सेहत के लिए जरूरी हैं ये 10 अच्छी आदतें

हेल्दी लाइफ के लिए कुछ हेल्दी आदतें भी होना जरुरी है, जिससे आप एक हेल्दी लाइफ जी सकते हैं. इसीलिए आज हम आपको हेल्थ से जुड़ी 10 आदतों के बारे में बताएंगे, जिसे अपनाकर आप अच्छी लाइफ जी सकते हैं.

1. घर में सफाई पर खास ध्यान दें, विशेषकर रसोई तथा शौचालयों पर. पानी को कहीं भी इकट्ठा न होने दें. सिंक, वाश बेसिन आदि जैसी जगहों पर नियमित रूप से सफाई करें तथा फिनाइल, फ्लोर क्लीनर आदि का उपयोग करती रहें. खाने की किसी भी वस्तु को खुला न छोड़ें. कच्चे और पके हुए खाने को अलग-अलग रखें. खाना पकाने तथा खाने के लिए उपयोग में आने वाले बर्तनों, फ्रिज, ओवन आदि को भी साफ रखें. कभी भी गीले बर्तनों को रैक में नहीं रखें, न ही बिना सूखे डिब्बों आदि के ढक्कन लगाकर रखें.

2. ताजी सब्जियों-फलों का प्रयोग करें. उपयोग में आने वाले मसाले, अनाजों तथा अन्य सामग्री का भंडारण भी सही तरीके से करें तथा एक्सपायरी डेट वाली वस्तुओं पर तारीख देखने का ध्यान रखें.

3. बहुत ज्यादा तेल, मसालों से बने, बैक्ड तथा गरिष्ठ भोजन का उपयोग न करें. खाने को सही तापमान पर पकाएं और ज्यादा पकाकर सब्जियों आदि के पौष्टिक तत्व नष्ट न करें. साथ ही ओवन का प्रयोग करते समय तापमान का खास ध्यान रखें. भोज्य पदार्थों को हमेशा ढंककर रखें और ताजा भोजन खाएं.

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4. खाने में सलाद, दही, दूध, दलिया, हरी सब्जियों, साबुत दाल-अनाज आदि का प्रयोग अवश्य करें. कोशिश करें कि आपकी प्लेट में ‘वैरायटी आफ फूड’ शामिल हो. खाना पकाने तथा पीने के लिए साफ पानी का उपयोग करें. सब्जियों तथा फलों को अच्छी तरह धोकर प्रयोग में लाएं.

5. खाना पकाने के लिए अनसैचुरेटेड वेजिटेबल आइल (जैसे सोयाबीन, सनफ्लावर, मक्का या आलिव आइल) के प्रयोग को प्राथमिकता दें. खाने में शकर तथा नमक दोनों की मात्रा का प्रयोग कम से कम करें. जंकफूड, साफ्ट ड्रिंक तथा आर्टिफिशियल शकर से बने ज्यूस आदि का उपयोग न करें. कोशिश करें कि रात का खाना आठ बजे तक हो और यह भोजन हल्का-फुल्का हो.

6.  अपने विश्राम करने या सोने के कमरे को साफ-सुथरा, हवादार और खुला-खुला रखें. चादरें, तकियों के गिलाफ तथा पर्दों को बदलती रहें तथा मैट्रेस या गद्दों को भी समय-समय पर धूप दिखाकर झटकारें.

7. मेडिटेशन, योगा या ध्यान का प्रयोग एकाग्रता बढ़ाने तथा तनाव से दूर रहने के लिए करें.

8.  कोई भी एक व्यायाम रोज जरूर करें. इसके लिए रोजाना कम से कम आधा घंटा दें और व्यायाम के तरीके बदलते रहें, जैसे कभी एयरोबिक्स करें तो कभी सिर्फ तेज चलें. अगर किसी भी चीज के लिए वक्त नहीं निकाल पा रहे तो दफ्तर या घर की सीढ़ियां चढ़ने और तेज चलने का लक्ष्य रखें. कोशिश करें कि दफ्तर में भी आपको बहुत देर तक एक ही पोजीशन में न बैठा रहना पड़े.

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9. कहीं भी बाहर से घर आने के बाद, किसी बाहरी वस्तु को हाथ लगाने के बाद, खाना बनाने से पहले, खाने से पहले, खाने के बाद और बाथरूम का उपयोग करने के बाद हाथों को अच्छी तरह साबुन से धोएं. यदि आपके घर में कोई छोटा बच्चा है तब तो यह और भी जरूरी हो जाता है. उसे हाथ लगाने से पहले अपने हाथ अच्छे से जरूर धोएं.

10. 45 की उम्र के बाद अपना रूटीन चेकअप करवाते रहें और यदि डाक्टर आपको कोई औषधि देता है तो उसे नियमित लें. प्रकृति के करीब रहने का समय जरूर निकालें. बच्चों के साथ खेलें, अपने पालतू जानवर के साथ दौड़ें और परिवार के साथ हल्के-फुल्के मनोरंजन का भी समय निकालें.

Technology तरक्की के जरिए दर्द से राहत

दर्द की जटिलताओं की सच्चाई यही है कि सर्जरी या गोलियां लंबे समय तक सभी तरह के दर्द से निजात नहीं दिला सकतीं. हालांकि बिना जांच कराए या बिना इलाज कराए असह्य दर्द में जी रहे कुछ लोगों में अविश्वसनीय रूप से दर्द की वापसी होती है, जिसका हमारे शरीर पर कई हानिकारक प्रभाव पड़ता है. दर्द को जीवन और ढलती उम्र का हिस्सा मान लेने से लोग इलाज के आधुनिक तौर—तरीकों की जानकारी भी नहीं रखते और इसका नकारात्मक असर जीवन की गुणवत्ता पर पड़ता है. कुछ लोगों में दर्द का स्तर बहुत ज्यादा होता है और सच तो यह है कि दर्द में जीते पांच में से एक व्यक्ति सही इलाज कराए बिना लंबे समय तक इसे झेलते रहते हैं.

