आजसुबह जैसे ही अंशिका की आंख खुली देखा कि उस की मम्मी परेशान सी अंदरबाहर घूम रही हैं. आंख मलते हुए अंशिका बाहर आई और पूछा, ‘‘मम्मी क्या हुआ आप इतनी परेशान क्यों हो?’’
मम्मी बोलीं, ‘‘अंशिका, सौम्या को अचानक सुबह चक्कर आ गया था, सौरभ उसे हौस्पिटल ले गया है.’’
यह सुन कर अंशिका को भी चिंता हो गई. ढाई साल पहले सौम्या और सौरभ अशोकजी के ऊपर वाले घर में किराएदार बन कर आए थे. 1-2 महीनों में ही वे कब किराएदार से अशोक के परिवार के सदस्य जैसे हो गए किसी को पता ही नहीं चला.
दरअसल, यह ऊपर वाला पूरा घर अशोकजी ने बड़े प्यार से अपने बेटे रुद्राक्ष के लिए बनवाया था पर शादी के बाद उस की पत्नी रति का यहां पर मन नहीं लगा. कहने को मेरठ इतना छोटा शहर भी नहीं है पर दिल्ली में पलीबढ़ी रति को यह शहर और यहां की मानसिकता हमेशा दकियानूसी ही लगी. रिश्तों में खटास आने से पहले रुद्राक्ष ने समझदारी का परिचय दिया और अपना ट्रांसफर दिल्ली ही करवा लिया.
बेटेबहू के जाने के बाद अशोकजी ने ऊपर वाले पोर्शन को किराए पर देने की सोची. इस की वजह आर्थिक कम पर भावनात्मक ज्यादा थी. दरअसल, उन्होंने बड़े अरमानों के साथ ऊपर वाला घर बनवाया था, पर उसे वे अब खाली नहीं रखना चाहते थे.
तभी किसी जानपहचान वाले ने सौरभ के बारे में अशोकजी को बताया. वे स्टेट बैंक में मैनेजर थे और हाल ही में उस का ट्रांसफर मेरठ हुआ था और वे अपने लिए किराए का आशियाना ढूंढ़ रहे थे. 2 दिन बाद ही वे सामान सहित ऊपर वाले घर में शिफ्ट हो गए. जहां सौरभ बहुत कम बोलते था वहीं सौम्या की बात खत्म ही नहीं होती थीं. सौरभ का रंग सांवला था और उन का कद 6 फुट था वहीं इस के विपरीत सौम्या 5 फुट की थी और उस का दूध जैसा गोरा रंग था. दोनों एकदूसरे से बिलकुल विपरीत थे स्वभाव में भी, रहनसहन में भी और देखनेभालने में भी पर एकदूसरे के साथ दोनों बेहद अच्छे लगते थे.
जल्द ही सौम्या की एक स्थानीय विद्यालय में इंग्लिश के टीचर के रूप में नियुक्ति हो गई. घर और स्कूल का कार्य करते हुए वह बहुत थक जाती थी पर उस ने कोई कामवाली भी नहीं लगा रखी थी. जब अंशिका ने टोका तो हंस कर बोली, ‘‘अंशिका, कोई बालबच्चा तो है नहीं… 2 जनों का काम ही कितना होता हैं.’’
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पासपड़ोस का कोई भी कार्यक्रम सौम्या के बिना संपूर्ण नहीं हो सकता था. किसी का जन्मदिन हो या किसी के यहां किट्टी पार्टी सब घरों में सौम्या अपनी पाककला का हुनर जरूर दिखाती. उस के हाथों में अन्नपूर्णा का वास था और उस के घर तो हर शनिवार जरूर ही कोई न कोई आया होता, छोटामोटा कोई न कोई कार्यक्रम जरूर ही होता.
ऐसे ही एक शनिवार की रात जब अंशिका सौम्या से रविवार को अपने कालेज की
फेयरवैल में पहनने वाली ड्रैस की सलाह लेने जैसे ही सीढि़यां चढ़ने लगी, एक कर्कश सी आवाज सुनाई दी, ‘‘यह सारा दिन क्या थकानथकान का नाटक लगा रखा है… 4 लोगों के आने से घर में रौनक आ जाती है और काम ही क्या है तुम्हें, कोई बच्चा हो तो समझ भी आए.’’
यह सौरभ की आवाज थी. इस से पहले कि अंशिका मुड़ती वापस जाने के लिए सौरभ दनदनाते सीढि़यां उतरने लगे फिर अंशिका को देखते ही बोले, ‘‘अरे सौम्या देखो अंशिका आई हैं.’’
