इन महिलाओं को होती है डाइबिटीज की परेशानी

पुरुष हो या महिलाएं सबके लिए डाइबिटीज किसी चुनौती से कम नहीं है. इस परेशानी से बचने के लिए जरूरी है कि आप शांत रहें, कूल रहें किसी भी तरह की परेशानी में अपना पौजिटिव अप्रोच रखें. आपके स्वभाव में कई तरह की गंभीर बीमारियों का राज झुपा है.

हाल ही में हुई एक स्टडी में ये बात सामने आई है कि जो महिलाएं पौजिटिव अप्रोच के साथ अपना जीवन गुजारती हैं, उनमें टाइप-2 डायबिटीज होने का खतरा बहुत कम होता है. यह दावा मेनोपौज के बाद महिलाओं पर की गई स्टडी में किया गया है.

इस स्टडी में वूमेन हेल्थ इनिशिएटिव के आंकड़ो का इस्तेमाल भी किया गया है. इस शोध में करीब एक लाख तीस हजार महिलाओं को शामिल किया गया था. इन महिलाओं को शुरू में डाइबिटीज की परेशानी नहीं थी. लेकिन बाद में इनमें से कइयों को डाइबिटीज की परेशानी हुई.

स्टडी में सकारात्मक और नकारात्मक स्वभाव की महिलाओं की तुलना की गई. शोध में शामिल एक एक्सपर्ट की माने तो किसी भी व्यक्ति का व्यक्तित्व जीवनभर एक समान ही रहता है. यही कारण है कि नेगेटिव स्वभाव वाली महिलाओं को पॉजिटिव स्वभाओं वाली माहिलाओं के मुकाबले डायबिटीज का खतरा अधिक होता है.

उन्होंने आगे बताया कि महिलाओं के व्यक्तित्व से हमें ये जानने में मदद मिलेगी कि उन्होंने डायबिटीज होने की कितनी संभावना है. स्टडी के नतीजों में यह भी सामने आया कि मेनोपौज के बाद नेगेटिव स्वाभाव और डायबिटीज होने का गहरा संबंध है.

Festival Special: कब्ज सताए तो हैं न उपाय

आज के वैज्ञानिक युग में जहां साधन बढ़े हैं, जिंदगी सुखसुविधाओं से लैस हो गई है, वहीं कुछ लाइफस्टाइल सिंड्रोम भी जन्मे हैं. किसी को कामकाज की व्यस्तता के कारण स्लीप सिंड्रोम यानी नींद न आने की समस्या है, तो किसी को खानपान की वजह से बावैल सिंड्रोम यानी कब्ज की.

एक दिन मैं ने देखा कि मेरे साथ रोज सुबह सैर करने वाली मिसेज वडैच ने सैर के बाद घर लौटते ही 3-4 गिलास कुनकुना पानी पिया और 1 गिलास मुझे भी दिया. फिर मेरे साथ बिना दूध की ग्रीन पत्ती वाली चाय ली. मैं उठने लगी तो वे बोलीं कि नहींनहीं नाश्ता कर के जाना. मैं ने मना किया लेकिन उन के साथ बैठ गई. उन्होंने रात की चोकर वाली बासी रोटी मंगवाई, उस पर घर का बना सफेद मक्खन लगाया, कालीमिर्च, कालानमक और भुना हुआ जीरा डाला और चबाचबा कर खाने लगीं.

मेरे मन में सवाल उठा कि ये इतनी अमीर औरत, बहुत बड़ी जमीन की मालकिन, गेहूं के खेत हैं इन के और नाश्ते में रात की बासी रोटी खा रही हैं? चेहरा दमक रहा है, शरीर गठा हुआ है. 60 से ऊपर हैं पर उम्र का असर कहीं दिखता ही नहीं.

वे मेरी ओर देखते हुए कहने लगीं कि खाओ न. देखो, पानी जीरो कैलोरी ड्रिंक है, इसलिए मेरा शरीर कहीं से फूला नहीं है. हमारे गुरदे पानी को फ्लश इन/फ्लश आउट का काम नियमित रूप से करते रहते हैं. इस से टौक्सिंस निकल जाते हैं, जिस से कब्ज नहीं रहता. पेट साफ हो जाता है. यह व्हीट ब्रान की बासी रोटी जिसे तुम घूर रही थीं, इसे न्यूट्रिशनल पावर हाउस यानी पौष्टिकता का पावर हाउस कहते हैं. आजकल जहां देखो व्हीट ब्रान का चलन है. ऐसा इस में होने वाले स्टार्च, प्रोटीन, विटामिन, खनिज, फौलिक ऐसिड और फाइबर की गुणवत्ता के कारण हुआ है. चोकर की ब्रैड, चोकर के बिस्कुट और न जाने क्याक्या बाजार में पेट साफ रखने के लिए मिलते हैं.

वडैच कहने लगीं कि जानती हो, ये जो आजकल लाइफस्टाइल डिजीज, बावैल सिंड्रोम पैदा हो गई है, उस का निदान इस व्हीट ब्रान की रोटी यानी चोकर वाली रोटी के पास है. दरअसल, यह ब्रान/चोकर की रोटी पेट की अंतडि़यों में ल्यूब्रीकैंट का कार्य करते हुए कब्ज को दूर करती है. यह फाइबरयुक्त है इसलिए पेट साफ रहता है.

आज के दौर में व्हीट ब्रान का प्रयोग बहुत जरूरी है, क्योंकि दादीनानी के नुसखे तो यह कहते ही हैं. आज की आधुनिक चिकित्सा पद्धति के डाक्टरों का भी यही मानना है कि कब्ज आधी बीमारियों की जनक है. इस में मौजूद ग्लूटेन पेट में अफारा, गैस व अपच जैसे रोगों को भी बायबाय कहता है.

चोकरयुक्त आटे के फायदे

चंडीगढ़ की डायबिटिक डाइटीशियन ऐंड न्यूट्रिशियनिस्ट डा. हरलीन बख्शी कहती हैं कि यदि 3 मुट्ठी आटे में एक मुट्ठी चोकर डाल कर गूंधा जाए तो इस आटे से बनी चपाती अधिक संतुष्टि देती है. चोकरयुक्त आटे का इस्तेमाल किया जाए, तो यकीनन रोटियां पौष्टिकता देने के साथसाथ वजन भी कम करेंगी और पेट भी साफ रहेगा.

