Famous Hindi Stories : जोड़ने की टूटन

Famous Hindi Stories : ‘‘आज पप्पू लौटे तो उस से आरक्षण के लिए कहूं.’’

‘‘आप को यहां कोई तकलीफ है, अम्मांजी?’’ पत्रिका पलटते हुए प्रमिला ने सिर उठा कर पूछा.

‘‘कैसी बात करती हो. अपने घर में भी कोई तकलीफ महसूस करता है, पप्पी.’’

अपनी 3 बहुओं का बड़ी, मझली और छोटी नामकरण करने के बाद अम्मांजी ने अपने सब से छोटे पप्पू की बहू का नाम पप्पी रख लिया था.

‘‘अभी आप को आए कौन से ज्यादा दिन हुए हैं, जो जाने की सोचने लगीं. अभी तो आप कहीं घूमीं भी नहीं. हम तो यही सोचते रहे कि बरसात थमे तो श्रीनगर, पहलगाम चलें.’’

‘‘घूमना तो फिर भी होता रहेगा लेकिन अभी मेरा इलाहाबाद पहुंचना जरूरी है.’’

‘‘छोटे भाई साहब ने तो लिखा है कि अस्पताल में इंतजाम पक्का हो गया है, फिर आप जा कर क्या करेंगी?’’

‘‘तुम समझती नहीं. अस्पताल में तो बिना रोग के भी दाखिल होना पड़े तो बाकी लोगों की दौड़ ही दौड़ हो जाती है. और फिर यह तो अंधी खेती है. ठीक से निबट जाए तो कुछ भी नहीं, वैसे होने को सौ बवाल…’’

‘‘सब ठीक ही होगा. आप बहुत ऊंचनीच सोचती रहती हैं.’’

‘‘सोचना तो सभी कुछ पड़ता है. दशहरा कौन सा दूर है. फिर 20-25 दिन पहले तो पहुंचना ही चाहिए.’’

‘‘सो तो ठीक है, लेकिन यहां अकेले मेरा मन घबराएगा. यह तो सुबह के गए शाम को भी देर से ही लौटते हैं,’’ प्रमिला के चेहरे पर उद्विग्नता छा गई.

‘‘बुरा क्या मुझे नहीं लगता? लेकिन सिर्फ अपने को देख कर दुनिया कहां चलती है, बेटी? मन लगाने के सौ तरीके हैं. तुम किताब भी तो इसीलिए पढ़ती हो.’’

दोपहर को पीछे के बरामदे में बैठी प्रमिला और उस की सास में बातें हो रही थीं. प्रमिला का पति प्रदीप सेना में अफसर था और 2 साल बाद उसे जम्मू में ऐसी नियुक्ति मिली थी जहां वह परिवार को अपने साथ रख सकता था.

प्रमिला के विवाह को अभी डेढ़ वर्ष ही हुआ था और सब से छोटी बहू होने के कारण वह अम्मांजी की विशेष लाड़ली भी थी. अम्मांजी के रहने से उसे घर की चिंता भी नहीं रहती थी. उलटे वह शाम होते ही उसे टोकने लगतीं, ‘‘पप्पू आता होगा. तुम तैयार हो जाओ. कुछ देर को दोनों घूम आना.’’

प्रमिला को बड़ा आश्चर्य हुआ जब शाम को लौटने पर प्रदीप ने अम्मांजी की सीट आरक्षण की बात सुन कर जरा सा भी विरोध नहीं किया और तपाक से कह दिया, ‘‘कल जिस दिन का भी आरक्षण हो सकेगा, उसी दिन का करा दूंगा.’’

रात में पतिपत्नी में चर्चा चलने पर प्रदीप ने प्रमिला से कहा, ‘‘तुम नई हो, अम्मां को नहीं जानतीं. अम्मां की प्राथमिकताएं बड़ी स्पष्ट रहती हैं. जहां वह अपनी जरूरत समझती हैं वहां वह जरूर पहुंचती हैं. आराम और तकलीफ उन के लिए निहायत छोटी बातें हैं. बाबूजी की मृत्यु के बाद अम्मां ने अपने बूते पर ही सारे परिवार को बांध रखा है.

‘‘बड़े भैया पुलिस में हैं. उन को होली पर भी छुट्टी नहीं मिल सकती. इसलिए होली पर सब भाइयों को बड़े भैया के पास पहुंचना पड़ता है, चाहे एक ही दिन को सही. तुम्हारा नया घर व्यवस्थित होना था इसलिए तुम्हारे पास आ गईं. अब छोटी भाभी के पास उन का रहना जरूरी है तो इलाहाबाद जा रही हैं.

‘‘तुम ने शायद ध्यान दिया हो कि अभी 3 महीने पहले बड़े भैया भ्रमण के लिए दक्षिण गए थे. किराया तो खैर सरकार ने दे दिया, लेकिन होटलों में ठहरने आदि में खर्चा अधिक हो गया और लाख चाहने पर भी किसी के लिए वहां की कोई चीज नहीं ला सके.

‘‘लेकिन बड़ी भाभी, दीदी के लिए कांजीवरम की एक साड़ी फिर भी खरीद ही लाईं. पता है क्यों? दीदी की जब शादी हुई थी तब तंगी की हालत थी. हम सब लोग पढ़ रहे थे, इसलिए उन की शादी अच्छे घर में नहीं हो सकी. जीजाजी इतनी लंबी नौकरी के बाद अभी तक बड़े बाबू ही तो हैं.

‘‘हम सभी को यह लगता है कि दीदी के साथ न्याय नहीं हुआ. आज बाबूजी के आशीर्वाद से हम सभी भाई अच्छेअच्छे पदों पर हैं, इसलिए उस का थोड़ाबहुत प्रतिकार करना चाहते हैं. होली, दीवाली, भाईदूज और रक्षाबंधन की साल में 3 साडि़यां तो हर भाई दीदी को देता ही है. फिर उन के बच्चों के लिए भी बराबर कुछ न कुछ दिया ही जाता है.

‘‘कोई भी कहीं बाहर से कोई चीज लाए तो पहले दीदी के लिए सब से बढि़या चीज लाता है. भाइयों से कुछ चूक होने भी लगे तो भाभियां पहले आगे बढ़ जाती हैं.

‘‘बड़ी भाभी तो बिलकुल अम्मांजी का प्रतिरूप हैं. मझली भाभी शुरू में जरूर कुछ कसमसाती थीं, लेकिन जब मझले भैया से कोई प्रोत्साहन नहीं मिला तो वह भी परिवार की लीक पर चलने लगीं. दीदी तो पचासों बार कह चुकी हैं कि शादी हो जाने के बाद भी उन्हें लगता ही नहीं कि वह इस घर से कट कर किसी दूसरे घर की हो गई हैं. अपने लिए साडि़यां तो उन्होंने कभी खरीदी ही नहीं. साल में एकडेढ़ दरजन साडि़यां तो उन्हें मिल ही जाती हैं.’’

‘‘दीदी हैं भी तो बड़े स्नेही स्वभाव की, बच्चों पर तो जान दिए फिरती हैं,’’ प्रमिला ने पति की बात में आगे जोड़ा.

‘‘तभी तो बच्चे बीमार पड़ते ही बूआजी की रट लगाते हैं. दीदी को कहीं सपने में भी किसी की तकलीफ की भनक मिल जाए तो दौड़ी चली आएंगी. इतनी दूरदूर रह कर भी कभी लगता ही नहीं कि हम लोग अलग हैं. अम्मां जिसे जहां जाने को कह दें वह वहीं दौड़ जाएगा, जरा भी आनाकानी नहीं करेगा.

‘‘एक बार मझले भैया को मोतीझरा बुखार हुआ था. अम्मां उन के पास थीं. तभी छोटे भैया को ट्रेनिंग पर जाना पड़ा. छोटी भाभी को धवल की पढ़ाई की वजह से रुकना पड़ा. मकान बहुत सुरक्षित नहीं था और छोटी भाभी हैं भी कुछ डरपोक स्वभाव की.

‘‘अम्मां वहां जा नहीं सकती थीं. उन्होंने बड़ी भाभी को लिखा कि वह छोटी भाभी के पास जा कर रहें, क्योंकि उन के यहां तो पुलिस का पहरेदार रहता ही है और बड़े बच्चों को बड़े भैया पर छोड़ देने में कोई दिक्कत नहीं होगी, अत: बड़ी भाभी न चाहते हुए भी छोटी भाभी के पास चली गईं.’’

प्रदीप अपनी रौ में न जाने क्याक्या कहता चला जा रहा था कि प्रमिला ने उनींदेपन से करवट बदलते हुए कहा, ‘‘अब बहुत हो लिया परिवार पुराण. आखिर सोना है कि नहीं?’’

अम्मांजी के इलाहाबाद जाने के 10 दिन बाद ही प्रदीप को तार मिला कि छोटी भाभी ने एक कन्या को जन्म दिया है और प्रसव में कोई दिक्कत भी नहीं हुई. इस खबर से दोनों ही निश्चिंत तो हुए, परंतु प्रमिला को नवजात शिशु के लिए नए डिजाइन के छोटेछोटे कपड़े सीने का शौक सवार हो गया. वह अनेक रंगबिरंगी पुस्तिकाएं और पत्रिकाएं उलटनेपलटने लगी.

अभी इलाहाबाद जाने का कार्यक्रम बना भी नहीं था कि झांसी से सूचना मिली कि मझले भैया प्रफुल्ल के लड़के मधुप को स्कूटर दुर्घटना में गंभीर चोटें आई हैं. प्रदीप और प्रमिला दोनों ही उसे देखने झांसी पहुंचे तो वहां अम्मांजी सदा की भांति सेवा में तत्पर थीं. देखते ही बोलीं, ‘‘सवा महीना बीतने पर छोटी बहू की लड़की का नामकरण संस्कार करने की सोच ही रही थी कि यहां से फोन आ गया कि मधुप के हाथपैर स्कूटर दुर्घटना में टूट गए हैं.

‘‘फौरन रात की गाड़ी से ही चल कर सुबह यहां पहुंची तो लड़का अस्पताल में कराह रहा था. वह तो खैर हुई कि जान बच गई. 2 जगह पैर की और एक जगह हाथ की हड्डियां टूटी हैं. प्लास्टर चढ़ा है तो क्या 6 हफ्ते से पहले थोड़े ही काटेंगे डाक्टर. दमदिलासा चाहे जैसा दे लें.’’

प्रमिला को यह देख कर कुछ विचित्र सा लगा कि मझली भाभी तो आनेजाने वाले मेहमानों और हितैषियों की खातिरखिदमत में अधिक लगी रहतीं और मधुप के पाखानेपेशाब से ले कर उसे हिलानेडुलाने तथा चादर बदलने तक का सारा काम अम्मांजी करतीं. किसकिस समय कौनकौन सी दवा दी जाती है, इस की पूरी जानकारी भी घर भर में अम्मांजी को ही थी. मझली भाभी तो अम्मांजी को सुबहशाम नहानेधोने की फुरसत देने के लिए ही मधुप के पास बैठतीं और कुछ बातचीत करतीं.

प्रदीप की छुट्टियां कम थीं. वह जब चलने लगा तो प्रमिला स्वयं ही बोली, ‘‘सोचती हूं इस बार दशहरा, दीवाली के त्योहार यहीं पर कर लूं. अगर हो सके तो तुम दीवाली को, चाहे एक दिन को ही, आ जाना. उस दिन तुम्हारे बिना मुझे बहुत बुरा लगेगा.’’

लेकिन अंतिम वाक्य कह कर वह स्वयं ही लजा गई. प्रदीप दाएं हाथ से उसे अपने नजदीक करता हुआ बोला, ‘‘खरबूजे को देख कर खरबूजा रंग पकड़ता है. अब आना तो पड़ेगा ही.’’

और प्रमिला गुलाबीगुलाबी हो गई.

डेढ़ महीने बाद मधुप का प्लास्टर तो कट गया लेकिन न तो पैर और न हाथ ही पूरी तरह सीधा हो पाता था. डाक्टरों ने बताया कि हड्डियां तो ठीक से जुड़ गई हैं, लेकिन इतने समय एक ही जगह बंधे रहने से मांसपेशियां कड़ी पड़ गई हैं, जिन्हें नरम करने के लिए दिन में 3-4 बार नमक मिले गरम पानी से सिंकाई करनी होगी और सिंकाई  के बाद हलकीहलकी मालिश करने के लिए एक क्रीम भी बता दी.

अम्मांजी नियमित रूप से मधुप के हाथपैरों की सिंकाई करतीं और बड़े हलके हाथ से क्रीम लगा देतीं. वह भी और किसी के हाथ से क्रीम नहीं लगवाता था. हर किसी के हाथ से उसे दर्द होता था. हर बार दादी को ही पुकारता था. कभीकभी उस को बेचैनी होती तो कहता, ‘‘दादी, अब मेरे हाथपैर पहले जैसे तो होने से रहे. यों ही लंगड़ा कर चलना पड़ेगा.’’

लेकिन अम्मांजी तुरंत प्रतिवाद करते हुए उसे दिलासा देतीं, ‘‘तू तो बड़ा बहादुर बेटा है. बहादुर बेटे कहीं ऐसी बात करते हैं. तू थोड़ा धीरज रख. चलना तो क्या, तू तो फुटबाल तक खेलता फिरेगा.’’

इस घटना को बीते सालों हो गए हैं. मधुप आज भी कहता है कि वह अपनी दादी के सतत परिश्रम से ही चलनेफिरने योग्य बन सका है.

गरमियों में सविता दीदी की सब से बड़ी लड़की मंजुला की शादी निश्चित हो गई. लड़का भी अच्छा ही मिल गया. वह तेल तथा प्राकृतिक गैस आयोग में किसी अच्छे पद पर था. यह रिश्ता तय होने से परिवार में सभी को बड़ी प्रसन्नता हुई. शादी में कौनकौन जाएगा और भात में क्याक्या देना होगा, यह सभी अम्मांजी ने चुटकी बजाते तय कर दिया.

‘‘प्रदीप पहले ही काफी छुट्टियां ले चुका है इसलिए उसे तो छुट्टी मिलने से रही. मझले प्रफुल्ल झांसी में हैं. वह भात के लिए चंदेरी से साडि़यां लाए, मर्दाने कपड़ों की व्यवस्था बड़े प्रसून करेंगे. प्रभात और उस की बहू शादी में भात ले कर जाएंगे. इसलिए वहां टीका व नजरन्योछावर करने में जो नकद खर्च करना होगा, उसे वह करेंगे. शादी के लिए अपनी फौजी कैंटीन से सामान जुटाने का जिम्मा प्रदीप का रहेगा,’’ अम्मांजी ने ऐसा ही तय किया और फिर ऐसा ही हुआ. इसी कारण इस शादी की चर्चा रिश्तेदारों में बहुत दिनों तक होती रही.

मंजुला के विवाह का उल्लास अभी परिवार पर छाया ही था कि क्रूर काल ने बाज की तरह एक झपट्टा मारा और मंजुला के पिता हेमंत बिना किसी लंबी बीमारी के एक ही दौरे में चल बसे. सारा परिवार सन्न रह गया. सविता दीदी के वैधव्य को ले कर सभी मर्माहत हो गए. सविता दीदी के बड़े लड़के विशाल ने एम.ए. की परीक्षा दी थी. छोटा तुषार तो बी.ए. में ही पहुंचा था.

पीडि़त परिवार की सहायता के लिए हेमंत के प्रतिष्ठान ने विशाल को क्लर्क की नौकरी देने की पेशकश की परंतु बड़े भैया प्रसून इस के लिए तैयार नहीं हुए. उन्होंने कहा, ‘‘अगर अभी से क्लर्की का पल्लू पकड़ लिया तो जिंदगी भर क्लर्क ही बना रहेगा. इस से अच्छा है कि विशाल मेरे पास रह कर एम.बी.ए. करे. उस के बाद उसे कोई न कोई अच्छी नौकरी अवश्य मिल जाएगी.’’

इस के बाद सविता दीदी भी अधिकांश समय प्रसून के पास ही रहतीं, यद्यपि अन्य भाइयों का भी प्रबल आग्रह रहता कि सविता दीदी कुछ समय उन के पास ही रहें. पिता के देहावसान ने विशाल को और अधिक परिश्रम करने को प्रेरित किया और वह एम.बी.ए. की परीक्षा में अच्छे अंकों से उत्तीर्ण हुआ. इस के फलस्वरूप उसे एक अच्छी कंपनी में प्रशासनिक अधिकारी के रूप में आसानी से नौकरी मिल गई.

तुषार भी इस बीच एम.ए. में आ गया था लेकिन उस पर सरकारी नौकरियों का मोह सवार था और वह अभी से प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए तैयारी करने लगा था.

बिरादरी और परिचितों में इस परिवार को बड़ी ईर्ष्या किंतु सम्मान से देखा जाता था. कुछ लोग चिढ़ कर कहते, ‘‘जब तक सब भाइयों में सुमति है तभी तक का खेल है, वरना बड़ेबड़े परिवारों को भी टूटने में क्या देर लगी?’’

इस तरह की अनेक बातें अम्मांजी के कानों में भी पहुंचतीं परंतु वह बड़ी शांति से कहतीं, ‘‘संयुक्त परिवार तो तभी चलता है जब परिवार का प्रत्येक सदस्य उस की उन्नति के लिए भरपूर सहयोग दे और अपने निजी स्वार्थ को अधिक महत्त्व न दे. आपसी नोचखसोट और छीनाझपटी शुरू होते ही संयुक्त परिवार बिखर जाता है.’’

हेमंत की मृत्यु के बाद से अम्मांजी काफी चुप रहने लगी थीं परंतु अपने काम में उन्होंने कोई शिथिलता नहीं आने दी थी. अभी भी वह पहले की तरह जहांतहां पहुंचती रहती थीं. प्रसून के हर्निया के आपरेशन के सिलसिले में वह उस के पास आई हुई थीं. आपरेशन ठीक से हो गया था और प्रसून अस्पताल से घर आ चुका था, लेकिन इस बार अम्मांजी की तबीयत कुछ डगमगा गई थी. पड़ोस की एक महिला उन से मिलने आईं तो बोलीं, ‘‘बहनजी, मैं तो आप को 1 साल के बाद देख रही हूं. अब आप काफी टूटी हुई सी लगती हैं.’’

अम्मांजी कुछ देर तो चुप रहीं. फिर कुछ सोचती हुई बोलीं, ‘‘बहनजी, औरत हर बच्चे को जन्म देने में टूटती है, लेकिन स्त्रीपुरुष के संबंधों की कंक्रीट से जुड़ाई बच्चे से ही होती है. वैसे ही परिवार को जोड़े रखने में भी इनसान को कहीं न कहीं टूटना पड़ता है. लेकिन इस जोड़ने की टूटन की पीड़ा बड़ी मीठीमीठी होती है, बिलकुल प्रसव वेदना की तरह.’’

Best Hindi Stories : खाली जगह – क्या दूर हुआ वंदना का शक

Best Hindi Stories : तेजसिरदर्द होने का बहाना बना कर मैं रविवार की सुबह बिस्तर से नहीं उठी. अपने पति समीर की पिछली रात की हरकत याद आते ही मेरे मन में गुस्से की तेज लहर उठ जाती थी.

‘‘तुम आराम से लेटी रहो, वंदना. मैं सब संभाल लूंगा,’’ ऐसा कह कर परेशान नजर आते समीर बच्चों के कमरे में चल गए.

उन को परेशान देख कर मुझे अजीब सी शांति महसूस हुई. मैं तो चाहती ही थी कि मयंक और मानसी के सारे काम करने में आज जनाब को आटेदाल का भाव पता लग जाए.

अफसोस, मेरे मन की यह इच्छा पूरी नहीं हुई. उन तीनों ने बाहर से मंगाया नाश्ता कर लिया. बाद में समीर के साथ वे दोनों खूब शोर मचाते हुए नहाए. अपने मनपसंद कपड़े पहनने के चक्कर में उन दोनों ने सारी अलमारी उलटपुलट कर दी है, यह देख कर मेरा बहुत खून फूंका.

बाद में वे तीनों ड्राइंगरूम में वीडियो गेम खेलने लगे. उन के हंसनेबोलने की आवाजे मेरी चिढ़ व गुस्से को और बढ़ा रही थीं. कुछ देर बाद जब समीर ने दोनों को होम वर्क कराते हुए जोर से कई बार डांटा, तो मुझे उन का कठोर व्यवहार बिलकुल अच्छा नहीं लगा.

अपने मन में भरे गुस्से व बेचैनी के कारण मैं रात भर ढंग से सो नहीं सकी. इसलिए 11 बजे के करीब कुछ देर को मेरी आंख लग गई.

मेरी पड़ोसिन सरिता मेरी अच्छी सहेली है. समीर से उसे मालूम पड़ा कि मेरी तबीयत ठीक नहीं है, तो उस ने अपने यहां से लंच भिजवाने का वादा कर लिया.

जब दोपहर 2 बजे के करीब मेरी आंख खुली तो पाया कि ये तीनों सरिता के हाथ का बना लंच कर भी चुके हैं. बच्चों द्वारा देखे जा रहे कार्टून चैनल की ऊंची आवाज मेरा गुस्सा और चिड़चिड़ापन लगातार बढ़ाने लगी थी.

‘‘टीवी की आवाज कम करोगे या मैं वहीं आ कर इसे फोड़ दूं?’’ मेरी दहाड़ सुनते ही दोनों बच्चों ने टीवी बंद ही कर दिया और अपनेअपने टैबलेट में घुए गए.

कुछ देर बाद समीर सहमे हुए से कमरे में आए और मुझ से पूछा, ‘‘सिरदर्द कैसा है, वंदना?’’

‘‘आप को मेरी चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है और मुझे बारबार आ कर परेशान मत करो,’’ रूखे अंदाज में ऐसा जवाब दे कर मैं ने उन की तरफ पीठ कर ली.

शाम को मेरे बुलावे पर मेरी सब से अच्छी सहेली रितु मुझ से मिलने आई. कालेज

के दिनों से ही अपने सारे सुखदुख मैं उस के साथ बांटती आई हूं.

मुझे रितु के हवाले कर वे तीनों पास के पार्क में मौजमस्ती करने चले गए.

रितु के सामने मैं ने अपना दिल खोल कर रख दिया. खूब आंसू बहाने के बाद मेरा मन बड़ी हद तक हलका और शांत हो गया था.

फिर रितु ने मुझे समझने का काम शुरू किया. वह आधे घंटे तक लगातार बोलती रही. उस के मुंह से निकले हर शब्द को मैं ने बड़े ध्यान से सुना.

उस के समझने ने सचमुच जादू सा कर दिया था. बहुत हलके मन से मुसकराते हुए मैं ने घंटे भर बाद उसे विदा किया.

उस के जाने के 10 मिनट के बाद मैं ने समीर के मोबाइल का नंबर अपने मोबाइल से मिला कर बात करी.

‘‘पार्क में घूमने आई सुंदर लड़कियों को देख कर अगर मन भर गया हो, तो घर लौट आइए, जनाब,’’ मैं उन्हें छेड़ने वाले अंदाज में बोली.

‘‘मैं लड़कियों को ताड़ने नहीं बल्कि बच्चों के साथ खेलने आया हूं,’’ उन्होंने फौरन सफाई दी.

‘‘कितनी आसानी से तुम मर्द लोग झठ बोल लेते हो. जींस और लाल टौप पहन कर आई लंबी लड़की का पीछा जनाब की नजरें लगातार कर रही हैं या नहीं?’’

‘‘वैसी लड़की यहां है, पर मेरी उस में कोई दिलचस्पी नहीं है.’’

‘‘आप की दिलचस्पी अपनी पत्नी में तो

है न?’’

‘‘क्या मतलब?’’

‘‘मतलब यह कि मैं सुबह से भूखी हूं. कुछ खिलवा दो, सरकार.’’

‘‘बोलो क्या खाओगी?’’

‘‘जो मैं कहूंगी, वह खिलाओगे?’’

‘‘श्योर.’’

‘‘अपने हाथ से खिलाओगे?’’

