Hindi Story Collection : दूसरा रास्ता – नलिनी ने क्या निर्णय लिया

Hindi Story Collection : बेटी को स्कूल भेज कर नलिनी जल्दीजल्दी तैयार होने लगी. साड़ी को अच्छी तरह से पिनअप कर वह लिपस्टिक लगाने के लिए डै्रसिंग टेबल के करीब आई तो शीशे में अपने पीछे खड़ी मां पर उस की नजर पड़ी. एक बार पलट कर उस ने मां की तरफ देखा, फिर होंठों पर करीने से लिपस्टिक लगाने लगी. उस का संतुलित व्यवहार, आत्मविश्वास से लबरेज उस की भावभंगिमा देख कर सावित्री ठगी सी खड़ी रह गईं.

आज उन की बेटी कोर्ट में तलाक लेने जा रही है. पिछले लगभग डेढ़ साल से तलाक के लिए कोर्ट में केस चल रहा था. आज फैसला होना है. 9 साल पहले उन की बेटी जिस बंधन में अपनी इच्छा से बंधी थी आज उसी बंधन से अपनी इच्छा से हमेशाहमेशा के लिए आजाद हो जाएगी. कितने दुख की बात है. पति से संबंध विच्छेद होना एक पत्नी के लिए पीड़ा की बात है. सावित्री सारी रात सो नहीं पाई थीं और अब बेटी को देख कर उन की अक्ल काम नहीं कर रही थी. कितनी आश्वस्त और संतुलित दिख रही थी नलिनी. इतनी खुश तो वह पति से रिश्ता जोड़ने पर भी नहीं थी, शायद जितना आज रिश्ता टूटने की उम्मीद से दिख रही है. डेढ़ साल पहले जब नलिनी अपनी 7 साल की बेटी का हाथ पकड़ कर उन के घर आई थी तो वे बहुत खुश  थीं. नौकरी और घरपरिवार के चलते महानगरों में रहने वाले उन के तीनों बच्चे जैसे अब सपना हो गए थे उन के लिए. पिछले हफ्ते जब नलिनी ने फोन पर अपने आने की सूचना दी तो उन की खुशी का ठिकाना न रहा. बहुत दिनों के बाद आ रही बेटी और नातिन के लिए उन्होेंने तरहतरह के पकवान बनाने शुरू कर दिए थे. लेकिन जब नलिनी ने बताया कि वह हमेशा के लिए पति का घर छोड़ आई है तो उन के पैरों तले जमीन खिसक गई.

‘‘तू ने यह ठीक नहीं किया, बेटा.’’

‘‘नहीं मां, मेरे लिए अब राहुल को बरदाश्त करना इंपौसिबल हो गया है. मुझे पता है कि ये रिश्ते इतनी आसानी से नहीं तोड़े जाते, लेकिन पिछले 3 सालों से मैं ने जो सहा है, उसे शायद ही कोई और सह सकता था.’’

पिछले 3 सालों से राहुल का अपनी किसी कलीग के साथ अफेयर चल रहा था. नलिनी ने पहले उसे बहुत समझाया, अपनी बड़ी होती बेटी का वास्ता दिया. किसी स्त्री के लिए इस से अधिक अपमानजनक और पीड़ादायक क्या हो सकता है कि उसे प्यार करने वाला पति एक दिन उस की अस्मिता को सिरे से नकार दे. उस का अधिकार किसी दूसरी औरत को दे दे. ठीक है, वजह चाहे कोई भी हो, लेकिन पत्नी की गरिमा को तारतार करने के लिए इस तरह के संबंध ही काफी होते हैं. फिर भी नलिनी ने सब कुछ बरदाश्त किया तो सिर्फ अपनी बेटी के लिए. लेकिन जब राहुल उस औरत को ले कर घर पर आने लगा तो नलिनी का सब्र जवाब दे गया. क्या असर पड़ेगा उस की बेटी पर? छि: अब वह नहीं सह पाएगी.

सावित्री को तो जैसे काठ मार गया.

7 साल की इतनी प्यारी सी मासूम बेटी पर भी तरस नहीं आया इन लोगों को.

‘‘उस घिनौने माहौल में मैं अपनी बेटी की परवरिश कैसे कर पाऊंगी, मां?’’

‘‘लेकिन बेटी, पति से अलग, अकेली औरत के लिए भी तो अपनी संतान पालना आसान नहीं है. बिना बाप की परवरिश, लोगों के सौ तरह के सवालों का सामना कर पाएगी यह नन्ही सी जान?’’

‘‘वह सब मैं देख लूंगी, मां. नालायक बाप होने से बाप का न होना ही बच्चे के लिए अच्छा है. अभी यह छोटी है. मैं इसे अपनी तरह से संभाल लूंगी. मेरे यहां रहने पर तुम्हें कोई ओब्जेक्शन हो तो बता दो, मैं कहीं और इंतजाम कर लूंगी. वैसे मैं ने यहां की ब्रांच में ट्रांसफर के लिए अपनी कंपनी में एप्लीकेशन दे रखी है. मुझे कंपनी की तरफ से मकान भी मिल जाएगा. तुम चाहोगी तो कुछ दिन बाद मैं वहीं शिफ्ट हो जाऊंगी.’’

‘‘तू क्या कह रही है, नीलू. इतना बड़ा घर, मैं अकेली जान. तू मेरे पास रहेगी तो इस बुढ़ापे में कितना सहारा रहेगा, बेटी. तेरे पापा के जाने के बाद मैं कितनी अकेली हो गई हूं.’’

‘‘अकेले तो हम सभी हैं, मां. बस, कोई थोड़ा कम अकेला है, कोई ज्यादा अकेला है.’’

बेटी का दर्शन सावित्री के पल्ले नहीं पड़ रहा था. उन्हें तो बस, यही बात खाए जा रही थी कि बेटी तलाक की जिद पर अड़ी थी. अपनी कमाई की गरमी ने आजकल की लड़कियों का दिमाग खराब कर रखा है. माना उस की आमदनी पति से कम नहीं है लेकिन पत्नी का दर्जा तो पति से नीचे ही होता है. फिर ऐसा भी क्या गजब हो गया? मर्दों की तो फितरत ही ऐसी होती है. अभी जवानी का उबाल है, कुछ दिनों बाद ठंडा पड़ जाएगा तो फिर वही बीवी, वही बच्चे. औरतों को तो बहुत कुछ सहना पड़ता है. अपने आपे से बाहर जाती हुई बेटी को समझाने की हिम्मत जुटाती सावित्री बोलीं, ‘‘फिर भी नीलू, मैं तो यही कहूंगी कि तू ने तलाक की बात सोच कर अच्छा नहीं किया, बेटी. दामादजी को एक और मौका तो देना चाहिए. तुझे भी थोड़ा इंतजार करना चाहिए. कभीकभी समय सब कुछ ठीक कर देता है.’’

‘‘मैं ने पूरे 3 साल तक इंतजार ही तो किया है, मां. तुम लोगों को कभी कुछ नहीं बताया. मेरी अपनी प्रौब्लम थी. इसलिए मैं ने दीदी और भैया से भी कभी प्रौब्लम शेयर नहीं की. लेकिन अब पानी सिर से ऊपर गुजर चुका है. और मां, एक छोटी सी जिंदगी मिली है. उसे सिर्फ उम्मीद और इंतजार के सहारे गुजार देना कम से कम मुझे तो गवारा नहीं.’’

बेटी का तमतमाया चेहरा देख कर सावित्री सहम गईं. आजकल का खून बड़ी जल्दी गरम हो जाता है. पर नीलू से अपने पापा के कारनामे भी तो छिपे नहीं हैं. हालांकि तब वह बहुत छोटी थी. लेकिन दोनों बड़े बच्चों ने तो अपनी मां को तिलतिल कर जलते देखा है. बड़े होने पर नीलू को सब पता चल गया था. लेकिन तब तक वे लकवे से पीडि़त हो कर बिस्तर पकड़ चुके थे. फिर कुछ दिन तक असहनीय यंत्रणा झेलने के बाद उन्हें मुक्ति मिल गई.

सावित्री ने इतने सालों तक जो दंश सहा उस की पीड़ा आज भी कम नहीं है. उस पर अब बेटी के ये तेवर. उसे अपनी जिद छोड़ने के लिए उन्होंने आखिरी पासा फेंका. नजरें चुराती सी बोलीं, ‘‘तुम्हारे पापा 25 सालों तक लाल कोठी की उस विधवा कश्मीरन के इशारों पर नाचते रहे. इतने सालों तक मैं ने कलेजे पर पत्थर रख कर सब कुछ बरदाश्त किया तो सिर्फ अपने तीनों बच्चों की खातिर. कितना अपमान, कितना तिरस्कार झेला मैं ने, फिर भी तुम लोगों को सीने से चिपकाए तुम्हारे पापा की चौखट पर पड़ी रही. अगर मैं भी तुम्हारी तरह धीरज खो देती, मानसम्मान के मुद्दे को ले कर घर छोड़ देती तो आज तुम सब बिखर गए होते. मैं ने सहन किया, त्याग किया तो सिर्फ अपने बच्चों की खातिर ही न. औरत को तो…’’

‘‘बस करो, मां, तुम जो अपने त्याग और सहनशीलता की दुहाई दे रही हो न वह सब सिर्फ एक छलावा है, जो तुम आज तक अपनेआप से करती आई हो. तुम ने पापा को इसलिए नहीं बरदाश्त किया कि तुम बहुत सहनशील थीं और तुम्हें अपने बच्चों की बहुत परवाह थी. तुम ने वह सब कुछ इसलिए सहा, क्योंकि तुम्हारे पास इस के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं था.’’

सावित्री को तो जैसे किसी ने अंगारों पर धकेल दिया. वह कड़वा सच, जिसे झुठला कर वे आज तक अपनेआप को धोखा देती आई थीं, उन की बेटी ने कितनी बेबाकी  से उगल दिया.

सच! अगर वे भी अपने दम पर अपने बच्चों की परवरिश करने के योग्य होतीं तो

क्या अपनी जिंदगी के खूबसूरत 25 साल उस नारकीय यंत्रणा को झेलने में गंवा देतीं. न जाने कितनी सूनी रातों में उन की पारंपरिक सोच विद्रोही बन कर उन्हें बरगलाती. लेकिन अपनी लाचारी उन्हें फिर लौट कर उसी चारदीवारी में कैद कर देती. अपनेआप को टटोलती हैं तो पाती हैं कि आत्मसम्मान और खुद्दारी उन में भी कम नहीं थी. तभी तो आज इस उम्र में भी अपने बच्चों के भरोसे न रह कर खुद अपने दम पर अकेली जिंदगी जी रही हैं. लेकिन तब उन के पास अगर कोई दूसरा विकल्प होता तो क्या वे 25 साल तक यों ही गीली लकड़ी की तरह सुलगतीं?

अचानक बेटी के स्पर्श से वे चौंकी. नीलू उन के पैरों पर झुकती हुई बोली, ‘‘आशीर्वाद दो, मां, तुम्हारी बेटी आज इस कैद से हमेशा के लिए आजाद हो जाए.’’

अपनी स्वाभिमानी बेटी के सिर पर हाथ रख कर सावित्री मन ही मन बोली, ‘जा बेटी, अपनी मां के अभिशापित जीवन की पुनरावृत्ति से भी तुझे मुक्ति मिले.

Hindi Fiction Stories : पहेली – अमित की जिंदगी में जब आई कनिका

Hindi Fiction Stories : ‘‘हैलो, आई एम कनिका सिंह, फ्राम राजस्थान.’’ इस खनकती आवाज ने अमित का ध्यान आकर्षित किया तो देखा, सामने एक असाधारण सुंदर युवती खड़ी है. क्लासरूम से वह अभी अपने साथियों के साथ ‘टी ब्रेक’ में बाहर आया था कि उस का परिचय कनिका से हो गया. ‘‘हैलो, मैं अमित शर्मा, राजस्थान से ही हूं,’’ अमित ने मुसकरा कर अपना परिचय दिया.

कनिका वास्तव में बहुत सुंदर थी. आकर्षक व्यक्तित्व, उम्र लगभग 26-27 की रही होगी. लंबा कद किंतु भरापूरा शरीर, तीखे नयननक्श उस की सुंदरता में और वृद्धि कर रहे थे. ‘टी ब्रेक’ खत्म होते ही सभी वापस क्लासरूम में पहुंच गए. भारत के एक ऐतिहासिक शहर हैदराबाद में 1 माह के प्रशिक्षण का आज पहला दिन था. देश के अलगअलग प्रांतों से संभागियों के पहुंचने का क्रम अभी भी जारी था. कनिका भी दोपहर बाद ही पहुंची थी. पहले दिन की औपचारिक कक्षाएं खत्म होते ही सभी प्रशिक्षुओं को लोकसंगीत और नृत्य कार्यक्रम में शामिल होना था.

खुले रंगमंच में सभी लोग जमा हो चुके थे. कार्यक्रम शुरू हो गया था. लोककलाकार अपनीअपनी कला का बेहतरीन प्रदर्शन कर रहे थे. संयोग से अमित के पास की सीट खाली थी. कनिका वहां आ गई तो अमित ने मुसकराते हुए उसे पास बैठने का इशारा किया. कनिका बैठते ही अमित से बातचीत करने लगी. उस ने बताया कि वह मनोविज्ञान की प्राध्यापक है. अमित ने कहा कि वह इतिहास विषय का है. कनिका ने बताया कि इतिहास उस का पसंदीदा विषय रहा है और वह चाहती है कि इस विषय का गहन अध्ययन करे. फिर हंसते हुए उस ने पूछा, ‘‘आप मुझे पढ़ाएंगे क्या?’’ अमित ने भी मजाक में उत्तर दिया, ‘‘अरे, मेरा विषय तो नीरस है. लड़कियां तो वैसे ही इस से दूर भागती हैं.’’

कनिका अपने कैमरे से कलाकारों की फोटो खींचने लगी. अमित के मन में उस के लिए न जाने क्यों एक खास आकर्षण पैदा हो चुका था. छोटी सी मुलाकात ने ही उसे बहुत प्रभावित कर दिया था. कनिका के उन्मुक्त व्यवहार से वह मानो उस के प्रति खिंचा जा रहा था. होस्टल में अमित के दाईं ओर तमिलनाडु और बाईं ओर उड़ीसा के संभागी प्राध्यापक थे. इस अनोखे सांस्कृतिक समागम ने एकदूसरे को जानने और समझने का भरपूर अवसर प्रदान किया था. इसी होस्टल के ग्राउंड फ्लोर पर महिला संभागियों के रुकने की व्यवस्था थी. कुल 80 लोगों में 40 महिलाएं थीं जो भारत के विभिन्न राज्यों का प्रतिनिधित्व कर रही थीं.

रात्रि भोज के बाद सभी संभागियों का अपना सांस्कृतिक कार्यक्रम चलता था. हाल में सभी लोग जमा थे. इस कार्यक्रम में सभी को भाग लेना अनिवार्य था. कनिका ने राजस्थानी लोकगीत सुनाए जिस से उस की एक और प्रतिभा का पता चला कि वह संगीत में भी खासा दखल रखती थी.

दूसरे दिन सुबह चाय के समय कनिका ने अमित को अपने लैपटाप पर वे सारी फोटो दिखाईं जो उस ने रात्रि सांस्कृतिक कार्यक्रम में खींची थीं. क्लासरूम में अमित बाईं ओर पहली कतार में बैठता था. आज उस ने नोट किया कि दाईं ओर की पहली कतार में असम और तमिलनाडु की महिला संभागियों के साथ कनिका भी बैठी है. पूरे दिन अमित ने जब भी कनिका को देखा, उसे अपनी ओर देखते, मुसकराते ही पाया. उस के दिल में एक सुखद एहसास जागृत हो रहा था.

लंच में अमित ने कनिका को अपने साथ खाने के लिए आमंत्रित किया. उस मेज पर उस के कुछ तमिल दोस्त भी थे. कनिका बिना किसी झिझक के पास की कुरसी पर बैठ कर खाना खाने लगी. बातचीत में कनिका ने अमित से पूछा, ‘‘सर, आप की फैमिली में कौनकौन हैं?’’

अमित अब खुल चुका था सो उस ने विस्तार से अपने परिवार के बारे में बताया कि उस की पत्नी सरकारी नौकरी में किसी दूसरे शहर में नियुक्त है. एक छोटी 4 साल की बेटी है जो अपनी मम्मी के साथ ही रहती है. अमित ने कनिका से भी पूछा किंतु वह बात टाल गई और हंसीमजाक में मशगूल हो गई. रात के 11 बजे थे. होस्टल के हाल में सांस्कृतिक कार्यक्रम चल रहा था. अचानक अमित के मोबाइल पर एक अनजान नंबर से काल आई. उत्सुकता के चलते अमित ने उस काल को रिसीव किया.

‘‘हैलो सर, पहचाना?’’ अमित अभी असमंजस में था कि आवाज फिर आई, ‘‘मैं कनिका बोल रही हूं. आप 2 मिनट के लिए लान में आ सकते हैं?’’ अमित फौरन बाहर आया. कनिका बाहर कैंपस में खड़ी थी. यद्यपि बाहर इस समय और भी महिलापुरुष संभागी बातचीत में व्यस्त थे. किंतु अमित को अजीब महसूस हो रहा था, फिर कनिका ने पूछा, ‘‘सर, क्या आप के पास सिरदर्द की दवा है? आज मेरी तबीयत ठीक नहीं है.’’

अमित ने घबरा कर कहा, ‘‘ज्यादा खराब हो तो डाक्टर के पास चलें?’’

कनिका के मना करने पर अमित तुरंत अंदर से अपनी मेडिकल किट ले आया और कुछ जरूरी दवाएं निकाल कर कनिका को दे दीं. कनिका ने धन्यवाद दिया और अपने कमरे में चली गई. प्रशिक्षण के दिन खुशीखुशी बीत रहे थे. शुरू में 1 माह की अवधि बहुत लंबी लग रही थी किंतु अमित को अब लग रहा था कि जीवन का एकएक पल अमूल्य है जो बीता जा रहा है. कनिका के प्रति उस का लगाव बढ़ता जा रहा था. दूसरे दिन अमित इस उम्मीद में अपना मोबाइल देख रहा था कि शायद फिर से फोन आए. रात के 10 बज चुके थे. उस का मन सांस्कृतिक संध्या में नहीं लग रहा था. कुछ समय बाद काल आई. अमित तो जैसे इसी के इंतजार में था, तपाक से उस ने काल रिसीव की. फिर वही मधुर आवाज सुनाई पड़ी, ‘‘परेशान कर दिया न सर, आप को.’’