सौम्या ने अपनी छलछलाई आंखों को धीरे दे पोंछा और बोली, ‘‘कहो अंशिका फेयरवैल पर क्या पहन रही हो.’’
अंशिका ने कुछ न कहा और चेहरा नीचे किए खड़ी रही. आज उसे सौरभ का ऐसा चेहरा देखने को मिला, जिस की अंशिका ने कभी कल्पना भी नहीं की.
अंशिका चुपचाप खड़ी रही तो सौम्या बोली, ‘‘मुझे आदत पड़ गई है अंशिका यह सब सुनने की… जो पेड़ फल नहीं दे सकता उसे किसी और तरह से तो अपनी उपयोगिता साबित करनी ही होती है, ऐसा ही मेरे साथ है.’’
‘‘वैसे भी अंशिका शादी के कुछ सालों बाद अगर परिवार न बढ़े तो थोड़ी सी हताशा हो जाना स्वाभाविक है, सौरभ उस अकेलेपन को दोस्तों को घर बुला कर बांटते हैं पर मु?ो पता नहीं क्यों इन सब आयोजनों में खास दिलचस्पी नहीं है.’’
कुछ दिनों बाद बातों ही बातों में सौम्या ने बताया, ‘‘उस की और सौरभ की सारी मैडिकल रिपोर्ट्स ठीक हैं पर जहां उस से रातदिन यह प्रश्न पूछा जाता है कि अब तक उन की बगिया में कोई फूल क्यों नहीं खिला है वहीं सौरभ को कोई इस बाबत परेशान नहीं करता.’’
आज सौम्या ने फ्रैंच टोमैटो और पनीर के परांठे बनाए थे और अशोक परिवार का रात का डिनर उन के साथ ही था. सौम्या ने बहुत अच्छा खाना बनाया था. उस के सासससुर भी आए हुए थे. वह आज पिंक सिल्क के सूट में सच में गुलाब का फूल लग रही थी.
अंशिका मुसकराते हुए बोली, ‘‘भाभी, अगर मैं लड़का होती तो मैं आप के लिए जरूर रिश्ता भिजवाती… आप को पता है आप कितनी खूबसूरत हो, अभी भी लड़की लगती हो.’’
अंशिका की मम्मी भी हंसते हुए सौम्या की सास से बोली, ‘‘भाभी अंशिका सही बोल रही है, सच आप को बहुत प्यारी बहू मिली है.’’
सौम्या की सास व्यंग्यात्मक ढंग से मुसकरा कर बोली, ‘‘जी हां, यह बात हम से ज्यादा कौन जान सकता है.’’
वातावरण में खामोशी छा गई. फिर अंशिका ने ही टैलीविजन चला दिया और सब उस में खो गए. खाने के बाद बहुत ही स्वादिष्ठ गाजर हलवा था पर किसी की हिम्मत न हुई फिर से सौम्या की तारीफ करने की.
इस घटना के कुछ दिन बाद सौम्या की सास नीचे अंशिका की मम्मी के साथ बैठी हुई थीं.
अंशिका की मम्मी ने जब सौम्या की सास से कहा, ‘‘भाभी दिल्ली में मेरी रिश्ते की देवरानी हैं. वे काफी मानी हुई महिलाओं की डाक्टर हैं.
मैं आपको पता दे देती हूं आप सौम्या और सौरभ के साथ जा कर एक बार सलाह लेना चाहो तो ले सकते हो.’’
सौम्या की सास बोलीं, ‘‘मुझे क्यों बता रही हो दीदी? सौरभ और सौम्या को अगर जरूरत होगी तो चले जाएंगे. अब जा कर तो थोड़ा फ्री हुई हूं. वैसे भी मुझे नहीं लगता इन्हें बच्चा चाहिए नहीं तो शादी के इतने साल बाद भी ये लोग डाक्टर के पास नहीं गए हैं, हमारा फर्ज तो अपने बच्चों तक है… मु?ो कोई शौक नहीं है इस उम्र में तोपड़े धोने का.’’
अंशिका और उस की मम्मी ने यह अनुभव किया था कि जब तक सौम्या के सासससुर रहे वे एक मेहमान की तरह ही रहे, उन्होंने सौम्या और सौरभ की जरा भी मदद नहीं करी. जब तक वे रहे सौम्या स्कूल जाने से पहले और बाद में काम में ही लगी रहती थी. न जाने क्यों सौरभ ने जानेअनजाने यह बात सौम्या के दिमाग में बैठा दी थी कि बच्चों के बिना जीवन अधूरा है और उस अधूरेपन को सौरभ दोस्तों के साथ तो सौम्या रातदिन काम कर के बांटती थी.