‘‘अपने हाथ से भी खिला देंगे, मैडम,’’ मेरी मस्ती भरी आवाज से प्रभावित हो कर उन की आवाज में भी खुशी के भाव झलक उठे थे.

‘‘मुझे हजरत गंज में जलेबियां खानी हैं.’’

‘‘मैं बच्चों को घर छोड़ कर तुम्हारे लिए जलेबी लाने चला जाऊंगा.’’

‘‘हम सब साथ चलते हैं.’’

‘‘तो तुम पार्क में आ जाओ.’’

‘‘मैं पार्क में आ चुकी हूं. आप बाईं तरफ  नजरे उठा कर जरा देखिए तो सही,’’ यह डायलौग बोल कर मैं ने फोन बंद किया और खिलखिला कर हंस पड़ी.

मेरी हंसी सुन कर उन्होंने बाईं तरफ गरदन घुमाई तो मुझे सामने खड़ा पाया. मयंक और मानसी ने मुझे देखा तो भागते हुए पास आए और मुझ से लिपट कर अपनी खुशी जाहिर करी.

‘‘तुम्हारी तबीयत कैसी है?’’ समीर ने मेरा हाथ पकड़ कर कोमल लहजे में पूछा.

‘‘वैसे बिलकुल ठीक है, पर भूख के मारे दम निकला जा रहा है. हजरत गंज की दुकान की तरफ चलें, स्वीटहार्ट?’’ उन के गाल को प्यार से सहला कर मैं हंसी तो वे शरमा गए.

मानसी और मयंक अभी कुछ देर और अपने दोस्तों के साथ खेलना चाहते थे. उन की देखभाल करने की जिम्मेदारी अपने पड़ोसी अमनजी के ऊपर डाल कर हम दोनों कार निकाल कर बाजार की तरफ  निकल लिए.

कुछ देर बाद जलेबियां मुझे अपने हाथ से खिलाते हुए वे खूब शरमा रहे थे.

‘‘तुम कभीकभी कैसे अजीब से काम कराने की जिद पकड़ लेती हो,’’ वो बारबार इधरउधर देख रहे थे कि कहीं कोई जानपहचान वाला मुझे यों प्यार से जलेबियां खिलाते देख न रहा हो.

‘‘मेरे सरकार, रोमांस और मौजमस्ती करने का कोई मौका इंसान को नहीं चूकना चाहिए,’’ ऐसा कह कर जब मैं ने रस में नहाई उन की उंगलियों को प्यार से चूमा तो उन की आंखों में मेरे लिए प्यार के भाव गहरा उठे.

बाजार से लौटते हुए मैं फिटनैस वर्ल्ड नाम के जिम के सामने रुकी और समीर से बड़ी मीठी आवाज में कहा, ‘‘इस जिम में मेरी 3 महीने की फीस के क्व10 हजार आप जमा करा दो, प्लीज.’’

‘‘तुम जिम जौइन करोगी?’’ उन्होंने हैरान हो कर पूछा.

‘‘अगर आप फीस जमा करा दोगे, तो जरूर यहां आना चाहूंगी.’’

‘‘कुछ दिनों में अगर तुम्हारा जोश खत्म हो गया, तो सारे पैसे बेकार जाएंगे.’’

‘‘यह मेरा वादा रहा कि मैं एक दिन भी नागा नहीं करूंगी.’’

‘‘इस वक्त तो मेरे पर्स में क्व10 हजार नहीं होंगे.’’

‘‘मैं आप की चैक बुक लाई हूं न,’’ अपना बैग थपथपा कर यह दर्शा दिया कि उन की चैक बुक उस में रखी हुई है.

‘‘पहले घर पहुंच कर इस बारे में अच्छी तरह से सोचविचार तो कर…’’

‘‘अब टालो मत,’’ मैं ने उन का हाथ

पकड़ा और जिम के गेट की तरफ बढ़ चली, ‘‘क्या मेरा शेप में आना आप को अच्छा नहीं लगेगा?’’

‘‘बहुत अच्छा लगेगा, लेकिन तुम अगर नियमित रूप से यहां…’’ड्ड

‘‘जरूर आया करूंगी,’’ मैं ने प्यार से उन का हाथ दबा कर उन्हें चुप करा दिया.

जिम की फीस जमा करा कर जब हम बाहर आ गए तो मैं ने उन्हें एक और झटका दिया, ‘‘अगले महीने मेरा जन्मदिन है और तब मुझे अपने लिए तगड़ी शौपिंग करनी है.’’

‘‘किस चीज की?’’ उन्होंने चौंक कर पूछा.

‘‘कई सारी नई ड्रैस खरीदनी हैं और आप को मेरे साथ चलना पड़ेगा. मैं वही कपड़े खरीदूंगी जो आप को पसंद आएंगे. वजन कम हो जाने के बाद मैं ऐसी ड्रैस पहनना चाहूंगी कि आप मुझे देख कर सीटी बजा उठें.’’

मेरे गाल पर प्यार से चुटकी काटते हुए वे बोले, ‘‘तुम्हारी बातें सुन कर आज मुझे

कालेज के दिनों की याद आ गई.’’

‘‘वह कैसे?’’ मैं ने उत्सुकता दर्शाई.

‘‘तुम उसी अंदाज में मेरे साथ फ्लर्ट कर रही हो जैसे शादी से पहले किया करती थी,’’ उन की आंखों में अपने लिए प्यार के गहरे भाव पढ़ कर मैं ने मन ही मन अपनी सहेली रितु को दिल से धन्यवाद दिया.

मेरे व्यवहार में आया चुलबुला परिवर्तन रितु के समझने का ही नतीजा था.

शाम को उस के आते ही मैं ने उसे वह सारी घटना अपनी आंखों में आंसू भर कर सुना दी जिस ने मेरे दिल को पिछली रात की पार्टी में बुरी तरह से जख्मी किया था.

उस ने समीर के प्रति मेरी सारी शिकायतें सुनी और फिर सहानुभूति दर्शाने के बजाय चुभते स्वर में पूछा, ‘‘मुझे यह बता कि पिछली बार तू सिर्फ समीर की खुशी के लिए कब बढि़या तरीके से सजधज कर तैयार हुई थी?’’

‘‘मैं नईनवेली दुलहन नहीं बल्कि 2 बच्चों की मां हो गई हूं. जब मेरे घर के काम ही नहीं खत्म होते तो सजनेसंवरने की फुरसत कहां से मिलेगी?’’ मैं ने चिढ़ कर उलटा सवाल पूछा.

‘‘फुरसत तुझे निकालनी चाहिए, वंदना. समीर से नाराज हो कर आज तूने खाना नहीं बनाया तो क्या तेरे बच्चे भूखे रहे?’’

‘‘नहीं, बाजार और मेरी सहेली सरिता की बदौलत इन तीनों ने डट कर पेट पूजा करी थी.’’

‘‘समीर ने रोतेझंकते हुए ही सही, पर बिना तेरी सहायता के दोनों बच्चों की देखभाल व उन्हें होमवर्क कराने का काम पूरा कर ही लिया था न.’’

‘‘तू कहना क्या चाह रही है?’’ मेरा मन उलझन का शिकार बनता जा रहा था.

‘‘यही कि इंसान की जिंदगी में कोई जरूरी काम रुकता नहीं है. समीर को तन

की सुखसुविधा के साथसाथ मन की खुशियां भी चाहिए. देख, अगर तू कुशल पत्नी की भूमिका निभाने के साथसाथ उस के दिल की रानी बन कर नहीं रहेगी, तो उस खाली जगह को कोई और स्त्री भर सकती है. कोई जवाब है तेरे पास इस सवाल का कि सिर्फ 33 साल की उम्र में क्यों इतनी बेडौल हो कर तूने अपने रूप का सारा आकर्षण खो दिया है?’’

‘‘बच्चे हो जाने के बाद वजन को कंट्रोल में रखना आसान नहीं होता है,’’ मैं ने चिढ़े लहजे में सफाई दी.

‘‘अगर समीर की खुशियों को ध्यान में रख कर दिल से मेहनत करेगी, तो तुम्हारा वजन जरूर कम हो जाएगा. तू मेरे एक सवाल का जवाब दे. कौन स्वस्थ पुरुष नहीं चाहेगा कि उस की जिंदगी में सुंदर व आकर्षक दिखने वाली स्त्री न हो?’’

मुझ से कोई जवाब देते नहीं बना तो वह भावुक हो कर बोली, ‘‘तू मुझ से अभी वादा कर कि तू फिर से अपने विवाहित जीवन में रोमांस लौटा लाएगी. घर की जिम्मेदारियां उठाते हुए भी अपने व्यक्तित्व के आकर्षण को बनाए रखने के प्रति सजग रहेगी.’’

उस की आंखों में छलक आए आंसुओं ने मुझे झकझेर दिया. उस के समझने का ऐसा असर हुआ कि इस मामले में मुझे अपनी कमी साफ नजर आने लगी थी.

‘‘रितु, मैं अब से अपने रखरखाव का पूरा ध्यान रखूंगी. कोई शिखा कल को इन की जिंदगी में आ कर मेरी जगह ले, इस की नौबत मैं कभी नहीं आने दूंगी. थैंक यू, मेरी प्यारी सहेली,’’ उस के गले लग कर मैं ने अपने अंदर बदलाव लाने का दिल से वादा कर लिया.

समीर और मैं बड़े अच्छे मूड में घर पहुंचे. कुछ देर बाद मानसी और मयंक भी अमनजी के घर से लौट आए.

मैं ने सब को बहुत जायकेदार पुलाव बना कर खिलाया. समीर को अपने साथ किचन में खड़ा रख मैं उन से खूब बतियाती रही थी.

खाना खाते हुए समीर ने मेरी प्लेट में थोड़ा सा पुलाव देख कर पूछा, ‘‘तुम आज इतना कम क्यों खा रही हो?’’

‘‘इस चरबी को कम करने के लिए अब से मैं कम ही खाया करूंगी. महीने भर बाद मेरी फिगर तुम्हारी किसी भी सहेली की फिगर से कम आकर्षक नहीं दिखेगी,’’ मैं ने बड़े स्टाइल से उन के सवाल का जवाब दिया.

‘‘मेरी कोई सहेली नहीं है,’’ उन्होंने हंसते हुए जवाब दिया.

‘‘रखो मेरे सिर पर हाथ कि तुम्हारी कोई सहेली नहीं है,’’ मैं ने उन का हाथ पकड़ कर अपने सिर पर रख लिया.

‘‘मैं सच कहता हूं कि मेरी कोई सहेली

नहीं है,’’ उन्होंने सहजता से जवाब दिया तो मैं किलस उठी.

‘‘तो कल रात की पार्टी में बाहर लौन में अपने साथ काम करने वाली उस चुड़ैल शिखा का हाथ पकड़ कर क्या उसे रामायण सुना रहे थे?’’ मेरे दिलोदिमाग में पिछली रात से हलचल मचा रही शिकायत आखिरकार मेरी जबान पर आ ही गई.

‘‘ओह, तो क्या अब तुम मेरी जासूसी करने लगी हो?’’ उन्होंने माथे में बल डाल कर पूछा.

‘‘जी नहीं, जब आप उस के साथ इश्क लड़ा रहे थे, तब मैं अचानक से खिड़की के पास ठंडी हवा का आनंद लेने आई थी.’’

‘‘तुम जानना चाहेगी कि मैं ने उस का हाथ क्यों पकड़ा हुआ था?’’ वे बहुत गंभीर नजर आने लगे थे.

‘‘मुझे आप के मुंह से मनघड़ंत कहानी नहीं सुननी है. बस, आप मेरी एक बात

कान खोल कर सुन लो. अगर आप ने उस के साथ इश्क का चक्कर चला कर मुझे रिश्तेदारों व परिचितों के बीच हंसी का पात्र बनवा कर अपमानित कराया, तो मैं आत्महत्या कर लूंगी,’’ भावावेश के कारण मेरी अवाज कांप रही थी.

उन्होंने मेरा हाथ पकड़ कर कोमल लहजे में कहा, ‘‘अपने फ्लैट की डाउन पेमेंट करने के लिए जो 5 लाख रुपए कम पड़ रहे थे, उन्हें हम उधार देने के लिए शिखा ने अपने पति को तैयार कर लिया है. कल रात मैं शिखा का हाथ पकड़ कर उसे हमारी इतनी बड़ी हैल्प करने के लिए धन्यवाद दे रहा था और तुम न जाने क्या समझ बैठी. क्या तुम मुझे कमजोर चरित्र वाला इंसान मानती हो?’’

उन का आहत स्वर मुझे एकदम से शर्मिंदा कर गया, ‘‘मुझे माफ कर दीजिए, प्लीज,’’ उन का मूड बहुत जल्दी से ठीक करने के लिए मैं ने फौरन उन से हाथ जोड़ कर माफी मांग ली.

‘‘आज इतनी आसानी से तुम्हें माफी नहीं मिलेगी,’’ मेरा हाथ चूमते हुए उन की आंखों में शरारत के भाव उभर आए.

‘‘तो माफी पाने के लिए मुझे क्या करना पड़ेगा?’’ मैं ने इतराते हुए पूछा.

मेरे कान के पास मुंह ला कर उन्होंने अपने मन की जो इच्छा जाहिर करी, उसे सुन कर मैं शरमा उठी. उन्होंने प्यार दिखाते हुए मेरे गाल पर चुंबन भी अंकित कर दिया तो मैं जोर से लजा उठी.

मानसी और मयंक की शरारत भरी नजरों का सामना करने के बजाय मैं ने समीर की छाती से लिपट जाना ही बेहतर समझ.

Hindi Story Collection : लिव टुगैदर का मायाजाल

Hindi Story Collection : सामने महेश खड़ा था. आंखों से झरझर आंसू बहाता हुआ, अपमानित सा, ठगा हुआ, पिटा हुआ सा, अपने प्रेम की यह हालत देखते हुए… स्वयं को लुटा हुआ महसूस कर, हिचकियों के साथ रो रहा था.

मैं उसे सामने देख कर अवाक् थी. मुझे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि मेरी वीरान जिंदगी में अब कोई आया है. ‘‘सपना…’’ रुंधे गले से महेश मुश्किल से बोल पाया.

किसी गहरे कुएं से आती मरियल सी आवाज…आज मुझे मेरे उन सब उद्बोधनों से ज्यादा भारी और अपनी महसूस हुई, जो मैं पिछले 10-12 साल से सुनती चली आ रही थी.

‘‘सपना स्वीटहार्ट… सपना डियर… सपना डार्लिंग…’’ की आवाजों का खोखलापन, जो मैं पिछले 2-3 बरस से महसूस कर रही थी, आज और ज्यादा खोखली लगने लगीं.

मेरे चारों तरफ मेरा अपना बनाया, अपना रचाया हुआ संसार खड़ा था. मलिन और निस्तेज पड़े हुए मेरे शरीर के चारों ओर शानदार चीजों से सजा हुआ मेरा बंगला अभिमान के साथ आसमान से बातें कर रहा था. उसी अभिमान के रथ पर कभी मैं भी सवार हो कर सपने संजोया करती थी…

‘‘सपना…एक बार मुझे खबर तो कर दी होती अपनी बीमारी की…’’ मेरे निशक्त शरीर को देखते हुए महेश के गले से दबीदबी सी आवाज निकली.

महेश के दिल में मेरे लिए… टिमटिमा कर जलता हुआ दीपक… मेरे मन के अंधेरे में एक किरण सी चमकी. अकेलापन, अवसाद और उदासी भरे मन में, महेश की उपस्थिति की दस्तक से एक नई तरह की आशा का संचार हुआ.

महेश ने ढूंढ़ कर कमरे की लाइट जलाई. कमरा एक बार फिर से रोशन हो गया. चारों तरफ गर्द ही गर्द जमा हो गया था. महंगामहंगा आधुनिक सामान धूल से अटा पड़ा था. कमरे की सजावट जहां अपने अतीत की आलीशानता बयान कर रही थी, वहीं उस पर जमी धूल की परत वर्तमान की बेजान तसवीर पेश कर रही थी.

स्पर्श सुख की अनुभूति पिछले कई महीने से उस ने महसूस नहीं की थी. मेरी अवसादग्रस्त जिंदगी की चिड़चिड़ाहट और चिल्लाहट से त्रस्त हो कर, नौकरनौकरानियां काम छोड़ कर चली गई थीं. महीनों से साफसफाई नहीं हुई थी.

पैसे से श्रम खरीदा जा सकता है, अपनापन नहीं, इस का प्रत्यक्ष दर्शन मुझे हो रहा था. दीवार पर लगे विशाल आईने पर निगाह पड़ते ही मैं चौंक गई. लेटेलेटे ही अपना प्रतिबिंब देख कर मुझे रोना आ गया. एक बार को तो मैं खुद को ही नहीं पहचान पाई.

मेरे पर हमेशा हंसतेखिलखिलाते रहने वाला विशाल आईना, गंदला हो कर मायूसी प्रकट कर रहा था. रोशनी से मेरी हालत का जायजा ले कर महेश और भी ज्यादा द्रवित हो गया. ‘‘सपना… कम से कम एक फोन तो कर दिया होता. इतनी बीमार पड़ी थीं. एकदम पीली पड़ गई हो,’’ महेश अपराधबोध से ग्रस्त हो कर अपनी ही रौ में कहे जा रहा था.

मैं महेश की हालत समझ रही थी. एकएक बीती बात मुझे याद आ रही थी. जब शरीर था तब विचार नहीं थे, अब शरीर नहीं रहा तो विचार डेरा डालने लगे.

अकेलेपन और अवसाद से महेश की सहानुभूति मुझे कुछ हद तक उबार रही थी. मैं उस से आंखें नहीं मिला पा रही थी. ‘महेश मेरा इतना लंबा इंतजार करता रहा. मेरे लिए… अभी तक इंतजार या फिर यों ही आया है अचानक.’

यादों के खंजर दिमाग में ठकठक कर रहे थे. महेश मेरा सहपाठी था. कालेज के वे दिन हवा में उड़ने के थे… आसमान से बातें करने के. यौवन पूरे निखार पर था. मैं तितलियों की तरह इधरउधर मंडराती रहती.

कलियां खिलेंगी तो मधुप मंडराएंगे ही और फिर यह तो समय होता है युवाओं को आकर्षित करने का… लोगों की फिसलती निगाहें पकड़ कर आह्लादित होने का.

हरदम सजनासंवरना, इधरउधर इतराते हुए फिरते रहना, न कोई चिंता थी, न ही कोई परवा. बस उड़ते ही जाना, लोगों की निगाहों में चढ़ते जाना. उन की कानाफूसियां सुन कर उल्लासित होना और उन की प्यासी निगाहें ताड़ कर उन्हें और तड़पाना. उन की अतृप्तता भरी मनुहार सुन कर स्वयं को तृप्त महूसस करना. चिंता नहीं थी तो चिंतन भी नहीं था…

महेश न जाने कब मुझ से दिल लगा बैठा था. भावुक महेश मेरे रूपयौवन के मोहजाल में फंस गया था. हरदम वह बिन पानी की मछली की तरह तड़पता रहता था.

पुरुष बेचारा, पहले प्यार को अपने दिल पर लगा लेता है… मेरे लिए पुरुषों की तड़प मेरी आत्मसंतुष्टि थी. अनादि काल से चली आई परंपरा नारी की तड़प से पुरुषों की आत्मसंतुष्टि को तोड़ना मेरे अहं को तुष्ट करती थी.

मैं 20वीं सदी की नारी थी. मेरे विचारों में खुला आसमान था. मेरा एक स्वतंत्र अस्तित्व है. मैं भी पुरुष की तरह एक इकाई हूं. प्रेम, प्यार एक अलग बात है. लेकिन शादी, बच्चे का बंधन मुझे नागवार लगता था.

कालेज के दिन फुरफुर कर उड़ गए. महेश की मासूम याचना मेरे मस्तिष्क पर सामान्य सी ठकठक थी.

अपनी अलग पहचान बनाने की लौ मन में निरंतर जलती रहती. मैं भावुकता में न बह कर पूर्ण व्यावसायिक हो गई थी.बहुराष्ट्रीय कंपनी में अच्छी नौकरी, ऊंचा ओहदा, भरपूर पगार… सारी सुखसुविधाएं मेरे कदमों को चूम रही थीं.

मैं स्वतंत्र, आर्थिक रूप से मजबूत, अच्छी प्रतिष्ठा वाली, फिर क्यों किसी पुरुष के अधीन रहूं. परिवार के बंधनों में बंधूं. पैसे से हर चीज हासिल की जा सकती है. अपनी शारीरिक जरूरतों के लिए एक अदद पुरुष भी.जब पदप्रतिष्ठा पा कर पुरुष बौरा सकता है तो स्त्री क्यों नहीं. मैं आर्थिक रूप से स्वतंत्र थी, मुझ में खुद के अहम की बू कुछ ज्यादा ही आ गई थी.

औफिस में ही कमल से मेलमिलाप बढ़ा. हर मुद्दे पर हमारी बौद्धिक बहसें होतीं. राजनीतिक, सामाजिक विचारविमर्श होता. हर विषय पर हम लोग खुले विचार रखते, यहां तक कि प्रेम और सैक्स पर भी.

मेरी मानसिक भूख के साथसाथ शारीरिक भूख भी जोर मारने लगी थी. समान बौद्धिक स्तर वाले कमल के साथ काफी तार्किक विचारविमर्श के बाद हम दोनों एकसाथ रहने लगे, बिना किसी वैवाहिक बंधन के.

लिव टुगैदर, हम 2 स्वतंत्र इकाई, 2 शरीर थे. एक छत के नीचे हो कर भी हमारी साझी छत नहीं थी. पहले तो अड़ोसपड़ोस में हमारे साथसाथ रहने पर कानाफूसियां हुईं, ‘छिनाल’, ‘वेश्या’ और न जाने किनकिन संबोधनों से मुझे नवाजा गया, लेकिन मैं तो उड़ान पर थी. इन सब बातों से मैं कहां डरने वाली थी. हवा में उड़ने वाले परिंदे जमीन पर बिछे जाल से कहां डरते हैं.

महल्ले के युवकयुवतियों को मेरे घर के आसपास फटकने की सख्त मनाही हो गई थी. मेरे घर के चारों तरफ अघोषित एलओसी बन गई थी, जिसे पार करना सफेदपोश शरीफों के बस की बात नहीं थी.

इक्कादुक्का कभी मेरे मकान की तरफ लोलुप निगाहें ले कर बढ़ते पर मेरी हैसियत से डर कर पीछे हो जाते.

जब शरीर बोलता है, तो विचार चुप रहते हैं. एलओसी के घेरे में मैं कब अकेली पड़ती गई इस का मुझे भान तक नहीं हुआ.

शरीर था कि खिलता ही जा रहा था. मैं शरीर के रथ पर सवार हो कर अभिमान के आसमान में उड़ रही थी.

कमल के साथ रहते हुए भी हमारा साझा कुछ नहीं था. मैं जब चाहती कमल के शरीर का भरपूर उपभोग करती. कमल को हमेशा उस की सीमारेखा दिखाती रहती. पुरुष हो कर भी कमल का पुरुषत्व मेरे सामने बौना रहता.

अपना फ्रैंड सर्कल मुझे खुशनुमा महसूस होता. लिव टुगैदर में पतिपत्नी के बीच की लाज और लिहाज, सामाजिक दबाव और बच्चे होने का मानसिक दबाव नहीं था. बस, उच्छृंखल व्यवहार, शरीर का विभिन्न तरह से भरपूर उपभोग, परम आनंद प्रदान करता.

देखते ही देखते कमल के साथ का मौखिक अनुबंध पूरा हो चला. साथ रहते कमल के मन में घर बसाने की चाहत घुल रही थी. कमल बहुत भावुक हो उठा था. अलगाव से उसे बेचैनी हो रही थी. वह शादी कर घर बसाने के लिए मिन्नतें करने लगा. लेकिन मैं तो मन और तन के उफान पर थी. तन अभी भी भरपूर बोल रहा था. भाव तो मन में थे ही नहीं. भाव होते तो मन कमजोर पड़ जाता. मैं नारी की गुलामी की पक्षधर बिलकुल नहीं थी.

