प्रायश्चित्त: क्या प्रकाश को हुआ गलती का एहसास

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दहशत- भाग 2: क्या सामने आया चोरी का सच

‘‘चिली सौस में सिरका होता है न इसलिए यह सूखी नहीं और ताजे खून सी लग रही है,’’ प्रीति बोली, ‘‘मगर टेबल क्यों गिराई, इस के नीचे क्या छिपा हो सकता था?’’

‘‘यह तो पुलिस ही चोर से पूछ कर बता सकती है,’’ किसी के यह कहने पर प्रीति सिहर उठी.

‘‘पुलिस को बुलाने की क्या जरूरत है? कोई सामान चोरी तो हुआ नहीं है.’’

‘‘और चोर तो हम में से कोई यानी इसी कालोनी का बाश्ंिदा है,’’ वर्माजी बोले, ‘‘पुलिस को बुलाने का मतलब है खुद को परेशान करना यानी पुलिस के उलटेसीधे सवालों के चक्कर में फंसना और बेकार में उन की खातिरदारी करना क्योंकि चोर तो उन के हाथ लगने से रहा.’’

‘‘वर्माजी का कहना ठीक है. हमें आपस में ही तय करना है कि सुरक्षा के लिए और क्या करें,’’ तनेजाजी ने कहा ‘‘घर तो अच्छी तरह से देख लिया है, कोई छिपा हुआ तो नहीं है.’’

‘‘यानी अब कोई खतरा नहीं है,’’ प्रीति ने जम्हाई रोकने की कोशिश करते हुए कहा, ‘‘तो फिर क्यों न अभी सब घर जा कर आराम करें, कल छुट्टी है, फुरसत से इस बारे में बात करेंगे.’’ ‘‘हां, यही ठीक रहेगा. शायद इतमीनान से सोचने पर प्रीति को याद आ जाए कि वह नींद में चिल्लाई क्यों थी. लेकिन तुम्हें अकेले डर तो नहीं लगेगा प्रीति? कहो तो मैं यहां सो जाऊं या तुम हमारे यहां चलो,’’ नेहा वर्मा ने कहा.

‘‘धन्यवाद, मिसेज वर्मा, जब घर में कोई है ही नहीं तो डर कैसा?’’ प्रीति हंसी.

‘‘तो ठीक है, कल मीटिंग रखते हैं…’’

‘‘भूषण साहब, मीटिंग क्यों न मौका-ए-वारदात यानी मेरे घर पर रखी जाए?’’ प्रीति ने बात काटी, ‘‘इसी बहाने मुझे आप सब को इतनी ठंड में जगाने के एवज में चाय पिलाने का मौका भी मिल जाएगा.’’

‘‘प्रीतिजी ठीक कह रही हैं. भूषण साहब, मीटिंग तो मौका-ए-वारदात पर ही होनी चाहिए. इस हौल में 25-30 लोग आसानी से आ सकते हैं.’’

‘‘कमेटी के सदस्य इस से कम ही हैं. लेकिन डा. गौरव, आप और वर्मा दंपती पड़ोसी होने के नाते जरूर आइएगा,’’ भूषणजी ने कहा, ‘‘तो कल फिर यहीं मिलते हैं, 4 बजे कमेटी जो तय करेगी उसे फिर संडे को जनरल बौडी मीटिंग में सर्वसम्मति से पास करवा लेंगे.’’ प्रीति या दूसरों को लिहाफ में घुसते ही नींद आई या नहीं, लेकिन डा. गौरव सो नहीं सके. न तो भूतप्रेत का सवाल था, न ही किसी और के प्रीति के फ्लैट में घुसने का. तो फिर ये सब क्या है? गौरव को न तो पड़ोस में दखलंदाजी का शौक था और न ही फुरसत लेकिन उसे मामला दिलचस्प लग रहा था. इस बारे में अधिक जानकारी प्रीति से जानपहचान बढ़ा कर ही मिल सकती थी जो मीटिंग में जाने से नहीं, अकेले में मिलने से बढ़ सकती थी और तभी मामले की गहराई में जाया जा सकता था. उस ने सोचा कि बेहतर होगा कि 6 बजे के बाद जाए ताकि तब तक मीटिंग खत्म हो चुकी हो और अगर प्रीति आग्रह कर के रोकेगी तो ठीक, वरना सौरी कह कर वापस आ जाएगा. उस के घंटी बजाने पर गले में एप्रैन बांधे नौकर ने दरवाजा खोला.

‘‘प्रीतिजी हैं?’’

‘‘जी, सर, आइए,’’ वह सम्मानपूर्वक से बोला. प्रीति डाइनिंग टेबल के पास खड़ी थी. उसे देखते ही चहकी ‘‘ओह, डा. गौरव, आइएआइए.’’

‘‘सौरी, मुझे आने में देर हो गई. मीटिंग तो लगता है खत्म हो गई, मैं चलता हूं.’’

‘‘मीटिंग में क्या हुआ, नहीं सुनना चाहेंगे?’’

‘‘जी, बताइए?’’

‘‘इत्मीनान से बैठ कर चाय पीते हुए सुनने वाली बातें हैं.’’

‘‘बैठ जाता हूं मगर चायपानी के लिए परेशान मत होइए.’’

‘‘शुंभ, हम लोगों का चायनाश्ता यहीं दे जाओ,’’ प्रीति ने आराम से बैठते हुए कहा, ‘‘मेरी परेशानी खत्म. आज सुबह जब मैं ने फ्रिज खेला तो उस में से काफी फल, जैम और ब्रैड वगैरा गायब थे.’’

‘‘यानी वह काफी देर रहा आप के फ्लैट में?’’ ‘‘जी हां, सुबह मेरी नौकरानी जब नीचे प्रैस वाली को कपड़े देने जाती है तो दरवाजा खुला ही छोड़ जाती है, उसी समय कोई घुस आया होगा और परदे के पीछे छिप गया होगा. इत्तफाक से आज नौकरानी के वापस आने से पहले ही मैं तैयार हो गई थी. सो, ताला लगा कर नीचे चली गई और बेचारा चोर अंदर ही बंद हो गया.’’

‘‘फिर आराम से खातापीता रहा,’’ गौरव हंसा, ‘‘सुरक्षा बढ़ाने की बात हुई?’’

‘‘हां, प्रत्येक बिल्ंिडग में विजिटर्स को रजिस्टर में साइन करना होगा. सब का यही मानना है कि उस रोज कालोनी से ही कोई मेरे घर में आया था, रात को वह जो भी चाहता था उस का वह मंसूबा तो मैं ने अनजाने में चिल्ला कर सत्यानाश कर ही दिया और आप सब के आने पर वह परदे के पीछे से निकल कर भीड़ में शामिल हो गया. खैर, सिक्योरिटी को ले कर तो सभी चिंतित हैं और फिलहाल विजिटर्स बुक रखना सही कदम है. मगर सब से मजेदार थी छींटाकशी. नीलिमाजी का कहना था कि लोगों को अपने घरेलू नौकरों पर नजर रखनी चाहिए और उन की हरकतों की जिम्मेदारी भी उठानी चाहिए. उन के खयाल से किसी का घरेलू नौकर ही मेरे घर में घुसा था. शनिवार को बहुत से नौकरों की छुट्टी रहती है. इस पर ऊषाजी ने कहा कि घरेलू नौकर तो छुट्टी के रोज नींद पूरी करते हैं, लेकिन अमीर लोगों के जवान होते बच्चों को दूसरों के घरों में घुसने की बीमारी होती है, उन पर खास नजर रखनी चाहिए.

इस पर इतनी कांयकांय मची कि पूछिए मत.’’ प्रीति को खिलखिलाते देख कर गौरव को बहुत अच्छा लगा और वह भी हंस पड़ा, ‘‘आप के यहां आने से पहले एक बार गाडि़यों में से स्टीरियो और पैट्रोल चोरी होने लगा था. तब रात को कालोनी में गश्त लगाने वाले चौकीदार नहीं थे. चोर बड़ी सफाई से गाडि़यों के ताले खोलता था. एक रात कुत्ते की तबीयत खराब होने पर ऊषाजी और उन के पति कुत्ते को कारपार्किंग के पास टहला रहे थे कि अचानक अपनी गाड़ी के पास चोर को देख कर कुत्ता भौंकने लगा. ऊषाजी के पति ने लपक कर उसे पकड़ लिया. वह कालोनी में ही रहने वाले आहूजा का बेटा दिलीप था. उस के हाथ में पेचकस भी था. उस ने अपनी सफाई में कहा कि अपनी गाड़ी से निकलते समय उस के हाथ से छिटक कर पेचकस दूर जा गिरा था और अब टौर्च ले कर वह उसे ढूंढ़ने आया था. यह पूछने पर कि आधी रात को क्यों, उस ने जवाब में कहा कि जब वे आधी रात को अपना कुत्ता घुमा सकते हैं तो वह अपना स्क्रूड्राइवर क्यों नहीं ढूंढ़ सकता. खैर, ऊषाजी ने जो देखा था वह मीटिंग में बता दिया. तब श्रीमती आहूजा ने कारपार्किंग के पास कुत्तों के घुमाने पर रोक लगवानी चाही थी.’’

शुंभ कई तरह के गरम पकौड़े ले कर आया. गौरव को पकौड़े बहुत पसंद आए.

‘‘शुंभ ने बनाए हैं, ही इज एन एक्सेलैंट कुक.’’

‘‘आप ही के पास काम करता है?’’

‘‘मेरा ड्राइवर है और लोकल गार्जियन भी. कई साल से मम्मीपापा के पास खाना पकाता था. फिर मैं ने ड्राइविंग सिखवा कर अपनी कंपनी में लगवा दिया. जब भी जरूरत पड़ती है तो खाना भी बना देता है.’’

काला अतीत- भाग 4: क्या देवेन का पूरा हुआ बदला

दार्जिलिंग घूमघूम कर हम इतने थक चुके थे कि मां का घर जन्नत से कम नहीं लग रहा था. सही कहते हैं, भले ही आप फाइवस्टार होटल में रह लो, पर घर जैसा सुख कहीं नहीं मिलता. मां कहने लगीं कि यहीं पास में ही एक नया मौल खुला है तो जा कर घूम आओ. लेकिन बच्चे जाने से मना करने लगे कि उन्हें नानानानी के साथ ही रहना है तो आप दोनों जाओ.

सच में, बड़ा ही भव्य मौल था. फूड कोर्ट और सिनेमाहौल भी था यहां. मैं कब से ‘गंगूबाई’ फिल्म देखने की सोच रही थी. आज मौका मिला तो टिकट ले कर हम दोनों हौल में घुस गए. सोचा, आई हूं, तो मांपापा और बच्चों के लिए थोड़ीबहुत खरीदारी भी कर लेती हूं. अपने लिए भी 2-4 कौटन की कुरती खरीदनी थीं मुझे. गरमी में कौटन के कपड़े आरामदायक होते हैं. सो मैं लेडीज सैक्शन में घुस गई और देवेन पता नहीं किधर क्या देखने में लग गए.

मैं अपने लिए कुरतियां देख ही रही थी कि पीछे से जानीपहचानी आवाज सुन अकचका कर देखा, तो मोहन मुझे घूर रहा था. उसे देखते ही लगा जैसे किसी ने मेरे सीने में जोर का खंजर भोंक दिया हो. एकाएक वह दृश्य मेरी आंखों के सामने नाच गया.

उसे इग्नोर कर मैं झटके से आगे बढ़ने ही लगी कि मेरा रास्ता रोक वह खड़ा हो गया और

बोला, ‘‘अरे सुमन. मैं मोहन. पहचाना नहीं क्या मुझे?’’

‘‘हटो मेरे सामने से,’’ बोलते हुए मेरे होंठ कंपकंपाने लगे.

‘‘अरे, मैं तुम्हारा दोस्त हूं और कहती हो कि हटो मेरे सामने से. चलो न कहीं बैठ कर बातें करते हैं.’’

उस की बात पर मैं ने दूसरी तरफ मुंह

फेर लिया.

‘‘ओह, शायद अभी भी गुस्सा हो मुझ से. वैसे तुम्हारे पति भी साथ आए हैं,’’ मोहन रहस्यमय तरीके से मुसकराया, तो मेरा दिल धक रह गया कि इस नीच इंसान का क्या भरोसा कि देवेन के सामने ही उलटासीधा बकने लगे. इसलिए मैं जल्द से जल्द मौल से बाहर निकल जाना चाहती थी.

