
लेखक- डा. मनोज श्रीवास्तव
‘‘अगर तुम आजीवन सुखी रहना चाहती हो तो अपनी ससुराल वालों, खासकर अपनी ननदों और देवरों से भरसक दूरी बनाए रखो. मैं उन्हें पहली नजर में ही पहचान गया था कि वे एक नंबर के कंजूस व मक्खीचूस किस्म के लोग हैं. यदि तुम ने मेरा कहना नहीं माना तो वे हरामखोरनिठल्ले एक दिन तुम्हारे सीने पर मूंग दलेंगे. इतना ही नहीं, वे दरिद्रजन तुम्हारा सारा हक भी मार लेंगे. तुम्हारे दकियानूस पति की बेवकूफी का वे पूरा फायदा उठाएंगे,’’ शांताराम ने अपनी नवब्याहता बहन को समझाने और ससुराल वालों के खिलाफ उस के मन में जहर की पहली डोज डालने की कोशिश की.
उस ने फिर कहा, ‘‘तुम्हें गलती से हम ने ऐसे परिवार में ब्याह दिया है जहां एक भाई कमाता है, बाकी तोंद पर हाथ फेरते हुए, बस, डेढ़ सेर खाते हैं. तेजेंद्र के सिवा तो वहां कोई कुछ करता ही नहीं. मां पहले ही कालकवलित हो चुकी है और बाप रिटायर्ड हो चुका है जिस का घर से कुछ भी लेनादेना नहीं है जबकि बड़ा भाई अपने परिवार में बीवीबच्चों के साथ मस्त है. किसी को किसी से कोई मतलब नहीं है. सब आपस में लड़मर रहे हैं. एक बात मैं कहूं, यह परिवार कई प्रकार से कमजोर है और तुम इस कमजोरी का खूब फायदा उठा सकती हो. आखिर, पढ़ीलिखी लड़की हो. कम से कम अपनी अक्ल का थोड़ा तो इस्तेमाल करो और इस परिवार का बेड़ा गर्क करो.’’
नाम तो उस का ज्योतिंद्रा था पर सब उसे जुगुनी ही कहते थे. जुगुनी भौंहें चढ़ाती हुई मुसकरा उठी, ‘‘भैया, मैं अब कोई दूधपीती बच्ची नहीं हूं. इन 7 दिनों में ही सबकुछ देख चुकी हूं, सब समझ चुकी हूं. अब मुझे क्या करना है, यह भी तय कर चुकी हूं. देखना, मैं ससुराल में इतनी साजिश रचूंगी और इतनी तिकड़म आजमाऊंगी कि तेजेंद्र खुदबखुद उन से दूरी बना कर रहने लगेगा. तेजेंद्र तो मेरी तरेरती निगाहों के आगे कठपुतली की तरह नाचता फिरेगा. और हां, ससुरालियों के मन में भी एकदूसरे के प्रति इतना जहर भरूंगी कि वे एकदूसरे के जानीदुश्मन बन जाएंगे.’’
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शांताराम बहन के इस अंदाज में शेखी बघारने पर फख्र करते हुए आश्चर्य से भर उठा, ‘‘ससुराल में कदम रखते ही तुम्हारी छठी इंद्रिय काम करने लगी है. पहले तो तुम गधी थी. तो भी मैं तुम्हें बता देना चाहता हूं कि तुम्हारा पति कमअक्ल और लकीर का फकीर है. थोड़ाबहुत साहित्य क्या लिख लेता है, वह खुद को तुलसीदास और शेक्सपियर समझने लगा है. पर, वह है पूरा डपोरशंख. खुद को भौतिकवाद से दूर रखने का पाखंड खूब कर लेता है. दरअसल, तुम्हारे सारे ससुराल वाले कंजूस और लीचड़ हैं. तुम्हारा तेजेंद्र भी दांत से पैसा दबाए रखता है. ऐसे लोग कूपमंडूक होते हैं और उन्हें विरासत, परंपरा, तहजीब जैसी गैरजरूरी बातों से ज्यादा लगाव होता है. उसे समझाना होगा कि अब उस का अपना परिवार है और इसी के लिए जीना व मरना है. मांबाप और भाईबहन के लिए जिंदगी तबाह करने की जरूरत नहीं है. वे कमीने तो उस की शादी के बाद से ही पराए हो गए हैं. अब उस के अपने हैं तो केवल हम ससुराल वाले,’’ जुगुनी उस की हर बात पर ध्यान देती हुई संजीदा होती जा रही थी.
बेशक, ससुराल में कदम रखते ही नई बहू के तेवर तीखे हो गए. अभी हफ्ताभर ही तो हुआ है जुगुनी और तेजेंद्र की शादी हुए. तेजेंद्र के भाईबहनों ने उस की शादी में बड़े उत्साह से सभी कामों को अंजाम दिया था और नए रिश्तेदारों के साथ वे बड़ी गंभीरता व शालीनता से पेश भी आ रहे थे.
बहनों में बड़ी, नंदिनी तो इतनी खुश थी कि वह पंख उग आए गौरैये के चूजे की भांति घर से बाहर तक फुदकती फिर रही थी, और जो भी मिलता उस से कहती जा रही थी- ‘अब घर में मां के बाद उन की कमी को मेरी दूसरी भाभी पूरी करेंगी. हम सब उन्हें भाभी नहीं भाभीमां कह कर पुकारेंगे. इतने मिलजुल कर और प्यार से रहेंगे कि अपने मतलबी रिश्तेदारों और जिगरी दोस्तों के मन में भी हमारे लिए बेहद ईर्ष्या पैदा हो जाएगी.’
उस ने तेजेंद्र से कहा, ‘‘भैया, अभी भाभी को मुंबई मत ले जाना. जब महीनेभर बाद अगली बार आना, तो ले जाना. अभी तो हमें इन से दिल से दिल मिला कर मेलजोल बढ़ाना है.’’
पर, जुगुनी को नंदिनी का प्रस्ताव बिलकुल अटपटा सा लगा. उस ने तुरंत तेजेंद्र को बैडरूम में ले जा कर समझाया, ‘‘अभी मैं यहां बिलकुल नहीं रहूंगी. क्या हम हनीमून पर नहीं चलेंगे? अगर हनीमून पर नहीं जाना है तो मुझे मुंबई अपने साथ ले चलो, वरना, मुझे कुछ समय के लिए मायके में ही छोड़ दो. जब दोबारा मुंबई से आना तो मुझे अपने साथ ले जाना. लेकिन, मेरा निर्णय कान खोल कर सुन लो, मैं यहां हरगिज नहीं रहने वाली.’’
तेजेंद्र चिंता में पड़ गया. उसे जुगुनी का स्वभाव एकदम अटपटा सा लग रहा था. बहरहाल, उस ने सोचा कि अभी जुगुनी को ऐसे नाखुश करना उचित नहीं होगा. सो, उस ने नंदिनी को समझाया कि वह अभी जुगुनी को यहां रुकने के लिए न कहे और वह मान भी गई. पर, जुगुनी तो मन ही मन खुश हो रही थी कि तेजेंद्र तो बड़ी सहजता से उस की बात मान लेता है. बेवकूफ है तो क्या हुआ, अपने परिवार वालों के बीच मुझे अहमियत तो देता है, गोबरगणेश कहीं का…
उस के बाद वह मुंबई के लिए अपनी अटैचियां व जरूरी सामान पैक करने लगी.
विवाह के समय मायके से जो उपहार मिले थे, जब तेजेंद्र उन्हें घर पर ही छोड़ कर जुगुनी के साथ मुंबई जाने को तैयार होने लगा तो वह एकदम से बौखला उठी, ‘‘तेजेंद्र, यह तो तुम अच्छा नहीं कर रहे हो. क्या मेरे घर वालों ने इतने ढेर सारा दानदहेज, गिफ्ट वगैरा तुम्हारे निठल्ले भाईबहनों को ऐश करने के लिए दिए हैं? कम से कम टीवी, फ्रिज और बैड तो अपने साथ ले चलो.’’
तेजेंद्र ने जुगुनी से अचानक ऐसे शब्दों की अपेक्षा नहीं की थी. लिहाजा, उस ने ठंडे दिमाग से उसे समझाया, ‘‘जुगुनी, मुझे तुम मिल गई, यह मेरे लिए बहुतकुछ है. सामान को तो गोली मारो. बहरहाल, इतना ढेर सारा सामान लाद कर हम मुंबई जाएंगे तो कैसे जाएंगे? इन्हें यहीं छोड़ दो. वहां हम अपने बलबूते पर सैटल होंगे और ये सारे सामान खुद खरीदेंगे. तुम्हें तो पता ही है, मेरी अच्छी तनख्वाह है. इन से कहीं बेहतर क्वालिटी के सामान वहां किस्तों में खरीद लेंगे.’’
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जुगुनी इतराने लगी, ‘‘अच्छा, क्या मेरे मायके से आए सामान एवन क्वालिटी के नहीं हैं?’’
तेजेंद्र समझ गया कि जुगुनी और उस के परिवार वाले दुनियादारी व सामान के पीछे जान भी दे सकते हैं. छोटे शहरों के लोगों में विलासिता के साजोसामान खरीदने की ललक तीव्र होती है. उसे एहसास हो गया कि जुगुनी के मन में क्या चल रहा है. वह समझ गया कि जुगुनी के लिए मानवीय रिश्तों की कोई खास अहमियत नहीं है.
लिहाजा, उस पल तेजेंद्र के चेहरे पर आए हावभाव को पढ़ कर जुगुनी को लगा कि अभी उसे ऐसा अडि़यल रुख नहीं अपनाना चाहिए. वह कोई तरकीब सोचने लगी ताकि उस पर कोई दोष भी न आए और उस के मन की मुराद भी पूरी हो जाए. यानी उस के मायके का सारा सामान और उपहार उस के कब्जे में आ जाए. उस ने एकांत में जा कर झट मायके अपनी अम्मा को फोन लगाया तथा उन्हें सारी बात से अवगत कराया और मुंबई रवाना होने से पहले उन्हें और बाबूजी को मिलनेजुलने के बहाने फोन पर ही ठीक एक दिन पहले बुला लिया.
अम्मा ने आते ही कमर कस ली. ‘‘जुगुनी, तुम बिलकुल फिक्र मत करना. देखो, मैं किस तरह से सारा दानदहेज तुम्हारे साथ मुंबई भिजवाती हूं. एक तो इन लीचड़ ससुरालियों ने दहेज की सारी रकम ऐंठ ली, दूसरे, अब वे सारा दानदहेज और गिफ्ट भी हजम कर लेना चाहते हैं.’’
अम्मा ने बाबूजी को बरगलाना शुरू कर दिया, ‘‘अजी सुनते हो, अब कान में रुई डाल कर सोना बंद करो. देखो, तुम्हारी गाढ़े पसीने की कमाई पर गैरों की गिद्धदृष्टि लगी हुई है.’’
बाबूजी के कान खड़े हो गए, ‘‘वह कैसे?’’
‘‘वह ऐसे कि जुगुनी की शादी में जो सामान तुम ने इतने जतन कर के दिए हैं, तेजेंद्र उन्हें अपने भाईबहनों को सौंप कर खाली हाथ ही मुंबई जा रहा है. अब भला, मेरी बिटिया टीवी, फ्रिज के बगैर एक पल को भी कैसे रह पाएगी? तेजेंद्र तो रोज ड्यूटी बजाने औफिस को चला जाया करेगा जबकि मेरी गुडि़या घर में अकेली दीवारों पर रेंगती छिपकलियां देख कर ही सारा समय काटेगी. तेजेंद्र के भाईबहन दहेज के सामान पर जोंक की तरह चिपके हुए हैं. उस ने तो दहेज में मिला स्कूटर पहले ही अपने भाई प्रेमेंद्र के हवाले कर दिया है.’’
बाबूजी अपनी पत्नी के बहकावे में आने से पहले थोड़ीबहुत जो समझदारी दिखा सकते हैं वह उस से बातें करने के बाद पलभर में उड़नछू हो जाती है. उन्होंने अम्मा को समझाने की कोशिश की, ‘‘अभी कुछ ऐसा बखेड़ा खड़ा मत करो क्योंकि अभी शादी को हफ्ताभर ही तो हुआ है. अगर मैं तेजेंद्र के पापा से इस बारे में कुछ कहूंगा तो यह अच्छा लगेगा क्या? आखिर, यह तुम्हारा घर नहीं, बिटिया का ससुराल है.’’
अम्मा तुनक उठी, ‘‘अजी, ऐसा अच्छाभला सोचने लगोगे तो ससुराल में तुम्हारी बिटिया का जीना दूभर हो जाएगा. कल को ये लोग उस का गला भी घोंट सकते हैं. तेजेंद्र के घर वाले कितने कमीने हैं, इस बात का सुबूत देने की जरूरत नहीं है. उन के हौसले को बढ़ने से पहले ही तोड़ना होगा. सांप के फन उठाने से पहले ही उसे कुचल देना होगा. वरना, एक दिन तुम्हारी बेटी को चिथड़ा पहना कर वापस मायके भेज दिया जाएगा. तलाक तक की नौबत आ जाएगी. हो सकता है कि वे उसे जिंदा फूंकने का दुस्साहस भी करें, हां.’’
आगे पढें- उस के शब्द सुन कर तो बाबूजी…
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लेखक- डा. मनोज श्रीवास्तव
उस के शब्द सुन कर तो बाबूजी ऐसे चिहुंक उठे जैसे किसी पहाड़ी बिच्छू ने उन्हें डंक मार दिया हो. वे अच्छी तरह समझ रहे थे कि उन की पत्नी उन्हें जुगुनी के ससुराल वालों के खिलाफ बरगला रही है. उन्होंने मांबेटी दोनों को दुनियाभर के चमचमाते सामान के पीछे पागल होते पहले भी देख रखा है. पर, उन्हें यकीन है कि जुगुनी की अम्मा ने जो मन में ठान लिया है, वह उसे पूरा कर के ही दम लेगी. और अगर उन्होंने उस के मनमुताबिक नहीं किया, तो वह उन्हें चैन से जीने न देगी, खानापीनासोना सब हराम हो जाएगा.
वे उधेड़बुन में खो गए. चलो, तेजेंद्र के पापा से बात कर ही लेते हैं. भले ही उन्हें और उन के परिवारजनों के गले से मेरी बात नीचे न उतरे, पर उन्हें तो मनाना ही होगा कि वे दहेज का सारा सामान तेजेंद्र के साथ रवाना कर दें. वरना जुगुनी की अम्मा उन की जान खा जाएगी. उन के परिवार वालों को बुरा लगता है तो लगने दो. जुगुनी को भी इस दो कौड़ी की ससुराल में कहां रहना है? उसे तो मुंबई महानगर में अपनी जिंदगी गुजारनी है तेजेंद्र के साथ.
बाबूजी का मन अभी भी हिचक रहा था. रात को अम्मा ने उन्हें गहरी नींद से जगा कर फिर उन पर दबाव बनाया, ‘‘पौ फटते ही तेजेंद्र के बड़ेबुजुर्गों से बात कर लेना क्योंकि कल शाम की ही ट्रेन से जुगुनी और तेजेंद्र को मुंबई के लिए कूच करना है.’’
सो, सुबह जब बाबूजी उठे तो वे हिम्मत बटोर कर, चाय की चुसकी लेते हुए तेजेंद्र के पापा से मुखातिब हुए, ‘‘भाईसाब अब आप का बेटा तेजेंद्र घरवाला गृहस्थ बन गया है. मुंबई में अपनी बीवी के साथ रहेगा. उस के यहां यारदोस्तों का आनाजाना होगा. इस बार अपनी दुलहन ले कर पहुंचने पर, वे उस से पूछेंगे कि तेजेंद्र, ससुराल से तुम्हें क्या मिला है, तब तेजेंद्र उन से क्या कहेगा कि दहेज तो बाप के घर छोड़ आया हूं. बस, बीवी ले कर आया हूं? वे तो समझेंगे कि बिटिया का बाप तो कंगला है जिस ने उसे एक धेला भी नहीं दिया. मुफ्त में अपनी बेटी उस के गले मढ़ दी.
‘‘सच, यह सोच कर मेरा दिल शर्म से डूबा जा रहा है. बेटी के बाप की तो नाक ही कट जाएगी. सो, मेरी आप से विनती है कि तेजेंद्र को अपने साथ कुछ सामान जैसे टीवी, फ्रिज वगैरा ले जाने की इजाजत जरूर दे दीजिए जिन्हें वह अपने महल्ले वालों और दोस्तों को दिखा सके कि हां, किसी फटीचर खानदान में उस की शादी नहीं हुई है.’’
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बाबूजी ने दोनों हाथ जोड़ कर अपनी बात को इतने सलीके से पेश किया था कि तेजेंद्र के पापा से प्रतिक्रिया में कुछ भी कहते नहीं बना. वे हकला उठे, ‘‘मुझे इस में क्या आपत्ति हो सकती है?’’