शादी… यानी नारी की गुलामी के दौर की शुरुआत… मैं ने एक झटके में कमल को बाहर का रास्ता दिखा दिया.

मुझ में शारीरिक आकर्षण अभी भी उफान पर था. मर्दों की लाइन लगने को तैयार थी. प्रेम, प्यार बेवकूफों का शगल. बेकार में अपनी ऊर्जा जलाओ. तनमन को तरसाओ. मेरा सिद्धांत था, खाओपियो और मौज करो.

मांबाप के बीच की यदाकदा की खिंचन की पैठ मेरे मन में इतनी गहरी समाई हुई थी कि पारिवारिक स्नेह का तानाबाना पकड़ने में मैं कभी सफल नहीं हो पाई.

फिर बदलाव के धरातल पर पैर रख कर कभी महसूस करने और समझने की कोशिश ही नहीं की.भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति मेरी प्राथमिकता रही थी. उन की पूर्ति के लिए मेरे पास संसाधनों की किसी तरह कोई कमी नहीं थी. बस पैसा फेंको, सभी सुविधाएं हाजिर हो जाएंगी.

आलीशान बंगला होने के कारण कभी घर की ऊष्मा महसूस करने की कोशिश ही नहीं की. आधुनिकता के जनून में मेरा स्व ही मुझ पर सवार था.

कमल के बाद अब सैक्स पूर्ति के लिए सुरेश टकरा गया था. उस का भरापूरा शरीर था, छुट्टे सांड़ जैसा मस्तमस्त. मेरे साथ लिव टुगैदर उस के लिए बहुत अच्छा औफर था. हम दोनों साथसाथ रहने लगे, बिना किसी साझी छत के. फिर से वही शारीरिक आनंद की सुनहरी गुफा में विचरण.

मन की स्वतंत्र उड़ान में मैं कभी अपने को हारी हुई महसूस नहीं करती. ऐसा लगता कि मैं ने सुरेश के पौरुष के साथसाथ मर्दों के पौरुष को हरा दिया है.

समय कब गुजर जाता है, पता ही नहीं चलता. देह के कोणों का तीखापन कम होने लगा था. मन के कोण कुछ तीखे हो कर अधूरापन महसूस करने लगे थे.

हर माह मेरे वजूद में अंडा तैयार होता. निषेचित हो कर मुझे नारी का पूर्णत्व प्रदान करने के लिए आतुर रहता, पर शुरुआत में मैं पुरुष से बिलकुल हार मानने वाली नहीं थी. कमल और सुरेश के लाखों शुक्राणु बिना संगम के बह चुके थे. पर अब मेरा मन करता कि मैं हार जाऊं और मेरा मातृत्व जीते. नारी के अधूरेपन का एहसास मुझे महसूस होने लगा था. मन में कचोट सी उठने लगी थी.

मेरी चाहत सुन कर सुरेश एकदम से बिफर गया, ‘हमारे लिव टुगैदर के अनुबंध में बच्चा नहीं था.’

अब मुझे यह समझ ही नहीं आ रहा था कि मैं सुरेश को यूज कर रही हूं कि सुरेश मेरा इस्तेमाल कर रहा है. अपनेअपने अहं की जीत में हम दोनों ही हार रहे थे. हालांकि सब से ज्यादा शारीरिक और मानसिक नुकसान नारी को ही उठाना पड़ता है. पुरुष तो हमेशा हार कर भी जीतता है और जीत कर तो जीतता ही है.

अब मेरा शरीर ढलान पर था तो विचार उठने लगे. सामाजिक तानेबाने की कमी महसूस होने लगी. समाज में प्रतिष्ठा, पद, पैसा पा कर भी मैं सामाजिक कार्यक्रमों में अछूत जैसी स्थिति में रहती.

इंटरनैट, फेसबुक, ट्विटर, औरकुट, ब्लैकबेरी मैसेंजर से सारी दुनिया हमारी थी, लेकिन हमारा पड़ोसी, हमारा नहीं था. मेरा अभिमान चकनाचूर हो कर मिटने के लिए तैयार था, पर सुरेश बिलकुल झुकने के लिए तैयार नहीं था.

अब मेरी मिन्नतों के बाद भी वह अपने स्पर्म मेरी कोख में डालने के लिए तैयार नहीं था. मेरी हालत ‘जल बिन मछली’ जैसी हो रही थी. मेरा मन बच्चे के कोमल स्पर्श को बेचैन होता. कोमलकोमल हाथों की छुअन को महसूस करने के लिए मेरा मन व्यग्र होता, कंपित होता.

सामाजिक अकेलापन, अधूरा नारीत्व मुझे अवसादग्रस्त करने लगा था. सुरेश का ज्वार, उस का हारा हुआ चेहरा, अब मुझे आह्लादित नहीं करता था. उस का सपना डियर, सपना डार्लिंग… कहना मेरे मन को चिड़चिड़ा बना रहा था.

लिव टुगैदर मुझे इंद्रधनुषी मायाजाल सा महसूस होने लगा था. मेरा सबकुछ लुट कर भी मेरा अपना कुछ नहीं था. अनुबंध का समय पूरा हो गया. सुरेश एक झटके के साथ मुझे छोड़ गया. मेरी लाख मिन्नतों के बाद भी वह एक पल भी रुकने को तैयार नहीं हुआ. मेरे जज्बातों से उस को कोई लगाव नहीं था. जैसे एक झटके में मैं ने कमल को छोड़ दिया था, वैसे ही सुरेश ने मुझे छोड़ दिया.

आलीशान घर, महंगा विदेशी सामान मेरे चारों तरफ अभिमान के साथ सजा हुआ था, लेकिन मेरा अभिमान छंट रहा था. अकेलापन भयावह हो रहा था. परिवार के आपसी तानेबाने की कमी महसूस होने लगी थी.

समाज की नजरों में, अपने बौद्धिक विचारों में तो मैं नारी की जीत का आदर्श मौडल बन ही चुकी थी, पर वास्तविकता में मैं अपने अंदर जो रीतापन महसूस कर रही थी, वह मुझे सालता.

निराशा और अकेलापन मुझे दिवास्वप्नों में खोने लगा था. परिणामत: चिड़चिड़ापन और गुस्सा मुझ पर हरदम हावी रहने लगा था. औफिस में, घर में, मैं हरदम झुंझलाती, चिड़चिड़ाती रहती.

कभी मुझे लगता मेरा भी प्यारा सा परिवार है. पति है, छोटा सा बच्चा है, जो अपने नाजुक मसूड़ों से मेरे स्तन चूस रहा है. गीलेगीले होंठों से मुझे चूम रहा है. उस की सूसू की गरमाहट मुझे राहत दे रही है.

कभी लगता, मेरा अभिमान अट्टहास कर रहा है. मुझे चिढ़ा रहा है. मैं एकदम से अकेली पड़ गई हूं. चारों तरफ डरावनीडरावनी सूरतें घिर आई हैं.

घबराहट में मेरी एकदम से चीख निकल जाती. तंद्रा टूटती तो अकेला घर सांयसांय करता मिलता. नौकरनौकरानियां अपनी ड्यूटी निभातीं. मुझे खाना खाने के लिए जोर डालतीं, तो मैं उन पर ही चिल्ला पड़ती.

कुछ दिन मुझे झेलने के बाद वे भी मुझे छोड़ कर चली गईं.

अकेलापन और घिर आया. घर के चारों तरफ खिंची लक्ष्मण रेखा पार करने का साहस किसी में नहीं था. लिव टुगैदर के फंडे ने समाज से टुगैदरनैस होने ही नहीं दिया. मैं अवसादग्रस्त होती जा रही थी.

मन में घोर निराशा थी तो तन भी बीमार रहने लगा. न किसी काम में मन लगता न कुछ करने, खानेपीने की इच्छा होती. हरदम अकेलापन सालता, काटने को दौड़ता रहता, अकेलेपन का एहसास भी मुझे भयभीत करता रहता.

अब मैं क्या करूं? मेरे विचार कुंद पड़ते जा रहे थे. नातेरिश्तेदारों की परवा मैं ने कभी की ही नहीं थी, तो अब कौन साथ देता.

अवसादग्रस्त हो कर मैं ने नौकरी भी छोड़ दी थी. अकेली घर में पड़ी रहती. न खाने की सुध, न कोई बनाने वाला, न कोई मनाने वाला.

मम्मीपापा के बीच की मनुहार मुझे अब बारबार याद आती. भाइयों और बहनों के बीच की तकरार, लड़ाईझगड़ा याद आता.

अजीब हालत हो गई थी. शरीर सूख कर कांटा होता जा रहा था. न दिन का पता रहता न रात का. दीवाली पर हरदम रोशन रहने वाला मेरा बंगला और मेरा मन अंधेरे में घिरा रहता.

परिवार की अवधारणा को ताड़ कर लिव टुगैदर का मायाजाल, असीम सुख, अब समझ आ रहा था.

‘‘सपना… डाक्टर को बुला लाता हूं…’’ महेश कह रहा था.

मैं बेसुध सी पड़ी उस से आंखें नहीं मिला पा रही थी.

Famous Hindi Stories : कुछ इस तरह

Famous Hindi Stories :  रात के एक बजे जूही ने घर में सोए मेहमानों पर नजर डाली. उस की चाची, मामी और ताऊ व ताईजी कुछ दिनों के लिए रुक गए थे. बाकी मेहमान जा चुके थे. ये लोग जूही और उस की मम्मी कावेरी का दुख बांटने के लिए रुक गए थे.

जूही ने अब धीरे से अपनी मम्मी के बैडरूम का दरवाजा खोल कर झांका. नाइट बल्ब जल रहा था. जूही ने मां को कोने में रखी ईजीचेयर पर बैठे देखा तो उस का दिल भर आया. क्या करे, कैसे मां का दिल बहलाए. मां का दुख कैसे कम करे. कुछ तो करना ही पड़ेगा, ऐसे तो मां बीमार पड़ जाएंगी.

उस ने पास जा कर कहा, ‘‘मां, उठो, ऐसे बैठेबैठे तो कमर अकड़ जाएगी.’’ कावेरी के मुंह से एक आह निकल गई. जूही ने जबरदस्ती मां का हाथ पकड़ कर उठाया और बैड पर लिटा दिया. खुद भी उन के बराबर में लेट गई. जूही का मन किया, दुखी मां को बच्चे की तरह खुद से चिपटा ले और उस ने वही किया.

कावेरी से चिपट गई वह. कावेरी ने भी उस के सिर पर प्यार किया और रुंधे स्वर में कहा, ‘‘अब हम कैसे रहेंगे बेटा, यह क्या हो गया?’’ यही तो कावेरी 20 दिनों से रो कर कहे जा रही थी. जूही ने शांत स्वर में कहा, ‘‘रहना ही पड़ेगा, मां. अब ज्यादा मत सोचो. सो जाओ.’’

जूही धीरेधीरे मां का सिर थपकती रही और कावेरी की आंख लग ही गई. कई दिनों का तनाव, थकान तनमन पर असर दिखाने लगा था. जूही की खुद की आंखों में नींद नहीं थी.

26 वर्षीया जूही, कावेरी और पिता शेखर 3 ही लोगों का तो परिवार था. अब उस में से भी 2 ही रह गईं. 20 दिनों पहले शेखर जो रात को सोए, उठे ही नहीं. सोतेसोते कब हार्टफेल हो गया, पता ही नहीं चला. मांबेटी अकेली उन के जाने के बाद सब काम कैसे निबटाए चली आ रही हैं, वे ही जानती हैं.

रिश्तेदारों को इस दुखद घटना की सूचना देने से ले कर, उन के आने पर सब संभालते हुए जूही भी शारीरिक व मानसिक रूप से थक रही है अब. शेखर एक सफल, प्रसिद्ध बिजनैसमैन थे. आर्थिक स्थिति काफी अच्छी थी. मुंबई के पवई इलाके में उन के इस 4 बैडरूम फ्लैट में अब मांबेटी ही रह गई हैं.

एमबीए करने के बाद जूही काफी दिनों से पिता के बिजनैस में हाथ बंटा रही थी. यह वज्रपात अचानक हुआ था, इस की पीड़ा असहनीय थी. शेखर जिंदादिल इंसान थे. जीवन के हर पल को वे भरपूर जीते थे. परिवार के साथ घूमना उन का प्रिय शौक था. साल में एक बार कावेरी और जूही को ले कर कहीं न कहीं घूमने जरूर जाते थे और अब भी अगले महीने स्विट्जरलैंड जाने के टिकट बुक थे, मगर अब?

जूही के मुंह से एक सिसकी निकल गई. पिता की इच्छाएं, उन के जीने के अंदाज, उनकी जिंदादिली, उन का स्नेह याद कर रुलाई का आवेग फूट पड़ा. मां की नींद खराब न हो जाए यह सोच कर वह बालकनी में जा कर वहां रखी चेयर पर बैठ कर देर तक  रोती रही. अचानक सिर पर हाथ महसूस हुआ, तो वह चौंकी. हाथ कावेरी का था. ‘‘मम्मी, आप?’’

‘‘मुझे लिटा कर खुद यहां आ गई. चलो, आओ, सोते हैं, 3 बज रहे हैं. अब की बार बेटी को दुलारते हुए कावेरी अपने साथ ले गई. 20 दिनों से यही तो चल रहा था. कभी बेटी मां को संभाल रही थी, कभी मां बेटी को.

दोनों ने लेट कर सोने की कोशिश करते हुए आंखें बंद कर लीं. कुछ ही दिनों में बाकी मेहमान भी चले गए. मांबेटी अकेली रह गईं. घर का सूनापन, हर तरफ फैली उदासी, घर के कोनेकोने में बसी शेखर की याद. जीना कठिन था पर जीवन है, तो जीना ही था. कावेरी सुशिक्षित थीं. वे पढ़नेलिखने की शौकीन थीं. कुछ सालों से लेखन के क्षेत्र में काफी सक्रिय थीं. उन की कई रचनाएं प्रकाशित होती रहती थीं. लेखन के क्षेत्र में उन की एक खास पहचान बन चुकी थी. शेखर से उन्हें हमेशा प्रोत्साहन मिला था. अब शेखर के जाने के बाद कलम जो छूटा, उस का सिरा पकड़ में ही नहीं आ रहा था.

जूही ने औफिस जाना शुरू कर दिया था. कई शुभचिंतक उसे औफिस में भरपूर सहयोग कर रहे थे. पर घर पर अकेली उदास मां की चिंता उसे दुखी रखती. जूही ने एक दिन कहा, ‘‘मां, कुछ लिखना शुरू करो न. कुछ लिखोगी, तो ठीक रहेगा, मन भी लगेगा.’’

‘‘नहीं, मैं अब लिख नहीं पाऊंगी. मेरे अंदर तो सब खत्म हो गया है. लिखने का तो कोई विचार आता ही नहीं.’’

जूही मुसकराई, ‘‘कोई बात नहीं, कई राइटर्स कभीकभी नहीं लिख पाते. होता है ऐसा. ठीक है, ब्रेक ले लो.’’ फिर एक दिन जूही ने कहा, ‘‘मां, टिकट बुक हैं, हम दोनों चलें स्विटजरलैंड?’’

कावेरी को झटका लगा. ‘‘अरे नहींनहीं, सोचा भी कैसे तुम ने? तुम्हारे पापा के बिना हम कैसे जाएंगे. घूम लिए जितना घूमना था,’’ कह कर कावेरी सिसक पड़ी. जूही ने मां के गले में बांहें डाल दीं, ‘‘मां, सोचो, पापा का सपना था वहां जाने का, हम वहां जाएंगे तो लगेगा पापा की इच्छा पूरी कर रहे हैं. वे जहां भी हैं, हमें देख रहे हैं. मैं तो यही महसूस करती हूं. आप को नहीं लगता, पापा हमारे साथ ही हैं? मैं तो औफिस में भी उन की उपस्थिति अपने आसपास महसूस करती हूं, दोगुने उत्साह के साथ काम में लग जाती हूं. चलो न मां, हम घूम कर आएंगे.’’

कावेरी ने गंभीरतापूर्वक फिर न कर दिया. पर अगले दोचार दिन जूही के लगातार सकारात्मक सुझावों और स्नेहभरी जिद के आगे कावेरी ने हां में सिर हिलाते हुए, ‘‘जैसी तुम्हारी मरजी, तुम्हारे लिए यही सही’’ कहा, तो जूही उन से लिपट गई, बोली, ‘‘बस मां, अब सब मेरे ऊपर छोड़ दो.’’

जूही की मौसी गंगा का बेटा अजय पेरिस में अपनी पत्नी रीमा के साथ रहता था. जूही अब लगातार अजय से संपर्क कर सलाह करती रही. जिस ने भी सुना कि दोनों घूमने जा रही हैं, हैरान रह गया. कुछ लोगों ने मुंह बनाया, व्यंग्य किए. पर वहीं, कुछ लोग ऐसे भी थे जिन्होंने खुल कर मांबेटी के इस फैसले की प्रशंसा की. जूही को शाबाशी दी कि वह अपना मनोबल, आत्मविश्वास ऊंचा रखते हुए अपनी मां को कुछ बदलाव के लिए बाहर ले कर जा रही है.

उन लोगों का कहना था कि अच्छा है, दोनों घूम कर आएंगी, इतना बड़ा वज्रपात हुआ है, दोनों कुछ उबर पाएंगी.

इतनी प्रतिभावान मां हिम्मत छोड़ कर ऐसे ही दुख में डूबी रही तो क्या होगा मां का, कैसे मन लगेगा, जूही को इस बात की बड़ी चिंता थी और यह कि जिन किताबों में मां रातदिन डूबी रहती थीं, अब उन की तरफ देख भी नहीं रही थीं. बस, चुपचाप बैठी रहती थीं. इस ट्रिप से मां का मन जरूर बदलेगा. घर में तो हर समय कोई न कोई शोक प्रकट करने आता ही रहता था. वही बातें बारबार सुन कर कैसे इस मनोदशा से निकला जा सकता है. यही सब जूही के दिमाग में चलता रहता था.

शेखर का टिकट तो बहुत भारीमन से जूही कैंसिल करवा चुकी थी. औफिस का काम अपने मित्रों, सहयोगियों पर छोड़ कर जूही और कावेरी ट्रिप पर निकल गईं.

मुंबई से साढ़े 3 घंटे में कतर पहुंच कर वहां 2 घंटे रुकना था. जूही पिता को याद करते हुए उन की बातें करने में न हिचकते हुए कावेरी से उन की खूब बातें करने लगी कि पापा को ट्रैवलिंग का कितना शौक था. हर जगह का स्ट्रीटफूड ट्राई करते थे. हम भी ऐसा ही करेंगे. कावेरी भी धीरेधीरे सब याद करते हुए मुसकराने लगी तो जूही को बहुत खुशी हुई. फ्लाइट चेंज कर के दोनों साढ़े 7 घंटे में जेनेवा पहुंच गए.

जूही ने कहा, ‘‘मां, यहां रुकेंगे. ‘लेक जेनेवा’ पास से देखेंगे. पापा ने बताया था, उन्होंने डिस्कवरी चैनल में देखा था एक बार, लेक से एक तरफ स्विटजरलैंड, एक तरफ फ्रांस दिखता है. वहां ‘लोसान टाउन’ है जहां से ये दोनों दिखते हैं. वहीं ‘लेक जेनेवा’ के सामने किसी होटल में रह लेंगे.’’

‘‘ठीक है, जैसा तुम ने सोचा है, सब जानकारी ले ली है न?’’

‘‘हां, मां, अजय भैया के लगातार संपर्क में हूं.’’ रात होतेहोते बर्फ से ढके पहाड़ों पर लाइट दिखने लगी. जूही ने उत्साहपूर्ण कांपती सी आवाज में कहा, ‘‘मां, वह देखो, वह फ्रांस है.’’ होटल में रूम ले कर सामान रख कर फ्रैश होने के बाद दोनों ने कुछ खाने का और्डर किया, थोड़ा खापी कर दोनों बार निकल आईं.

लेक के आसपास कईर् परिवार बैठ कर एंजौय कर रहे थे. शेखर की याद शिद्दत से आई. कावेरी वहां के माहौल पर नजर डालने लगी. सब कितने शांत, खुश, बच्चे खेल रहे थे. आसपास काफी चर्च थे. चर्च की घंटियों की आवाज कावेरी को बड़ी भली सी लगी.

दोनों अगले दिन लोसान घूमते रहे. कैथेड्रल्स, गार्डंस, म्यूजियम बहुत थे. वहां दोनों 2 दिन रुके. वहीं एक जगह मूवी ‘दिल वाले दुलहनिया ले जाएंगे’ की शूटिंग हुई थी. कावेरी अचानक हंस पड़ी, ‘‘जूही, याद है न, तुम्हारे पापा ने यह मूवी 4 बार देखी थी. टीवी पर तो जब भी आती थी, वे देखने बैठ जाते थे. यही सब तो उन्हें यहां देखना था, आज यह जगह देख कर वे बहुत खुश होते.’’

‘‘वे देख रहे हैं यह जगह हमारे साथ, जो हमेशा दिल में रहते हैं. वे दूर कहां हैं,’’ जूही बोली थी.

कावेरी मुसकरा दी, ‘‘मेरी मां बनती जा रही हो तुम. मेरी मां होती तो वे भी मुझे यही समझातीं. सच ही कहा गया है कि बेटी बड़ी हो जाए तो भूमिकाएं बदल जाती हैं.’’

दोनों वहां से फिर ‘इंटरलेकन’ चली गईं. वहां जा कर तो दोनों का मन खिल उठा. वहां बड़ा सा पहाड़ था. 2 लेक के बीच की जगह को इंटरलेकन कहा जाता है. सुंदर सी लेक. अचानक जूही जोर से हंस पड़ी, ‘‘मां, उधर देखो, कितने सारे हिंदी के साइन बोर्ड.’’

‘‘वाह,’’ कावेरी भी वहां हिंदी के साइनबोर्ड देख कर आश्चर्य से भर उठी. वहां से दोनों 2 घंटे का सफर कर खूबसूरत ‘टौप औफ यूरोप’ देखने गईं जो पूरे साल बर्फ से ढका रहता है. वहां से वापस आ कर आसपास की जगहें देखीं. वहां का कल्चर, खानपान का आनंद उठाती रहीं. वहां उन्हें थोड़ा जरमन कल्चर भी देखने को मिला.

ट्रिप काफी रोमांचक और खूबसूरत लग रहा था. दोनों को कहीं कोई परेशानी नहीं थी. दोनों हर जगह फैले प्राकृतिक सौंदर्य को जीभर कर एंजौय कर रही थीं. पूरी ट्रिप के अंत में उन्हें 2 दिन के लिए अजय के घर भी जाना था. अजय सब बता ही रहा था कि अब कहां और कैसे जाना है.

फिर अजय की सलाह पर दोनों वहां से

इटली में ‘ओरोपा सैंचुरी’ चले गए, जो पहाड़ों में ही है. वहां बहुत ही पुराने चर्च हैं, जहां जीसस के हर रूप को बहुत ही अनोखे ढंग से दिखाया गया है. जीसस का साउथ अफ्रीकन और डार्क जीसस और मदर मैरी का अद्भुत रूप देख कर दोनों दंग रह गईं. इंग्लिश नेस थीं. बहुत सारी धर्मशालाएं थीं. बहुत ही अद्भुत, रोमांचक अनुभव था यह.

फोन का नैटवर्क नहीं था तो हर जगह शांति थी व इतनी सुंदरता कि कावेरी ने अरसे बाद मन को इतना शांत महसूस किया. आसपास सुंदर झीलों की आवाज, प्रकृतिप्रदत्त सौंदर्य को आत्मसात करती कावेरी जैसे किसी और ही दुनिया में पहुंच गई थी. अगले दिन एक नन दोनों को ग्रेवयार्ड दिखाने ले गई.

