एक दिन शेफाली को चौंकाते हुए वंदना रात को अचानक उस के कमरे में आ गई.
शेफाली को रात देर तक पढ़ने की आदत थी.
वंदना को अपने कमरे में देख चौंकी थी शेफाली, ‘‘आप,’’ उस के मुख से निकला था.
‘‘बाथरूम जाने के लिए उठी थी. तुम्हारे कमरे की बत्ती को जलते देखा तो इधर आ गई. मेरे इस तरह आने से तुम डिस्टर्ब तो नहीं हुईं?’’
‘‘जी नहीं, ऐसी कोई बात नहीं,’’ शेफाली ने कहा.
‘‘रात की शांति में पढ़ना काफी अच्छा होता है. मैं भी अपने कालिज के दिनों में अकसर रात को ही पढ़ती थी. मगर बहुत देर रात जागना भी सेहत के लिए अच्छा नहीं होता. अब 1 बजने को है. मेरे खयाल में तुम को सो जाना चाहिए.’’
वंदना ने अपनी बात इतने अधिकार और अपनत्व से कही थी कि शेफाली ने हाथ में पकड़ी हुई किताब बंद कर दी.
‘‘मेरा यह सब कहना तुम को बुरा तो नहीं लग रहा?’’ उस को किताब बंद करते हुए देख वंदना ने पूछा.
‘‘नहीं, बल्कि अच्छा लग रहा है. बहुत दिनों बाद किसी ने इस अधिकार के साथ मुझ से कुछ कहा है. आज मम्मी की याद आ रही है. वह भी मुझ को बहुत देर रात तक जागने से मना किया करती थीं,’’ शेफाली ने कहा. उस की आंखें अनायास आंसुओं से झिलमिला उठी थीं.
शेफाली की आंखों में झिलमिलाते आंसू वंदना की नजरों से छिपे न रह सके थे. इस से वह थोड़ी व्याकुल सी दिखने लगी. उस ने प्यार से शेफाली के गाल को सहलाया और बोली, ‘‘जो बीत गया हो उस को याद कर के बारबार खुद को दुखी नहीं करते. अब सो जाओ, सुबह बहुत सारी बातें करेंगे,’’ इतना कहने के बाद वंदना मुड़ कर कमरे से बाहर निकल गई.
इस के बाद तो शेफाली और वंदना के बीच की दूरी जैसे सिमट गई और दोनों के बीच की झिझक भी खत्म हो गई.
एकाएक ही शेफाली को वंदना बहुत अपनी सी लगने लगी थी. जाहिर है अपने व्यवहार से शेफाली के विश्वास को जीतने में वंदना सफल हुई थी. अब दोनों में काफी खुल कर बातें होने लगी थीं.
शेफाली के शब्दों में सौतेली मां के प्रति आक्रोश को महसूस करते हुए एक दिन वंदना ने कहा, ‘‘आखिर तुम दूसरों के साथसाथ अपने से भी इतनी नाराज क्यों हो?’’
‘‘क्या जानकी बूआ ने मेरे बारे में आप को कुछ नहीं बतलाया?’’
‘‘बतलाया है,’’ गंभीर और शांत नजरों से शेफाली को देखती हुई वंदना बोली.
‘‘क्या?’’
‘‘यही कि तुम्हारे पापा ने किसी और औरत से दूसरी शादी कर ली है. वह भी तुम्हारी गैरमौजूदगी में…और तुम को बतलाए बगैर,’’ शेफाली की आंखों में झांकती हुई वंदना ने शांत स्वर में कहा.
‘‘इतना सब जानने के बाद भी आप मुझ से पूछ रही हैं कि मैं नाराज क्यों हूं,’’ शेफाली के स्वर में कड़वाहट थी.
‘‘अधिक नाराजगी किस से है? अपने पापा से या सौतेली मां से?’’
‘‘नाराजगी सिर्फ पापा से है.’’
‘‘सौतेली मां से नहीं?’’ वंदना ने पूछा.
‘‘नहीं, उन से मैं नफरत करती हूं.’’
‘‘नफरत? क्या तुम ने अपनी सौतेली मां को देखा है या उन से कभी मिली हो?’’ वंदना ने पूछा.
‘‘नहीं.’’
‘‘फिर सौतेली मां से नफरत क्यों? नफरत तो हमेशा बुरे इनसानों से की जाती है न,’’ वंदना ने कहा.
‘‘सौतेली मांएं बुरी ही होती हैं, अच्छी नहीं.’’
‘‘ओह हां, मैं तो इस बात को जानती ही नहीं थी. तुम कह रही हो तो यह ठीक ही होगा. बुरी ही नहीं, हो सकता है सौतेली मां देखने में डरावनी भी हो,’’ हलका सा मुसकराते हुए वंदना ने कहा.