अमित ने भी मजाक में पूछ लिया, ‘‘क्यों, नींद नहीं आ रही है क्या? शायद किसी की याद आ रही होगी?’’ कनिका ने खिलखिला कर हंसते हुए कहा, ‘‘क्यों मजाक बनाते हो…मुझे आप से ही बात करनी थी,’’ फिर आगे बात बढ़ाते हुए बोली, ‘‘मुझे कोई याद नहीं करता, मैं इतनी खास तो नहीं कि कोई…’’ उस ने अपना वाक्य अधूरा छोड़ दिया. फिर पूछा, ‘‘आप ने कल वाले प्रोजेक्ट वर्क की क्या तैयारी की है?’’

अमित उसे प्रोजेक्ट वर्क के बारे में समझाने लगा. फिर उस ने कनिका से पूछा कि उसे उस के फोन नंबर कैसे मिले. कनिका ने उस की जिज्ञासा शांत की और बताया कि रजिस्टे्रशन रजिस्टर में से मोबाइल नंबर लिए थे.

अमित को बहुत अच्छा लग रहा था कि कनिका उसे इतना महत्त्व दे रही है जबकि प्राय: सभी पुरुष संभागी उस से बातचीत करने और मेलजोल बढ़ाने के लिए लालायित थे. कुछ दिन बाद आउटिंग का कार्यक्रम था. 2 रातें घने जंगल में औषधीय पौधों के अध्ययन में बितानी थीं. वहां बने रेस्टहाउस में सब के रहने की व्यवस्था थी. यात्रा में कनिका के हंसीमजाक ने पिकनिक जैसा माहौल बना दिया था. वहां पहुंचते ही फील्ड आफिसर ने सभी लोगों को 2 घंटे का समय लंच और थोड़ा आराम करने के लिए दिया. जिस का उपयोग सभी ने उस सुरम्य प्राकृतिक स्थल को और नजदीक से देखने में किया.

अमित अपना लंच ले कर साथियों के साथ झरने के टौप पर था कि नीचे उस की नजर कनिका पर पड़ी जो अपनी सहेलियों के साथ खड़ी उसे इशारे से नीचे बुला रही थी. उस का मन तो बहुत था लेकिन वह अपने दोस्तों में टारगेट बनना नहीं चाहता था. कनिका के आमंत्रण को उस ने नजरअंदाज कर दिया. कुछ समय बाद जब वह मिली तो उस ने स्वाभाविक ढंग से शिकायत जरूर की, ‘‘आप आए क्यों नहीं, सर? बहुत अच्छा लगता.’’

बेचारा अमित मन मसोस कर रह गया. विषय बदलने के लिए उस ने कहा, ‘‘आज आप की राजस्थानी बंधेज की साड़ी बहुत सुंदर लग रही है.’’ कनिका खनकती आवाज में बोली, ‘‘सिर्फ साड़ी?’’

अमित ने कहा, ‘‘नहीं, और भी बहुत कुछ, ये वादियां, अमूल्य वनस्पति और आप.’’ कनिका ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘सर, आप बातों को इतना घुमाफिरा कर क्यों कहते हैं?’’

अमित क्या कहता. वह मन की बातों को अंदर दबा जाता था. पौधों के बारे में जानकारी दी जा रही थी. सभी लोग नोटबुक थामे व्यस्त थे. यह पहला मौका था जब अमित को कनिका के स्पर्श का अनुभव हुआ. ग्रुप में वह सट कर खड़ी मुसकरा रही थी. उस की कुछ खास तमिल सहेलियां अमित से अंगरेजी में पौधों के बारे में पूछ रही थीं और वह उन्हें अंगरेजी में ही समझा रहा था. कनिका पहली बार अमित को धाराप्रवाह अंगरेजी बोलते हुए सुन रही थी. अब कनिका अपने गु्रप से अलग हो कर पास के कैक्टस के पौधों की ओर चली गई. अमित को भी आवाज दे कर उस ने अपने पास बुला लिया और बोली, ‘‘देखिए सर, यह इस जगह की सब से जीवट वनस्पति है. हम चाहे इसे सौंदर्य की प्रतिमूर्ति न मानें किंतु यह हमें जीना सिखाती है.’’

अमित उस की बात को समझने का प्रयास कर रहा था. बाकी ग्रुप आगे बढ़ चुका था. तभी एक फोटोग्राफर ने उन दोनों का फोटो ले लिया. अमित को लगा शायद फोटोग्राफर उस के दिल की भावनाओं को जानता है. कनिका फिर बोली, ‘‘आप को ऐसा नहीं लगता कि ये हमें संदेश दे रहे हैं…सब के बीच हमारा अपना अस्तित्व है और हमें उसे खोने का डर नहीं.’’

रेस्टहाउस में कनिका ने अमित के सामने प्रस्ताव रखा कि क्यों न हम आज रात्रि में झरने के किनारे चलें. मैं अपनी कुछ सहेलियों के साथ रात का नजारा देखना चाहती हूं. अमित तो जैसे पहले से ही अभिभूत था.

रात्रि विहार ने अमित को कनिका के और नजदीक आने का अवसर दिया. कारण, कनिका ने उसे आज वह सब बताया था जो किसी अनजान पुरुष को बताना संभव नहीं. पहली बार अमित को लगा, कनिका वैसी बिंदास नहीं है जैसी वह दिखती है. कनिका ने बताया कि 4 साल पहले उस का विवाह हो चुका है. एक 3 साल का बेटा भी है. किंतु जीवन में उसे वह दुखद अनुभव भी झेलना पड़ा है जो एक स्त्री के लिए बहुत दुखद होता है. उस का पति एक बिगड़ा रईस निकला, जिस ने उस की कोई इज्जत नहीं की. कानूनन अब तलाक ले कर वह उस से मुक्ति पा चुका था. कनिका ने इस कठोर यथार्थ को स्वीकार किया और जीवन को रोरो कर नहीं बल्कि मुसकरा कर जीने का फैसला किया.

ऐतिहासिक जगहों को घूमने वाले दिन कनिका बस में अमित के पास वाली सीट पर बैठी थी. अमित यह सोच कर बहुत खुश था कि आज कनिका पूरे दिन उस के साथ रहने वाली है. वे दोनों अंगरेजी भाषी ग्रुप में थे, जहां भीड़ कम थी, अत: पूरा दिन मौजमस्ती में बीत गया. अमित ने पहली बार आज कनिका को एक गिफ्ट दिया, जिसे बहुत मुश्किल से उस ने स्वीकार किया. आज कनिका ने बहुत फोटो लिए थे. आखिर टे्रनिंग खत्म होने का अंतिम दिन आ ही गया. सभी के मन उदास थे. अमित आज कनिका से बहुत बातें करना चाहता था. तभी रात को कनिका का फोन आ गया. उस ने पूछा कि क्या वह एक दिन और नहीं रुक सकता. इधर बहुत सारे पर्यटक स्थल देखने को बचे हैं. अमित का तो जाने का मन ही नहीं था. इसलिए वह एक दिन और रुकने को तैयार हो गया. दोनों ने खूब बातें कीं.

औपचारिक विदाई समारोह के समय सभी बहुत भावुक हो गए. अनजान लोग इतने करीबी हो चुके थे कि बिछुड़ने का दुख सहन नहीं हो रहा था. ग्रुप फोटो मधुर यादों का हिस्सा बनने जा रहा था. फोटो तो इतने हो चुके थे कि अलबम ही तैयार हो गया था. भारी मन से गले लग कर सब विदा हुए. अमित ने कनिका की डायरी में अपने हस्ताक्षर कर अपना संदेश लिखा. न जाने क्यों वह अभी भी अपने मन की बात कनिका को कह नहीं पाया था. कनिका ने भी अमित की डायरी में लिखा, ‘‘मैं इतिहास से बहुत प्यार करती हूं…बहुत… बहुत ज्यादा, लेकिन इतिहास नहीं दोहराती.’’ – कनिका सिंह.

इस विचित्र इबारत का अर्थ अमित की समझ में नहीं आया था.

कनिका के आग्रह पर अमित होटल में एक कमरा बुक करवा कर कल का इंतजार करने लगा. शाम को उस की कनिका से लंबी बातें हुईं, दूसरे दिन उस ने घूमने का कार्यक्रम बनाया था. अमित सोच रहा था, कल वह अवश्य ही कनिका को अपने दिल की बात बता देगा. सारी रात वह सो नहीं पाया. दूसरे दिन 10 बजे वह तैयार हो कर कनिका से मिलने के लिए रवाना हुआ. 11 बजे कनिका ने चारमीनार के पास मिलने को कहा था. 11 बज गए. अमित की बेचैनी बढ़ने लगी. थोड़ा और समय बीता. वह अधीर हो गया. करीब साढ़े 11 बजे कनिका का फोन आया :

‘‘हैलो सर, आई एम वैरी सौरी. मैं आप को कैसे कहूं. मुझे तो समझ ही नहीं आ रहा…सर, सुबह पापा का फोन आया था, इमरजेंसी है मुझे वापस घर जाना पड़ रहा है. सौरी, प्लीज आप कांटेक्ट बनाए रखना. मैं कभी आप को नहीं भूलूंगी… मैं कल आप को फोन करूंगी.’’ अमित का मूड उखड़ चुका था. समझ में नहीं आ रहा था कि क्या जवाब दे. कल रात का टे्रन का आरक्षण वह कैंसिल करा चुका था और अब सारा दिन वह अकेला क्या करेगा. उस ने फ्लाइट पकड़ी और अपने शहर रवाना हो गया.

दूसरे दिन भी कनिका का कोई फोन नहीं आया. वह बहुत परेशान हो गया. उस की उदासी बढ़ती जा रही थी. किसी भी काम में उस का मन नहीं लग रहा था. अमित ने खुद कनिका को फोन लगाया तो वज्रपात हुआ क्योंकि जो नंबर उस के पास था वह सिम अब डेड हो चुकी थी. असम से एक मैडम का फोन आया तो अमित को पता चला कि कल उस के पास कनिका का फोन आया था. ऐसी ही बात उस की एक तमिल सहेली ने भी बताई.

अमित का दिल टूट गया. दोनों के साथ के फोटो अमित के सामने पड़े थे. वह निर्णय नहीं कर पा रहा था कि अब वह टे्रनिंग के दिनों को याद करे या भूलने का प्रयास करे. कनिका तो वैसे ही उस के लिए एक गूढ़ पहेली बन गई थी. अचानक उस की नजर अपनी डायरी पर पड़ी, धड़कते दिल से उस ने प्रथम पृष्ठ पढ़ा. उस पर कनिका का वह संदेश लिखा था जो उस ने विदाई के समय लिखा था : ‘‘मैं इतिहास से बहुत प्यार करती हूं… बहुत…बहुत ज्यादा लेकिन इतिहास नहीं दोहराती,’’ – कनिक ा सिंह. आज अमित को उपरोक्त पंक्तियों का सही अर्थ समझ में आ रहा था लेकिन दिल अभी भी संतुष्ट नहीं था. अगर ऐसा ही था तो उस ने नजदीकी ही क्यों बढ़ाई. उस के दिमाग में कई संभावनाएं आजा रही थीं. अचानक अमित को कनिका के कहे वे शब्द याद आ रहे थे जो उस ने कईकई बार उस से कहे थे, ‘‘सर, मैं आप को कभी भुला नहीं पाऊंगी. आप भी मुझे याद रखेंगे न, कहीं भूल तो नहीं जाएंगे?’’

अमित उन शब्दों का अर्थ खोजता रहा लेकिन कनिका उस के लिए अब एक अनसुलझी पहेली बन चुकी थी.

Interesting Hindi Stories : इंतजार – क्या अकेलेपन को दूर कर पाई सोमा

Interesting Hindi Stories : सुबह के 6 बजे थे. रोज की तरह सोमा की आंखें खुल गई थीं.  अपनी बगल में अस्तव्यस्त हौल में लेटे महेंद्र को देख वह शरमा उठी थी. वह उठने के लिए कसमसाई, तो महेंद्र ने उसे अपनी बांहों में जकड़ लिया था.

‘‘उठने भी दो, काम पर जाने में देर  हो जाएगी.’’

‘‘आज काम से छुट्टी, हम लोग आज अपना हनीमून मनाएंगे.’’

‘‘वाहवाह, क्या कहने?’’

पुरानी कड़वी बातें याद कर के वह गंभीर हो उठी, बोली, ‘‘यह बहुत अच्छा हुआ कि अपुन लोगों को शहर की इस कालोनी में मकान मिल गया है. यहां किसी को किसी की जाति से मतलब नहीं है.’’

‘‘सही कह रही हो. जाने कब समाज से ऊंचनीच का भेदभाव समाप्त होगा? लोगों को क्यों नहीं सम?ा में आता कि सभी इंसान एकसमान हैं.’’ महेंद्र बोला था.

‘‘वह सब तो ठीक है, लेकिन अब उठने भी दो.’’

‘‘आज हमारे नए जीवन का पहलापहला दिन है. यह क्षण फिर से तो लौट कर नहीं आएगा. आज मैं तुम्हारी बांहों में बांहें डाल कर मस्ती करूंगा. इस पल के लिए तुम ने मु?ो बहुत लंबा इंतजार करवाया है. आज ‘जग्गा जासूस’ पिक्चर देखेंगे. बलदेव की चाट खाएंगे. राजाराम की शिकंजी पिएंगे. तुम जहां कहोगी वहां जाऊंगा, जो कहोगी वह करूंगा. आज मैं बहुतबहुत खुश हूं.’’

‘‘ओह हो, केवल बातों से पेट नहीं भरने वाला है. पहले जाओ, दूध और डबल रोटी ले कर आओ.’’

‘‘मेरी रानी, दूध के साथसाथ, आज तो जलेबी और कचौड़ी भी ले कर आऊंगा.’’ यह कह कर वह सामान लेने चला गया.

वह उठ कर रोज की तरह ?ाड़ूबुहारू और बरतन आदि काम निबटाने लगी थी. लेकिन आज उस की आंखों के सामने बीते हुए दिन नाच उठे थे. अभी वह 25 वर्ष की होगी, परंतु अपनी इन आंखों से कितना कुछ देख लिया था.

अम्मा स्कूल में आया थीं. इसलिए उसे मन ही मन टीचर बनाने का सपना देखती रहती थीं. बाबू राजगीरी का काम करते थे. उन्हें पैसा अच्छा मिलता था. लेकिन पीने के शौक के कारण सब बरबाद कर लेते थे. वे 2 दिन काम पर जाते, तीसरे दिन घर पर छुट्टी मनाते. अपनी मित्रमंडली के साथ बैठ कर हुक्का गुड़गुड़ाते और लंबीलंबी बातें करते.

अम्मा जब भी कुछ बोलती तो गालीगलौज और मारपीट की नौबत  आ जाती.

पश्चिम उत्तर प्रदेश में संभलपुर से थोड़ी दूर एक बस्ती थी जिसे आज की भाषा में चाल कह सकते हैं. लगभग

10-12 घर थे. सब की आपस में रिश्तेदारी थी. बच्चे आपस में किसी के भी घर में खापी लेते और सड़क पर खेल लेते. कोई काका था, कोई दादी तो कोई दीदी. आपस में लड़ाई भी जम कर होती, लेकिन फिर दोस्ती भी हो जाती थी.

वह छुटपन से ही स्कूल जाने से कतराती थी. वह लड़कों के संग गिल्लीडंडा और क्रिकेट खेलती. कभीकभी लंगड़ीटांग भी खेला करती थी.

अम्मा स्कूल से लौट कर आती तो सड़क पर उसे देखते ही चिल्लाती, ‘काहे लली, स्कूल जाने के समय तो तुम्हें बुखार चढ़ा था, अब सब बुखार हवा हो गया. बरतन मांजने को पड़े हैं. चल मेरे लिए चाय बना.

वह जोर से बोलती, ‘आई अम्मा.’ लेकिन अपने खेल में मगन रहती जब तक अम्मा पकड़ कर उसे घर के अंदर न ले जाती. वे उस का कान खींच कर कहतीं, ‘अरी कमबख्त, कभी तो किताब खोल लिया कर.’

अम्मा की डांट का उस पर कुछ असर न होता. इसी तरह खेलतेकूदते वह बड़ी हो रही थी. लेकिन हर साल पास होती हुई वह बीए में पहुंच गई थी. कालेज घर से दूर था, इसलिए बाबू ने उसे साइकिल दिलवा दी थी.

बचपन से ही उसे सजनेसंवरने का बहुत शौक था. अब तो वह जवान हो चुकी थी, इसलिए बनसंवर कर अपनी साइकिल पर हवा से बातें करती हुई कालेज जाती.

वहां उस की मुलाकात नरेन सिंह से हुई. वह उस की सुंदरता पर मरमिटा था. कैफेटेरिया की दोस्ती जल्द ही प्यार में बदल गई. उस की बाइक पर बैठ कर वह अपने को महारानी से कम न सम?ाती. 19-20 साल की कच्ची उम्र और इश्क का भूत. पूरे कालेज में उन के इश्क के चर्चे सब की जबान पर चढ़ गए थे. वह उस के संग कभी कंपनीबाग तो कभी मौल तो कभी कालेज के कोने में बैठ कर भविष्य के सपने बुनती.

एक दिन वे दोनों एकदूसरे को गलबहियां डाले हुए पिक्चरहौल से निकल रहे थे, तभी नरेन के चाचा बलवीर सिंह ने उन दोनों को देख लिया था. फिर तो उस दिन घर पर नरेन की शामत आ गई थी.

सोमा की जातिबिरादरी पता करते ही नरेन को उस से हमेशा के लिए दूर रहने की सख्त हिदायत मिल गई थी.

पश्चिम उत्तर प्रदेश जाटबहुल क्षेत्र है. वहां की खाप पंचायतें अपने फैसलों के लिए कुख्यात हैं. जाट लड़का किसी वाल्मीकि समाज की लड़की से प्यार की पेंग बढ़ाए, यह बात उन्हें कतई बरदाश्त नहीं थी.

वे लोग 15-20 गुडों को ले कर लाठीडंडे लहराते हुए आए. और शुरू कर दी गालीगलौज व तोड़फोड़.

वे लोग बाबू को मारने लगे, तो वह अंदर से दौड़ती हुई आई और चीखनेचिल्लाने लगी थी. एक गुंडा उस को देखते ही बोला, ऐसी खूबसूरत मेनका को देख नरेन का कौन कहे, किसी का भी मन मचल उठे.’

