लेखक– डा. कृष्ण कांत
समीर टैक्सी से उतर कर तेज कदमों से इंदिरा गांधी हवाईअड्डे की ओर बढ़ा, क्योंकि रास्ते में काफी देर हो चुकी थी.
काउंटर पर बैठी युवती ने उस से टिकट ले कर कहा, ‘‘आप की सीट है 12वी, आपातकालीन द्वार के पास.’’
बोर्डिंग कार्ड ले कर वह सुरक्षा कक्ष में चला गया. फ्लाइट जाने वाली थी, इसलिए
वह तुरंत विमान तक ले जाने वाली बस में बैठ गया.
‘‘नमस्ते,’’ विमान परिचारिका ने उस का हाथ जोड़ कर स्वागत किया.
समीर उसे देखता रह गया.
‘‘सर, आप का बोर्डिंग कार्ड?’’ परिचारिका मुसकरा कर बोली.
समीर ने उसे अपना बोर्डिंग कार्ड पकड़ा दिया.
वह उसे उस की सीट 12बी पर ले गई. समीर ने अपने बैग से काले रंग की डायरी निकाली और बैग ऊपर रख कर सीट पर बैठ गया.
उस की बगल वाली सीट, जो बीच के रास्ते के पास थी, खाली थी. समीर अपनी डायरी देखने लगा. पहले ही पन्ने पर विधि की तसवीर चिपकी थी. उस के जेहन में विधि का स्वर गूंज गया…
‘समीर मैं तुम से प्यार नहीं करती. यदि तुम ने कभी सोचा तो यह सिर्फ तुम्हारी गलती है. मैं तुम से शादी नहीं कर सकती…’
‘‘नमस्कार,’’ आवाज सुन समीर ने चौंक कर आंखें खोलीं. विमान परिचारिका उद्घोषणा कर रही थी, ‘‘आप का विमान संख्या आईसी 167 में, जो मुंबई होता हुआ त्रिवेंद्रम जा रहा है, स्वागत है. आप सभी अपनीअपनी कुरसी की पेटी बांध लीजिए…’’
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समीर ने एक गहरी सांस ली. अपनी कुरसी की पेटी बांधी और आंखें मूंद लीं. आंखों के सामने विधि का मुसकराता हुआ चेहरा घूमने लगा…
‘‘माफ कीजिए…’’
समीर ने चौंक कर आंखें खोलीं. सामने वही परिचारिका खड़ी थी.
‘‘आप मेरी सीट बैल्ट के ऊपर बैठे हैं.’’
समीर थोड़ा झेंप गया. उस ने चुपचाप अपने नीचे से सीट बैल्ट निकाल कर उसे पकड़ा दी. वह मुसकरा कर बैठ गई. उस के हाथ में भी समीर की डायरी के समान एक काले रंग की डायरी थी. वह अपनी डायरी पढ़ने लगी.
समीर ने फिर आंखें मूंद लीं और सोचने लगा, ‘विधि, क्या यह सब झूठ था? हमारा रोज मिलना, तुम्हारा पत्र लिखना क्या यह सब एक खेल था? क्या तुम्हें कभी मेरी याद नहीं आएगी?’
उसी समय सीट बैल्ट खोलने की उद्घोषणा हुई तो परिचारिका खड़ी हुई.
‘‘सुनिए,’’ वह समीर को देख कर धीरे से बोली.
समीर ने उस की ओर देखा.
‘‘आप की आंखों में आंसू हैं. इन्हें पोंछ लीजिए,’’ उस के स्वर में गंभीरता थी.
आंसुओं की धार ने उस के दोनों गालों पर रास्ते के निशान बना दिए थे. उस ने झट
से रूमाल से अपनी आंखों और चेहरे को पोंछ लिया.
‘‘सुबह नाश्ते में मिर्च ज्यादा थी.’’
वह बिना कुछ बोले चली गई.
थोड़ी देर बाद वह नाश्ते की ट्राली घसीटते हुए लाई और यात्रियों को नाश्ता देने लगी.