वहां उपस्थित तेजेंद्र का छोटा भाई प्रेमेंद्र भी बोल उठा, ‘‘हां हां, अगर भाईसाहब ये सामान खुद ले जाने में सक्षम हों तो इस से अच्छी बात क्या हो सकती है. हम तो सोच रहे थे कि भाभीजी का सामान हम खुद धीरेधीरे मुंबई पहुंचा देंगे. इसी बहाने मुंबई भी आनाजाना बना रहेगा.’’
जुगुनी ने सोचा, ‘अगर दहेज का सामान अभी हमारे साथ चला जाएगा तो इन कमीनों द्वारा फुजूल में मुंबई आ कर मेरा दिमाग खराब करने से छुटकारा भी मिल जाएगा.’
उस वक्त बाबूजी अम्मा का मुंह ताकने लगे जैसे कि कह रहे हों कि तुम तो कह रही थी कि दहेज का सारा सामान तेजेंद्र के घर वाले हड़पना चाहते हैं जबकि वे सभी सारे सामान को तेजेंद्र के साथ सहर्ष भेजने को तैयार हैं.
अम्मा ने उन के हावभाव को कनखियों से देखा और मुंह बिचका लिया. तुम्हें जो मगजमारी करनी है, वह करो. हमें तो दहेज का सामान बस मुंबई रफादफा करना है.
सो, कुछ मामूली उपहारों को छोड़ कर बाकी सामान धीरेधीरे 2-3 खेपों में मुंबई स्थानांतरित कर दिया गया. तेजेंद्र मायूस हो गया, यह सोचते हुए कि मेरे घर वाले सोच रहे होंगे कि तेजेंद्र भौतिकवादी हो गया है. उसे अपने घर वालों से ज्यादा निर्जीव वस्तुओं से प्यार हो गया है.
वैसे तो, वह शादी से पहले ऐसी मानसिकता वाले लोगों की नुक्ताचीनी करने से बाज नहीं आता था. भाइयों में सब से छोटे भाई गजेंद्र ने सभी को समझाया, ‘‘भैया सुलझे हुए विचारों के भले आदमी हैं. वे स्वार्थी कभी नहीं हो सकते. उन्हें तो मर्यादित जीवन और अच्छे संस्कारों से हमेशा प्यार रहा है. स्वार्थपरता से तो उन्हें सख्त नफरत है. इसलिए हमें उन के बारे में कोई अनापशनाप धारणा नहीं बनानी चाहिए.
वे हम से और हमारी पारिवारिक संस्कृतियों से हमेशा जुड़े रहे हैं. हां, भाभीजी के बारे में अभी मैं कुछ भी निश्चित तौर पर नहीं कह सकता कि भविष्य में वे अपने ससुराल में क्या गुल खिलाएंगी. पर, यह तो तय है कि वे भारत में पाकिस्तान बनवा कर ही दम लेंगी.’’
तेजेंद्र के विवाह के चिह्न के तौर पर घर में कुछ भी उपलब्ध न रहने के कारण उस की तीनों बहनें नंदिनी, मीठी और रोशनी कुछ समय तक सदमे में थीं. शादी के उल्लास और चहलपहल के बाद अचानक छाए सन्नाटे से घर का कोनाकोना भांयभांय कर रहा था. उन की मां तो डेढ़ साल पहले ही डाक्टर की गलत दवा के कारण मौत का शिकार हो चुकी थीं. मां की असामयिक मौत के बाद, पापा गुमसुम रहने लगे थे.
बड़े भाई कमलेंद्र अपनी एकल पारिवारिक व्यवस्था में ही इस तरह उलझ गए थे जैसे उन का इस के सिवा दुनिया में कुछ और है ही नहीं. ऐसे में, परिवार को तेजेंद्र से ही बड़ी उम्मीदें थीं. उन्हें उन से आर्थिक मदद से अधिक मानसिक संबल की अपेक्षा थी. प्रेमेंद्र कोचिंग इंस्टिट्यूट चला कर अपनी और अपनी बहनों की आर्थिक आवश्यकताएं पूरी कर ही लेता था. पापाजी के पैंशन के रुपए भी काम में आ जाते थे.
इस दरम्यान, जुगुनी की अम्मा का मुंबई आनाजाना अधिक बढ़ गया था. वह जुगुनी को ससुराल से भरसक दूरी बनाए रखने के लिए सचेत करती रहती थी. इस के लिए नएनए तौरतरीके भी वह उसे बताती रहती थी.
एक दिन उस ने जुगुनी से कहा, ‘‘अगर तेजेंद्र के मन में अपने भाईबहनों के प्रति लगाव बना रहेगा तो उसे उन की आर्थिक मदद भी करनी पड़ेगी. सो, तुम्हारी कोशिश ऐसी होनी चाहिए कि उन के बीच संबंधों में दरार बढ़ती जाए. अभी तो उस की तीनों बहनें अनब्याही हैं. उन की शादी के लिए तेजेंद्र को ही पैसे खर्च करने पड़ेंगे. उस के पापा और कमलेंद्र तो कुछ भी करने से रहे. देखो, कमलेंद्र कितनी होशियारी से उन से कन्नी काट गया है. दरअसल, तुम्हें तो दूल्हा कमलेंद्र जैसा मिलना चाहिए था.’’
अम्मा कमलेंद्र का गुणगान करते हुए तेजेंद्र के नाम पर रोरो कर अपना माथा पीटती. एक दिन उस ने जुगुनी से कहा, ‘‘कुछ ऐसे गंभीर हालात पैदा करो कि तेजेंद्र की बहनें कुंआरी ही बूढ़ी हो जाएं. इस से तुम्हें फायदे होंगे-एक तो तेजेंद्र को उन की शादी पर पैसे खर्च नहीं करने पड़ेंगे, दूसरे, तेजेंद्र के कमीने परिवार की सारे समाज में थूथू हो जाएगी.
‘‘जिस घर में बेटियां और बहनें अविवाहित रह जाती हैं, समाज में उसे बड़ी नीची निगाह से देखा जाता है. उस के बाद तुम अपनी सहेलियों और जानपहचान वालों में भाईबहन के रिश्ते के बारे में कुछ गंदी अफवाहें फैला देना. देखना, सारे के सारे सदमों से न केवल बीमार होंगे बल्कि दुश्ंिचताओं में पड़ कर पीलिया से ग्रस्त हो कर दम भी तोड़ देंगे.’’
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पर, तेजेंद्र ने तो संकल्प ले रखा था कि वह अपने सहोदरों की जीवननैया पार लगा कर ही दम लेगा. इस बीच, प्रेमेंद्र ने तेजेंद्र को नंदिनी की शादी से संबंधित बातचीत करने और इस बाबत अन्य बंदोबस्त करने के लिए आने का आग्रह किया. जब अम्मा को इस बारे में पता चला तो उस ने जुगुनी को दिनरात बरगलाया, ‘‘बिटिया, तेजेंद्र को किसी भी कीमत पर नंदिनी की शादी के बारे में बातचीत करने के लिए उस के घर मत जाने देना.’’
इस तरह जिस शाम तेजेंद्र को ट्रेन पकड़नी थी, जुगुनी दहेज के मुद्दे पर उस से झगड़ बैठी. उस ने तेजेंद्र से कहा, ‘‘जब तक तुम दहेज में मिला स्कूटर प्रेमेंद्र से छीन कर वापस नहीं लाओगे, तुम्हें तुम्हारे कमबख्त भाईबहनों के पास जाने नहीं दूंगी.’’ फिर, उस ने उस के पर्स से रिजर्वेशन टिकट निकाल कर फाड़ कर चिंदीचिंदी कर दिया. झगड़े पर उतारू औरत के सामने वह बेबस हो गया.
दूसरी और तीसरी बार भी जब वह नंदिनी के लिए लड़का देखने जाने की तैयारी में था तो जुगुनी ने उसे इसी तरह घर न जाने के लिए मजबूर कर दिया. तेजेंद्र तो जुगुनी के जोरजोर से शोर मचाने के कारण ही सहम जाता था, महल्ले वालों में शोर मच जाएगा तो उसी की बदनामी होगी. गलती भले ही औरत की हो, दुनिया पुरुष को ही दोषी ठहराती है.
जुगुनी ने उस की कमजोर नस पहचान ली थी और जबजब वह किसी ऐसे ही निहायत जरूरी काम से अपने पैतृक घर जाने का मन बनाता, जुगुनी शोर मचाने लगती और तेजेंद्र खामोश हो कर बैठ जाता. वह उस की कमजोर नस पर हाथ रख देती.
बहरहाल, हर बात में तूतूमैंमैं उन के दांपत्य जीवन का रोजमर्रा का हिस्सा बन गया था. जुगुनी तो मुंहफट थी ही, लेकिन जब उग्र होती तो गालीगलौज भी करने लगती. ऐसे में, तेजेंद्र अपना माथा पीट कर अपने बुरे समय को कोसता रहता. उस ने तो अपने ही क्षेत्र की लड़की से सिर्फ इसलिए शादी की थी कि उस की आदतें, रहनसहन आदि उसी की तरह होंगे जिस से रिश्तेदारी निभाने में कोई अड़चन नहीं आएगी. वह मुंबई में रह रहा होगा जबकि उस का और उस की पत्नी का परिवार सुखदुख में एकदूसरे के साथ होगा.
मुंबई में ही उस के लिए कितने ही शादी के प्रस्ताव आए थे. पर, उस ने सब से न कर दिया कि शादी करूंगा तो अपने ही क्षेत्र की किसी संस्कारी लड़की से, वरना नहीं करूंगा.
तेजेंद्र के पापा सेहत से और अपने अक्खड़ स्वभाव से इस लायक नहीं थे कि वे अपनी जिम्मेदारियों को निबटाते. कुल मिला कर वे अपने गृहस्थ जीवन के प्रति उदासीन हो गए थे. यह सोच कर कि मेरे सारे बेटे तो इतने बड़े और समझदार हो ही गए हैं कि वे उन की जिम्मेदारियों को भलीभांति निभा सकें.
इस बीच, तेजेंद्र ने मुंबई से फोन कर के अपने हाथ खड़े कर दिए, ‘‘प्रेमेंद्र, तुम्हारी भाभी मुझे तुम लोगों के लिए कुछ भी करने की इजाजत नहीं देतीं. इसलिए मैं तुम लोगों के लिए कुछ भी न कर पाने के लिए मजबूर हूं.’’
थकहार कर प्रेमेंद्र ने खुद नंदिनी के लिए एक रिश्ता तय किया, वह भी बड़ी अफरातफरी में क्योंकि उस की उम्र शादी के लिहाज से ज्यादा हो रही थी. नंदिनी की शादी हुई, पर अफसोस कि सफल नहीं रही. यह सब हताशा में उठाए गए कदमों के कारण हुआ. किसी को क्या पता था कि जिस लड़के के साथ नंदिनी का विवाह हुआ है, उस का पहले से ही किसी औरत के साथ नाजायज संबंध है जिस से उस की एक संतान भी है.
अम्मा को जब जुगुनी से यह बात पता चली तो वह फूली न समाई, ‘‘चलो, उस कमीने परिवार की बरबादी शुरू हो गई है. अब उन की बरबादी का मंजर हम तसल्ली से देखेंगे. कमीने प्रेमेंद्र को खुद पर कितना गरूर था. हमारे दहेज का स्कूटर हथियाने का उसे अब अच्छा दंड मिला है. उस की बहनों ने भी दहेज का सामान कब्जा कर बहती गंगा में खूब हाथ धोया. अब उन की मांग में कभी सिंदूर नहीं सजेगा, यह मेरी साजिश है. उन सब का ऐसा सत्यानाश हो कि वे फिर कभी आबाद न हो सकें और तेजेंद्र का सारा खानदान मटियामेट हो जाए.’’
एक दिन अम्मा ने जुगुनी को फोन पर बतलाया, ‘‘देखना, नंदिनी को जल्दी ही ससुराल से खदेड़ दिया जाएगा और वह घर आ कर बैठेगी. अब उस का दूसरा ब्याह न हो सकेगा क्योंकि यह सब मेरे ही टोनेटोटके का असर है. मैं एक डायन के भी संपर्क में हूं जिस ने अपने कर्मकांडों से तेजेंद्र के परिवार को नेस्तनाबूद करने का मुझ से वादा किया है.’’
जुगुनी खुश थी कि उस की अम्मा उस के रास्ते के सारे कांटे हटा कर उस की जिंदगी को खुशहाल बनाने के लिए हर संभव कोशिश करने में जुटी हुई है. वैसे भी, वह अकेले यह सब कैसे कर पाती? टोनेटोटकों और औघड़बाजी के बारे में तो उसे इतना ज्ञान भी नहीं है जितना अम्मा को है. इसी वजह से अम्मा का मुंबई आनाजाना बढ़ गया. उस का मुंबई आने का तो उद्देश्य ही था कि येनकेनप्रकारेण तेजेंद्र का अपने परिवार से मोहभंग करा कर उसे ऐसी हालत में छोड़ा जाए जैसे धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का. आखिरकार, वह अपनी बीवी के ही तलवे चाटेगा.
– क्रमश:
लेखक- डा. मनोज श्रीवास्तव
अब तक आप ने पढ़ा
कि किस तरह जुगुनी ने विवाह के बाद अपनी ससुराल में कलह के बीज बोने शुरू कर दिए. भाई व मां के भड़काने पर जुगुनी ने पति तेजेंद्र को अपनी मुट्ठी में जकड़ लिया. जुगुनी के इस साजिशाने रवैए ने आगे क्या गुल खिलाया,
जानने के लिए पढि़ए कहानी का आखिरी भाग.
इधर कोई 3 वर्षों तक जुगुनी गर्भवती नहीं हुई तो मायके वालों को चिंता हो गई कि कहीं तेजेंद्र नामर्द या नपुंसक तो नहीं है. अम्मा के सिखाने पर जुगुनी ने पड़ोस में ढिंढोरा पीटना शुरू कर दिया कि कमी तेजेंद्र में है.
अम्मा मुंबई आई तो उस ने जुगुनी की आंखों में झांक कर देखा, ‘‘बिटिया, कोई खास बात है क्या?’’ वह आंखें नचाते हुए बोल पड़ी, ‘‘अम्मा, मुझे तो लगता है कि तेजेंद्र का अपने ही औफिस में किसी लड़की के साथ कोई चक्करवक्कर चल रहा है. वरना शादी के 3 वर्षों बाद भी…’’ पर, सचाई यह थी कि तेजेंद्र बड़ी सावधानी बरतता था और कुछ वर्षों तक बालबच्चों की जिम्मेदारियों से दूर रहना चाहता था.
एक दिन तेजेंद्र के औफिस जाते ही अम्मा जुगुनी को खींचती हुई एक मौलवी के पास ले गई. मौलवी ने अम्मा और जुगुनी की सारी समस्याएं सुनने के बाद उन के शक पर सच की मुहर लगा दी, ‘‘आप की बिटिया के पांव इसलिए भारी नहीं हो पा रहे हैं क्योंकि उस के शौहर के किसी के साथ नाजायज ताल्लुकात हैं और वह जल्दी ही आप की बिटिया को छोड़ कर उस से निकाह करने जा रहा है. पर, उस बदचलन औरत से इस के शौहर का छुटकारा दिलाने का तिलिस्मी नुसखा मेरे पास है. कल तुम दोनों मुझ से पीर बाबा के मजार पर मिलना.’’
अम्मा को मौलवी द्वारा बताई गई एकएक बात पर भरोसा हो गया. मौलवी ने दोनों को नाको चने चबवाए. ऐसेऐसे कर्मकांड करवाए कि अम्मा के सिवा कोई और औरत होती तो भाग खड़ी होती.
अम्मा ने तो मौलवी के नुसखों को खूब आजमाया. बदले में, उसे मुंहमांगा पैसा दिया. इस के अलावा, मौलवी के कर्मकांडों में शिरकत करने के लिए जुगुनी को एक रात उसी के यहां छोड़ कर भी आई और तेजेंद्र से बहाना बना दिया कि जुगुनी अपनी एक सहेली की शादी में गई हुई है और रातभर वहीं रहेगी.
इस तरह उस ने मौलवी द्वारा दिए गए झाड़फूंक वाले कुछ रसायन और राखभभूत भी चोरीछिपे तेजेंद्र को भोजन में मिला कर खिलाई जिस से वह कभीकभी बीमार भी पड़ गया. पर, जब सारे नुसखे बेकार हो गए तो फिर, वह उसे कर्मकांडी ओझाओं और बाबाओं के पास भी ले गई.
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यह सब करते हुए जुगुनी उकता गई, ‘‘अम्मा, हमारी दुर्दशा काहे कर रही हो? अब जब तेजेंद्र ही नालायक और बेपरवाह हो कर गैरों पर अपना सर्वस्व लुटा चुका है तो हमारा कल्याण कभी नहीं हो सकता.’’