बाबू ने उसे धकेल कर अंदर जाने को कह दिया था. पासपड़ोस के लोगों ने किसी तरह उन लोगों को शांत करवाया, नहीं तो निश्चित ही उस दिन खूनखराबा होता.

पंचायत बैठी और फैसला दिया कि महीनेभर के अंदर सोमा की शादी कर दी जाए और 10 हजार रुपए जुर्माना.

उस का कालेज जाना बंद हो गया और आननफानन उस की शादी फजलपुर गांव के सूरज के साथ, जो कि स्कूल में मास्टर था, तय कर दी गई.

उस के पास अपना पक्का मकान था. थोड़ी सी जमीन थी, जिस में सब्जी पैदा होती थी. अम्माबाबू ने खुशीखुशी यहांवहां से कर्ज ले कर उस की शादी कर दी.

बाइक, फ्रिज, टीवी, कपड़ेलत्ते, बरतनभांडे, दहेज में जाने क्याक्या दिया. आंखों में आंसू ले कर वह सूरज के साथ शादी के बंधन में बंध गई थी.

ससुराल का कच्चा खपरैल वाला घर देख उस के सपनों पर पानी फिर गया था. 10-15 दिन तक सूरज उस के इर्दगिर्द घूमता रहा था. वह दिनभर मोबाइल में वीडियो देखता रहता था. आसपास की औरतों से भौजीभौजी कह कर हंसीठिठोली करता या फिर आलसियों की तरह पड़ा सोता रहता.

रोज रात में दारू चढ़ा कर उस के पास आता. नशा करते देख उसे अपने बाबू याद आते. एक दिन उस ने उस से काम पर जाने को कहा. तो, नशे में उस के मुंह से सच फूट पड़ा. न तो वह बीए पास है और न ही सरकारी स्कूल में मास्टर है. यह सब तो शादी के लिए ?ाठ बोला गया था. वह रो पड़ी थी. फिर उस ने सूरज को सुधारने का प्रयास किया था. वह उसे सम?ाती, तो वह एक कान से सुनता, दूसरे से निकाल देता.

आलसी तो वह हद दर्जे का था. पानमसाला हर समय उस के मुंह में भरा ही रहता.

जुआ खेलना, शराब पीना उस के शौक थे. यहांवहां हाथ मार कर चोरी करता और जुआ खेलता.

उस का भाई भी रात में दारू पी कर आता और गालीगलौज करता.

कुछ पैसे अम्मा ने दिए थे. कुछ उस के अपने थे. वह अपने बक्से में रखे हुए थी. सूरज उन पैसों को चुरा कर ले गया था. एक दिन उस ने अपनी पायल उतार कर साफ करने के लिए रखी थी. वह उस को यहांवहां घंटों ढूंढ़ती रही थी. लेकिन जब पायल हो, तब तो मिले. वह तो उस के जुए की भेंट चढ़ गई थी. यहां तक कि वह उस की शादी की सलमासितारे जड़ी हुई साड़ी ले गया और जुए में हार गया.

अस्तव्यस्त बक्से की हालत देख वह साड़ी के गायब होने के बारे में जान चुकी थी. वह खूब रोई. जा कर अम्माजी से कहा, तो वे बोली थीं, ‘साड़ी ही तो ले गया, तु?ो तो नहीं ले गया. मैं उसे डांट लगाऊंगी.’

उस की शादी को अभी साल भी नहीं पूरा हुआ था, लेकिन उस ने मन ही मन सूरज को छोड़ कर जाने का निश्चय कर लिया था. वह नशे में कई बार उस की पिटाई भी कर के उस के अहं को भी चोट पहुंचा चुका था.

वह बहुत दुखी थी, साथ ही, क्रोधित भी थी. सूरज नशा कर के देररात आया. आज कुछ ज्यादा ही नशे में था. बदबू के भभके से उस का जी मिचला उठा था. फिर उस के शरीर को अपनी संपत्ति सम?ाते हुए अपने पास उसे खींचने लगा. पहले तो उस ने धीरेधीरे मना किया, पर वह जब नहीं माना, तो उस ने उसे जोर से धक्का दे दिया. वह संभल नहीं पाया और जमीन पर गिर गया. कोने में रखे संदूक का कोना उस के माथे पर चुभ गया और खून का फौआरा निकल पड़ा.

फिर तो उस दिन आधीरात को जो हंगामा हुआ कि पौ फटते ही उसे उस के घर के लिए बस में बैठा कर भेज दिया गया.

बाबूअम्मा ने उसे देख अपना सिर पीट लिया था. अम्मा बारबार उसे ससुराल भेजने का जतन करती, लेकिन वह अपने निर्णय पर अडिग रही.

उसे अब किसी काम की तलाश थी क्योंकि अब वह अम्मा पर बो?ा बन कर घर में नहीं बैठना चाहती थी.

सब उसे सम?ाते, आदमी ने पिटाई की तो क्या हुआ? तुम ने क्यों उस पर हाथ उठाया आदि.

अम्मा ने अमिता बहनजी से उस की नौकरी के लिए कहा तो उन्होंने उसे अपने कारखाने में नौकरी पर रख लिया. अंधे को क्या चाहिए दो आंखें. वहां शर्ट सिली जाती थी. उसे बटन लगा कर तह करना होता था. इस काम में कई औरतेंआदमी लगे हुए थे.

सुपरवाइजर बहुत कड़क था. वह एक मिनट भी चैन की सांस नहीं लेने देता. किसी को भी आपस में बात करते या हंसीमजाक करते देखता, तो उसे नौकरी से निकालने की धमकी दिया करता.

कारखाने का बड़ा उबाऊ वातावरण था. औसत दरजे का कमरा, उस में  10-12 औरतआदमी, चारों और कमीजों का ढेर और धीमाधीमा चलता पंखा. नए कपड़ों की गरमी में लगातार काम में जुटे रह कर वह थक जाती और ऊब भी जाती.

थकीमांदी जब वह घर लौटती तो एक कोठरी में बाबू की गालीगलौज और नशे में अम्मा के साथ लड़ाई व मारपीट से दोचार होना पड़ता. लड़ाई?ागड़े के बाद उसे सोता सम?ा दोनों अपने शरीर की भूख मिटाते. उसे घिन आती और वह आंखों में ही रात काट देती.

सवेरे पड़ोस का रमेश उसे लाइन मारते हुए कहता, ‘अरे सोमा, एक मौका तो दे मु?ो, तु?ो रानी बना कर रखूंगा.’

वह आंखें तरेर कर उस की ओर देखती और नाली पर थूक देती.

विमला काकी व्यंग्य से मुसकरा कर कहती, ‘कल तुम्हारे बाबू बहुत चिल्ला रहे थे, क्या अम्मा ने रोटी नहीं बनाईर् थी?’

वह इस नाटकीय जीवन से छुटकारा चाहती थी. उस ने नौकरी के साथसाथ बीए की प्राइवेट परीक्षा पास कर ली थी.

जब वह बीए पास हो गई तो उस की तरक्की हो गई. आंखों ही आंखों में वहां काम करने वाले महेंद्र से उस की दोस्ती हो गई. वह अम्मा से छिपा कर उस के लिए टिफिन में रोटी ले आती. दोनों साथसाथ चाय पीते, लंच भी साथ खाते. कारखाने के सुपरवाइजर दिलीप ने बहुत हाथपैर पटके कि तुम्हें निकलवा दूंगा, यहां काम करने आती हो या इश्क फरमाने. लेकिन, जब आपस में मन मिल जाए तो फिर क्या?

‘महेंद्र एक बात समझ लो, तुम से दोस्ती जरूर की है लेकिन मु?ा से दूरी बना कर रहना. मु?ा पर अपना हक मत समझाना, नहीं तो एक पल में मेरीतेरी दोस्ती टूट जाएगी.’

‘देख सोमा, तेरी साफगोई ही तो मु?ो बहुत पसंद है. जरा देर नहीं लगी और सूरज को हमेशा के लिए छोड़ कर आ गई.’

इस तरह आपस में बातें करतेकरते दोनों अपने दुख बांटने लगे.

‘महेंद्र, तुम शादी क्यों नहीं कर लेते?’

‘जब से लक्ष्मी मु?ो छोड़ कर चली गई, मेरी बदनामी हो गई. मेरे जैसे आदमी को भला कौन अपनी लड़की देगा.’

‘वह छोड़ कर क्यों चली गई?’

‘उस का शादी से पहले किसी के साथ चक्कर था. अपनी अम्मा की जबरदस्ती के चलते उस ने मु?ा से शादी तो कर ली लेकिन महीनेभर में ही सबकुछ लेदे कर भाग गई. उस का अपना अतीत उस की आंखों के सामने घूम गया था.

अब महेंद्र के प्रति उस का लगाव अधिक हो गया था.

एक दिन उस को बुखार था, इसलिए वह काम पर नहीं गई थी. वह घर में अकेली थी. तभी गंगाराम (बाबू के दोस्त) ने कुंडी खटखटाई, ‘एक कटोरी चीनी दे दो बिटिया.’

वह चीनी लेने के लिए पीछे मुड़ी ही थी कि उस ने उस को अपनी बांहों में जकड़ लिया था. लेकिन वह घबराई नहीं, बल्कि उस की बांहों में अपने दांत गड़ा दिए. वह बिलबिला पड़ा था. उस ने जोर की लात मारी और पकड़ ढीली पड़ते ही वह बाहर निकल कर चिल्लाने लगी. शोर सुनते ही लोग इकट्ठे होने लगे.

लेकिन उस बेशर्म गंगाराम ने जब कहा कि तेरे बाबू ने मु?ा से पैसे ले कर तु?ो मेरे हाथ बेच दिया है. अब तु?ो मेरे साथ चलना होगा.

‘थू है ऐसे बाप पर, हट जा यहां से, नहीं तो इतना मारूंगी कि तेरा नशा काफूर हो जाएगा,’ वह क्रोध में तमतमा कर बोली, ‘मैं आज से यहां नहीं रहूंगी.’

आसपास जमा भीड़ बाबू के नाम पर थूक रही थी. लड़ाई की खबर मिलते ही अम्मा भी भागती हुई आ गई थी. वह उसे सम?ाने की कोशिश करती रही लेकिन उस ने तो कसम खा ली थी कि वह इस कोठरी के अंदर पैर कभी नहीं रखेगी.

उसी समय महेंद्र उस का हालचाल पूछने आ गया था. सारी बातें सुन कर बोला, ‘तुम मेरी कोठरी में रहने लगो, मैं अपने दोस्त के साथ रहने लगूंगा.’

अम्मा की गालियों की बौछार के साथसाथ रोनाचिल्लाना, इन सब के बीच वह उस नर्क को छोड़ कर महेंद्र की कोठरी में आ कर रहने लगी थी. अम्मा ने चीखचीख कर उस दिन उस से रिश्ता तोड़ लिया था.

महेंद्र के साथ जाता देख अम्मा उग्र हो कर बोल रही थी, ‘जा रह, उस के साथ, देखना महीनापंद्रह दिन में तु?ा से मन भर जाएगा. बस, तु?ो घर से बाहर कर देगा.’

महेंद्र को सोमा काफी दिनों से जानती थी. उस ने उस की आंखों में अपने लिए सच्चा प्यार देखा था. उस की निगाहों में, बातों में वासना की ?ालक नहीं थी.

कारखाने में वह अब सुपरवाइजर बन गई थी. उस के मालिक उस के काम से बहुत खुश थे.

महेंद्र पढ़ालिखा तो था ही, वह अब पूरे एरिया का इंस्पैक्टर बन गया था.

प्रधानमंत्री आवास योजना के अंतर्गत एक घर के लिए सोमा का नाम निकल आया था. उस के लिए

एक लाख रुपए जमा करने थे. नाम उस का निकला था पैसे भी उसी के नाम पर जमा होने थे. लेकिन महेंद्र ने निसंकोच पलभर में पैसे उस के नाम पर दे दिए. अब उस का अपना मकान हो गया था.

मकान मिलते ही वे दोनों बस्ती से दूर इस कालोनी में आ कर रहने लगे थे.

सोमा को अपने जीवन में सूनापन लगता. जब उस से सब अपने पति या बच्चों की बात करतीं, तो उस के दिल में कसक सी उठती थी कि काश, उस का भी पति होता, परिवार और बच्चे हों. लेकिन महेंद्र ने उस से दूरी बना कर रखी थी. उस ने लालची निगाहों से कभी उस की ओर देखा भी नहीं था.

जबकि सोमा के सजनेसंवरने के शौक को देखते हुए महेंद्र बालों की क्लिप, नेलपौलिश, लिपस्टिक आदि लाता रहता था. कभी सूट तो कभी साड़ी भी ले आता था. एक दिन लाल साड़ी ले कर आया था, बोला, ‘सोमा, यह साड़ी पहन, तेरे पर लाल साड़ी खूब फबेगी.’

‘साड़ी तो तू सच में बड़ी सुंदर लाया है. लेकिन इसे भला पहनूंगी कहां, बता?’

‘हम दोनों इतवार को पिक्चर देखने चलेंगे, तब पहनना.’ वह शरमा गई थी.

दोनों के बीच पतिपत्नी का रिश्ता नहीं था, लेकिन दोनों साथसाथ एक ही घर में रहते थे.

वह कमरे में सोती तो महेंद्र बाहर बरामदे में. उस के अपने घर की खबर मिलते ही सूरज जाने कहां से प्रकट हो गया और पूरी कालोनी में महेंद्र की रखैल कह कर गालीगलौज करते हुए पति का हक जमाने लगा.

महेंद्र को बोलने की जरूरत ही नहीं पड़ी थी. सोमा अकेले ही सूरज का सामना करने के लिए काफी थी. उस की गालियों के सामने उस की एक नहीं चली थी और हार कर वह लौट गया था.

कई बार रात के अंधेरे में वह करवटें बदलती रह जाती थी. समाज की ऊलजलूल बातें और लालची मर्दों की कामुक निगाहें, मानो वह कोई ऐसी मिठाई है, जिस का जो चाहे रसास्वादन कर सकता है.

महेंद्र के साथ रहने से वह अपने को सुरक्षित महसूस करती थी. बैंक में अकाउंट हो या कोई भी फौर्म, पति के नाम के कौलम को देखते ही उस के गले में कुछ अटकने लगता था.

वह महेंद्र की पहल का मन ही मन इंतजार करती रहती थी.

महेंद्र अपनी बात का पक्का निकला था, उस ने भी सोमा का मान रखा था.

दोनों साथ रहते, खाना खाते, घूमने जाते लेकिन आपस में एक दूरी बनी  हुई थी.

‘सोमा, कल काम की छुट्टी कर लेना.’

‘क्यों?’

‘कल आर्य कन्या स्कूल में आधार कार्ड के लिए फोटो खिंचवाने चलना है. फोटो खींची जाएगी, अच्छे से तैयार हो कर चलना.’

वह मुसकरा उठी थी.

अगले दिन उस ने महेंद्र की लाई हुई साड़ी पहनी, कानों में ?ामके पहने थे. उस ने माथे पर बिंदिया लगाई. फिर आज उस के हाथ मांग में सिंदूर सजाने को मचल रहे थे.

हां, नहीं, हां, नहीं, सोचते हुए उस ने अपनी मांग में सिंदूर सजा लिया था. हाथों में खनकती हुई लाल चूडि़यां, आज वह नवविवाहिता की तरह सज कर तैयार हुई थी. आईने में अपना अक्स देख वह खुद शरमा गई थी.

महेंद्र उस को देख कर अपनी पलकें ?ापकाना ही भूल गया था. वह बोला, ‘क्या सूरज की याद आ गई तुम्हें?

वह इतरा कर बोली, ‘चलो, फोटो निकलवाने चलना है कि नहीं?’

सोमा को इतना सजाधजा देख महेंद्र उस का मंतव्य नहीं सम?ा पा रहा था.

वह चुपचाप उस के साथ चल दिया था. वहां फौर्म भरते समय जब क्लर्क ने पति का नाम पूछा तो एक क्षण को  वह शरमाई, फिर मुसकराती हुई  तिरछी निगाहों से महेंद्र को देखते  हुए उस का हाथ पकड़ कर बोली  थी, ‘महेंद्र’.

महेंद्र के कानों में मानो घंटियां बज उठी थीं. इन्हीं शब्दों का तो वह कब से इंतजार कर रहा था. वह अभी भी विश्वास नहीं कर पा रहा था कि सोमा ने उसे आज अपना पति कहा है.

रात में वह रोज की तरह अपने कमरे में जा कर लेट गया था. आज खुशी से उस का दिल बल्लियों उछल रहा था. लेकिन वह आज भी अपनी खुशी का इंतजार कर रहा था.

आज नवविवाहिता के वेश में सजधज कर अपनी मधुयामिनी के लिए सोमा आ कर अपने प्रेमी की बांहों में सिमट गई थी.

अब उस के मन में समाज का कोई भय नहीं था कि महेंद्र जाट है और वह वाल्मीकि. अब वे केवल पतिपत्नी हैं. वह मुसकरा उठी थी.

महेंद्र की आवाज से वह वर्तमान में लौटी थी, ‘‘सोमा, दरवाजा तो खोलो, मैं कब से इंतजार कर रहा हूं.’’

Latest Hindi Stories : नीला आकाश – क्या नीला दूसरी शादी के लिए तैयार हो पाई?

Latest Hindi Stories : पति आकाश की असमय मौत के बाद जब महेश ने नीला के सामने शादी का प्रस्ताव रखा तो वह किस नतीजे तक नहीं पहुंच पा  रही थी. एक तरफ महेश था तो दूसरी तरफ अबोध बेटा रूद्र. क्या महेश उस के साथ उस के बेटे को अपना पाएगा… नीला,वैसे तो औफिस से शाम 7 बजे तक घर आ जाती है, लेकिन कभी मीटिंग वगैरह हो तो बोल कर जाती है कि आज उसे घर आने में थोड़ी देर जाएगी. मगर आज तो 9 बजने को थे और अब तक वह औफिस से घर नहीं आई.

सुबह कुछ बोल कर भी नहीं गई थी कि आज उसे घर आने में देर हो जाएगी. जब उस की मेड मंजु ने उसे फोन लगाया, तो नीला का फोन बिजी आ रहा था. इसलिए उस ने उसे मैसेज किया कि रुद्र, नीला का 4 साल का बेटा, बहुत रो रहा है. चुप ही नहीं हो रहा है और उसे भी तो अपने घर जाना है. उस पर नीला ने उसे मैसेज से ही जवाब दिया कि वह एक जरूरी मीटिंग में बिजी है, आने में देर लगेगी.