‘‘सर, आप क्या लेंगे, वैज या नौनवैज?’’ उस ने समीर से पूछा.
‘‘कुछ नहीं.’’
‘‘चाय या कौफी?’’
‘‘नहीं, कुछ नहीं.’’
वह बिना कुछ बोले आगे बढ़ गई. उस के भावों से लगा कि उसे थोड़ी सी खीज हुई है.
थोड़ी देर बाद वह फिर आई और बिना कुछ बोले एक प्लेट में चाय और कुछ बिस्कुट रख कर चली गई.
समीर को उस का आग्रह भरा मौन आदेश लगा, क्योंकि इस में अपनत्व था. उस ने चुपचाप चाय पी और बिस्कुट खा लिए. कुछ देर बाद वह दोबारा आई और प्लेट ले कर जाने लगी. प्लेट लेते समय दोनों की नजरें मिलीं.
समीर ने देखा कि उस की साड़ी पर राधिका नाम का टैग लगा था. वह थोड़ा मुसकरा दी. समीर को एक क्षण के लिए लगा कि उस की मुसकराहट में उदासी की छाया है.
उसे फिर विधि की याद सताने लगी. उस ने डायरी खोल ली और लिखने लगा, ‘क्या लड़की का प्यार सिर्फ शादी के बाद दौलत और सुविधाओं के लिए होता है? विधि मुझे छोड़ कर अरुण से शादी इसलिए कर रही है, क्योंकि उस के पास बंगला और कार है, जबकि मैं अभी किराए के मकान में हूं. आज ही उस की शादी है. अच्छा है कि मैं दिल्ली में नहीं रहूंगा. उसे अपने सामने विदा होते देखता तो न जाने क्या कर बैठता.’
समीर की आंखों में एक बार फिर आंसू आ गए. उस ने आंसू पोंछ लिए, डायरी बंद
कर के बगल वाली सीट पर रख दी और आंखें बंद कर लीं.
‘‘कृपया ध्यान दीजिए. अब हमारा विमान मुंबई के छत्रपति शिवाजी हवाईअड्डे पर उतरेगा. आप अपनीअपनी कुरसी की पेटी बांध लें. त्रिवेंद्रम जाने वाले यात्रियों से निवेदन है कि वे विमान में ही रहें,’’ उद्घोषणा हो रही थी.
राधिका उस की बगल में आ कर बैठ गई. समीर की डायरी उस ने सामने सीट की जेब में रख दी. समीर ने आंखें खोल कर राधिका को देखा, तो वह मुसकरा कर धीरे से बोली, ‘‘जिंदगी के सारे गमों को पी कर मुसकराना होता है.’’
समीर की इच्छा हुई कि बोले उपदेश देना सरल है, लेकिन जब खुद पर गुजरती है तब सारे उपदेश धरे रह जाते हैं, मगर वह चुप रहा.
‘‘मैं ने शायद कुछ गलत कह दिया. आई एम सौरी, सर,’’ वह थोड़ी देर बाद फिर बोली.
‘‘ऐसी बात नहीं है. आप ने बोला तो सही है. मुझे इस का बिलकुल बुरा नहीं लगा,’’ समीर के मुंह से निकला, ‘‘आप त्रिवेंद्रम तक मेरे साथ चलेंगी न?’’ समीर ने पूछा और फिर सकुचा गया.
‘‘आप खाना खाएंगे, तब जरूर चलूंगी,’’ वह मुसकरा कर बोली.
उसी समय विमान मुंबई उतर गया. राधिका अपनी डायरी ले कर चली गई.
समीर ने अपनी डायरी बैग में रख दी और औफिस की फाइल निकाल कर मीटिंग की तैयारी करने लगा.
बीच में उसे पानी की जरूरत महसूस हुई. वह पीछे की ओर गया परंतु राधिका की जगह कोई और परिचारिका थी. वह बिना पानी मांगे ही अपनी सीट पर आ गया.