डा. बख्शी आगे कहती हैं कि आजकल बाजार में विज्ञापनों ने भ्रांतियां फैला रखी हैं. यह कोलैस्ट्रौलफ्री फूड है, यह शुगरफ्री चावल है, जैसी बातों से प्रभावित हो कर हम ऐसे फूड को कोलैस्ट्रौलफ्री फूड समझ कर शान से खाते और खिलाते हैं. पर क्या आप ने कभी सोचा है कि हो सकता है कि अमुक फूड कोलैस्ट्रौलफ्री फूड हो, परंतु उस में अन्य सैचुरेटेड फैट हों, जो ब्लड कोलैस्ट्रौल को बढ़ाते हैं. कई बार सैचुरेटेड फैट नहीं होता, परंतु उस में अनसैचुरेटेड औयल्स, फैट्स और शुगर होने के कारण वजन भी बढ़ने लगता है, साथ ही पेट साफ न रहने के लक्षण भी?

जरूरत है तो यह जानने कि कब खाएं, कितना खाएं? यदि डाइबिटिक पेशैंट हैं तो थोड़ेथोड़े अंतराल पर जरूर कुछ खाएं. ऐसा कर के बिना किसी डाइटीशियन की सलाह के भी खुद को फिट रखा जा सकता है. किसी भी चीज की अति हो जाने पर शरीर को नुकसान पहुंचता है. शुरुआत पेट से होती है.

ओट्स से लाभ

डाइटीशियन डा. नीती मुंजाल कहती हैं कि केवल डाइटीशियन ही खानपान की आदतों में सुधार व नियंत्रित जीवनशैली के लिए सलाह नहीं देते आए हैं, कई फूड कंपनियां भी इसी बात को अपने तरीके से कहती आ रही हैं. नतीजा, कई बार तो ग्राहकों के मन में खाद्यपदार्थों के बारे में मिथक पैदा हो जाते हैं. ऐसा ही कुछ ओट्स के बारे में है.

ओट्स गेहूं की ही एक किस्म है, वैज्ञानिक तथ्य इस बात की पुष्टि करते हैं. ओट्स के सेवन से एलडीएल (खराब) कोलैस्ट्रौल को कम करने में मदद मिलती है, जिस से हृदयरोग की आशंका कम हो जाती है परंतु यह इस बात पर निर्भर करता है कि हम ओट्स किस रूप में खाते हैं. ओट्स में मौजूद घुलनशील डाइटरी फाइबर पाचनक्रिया को सुचारु रखता है, जिस से भोजन आसानी से पच जाता है. इस से कब्ज की शिकायत नहीं रहती. लेकिन कई लोग केवल यह सोच कर ही ओट्स खाते हैं कि यह संपूर्ण आहार है, जबकि ऐसा नहीं है.

ओट्स में अन्य कोई भी पौष्टिक तत्त्व और खनिजलवण नहीं होता, जो इसे संपूर्ण आहार बना सके. इसलिए यदि नाश्ते में सुबह केवल ओट्स लेती हैं, तो साथ में सूखे फल और ताजा मौसमी फल जैसे, सेब, नाशपाती, आम, स्ट्राबैरी, केला, ब्ल्यूबैरी

इत्यादि अवश्य लें. ऐसा करना पौष्टिकता देने के साथ पेट भी साफ रखेगा.

बावैल मूवमैंट हर व्यक्ति में अलग रहता है. किसी के दिन में 1 बार तो किसी के 2 बार टौयलेट जाने से पेट साफ रहता है. कई बार अधिक तनाव, अनिद्रा, कसरत न करने, दवाओं के सेवन, आर्टिफिशल स्वीटनर के सेवन और फाइबरयुक्त भोजन न खाने से मधुमेह या फिर बढ़ती उम्र के कारण बावैल सिंड्रोम हो सकता है.

अन्य उपाय

किसी भी दवा का सेवन शुरू करने से पहले यदि आप चाहें तो प्रतिदिन सुबह 1 गिलास गरम पानी सेंधा नमक या साधारण नमक डाल कर पिएं. पेट साफ होगा. ऐसा करने से हो सकता है कि कब्ज तो दूर होगी ही, कुछ हैल्पफुल बैक्टीरिया भी बाहर निकल जाएं. इस की पूर्ति के लिए थोड़ी देर बाद 1 कटोरी सादा दही का सेवन अवश्य कर लें.

पानी की कमी के कारण भी कई बार ऐसा होता है. इसलिए यदि अच्छा गरम वैज सूप पिया जाए तो बावैल सिंड्रोम में काफी राहत मिलती है. किसी ऐक्युपै्रशर स्पैशलिस्ट से भी संपर्क किया जा सकता है, जो सही प्रैशर पौइंट्स पर आप को प्रैशर डालने की तकनीक सिखा सकता है.

‘‘यदि आप के पास समय हो तो सुबह उठते ही सीधी लेट जाएं. फिर एक तौलिया ठंडे पानी में भिगो कर पेट पर रखें. उस के ऊपर गरम शौल लपेट लें. 10 मिनट के बाद ठंडा तौलिया हटा कर उस के स्थान पर गरम पानी में भीगा निचोड़ा तौलिया पेट पर रख कर उस के ऊपर शौल लपेट कर 10-15 मिनट लेटें. यह प्रक्रिया हो सके तो 2-3 बार शुरूशुरू में करें. आप देखेंगे बहुत जल्द ही आप के बावैल सिंड्रोम व बावैल मूवमैंट में फर्क पड़ेगा,’’ कहती हैं डा. आशा महेश्वरी. उन के अनुसार सर्दगरम पेट की पट्टी, हलकीफुलकी कसरत और धनियापुदीना चटनी के सेवन से भी इस समस्या से छुटकारा पाया जा सकता है.

डा. आशा महेश्वरी कहती हैं कि सुनीसुनाई बातों पर न जा कर तथ्यों को जानें. सब से अहम बात है अपनेआप को, अपनी शारीरिक जरूरतों को पहचानें. आप को इस बात का ज्ञान होना चाहिए कि जिस प्राकृतिक रूप से तैयार अनाज व सब्जी को आप अपने भोजन में शामिल करने वाली हैं क्या उस में जिंक, आयरन, मैग्नीशियम, थियामाइन, राइबोफ्लेविन फोलेट, प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट और फाइबर मौजूद है? आप स्वस्थ व प्रसन्न रह सकें, इस के लिए यह जानना बेहद जरूरी है.

भूख न लगने और थकान होने का कारण और इलाज बताएं?