जागरूकता, जानकारी का अभाव और गलत जानकारी के कारण कई लोगों के लिए दर्द उस स्थिति में पहुंच जाता है जो इससे जुड़ी असली बीमारी से भी बदतर हो जाती है. सितंबर में अंतरराष्ट्रीय दर्द जागरूकता माह मनाया जाता है जिसका उद्देश्य सभी लोगों में इसे लेकर जागरूकता बढ़ाना है. वैश्विक स्तर पर  उम्रदराज लोगों की आबादी और बदलती जीवनशैली के कारण आज के समय में इन दो दशकों की अहमियत बढ़ गई है. अत्याधुनिक टेक्नोलॉजी और विशेषज्ञ प्रशिक्षण की मदद से दुनिया के पेन मैनेजमेंट से जुड़े चिकित्सक हर तरह के दर्द से निजात दिलाने का प्रयास कर रहे हैं. चूंकि हर किसी के दर्द का अनुभव और स्तर अलग—अलग होता है इसलिए यह एक चुनौतीपूर्ण कार्य है जिसमें व्यक्तिग आधारित, बहु—आयामी और कई मॉडल आधारित दर्द प्रबंधन इलाज की जरूरत पड़ती है.  मैक्स हॉस्पिटल में पेन मैनेजमेंट सर्विसेज के प्रमुख , डॉ. आमोद मनोचा, बताते हैं कि

आपके दर्द का इलाज संभव है

लगातार दर्द बने रहने से न सिर्फ जीवन की गुणवत्ता पर नकारात्मक असर पड़ता है, बल्कि कई बार मरीज भ्रमित हो जाते हैं या इस दर्द के लिए खुद को दोषी मानने लगते हैं. दर्द का कोई ठोस कारण जब पता नहीं चलता तो मरीज में इलाज का असंतुष्टि भाव, कुंठा, मूड खराब होने का भाव पनपता है और डॉक्टर—मरीज संबंध भी प्रभावित होता है.

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तकनीकी तरक्की और नई पारंपरिक तकनीकों की उपलब्धता हमारी सदियों पुरानी समस्याओं को देखने के तरीके को बदल रही है कि हम अपने रोगियों को दर्द से राहत दिलाने के लिए क्या उपाय करते हैं. ये नए विकल्प लंबे समय तक अस्पताल में रहने की जरूरत के बगैर न्यूनतम शल्यक्रिया और कम समय की प्रक्रियाओं के लाभ देते हैं और लंबे समय तक चलने वाले दर्द से राहत दिलाते हैं.

रेडियोफ्रिक्वेंसी एब्लेशन

यह न्यूनतम शल्यक्रिया तकनीक उन मरीजों के लिए उम्मीद की किरण बनी है जिन्हें गर्दन, कमर, कूल्हा, घुटना और कंधे जैसे जोड़ों में दर्द रहता है. इस पद्धति का फोकस दर्द का सिग्नल देने वाली नसों को निष्क्रिय करना होता है जिससे मरीज की कायर्यक्षमता बढ़ती है और दवाइयों की जरूरत भी कम पड़ती है. विकसित देशों में अपनाई जा रही इस सामान्य पद्धति के प्रति भारत के लोगों में भी जागरूकता बढ़ रही है. यह विकल्प सुरक्षित, प्रभावी, नॉन—सर्जिकल प्रक्रिया और ज्यादातर मामलों में उपचार के एक—दो साल में ही नसों की नई कोशिकाएं बनाने की पेशकश करता है जिस कारण जरूरत पड़ी तो यह पद्धति दोहराई भी जा सकती है.

क्रायोएब्लेशन

यह टेक्नोलॉजी पिछले कई वर्षों से अहम तरक्की कर चुकी है और इसे कैंसर के दर्द, घुटने, कूल्हे और कंधे, रीढ़ के जोड़, सैक्रोइलिक जोड़, नसों का दर्द, सर्जरी के बाद दर्द, पसलियां टूटने के बाद आदि जैसे बड़े जोड़ों की अर्थराइटिस समेत हर तरह के दर्द की स्थिति में इस्तेमाल किया जा सकता है. क्रायोब्लेशन इलाज का मुख्य लक्ष्य दर्द के सिग्नल देने वाली नसों को निष्क्रिय बनाना होता है और इसके लिए 80 डिग्री से भी कम तापमान में नियंत्रित तरीके से इन नसों को जमा दिया जाता है. इस इलाज पद्धति में कहीं कोई कट या चीरा लगाने की जरूरत नहीं पड़ती और तत्काल एवं लंबे समय तक दर्द से राहत मिलती है. कम दर्द होने से मरीज की कार्यक्षमता बढ़ती है, दर्दनिवारक दवाइयों की जरूरत कम होती है और मरीज में विकलांगता की नौबत भी कम होती है. इसके अलावा इसका कोई साइड इफेक्ट नहीं होने के कारण इसे दोहराया भी जा सकता है.