जूही अब तक? इस नन से काफी बातें कर चुकी थी. अपने पिता की मृत्यु के बारे में भी बता चुकी थी. नन काफी स्नेहिल स्वभाव की थी. वहां पहुंच कर नन की शांत, गंभीर आवाज गूंज रही थी, ‘बस, यही सच है. जीवन का सार यही है. यही होना है. एक दिन सब को जाना ही है. बस, यही कोशिश करनी चाहिए कि कुछ ऐसा कर जाएं कि सब के पास हमारी अच्छी यादें ही हों. जितना जीवन है, खुशी से जी लें, पलपल का उपयोग कर लें. दुखों को भूल आगे बढ़ते रहें.’’ नन तो यह कह कर थोड़ा आगे बढ़ गई. कावेरी को पता नहीं क्या हुआ, वह अद्भुत से मिश्रित भावों में भर कर जोरजोर से रो पड़ी.

नन ने वापस आ कर कावेरी का कंधा थपथपाया और फिर आगे बढ़ गई. जूही भी मां की स्थिति देख सिसक पड़ी. पर जीभर कर रो लेने के बाद कावेरी ने अचानक खुद को बहुत मजबूत महसूस किया. खुद को संभाला, अपने और जूही के आंसू पोंछे. जूही को गले लगा कर प्यार किया और मुसकरा दी.

जूही अब हैरान हुई, ‘‘क्या हुआ, मां, आप ठीक तो हैं न?’’

‘‘हां, अब बिलकुल ठीक हूं, चलें?’’ दोनों आगे चल दीं.

जूही ने मां की ऐसी शांत मुद्रा बहुत दिनों बाद देखी थी, कहा, ‘‘मां, बहुत थक गई, आज जल्दी सोऊंगी मैं.’’

‘‘तुम सोना, मुझे कुछ काम है.’’

‘‘क्या  काम, मां?’’ जूही फिर हैरान हुई.

‘‘आज ही रात को नई कहानी में इस ट्रिप का अनुभव लिखना है न.’’

‘‘ओह, सच मां?’’ जूही ने मां के गाल चूम लिए.

एकदूसरे का हाथ पकड़ शांत मन से दोनों ने कुछ इस तरह से आगे कदम बढ़ा दिए थे कि नन भी पीछे मुड़ कर उन्हें देख मुसकरा दी थी.

Hindi Kahaniyan : ताकझांक – शालू को रणवीर से आखिर क्यों होने लगी नफरत?

Hindi Kahaniyan : वह नई स्मार्ट सी पड़ोसिन तरुण को भा रही थी. उसे अपनी खिड़की से छिपछिप कर देखता. नई पड़ोसिन प्रिया भी फैशनेबल तरुण से प्रभावित हो रही थी. वह अपने सिंपल पति रणवीर को तरुण जैसा फैशनेबल बनाने की चाह रखने लगी थी.

शाम को जब प्रिया बनसंवर कर बालकनी में पड़े झले पर आ बैठती तो तरुण चोरीछिपे उस की हर बात नोटिस करता. कितनी सलीके से साड़ी पहने चाय की चुसकियां लेते हुए किसी किताब में गुम रहती है मैडम. क्या करे मियांजी का इंतजार जो करना है और मियांजी हैं जो जरा भी खयाल नहीं रखते इस बात का. बेचारी को खूबसूरत शाम अकेले काटनी पड़ती है. काश वह उस का पति होता तो सब काम छोड़ फटाफट चला आता.

तरुण का मन गाना गाने को मचलने लगता, ‘कहीं दूर जब दिन ढल जाए…’ कितने ही गाने हैं हसीन शाम के ‘ये शाम मस्तानी…’ ‘‘तरु कहां हो… समोसे ठंडे हो रहे हैं,’’ तभी उसे सपनों की दुनिया से वास्तविकता के धरातल पर पटकती उस की पत्नी शालू की आवाज सुनाई दी.

आ गई मेरी पत्नी की बेसुरी आवाज… इस के सामने तो बस एक ही गाना गा सकता हूं कि जब तक रहेगा समोसे में आलू तेरा रहूंगा ओ मेरी शालू…

‘‘बालकनी में हो तो वहीं ले आती हूं,’’ शालू कपों में चाय डालते हुए किचन से ही चीखी.

‘‘उफ… नहीं, मैं आया,’’ कह तरुण जल्दी यह सोचते हुए अंदर चल दिया, ‘कहां वह स्लिमट्रिम सी कैटरीना कैफ और कहां ये हमारी मोटी भैं…’

तरुण ने कदमों और विचारों को अचानक ब्रेक न लगाए होते तो चाय की ट्रे लाती शालू से टकरा गया होता.

तरुण रोज सुबह जौगिंग पर जाता तो प्रिया वहां दिख जाती. तरुण से रहा नहीं गया. जल्द ही उस ने अपना परिचय दे डाला, ‘‘माईसैल्फ तरुण… मैं आप के सामने वाले फ्लैट…’’

‘‘हांहां, मैं ने देखा है… मैं प्रिया और वे सामने जो पेपर पढ़ रहे हैं वे मेरे पति रणवीर हैं,’’ प्रिया उस की बात काटते हुए बोली.

‘‘कभी रणवीर को ले कर हमारे घर आएं.मैं और मेरी पत्नी शालू ही हैं… 2 साल ही हुएहैं हमारी शादी को,’’ तरुण बोला.

‘‘रियली? आप तो अभी बैचलर से ही दिखते हैं,’’ प्रिया ने तरुण के मजबूत बाजुओं पर उड़ती नजर डालते हुए कहा, ‘‘हमारी शादी को भी 2 ही साल हुए हैं.’’ अपनी तारीफ सुन कर तरुण उड़ने सा लगा.

‘‘रणवीर साहब अपना राउंड पूरा कर चुके?’’

‘‘अरे कहां… जबरदस्ती खींच कर लाती हूं इन्हें घर से… 1-2 राउंड भी बड़ी मुश्किल से पूरा करते हैं.’’

‘‘यहां पास ही जिम है. मैं यहां से सीधा वहीं जाता हूं 1 घंटे के लिए.’’

‘‘वंडरफुल… मैं भी जाती हूं उधर लेडीज विंग में…  ड्रौप कर के ये सीधे घर चले जाते हैं… सो बोरिंग… चलिए आप से मिलवाती हूं शायद आप को देख उन का भी दिल बौडीशौडी बनाने का करने लगे.’’

‘‘हांहां क्यों नहीं? मेरी पत्नी भी कुछ इसी टाइप की है… जौगिंग क्या वाक तक के लिए भी नहीं आती… आप मिलो न उस से. शायद आप को देख कर वह भी स्लिम ऐंड फिट बनना चाहे,’’ तरुण तारीफ करने का इतना अच्छा मौका नहीं खोना चाहता था.

‘‘कल अपनी वाइफ को भी यहीं पार्क की सैर पर लाइएगा.’’ फिर कल आप के पति से वाइफ के साथ ही मिलूंगा.

‘‘ओके बाय,’’ उस ने अपने हेयरबैंड को ठीक करते हुए बड़ी अदा से थ हिलाया.

‘‘बाय,’’ कह कर तरुण ने लंबी सांस भरी.

तरुण जानबूझ कर उलटे राउंड लगाने लगा ताकि वह प्रिया को बारबार सामने से आता देख पाएगा. पर यह क्या पास आतेआते खड़ूस से पति की बगल में बैठ गई. ‘चल देखता हूं क्या गुफ्तगू, गुटरगूं हो रही है,’ सोच वह झडि़यों के पीछे हो लिया. ऐसे जैसे कुछ ढूंढ़ रहा हो… किसी को शक न हो. वह कान खड़े कर सुनने लगा…

‘‘रणवीर आप तो बिलकुल ही ढीले हो कर बैठ जाते हो. अभी 1 ही राउंड तो हुआ आप का… वह देखो सामने से आ रहा है… अरे कहां गया… कितनी फिट की हुई है उस ने बौडी… लगातार मेरे साथ 5 चक्कर तो हो ही गए उस के अभी भी… हमारे सामने वाले घर में ही तो रहता है… आप ने देखा है क्या सौलिड बौडी है उस की…’’

‘अरे, यह तो मेरे बारे में ही बात कर रही है और वह भी तारीफ… क्या बात है…. तरु तुम तो छा गए,’ बड़बड़ा कर वह सीधा हो कर पीछे हो लिया. ‘खड़ूस माना नहीं… आलसी कहीं का… बेचारी रह गई मन मार कर… चल तरु तू भी चल जिम का टाइम हो गया है’ सोच वह जौगिंग करते हुए ही जिम पहुंच गया.

प्रिया को जिम के पास उतार कर रणवीर चला गया यह कहते हुए, ‘घंटे भर बाद लेने आ जाऊंगा… यहां वक्त बरबाद नहीं कर सकता.’

‘हां मत कर खड़ूस बरबाद… तू जा घर में बैठ और मरनेकटने की खबरें पढ़.’ मन ही मन बोलते हुए तरु ने बुरा सा मुंह बनाया, ‘और अपनी शालू रानी तो घी में तर आलू के परांठे खाखा कर सुबहसुबह टीवी सीरियल से फैशन सीखने की क्लास में मस्त खुद को निखारने में जुटी होंगी.’

दूसरे दिन तरुण शालू को जबरदस्ती प्रिया जैसा ट्रैक सूट पहना कर पार्क में ले आया.1 राउंड भी शालू बड़ी मुश्किल से पूरा कर पाई. थक कर वह साइड की डस्टबिन से टकरा कर गिर गई.

‘‘कहां हो शालू? कहां गई?’’ पुकार लोगों के हंसने की आवाजें सुन तरुण पलटा. शालू की ऐसी हालत देख उस की भी हंसी छूट गई पर प्रिया को उस ओर देखता देख खिसियाई सी हंसी हंसते हुए हाथ का सहारा दे उठा दिया.

प्रिया के आगे गोल होती जा रही शालू को देख तरुण को और भी शर्मिंदगी महसूस होती. घर पर उस ने साइक्लिंग मशीन भी ला कर रख दी पर उस पर शालू 10-15 बार चलती और फिर पलंग पर फैल जाती.

‘‘बस न तरु हो गया न आज के लिए… सुबह से कुछ नहीं खाने दिया, बहुत भूख लगी है. खाने दो  पहले आलू के परांठे प्लीज.’’ खाने के नाम से उस में इतनी फुरती आ जाती कि तरुण के छिपाए परांठे फटाफट उठा लाती और फटाफट खाने लगती.

‘‘तुम भी खा कर तो देखो मिर्च के अचार के साथ… बड़े टेस्टी लग रहे हैं… बाद में अपना घासफूस खा लेना,’’ परांठे का टुकड़ा उस की ओर बढ़ाते हुए शालू मुसकराई.

‘‘नो थैंक्स… तुम्हीं खाओ,’’ कह तरुण डाइनिंग टेबल पर रखे कौर्नफ्लैक्स दूध की ओर बढ़ गया.शालू टीवी खोल कर बैठ गई तो तरुण बाउल ले कर अपनी विंडो पर आ गया.

‘ओह आज तो सुबह से बड़ी चहलकदमी हो रही है… तैयार मैडम प्रिया सधे कदमों से हाईहील में खटखट करते इधरउधर आजा रही हैं,’ दिल में उस के जलतरंग सी उठने लगी. ‘लगता है किसी फंक्शन में जा रही है… उफ लो यह खड़ूस अपने जूते पहने यहीं आ मरा… बेटा, थ्री पीस सूट पहन कर हीरो नहीं बन जाएगा… बीवी की बात कभी तो मान लिया कर… थोड़ी बौडीशौडी बना ले,’ तरुण परदे के पीछे खड़ा बड़बड़ाए जारहा था.

‘काश, प्रिया जैसी मेरी बीवी होती… खटखट करते2 कदम आगे2 कदम पीछे करके मेरे साथ डांस करती… मैं उसे यों गोलगोल घुमाता,’ वह खयालों में खो गया.

एक दिन खयालों को सच करने के लिए तरुण शालू के नाप के हाईहील सैंडल ले आया. बड़े चाव से शालू को पहना कर उस ने म्यूजिक औन कर दिया. शालू को सहारा दे कर उस ने खड़ा किया. घुमाया तो शालू खिलखिला कर हंसते हुए बोली, ‘‘अरे तरु मुझ से नहीं होगा… गिर जाऊंगी,’’ फिर अपनेआप को संभालने के लिए उसने तरुण को जो खींचा तो दोनों बिस्तर पर जा गिरे. तरुण को भी हंसी आ गई. थोड़ी देर तक दोनों हंसते रहे.

प्रिया को अपनी बालकनी से ज्यादा कुछ तो दिखाई नहीं दिया पर दोनों की हंसी बड़ी देर तक सुनाई देती रही.

‘अकसर दोनों की हंसीखिलखिलाहट सुनाई देती है. कितना हंसमुख है तरुण… अपनी पत्नी को कितना खुश रखता है और एक ये हैं श्रीमान रणवीर हमेशा मुंह फुलाए बैठे रहते हैं जैसे दुनिया का सारा बोझ इन्हीं के कंधों पर हो,’ प्रिया के दिल में हूक सी उठी तो वह अंदर हो ली.

थोड़ी देर बाद ही तरुण उठा और शालू को भी उठा दिया, ‘‘चलो, थोड़ी प्रैक्टिस करते हैं… कल 35 नंबर कोठी वाले उमेशजी के बेटे की सगाई है. सारे पड़ोसियों को बुलाया है. हमें भी. और रणवीर फैमिली को भी. खूब डांसवांस होगा. बोला है खूब तैयार हो कर आना.’’

‘‘अच्छा तो यह बात है. तभी ये सैंडल…’’ शालू मुसकराई.

शालू फिर खड़ी हो गई. किसी तरह तरुण कमर में हाथ डाल कर डांस करवाने लगा. हंसते हुए शालू ने 2 राउंड लिए. फिर अचानक पैर ऐसा मुड़ा कि हील सैंडल से अलग जा पड़ी और शालू अलग.

‘‘तुम से कुछ नहीं होगा शालू… तुम ने अच्छेखासे सैंडल भी बेकार कर दिए.’’

‘‘ब्रैंडेड नहीं थे…  तो पहले ही लग रहा था पर आप को बुरा लगेगा इसलिए कहा नहीं. प्रिया को रणवीर हर चीज ब्रैंडेड ही दिलाते हैं. काश, मेरा पति भी इतना रईस होता,’’ कह शालू ने ठंडी आह भरी.

‘‘यह देखो क्या किया…’’ तरुण ने दोनों टुकड़े उसे थमा दिए.

शालू ने उन्हें क्विकफिक्स से चिपका दिया. बोली, ‘‘देखो तरु सैंडल बिलकुल सही हो गया. अब चलो पार्टी में.’’

‘‘हां पर डांसवांस तुम रहने ही देना… वहां तुम्हारे साथ कहीं मेरी भी भद्द न हो जाए,’’ तरुण बेरुखाई से बोला.

उधर रणवीर अपनी बालकनी में शालू की किचन से रोज आती आलू, पुदीने के परांठों की खुशबू से काफी प्रभावित था. पत्नी प्रिया के रोजरोज के उबले अंडे, दलिया के नाश्ते से त्रस्त था. कई बार चुपके से शालू की तारीफ भी कर चुका था और वह कई बार मेड के हाथों उसे भिजवा भी चुकी थी. आज सुबह भी उस ने परांठे भिजवाए थे.

शालू तरुण के साथ नीचे उतरी तो प्रिया और रणवीर भी आ चुके थे. रणवीर गाड़ी स्टार्ट कर रहा था.

‘‘आइए, साथ ही चलते हैं तरुणजी,’’ रणवीर ने कहा तो प्रिया ने भी इशारा किया. चारों बैठ गए.

रणवीर बोला, ‘‘परांठों के लिए थैंक्स शालूजी… आप के हाथों में जादू है… मैं अपनी बालकनी से रोज पकवानों की खुशबू का मजा लेता हूं… प्रिया को तो घी, तेल पसंद नहीं… न बनाती है न मु?ो खाने देना चाहती है. तरुणजी आप के तो मजे हैं. रोज बढि़याबढि़या पकवान खाने को मिलते हैं. काश…’’

‘अबे आगे 1 लफ्ज भी न बोलना… क्या बोलने जा रहा था तू,’ तरुण मुट्ठियां भींचते हुए मन ही मन बुदबुदा उठा.

इधर शालू महंगी बड़ी सी गाड़ी में बैठ एक रईस से अपनी तारीफ सुन कर निहाल हुई जा रही थी.

और प्रिया ‘हां फैट खूब खाओ और ऐक्सरसाइज मत करो. फिर थुलथुल बौडी लेकर घूमना इन्हीं यानी शालू के साथ… तरुणकी तारीफ में क्यों बोलोगे? क्या गठीली बौडीहै. काश मेरा हबी ऐसा होता,’ प्रिया मन हीमन बोली.

शालू पर उड़ती नजर पड़ी तो न जाने क्यों वह जलन सी महसूस करने लगी. गाड़ी के ब्रेक के साथ सभी के उठते विचारों को भी ब्रेक लगे. पार्टी स्थल आ गया था.

मेहमान आ चुके थे. फंक्शन जोरों पर था. मीठीमीठी धुन के साथ कोल्डड्रिंक्स, मौकटेल के दौर चल रहे थे. तभी वधू का प्रवेश हुआ. स्टेज से उतर लड़के ने उस का स्वागत किया और स्टेज पर ले आया. तालियों की गड़गड़ाहट के साथ सगाई की रस्म पूरी की गई.

सभी ने बारीबारी से स्टेज पर आ कर बधाई दी. लड़कालड़की की शान में कुछ कहना भी था उन्हें चाहे गा कर चाहे वैसे ही. सभी ने कुछ न कुछ सुनाया.

तरुण और शालू स्टेज पर आए तो प्रिया की हसरत भरी नजरें डैशिंग तरुण पर ही जमी थीं. तरुण ने किसी गीत की मुश्किल से 2 लाइन ही गुनगुनाईं और फिर बधाई गिफ्ट थमा शालू का हाथ थामे शरमाते हुए स्टेज से उतर गया.

‘ओह तरुण की तो बस बौडी ही बौडी है. अंदर तो कुछ है ही नहीं… 2 शब्द भी नहीं बोल पाया लोगों के सामने. कितना शाई… गाना भी पूरा नहीं गा सका,’ तरुण को स्टेज पर चढ़ता देख प्रिया की आंखों में आई चमक की जगह अब निराशा झलक रही थी. आकर्षण कहीं काफूर हो रहा था.

‘शालू, आप ऐसे कैसे जा सकती हो बगैर डांस किए. मैं ने आप का बढि़या डांस देखा है… मेरे हाथों में… आइएआइए,’’ उमेशजी की पत्नी आशाजी ने आत्मीयता से उसे ऊपर बुला लिया.

शालू ने तरुण को इशारा किया. शालू ने तरुण को इशारे से ही तसल्ली दी और सैंडल उतार कर स्टेज पर आ गई.

फरमाइश का गाना बज उठा. फिर तो शालू ऐसी नाची कि सभी उस के साथ तालियां बजाते हुए मस्त हो थिरकने लगे. तरुण ने देखा वैस्टर्न डांस पर थिरकने वाले लोग भी ठुमकने लगे थे… वह नाहक ही घबरा रहा था… शालू तो छा गई…

गाना खत्म हुआ तो प्रिया के साथ रणवीर स्टेज पर आ गया. उस ने अपनी ठहरी हुई आवाज और धाराप्रवाह में चंद शेरों से सजे संक्षिप्त वक्तव्य के द्वारा सब को ऐसा मंत्रमुगध किया कि सभी वंसमोर वंसमोर कह उठे. प्रिया भी उसे गर्व से देखने लगी कि कितने शालीन ढंग से कितने खूबसूरती से शब्दों को पिरो कर बोलता है रणवीर. उस के इसी अंदाज पर तो वह मर मिटी थी. उस ने कुहनी के पास से रणवीर का बाजू प्यार से पकड़ लिया था. दोनों ने फिर किसी इंगलिश धुन पर डांस किया.

अब डांस फ्लोर पर सभी एकसाथ डांस का मजा लेने लगे. डांस का म्यूजिक चल पड़ा था. स्टेज पर वरवधू भी थिरकने लगे. सभी पेयर में नृत्य कर रहे थे. कभी पेयर बदल भी लिए जा रहे थे. शालू ने धीरेधीरे तरुण के साथ 1-2 स्टेप लिए पर पेयर बदलते ही वह घबरा उठी और किनारे लगी सीट में एक पर जा बैठी. तरुण थोड़ी देर नई रस्म में शामिल हो नाचता रहा.

एक बार प्रिया भी उस के पास आ गई पर दूसरे ही पल वह दूसरे की बांहों में थिरकती तीसरी के पास पहुंच गई. तरुण को झटका सा लगा. कुछ अजीब सा फील होने लगा, ‘कैसे हैं ये लोग… रणवीर अपने में मस्त किसी और की पत्नी के साथ और उस की पत्नी प्रिया किसी और के पति के साथ… अजब कल्चर है इन का. इस से अच्छी तो मेरी शालू है.’ उस ने दूर अकेली बैठी शालू की ओर देखा और फिर उस के पास चला गया.

रणवीर ने देख लिया था, ‘उफ, शालू ने न तो खुद ऐंजौय किया और न पति को ही मजे लेने दिए. अपने पास बुला लिया… ऐसी पार्टियों के लायक ही नहीं वे… उधर प्रिया को देखो. कैसे एक हीरोइन सी सब की नजरों का केंद्र बनी हुई है. आई जस्ट लव हर…’ उसे नशा चढ़ने लगा था. कदमों के साथ उस की आवाज भी लड़खड़ाने लगी थी. रणवीर ने प्रिया को पकड़ने के लिए हाथ बढ़ाया तो उस के कदम भी लड़खड़ाए और फिर फर्श पर जा गिरी. हड़कंप मच गया. क्या हुआ? क्या हुआ?

प्रिया दर्द से कराह उठी थी. पैर में फ्रैक्चर हो गया था. रणवीर तो खुद उसे उठाने की हालत में न था. तरुण और शालू ने जैसेतैसे अस्पताल पहुंचाया.

उमेशजी अपने ड्राइवर को गाड़ी ड्राइव करने के लिए बोल रहे थे पर रणवीर माना नहीं. रास्ते भर तरुण, उस की इधरउधर भागती गाड़ी के स्टेयरिंग को मुश्किल से संभालता रहा. पर इस सब से बेखबर शालू महंगी गाड़ी में बैठी एक बार फिर अपने रईस पति की कल्पना में खो गई थी.

प्रिया घर आ गई थी. उस के पैर में प्लास्टर चढ़ गया था. लाते समय भी शालू और तरुण अस्पताल पहुंचे थे. तभी एक गरीब महिला रोती हुई आई और सब से अपने बच्चे के लिए खून देने के लिए गुहार करने लगी.

‘‘तुम प्रिया मैडम के पास चलो शालू. मैं अभी आता हूं,’’ कह तरुण ने शालू से कहा तो वह उस का आशय समझ गई.‘‘अभी 10 दिन भी नहीं हुए तुम्हें खून दिए तरुण,’’ शालू बोली.

तरुण नहीं माना. उस गरीब को खून दे आया. फिर प्रिया को उस के फ्लोर पर सहीसलामत पहुंचाया. अगले दिन बौस से डांट भी खानी पड़ी. औफिस पहुंचने में लेट जो हो गया था.

‘तरुण भी न दूसरों की खातिर अपनी परवाह नहीं करता,’ शालू औटो में बैठी सोच रही थी.

अपने ब्लौक के गेट के पास आने पर उसे एक संतरे की रेहड़ी वाला दिखा. उस ने औटो रुकवाया और उतर कर औटो वाले को पैसे देने लगी.

तभी वहां से हवा में बातें करती एक लंबी सी गाड़ी गुजरी. वह रोमांचित हो उठी. उस ने सिर उठा कर देखा, ‘अरे ये तो हमारे पड़ोसी रणवीर हैं. काश, उस का पति भी कोई बीएमडब्ल्यू जैसी गाड़ी वाला होता.’ शालू अभी यह सोच ही रही थी कि वही गाड़ी उलटी साइड से आ कर रेहड़ी वाले से जा टकराई. रेहड़ी उलट गई और रेहड़ी वाला छिटक कर दूर जा गिरा. उस के संतरे सड़क पर चारों ओर बिखर गए. शालू ने साफ देखा था. गाड़ी गलत साइड से आ कर रेहड़ी वाले से टकराई थी. फिर भी रणवीर ने तमाचे उस गरीब को जड़ दिए. फिर चीख कर बोला, ‘‘देख कर नहीं चल सकता?’’