सवाल-

मेरी उम्र 47 वर्ष है. मेरी समस्या यह है कि मुझे बिलकुल भूख नहीं लगती. थकान बहुत होती है. कुछ भी करने की इच्छा नहीं होती है. बताएं मैं क्या करूं?

जवाब-

आप रोजाना आधे से 1 घंटा व्यायाम करें, अपनी मांसपेशियों पर काम करें और हो सके तो इस के लिए किसी जिम का सहारा लें. शरीर की सुबहशाम स्ट्रैचिंग करें. रोज 2 घंटे टहलें. धूप का सेवन करें, मल्टी विटामिन और प्रोटीन का सेवन करें, पानी या जूस अर्थात तरल पदार्थों का सेवन ज्यादा करें, कैफीन, शराब और तंबाकू का कम सेवन करें तथा पौष्टिक भोजन लें.

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क्या आपको भी भूख नहीं लगती, अगर हां तो आप कुछ कुदरती नुस्खें अपनाकर अपनी भूख बढ़ा सकती हैं. मुनक्का के सेवन से आप अपनी भूख बढ़ा सकती हैं.

जानिए मुनक्का के सेवन के फायदे…

1. अगर आपको भूख कम लगती है तो रात को दूध में 30-40 मुनक्‍का को उबालकर नियमित रूप से पीएं भूख बढ़ जाएगी. इससे शरीर की कमजोरी भी दूर होगी.

2. कई बार कब्ज की वजह से भी भूख नहीं लगती है. कब्ज बहुत ज्यादा है तो मुनक्का के दूध के साथ ईसबघोल भी मिला लें. इससे कब्ज भी दूर होगी और पेट भी साफ रहेगा.

3. जिन लोगों को बार-बार घबराहट होती है और हृदय में दर्द होता है तो उनके लिए भी रामबाण है मुनक्का.

4. 8 से 10 मुनक्का को 2 लौंग के साथ पानी में उबालें. बाद में मुनक्का को पीसकर छानकर चाय की तरह पीएं. ये नुस्खा डायबिटीज के मरीजों के लिए भी अच्छा है.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

मेरी सास के घुटने में बहुत दर्द रहता है,कब सर्जरी कराना जरूरी है?

सवाल

मेरी सास की उम्र 58 साल है. पिछले 2 वर्षों से उन के घुटनों में बहुत दर्द रहता है. मैं जानना चाहता हूं कि कब घुटनों की सर्जरी कराना जरूरी हो जाता है? रोबोटिक नी रिप्लेसमैंट सर्जरी क्या है?

जवाब

कोई भी और्थोपैडिक सर्जन डायग्नोसिस के बाद ही बता पाएगा कि मरीज के घुटनों के जोड़ कितने क्षतिग्रस्त हो चुके हैं और क्या घुटना प्रत्यारोपण उपचार का अंतिम विकल्प है. घुटनों का एक्स रे, सीटी स्कैन और एमआरआई कराने के बाद ही स्थिति स्पष्ट हो पाती है. अगर समस्या गंभीर नहीं है तो नौनसर्जिकल उपचारों से आराम मिल सकता है. लेकिन समस्या गंभीर होने पर घुटना प्रत्यारोपण कराना जरूरी हो जाता है. रोबोटिक नी रिप्लेसमैंट सर्जरी सर्जरी की एक प्रक्रिया है जिस में रोबोट की सहायता से सर्जरी की जाती है. यह सर्जरी की एक अत्याधुनिक तकनीक है. इस के द्वारा जो कृत्रिम इंप्लांट लगाए जाते हैं, उन का जोड़ों में बेहतर तरीके से प्लेसमैंट होता है.

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मेरी माताजी की उम्र 61 साल है. उन के दोनों घुटने खराब हो गए हैं. डाक्टर ने दोनों घुटनों के लिए घुटना प्रत्यारोपण सर्जरी कराने की सलाह दी है. लेकिन हमें इस सर्जरी की सफलता को ले कर संदेह है?

जवाब

जिन लोगों के घुटने पूरी तरह खराब हो जाते हैं और दूसरे उपचारों से उन्हें आराम नहीं मिलता है तो घुटना प्रत्यारोपण उन के लिए अंतिम विकल्प बचता है. यह आज के दौर की सब से सफल सर्जरी मानी जाती है क्योंकि अच्छे इंप्लांट्स और बेहतर तकनीकों की उपलब्धता के कारण इस की सफलता दर 100 % है.

-डा. ईश्वर बोहरा

जौइंट रिप्लेसमैंट सर्जन, बीएलके सुपर स्पैश्यलिटी हौस्पिटल, नई दिल्ली. 

पाठक अपनी समस्याएं इस पते पर भेजें : गृहशोभा, ई-8, रानी झांसी मार्ग, नई दिल्ली-110055.

संपर्क सूत्र, व्हाट्सऐप मैसेज या व्हाट्सऐप औडियो से अपनी समस्या 9650966493 पर भेजें.

Festival Special: Acidity दूर भगाने के 10 हर्बल उपचार

लाजबाव, स्‍वादिष्‍ट भोजन करने के बाद अक्‍सर आपको गैस और एसिडिटी की समस्‍या हो जाती है. पेट में गुड़गुड़ होती रहती है, हल्‍का सा दर्द होता है और गैस बनती है जिसकी वजह से किसी भी काम को करने में मन नहीं लगता है.

दुनिया भर के लोगों को इस समस्‍या से कभी न कभी दो चार होना पड़ता है. अगर आपका भी चटपटे और तला भोजन को खाने के बाद यही हाल होता है तो यहां हम आपको कुछेक आयुर्वेदिक टिप्‍स बता रहे हैं जो पेट की जलन को शांत करके, एसिडिटी को भी दूर भगा देते हैं.

1. आजवाइन: दो चम्‍मच आजवाइन लें और उसे एक कप पानी में उबाल लें. इस पानी को आधा होने तक उबालें और बाद में छानकर पी जाएं. पेट में होने वाली गड़बड़ सही हो जाएगी.

2. आंवला: सूखा हुआ आंवला, यूं ही चबा लें. इससे पेट दर्द में आराम मिलता है. सूखा हुआ आवंला, बाजार में उपलब्‍ध होता है. आप चाहें तो इसे आंवलें के सीज़न में घर पर भी उबालकर धूप में सुखाकर इस्‍तेमाल कर सकती है.

3. लौंग: लौंग से पाचनक्रिया दुरूस्‍त बनी रहती है. लौंग का सेवन करके पानी पी लें. इससे राहत मिलेगी.