इसी दरम्यान, जुगुनी की एक रिश्ते की बहन कल्लो, जिसे टोनेटोटकों में बड़ी महारत हासिल थी, ने अम्मा को फोन कर के बताया, ‘‘मामी, जुगुनी के गर्भवती न होने का एक अहम कारण यह है कि तेजेंद्र के घर वालों ने ओझाओं द्वारा कुछ कर्मकांड करवाए हैं.
‘‘इस बार जब आप वापस घर आना तो जुगुनी को भी ले कर आना. मैं उस कर्मकांड की काट बताऊंगी. जुगुनी निश्चित तौर पर मां बनेगी और तेजेंद्र उस का साया बन कर उस के आगेपीछे डोलता फिरेगा.’’
उस के बाद, जब जुगुनी मायके गई तो उस की रिश्ते की बहन कल्लो समेत उस के जीजा ने भी उस से ढेरों कर्मकांड करवाए. उस ने अपने जीजा के घर में कुछ दिनों रह कर भी बहुतकुछ कर्मकांड किए. उन के साथ श्मशान घाट, पीर बाबा की मजार और शिवाले भी गई.
यों तो उस के जीजा किसी प्राइवेट औफिस में कार्यरत थे, पर वे भी हस्तविद्या, अंकविद्या जैसी ज्योतिष विद्याओं में पारंगत होने का खूब दम भरते थे और ज्योतिष की किताबें भी पढ़ा करते थे.
खुद जुगुनी ने तेजेंद्र को अपने जीजा की इस क्षेत्र में प्राप्त उपलब्धियों के बारे में विस्तार से बतलाया था कि उन्होंने कितनों को ही हीरा, पन्ना, नीलम और पुखराज जैसे पत्थरों की अंगूठियां पहना कर उन के समय में चारचांद लगाए हैं और तुम्हें उन से मिल कर अवश्य ही उपकृत-लाभान्वित होना चाहिए.
ऐसी बातों का हमेशा मखौल उड़ाने वाला तेजेंद्र उस की बात ही टाल जाता. बहरहाल, जब वह जीजा के यहां से वापस मायके आई तो तेजेंद्र के बड़े भाई कमलेंद्र उसे अपने शहर लेने आ गए. उन्होंने अम्मा से कहा, ‘‘मम्मीजी, जुगुनी को कुछ दिन मेरे यहां भी रहने के लिए भेज दीजिए, बच्चे अपनी छोटी आंटी से मिलने के लिए बेचैन हैं.’’
अम्मा तो कमलेंद्र की शक्लसूरत और कीरतसीरत पर पहले से ही फिदा थी और कई बार यह भी तमन्ना कर चुकी थी कि काश, जुगुनी को कमलेंद्र जैसा पति मिला होता. सो, उस ने कोई नानुकुर किए बिना, कमलेंद्र के साथ जुगुनी को विदा कर दिया, जहां वह उस के और उस के परिवार के साथ 2 हफ्ते रही.
कुल मिला कर, अम्मा तो इसी बात से बेहद खुश थी कि चलो, अपने पति तेजेंद्र के साथ रह कर जुगुनी भले ही खुश न रह पा रही हो, मायके आ कर कुछ दिन प्रसन्नचित्त तो हो जाती है. यहां वह अपने जीजा और तेजेंद्र के बड़े भाई के साथ कुछ दिन गुजार कर चैनसुकून की सांस ले पाती है.
उस ने उस से कहा भी, ‘‘जुगुनी, कभीकभार मायके आ कर रह जाया करो. मन बहल जाया करेगा. करमजले तेजेंद्र से दूर रह कर थोड़ी सी राहत तो तुम्हें मिल ही जाती है. यहां रहोगी तो हमारे प्रयास से तुम पेट से भी हो सकोगी. हम जल्दी ही मौलवियों, ज्योतिषियों, कर्मकांडियों और तुम्हारे जीजाजी के प्रयास से कुछ न कुछ करने में सफल हो ही जाएंगे. अब तो तुम्हारे जेठ भी तुम में बहुत दिलचस्पी लेने लगे हैं. वे तुम्हारे लिए बड़े चिंतित रहते हैं, कहते हैं कि जुगुनी को तेजेंद्र के रूप में नालायक शौहर मिला है.’’
वापस मुंबई लौट कर जुगुनी बहुत खुश थी. तेजेंद्र ने उस से कईर् बार उस की खुशी का राज जानना चाहा. वह बारबार एक ही बात कहती, ‘‘तुम्हें इतनी जलन क्यों हो रही है?’’
तेजेंद्र मायूस हो जाता, ‘‘मुझे जलन क्यों होने लगी? क्या मुझे तुम्हारी खुशी में शामिल होने का हक नहीं है?’’
तब वह तुनक उठती, ‘‘तुम्हें तो असली खुशी अपने भाईबहनों के साथ मिलती है. तुम्हें तो उन्हीं से शादी कर लेनी चाहिए थी.’’ वह चुप हो जाता, फुजूल में बात का बतंगड़ बनाने से क्या फायदा.
मायके से लौटने के बाद जुगुनी के तेवर बदलेबदले से थे. वह बारबार तेजेंद्र से उस की तनख्वाह और खर्च के बारे में पूछने लगी थी. पहले तो तेजेंद्र झल्ला गया, फिर, उस ने शांत मन से बतलाया, ‘‘मैं तो खर्चे का पैसा यथास्थान डब्बे में डाल ही देता हूं जहां से जिसे जितनी जरूरत हो, निकाल सकता है. कभी मैं ने यह नहीं पूछा कि किस मद में कितना पैसा खर्च हुआ है. तुम्हें भी अपने व्यक्तिगत खर्च के लिए पर्याप्त पैसे दे देता हूं. फिर तुम ये सब क्यों पूछ रही हो?
घर के लिए कमाता हूं और घर पर ही खर्च करता हूं. मेरी कोई ऐसीवैसी नाजायज आदत तो है भी नहीं कि पैसे का दुरुपयोग करूं. हां, तुम जब चाहो, मुझ से हिसाब ले सकती हो.’’ जुगुनी आवेश में आ गई, ‘‘हांहां, मुझे सब पता है. तुम झूठे नंबर वन हो. सारा पैसा अपने घर, अपने भाईबहनों को भेज देते हो. तभी तो हमें इतनी तंगहाली में दिन गुजारने पड़ रहे हैं. उन कमीनों ने तुम्हारे ऊपर जादू कर के तुम्हें अपने वश में कर रखा है.’’
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रोजरोज के ऐसे ताने सुन कर तेजेंद्र गुस्से में आ जाता. वह सोचता कि इतने रुपए खर्च करने और इतने आरामऐश से रखने पर भी जुगुनी की शिकायत बनी रहती है. पर वह कोई जवाब दिए बिना ऊपर छत पर चला जाता.
जुगुनी के मायके से आने के बाद कोई 2 हफ्ते ही गुजरे होंगे कि उस का जी मतलाने और सिरदर्द तथा बुखार आने की वजह से तेजेंद्र उसे डाक्टर के पास ले गया. डाक्टर ने सारे चैकअप करने के बाद बताया कि जुगुनी गर्भवती है. डाक्टर की घोषणा पर तेजेंद्र झूम उठा, ‘‘अरे, मैं ने तो इस बारे में कभी सोचा भी नहीं था कि तुम्हारा पति बनने के बाद पिता भी बनना होगा.’’ उस ने डाक्टर के यहां से घर लौटते समय रास्ते में ही मिठाई खरीदी और पड़ोस के हरेक घर में बंटवाई.
अगले दिन, औफिस में दोस्तों का भी मुंह मीठा करवाया. जुगुनी ने अम्मा को फोन कर के यह खुशखबरी दी तो उधर की प्रतिक्रिया कुछ ऐसी थी, ‘‘देखा न, मेरे कर्मकांडों का असर. अगर यह सब मैं न करती तो तुम्हें जीवनभर बांझ औरत होने का ताना खुद अपने ससुरालियों और पति से सुनना पड़ता. अब तेजेंद्र को उस औफिस वाली रखैल को छोड़ कर वापस तुम्हारे पास आना ही पड़ेगा.’’
जीजा और कमलेंद्र की ओर से भी शुभकामनाएं आईं. पर, जुगुनी इस उधेड़बुन में थी कि वह किस को धन्यवाद दे? मुंबई वाले मौलवी को या अपने मायके वाले कर्मकांडियों को या अपनी रिश्ते की बहन-कल्लो को, या तेजेंद्र के भाई को? सभी ने उसे पेट से होने के लिए क्याक्या उपाय नहीं किए थे.
महीने और साल गुजरते गए. पहला बेटा होने के कोई 5 वर्षों बाद दूसरी संतान बिटिया के रूप में हुई. तेजेंद्र ने एक आदर्श परिवार का निर्माण किया. वह जिस तर्कपूर्ण वैज्ञानिक दौर में जी रहा था, उस में उस ने अपने बलबूते पर एक अच्छे इलाके में अपने लिए एक घर लिया, एक कार खरीदी और जरूरत के अधिकतर सामान इकट्ठे किए.
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लेखक- डा. मनोज श्रीवास्तव
कहीं किसी औघड़ द्वारा तावीज पहन कर उसे ये चीजें मुहैया नहीं हुईं, जबकि सास का यह दावा था कि उस के अमुक पूजापाठ करवाने की वजह से तेजेंद्र एयर कंडीशन और वाशिंग मशीन खरीद सका. मेरे द्वारा फलानी देवी मइया के दर्शन से वह कार और स्कूटर खरीद पाया और प्रयाग में महाकुंभ स्नान करने पर वह अपने मकान में गृहप्रवेश कर सका.
अगर वह इतने ढेर सारे तामझाम और टोनेटोटके न करती तो वह सड़कछाप ही रह गया होता. बहरहाल, घर में कीमती सामान इकट्ठे कर के जुगुनी पूरे महल्ले में इतरा रही थी और पड़ोसवाले दिनेशजी, राय साहब व चौधरी साहब के बराबर अपनी हैसियत होने का वहम पाल रही थी.
पर, उफ्फ, तेजेंद्र के साथ सब से बुरी बात यह हुई कि छोटी बहनों में दूसरे नंबर की बहन मीठी की अचानक मौत हो गई. डाक्टरों ने कभी उसे क्षयरोग की दवा दी तो कभी निमोनिया की. कभी उसे पीलिया से ग्रस्त बताया गया तो कभी थैलीसीमिया से.
दरअसल, उसे तो कोई बीमारी हुई ही नहीं थी. बस, भावुक होने की वजह से सदमे में रहने लगी थी कि अब क्या होगा. 2 बेरोजगार भाइयों और 2 अनब्याही बहनों तथा एक परित्यक्त स्त्री (बहन) के परिवार का बेड़ा पार कैसे होगा? बड़े भाई ने अपनी जिम्मेदारियों से बहुत पहले ही किनारा कर लिया था. तेजेंद्र भी अपनी पत्नी के दबाव में उन के लिए कुछ भी कर पाने में असमर्थ था. यहां तक कि उन से मिलने की युक्ति भी नहीं कर पाता था. जुगुनी उसे बातबात में लांछित करती रहती थी.
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अपनी मौत से ठीक एक दिन पहले मीठी ने खुद फोन कर के तेजेंद्र से निवेदन किया, ‘‘भैया, आप तुरंत मेरे पास आ जाइए. मेरी तबीयत बहुत खराब चल रही है. आप आ जाएंगे तो मुझे ढाढ़स मिलेगा. मेरा मनोबल बढ़ेगा और मैं ठीक हो जाऊंगी.’’
तेजेंद्र ने उसे दिलासा दिया, ‘‘मैं यहां तुम्हारी भाभी से इजाजत ले कर शीघ्र आने का बंदोबस्त कर रहा हूं.’’ पर उसे तो बेहद डर लग रहा था कि अगर उस ने बीमार मीठी से मिलने जाने के लिए जुगुनी से कुछ कहा तो वह झगड़ाफसाद करने पर उतारू हो जाएगी और उसे किसी कीमत पर वहां नहीं जाने देगी. सारे गड़े मुर्दे उखाड़ने और दहेज के स्कूटर को वापस लेने के मुद्दे पर झगड़ने लगेगी.
लेकिन, अफसोस कि इस के पहले वह जुगुनी से इस बारे में बात करता, अगले ही दिन मीठी की तबीयत बिगड़ गई और उस के दिल की धड़कन रुक गई. तेजेंद्र को फोन पर खबर मिली कि मीठी नहीं रही.
वह बेहद आहत हुआ. मीठी के अंतिम शब्द थे, ‘कोई बड़ा आदमी घर में नहीं है.’ क्योंकि जब वह अंतिम सांसें ले रही थी, न तो पिताजी घर पर थे, न ही गजेंद्र. कमलेंद्र भाईसाहब के उपस्थिति होने की तो कल्पना ही नहीं की जा सकती थी. बस, उस की बड़ी और छोटी दोनों बहनें नंदिनी और रोशनी तथा तेजेंद्र का छोटा भाई प्रेमेंद्र ही उपस्थित थे. कमलेंद्र और तेजेंद्र तथा छोटा भाई गजेंद्र उस की अंत्येष्टि में मौजूद हुए. कमलेंद्र का परिवार अंत्येष्टि और दूसरे क्रियाकर्म में शामिल होने के लिए बाद में आया जबकि तेजेंद्र की पत्नी जुगुनी मीठी के शव के पास बैठ कर घडि़याली आंसू बहाती रही. जुगुनी के बड़े भाई शांताराम ने अंत्येष्टि के बाद के कर्मकांडों में पहुंचने का नाटक किया जबकि उस के मांबाप ने एक दिन पहुंच कर वहां अपनी मौजूदगी दर्ज की. अम्मा ने जुगुनी को एक कोने में ले जा कर उस के कान से अपना मुंह सटा दिया, ‘‘देखो जुगुनी, आगेआगे होता है क्या? तेरी ससुराल में बचेखुचे लोगों का भी सफाया जल्दी ही होने वाला है. मैं अपने कर्मकांडों के बल से खुद डायन बन कर लोगों के जीवन से खेल सकती हूं, यह मेरा दावा है. सारी दुनिया में उथलपुथल मचा सकती हूं.’’ तब, जुगुनी ने मुसकरा कर अम्मा को शांत रहने की सलाह दी.
जवान और अनब्याही बहन के निधन पर भाईबहन और सगेसंबंधी सभी व्याकुल थे. तेजेंद्र पश्चात्ताप की आग में जलता रहा, ‘काश, मैं मीठी के बुलाने पर समय से पहुंच गया होता तो इस अनिष्ट को रोका जा सकता था.’
बहरहाल, जब वह सारा कर्मकांड पूरा करा कर वहां से वापस मुंबई पहुंचा तो जुगुनी का दिमाग सातवें आसमान पर चढ़ा हुआ था. उस ने मुंबई पहुंचते ही अपने जवान हो रहे बेटे अनुग्रह के कान भर कर उसे अच्छी तरह पढ़ालिखा दिया था कि तुम्हारे चाचाबूआ तुम्हारे पापा के टुकड़ों पर पल रहे हैं और तुम्हारे पापा अपनी तनख्वाह का एक हिस्सा उन के खर्चे के लिए हर माह भेज देते हैं. अनुग्रह को लगा कि उस का हक उस के चाचाबूआ मार रहे हैं. सो, वह अपने पिता की न केवल पूरी तरह अवज्ञा करने लगा, बल्कि उन से बदतमीजी से पेश भी आने लगा.
जुगुनी ने पता नहीं किस तरह उसे भड़काया कि एक दिन वह सारी हदें लांघ गया और उस ने अपने पापा पर हाथ उठा दिया. तेजेंद्र अपने बेटे की मार खा कर शर्र्म से जारजार हो गया. उस का जी कर रहा था कि वह खुदकुशी कर ले. पर, उस के सामने तो घर की जिम्मेदारियां थीं, जिन्हें वह पूरा कर के ही इस दुनिया से कूच करेगा.
वह छत पर चला गया और खुद को एक कमरे में बंद कर लिया. वह विषम परिस्थितियों से बेहद डर गया. अब उसे ऐसी स्थिति से बचना चाहिए ताकि वह अपने बेटे की हिंसा का शिकार न हो.
पर, जुगुनी तो उस की हालत देख, मन ही मन खुश हो रही थी. उस ने झट अम्मा को फोन लगा कर इस बारे में जानकारी दी, ‘‘आज तेजेंद्र को हम ने बेबस व लाचार कर दिया है. कितनी अच्छी बात है कि अनुग्रह अब मेरा साथ दे रहा है और उस ने आज अपने बाप की पिटाई भी की है. पर, वह बेहया, अपनी हरकत से बाज आने वाला नहीं है. वह अभी भी अपने भाईबहनों के लिए बेचैन है.’’