सौरभ के मातापिता को गए अभी 10 दिन ही हुए थे कि रविवार की सुबह
सौम्या नीचे आई और अशोकजी की घरवाली कमला आंटी से बोली, ‘‘आंटी मेरी गलती क्या है… कहीं भी ससुराल में कोई शादी होती है, सारी जिम्मेदारी मुझ पर डाल देते हैं.’’
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‘‘हां, मुझे मां बनने की खुशी नहीं प्राप्त हुई पर इस का मतलब ये तो नहीं कि मेरे पास कोई काम नहीं है, हंसती हूं, बोलती हूं क्योंकि रोतेरोते मु?ो जीना पसंद नहीं है… कब तक शोक प्रकट करूं,’’ आखिरी वाक्य बोलते हुए सौम्या का गला भर गया.
कमला आंटी ने सौम्या को बांहों में भर लिया. फिर अगली सुबह सौम्या के घर से बहुत तेजतेज आवाजें आ रही थीं. अंशिका और उस की मम्मी मूकबधिरों की तरह सुन रही थीं. वे कुछ कर भी नहीं सकते थे.
फिर कुछ देर बाद सौरभ चाबी देते हुए बोला, ‘‘बूआ की बेटी की शादी है, सौम्या वहीं जा रही है. अगले रविवार तक आ जाएगी.’’
कमला आंटी चुप न रह सकीं और बोल पड़ीं, ‘‘बेटा उसे स्कूल से इतनी छुट्टियां मिल जाएंगी, पिछले माह भी तो सौम्या को ऐसे छुट्टियां लेने पर चेतावनी मिली थी.’’
सौरभ सपाट स्वर में बोला, ‘‘आंटी और सब के घर परिवार में बच्चे हैं. उन की जिंदगी बच्चों की दिनचर्या पर निर्भर करती है. हरकोई हमारी तरह खुश नहीं है. वैसे भी सौम्या नौकरी समय काटने के लिए करती है और बूआ की बेटी की शादी में मदद करने से उन्हें सहारा भी हो जाएगा और सौम्या का समय भी कट जाएगा.’’
अंशिका को अंदर से चिढ़ हो गई पर प्रत्यक्ष में कुछ न बोली. सौम्या मां नहीं बन पा रही थी इस कारण गाहेबगाहे उसे अतिरिक्त जिम्मेदारी स्कूल और घर में निभानी पड़ती थी पर सौरभ को भी तो पिता बनने की खुशी प्राप्त नहीं हुई, फिर ये मानदंड उस के लिए क्यों नहीं हैं. सौरभ को क्यों समय काटने के लिए कुछ अतिरिक्त जिम्मेदारी नहीं मिलती? यह कैसा दोहरा मानदंड है समाज का?
1 हफ्ते बाद सौम्या आ गई थी. जैसे ही वो घर पहुंची, सौरभ ने ऐलान कर दिया कि आज उस के दफ्तर के दोस्त सपरिवार रात के खाने पर आ रहे हैं. सौम्या चिड़चिड़ाती हुई नीचे आ गई. अंशिका ने उस के सिर पर तेल मालिश करी और गरमगरम नाश्ता परोसा.
सौरभ भी नीचे आ गए और बोले, ‘‘सौम्या, तुम यहां पर नाश्ता कर रही हो और मैं वहां भूखा बैठा हूं.’’
अंशिका ने मुसकराते हुए सौरभ को भी नाश्ते की प्लेट पकड़ा दी.
सौरभ नाश्ता करते हुए अंशिका की मम्मी से बोला, ‘‘आंटी उलटी गंगा बह रही है, कहां तो सौम्या को आप के लिए बनाना चाहिए और कहां आप उसे खिला रही हैं.’’
इस से पहले कोई कुछ बोलता, सौम्या गुस्से में बोली, ‘‘क्यों सारे फर्ज मेरे और सारे हक तुम्हारे, सबकुछ करना मेरी ही जिम्मेदारी है क्योंकि हमारे बच्चे नहीं हैं पर हम में तुम भी आते हो सौरभ. तुम क्या करते हो सौरभ अपना समय काटने के लिए क्योंकि तुम भी तो पिता नहीं बन पाए हो?’’