4. काली मिर्च: काली मिर्च, पेट में होने वाली ऐंठन व गैस की समस्‍या को दूर कर देती है. छाछ के साथ काली मिर्च का सेवन करने पर फायदा होता है. काली मिर्च के पाउडर को छाछ में डालकर पी जाएं.

5. अदरक: अदरक में पाचन क्रिया दुरूस्‍त करने के गुण होते हैं. अदरक को कच्‍चा खाने या चाय में डालकर पीने से पेट की जलन में आराम मिलती है. आप चाहें तो अदरक की जगह सोंठ का भी इस्‍तेमाल कर सकते हैं.

6. तुलसी: तुलसी में बहुत सारे हर्बल गुण होते हैं. इसकी चार पत्तियां खाने से पेट में एसिडिटी की समस्‍या नहीं रहती है.

7. जीरा: जीरा, पेट दर्द और गैस का तुंरत उपचार करने के लिए सबसे अच्‍छा माना जाता है. काले नमक के साथ इसका सेवन लाभकारी होता है.

8. आर्टिचोक का पत्‍ता: आर्टिचोक के पत्‍ते को कच्‍चा ही चबा जाने से पेट में एसिडिटी की समस्‍या दूर हो जाती है. साथ ही कब्‍ज भी नहीं होता है.

9. कैमोमाइल: कैमोमाइल टी, पाचन क्रिया के लिए अच्‍छी मानी जाती है. इसे बनाकर पीने से जलन, पेट दर्द और एसिडिटी की समस्‍या दूर हो जाती है.

10. हल्‍दी: हल्‍दी को दही में मिलाकर सेवन करें, इससे पेट दर्द और ऐंठन व एसिडिटी में राहत मिलती है.

मेरे टखनों की मांसपेशियों में दर्द है मुझे कोई उपाय बताएं

सवाल

मुझे खुद को फिट रखनेके लिए दौड़ना पसंद है. लेकिन पिछले कुछ दिनों से मेरे टखनों की मांसपेशियों में दर्द, खिंचावऔर कड़ापन महसूस हो रहा है.मैं क्या करूं?

जवाब

ऐसा लगता है कि ऊंचीनीची सतह पर दौड़ने या किसी और कारण से आप के टखने चोटिल हो गए हैं. यह समस्या टखनों की हड्डियों के फ्रैक्चर होने या मांसपेशियों, लिगामैंट्स और टैंडन के क्षतिग्रस्त होने से होती है. टखनों में होने वाली समस्याओं को स्पोर्ट्स इंजरी कहा जाता है क्योंकि इस के अधिकतर मामले खिलाडि़यों में ही देखे जाते हैं. अगर समस्या लगातार बनी हुई है तो किसी और्थोपैडिक सर्जन को दिखाएं. पहले नौनसर्जिकल उपायों से उपचार किया जाता है. जब इन से मरीज को आराम नहीं मिलता तो एंकल ऐंथ्रोस्कोपी प्रक्रिया द्वारा टखने की सर्जरी की जाती है. यह एक मिनिमली इनवेसिव सर्जरी है जो काफी आसान और दर्दरहित होती है.

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मैं 55 वर्षीय बैंककर्मी हूं. मु   झे औस्टियोपोरोसिस है. अपनी हड्डियों की मजबूती के लिए मैं क्या उपाय कर सकती हूं?

जवाब

हड्डियों को मजबूत बनाने के लिए आप संतुलित और पोषक भोजन का सेवन करें जिस में सब्जियां, फल, दूध व दुग्ध उत्पाद, सूखे मेवे, अंडे, साबूत अनाज और दालें शामिल हों. नियमित रूप से ऐक्सरसाइज और वाक करें. इस से बोन डैंसिटी बढ़ती है. रोज कम से कम 20-30 मिनट सुबह की कुनकुनी धूप लें. इस से आप को पर्याप्त मात्रा में विटामिन डी मिल जाएगा जो आप की हड्डियों की मजबूती के लिए जरूरी है. अगर आप धूम्रपान या शराब का सेवन करती हैं तो बंद कर दें. नियमित अंतराल पर अपना बोन डैंसिटी टैस्ट कराती रहें.

सवाल

मैं 35 वर्षीय कामकाजी महिला हूं. मुझे नी आर्थ्राइटिस है. मैं जानना चाहती हूं कि क्या बिना सर्जरी के इस समस्या से छुटकारा पाया जा सकता है?

नी आर्थ्राइटिस यानी घुटनों का आर्थ्राइटिस एक लगातार गंभीर होती समस्या है क्योंकि समय के साथ घुटनों के जोड़ों की खराबी बढ़ती जाती है. कई कारण हैं जो घुटनों के आर्थ्राइटिस का कारण बन सकते हैं जैसे घुटनों में लगी कोई चोट, गठिया, औटो इम्यून डिजीजेज आदि. अगर आप की समस्या ज्यादा गंभीर नहीं है तो आप अपने संपूर्ण स्वास्थ्य को बेहतर बनाएं. जीवनशैली में सकारात्मक बदलाव लाएं, मोटापे को नियंत्रण में रखें. नियमित रूप से ऐक्सरसाइज करें. डायग्नोसिस के बाद उचित उपचार करने में देरी न करें तो बीमारी को गंभीर होने से रोका जा सकता है और किसी हद तक घुटना प्रत्यारोपण से बचा जा सकता है.

-डा. ईश्वर बोहराजौइंट रिप्लेसमैंट सर्जन,

बीएलके सुपर स्पैश्यलिटी हौस्पिटल, नई दिल्ली.

पाठक अपनी समस्याएं इस पते पर भेजें : गृहशोभा, ई-8, रानी झांसी मार्ग, नई दिल्ली-110055.

स्रूस्, व्हाट्सऐप मैसेज या व्हाट्सऐप औडियो से अपनी समस्या 9650966493 पर भेजें.

Festive Season में खानपान ऐसे रखें Health का ध्यान

भारत अपनी विविधता और पूरे सालभर अलगअलग आस्थाओं तथा जातियोंधर्मों के लोगों द्वारा मनाए जाने वाले विभिन्न त्योहारों की वजह से जाना जाता है. साल में अपने त्योहारों को मनाने के लिए परिवार और दोस्त अकसर भोजन के इर्दगिर्द जमा होते हैं और साथ मिल कर खातेपीते, मौज करते हैं. ऐसा घर पर, रैस्टोरैंट में या बारबेक्यू में हो सकता है. साथ मिलजुल कर खानेपीने के बहुत फायदे हैं. सब से बड़ा फायदा तो सामाजिक मेलमिलाप है जोकि मानसिक स्वास्थ्य तथा खुशहाली के लिए बेहद महत्त्वपूर्ण है.