अम्मा खुशी से चहक उठी, ‘जुगुनी, अभी कल मैं देवी मइया के दर्शन करने गई थी. मैं ने उन से मांगा था कि वे जल्दी से जल्दी मेरी जुगुनी की जिंदगी संवार दें. अहा, मइया की कृपा तत्काल हो गई है. देखना, अब तू गिनती के कुछ दिनों में आबाद हो जाएगी. कोई भूचाल आएगा जिस में तेजेंद्र और उस के परिवार वाले मीठी की तर्ज पर बिना वजह कुत्ते की मौत मरेंगे और तू तेजेंद्र की मिल्कियत पर राज करेगी. यह तुझ से मेरा वादा है.’’
अम्मा से बातचीत बंद होते ही जुगुनी का भाई शांताराम, जिस ने पड़ोस में ही मकान ले रखा था, आ धमका. दरअसल, तेजेंद्र के किसी पड़ोसी ने उस के घर में होहल्ला सुन कर उसे जा कर बता दिया था कि तेजेंद्र और जुगुनी के बीच आजकल खूब ठनी हुई है और ऐसे मौके का मजा लेने के लिए तुम्हारा वहां मौजूद होना जरूरी है. सो, शांताराम ने आते ही चुटकी ली, ‘‘मेरे इशारे पर सही जा रही हो, जुगुनी. कुछ समय पहले जब तेजेंद्र के भाईबहन भी आए हुए थे, मैं ने देखा था कि अनुग्रह अपने चाचाबूआओं से बड़े प्यार और इज्जत से पेश आ रहा था. मुझे अनुग्रह को उन के इतना करीब पा कर बेहद डाह हो रही थी. तब, मैं ने तुम से कहा था कि जुगुनी, तुम्हें अपने बच्चों के मन में ऐसी ऊलजलूल बातें डालनी होंगी कि वे अपने चाचाबूआओं से घोर नफरत करने लगे.
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‘‘आज मुझे कितनी खुशी हो रही है कि तुम ने मेरे सबक पर अमल किया. अनुग्रह ने अपने बाप की पिटाई कर के मेरे मन को बहुत ठंडक पहुंचाई है. वह तो उस का दुश्मन बन गया है. अब देखना, तुम्हारे अच्छे दिन आने वाले हैं. तुम कुछ ही समय में फलनेफूलने लगोगी.’’
तब जुगुनी ने शांताराम के कान में फुसफुसा कर कहा, ‘‘वो मुआ तेजेंद्र ऊपर कमरे में खुद को बंद कर के शोक मना रहा होगा. दरअसल, वह अपने भाईबहनों से मोबाइल पर बात कर रहा होगा. वह उन से छिपछिप कर बात करने से कभी बाज नहीं आएगा.’’
अत्यंत उपेक्षित और अपमानित हो कर तेजेंद्र छत पर बने अलग कमरे में रहने लगा था. जुगुनी अपनी अम्मा से पाठ पढ़ कर उसे मानसिक रूप से और भी प्रताडि़त करने लगी थी.
जैसे ही वह नीचे की मंजिल पर किसी काम से आता, वह ताने देने लगती, ‘‘अपनी रसोई भी ऊपर ही कर लो. नीचे अपनी मनहूस शक्ल दिखाने क्यों आ जाते हो?’’ तब, अनुग्रह भी व्यंग्य करने से बाज नहीं आता. लेकिन, मन से तनिक भावुक बेटी रचना, जो अपने भाई से 5 साल छोटी थी, बड़ी सहानुभूति से पापा को देखती. पर, मम्मी के डर से उस के पक्ष में कुछ भी न बोल पाती. वह सशंकित होती कि मम्मी उस की शिकायत नानी अर्थात अम्मा से न कर दें.
तेजेंद्र का मन दुनिया से उचटता जा रहा था. पत्नी ने तो उसे औरत का सुख कभी दिया ही नहीं, बेटे ने भी उस का दिल खूब तोड़ा जबकि उस ने अपनी जिम्मेदारियां बखूबी निभाई थीं. अपनी पैतृक विरासत और रिश्तों से भी वह दूर होता जा रहा था.
एक दिन शाम को औफिस से लौट कर उसे अचंभा हुआ. उस ने नीचे की मंजिल में झांक कर देखा कि जुगुनी की अम्मा, भाई शांताराम और जीजा दोनों ड्राइंगरूम में आ कर जमे हुए हैं. पता नहीं, वे कब आए और क्यों? उस ने छिप कर उन की बातें सुनी. उसे यह जान कर अत्यधिक क्षोभ हुआ कि वे सारे उसे येनकेनप्रकारेण किनारे लगाने की साजिश रच रहे हैं. वह बेहद रोंआसा और संजीदा हो गया. उसे यकीन नहीं हो रहा था कि उस की ससुराल वाले ही नहीं, खुद उस की पत्नी भी उस से किनारा करना चाहती है.
मानसिक तनाव से उस का सिर फटने लगा. ब्लडप्रैशर से दिल में दर्द भी होने लगा. तब उस ने सिरदर्द की एक गोली ली और छत पर जा कर दरवाजे पर सांकल चढ़ाया और जमीन पर ही लेट गया. लेटे ही लेटे उस ने सीलिंग फैन की ओर देखा, फांसी लगा कर आत्महत्या कर लेने से ही मेरी दैहिकमानसिक अशांति का शमन होगा. पर, उस ने आखिरकार अपने कदम वापस खींच लिए, अभी तो बेटे अनुग्रह को उच्चशिक्षा दिलानी है और जवान हो रही बिटिया की शादी करनी है.
अभी मुझे तो आत्महत्या का खयाल तक नहीं लाना चाहिए, अन्यथा लोग क्या कहेंगे कि इस ने अपनी जरूरी जिम्मेदारियां तक नहीं निभाईं, फिर जैसे ही उस ने सीढि़यां उतरने के लिए जमीन से उठने की कोशिश की, वह संभल नहीं पाया और बैड पर ही निढाल लुढ़क गया. शायद, ब्लडप्रैशर ज्यादा बढ़ गया था.
सुबह जब देर तक तेजेंद्र का दरवाजा नहीं खुला तो जुगुनी ने शांताराम को बुला भेजा, वह मुआ अभी भी नींद के खुमार में ऊपर बैड तोड़ रहा है. उस से पूछो कि उसे औफिस जाना है या नहीं? जुगुनी लगातार भुनभुनाती जा रही थी.
लेकिन, कई बार जोरजोर से आवाज लगाने और दरवाजा पीटने पर भी जब तेजेंद्र की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई तो जुगुनी ने ताना कसा, ‘‘लगता है, उस ने नींद की गोली खा रखी है?’’ आखिरकार, शांताराम ने दरवाजा पड़ोसियों की मदद से तोड़ दिया. अंदर प्रवेश कर जब उस ने बैड पर पड़े तेजेंद्र का बदन हिलाया तो उस में कोई हरकत नहीं हुई. वहां खड़ी जुगुनी ने फिर चुटकी ली, यह तो ऐसे ही घोड़ा बेच कर सोता है.
फिर शांताराम ने उस की नाड़ी टटोली और सीने पर हाथ रखा तो वह एकदम से हड़बड़ा उठा, ‘‘अरे, इस की तो सांस ही नहीं चल रही.’’ तब तक पड़ोस के डाक्टर हितेश भी आ चुके थे, उन्होंने तेजेंद्र की जांच की और सिर झुका लिया, ‘‘ही इज नो मोर. ही डाइड औफ अ सीवियर हार्ट अटैक.’’
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जब शांताराम ने जुगुनी को आंख मार कर कुछ गुप्त इशारा किया तो उस ने माहौल के मुताबिक अपनेआप को ढालते हुए रोने का नाटक शुरू कर दिया. जब तक महल्ले वाले शोरगुल सुन कर इकट्ठे होते, जुगुनी झट रूमाल पानी से भिगो कर आंखें पोंछते हुए दहाड़ें मारमार कर रोने लगी. जमीन पर हाथ पटकपटक कर चूडि़यां तोड़ीं, मांग में लगा सिंदूर मिटाया. उस की अम्मा को उस के इस सिद्धहस्त व्यवहार को देख बड़ा अचंभा हो रहा था कि उस की बेटी तो उस से भी बढि़या नौटंकी कर लेती है.
पूरे तेरह दिनों तक चलने वाली तेजेंद्र की अंत्येष्टिक्रिया के समापन के बाद ताजी जानकारी यह है कि जुगुनी के जीजा स्थायी तौर पर मुंबई में बस चुके हैं तेजेंद्र द्वारा जमाई गई गृहस्थी में. अम्मा ने भी वहां पक्का डेरा जमा लिया है जबकि तेजेंद्र के बड़े भाई कमलेंद्र, जिन की जुगुनी पर विशेष कृपा थी, का आनाजाना लगा रहता है. जुगुनी अपने रचे हुए इस नए संसार में बेहद खुश नजर आ रही थी. ऐसा लग रहा था मानो बुराई ने अच्छाई को निगल लिया हो.
एक ट्रंक, एक अटैची और एक बिस्तर, बस, यही संपत्ति समेट कर वे अंधेरी रात में घर छोड़ कर चले गए थे. 6 लोग. वह, उस की पत्नी, 2 अबोध बच्चे और 2 असहाय वृद्ध जिन का बोझ उसे जीवन में पहली बार महसूस हो रहा था. ‘‘अम्मी, हम इस अंधेरे में कहां जा रहे हैं?’’ जाते समय 7 साल की बच्ची ने मां से पूछा था.
‘‘नरक में…बिंदिया, तुम चुपचाप नहीं बैठ सकतीं,’’ मां ने खीझते हुए उत्तर दिया था. बच्ची का मुंह बंद करने के लिए ये शब्द पर्याप्त थे. वे कहां जा रहे थे उन्हें स्वयं मालूम न था. कांपते हाथों से पत्नी ने मुख्यद्वार पर सांकल चढ़ा दी और फिर कुंडी में ताला लगा कर उस को 2-3 बार झटका दे कर अपनी ओर खींचा. जब ताला खुला नहीं तो उस ने संतुष्ट हो कर गहरी सांस ली कि चलो, अब मकान सुरक्षित है.
धीरेधीरे सारा परिवार न जाने रात के अंधेरे में कहां खो गया. ताला कोई भी तोड़ सकता था. अब वहां कौन किस को रोकने वाला था. ताला स्वयं में सुरक्षा की गारंटी नहीं होता. सुरक्षा करते हैं आसपास के लोग, जो स्वेच्छा से पड़ोसियों के जानमाल की रक्षा करना अपना कर्तव्य समझते हैं. लेकिन यहां पर परिस्थितियों ने ऐसी करवट बदली थी कि पड़ोसियों पर भरोसा करना भी निरर्थक था. उन्हें अपनी जान के लाले पड़े हुए थे, दूसरों की रखवाली क्या करते. अगर वे किसी को ताला तोड़ते देख भी लेते तो उन की भलाई इसी में थी कि वे अपनी खिड़कियां बंद कर के चुपचाप अंदर बैठे रहते जैसे कुछ देखा ही न हो. फिर ऐसा खतरा उठाने से लाभ भी क्या था. तालाब में रह कर मगरमच्छ से बैर. कई महीने ताला अपने स्थान पर यों ही लटकता रहा. समय बीतने के साथसाथ उस निर्वासित परिवार के वापस आने की आशा धूमिल पड़ती गई. मकान के पास से गुजरने वाला हर व्यक्ति लालची नजरों से ताले को देखता रहता और फिर अपने मन में सोचता कि काश, यह ताला स्वयं ही टूट कर गिर जाता और दोनों कपाट स्वयं ही खुल जाते.
फिर एक दिन धायं की आवाज के साथ लोहा लोहे से टकराया, महीनों से लटके ताले की अंतडि़यां बाहर आ गईं. किसी अज्ञात व्यक्ति ने अमावस के अंधेरे की आड़ ले कर ताला तोड़ दिया. सभी ने राहत की सांस ली. वे आश्वस्त थे कि कम से कम उन में से कोई इस अपराध में शामिल नहीं है.
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ताला जिस आदमी ने तोड़ा था वह एक खूंखार आतंकवादी था, जो सुरक्षाकर्मियों से छिपताछिपाता इस घर में घुस गया था. खाली मकान ने रात भर उस को अपने आंचल में पनाह दी थी. अंदर आते ही अपने कंधे से एके-47 राइफल उतार कर कुरसी पर ऐसे फेंक दी जैसे वर्षों की बोझिल और घृणित जिंदगी का बोझ हलका कर रहा हो. उस के बाद उस ने अपने भारीभरकम शरीर को भी उसी घृणा से नरम बिस्तर पर गिरा दिया और कुछ ही मिनटों में अपनी सुधबुध खो बैठा. आधी रात को वह भूख और प्यास से तड़प कर उठ बैठा. सामने कुरसी पर रखी एके-47 न तो उस की भूख मिटा सकती थी और न ही प्यास. साहस बटोर कर उस ने सिगरेट सुलगाई और उसी धीमी रोशनी के सहारे किचन में जा कर पानी ढूंढ़ने लगा. जैसेतैसे उस ने मटके में से कई माह पहले भरा हुआ पानी निकाल कर गटागट पी लिया. फिर एक के बाद एक कई माचिस की तीलियां जला कर खाने का सामान ढूंढ़ने लगा. किचन पूरी तरह से खाली था. कहीं पर कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था.
‘‘कुछ भी नहीं छोड़ा है घर में. सब ले कर भाग गए हैं,’’ उस के मुंह से सहसा निकल पड़ा. तभी उस की नजर एक छोटी सी अलमारी पर पड़ी जिस में कई चेहरों की बहुत सारी तसवीरें सजी हुई थीं. उन पर चढ़ी हुई फूलमालाएं सूख चुकी थीं. तसवीरों के सामने एक थाली थी जिस में 5 मोटे और मीठे रोट पड़े थे जो भूखे, खतरनाक आतंकवादी की भूख मिटाने के काम आए. पेट की भूख शांत कर वह निश्चिन्त हो कर सो गया.
सुबह होने से पहले उस ने मकान में रखे हुए ट्रंकों, संदूकों और अलमारियों की तलाशी ली. भारीभरकम सामान उठाना खतरे से खाली न था. वह तो केवल रुपए और गहनों की तलाश में था मगर उस के हाथ कुछ भी न लगा. निराश हो कर उस ने फिर घर वालों को एक मोटी सी गाली दी और अपने मिशन पर चल पड़ा. दूसरे दिन सुरक्षाबलों को सूचना मिली कि एक खूंखार आतंकवादी ने इस मकान में पनाह ली है. उन का संदेह विश्वास में उस समय बदला जब उन्होंने कुंडे में टूटा हुआ ताला देखा. उन्होंने मकान को घेर लिया, गोलियां चलाईं, गोले बरसाए, आतंकवादियों को बारबार ललकारा और जब कोई जवाबी काररवाई नहीं हुई तो 4 सिपाही अपनी जान पर खेलते हुए अंदर घुस गए. बेबस मकान गोलीबारी से छलनी हो गया मगर बेजबानी के कारण कुछ भी बोल न पाया.
खैर, वहां तो कोई भी न था. सिपाहियों को आश्चर्य भी हुआ और बहुत क्रोध भी आया. ‘‘सर, यहां तो कोई भी नहीं,’’ एक जवान ने सूबेदार को रिपोर्ट दी.
‘‘कहीं छिप गया होगा. पूरा चेक करो. भागने न पाए,’’ सूबेदार कड़क कर बोला. उन्होंने सारे मकान की तलाशी ली. सभी ट्रंकों, संदूकों को उलटापलटा. उन में से साडि़यां ऐसे निकल रही थीं जैसे कटे हुए बकरे के पेट से अंतडि़यां निकल कर बाहर आ रही हों. कमरे में चारों ओर गरम कपड़े, स्वेटर, बच्चों की यूनिफार्म, बरतन और अन्य वस्तुएं जगहजगह बिखर गईं. जब कहीं कुछ न मिला तो क्रोध में आ कर उन्होंने फर्नीचर और टीन के ट्रंकों पर ताबड़तोड़ डंडे बरसा कर अपने गुस्से को ठंडा किया और फिर निराश हो कर चले गए.
उस दिन के बाद मकान में घुसने के सारे रास्ते खुल गए. लोग एकदूसरे से नजरें बचा कर एक के बाद एक अंदर घुस जाते और माल लूट कर चले आते. पहली किस्त में ब्लैक एंड व्हाइट टीवी, फिलिप्स का ट्रांजिस्टर, स्टील के बरतन और कपड़े निकाले गए. फिर फर्नीचर की बारी आई. सोफा, मेज, बेड, अलमारी और कुरसियां. यह लूट का क्रम तब तक चलता रहा जब तक कि सारा घर खाली न हो गया. उस समय मकान की हालत ऐसी अबला नारी की सी लग रही थी जिस का कई गुंडों ने मिल कर बलात्कार किया हो और फिर खून से लथपथ उस की अधमरी देह को बीच सड़क पर छोड़ कर भाग गए हों.