‘‘साहबजी…’’ आंसू बन रेहड़ी वाले का दर्द आंखों में उतर आया. वह हाथ जोड़े इतना ही बोल सका.

‘‘ये पकड़ अपने नुकसान के रुपए… ज्यादा नाटक मत कर… कुछ नहीं हुआ… अब जल्दी सड़क साफ कर,’’ कह रणीवर ने उसे 2 हजार का 1 नोट दिया. शालू रणवीर का क्रूर व्यवहार देखती रह गई कि इतना अमानवीय बरताव…

उस की महंगी गाड़ी फिर तेजी से उस की आंखों से ओझल हो गई. शालू को इस समय कोई रोमांच न हुआ, बल्कि उसे अपनी आंखों में नमी सी महसूस होने लगी. उस ने पर्स से रुमाल निकाल कर रेहड़ी वाले के माथे से रिसता खून पोंछ कर बैंडएड चोट पर चिका दी. फिर संतरे उठवाने में उस की मदद करने लगी.

‘‘रहने दीजिए मैडमजी मैं उठा लूंगा,’’ रेहड़ी वाले के पैरों और हाथों में भी चोटें थीं.

शालू ने नजरों से ओझल हुई उस गाड़ी की ओर देखा. वहां सिर्फ धूल का गुबार था, जिस ने उस की सपनीली कल्पना को उड़ा कर रख दिया कि शुक्र है उस का तरुण महंगी बड़ी गाड़ी में घूमने वाले ऐसे छोटे दिल के घटिया इंसान की तरह नहीं है. न जाने उस ने कितनी बार तरुण को ऐसे जरूरतमंदों की मदद करते देखा है. रईस ही तो है वह. वास्तव में बड़े दिल वाला रईस. शालू को तरुण पर प्यार आने लगा और फिर वह तेज कदमों से घर की ओर बढ़ चली.

Short Stories in Hindi : जरूरी हैं दूरियां पास आने के लिए

Short Stories in Hindi : फ्लाइट बेंगलुरु पहुंचने ही वाली थी. विहान पूरे रास्ते किसी कठिन फैसले में उलझ था. इसी बीच  मोबाइल पर आते उस कौल को भी वह लगातार इग्नोर करता रहा. अब नहीं सींच सकता था वह प्यार के उस पौधे को, उस का मुरझ जाना ही बेहतर है. इसलिए उस ने मिशिका को अपनी फोन मैमोरी से रिमूव कर दिया. मुमकिन नहीं था यादों को मिटाना, नहीं तो आज वह उसे दिल की मैमोरी से भी डिलीट कर देता सदा के लिए.

‘सदा के लिए… नहींनहीं, हमेशा के लिए नहीं, मैं मिशी को एक मौका और दूंगा,’ विहान मिशी के दूर होने के खयाल से ही डर गया.

‘शायद ये दूरियां ही हमें पास ले आएं,’ यही सोच कर उस ने मिशी की लास्ट फोटो भी डिलीट कर दी.

इधर  मिशिका परेशान हो गई थी, 5 दिनों से विहान से कोई कौंटैक्ट नहीं हुआ था.

‘‘हैलो दी, विहान से बात हुई क्या? उस का न कौल लग रहा है न कोई मैसेज पहुंच रहा है, औफिस में एक प्रौब्लम आ गई है, जरूरी बात करनी है,’’ मिशी बिना रुके बोलती गई.

‘‘नहीं, मेरी कोई बात नहीं हुई. और प्रौब्लम को खुद सौल्व करना सीखो,’’ पूजा ने इतना कह कर फोन काट दिया.

मिशी को दी का यह रवैया अच्छा नहीं लगा, पर वह बेपरवाह सी तो हमेशा से ही थी, सो उस ने दी की बात पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया.

मिशिका उर्फ मिशी मुंबई में एक कंपनी में जौब करती है. उस की बड़ी बहन है पूजा, जो अपने मौमडैड के साथ रहते हुए कालेज में पढ़ाती है. विहान ने अभी बेंगलुरु में नई मल्टीनैशनल कंपनी जौइन की है. उस की बहन संजना अभी पढ़ाई कर रही है. मिशी और विहान के परिवारों में बड़ा प्रेम है. वे पड़ोसी थे. विहान का घर मिशी के घर से कुछ ही दूरी पर था. 2 परिवार होते हुए भी वे एक परिवार जैसे ही थे. चारों बच्चे साथसाथ बढ़े हुए.

गुजरते दिनों के साथ मिशी की बेपरवाही कम होने लगी थी. विहान  से बात न हुए आज पूरे 3 महीने बीत गए थे. मिशी को खालीपन लगने लगा था. बचपन से अब तक ऐसा कभी नहीं हुआ था. जब पास थे तो वे दिन में कितनी ही बार मिलते थे, और जब जौब के कारण दूर हुए तो कौल और चैट का हिसाब लगाना भी आसान काम नहीं था. 2-3 महीने गुजरने के बाद मिशी को विहान की बहुत याद सताने लगी थी. वह जब भी घर पर फोन करती तो मम्मीपापा, दीदी सभी से विहान के बारे में पूछती. आंटीअंकल से बात होती तब भी जवाब एक ही मिलता, ‘वह तो ठीक है, पर तुम दोनों की बात नहीं हुई, यह कैसे पौसिबल है?’ अकसर जब मिशी कहती कि महीनों से बात नहीं हुई तो सब झठ ही समझते थे.

दशहरा आ रहा था, मिशी जितनी खुश घर जाने को थी उस से कहीं ज्यादा खुश यह सोच कर थी कि अब विहान से मुलाकात होगी. इन छुट्टियों में वह भी तो आएगा.

‘बहुत झगड़ा करूंगी, पूछूंगी उस से  यह क्या बचपना है, अच्छी खबर लूंगी. क्या समझता है अपनेआप को… ऐसे कोई करता है क्या,’ ऐसी ही अनगिनत बातों को दिल में समेटे वह घर पहुंची. त्योहार की रौनक मिशी की उदासी कम न कर सकी. छुट्टियां खत्म हो गईं, वापसी का समय आ गया पर वह नहीं आया जिस का मिशी बेसब्री से इंतजार कर रही थी. दोनों घरों की दूरियां नापते मिशी को दिल की दूरियों का एहसास होने लगा था. अब इंतजार के अलावा उस के पास कोई रास्ता नहीं था.

मिशी दीवाली की शाम ही घर पहुंच पाई थी. डिनर की  तैयारियां चल रही थीं. त्योहारों पर दोनों फैमिली साथ ही समय बितातीं, गपशप, मस्ती, खाना, सब खूब एंजौय करते थे. आज विहान की फैमिली आने वाली थी. मिशी खुशी से झम उठी थी, आज तो विहान से बात हो ही जाएगी. पर उस रात जो हुआ उस का मिशी को अंदाजा भी नहीं था. दोनों परिवारों ने सहमति से पूजा और विहान का रिश्ता तय कर दिया. मिशी को छोड़ सभी बहुत खुश थे.

‘पर मैं खुश क्यों नहीं हूं? क्या मैं विहान से प्यार… नहींनहीं, हम तो, बस, बचपन के साथी हैं. इस से ज्यादा तो कुछ नहीं है. फिर मैं आजकल विहान को ले कर इतना क्यों परेशान रहती हूं? उस से  बात न होने से मुझे यह क्या हो रहा है. क्या मैं अपनी ही फीलिंग्स समझ नहीं पा रही हूं?’ इसी उधेड़बुन में रात आंखों में  बीत गई थी. किसी से कुछ शेयर किए बिना ही वह  वापस मुंबई  लौट  गई. दिन यों ही बीत रहे थे. पूजा की शादी के बारे में न घर वालों ने आगे कुछ बताया न ही  मिशी ने पूछा.

एक दिन दोपहर को मिशी के फोन पर विहान की कौल आई, ‘‘घर की लोकेशन सैंड करो, डिनर साथ ही करेंगे.’’

मिशी ‘‘करती हूं’’ के अलावा कुछ न बोल सकी. उस के चेहरे पर मुसकान बिखर गई थी. उस दिन वह औफिस से जल्दी घर पहुंची, खाना बना कर घर संवारा और खुद को संवारने में जुट गई.

‘मैं विहान के लिए ऐसे क्यों संवर रही हूं? इस से पहले तो कभी मैं ने इस तरह नहीं सोचा,’ वह सोचने लगी. उस को खुद पर हंसी आ गई. अपने ही सिर पर धीरे से चपत लगा कर वह विहान के इंतजार में भीतरबाहर होने लगी. उसे लग रहा था जैसे वक्त थम गया हो. वक्त काटना मुश्किल हो रहा था.

लगभग 8 बजे डोरबेल बजी. मिशी की सांसें ऊपरनीचे हो गईं, शरीर ठंडा सा लगने लगा, होंठों पर मुसकराहट तैर गई. दरवाजा खोला, पूरे 10 महीने बाद विहान उस के सामने था. एक पल को वह उसे देखती ही रही, दिल की बेचैनी आंखों से निकलने को उतावली हो उठी.

विहान भी लंबे समय बाद अपनी मिशी से मिल उसे देखता ही रह गया. फिर मिशी ने ही किसी तरह संभलते हुए विहान को अंदर आने को कहा. मिशी की आवाज सुन  विहान  अपनी सुध में वापस आया. दोनों देर तक चुप बैठे, छिपछिप कर एकदूसरे को देख लेते, नजरें मिल जाने पर यहांवहां देखने लगते. दोनों ही कोशिश में थे कि उन की चोरी पकड़ी न जाए.

डिनर करने के बाद, जल्द ही फिर मिलने को कह कर विहान वापस चला गया. उस रात वह विहान से कोई सवाल नहीं कर सकी थी, जितना विहान पूछता रहा, वह उतना ही जवाब देती गई. वह खोई रही, विहान को इतने दिनों बाद अपने करीब पा कर, जैसे जी उठी थी वह उस रात.

विहान एक प्रोजैक्ट के सिलसिले में मुंबई आया था. 15 दिन बीत चुके थे, इन 15 दिनों में विहान और मिशी 2 ही बार मिले.

विहान का काम पूरा हो चुका था, एक दिन बाद उस को निकलना था. मिशी विहान को ले कर बहुत परेशान थी. आखिर उस ने निर्णय लिया कि विहान के जाने के पहले वह उस से बात करेगी, पूछेगी उस की बेरुखी का कारण. मिशी अभी इसी उधेड़बुन में थी, तभी मोबाइल बज उठा. विहान की कौल थी.

‘‘हैलो, मिशी औफिस के बाद तैयार रहना, बाहर चलना है, तुम्हें किसी से मिलवाना है.’’

‘‘किस से मिलवाना है, विहान?’’

‘‘शाम होने तो दो, पता चल जाएगा.’’

‘‘बताओ तो?’’

‘‘समझ लो, मेरी गर्लफ्रैंड है.’’

इतना सुनते ही मिशी चुप हो गई. 6 बजे विहान ने उसे पिक किया. मिशी बहुत उदास थी, दिल में हजारों सवाल उमड़ रहे थे. वह कहना चाहती थी कि विहान, तुम्हारी शादी पूजा दी से होने वाली है, यह क्या तमाशा है. पर नहीं कह सकी, चुपचाप बैठी रही.

‘‘पूछोगी नहीं, कौन है? विहान ने कहा.

‘‘पूछ कर क्या करना है? मिल ही लूंगी कुछ देर में,’’ मिशी ने धीरे से कहा.

थोड़ी देर बाद वे समुद्र किनारे पहुंचे. विहान ने मिशी को एक जगह इंतजार करने को कहा, ‘‘तुम यहां रुको, मैं उस को ले कर आता हूं.’’

आसमान ?िलमिलाते तारों की सुंदर बूटियों से सजा था. समुद्र की लहरें प्रकृति का मनभावन संगीत फिजाओं में घोल रही थीं. हवा मंथर गति से बह रही थी. फिर भी मिशिका का मन उदासी के भंवर में फंसा जा रहा था.

‘विहान मुझ से दूर हो जाएगा, मेरा विहान’ सोचतेसोचते उस की उंगलिया खुदबखुद रेत पर विहान का नाम उकेरने लगीं.

‘‘विहान… मेरा नाम इस से पहले इतना अच्छा कभी नहीं लगा,’’ विहान पीछे से खड़ेखड़े ही बोला.

मिशी ने हड़बड़ाहट में नाम पर हाथ रखते हुए कहा, ‘‘कहां है… कब आए तुम, कहां है वह?’’

मिशी की आंखें उस लड़की को  ढूंढ़ रही थीं जिस से मिलवाने विहान उसे  वहां ले कर आया था.

‘‘नाराज हो कर चली गई,’’ मिशी के पास बैठते हुए विहान ने कहा.

‘‘नाराज हो गई, पर क्यों?’’ मिशी ने पूछा.

‘‘अरे वाह, मैं जिसे प्रपोज करने वाला हूं, वह लड़की यदि देखे कि मेरे बचपन की दोस्त रेत पर इस कदर प्यार से उस के बौयफ्रैंड का नाम लिख रही है, तो गुस्सा नहीं आएगा उसे,’’ विहान ने नाटकीय अंदाज में कहा.

‘‘मैं ने कब लिखा तुम्हारा नाम,’’ मिशी सकपका कर बोली.

‘‘जो अभी अपनेआप रेत पर उभर आया था, उस नाम की बात कर रहा हूं.’’

उस ने नजरें झका लीं, उस की चोरी जो पकड़ी गई थी. फिर भी मिशी बोली, ‘‘मैं ने… मैं ने तो कोई नाम नहीं लिखा.’’

‘‘अच्छा बाबा, नहीं लिखा,’’ विहान ने  मुसकरा कर कहा.

मिशी समझ ही नहीं पा रही थी कि यह हो क्या रहा है.

‘‘और वह लड़की जिस से मिलवाने तुम मुझे यहां ले कर आए थे? सच बताओ न विहान.’’

‘‘कोई लड़कीवड़की नहीं है, मैं अभी जिस के करीब बैठा हूं, बस, वही है,’’ उस ने मिशी की आंखों में देखते हुए कहा.

नजरें  मिलते ही मिशी नजरें चुराने लगी.

‘‘मिशी, मत छिपाओ, आज कह दो जो भी दिल में हो,’’ विहान बोला.

मिशी की जबान खामोश थी पर आंखों में विहान के लिए प्यार साफ नजर आ रहा था, जिसे विहान ने पहले ही महसूस कर लिया था. पर वह मिशी से जानना चाहता था.

मिशी कुछ देर चुप रही, दूर समंदर में उठती लहरों के ज्वार को देखती रही. ऐसा  ही भावनाओं का ज्वार अभी उस के दिल में मचल रहा था. फिर उस ने हिम्मत बटोर कर बोलने की कोशिश की, पर उस की आंखों में जज्बातों का समंदर तैर गया, कुछ रुक कर वह बोली, ‘‘कहां चले गए थे विहान, मैं… मैं… तुम को कितना मिस कर रही थी,’’ इतना कह कर वह फिर शून्य में देखने लगी.

‘‘मिशी, आज भी चुप रहोगी? बह जाने दो अपने जज्बातों को, जो भी दिल में है कहो. तुम नहीं जानतीं मैं ने इस दिन का कितना इंतजार किया है. मिशी बताओ, प्यार करती हो मुझ से?’’

मिशी विहान की तरफ मुड़ी. उस के मन की भावनाएं उस की आंखों में साफ नजर आ रही थीं. होंठ कंपकंपा रहे थे. ‘‘विहान, तुम जब नहीं थे, तब जाना कि मेरे जीवन में तुम क्या हो, तुम्हारे बिना जीना सिर्फ सांस लेना भर है. तुम्हें अंदाजा भी नहीं है कि मैं किस दौर से गुजरी हूं. मेरी उदासी का थोड़ा भी खयाल नहीं आया तुम को,’’ कहतेकहते मिशी रो पड़ी.

विहान ने उस के आंसू पोंछे और  मुसकराने का इशारा करते हुए कहा, ‘‘मिशी, तुम ने तो सिर्फ 10 महीने इंतजार किया, मैं ने वर्षों किया है. जिस तड़प से तुम कुछ दिन गुजरीं, वह मैं ने आज तक सही है. मिशी तुम मेरे लिए तब से खास हो जब मैं प्यार का मतलब भी नहीं समझता था. बचपन में खेलने के बाद जब तुम्हारे घर जाने का समय आता था तब अकसर तुम्हारी चप्पल कहीं खो जाती थी, तुम देर तक ढूंढ़ने के बाद मुझ से ही शिकायत करतीं और हम दोनों मिल कर अपने साथियों पर ही बरस पड़ते. पर मिशी वह मैं ही होता था, हर बार जो तुम्हें रोकने के लिए यह सब करता था. तुम कभी जान ही नहीं पाईं,’’ कहतेकहते विहान यादों में खो गया.

‘‘जानती हो, जब हम साथ पढ़ाई करते थे तब भी मैं टौपिक समझ न आने के बहाने से देर तक बैठा रहता. तुम मुझे बारबार समझतीं. पर, मैं नादान बना बैठा रहता सिर्फ तुम्हारा साथ पाने की चाह में. जब छुट्टियों में बच्चे बाहर अलगअलग ऐक्टिविटी करते तब भी मैं तुम्हारी पसंद के हिसाब से काम करता था ताकि तुम्हारा साथ रहे.’’

‘‘विहान…’’ मिशी ने अचरज से कहा.

‘‘अभी तुम बस सुनो मुझे और मेरे दिल की आवाज को. याद है मिशी, जब हम 12वीं में थे, तुम मुझ से कहतीं, ‘क्यों विहान, गर्लफ्रैंड नहीं बनाई, मेरी तो सब सहेलियों के बौयफ्रैंड हैं?’ मैं पूछता कि तुम्हारा भी है तो तुम हंस देतीं, ‘हट पागल, मुझे तो पढ़ाई करनी है एमबीए की, फिर मस्त जौब. पर विहान,  तुम्हारी गर्लफ्रैंड होनी चाहिए’ इतना  कह कर तुम मुझे अपनी कुछ सहेलियों की खूबियां गिनवाने लगतीं. मेरा मन करता कि तुम्हें  झकझर कर कहूं कि तुम हो तो, पर नहीं कह सका.

‘‘और तुम्हें जो अपने हर बर्थडे पर  जिस सरप्राइज का सब से ज्यादा इंतजार होता, वह देने वाला मैं ही था. बचपन में जब तुम को तुम्हारी फेवरेट टौफी तुम्हारे पैंसिल बौक्स में मिली, तुम बेहद खुश हुई थीं. अगली बार भी जब मैं ने तुम को सरप्राइज किया, तब तुम ने कहा था, ‘विहान, पता नहीं कौन है, मौम, डैड, दी या मेरी कोई फ्रैंड, पर मेरी इच्छा है कि मुझे हमेशा यह सरप्राइज गिफ्ट  मिले.’ तुम ने सब के नाम लिए, पर मेरा नहीं,’’ कहतेकहते विहान की आवाज लड़खड़ा सी गई, फिर भर आए गले को साफ कर वह आगे बोला, ‘‘तब से हर बार मैं यह करता गया. पहले पैंसिल बौक्स था, फिर बैग, फिर तुम्हारा पर्स और अब कूरियर.’’

सच जान कर मिशी जैसे सुन्न हो गई. वह हर बात विहान से शेयर करती थी. पर कभी यह नहीं सोचा कि विहान भी तो वह शख्स हो सकता है. उसे खुद पर बहुत गुस्सा आ रहा था.

रात गहरा चुकी थी. चांद स्याह रात के माथे पर बिंदी बन कर चमक रहा था. तेज हवा और लहरों के शोर में मिशी के जोर से धड़कते दिल की आवाज भी मिल रही थी. विहान आज वर्षों से छिपे प्रेम की परतें खोल  रहा था.

वह आगे बोला, ‘‘मिशी, उस दिन तो जैसे मैं हार गया जब मैं ने तुम से कहा कि मुझे एक लड़की पसंद है. मैं ने बहुत हिम्मत कर अपने प्यार का इजहार करने के लिए यह प्लान बनाया था. मैं ने धड़कते दिल से तुम से कहा, दिखाऊं फोटो, तुम ने झट से मेरा मोबाइल छीना और जैसे ही फोटो देखा, तुम्हारा रिऐक्शन देख, मैं ठगा सा रह गया. मुझे लगा, यहां मेरा कुछ नहीं होने वाला. पगली से प्यार कर बैठा,’’ इतना कह कर उस ने मिशी से पूछा, ‘‘क्या तुम्हें याद है, उस दिन तुम ने क्या किया था?’’

‘‘हां, तुम्हारे मोबाइल में मुझे अपना फोटो दिखा तो मैं ने कहा, ‘वाओ, कब लिया यह फोटो, बहुत प्यारा है, सैंड करो’ और मैं उस पिक में खो गई, सोशल मीडिया पर शेयर करने लगी. तुम्हारी गर्लफ्रैंड वाली बात तो मेरे दिमाग से गायब ही हो गई थी.’’

‘‘जी, मैडमजी, मैं तुम्हारी लाइफ में  इस हद तक जुड़ा रहा कि तुम मुझे कभी अलग से फील कर ही नहीं पाईं. ऐसा कितनी बार हुआ, पर तुम अपनेआप में थीं, अपने सपनों में, किसी और बात के लिए शायद तुम्हारे पास टाइम ही नहीं था, यहां तक कि अपने जज्बातों को समझने के लिए भी नहीं,’’ विहान कहता जा रहा था. मिशी जोर से अपनी मुट्ठियां भींचती हुई अपनी बेवकूफियों का हिसाब लगा रही थी.

इस तरह विहान न जाने कितनी छोटीबड़ी बातें बताता रहा और मिशी सिर झकाए सुनती रही. मिशी का गला रुंध गया, ‘‘विहान, इतना प्यार कोई किसी से कैसे कर सकता है. और तब तो बिलकुल नहीं जब उसे कोई समझने वाला ही न हो. कितना कुछ दबा रखा है तुम ने. मेरे साथ की छोटी से छोटी बात कितनी शिद्दत से सहेज कर रखी है तुम ने.’’

‘‘अरे, पागल रोते नहीं. और यह किस ने कहा कि तुम मुझे समझती नहीं थीं. मैं तो हमेशा तुम्हारा सब से करीबी रहा. इसलिए प्यार का एहसास कहीं गुम हो गया था. और इस हकीकत को सामने लाने के लिए मैं ने खुद को तुम से दूर करने का फैसला किया. कई बार दूरियां नजदीकियों के लिए बहुत जरूरी हो जाती हैं. मुझे लगा कि मेरा प्यार सच्चा होगा, तो तुम तक मेरी सदा जरूर पहुंचेगी. नहीं तो, मुझे आगे बढ़ना होगा तुम को छोड़ कर.’’

‘‘मैं कितनी मतलबी थी.’’

‘‘न बाबा, तुम बहुत प्यारी तब भी थीं और अब भी हो.’’

मिशी के रोते चेहरे पर हलकी सी मुसकान आ गई. वह धीरे से विहान के कंधों पर अपना सिर टिकाने को बढ़ ही रही थी कि अचानक उसे कुछ याद आया. वह एकदम उठ खड़ी हुई.

‘‘क्या हुआ, मिशी?’’

‘‘यह सब गलत है.’’

‘‘क्यों गलत है?’’

‘‘तुम और पूजा दी…’’

‘‘मैं और पूजा….’’ कह कर विहान हंस पड़ा.

‘‘तुम हंस क्यों रहे हो?’’

‘‘मिशी, मेरी प्यारी मिशी, मुझे जैसे ही पूजा और मेरी शादी की बात पता चली तो मैं पूजा से मिला और तुम्हारे बारे में बताया. सुन कर पूजा भी खुश हुई. उस का कहना था कि विहान हो या कोई और, उसे ज्यादा फर्क नहीं पड़ता. मांपापा जहां चाहेंगे, वह खुशीखुशी वहां शादी कर लेगी. फिर हम दोनों ने सारी बात घर पर बता दी. किसी को कोई प्रौब्लम नहीं है. अब इंतजार है तो तुम्हारे जवाब का.’’