त्योहारों के अवसर पर हम सिर्फ अच्छे और खास व्यंजनों के बारे में सोचते हैं. लेकिन त्योहार और छुट्टियों के मौसम में ही हम सभी से कई बार चूक भी हो जाती है. हम सेहतमंद खानपान के बजाय ज्यादा मात्रा में भोजन, मिठाई, प्रोसैस्ड फूड वगैरह का सेवन करते हैं यानी हमारे शरीर में कैलोरी की अधिक मात्रा पहुंचती है.

अधिक कैलोरीयुक्त भोजन का मतलब है अधिक मात्रा में फैट, शुगर, अत्यधिक कंसंट्रेटेड ड्रिंक्सतथा अधिक नमकयुक्त यानी सोडियम से भरपूर भोजन का सेवन. ऐसे में जो आम

समस्याएं सामने आती हैं, उन में प्रमुख हैं: वजन बढ़ना या पाचन संबंधी समस्याएं जैसेकि ऐसिडिटी, गैस्ट्राइटिस, कब्ज, शरीर में पानी की कमी होना आदि.

त्योहारों के बीतने के बाद वजन कम करने को ले कर बढ़ता तनाव वास्तव में ज्यादा वजन बढ़ाता है क्योंकि तनाव की वजह से भूख का एहसास बढ़ाने वाले हारमोन ज्यादा बनते हैं. इसलिए त्योहारी सीजन में कुछ सावधानियों के साथ उन खास पलों का आनंद उठाएं, आगामी त्योहारों के मद्देनजर आप के लिए कुछ आसान उपायों की जानकारी दी जा रही है.

खाली पेट रहने से बचे

दिन की सेहतमंद और संतुलित शुरुआत के लिए ब्रेकफास्ट में साबूत अनाज, लो फैट प्रोटीन तथा फलों का सेवन करें. कहीं किसी से मिलनेजुलने के लिए खाली पेट न जा कर भरे पेट जाएंगे तो फैस्टिव ट्रीट्स के नाम पर अनापशनाप खाने से बचेंगे.

अकसर होता यह है कि व्यंजनों का लुत्फ उठाने के लिए हम मील्स स्किप करते हैं और इस के चलते ओवरईटिंग हो जाती है. खाली पेट होने पर सैरोटानिन लैवल गिरता है. इसलिए जब भी हम बिना कुछ खाएपीए हुए लंबे समय तक रहते हैं तो स्ट्रैस बढ़ने लगता है और यही से बिना सोचेसमझे हुए लगातार कुछ न कुछ खाते रहने की शुरुआत होती है और हम जरूरत से ज्यादा भोजन पेट में ठूंस लेते हैं.

इसलिए ओवरईटिंग से बचने और वजन को नियंत्रण में रखने के लिए नियमित रूप से (1 बड़ा मील+2 स्नैक मील्स) खाना खाएं.

मात्रा नियंत्रित करें

जो भी खाएं उस की मात्रा का भरपूर ध्यान रखें यानी ‘पोर्शन कंट्रोल’ करें क्योंकि आप का पेट भर चुका है यह एहसास शरीर को कुछ देर से होता है. इसलिए अगर आप तब तक खाते रहेंगे जब तक कि पेट भरने का एहसास न हो जाए तो आप ओवरईटिंग करेंगे.

इसलिए जरूरी है कि एक बार में कम मात्रा में ही खाएं. धीरेधीरे खाने से आप के शरीर को यह पता चलता रहता है कि आप ने पर्याप्त मात्रा में खा लिया और आप ओवरईट नहीं करते.

सही भोजन करें

यह सब से महत्त्वपूर्ण है. सही चयन/विकल्प का चुनाव करने से आप त्योहारों की मस्ती और मजे को दोगुना कर सकते हैं क्योंकि आप अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखते हैं और जोखिम वाले कारकों से दूर रहते हैं.

अधिक फाइबरयुक्त भोजन: ऐसा भोजन चुनें जो फाइबरयुक्त हो क्योंकि फाइबरयुक्त भोजन आप को तृप्ति का एहसास दिलाता है, आप देर तक पेट भरा हुआ महसूस करते हैं और इस तरह ओवरईटिंग से बचते हैं तथा अपने भोजन की मात्रा को भी नियंत्रित रखते हैं.

साबूत अनाज पोषण से भरपूर होता है, उस में कैलोरी की मात्रा कम होती है और पैकेज्ड एवं प्रोसैस्ड फूड्स की तुलना में इस के सेवन से पेट अधिक भरा हुआ महसूस होता है. साथ ही कैलोरीयुक्त मेन कोर्स मील शुरू करने से पहले किसी हैल्दी डिश का सेवन करें और कम ऐनर्जी वाले खाद्यपदार्थों जैसेकि सलाद या वैजिटेबल सूप आदि लें.

सब्जियों में विटामिन, मिनरल्स, फाइबर और पानी की मात्रा अधिक होती है यानी इन के सेवन से आप अपने पेट को भरा हुआ महसूस करते हैं और इस तरह खुद ही अपनी प्लेट में भोजन की मात्रा को नियंत्रित रखते हैं.

हर मील में प्रोटीन लें. प्रोटीन न सिर्फ शरीर के विभिन्न ऊतकों की बढ़त के लिए महत्त्वपूर्ण होते हैं, बल्कि लीन बौडी मास (एलबीएम) के लिए भी फायदेमंद होते हैं.

हाल के अध्ययनों से यह स्पष्ट हो गया है कि मील्स के बीच फिलर्स के तौर पर सही मात्रा में प्रोटीन के पर्याप्त सेवन से ब्लड शुगर लैवल में उतारचढ़ाव को नियंत्रित रखने में मदद मिलती है. इसलिए मेवे और बीजों का सेवन करने से खाने के बीच हैल्दी स्नैकिंग का विकल्प मिलता है.

फू्रटी डैजर्ट: खाने के बाद मीठा (डैजर्ट) खाने की तलब स्वाभाविक है और यह भोजन को पूरा करने खासतौर से त्योहारी सीजन में बेहतरीन तरीका भी है. लेकिन चीनी और मैदे से बने डैजर्ट स्वास्थ्य केलिए अच्छे नहीं होते. इसलिए साबूत अनाज के आटे जैसेकि गेहूं और गुड़ (सीमित मात्रा में) का प्रयोग सेहतमंद विकल्प है. इसी तरह फल आधारित डैजर्ट जैसेकि फ्रूट योगर्ट शरबत पेट के लिए हलके होते हैं और सच तो यह है कि चाशनी में डूबे रसगुल्लों और जलेबियों जैसे तले हुए डैजर्ट की तुलना में ये काफी सेहतमंद भी होते हैं.