इसलिए वह मालती (नीला की मां) को बुला ले. मंजु ने जब मालती को फोन कर के कहा कि आज नीला को औफिस से आने में देर लगेगी. इसलिए वे आ कर कुछ देर के लिए रुद्र को संभाल लें. मालती आ तो गईं लेकिन उन्होंने मंजु को कस कर ?ाड़ लगाते हुए कहा, ‘‘पैसे किस बात की लेती हो, जब बच्चे की ठीक से देखभाल नहीं कर सकती हो और यह नीला पता नहीं क्या सम?ा रखा है मु?ो? अरे, मैं क्या कोई फालतू बैठी हूं, जो उस के बच्चे को संभालती रहूं?’’ मंजु ने उन की बात पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी क्योंकि उसे पता है कि मालती से मुंह लगाने का मतलब है खुद ही पत्थर पर सिर मारना.

दरअसल, नीला एक सिंगल मदर है. साथ में वह बैंक में जौब भी करती है. इसलिए रुद्र की देखभाल के लिए उस ने मंजु को रखा हुआ है. मंजु सुबह 9 बजे से ले कर रात 8 बजे तक रुद्र को संभालती है. उस के बाद तो नीला औफिस से आ ही जाती है. वैसे तो नीला का बैंक 6 बजे तक ही होता है, लेकिन कभी मीटिंग की वजह से या बैंक में औडिट चल रहा हो, तब नीला को घर आने में देर हो जाती है. रात के करीब 10 बजे नीला घर आई. धीरे से दरवाजा खोल कर जब वह अंदर कमरे में गई, तो देखा रुद्र मालती अपनी नानी के सीने से लग कर आराम से सो रहा है. ‘‘आ गई तू?’’ नीला के आने की आहट सुन कर मालती तुरंत उठ बैठीं. ‘‘हां, आ गई मां, लेकिन बहुत थक गई आज तो,’’ बैड पर एक तरफ पर्स रखते हुए नीला ने नजर भर कर रुद्र की तरफ देखते हुए कहा, ‘‘वह अचानक मीटिंग रख दी, इसलिए मैं ने ही मंजु से कहा था कि वह आप को बुला ले. वैसे रुद्र ने आप को ज्यादा परेशान तो नहीं किया न?’’

मालती ने तलखी से कहा, ‘‘यह बता कि ऐसा कब तक चलता रहेगा? आखिर मैं भी कब तक तुम्हारा साथ दे पाऊंगी? उम्र हो चुकी है मेरी भी. थक जाती हूं यहांवहां करतेकरते,’’ बोलते हुए मालती का चेहरा रूखा हो आया. ‘‘पता है मां, लेकिन मैं ने कहा न अचानक मीटिंग आ गई… अब जौब तो छोड़ नहीं सकती मैं,’’ नीला ने अपनी मजबूरी बताई. ‘‘भले तू अपनी नौकरी नहीं छोड़ सकती, लेकिन मेरी परिस्थिति भी तो सम?ा. मैं खुद बेटेबहू पर आश्रित हूं. मुझे  उन के हिसाब से चलना पड़ता है. इसलिए कह रही हूं रुद्र को इस की दादी के पास छोड़ आ. लेकिन तू सुनती ही कहां है मेरी.’’ ‘‘आप की बात सही है मां. लेकिन रुद्र अभी बहुत छोटा है. उसे मेरी जरूरत है और फिर कौन सा आप को रोजरोज कष्ट उठाना पड़ता है जो आप इतना सुना रही हो,’’

नीला एकदम से विफर पड़ी क्योंकि एक तो वैसे ही वह थकीमांदी घर आई थी उस पर अपनी मां का परायापन व्यवहार देख कर उस का मन रोने को हो आया. ‘अरे, तो क्या हो गया जो जरा इन्हें यहां आना पड़ गया? आखिर रुद्र भी तो इन का कुछ लगता है कि नहीं? एक बार यह भी नहीं पूछा कि तूने खाना खाया या नहीं? बस लगीं सुनाने. अपने पोतेपोतियों के पीछे पूरा दिन भागती फिरती हैं. कौरेकौर खाना खिलाती हैं उन्हें, तब थकान नहीं होती इन्हें.

लेकिन जरा सा रुद्र को क्या देखना पड़ गया, ताकत ही खत्म हो गई इन की. अरे, यह क्यों नहीं कहतीं कि रुद्र इन के आंखों को खटकता है. देखना ही नहीं चाहतीं ये मेरे बच्चे को,’ मन में सोच नीला कड़वाहट से भर उठी. ‘‘अच्छा ठीक है भई, जो तुम्हें ठीक लगे करो, मुझे क्या है,’’ नीला के मनोभाव को पढ़ते हुए मालती सफाई देते हुए बोलीं, ‘‘मैं तो तुम्हारे भले के लिए ही बोल रही हूं न. वैसे महेश का फोन आया था क्या?’’ मालती की बात पर नीला सिर्फ ‘हूं’ में जवाब दे कर लाइट औफ करने ही लगी कि मालती फिर बोल पड़ीं, ‘‘महेश की मां कह रही थी कि तुम दोनों की शादी जितनी जल्दी हो जाए अच्छा है और मैं भी तो यही चाहती हूं कि मेरे जीतेजी फिर से तुम्हारा घर बस जाए.

अरे, मेरा क्या भरोसा कब अपनी आंखें मूंद लूं,’’ भावनाओं का जाल बिछाते हुए मालती रोने का नाटक करने लगीं ताकि नीला ?ाट से उस महेश से शादी के लिए हां बोल दे. मगर नीला अपनी मां की सारी नौटंकी समझती थी. आखिर, बचपन से जो देखती आई थी. ‘‘अच्छा ठीक है मां, अब मु?ो सोने दो सुबह बात करेंगे,’’ बड़ी मुश्किल से अपने गुस्से पर नियंत्रण रख नीला ने अपनी आंखें बंद कर लीं और सोचने लगी कि उस का कहां मन होता है अपने मासूम बच्चे को यों किसी और के भरोसे छोड़ कर जाने का? लेकिन जाना पड़ता है क्योंकि अगर पैसे नहीं कमाएगी तो रुद्र को कैसे पालेगी.

लेकिन मालती तो ‘शादी कर लो शादी कर लो’ बोलबोल कर उस की जान खाए रहती हैं. मगर यह नहीं सम?ातीं कि वह महेश सिर्फ नीला के पैसों की खातिर उस से विवाह करना चाहता है. तभी तो शादी करने के लिए इतना पगला रहा है वह और मालती तो इसलिए नीला की शादी के लिए परेशान हैं ताकि उन्हें इस जिम्मेदारी से मुक्ति मिल जाए. लेकिन वह कौन सा मालती की छाती पर मूंग दल रही है? अरे, अपना कमा खा रही है. इस में भी लोगों को परेशानी है? अपने माथे पर हाथ मारते हुए आंखों से 2 बूंद आंसू टपका कर मालती फिर शुरू हो गईं, ‘‘जो आज मु?ो यह सब देखना पड़ रहा है इस से तो अच्छा होता मैं तुम्हारे बाबूजी के साथ ही ऊपर चली जाती. उधर मेरे बेटेबहू मुझे ?छिडकते रहते हैं और इधर तुम हो कि मेरी कोई बात नहीं समझाती. अरी, महेश जैसा नेक दिल इंसान तुम से शादी करने को राजी हो गया वरना एक विधवा और 1 बच्चे की मां से भला कौन शादी करना चाहेगा?’’ मालती की बात से नीला का मन कसैला हो गया.

मन तो किया बोल दे कि तो कौन मरा जा रहा है उस महेश से शादी करने के लिए और कहने को तो वह भी रंडवा है. लेकिन मर्दों के लिए कौन ऐसी बातें करता है? एक औरत मर जाए, तो मर्द बेचारा कहलाता है. लेकिन वहीं एक पति के मरने पर यही समाज औरत पर क्याक्या जुल्म नहीं ढाता है. उस के खाने, पहनने, हंसने, बोलने से ले कर हर चीज पर पहरा बैठा दिया जाता है क्योंकि वह एक विधवा है. आखिर स्त्रीपुरुष में इतना भेद क्यों है? किस ने बनाए हैं ये नियम जो सदियों से चले आ रहे हैं? लेकिन नीला के इन प्रश्नों के उत्तर देने वाला कोई नहीं था. नीला को तो वैसे भी इस महेश से विवाह करने की कोई इच्छा नहीं थी. वह तो केवल अपनी मांभाई के दबाव में आ कर उस से विवाह करने को राजी हुई थी. लेकिन जब उस महेश ने यह शर्त रखी कि वह रुद्र को नहीं अपनाएगा. तभी नीला ने सोच लिया कि वह महेश से विवाह कभी नहीं करेगी.

लेकिन मालती उस के पीछे पड़ी हैं कि वह रुद्र को उस की दादी के पास छोड़ कर महेश से विवाह कर ले क्योंकि फिर इतना अच्छा लड़का नहीं मिलेगा उसे. मगर एक मां के लिए अपने बच्चे को खुद से दूर करना कितनी बड़ी सजा है यह लोग नहीं समझते. अपने बेटे को सीने से लगा कर नीला देर तक सुबकती रही और फिर पता नहीं कब उसे नींद आ गई. सुबह फिर मालती वही राग अलापने लगीं, तो नीला मन ही मन चिढ़ उठी और एक नफरत भरी नजर अपनी मां पर डालते हुए रुद्र को वहां से ले कर दूसरे कमरे में चली आई. जब देखा मालती ने कि उस की बातों का नीला पर कोई असर नहीं हुआ तो वे अपनी साड़ी का पल्लू समेटे वहां से बड़बड़ाती हुई अपने घर चली गईं.

अपनी मां के व्यवहार से दुखी नीला की आंखें रो पड़ीं. सोचने लगी कि कैसे एकाएक उस की हंसतीखेलती जिंदगी वीरान बन गई. कभी नहीं सोचा था उस ने कि एक दिन आकाश उसे छोड़ कर चला जाएगा. अपने बहते आंसू पोंछ वह 5 साल पीछे चली गई… नीला कालेज से अभी थोड़ी दूर निकली ही थी कि अचानक… नहीं अचानक से कहां बल्कि सुबह से ही मेघराजा बरसने को व्याकुल हो रहे थे और जैसे ही मौका मिला बरस पड़े.

ऐसी मोटीमोटी बूंदें बरसने लगे कि नीला का स्कूटी चलाना मुश्किल हो गया. कहीं भीग न जाए इसलिए वह अपनी स्कूटी सहित एक घने पेड़ के नीचे यह सोच कर खड़ी हो गई कि जैसे ही बारिश रुकेगी स्कूटी से फुर्र हो जाएगी. मगर यह मुई बारिश तो रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी. ‘‘अंदर आ जाइए, मैं आप को आप के घर तक छोड़ दूंगा,’’ अचानक एक चमचमाती गाड़ी नीला के सामने आ कर रुकी और खिड़की से झांकते हुए एक सुदर्शन नौजवान बोला तो नीला कुछ पल उसे देखती रह गई.

‘‘हैलो मैडम, कहां खो गईं आप? मैं ने कहा अंदर आ जाइए बारिश तेज है भीग जाएंगी आप,’’ जब उस नौजवान ने फिर वही शब्द दोहराए, तो नीला सचेत हो गई. ‘‘नो थैंक्स, मैं चली जाऊंगी,’’ उड़ती सी नजर उस शख्स पर डाल नीला ऊपर आसमान की तरफ देखने लगी जहां अभी भी कालेकाले बादल मंडरा रहे थे. इस का मतलब था बारिश अभी रुकने वाली नहीं है. एक मन हुआ उस की गाड़ी में बैठ जाए, लेकिन फिर लगा न बाबा भले ही भीगते हुए घर जाना पड़े पर किसी अनजान की गाड़ी में नहीं बैठेगी.

‘‘कहीं आप मु?ो उस टाइप का लड़का तो नहीं सम?ा रहीं?’’ वह नौजवान बोला तो नीला और सतर्क हो गई. ‘‘घबराइए नहीं, मैं आप को जानता हूं. आप महाराजा सयाजी राव यूनिवर्सिटी में पड़ती हैं न? मैं भी वहीं पढ़ता हूं. लेकिन आप से 1 साल सीनियर हूं,’’ बोल कर वह हंसा तो नीला ने उसे गौर से देखा. हां, याद आया. इस ने इसे महाराजा सयाजी राव यूनिर्वसटी में देखा तो है. ‘तो क्या हो गया,’ सोच नीला ने मुंह बनाया. ‘उस यूनिवर्सिटी में कितने ही लड़केलड़कियां पढ़ते हैं तो क्या सब मेरे दोस्त हो गए? और इस का क्या भरोसा, मदद के नाम पर ही यह मेरे साथ कुछ ऐसावैसा कर दे तो? न बाबा न, मैं इस के साथ नहीं जाऊंगी.

अपने मन में ही सोच नीला ने मुंह फेर लिया ताकि वह सम?ा जाए कि उसे उस की गाड़ी में नहीं बैठना. मगर वह लड़का तो नीला के पीछे ही पड़ गया कि वह उस की गाड़ी में आ कर बैठ जाए. ‘‘अरे, अजीब जबरदस्ती है. ‘मान न मान मैं तेरा मेहमान’ जब मैं ने कहा मु?ो नहीं बैठना आप की गाड़ी में तो फिर आप जिद क्यों कर रहे हैं? प्लीज, जाइए यहां से. बारिश जब रुकेगी, मैं खुद ही अपने घर चली जाऊंगी,’’ कंधे पर टंगे बैग को ठीक करते हुए नीला ने दो टूक शब्दों में कहा और फिर नजरें फेर लीं. ‘‘जिद मैं कर रहा हूं या आप? बारिश देख रही हैं?’’ बड़े हक से उस ने कहा, ‘‘स्कूटी की चिंता न करें, सुबह आप के घर पहुंच जाएगी,’’ बोल कर उस ने अपने कार का दरवाजा खोल दिया, तो न चाहते हुए भी नीला को उस की गाड़ी में आ कर बैठना पड़ा. लगा, कहीं सच में बारिश न रुकी तो उसे भीगते हुए घर जाना पड़ेगा. ‘‘वैसे अपनी सेफ्टी के लिए आप ने अपने बैग में कटर, चाकू, पेपर स्प्रे वगैरह तो रखा ही होगा न?’’ बोल कर वह हंसा, तो नीला भी मुसकरा पड़ी.

‘‘नहींनहीं, रखना ही चाहिए. इस में क्या है और देख तो रही हैं आज जमाना कितना खराब हो गया है. किसी पर भी विश्वास नहीं किया जा सकता,’’ बोल कर उस ने नीला को एक भरपूर नजरों से देखा, तो नीला की भी आंखें उस से जा टकराईं. इंसान का चेहरा उस के अच्छेबुरे होने का सुबूत दे ही देता है और इस अजनबी के चेहरे से ही लग रहा था कि इंसान बुरा नहीं है. ‘‘वैसे मेरा नाम आकाश है और आप का नाम?’’ गाड़ी बाईं तरफ मोड़ते हुए आकाश ने पूछा. तो नीला एकदम से बोल पड़ी, ‘‘राइट… राइट.’’ ‘‘अच्छा, तो आप का नाम राइटराइट है,’’ आकाश की हंसी छूट गई तो नीला भी खिलखिला पड़ी. नीला की खिलखिलाती हंसी देख कर आकाश उसे देखता ही रह गया.

लेकिन जब सामने से आती गाड़ी ने हौर्न बजाया तो वह घबरा कर सामने देखने लगा. उस दिन के बाद से आकाश और नीला दोनों दोस्त बन गए. लेकिन इसे सिर्फ दोस्ती कहना सही नहीं होगा क्योंकि जिस तरह से दोनों एकदूसरे से मिलने के लिए बेचैन हो उठते थे वह सिर्फ दोस्ती तो नहीं हो सकती. कुछ तो था दोनों के बीच पर खुल कर बोल नहीं पा रहे थे. लेकिन उन की आंखें रोज हजारों बातें करतीं. एक रोज बड़ी हिम्मत जुटा कर आकाश ने नीला को एक लव लैटर लिखा. अब कहेंगे, फोन के जमाने में लव लैटर? हां, क्योंकि जो बातें हम बोल कर नहीं कह पाते, लिख कर आसानी से कह देते हैं. आकाश ने भी वही किया. लैटर में उस ने अपने दिल की सारी बातें लिख डालीं और यह भी कि अगर नीला भी उस से प्रेम करती है, तो कल वह पीच कलर की ड्रैस पहन कर यूनिवर्सिटी आएगी.

दूसरे दिन नीला को पीच कलर की ड्रैस में यूनिवर्सिटी आया देख कर आकाश ऐसे बौरा गया कि सब के सामने ही उस ने नीला को अपनी गोद में उठा लिया और चिल्लाते हुए बोला, ‘‘आई लव यू सो मच नीला. विल यू मैरी मी?’’ नीला ने भी शरमाते हुए ‘हां’ बोला, तो वहां खड़े सारे लड़केलड़कियां खुशी से तालियां बजाने लगे. यूनिवर्सिटी में उस दिन से उन का नाम ‘दो हंसों का जोड़ा’ पड़ गया. नीला का परिवार वैसे तो बिहार का रहने वाला है, मगर सालों पहले उस के पापा परिवार सहित गुजरात के वड़ोदरा शहर में आ कर बस गए और तब से यहीं के हो कर रह गए. जहां नीला के पापा रेलवे में गार्ड की नौकरी करते थे, वहीं आकाश के पापा एक बिल्डर थे. वड़ोदरा में उन का अपना बड़ा घर था. इस के अलावा कई दुकानें भी थीं जिन्हें उन्होंने किराए पर लगा रखा था. उन के पास पैसों की कोई कमी नहीं थी.

मगर नीला के पापा के पास सिवा एक सरकारी नौकरी के कुछ भी नहीं था. अपना घर भी नहीं था. वे तो अपने परिवार के साथ रेलवे के दिए क्वार्टर में रहते थे. आर्थिक तौर पर दोनों परिवारों में जमीनआसमान का अंतर तो था ही, उन के खानापान में भी काफी भिन्नता थी. नीला का पूरा परिवार नौनवैजिटेरियन था, आकाश के घर वाले लहसुनप्याज तक को हाथ नहीं लगाते थे. लेकिन इस बात का उन के प्यार पर जरा भी असर नहीं पड़ा क्योंकि प्यार कहां खानपान और अमीरीगरीबी देखता है. प्यार तो सिर्फ प्यार की ही भाषा सम?ा है. खैर, वक्त के साथ दोनों ने जितना एकदूसरे को जाना, उन का प्यार एकदूसरे के लिए उतना ही गहरा होता चला गया. अकसर नीला और आकाश आसमान के नीचे तारों को निहारते हुए सपने बुनते और कहते कि एक दिन इस आकाश के नीचे ‘नीला आकाश’ की अपनी एक अलग दुनिया होगी जहां सिर्फ वे दोनों होंगे और कोई नहीं.’’ आकाश, मैं तुम्हारे लिए खाना पकाऊंगी और तुम पैसे कमा कर लाना,’’ आकाश के गले से झेलती नीला कहती, तो वह सोचने लगता कि क्या उन का प्यार शादी के अंजाम तक पहुंच पाएगा? कहीं उन के परिवार वालों ने इस रिश्ते को इनकार कर दिया तो?’’ ‘‘मैं कुछ पूछ रही हूं आकाश, लेकिन तुम न जाने कहां खोए हुए हो.