‘‘लेकिन वह तो मेरा रास्ता रोक कर खड़ा हो गया. आखिर क्या चाहता है अब यह. क्यों मेरे सूख चुके जख्मों को कुरेदकुरेद कर फिर से लहूलुहान कर देना चाहता है? क्यों मेरी बसीबसाई गृहस्थी को उजाड़ने पर तुला है? देवेन को अगर यह बात पता लग गई कि कभी मेरा बलात्कार हुआ था, तो क्या वे मुझे माफ करेंगे? निकाल नहीं देंगे अपनी जिंदगी से? मैं ने दोनों हाथ जोड़ कर मोहन से विनती कि मुझे जाने दो प्लीज. लेकिन वह तो बदमीजी पर उतर आया और कहने लगा कि मैं ने पाप किया था उस का दिल दुखा कर और उसी की मुझे सजा मिली. मेरी वजह से वह अपने घर में नकारा साबित हुआ. मेरी वजह से उसे चूडि़यों की दुकान पर बैठना पड़ा, जो वह कभी नहीं चाहता था. अपनी हर नाकामी के लिए वह मुझे ही दोषी ठहरा रहा था.

‘‘तुम इसी लायक थे,’’ मैं ने भी गुस्से से बोल दिया, तो वह तिलमिला उठा और कहने लगा कि उस ने मेरा बलात्कार कर के बहुत सही किया. उसी लायक हूं मैं. बड़ी चली थी आईएएस बनने. बन गई आईएएस? वह बलात्कार का दोषी भी मुझे ही ठहरा रहा था, बल्कि उस का कहना था कि दुनिया में जितनी भी लड़कियों का बलात्कार होता है उस के लिए वही दोषी होती हैं. वही मर्दों को बलात्कार के लिए उकसाती हैं. वह देवेन से सारी सचाई बताने की धमकी देने लगा, तो मैं डर गई कि कहीं सच में यह देवेन से जा कर कुछ बोल न दे. एक तो उस ने मेरे साथ गलत किया और ऊपर से मुझे ही धमका रहा था.

‘‘कैसी सचाई? क्या बताने वाले हो तुम मुझे?’’ पीछे से देवेन की आवाज सुन मैं सन्न रह गई कि कहीं उन्होंने हमारी बातें सुन तो नहीं लीं.

‘‘और क्या कह रहे थे तुम अभी कि दुनिया में जितने भी बलात्कार होते हैं उस के लिए महिलाएं ही दोषी होती हैं. वही मर्दों को बलात्कार के लिए उकसाती हैं.’’

देवेन की बात पर पहले तो वह सकपका गया, फिर बेशर्मों की तरह हंसते हुए बोलने ही जा रहा था कि देवेन बीच में ही बोल पड़े, ‘‘लगता है तुम ने सही से पढ़ाईलिखाई नहीं की, अगर की होती, तो पता होता कि रेप केस में औरत नहीं, मर्द सलाखों के पीछे होते हैं,’’ बोल कर देवेन ने मोहन को ऊपर से नीचे तक घूर कर देखा तो वह सहम उठा.

कहीं देवेन ने कुछ सुन तो नहीं लिया. डर के मारे मैं कांप उठी. मुझे डर लग रहा था कि कहीं मोहन कुछ बोल न दे इसलिए देवेन का हाथ पकड़ते हुए मैं बाहर निकल आई. लेकिन देवेन के चेहरे पर गुस्सा साफ झलक रहा था.

‘‘अफसोस होता है कहते हुए कि बलात्कार एक ऐसा अपराध है जिस में अपराधी तो पुरुष होता है, लेकिन अपराधबोध का दंश उम्र भर महिलाओं को झेलना पड़ता है. आखिर क्यों? समाज में बदनामी के डर से महिलाएं चुप लगा जाती हैं. क्यों नहीं आवाज उठातीं ताकि बलात्कारियों को उन की करनी की सजा मिल सके? क्यों उन्हें आजाद घूमने के लिए छोड़ दिया जाता है और महिलाएं खुद घुटघुट कर जीने को मजबूर होती हैं? बोलो सुमन, जवाब दो?’’

मेरा तो पूरा शरीर थर्रा उठा कि देवेन को आज क्या हो गया.

‘‘तुम्हें क्या लगता है मुझे कुछ नहीं पता? सब पता है मुझे. शादी के 1 दिन पहले ही तुम्हारे पापा ने मुझे सबकुछ बता दिया था. लेकिन दुख होता है कि तुम ने मुझे अपना नहीं समझा. क्या यही भरोसा था तुम्हारा मुझ पर? हम सुखदुख के साथी हैं सुमन,’’ कह मेरा हाथ अपने हाथों के बीच दबाते हुए देवेन भावुक हो उठे, ‘‘शादी के वक्त हम ने वादा किया था एकदूसरे से कि हम कभी एकदूसरे से कुछ नहीं छिपाएंगे. फिर भी तुम ने मुझे कुछ नहीं बताया और खुद ही अकेली इस दर्द से लड़ती रही क्योंकि तुम्हें लगा मैं तुम्हें छोड़ दूंगा या तुम्हें ही दोषी मानूंगा. ऐसा कैसे सोच लिया तुम ने सुमन?

‘‘पवित्रता और निष्ठा तो मन में होती है, जननांगों में नहीं, इसलिए यह मत सोचो कि वह तुम्हारा काला अतीत था,’’ मुझे अपनी बांहों में भरते हुए देवेन बोले तो मैं उन के सीने से लग सिसका पड़ी. आज मेरे मन का सारा गुब्बार आंखों के रास्ते निकल गया. मेरे मन में जो एक डर था कि कहीं किसी रोज देवेन को मेरे काले अतीत का पता चल गया तो क्या होगा, वह डर आज काफूर हो चुका था.

‘‘लेकिन अब मैं उस मोहन को उस की करनी की सजा दिलवाना चाहती हूं,’’ मैं ने कहा.

‘‘हां, बिलकुल और इस में मैं तुम्हारे साथ हूं,’’ देवेन बोले.

‘‘लेकिन कैसे क्योंकि मेरे पास उस के खिलाफ कोई सुबूत नहीं है?’’

मेरी बात पर देवेन हंस पड़े और बोले कि है न, क्यों नहीं है. यह सुनो. इस से ज्यादा

और क्या सुबूत चाहिए तुम्हें?’’ कह कर देवेन ने अपना मोबाइल औन कर दिया.

मोहन ने खुद अपने मुंह से अपना सारा गुनाह कुबुल किया था. उस ने जोजो मेरे साथ किया वह सब बक चुका था और सारी बातें देवेन के मोबाइल में रिकौर्ड हो चुकी थीं. जब देवेन ने मोहन और मुझे बात करते देखा, तो छिप कर वहीं खड़े हो गए और हमारी सारी बातें अपने फोन में रिकौर्ड कर लीं.

देवेन का हाथ अपने हाथों में लेते हुए मैं ने एक गहरी सांस ली और खुद से ही कहा कि मुझे अब न तो समाज की परवाह है और न ही लोगों की कि वे क्या सोचेंगे क्योंकि अब मेरा पति मेरे साथ खड़ा है. यू वेट ऐंड वाच अब तुम अपना काला अतीत याद कर के रोओगे मोहन.

दहशत- भाग 3: क्या सामने आया चोरी का सच

शुंभ जब खाली बरतन उठा रहा था तो फोन की घंटी बजने पर प्रीति बैडरूम में चली गई. गौरव से पकौड़ों की तारीफ सुनने पर शुंभ ने सकुचाए स्वर में कहा, ‘‘थैंक यू सर, डरतेडरते बनाए थे बहुत दिनों के बाद, किचन का काम करने की आदत छूट गई है.’’

‘‘क्यों, मैडम खाना नहीं बनवातीं?’’

‘‘जब कभी पार्टी हो तभी. और आज तो अरसे बाद पार्टी हुई है.’’

‘‘मैडम बहुत बिजी रहने लगी हैं?’’

‘‘वे तो हमेशा से ही हैं मगर अब सब सहेलियां दोस्त शादी कर के अपनीअपनी घरगृहस्थी में मगन हो गए हैं. किसी को दूसरों के घर आनेजाने की फुरसत ही नहीं है. पहले तो बगैर पार्टी के भी बहुत आनाजाना रहता था पर अब कोई बुलाने पर भी नहीं आता,’’ शुंभ के स्वर की व्यथा गौरव को बहुत गहरी लगी, ‘‘आजकल तो काम के बाद टीवी देख कर ही समय गुजारती हैं.’’ तभी प्रीति आ गई, ‘‘माफ करिएगा, आप को इंतजार करना पड़ा. लंदन से मम्मीपापा का फोन था. सो, बीच में रखना ठीक नहीं समझा.’’

‘‘आप के मम्मीपापा लंदन में हैं?’’

‘‘जी हां, मेरी डाक्टर बहन के पास. छुटकी अकेली है, सो ज्यादातर उसी के पास रहते हैं.’’

‘‘अकेली तो आप भी हैं,’’ गौरव के मुंह से बेसाख्ता निकल पड़ा. ‘‘यहां और वहां के अकेलेपन में बहुत फर्क है. वैसे यहां भी अब लोग स्वयं में ही व्यस्त रहने लगे हैं. एक कप गरम चाय और चलेगी?’’

‘‘जी नहीं, अब चलूंगा. पकौड़े बहुत खा लिए हैं, सो एफ-1 में बताना भी है कि मैं आज रात को खाना नहीं खाऊंगा. डा. राघव के यहां हम कुछ दोस्त एक नौकर से खाना बनवाते हैं.’’

‘‘खाने के बहाने दोस्तों से गपशप भी हो जाती होगी.’’

‘‘जी हां, और दोस्तों को भी बुलाते रहते हैं. एक रोज आप को भी बुलाऊंगा.’’ इस से पहले कि वह खुद को रोकता, शब्द उस के मुंह से निकल चुके थे लेकिन प्रीति ने बुरा मानने के बजाय सहज भाव से कहा, ‘‘जरूर, मुझे इंतजार रहेगा उस रोज का.’’

‘‘ठीक है, मिलते हैं फिर,’’ कह कर गौरव ने विदा ली. राघव के घर जाने से पहले गौरव ने कालोनी के 2-3 चक्कर लगाए, वह कुछ सोच रहा था और उसे अपनी सोच सही लग रही थी. अगले सप्ताहांत डा. गौरव ने प्रीति को डिनर पर बुलाया. वह इस शर्त पर आना मान गई कि वह 9 बजे के बाद आएगी. गौरव ने कहा कि वे लोग भी 8 बजे के बाद ही घर पहुंचते हैं. लेकिन साढ़े 8 बजे के करीब एफ-1 में हादसा हो गया. बहुत जोर से कुछ गिरने और कांच टूटने की सी आवाज आई. ठंड के बावजूद कई लोग डिनर के बाद टहलने निकले हुए थे. एफ-1 में रहने वाला डा. राघव तभी आया था और अपनी गाड़ी लौक कर रहा था. उस के हाथ से चाबी छूटतेछूटते बची.

‘‘यह क्या हुआ, चौकीदार?’’ उस ने घबराए स्वर में पूछा.

‘‘जो भी हुआ है फर्स्ट फ्लोर पर ही हुआ है साहब, ऐसा लग रहा है जैसे मेरे सिर पर ही कुछ गिरा है,’’ चौकीदार ने सिर सहलाते हुए कहा.

‘‘तुम्हारे सिर पर तो डा. राघव का फ्लैट है,’’ किसी ने कहा, ‘‘चल कर देखिए डाक्टर साहब.’’

‘‘आप लोग भी चलिए न,’’ डा. राघव ने घबराए स्वर में कहा.

‘‘राजू तो घर में होगा साहब.’’

‘‘शायद नहीं, उसे खाना लाने बाजार जाना था,’’ राघव ने सीढि़यां चढ़ते हुए कहा. तभी न जाने कहां से गौरव आ गया, ‘‘क्या हुआ यार, सुना है प्रीति चावला वाला अदृश्य मानुष अपने घर में घुस आया है.’’

राघव ने डरतेडरते  ताला खोला, कमरे में अंधेरा था, ‘‘चौकीदार, टौर्च मिलेगी?’’ ‘‘डर मत यार, मैं अंदर जा कर लाइट जलाता हूं,’’ गौरव ने आगे बढ़ कर लाइट जलाई. उस के पीछे और सब भी कमरे में आ गए. कमरे में ज्यादा सामान नहीं था. डाइनिंगटेबल के पास रखा साइडबोर्ड जमीन पर औंधा पड़ा था और उस में रखे चीनी व कांच के समान के टुकड़े दूरदूर तक फर्श पर बिखरे हुए थे. ‘‘इतना भारी साइडबोर्ड अपने से तो गिर नहीं सकता. जरूर कोई इस से अंधेरे में टकराया है, कमरों में देखो, जरूर कोई छिपा हुआ होगा.’’

‘‘कमरे तो सब बाहर से बंद हैं मित्तल साहब, परदों के पीछे या किचन में होगा,’’ राघव ने कहा.

‘‘वह भाग चुका है राघव, बालकनी का दरवाजा खुला हुआ है. उस से कूद कर भाग गया,’’ गौरव ने कहा.

‘‘लेकिन कूदता हुआ नजर तो आता, बहुत लोग टहल रहे हैं कंपाउंड में.’’

‘‘मेन रोड पर, यहां हैज के पीछे अंधेरे में कौन आता है या इधर देखता भी है,’’ गौरव बोला.