चांदी का वर्क लगी मिठाई खाने से बचें क्योंकि इस में ऐल्युमीनियम की मिलावट होती है जोकि सेहत के लिए अच्छी नहीं है. इसी तरह कृत्रिम रंगों के इस्तेमाल से बनी मिठाई खाने से भी बचना चाहिए. इन की जगह विभिन्न फू्रट आइटम्स के प्राकृतिक और स्वस्थ  रंगों के इस्तेमाल से बनी मिठाई का प्रयोग करें.

ऐसी गलती न करें: हम सभी एक बड़ी गलती यह करते हैं कि तलने के बाद बच गए तेल को दोबारा इस्तेमाल करते हैं. इस प्रकार तेल को दोबारा इस्तेमाल करने से फ्री रैडिकल्स बनते हैं जो शरीर की रक्तवाहिकाओं को अवरुद्ध करने के साथसाथ ऐसिडिटी का कारण भी बनते हैं. हो सके तो चीजों को तलने से बचना चाहिए और इन के बजाय स्नैक्स तथा मील्स के लिए स्टीमिंग, ग्रिलिंग, रोस्टिंग आदि को अपनाना सेहतमंद विकल्प है.

शरीर में पानी का पर्याप्त स्तर

कैलोरी को सीमित करने का एक आसान उपाय है- कैलोरी पीएं नहीं यानी सौफ्ट ड्रिंक्स पीने के बजाय पानी पीएं जिस से आप का पेट भर जाएगा और शरीर में फालतू कैलोरी भी नहीं जाएगी. इसलिए जूस की बोतल, सोडा/ऐरेटेड ड्रिंक्स या अलकोहलिक ड्रिंक लेने की बजाय पानी का सेवन करना अच्छा विकल्प है. ऐसा कर आप न सिर्फ कैलोरी की मात्रा नियंत्रित रखते हैं बल्कि अपने शरीर को प्राकृतिक रूप से हाइड्रेट भी रखते हैं. इस से भूख पर नियंत्रण आसान होता है.

खेलकूद या व्यायाम से शरीर को अधिक ऊर्जावान बनाया जा सकता है. गैस्ट्राइटिस से बचाव होता है, साथ ही कब्ज की शिकायत भी नहीं होती क्योंकि सभी प्रकार के ऐरेटेड ड्रिंक्स/ जूस ऐसिडिक होते हैं. इसी तरह नैचुरल ड्रिंक्स जैसेकि स्मूदी/ लस्सी/ मिल्कशेक (लो फैट, अतिरिक्त शुगर रहित), शिकंजी (चीनी रहित) आदि त्योहारों के मौसम में अच्छे विकल्प होते हैं.

शारीरिक गतिविधि

वजन को नियंत्रित करने के लिए डाइट कंट्रोल के साथसाथ शारीरिक व्यायाम करना महत्त्वपूर्ण होता है. इस से तनाव घटता है और उस का सीधा या परोक्ष असर आप की खानपान की आदतों पर पड़ता है. व्यायाम करने से ऐंडोमार्फिंस को बढ़ावा मिलता है जो आप को हर दिन सकारात्मक और ऊर्जावान बने रहने में मदद करते हैं.

साथ ही नियमित रूप से शारीरिक गतिविधियां आप के मसल एनाबौलिज्म के लिए भी महत्त्वपूर्ण हैं जिस से मसल लौस से बचाव होता है. अच्छी सेहत के लिए सप्ताह में 5-6 दिन 30-45 मिनट तक शारीरिक व्यायाम करने की सलाह दी जाती है.

हम सभी को त्योहारों के उल्लास का हिस्सा बनना और समाज में खुशहाली बढ़ाने का कारण बनना अच्छा लगता है. खानपान जीवन के उत्सव का अहम हिस्सा है.

अच्छा भोजन अच्छी सेहत को बढ़ावा देता है, इसलिए समझदारी से भोजन कर सेहतमंद रहें.

मैं अपने नाती के गुस्से और जिद से परेशान हूं, मैं क्या करुं?

सवाल-

मेरा नाती 11 साल का है. उस का दिमाग बहुत तेज है और वह अपनी क्लास में अव्वल आता है. लेकिन हम उस के गुस्से से बहुत परेशान हैं. अगर उसे कोई जरा सा भी टोक दे तो वह घंटों चिड़चिड़ाता रहता है. वह बहुत जिद्दी भी हो गया है. सिर्फ अपने पिता से डरता है. उस के खानेपीने की आदतें भी अजीबोगरीब हैं. कभी खूब खाता है और कभी लाख कहने पर भी खाना नहीं छूता. उचित सलाह दें?

जवाब-

कोई भी बच्चा जन्म से न तो जिद्दी होता है और न चिड़चिड़ा. उस का व्यक्तित्व किस रंग में रंगता है, यह उस की परवरिश और घर की स्थितियों पर निर्भर करता है. आजकल जब सभी परिवार छोटे हो गए हैं, घर में 1 या 2 बच्चे होते हैं. वे मातापिता, दादादादी, चाचाचाची, बूआमौसी, नानानानी के जरूरत से ज्यादा लाड़प्यार से जिद्दी और उद्दंड बन जाते हैं. उन की जिद अगर पूरी नहीं होती तो उन का अंतर्मन इस छोटी सी बात से ही आहत हो जाता है और उन के अंदर की परेशानी गुस्से का गुबार बन ज्वालामुखी सी फट उठती है. घर के सभी बड़ेबूढ़ों के लिए जरूरी है कि वे बच्चे के साथ सुलझा हुआ संतुलित व्यवहार करें. उस की कोई बात ठीक न लगे या उसे किसी चीज के लिए मना करना हो तो उसे प्यार से समझाएं कि क्यों उसे मना किया जा रहा है. वह तब भी न समझे तो उसे यह बात बारबार समझाएं, मगर अपने फैसले पर अडिग रहें. लाड़प्यार में उसूलों से समझौता न करें. इस से बच्चे का अपरिपक्व मन अच्छेबुरे और स्थितियों की सचाई को ठीकठीक समझ सकेगा. उसे यह बात भी साफ हो जाएगी कि जिद या गुस्से से कोई लाभ नहीं मिलने वाला.