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पोर्टेबल हाई

डेफिनिशन अल्ट्रासाउंड, नई चिकित्सा पद्धतियों, इंट्राथेकल पंप इंप्लांट, स्पाइनल कॉर्ड स्टिमुलस आदि की उपलब्धता जैसी प्रौद्योगिकी तरक्की ने दर्द प्रबंधन संबंधी डायग्नोस्टिक और इलाज में आश्चर्यजनक सुधार लाया है और हमें मरीजों की अपेक्षाओं के अनुरूप इलाज करने में सक्षम बना रही है. जेनेटिक और मोलेकुलर टेस्ट हमारी समझ को बढ़ाने में मदद कर रहे हैं और उम्मीद है कि निकट भविष्य में दर्द से निजात दिलाने के लिए ये हमें नए लक्ष्य देंगे.

अस्थमा में मुझे क्या करना चाहिए?

सवाल-

मेरी उम्र 28 वर्ष है. पिछले कुछ महीनों से मुझे सांस लेने में तकलीफ महसूस हो रही है. दवा लेने पर ठीक हो जाती है, लेकिन यह परेशानी बारबार हो जाती है. क्या मुझे अस्थमा है और मुझे क्या करना चाहिए?

जवाब-

सांस लेने में तकलीफ होना अस्थमा का लक्षण हो सकता है परंतु अकेला एक लक्षण अस्थमा नहीं घोषित किया जा सकता है. अगर सांस लेने में तकलीफ है तो डाक्टर से अपनी जांच कराएं क्योंकि यह लक्षण आप के अन्य स्वास्थ्य कारणों से भी हो सकता है. अस्थमा में केवल सांस लेने में दिक्कत ही नहीं बल्कि खांसी, घबराहट तथा सीने में जकड़न भी होती है.

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अस्थमा की बीमारी एक सामान्य और लंबे समय तक रहने वाली बीमारी है. वेस्ट इंडिया के लोगों में ये बीमारी हर 10 में से एक व्यक्ति को प्रभावित करती है. एक शोध से पता चला है कि अस्थमा मोटे लोगों को ज्यादा होता है. यदि ठीक से व्यायाम किया जाए और रोज के खाने में प्रोटीन, फलों और सब्जियों का सेवन किया जाए तो अस्थमा के रोगियों की हालत में सुधार लाया जा सकता है.

अस्‍थमा या दमा फेफड़ो को प्रभावित करती है. यह एक ऐसी बीमारी है जिसमें फेफड़ो तक सही मात्रा में आक्सीजन नहीं पंहुच पाता और सांस लेने में तकलीफ बढ़ जाती है. आस्थमा अटैक कभी भी कहीं भी हो सकता है. आस्थमा अटैक तब होता है जब धूल के कण आक्सीजन ले जाने वाली नलियों को बंद कर देते हैं. आस्थमा के अटैक से बचने के लिए जितनी जल्‍दी हो सके दवाईयों या इन्‍हेलर का प्रयोग किया जाना चाहिए.

दमे के दौरान अपनाएं ये उपाय

दमे के मरीजों को चावल, तिल, शुगर और दही जैसे कफ या बलगम बनाने वाले पदार्थ, तले हुए खाद्य पदार्थ खाने से बचना चाहिए. ताजे फलों का रस दमे को रोगी के लिए बेहद फायदेमंद है. उन्हें हरी सब्जियां और अंकुरित चने जैसे खाद्य पदार्थ भरपूर मात्रा में ले और भूख से कम ही खाना खाये. दिनभर में कम से कम दस गिलास पानी पीये. तेज मसाले, मिर्च अचार, अधिक चाय-काफी के सेवन से बचें. मरीज को रोजाना योगासन और प्राणायाम का अभ्यास करना चाहिए. रोगी को एनीमा देकर उसकी आंतों की सफाई करनी चाहिए.

40 की उम्र के बाद खुद को ऐसे रखें फिट एंड फाइन

आमतौर पर देखा जाता है कि चालीस की उम्र के बाद से महिलाओं में कई तरह की बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है. 40 की उम्र ऐसा पड़ाव है, जब स्त्री के शरीर में कई तरह के बदलाव होते हैं. इस उम्र में मेनोपौज के बाद कुछ समस्याएं, जैसे चिड़चिड़ापन, थकान, वजन बढना, लगातार खाते रहने की चाहत आदि हो सकती हैं. हालांकि यह समस्या सभी स्त्रियों में एक समान नहीं होती.

कई महिलाओं को लगता है कि वह बिल्कुल स्वस्थ हैं पर वह वाकई में पूरी तरह से स्वस्थ हो यह जरूरी नहीं है. ऐसे में जरूरी है कि आप अपनी हेल्थ को क्रौस चेक करें और डाक्टर से परामर्श लें. इसी के साथ ही रूटीन चेकअप कराती रहें और अपने खानपान और फिटनेस का भी विशेष खयाल रखें.

आइये जानें 40 की उम्र के बाद होने वाली समस्याओं और उनसे बचने के उपायों के बारें में-

ब्लड प्रेशर

इस उम्र में ब्लड प्रेशर का खतरा बढ़ जाता है. जब स्त्रियां अपने खानपान पर ध्यान नहीं देतीं तो बीपी बढऩे की पूरी संभावना होती है. यदि आपको लगे कि आपका ब्लड प्रेशर सामान्य है, तब भी नियमित रूप से इसकी जांच करानी चाहिए.

डाइट :

इस उम्र में ओमेगा-थ्री फैटी एसिड से युक्त आहार का सेवन रक्तचाप को नियंत्रित करने के साथ हृदय की अनियमित गति को भी ठीक करने में मददगार है.

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फिटनेस :

एक शोध के अनुसार सिल्वर योग ब्लड प्रेशर की समस्या को कम करता है. अगर आप किसी भी कारण योग नहीं कर पा रही हैं तो सुबह कम से कम 45 मिनट टहलें.  टहलते समय ध्यान रखें कि पहले 10 सामान्य गति से और अगले 20 मिनट तेज गति से चलें और फिर अपनी गति को मध्यम कर 10 मिनट तक चलें. रोजाना 40-45 मिनट ऐसा करें. अगर आप सुबह टहल नहीं पा रही हैं तो रात को डिनर के 30 मिनट बाद टहले.