मकान में अब कुछ भी न बचा था. फिर भी एक पड़ोसी की नजर देवदार की लकड़ी से बनी हुई खिड़कियों और दरवाजों पर पड़ी. रात को बापबेटे इन खिड़कियों और दरवाजों को उखाड़ने में ऐसे लग गए कि किसी को कानोंकान खबर न हुई. सूरज की किरणें निकलने से पहले ही उन्होंने मकान को आग के हवाले कर दिया ताकि लोगों को यह शक भी न हो कि मकान के दरवाजे और खिड़कियां पहले से ही निकाली जा चुकी हैं और शक की सुई सुरक्षाबलों की तरफ इशारा करे क्योंकि मकान की तलाशी उन्होंने ली थी. आसपास रहने वालों को ज्यों ही पता चला कि मकान जल रहा है और आग की लपटें अनियंत्रित होती जा रही हैं, उन्हें अपनेअपने घरों की चिंता सताने लगी. वे जल्दीजल्दी पानी से भरी बाल्टियां लेले कर अपने घरों से बाहर निकल आए और आग पर पानी छिड़कने लगे. किसी ने फायर ब्रिगेड को भी सूचना दे दी. उन की घबराहट यह सोच कर बढ़ने लगी कि कहीं आग की ये लपटें उन के घरों को राख न कर दें.
मकान जो पहले से ही असहाय और बेबस था, मूक खड़ा घंटों आग के शोलों के साथ जूझता रहा. …शोले, धुआं, कोयला. दिल फिर भी मानने को तैयार न था कि इस मलबे में अब कुछ भी शेष नहीं बचा है. ‘कुछ न कुछ, कहीं न कहीं जरूर होगा. आखिर इतने बड़े मकान में कहीं कोई चीज तो होगी जो किसी के काम आएगी,’ दिल गवाही देता.
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एक अधेड़ उम्र की औरत ने मलबे में धंसी हुई टिन की जली हुई चादरों को देख लिया. उस ने अपने 2 जवान बेटों को आवाज दी. देखते ही देखते उन से सारी चादरें उठवा लीं और स्वयं सजदे में लीन हो गई. टीन की चादरें, गोशाला की मरम्मत के काम आ गईं. एक और पड़ोसी ने बचीखुची ईंटें और पत्थर उठवा कर अपने आंगन में छोटा सा शौचालय बनवा लिया. जो दीवारें आग और पानी के थपेड़ों के बावजूद अब तक खड़ी थीं, हथौड़ों की चोट न सह सकीं और आंख झपकते ही ढेर हो गईं. कुछ दिन बाद एक गरीब विधवा वहां से गुजरी. उस की निगाहें मलबे के उस ढेर पर पड़ीं. यहांवहां अधजली लकडि़यां और कोयले दिखाई दे रहे थे. उसे बीते हुए वर्ष की सर्दी याद आ गई. सोचते ही सारे बदन में कंपकंपी सी महसूस हुई. उस ने आने वाले जाड़े के लिए अधजली लकडि़यां और कोयले बोरे में भर लिए और वापस अपने रास्ते पर चली गई.
मकान की जगह अब केवल राख का ढेर ही रह गया था. पासपड़ोस के बच्चों ने उसे खेल का मैदान बना लिया. हर रोज स्कूल से वापस आ कर बैट और विकेटें उठाए बच्चे चले आते और फिर क्रिकेट का मैच शुरू हो जाता.
हमेशा की तरह उस दिन भी 4 लड़के आए. एक लड़का विकेटें गाड़ने लगा. विकेट जमीन में घुस नहीं रहे थे. अंदर कोई चीज अटक रही थी. उस ने छेद को और चौड़ा किया. फिर अपना सिर झुका कर अंदर झांका. सूर्य की रोशनी में कोई चमकीली चीज नजर आ रही थी. वह बहुत खुश हुआ. इस बीच शेष तीनों लड़के भी उस के इर्दगिर्द एकत्रित हो गए. उन्होंने भी बारीबारी से छेद के अंदर देखने की कोशिश की और उस चमकती वस्तु को देखते ही उन की आंखों में चमक आ गई और मन में लालच ने पहली अंगड़ाई ली. ‘हो न हो सोने का कोई जेवर होगा.’ हरेक के मन में यही विचार आया लेकिन कोई भी इस बात को जबान पर लाना नहीं चाहता था.
पहले लड़के ने विकेट की नोक से वस्तु के इर्दगिर्द खोदना शुरू कर दिया. दूसरा लड़का दौड़ कर अपने घर से लोहे की कुदालनुमा एक वस्तु ले कर आ गया और उस को पहले लड़के को सौंप दिया. पहला लड़का अब कुदाल से लगातार खोदने लगा जबकि बाकी तीनों लड़के उत्सुकता और बेचैनी से मन ही मन यह दुआ मांगते रहे कि काश, कोई जेवर निकल आए और उन को खूब सारा पैसा मिल जाए.
खुदाई पूरी हो गई. इस से पहले कि पहला लड़का अपना हाथ सुराख में डालता और गुप्त खजाने को बाहर निकालता, दूसरे लड़के ने कश्मीरी भाषा में आवाज दी : ‘‘अड़स…अड़स…’’ अर्थात मैं भी बराबर का हिस्सेदार हूं.
सभी अपनेअपने काम में लग गए. प्रताप अपनी सीट पर अकेला रह गया तो विचारों में खो गया. उस के दिमाग में सुधा से कहासुनी से ले कर मैनेजर साहब को खरीखोटी सुनाने तक की एकएक घटना चलचित्र की तरह घूम गई. पैन निकालने के लिए उस ने जेब में हाथ डाला तो पुलिस द्वारा दी गई रसीद भी पैन के साथ बाहर आ गई. रसीद देख कर उस का दिमाग भन्ना उठा. मेज पर रखे पानी के गिलास को खाली कर के वह आहिस्ता से उठा. पैर में दर्द होने के बावजूद वह धीरेधीरे आगे बढ़ा. टैलीफोन मैनेजर साहब की ही मेज पर था. प्रताप उसी ओर बढ़ रहा था. प्रताप के गंभीर चेहरे को देख कर मैनेजर घबराए. उन की हालत देख कर प्रताप के होंठों पर कुटिल मुसकान तैर गई. मैनेजर साहब की ओर देखे बगैर ही वह उन के सामने पड़ी कुरसी पर बैठ गया. टैलीफोन अपनी ओर खींच कर पुलिस की ट्रैफिक शाखा का नंबर मिला दिया. दूसरी ओर से आवाज आई, ‘‘नमस्कारजी, मैं ट्रैफिक शाखा से हैडकौंस्टेबल ईश्वर सिंह बोल रहा हूं.’’
‘‘नमस्कार ईश्वर सिंहजी, आप ब्लूलाइन बसों के खिलाफ मेरी एक शिकायत लिखिए.’’
‘‘आप की जो शिकायत हो, लिख कर भेज दीजिए.’’
‘‘लिख कर भेजूंगा तो तुम्हें अपनी औकात का पता चल जाएगा…’’ प्रताप थोड़ा रोष में बोला, ‘‘फोन किसी जिम्मेदार अधिकारी को दीजिए.’’
‘‘औफिस में इस समय और कोई नहीं है. इंस्पैक्टर साहब और एसीपी साहब राउंड पर हैं.’’
‘‘एसीपी साहब के पास तो मोबाइल फोन होगा, उन का नंबर दो.’’
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कौंस्टेबल ईश्वर सिंह ने जो नंबर दिया था, उसे मिलाते हुए प्रताप खुन्नस में था. उधर से स्विच औन होते ही वह बोला, ‘‘सर, मैं प्रताप सिंह बोल रहा हूं. मेरी एक शिकायत है.’’
‘‘बोलो.’’
‘‘आप के टै्रफिक के नियम सिर्फ स्कूटर वालों के लिए ही हैं क्या? सड़क पर जिस तरह अंधेरगर्दी के साथ ब्लूलाइन बसें दौड़ रही हैं, आप के स्टाफ वालों को दिखाई नहीं देतीं?’’ प्रताप की आवाज क्रोध में कांप रही थी.
‘‘देखिए साहब, जो पकड़ी जाती हैं, उन के खिलाफ कार्यवाही की जाती है.’’
‘‘क्या कार्यवाही करते हैं आप लोग, वह सब मैं जानता हूं,’’ प्रताप काफी गुस्से में था इसलिए उस के स्वर में थोड़ा तल्खी थी. उसी तल्ख आवाज में वह बोला, ‘‘यहां आश्रम रोड पर आ कर थोड़ी देर खड़े रहिए. ड्राइवर बसें किस तरह बीच सड़क पर खड़ी कर के सवारियां भरते हैं, देख लेंगे. उस व्यस्त सड़क पर भी ओवरटेक करने में उन्हें जरा हिचक नहीं होती. आप के पुलिस वाले खड़े यह सब देखते रहते हैं.’’
‘‘देखिए प्रतापजी, डिपार्टमैंट अपनी तरह से काम करता है.’’
‘‘कुछ नहीं करता, साहब, आप का पूरा का पूरा डिपार्टमैंट बेकार है. आप के पुलिसकर्मी घूस लेने में लगे रहते हैं. बस वालों से हफ्ता लेते हैं, ऐसे में उन के खिलाफ कैसे कार्यवाही करेंगे?’’
‘‘माइंड योर लैंग्वेज. आप अपनी शिकायत लिख कर भेज दीजिए. दैट्स आल,’’ दूसरी ओर से फोन काट दिया गया.
‘लिखित शिकायत करूंगा…जरूर करूंगा?’ बड़बड़ाता हुआ प्रताप अपनी सीट पर आ कर बैठ गया. पैन उठाया और जिस तरह तोप में गोला भरा जाता है, उसी तरह ठूंसठूंस कर पूरे पेज में एकएक बात लिखी. होंठ भींचे वह लिखता रहा. उस का आक्रोश अक्षर के रूप में कागज पर उतरता रहा. शिकायत का पत्र पूरा हुआ तो उस ने संतोष की सांस ली. पूरे कागज पर एक नजर डाल कर उसे मोड़ा और डायरी में रख लिया. डायरी हाथ में ले कर वह उठ खड़ा हुआ. घुटने में अभी भी दर्द हो रहा था. मगर उस की परवा किए बगैर वह बैंक से बाहर आया. बैंक के सामने ही पीसीओ में फैक्स की सुविधा भी थी. वह सीधे पीसीओ पर पहुंचा. सामने बैठे पीसीओ के मालिक लालबाबू के हाथ में कागज और एक चिट पकड़ाते हुए कहा, ‘‘चिट में लिखे नंबरों पर इसे फैक्स करना है.’’
लालबाबू उन सभी नंबरों के बगल में लिखे नामों को देख कर प्रताप को ताकने लगा. मुख्यमंत्री, राज्यपाल, गृहमंत्री से ले कर पुलिस कमिश्नर तक के नंबर थे वे. उस चिट में शहर के प्रमुख अखबारों के भी फैक्स नंबर थे. अपनी ओर एकटक देख रहे लालबाबू से उस ने कहा, ‘‘सभी नंबरों पर इसे फैक्स कर दीजिए.’’
‘‘जी,’’ उस ने प्रताप द्वारा दिए कागज को फैक्स मशीन में इंसर्ट किया. फिर एकएक नंबर डायल करता रहा. फैक्स मशीन में कागज एक तरफ से घुस कर, दूसरी ओर से निकलने लगा. प्रताप खड़ा इस प्रक्रिया को ध्यान से देख रहा था. सारे फैक्स ठीक से हो गए हैं, इस के कन्फर्मेशन की रिपोर्ट की कौपी लालबाबू ने प्रताप के हाथ में पकड़ाने के साथ ही बिल भी थमा दिया. पैसे दे कर सभी कन्फर्मेशन रिपोर्ट्स प्रताप ने डायरी में संभाल कर रखी और पीसीओ से बाहर निकल आया. अब प्रताप के दिमाग की तनी नसें थोड़ी ढीली हुईं. जिस से उस ने स्वयं को काफी हलका महसूस किया. कितने दिनों से वह इस काम के बारे में सोच रहा था. आखिर आज पूरा हो ही गया.
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फैक्स सभी को मिल ही गया होगा. अब मजा आएगा. फैक्स जैसे ही मिलेगा, मुख्यमंत्री गृहमंत्री से कहेंगे. उन्हें भी फैक्स की कौपी मिल गई होगी. राज्यपाल के यहां से भी सूचना आएगी. सब की नाराजगी पुलिस कमिश्नर को झेलनी पड़ेगी. फिर वे एसीपी ट्रैफिक को गरम करेंगे. उस के बाद नंबर आएगा कौंस्टेबलों का. एसीपी एकएक कौंस्टेबल का तेल निकालेगा. बैंक में आ कर वह अपनी सीट पर बैठ गया. अब उसे बड़े भाई की याद आ गई. पिछली रात वे पैसे के लिए उस से किस तरह गिड़गिड़ा रहे थे. उसी क्षण उस की आंखों के सामने सुधा का तमतमाया चेहरा नाच गया. मन ही मन उसे एक साथ 4-5 गालियां दे कर वह कुरसी से उठ खड़ा हुआ. बैंक के कर्मचारियों की के्रडिट सोसायटी बहुत ही व्यवस्थित ढंग से चल रही थी. सोसायटी के सैके्रटरी नरेंद्र नीचे के फ्लोर पर बैठते थे. वह लिफ्ट से नीचे उतरा. नरेंद्र अपनी केबिन में बैठे थे. उन की मेज के सामने पड़ी कुरसी खींच कर वह बैठ गया. लोन के लिए फौर्म ले कर उस ने भरा और नरेंद्र की ओर बढ़ाते हुए कहा, ‘‘नरेंद्र साहब, बड़े भाई थोड़े गरीब हैं. उन्हें मकान की मरम्मत करानी है. यदि मरम्मत नहीं हुई तो बरसात में दिक्कत हो सकती है. इसलिए मैं आग्रह करता हूं कि मेरी अर्जी पर विशेष ध्यान दीजिएगा.’’
‘‘नरेंद्र साहब ने अत्यंत मधुर स्वर में कहा, ‘‘इस महीने खास दबाव नहीं है, इसलिए आप का काम आराम से हो जाएगा. आप को 80 हजार रुपए चाहिए न?’’
प्रताप ने स्वीकृति में सिर हिलाया. नरेंद्र साहब ने फौर्म में लगी रसीद फाड़ कर प्रताप की ओर बढ़ाते हुए कहा, ‘‘अपने भाईसाहब से कहना कि वे
सारी व्यवस्था करें. 3 तारीख को पैसा मिल जाएगा.’’
‘‘थैंक्स,’’ प्रताप ने सैक्रेटरी साहब का हाथ थाम कर कहा, ‘‘थैंक्यू वैरी मच.’’
नरेंद्र द्वारा दी गई रसीद जेब में रख कर प्रताप खड़ा हुआ. उस की एक बहुत बड़ी टैंशन खत्म हो गई थी. पैसा पा कर बेचारा बड़ा भाई खुश हो जाएगा. यदि भैया हर महीने आ कर अपनी किस्त दे जाएंगे तो कोई परेशानी नहीं होगी. सुधा को इस बात का पता ही नहीं चलेगा. सुधा की याद आते ही उस की मुट्ठियां भिंच गईं.
उस की विचारयात्रा आगे बढ़ी. यदि उसे पता चल भी जाएगा तो क्या कर लेगी? ज्यादा से ज्यादा झगड़ा करेगी. जब तक कान सहन करेंगे, सहता रहूंगा. उस के बाद अपने हाथों का उपयोग करूंगा. एक बार उलटा जवाब मिल जाएगा तो उस का दिमाग अपनेआप ही ठिकाने पर आ जाएगा.
सुधा के विचारों से मुक्त होना प्रताप के लिए आसान नहीं था. फिर भी उस ने औफिस की फाइलों में मन लगाने का प्रयास किया. बैंक की बिल्ंिडग के गेट के पास जो मैकेनिक था, प्रताप ने स्कूटर की चाबी दे कर उसे लाने के लिए भेज दिया था. साथ ही, यह भी कह दिया था कि शाम तक वह स्कूटर बना कर तैयार कर देगा.
शाम को प्रताप बैंक से निकला तो मैकेनिक ने स्कूटर बना कर तैयार कर दिया था. वह स्कूटर स्टार्ट कर ही रहा था कि उस के कंधे पर किसी ने हाथ रखा. उस ने पलट कर देखा, दीपेश बैग टांगे खड़ा था. उस के साथ आकाश और दीपक भी थे. दीपेश ने कहा, ‘‘यार, मैं तुझ से मिलने तेरे बैंक आया हूं और तू घर भागने की तैयारी कर रहा है? लगता है, भाभी से बहुत डरता है?’’