सौरभ सौम्या की बात पर तिलमिला गया और बोला, ‘‘तुम अभी तक बड़ी नहीं हो पाई हो… हर बात का गलत मतलब निकालती हो… आज तक मैं ने या मेरे परिवार ने कुछ कहा है तुम्हें?’’
हमें लगा बात और न बढ़ जाएं पर सौम्या बिना कोई उत्तर दिए, अपना पर्स उठा कर
बाहर निकल गई. मकानमालिकन ने सौरभ से कहा भी, ‘‘सौरभ, वह 1 हफ्ते बाद लौटी थी, सांस तो लेने देता… क्या जरूरत थी आज मेहमानों को बुलाने की?’’
सौरभ मासूमियत से बोला, ‘‘आंटी, मैं क्या उस का दुश्मन हूं? मैं तो इसलिए यह सब करता हूं ताकि उसे अकेलापन न लगे.’’
सौम्या 2 घंटे बाद लौटी तो काफी फ्रैश लग रही थी. साथ में सौरभ भी था. हाथों में बहुत सारे शौपिंग बैग थे. पता नहीं अंशिका को सौम्या से एक अलग सा लगाव हो गया था इसलिए सौम्या को खुश देख कर आंशिका ने चैन की सांस ली.
रात को फिर से सौम्या के घर एक छोटा सी पार्टी थी. सौम्या ने अंशिका को भी बुलाया था. सौम्या ग्रे और मजैंटा रंग की शिफौन साड़ी में बेहद सुंदर लग रही थी.
सौरभ भैया के दोनों दोस्त सौम्या की तारीफ करते हुए बोले, ‘‘सौरभ यार सौम्या भाभी तो अब तेरी बेटी जैसी लगती हैं, अपना वजन कम कर कहीं जल्द ही पोती न लगने लगे.’’
यह सुन कर सौरभ के दोस्त की बीवी तिलमिला कर बोली, ‘‘लड़कोरी का आंचल चिकना और बांझन का चेहरा, यह कहावत आज भी इतनी ही सच है, है न सौम्या?’’
सौम्या की आंखें अपमान से तिलमिला गईं. फिर से एक बो?िल वातावरण के साथ डिनर समाप्त हुआ. पता नहीं क्यों सौम्या की सुंदरता और सुघड़ता हमेशा महिलाओं के लिए ईर्ष्या का विषय रही है.
आज कमला आंटी की बड़ी बहू की गोदभराई की रस्म थी. सभी पासपड़ोस के लोग इकट्ठा थे और पूरे आयोजन की जिम्मेदारी सौम्या पर थी पर अंशिका को बहुत बुरा तब लगा जब होने वाली मां की रस्म में सब को बुलाया पर सौम्या से वह रस्म नहीं करवाई गई क्योंकि पंडितों का विधान इस के खिलाफ था.
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एक दिन बातों ही बातों में मकानमालिकन ने सौम्या और सौरभ से बच्चा गोद लेने की बात करी तो जहां सौम्या की आंखें चमक उठीं वहीं सौरभ बोला, ‘‘मैं ने कितनी बार सौम्या को समझया मुनेश दीदी की छोटी बेटी गोद ले लेते हैं पर यह माने तब न… इसे तो अपना अकेलापन बहुत प्यारा है.’’
वहीं सौम्या के अनुसार वह अनाथाश्रम से बच्चा गोद लेना चाहती हैं क्योंकि उस पर बस उन का ही अधिकार होगा. वह उस की परवरिश अपने हिसाब से कर पाएगी और उस बच्चे के मन में कोई ग्रंथि नहीं पलेगी कि क्यों उस के मातापिता ने उसे किसी को गोद दे दिया था पर उन की ससुराल वाले इस के खिलाफ थे. उन्हें अपना खून ही चाहिए था, परवरिश से अधिक उन्हें नाम और खानदान पर भरोसा था.
सतही तौर पर कहें तो सौम्या और सौरभ की जिंदगी में कोई कमी नहीं थी और कमी थी भी जिसे बस महसूस कर सकते हैं पर समझ नहीं सकते. समय बदल गया और साथ में समाज भी पर पहले जो बात सीधे तौर पर कहीं जाती थी, उस का बस कहने का तरीका बदल गया है.
सौम्या हर समय काम में ही लगी रहती थी क्योंकि इर समय यह तलवार उस पर लटकी रहती है कि काम क्या है, 2 जने ही तो हैं, न कोई बालबच्चा,’’ यह सब सुनते और समझते वह अपने वजूद से अधिक काम करती गई. सौरभ यह सोचता रहा कि सौम्या को ऐसा करने से अकेलापन नहीं लगेगा पर दोनों ने ही कभी इस विषय पर खुल कर बात नहीं करी.