कोलेस्ट्रौल

ब्लड प्रेशर के साथ-साथ स्त्रियों में कोलेस्ट्रौल की भी समस्या हो जाती है. इसलिए महिलाओं को हर पांच साल में कोलेस्ट्रौल की जांच जरूर करानी चाहिए. एक शोध में पाया गया है कि कभी-कभी एचडीएल या अच्छा कोलेस्ट्रौल भी टाइप-1 मधुमेह से पीडि़त महिलाओं के हृदय रोग के खतरे को बढ़ा सकता है.

डाइट :

उच्च फाइबर खाद्य पदार्थ जैसे दलिया, जौ, गेहूं, फल और सब्जियों का सेवन करें. यह रक्त में कोलेस्ट्रौल कम करने में मदद करता है.

फिटनेस :

हफ्ते में पांच दिन 30 से 40 मिनट एरोबिक एक्सरसाइज करें और अपने लिपिड प्रोफाइल को मौनिटर करें.

डायबिटीज

डायबिटीज अपने आप में एक गंभीर समस्या है. सही समय पर इसका पता न चलने पर हृदय रोग, किडनी व आंखों से संबंधित समस्याओं की आशंका बढ़ जाती है. इसलिए स्त्रियों को साल में कम से कम एक बार डायबिटीज की जांच अवश्य करानी चाहिए.

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डाइट :

डायबिटीज में फाइबर डाइट शुगर लेवल को नियंत्रित करता है. इसलिए गेहूं, ब्राउन राइस या व्हीट ब्रेड आदि को अपनी डाइट में शामिल करें, साथ ही ताजे फल और सब्जियों का सेवन करें. इसके अलावा उच्च प्रोटीन डाइट लें और खूब पानी पिएं.

फिटनेस :

व्यायाम करने से शरीर में रक्तसंचार सुचारु रूप से होता है. इससे ब्लड शुगर नियंत्रित रहता है, मेटाबौलिज्म संतुलित रहता है और मधुमेह का खतरा कम होता है. वैसे मधुमेह के मरीजों को कई तरह के व्यायाम करने चाहिए. कभी योग करें, कभी कार्डियो और कभी वेट लिफ्टिंग. हमेशा एक तरह से एक्सरसाइज न करें.

Health और Beauty के लिए फायदेमंद है एलोवेरा जूस

अगर आप इस कोरोना वायरस जैसे महामारी से बचना चाहते हैं तो आपको अपना इम्यून सिस्टम मजबूत रखना होगा इसके लिए आपको एलोवेरा जूस का सेवन करना काफी फायदेमंद होगा एलोवेरा एक ऐसी औषधि है जो आसानी से घरों और बाजारों में मिल जाती है एलोवेरा एंटीऑक्सिडेंट्स , विटामिंस और मिनरल्स तत्वों के गुणों से भरपूर होती हैं.  इसके इस्तेमाल करने से आपके त्वचा बालों और पेट से संबंधित समस्याएं दूर होती हैं.  एलोवेरा जूस तो आपके स्वास्थ्य और सुंदर के लिए रामबाण औषधि के रूप में होता है.  यदि Aloe vera जूस का सेवन नियमित रूप से सुबह खाली पेट किया जाए तो इसके कई सारे फायदे होते हैं तो आइए इन फायदों के बारे में जानते हैं.

पाचन तंत्र मजबूत करता है –

यदि Aloe vera जूस का रोजाना सेवन खाली खाली पेट किया जाए तो इससे पाचन तंत्र मजबूत होता है.  इसके साथ ही पेट से संबंधित समस्याएं भी दूर हो जाती हैं जिन लोगों को कब्ज की शिकायत रहती है उन्हें रोजाना दो चम्मच एलोवेरा जूस का सेवन करना चाहिए ऐसा करने से आपको जल्द ही अच्छा परिणाम देखने को मिलेगा.

वजन कम करने में मददगार –

अगर आप अपने बढ़ते वजन को लेकर पहचान है तो ऐसे में आपके लिए एलोवेरा जूस एक असरदार उपाय है आप रोजाना खाली पेट आधा कप एलोवेरा जूस को लेकर सेवन करें एलोवेरा में एंटी इन्फ्लेमेटरी के गुण होते हैं.  जो आपके फैट को बर्न करने में सहायक होते हैं जिससे कि आपका वजन कम होने लगेगा.

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इम्यून सिस्टम को मजबूत करना –

कोविड-19 महामारी ने हम सभी को यह बता दिया है कि इम्यून सिस्टम का मजबूत होना हमारे स्वास्थ्य के लिए कितना जरूरी है एलोवेरा जूस को पीने से आपका इम्यून सिस्टम मजबूत होता है विशेषज्ञों के अनुसार एलोवेरा का जोश इम्यून सिस्टम को बूट करने में काफी मददगार होता है इसके साथ ही इसका सेवन पीएच लेवल को भी सुधरता है.

सूजन कम करना –

एलोवेरा में एंटीऑक्सीडेंट के गुण होते हैं जो आपके शरीर के सूजन को कम करने में मदद करता है.  इसके साथ ही यदि रोजाना खाली पेट एलोवेरा जूस का सेवन किया जाये हैं.  तो आपको सिर दर्द और तनाव से भी राहत मिलती है.  साथ ही आप के जख्म को भरने में भी सहायक होती है.

एलोवेरा जूस का सेवन करने से पहले डॉक्टर कि सलाह जरूर लें.