‘‘लेकिन गौरव, सुबह मैं सब के बाद गया था. और मैं ने जाने से पहले बालकनी का दरवाजा भी बंद किया था,’’ राघव ने कहा.

‘‘मैं थोड़ी देर पहले आया था राघव, कुछ क्रिस्टल ग्लास टम्बलर ले कर. उन्हें राजू से धुलवा कर साइडबोर्ड में सजाने और राजू को बाजार भेजने के बाद मैं बालकनी में आ कर खड़ा हो गया था. फिर कपड़े बदलने जाने की जल्दी में मैं बगैर बालकनी बंद किए मेनगेट बंद कर के अपने घर जा रहा था कि आधे रास्ते में ही शोर सुन कर वापस आ गया,’’ गौरव ने कहा.

‘‘आप के पास भी यहां की चाबी है?’’ मित्तल ने पूछा.

‘‘आटोमैटिक लौक को बंद करने के लिए चाबी की जरूरत नहीं होती…’’ इस से पहले कि गौरव अपनी बात पूरी कर पाता, घबराई और उस से भी ज्यादा हड़बड़ाई सी प्रीति आ गई.

‘‘यह मैं क्या सुन रही हूं?’’

‘‘जो सुना वह देख भी लीजिए,’’ गौरव ने हंसते हुए फर्श पर बिखरे कांच की ओर इशारा किया.

‘‘ओह नो, मेरे यहां तो खैर कुछ नुकसान नहीं हुआ था लेकिन…’’

‘‘इस में से कुछ तो बहुत महंगा और बिलकुल नया सामान था जो गौरव ने आज ही खरीदा था और कुछ देर पहले शोकेस में सजाया था,’’ राघव ने प्रीति की बात काटी. ‘‘क्या बात है डा. गौरव, नई क्रौकरी की खरीदारी, बाहर से खाना मंगवाना कोई खास दावतवावत है?’’ एक प्रश्न उछला.

‘‘इन फालतू सवालों के बजाय हम मुद्दे की यानी चोरी की बात क्यों नहीं करते मित्तल साहब?’’ किसी ने तल्ख स्वर में कहा. ‘‘उस की बात क्या करेंगे?’’ गौरव ने कंधे उचकाए, ‘‘बालकनी का दरवाजा खुला छोड़ कर जाने की लापरवाही मैं मान ही रहा हूं, चौकीदार ने मेनगेट तभी बंद करवा दिया था, अब चोर कहां भाग कर गया, यह तो सोसायटी के कर्ताधर्ता ही सोचेंगे. हमें तो यह सोचना है कि रात के खाने का क्या करें, किचन में जाने का रास्ता तो कांच से अटा पड़ा है.’’ ‘‘फिक्र मत कर यार, राजू कुछ खाना बना गया है और कुछ ले कर आता ही होगा. आ कर टूटा हुआ कांच हटा देगा,’’ राघव ने कहा फिर सब की ओर देख कर बोला, ‘‘माफ करिएगा, आप को बैठने को नहीं कह सकते क्योंकि इतनी कुरसियां ही नहीं हैं.’’ ‘‘कोई बात नहीं, हम चलते हैं,’’ कह कर सब चलने लगे और उन के साथ ही प्रीति भी, गौरव उसे रोकने के बजाय उस के साथ ही चल दिया.

‘‘आप कहां चल दिए डा. गौरव, बगैर खाना खाए?’’ मित्तल ने पूछा.

‘‘घर कपड़े बदलने, मैं अस्पताल के कपड़ों में खाना नहीं खाता.’’

‘‘खाना खाने का मूड रहा है अब?’’ प्रीति ने धीरे से पूछा.

‘‘एक डाक्टर होने के नाते मूड के लिए न तो खुद खाना छोड़ता हूं और न किसी को छोड़ने देता हूं,’’ गौरव मुसकराया, ‘‘आप भी चेंज कर लीजिए, फिर वापस आते हैं एफ-1 में.’’

दहशत- भाग 1: क्या सामने आया चोरी का सच

जनवरी की सर्द रात के सन्नाटे को ‘बचाओबचाओ’ की चीखों ने और भी भयावह बना दिया था. लिहाफकंबल की गरमाहट छोड़ कर ठंडी हवा के थपेड़ों की परवा किए बगैर लोग खिड़कियां खोल कर पूछ रहे थे, ‘चौकीदार, क्या हुआ? यह चीख किस की थी?’ अभिजात्य वर्ग की ‘स्वप्न कुंज’ कालोनी में 5 मंजिला, 10 इमारतें बनी थीं, उन की वास्तुशिल्प कुछ ऐसी थी कि हरेक बिल्ंिडग में जरा सी जोर की आवाज होने से पूरी कालोनी गूंज जाती थी. हरेक बिल्ंिडग में 20 फ्लैट थे. प्रत्येक बिल्ंिडग में 24 घंटे शिफ्ट में एक चौकीदार रहता था और रात को पूरी कालोनी में गश्त लगाने वाले चौकीदार अलग से थे. रात को मेनगेट भी बंद कर दिया जाता था. इतनी सुरक्षा के बावजूद एक औरत की चीख ने लोगों को दहला दिया था.

‘‘चीख की आवाज सी-6 से आई थी साहब,’’ एक चौकीदार ने कहा, ‘‘तब मैं सी बिल्ंिडग के नीचे से गुजर रहा था.’’

‘‘वह तीसरे माले पर रहने वाली प्रीति मैडम की आवाज थी साहब, मैं उन की आवाज पहचानता हूं,’’ दूसरे चौकीदार ने कहा.

‘‘लेकिन सी-6 में तो अंधेरा है,’’ एक खिड़की से आवाज आई.

‘‘ओय ढक्कन, वह बत्ती जला कर ‘बचाओबचाओ’ चिल्लाएगी,’’ किसी की फब्ती पर सब ठहाके लगाने लगे.

‘‘सब यहीं चोंचें लड़ाते रहेंगे या कोई प्रीति की खोजखबर भी लेगा?’’ एक महिला ने कड़े स्वर में कहा.

‘‘प्रीति मैडम अकेली रहती हैं, आप साथ चलें तो ठीक रहेगा मैडम,’’ चौकीदार ने कहा.

‘‘सी-5 की नेहा वर्मा को ले जाओ.’’

‘‘अपने ‘स्वप्न कुंज’ में रहने वाले सभी अपने से हैं, सो सब लोग तुरंत सपत्नीक सी-6 में पहुंचिए,’’ सोसायटी के प्रैसिडैंट भूषणजी ने आदेशात्मक स्वर में कहा. सभी तो नहीं, लेकिन बहुत से दंपती पहुंच गए. शायद इसलिए कि प्रीति को ले कर सभी के दिल में जिज्ञासा थी. किसी फैशन पत्रिका के पन्नों से निकली मौडल सी दिखने वाली प्रीति 25-30 वर्ष की आयु में ही किसी बहुराष्ट्रीय कंपनी में उच्च पद पर थी. कंपनी से गाड़ी और 3 बैडरूम का फ्लैट मिला हुआ था. पहले तो हर सप्ताहांत उस के फ्लैट पर पार्टी हुआ करती थी मगर इस वर्ष तो नववर्ष के आसपास भी कोई दावत नहीं हुई थी. कालोनी में चंद लोगों से ही उस की दुआसलाम थी. सी-6 के पास पहुंच कर सभी स्तब्ध रह गए, फ्लैट के दरवाजे में से पतली सी खून की धार बह रही थी. लगातार घंटी बजाने पर भी कोई दरवाजा नहीं खोल रहा था.

‘‘साथ में दरवाजा भी खटखटाओ,’’ सुनते ही चौकीदार और एकदो और लोगों ने दरवाजे को जोर से धक्का दिया लेकिन दरवाजा अंदर से बंद नहीं था इसलिए आसानी से खुल गया. अंदर अंधेरा और सन्नाटा था.

‘‘अंदर जाने से पहले फोन की घंटी बजाओ.’’

‘‘नंबर है किसी के पास?’’

‘‘सोसायटी के औफिस में होगा, पुलिस को बुलाने से पहले…’’ तभी अंदर से अलसाए स्वर में आवाज आई, ‘‘कौन है?’’

‘‘चौकीदार चुन्नीलाल. बाहर आइए मैडम.’’ लाइट जलते ही फिर चीख की आवाज आई, ‘‘ओह नो.’’ नाइट गाउन पहने बौखलाई सी प्रीति खड़ी थी. बगैर मेकअप और अस्तव्यस्त बालों के बावजूद वह आकर्षक लग रही थी.

‘‘आप सब यहां?’’  प्रीति ने उनींदे स्वर में पूछा, ‘‘और इस कमरे का सामान किस ने उलटापलटा है?’’

‘‘यह खून किस का है, तुम ठीक तो हो न प्रीति?’’ नेहा वर्मा ने पूछा. खून देख कर प्रीति फिर चीख उठी, ‘‘ओह नो. यह कहां से आया?’’

‘‘लेकिन इस से पहले आप क्यों चीखी थीं मैडम?’’ चुन्नीलाल ने अधीरता से पूछा.

‘‘घंटी और बोलने की आवाज सुन कर ड्राइंगरूम में आ कर बत्ती जलाई तो यह गड़बड़ देख कर…’’

‘‘उस से पहले मैडम, आप की ‘बचाओबचाओ’ की आवाज पर तो हम यहां आए हैं,’’ चुन्नीलाल ने बात काटी.

‘‘मैं ‘बचाओबचाओ’ चिल्लाई थी?’’ प्रीति चौंक पड़ी, ‘‘आप बाहर क्यों खड़े हैं, अंदर आइए और बताइए कि बात क्या है?’’ सब अंदर आ गए और भूषणजी से सब सुन कर प्रीति बुरी तरह डर गई. ‘‘आज मैं बहुत देर से आई थी और इतना थक गई थी कि सीधे बैडरूम में जा कर सो गई और अब घंटी की आवाज पर उठी हूं.’’

‘‘फिर यहां यह ताजा खून कहां से आया और सोफे वगैरा किस ने उलटे?’’ चौकीदार चुन्नीलाल ने कहा, ‘‘लगता है चोर अभी भी कहीं दुबका हुआ है, चलिए, तलाश करते हैं.’’ सभी लोग तत्परता से परदों के पीछे और कमरों में ढूंढ़ने लगे. महिलाएं सुरुचिपूर्ण सजे घर को निहार रही थीं. प्रीति संयत होने की कोशिश करते हुए भी उत्तेजित और डरी हुई लग रही थी. कहीं कोई नहीं मिला. एक बैडरूम बाहर से बंद था. ‘‘हो सकता है जब हम लोग अंदर आए तो परदे के पीछे छिपा चोर भी भीड़ में शामिल हो कर बाहर भाग गया हो क्योंकि सभी अंदर आ गए थे. दरवाजे के बाहर और नीचे गेट पर तो कोई था ही नहीं,’’ एक चौकीदार ने कहा.

‘‘लेकिन भाग कर कहां जाएगा, मेनगेट तो बंद होगा न,’’ प्रीति बोली, ‘‘लेकिन अंदर कैसे आया? क्योंकि मेरा डिनर बाहर था सो नौकरानी को शाम को खाना बनाने आना नहीं था इसलिए वह चाबी ले कर नहीं गई. चाबी सामने दीवार पर टंगी है और मैं नौकरानी के जाने के बाद औफिस गई थी, इसलिए ताला मैं ने स्वयं लगाया था.’’ ‘‘तो फिर यह उलटपलट और खून? इस का क्या राज है?’’ प्रीति के फ्लैट के ऊपर रहने वाले डा. गौरव ने गहरी नजरों से प्रीति को देखा. प्रीति उन नजरों की ताब न सह सकी. उस ने असहाय भाव से सब की ओर देखा. सभी असमंजस की स्थिति में खड़े थे.

‘‘सोफे और कुरसीमेजों को क्यों उलटा?’’ एक युवती ने कहा, ‘‘प्रीतिजी इन के नीचे तो कीमती सामान या दस्तावेज रखने से रहीं.’’

‘‘एक बैडरूम पर ताला है न, और अकसर लोग चाबी आजूबाजू में छिपा देते हैं, सो चाबी की तलाश में यह सब गिराया है और खून तो लगता है जैसे किसी को गुमराह करने के लिए ड्रौपर से डाला गया है…’’

‘‘तुम तो एकदम जासूस की तरह बोल रहे हो चुन्नीलाल,’’ किसी ने बात काटी.

‘‘पुलिस का सेवानिवृत्त सिपाही हूं, साहब लोगों के साथ अकसर तहकीकात पर जाता था.’’

‘‘तभी जो कह रहा है, सही है,’’ प्रीति के फ्लैट के नीचे रहने वाली नेहा वर्मा बोलीं, ‘‘अपने यहां की छतें इतनी पतली हैं कि कोई तेज कदमों से भी चले तो पता चल जाता है. फिर इतने भारी सामान के उलटनेपलटने का पता हमें कैसे नहीं चला?’’