इतना सुनते ही मिशी को तो जैसे अपने कानों पर यकीन ही नहीं हुआ. उस के चेहरे पर मुसकराहट तैर गई. अब न कोई शिकायत बची थी, न सवाल.

‘‘बोलो मिशी, मैं तुम्हारे जवाब का इंतजार कर रहा हूं,’’ विहान ने बेचैनी से कहा.

‘‘मेरे चेहरे पर बिखरी खुशी देखने के बाद भी तुम को जवाब चाहिए,’’ मिशी ने नजरें झका कर भोलेपन से कहा.

‘‘नहीं मिशी, जवाब तो मुझे उसी दिन मिल गया था जब मैं 10 महीने बाद  तुम्हारे घर आया था. पहले वाली मिशी होती तो बोलबोल कर, सवाल पूछपूछ कर, झगड़ा कर के मुझे भूखा ही भगा देती,’’ कह कर विहान जोर से हंस पड़ा.

‘‘अच्छा जी, मैं इतनी बकबक करती हूं,’’ मिशी ने मुंह बनाते हुए कहा.

‘‘हांजी, पर न तुम झगड़ीं, न कुछ बोलीं, बस देखती रहीं मुझे. ख्वाब बुनती रहीं. उसी दिन मैं समझ गया था कि जिस मिशी को पाने के लिए मैं ने उसे खोने का गम सहा, यह वही है, मेरी मिशी, सिर्फ मेरी मिशी,’’ विहान ने मिशी का हाथ पकड़ते हुए कहा.

मिशी ने भी विहान का हाथ कस कर थाम लिया हमेशा के लिए. वे हाथों में हाथ लिए चल दिए. जिंदगी के नए सफर पर साथसाथ कभी जुदा न होने के लिए. आसमां, चांदतारे, चांदनी और लहलहाता समुद्र उन के प्रेम के साक्षी बन गए थे.

कहीं दूर से हवा में संगीत की धुन उन के प्रेम की दास्तां बयां कर रही थी,  ‘मेरे हमसफर… मेरे हमसफर… हमें साथ चलना है उम्र भर…’

लेखिका- डा. मंजरी अमित चतुर्वेदी

Famous Hindi Stories : एक और बेटे की मां

Famous Hindi Stories : आज वह आया भी काम छोड़ कर अपने घर भाग गई कि यहां जरूर कोई साया है, जो इस घर को बीमार कर जाता है. उस ने उसे कितना सम झाया कि ऐसी कोई बात नहीं और उसे उस छोटे बच्चे का वास्ता भी दिया कि वह अकेले कैसे रहेगा? मगर, वह नहीं मानी और चली गई. दोपहर में वही उसे खाना पहुंचा गई और तमाम सावधानियां बरतने की सलाह दे डाली. मगर 6 साल का बच्चा आखिर क्या सम झा होगा. आखिर वह मुन्ना से सालभर छोटा ही है.

मगर, मुन्ने का सवाल अपनी जगह था. कुछ सोचते हुए वह बोली, ‘‘अरे, ऐसा कुछ नहीं है. उस के मम्मीपापा दोनों ही बाहर नौकरी करने वाले ठहरे. शुरू से उस की अकेले रहने की आदत है. तुम्हारी तरह डरपोक थोड़े ही है.’’

‘‘जब किसी के मम्मीपापा नहीं होंगे, तो कोई भी डरेगा मम्मी,’’ वह बोल रहा था, ‘‘आया भी चली गई. अब वह क्या करेगा?’’

‘‘अब ज्यादा सवालजवाब मत करो. मैं उसे खानानाश्ता दे दूंगी. और क्या कर सकती हूं. बहुत हुआ तो उस से फोन पर बात कर लेना.’’

‘‘उसे उस की मम्मी हौर्लिक्स देती थीं. और उसे कौर्नफ्लैक्स बहुत पसंद है.’’

‘‘ठीक है, वह भी उसे दे दूंगी. मगर अभी सवाल पूछपूछ कर मु झे तंग मत करो. और श्वेता को देखो कि वह क्या कर रही है.’’

‘‘वह अपने खिलौनों की बास्केट खोले पापा के पास बैठी खेल रही है.’’

‘‘ठीक है, तो तुम भी वहीं जाओ और उस के साथ खेलो. मु झे किचन में बहुत काम है. कामवाली नहीं आ रही है.’’

‘‘मगर, मु झे खेलने का मन नहीं करता. और पापा टीवी खोलने नहीं देते.’’

‘‘ठीक ही तो करते हैं. टीवी में केवल कोरोना के डरावने समाचार आते हैं. फिर वे कंप्यूटर पर बैठे औफिस का काम कर रहे होंगे,’’ उस ने उसे टालने की गरज से कहा, ‘‘तुम्हें मैं ने जो पत्रिकाएं और किताबें ला कर दी हैं, उन्हें पढ़ो.’’

किचन का सारा काम समेट वह कमरे में जा कर लेट गई, तो उस के सामने किशोर का चेहरा उभर कर आ गया. ओह, इतना छोटा बच्चा, कैसे अकेले रहता होगा? उस के सामने राजेशजी और उन की पत्नी रूपा का अक्स आने लगा था.

पहले राजेशजी ही एक सप्ताह पहले अस्पताल में भरती हुए थे. और 3 दिनों पहले उन की पत्नी रूपा भी अस्पताल में भरती हो गई. अब सुनने में आया है कि वह आईसीयू में है और उसे औक्सीजन दी जा रही है. अगर उस के साथ ऐसा होता, तो मुन्ना और श्वेता का क्या होता. बहुत अच्छा होगा कि वह जल्दी घर लौट आए और अपने बच्चे को देखे. राजेशजी अपने किसी रिश्तेदार को बुला लेते या किसी के यहां किशोर को भेज देते, तो कितना ठीक रहता. मगर अभी के दौर में रखेगा भी कौन? सभी तो इस छूत की बीमारी कोरोना के नाम से ही दूर भागते हैं.

वैसे, राजेशजी भी कम नहीं हैं. उन्हें इस बात का अहंकार है कि वे एक संस्थान में उपनिदेशक हैं. पैसे और रसूख वाले हैं. रूपा भी बैंककर्मी है, तो पैसों की क्या कमी. मगर, इन के पीछे बच्चे का क्या हाल होगा, शायद यह भी उन्हें सोचना चाहिए था. उन के रूखे व्यवहार के कारण ही नीरज भी उन के प्रति तटस्थ ही रहते हैं. किसी एक का अहंकार दूसरे को सहज भी तो नहीं रहने देता.

रूपा भी एक तो अपनी व्यस्तता के चलते, दूसरे अपने पति की सोच की वजह से किसी से कोई खास मतलब नहीं रखती. वह तो उन का बेटा, उसी विद्यालय में पढ़ता है, जिस में मुन्ना पढ़ता है. फिर एक ही अपार्टमैंट में आमनेसामने रहने की वजह से वे मिलतेजुलते भी रहते हैं. इसलिए मुन्ना जरूरत से ज्यादा संवेदनशील हो सोच रहा है. सोच तो वह भी रही है. मगर इस कोरोना की वजह से वह उस घर में चाह कर भी नहीं जा पाती और न ही उसे बुला पाती है.

शाम को उस के घर की घंटी बजी, तो उस ने घर का दरवाजा खोला. उस के सामने हाथ में मोबाइल फोन लिए बदहवास सा किशोर खड़ा था. वह बोला,  ‘‘आंटी, अस्पताल से फोन आया था,’’ घबराए स्वर में किशोर बोलने लगा, ‘‘उधर से कोई कुछ कह रहा था. मैं कुछ सम झा नहीं. बाद में कोई पूछ रहा था कि घर में कोई बड़ा नहीं है क्या?’’

वह असमंजस में पड़ गई. बच्चे को घर के अंदर बुलाऊं कि नहीं. जिस के मांबाप दोनों ही संक्रमित हों, उस के साथ क्या व्यवहार करना चाहिए. फिर भी ममता ने जोर मारा. उस में उसे अपने मुन्ने का अक्स दिखाई दिया, तो उसे घर के अंदर बुला कर बिठाया. और उस से मोबाइल फोन ले कौल बैक किया. मगर वह रिंग हो कर रह जा रहा था. तब तक मुन्ना और नीरज ड्राइंगरूम में आ गए थे. मुन्ना उछल कर उस के पास चला गया. वह अभी कुछ कहती कि नीरज बोले, ‘‘बच्चा है, उसे कुछ हुआ नहीं है. उस का भी आरटीपीसीआर हुआ था. कुछ नहीं निकला है.’’

वह थोड़ी आश्वस्त हुई. उधर मुन्ना बातें करते हुए किशोर के साथ दूसरी ओर चला गया था कि मोबाइल फोन की घंटी बजी. फोन अस्पताल से ही था. नीरज ने कोरोना से पीडि़त पड़े पड़ोसी के भाई को अमेरिका फोन किया तो सरल सा जवाब मिला, ‘‘उन लोगों ने अपने मन की करी, अब खुद भुगतो.’’ और पीछे कहा गया. फोन उठा कर ‘हैलो’ कहा, तो उधर से आवाज आई, ‘‘आप राकेशजी के घर से बोल रही हैं?’’

‘‘नहीं, मैं उन के पड़ोस से बोल रही हूं,’’ वह बोली, ‘‘सब ठीक है न?’’

‘‘सौरी मैम, हम मिसेज रूपा को बचा नहीं सके. एक घंटा पहले ही उन की डैथ

हो गई. आप उन की डैड बौडी लेने और अन्य औपचारिकताएं पूरी करने यहां आ जाएं,’’ यह सुन कर उस का पैर थरथरा सा गया. यह वह क्या सुन रही है…

नीरज ने आ कर उसे संभाला और उस के हाथ से फोन ले कर बातें करने लगा था, ‘‘कहिए, क्या बात है?’’

‘‘अब कहना क्या है?’’ उधर से फिर वही आवाज आई, ‘‘अब डैड बौडी लेने की औपचारिकता रह गई है. आप आ कर उसे पूरा कर दीजिए.’’

‘‘सौरी, हम इस संबंध में कुछ नहीं जानते,’’ नीरज बोल रहे थे, ‘‘मिसेज रूपा के पति राकेशजी आप ही के अस्पताल में कोरोना वार्ड में ऐडमिट हैं. उन से संपर्क कीजिए.’’

इतना कह कर उन्होंने फोन काट कर प्रश्नवाचक दृष्टि से शोभा को देखा. शोभा को जैसे काठ मार गया था. बड़ी मुश्किल से उस ने खुद को संभाला, तो नीरज बोले, ‘‘एक नंबर का अहंकारी है राकेश. ऐसे आदमी की मदद क्या करना. कल को कहीं यह न कह दे कि आप को क्या जरूरत थी कुछ करने की. वैसे भी इस कोरोना महामारी के बीच बाहर कौन निकलता है. वह भी उस अस्पताल में जाना, जहां वैसे पेशेंट भरे पड़े हों.’’

तब तक किशोर उन के पास चला आया और पूछने लगा, ‘‘मम्मीपापा लौट के आ रहे हैं न अंकल?’’

इस नन्हे, अबोध बच्चे को कोई क्या जवाब दे? यह विकट संकट की घड़ी थी. उसे टालने के लिए वह बोली, ‘‘अभी मैं तुम लोगों को कुछ खाने के लिए निकालती हूं. पहले कुछ खा लो.’’

‘‘मु झे भूख नहीं है आंटी. मु झे कुछ नहीं खाना.’’

‘‘कैसे नहीं खाना,’’  नीरज द्रवित से होते हुए बोले, ‘‘मुन्ना और श्वेता के साथ तुम भी कुछ खा लो.’’

फिर वे शोभा से बोले, ‘‘तुम किचन में जाओ. तब तक मैं कुछ सोचता हूं.’’

वह जल्दी में दूध में कौर्नफ्लैक्स डाल कर ले आई और तीनों बच्चों को खाने को दिया. फिर वह किशोर से मुखातिब होती हुई बोली, ‘‘तुम्हारे नानानानी या मामामौसी होंगे न. उन का फोन नंबर दो. मैं उन से बात करती हूं.’’

‘‘मेरी मम्मी का कोई नहीं है. वे इकलौती थीं. मैं ने तो नानानानी को देखा भी नहीं.’’

‘‘कोई बात नहीं, दादादादी, चाचाचाची तो होंगे,’’ नीरज उसे पुचकारते हुए बोले, ‘‘उन का ही फोन नंबर बताओ.’’

‘‘दादादादी का भी देहांत हो गया है. एक चाचा  हैं. लेकिन, वे अमेरिका में रहते हैं. कभीकभी पापा उन से बात करते थे.’’

‘‘तो उन का नंबर निकालो,’’ वह शीघ्रता से बोली, ‘‘हम उन से बात करते हैं.’’

किशोर ने मोबाइल फोन में वह नंबर ढूंढ़ कर निकाला. नीरज ने पहले उसी फोन से उन्हें डायल किया, तो फोन रिंग ही नहीं हुआ.

‘‘यह आईएसडी नंबर है. फोन कहां से  होगा,’’ कह कर वे  झुं झलाए, फिर उस नंबर को अपने मोबाइल में नोट कर फोन लगाया. कई प्रयासों के बाद वह फोन लगा, तो उस ने अपना परिचय दिया, ‘‘आप राकेशजी हैं न, राकेशजी के भाई. मैं उन का पड़ोसी नीरज बोल रहा हूं. आप के भाई और भाभी दोनों ही कोरोना पौजिटिव हैं और अस्पताल में भरती हैं.’’

‘‘तो मैं क्या करूं?’’ उधर से आवाज आई.

‘‘अरे, आप को जानकारी दे रहा हूं. आप उन के रिश्तेदार हैं. उन का बच्चा एक सप्ताह से फ्लैट में अकेला ही रह रहा है.’’

‘‘कहा न कि मैं क्या करूं,’’ उधर से  झल्लाहटभरी आवाज आई, ‘‘उन लोगों ने अपने मन की करी, तो भुगतें भी. अस्पताल में ही भरती हैं न, ठीक हो कर वापस लौट आएंगे.’’

नीरज ने शोभा को इशारा किया, तो वह उन का इशारा सम झ बच्चों को अपने कमरे में ले गई. तो वे फोन पर उन से धीरे से बोले, ‘‘आप की भाभी की डैथ हो गई है.’’

‘‘तो मैं क्या कर सकता हूं? मैं अमेरिका में हूं. यहां भी हजार परेशानियां हैं. मैं चाह कर भी कुछ नहीं कर सकता.’’

‘‘अरे, कुछ कर नहीं सकते, न सही. मगर बच्चे को फोन पर तसल्ली तो दे लो,’’ मगर तब तक उधर से कनैक्शन कट चुका था.

‘‘यह तो अपने भाई से भी बढ़ कर खड़ूस निकला,’’ नीरज बड़बड़ाए और उस की ओर देखते हुए फोन रख दिया. तब तक किशोर आ गया था, ‘‘आंटी, मैं अपने घर नहीं जाऊंगा. मु झे मेरी मम्मी के पास पहुंचा दो. वहीं मु झे जाना है.’’

‘‘तुम्हारी मम्मी अस्पताल में भरती हैं और वहां कोई नहीं जा सकता.’’

‘‘तो मैं आप ही के पास रहूंगा.’’

‘‘ठीक है, रह लेना,’’ वह उसे पुचकारती हुई बोली, ‘‘मैं तुम्हें कहां भेज रही हूं. तुम खाना खा कर मुन्ने के कमरे में सो जाना.’’

बच्चों के कमरे में एक फोल्ंिडग बिछा, उस पर बिस्तर लगा व उसे सुला कर वह किचन में आ गई. ढेर सारे काम पड़े थे. उन्हें निबटाते रात के 11 बज गए थे. अचानक उस बेसुध सो रहे बच्चे किशोर के पास का मोबाइल घनघनाया, तो उस ने दौड़ कर फोन उठाया. उधर अस्पताल से ही फोन था. कोई रुचिका नामक नर्स उस से पूछ रही थी, ‘‘मिस्टर राकेश ने किन्हीं मिस्टर नीरज का नाम बताया है. वे घर पर हैं?’’

‘‘वे मेरे पति हैं. मगर मेरे पति क्या कर लेंगे?’’

‘‘मिस्टर राकेश बोले हैं कि वे कल उन के कार्यालय में जा कर उन के एक साथी से मिल लें और रुपए ले आएं.’’

‘‘मैं कहीं नहीं जाने वाला,’’ नीरज भड़क कर बोले, ‘‘जानपहचान है नहीं और मैं कहांकहां भटकता फिरूंगा. बच्चे का मुंह क्या देख लिया, सभी हमारे पीछे पड़ गए. इस समय हाल यह है कि लौकडाउन है और बाहर पुलिस डंडे बरसा रही है. और इस समय कोई स्वस्थ आदमी भी अस्पताल जाएगा, तो वह कोरोनाग्रस्त हो जाए.’’

वह एकदम उल झन में पड़ गई. कैसी विषम स्थिति थी. और उन की बात भी सही थी. ‘‘अब जो होगा, कल ही सोचेंगे,’’ कहते हुए उस ने बत्ती बु झा दी.

सुबह किशोर जल्द ही जग गया था. उस ने किशोर से पूछा, ‘‘तुम अपने पापा के औफिस में उन के किन्हीं दोस्त को जानते हो?’’

‘‘हां, वह विनोद अंकल हैं न, उन का फोन नंबर भी है. एकदो बार उन का फोन भी आया था. मगर अभी किसलिए पूछ रही हैं?’’

‘‘ऐसा है किशोर बेटे, तुम्हारी मम्मी के इलाज और औपरेशन के लिए अस्पताल में ज्यादा पैसों की जरूरत आ पड़ी है. और तुम्हारे पापा ने इस के लिए उन के औफिस में बात करने को कहा है.’’

‘‘हां, हां, वे डायरैक्टर हैं न, वे जरूर पैसा दे देंगे,’’ इतना कह कर वह मोबाइल में उन का नंबर ढूंढ़ने लगा. फिर खोज कर बोला, ‘‘यह रहा उन का मोबाइल नंबर,’’ किशोर से फोन ले उस ने उन्हें फोन कर धीमे स्वर में सारी जानकारी दे दी.

‘‘ओह, यह तो बहुत बुरा हुआ. वैसे, मैं एक आदमी द्वारा आप के पास रुपए भिजवाता हूं.’’

‘‘मगर, हम रुपयों का क्या करेंगे?’’ वह बोली, ‘‘अब तो बस मिट्टी को राख में बदलना है. आप ही उस का इंतजाम कर दें. मिस्टर राकेश अस्पताल में भरती हैं. और उन का बेटा अभी बहुत छोटा  है, मासूम है. उसे भेजना तो दूर, यह खबर बता भी नहीं सकती. अभी तो बात यह है कि डैड बौडी को श्मशान पर कैसे ले जाया जाएगा. संक्रामक रोग होने के कारण मेरे पति ने कहीं जाने से साफ मना कर दिया है.’’

‘‘बिलकुल ठीक किया. मैं भी नहीं जाने वाला. कौन बैठेबिठाए मुसीबत मोल लेगा. मैं देखता हूं, शायद कोई स्वयंसेवी संस्था यह काम संपन्न करा दे.’’

लगभग 12 बजे दिन में एक आदमी शोभा के घर आया और उन्हें 10,000 रुपए देते हुए बोला, ‘‘विनोद साहब ने भिजवाए हैं. शायद बच्चे की परवरिश में इस की आप को जरूरत पड़ सकती है. राकेश साहब कब घर लौटें, पता नहीं. उन्होंने एक एजेंसी के माध्यम से डैड बौडी की अंत्येष्टि करा दी है.’’

‘‘लेकिन, हम पैसे ले कर क्या करेंगे? हमारे पास इतना पैसा है कि एक बच्चे को खिलापिला सकें.’’

‘‘रख लीजिए मैडम. समयसंयोग कोई नहीं जानता,’’ वह बोला, ‘‘कब पैसे की जरूरत आ पड़े, कौन जानता है. फिर उन के पास है, तभी तो दे रहे हैं.’’

‘‘ओह, बेचारा बच्चा अपनी मां का अंतिम दर्शन भी नहीं कर पाया. यह प्रकृति का कैसा खेल है.’’

‘‘अच्छा है मैडम, कोरोना संक्रमित से जितनी दूर रहा जाए, उतना ही अच्छा. जाने वाला तो चला गया, मगर जो हैं, वे तो बचे रहें.’’

किशोर दोनों बच्चों के साथ हिलमिल गया था. मुन्ना उस के साथ कभी मोबाइल देखता, तो कभी लूडो या कैरम खेलता. 3 साल की श्वेता उस के पीछेपीछे डोलती फिरती थी. और किशोर भी उस का खयाल रखता था.

उसे कभीकभी किशोर पर तरस आता कि देखतेदेखते उस की दुनिया उजड़ गई. बिन मां के बच्चे की हालत क्या होती है, यह वह अनेक जगह देख चुकी है.

रात 10 बजे जब वह सभी को खिलापिला कर निश्ंिचत हो सोने की तैयारी कर रही थी कि अस्पताल से फिर फोन आया, तो पूरे उत्साह के साथ मोबाइल उठा कर किशोर बोला, ‘‘हां भाई, बोलो. मेरी मम्मी कैसी हैं? कब आ रही हैं वे?’’

‘‘घर में कोई बड़ा है, तो उस को फोन दो,’’ उधर से आवाज आई, ‘‘उन से जरूरी बात करनी है.’’

किशोर अनमने भाव से फोन ले कर नीरज के पास गया और बोला, ‘‘अंकल, आप का फोन है.’’

‘‘कहिए, क्या बात है?’’ वे बोले, ‘‘राकेशजी कैसे हैं?’’

‘‘ही इज नो मोर. उन की आधे घंटे पहले डैथ हो चुकी है. मु झे आप को इन्फौर्मेशन देने को कहा गया, सो फोन कर रही हूं.’’

आगे की बात नीरज से सुनी नहीं गई और फोन रख दिया. फोन रख कर वे किचन की ओर बढ़ गए. वह किचन से हाथ पोंछते हुए बाहर निकल ही रही थी कि उस ने मुंह लटकाए नीरज को देखा, तो घबरा गई.

‘‘क्या हुआ, जो घबराए हुए हो?’’ हाथ पोंछते हुए उस ने पूछा, ‘‘फिर कोई बात…?’’

‘‘बैडरूम में चलो, वहीं बताता हूं,’’ कहते हुए वे बैडरूम में चले गए. वह उन के पीछे बैडरूम में आई, तो वे बोले, ‘‘बहुत बुरी खबर है. मिस्टर राकेश की भी डैथ हो गई.’’

‘‘क्या?’’ वह अवाक हो कर बोली, ‘‘उस नन्हे बच्चे पर यह कैसी विपदा आ पड़ी है. अब हम क्या करें?’’

‘‘करना क्या है, ऐसी घड़ी में कोई कुछ चाह कर भी नहीं कर सकता,’’ इतना कह कर वे विनोदजी को फोन लगाने लगे.

‘‘हां, कहिए, क्या हाल है,’’ विनोदजी बोले, ‘‘बच्चा परेशान तो नहीं कर रहा?’’

‘‘बच्चे को तो हम बाद में देखेंगे ही, बल्कि देख ही रहे हैं,’’ वे उदास स्वर में बोले, ‘‘अभीअभी अस्पताल से खबर आई है कि मिस्टर राकेश भी चल बसे.’’

‘‘ओ माय गौड, यह क्या हो रहा है?’’

‘‘अब जो हो रहा है, वह हम भुगत ही रहे हैं. उन की डैडबौडी की आप एजेंसी के माध्यम से अंत्येष्टि करा ही देंगे. सवाल यह है कि इस बच्चे का क्या होगा?’’

‘‘यह बहुत बड़ा सवाल है, सर. फिलहाल तो वह बच्चा आप के घर में सुरक्षित माहौल में रह रहा है, यह बहुत बड़ी बात है.’’