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पीरियड्स में पीठ दर्द से परेशान हूं, मैं क्या करुं?

सवाल

मेरी उम्र 24 वर्ष है. अकसर मासिकधर्म से पहले और उस दौरान मेरी पीठ में दर्द होता है. क्या यह कोई समस्या है?

जवाब

हां, यह बिलकुल सामान्य स्थिति है. यह मासिकधर्म से पहले तनाव (पीएमएस) के लक्षण हैं और इस दौर में यह आम बात है. कई महिलाओं को सिर्फ पीठ दर्द ही नहीं होता, बल्कि उन के जोड़ों और सिर में भी दर्द होता है.

पीएमएस के वक्त भावनात्मक बदलाव के अलावा शारीरिक लक्षण भी उभरते हैं. पीरियड के दौरान शरीर में थोड़ा दर्द भी होता है, जिस से हड्डियां और मांसपेशियां भी प्रभावित हो सकती हैं.

कुछ महिलाओं को सिंकाई से आराम मिलता है. आर्थ्राइटिस पीडि़त महिलाओं का पीठ दर्द बढ़ भी सकता है और आार्थ्राइटिस पीडि़त पुरुषों के मुकाबले महिलाओं में ज्यादा होता है. लिहाजा अपने डाक्टर से मिल कर कैल्सियम और विटामिन डी लैवल की जांच कराना जरूरी है.

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पीरियड्स के दौरान महिलाओं को कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है. कई बार इस दौरान महिलाओं को बहुत तेज दर्द का सामना करना पड़ता है. ऐसे में वो दवाइयों का सहारा लेने लगती हैं. पीरियड्स पेन में इस्तेमाल होने वाले पेन किलर्स हाई पावर वाले होते हैं. स्वास्थ पर उनका काफी बुरा असर होता है.

इस खबर में हम आपको पांच घरेलू टिप्स के बारे में बताएंगे जिनको अपना कर आप हर महीने होने वाले इस परेशानी से राहत पा सकेंगी.
तो आइए शुरू करें.

1. तले आहार से करें परहेज

पीरियड्स में आपको अपनी डाइट पर खासा ख्याल रखना होगा. इस दौरान तले, भुने खानों से दूर रहें. अपनी डाइट में हरी सब्जियों और फलों को शामिल करें. ये काफी असरदार होते हैं.

2. तेजपत्ता

तेजपत्ता से होने वाले स्वास्थ लाभ के बारे में बहुत कम लोगों को पता होता है. पीरियड्स से होने वाली परेशानियों में तेजपत्ता काफी कारगर होता है. महावारी के दर्द को दूर करने के लिए महिलाएं इसका इस्तेमाल करती हैं.

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बच्चों के डिप्रेशन का कारण और इलाज, जानें यहां

सोनू एक हँसमुख बच्चा है पर बीते कुछ दिनों से वो बहुत चुप और उदास रहने लगा था न जाने किस सोच में गुम रहता . माँ सीमा को तब चिंता हुई जब उसका खाना भी अचानक कम हो गया ऐसे में उसे डॉक्टर को दिखाया गया तब पता लगा कि सोनू डिप्रेशन में है और उसे काउंसलिंग की आवश्यकता है .सीमा और समीर सोच में पड़ गए कि इतना स्वस्थ्य वातावरण देने पर भी ये कैसे हुआ ?

काउंसलिंग पर पता लगा कि स्कूल बस में बच्चे उसके नाम का मजाक बना बना कर उसे चिढ़ाते थे इसी से उसे मानसिक चोट पहुँची और किसी से शेयर न करने से वो डिप्रेशन की स्थिति तक पहुँच गया. ऐसे ही एक किस्से में दादा दादी के घर वापस लौट जाने से 8 साल की रिया डिप्रेशनग्रस्त हो गई जिसे काफी इलाज के बाद सामान्य किया जा सका. उपरोक्त उदाहरणों से हम समझ सकते हैं कि डिप्रेशन वयस्कों की तरह बच्चों में भी हो सकता है बस कारण अलग अलग हो सकते हैं.यदि कोई बच्चा लगातार दुखी या चिढचिढा है तो जरूरी नहीं कि वो डिप्रेशनग्रस्त हो .किंतु वो बार बार उदास रहता है लोगों से बात करने में हिचक रहा है खाने या नींद पर असर है तो हो सकता है वो डिप्रेशन में हो.अगर आपको भी लगता है कि बच्चों में डिप्रेशन नहीं हो सकता तो इन बातों पर गौर करें.

बच्‍चों में डिप्रेशन के लक्षण

चिढ़चिढ़ाहट और क्रोध आना, लगातार दुख या निराशा लगना

लोगों से संवाद करना बंद हो जाना

अस्वीकृत होने का भय रहना, भूख में कमी या अधिकता

नींद में कमी या अधिकता

रोने का मन होना, एकाग्रता में कमी

थकान और ऊर्जा में कमी

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बिना कारण पेट दर्द या सिरदर्द रहना

कुछ भी काम करने का मन न होना

अपराधबोध से ग्रसित होना

आत्महत्या जैसे घातक विचार आना.

क्‍यों होता है बच्‍चों में डिप्रेशन

कई बच्‍चों को स्‍कूल में दूसरे बच्‍चों द्वारा बहुत ज्‍यादा परेशान किए जाने पर वो डिप्रेशनग्रस्त हो सकता है. स्‍कूल में बच्‍चे को चिढ़ाये जाने पर उसके आत्‍म-सम्‍मान में कमी आती है और लगातार तनाव में रहने के कारण वो डिप्रेशन की स्थिति में पहुंच जाता है. वहीं लगातार पड़ रहे किसी भी दबाव के कारण भी बच्‍चा इस स्थिति में पहुंच सकता है. अब ये दबाव पढ़ाई का भी हो सकता है और भावनात्मक भी.