‘‘यार, सुबहसुबह ऐक्सिडैंट हो गया था, जिस में यह देखो घुटना छिल गया है,’’ प्रताप ने पैर उठा कर फटे पैंट के नीचे घुटना दिखाते हुए कहा, ‘‘परंतु अब जब तुम तीनों मिल गए हो तो
सारी तकलीफ दूर हो गई है. हम
चारों अंतिम बार कब मिले थे? मेरे खयाल से साल, डेढ़ साल तो हो ही गए होंगे?’’
‘‘नहीं, भाई, पूरे 2 साल हो गए हैं,’’ दीपक ने कहा, ‘‘यहीं मिले थे. फिर सामने वाले होटल में सब ने रात का डिनर किया था. अरे हां यार प्रताप, वह तेरा साथी पान सिंह नहीं दिखाई दे रहा है.’’
‘‘दिखाई कहां से देगा, आजकल कभी उस की सब्जी नहीं पकती तो कभी बेचारे को बासी रोटी मिलती है.’’
‘‘क्या मतलब? तेरी मजाक करने
की आदत अभी भी नहीं गई,’’ आकाश ने कहा.
‘‘सच कह रहा हं. जानते हो, एक दिन मैं बिग बाजार गया. एक किलोग्राम जीरा और कुछ सामान खरीदा. वहां मुझे एक कूपन मिला, जिस से मेरा समान फ्री हो गया. जब से इस बात का पता पान सिंह की बीवी को चला है, वह रोज सुबह उसे लंच में बासी रोटी बांध देती है.’’
‘‘चल, बहुत हो गया. अब उस का ज्यादा मजाक मत उड़ा,’’ दीपेश ने टोका.
दीपेश तो उस के साथ ही देहरादून में बोर्डिंग में रहता था. आकाश और दीपक भी उस के क्लास में साथ ही थे. पान सिंह उस के गांव का ही रहने वाला था, जिस की अनुपस्थिति में वह उस का मजाक उड़ा रहा था. कालेज लाइफ में पांचों की मित्रता सगे भाइयों जैसी थी. 2 साल बाद चारों इकट्ठा हुए थे. फिर चारों बैठ कर बातें करने लगे. बातें करते रात के 9 बज गए. तब दीपेश ने कहा, ‘‘यार, अब तो भूख लगी है, खाने के लिए कुछ करो.’’
‘‘सामने अभी हाल ही एक नया रैस्टोरैंट खुला है, वहां वाजिब दाम में बढि़या खाना मिलता है,’’ प्रताप ने बड़े ही आत्मविश्वास के साथ कहा.
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वह अपने तीनों मित्रों के साथ रैस्टोरैंट की ओर बढ़ रहा था, तब भी उस के दिमाग में विचार चल रहे थे. हर बुधवार को मूंग की दाल बनाने का भूत सुधा के दिमाग से निकालना ही पड़ेगा. आने वाले बुधवार को वह मूंग की दाल खाने से साफ मना कर देगा और यहां आसपास तमाम होटल हैं, जा कर खा लेगा. उस ने पक्का निर्णय कर लिया कि कुछ भी हो, इस बार बुधवार को वह मूंग की दाल बिलकुल नहीं खाएगा.
चारों रैस्टोरैंट में जा कर एक मेज पर बैठ गए. इधरउधर निगाहें डाल कर आकाश ने कहा, ‘‘यार प्रताप, रैस्टोरैंट तो अच्छा है. आज की पार्टी मेरी ओर से. पिछले महीने पुत्ररत्न प्राप्त हुआ है, उसी की खुशी में.’’
फिर तो सभी ने उसे बधाई दी. पुरानी यादों को ताजा करते हुए हंसतेखिलखिलाते उन्होंने खाना खाया. खाना अच्छा था. खाना खाने के बाद उठते हुए प्रताप
ने कहा, ‘‘आज तुम लोग मिले, बहुत अच्छा लगा. रोजाना तो बैंक से सीधे घर.’’
‘‘औफिस से सीधे घर, यही लगभग सभी पुरुषों की कहानी होती है,’’ दीपक ने कहा, ‘‘कालेज लाइफ के भी क्या मजे थे, यार.’’
‘‘अब वे दिन कहानी बन गए हैं. जरा भी देर हो जाती है तो पत्नी हिसाब मांगने लगती है,’’ दीपेश बोला.
खापी कर डकार लेते हुए चारों रैस्टोरैंट से बाहर निकले. प्रताप के तीनों मित्र विदा हो गए तो उस ने भी अपना स्कूटर स्टार्ट किया. 10 बजने में मात्र 20 मिनट बाकी थे. घर पहुंचतेपहुंचते साढ़े 10 तो बज ही जाएंगे. सुधा लालपीली हो रही होगी. दरवाजे पर ही कुरसी डाले बैठी होगी. वर्षों बाद आज पुराने दोस्त मिले थे, उन के साथ भी तो बैठना जरूरी था. स्कूटर की गति के साथसाथ उस के विचारों की गति भी बढ़ती जा रही थी. देर होने पर सुधा अवश्य बवाल करेगी. वह लड़ने को भी तैयार होगी. इस बात का उसे पूरा आभास था. वह होंठों ही होंठों में मुसकराते हुए बड़बड़ाया, ‘मुझे पता है वह झगड़ा करेगी. लेकिन यदि आज उस ने झगड़ा किया तो मैं उस का वह हश्र करूंगा जिस की उस ने कभी कल्पना भी नहीं की होगी.’
प्रताप घर पहुंचा. उस के घर में घुसते ही सुधा ने जलती नजरों से पहले प्रताप की ओर, फिर घड़ी की ओर देखा. उस के बाद कर्कश स्वर में बोली, ‘‘अब तक कहां थे? किस के साथ घूम रहे थे?’’
‘‘तुम्हारी बहन के साथ घूम रहा था,’’ दांत भींच कर प्रताप ने कहा.
प्रताप ऐसा जवाब देगा, सुधा को उम्मीद नहीं थी. उस ने आंखें फाड़ कर प्रताप की ओर देखा. फिर आगे बढ़ कर प्रताप की आंखों में आंखें डाल कर चीखते हुए बोली, ‘‘क्या कहा तुम ने?’’
‘‘जो तुम ने सुना,’’ प्रताप ने दृढ़ता और आत्मविश्वास के साथ कहा.
‘‘बेशर्म, कुछ लाजशर्म है या नहीं?’’ सुधा ने प्रताप का कौलर पकड़ कर झकझोरते हुए कहा, ‘‘नीच कहीं के, इस तरह की बात कहते शर्म नहीं आती?’’
‘‘पहले तुम अपने बारे में सोचो,’’ प्रताप ने सुधा से कौलर छुड़ाते हुए शांति से कहा, ‘‘घर से बाहर निकलने पर रास्ते में बीस तरह की परेशानियां आती हैं. पति को घर आने से जरा सी देर हो जाए तो शांति से पूछना चाहिए. वह जो कहे उसे सुनना चाहिए. ऐसा करने के बजाय तुम रणचंडी बन जाती हो. मेरी समझ में यह नहीं आता कि हमेशा तुम उलटा ही क्यों सोचती हो?’’
‘‘तुम्हारे उपदेश मुझे नहीं सुनने,’’ सुधा की आंखों से आग बरस रही थी. वह तेज स्वर में बोली, ‘‘तुम ने जो कहा है वह मैं मम्मीपापा को फोन कर के बताऊंगी.’’
‘‘तुम्हें जिस से भी कहना हो, कह देना,’’ प्रताप ने कंधे उचका कर कहा, ‘‘साथ ही तुम ने जो पूछा है वह भी बता देना. और हां, देर क्यों हुई, यह जरूर बता देना,’’ कह कर प्रताप ने अपना दाहिना पैर आगे बढ़ाया. घुटने पर फटी पैंट और खून के दाग स्पष्ट दिखाई दे रहे थे. उस ने पैंट उठा कर घुटने पर बंधी पट्टी दिखाते हुए कहा, ‘‘लहूलुहान हो कर भी घर पहुंचो, तब भी तुम्हारे दिमाग में उलटीसीधी बातें ही आती हैं.’’
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प्रताप के पैर में लगी चोट देख कर सुधा चुप रह गई. वह गरदन झुका कर कुछ सोचने लगी तो उंगली से इशारा कर के प्रताप थोड़ा ऊंचे स्वर में बोला, ‘‘तुम्हारे पास बुद्धि है. कभी उस का भी उपयोग कर लिया करो. हमेशा तुम्हारा व्यवहार एक जैसा ही रहता है. आदमी के साथ कभी भी, कुछ भी हो सकता है.’’
प्रताप के पैर में लगी चोट देख कर सुधा सहम सी गई थी. एक तो प्रताप को चोट लग गई थी. फिर 4 साल में पहली बार प्रताप ने इस तरह सुधा को जवाब दिया था. वह आश्चर्य से आंखें फाड़े प्रताप को ही ताक रही थी. प्रताप ने उसे हिकारतभरी नजरों से देखा. आज वह अपने मन की भड़ास निकाल रहा था, ‘‘तुम अपने व्यवहार को सुधारो, स्वभाव को बदलो और इंसान की तरह रहना सीखो. नहीं सीखा तो फिर मैं सिखा दूंगा.’’
सुधा आंखें फैलाए, होंठ भींचे प्रताप की बातें सुनती रही. प्रताप का आज जो मन हो रहा था, बके जा रहा था. सुधा से सहन नहीं हुआ तो वह मारे गुस्से के पैर पटकते हुए रसोई में चली गई.
प्रताप ने बैडरूम में जा कर कपड़े बदले और लेट गया.
सवेरे उठ कर वह बहुत खुश था. शरीर की थकान एक ही रात में उतर गई थी. फटाफट फ्रैश हो कर वह अखबार ले कर पढ़ने बैठ गया. एक जागरूक नागरिक ने टै्रफिक पुलिस को नींद से जगाया, हैडिंग के साथ उस का समाचार छपा था. उस के द्वारा फैक्स किए गए पत्र का मुख्य अंश भी छपा था. वह खुशी से झूम उठा. होंठों को गोल कर के सीटी बजाते हुए बाथरूम में घुसा.
सुधा आश्चर्य से प्रताप की प्रत्येक अदा को ध्यान से देख रही थी. प्रताप खाने के लिए बैठा तो सुधा उस की बगल में आ कर खड़ी हो गई. पिछली रात प्रताप ने उस के साथ जो व्यवहार किया था उस की नाखुशी अभी भी उस के चेहरे पर साफ झलक रही थी. वह भी कोई कच्ची मिट्टी की नहीं बनी थी. क्रैडिट सोसायटी से रुपए ले कर बड़े भाई को देने वाली बात अभी भी उस के दिमाग में घूम रही थी. प्रताप के चेहरे पर नजरें जमा कर आहिस्ता से बोली, ‘‘भैया को फोन कर दिया था न?’’ सुधा ने यह बात आज जिस तरह कही थी, उस में कल जैसी उग्रता नहीं थी. सुधा को शांति से बात करते देख प्रताप को आश्चर्य हुआ था.
मुंह में निवाला डाल कर प्रताप ने सिर हिला दिया. सुधा का चेहरा खिल उठा था. सुधा के चेहरे पर एक निगाह डाल कर प्रताप मन ही मन बड़बड़ाया, ‘उन्हें तो मैं इस तरह पैसा दूंगा कि तुझे पता ही नहीं चलेगा.’
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जूते पहन कर प्रताप ने स्कूटर की चाबी ली और दरवाजा बंद कर के बाहर आ गया. सीढि़यों से उतर कर स्कूटर के पास पहुंचा तो देखा तंबाकू और गुटखे के पाउच स्कूटर पर पड़े थे. सब्जी का कुछ कचरा स्कूटर की सीट पर तो कुछ फुटरैस्ट पर पड़ा था. यह देख कर प्रताप की सांस तेज हो गई. उस ने ऊपर की ओर देखा. संयोग से तीसरी मंजिल पर रहने वाले दंपती बालकनी में खड़े थे. प्रताप ने चीख कर कहा, ‘‘अरे ओ जंगलियो,’’ प्रताप इतने जोर से चीखा था कि अगलबगल फ्लैटों में रहने वाले लोग बाहर आ गए थे. सभी की आंखों में आश्चर्य था. मारे गुस्से के प्रताप कांप रहा था.
प्रताप ने अपने दाहिने हाथ की उंगलियां बालकनी की ओर उठा कर कहा, ‘‘मैं तुम से ही कह रहा हूं. कोई कुछ कहता नहीं है तो इस का मतलब यह तो नहीं हुआ कि गंदगी करने का ठेका तुम्हें मिल गया है. नीचे भी आदमी रहते हैं, जानवर नहीं. इस तरह कचरा फेंकने में आप लोगों को शर्म भी नहीं आती?’’
प्रताप जिस तरह चीखचीख कर अपनी बात कह रहा था, उस से सभी पड़ोसी स्तब्ध रह गए थे. दरवाजे पर खड़ी सुधा की आंखों में भी आश्चर्य था. प्रताप दांत पीस कर बोला, ‘‘सुन लो, आज के बाद यदि कचरा नीचे आया तो सारा कचरा समेट कर मैं तुम्हारे घर में फेंक दूंगा.’’
सभी की नजरें तीसरी मंजिल की बालकनी पर खड़े दंपती पर जम गई थीं. जबकि पतिपत्नी नीचे खड़े प्रताप को एकटक ताक रहे थे. प्रताप ने जो कहा था, उस का असर झांक रहे लोगों पर क्या पड़ा, यह देखने के लिए प्रताप ने चारों ओर नजरें दौड़ाईं. सभी लोग तीसरी मंजिल पर खड़े पतिपत्नी को हिकारत भरी निगाह से देख रहे थे. फिर उस ने विजेता की तरह गर्व के साथ स्कूटर में किक मारी. स्कूटर स्टार्ट हुआ तो सवार हो कर सड़क पर आ गया. आज सड़क पर बसें कायदे से खड़ी थीं. ट्रैफिक पुलिस भी चौराहे पर मुस्तैदी से खड़ा था. इस का मतलब उस की कार्यवाही का असर हुआ था. परंतु यह सब कितने दिन चलने वाला था.
उस ने बैंक में जैसे ही प्रवेश किया, सामने बैठे मैनेजर साहब ने पूछा, ‘‘भई प्रताप, तुम्हारा पैर कैसा है?’’
‘‘ठीक है, बैटर दैन यस्टरडे,’’ खुश होते हुए प्रताप ने कहा. उस ने अपनी सीट की ओर बढ़ते हुए सोचा, बेटा लाइन पर आ गया. सिधाई का जमाना नहीं रहा. एक बार आंखें लाल कर दो, सभी लाइन पर आ जाते हैं. उस दिन उस ने बैंक में काफी हलकापन महसूस किया. मैनेजर साहब का चमचा दिनेश 2 बार उस की मेज पर आ कर हालचाल पूछ गया था. उस ने चाय भी पिलाई थी. शाम को बैंक से घर जाते हुए वह काफी खुश था. स्कूटर खड़ा करते हुए उस ने देखा, आज पूरा मैदान साफ था. वह स्कूटर खड़ा कर रहा था, तभी सामने वाले फ्लैट में रहने वाले सुधीर ने उस के पास आ कर शाबाशी देते हुए कहा, ‘‘सुबह आप ने बहुत अच्छा किया. ऐसे लोगों के साथ ऐसा ही करना चाहिए. यदि आदमी होंगे तो अब ऐसा कुछ नहीं करेंगे.’’
सुधीरजी के जाने के बाद प्रताप अपने घर पहुंचा. सुधा बैठी टीवी पर फिल्म देख रही थी. वातावरण में निस्तब्धता थी. प्रताप ने कपड़े उतार कर पलंग पर फेंके और तौलिया ले कर बाथरूम में घुस गया.
नहा कर बाहर निकला तो दोनों होंठों को गोलगोल कर के वह कोई फिल्मी गीत गुनगुना रहा था. लेकिन कमरे में आते ही उस का गुनगुनाना बंद हो गया. सुधा पर नजर पड़ते ही वह सहम उठा. क्रैडिट सोसायटी में लोन के लिए उस ने जो फौर्म भरा था उस की रसीद लिए सुधा खड़ी थी. 80 हजार रुपए के कर्ज के लिए उस ने अर्जी दी है, यह जान कर वह गुस्से से कांप रही थी. आंखें आग उगल रही थीं. नाक फूलपचक रही थी. वह पूरी ताकत से चीख कर बोली, ‘‘यह क्या है? मैं ने तुम्हें मना किया था, फिर भी तुम नहीं माने. राजा हरिश्चंद्र बन कर घर लुटाने पर तुल गए हो?’’