‘‘आप सारा दिन घर में ही थीं क्या?’’ डा. गौरव ने पूछा.

‘‘सुबह कुछ घंटे पढ़ाने गई थी, 2 बजे के बाद से तो घर में ही थी.’’ ‘‘और यह उलटपलट तो प्रीतिजी के घर लौटने के बाद ही हुई है. अगर पहले हुई होती तो क्या लौटने पर उन्हें नजर नहीं आती?’’ वर्माजी ने जोड़ा, ‘‘मैं ड्राइंगरूम में बैठ कर औफिस का काम कर रहा था. मैं ने प्रीतिजी के घर में आने की आवाज सुनी थी. उस के बाद जब तक मैं काम करता रहा तब तक तो ऊपर से कोई आवाज नहीं आई.’’

‘‘आप ने कब तक काम किया?’’

‘‘यही कोई 11 बजे तक. उस के बाद मैं सो गया और फिर ‘बचाओबचाओ’ की आवाज से ही आंख खुली.’’ ‘‘उलटपलट तो मेरे आने से पहले भी हो सकती है,’’ प्रीति कुछ सोचते हुए बोली, ‘‘क्योंकि देर से आने पर यानी जब किचन से कुछ लेना न हो तो मैं बगैर ड्राइंगरूम की लाइट जलाए सीधे बैडरूम में चली जाती हूं. यहां कुछ न मिलने पर शायद इस इंतजार में रुका होगा कि मेरे आने के बाद स्टील कबर्ड खुलेगा तब कुछ हाथ लग जाए.’’ ‘‘खून का राज तो खुल गया मैडम,’’ चुन्नीलाल ने ड्राइंगरूम के दरवाजे के पीछे झांकते हुए कहा, ‘‘यह देखिए, यह चटनी की शीशी टेबल से गिर कर लुढ़कती हुई दरवाजे से टकरा कर टूटी है…’’

काला अतीत- भाग 3: क्या देवेन का पूरा हुआ बदला

इधर मेरे घर न पहुंचने पर मांपापादादी परेशान हो उठे. पापा को इस बात की चिंता सताने लगी कि कहीं मेरे साथ कुछ गलत तो नहीं हुआ या मुझे कुछ हो तो नहीं गया. मोहन से पूछने पर उस ने कहा कि उसे नहीं पता सुमन कहां है और वह तो सुमन से कई दिनों से मिला भी नहीं है. मेरी सारी सहेलियों से भी पूछा जा कर, लेकिन सब का यही कहना था कि सुमन यहां नहीं आई है. किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि दोपहर की निकली रात के 10 बजे तक मैं कहां रह गई.

थकहार कर पापा पुलिस के पास जा ही रहे थे कि दरवाजे पर फटेहाल में मुझे देख सब की चीख निकल पड़ी. कुछ पूछते उस से पहले ही मैं बेहोश हो कर जमीन पर गिर पड़ी. सब समझ चुके थे कि उन की बेटी के साथ कुछ गलत हुआ है, पर किस ने किया नहीं पता. होश आने पर जब मैं ने बताया कि मोहन ने मेरा बलात्कार किया तो सब सकते में आ गए क्योंकि वे सब मोहन को मेरा रक्षक समझते थे जो भक्षक निकला.

गुस्से के मारे पापा की आंखों से अंगारे बरस रहे थे.

मां की आंखों से तो आंसू रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे. दादी भी माथा पीटते हुए बस रोए जा रही थीं. पापा पुलिस में मोहन के खिलाफ केस करने जा ही रहे थे कि दादी ने उन का हाथ पकड़ लिया और बोलीं कि इस से उन की बेटी की भी बदनामी होगी. फिर कौन करेगा सुमन से शादी? क्या उम्र भर बेटी को बैठा कर रख पाएंगे वे?

दादी के कहने पर पापा के कदम भले ही रुक गए पर उन का गुस्सा शांत नहीं हुआ. दुनिया का कोई भी बाप अपनी बेटी को दर्द से कराहते नहीं देख सकता और फिर पापा की तो मुझ में जान बसती थी. मुझे चोट लग जाती कभी तो पापा के मुंह से आह निकल पड़ती थी. पापा का तो मन कर रहा था गुंडे हायर कर उस मोहन की 1-1 हड्डी तुड़वा दें, जीवनभर के लिए उसे लंगड़ा बन दें.

इस हादसे ने मुझे डिप्रैशन में ला दिया. मेरा पढ़ाईलिखाई से मन हट गया. मेरा जो सपना था आईएएस बनने का वह भी कहीं खो गया.

मेरे साथसाथ घर के बाकी लोग भी तनाव के सैलाब में डूबने लगे. मेरी हालत देख पापा मुझे समझाने की कोशिश करते कि सबकुछ भूल कर मैं अपने सपने के बारे में सोचूं. लेकिन अब मेरा कोई सपना नहीं था. यहां तक कि किताबों से भी मुझे चिड़ होने लगी थी. इसी बीच दादी भी गुजर गईं तो मैं और टूट गई. मैं दादी के बहुत करीब थी. उन का जाना मेरे लिए दूसरा सदमा था. जीवन एकदम खालीखाली सा लगने लगा. दुनिया बेरंग लगने लगी मुझे. मन करता मर जाऊं या कहीं भाग जाऊं, इतनी दूर कि कोई मुझे ढूंढ़ न पाए. घर में हरदम चहकते रहने वाली मैं मुरझा सी गई थी. वही दृश्य मेरी आंखों के सामने नाचने लगता और मैं बिलख कर रो पड़ती. मुझे तो अपने शरीर से भी नफरत होने लगी थी. लगता कि अपने शरीर को ही नोच डालूं या तेल छिड़क कर इस में आग लगा दूं.

मेरी हालत देख पापा मुझे उस माहौल से दूर ले आए. उन्होंने अपना तबादला दिल्ली करवा लिया और एक कालेज में मेरा एडमिशन करवा दिया ताकि पढ़नेलिखने में मेरा मन लगा रहे. लेकिन मुझ से ठीक से पढ़ाईलिखाई नहीं हो पा रही थी.

वही बातें, वही दृश्य मेरी आंखों के सामने नाचने लगता और मैं फूटफूट कर रोने लगती. मेरी हालत देख कर पापा मुझे साइकेट्रिस्ट के पास ले गए. इलाज से फर्क पड़ा भी, लेकिन अब मैं आईएएस नहीं बनना चाहती थी, कुछ भी नहीं बनना चाहती थी. लेकिन क्या करना चाहती थी यह भी पता नहीं था. ग्रैजुएशन के बाद पापा के जोर देने पर एमबीए में एडमिशन ले लिया क्योंकि अगर मैं बिजी न रहती तो शायद खुद को खत्म कर लेती और मेरे बाद मेरे मांपापा का क्या होगा, यह सोच कर मैं खुद को व्यस्त रखने की कोशिश करती. एमबीए के बाद दिल्ली की ही एक कंपनी में मेरी जौब लग गई. वहीं मेरी मुलाकात देवेन से हुई थी.

देवेन फ्लूट बहुत बढि़या बजाते थे. जब भी वह फ्लूट बजाते मैं उन की ओर खिंची चली आती थी. वे बातें भी बहुत बढि़या करते थे. उन का सौम्य, मितभाषी स्वभाव मेरे लिए रामबाण का काम करने लगा. उन के साथ रहते मैं नैगेटिव से पौजिटिव की ओर जाने लगी. मुझे अब दुनिया की हर चीज अच्छी लगने लगी. हमारी दोस्ती इतनी गहरी हो चुकी थी कि हम साथ औफिस जानेआने लगे थे. हमारी दोस्ती कब प्यार में बदल गई हमें पता ही नहीं चला.

एक रोज भी एकदूसरे को न देखना हमें बेचैन कर जाता था. फिर भी हम एकदूसरे से अपने मन की बात कहने से झिझक रहे थे.

याद है मुझे. वह 14 फरवरी का दिन था. देवेन ने मुझे कौफीहाउस में मिलने बुलाया था. लेकिन नहीं पता था कि उस ने मेरे लिए सरप्राइज पार्टी रखी है. सब के सामने घुटने के बल बैठ कर गुलाब दे कर उस ने मुझे प्रपोज करते हुए कहा था, ‘विल यू मैरी मी?’ और मैं ने हंसते हुए ‘हां’ बोल कर वह गुलाब स्वीकार कर लिया था. वहां बैठे सारे लोग तालियां बजाने लगे तो मैं शर्म के मारे लाल हो गई.

मेरी तरह देवेन भी अपने मांपापा के एकलौती संतान थे और उन के लिए भी अपने बेटे की खुशी से बढ़ कर और कुछ नहीं था. लेकिन मैं ने सोच लिया था कि मैं देवेन को किसी अंधेरे में नहीं रखूंगी. उसे अपने काले अतीत के बारे में सबकुछ सचसच बता दूंगी. लेकिन मां ने मुझे ऐसा करने से रोक दिया. मैं ने कहा भी कि देवेन वैसे बिलकुल नहीं हैं. बहुत ही खुले विचारों वाले इंसान हैं. वे तो खुद बलात्कारियों को कड़ी से कड़ी सजा दिलवाने के पक्षधर हैं.

उस पर मां बोली थीं कि हां, वे मानती हैं कि देवेन में एक अच्छे पति बनने के सारे गुण हैं और वे इंसान भी सुलझे हुए हैं, लेकिन एक पति चाहे कितना भी अच्छा और सुलझा हुआ इंसान क्यों न हो, पर वह यह बात कतई बरदाश्त नहीं कर सकता कि उस की पत्नी का बलात्कार हो चुका है. किसी और ने उस के शरीर को छुआ है.

अगर मुझे देवेन के साथ एक अच्छी जिंदगी गुजारनी है तो मुझे अपने काले अतीत को हमेशा के लिए दफन करना ही होगा. मुझे अपनी दोस्त रचना की याद आ गई और लगा शायद, मां सही कह रही हैं.

देवेन के फ्लूट की आवाज ने मेरा ध्यान भंग किया तो मैं अपने अतीत से बाहर निकल आई. देवेन ने इशारों से कहा कि मैं भी उन के साथ आ कर खेलूं. न चाहते हुए भी मैं उन के खेल में शामिल हो गई. बच्चे काफी थक चुके थे. आते ही सो गए. मैं देवेन के सीने पर सिर रख यहांवहां की बातें करने लगी और वे उसी तरह मेरे बालों को सहलाते रहे. फिर पता नहीं कब मेरी आंखें लग गईं. सुबह जब देवेन ने बैड टी ले कर मुझे जगाया, तो मेरी नींद खुली. सुबह की चाय देवेन ही बनाते हैं. बच्चों को स्कूल भेज कर हम भी अपनेअपने औफिस के लिए निकल गए. इसी तरह हसतेमुसकराते हमारे जीवन के और कई साल निकल गए. अब तो बच्चे भी बड़े हो चुके थे. अतुल्य इस बार बोर्ड परीक्षा में बैठने वाला था और मिक्की 9वीं कक्षा पास कर 10वीं कक्षा में जाने वाली थी.

बच्चों के एग्जाम के बाद हमने दार्जिलिंग घूमने का प्रोग्राम बनाया और सोचा उधर से आते समय मांपापा से भी मिल लूंगी. पहले वे खुद हम से मिलने आ जाते थे या हम ही उन से मिल आते थे, मगर बच्चों की पढ़ाई, छुट्टी की कमी के कारण जल्दीजल्दी जाना नहीं हो पाता है अब. फोन पर ही बातें हो पाती हैं हमारी. मांपापा दोनों बीपी शुगर के पेशैंट हैं तो ज्यादा ट्रेवलिंग नहीं हो पाती उन से.

मुझे तो छुट्टी की कोई समस्या नहीं है, मगर देवेन की छुट्टी पास होगी या नहीं, इस बात की शंका थी. बच्चे कितने खुश हैं दार्जिलिंग घूमने को ले कर. लेकिन कहीं छुट्टी न मिलने से मजा किरकिरा न हो जाए. बच्चों का तो मूड ही औफ हो जाएगा.

मैं अपनी ही सोच में डूबी थी कि देवेन ने हिलाते हुए कहा, ‘‘छुट्टी सैंक्शन हो गई, चलने की तैयारी कर लो अब.’’

सुन कर मैं खुशी से झूम उठी कि मांपापा से कितने दिनों बाद मिलना होगा. रिटायरमैंट के बाद मांपापा फिर से गोरखपुर शिफ्ट हो गए थे क्योंकि वहां भी घर जगह-जमीन है.

काला दरिंदा

19 साल की उम्र में वह माहिर ड्राइवर बन गया था. तभी से वह टैक्सी चला रहा था. अब उस की उम्र 35 साल के करीब थी. थोड़ी देर पहले एक ऐक्सप्रैस ट्रेन प्लेटफार्म पर आ कर रुकी थी. कुछ सवारियां गेट से बाहर निकलीं, तो काला मुस्तैदी से खड़ा हो गया. कुछ सवारियों से उस ने टैक्सी के लिए पूछा भी था लेकिन सवारियों ने मना कर दिया.