शेफाली को इस बात से भी हैरानी थी कि जानकी बूआ ने अपने घर की बातें अपनी सहेली की बेटी से कैसे कर दीं?
वंदना अपने मधुर और आत्मीय व्यवहार से शेफाली के बहुत करीब तो आ गई मगर वह उस के बारे में ज्यादा जानती न थी, सिवा इस के कि वह जानकी बूआ की किसी सहेली की लड़की थी.
फिर एक दिन शेफाली ने उस से पूछ ही लिया, ‘‘आप की शादी हो चुकी है?’’
‘‘हां,’’ वंदना ने कहा.
‘‘फिर आप अकेली यहां क्यों आई हैं? अपने पति को भी साथ में लाना चाहिए था.’’
‘‘वह साथ नहीं आ सकते थे.’’
‘‘क्यों?’’ शेफाली ने पूछा.
‘‘क्योंकि कोई ऐसा काम था जो उन के साथ रहने से मैं नहीं कर सकती थी,’’ बड़ी गहरी और भेदपूर्ण मुसकान के साथ वंदना ने कहा.
‘‘ऐसा कौन सा काम है?’’ शेफाली ने पूछा भी लेकिन वंदना जवाब में केवल मुसकराती रही. बोली कुछ नहीं.
अब पढ़ाई के लिए शेफाली जब भी ज्यादा रात तक जागती तो वंदना उस के कमरे में आ जाती और अधिकारपूर्वक उस के हाथ से किताब पकड़ कर एक तरफ रख देती व उस को सोने के लिए कहती.
शेफाली भी छोटे बच्चे की तरह चुपचाप बिस्तर पर लेट जाती.
‘‘गुड गर्ल,’’ कहते हुए वंदना अपना कोमल हाथ उस के ललाट पर फेरती और बत्ती बुझा कर कमरे से बाहर निकल जाती.
वंदना शेफाली की कुछ नहीं लगती थी फिर भी कुछ दिनों में वह शेफाली को इतनी अपनी लगने लगी कि उस को बारबार ‘मम्मी’ की याद आने लगी थी. ऐसा क्यों हो रहा था वह स्वयं नहीं जानती थी.
एक दिन रंजना ने शेफाली को यह बतलाया कि वंदना अगले दिन सुबह की ट्रेन से वापस अपने घर जा रही हैं तो उस को एक धक्का सा लगा था.
‘‘आप ने मुझ को बतलाया नहीं कि आप कल जा रही हैं?’’ मिलने पर शेफाली ने वंदना से पूछा.
‘‘मेहमान कहीं हमेशा नहीं रह सकते, उन को एक न एक दिन अपने घर जाना ही पड़ता है.’’
शेफाली का मुखड़ा उदासी की बदलियों में घिर गया.
‘‘आप जिस काम से आई थीं क्या वह पूरा हो गया?’’ शेफाली ने पूछा तो उस की आवाज में उदासी थी.
‘‘ठीक से बता नहीं सकती. वैसे मैं ने कोशिश की है. नतीजा क्या निकलेगा मुझ को मालूम नहीं,’’ वंदना ने कहा.
‘‘आप कितनी अच्छी हैं. मैं आप को भूल नहीं सकूंगी,’’ वंदना के हाथों को अपने हाथ में लेते शेफाली ने उदास स्वर में कहा.
‘‘शायद मैं भी नहीं,’’ वंदना ने जवाब में कहा.
‘‘क्या हम दोबारा कभी मिलेंगे?’’ शेफाली ने पूछा.
‘‘भविष्य के बारे में कुछ बतलाना मुश्किल है और दुनिया में संयोगों की कमी भी नहीं है,’’ शेफाली के हाथों को दबाते हुए वंदना ने कहा.