बोलो, क्या सोच रहे थे. नीला उसे हिलाते हुए पूछती, तो वह कह देता कि कुछ भी तो नहीं. ‘‘चलो मान लिया? लेकिन एक बात तो बताओ. तुम मु?ा से ही शादी क्यों करना चाहते हो? ऐसा क्या देखा मु?ा में? दुनिया में और भी तो सुंदरसुंदर और पैसे वाली लड़कियां होंगी, फिर मैं ही तुम्हें क्यों भाई?’’ उस की बात पर आकाश मुसकराते हुए कहता है, ‘‘बता दूं? सच में?’’ ‘‘अरे हां, बताओ न?’’ उत्साहित सी नीला बोली. ‘‘क्योंकि मु?ो तुम्हारी छोटी बहन बहुत पसंद आ गई और तुम्हारे ही बहाने मैं उस के साथ भी फ्लर्ट कर सकूंगा. वैसे भी साली आधी घरवाली होती है,’’ बोल कर जब आकाश ठहाके लगा कर हंसा, तो नीला गुस्से से मुंह फुलाते हुए यह बोल कर वहां से जाने लगी कि तो फिर उसी से शादी कर लो न, ‘‘अरे…’’ आकाश उस के पीछे भागा, ‘‘मैं तो तुम्हें केवल छेड़ रहा था सच में. तुम्हें बुरा लगा तो सौरी,’’ बोल कर आकाश अपने दोनों कान पकड़ कर उठकबैठक लगाने लगा. यह देख कर नीला को हंसी आ गई. उस के लिए आकाश और आकाश के लिए नीला हवा की तरह अनिवार्य थे.

दोनों एकदूसरे के बिना जीने की कल्पना तक नहीं कर सकते थे. आकाश के पापा चाहते थे कि एमबीए के बाद आकाश मास्टर्ड करने के लिए अमेरिका चला जाए और वह अपने पापा की बात टाल नहीं सकता था. नीला को जब यह बात पता चली कि आकाश 2 साल के लिए अमेरिका जा रहा, तो वह बहुत उदास हो गई. उसे लगा कहीं अमेरिका जा कर आकाश उसे भूल न जाए. ‘‘पागल हो,’’ नीला को अपनी बांहों में समेटते हुए आकाश बोला, ‘‘तुम ने सोच भी कैसे लिया कि मैं तुम्हें भूल जाऊंगा वहां जा कर? अरे, तुम तो मेरी जान हो,’’ आकाश ने उसे समझाया, ‘‘वह भी तो सरकारी जौब पाना चाहती है. तो क्यों न ये 2 साल वह अपना मन पढ़ाई में लगा दे? देखना, फिर कैसे हवा की तरह 2 साल फुर्र से निकल जाएंगे और फिर हमतुम दोनों मिल कर एक नया इतिहास बनाएंगे,’’ गुनगुनाते हुए आकाश बोला.

यह सुन उदास सी नीला बोल पड़ी, ‘‘और अगर हम न मिल पाएं तो?’’ ‘‘तो… तो मर तो सकते हैं न एकसाथ?’’ उस की बात पर नीला ने उस के होंठों पर अपनी उंगली रख दी कि ऐसी बातें वह अपने मुंह से न निकाले. ‘‘तो फिर खुशीखुशी मुझे विदा करो और हां, रोज हम फोन पर बातें किया करेंगे ओके न?’’ आकाश बोला. अमेरिका जाते समय आकाश ने नीला से यह वादा लिया कि वह कभी दुखी नहीं होगी, पढ़ाई में अपना मन लगाएगी और उसे रोज फोन करेगी. अपनी आगे की पढ़ाई के लिए उधर आकाश 2 साल के लिए अमेरिका चला गया और इधर नीला जौब की तैयारी में जुट गई. नीला ने अब तक अपने घरवालों को अपने प्यार के बारे में कुछ नहीं बताया था और न ही आकाश ने अपने परिवार वालों से नीला के बारे में कुछ कहा था. हमारे समाज में लड़कियों को ले कर घर के अंदर मर्यादा, परंपरा, संस्कृति, सुरक्षा की ऐसी मजबूत दीवार बंधी रहती है कि लड़कियां उसे लांघने के नाम से भी भय खाती हैं. मातापिता जल्द से जल्द दूसरे की अमानत समझ कर बेटी को उस के घर भेज कर गंगास्नान कर लेना चाहते हैं.

उन्हें लगता है जवानी के जोश में कहीं बेटी के पैर फिसल गए, तो अनहोनी हो जाएगी. इसलिए उसे बंद दरवाजों में कैद कर दिया जाता है. लेकिन नीला ने भी सोच लिया था कि उस के मातापिता मानें तो ठीक वरना वह खिड़की से लांघ कर चिडि़या की तरह फुर्र हो जाएगी इस घर से. घर में जब नीला की शादी की बात चलने लगी, तो उस ने यह बहाना बनाया कि पहले वह जौब लेगी, फिर शादी करेगी. लेकिन जब उस के मातापिता को यह बात मालूम पड़ी कि जौब तो सिर्फ एक बहाना है, बल्कि वह तो एक गुजराती लड़के से प्यार करती है और उस से ही शादी करना चाहती है, तो घर में भयंकर तूफान उठ खड़ा हुआ क्योंकि किसी गैरजातबिरादरी के लड़के से वे अपनी बेटी की शादी कैसे होने दे सकते भला? इसलिए उन्होंने ठान लिया कि अब जितनी जल्दी हो सके वे नीला की शादी अपने किसी जातबिरादरी के लड़के से करा देंगे. नीला के लिए लड़का भी ढूंढ़ा जाने लगा. यहां तक कि उस का घर से निकलना भी बंद करवा दिया गया. लेकिन नीला भी कम जिद्दी नहीं थी.

बोल दिया उस ने कि वह शादी करेगी तो सिर्फ आकाश से और अगर उन लोगों ने उस के साथ जबदस्ती करने की कोशिश की, तो वह पंखे से ?ाल जाएगी. नीला की धमकी से उस के मांपिता डर गए कि कहीं बेटी ने सच में कुछ कर करा लिया तो सब की जिंदगी आफत में आ सकती है. इसलिए उन्होंने बेमन से ही इस शादी की अनुमति दे दी. नीला से शादी की बात सुनते ही आकाश के मांपापा विरोध जताते हुए कहने लगे कि एक साधारण परिवार की बिहारी लड़की उन के घर की बहू कभी नहीं बन सकती. लेकिन आकाश ने भी खरीखरी सुना दीया उन्हें कि वह शादी तो नीला से ही करेगा. बेटे की जिद के आगे उन्हें भी ?ाकना पड़ा. पर आकाश की मां ने दिल से इस रिश्ते को नहीं स्वीकारा, बल्कि बेटे की जिद के कारण उसे इस शादी के लिए मानना पड़ा. दोनों परिवारों के आशीर्वाद से नीला और आकाश एक हो गए. जो नीला शादी के पहले एक रेलवे क्वार्टर में रहती थी आकाश से शादी होते ही वह महलों की रानी बन गई. यहां इस घर में नौकरचाकर, गाड़ी सबकुछ तो था,

पर वह सम्मान नहीं था जिस की वह हकदार थी. आकाश की मां हमेशा उसे उस के गरीबी को ले कर ताने मारती और कहती कि उस ने उस के बेटे को अपने रूपजाल में फांस लिया वरना तो उन के बेटे के लिए करोड़पति घरों की लड़कियों की लाइन लगी थी. गरीब घर की लड़की, गरीब घर की लड़की बोलबोल कर वह उस का और उस के मांबाप का अपमान करती और कहती कि सिर्फ पैसों के लिए उस ने आकाश से शादी की है. मगर ऐसा नहीं था. नीला ने कभी आकाश के पैसे और घर के लिए उस से शादी नहीं की बल्कि वह सच में उस से प्यार करती थी और यह बात आकाश भी जानता था. इसलिए तो वह उसे सम?ाता कि मां की बातों को दिल से मत लगाओ. मगर आकाश भी अपनी मां के रूखे व्यवहार से अच्छी तरह से वाकिफ था कि वह जिस के भी पीछे पड़ जाती है उस का सुखचैन छीन लेती है. नीला का भी उस ने सुखचैन छीन लिया था क्योंकि उठतेबैठते वह उसे जलील करती. उस की गरीबी को ले कर ताने मारती. यहां तक कि उस के मांबाप को भिंखमंगा तक बोल देती, जो किसी भी लड़की को अच्छा नहीं लगेगा. मगर आकाश की मजबूरी यह थी कि वह अपने मांबाप का इकलौता बेटा था और उन से अलग हो कर नहीं रह सकता था. समाज और लोग क्या कहेंगे कि शादी होते ही अपने मांबाप से अलग हो गया. इसलिए वह नीला से ही चुप रहने को कहता.

कहता कि धैर्य रखो, एक दिन सब ठीक हो जाएगा. मगर एक दिन जब खुद आकाश ने ही अपने कानों से मां को रिश्तेदारों के सामने नीला की बुराई करते सुना, तो उसे जरा भी अच्छा नहीं लगा. किसी के मांबाप, भाईबहन के लिए इतनी ओछी और गंदी बातें कोई भी लड़की कैसे सहन कर सकती है भला. नीला का बड़प्पन ही था कि इतना सब होने के बाद भी वह यहां रह रही थी, तो सिर्फ अपने आकाश के लिए. लेकिन अब आकाश का भी फर्ज बनता है कि वह उस के लिए कुछ करे. सो वह यहीं वड़ोदरा में ही एक 2 कमरे का फ्लैट ले कर नीला के साथ रहने लगा. इस बात के लिए भी नीला को ही दोषी ठहराया गया कि आते ही उस ने आकाश को उस के मांबाप से अलग कर दिया. मगर आकाश तो अब भी अपनी दोनों जिम्मेदारियां बखूबी निभा रहा था. एक रोज जब आकाश की मां को यह बात पता चली कि नीला मां बनने वाली है, तो वह दौड़ीदौड़ी यहां पहुंच गई और कहने लगी कि नीला उन के घर साथ आ कर रहे. लेकिन नीला वहां नहीं जाना चाहती थी और इस के लिए आकाश ने भी उसे फोर्स नहीं किया. 9 महीने पूरे होने पर नीला ने जब एक प्यारे से बेटे को जन्म दिया तो दोनों परिवारों में खुशी की लहर दौड़ गई.पोते के जन्म पर आकाश की मां ने अस्पताल से ले कर पूरे शहर में मिठाई बंटवाई. लेकिन यह कहते भी बाज नहीं आई कि नाती भले ही साधारण घर की है, पर पोता तो करोड़पति घर का है न.

आकाश को कंपनी की तरफ से 1 साल के लिए अमेरिका भेजा जा रहा था. मगर उल?ान यह थी कि नीला और रुद्र को अकेले छोड़ कर कैसे जाए क्योंकि रुद्र अभी बहुत छोटा था और नीला उसे अकेले नहीं संभाल पाती. इसलिए वह चाहता था कि जब तक वह अमेरिका से वापस नहीं आ जाता, नीला उस के घर जा कर रहेगी, तो वह निश्चिंत रहेगा. मगर नीला अपनी ससुराल नहीं जाना चाहती थी. इसलिए रुद्र को ले कर वह अपने मायके आ गई रहने. आकाश की मां का अपनी बहू से लाख मनमुटाव था, मगर पोते के मोह में वह यहां खिंची चली आती थी. इसी तरह 1 साल गुजर गया और आकाश के आने का दिन भी नजदीक आ गया. मगर होनी को तो कुछ और ही मंजूर था. अमेरिका से वापस आ रहा प्लेन क्रैश हो गया और उस में बैठे सभी यात्रियों की मौत हो गई. आकाश की मौत से दोनों परिवारों पर विपत्ति का पहाड़ टूट पड़ा.

नीला की तो दुनिया ही लुट गई. उस की होली, दीपावली और सारी खुशियां आकाश के साथ ही चली गईं. उस की सास तो पहले ही नीला को पसंद नहीं करती थी. आकाश के न रहने पर वह और उन की आंखों में चुभने लगी. नीला जीए या मरे, कोई मतलब नहीं था उसे. उसे तो अब सिर्फ अपने पोते से मतलब था, जो उस के खानदान का एकलौता वारिस था. वे लोग अब रुद्र पर अपना पूरा अधिकार जताने लगे थे. कहने लगे कि रुद्र उन का खून है इसलिए अब वह उन के साथ ही रहेगा, परंतु नीला अपने बच्चे को उन्हें देने के लिए हरगिज तैयार नहीं थी. वैसे भी बच्चे पर सब से पहला अधिकार उस की मां का ही होता है. लेकिन यह बात वे लोग समझ ही नहीं रहे थे.

अपनी जिद में अड़े बैठे थे कि रुद्र को वे ले कर ही जाएंगे. जब यह मामला कोर्ट में पहुंचा, तो फैसला नीला की फेवर में आया और वे लोग तिलमिला कर रह गए. आर्थिक तौर पर तो नीला को कोई समस्या नहीं थी क्योंकि पढ़ीलिखी नीला एक बड़े सरकारी बैंक में जौब कर थी और मोटा वेतन पाती थी. लेकिन समस्या समाज और समाज में रह रहे लोगों की थी जो जबतब आ कर नीला के घावों पर यह कह कर नमक छिड़क जाते कि हाय, इतना लंबा जीवन… अकेले कैसे कटेगी… उस पर से एक छोटा बच्चा. अकेले संभाल पाएगी? बेटी की हालत देख कर नीला के मांपापा सोचते कि कैसे कटेगा उन की बेटी का इतना लंबा जीवन? क्या होगा उन की विधवा बेटी का जब वे नहीं होंगे तब? बेटी की चिंता में नीला के पापा डिप्रैशन में रहने लगे और एक रात जो सोए तो फिर उठे ही नहीं. महीनों बाद फिर आकाश के मांपापा नीला के सामने खड़े थे और मिन्नतें कर रहे थे कि वह रुद्र के साथ उन के घर आ कर रहे क्योंकि रुद्र और नीला के सिवा अब उन का है ही कौन. देख रही थी नीला, आकाश के चले जाने से उस के मांपापा एकदम टूट चुके थे. वे दोनों अपने जीवन की संध्याबेला अपने पोते के साथ बिताना चाहते थे, तो इस में गलत क्या है. इसलिए पिछली सारी बातें भुला कर नीला रुद्र के ले कर अपनी ससुराल आ गई रहने. वैसे भी रुद्र इस घर का उत्तराधिकारी था. इस घर का अकेला वारिस.

दिन हंसीखुशी बीत ही रहे थे कि एक दिन रुद्र बीमार पड़ गया. नीला ने उसे डाक्टर को दिखाना चाहा, पर उस की सास अपने गुरुमहाराज, आचार्यजी को अपने घर बुला लाई और कहने लगी कि आचार्यजी में बहुत तेज है, वे रुद्र को तुरंत ठीक कर देंगे. जैसे आचार्यजी के पास कोई जादू की छड़ी हो जिसे घुमाते ही रुद्र ठीक हो जाएगा. वैसे नीला इन पंडितोंपुरोहितों पर बिलकुल विश्वास नहीं करती थी, लेकिन सास के आगे कुछ बोल न सकी और आचार्यजी जैसाजैसा कहते गए, वह वैसावैसा करती गई. मगर फिर भी रुद्र की तबीयत जस की तस बनी हुई थी. जबकि इस पूजा के बहाने ही आचार्यजी इन से लाखों रुपये ऐंठ चुके थे. ये आचार्यजी देखने में भले ही साधारण इंसान लगते हों, पर करोड़पति आदमी थे. इन के वड़ोदरा और अहमदाबाद में अपने मकान थे. गाडि़यां थीं और हों भी क्यों न जब ऐसेऐसे करोड़पति अंधभक्त इन के चरणों में पड़े हों तो. रुद्र की तबीयत में कोई सुधार होता न देख कर आचार्यजी कहने लगे कि अब एक गुप्त पूजा करवानी पड़ेगी तभी रुद्र ठीक हो पाएगा. लेकिन इस गुप्त पूजा में सिर्फ नीला ही बैठ सकती है क्योंकि वह रुद्र की मां है. आचार्यजी ने यह भी कहा कि गुप्त पूजा रात के 12 बजे के बाद शुरू करनी पड़ेगी तभी फलेगा. नीला की सास इस पूजा के लिए तुरंत राजी हो गई.

मगर नीला को कुछ खटका. पता नहीं क्यों उस आचार्यजी के आंखों में उसे एक चालबाज आदमी नजर आता था. मगर उस की सास तो उस आचार्य के पावों में पड़ी होती थी, तो कहां से देख पाती उस की चालाकी. अब सास का हुक्म नीला टाल भी नहीं सकती थी और सब से बड़ी बात कि यह रुद्र की जिंदगी का सवाल था, तो नीला को इस पूजा के लिए मानना पड़ा. लेकिन जैसे ही पूजा शुरू हुई वह आचार्य हरकत में आ गया. गलत तरीके से वह नीला को छूने लगा तो नीला उठ खड़ी हुई और बोली, ‘‘यह क्या कह रहे हैं आप आचार्यजी? हम तो यहां पूजा के लिए आए हैं न?’’ ‘‘अरे हां तो पूजा ही तो कर रहे हैं,’’ आचार्य अजीब तरह से हंसा और बोला, ‘‘देखो, अभी तुम जवान हो… मन करता होगा तुम्हारा भी, जानता हूं मैं और यहां तो कोई भी नहीं है. इसलिए डरो मत. हम तुम्हें शारीरिक सुख देंगे और तुम मु?ो पैसा. दोनों खुश.’’ आचार्य की बेहूदगी देख कर नीला की आंखें आश्चर्य से बड़ी हो गईं. ‘‘अरे, ऐसे क्या देख रही हो? कुछ गलत कहा क्या मैं ने? तुम्हारे भले की बात की है.’’ ‘‘छि:, तो आप का असली रूप यह है आचार्यजी? काश, काश मेरी सास आप का यह रूप देख पातीं. लेकिन अब मैं उन्हें दिखाऊंगी आप का यह असली रूप,’’ बोल कर नीला वहां से झटके से निकलने लगी कि उस आचार्य ने उस का हाथ पकड़ लिया, ‘‘तुम्हारी इतनी हिम्मत.’’ नीला पलटी और एक जोर का थप्पड़ उस आचार्य के कनपट्टी पर जड़ दिया जिस से उस का दिमाग झनझना उठा.