जहां तक उस के कभी खूब खाने, कभी न खानेपीने की बात है, तो सच यह है कि हमारे मूड का हमारी भूखप्यास से बहुत गहरा नाता है. मन उदास हो तो भूखप्यास पर ताला लग जाना स्वाभाविक है. बच्चे का मूड उस के एपेटाइट पर सीधा असर डालता है. इस पर अधिक ध्यान न दें. बच्चा भूखा होगा तो वह अपने से भोजन कर लेगा. उस का भूखा रहना सिर्फ अटैंशन सीकिंग बिहेवियर का हिस्सा है, इस बात को जब तक आप तूल देते रहेंगे तब तक वह यह मैकेनिज्म अपनाता रहेगा.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

क्या है पोस्टपार्टम डिप्रैशन

विश्व में प्रसव के बाद लगभग 13% महिलाओं को मानसिक तनाव का सामना करना पड़ता है, जो उन्हें परेशान कर देता है. प्रसव के तुरंत बाद होने वाले डिप्रैशन को पोस्टपार्टम डिप्रैशन कहा जाता है. भारत और अन्य विकासशील देशों में यह संख्या 20% तक है.  2020 में सीडीसी द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार यह सामने आया है कि 8 में से 1 महिला पोस्टपार्टम डिप्रैशन की शिकार होती है. विशेष रूप से टियर 2 और टियर 3 शहरों में  पोस्टपार्टम डिप्रैशन होने के चांसेज ज्यादा होते है.

इस संबंध में बैंगलुरु के मणिपाल हौस्पिटल की कंसलटैंट, ओब्स्टेट्रिक्स व गायनेकोलौजिस्ट डाक्टर हेमनंदीनी जयरामन बताती हैं कि महिलाओं में मानसिक समस्याएं होने पर वे अंदर से टूट जाती हैं. इन्हें परिवार के लोग भी समझ नहीं पाते हैं, जिस से वे खुद को बहुत ही असहाय महसूस करती हैं.

पोस्टपार्टम का मतलब बच्चे के जन्म के तुरंत बाद का समय होता है. प्रसव के तुरंत बाद महिलाओं में शारीरिक, मानसिक व व्यवहार में जो बदलाव आते हैं, उन्हें पोस्टपार्टम कहा जाता है. पोस्टपार्टम की अवस्था में पहुंचने से पहले 3 चरण होते हैं जैसे इंट्रापार्टम यानी प्रसव से पहले का समय और एंट्रेपार्टम यानी प्रसव के दौरान का समय तथा पोस्टपार्टम बच्चे के जन्म के बाद का समय होता है.

भले ही बच्चे के जन्म के बाद एक अनोखी खुशी होती है, लेकिन इस सब के बावजूद कई महिलाओं को पोस्टपार्टम का सामना करना पड़ता है. इस समस्या का इससे कोई संबंध नहीं होता है कि प्रसव नौर्मल डिलिवरी से हुआ है या फिर औपरेशन से. पोस्टपार्टम की समस्या महिलाओं में प्रसव के दौरान शरीर में होने वाले सामाजिक, मानसिक व हारमोनल बदलावों की वजह से होती है.

डिप्रैशन की वजह

पोस्टपार्टम मां व बच्चे दोनों को भी हो सकता है. न्यू मौम्स में कई हारमोनल व शारीरिक बदलाव देखे जाते हैं, जिस के कई लक्षण हैं- बारबार रोने को दिल करना, ज्यादा सोने का मन करना, कम खाने की इच्छा होना, बच्चे के साथ ठीक से संबंध बनाने में खुद को असमर्थ महसूस करना इत्यादि. इस डिप्रैशन की वजह से कई बार मां खुद को व बच्चे को भी नुकसान पहुंचा देती है. ऐसी स्थिति में मरीज के मस्तिष्क में कई बदलाव होते हैं, जिस से एन्सिएंटी के दौरे भी पड़ने लगते हैं.

प्रसव के बाद महिलाओं को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है. इस के लिए जरूरी है कि उन्हें बच्चे के साथसाथ खुद की भी खास तौर पर केयर करने की जरूरत होती है क्योंकि इस दौरान शरीर के कमजोर होने के साथ शरीर पर स्ट्रैच मार्क्स दिखना, बढ़ते तनाव की वजह से पीठ में दर्द होना, लगातार बालों का झड़ना, स्तनों के आकार में बदलाव होना जैसे बदलावों से मां को गुजरना पड़ता है. इस के साथ ही अगर वह वर्किंग है, तो उसे अपने कैरियर को जारी रखने की भी चिंता सताती रहती है.

परिवार का सहयोग

ऐसे में न्यू मौम्स की लाइफ में एक ही व्यक्ति पौजिटिविटी ला सकता है और वह है बच्चे का पिता क्योंकि जब न्यू मौम का शरीर कमजोर होता है और वह अपने नए जीवन के साथ जूझ रही होती है, तब आप का हैल्पफुल पार्टनर आप को हर तरह से सपोर्ट देने का काम करता है. जैसे सब हो जाएगा, मैं और मेरा पूरा परिवार तुम्हारे साथ है. ऐसी स्थिति में पोस्टपार्टम से जूझ रही महिला पार्टनर की बातों से पौजिटिव होने लगती है और उसे लगने भी लगता है कि अब वह बच्चे का ठीक से खयाल भी रख पाएगी यानी पार्टनर व परिवार के सहयोग से वह इस प्रौब्लम से उभर जाती है.

ऐक्सपर्ट डाक्टर्स की टीम महिलाओं को इस स्थिति से पूरी समझदारी व परिपक्वता से निबटने की सलाह देते हैं. विशेष रूप से जिन महिलाओं को जुड़वां या फिर दिव्यांग बच्चे होते हैं उन पर ऐक्सपर्ट डाक्टर्स के साथसाथ परिवारजनों को भी विशेष रूप से ध्यान देने की जरूरत होती है ताकि उन्हें इस स्थिति से उबरने में आसानी हो.

कई महिलाओं को यह पता भी नहीं होता कि वे डिप्रैशन से गुजर रही हैं. ऐसे में हमें उन्हें इस स्थिति से अवगत करवाना पड़ता है. पोस्टपार्टम डिप्रैशन का समय पर उपचार करना जरूरी होता है क्योंकि अगर इस स्थिति का समय रहते उपचार न किया जाए तो इस से महिला खुद के साथसाथ बच्चे पर वह ध्यान केंद्रित नहीं कर पाती है. इस के अलावा वह बच्चे की जरूरतों को भी समझने में असमर्थ होती है, जबकि जन्म के बाद बच्चे को मां की ही सबसे ज्यादा जरूरत होती है. इसलिए समय पर ट्रीटमैंट जरूरी है.