थोड़ी देर बाद राधिका उस की बगल से गुजरी, तो वह बोला, ‘‘राधिका, एक गिलास पानी चाहिए.’’
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‘‘जरूर,’’ राधिका ने मुसकरा कर कहा. लगता था कि उसे अपने नाम के संबोधन से आश्चर्य भी हुआ और खुशी भी.
पीछे से खिलखिलाने की आवाज आई. शायद दूसरी परिचारिका ने भांप लिया था कि समीर ने पानी के लिए राधिका का इंतजार किया. वह राधिका को छेड़ रही थी.
राधिका ने उसे पानी की बोतल दे दी. बोतल लेते समय दोनों के हाथ स्पर्श हुए तो दोनों के शरीर में सिहरन दौड़ गई. उस ने राधिका को देखा. वह कुछ उदास हो गई थी.
उसी समय मुंबई में यात्री चढ़ने लगे. विमान जब मुंबई से चला तो राधिका उस की बगल वाली सीट पर ही थी, पर न जाने किन खयालों में खोई थी.
‘‘यह बहुत थकाने वाली फ्लाइट है,’’ समीर ने बात शुरू करने के इरादे से कहा.
‘‘हां,’’ कह कर वह फिर अपने खयालों में खो गई.
समीर ने अपनी आंखें बंद कर लीं.
‘‘सर, आप वैज लेंगे या नौनवैज?’’
समीर चौंक कर उठा. राधिका उस के कंधे को हलके से थपथपा कर पूछ रही
थी. वह बीच में कब सो गया, उसे पता ही नहीं चला.
‘‘वैज,’’ समीर के मुंह से निकला.
राधिका ने चुपचाप उसे वैज खाने की ट्रे दे दी. उस समय दोनों की नजरें टकराईं. नजरों में ही बातें हो गईं कि समीर उस के कहने पर ही खाना खा रहा है.
‘बनावटी मुसकानों और खोखले वाक्यों के पीछे विमान परिचारिकाओं के पास दिल भी होता है, जो दूसरों का दर्द महसूस कर सकता है,’ समीर ने सोचा.
‘इसे कम से कम मेरा कहना याद तो है. भूखा रहने से कोई दुख कम नहीं होता, इतना तो इसे पता होना चाहिए,’ राधिका सोच रही थी.
खाना खाने के बाद समीर की आंख फिर लग गई.
‘‘अब हम त्रिवेंद्रम हवाईअड्डे पर आ पहुंचे हैं. आशा है कि आप की यात्रा सुखद रही. आप हमारे साथ फिर यात्रा करें तो हमें खुशी होगी,’’ उद्घोषणा हो रही थी.
विमान से उतरते समय समीर की नजरें राधिका से मिलीं तो वह मुसकरा दी. ऐसा लगा कि शायद कुछ कहना चाहती है.
पूरा दिन समीर मीटिंग में व्यस्त रहा. शाम को समय काटने के लिए वह कोवलम बीच चला गया और वहां समुद्र के किनारे टहलने लगा. बरबस ही उसे विधि की याद आने लगी. उस ने और विधि ने शादी के बाद ऐसी ही किसी जगह जाने का प्रोग्राम बनाया था, वह सोचने लगा.
उसे लगा कि कोई पहचाना हुआ चेहरा उस के सामने से गुजरा. अरे यह तो वही है, सुबह वाली विमान परिचारिका. क्या नाम था इस का? हां, राधिका, उसे याद आया.
राधिका आगे जा कर रेत पर बैठ गई. समुद्र की लहरें उस के पैरों को छू रही थीं. जब भी वह त्रिवेंद्रम आती थी, कोवलम बीच जरूर आती थी. समुद्र में सूर्य का विलीन होते देखना उसे बहुत अच्छा लगता था.