जब तक वह संभल पाता नीला वहां से निकल चुकी थी. आचार्य को लगा अगर नीला ने यह बात अपनी सास को जा कर बता दी, तो उस की वर्षों की मेहनत पर पानी फिर जाएगा. उस का बनाबनाया साम्राज्य ढह जाएगा. इसलिए वह भागा. बेहताहसा भागा और नीला से पहले वहां पहुंच गया. अपनी खुलती पोल देख कर वह कहने लगा कि नीला एक बदचलन औरत है. उस के खराब लक्षण की वजह से ही आकाश की मौत हुई और अब वह अपने बेटे रुद्र को भी खा जाएगी. अपनी बहू को सम?ाने के बजाय उस की सास ने उसे ही उंगली दिखाई और उसे खूब भलाबुरा कहा.

यह भी कहा कि वह कौन सा मनहूस दिन था जिस दिन आकाश से उस की शादी हुई थी. जहां ?ाठ को सच और सच को चरित्रहीन समझ जाता हो, वहां रहने का तो अब कोई मतलब ही नहीं था. सो नीला रुद्र को ले कर अपने बैंक के दिए घर में रहने आ गई. ‘‘क्या हुआ इतनी उदास क्यों बैठी हो? सब ठीक तो है?’’ औफिस में नीला को गुमसुम बैठे देख कर महेश ने पूछा, तो उस ने सिर्फ इतना ही कहा कि नहीं कुछ नहीं, बस यों ही. लेकिन उस से क्या कहे कि वह अपनी मां के व्यवहार से खिन्न है. ‘‘अच्छा चलो हम कैंटीन में चल कर चाय पीते हैं,’’ नीला का हाथ पकड़ कर राहुल बोला, तो वह एकटक उसे देखने लगी. ‘‘अरे, ऐसे क्या देख रही हो, पहली बार देखा है क्या मुझे? चलो न,’’ महेश ने उस का हाथ खींचा तो वह उठ कर उस के पीछे चल दी. महेश नीला का कलीग और दोस्त था. कहें तो दोस्त ज्यादा. दोनों एकदूसरे को पसंद करते हैं. दोनों एक ही बैंक में जौब करते हैं, साथ ही औफिस आतेजाते हैं रोज. ‘‘अब बोलो क्या हुआ? क्यों इतनी गुमसुम हो?’’ चाय का घूंट भरते हुए महेश ने फिर वही बात पूछी तो नीला टाल गई क्योंकि क्या बताती उसे कि उस की मां रुद्र को देखना नहीं चाहती हैं.

चाहती हैं कि उस मासूम को उस की दादी के पास छोड़ दिया जाए. नीला की उदासी थोड़ी कम हो इसलिए महेश अपने परिवार के बारे में उस से बातें करने लगा. फिर राजनीति और फिल्मों पर बातें हुईं, तो नीला को अच्छा लगा. कुछ देर और वहां बैठ कर बातें करने के बाद नीला को उस के घर छोड़ कर महेश भी अपने घर चला गया. रात में फोन कर फिर उस ने नीला का हालचाल लिया और कहा कि कल संडे है तो वे कहीं घूमने चलेंगे. नीला ने भी सोचा काम के चक्कर में वह रुद्र को समय नहीं दे पाती है, इसलिए उस ने महेश के साथ जाने के किए हां बोल दिया. वह देख रही थी रुद्र अब तक महेश से ठीक से घुलमिल नहीं पाया था. उसे देखते ही वह नीला के गोद में छिप जाता और रोने लगता. पूरे रास्ते वह अपनी मां नीला से चिपका रहा. एक बार भी महेश की गोद में नहीं गया. महेश ने भी उस से बहुत ज्यादा प्यार नहीं दिखाया. बस दूर से ही दुलारता रहा. यह बात तो तय थी कि महेश नीला से शादी करना चाहता था, पर नीला पूरी तरह से श्योर नहीं थी अभी. उस दिन अकेले में जब महेश ने नीला के सामने शादी का प्रस्ताव रखा तो वह कुछ बोल नहीं पाई.

घर आ कर वह निढाल सोफे पर पड़ गई और सोचने लगी कि क्या महेश से उस की शादी का फैसला सही होगा? इंसान कुछ भी कहे पर उस के आंखों में सचाई दिख ही जाती है और महेश की आंखों में उस ने रुद्र के लिए कहीं कोई प्यार नहीं देखा था. बस दिखावा ही करता कि वह रुद्र से प्यार करता है. शादी के बाद कहीं महेश को रुद्र अच्छा न लगने लगे और वह उसे नीला से दूर कर दे तो? सोच कर ही नीला कांप उठी. वह सम?ा नहीं पा रही थी कि कौन सा रास्ता चुने? क्या करे? सामने दीवार पर आकाश का फोटो टंगा देख उस की आंखें भीग गईं.

अपने मन में यह बोल कर वह रो पड़ी कि आकाश, तुम मुझे छोड़ कर क्यों चले गए? मां को रोते देख कर तोतली आवाज में जब रुद्र ने पूछा कि क्या हुआ? तो अपने आंसू पोंछते हुए नीला कहने लगी कि वह एक दिन उसे छोड़ कर तो नहीं चला जाएगा? ‘‘नहीं मां, मैं हमेशा आप के साथ रहूंगा. प्रौमिस,’’ बोल कर जब रुद्र ने अपनी मां को चूम लिया तो नीला को लगा आकाश उस के सामने खड़ा मुसकरा रहा है और कह रहा है कि तुम खुद को कमजोर क्यों सम?ाती हो नीला? तुम तो प्रकृति की ऐसी कृति हो, जो हर परिस्थिति संभाल लेती है और फिर मैं हूं न तुम्हारे साथ और हमेशा रहूंगा. नीला ने महसूस किया जैसे अचानक उस का पूरा घर महक उठा हो नीलाआकाश की खुशबू से.

Famous Hindi Stories : गर्भदान – बच्ची के लिए कैसे निष्ठुर हो सकती है मां

Famous Hindi Stories :  ‘‘नहीं, आरव, यह काम मुझ से नहीं होगा. प्लीज, मुझ पर दबाव मत डालो.’’ ‘‘वीनी, प्लीज समझने की कोशिश करो. इस में कोई बुराई नहीं है. आजकल यह तो आम बात है और इस छोटे से काम के बदले में हमारा पूरा जीवन आराम से गुजरेगा. अपना खुद का घर लेना सिर्फ मेरा ही नहीं, तुम्हारा भी तो सपना है न?’’

‘‘हां, सपना जरूर है पर उस के लिए…? छि…यह मुझ से नहीं होगा. मुझ से ऐसी उम्मीद न रखना.’’ ‘‘वीनी, दूसरे पहलू से देखा जाए तो यह एक नेक काम है. एक निसंतान स्त्री को औलाद का सुख देना, खुशी देना क्या अच्छा काम नहीं है?’’

‘‘आरव, मैं कोई अनपढ़, गंवार औरत नहीं हूं. मुझे ज्यादा समझाने की कोई आवश्यकता नहीं.’’ ‘‘हां वीनी, तुम कोई गंवार स्त्री नहीं हो. 21वीं सदी की पढ़ी हुई, मौडर्न स्त्री हो. अपना भलाबुरा खुद समझ सकती हो. इसीलिए तो मैं तुम से यह उम्मीद रखता हूं. आखिर उस में बुरा ही

क्या है?’’ ‘‘यह सब फालतू बहस है, आरव, मैं कभी इस बात से सहमत नहीं होने वाली हूं.’’

‘‘वीनी, तुम अच्छी तरह जानती हो. इस नौकरी में हम कभी अपना घर खरीदने की सोच भी नहीं सकते. पूरा जीवन हमें किराए के मकान में ही रहना होगा और कल जब अपने बच्चे होंगे तो उन को भी बिना पैसे हम कैसा भविष्य दे पाएंगे? यह भी सोचा है कभी?’’ ‘‘समयसमय की बात है, आरव, वक्त सबकुछ सिखा देता है.’’

‘‘लेकिन वीनी, जब रास्ता सामने है तो उस पर चलने के लिए तुम क्यों तैयार नहीं? आखिर ऐसा करने में कौन सा आसमान टूट पड़ेगा? तुम्हें मेरे बौस के साथ सोना थोड़े ही है?’’ ‘‘लेकिन, फिर भी 9 महीने तक एक पराए मर्द का बीज अपनी कोख में रखना तो पड़ेगा न? नहींनहीं, तुम ऐसा सोच भी कैसे सकते हो?’’

‘‘कभी न कभी तुम को बच्चे को 9 महीने अपनी कोख में रखना तो है ही न?’’ ‘‘यह एक अलग बात है. वह बच्चा मेरे पति का होगा. जिस के साथ मैं ने जीनेमरने की ठान रखी है. जिस के बच्चे को पालना मेरा सपना होगा, मेरा गौरव होगा.’’

‘‘यह भी तुम्हारा गौरव ही कहलाएगा. किसी को पता भी नहीं चलेगा.’’ ‘‘लेकिन मुझे तो पता है न? नहीं, आरव, मुझ से यह नहीं होगा.’’

पिछले एक हफ्ते से घर में यही एक बात हो रही थी. आरव वीनी को समझाने की कोशिश करता था. लेकिन वीनी तैयार नहीं हो रही थी. बात कुछ ऐसी थी. मैडिकल रिपोर्ट के मुताबिक आरव के बौस की पत्नी को बच्चा नहीं हो सकता था. और साहब को किसी अनाथ बच्चे को गोद लेने का विचार पसंद नहीं था. न जाने किस का बच्चा हो, कैसा हो. उसे सिर्फ अपना ही बच्चा चाहिए था. साहब ने एक बार आरव की पत्नी वीनी को देखा था. साहब को सरोगेट मदर के लिए वह एकदम योग्य लगी थी. इसीलिए उन्होंने आरव के सामने एक प्रस्ताव रखा. यों तो अस्पताल किसी साधारण औरत को तैयार करने के लिए तैयार थे पर साहब को लगा था कि उन औरतों में बीमारियां भी हो सकती हैं और वे बच्चे की गर्भ में सही देखभाल न करेंगी. प्रस्ताव के मुताबिक अगर वीनी सरोगेट मदर बन कर उन्हें बच्चा देती है तो वे आरव को एक बढि़या फ्लैट देंगे और साथ ही, उस को प्रमोशन भी मिलेगा.

बस, इसी लालच में आरव वीनी के पीछे पड़ा था और वीनी को कैसे भी कर के मनाना था. यह काम आरव पिछले एक हफ्ते से कर रहा था. लेकिन इस बात के लिए वीनी को मनाना आसान नहीं था. आरव कुछ भी कर के अपना सपना पूरा करना चाहता था. लेकिन वीनी मानने को तैयार ही नहीं थी. ‘‘वीनी, इतनी छोटी सी बात ही तो है. फिर भी तुम क्यों समझ नहीं रही हो?’’

‘‘आरव, छोटी बात तुम्हारे लिए होगी. मेरे लिए, किसी भी औरत के लिए यह छोटी बात नहीं है. पराए मर्द का बच्चा अपनी कोख में रखना, 9 महीने तक उसे झेलना, कोई आसान बात नहीं है. मातृत्व का जो आनंद उस अवस्था में स्त्री को होता है, वह इस में कहां? अपने बच्चे का सपना देखना, उस की कल्पना करना, अपने भीतर एक रोमांच का एहसास करना, जिस के बलबूते पर स्त्री प्रसूति की पीड़ा हंसतेहंसते झेल सकती है, यह सब इस में कहां संभव है? आरव, एक स्त्री की भावनाओं को आप लोग कभी नहीं समझ सकते.’’ ‘‘और मुझे कुछ समझना भी नहीं है,’’ आरव थोड़ा झुंझला गया.

‘‘फालतू में छोटी बात को इतना बड़ा स्वरूप तुम ने दे रखा है. ये सब मानसिक, दकियानूसी बातें हैं. और फिर जीवन में कुछ पाने के लिए थोड़ाबहुत खोना भी पड़ता है न? यहां तो सिर्फ तुम्हारी मानसिक भावना है, जिसे अगर तुम चाहो तो बदल भी सकती हो. बाकी सब बातें, सब विचार छोड़ दो. सिर्फ और सिर्फ अपने आने वाले सुनहरे भविष्य के बारे में सोचो. अपने घर के बारे में सोचो. यही सोचो कि कल जब हमारे खुद के बच्चे होंगे तब हम उन का पालन अच्छे से कर पाएंगे. और कुछ नहीं तो अपने बच्चे के बारे में सोचो. अपने बच्चे के लिए मां क्याक्या नहीं करती है?’’ आरव साम, दाम, दंड, भेद कोई भी तरीका छोड़ना नहीं चाहता था.

आखिर न चाहते हुए भी वीनी को पति की बात पर सहमत होना पड़ा. आरव की खुशी का ठिकाना न रहा. अब बहुत जल्द सब सपने पूरे होने वाले थे. अब शुरू हुए डाक्टर के चक्कर. रोजरोज अलग टैस्ट. आखिर 2 महीनों की मेहनत के बाद तीसरी बार में साहब के बीज को वीनी के गर्भाशय में स्थापित किए जाने में कामयाबी मिल गई. आईवीएफ के तीसरे प्रयास में आखिर सफलता मिली.

वीनी अब प्रैग्नैंट हुई. साहब और उन की पत्नी ने वीनी को धन्यवाद दिया. वीनी को डाक्टर की हर सूचना का पालन करना था. 9 महीने तक अपना ठीक से खयाल रखना था. वीनी के उदर में शिशु का विकास ठीक से हो रहा था, यह देख कर सब खुश थे. लेकिन वीनी खुश नहीं थी. रहरह कर उसे लगता था कि उस के भीतर किसी और का बीज पनप रहा है, यही विचार उस को रातदिन खाए जा रहा था. जिंदगी के पहले मातृत्व का कोई रोमांच, कोई उत्साह उस के मन में नहीं था. बस, अपना कर्तव्य समझ कर वह सब कर रही थी. डाक्टर की सभी हिदायतों का ठीक से पालन कर रही थी. बस, उस के भीतर जो अपराधभाव था उस से वह मुक्ति नहीं पा रही थी. लाख कोशिशें करने पर भी मन को वह समझा नहीं पा रही थी.

आरव पत्नी को समझाने का, खुश रखने का भरसक प्रयास करता रहता पर एक स्त्री की भावना को, उस एहसास को पूरी तरह समझ पाना पुरुष के लिए शायद संभव नहीं था.

वीनी के गर्भ में पलबढ़ रहा पहला बच्चा था, पहला अनुभव था. लेकिन अपने खुद के बच्चे की कोई कल्पना, कोई सपना कहां संभव था? बच्चा तो किसी और की अमानत था. बस, पैदा होते ही उसे किसी और को दे देना था. वीनी सपना कैसे देखती, जो अपना था ही नहीं. बस, वह तो 9 महीने पूरे होने की प्रतीक्षा करती रहती. कब उसे इस बोझ से मुक्ति मिलेगी, वीनी यही सोचती रहती. मन का असर तन पर भी होना ही था. डाक्टर नियमितरूप से सारे चैकअप कर रहे थे. कुछ ज्यादा कौंप्लीकेशंस नहीं थे, यह अच्छी बात थी. साहब और उन की पत्नी भी वीनी का अच्छे से खयाल रखते. जिस से आने वाला बच्चा स्वस्थ रहे. लेकिन भावी के गर्भ में क्या छिपा है, कौन जान सकता है. होनी के गर्भ से कब, कैसी पल का प्रसव होगा, कोई नहीं कह सकता है.

वीनी और आरव का पूरा परिवार खुश था. किसी को सचाई कहां मालूम थी? सातवें महीने में बाकायदा वीनी की गोदभराई भी हुई. जिस दिन की कोई भी स्त्री उत्साह के साथ प्रतीक्षा करती है, उस दिन भी वीनी खुश नहीं हो पा रही थी. अपने स्वजनों को वह कितना बड़ा धोखा दे रही थी. यही सोचसोच कर उस की आंखें छलक जाती थीं.

गोदभराई की रस्म बहुत अच्छे से हुई. साहब और उन की पत्नी ने उसी दिन नए फ्लैट की चाबी आरव के हाथ में थमाई. आरव की खुशी का तो पूछना ही क्या? आरव पत्नी की मनोस्थिति नहीं समझता था, ऐसा नहीं था. उस ने सोचा था, बस 2 ही महीने निकालने हैं न. फिर वह वीनी को ले कर कहीं घूमने जाएगा और वीनी धीरेधीरे सब भूल जाएगी. और फिर से वह नौर्मल हो जाएगी.

आरव फ्लैट देख कर खुशी से उछल पड़ा था. उस की कल्पना से भी ज्यादा सुंदर था यह फ्लैट. बारबार कहने पर भी वीनी फ्लैट देखने नहीं गई थी. बस, मन ही नहीं हो रहा था. उस मकान की उस ने बहुत बड़ी कीमत चुकाई थी, ऐसा उस को प्रतीत हो रहा था. बस, जैसेतैसे 2 महीने निकल जाएं और वह इन सब से मुक्त हो जाए. नियति एक स्त्री की भावनाओं के साथ यह कैसा खेल खेल रही थी, यही खयाल उस के दिमाग में आता रहता था. इसी बीच, आरव का प्रमोशन भी हो चुका था. साहब ने अपना वादा पूरी ईमानदारी से निभाया था.

लेकिन 8वां महीना शुरू होते ही वीनी का स्वास्थ्य बिगड़ा. उस को अस्पताल में भरती होना पड़ा. और वहां वीनी ने एक बच्ची को जन्म दिया. बच्ची 9 महीना पूरा होने से पहले ही आ गई थी, इसीलिए बहुत कमजोर थी. बड़ेबड़े डाक्टरों की फौज साहब ने खड़ी कर दी थी. बच्ची की स्थिति धीरेधीरे ठीक हो रही थी. अब खतरा टल गया था. अब साहब ने बच्ची मानसिकरूप से नौर्मल है या नहीं, उस का चेकअप करवाया. तभी पता चला कि बच्ची शारीरिकरूप से तो नौर्मल है लेकिन मानसिकरूप से ठीक नहीं है. उस के दिमाग के पूरी तरह से ठीक होने की कोई संभावना नहीं है.

