्ष के सिवा किसी और से शादी नहीं करेगी. नताशा को एक यह भी डर सताने लगा था कि त्रिशा बालिग है. अपनी मरजी से जिस से चाहे शादी कर सकती है. वह रोक नहीं पाएगी उसे. मगर वह भी हार मनाने वाली नहीं थी.
उस ने त्रिशा को हर्ष से मिलने पर रोक लगा दी. उस का अकेले कहीं आनेजाने पर भी पाबंदी लगा दिया गया. फोन पर वह किस से कितनी देर बात करती है, उस पर भी नजर रखा जाने लगा. घर के बाहर भी सख्त पहरा लगवा दिया गया था ताकि हर्ष घर के आसपास मंडरा न सके.
त्रिशा अपने ही घर में कैद हो कर रह गई थी. नताशा का कहना था जब तक वह विलियम से शादी के लिए नहीं मान जाती, उसे ऐसे ही रहना होगा. त्रिशा चाहती तो अपनी मां के हर बात का जवाब दे सकती है. घर से भाग कर हर्ष से शादी कर सकती थी. मगर वह केवल अपने डैडी का मुंह देख कर चुप रह गई. जानती थी उस के बाद मम्मी उन का जीना हराम कर देंगी.
ऐसे ही तो बोलती रहती है कि अशोक ने ही त्रिशा को बिगाड़ रखा है. वरना क्या उस की इतनी हिम्मत थी कि वह हर्ष जैसे लड़के से प्यार करने की जुर्रत करती?
लेकिन क्या प्यार करना कोई पाप है? बल्कि प्यार में तो वह परिवत्रा होती है जो सब को एक करना सिखाती है. एक नए भारत के निर्माण का सपना, जहां धर्म, जाति और दकियानुसी परंपराओं की संक्रीण दीवारों से उठ कर इंसानियत और प्यार के पैगाम के साथ आगे बढ़ा जाता है.
लेकिन आज दिमागी तौर पर जाति, धर्म और संकीर्णता की दीवारें ढहने के बजाय बढ़ने लगी हैं.
उस रोज विलियम का जन्मदिन था. नताशा, अशोक और त्रिशा उस पार्टी के स्पैशल गेस्ट थे. वैसे, त्रिशा उस पार्टी में नहीं जाना चाहती थी. मगर नताशा ने घर में इतना हंगामा मचाया कि त्रिशा को जाना ही पड़ा.
पार्टी शहर के सब से बड़े होटल में रखी गई थी. उस पार्टी में शहर के बड़ेबड़े लोगों के अलावा, अमेरिका से विलियम के कुछ दोस्त भी आए थे जिसे वह त्रिशा से मिलवा रहा था.
नताशा चाहती थी कि किसी तरह त्रिशा विलियम को पसंद करने लगे और उस हर्ष को भूल जाए तो सब ठीक हो जाएगा. इसलिए जबरदस्ती फोर्स कर उस ने विलियम के साथ उसे डांस करने को मजबूर किया.
एक जरूरी फोन कौल के कारण पार्टी के बीच में ही नताशा को जाना पड़ गया. लेकिन उस ने कहा कि वह जल्द ही आएगी. पार्टी देररात तक चली. डांस के बाद विलियम ने त्रिशा को ड्रिंक ला कर दिया जिसे न चाहते हुए भी उसे पीना पड़ा. लेकिन ड्रिंक पीते ही त्रिशा को मदहोसी छाने लगी और वह वहीं सोफे पर ही लुढ़क गई.
विलियम का इरादा त्रिशा को ले कर नेक नहीं था, यह बात हर्ष पहले से ही जानता था तभी तो वह उस पार्टी में किसी तरह शामिल हो गया था.
विलियम को उस ने त्रिशा को कमरे में ले जाते हुए देखा, पर वह उसे किस कमरे में ले कर गया पता नहीं चल रहा था. तभी होटल के एक कमरे के बाहर उसे त्रिशा का ब्रैसलेट पड़ा दिखाई दिया. कान लगा कर सुना तो अंदर से फुसफुसाहट सुनाई पड़ी. हर्ष समझ गया कि त्रिशा इसी कमरे में है.