कुछ सवारियों को टैक्सी की जरूरत नहीं थी और जिन्हें जरूरत थी, वे अपने परिवार के साथ थे. उन्होंने शक्ल देखते ही काला को मना कर दिया था, क्योंकि शराब के नशे में डूबा काला शक्ल से ही बदमाश लगता था.

काला ने कलाई में बंधी घड़ी की तरफ देखा. रात के 10 बज रहे थे. समता ऐक्सप्रैस ट्रेन के आने का समय हो गया था. शायद उसे कोई सवारी मिल जाए, यह सोच कर काला ने बीड़ी सुलगा ली.

काला का जन्म एक गरीब परिवार में हुआ था. 3 भाइयों में वह अकेला जिंदा बचा था. उस ने कभी स्कूल का मुंह नहीं देखा था. उस की मां तो उसे स्कूल भेजना चाहती थी, पर उस का बाप उसे स्कूल भेजने के सख्त खिलाफ था.

काला की उम्र जब 10 साल की थी, तभी उस की मां मर गई थी और उस के बाप ने उसे एक लुहार के यहां काम पर लगा दिया था. सारा दिन भट्ठी के आगे बैठ कर वह लोहे का पंखा चलाता था. महीने में उसे मेहनत के जो पैसे मिलते थे, उन पैसों को उस का बाप शराब में उड़ा देता था.

7 साल तक काला ने लुहार की दुकान पर काम किया था. तभी उस के शराबी बाप की मौत हो गई थी. बाप के मरने का उसे जरा भी दुख नहीं हुआ था, क्योंकि अब वह पूरी तरह आजाद हो गया था.

कुछ गलत लड़कों के साथ काला का उठनाबैठना हो गया था. 20 साल का होतेहोते वह पक्का शराबीजुआरी बन चुका था. एक करीबी रिश्तेदार को उस पर दया आ गई थी. उसी ने भागदौड़ कर के उस की शादी करा दी थी. उस की औरत ज्यादा खूबसूरत तो नहीं थी, पर उस से कई गुना अच्छी थी.

काला ने हमेशा से ही अपनी बीवी को इस्तेमाल की चीज समझा था. अब वह 4 बच्चों का बाप बन चुका था. फिर भी बच्चों के लिए एक बाप की क्या जिम्मेदारियां होती हैं, इस का उसे पता नहीं था.

काला जितना शौकीन था, उस से कहीं ज्यादा मेहनती भी था. वह सुबह 7 बजे टैक्सी ले कर घर से निकल जाता था और रात 12 बजे के बाद ही लौटता था.

वह 300 से 500 रुपए तक रोजाना कमा लेता था. इतना कमाने के बाद भी उस के घर की माली हालत ठीक नहीं थी, क्योंकि उसे शराब पीने के अलावा कोठे पर जाने का भी शौक था.

रात 11 बजे समता ऐक्सप्रैस ट्रेन प्लेटफार्म पर आई. ट्रेन पूरे एक घंटा लेट थी. सवारियां जल्दीजल्दी स्टेशन के गेट से बाहर निकल रही थीं. काला सवारियों पर नजरें दौड़ाने लगा. अचानक उस की नजर एक लड़की पर पड़ी तो उस की आंखों में एक अजीब सी चमक उभर आई.

काला तेजी से उस लड़की की तरफ लपका और उस से पूछा, ‘‘मैडम क्या आप को टैक्सी चाहिए?’’

‘‘हां चाहिए,’’ लड़की ने उस की तरफ बिना देखे ही जवाब दिया.

‘‘कहां जाना है आप को?’’

‘‘विजय नगर,’’ लड़की ने बताया.

‘‘चलिए,’’ कह कर काला ने लड़की के हाथ से बैग ले लिया.

कुछ ही दूर टैक्सी स्टैंड पर काला की टैक्सी खड़ी थी.

काला ने डिक्की खोल कर बैग उस में रखा और फिर अपनी सीट पर जा कर बैठ गया. तब तक लड़की पिछली सीट पर बैठ चुकी थी.

उस लड़की की उम्र 22-23 साल के आसपास थी. वह बेहद खूबसूरत थी. पहनावे से वह अमीर और हाई सोसायटी की लग रही थी. वह शायद किसी सोच में गुम थी, तभी तो उस ने काला के ऊपर ध्यान नहीं दिया था, वरना काला का चेहरा और शराब के नशे में डूबी उस की आंखें देख कर वह उस की टैक्सी में कभी न बैठती.

लड़की पिछली सीट पर अधलेटी सी आंखें बंद किए हुए थी. काला सामने लगे शीशे में से उसे बारबार देख रहा था.

रेलवे स्टेशन से विजय नगर का रास्ता महज आधे घंटे का था. काला धीमी रफ्तार से टैक्सी चला रहा था. उस लड़की ने काला के अंदर उथलपुथल मचा रखी थी.

काला का ध्यान टैक्सी चलाने में कम, उस लड़की पर ज्यादा था. वह जितना उस लड़की को देख रहा था, उस पर उतना ही एक नशा सा छा रहा था.

काला एक नंबर का आवारा था. जवान लड़कियों को देख कर उस के खून में गरमी पैदा हो जाती थी.

एक बार स्कूटर पर जा रही एक लड़की को घूरते हुए वह अपने होश खो बैठा था. नतीजतन, उस की टैक्सी एक बस के पिछले हिस्से से जा टकराई थी. इत्तिफाक से वह बच गया था, मगर टैक्सी को काफी नुकसान पहुंचा था. लेकिन इस के बाद भी वह अपनी हरकतों से बाज नहीं आया था.

काला का दिमाग और ध्यान कार में बैठी लड़की पर ही लगा था. अचानक

5 महीने पहले की एक घटना याद कर उस के अंदर धीरेधीरे वासना का शैतान जागने लगा.

हुआ यों था कि उस रात वह कुछ सवारियों को रेलवे स्टेशन छोड़ने आया था. रात के तकरीबन साढ़े 11 बज रहे थे. शायद कोई सवारी मिल जाए, इस उम्मीद के साथ वह सवारी मिलने का इंतजार करने लगा था.

कुछ ही देर में उसे एक सवारी मिल गई थी. वह एक लड़की थी और उसे अशोक नगर जाना था. उसे टैक्सी की जरूरत थी. उस ने कई टैक्सी वालों से बात की थी. रेलवे स्टेशन से अशोक नगर काफी दूर था, तकरीबन एक घंटे का रास्ता था.

ज्यादातर टैक्सी वालों ने रात को इतनी दूर जाने से मना कर दिया था. कुछ टैक्सी वाले वहां जाने के लिए तैयार हुए भी, मगर उन्होंने किराया बहुत ज्यादा मांगा.

आखिर में लड़की का सौदा काला से पट गया था. वह लड़की कम उम्र की व खूबसूरत थी. सफर में बोरियत से बचने के लिए लड़की टाइमपास करने की नीयत से काला को ‘अंकल’ पुकार कर बातें करने लगी थी.

काला उस के सवालों के जवाब देने के साथसाथ खुद भी उस के बारे में पूछताछ करने लगा था.

उस लड़की का नाम श्वेता था. वह एक अमीर घर की लड़की थी. श्वेता अपने घर से दूर एक शहर में पढ़ती थी. वहां वह होस्टल में रहती थी. कुछ दिनों की छुट्टियों में वह अपने घर चली आई थी. श्वेता ने अपने आने की खबर घर वालों को नहीं दी थी. अगर वह फोन कर देती, तो उसे स्टेशन पर लेने घर से कार आ जाती.

श्वेता ने जानबूझ नहीं बताया था, क्योंकि अगले दिन उस का जन्मदिन था और वह अचानक अपने घर पहुंच कर घर वालों को चौंका देना चाहती थी.

श्वेता अब तक अपने घर पहुंच भी चुकी होती, अगर ट्रेन 2 घंटे लेट नहीं हुई होती. रात का समय था. जाड़े का मौसम होने की वजह से सड़क पर दूरदूर तक सन्नाटा था.

श्वेता से बात करते हुए काला टैक्सी चला जरूर रहा था, मगर उस का मन कहीं और भटक रहा था. उस के साथ गोरी रंग की जवान और हसीन लड़की थी, जिस के जिस्म से भीनीभीनी मदहोश कर देने वाली खुशबू आ रही थी.

काला पर एक अजीब सा नशा हावी होता जा रहा था. काला ने एक बेहद घटिया और भयानक फैसला कर लिया.

उस रात काला ड्राइवर से दरिंदा बन गया था. उस ने टैक्सी एक सुनसान जगह पर रोक दी थी. इस से पहले कि श्वेता कुछ समझ पाती, काला कार के अंदर ही उस पर टूट पड़ा था. श्वेता तो जैसे एकदम से हैरान ही रह गई थी. उसे काला से ऐसी उम्मीद हरगिज नहीं थी.

श्वेता रोते हुए काला से छोड़ देने के लिए गिड़गिड़ाने लगी थी, पर उस के रोनेगिड़गिड़ाने का असर काला पर नहीं हुआ था. फिर श्वेता रोनागिड़गिड़ाना छोड़ काला का विरोध करने लगी थी.

अचानक काला ने सीट के नीचे रखा चाकू निकाल लिया और बोला था, ‘सुन लड़की, अगर ज्यादा फड़फड़ाएगी तो इसी चाकू से तेरी गरदन काट डालूंगा. इस सुनसान जगह पर कोई तुझे बचाने नहीं आएगा. जान प्यारी है तो जैसा मैं कहता हूं वैसा ही कर.’

श्वेता पर इस धमकी का असर फौरन हुआ था. वह मासूम लड़की मौत के डर से बुत सी बन गई थी.

अपनी इच्छा पूरी करने के बाद काला बेहोशी की हालत में श्वेता और उस के सामान को सड़क के किनारे छोड़ कर रफूचक्कर हो गया था.

आज बहुत दिनों बाद काला को सुनहरा मौका मिला था, जिसे वह हाथ से नहीं जाने देना चाहता था. उस लड़की को अपना शिकार बनाने से पहले काला उस के और उस के घरपरिवार के बारे में जानना चाहता था.

काला ने अपनी तरफ से बातचीत की शुरुआत की, पर लड़की ने उस के किसी भी सवाल का जवाब ‘हां’ या ‘न’ से ज्यादा शब्दों में नहीं दिया.

पहले वाली लड़की श्वेता हंसमुख, चंचल और मिलनसार थी, जबकि यह उस के बिलकुल उलट, गंभीर, मगरूर और नकचढ़ी थी.

काफी सोचनेसमझने के बाद काला ने फैसला किया कि लड़की का संबंध चाहे किसी भी घर से हो, वह उस के साथ मनमानी जरूर करेगा, बाद में चाहे जो कुछ भी होता रहे.

सड़क पर सन्नाटा था. काला मन ही मन लड़की की इज्जत से खेलने का तानाबाना बुनने लगा था. विजय नगर से एक किलोमीटर पहले एक दूसरे शहर को सड़क जाती थी. वह सड़क ज्यादातर सुनसान रहती थी. काला ने टैक्सी उसी सड़क पर मोड़ दी थी.

कार में बैठी लड़की को अपने रास्ते का पता था, इसलिए उस ने फौरन काला से गलत रास्ता होने की बात की, पर काला ने उस की बात अनसुनी कर दी.

खतरा महसूस कर के लड़की विरोध करने लगी, तो काला ने एक जगह टैक्सी रोक दी और सीट के नीचे से चाकू निकाल कर दहाड़ा, ‘‘सुन लड़की, अगर जरा सी भी आनाकानी की तो पेट फाड़ दूंगा.’’

काला की भयानक आंखों में वासना के लाललाल डोरे तैर रहे थे. लड़की को धमकी दे कर काला उस पर टूट पड़ा.

अगले दिन जब काला को होश आया तो अपनेआप को अस्पताल में देख कर वह चौंक पड़ा. दर्द से उस का पूरा बदन दुख रहा था. कल रात के सीन उस के जेहन में घूमे तो उस का पूरा जिस्म कांप उठा. वह 2 बार दरिंदा बना था, एक बार उस दिन जिस दिन उस ने मासूम श्वेता की इज्जत लूटी थी और दूसरी बार कल रात.

कल रात वह दरिंदा बना जरूर था, लेकिन कामयाब नहीं हो सका था, क्योंकि कल रात वाली लड़की पहले वाली लड़की की तरह कमजोर नहीं थी. वह लड़की मुक्केबाजी और कराटे में माहिर थी. उस लड़की ने काला को बहुत पीटा था.

लड़की ने एक जोरदार लात काला की दोनों टांगों के बीच मारी थी. इस

के बाद उसे कुछ होश नहीं था. वह अस्पताल कैसे पहुंचा? कब पहुंचा और किस ने पहुंचाया? इस का उसे कुछ पता नहीं था.