यह सुनते ही साहब और उन की पत्नी के होश उड़ गए. वे लोग ऐसी बच्ची के लिए तैयार नहीं थे. साहब ने आरव को एक ओर बुलाया और कहा कि बच्ची का उसे जो भी करना है, कर सकता है. ऐसी बच्ची को वे स्वीकार नहीं कर सकते. अगर उस को भी ऐसी बच्ची नहीं चाहिए तो वह उसे किसी अनाथाश्रम में छोड़ आए. हां, जो फ्लैट उन्होंने उसे दिया है, वह उसी का रहेगा. वे उस फ्लैट को वापस मांगने वाले नहीं हैं.

आरव को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि उसे क्या करना चाहिए? साहब और उन की पत्नी तो अपनी बात बता कर चले गए. आरव सुन्न हो कर खड़ा ही रह गया. वीनी को जब पूरी बात का पता चला तब एक पल के लिए वह भी मौन हो गई. उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि अब वह क्या करे?

तभी नर्स आ कर बच्ची को वीनी के हाथ में थमा गई. बच्ची को भूख लगी थी. उसे फीड कराना था. बच्ची का मासूम स्पर्श वीनी के भीतर को छू गया. आखिर अपने ही शरीर का एक अभिन्न हिस्सा थी बच्ची. उसी के उदर से उस ने जन्म लिया था. यह वीनी कैसे भूल सकती थी. बाकी सबकुछ भूल कर वीनी ने बच्ची को अपनी छाती से लगा लिया. सोई हुई ममता जाग उठी. दूसरे दिन आरव ने वीनी के पास से बच्ची को लेना चाहा और कहा, ‘‘साहब, उसे अनाथाश्रम में छोड़ आएंगे और वहां उस की अच्छी देखभाल का बंदोबस्त भी करेंगे. मुझे भी यही ठीक लगता है.’’

‘‘सौरी आरव, यह मेरी बच्ची है, मैं ने इसे जन्म दिया है. यह कोई अनाथ नहीं है,’’ वीनी ने दृढ़ता से जवाब दिया. ‘‘पर वीनी…’’

‘‘परवर कुछ नहीं, आरव.’’ ‘‘पर वीनी, यह बच्ची मैंटली रिटायर्ड है. इस को हम कैसे पालेंगे?’’

‘‘जैसी भी है, मेरी है. मैं ही इस की मां हूं. अगर हमारी बच्ची ऐसी होती तो क्या हम उसे अनाथाश्रम भेज देते?’’ ‘‘लेकिन वीनी…’’

‘‘सौरी आरव, आज कोई लेकिनवेकिन नहीं. एक दिन तुम्हारी बात मैं ने स्वीकारी थी. आज तुम्हारी बारी है. यह हमारे घर का चिराग बन कर आई है. हम इस का अनादर नहीं कर सकते. जन्म से पहले ही इस ने हमें क्याक्या नहीं दिया है?’’ आरव कुछ पल पत्नी की ओर, कुछ पल बच्ची की ओर देखता रहा. फिर उस ने बच्ची को गोद में उठा लिया और प्यार करने लगा.

‘‘वीनी, हम इस का नाम क्या रखेंगे?’’ वीनी बहुत लंबे समय के बाद मुसकरा रही थी.

Short Stories in Hindi : चैटिंग – क्या हुआ जब शादी से पहले प्रज्ञा से मिलने पहुंची?

Short Stories in Hindi : प्रज्ञा आज बहुत खुश थी. उसे अमित ने एक स्पैशल ट्रीट के लिए अपने औफिस के पास वाले रैस्टोरैंट में मिलने बुलाया था. प्रज्ञा ने हलके गुलाबी रंग का सूट पहना. बालों को कर्ल किया और अमित की पसंद का परफ्यूम लगा कर उस से मिलने चल दी.

प्रज्ञा और अमित 4 सालों से दोस्त हैं. कुछ दिनों से उन के बीच का रिश्ता और भी गहरा हो चला था. प्रज्ञा कहीं न कहीं अमित में अपना जीवनसाथी देखने लगी थी. अमित भी उसे अपनी जान से ज्यादा प्यार करने लगा था, मगर कभी इस बात का इजहार नहीं किया था. आज वह इसी मकसद से प्रज्ञा से मिलने वाला था. वह अच्छी जौब करता था. प्रज्ञा ने भी अपनी फाइनैंशियल कंसलटैंसी खोल रखी थी. घर में किसी चीज की कमी नहीं थी. अमित के मांबाप ने भी इस रिश्ते के लिए स्वीकृति दे दी थी. जाहिर है अब अमित को इस बात का पूरा विश्वास था कि प्रज्ञा हमेशा के लिए उस की बन जाएगी. बस प्यार का इजहार करने की देरी थी.

सही समय पर प्रज्ञा रैस्टोरैंट पहुंची. अमित ने कोने वाली एक बड़ी टेबल बुक करा रखी थी. स्पैशल ट्रीट की पूरी तैयारी थी. अमित ने पहले प्रज्ञा को एक खूबसूरत बुके गिफ्ट किया. फिर खाने का और्डर कर दिया.

प्रज्ञा अमित की नजरों में  झांकती हुई बोली, ‘‘इतना सबकुछ क्यों. आज कोई खास दिन है या कोई खास बात?’’

‘‘खास दिन भी है और खास बात भी. तुम्हें याद है 4 साल पहले जब हम ने एमबीए की पढ़ाई शुरू की थी तो सब से पहले आज के दिन ही हमारी मुलाकात हुई थी. हम उसी दिन अच्छे दोस्त बन गए थे और वह दोस्ती आज तक चली आ रही है.

‘‘इस दोस्ती ने मु झे जिंदगी के खूबसूरत पलों से आबाद किया है और मैं चाहता हूं कि यह दोस्ती किसी खास रिश्ते में बदल जाए. मैं तुम्हारे दिल की बात पूरी तरह नहीं जानता मगर अपने पूरे दिल से तुम्हें अपना जीवनसाथी बनाने की इच्छा रखता हूं. अगर तुम्हारी हां हो तो हम आगे का प्लान बनाएं,’’ अमित ने अपने दिल की बात रखी.

प्रज्ञा उसे देखती रह गई. अमित ने सबकुछ इतनी सादगी और सहजता से कह दिया कि प्रज्ञा के पास सिवा हां कहने के कुछ बचा ही नहीं था. वह शरमाती हुई बोली, ‘‘आई लव यू. जैसा तुम चाहो. मैं तो हमेशा से तुम्हारी ही हूं. मैं तैयार हूं इस रिश्ते को एक नाम देने के लिए.’’

अमित का चेहरा खुशी से खिल उठा. उस ने प्रज्ञा का हाथ पकड़ते हुए कहा, ‘‘तो ठीक है इस महीने की 25 तारीख को हम सगाई कर लेते हैं और अगले महीने शादी.’’

‘‘ओके डन.’’

जल्द ही दोनों की सगाई का दिन आ गया. प्रज्ञा की बचपन की सहेली निभा जो मुंबई में रहती थी सगाई में नहीं आ सकी. मगर वह शादी से 2-3 दिन पहले आने वाली थी. उसे प्रज्ञा का फैसला जल्दबाजी में किया हुआ लगा.

सगाई के बाद उस ने प्रज्ञा से फोन पर बात की और पाया कि प्रज्ञा अपनी शादी को ले कर बहुत उत्साहित है. मगर निभा के मन में कुछ और ही चल रहा था.

शादी से करीब 3 दिन पहले वह प्रज्ञा के घर पहुंची. उस दिन मेहंदी की रसम चल रही थी. इसलिए निभा प्रज्ञा से ज्यादा बात नहीं कर सकी. मगर दोनों सहेलियों ने मिल कर इस रस्म को यादगार बना लिया. प्रज्ञा की दूसरी कई सहेलियां भी आई हुई थीं. सब के जाने के बाद अगले दिन निभा कुछ देर प्रज्ञा से बात करने उस के कमरे में चली आई.

उस ने प्रज्ञा से पूछा, ‘‘क्या तु झे नहीं लगता कि जीवन का इतना बड़ा फैसला तूने बहुत जल्दी में ले लिया.’’

‘‘जल्दी में कहां निभा, पिछले 4 साल से हम एकदूसरे को जानते हैं,’’ प्रज्ञा ने सहजता से जवाब दिया.

‘‘जानते हो मगर क्या सम झते भी हो?’’

‘‘हां यार काफी हद तक,’’ प्रज्ञा ने साफ स्वर में कहा.

‘‘मगर पूरी तरह नहीं न प्रज्ञा. यही गलती मैं ने भी की थी और उस की सजा आज तक भुगत रही हूं. मैं नहीं चाहती कि तुम्हारे साथ भी वैसा कुछ हो जो मेरे साथ हुआ.’’

‘‘यह क्या कह रही है निभा, तेरे साथ क्या हुआ? तू क्या मनीष के साथ खुश नहीं? कालेज में तुम दोनों भी तो एकदूसरे के काफी करीब थे?’’

‘‘हां यार हम दोनों ने 2-3 साल डेटिंग की थी. हमें लगता था कि हम एकदूसरे को अच्छी तरह सम झते हैं और एकदूसरे के लिए परफैक्ट मैच हैं. मगर शादी के बाद पता चला कि वह जिंदगी बहुत अलग होती है. शादी के बाद बहुत कुछ मैनेज करना होता है. आप इतनी आसानी से किसी के हो जाते हो मगर जब जिम्मेदारियों का बो झ सिर पर आता है तो आप का रवैया ही बदल जाता है. आज हमारे बीच रोज किसी न किसी बात को ले कर  झगड़े होते हैं. अकसर हम कईकई दिनों तक एकदूसरे से बात नहीं करते. फिर एकसाथ हमारे अंदर का लावा फूट पड़ता है. मेरी लव मैरिज आज तलाक के कगार पर पहुंच गई है. इसलिए तु झे सावधान रहने को कह रही हूं,’’ निभा ने परेशान स्वर में कहा.

‘‘मगर तुम्हारे  झगड़ों की वजह क्या है? क्या सासननद की दखलंदाजी या

मनीष शराब पीता है या फिर कोई और है तुम दोनों के बीच?’’ प्रज्ञा ने पूछा.

‘‘हमारे बीच न सास है, न दारू और न लड़की. हमारे बीच हमारा ईगो है. हम छोटीछोटी बातों पर लड़ते हैं. शादी के बाद ऐक्सपैक्टेशंस बहुत बढ़ जाती हैं. वे पूरी न हों तो दिल दुखता है और यह अंजाम होता है. इसलिए शादी से पहले ही छोटीछोटी बातें भी डिस्कस कर लेनी चाहिए ताकि एकदूसरे का असली स्वभाव पता चल सके और बाद में कोई लफड़ा न हो,’’ निभा ने सम झाया.

‘‘तो फिर अब मु झे क्या करना चाहिए?’’ प्रज्ञा ने पूछा.

‘‘मेरे खयाल से तुम अभी इसी वक्त इस दुविधा से निकल सकती हो. ऐसा करो तुम अपने हस्बैंड से किस तरह की ऐक्सपैक्टेशन रखती हो, लाइफ में क्या चाहती हो यह सब अभी डिस्कस करो. अपने मन की बातें करो ताकि शादी के बाद पछताना न पड़े.’’

‘‘ओके. मैं करती हूं बात,’’ प्रज्ञा ने फोन निकाला और अमित को मैसेज किया, ‘‘यार क्या कर रहे हो. मु झे कुछ जरूरी बातें करनी थीं तुम से. आर यू फ्री?’’

‘‘आप के लिए तो यह बंदा हमेशा फ्री है मेरे ख्वाबों की मलिका.’’

‘‘अब इतना भी मस्का मत लगाओ.’’

‘‘ओके बताओ क्या कह रही थीं?’’

‘‘तुम्हें याद है मैं ने कल तुम्हें अपनी सहेली से मिलवाया था जो मुंबई में रहती है.’’

‘‘हां याद है मु झे. तुम निभा की बात कर रही हो न जिस का जिक्र पहले भी तुम कभीकभी करती रहती थीं.’’

‘‘हां यार कल जब वह आई तो मु झे उस की जिंदगी के एक बड़े सच के बारे में पता चला. जानते हो उस का अपने पति से  झगड़ा चल रहे है और वह कभी भी तलाक ले सकती है.’’

‘‘मगर क्यों? उन की आपस में क्यों नहीं बनती?’’

‘‘क्योंकि वह निभा को समय नहीं देता है. उस की ऐक्सपैक्टेशंस को पूरा नहीं करता है. दोनों छोटीछोटी बातों पर  झगड़ते हैं. अगर निभा किसी बात पर रूठ जाती है तो वह अपने ईगो के कारण कई कई दिनों तक उस से बात नहीं करता. उस की परवाह नहीं करता. तुम तो ऐसा नहीं करोगे न अमित?’’ प्रज्ञा ने सवाल किया.

‘‘नहीं यार, मैं ऐसा कैसे कर सकता हूं. अगर गलती मेरी होगी तो तुम्हें जरूर मनाऊंगा,’’ अमित ने आश्वस्त किया.

‘‘और अगर तुम्हारे अनुसार गलती मेरी होगी तो क्या तुम अपने ईगो को ले कर बैठे रहोगे? मु झ से बात नहीं करोगे? मु झे मनाओगे नहीं?’’

‘‘ओफ्कौर्स मैं तुम्हें मनाऊंगा. हमारे बीच एक दिन भी खामोशी नहीं रह सकती. भले ही कितना भी  झगड़ा हो जाए पर मैं तुम्हारी परवाह करना कभी नहीं छोड़ सकता क्योंकि मैं तुम से सच्चा प्यार करता हूं,’’ अमित ने अपना प्यार दिखाया.

‘‘सो स्वीट वैसे तुम्हारा असली रूप तो शादी के बाद ही दिखेगा,’’ मुसकराते हुए प्रज्ञा ने मैसेज किया.

‘‘ऐसा कुछ नहीं है. लड़कियों का असली रूप भी शादी के बाद ही दिखता है. तुम्हें पता है नीरज की पत्नी क्या करती है? हर दूसरे दिन मायके चली जाती है. तब नीरज को खुद ही खाना बनाना पड़ता है.’’

‘‘तो क्या हो गया. क्या तुम शादी के बाद खाना बनाने में मेरी हैल्प नहीं करोगे?’’ प्रज्ञा ने पूछा.

‘‘हैल्प जरूर करूंगा मगर कई दफा इंसान बिजी होता है तो हैल्प नहीं कर पाता,’’ अमित ने अपनी बात रखी.

‘‘वह तो ठीक है मगर यह बताओ कि तुम शादी के बाद इतने व्यस्त तो नहीं हो जाओगे कि वीकैंड पर भी मु झे समय नहीं दोगे या मु झे शौपिंग के लिए नहीं ले जाओगे?’’

‘‘देखो मैं तुम्हें वीकैंड पर घुमाने जरूर ले जाऊंगा और शौपिंग भी कराऊंगा, मगर हो सकता है कभी मेरे पास समय नहीं हो तब तुम मुंह फुला कर तो नहीं बैठ जाओगी? मेरा साथ तो दोगी न.’’

‘‘हां बिलकुल. मगर तुम कभी मु झ पर चिल्लाओगे तो नहीं, हमेशा प्यार से बात करोगे न?’’

‘‘बिलकुल यार मैं प्यार से ही बात करता हूं. अच्छा याद है मैं ने तुम्हें एक बार अपनी बूआजी की कहानी सुनाई थी न? उन्होंने फूफाजी को 2-3 बार किसी महिला से बातें करते देख लिया था और बस फुजूल का शक कर के अपनी जिंदगी खराब कर ली. आज उम्र के इस मोड़ पर दोनों अकेले जिंदगी जी रहे हैं.’’

‘‘तुम एक क्या कई लड़कियों से बात कर लो मु झे फर्क नहीं पड़ने वाला. बस मेरा बर्थडे और ऐनिवर्सरी हमेशा याद रखना.’’

‘‘वह सब तो मु झे याद रहता ही है. अच्छा एक बात और तुम्हें मेरी मां और बहन को अपनी मां और बहन सम झना होगा,’’ अमित ने मन की बात कही.

‘‘ठीक है लेकिन तुम्हें भी मेरे मायके वालों का पूरा सम्मान करना होगा,’’ प्रज्ञा ने भी शर्त रख दी.

‘‘औफकोर्स यार वैसे भी मु झे तुम्हारी बहन बहुत पसंद है,’’ अमित ने चुहलबाजी की.

‘‘देखा अभी से शुरू हो गए. तुम कहो तो अपनी बहन से ही तुम्हारी शादी करा दूं,’’ प्रज्ञा न चिढ़ कर लिखा.

‘‘क्या यार मैं तो उसे अपनी छोटी बहन जैसा मानता हूं,’’ अमित ने स्पष्ट किया, ‘‘यही नहीं मैं तो तुम्हारी मौम को अपना सा और डैड को अपने डैड जैसा मानता हूं.’’

‘‘मैं भी मजाक ही कर रही थी और मेरे मौमडैड के बारे में तुम से सुन कर खुशी

हुई. उन्होंने तो अब बहुत सी बातों में मेरा सुनना भी बंद कर दिया है और कहते हैं कि अमित से पूछ कर करेंगे,’’ प्रज्ञा ने भी बात साफ की, ‘‘मगर चिंता न करो मैं ने अपनी और तुम्हारी मां से तुम्हारी शिकायत कर दी है कि मेरी अब मेरे घर में ही कोई पूछ नहीं रही.’’

अमित बोला, ‘‘तो मेरी मां ने क्या कहा?’’

‘‘कहना क्या था, यही कि तुम्हारी अब तुम्हारे घर में कौन सी चलती है. इसीलिए तो हम दोनों कल तुम्हारे लिए तुम्हारे बिना कपड़े खरीदने जा रहे हैं. कह दूं. खबरदार हमारी पसंद पर कोई मुंह बनाया,’’ प्रज्ञा ने खिलखिलाते हुए कहा.

‘हुजूर मेरी जुर्रत कि मैं कुछ कहूं. बस मेरे दोस्तों से यह बात सीक्रेट रखना वरना मजाक उड़ाएंगे.  वैसे मैं ने सुना है लड़कियां बहुत सी बातें सीक्रेट रखती हैं. क्या तुम भी मु झ से कुछ राज छिपा कर रखोगी?’’