‘‘सवाल यह है कि कब तक ऐसा चलेगा? बच्चा जब जानेगा कि उस के मांबाप इस दुनिया में नहीं हैं, तो उस की कैसी प्रतिक्रिया होगी? अभी तो हमारे पास वह बच्चों के साथ है, तो अपना दुख भूले बैठा है. मैं उसे रख भी लूं, तो वह रहने को तैयार होगा… मेरी पत्नी को  उसे अपने साथ रखने में परेशानी नहीं होगी, बल्कि मैं उस के मनोभावों को सम झते हुए ही यह निर्णय ले पा रहा हूं.

‘‘मान लीजिए कि मेरे साथ ही कुछ ऐसी घटना घटी होती, तो मैं क्या करता. मेरे बच्चे कहां जाते. ऊपर वाले ने मु झे इस लायक सम झा कि मैं एक बच्चे की परवरिश करूं, तो यही सही. यह मेरे लिए चुनौती समान है. और यह चुनौती मु झ को स्वीकार है.’’

‘‘धन्यवाद मिस्टर नीरजजी, आप ने मेरे मन का बो झ हलका कर दिया. लौकडाउन खत्म होने दीजिए, तो मैं आप के पास आऊंगा और बच्चे को राजी करना मेरी जिम्मेदारी होगी.

‘‘मैं उसे बताऊंगा कि अब उस के मातापिता नहीं रहे. और आप लोग उस के अभिभावक हैं. उस की परवरिश और पढ़ाईलिखाई के खर्चों की चिंता नहीं करेंगे. यह हम सभी की जिम्मेदारी होगी, ताकि किसी पर बो झ न पड़े और वह बच्चा एक जिम्मेदार नागरिक बने.’’

नीरज की बातों से शोभा को परम शांति मिल रही थी. उसे लग रहा था कि उस का तनाव घटता जा रहा है और, वह एक और बेटे की मां बन गई है.

Hindi Stories Online : संतुलन – पैसों और रिश्ते की कशमकश की कहानी

Hindi Stories Online : डाक्टरों को अंजु के दिमाग का औपरेशन इमरजैंसी में करना पड़ा है. पड़ोसी और रिश्तेदारों को मिला कर कम से कम 20 लोग अस्पताल में आए हैं. सब को औपरेशन के बाद अंजु के होश में आने का बड़ी बेसब्री से इंतजार है. अस्पताल के हाल में आंखें बंद कर के मैं एक कुरसी पर बैठी तो अंजु से जुड़ी अतीत की बहुत सी घटनाएं मुझे बरबस याद आने लगीं.

पिछले 40 सालों में सुखदुख में साथ निभाने के कारण हमारी दोस्ती की नींव बहुत मजबूत हो गई है. मेरे सुखदुख में वह हमेशा मेरे साथ खड़ी हुई है. बस, एक विषय ऐसा है जिसे ले कर हमारे बीच हमेशा से बहस चलती आई है. मैं हमेशा उस को समझाती रही हूं कि अपने जीवन को आर्थिक दृष्टि से सुरक्षित बना कर रखना, हम औरतों के लिए खासकर बहुत जरूरी है.

उस ने हमेशा मुसकराते हुए लापरवाही से जवाब दिया, ‘पैसा अपनी जगह महत्त्वपूर्ण है, पर आपसी संबंधों में प्यार की मिठास की कीमत पर उसे किसी मशीन की तरह इकट्ठा करते चले जाना नासमझी है, सीमा.’

‘अगर तू नहीं बदली तो एक दिन जरूर पछताएगी.’

‘और तू नहीं बदली तो एक दिन बहुत अकेली पड़ जाएगी.’

न मैं अपने को बदल सकी न वह. मैं ने अपनी सोच के हिसाब से जिंदगी जी और उस ने अपनी.

इस में कोई शक नहीं कि मैं हद दर्जे की कंजूस हूं. अपने पति की कमाई की पाईपाई को जोड़ती आई हूं. मैं ने युवावस्था में ही यह तय कर लिया था कि जिंदगी में मैं छोटेबड़े खर्चों के लिए किसी के सामने हाथ फैलाने की नौबत कभी नहीं आने दूंगी.

मेरा बड़ा भाई शेखर शादी के साल भर बाद ही घर से अलग हो गया था. ससुराल वालों से उस की अच्छी पटने लगी तो वह हम तीनों के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को भूल ही गया था.

उच्च रक्तचाप के मरीज पापा को हार्ट अटैक का खतरा बना तो डाक्टर बाईपास सर्जरी कराने पर जोर डालने लगे थे. भाई ने बिजनेस ठीक न चलने के नाम पर आर्थिक सहायता करने से हाथ खींच लिया था. तब मेरी शादी के लिए जमा पैसों से पापा के हृदय का औपरेशन कराना पड़ा था.

औपरेशन के बाद पापा 2 साल और जिंदा रहे. वे शायद और जी जाते पर बेटे के हाथों मिले धोखे व जवान बेटी की शादी की चिंता ने उन के दिल की धड़कन को कुछ जल्दी ही बंद कर दिया.

उन दिनों अंजु ने बहुत मजबूत सहारा बन कर मेरा साथ दिया था. यह सच है कि अगर उस ने मेरा मनोबल ऊंचा न रखा होता तो मैं जरूर खुद शारीरिक व मानसिक रूप से बीमार पड़ जाती.

फिर मां को पैंशन मिलने लगी थी. पापा के इलाज के खर्चे खत्म हो गए तो मैं अपनी कमाई का बड़ा हिस्सा जनूनी अंदाज में जोड़ने लगी.

बिना दहेज के अच्छा घरवर मुझ जैसी लड़की को नहीं मिल सकता था. रिश्तेदारों ने मेरे लिए जो बिरादरी का लड़का ढूंढ़ा वह प्राइवेट कंपनी में साधारण सी नौकरी करता था.

मेरी शादी के 4 महीने बाद अंजु की शादी मनोज से हुई जो सरकारी नौकरी करता था. हम दोनों के 4 साल के अंदर 2-2 बेटे आगेपीछे हुए. मेरी दोनों डिलीवरी सरकारी अस्पताल में हुईं और उस की नर्सिंग होम में. अंजू और मनोज को मनोरंजन व दिखावे के लिए पैसा खर्च करने से परहेज नहीं था, पर मैं ने राजेश को अपने रंग में रंग कर पैसा बचाने की आदत डलवा दी थी.

बच्चों की देखभाल में वक्त बहुत तेजी से गुजरा. अंजु ने फ्लैट खरीदा जिस की किस्तों ने उन को वर्षों तक आर्थिक तंगी से उबरने नहीं दिया.

मैं ने अपने जोड़े पैसों से मकान को दोमंजिला बना कर ऊपरी मंजिल किराए पर दे दी. इस से हमारी आमदनी बढ़ गई. हर महीने रुपए अंजु के पैसों की तरह किस्त में न जा कर बैंक खाते में जाने लगे.

मेरा बड़ा बेटा समीर बीकौम के बाद एमबीए कर के नौकरी करने लगा. छोटा बेटा सुमित पढ़ाई में ज्यादा होशियार नहीं था सो उसे हम ने किराने की दुकान करा दी.

अंजु के दोनों बेटे भी कुछ खास नहीं पढ़े. बड़े राहुल ने साधारण से कालेज से एमबीए किया और उसे ठीकठाक नौकरी मिल गई. छोटा दवा बनाने वाली कंपनी में एमआर बन गया था.

अपनी कंजूसी की आदत के चलते मेरी अपने दोनों बेटों से अकसर बहस और झड़प हो जाती थी. घर के सारे खर्चे अपनी कमाई में से करना उन्हें नाजायज बोझ सा लगता था.

‘आप हर जगह और हर किसी के सामने रुपयों व खर्चों का रोना रो कर हमें शर्मिंदा करवाने पर क्यों तुली रहती है? अंजु मौसी और मनोज अंकल ने अपनी शादी की 25वीं सालगिरह गोआ जा कर मनाई थी. उन के पास खास पैसा नहीं है पर वे ऐश कर रहे हैं. आप के पास पैसा बहुत है पर आप सिर्फ रुपए गिनने का मजा लेती हैं. अब उस नासमझी को त्याग कर जिंदगी के भी कुछ मजे ले लो, मां,’ वे अकसर मुझे अपनी आदत बदलने के लिए समझाते रहते थे.

‘मैं अभी अपनी जमापूंजी उड़ा लूं और बाद में तुम्हारे सामने हाथ फैलाऊं, ऐसी नासमझी करना मुझे बिलकुल मंजूर नहीं है,’ मैं ने कभी उन की बातों पर ध्यान न दे कर कह देती.

‘पता नहीं आप को क्यों एतबार नहीं होता कि हम आप के सुखदुख में काम आएंगे,’ वे नाराज हो उठते.

‘मैं ने दुनिया की रीत देखी है. बूढ़े हो गए मांबाप बेटों को बोझ लगने लगते हैं और उन की खूब दुर्गति होती है. मुझे अपनी वैसी दुर्गति नहीं करानी,’ यों मेरा सच्ची बात उन के मुंह पर कह देना उन दोनों को कभी अच्छा नहीं लगता था.

समीर की शादी अच्छे घर में हो गई पर दहेज में कुछ नहीं आया. उस ने प्रेम विवाह किया था. मैं ने स्वयं भी शादी में हाथ खींच कर पैसा खर्च किया.

बहू नौकरी करती थी. मैं ने घर के कामों के लिए आया रखने के लिए शादी के कुछ दिनों बाद ही शोर मचा दिया पर वे माने नहीं. सारा झगड़ा आया की पगार को ले कर हुआ क्योंकि वे उसे अपनी कमाई से नहीं देना चाहते थे.

इस बात को ले कर घर में झगड़े बढ़े तो समीर ने घर से अलग होने का फैसला कर लिया था. उस के ससुराल वालों ने 2 दिन में अपने घर के पास किराए का मकान भी ढूंढ़ दिया.

मेरे बहूबेटे के अलग होने के 4 महीने बाद ही अंजु ने अपने बड़े बेटे नीरज की शादी की थी. उस की बहू भी नौकरी करती थी. अंजु की तरह वह अच्छे स्वभाव की निकली. मैं उस के घर जाती तो वह मेरी बहुत खातिर करती. अपनी सास के बराबर का मान- सम्मान मुझे देती थी.

अपने छोटे बेटे सुमित की शादी करते ही मैं ने उस की रसोई अलग कर दी थी. मैं नहीं चाहती थी कि घर के खर्चों को ले कर मुझे उस को भी घर से जाने को कहना पड़े.

अंजु ने कुछ महीने बाद अपने छोटे बेटे नवीन की शादी की. मुझे यह सोच कर हैरानी होती है कि वे सब 3 कमरों के फ्लैट में इकट्ठे कैसे रह रहे हैं.

कल अपनी शादी की 30वीं सालगिरह मनाते हुए अंजु का पांव एक बच्चे द्वारा फेंके गए केले के छिलके पर पड़ जाने से फिसला और वह धड़ाम से गिरी थी. लकड़ी के मजबूत सोफे से सिर में गहरी चोट आई. कुछ घंटों बाद उसे बेहोशी सी आने लगी तो हम सब कुछ उसे ले कर अस्पताल भागे.

जांच से पता लगा कि गहरी चोट लगने से सिर के अंदर खून बहा है और उस की जान बचाने के लिए फौरन इमरजैंसी औपरेशन करना पड़ेगा.

मैं अतीत की यादों से तब बाहर निकली जब डाक्टर तनेजा ने हमारे पास आ कर बताया, ‘‘अंजु को औपरेशन के बाद होश आ गया है. अब ज्यादा चिंता करने की जरूरत नहीं है.’’

इस खबर को सुन कर हर किसी के दिल मेें खुशी की तेज लहर दौड़ गई थी. अंजु के दोनों बेटों व बहुओं की बात तो छोड़ो, मुझे तो यह देख कर बहुत हैरानी हुई कि मेरे दोनों बेटेबहुएं भी मेरी छाती से लग कर बच्चों की तरह रोए थे.

अंजु की हालत में लगातार सुधार हुआ और वह कुछ दिन बाद ही आईसीयू से वार्ड में आ गई थी.

एक शाम हम घर के सभी लोग मौजूद थे जब अंजु ने अचानक अपने बड़े बेटे नीरज से पूछा, ‘‘मुझे नर्स ने आज दिन में बताया कि अब तक 3-4 लाख का खर्चा मेरे इलाज पर हो चुका होगा. तुम लोगों ने कहां से इंतजाम किया इतने रुपयों का?’’

‘‘इलाज कराने को तेरी बहुओं ने खुशीखुशी अपने जेवर बेच दिए हैं,’’ मेरा यह जवाब सुन कर अंजु हैरान नजर आने लगी थी.

‘‘सच कह रही है तू, सीमा?’’

‘‘बिलकुल सच, पर अब तू बेकार की बातों में मत उलझ और जल्दी से ठीक हो कर अपने घर पहुंच. सारा महल्ला बड़ी बेसब्री से तेरी वापसी का इंतजार कर रहा है.’’

अंजु अचानक उदास सी हो कर बोली, ‘‘सीमा, तू ठीक कहा करती थी कि हर इंसान को इमरजैंसी के लिए धन जोड़ कर जरूर रखना चाहिए. मैं ने तेरी सलाह ध्यान से सुनी होती तो मेरे इलाज के लिए मेरी बहुओं को अपने जेवर तो न बेचने पड़ते.’’

‘‘चल, मेरी बात देर से ही सही पर तेरी समझ में तो आई. पर तू बहुओं के जेवरों के जाने की फिक्र न कर. वे फिर बन जाएंगे.’’

अचानक समीर ने बीच में बोल कर अपनी मां को सच बता दिया, ‘‘मां, जेवर बेचने की बात झूठी है. औपरेशन का सारा खर्चा सीमा मौसी ने उठाया है.’’

‘‘तुझे मेरी कसम सीमा, जो सच है वह मुझे बता दे,’’ अंजु ने मेरा हाथ पकड़ कर भावुक लहजे में प्रार्थना की.

‘‘सच तो यह है कि तेरी बहुएं अपने जेवर बेचने को तैयार थीं. महल्ले के सारे लोग मिल कर तेरा इलाज कराने को तैयार हो गए थे. तू कल्पना भी नहीं कर सकती कि हम सब को तुझ से कितना प्यार है. मैं ने खर्च इसलिए किया क्योंकि मेरातेरा रिश्ता सब से पुराना है. अब तू खर्चे की फिक्र छोड़ कर अपना सारा ध्यान ठीक होने में लगा दे, मेरी प्यारी सहेली,’’ मैं ने उस का हाथ प्यार से चूम लिया था.

‘‘तेरा यह एहसान मैं जिंदगी में कैसे उतार पाऊंगी?’’ अंजु की आंखों से आंसू बहने लगे.

‘‘वह एहसान तू ने पहले ही उतार दिया है.’’ मैं ने कहा.

‘‘वह कैसे?’’ अंजु चौंक पड़ी.

‘‘मुझे समझदार बना कर,’’ मैं बहुत भावुक हो उठी, ‘‘तू ठीक कहती थी कि पैसे जोड़ कर तिजोरी भरने से ज्यादा महत्त्वपूर्ण है आपसी संबंधों में प्यार की मिठास. अरे, मेरी जो बहुएं मुझे बुखार में पानी का एक गिलास देने को बोझ मानती हैं, मैं ने उन्हें तेरी खैरियत के लिए छोटी बच्चियों की तरह रोते

देखा था.

‘‘अगर तेरी जगह मेरी जिंदगी खतरे में पड़ी होती तो शायद ही कोई मेरे लिए दिल से रोता. अब मैं तेरी तरह अपनों के दिल में जगह बनाना चाहती हूं. मेरी इच्छा है कि जब मेरा दुनिया से जाने का वक्त आए तो तेरे अलावा कोई और भी हो जो मेरे लिए सच्चे आंसू बहाए. मुझे तेरे जैसा बनना है, अंजु.’’

‘‘और मैं अब तेरे जैसी समझदार बनूंगी, सीमा. बेकार के खर्चे करना बिलकुल बंद कर दूंगी.’’

‘‘अब इस नई बहस को शुरू करने के बजाय हम दोनों संतुलन बना कर जीना सीखेंगी.’’

‘‘यह भी सही है क्योंकि अति तो

हर चीज की खराब होती है. तो

तू मुझे बचत करना सिखाना, मेरी

कंजूस सहेली.’’

‘‘और तू मुझे अपनों के दिल जीतने की कला सिखाना, मेरी सोने के दिल वाली प्यारी सहेली,’’ हमारी नोकझोंक सुन कर सब हंसने लगे थे.

मैं ने गरदन घुमा कर देखा तो पाया कि मेरी दोनों बहुओं व बेटों की पलकें भी नम हो रही थीं. मैं ने आज पहली बार उन चारों की आंखें में अपने लिए प्रेम व आदरसम्मान के सच्चे भाव देखे, तो हाथ फैला कर उन्हें बारीबारी से अपनी छाती से लगाने से खुद को रोक नहीं पाई थी.

Hindi Folk Tales : रैगिंग का रगड़ा – कैसे खत्म हुई शहरी बनाम होस्टल की लड़ाई

Hindi Folk Tales :  बात 70 के दशक की है. उन दिनों इलाहाबाद विश्वविद्यालय के तकनीकी और गैरतकनीकी संस्थानों में बिहारी छात्रों की संख्या बहुत अधिक होती थी. उन के बीच आपस में एकता और गुटबंदी भी थी. शहर में उन की तूती बोलती थी. इसलिए उन से कोई पंगा लेने का साहस भी नहीं करता था. यहां तक कि नए बिहारी छात्रों की रैगिंग भी दूसरे प्रदेशों के सीनियर छात्र नहीं ले पाते थे. अगर बिहारी छात्रों की रैगिंग होती भी थी तो बिहार के ही सीनियर छात्र करते थे.

इत्तफाक से शहर के कुछ डौन भी भोजपुर से आए थे और विश्वविद्यालय के छात्र संगठन में बिहारियों की अच्छी भागीदारी थी. उन्हीं दिनों मैं ने भी एक तकनीकी संस्थान में नामांकन कराया था और शहर के एक होटल में कमरा ले कर रहता था. तब इलाहाबाद में कई होटल ऐसे थे जिन में मासिक किराए पर खाने और रहने की व्यवस्था थी. मैं जिस होटल में रहता था उस में 150 रुपए में पंखायुक्त कमरा, सुबह की चाय और दोनों वक्त का भोजन शामिल था. नाश्ता बाहर करना होता था.

मैं मोतीहारी के एक कालेज से आया था. जहां से कई छात्र इलाहाबाद आए थे. उन में से अधिकांश होस्टल में रहते थे. नैनी स्थित एग्रीकल्चर इंस्टिट्यूट में भी बिहार के काफी छात्र थे. सब आपस में मिलतेजुलते रहते थे. उन दिनों पौकेट में चाकू रखने का बड़ा फैशन था. हम भी रखते थे.

एक दिन जब मैं अपने कालेज के होस्टल में मोतीहारी के मित्रों से मिलने गया हुआ था तो पता चला कि होस्टल के एक दादा ने रैगिंग के नाम पर एक नए लड़के की बहन की तसवीर छीन ली है और उस के बारे में अश्लील टिप्पणियां करता रहता है. लड़का पूरी बात बतातेबताते रोने लगा. हमें गुस्सा आया. रैगिंग का यह क्या तरीका है.

हम 4-5 लोग कथित दादा के कमरे में गए. चाकू निकाल कर उस की गरदन पर सटा दिया और उस लड़के की बहन की तसवीर तुरंत वापस लौटाने को कहा. उस ने तसवीर लौटा दी और बाद में देख लेने की धमकी दी. हम ने कहा बाद में क्यों, अभी देख लो और उस की जम कर पिटाई कर वहां से चल दिए. थोड़ी दूर जाने के बाद अरुण सिंह नाम के एक साथी ने कहा कि फिर होस्टल चलते हैं. मैं ने उसे समझाया कि कोई कांड करने के बाद घटनास्थल पर भूल कर भी नहीं जाना चाहिए, लेकिन वह ताव में आ गया. उस की जिद के कारण हम दोबारा होस्टल पहुंचे. तब तक माहौल काफी गरम हो चुका था. होस्टल के लड़के उत्तेजित थे. हमें देखते ही वे हम पर टूट पड़े. हमारी पिटाई हो गई और हमें कालेज के प्रिंसिपल के पास ले जाया गया. प्रिंसिपल के चैंबर के बाहर हम खड़े थे. लड़के इधरउधर खड़े थे, तभी इलाहाबाद के कुछ स्थानीय लड़के मेरे पास आए और बोले, ‘बौस, हमारे घेरे में धीरेधीरे चारदीवारी की ओर चलो और फांद कर निकल जाओ. पुलिस आने वाली है.’ तरकीब काम आ गई. मैं धीरे से चारदीवारी फांद कर सरक गया. अपने ठिकाने पर जाना खतरे से खाली नहीं था इसलिए गलीगली होता हुआ लोकनाथ पहुंचा जहां मेरे एक मित्र मंटूलाल रहते थे. उन के घर पहुंचा तो बिहार के कई छात्र चिंतित अवस्था में बैठे थे. उन्हें घटना की जानकारी मिल चुकी थी.

अब परिस्थितियों के अनुरूप रणनीति तैयार की गई. अजीत लाल ने यह सुझाव दिया कि होस्टल के युवा लड़के शहर में जहां भी दिखें उन की पिटाई की जाए और अपना आवागमन गलियों के जरिए किया जाए. इस बीच शहरी इलाके के कई युवक वहां पहुंचे और उन्होंने इस लड़ाई में हर तरह से साथ देने का वादा किया. मेरे होटल में लौटने पर रोक लग गई. हम पास के एक बिहारी लौज में रहने लगे. उस दिन हम लोकनाथ के इलाके से निकले ही थे कि एक शहरी लड़के ने सूचना दी कि होस्टल के 2 लड़के पास के सिनेमाहौल में टिकट लेने के लिए लाइन में खड़े हैं.

हम तुरंत सिनेमाहौल पहुंचे. उन्हें खींच कर बाहर ले आए. इलाहाबाद की सड़क पर मारपीट करना आसान नहीं था. हम ने एक तरकीब लगाई. उसे पीटते हुए कहा, ‘साले, छोकरीबाजी करता है.’

तभी हमारे ग्रुप के दूसरे लड़के भी वहां आ गए और शुरू हो गए देदनादन उसे बजाने में. इस बीच भीड़ इकट्ठी हो गई. लोगों को पता चला कि कुछ मजनुओं की पिटाई हो रही है तो उन्होंने भी उन्हें पीटना शुरू किया. वे अपनी सफाई देते रहे और पिटते रहे. हम धीरे से खिसक लिए और उन की पिटाई चलती रही. इस बीच शहरी लड़कों की सूचना पर हम ने उस शाम 8-10 लड़कों की इसी तर्ज पर पिटाई कर दी. अब लड़ाई शहरी बनाम होस्टल में तबदील हो चुकी थी. हम लोगों की चारों तरफ तलाश हो रही थी, लेकिन हम छापामार तरीके से हमला कर फिर गायब हो जा रहे थे.

अगले दिन से होस्टल के लड़कों का शहर में निकलना बंद हो गया. वे होस्टल में नजरबंद हो गए. इलाहाबाद के शहरी क्षेत्र के लड़कों ने होस्टल पर नजर रखी थी और हमें वहां की तमाम गतिविधियों की सूचना मिल रही थी. होस्टल के दादाओं में एक ऐसा था जो हमारे ग्रुप के एक वरिष्ठ साथी मलय दा का भानजा था. मलय दा पूरी तरह हमारे साथ थे और उसे किसी तरह की रियायत देने के खिलाफ थे, लेकिन हम ने तय किया था कि उसे बख्श देंगे. उसे भी पता था कि जब तक वह हमला नहीं करेगा हम उस पर हाथ नहीं उठाएंगे. वह किसी तरह हिम्मत कर के होस्टल से निकला और शहर के एक खुंख्वार डौन से संपर्क कर उसे अपने पक्ष में कर लिया.