अनुवांशिक कारण

जिन बच्‍चों के परिवार में किसी सदस्‍य को पहले डिप्रेशन हुआ हो, उनमें बाकी बच्‍चों की तुलना में डिप्रेशनग्रस्त होने का खतरा ज्‍यादा रहता है. वहीं ऐसा आवश्यक नहीं है कि जिन बच्‍चों में डिप्रेशन का कोई पारिवारिक इतिहास न हो, उन्‍हें कभी डिप्रेशन हो ही नहीं सकता है. अगर आपको लग रहा है कि आपके बच्‍चे में डिप्रेशन का खतरा है तो जरा करीब से उसके क्रियाकलापों, भावनाओं और व्‍यवहार पर ध्‍यान दें.

लाइफ स्टाइल में बदलाव

वयस्‍कों की तरह बच्‍चे जल्‍दी किसी परिवर्तन को स्‍वीकार नहीं कर पाते हैं. नए घर या स्‍कूल में जाना, पैरेंट्स का अलगाव देखना या भाई-बहन का बिछड़ना, या दादा-दादी से दूर होना, ये सभी चीजें बच्‍चे के मन मस्तिष्क पर नकारात्‍मक छाप डालती हैं. अगर आपको लग रहा है कि इन चीजों के कारण आपका बच्‍चा प्रभावित हो रहा है तो जितना जल्‍दी हो सके, उससे इस बारे में बात करें. यदि किसी हादसे के बाद बच्‍चे के व्‍यवहार में परिवर्तन दिख रहा है तो आपको तुरंत डिप्रेशन की पहचान कर उसका इलाज शुरू करवा देना चाहिए.

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रासायनिक असंतुलन

कुछ बच्‍चों में शरीर के अंदर रसायनों के असंतुलन के कारण डिप्रेशन हो जाता है. हार्मोनल परिवर्तन और वृद्धि होने के कारण ये असंतुलन हो सकता है लेकिन ऐसा कुपोषण या शारीरक गतिविधियां कम करने की वजह से भी हो सकता है. बच्‍चे का विकास ठीक तरह से हो रहा है या नहीं, इसकी जांच के लिए नियमित चेकअप करवाते रहें. इस तरह बच्चों को डिप्रेशन की स्थितियों से बचाया जा सकता है .

बार-बार सर्दी-जुकाम होना ठीक नहीं

मौसम बदलने पर बीमार पड़ना या फिर सर्दी-जुकाम हो जाना आम बात है लेकिन अगर आप उन लोगों में से शामिल हैं जिन्हें साल के 12 महीने में से 10 महीने सर्दी जुकाम रहता है, तो आपको इसपर विचार करने की जरूरत है. वैसे शायद आप अकेली नहीं है जो इस तरह की समस्या से दो-चार हो रही हैं. चलिए आज हम आपको इस खबर में बताते हैं कि आखिर बार-बार बीमार पड़ने की वजह क्या है…

सही तरीके से हाथ न धोना

सामान्य सर्दी जुकाम बड़ी आसानी से एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में ट्रांसफर हो जाता है. सेंटर फार डिजीज कंट्रोल ऐंड प्रिवेंशन की मानें तो कम से कम 20 सेकंड तक अच्छी तरह से हाथ धोना चाहिए. इसके अलावा खाना खाने से पहले, ट्वाइलेट का इस्तेमाल करने के बाद, किसी बीमार व्यक्ति की देखभाल के बाद और खांसने या छींकने के बाद भी हाथों को अच्छी तरह से धोना चाहिए. अगर आप ऐसा नहीं करती हैं तो आपको भी सर्दी जुकाम होने का खतरा रहता है.

कमजोर इम्यूनिटी

इसमें कोई शक नहीं कि वैसे लोग जिनका इम्यून सिस्टम यानी रोगों से लड़ने की क्षमता कमजोर होती है वे जल्दी बीमार पड़ते हैं. इम्यूनिटी वीक होने की कई वजहें होती है जिसमें औटोइम्यून समस्या, कुछ बीमारियां या फिर कई तरह की दवाईयां शामिल होती हैं जो शरीर को कमजोर बना देती हैं और रोगों से लड़ने की क्षमता खत्म हो जाती है.

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शरीर में पानी की कमी

अगर आपका शरीर डिहाइड्रेटेड है यानी शरीर में पानी की कमी है तब भी आपका इम्यून सिस्टम यानी रोगों से लड़ने की क्षमता कमजोर हो जाती है जिससे आपके बीमार पड़ने का खतरा बढ़ जाता है. खुद को हाइड्रेटेड रखकर आप बीमार पड़ने के खतरे को कई गुना कम कर सकती हैं.

बार-बार चेहरा छूना

शरीर में कीटाणुओं के पहुंचने का सबसे आसान तरीका है हमारे हाथों के जरिए… अगर आपके हाथों में कीटाणु हैं क्योंकि आपने अपने हाथ सही तरीके से नहीं धोएं हैं या फिर कोई गंदगी जगह छूने के बाद आपने हैंडवाश नहीं किया है और उसके बाद आप अपना चेहरा या मुंह छूते हैं तो हाथों में लगे कीटाणु बड़ी आसानी से हमारे शरीर के अंदर प्रवेश कर जाते हैं.