‘‘नहीं. हम दोनों के बीच कोई राज नहीं रहना चाहिए. हमारी जिंदगी एकदूसरे के लिए खुली किताब होगी. पर मेरी तुम्हारी मां और पापा से जो बातें होंगी वे सीक्रेट रहेंगी,’’ प्रज्ञा हंसते हुए बोली.

‘‘ओके डन,’’ अमित ने हार्ट की स्माइली भेजी तो प्रज्ञा ने भी प्यारी सी स्माइली भेजते हुए चैटिंग बंद की.

जब प्रज्ञा निभा की तरफ मुखातिब हुई तो वह हंसती हुई बोली, ‘‘वैरी नाइस. यह चैटिंग बहुत काम आएगी. शादी के बाद जब  झगड़ा हो तो तुम दोनों अपनी यह चैटिंग पढ़ लेना. जिंदगी प्यार से गुजरेगी. अगर तुम दोनों से यह चैट खो भी जाए  तो भी तुम्हें याद रहेगा कि क्या करना है क्या नहीं.’’

प्रज्ञा ने मुसकरा कर अपनी दोस्त को गले से लगा लिया. उस की आंखों में सुनहरी जिंदगी के ख्वाब सज रहे थे.

जब आप के कोई अपने बड़ी बीमारी से जूझ रहे हों, तो क्या करें क्या नहीं?

जिंदगी में कई बार ऐसे पल आ जाते हैं कि हमारा दिमाग काम करना बंद कर देता है. सोचनेसमझने की शक्ति गायब होने लगती है. ऐसा लगता है कि अचानक ही हम आसमान से जमीन पर आ गिरे. मन में खयाल आने लगता है कि सबकुछ तो ठीकठाक चल रहा था अचानक यह कैसे हो गया. इतनी बड़ी बीमारी हमारे अपने को कैसे हो सकती है जिस का नाम तक अंगरेजी में होने की वजह से हमें ठीक से लेना तक नहीं आता, वह हमारे सब से प्यारे इंसान को कैसे हो सकती है जबकि वह अनुशासित जिंदगी जी रहा है, घर का खाना और लगातार व्यायाम के बावजूद भला कैंसर या इस से भी भयानक बीमारी कैसे हो सकती है?

सब से पहले तो इस बात का विश्वास ही नहीं होता और जब होता है तो पता चलता है कि हमें मरीज को बड़े अस्पताल में भर्ती कराना है क्योंकि उस भयानक बीमारी का इलाज महंगे अस्पताल और बड़े नामी डाक्टरों द्वारा ही संभव है.

ऐसे में जब कोई दूसरा रास्ता नहीं बचता तो बड़े हौस्पिटल में जहां बड़े डाक्टर और सारी सहूलियत मौजूद हैं वहां एडमिट करना ही एक हल होता है.

ऐसे में हमारा मकसद एक ही होता है कि किसी भी तरह हमें बीमार व्यक्ति की जान बचानी है फिर चाहे उस के लिए कुछ भी करना पड़े.

आज के समय में ज्यादातर लोग ऐसी मुसीबत का सामना करने के लिए पहले से मैडिक्लेम कर के रखते हैं ताकि बुरे वक्त में वे पैसे काम आ सकें. लेकिन कई बार बीमारी इतनी बड़ी हो जाती है कि मैडिक्लेम पौलिसी की छोटी रकम ज्यादा काम नहीं आती और बड़े अस्पताल में घुसते ही पैसों और पेमैंट किए जाने वाले बिल का मीटर जो चालू होता है वह लाखों तक पहुंच जाता है.

ऐसे में जिस के पास इलाज के लिए पैसे हैं उन को तो ज्यादा तकलीफ नहीं होती और सिर्फ मरीज का ही ध्यान रखना होता है. मगर जिस के पास पैसे नहीं होते उन के लिए मरीज की तकलीफ के अलावा दूसरा सब से बड़ा टैंशन यह होता है कि इलाज के लिए पैसों का बंदोबस्त कैसे और कहां से करें क्योंकि इलाज के दौरान तेजी से हो रहे खर्चे पर रोक लगाना संभव नहीं होता। डाक्टर जब तक और जैसे बोलता है मरीज के घर वालों को वह सबकुछ फौलो करना पड़ता है क्योंकि उन के पास दूसरा कोई चारा नहीं होता.

ऐसे में बहुत जरूरी है कि आप पैनिक न हों और कोई भी निर्णय लेने से पहले सैकंड ओपिनियन दूसरे डाक्टर से जरूर लें और मरीज को अस्पताल में एडमिट करते वक्त कुछ बातों का खासतौर पर ध्यान रखें. पेश हैं, इसी सिलसिले पर एक नजर :

आज के समय में हालात कुछ ऐसे हैं कि किसी भी उम्र के इंसान को कुछ भी होने की संभावना रहती है. इस के पीछे खास वजह पिछले कुछ सालों तक चली आ रही भयानक बीमारी कोविड का बुरा प्रभाव है. इस बीमारी के आने के बाद कई लोगों को जान से हाथ धोना पड़ा और कोरोना की बीमारी जाने के बाद आज भी उस के दुष्परिणाम अलगअलग रूप में सामने आ रहे हैं। ऐसे नाजुक हालत में अपना ध्यान रखने के अलावा और स्वास्थ्य पर, खानपान पर ध्यान रखने के अलावा हमारे पास दूसरा कोई रास्ता नहीं बचता.

अगर इस के बाद भी अचानक कुछ हो जाता है और अस्पताल में भर्ती करने की नौबत आ जाती है तो खास बातों का ध्यान रखें जिस में आप का इलाज भी हो जाए, पैसे भी कम खर्च हों और आप ठीक हो कर घर वापस आ जाएं.

अस्पताल में भर्ती होने से ले कर इलाज, दवाई और टेस्ट करने तक इन बातों का ध्यान रखें

सब से पहले तो किसी भी अस्पताल में भर्ती करने से पहले यह जानकारी जरूर लें कि वह अस्पताल जानबूझ कर बिल बढ़ाने वाला षड्यंत्र तो नहीं रच रहा? मरीज उस अस्पताल के लिए महज एक कस्टमर तो नहीं है जिसे लूटने का प्रोग्राम पहले से कुछ अस्पतालों में तय होता है?

ऐसे में बहुत जरूरी है कि जहां आप अपने मरीज को एडमिट करें वह अस्पताल वही खर्चे प्राप्त करे जो एक रैपुटेड अस्पताल में जरूरी होता है. जैसे, मरीज की देखभाल के लिए नर्स, डाक्टर और वार्डबौय का हर दिन का खर्चा, मरीज की देखभाल के लिए महंगी सहूलियतें का खर्चा जैसे महंगी मशीन, आईसीयू, वैंटिलेटर, महंगी दवाइयां आदि. क्योंकि यह सब ऐसे खर्चे हैं जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. लेकिन यही खर्चे जरूरी और लिमिट में हैं तो उसे अदा करना खलता नहीं है, क्योंकि यह सब मरीज के भले के लिए है. लेकिन वहीं कई बार कुछ अस्पतालों में मरीजों को लूटने का गोरखधंधा भी जोरों पर चलता है जिस में मरीज तो ठीक हो जाता है लेकिन उस के इलाज का बिल इतना ज्यादा होता है कि उसे भरने में खुद का दम निकल जाता है.

लिहाजा, जब आप अपने मरीज को इलाज के लिए भर्ती करें तो मैडिकल उपकरण खरीदने से ले कर टेस्ट और दवा खरीदने तक हर तरह की सावधानी बरतें। सही दवा सही दाम में मिल सकें, जल्दबाजी में और बिना सोचेसमझे खर्चा कर के न सिर्फ आप पैसों की बरबादी करते हैं बल्कि मरीज की सेहत के साथ भी रिस्क लेते हैं.

दवाइयां और इंजैक्शन लेने के लिए अस्पताल के मैडिकल स्टोर का इस्तेमाल न करें क्योंकि वहां पर डाक्टर अस्पताल की दवाइयां और इंजैक्शन के लिए मैडिकल स्टोर वाले के साथ परसेंटेज बंधा रहता है जिस की वजह से कई बार डाक्टर ऐसी दवाइयां भी खरीदने के लिए जोड़ देते हैं जिस की जरूरत नहीं होती क्योंकि डाक्टर के साथ मैडिकल का कमीशन फिक्स होता है। इसलिए दवाओं की बिक्री भी ज्यादा करवाई जाती है. लिहाजा, अस्पताल के मैडिकल स्टोर के बजाय बाहर दर्जनों सरकारी लैब और मैडिकल स्टोर होते हैं, जहां से दवाएं ली जा सकती हैं जिस में कंसेशन भी मिल जाता है और बिना वजह की दवाओं से बचत भी हो जाती है.

गौरतलब है कि कुछ अस्पतालों में फिक्स कंपनियों की दवाइयां मरीज के लिए लिखी जाती हैं जिन पर डाक्टर का कमीशन फिक्स होता है. महंगे अस्पताल में टेस्ट और मैडिकल जांच के लाखों रुपए लगते हैं जैसे बड़े अस्पतालों में ब्लड, यूरीन, एक्सरे, अल्ट्रासाउंड, मलेरिया, शुगर, हेपेटाइटिस, कैंसर सहित बीमारियों की जांच पर लाखों का खर्चा हो जाता है जो सरकारी अस्पतालों में आधे दाम में हो जाते हैं. बीमारियां उतनी बड़ी नहीं होती हैं जितना उस का इलाज बड़ा बताया जाता है। ऐसे में अक्लमंदी से काम लेकर टेस्ट, एक्सरे आदि प्राइवेट या सरकारी अस्पताल में कर के पैसे बचाएं जा सकते हैं.

सरकार भी अब डाक्टर पर महंगी दवाई बेचने को ले कर नकेल कसने के लिए तैयारी कर रही है, जिस के तहत राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग ऐसे डाक्टरों पर निगरानी रखने की तैयारी कर रही है, जो इलाज के नाम पर मरीज से मनचाहे पैसे वसूलते हैं.

नए प्रावधान में डाक्टर वही दवाई या मैडिकल उपकरण अपने मरीज को दे सकते हैं जिस का इलाज वह खुद कर रहे हैं.

लिहाजा, अस्पताल में भर्ती करते वक्त मैडिकल उपकरण और दवाइयां खरीदने को ले कर पूरी सावधानी बरतें. इस के अलावा जैनेरिक दवाइयां भी चुनें, ब्रैंडेड दवा की तुलना में जैनेरिक दवाइयां अकसर सस्ती होती हैं और उन की गुणवत्ता भी समान होती है.

इस के अलावा नियमित हैल्थ जांच करने की आदत डालें, क्योंकि उस से अगर कोई बीमारी है तो उस का पता जल्दी चल जाता है और उस का जल्दी इलाज होने के वजह से बाद में बड़ी बीमारी होने से बच जाती है और इस से स्वास्थ्य और पैसे दोनों की बचत होती है.

इस के अलावा मैडिकल बिलों का औडिट भी करवा सकते हैं जिस में बिलिंग के दौरान हुई त्रुटियों का पता चलता है और उस से बचा जा सकता है .

मरीज के लिए अत्यावश्यक देखभाल केंद्रों का उपयोग करें

आपातकालीन स्थिति में अत्यावश्यक देखभाल केंद्र अकसर सामान्य अस्पतालों की तुलना में कम महंगे होते हैं. इन सब सावधानियों के अलावा सब से जरूरी है कि स्वस्थ जीवनशैली अपनाना, सही खानपान, अनुशासन और पौजिटिव सोच के साथ जिंदगी गुजारना, जो आने वाली बीमारी से बचने में अहम भूमिका अदा करता है.

 Alia Bhatt और खुशी कपूर को रोना है बहुत पसंद, ये ऐक्ट्रैसेस आंसू बहाने का नहीं छोड़ती का एक मौका…

 Alia Bhatt : आलिया भट्ट और खुशी कपूर जो कि फैमिली बैकग्राउंड से आई हैं, दोनों ने ही अपने बचपन से लेकर जवानी तक ऐसा बहुत कुछ झेला और देखा है, जो बचपन में या कम उम्र में शायद देखना सही नहीं रहता. शायद इसलिए यह दोनों ही बड़ी होकर हीरोइन तो बन गई लेकिन उनका दिल बच्चों जैसा ही है जो इमोशनल हुए बिना नहीं रह पाता, ऐसे में कहना गलत ना होगा यह दोनों ही हीरोइन भले ही बाहर से मजबूत दिखाई देती हैं. लेकिन अंदर से बहुत टूटी हुई है. शायद इसी वजह से आलिया और खुशी दोनों में एक कौमन बात है कि यह दोनों ही रोने में एक्सपर्ट है.

खुशी कपूर के अनुसार वह बिना ग्लिसरिन के घंटों रो सकती है. वही आलिया भट्ट के अनुसार प्रोफैशनली हो नहीं पर्सनली भी वह किसी भी वक्त रो सकती हैं. खुशी कपूर जहां कौमेडी या रोमांटिक फिल्मों के बजाय इमोशनल और रोने धोने वाली फिल्में करने की इच्छा रखती है.

कोई आलिया भट्ट एक बेटी की मां होने के बाद अब इमोशन पर काबू पाने की कोशिश कर रही है, क्योंकि बारबार रोने से इमोशनली डिस्टर्ब हो रही है और मानसिक तौर पर बीमार. इसलिए वह अपने रोने की आदत को बेटी होने के बाद बदलने की कोशिश कर रही है. शायद दोनों के मन में एक ही बात है एक इमोशन है, यह आंसू मेरे दिल की जुबान है, आंसुओं के जरिए दिल में छुपा दर्द छलक ही जाता है.

Pudina Rice Recipe : बच्चों को खिलाएं पुदीना पुलाव, ये रही आसान रेसिपी

Pudina Rice Recipe : अगर आप बच्चों के लिए हेल्दी और टेस्टी डिश खिलाना चाहती हैं तो पुदीना पुलाव की ये रेसिपी ट्राय करे. पुदीना पुलाव आसानी से बनने वाली रेसिपी हैं, जिसे आप लंच हो या डिनर में अपनी फैमिली और बच्चों को खिला सकते हैं.

हमें चाहिए

– 60 ग्राम कटी गाजर

– 80 ग्राम बींस कटी

– 40 ग्राम फ्रोजन मटर

– 30 ग्राम ब्लैंचड फूलगोभी

– 5 ग्राम कटा हुआ पुदीना

– 10 ग्राम अदरक कद्दूकस किया

– 10 ग्राम हरीमिर्च कटी

– 5 ग्राम जीरा

– 50 ग्राम देशी घी

– 20 ग्राम रिच क्रीम

– 5 ग्राम हींग

– 30 ग्राम ब्राउन ग्रेवी

– थोड़ा सी धनियापत्ती कटी

– 15 ग्राम प्याज भुना

– 300 ग्राम बिरयानी राइस

– 60 मिलीलीटर बिरयानी  झोल

– थोड़ा सा केवरा वाटर.

बनाने का तरीका

पैन में  झोल डाल कर उस में उबली सब्जियों को डाल कर उस में सारे सूखे मसालों के साथ पुदीना, अदरक, प्याज, केवरा वाटर और देशी घी ऐड करें. फिर इस मिक्स्चर पर पके बिरयानी राइस डाल कर 2-3 मिनट तक ढक कर पकाएं और फिर प्याज, पुदीना और अदरक के टुकड़ों से सजा कर रायते के साथ गरमगरम सर्व करें.

Govinda की बेइज्जती करने वाले बड़े निर्माता को जब धर्मेंद्र ने डांट कर दौड़ाया….

Govinda : एक इंसान चाहे कितना ही कामयाब हो जाए लेकिन वह उस इंसान को कभी नहीं भूलता जिसकी उसने बुरे वक्त में मदद की हो, ऐसा ही कुछ गोविंदा के साथ भी हुआ था , जो वह आज तक नहीं भूल पाए हैं. उस दौरान उनकी मदद करने वाले वह शख्स कोई और नहीं बल्कि धर्मेंद्र अर्थात धरम पाजी थे. हाल ही में एक इंटरव्यू के दौरान गोविंदा ने अपने संघर्ष भरे दिनों को याद करते हुए एक वाकया बताया, जिसके अनुसार धर्मेंद्र गोविंदा के लिए उसे दौरान किसी फरिश्ते से कम नहीं थे.

गोविंदा के अनुसार बात उन दिनों की है जब मैं गरीबी से उठकर फिल्मों में काम करने आया था और एक बड़े प्रोड्यूसर की फिल्म कर रहा था क्योंकि उस दौरान मैं स्ट्रगलर था इसलिए हर कोई मुझ पर जोर आजमाने की कोशिश करता रहता था. उस वक्त मैं ज्यादा कुछ बोलता भी नहीं था क्योंकि अपनी गरज थी, ईसी के चलते एक बड़ा निर्माता उस दौरान जिसकी मैं फिल्म कर रहा था, वह बारबार आकर मेरी बेइज्जती कर रहा था, यानी कि उस दिन वह निर्माता मेरी बेइज्जती करने का एक मौका भी नहीं छोड़ रहा था क्योंकि उसे पता था कि मैं नया हूं इसलिए क्या ही बोल पाऊंगा.

क्योंकि वह बड़ा निर्माता था इसलिए मैं चुपचाप सब कुछ सुन रहा था, तभी दूर से एक आवाज आई, ए ए…. गोविंद को कुछ बोला तो तेरी जबान खींच लूंगा, अगर तूने गोविंदा की तरफ देखा भी तो तेरी आंखे निकाल लूंगा ,यह आवाज इतनी बुलंद और भारी भरकम थी कि वह निर्माता डर के मारे वहां से भाग खड़ा हुआ.

बाद में जब मैंने उस आवाज वाले इंसान को देखा तो देखता ही रह गया क्योंकि वह कोई और नहीं धर्मेंद्र पाजी थे. जिनका मैं बचपन से फैन हूं. धर्म पाजी बाद में मेरे पास आए और बोले बेटा तू चिंता मत कर मैं तेरे साथ हूँ , आज जो तू झेल रहा है. वह मैं भी अपनी शुरुआती दिनों में झेल चुका हूं .

उस दौरान धरम पाजी की सहानुभूति से बड़ी बातें मेरे दिल को छू गई और मेरी आंखों से आंसू आने लगे . उनका वह प्यार भरा अंदाज मैं आज तक नहीं भूल पाया हूं. धरम पाजी बहुत प्यारे हैं , इसीलिए सब उनको बहुत प्यार करते हैं.

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