उसने तुरंत जा कर होटल के मैनेजर को सारी बात बताई और कहा कि अगर उस लड़की के साथ कुछ ऐसावैसा हो जाता है, तो वही जिम्मेदार होगा और इस होटल की बदनामी होगी सो अलग.
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हर्ष की बात सुन होटल के मैनेजर ने तुरंत दूसरी चाबी से दरवाजा खुलवाया और सब ने जो देखा, आवाक रह गया…
विलियम अपने 2 दोस्तों के साथ त्रिशा के साथ जबरदस्ती करने की कोशिश कर रहा था और वह अर्धचेतना में ही अपनेआप को उनसे बचाने की कोशिश कर रही थी.
“तुम्हारी इतनी हिम्मत की तुम मेरी बेटी के साथ…” कह कर नताशा विलियम के गाल पर तड़ातड़ थप्पड़ बरसाने लगी. उन दोनों लड़कों को भी नताशा ने खूब मारा।
अपनी सहेली को भी उस ने खूब खरीखोटी सुनाई और कहा कि अच्छा हुआ जो उन का असली चेहरा सब के सामने आ गया, वरना वह तो बरबाद हो गई होती.
तब तक पुलिस भी वहां पहुंच चुकी गई. विलियम की मां ने नताशा के सामने हाथ जोड़े, पांव पड़े पर नताशा ने उन की एक न सुनी और विलियम और उस के दोनों दोस्तों को पुलिस के हवाले कर दिया.
यह सोचसोच कर नताशा के आंसू नहीं रुक रहे थे कि आज अगर हर्ष न होता तो उस की बेटी के साथ क्या हो गया होता. शायद ये दरिंदे उन की बेटी के साथ बलात्कार कर उसे मार भी डालते, फिर क्या कर लेती वह?केसकानून करने से भी क्या उस की बेटी वापस आ जाती?
आज नताशा को समझ में आ गया कि त्रिशा सही थी और वह गलत. सही कहती थी त्रिशा कि पैसा ही सबकुछ नहीं होता.
इंसान अच्छा और सच्चा होना चाहिए. धन तो कैसे भी कर के कमाया जा सकता है, पर अच्छे संस्कार हर किसी के पास नहीं होते. पढ़लिख कर बड़ा आदमी बन जाना, अच्छे कपड़े पहनना, अच्छा खाना खाना, बड़ीबड़ी गाड़ियों में घूमना यही सब अच्छे संस्कारों की गिनती में नहीं आते, बल्कि अच्छे संस्कार का मतलब होता है लोगों के दुखों को समझना, अपनों से बड़ों को सम्मान देना, जो विलियम में तो बिलकुल नहीं था.
यह बात त्रिशा ने कई बार बताना चाहा कि विलियम अच्छा लड़का नहीं है, पर नताशा हर बार उस की बात को नजरअंदाज कर उसे ही चुप करा देती थी. लेकिन आज उसे समझ में आ गया कि त्रिशा बिलकुल सही थी.
घर पहुंच कर नताशा ने सिर्फ अपनी बेटी त्रिशा और पति अशोक से ही हाथ जोड़ कर माफी नहीं मांगी, बल्कि हर्ष के सामने भी वह सिर झुका कर खड़ी हो गई. हाथ जोड़ कर कहने लगी कि हर्ष उसे माफ कर दे. उस से इंसान के चुनाव में गलती हो गई.
“नहीं आंटी, प्लीज, ऐसा मत कहिए. आप अपनी जगह एकदम सही थीं. हर मांबाप अपने बच्चों को ज्यादा से ज्यादा सुखी देखना चाहते हैं. आप ने भी ऐसा ही सोचा तो क्या गलत किया? और आप को लगा विलियम से शादी कर के त्रिशा ज्यादा सुखी रहेगी.”
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नताशा उसे देखती रह गई कि वह कितनी गलत थी उसे ले कर. अपनी जिद और अहंकार के कारण उस ने हीरा को पत्थर और पत्थर को हीरा समझ लिया.
आज नताशा को हर्ष से मिल कर बहुत खुशी महसूस हो रही थी. अब वह दिल से हर्ष को अपना दामाद मान चुकी थी.