रवानगी से पहली रात को शेफाली के कमरे में वंदना आई तो वह बहुत गंभीर थी. उस की तरफ देख कर वंदना बोली, ‘‘जाने से पहले मैं तुम को कुछ समझाना चाहती हूं. मेरी बात पर अमल करना, न करना तुम्हारी मर्जी होगी. जीवन के सच से मुंह मोड़ना और हालात का सामना करने के बजाय उस से दूर भागना समझदारी नहीं. जिस को तुम ने देखा नहीं, जाना नहीं, उस के लिए नफरत क्यों? नफरत इसलिए क्योंकि उस के साथ ‘सौतेली’ शब्द जुड़ा है. प्यार और नफरत करने का तुम को हक है. किंतु तब तक नहीं जब तक तुम किसी को देख या जान न लो. अगर तुम्हारे पापा ने किसी दूसरी औरत से शादी कर के तुम्हारा दिल दुखाया है तो इस का मतलब यह नहीं कि तुम अपने घर पर अपना हक छोड़ दो. तुम को परीक्षाएं देने के बाद अपने घर वापस जाना ही है. यह पक्का इरादा कर लो. अपनों पर नाराज हुआ जाता है, उन को छोड़ा नहीं जाता. रही बात तुम्हारे पापा के साथ शादी करने वाली दूसरी औरत, मेरा मतलब तुम्हारी सौतेली मां से है. एक बार उस को भी देख लेना. अगर वह सचमुच तुम्हारी सोच के मुताबिक बुरी हो तो उस को घर से बाहर का रास्ता दिखलाने का इंतजाम कर देना. इस के लिए तुम को अपने पापा से भी झगड़ना पडे़ तो कोई हर्ज नहीं.’’
जब वंदना अपनी बात कह रही थी तो शेफाली हैरानी से उस के चेहरे को देख रही थी. वंदना की बातों से उस को एक बल मिल रहा था.
आगे पढ़ें- जानकी बूआ ने शेफाली पर घर जाने और पापा से फोन पर बात करने का दबाव बनाने की कोशिश की तो उस ने बूआ को सीधी धमकी दे डाली, ‘‘बूआ, अगर आप किसी बात के लिए मुझे ज्यादा परेशान करोगी तो सच कहती हूं, मैं इस घर को भी छोड़ कर कहीं चली जाऊंगी और फिर कभी किसी को नजर नहीं आऊंगी.’’
शेफाली की इस धमकी से बूआ थोड़ा डर गई थीं. इस के बाद उन्होंने शेफाली पर किसी बात के लिए जोर देना ही बंद कर दिया था.
शेफाली को यह भी पता था कि वह हमेशा के लिए बूआ के घर में नहीं रह सकती थी. 5-6 महीने के बाद जब उस की बी.एड. की पढ़ाई खत्म हो जाएगी तो उस के पास बूआ के यहां रहने का कोई बहाना नहीं रहेगा.
तब क्या होगा?
आने वाले कल के बारे में जितना सोचती उतना ही अनिश्चितता के धुंधलके में घिर जाती. बगावत पर आमादा शेफाली का मन उस के काबू में नहीं रहा था.
फूफा से शेफाली कम ही बात करती थी. बूआ से तो उस का छत्तीस का आंकड़ा था लेकिन उस घर में शेफाली जिस से अपने दुखसुख की बात करती थी वह थी रंजना, जानकी बूआ की बेटी.
रंजना लगभग उसी की हमउम्र थी और एम.ए. कर रही थी.
रंजना उस के दिल के हाल को समझती थी और मानती थी कि उस के पापा ने उस की गैरमौजूदगी में शादी कर के गलत किया था. इस के साथ वह शेफाली को हालात के साथ समझौता करने की सलाह भी देती थी.
सौतेली मां के लिए शेफाली की नफरत को भी रंजना ठीक नहीं समझती थी.
वह कहती थी, ‘‘बहन, तुम ने अभी उस को देखा नहीं, जाना नहीं. फिर उस से इतनी नफरत क्यों? अगर किसी औरत ने तुम्हारी मां की जगह ले ली है तो इस में उस का क्या कुसूर है. कुसूर तो उस को उस जगह पर बिठाने वाले का है,’’ ऐसा कह कर रंजना एक तरह से सीधे शेफाली के पापा को कुसूरवार ठहराती थी.
कुसूर किसी का भी हो पर शेफाली किसी भी तरह न तो किसी अनजान औरत को मां के रूप में स्वीकार करने को तैयार थी और न ही पापा को माफ करने के लिए. वह तो यहां तक सोचने लगी थी कि पढ़ाई पूरी होने पर उस को जानकी बूआ का घर भले ही छोड़ना पडे़ लेकिन वह अपने घर नहीं जाएगी. नौकरी कर के अपने पैरों पर खड़ी होगी और अकेली किसी दूसरी जगह रह लेगी.
2 बार मना करने के बाद पापा ने फिर शेफाली से फोन पर बात करने की कोशिश नहीं की थी. हालांकि जानकी बूआ से पापा की बात होती रहती थी.
मानसी और अंकुर से शेफाली ने फोन पर जरूर 2-3 बार बात की थी, लेकिन जब भी मानसी ने उस से नई मम्मी के बारे में चर्चा करने की कोशिश की तो शेफाली ने उस को टोक दिया था, ‘‘मुझ से इस बारे में बात मत करो. बस, तुम अपना और अंकुर का खयाल रखना,’’ इतना कहतेकहते शेफाली की आवाज भीग जाती थी. अपना घर, अपने लोग एक दिन ऐसे बेगाने बन जाएंगे शेफाली ने कभी सोचा नहीं था.