घुटनों से जुड़ी बीमारी का इलाज बताएं?

सवाल

मैं 48 साल की गृहिणी और जोड़ों के दर्द से पीडि़त हूं. मेरे घुटनों में करीब 13 सालों से दर्द है. डाक्टरों के पास जाने पर पता चला कि मेरे घुटनों की हालत बहुत बिगड़ चुकी है और इन्हें बदलने की जरूरत है. औपरेशन से पहले मैं अपने घुटनों को आराम देने के लिए क्या कर सकती हूं?

जवाब-

घुटनों को बदलवाने की सर्जरी से पहले आप को अपने बढ़े वजन को कम करना चाहिए और घुटनों के इर्दगिर्द की उन मांसपेशियों को मजबूत करने के लिए व्यायाम करना चाहिए, जो चलनेफिरने में आप के घुटनों को मदद करती हैं. सर्जरी के बाद फिजियोथेरैपिस्ट की देखरेख में की जाने वाली फिजिकल थेरैपी दर्द को कम करने में काफी प्रभावशाली हो सकती है. फिजियोथेरैपी में मांसपेशियों को मजबूत करना, दोनों घुटनों की चलनेफिरने के बाद घर पर नियमित व्यायाम करना जरूरी है.

सवाल-

मेरे घुटनों में बहुत ज्यादा दर्द होता है. सर्दियों में यह और बढ़ जाता है. क्या सर्जरी ही दर्द से मुक्ति का एकमात्र इलाज है?

जवाब

सर्दियों में जोड़ों में दर्द होने की बहुत ज्यादा संभावना होती है. बैरोमीट्रिक दबाव में बदलाव से घुटनों में सूजन और बहुत तेज दर्द हो सकता है. चूंकि घुटने ही शरीर का पूरा भार वाहन करते हैं, इसलिए अपने वजन पर निगरानी रखनी बहुत जरूरी है. अगर आप में घुटनों के आर्थ्राइटिस की पहचान हुई है तो इस का मतलब यह नहीं है कि आप को अभी घुटने बदलवाने की आवश्यकता है.

अगर आप को बारबार घुटनों में दर्द होता है तो डाक्टर से सलाह लेनी चाहिए. आप की स्थिति की गंभीरता के आधार पर डाक्टर आप के इलाज के तरीके पर फैसला कर सकता है. आमतौर पर शुरुआत में मरीज को अपने लाइफस्टाइल में बदलाव लाने, उचित आहार लेने, वजन कम करने और नियमित व्यायाम की सलाह दी जाती है. सर्जरी की सलाह मरीज को तभी दी जाती है, जब दर्द कम करने की किसी भी तकनीक से मरीज को कोई आराम न मिले.

सवाल

जब से मेरा वजन बढ़ा है तब से घुटनों में दर्द बहुत बढ़ गया है. क्या वजन बढ़ने के कारण घुटनों में शरीर का वजन सहन करने की क्षमता प्रभावित होती है?

जवाब

शरीर का वजन बढ़ना ही जोड़ों, खासकर घुटनों पर पड़ने वाले अतिरिक्त दबाव को बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है. शरीर का बढ़ा 1 किलोग्राम वजन भी घुटनों पर 4 गुना ज्यादा दबाव डाल सकता है. इसलिए वजन को नियंत्रित करना बेहद जरूरी है, क्योंकि इस से आप के घुटनों पर पड़ने वाला ज्यादा दबाव कम हो सकता है. शरीर का वजन कम रखने से आर्थ्राइटिस से जुड़ा दर्द कम हो सकता है और यह शुरुआती चरण से बाद की स्टेज में जाने से रुक सकता है.

सवाल-

मैं 21 साल का बैडमिंटन खिलाड़ी हूं. पिछले साल मुझे बैडमिंटन कोर्ट में चोट लग गई थी. उसी के बाद से मेरे बाएं घुटने में पहले जैसी ताकत नहीं रह गई है. सर्दियों में यह बहुत ज्यादा दर्द करता है. क्या टीकेआर मेरे लिए विश्वसनीय समाधान होगा?

जवाब-

घुटनों के दर्द ने नौजवानों, युवाओं और बुजुर्गों सभी को समान रूप से जकड़ रखा है. आप के  मामले में घुटनों को बदलने की सर्जरी का फैसला लेने से पहले डाक्टर से मिल कर सही जांच कराना ठीक होगा. अगर आप का डाक्टर आप को टीकेआर की सलाह देता है, तो घबराने की कोई जरूरत नहीं है. यह बहुत ही सुरक्षित प्रक्रिया है.

अब इस क्षेत्र में उपलब्ध नई तकनीकों से एक इंप्लांट की मदद से क्षतिग्रस्त घुटनों को बदला जा सकता है, जिस से कुछ ही हफ्तों में आप के घुटनों में पहले जैसी ताकत वापस आ जाएगी. इस के अतिरिक्त इस से अपना लाइफस्टाइल भी सुधारने में मदद मिलेगी. इंप्लांट कराने से तापमान का पारा गिरने या सर्दियों में आप के घुटनों को बेहतर तरीके से कामकाज करने में मदद मिलेगी.

सवाल-

क्या आप बदलते मौसम में घुटनों को नुकसान से बचाने के लिए जीवनशैली में कुछ बदलाव का सुझाव दे सकते हैं? मैं एक 45 वर्षीय मरीज हूं. जो लंबे समय से घुटनों के पुराने दर्द से पीडि़त हूं?

जवाब-

तलेभुने पदार्थ न खाएं. धूम्रपान छोड़ दें. विटामिन डी सप्लिमैंट्स लें. घुटनों के इर्दगिर्द की मांसपेशियों को मजबूत करने के लिए टहलने, सैर करने के साथसाथ हलकेफुलके व्यायाम भी करने की जरूरत होगी. हलकेफुलके शारीरिक व्यायाम से घुटनों पर कम दबाव पड़ेगा. अगर चलने से आप के घुटनों में तकलीफ होती है तो आप पानी में रह कर किए जाने वाले व्यायाम जैसे वाटर ऐरोबिक्स, डीप वाटर रनिंग (गहरे पानी में जौगिंग) करने पर विचार कर सकते हैं. आप ऐक्सरसाइज करने वाली साइकिल का भी प्रयोग कर सकते हैं.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz
 
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