काला ने डाक्टरों से जब यह खबर सुनी तो मानो उस की जान ही निकल गई. डाक्टरों ने उसे बताया कि उन्होंने उस की जान तो बचा ली, मगर अब वह कभी दरिंदा नहीं बन सकता था, क्योंकि टांगों के बीच चोट लग जाने से वह हमेशा के लिए नामर्द बन चुका था.

दहशत- भाग 4: क्या सामने आया चोरी का सच

कुछ देर के बाद गौरव ने प्रीति को फोन किया. ‘‘एक प्रौब्लम हो गई है प्रीतिजी, खाना तो सब तैयार है लेकिन उसे परोसेंगे किस में? आप बुरा न मानें तो खाना यहीं मंगवा लूं मगर मेरे पास भी बरतन नहीं हैं, आप के यहां ही आना पड़ेगा.’’

‘‘तो आइए न डा. राघव और दूसरे मेहमानों से भी मेरी ओर से आने का आग्रह कीजिए.’’ ‘‘दूसरे मेहमान हमारे सीनियर डाक्टर थे, सो उन्हें असलियत बता कर राघव ने माफी मांग ली है. जो डाक्टर राघव के साथ रहते हैं उन दोनों की आज नाइट शिफ्ट है. सो, बस राघव ही आएगा. माफ करिएगा, मेहमान के बजाय आप को मेजबान बना रहा हूं.’’

‘‘माई प्लैजर डाक्टर, डू कम प्लीज.’’ कुछ देर के बाद गौरव और राघव राजू के साथ खाने का सामान उठाए हुए आ गए.

‘‘राजू को रोक लें, खाना गरम कर के सर्व कर देगा?’’

‘‘हां, फिर खुद भी खा लेगा. चलो, राजू तुम्हें बता दूं कि कहां क्या रखा है.’’ राजू को सब समझा कर प्रीति भुने पिस्ते और काजू ले कर आई, ‘‘जब तक राजू सूप गरम कर के लाता है तब तक इस से टाइमपास करते हैं.’’ ‘‘गुड आइडिया,’’ राघव ने पिस्ते उठाते हुए कहा, ‘‘वैसे आप दोनों ने इस कालोनी के लोगों को कई रोज के लिए टाइमपास का जरिया दे दिया.’’ लेकिन हंसने के बजाय प्रीति ने गंभीरता से कहा, ‘‘टाइमपास से ज्यादा बात फिक्र करने की है. आज जो हुआ है उस से तो लग रहा है कि चोर कालोनी में ही रहता है.’’ ‘‘वह तो आप के साथ हुए हादसे से ही पता चल गया था,’’ गौरव ने गौर से उस की ओर देखा. वह सहमी हुई सी लग रही थी.

‘‘आज भी उस ने यह हरकत की और मौका लगते ही फिर कर सकता है,’’ राघव बोला.

‘‘यानी हमें बहुत संभल कर रहना पड़ेगा. शुंभ से कहती हूं कोई फुलटाइम नौकरानी तलाश करे मेरे लिए जो रात में भी मेरे यहां रहे,’’ प्रीति ने चिंतित स्वर में कहा. ‘‘यह ठीक रहेगा, इस से आप का अकेलापन भी दूर होगा,’’ गौरव ने प्रीति के मनोभाव पढ़ने की कोशिश की, ‘‘थकेहारे काम से खाली घर में लौटने पर थकान और बढ़ जाती है.’’

‘‘यू कैन से दैट अगेन,’’ प्रीति ने उसांस ले कर कहा.

‘‘अकेलेपन से परेशानी है तो अकेलापन दूर करने का स्थायी प्रबंध क्यों नहीं करते आप दोनों…’’

‘‘क्यों, आप को अकेलेपन से परेशानी नहीं है?’’ प्रीति ने राघव की बात काटी.

‘‘होनी शुरू हो गई थी तभी तो मधु से उस की पढ़ाई खत्म होने से पहले ही शादी कर ली. वह लखनऊ में एमडी कर रही है, चंद महीनों में पूरी कर के यहां आएगी.’’

‘‘और तब राघव के घर में चलने वाला हमारा मैस बंद हो जाएगा,’’ गौरव ने कहा.

‘‘तो अपने घर में चला लीजिएगा, आप के 2 साथी और भी तो हैं.’’ इस से पहले कि गौरव प्रीति के सुझाव पर प्रतिक्रिया व्यक्त करता, राजू सूप ले कर आ गया और विषय बदल गया.

‘‘अच्छा लगा आप से मिल कर,’’ राघव ने चलने से पहले कहा, ‘‘मधु की मुलाकात करवाऊंगा आप से.’’

‘‘जरूर, उन की वैलकम पार्टी यहीं रख लेंगे, क्यों गौरव?’’

‘‘दैट्स एन आइडिया,’’ गौरव फड़क कर बोला. प्रीति के मुंह से अपना नाम सुन कर वह अभिभूत हो गया था. किसी भी तरह इस अनौपचारिकता को आगे बढ़ाना होगा. उसे राघव पर भी गुस्सा आया. क्यों उस ने राजू से टेबल और किचन साफ करवा दिया वरना इसी बहाने प्रीति की मदद करने को वह कुछ देर और रुक जाता. अब तो खैर जाना ही पड़ेगा मगर जल्दी ही कोई और मौका ढूंढ़ना होगा. और मौका अगले रोज ही मिल गया. सोसायटी के क्लबहाउस में शाम को इमरजैंसी मीटिंग रखी गई थी जिस में प्रत्येक फ्लैट से एक सदस्य का आना अनिवार्य था. गौरव ने प्रीति को फोन किया. ‘‘जिन हादसों से घबरा कर मीटिंग रखी गई है उन के शिकार तो हम दोनों ही हैं तो हमारा जाना तो जरूरी है. आप चल रही हैं?’’

‘‘जी हां, और आप?’’

‘‘मैं भी चल रहा हूं. इकट्ठे ही चलते हैं.’’ गौरव ने सोचा तो था कि इकट्ठे ही बैठेंगे मगर लिफ्ट में वर्मा दंपती भी मिल गए, प्रीति श्रीमती वर्मा के साथ चलते हुए उन्हीं के साथ ही अन्य महिलाओं के पास बैठ गई. प्रीति से तो किसी ने कुछ नहीं पूछा लेकिन गौरव की स्वयं की लापरवाही मानने पर भूषणजी ने कहा कि ऐसी गलती किसी से भी हो सकती है, सो बेहतर होगा कि पहले माले की सभी बालकनियों में ऊपर तक ग्रिल लगवा दी जाए और हरेक बिल्डिंग के गेट पर सीसीटीवी कैमरा. अधिकांश लोगों ने तो प्रस्ताव का अनुमोदन किया और कुछ ने महंगाई के बहाने अतिरिक्त खर्च का विरोध किया मगर सुरक्षा का कोई दूसरा विकल्प न होने से प्रस्ताव सर्वसम्मति से पास हो गया और मीटिंग खत्म. गौरव ने सुना, कुछ महिलाएं प्रीति से कह रही थीं, ‘‘चोर के बहाने उस रोज आप के यहां बढि़या पकौड़े खाने को मिल गए.’’

‘‘पकौड़ों की दावत तो आप को जब चाहे दे सकती हूं.’’ ‘‘मगर उस से पहले आप को हमारे यहां आना पड़ेगा,’’ किसी ने कहा. ‘‘बुध को मेरे यहां किटी पार्टी है न, उस में प्रीति को बुला लेते हैं,’’ श्रीमती वर्मा बोलीं, ‘‘हमारी खातिर एक रोज छुट्टी कर लेना प्रीति.’’

‘‘आप पार्टी का समय बता दीजिए, मैं आ जाऊंगी और पार्टी खत्म होने पर फिर औफिस चली जाऊंगी,’’ प्रीति हंसी.

‘‘ऐसी बात है तो आप हमारी किटी जौइन कर लीजिए न. महीने में 1 बार कुछ घंटों का बंक मारना तो चलता है.’’ ‘‘देखते हैं,’’ प्रीति ने वर्मा दंपती के साथ चलते हुए कहा. कुछ दूर जा कर वर्मा दंपती एक और बिल्ंिडग में चले गए और गौरव लपक कर प्रीति के साथ आ गया.

‘‘आप डा. राघव के साथ नहीं गए?’’

‘‘उस के साथ जा कर क्या करता? वह तो अभी मधु से चैट करेगा. खाना तो हम लोग 9 बजे के बाद खाते हैं.’’

‘‘अभी घर जा कर क्या करेंगे?’’

‘‘चैनल सर्फिंग, जब तक कुछ दिलचस्प न मिल जाए. आप क्या करेंगी?’’

‘‘वही जो आप करेंगे. उस से पहले आप को कौफी पिला देती हूं.’’

‘‘जरूर,’’ गौरव मुसकराया.

‘‘चोर के बहाने आप की तो कालोनी में जानपहचान हो गई, किटी पार्टी में जाने से और भी हो जाएगी,’’ गौरव ने कौफी पीते हुए प्रीति की ओर देखा, ‘‘खाली समय आसानी से कट जाया करेगा.’’ प्रीति के अप्रतिभ चेहरे से लगा जैसे चोरी करती रगेंहाथों पकड़ी गई हो. ‘‘उन महिलाओं का जो खाली समय होगा तब मुझे फुरसत नहीं होगी और जब मैं खाली हूंगी तो वे अपने घरपरिवार में व्यस्त होंगी,’’ प्रीति ने एक गहरी सांस खींची, ‘‘वैसे जानपहचान तो आप से भी हो गई है.’’ ‘‘और मेरे पास तो शाम को खाली वक्त भी होता है. अस्पताल से 7 बजे छुट्टी मिल जाती है. कई बार घर आ कर 9 बजे तक टाइम गुजारना मुश्किल हो जाता है. ऐसे में कभी फोन कर सकता हूं?’’ गौरव ने मौका लपका.

‘‘औफिस से जल्दी निकलने पर अकसर मैं मैडिटेशन सैंटर चली जाती हूं. सो, हो सकता है तब आप को मेरा मोबाइल बंद मिले.’’

‘‘अपने घर में सन्नाटा कम है क्या जो शांति की तलाश में मैडिटेशन सैंटर जाती हैं?’’ गौरव हंसा.

‘‘अपने पास जो होता है उस की कद्र कौन करता है?’’ प्रीति भी हंसने लगी.

‘‘यह तो है, पहले बंधन और रिश्तों से बचने के लिए अपनों को नकारते हैं और फिर भीड़ में भी अकेले रह जाते हैं.’’

‘‘सही कहा आप ने, अपनों की भीड़ तो चौराहों से अपनी राह चली जाती और आप तनहा खड़े रह जाते हैं खुद की बनाई बंद गली में.’’ ‘बंद ही नहीं, अंधेरी गली में जिस की घुटन से घबरा कर आप ने खुद सामान को गिरा कर एक काल्पनिक चोर का निर्माण किया था और दहशत का माहौल बना दिया था जिस की सचाई जानने को मैं ने अपनी और राघव की क्रौकरी तोड़ी, पहली मंजिल से कूदने का रिस्क लिया. भले ही इस सब से कालोनी वालों का आजकल के माहौल के किए उपयुक्त सुरक्षा मिल गई और आप को थोड़ी बहुत दोस्ती,’  गौरव ने कहना चाहा मगर यह सोच कर चुप रहा कि अभी यह कहना बहुत जल्दबाजी होगी. कोशिश तो यही रहेगी कि ये सब बगैर बताए ही प्रीति के करीब आ कर उस की और अपनी जिंदगी से अकेलेपन की वीरानगी और दहशत हमेशा के लिए दूर कर दें.

शक की निगाह: नीरा की बेटी ने क्या किया था

शाम को औफिस से घर आया तो पत्नी का उतरा हुआ चेहरा देख कर कुछ न कुछ गड़बड़ होने का अंदेशा हो गया. बिना कुछ पूछे मैं हाथमुंह धोने के लिए बाथरूम में चला गया. वापस आया तो नीरा चाय ले कर बैठी मेरा इंतजार कर रही थी. चाय के कप के साथ ही मैं ने अपनी प्रश्नवाचक निगाह उस के चेहरे पर टिका दी. प्रश्न स्पष्ट था, ‘‘क्या हुआ?’’ ‘‘सामने वाले फ्लैट को रामवीर सहायजी ने स्टूडैंट्स को किराए पर दे दिया है,’’ नीरा के स्वर में झल्लाहट और रोष दोनों ही टपक रहे थे. ‘‘यह तो बहुत ही अच्छा हुआ. इतने महीने से फ्लैट खाली पड़ा हुआ था, अब चहलपहल रहेगी. वैसे भी जहां स्टूडैंट्स रहते हैं वहां चौबीसों घंटे रौनक रहती है. न कभी रात होती है न कभी दिन. एक सोता है तो दूसरा जागता है. पर तुम इतना परेशान क्यों हो रही हो?’’ मैं ने पूछा तो नीरा बिफर पड़ी, ‘‘तुम आदमियों का दिमाग तो जैसे घुटने में रहता है. आजकल के लड़के पढ़ाई के नाम पर घरों से दूर रह कर क्याक्या गुल खिलाते रहते हैं, क्या कभी सुना नहीं? मांबाप सोचते हैं उन का बेटा दिनरात एक कर के पढ़ाई में लगा होगा जबकि लड़के उन के पैसों पर गुलछर्रे उड़ाते रहते हैं.’’