यह सोचतेसोचते अंशिका वर्तमान में आ गई. अंशिका की मम्मी सुबह ही हौस्पिटल चली गई थी. मम्मी और सौरभ के लिए नाश्ता ले कर जब अंशिका हौस्पिटल पहुंची तो देखा सौम्या के सासससुर भी आ गए हैं और सास बोल रही थी, ‘‘हमें तो लगा कोई खुशखबरी होगी पर यहां तो माजरा ही दूसरा है.’’
मकानमालकिन ने बताया डाक्टर के अनुसार सौम्या के अंदर खून की कमी है और यह सौम्या का अपना ध्यान न रखने के कारण से है. वह इतनी कमजोर हो गई है अंदर से कि अब उसे कुछ दिन आराम करना होगा.
जब डाक्टर यह सब बता रहा था तो सौरभ आश्चर्य से बोला, ‘‘पर डाक्टर सौम्या को काम क्या है कोई बच्चा तो है नहीं हमारे जिस के कारण सौम्या थक जाए?’’
इस बात पर डाक्टर सख्ती से बोली, ‘‘सौरभ तुम्हारा यही रवैया उसे यहां ले कर आ गया है, वह शरीर के साथसाथ मन से भी थक चुकी है… यह एक दिन या कुछ महीनों का नहीं पर वर्षों तक अपने पोषण पर ध्यान न देने के कारण हुआ है. ऐनीमिया किसी भी व्यक्ति को और कभी भी हो सकता है अगर वह अपनी तरफ से लापरवाह हो जाए.’’
2 दिन बाद सौम्या घर आ गई थी, साथ में उस की सास भी थीं जो पूरा 1 हफ्ते तक जानेअनजाने ढंग से उन का मन छलनी करती रहीं.
उन के जाने के बाद सौम्या ने अंशिका से कहा, ‘‘मुझे अपनी सास की बातों से कहीं ज्यादा सौरभ की चुप्पी छलनी कर देती है.’’
समय बीत रहा था, पर सौम्या ने अपने को पहले से बेहतर संभाल लिया था.
अब भी वह पासपड़ोस के आयोजनों में मदद जरूर करती है पर अपनी सहूलियत के अनुसार पासपड़ोस की जिम्मेदारियों को वह बड़ी विनम्रतापूर्वक ठुकरा देती है.
अब अंशिका के लिए भी विवाहप्रस्ताव आ रहे थे, लेकिन मन ही मन अंशिका डर रही थी कि कहीं उसे भी सौरभ जैसा पति न मिल जाए.
सौरभ के ट्रांसफर का और्डर आ गए थे और उन की अगली पोस्टिंग गाजियाबाद में थी. सारा सामान बंध चुका था और ट्रक में जमाया जा चुका था, पर पता नहीं अंशिका को बहुतबहुत खाली लग रहा था सौम्या अंशिका की सहेली ही नहीं उसे अपनी हमसाया लगती थी. कहीं अंशिका रोने ना लगे ये सोच कर अंशिका चुपचाप कालेज की तरफ चली गई थी.
आ कर देखा तो घर में सन्नाटा नहीं था. अंदर रसोई में सौम्या की आवाज आ रही थी. अंशिका को लगा उसे गलतफहमी हुई है. अंदर देखा तो सौम्या ही थी. उस ने आश्चर्य से कहा, ‘‘सौम्या भाभी आप यहीं हो सौरभ भैया के साथ गई नहीं?’’
अंशिका के मुंह पर हाथ रख कर सौम्या बोली, ‘‘भाभी चली गई हैं भैया के साथ पर यह सौम्या अब अपने को पहचानना चाहती है और समझना चाहती है. अगर सौरभ को यह सौम्या पसंद है तो वो वापस चली जाएगी उस नीड़ पर नहीं तो नीड़ का फिर से निर्माण करेगी, उस नीड़ में सौम्या सौम्या ही रहेगी.’’
आज जो सौम्या खड़ी है उस सौम्या ने बस अपनेआप को और अपनी खुशी को ही चुना है और यह बात कहते हुए सौम्या आंखों में जिंदगी की चमक झलक रही थी. अंशिका को लगा सौम्या ने शायद उस नीड़ के निर्माण के लिए अपना पहला तिनका चुन लिया है, जिस घर में इज्जत न हो उसे नीड़ नहीं कहते नीड़ बराबरी, इज्जत और प्रेम से बनता है.