राधिका को यह दृश्य आदित्य से बिछड़ने के बाद अपनी जिंदगी के बहुत करीब लगता था. वह सोचने लगी, ‘कब उस ने आदित्य को आखिरी बार देखा था? शायद
2 साल से ज्यादा हो गए. वह अपनी नईनवेली दुलहन के साथ गोवा घूमने जा रहा था.
विमान में उसे देख कर व्यंग्यपूर्वक मुसकरा दिया था.’ ‘‘आप के सुंदर चेहरे पर आंसू शोभा नहीं देते,’’ सुन कर राधिका चौंक पड़ी. सामने एक पहचाना सा चेहरा था. यह तो सुबह की फ्लाइट में था. आंसुओं की धार उस के चेहरे को भिगो रही थी. उस ने आंसू पोंछ लिए.
‘‘लगता है, आंख में रेत का कण चला गया था,’’ वह बोली.
‘‘आप क्या पहली बार त्रिवेंद्रम आए हैं?’’ राधिका ने बात बदलने के लिहाज से पूछा.
‘‘राधिका, मेरा नाम समीर है. मैं साल में 2-3 बार यहां आता हूं.’’
उसी समय पास से मूंगफली वाला गुजरा. समीर ने एक पैकेट मूंगफली खरीद कर राधिका को आधी मूंगफली दीं. राधिका ने बताया कि इतनी लंबी फ्लाइट के बाद उसे एक दिन का विश्राम मिलता है. कल फिर वह उसी फ्लाइट से दिल्ली जाएगी.
मूंगफली खातेखाते वे इधरउधर की बातें करते रहे. अंधेरा होने पर दोनों ने मुसकरा कर एकदूसरे से विदा ली. राधिका को यह बहुत अच्छा लगा कि समीर ने उस के आंसुओं का कारण जानने की कोशिश नहीं की.
समीर ने अपने गैस्टहाउस में लौट कर हमेशा की तरह अपनी डायरी निकाली. उस ने सोचा कि वह आज राधिका से मुलाकात का पूरा विवरण लिखेगा. डायरी खोलते ही उस के अंदर से फोटो गिर पड़ा. फोटो में राधिका किसी लड़के के साथ थी.
‘तो मेरी डायरी राधिका की डायरी से बदल गई है,’ उस ने सोचा. पहले तो उसे
लगा कि उसे डायरी नहीं पढ़नी चाहिए, परंतु उस के मन में राधिका की उदासी का राज जानने की इच्छा थी, इसलिए उस ने पढ़ना शुरू किया.
दिनांक ………..
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मैं आज बहुत खुश हूं. मुझे इंडियन एअरलाइंस में विमान परिचारिका के लिए चुन लिया गया है. मम्मीपापा ने कहा कि उन्हें मुझ पर गर्व है.
दिनांक ………..
आज मुझे आदित्य ने लोदी गार्डन में मिलने के लिए बुलाया. मेरा हाथ पकड़ कर बोला कि वह मुझ से प्यार करता है और शादी करना चाहता है. पता नहीं कितने वर्षों से मैं आदित्य के मुंह से यह वाक्य सुनने का इंतजार कर रही थी. लगता है कि आज रात नींद नहीं आएगी.
दिनांक ………..
मेरी जिंदगी बंध गई है आदित्य और इंडियन एयरलाइंस के बीच में, परंतु मन हमेशा आदित्य में ही लगा रहता है.
दिनांक ………..
आज मैं ने अपनी सहेली शीला को आदित्य से अपने प्यार और शादी के बारे में बताया तो वह चुप रही. लगता है कि उसे मुझ से जलन हुई है.
दिनांक ………..
कई दिनों से आदित्य के स्वभाव में परिवर्तन देख रही हूं. कई बार मिलने का वादा कर के भी वह नहीं आता. लेकिन वादा तोड़ने का उसे कोई पछतावा नहीं होता. लगता है कि उसे कोई परेशानी है, जिसे मैं समझ नहीं पा रही.
दिनांक ………..