किसी चीज से ऐलर्जी

अगर आपको किसी चीज से ऐलर्जी है तो आपकी सर्दी जुकाम की समस्या और ज्यादा बढ़ जाएगी. इतना ही नहीं ऐलर्जी की वजह से सर्दी के लक्षण भी आए दिन दिखते और बढ़ते नजर आते हैं. अगर आपकी सर्दी जुकाम की समस्या 7 दिन के अंदर ठीक नहीं होती तो आपको डाक्टर से संपर्क कर चेक करवाना चाहिए कि कहीं आपको किसी तरह की कोई ऐलर्जी तो नहीं है.

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प्रैग्नेंसी और आईवीएफ से जुड़ी प्रौब्लम का सौल्यूशन बताएं?

सवाल-

मैं 25 साल की विवाहित महिला हूं. मेरे कुछ सपने हैं, इसलिए मैं अभी मां नहीं बनना चाहती. यदि मैं 35-36 की उम्र में मां बनना चाहूं तो क्या इस में कोई समस्या आ सकती है? कुछ लोग कहते हैं कि इस उम्र में मां बनना संभव नहीं है. क्या यह सच है?

जवाब-

बढ़ती उम्र के साथ अंडों की संख्या और गुणवत्ता दोनों ही कम होने लगती है, जिस कारण इस उम्र में कंसीव कर पाना मुश्किल होता है. यदि आप ने ठान लिया है कि आप 35 की उम्र में मां बनना चाहती हैं, तो इस में कोई समस्या नहीं है. आज साइंस और टैक्नोलौजी में प्रगति के कारण कई ऐसी तकनीकें उपलब्ध हैं, जिन के माध्यम से इस उम्र में भी गर्भधारण किया जा सकता है. इस के लिए आप आईवीएफ की मदद ले सकती हैं.

आप की उम्र अभी कम है, इसलिए आप के अंडों की गुणवत्ता अच्छी होगी. आप अपने स्वस्थ अंडे फ्रीज करवा सकती हैं जो भविष्य में मां बनने में आप के लिए सहायक साबित होंगे और आईवीएफ ट्रीटमैंट भी आसानी से पूरा हो जाएगा. फ्रीज किए अंडे को आप के पति के स्पर्म के साथ मिला कर पहले भू्रण तैयार किया जाएगा और फिर उस भ्रूण को आप के गर्भ में इंप्लाट कर दिया जाएगा. कुछ ही दिनों में आप को प्रैगनैंसी की खुशखबरी मिल जाएगी.

सवाल-

मेरी उम्र 35 साल है. मेरी शादी को 8 साल हो चुके हैं, लेकिन अभी तक कंसीव नहीं कर पाई हूं. मु  झे धूम्रपान की भी आदत है. क्या कोई तरीका है, जिस से मैं मां बन सकूं?

जवाब-

इस उम्र में कंसीव करने में समस्या आना आम बात है, लेकिन इस का सब से बड़ा कारण धूम्रपान है. यदि आप मां बनना चाहती हैं तो धूम्रपान को पूरी तरह छोड़ना होगा. यदि आप के पति भी स्मोकिंग करते हैं, तो उन्हें भी इस आदत को छोड़ने के लिए कहें. आप की उम्र अधिक है, इसलिए जल्दी गर्भधारण करना जरूरी है, वरना वक्त के साथ समस्या और बढ़ सकती है. इस के लिए पहले आप किसी डाक्टर से परामर्श लें. यदि इलाज से फायदा न हो तो आप आईवीएफ ट्रीटमैंट की मदद ले सकती हैं.

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सवाल-

मेरी उम्र 40 साल है. मैं एक बार आईवीएफ ट्रीटमैंट करवा चुकी हूं, लेकिन वह असफल रहा. मैं फिर से आईवीएफ ट्राई करना चाहती हूं. क्या इस में कोई खतरा है?

जवाब-

आप ने आईवीएफ ट्रीटमैंट की असफलता का कारण नहीं बताया. खैर आईवीएफ ट्रीटमैंट की कोई लिमिट नहीं है, इसलिए आप इसे बिना घबराए दोबारा करवा सकती हैं. हां, इसे बारबार करने से गर्भवती होने की संभावना कम हो जाती है. सफल आईवीएफ के लिए तनाव से दूर रहें और वजन को संतुलित रखें.

आजकल आईवीएफ के क्षेत्र में कई नईनई तकनीकों का विकास हो रहा है. चिकित्सक के द्वारा जरूरत के हिसाब से तकनीक का चुनाव करने पर गर्भधारण करने में मदद हो सकती है.

सवाल-

मैं 35 साल की विवाहित महिला हूं. मैं आईवीएफ तकनीक की मदद से मां बनना चाहती हूं और उम्मीद करती हूं कि तकनीक सफल रहे. इसलिए मैं जानना चाहती हूं कि क्या भ्रूण की संख्या गर्भवती होने की संभावना को प्रभावित करती है?

जवाब-

गर्भवती होने के लिए एक भू्रण के साथ सफलता की उम्मीद 28% होती है, जबकि 2 भू्रण के साथ सफलता की उम्मीद 48% होती है. लेकिन इस के साथ ही जुड़वां बच्चे होने की संभावना भी अधिक हो जाती है. यदि आप जुड़वां बच्चों का रिस्क नहीं लेना चाहती हैं, तो आप एक ही भू्रण को इंप्लांट करवा सकती हैं. इस के लिए आप के स्वस्थ अंडे का भू्रण तैयार किया जाएगा और फिर उस भू्रण को आप के गर्भ में इंप्लांट कर दिया जाएगा. यह आप की प्रैगनैंसी की संभावना को भी बढ़ाएगा और आप को अधिक समस्या का भी सामना नहीं करना पड़ेगा.