‘‘मुझे समझ नहीं आ रहा नीरा, बच्चे किसी और के हैं, पैसे किसी और के हैं, पर परेशान तुम हो रही हो. आखिर वजह क्या है, साफसाफ बताओ.’’ ‘‘तुम्हारी तो, जब तक साफसाफ न बताओ तब तक, कोई बात समझ में ही नहीं आती. अपने घर में 3-3 जवान होती बेटियां हैं. हम दोनों पतिपत्नी सुबह ही औफिस निकल जाते हैं और घर के ठीक सामने जवान होते लड़के आ कर बस गए. चिंता न करूं तो क्या करूं?’’ ‘‘देखो नीरा, वे लड़के पराए हैं पर बेटियां तो अपनी हैं. उन्हें तो हम ने अच्छे संस्कार दिए हैं. फिर उन लड़कों के बारे में बिना कुछ जानेसमझे गलत धारणा बनाना भी ठीक नहीं है. अब चिंता छोड़ो और जाओ, अपना काम करो,’’ कह कर मैं पेपर पढ़ने लगा.

‘‘देखोजी, जवान लड़केलड़कियां आग और फूस के समान होते हैं. आसपास रहेंगे तो कभी भी आग पकड़ लेने का अंदेशा बना रहता है. तुम या तो सहायजी से कहो कि लड़कों के बजाय किसी परिवार वाले को घर दे दें, या तुम ही कोई दूसरा घर देखो. हमें नहीं रहना अब यहां.’’ सोते वक्त भी नीरा घर बदलने पर विचार करने की हिदायत देने लगी. मुझे आंखकान खुले रखने और लड़कों को मुंह न लगाने को कह कर नीरा तो सो गई पर मैं सोचने लगा कि क्या सचमुच बात इतनी चिंता करने लायक है जितनी नीरा कर रही है. यह सच है कि आजकल अच्छेबुरे दोनों तरह के लोग होते हैं पर बिना किसी से मिले, समझे उस के बारे में यह धारणा बना लेना कि वे बुरे ही हैं और यहां पढ़ने नहीं गुलछर्रे उड़ाने आए हैं, सरासर गलत है. फिर वे भले ही पराए हैं पर हमें अपनी बेटियों पर तो विश्वास करना ही चाहिए. आखिर उन्हें तो हम ने ही संस्कार दिए हैं.

फिर भी मैं कल उन लड़कों से मिलूंगा और निर्णय पर पहुंचूंगा कि हमें आगे उन के साथ किस तरह का संबंध बना कर रखना है. दूसरे दिन रविवार था, मैं ने जानबूझ कर बाहर का दरवाजा खुला छोड़ दिया और वहीं कुरसी डाल कर पेपर पढ़ने बैठ गया. उन लड़कों को अपने काम से अंदरबाहर आतेजाते देखता रहा. इस दौरान उन्होंने एक बार भी अनायास घर में ताकझांक करने की कोशिश नहीं की. जब मेरी नजर एक लड़के से मिली तो उस ने ‘अंकल नमस्ते’ कह कर मेरा अभिवादन किया, तो मैं ने भी मौका हाथ से जाने न दिया, ‘‘अरे बच्चो आओ, हमारे साथ एकएक कप चाय पीओ, इसी बहाने हम लोग एकदूसरे के बारे में भी जानसमझ लें.’’ मैं ने नीरा से पूछे बगैर ही उन लड़कों को चाय पीने के लिए बुला लिया.

मुझे पता था नीरा को यह बिलकुल नागवार गुजरा होगा कि मैं ने उन लड़कों को घर में ही बुला लिया. इसीलिए मैं ने नीरा को कोई औपचारिक सूचना देने के बजाय चुपचाप पेपर पढ़ते रहने में ही अपनी भलाई समझी. इस बात का विश्वास भी था कि लड़कों के आने पर चाय के साथ कुछ नाश्ता भी ले कर अपनेआप ही आ जाएगी नीरा. हुआ भी वही. एकएक कर के पांचों लड़के अंकल नमस्ते कहते हुए आ कर बैठ गए. थोड़ी ही देर में नीरा भी चाय की ट्रे ले कर आ गई. मुझे आश्चर्य भी हुआ देख कर कि सुबह के नाश्ते में बनाया हुआ पोहा पांचों लड़कों के बीच बांट दिया था नीरा ने. हम ने उन से बातोंबातों में उन के पूरे खानदान की जानकारी हासिल कर ली. और होनीअनहोनी पर तुरंत संपर्क कर सकूं इस का हवाला दे कर मैं ने उन पांचों के घरों का पता और फोन नंबर भी नोट कर लिए.

उसी समय उन के सामने ही एकएक के घर फोन मिला कर मैं ने बात भी कर ली. मेरे इस आश्वासन से कि मैं उन के बच्चों का एक अभिभावक की तरह खयाल रखूंगा, वे लोग बहुत ही आभारी होने लगे. सभी से बात कर के मैं पूरी तरह आश्वस्त हो गया कि बच्चे संस्कारी व सुशिक्षित घरों के हैं और यहां पर सचमुच प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने ही आए हैं. कुछ आश्वस्त तो नीरा भी हुई पर पता नहीं पिता की तुलना में मां बच्चों के प्रति ज्यादा शंकालु होती हैं या पिता से ज्यादा बच्चों को प्यार करती हैं कि हर वक्त उन की सुरक्षा को ले कर चिंतित रहती हैं. नीरा ने बेटियों पर कई तरह की बंदिशें लगा डालीं, जैसे जोरजोर से ठहाके न लगाओ, अनायास बालकनी में न खड़ी हो, बाहर का सिर्फ जाली वाला ही नहीं लकड़ी वाला दरवाजा भी हमेशा बंद रखा करो आदि.

समय के साथसाथ सबकुछ सामान्य ढंग से चलता रहा. लड़के घर पर कम ही रहते. सारा दिन कोचिंग सैंटर में होते. घर आते तो सो जाते और फिर रात को जग कर पढ़ाई करते. हमारे जीवन में तथा हमारी दिनचर्या में उन के होने, न होने का कोई फर्क नहीं पड़ा. हां, कुछ तकनीकी बातों जैसे इंटरनैट, मोबाइल आदि की खास समस्याओं के लिए हम उन पर निर्भर हो गए थे और वे भी आम पड़ोसियों की तरह कभीकभार चायपत्ती, चीनी या 1-2 आलूटमाटर के लेनदेन से ज्यादा और कुछ दखलंदाजी नहीं करते. कल को हमारा छोटा सा बेटा बड़ा होगा और वह भी कहीं न कहीं पढ़ने या नौकरी करने बाहर जाएगा ही, तब कोई उस के साथ अच्छी तरह पेश आए, हम यही चाहेंगे, इसीलिए मैं उन लड़कों के साथ और भी अच्छी तरह व्यवहार करता.

मेरे अलावा नीरा की भी शंका उन लड़कों के प्रति कम हो ही रही थी कि एक दिन रात के 2 बजे घर में कुछ हलचल सी सुनाई दी तो मैं और नीरा घबरा कर अपने कमरे से बाहर निकले. देखा तो हमारी बड़ी और छोटी बेटियां घबराई हुई सी खड़ी थीं. बाहर का दरवाजा खुला था और सामने वाले फ्लैट में भी कुछ असामान्य सी हलचल दिख रही थी. ‘‘क्या हुआ? तुम दोनों इतनी घबराई हुई क्यों हो और स्नेहा और सौरभ कहां हैं?’’ हम दोनों ने एकसाथ ही सारे सवाल पूछ डाले. ‘‘मां, पापा, सौरभ तो सो रहा है पर स्नेहा घर में नहीं है. मैं अभी वाशरूम जाने के लिए उठी तो देखा दरवाजा खुला है, और स्नेहा नहीं है.’’ हमारे तो पैरों तले से जमीन ही खिसक गई, ‘‘दिखा ही दिया इन शरीफजादों ने अपना रंग,’’ कह कर नीरा सोफे पर निढाल पड़ गई. मैं दौड़ता हुआ बाहर की ओर भागा. लड़कों के फ्लैट का दरवाजा भी खुला हुआ था. मैं अपने वश में नहीं रह गया था. चीखते हुए मैं उन के घर में घुस गया. पांचों में से 3 लड़के सामने ही खड़े थे और वे खुद भी परेशान लग रहे थे. ‘‘विनय और राहुल कहां हैं?’’ मैं ने चीखते हुए पूछा. ‘‘जी, अंकल, वे अभीअभी गए हैं, बस आते ही होंगे,’’ वे तीनों एकसाथ बोल पड़े. ‘‘कहां ले कर गए हैं वे मेरी बेटी को? मुझे जल्दी बताओ वरना मैं तुम सब को पुलिस के हवाले कर दूंगा,’’ मैं अपना आपा खोता जा रहा था. ‘‘अंकल, वे स्नेहा को ले कर नहीं गए हैं, आप को गलतफहमी हो रही है.’’ ‘‘गलतफहमी हो रही है? अगर वे स्नेहा को ले कर नहीं गए हैं तो तुम्हें कैसे पता कि स्नेहा कहीं गई है? हम ने तो नहीं बताया तुम्हें कि स्नेहा घर में नहीं है.’’

जिन लड़कों को मैं अपनी पत्नी की इच्छा के विरुद्ध जा कर मानसम्मान और स्नेह दे रहा था उन्होंने आज मेरे मुंह पर ऐसी कालिख पोत दी, सोच कर मेरा आत्मनियंत्रण समाप्त होता गया और मैं ने पास पड़ा बैट उठा कर उन के ऊपर बरसाना शुरू कर दिया. अचानक उन लड़कों के तेवर बदल गए. उन्होंने मेरे हाथ से बैट छीन कर फेंक दिया. ‘‘अंकल, अभी तक हम आप के आदरवश चुप थे. आप के सम्मान की खातिर हमारा दोस्त अपनी जान की परवा किए बिना ही इस समय यहां से गया हुआ है और आप उस पर ही शक कर रहे हैं? हमें ही दोषी ठहरा रहे हैं? आंटी ने हमेशा हमें ही शक की निगाह से देखा पर कभी अपनी बेटियों पर भी निगरानी रखी? अगर निगरानी रखी होती तो यह दिन नहीं आता. स्नेहा विनय या राहुल के साथ नहीं भागी है, बल्कि किसी और के साथ गई है, पर आप चिंता न कीजिए. विनय और राहुल उसे वापस ले कर आते ही होंगे.’’

उन की बात सुन कर मैं असमंजस में पड़ गया कि ये सच बोल रहे हैं या झूठ. पर तभी पीछे से नीरा दहाड़ी, ‘‘इन की झूठी बातों में मत आइए. ये सब इन की साजिश का हिस्सा है. ये हमें ऐसे ही उलझा कर तब तक रखना चाहते हैं जब तक वेदोनों स्नेहा को ले कर दूर न निकल जाएं. आप तुरंत पुलिस को फोन लगाइए वरना हम कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं रह जाएंगे,’’ नीरा जोरजोर रोए जा रही थी. ‘‘प्लीज अंकल, आप हमारी बात पर यकीन कीजिए. पुलिस को बुला लेंगे तो बात सभी को पता चल जाएगी. स्नेहा तो बदनाम होगी ही, आप सब का भी घर से निकलना मुश्किल हो जाएगा. आप बस थोड़ी देर हमारी बात का यकीन कीजिए. अगर 10 मिनट तक वे स्नेहा को ले कर वापस नहीं आ जाते हैं तो आप को जो दिल आए करिएगा. पर अभी बस हमारी इस बात का यकीन करिए कि राहुल और विनय स्नेहा को भगा कर नहीं ले गए हैं बल्कि उसे किसी और के साथ इस समय जाता देख वापस ले आने के लिए गए हैं.’’

हालांकि मेरी सोचनेसमझने की शक्ति पूरी तरह खत्म हो चुकी थी फिर भी उन लड़कों की बात पर यकीन कर कुछ देर इंतजार कर लेने में ही मैं ने भलाई समझी. पुलिस के आने से सिवा बदनामी और बात के बतंगड़ के अलावा और कुछ हासिल नहीं होना था. मैं घड़ी देखता, चहलकदमी करने लगा.