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प्रताप चुपचाप खड़ा था. अपनी बातों का कोई जवाब न पा कर सुधा चिढ़ गई. वह पहले से भी ज्यादा तेज आवाज में चीखी, ‘‘मैं ने जो कहा, तुम ने सुना नहीं. मैं जो पूछ रही हूं, उस का जवाब दो. उन भिखारियों को पैसा क्यों दे रहे हो?’’
‘‘क्या कहा तुम ने?’’ प्रताप ने आगे बढ़ कर कहा.
‘‘मैं ने मना किया था, फिर भी तुम अपने भिखमंगे भाई को 80 हजार रुपए दे रहे हो?’’
‘‘तड़ाक…’’ बिजली की गति से एक तमाचा सुधा के गाल पर पड़ा. 4 साल में पहली बार ऐसा किया था प्रताप ने. उस का तमाचा इतना जोरदार था कि सुधा गिर पड़ी थी. प्रताप चीखा, ‘‘मेरे बड़े भाई को भिखमंगा कहते तुझे शर्म नहीं आती.’’
सुधा उठ कर बैठ गई. आंखें फाड़े वह प्रताप को एकटक ताक रही थी. फिर ने स्वयं को संभाला और बलखाती नागिन की तरह उठ खड़ी हुई. साड़ी का पल्लू खिसक गया था, बाल बिखर गए थे. आंखों के साथ चेहरा भी लाल हो गया था. दांत भींच कर वह प्रताप की ओर बढ़ी, ‘‘मवाली, हलकट… एक तो चोरीछिपे अपने घर वालों को पैसा देता है. दूसरे, जब मैं पूछती हूं तो मेरे ऊपर हाथ उठाता है,’’ सुधा ने प्रताप को मारने के लिए हाथ उठाते हुए कहा, ‘‘मुझ पर हाथ उठाने का मजा मैं अभी तुम्हें चखाए देती हूं.’’
प्रताप ने उस का हाथ बीच में ही थाम लिया और इस तरह ऐंठ दिया कि मारे दर्द के वह बिलबिला उठी. उस की आंखों में आंसू आ गए. प्रताप ने शब्दों को चबाते हुए कहा, ‘‘सुन, वह मेरा सगा भाई है. आज के बाद फिर कभी भिखारी कहा तो हड्डियां तोड़ कर रख दूंगा.’’
प्रताप ने सुधा के साथ ऐसा पहली बार किया था. उस के इस व्यवहार से सुधा एकदम से सहम उठी. प्रताप ने कहा, ‘‘ये 4 साल मैं ने किस तरह बिताए हैं, यह मैं ही जानता हूं. हर पल अपमान की आग में झुलसता रहा. तुम ने मुझे कुत्ते की तरह रखा. मेरी जिंदगी बरबाद कर दी तुम ने,’’ इतना कहतेकहते प्रताप की आवाज थोड़ी धीमी पड़ गई, ‘‘तुम्हारा बाप पैसे वाला है तो इस का मतलब यह नहीं कि मैं तुम्हारी गुलामी करूंगा. मेरी भलमनसाहत का फायदा उठा कर, तुम ने मेरे साथ क्या नहीं किया. मेरे मांबाप मेरे साथ कुछ दिन रहने के लिए आए थे, तुम ने उन्हें भगा दिया. मेरे किसी भी नातेरिश्तेदार से तुम ने कभी प्रेम से नहीं बात की. मेरी किसी भी बात में तुम्हें कोई रुचि नहीं है.’’
दो पल रुक कर उस ने आगे कहा, ‘‘तुम कान खोल कर सुन लो, तुम्हारी दादागीरी मैं ने बहुत सहन कर ली है. अब तुम्हारे दिन लद गए. आज के बाद जो करना होगा, मैं करूंगा और तुम सहोगी.’’
सुधा एकटक प्रताप को ही देख रही थी. उस की दुबलीपतली काया क्रोध और क्षोभ से कांप रही थी. सारी देह पसीने से भीग गई थी. आंखों से झरझर आंसू बह रहे थे. प्रताप ने जैसे ही उस का हाथ ढीला किया, सुधा ने पलट कर प्रताप के चेहरे पर थूका, ‘‘आक थू…’’
प्रताप ने झटके से मुंह फेर लिया. इस का फायदा उठा कर सुधा ने झटके से अपना हाथ छुड़ा लिया. हाथ छूटते ही वह रसोई की ओर जाते हुए बोली, ‘‘नीच हरामी, मैं तुझे किसी भी हालत में नहीं छोड़ूंगी.’’
तभी हाथ बढ़ा कर प्रताप ने सुधा के खुले बाल पकड़ कर अपनी ओर इस तरह जोर से खींचे कि मारे दर्द के वह तड़प उठी. उस के मुंह से एक भयानक चीख निकली. फिर दांत भींच कर प्रताप ने 2 तमाचे सुधा के गाल पर जड़ दिए.
सुधा जोरजोर से रोते हुए दोनों हाथ जोड़ कर माफी मांगने लगी. सुधा के गोरेगोरे गालों पर प्रताप की उंगलियों के लाललाल निशान स्पष्ट झलक रहे थे. सुधा की आंखों में आंखें डाल कर प्रताप ने कहा, ‘‘अब ठीक से रहना. मेरे खयाल से अब तुम ऐसा कोई काम नहीं करोगी कि मुझे तुम्हारे साथ ऐसा व्यवहार करना पड़े.’’
सुधा ने कोई जवाब नहीं दिया. वह सिर झुका कर रो रही थी. प्रताप सुधा को छोड़ कर वहीं पड़े पलंग पर बैठ गया. सुधा ने प्रताप की ओर देखा. फिर दोनों हाथ जोड़ कर बोली, ‘‘आज क्या हो गया है तुम्हें?’’
प्रताप ने कोई जवाब नहीं दिया. सुधा उठी और धीरेधीरे चलती हुई कमरे से बाहर निकल गई. प्रताप ने तौलिया खींच कर पसीना पोंछा. उस ने सोचा, अब सब ठीक हो जाएगा. लेकिन सुधा इतनी जल्दी कहां हार मानने वाली थी. वह कमरे से सीधे रसोई में पहुंची. रसोई में रखा मोटा डंडा निकाला और दोनों हाथों से मजबूती से थामे वह प्रताप की ओर बढ़ी. फिर उस ने जिस तरह से प्रताप पर हमला किया, उस की प्रताप ने कभी कल्पना नहीं की थी. उस ने हाथों में थामे डंडे से पूरी ताकत के साथ प्रताप के सिर पर प्रहार कर दिया. एक ही वार में प्रताप बैड पर लेट गया. उस का सिर फट गया था. खून निकल कर बैड पर बिछी चादर को भिगोने लगा था. उस की आंखें बंद होने लगी थीं. थोड़ी ही देर में वह बेहोश हो गया था.
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आईसीयू में भरती प्रताप की चारपाई के पास उस रात कोई नहीं था. अगले दिन खबर पा कर गांव से मांबाप आए तो बड़े भाई और भाभी उन के साथ अस्पताल आ गए थे. रोरो कर चारों की आंखें सूज गई थीं. दीवार का सहारा लिए बैठी सुधा अभी भी सिसक रही थी. थोड़ी दूर पर खड़े सुधा के पापा न्यूरोसर्जन से गंभीरतापूर्वक बातचीत कर रहे थे. उस दुख की घड़ी में सभी की नजरें उन्हीं पर जमी थीं. उन लोगों के लिए दिक्कत की बात यह हो गई थी कि डाक्टरों ने प्रताप के घायल होने की सूचना पुलिस को दे दी थी. डाक्टरों का कहना था कि प्रताप के सिर पर किसी भारी चीज से किसी ने प्रहार किया है. जबकि सुधा के पापा ने डाक्टरों को बताया था कि स्कूटर से गिरने की वजह से प्रताप के सिर और पैर में चोट लगी थी. उस पर डाक्टरों का तर्क था कि पैर की चोट में तो पट्टी बंधी थी जबकि सिर की चोट ताजी थी. पुलिस इंस्पैक्टर प्रताप का बयान लेने 2 बार अस्पताल आ चुका था. परंतु प्रताप के बेहोश होने की वजह से वह बयान नहीं ले सका था. तब उस ने कहा था कि जब इन्हें होश आ जाए, उसे तुरंत सूचना दी जाए. इन का बयान लेना बहुत जरूरी है.
सुधा के पापा नहीं चाहते थे कि इस मामले में पुलिस आए. क्योंकि यदि होश में आने पर बयान देते समय प्रताप ने असलियत बता दी तो सुधा फंस जाएगी. इसी विषय पर वे न्यूरोसर्जन से बातें कर रहे थे. परंतु न्यूरोसर्जन ने साफ कह दिया था कि अब उन के हाथ में कुछ नहीं है.
4 दिनों बाद प्रताप को होश आया. जैसे ही नर्स ने बाहर आ कर यह बात बताई. मांबाप और भाईभाभी उसे एक नजर देखने के लिए बेचैन हो उठे. सुधा भी उठ कर आईसीयू के गेट पर जा खड़ी हुई थी. डाक्टर ने प्रताप के होश में आने की सूचना पुलिस इंस्पैक्टर को भी दे दी थी. इसलिए थोड़ी ही देर में इंस्पैक्टर आ गया. इंस्पैक्टर के आने पर ही सब को आईसीयू में प्रवेश करने दिया गया. ऐसा शायद पुलिस इंस्पैक्टर के इंस्ट्रक्शन के अनुसार किया गया था. पुलिस इंस्पैक्टर प्रताप की चारपाई के पास पड़े स्टूल पर बैठ गया. प्रताप के मांबाप और भाईभाभी उस के पैरों की ओर खड़े एकटक उसी को ताक रहे थे. सुधा अपने पापा के साथ पुलिस इंस्पैक्टर के पीछे खड़ी थी.
पुलिस इंस्पैक्टर ने प्रताप को गौर से देखा. फिर पूछा, ‘‘आप को किस ने मारा, जिस से आप का सिर फट गया?’’
प्रताप ने सुधा की ओर देखा. सुधा उसे ही ताक रही थी. इसलिए प्रताप से उस की नजरें मिल गईं. प्रताप से नजरें मिलते ही उस की आंखों से झरझर आंसू झरने लगे. प्रताप को लगा शायद उसे अपने किए पर पश्चात्ताप है. प्रताप ने सुधा पर से नजरें हटा कर एक बार सब की ओर देखा. फिर इंस्पैक्टर की ओर देख कर बोला, ‘‘मुझे कोई क्यों मारेगा? कल की दुर्घटना में मेरे पैर में चोट लग गई थी. जिस की वजह से मैं ठीक से चल नहीं
पा रहा था. रात सीढ़ी उतरते समय पैर लड़खड़ा गया, जिस से मैं सीढि़यों पर सिर के बल गिर पड़ा. फिर क्या हुआ, मुझे कुछ पता नहीं.’’
प्रताप का इतना कहना था कि सुधा फफकफफक कर रो पड़ी. इंस्पैक्टर उठा और सब पर एक नजर डाल कर बाहर निकल गया. अब उस के वहां रुकने का कोई सवाल ही नहीं था.
इंस्पैक्टर के जाते ही सुधा आगे बढ़ी और प्रताप का हाथ थाम कर बोली, ‘‘मैं ने आप को कितना परेशान किया, यहां तक कि आप को इस स्थिति में पहुंचा दिया, फिर भी आप ने मुझे बचाने के लिए झूठ बोला.’’
दूसरे हाथ से सुधा का हाथ दबाते हुए प्रताप बोला, ‘‘यह पतिपत्नी का झगड़ा था. पतिपत्नी के झगड़े में किसी तीसरे की कोई जरूरत नहीं होती. तुम ने जो किया, आखिर उस में मेरी भी तो कुछ गलती थी.’’
‘‘लेकिन अब ऐसा कभी नहीं होगा,’’ कह कर सुधा ने प्रताप के दोनों हाथ अपने हाथों में भींच लिए. इस बीच बाकी लोग बाहर चले गए थे.
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सभी अपनेअपने काम में लग गए. प्रताप अपनी सीट पर अकेला रह गया तो विचारों में खो गया. उस के दिमाग में सुधा से कहासुनी से ले कर मैनेजर साहब को खरीखोटी सुनाने तक की एकएक घटना चलचित्र की तरह घूम गई. पैन निकालने के लिए उस ने जेब में हाथ डाला तो पुलिस द्वारा दी गई रसीद भी पैन के साथ बाहर आ गई. रसीद देख कर उस का दिमाग भन्ना उठा. मेज पर रखे पानी के गिलास को खाली कर के वह आहिस्ता से उठा. पैर में दर्द होने के बावजूद वह धीरेधीरे आगे बढ़ा. टैलीफोन मैनेजर साहब की ही मेज पर था. प्रताप उसी ओर बढ़ रहा था. प्रताप के गंभीर चेहरे को देख कर मैनेजर घबराए. उन की हालत देख कर प्रताप के होंठों पर कुटिल मुसकान तैर गई. मैनेजर साहब की ओर देखे बगैर ही वह उन के सामने पड़ी कुरसी पर बैठ गया. टैलीफोन अपनी ओर खींच कर पुलिस की ट्रैफिक शाखा का नंबर मिला दिया. दूसरी ओर से आवाज आई, ‘‘नमस्कारजी, मैं ट्रैफिक शाखा से हैडकौंस्टेबल ईश्वर सिंह बोल रहा हूं.’’
‘‘नमस्कार ईश्वर सिंहजी, आप ब्लूलाइन बसों के खिलाफ मेरी एक शिकायत लिखिए.’’
‘‘आप की जो शिकायत हो, लिख कर भेज दीजिए.’’
‘‘लिख कर भेजूंगा तो तुम्हें अपनी औकात का पता चल जाएगा…’’ प्रताप थोड़ा रोष में बोला, ‘‘फोन किसी जिम्मेदार अधिकारी को दीजिए.’’
‘‘औफिस में इस समय और कोई नहीं है. इंस्पैक्टर साहब और एसीपी साहब राउंड पर हैं.’’
‘‘एसीपी साहब के पास तो मोबाइल फोन होगा, उन का नंबर दो.’’
कौंस्टेबल ईश्वर सिंह ने जो नंबर दिया था, उसे मिलाते हुए प्रताप खुन्नस में था. उधर से स्विच औन होते ही वह बोला, ‘‘सर, मैं प्रताप सिंह बोल रहा हूं. मेरी एक शिकायत है.’’
‘‘बोलो.’’
‘‘आप के टै्रफिक के नियम सिर्फ स्कूटर वालों के लिए ही हैं क्या? सड़क पर जिस तरह अंधेरगर्दी के साथ ब्लूलाइन बसें दौड़ रही हैं, आप के स्टाफ वालों को दिखाई नहीं देतीं?’’ प्रताप की आवाज क्रोध में कांप रही थी.
‘‘देखिए साहब, जो पकड़ी जाती हैं, उन के खिलाफ कार्यवाही की जाती है.’’
‘‘क्या कार्यवाही करते हैं आप लोग, वह सब मैं जानता हूं,’’ प्रताप काफी गुस्से में था इसलिए उस के स्वर में थोड़ा तल्खी थी. उसी तल्ख आवाज में वह बोला, ‘‘यहां आश्रम रोड पर आ कर थोड़ी देर खड़े रहिए. ड्राइवर बसें किस तरह बीच सड़क पर खड़ी कर के सवारियां भरते हैं, देख लेंगे. उस व्यस्त सड़क पर भी ओवरटेक करने में उन्हें जरा हिचक नहीं होती. आप के पुलिस वाले खड़े यह सब देखते रहते हैं.’’
‘‘देखिए प्रतापजी, डिपार्टमैंट अपनी तरह से काम करता है.’’
‘‘कुछ नहीं करता, साहब, आप का पूरा का पूरा डिपार्टमैंट बेकार है. आप के पुलिसकर्मी घूस लेने में लगे रहते हैं. बस वालों से हफ्ता लेते हैं, ऐसे में उन के खिलाफ कैसे कार्यवाही करेंगे?’’
‘‘माइंड योर लैंग्वेज. आप अपनी शिकायत लिख कर भेज दीजिए. दैट्स आल,’’ दूसरी ओर से फोन काट दिया गया.