सवाल-

मैं 31 साल की कामकाजी महिला हूं. मैं जानना चाहती हूं कि क्या आईवीएफ में जुड़वां या एकसाथ कई बच्चे होने की संभावना रहती है?

जवाब-

पहले विशेषज्ञ अच्छे गर्भधारण के लिए एकसाथ कई भू्रण ट्रांसफर करने की सलाह देते थे, क्योंकि तब यह पता लगा पाना मुश्किल होता था कि ट्रांसफर किया गया भू्रण कमजोर है या नहीं. इस की वजह से कभीकभी जुड़वां या एकसाथ कई बच्चों का जन्म हो जाता था, लेकिन अब वक्त बदल चुका है और टैक्नोलौजी भी. आज की ऐडवांस टैक्नोलौजी के चलते यह पता लग जाता है कि भू्रण कमजोर तो नहीं. आप अपनी इच्छा से 1 या जुड़वां बच्चों की मां बन सकती हैं.

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सवाल-

मेरी उम्र 34 साल है. मैं 2 सालों से गर्भवती होने की कोशिश कर रही हूं, लेकिन अब उम्मीद हार रही हूं. मेरी सहेली ने मु  झे आईवीएफ तकनीक के बारे में बताया. मैं जानना चाहती हूं कि आईवीएफ तकनीक में कोई रिस्क तो नहीं? यह तकनीक मेरे स्वास्थ्य को नुकसान तो नहीं पहुंचाएगी?

जवाब

जी हां, आईवीएफ तकनीक भले ही मां बनने में एक वरदान की तरह है, लेकिन इस के कुछ साइड इफैक्ट भी हो सकते हैं. लेकिन ऐसा जरूरी नहीं है कि आईवीएफ कराने वाले हर मरीज को इन साइड इफैक्ट्स से गुजरना पड़े.

आईवीएफ ट्रीटमैंट में प्रीमैच्योर बेबी जन्म ले सकता है, इसलिए आप को पूरी प्रैगनैंसी के दौरान खास खयाल रखने को कहा जाता है. बारबार जांच की जाती है ताकि आप की और आप के बच्चे के स्वास्थ्य की हर खबर रखी जा सके.

इस के अलावा इस में व्यवहार में बदलाव, थकान, नींद आना, सिरदर्द, पेट के निचले हिस्से में दर्द, चक्कर आना आदि समस्याएं भी शामिल हैं. यदि आप को इन में से कोई भी समस्या हो तो तुरंत डाक्टर से परामर्श लें. खुद का खास खयाल रखने से आप इन समस्याओं से बच सकती हैं.

-डा. सागरिका अग्रवाल

स्त्रीरोग विशेषज्ञा, इंदिरा आईवीएफ हौस्पिटल, नई दिल्ली 

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अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे… 

गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

टुकड़ों में नींद लेना पड़ सकता है भारी

खूब थके हों और झपकी आ जाए तो आप तरोताजा हो जाते हैं. लेकिन ऐसी दशा में पूरी नींद न लेना या लगातार टुकड़ों में सोना सेहत लिए अच्छा नहीं है. एक स्टडी की मानें तो बार-बार नींद टूटने से शरीर पर बुरा असर पड़ता है

वैसे लंबी और चैन की नींद सौभाग्यशाली लोगों को ही मिलती है, सभी के लिए एक बार में 7-9 घंटे सोना संभव नहीं है. नींद की कमी से कई सारी बीमारियां भी होने लगती हैं. जो लोग एक बार में भरपूर नींद नहीं ले पाते हैं या फिर देर रात तक जगने के बाद सोते हैं उनके मन में अक्सर ख्याल आता है कि क्यों न टुकड़ों में नींद पूरी की जाए.

ऐसे में अमेरिका की जॉन हॉपकिंस यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने अपनी स्टडी में दो तरह की नींद का अध्ययन किया. बिना व्यवधान की लंबी नींद और दूसरी कम समय के लिए टुकड़ों में ली जाने वाली नींद. इस स्टडी में 62 सेहतमंद पुरुषों को शामिल किया गया और एक लैबरेटरी में रखा गया. इनमें कुछ लोगों को बार-बार जगाया गया.

वैज्ञानिकों ने इस शोध में पाया कि पहली रात के बाद दोनों ही समूह के प्रतिभागियों को थकान थी. बाद की रातों में टुकड़ों में सोने वाले समूह की अपेक्षा देर रात के बाद शांति से सोने वाले समूह के लोगों का मूड 30 प्रतिशत बेहतर था. यह भी पता चला कि टुकड़ों में सोने वाले लोग अगले दिन ज्यादा थके और सुस्त नजर आए

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दिन में सोना खतरनाक

स्लीप जर्नल में पब्लिश हुए एक दूसरे शोध की मानें तो जो लोग दिन में 6 घंटे की नींद लेते हैं, उन्हें रात में सात घंटे रोज नींद लेने वालों की अपेक्षा बीमारी का खतरा चार गुना ज्यादा रहता है.

याद्दाश्त कमजोर होना

कम नींद लेने का प्रभाव दिमाग पर पड़ता है और दिमाग सही तरीके से काम नहीं करता. इसकी वजह से पढ़ने, सीखने व निर्णय लेने की क्षमता कमजोर हो जाती है.

भूख ज्यादा लगना

टुकड़ों में नींद लेने से मेटाबॉलिज्म कमजोर हो जाता है. कम नींद लेने के कारण हॉर्मोन में असंतुलन भी होता है जिससे कारण ज्यादा भूख लगती है. इसके कारण ही अच्छी नींद न लेने वाले लोगों को पेट भरने का आभास देर से होता है. इसलिए टुकड़ों में नींद लेने के बजाय एक साथ लंबी नींद लीजिए.

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