नीरा और बच्चे अंदरबाहर करते रहे. ‘‘अंकल, आप सब को पता है कि हम सब रात को जग कर पढ़ाई करते हैं. पिछले कई दिनों से हम स्नेहा को अपनी बालकनी में धीरेधीरे फोन पर बात करते हुए देखते थे पर हम ने ज्यादा ध्यान नहीं दिया. ‘‘इधर 2-3 दिनों से 2 लड़कों को रात को बिल्ंिडग के आसपास चक्कर लगाते देख हमें कुछ शक हो रहा था. हम आप से बात करें या न करें, और आप हमारी बातों का यकीन करेंगे या नहीं, हम सब आपस में यह विचारविमर्श कर ही रहे थे कि अचानक जब विनय चाय पीने के लिए बालकनी में निकला तो उसे नीचे 2 लड़कों के साथ एक लड़की दिखी. उस ने ध्यान से देखा तो वह स्नेहा ही लगी. विनय चाय का कप अंदर रख कर तुरंत उन के पीछे भागा. जाते वक्त सिर्फ इतना ही बोला, ‘शायद स्नेहा कहीं जा रही है, मैं उसे ले कर आता हूं,’ उसे अकेला जाता देख राहुल भी पीछेपीछे भागा. चूंकि सबकुछ अस्पष्ट था, वह स्नेहा ही है या कोई और थी? यह भी पक्का नहीं था, इसलिए हम आप को जगा कर क्या बताएं, बताएं या नहीं, यह सोच ही रहे थे कि आप सब स्वयं जग गए.

‘‘अंकल, आप लोगों ने इस अनजान शहर में हमें जितना स्नेह और संरक्षण दिया है उस के बदले में हमें अपनी जान की बाजी लगा कर भी आप लोगों के सम्मान की रक्षा करनी पड़े तो कम है. हमें पता है कि स्नेहा का कोई बड़ा भाई नहीं है, ऐसे में बड़े भाई का कर्तव्य हमें ही निभाना है.’’ उन की बातें पूरी भी नहीं हुई थीं कि राहुल और विनय वापस आ गए. उन के साथ डरीसहमी सी स्नेहा भी खड़ी थी. विनय ने उस का हाथ जोर से पकड़ रखा था, ‘‘अंकल, स्नेहा किसी सड़कछाप के साथ जा रही थी कहीं, मैं ने आज इसे न जाने कितने चांटे मारे हैं. मुझे माफ कर दीजिएगा. मैं अपने पर नियंत्रण न रख सका. जो पिता अनजान, अपरिचित बच्चों पर इतना प्यार न्योछावर करता हो उस पिता की बेटी ने उन के मुंह पर कालिख पोतने से पहले जरा भी न सोचा. बस, यही सोच कर मैं अपना आपा खो बैठा था. मुझे अफसोस है तो बस इस बात का कि इस की हरकतों पर शक होते ही मैं ने एक बड़े भाई की भूमिका अदा करने में देर कर दी. अगर मैं ने उसी वक्त इसे थप्पड़ मार दिया होता तो आज न यह इतनी बड़ी गलती करती और न आप लोगों को शर्मिंदा करती.’’

उन लड़कों को धन्यवाद, शुक्रिया कहने के लिए न तो हमारे पास शब्द थे न ही जबान. हम स्नेहा को सहीसलामत ले कर घर में आ गए. दिनचर्या धीरेधीरे फिर सामान्य होने लगी. सबकुछ पूर्ववत चलने लगा. बदलाव बस इतना आया कि नीरा अब उन लड़कों के बजाय अपनी बेटियों को शक की निगाह से देखने लगी. पहले उन लड़कों से सामना हो, वह नहीं चाहती थी और अब उन का सामना कैसे करेगी, यह सोच कर परेशान रहने लगी.

अधूरी मौत- भाग 5: शीतल का खेल जब उस पर पड़ा भारी

‘‘ठीक है, बताओ कहां मिलना है?’’ शीतल ने पूछा, ‘‘मैं भी इस डरडर के जीने वाली जिंदगी से परेशान हो गई हूं.’’ शीतल ने कहा.

‘‘शहर के बाहर सुनसान पहाड़ी पर जो टीला है, उसी पर मिलते हैं, आखिरी बार.’’ अनल बोला,  ‘‘दोपहर 12 बजे.’’

‘‘ठीक है मैं आती हूं.’’ शीतल बोली.

शीतल अब निश्चिंत हो गई. वह सोचने लगी, इस स्थिति से कैसे निपटा जाए. अगर वह सचमुच एक आत्मा हुई तो..? अरे उस ने खुद ने ही तो बता दिया है कि जहां भगवान होते हैं, वहां वह ठहर ही नहीं सकता. मतलब भगवान को साथ ले जाना होगा. और अगर वह खुद कोई फ्रौड हुआ, तो अपनी आत्मरक्षा के लिए रिवौल्वर साथ ले जाऊंगी. शीतल ने निर्णय लिया.

सुबह उठ कर उस ने अपने दोनों हाथों की कलाइयों, बाजुओं, गले यहां तक कि कमर में भी भगवान के फोटो वाली लौकेट पहन लिए, ताकि वह आत्मा उसे छूने से पहले ही समाप्त हो जाए. साथ ही रिवौल्वर भी अपने पर्स में रख ली.

ड्राइवर आज छुट्टी पर था. उस ने खुद गाड़ी चलाने का निर्णय लिया. वह निर्धारित समय से 15 मिनट पहले ही सुनसान पहाड़ी पर पहुंच गई. लेकिन अनल उस से भी पहले से वहां पहुंचा हुआ था.

‘‘ऐसा लगता है, तुम सुबह से ही यहां आ गए हो.’’ शीतल अनल की तरफ देखते हुए बोली.

‘‘शीतू, मैं तो रात से ही तुम्हारे इंतजार में बैठा हूं.’’ अनल बोला.

‘‘कौन सी इच्छा पूरी करना चाहते हो अनल?’’ शीतल अपने आप को संभालती हुई बोली.

‘‘बस एक ही इच्छा है, जो मैं मर कर भी नहीं जान पाया…’’ अनल थोड़ा रुकता हुआ बड़ी संजीदगी से बोला, ‘‘…कि तुम ने मुझे उस ऊंची पहाड़ी से धक्का क्यों दिया? इस का जवाब दो, इस के बाद मैं सदासदा के लिए तुम्हारी जिंदगी से दूर चला जाऊंगा.’’

‘‘हां, तुम्हें यह जवाब जानने का पूरा हक है. और यह सुनसान जगह उस के लिए उपयुक्त भी है. अनल तुम तो मेरी पारिवारिक स्थिति अच्छी तरह से जानते ही हो. मैं बचपन से बहनों के उतारे हुए पुराने कपड़े और बचीखुची रोटियों के दम पर ही जीवित रही हूं. लेकिन किस्मत ने मुझे उस मोड़ पर ला कर खड़ा कर दिया, जहां मेरे चारों ओर खानेपीने और पहनने ओढ़ने की बेशुमार चीजें बिखरी पड़ी थीं.

‘‘यह सब वे खुशियां थीं जिस का इंतजार मैं पिछले 23 साल से कर रही थी. एक तुम थे कि मुझे मां बनाने पर तुले थे. और मैं जानती थी, एक बार मां बनाने के बाद मेरी सारी इच्छाएं बच्चे के नाम पर कुरबान हो जातीं. और यह भी संभव था कि एक बच्चे के 3-4 साल का होने के बाद मुझ से दूसरे बच्चे की मांग की जाती.

‘‘अब तुम ही बताओ मेरी अपनी सारी इच्छाओं का क्या होता? क्या बच्चे और परिवार के नाम पर मेरी ख्वाहिशें अधूरी नहीं रह जातीं?

‘‘मैं अपनी इच्छाओं को किसी के साथ भी बांटना नहीं चाहती थी. न तुम्हारे साथ न बच्चों के साथ. मैं भरपूर जिंदगी जीना चाहती हूं सिर्फ अपने और अपने लिए.

‘‘उस पहाड़ी को देखते ही मैं ने मन ही मन योजना बना ली थी. इसी कारण स्टाइलिश फोटो के नाम पर ऐसा पोज बनवाया, जिस से मुझे धक्का देने में आसानी हो.’’

शीतल ने अपनी योजना का खुलासा किया, ‘‘मैं अब तक इस बात को भी अच्छी तरह से समझ चुकी हूं कि तुम कोई आत्मा नहीं हो. लेकिन मैं तुम्हें इसी पल आत्मा में तब्दील कर दूंगी.’’ कहते हुए शीतल ने अपने पर्स से रिवौल्वर निकालते हुए कहा, ‘‘हां, तुम्हारी लाश पुलिस को मिल जाएगी, तो मुझे बीमे का क्लेम भी आसानी से मिल जाएगा.’’ शीतल ने आगे जोड़ा.

‘‘देखो शीतल, दोबारा ऐसी गलती मत करो. तुम्हारे पीछे पुलिस यहां पर पहुंच ही चुकी है.’’ अनल शीतल को चेताते हुए बोला.

‘‘मूर्ख, मुझे छोटा बच्चा समझ रखा है क्या? तुम कहोगे पीछे देखो और मैं पीछे देखूंगी तो मेरी पिस्तौल छीन लोगे.’’ शीतल कातिल हंसी हंसते हुए बोली.

शीतल गोली चलाती, इस से पहले ही उस के पैर के निचले हिस्से पर किसी भारी चीज से प्रहार हुआ.

‘‘आ आ आ मर गई… ’’ कहते हुए शीतल जमीन पर गिर गई और हाथों से रिवौल्वर छूट गई. उस ने पीछे पलट कर देखा तो सचमुच में पुलिस खड़ी थी और साथ में वीर भी था.

‘‘आप का कंफेशन लेने के लिए ही यह ड्रामा रचा गया था मैडम. इस सारे घटनाक्रम की वीडियोग्राफी कर ली गई है. अनल ने कपड़ों में 3-4 स्पाइ कैमरे लगा रखे थे.’’ इंसपेक्टर ने कहा, ‘‘आप को कुछ जानना है?’’

‘‘हां इंसपेक्टर, मैं यह जानना चाहती हूं कि अनल का भूत कैसे पैदा किया गया? वह मेरी गैलरी में कैसे चढ़ा और उतरा? वह मेरे अलावा किसी और को दिखाई क्यों नहीं दिया?’’ शीतल ने अपनी जिज्ञासा रखी.

‘‘यह वास्तव में ठीक उसी तरह का शो था जैसा कि कई शहरों में होता है. लाइट एंड साउंड शो के जैसा लेजर लाइट से चलने वाला. इस की वीडियो अनल व वीर ने ही बनाई थी और इस का संचालन आप के बंगले के सामने बन रही एक निर्माणाधीन बिल्डिंग से किया जाता था.’’ इंसपेक्टर ने बताया, ‘‘और आप के ड्राइवर और चौकीदार तो बेचारे इस योजना में शामिल हो कर आप के साथ नमकहरामी नहीं करना चाहते थे. लेकिन जब उन्हें थाने बुलाया और पूरा मामला समझाया गया तो वह साथ देने को तैयार हो गए. ड्राइवर की आज की छुट्टी भी इसी पटकथा का एक हिस्सा है.’’

‘‘पहाड़ी पर इतनी ऊंचाई से गिरने के बाद भी अनल बच कैसे गया?’’ शीतल ने हैरानी से पूछा.

‘‘यह सारी कहानी तो मिस्टर अनल ही बेहतर बता सकेंगे.’’ इंसपेक्टर ने कहा.

‘‘शीतल, मैं 50 मीटर लुढ़कने के बाद खाई में उगे एक पेड़ पर अटक गया. इतना लुढ़कने और कई छोटेबड़े पत्थरों से टकराने के कारण मैं बेहोश हो गया. तुम ने लगभग 100 मीटर दूर पुलिस को घटनास्थल बताया. तुम चाहती थी कि मेरी लाश किसी भी स्थिति में न मिले.

‘‘पहले दिन पुलिस तुम्हारे बताए स्थान पर ढूंढती रही, मगर अंधेरा होने के कारण चली गई. लेकिन दूसरे दिन पुलिस ने उस पूरे इलाके में सर्चिंग की तो मैं एक पेड़ पर अटका हुआ बेहोश हालत में दिखाई दिया. चूंकि यह स्थान तुम्हारे बताए गए स्थान से काफी दूर और अलग था, अत: पुलिस को तुम पर शक पहले दिन से ही हो गया था. और वह मेरे बयान लेना चाहती थी. पुलिस ने तुम्हें बताए बिना मुझे अस्पताल में भरती करवा दिया. कुछ समय बेहोश रहने के बाद मैं कोमा में चला गया.

‘‘लगभग एक महीने के बाद मुझे होश आया और मैं ने अपना बयान पुलिस को दिया. तुम से गुनाह कबूल करवाना मुश्किल था, इसीलिए पुलिस से मिल कर यह नाटक करना पड़ा.’’ अनल ने बताया.

‘‘चलो, अब समझ में आ गया भूत जैसी कोई चीज नहीं होती.’’ शीतल बोली.

‘‘मैं ने तुम से वायदा किया था कि आज के बाद हम कभी नहीं मिलेंगे तो यह हमारी आखिरी मुलाकात होगी. मेरी अनुपस्थिति में  पिताजी का खयाल रखने के लिए बहुतबहुत धन्यवाद.’’ अनल हाथ जोड़ते हुए बोला.

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