‘लिखित शिकायत करूंगा…जरूर करूंगा?’ बड़बड़ाता हुआ प्रताप अपनी सीट पर आ कर बैठ गया. पैन उठाया और जिस तरह तोप में गोला भरा जाता है, उसी तरह ठूंसठूंस कर पूरे पेज में एकएक बात लिखी. होंठ भींचे वह लिखता रहा. उस का आक्रोश अक्षर के रूप में कागज पर उतरता रहा. शिकायत का पत्र पूरा हुआ तो उस ने संतोष की सांस ली. पूरे कागज पर एक नजर डाल कर उसे मोड़ा और डायरी में रख लिया. डायरी हाथ में ले कर वह उठ खड़ा हुआ. घुटने में अभी भी दर्द हो रहा था. मगर उस की परवा किए बगैर वह बैंक से बाहर आया. बैंक के सामने ही पीसीओ में फैक्स की सुविधा भी थी. वह सीधे पीसीओ पर पहुंचा. सामने बैठे पीसीओ के मालिक लालबाबू के हाथ में कागज और एक चिट पकड़ाते हुए कहा, ‘‘चिट में लिखे नंबरों पर इसे फैक्स करना है.’’
लालबाबू उन सभी नंबरों के बगल में लिखे नामों को देख कर प्रताप को ताकने लगा. मुख्यमंत्री, राज्यपाल, गृहमंत्री से ले कर पुलिस कमिश्नर तक के नंबर थे वे. उस चिट में शहर के प्रमुख अखबारों के भी फैक्स नंबर थे. अपनी ओर एकटक देख रहे लालबाबू से उस ने कहा, ‘‘सभी नंबरों पर इसे फैक्स कर दीजिए.’’
‘‘जी,’’ उस ने प्रताप द्वारा दिए कागज को फैक्स मशीन में इंसर्ट किया. फिर एकएक नंबर डायल करता रहा. फैक्स मशीन में कागज एक तरफ से घुस कर, दूसरी ओर से निकलने लगा. प्रताप खड़ा इस प्रक्रिया को ध्यान से देख रहा था. सारे फैक्स ठीक से हो गए हैं, इस के कन्फर्मेशन की रिपोर्ट की कौपी लालबाबू ने प्रताप के हाथ में पकड़ाने के साथ ही बिल भी थमा दिया. पैसे दे कर सभी कन्फर्मेशन रिपोर्ट्स प्रताप ने डायरी में संभाल कर रखी और पीसीओ से बाहर निकल आया. अब प्रताप के दिमाग की तनी नसें थोड़ी ढीली हुईं. जिस से उस ने स्वयं को काफी हलका महसूस किया. कितने दिनों से वह इस काम के बारे में सोच रहा था. आखिर आज पूरा हो ही गया.
फैक्स सभी को मिल ही गया होगा. अब मजा आएगा. फैक्स जैसे ही मिलेगा, मुख्यमंत्री गृहमंत्री से कहेंगे. उन्हें भी फैक्स की कौपी मिल गई होगी. राज्यपाल के यहां से भी सूचना आएगी. सब की नाराजगी पुलिस कमिश्नर को झेलनी पड़ेगी. फिर वे एसीपी ट्रैफिक को गरम करेंगे. उस के बाद नंबर आएगा कौंस्टेबलों का. एसीपी एकएक कौंस्टेबल का तेल निकालेगा. बैंक में आ कर वह अपनी सीट पर बैठ गया. अब उसे बड़े भाई की याद आ गई. पिछली रात वे पैसे के लिए उस से किस तरह गिड़गिड़ा रहे थे. उसी क्षण उस की आंखों के सामने सुधा का तमतमाया चेहरा नाच गया. मन ही मन उसे एक साथ 4-5 गालियां दे कर वह कुरसी से उठ खड़ा हुआ. बैंक के कर्मचारियों की के्रडिट सोसायटी बहुत ही व्यवस्थित ढंग से चल रही थी. सोसायटी के सैके्रटरी नरेंद्र नीचे के फ्लोर पर बैठते थे. वह लिफ्ट से नीचे उतरा. नरेंद्र अपनी केबिन में बैठे थे. उन की मेज के सामने पड़ी कुरसी खींच कर वह बैठ गया. लोन के लिए फौर्म ले कर उस ने भरा और नरेंद्र की ओर बढ़ाते हुए कहा, ‘‘नरेंद्र साहब, बड़े भाई थोड़े गरीब हैं. उन्हें मकान की मरम्मत करानी है. यदि मरम्मत नहीं हुई तो बरसात में दिक्कत हो सकती है. इसलिए मैं आग्रह करता हूं कि मेरी अर्जी पर विशेष ध्यान दीजिएगा.’’
‘‘नरेंद्र साहब ने अत्यंत मधुर स्वर में कहा, ‘‘इस महीने खास दबाव नहीं है, इसलिए आप का काम आराम से हो जाएगा. आप को 80 हजार रुपए चाहिए न?’’
प्रताप ने स्वीकृति में सिर हिलाया. नरेंद्र साहब ने फौर्म में लगी रसीद फाड़ कर प्रताप की ओर बढ़ाते हुए कहा, ‘‘अपने भाईसाहब से कहना कि वे
सारी व्यवस्था करें. 3 तारीख को पैसा मिल जाएगा.’’
‘‘थैंक्स,’’ प्रताप ने सैक्रेटरी साहब का हाथ थाम कर कहा, ‘‘थैंक्यू वैरी मच.’’
नरेंद्र द्वारा दी गई रसीद जेब में रख कर प्रताप खड़ा हुआ. उस की एक बहुत बड़ी टैंशन खत्म हो गई थी. पैसा पा कर बेचारा बड़ा भाई खुश हो जाएगा. यदि भैया हर महीने आ कर अपनी किस्त दे जाएंगे तो कोई परेशानी नहीं होगी. सुधा को इस बात का पता ही नहीं चलेगा. सुधा की याद आते ही उस की मुट्ठियां भिंच गईं.
उस की विचारयात्रा आगे बढ़ी. यदि उसे पता चल भी जाएगा तो क्या कर लेगी? ज्यादा से ज्यादा झगड़ा करेगी. जब तक कान सहन करेंगे, सहता रहूंगा. उस के बाद अपने हाथों का उपयोग करूंगा. एक बार उलटा जवाब मिल जाएगा तो उस का दिमाग अपनेआप ही ठिकाने पर आ जाएगा.
सुधा के विचारों से मुक्त होना प्रताप के लिए आसान नहीं था. फिर भी उस ने औफिस की फाइलों में मन लगाने का प्रयास किया. बैंक की बिल्ंिडग के गेट के पास जो मैकेनिक था, प्रताप ने स्कूटर की चाबी दे कर उसे लाने के लिए भेज दिया था. साथ ही, यह भी कह दिया था कि शाम तक वह स्कूटर बना कर तैयार कर देगा.
शाम को प्रताप बैंक से निकला तो मैकेनिक ने स्कूटर बना कर तैयार कर दिया था. वह स्कूटर स्टार्ट कर ही रहा था कि उस के कंधे पर किसी ने हाथ रखा. उस ने पलट कर देखा, दीपेश बैग टांगे खड़ा था. उस के साथ आकाश और दीपक भी थे. दीपेश ने कहा, ‘‘यार, मैं तुझ से मिलने तेरे बैंक आया हूं और तू घर भागने की तैयारी कर रहा है? लगता है, भाभी से बहुत डरता है?’’
‘‘यार, सुबहसुबह ऐक्सिडैंट हो गया था, जिस में यह देखो घुटना छिल गया है,’’ प्रताप ने पैर उठा कर फटे पैंट के नीचे घुटना दिखाते हुए कहा, ‘‘परंतु अब जब तुम तीनों मिल गए हो तो
सारी तकलीफ दूर हो गई है. हम
चारों अंतिम बार कब मिले थे? मेरे खयाल से साल, डेढ़ साल तो हो ही गए होंगे?’’
‘‘नहीं, भाई, पूरे 2 साल हो गए हैं,’’ दीपक ने कहा, ‘‘यहीं मिले थे. फिर सामने वाले होटल में सब ने रात का डिनर किया था. अरे हां यार प्रताप, वह तेरा साथी पान सिंह नहीं दिखाई दे रहा है.’’
‘‘दिखाई कहां से देगा, आजकल कभी उस की सब्जी नहीं पकती तो कभी बेचारे को बासी रोटी मिलती है.’’
‘‘क्या मतलब? तेरी मजाक करने
की आदत अभी भी नहीं गई,’’ आकाश ने कहा.
‘‘सच कह रहा हं. जानते हो, एक दिन मैं बिग बाजार गया. एक किलोग्राम जीरा और कुछ सामान खरीदा. वहां मुझे एक कूपन मिला, जिस से मेरा समान फ्री हो गया. जब से इस बात का पता पान सिंह की बीवी को चला है, वह रोज सुबह उसे लंच में बासी रोटी बांध देती है.’’
‘‘चल, बहुत हो गया. अब उस का ज्यादा मजाक मत उड़ा,’’ दीपेश ने टोका.
दीपेश तो उस के साथ ही देहरादून में बोर्डिंग में रहता था. आकाश और दीपक भी उस के क्लास में साथ ही थे. पान सिंह उस के गांव का ही रहने वाला था, जिस की अनुपस्थिति में वह उस का मजाक उड़ा रहा था. कालेज लाइफ में पांचों की मित्रता सगे भाइयों जैसी थी. 2 साल बाद चारों इकट्ठा हुए थे. फिर चारों बैठ कर बातें करने लगे. बातें करते रात के 9 बज गए. तब दीपेश ने कहा, ‘‘यार, अब तो भूख लगी है, खाने के लिए कुछ करो.’’
‘‘सामने अभी हाल ही एक नया रैस्टोरैंट खुला है, वहां वाजिब दाम में बढि़या खाना मिलता है,’’ प्रताप ने बड़े ही आत्मविश्वास के साथ कहा.
वह अपने तीनों मित्रों के साथ रैस्टोरैंट की ओर बढ़ रहा था, तब भी उस के दिमाग में विचार चल रहे थे. हर बुधवार को मूंग की दाल बनाने का भूत सुधा के दिमाग से निकालना ही पड़ेगा. आने वाले बुधवार को वह मूंग की दाल खाने से साफ मना कर देगा और यहां आसपास तमाम होटल हैं, जा कर खा लेगा. उस ने पक्का निर्णय कर लिया कि कुछ भी हो, इस बार बुधवार को वह मूंग की दाल बिलकुल नहीं खाएगा.
चारों रैस्टोरैंट में जा कर एक मेज पर बैठ गए. इधरउधर निगाहें डाल कर आकाश ने कहा, ‘‘यार प्रताप, रैस्टोरैंट तो अच्छा है. आज की पार्टी मेरी ओर से. पिछले महीने पुत्ररत्न प्राप्त हुआ है, उसी की खुशी में.’’
फिर तो सभी ने उसे बधाई दी. पुरानी यादों को ताजा करते हुए हंसतेखिलखिलाते उन्होंने खाना खाया. खाना अच्छा था. खाना खाने के बाद उठते हुए प्रताप
ने कहा, ‘‘आज तुम लोग मिले, बहुत अच्छा लगा. रोजाना तो बैंक से सीधे घर.’’
‘‘औफिस से सीधे घर, यही लगभग सभी पुरुषों की कहानी होती है,’’ दीपक ने कहा, ‘‘कालेज लाइफ के भी क्या मजे थे, यार.’’
‘‘अब वे दिन कहानी बन गए हैं. जरा भी देर हो जाती है तो पत्नी हिसाब मांगने लगती है,’’ दीपेश बोला.
खापी कर डकार लेते हुए चारों रैस्टोरैंट से बाहर निकले. प्रताप के तीनों मित्र विदा हो गए तो उस ने भी अपना स्कूटर स्टार्ट किया. 10 बजने में मात्र 20 मिनट बाकी थे. घर पहुंचतेपहुंचते साढ़े 10 तो बज ही जाएंगे. सुधा लालपीली हो रही होगी. दरवाजे पर ही कुरसी डाले बैठी होगी. वर्षों बाद आज पुराने दोस्त मिले थे, उन के साथ भी तो बैठना जरूरी था. स्कूटर की गति के साथसाथ उस के विचारों की गति भी बढ़ती जा रही थी. देर होने पर सुधा अवश्य बवाल करेगी. वह लड़ने को भी तैयार होगी. इस बात का उसे पूरा आभास था. वह होंठों ही होंठों में मुसकराते हुए बड़बड़ाया, ‘मुझे पता है वह झगड़ा करेगी. लेकिन यदि आज उस ने झगड़ा किया तो मैं उस का वह हश्र करूंगा जिस की उस ने कभी कल्पना भी नहीं की होगी.’
प्रताप घर पहुंचा. उस के घर में घुसते ही सुधा ने जलती नजरों से पहले प्रताप की ओर, फिर घड़ी की ओर देखा. उस के बाद कर्कश स्वर में बोली, ‘‘अब तक कहां थे? किस के साथ घूम रहे थे?’’
‘‘तुम्हारी बहन के साथ घूम रहा था,’’ दांत भींच कर प्रताप ने कहा.
प्रताप ऐसा जवाब देगा, सुधा को उम्मीद नहीं थी. उस ने आंखें फाड़ कर प्रताप की ओर देखा. फिर आगे बढ़ कर प्रताप की आंखों में आंखें डाल कर चीखते हुए बोली, ‘‘क्या कहा तुम ने?’’
‘‘जो तुम ने सुना,’’ प्रताप ने दृढ़ता और आत्मविश्वास के साथ कहा.
‘‘बेशर्म, कुछ लाजशर्म है या नहीं?’’ सुधा ने प्रताप का कौलर पकड़ कर झकझोरते हुए कहा, ‘‘नीच कहीं के, इस तरह की बात कहते शर्म नहीं आती?’’
‘‘पहले तुम अपने बारे में सोचो,’’ प्रताप ने सुधा से कौलर छुड़ाते हुए शांति से कहा, ‘‘घर से बाहर निकलने पर रास्ते में बीस तरह की परेशानियां आती हैं. पति को घर आने से जरा सी देर हो जाए तो शांति से पूछना चाहिए. वह जो कहे उसे सुनना चाहिए. ऐसा करने के बजाय तुम रणचंडी बन जाती हो. मेरी समझ में यह नहीं आता कि हमेशा तुम उलटा ही क्यों सोचती हो?’’
‘‘तुम्हारे उपदेश मुझे नहीं सुनने,’’ सुधा की आंखों से आग बरस रही थी. वह तेज स्वर में बोली, ‘‘तुम ने जो कहा है वह मैं मम्मीपापा को फोन कर के बताऊंगी.’’
‘‘तुम्हें जिस से भी कहना हो, कह देना,’’ प्रताप ने कंधे उचका कर कहा, ‘‘साथ ही तुम ने जो पूछा है वह भी बता देना. और हां, देर क्यों हुई, यह जरूर बता देना,’’ कह कर प्रताप ने अपना दाहिना पैर आगे बढ़ाया. घुटने पर फटी पैंट और खून के दाग स्पष्ट दिखाई दे रहे थे. उस ने पैंट उठा कर घुटने पर बंधी पट्टी दिखाते हुए कहा, ‘‘लहूलुहान हो कर भी घर पहुंचो, तब भी तुम्हारे दिमाग में उलटीसीधी बातें ही आती हैं.’’
प्रताप के पैर में लगी चोट देख कर सुधा चुप रह गई. वह गरदन झुका कर कुछ सोचने लगी तो उंगली से इशारा कर के प्रताप थोड़ा ऊंचे स्वर में बोला, ‘‘तुम्हारे पास बुद्धि है. कभी उस का भी उपयोग कर लिया करो. हमेशा तुम्हारा व्यवहार एक जैसा ही रहता है. आदमी के साथ कभी भी, कुछ भी हो सकता है.’’
प्रताप के पैर में लगी चोट देख कर सुधा सहम सी गई थी. एक तो प्रताप को चोट लग गई थी. फिर 4 साल में पहली बार प्रताप ने इस तरह सुधा को जवाब दिया था. वह आश्चर्य से आंखें फाड़े प्रताप को ही ताक रही थी. प्रताप ने उसे हिकारतभरी नजरों से देखा. आज वह अपने मन की भड़ास निकाल रहा था, ‘‘तुम अपने व्यवहार को सुधारो, स्वभाव को बदलो और इंसान की तरह रहना सीखो. नहीं सीखा तो फिर मैं सिखा दूंगा.’’
सुधा आंखें फैलाए, होंठ भींचे प्रताप की बातें सुनती रही. प्रताप का आज जो मन हो रहा था, बके जा रहा था. सुधा से सहन नहीं हुआ तो वह मारे गुस्से के पैर पटकते हुए रसोई में चली गई.
प्रताप ने बैडरूम में जा कर कपड़े बदले और लेट गया.
सवेरे उठ कर वह बहुत खुश था. शरीर की थकान एक ही रात में उतर गई थी. फटाफट फ्रैश हो कर वह अखबार ले कर पढ़ने बैठ गया. एक जागरूक नागरिक ने टै्रफिक पुलिस को नींद से जगाया, हैडिंग के साथ उस का समाचार छपा था. उस के द्वारा फैक्स किए गए पत्र का मुख्य अंश भी छपा था. वह खुशी से झूम उठा. होंठों को गोल कर के सीटी बजाते हुए बाथरूम में घुसा.
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