शीला ने मुझे कल शाम 6.00 बजे नेहरू पार्क में मिलने के लिए बुलाया है. मैं ने मना करने की कोशिश की, परंतु उस ने दोस्ती का वास्ता दिया है.
दिनांक ………..
आज मेरे सारे सपने चकनाचूर हो गए. शीला मुझे नेहरू पार्क में एक कोने में ले गई और मुझे मेरे प्यार की असलियत बता दी. आदित्य किसी युवती को अपने आलिंगन में ले कर प्यार भरी बातें कर रहा था. हमें देख कर बेशर्मों की तरह मुसकरा दिया.
शीला ने बाद में बताया कि आदित्य ने शीला के साथ भी खेल खेला था. मैं शीला की एहसानमंद हूं कि उस ने मुझे बरबाद होने से बचा लिया.
दिनांक ………..
जिंदगी में एक सूनापन सा भर गया है. दिन तो किसी तरह कट जाता है, लेकिन रात नहीं कटती. लगता है कि नींद आंखों से रूठ चुकी है.
दिनांक ………..
आज मेरी दिल्लीगोवा फ्लाइट पर ड्यूटी थी. अचानक देखा कि आदित्य अपनी नईनवेली दुलहन के साथ बैठा है. मुझे देख कर व्यंग्य से मुसकरा दिया. मन में तो तूफान उठ रहे थे परंतु मैं ने अपने चेहरे पर भाव नहीं आने दिए.
समीर ने पाया कि वह राधिका के दर्द को महसूस कर सकता है, क्योंकि वह भी इसी तरह के दर्द से गुजर रहा है.
राधिका ने अपने होटल में समीर की डायरी बंद कर दी और बालकनी में आ कर बैठ गई. वह सोचने लगी, ‘अब तक मैं पुरुषों को ही बेवफा और धोखेबाज समझती थी. क्या विधि के लिए सुखसुविधाओं की कीमत समीर के सच्चे प्यार से ज्यादा थी?’
दूसरे दिन सुबह समीर औफिस पहुंचा तो उस के निदेशक ने कहा कि उस के साथ
2 और साथी त्रिवेंद्रम से दिल्ली जाएंगे. उसे उन्हीं लोगों के साथ बैठना पड़ा. राधिका से नजरें चार हुईं तो दोनों समझ गए कि वे एकदूसरे की डायरी पढ़ चुके हैं.
वह 1-2 बार बाथरूम के बहाने पीछे गया परंतु राधिका के साथ दूसरी परिचारिकाएं थीं, इसलिए कुछ नहीं कह पाया.
मुंबई में हवाईजहाज रुका तब उस ने राधिका की डायरी निकाली और पीछे की ओर गया. राधिका ने उसे देख लिया. चुपचाप उन्होंने एकदूसरे की डायरी वापस कर दी.
राधिका ने अपनी डायरी खोली. उसमें समीर का संदेश था, ‘मैं आप का दर्द अनुभव कर सकता हूं. मुझे विश्वास है कि आप को जिंदगी में सच्चा प्यार अवश्य मिलेगा. यदि मैं आप के लिए कुछ कर सका तो मुझे खुशी होगी.’
– समीर
समीर अपनी सीट पर आ गया और डायरी पलटने लगा. अंदर राधिका ने लिखा था, ‘जिंदगी में सुख एवं दुख दोनों होते हैं. आशा करती हूं कि आप जिंदगी भर विधि का रोना नहीं रोएंगे.’
– राधिका
जब समीर दिल्ली आने पर विमान से उतरने लगा तो राधिका जैसे दरवाजे पर उस का इंतजार कर रही थी. दोनों की आंखों में चमक थी. इस बात को 2 साल गुजर गए. राधिका और समीर पहले अच्छे दोस्त और फिर पतिपत्नी बन गए. उन के स्मृतिपटल पर दिल्ली त्रिवेंद्रम दिल्ली फ्लाइट हमेशा रहेगी, क्योंकि यहीं से उन्हें अपनी जिंदगी की दिशा मिली.
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