हमें जानकारी मिली तो हम भी डौन लोगों से संपर्क करने लगे. शहरी खेमे का होने के कारण अधिकांश गैंगस्टर हमारे पक्ष में आ गए. सिर्फ एक डौन होस्टल वालों के पक्ष में था. मेरे होटल के सामने एक लौज में हमारे गु्रप के कई लड़के रहते थे. वही हमारा केंद्र बना हुआ था.

दोपहर में कुछ शहरी लड़कों ने सूचित किया कि होस्टल में कथित डौन के साथ सैकड़ों लड़कों की मीटिंग चल रही है. वे हमारे अड्डे पर हमला करने की तैयारी में हैं. प्रशांत और अजीत लाल ने पूछा, ‘‘तुम कितने लोग हो.’’

उस ने बताया, ‘‘हम 5-6 लोग हैं.’’

’’ठीक है, ऐसा करो कि 2 लोग मीटिंग में घुस जाओ और अफवाह फैलाओ कि हम लोग छत पर बंदूकराइफल और बम ले कर बैठे हैं. आज भयंकर कांड होने वाला है. 2 लोग होस्टल से यहां तक बीच में खड़े रहना और इसी बात को दोहराना.’’

तरकीब काम कर गई. सभास्थल पर ही इस अफवाह ने इतना असर दिखाया कि 70 फीसदी छात्र किसी न किसी बहाने खिसक गए. दूसरे गुट ने जब तेजी से आ कर यही बात दोहराई तो फिर भगदड़ मच गई. शेष बचे सिर्फ डौन और मलय चाचा के रिश्तेदार. वे भी हमारे केंद्र से 100 गज की दूरी पर तीसरे प्रोपेगंडा एजेंट के आगे घिघियाते हुए बोले, ‘‘उन लोगों को जा कर कहो कि हम लोग समझौता करना चाहते हैं.’’

उस ने आ कर बताया कि उन की हालत खराब है. इस बीच शहर के सब से बड़े डौन हमारी सुरक्षा में हमारे अड्डे से थोड़ी दूरी पर जीप लगा कर हथियारों के साथ मौजूद थे. कुछ बड़े डौन हमारे बीच आ कर बैठे थे. यूनिवर्सिटी के कुछ बड़े छात्रनेता भी हमारे बीच थे. कहा गया कि उन्हें बुला लाओ. उन के पक्ष के डौन तो अपने बड़ों की उस इलाके में चहलकदमी देख कर खिसक लिए. मलय चाचा के भानजे अकेले लौज में आए. हम ने समझौते की कई शर्तें रखीं. पहली, मुकदमा बिना शर्त वापस हो. दूसरी, होस्टल के वे लड़के जो हमारे साथ थे, उन्हें सम्मान के साथ वापस बुलाया जाए. उन पर कालेज प्रबंधन किसी तरह की दंडात्मक कार्यवाही न करे.

बौस लोगों ने भी अपनी तरफ से शहर में शांति बनाए रखने के लिए एक शर्त रखी कि दोनों पक्ष इलाहाबाद शहर के अंदर आपस में टकराव नहीं करेंगे. होस्टल के दादा लड़ाई हार चुके थे इसलिए हर शर्त मानने के अलावा उन के पास कोई चारा नहीं था. इस घटना का नतीजा यह हुआ कि पहले दिन होस्टल की घटना के बाद मोतीहारी के जो लड़के होस्टल छोड़ कर भाग गए थे. वे वापस लौटने के बाद होस्टल के बौस बन गए. पुराने बौस लोगों की हवा निकल गई. इस घटना के बाद शहर के अन्य संस्थानों में भी रैगिंग की परंपरा में कमी आई.

इधर किसी ने मेरे घर तक इस घटना की खबर पहुंचा दी और मुझे तुरंत इलाहाबाद छोड़ कर वापस लौट आने का फरमान सुना दिया गया. इलाहाबाद में लंबे समय तक यह लड़ाई चर्चा का विषय बनी रही.

Romantic Hindi Stories : क्योंकि वह अमृत है…:

Romantic Hindi Stories : सरला ने क्लर्क के पद पर कार्यभार ग्रहण किया और स्टाफ ने उस का भव्य स्वागत किया. स्वभाव व सुंदरता में कमी न रखने वाली युवती को देख कर लगा कि बनाने वाले ने उस की देह व उम्र के हिसाब से उसे अक्ल कम दी है.

यह तब पता चला जब मैं ने मिस सरला से कहा, ‘‘रमेश को गोली मारो और जाओ, चूहों द्वारा क्षतिग्रस्त की गई सभी फाइलों का ब्योरा तैयार करो,’’ इतना कह कर मैं कार्यालय से बाहर चला गया था.

दरअसल, 3 बच्चों के विधुर पिता रमेश वरिष्ठ क्लर्क होने के नाते कर्मचारियों के अच्छे सलाहकार हैं, सो सरला को भी गाइड करने लगे. इसीलिए वह उस के बहुत करीब थे.

अपने परिवार का इकलौता बेटा मैं सरकार के इस दफ्तर में यहां का प्रशासनिक अधिकारी हूं. रमेश बाबू का खूब आदर करता हूं, क्योंकि वह कर्मठ, समझदार, अनुशासित व ईमानदार व्यक्ति हैं. अकसर रमेश बाबू सरला के सामने बैठ कर गाइड करते या कभीकभी सरला को अपने पास बुला लेते और फाइलें उलटपलट कर देखा दिखाया करते.

उन की इस हरकत पर लोग मजाक करने लगे, ‘‘मिस सरला, अपने को बदल डालो. जमाना बहुत ही खराब है. ऐसा- वैसा कुछ घट गया तो यह दफ्तर बदनाम हो जाएगा.’’

असल में जब भी मैं सरला से कोई फाइल मांगता, उस का उत्तर रमेशजी से ही शुरू होता. उस दिन भी मैं ने चूहों द्वारा कुतरी गई फाइलों का ब्योरा मांगा तो वह सहजता से बोली, ‘‘रमेशजी से अभी तैयार करवा लूंगी.’’

हर काम के लिए रमेशजी हैं तो फिर सरला किसलिए है और मैं गुस्से में कह गया, ‘रमेश को गोली मारो.’ पता नहीं वह मेरे बारे में क्याक्या ऊलजलूल सोच रही होगी. मैं अगली सुबह कार्यालय पहुंचा तो सरला ने मुझ से मिलने में देर नहीं की.

‘‘सर, मैं कल से परेशान हूं.’’

‘‘क्यों?’’ मुसकराते हुए मैं ने उसे खुश करने के लिए कहा, ‘‘फाइलों का ब्योरा तैयार नहीं हुआ? कोई बात नहीं, रमेशजी की मदद ले लो. सरला, अब तुम स्वतंत्र रूप से हर काम करने की कोशिश करो.’’

वह मुझे एक फाइल सौंपते हुए बोली, ‘‘सर, यह लीजिए, चूहों द्वारा कुतरी गई फाइलों का ब्योरा, पर मेरी परेशानी कुछ और है.’’

‘‘क्या मतलब?’’ मैं ने जानना चाहा.

‘‘कल आप ने कहा था कि रमेशजी को गोली मारो. सर, मैं रातभर सोचती रही कि रमेशजी में क्या खराबी हो सकती है जिस की वजह से मैं उन को गोली मारूं. पहेलीनुमा सलाह या अधूरे प्रश्न से मैं बहुत बेचैन होती हूं सर,’’ वह गंभीरतापूर्वक कहती गई.

तभी मेरी मां की उम्र की एक महिला मुझ से मिलने आईं. परिचय से मैं चौंक गया. वह सरला की मां हैं. जरूर सरला से संबंधित कोई शिकायत होगी. यह सोच कर मैं ने उन्हें सादर बिठाया. उन्होंने मेरे सामने वाली कुरसी पर बैठने से पहले अपनी बेटी के सिर पर हाथ फेर कर उस से जाने को कहा तो वह केबिन से निकल गई.

‘‘सर, मैं एक प्रार्थना ले कर आप को परेशान करने आ गई,’’ सरला की मां बोलीं.

‘‘हां, मांजी, आप एक नहीं हजार प्रार्थनाएं कर सकती हैं,’’ मैं ने बात आगे बढ़ाई, ‘‘बताइए, मांजी.’’

वह बोलीं, ‘‘सर, मेरी सरला कुछ असामान्य हरकतें करती है. उस के सामने कोई बात अधूरी मत छोड़ा कीजिए. कल घर जा कर उस ने धरतीआसमान उठा कर जैसे सिर पर रख लिया हो. देर रात तक समझानेबुझाने के बाद वह सो पाई. बेचैनी में बहुत ही अजीबोगरीब हरकतें करती है. दरअसल, मैं उसे बहुत चाहती हूं, वह मेरी जिंदगी है. मैं ने सोचा कि यह बात आप को बता दूं ताकि कार्यालय में वह ऐसावैसा न करे.’’

मैं ने आश्चर्य व धैर्यता से कहा, ‘‘मांजी, आप की बेटी का स्वभाव बहुत कुछ मेरी समझ में आ गया है. पिछले सप्ताह से मैं उसे बराबर रीड कर रहा हूं. असहनीय बेचैनी के वक्त वह अपना सिर पटकती होगी, अपने बालों को भींच कर झकझोरती होगी, चीखतीचिल्लाती होगी. बाद में उस के हाथ में जो वस्तु होती है, उसे फेंकती होगी.’’

‘‘हां, सर,’’ मांजी ने गोलगोल आंखें ऊपर करते हुए कहा, ‘‘सबकुछ ऐसा ही करती है. इसीलिए मैं बताने आई हूं कि उसे सामान्य बनाए रखने के लिए सलाहमशविरा यहीं खत्म कर लिया करें अन्यथा वह रात को न सोएगी न सोने देगी. भय है कि कहीं कार्यालय में किसी को कुछ फेंक कर न मार दे.’’

‘‘जी, मांजी, आप की सलाह पर ध्यान दिया जाएगा. पर एक प्रार्थना है कि मैं आप को मांजी कहता हूं इसलिए आप मुझे रजनीश कहिए या बेटा, मुझे बहुत अच्छा लगेगा.’’

उठते हुए मांजी बोलीं, ‘‘ठीक है बेटा, एक जिज्ञासा हुई कि सरला के लक्षणों को तुम कैसे समझ पाए हो? क्या पिछले दिनों भी कार्यालय में उस ने ऐसा कुछ…’’

‘‘नहीं, अब तक तो नहीं, पर मैं कुछ मनोभावों के संवेदनों और आप द्वारा बताए जाने से यह सब समझ पाया हूं. मेरा प्रयास रहेगा कि सरला जल्दी ही सामान्य हो जाए,’’ मैं ने मांजी को उत्तर दिया तो वह धन्यवाद दे कर केबिन से बाहर निकली और फिर सरला का माथा चूम कर बाहर चली गईं.

मैं ने अपना प्रभाव जमाने के लिए उन्हें आश्वस्त किया था. संभव है कि हालात मेरे पक्ष में हों और सरला को सामान्य करने का मेरा प्रयास सफल रहे. सरला की शादी के बाद किसी एक पुरुष की जिंदगी तो बिगड़ेगी ही, क्यों न मेरी ही बिगड़े. हालांकि उसे सामान्य करने के लिए शादी ही उपचार नहीं है पर प्रथम शोधप्रयास विवाहोपचार ही सही. वैसे मेरे हाथ के तोते तो उड़ चुके थे फिर भी साहस बटोर कर सरला को बुला कर मैं बोला, ‘‘मिस सरला, मैं एक सलाह दूं, तुम उस पर विचार कर के मुझे बताना.’’

‘‘जी, सर, सलाह बताइए, मैं रमेशजी से समझ लूंगी. रही बात विचार की, सो मैं विचार के अलावा कुछ करती भी तो नहीं, सर,’’ प्रसन्नतापूर्वक सरला ने आंखें मटकाते हुए कहा.

चंचलता उस की आंखों में झलक आई थी. तथास्तु करती परियों जैसी मुसकराहट उस के होंठों पर खिल उठी.

मैं ने सरला को ही शादी की सलाह दे कर उकसाना चाहा ताकि उसे भी कुछकुछ होने लगे और जब तक उस की शादी नहीं हो जाएगी, वह बेचैन रहेगी. घर जा कर अपने मातापिता को तंग करेगी और तब शादी की बात पर गंभीरता से विचारविमर्श होगा.

मैं तो आपादमस्तक सरला के चरित्र से जुड़ गया था और मैं ने उसे सहजता से कह दिया, ‘‘देखो, सरला, अब तुम्हें अपनी शादी कर लेनी चाहिए. अपने मातापिता से तुम यह बात कहो. मैं समझता हूं कि तुम्हारे मातापिता की सभी चिंताएं दूर हो जाएंगी. उन की चिंता दूर करने का तुम्हारा फर्ज बनता है, सरला.’’

‘‘ठीक है, सर, मैं रमेशजी से पूछ लेती हूं,’’ सरला ने बुद्धुओं जैसी बात कह दी, जैसे उसे पता नहीं कि उसे क्या सलाह दी गई. उस के मन में तो रमेशजी गणेशजी की तरह ऐसे आसन ले कर बैठे थे कि आउट होने का नाम ही नहीं लेते.

मैं ने अपना माथा ठोंका और संयत हो कर बोला, ‘‘सरला, तुम 22 साल की हो और तुम्हारे अच्छे रमेशजी डबल विधुर, पूरे 45 साल के यानी तुम्हारे चाचा हैं. तुम उन्हें चाचा कहा करो.’’

मैं ने सोचा कि रमेश से ही नहीं अगलबगल में भी सब का पत्ता साफ हो जाए, ‘‘और सुनो, बगल में जो रसमोहन बैठता है उसे भैयाजी और उस के भी बगल में अनुराग को मामाजी कहा करो. ये लोग ऐसे रिश्ते के लिए बहुत ही उपयुक्त हैं.’’

‘‘जी, सर,’’ कह कर सरला वापस गई और रमेश के पास बैठ कर बोली, ‘‘चाचाजी, आज मैं अपने मम्मीपापा से अपनी शादी की बात करूंगी. क्या ठीक रहेगा, चाचाजी?’’

यह सुन कर रमेशजी तो जैसे दस- मंजिली इमारत से गिर कर बेहोश होती आवाज में बोले, ‘‘ठीक ही रहेगा.’’

5 बजे थे. सरला ने अपना बैग कंधे पर टांगा और रसमोहन से ‘भैयाजी नमस्ते’, अनुराग से ‘मामाजी नमस्ते’ कहते हुए चलती बनी. सभी अपनीअपनी त्योरियां चढ़ा रहे थे और मेरी ओर उंगली उठा कर संकेत कर रहे थे कि यह षड्यंत्र रजनीश सर का ही रचा है.

मैं जानता हूं कि मेरे विभाग के सभी पुरुषकर्मी असल में जानेमाने डोरीलाल हैं. किसी पर भी डोरे डाल सकते हैं. लेकिन शर्मदार होंगे तो इस रिश्ते को निभाएंगे और तब कहीं सरला खुले दिमाग से अपना आगापीछा सोच सकेगी. उस के मातापिता भी अपनी सुकोमल, बचकानी सी बेटी के लिए दामाद का कद, शिक्षा, पद स्तर आदि देखेंगे जिस के लिए पति के रूप में मैं बिलकुल फिट हूं.

अगली सुबह बिना बुलाए सरला मेरे कमरे में आई. मुझे उस से सुन कर बेहद खुशी हुई, ‘‘सर, मैं ने कल चाचाजी, भैयाजी, मामाजी कहा तो ये सब ऐसे देख रहे थे जैसे मैं पागल हूं. आप बताइए, क्या मैं पागल लगती हूं, सर?’’

इस मानसिक रूप से कमजोर लड़की को मैं क्या कहता, सो मैं ने उस के दिमाग के आधार पर समझाया, ‘‘देखो, सरला…चाचा, भैया, मामा लोग लड़कियों को लाड़प्यार में पागल ही कहा करते हैं. तुम्हारे मम्मीपापा भी कई बार तुम्हें ‘पगली कहीं की’ कह देते होंगे.’’

उस की ‘यस सर’ सुनतेसुनते मैं उस के पास आ गया. वह भी अब तक खड़ी हो चुकी थी. अपने को अनियंत्रित होते मैं ने उसे अपने सीने से लगा लिया और वह भी मुझ से चिपक गई, जैसे हम 2 प्रेमी एक लंबे अरसे के बाद मिले हों. हरकत आगे बढ़ी तो मैं ने उस के कंधे भींच कर उस के दोनों गालों पर एक के बाद एक चुंबन की छाप छोड़ दी.

मैं ने उसे जाने को कहा. वह चली गई तो मैं जैसे बेदिल सा हो गया. दिल गया और दर्द रह गया. पहली बार मेरा रोमरोम सिहर उठा, क्योंकि प्रथम बार स्त्रीदेह के स्पर्श की चुभन को अनुभव किया था. जन्मजन्मांतर तक याद रखने लायक प्यार के चुंबनों की छाप से जैसे सारा जहां हिल गया हो. सारे जहां का हिलना मैं ने सरला की देह में होती सिहरन की तरंगों में अनुभव किया.

प्रथम बार मैं ने किसी युवती के लिए अपने दिल में प्रेमज्योति की गरमाहट अनुभव की. काश, यह ज्योति सदा के लिए जल उठे. शायद ऐसी भावनाओं को ही प्यार कहते होंगे? यदि यह सत्य है तो मैं ने इस अद्भुत प्यार को पा लिया है उन पलों में. पहली बार लगा कि मैं अब तक मुर्दा देह था और सरला ने गरम सांसें फूंक कर मुझ में जान डाल दी है.

सरला ने दफ्तर से जाने के पहले मेरी विचारतंद्रा भंग की, ‘‘सर, आज मैं खुश भी हूं और परेशान भी. वह दोपहर पूर्व की घटना मुझ से बारबार कहती है कि मैं आप के 2 चुंबनों का उधार चुका दूं वरना मैं रातभर सो नहीं सकती.’’

मैं मन ही मन बेहद खुश था. यही तो प्यार है, पर इस पगली को कौन समझाए. इसे तो चुंबनों का कर्ज चुकता करना है, नहीं तो वह सो नहीं पाएगी. बस…प्यार हमेशा उधार रखने पर ही मजा देता है पर यह नादान लड़की. बदला चुकाना प्यार नहीं हो सकता. यदि ऐसा हुआ तो मेरी बेचैनी बढ़ेगी और वह निश्ंिचत हो जाएगी अर्थात सिर्फ मेरा प्यार जीवित रहे, यह मुझे गंवारा नहीं है और न ही हालात को.

मैं सरला को निराश नहीं कर सकता था, अत: पूछा, ‘‘सरला, क्या तुम्हें मेरी जरूरत है या एक पुरुष की?’’ और उस के चेहरे पर झलकती मासूमियत को मैं ने बिना उस का उत्तर सुने परखना चाहा. उसे अपने सीने से लगा कर कस कर भींच लिया, ‘‘सरला, इस रजनीश के लिए तुम अपनेआप को समर्पित कर दो. यही प्यार की सनक है. 2 जिंदा देहों के स्पर्श की सनक.’’

और वह भिंचती गई. चुंबनों का कौन कितना कर्जदार रहा, किस ने कितने उधार किए, कुछ होश नहीं था. शायद कुछ हिसाबकिताब न रख पाना ही प्यार होता है. हां, यही सत्य है जिसे झुठलाया नहीं जा सकता.

मैं ने उस की आंखों में झांक कर कहा, ‘‘सरला, हम प्यार की झील में कूद पड़े हैं,’’ मैं ने फिर 2 चुंबन ले कर कहा, ‘‘देखो, अब इन चुंबनों को उधार रहने दो, चुकाने की मत सोचना, आज उधार, कल अदायगी. इसे मेरी ओर से, रजनीश की ओर से उपहार समझना और इसे स्वस्थ व जीवंत रखना.’’

‘‘जी, सर,’’ कह कर वह चली गई. मुझे इस बात की बेहद खुशी हुई, अब की बार उस ने ‘रमेशजी’ का नाम नहीं लिया. उस के मुड़ते ही मैं धम्म से कुरसी पर बैठ गया. लगा मेरी देह मुर्दा हो गई. सोचा, चलो अच्छा ही हुआ, तभी तो कल जिंदादेह हो सकूंगा उस से मिल कर, उस से आत्मसात हो कर, अपने चुंबनों को चुकता पा कर. मैं वादा करता हूं कि अब मैं सरला की सनक के लिए फिर दोबारा मरूंगा, क्योंकि वह अमृत है.

घर से दफ्तर के लिए निकला तो मन पर कल के नशे का सुरूर बना हुआ था. मैं कब कार्यालय पहुंचा, पता ही नहीं चला. हो सकता है कि 2 देहों के आत्मसात होने में स्वभावस्वरूप पृथक हों, परंतु नतीजा तो सिर्फ ‘प्यार’ ही होता है.

आज कार्यालय में सरला नहीं आई. उस की मम्मी आईं. गंभीर समस्या का एहसास कर के मैं सहम ही नहीं गया, अंतर्मन से विक्षिप्त भी हो गया था क्योंकि इस मुर्दादेह को जिंदा करने वाली तो आई ही नहीं. पर उन की बातों से लगा कि यह दूसरा सुख था जो मेरे रोमरोम में प्रवेश कर रहा था जिसे आत्मसंतुष्टि का नाम दिया जा सके तो मैं धन्य हो जाऊं.

‘‘मेरी बेटी आज रात खूब सोई. सुबह उस में जो फुर्ती देखी है उसे देख कर मुझ से रहा नहीं गया. मुझे विवश हो कर तुम्हारे पास आना पड़ा, बेटा. आखिर कैसे-क्या हुआ? दोचार दिनों में ही उस का परिणाम दिखा. काश, वह ऐसी ही रहे, स्थायी रूप से,’’ मांजी स्थिति बता कर चुप हुईं.

‘‘हां, मांजी,’’ मैं प्रसन्नतापूर्वक बोला, ‘‘असल में मैं ने कल दुनियादारी के बारे में खुश व सामान्य रहने के गुर सरला को सिखाए और मैं चाहता हूं कि आप सरला की शादी कर दें.’’

फिर मैं ने अपने पक्ष में उन्हें सबकुछ बताया और वह खुश हुईं.

मैं ने उन की राय जाननी चाही कि वह मुझे अपने दामाद के रूप में किस तरह स्वीकारती हैं. वह हंसते हुए बोलीं, ‘‘मैं जातिवाद से दूर हूं इसलिए मुझे कोई एतराज नहीं है, बेटा. इतना जरूर है कि आप के परिवार में खासतौर से मातापिता राजी हों तो हमें कोई एतराज नहीं है.’’

‘‘ठीक है, मांजी, सभी राजी होंगे तभी हम आगे बात बढ़ाएंगे,’’ मैं ने अपनी सहमति दी.

‘‘अच्छा बेटा, मन में एक बात उपजी है कि सरला दिमाग से असामान्य है, यह जान कर भी तुम उस से शादी क्यों करना चाहते हो?’’ मांजी ने अपनी दुविधा को मिटाना चाहा.

‘‘मांजी, इस का कारण तो मैं खुद भी नहीं जानता पर इतना जरूर है कि वह मुझे बेहद पसंद है. अब सवाल यह है कि शादी के बारे में वह मुझे कितना पसंद करती है.’’

चलते वक्त मुझे व मेरे मातापिता को अगले दिन छुट्टी पर घर बुलाया. मैं जानता हूं कि मेरे मातापिता मेरी पसंद पर आपत्ति नहीं कर सकते. सो आननफानन में शादी तय हुई.

शादी के ठीक 1 सप्ताह पहले मैं और सरला अवकाश पर गए तथा निमंत्रणपत्र भी कार्यालय में सभी को बांट दिए. सब के चेहरे आश्चर्य से भरे थे. सभी खुश भी थे.

विवाह हुआ और 1 माह बाद हम ने साथसाथ कार्यभार ग्रहण किया. हमारा साथसाथ आना व जाना होने से हमें सभी आशीर्वाद देने की नजर से ही देखते.

लेखक- राजेंद्रप्रसाद शंखवार

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