पहले तो शेफाली सोचती थी कि शायद पापा खुद उस को मनाने जानकी बूआ के यहां आएंगे पर एकएक कर कई दिन बीत जाने के बाद शेफाली के अंदर की यह आशा धूमिल पड़ गई.
इस से शेफाली ने यह अनुमान लगाया कि उस की मम्मी की जगह लेने वाली औरत (सौतेली मां) ने पापा को पूरी तरह से अपने वश में कर लिया है. इस सोच में उस के अंदर की नफरत को और गहरा कर दिया.
अचानक एक दिन बूआ ने नौकरानी से कह कर ड्राइंगरूम के पिछले वाले हिस्से में खाली पड़े कमरे की सफाई करवा कर उस पर कीमती और नई चादर बिछवा दी थी तो शेफाली को लगा कि बूआ के घर कोई मेहमान आने वाला है.
शेफाली ने इस बारे में रंजना से पूछा तो वह बोली, ‘‘मम्मी की एक पुरानी सहेली की लड़की कुछ दिनों के लिए इस शहर में घूमने आ रही है. वह हमारे घर में ही ठहरेगी.’’
‘‘क्या तुम ने उस को पहले देखा है?’’ शेफाली ने पूछा.
‘‘नहीं,’’ रंजना का जवाब था.
शेफाली को घर में आने वाले मेहमान में कोई दिलचस्पी नहीं थी और न ही उस से कुछ लेनादेना ही था. फिर भी वह जिन हालात में बूआ के यहां रह रही थी उस के मद्देनजर किसी अजनबी के आने के खयाल से उस को बेचैनी महसूस हो रही थी.
वह न तो किसी सवाल का सामना करना चाहती थी और न ही सवालिया नजरों का.
जानकी बूआ की मेहमान जब आई तो शेफाली उसे देख कर ठगी सी रह गई.
चेहरा दमदमाता हुआ सौम्य, शांत और ऐसा मोहक कि नजर हटाने को दिल न करे. होंठों पर ऐसी मुसकान जो बरबस अपनी तरफ सामने वाले को खींचे. आंखें झील की मानिंद गहरी और खामोश. उम्र का ठीक से अनुमान लगाना मुश्किल था फिर भी 30 और 35 के बीच की रही होगी. देखने से शादीशुदा लगती थी मगर अकेली आई थी.
जानकी बूआ ने अपनी सहेली की बेटी को वंदना कह कर बुलाया था इसलिए उस के नाम को जानने के लिए किसी को कोई कोशिश नहीं करनी पड़ी थी.
मेहमान को घर के लोगों से मिलवाने की औपचारिकता पूरी करते हुए जानकी बूआ ने अपनी भतीजी के रूप में शेफाली का परिचय वंदना से करवाया था तो उस ने एक मधुर मुसकान लिए बड़ी गहरी नजरों से उस को देखा था. वह नजरें बडे़ गहरे तक शेफाली के अंदर उतर गई थीं.
शेफाली समझ नहीं सकी थी कि उस के अंदर गहरे में उतर जाने वाली नजरों में कुछ अलग क्या था.
‘‘तुम सचमुच एक बहुत ही प्यारी लड़की हो,’’ हाथ से शेफाली के गाल को हलके से थपथपाते हुए वंदना ने कहा था.
उस के व्यवहार के अपनत्व और स्पर्श की कोमलता ने शेफाली को रोमांच से भर दिया था.
शेफाली तब कुछ बोल नहीं सकी थी.
जानकी बूआ वंदना की जिस प्रकार से आवभगत कर रही थीं वह भी कोई कम हैरानी की बात नहीं थी.
एक ही घर में रहते हुए कोई कितना भी अलगअलग और अकेला रहने की कोशिश करे मगर ऐसा मुमकिन नहीं क्योंकि कहीं न कहीं एकदूसरे का सामना हो ही जाता है.
शेफाली और वंदना के मामले में भी ऐसा ही हुआ. दोनों अकेले में कई बार आमनेसामने पड़ जाती थीं. वंदना शायद उस से बात करना चाहती थी लेकिन शेफाली ही उस को इस का मौका नहीं देती थी और केवल एक हलकी सी मुसकान अधरों पर बिखेरती हुई वह तेजी से कतरा कर निकल जाती थी.
आगे पढ़ें- वंदना ने अपनी बात इतने अधिकार…