शेफाली को लग रहा था वंदना ठीक कह रही है. वह अपना घर क्यों छोडे़. उस को हालात का सामना करना चाहिए था. फिर उस औरत से नफरत कैसी जिसे अभी उस ने देखा भी नहीं था.
अगले दिन सुबह वंदना चली गई.
कुछ भी नहीं होते हुए वंदना कुछ दिनों में ही अपनेपन का जो कोमल स्पर्श शेफाली को करवा गई थी उस को भूलना मुश्किल था. यही नहीं वह शेफाली की दिशाहीन जिंदगी को एक दिशा भी दे गई थी.
परीक्षाओं के शुरू होते ही शेफाली ने जानकी बूआ से घर जाने की बात कह दी और थोड़ाथोड़ा कर के अपना सामान पैक करना शुरू कर दिया.
परीक्षाएं खत्म होते ही शेफाली अपने घर को रवाना हुई तो जानकी बूआ खुद उस को अमृतसर जाने वाली बस में बैठाने के लिए बस अड्डे पर आई थीं.
बस जब चल पड़ी तो शेफाली के मन में कई सवाल बुलबुले बन कर उभरने लगे कि पापा उस का सामना कैसे करेंगे, उस का सौतेली मां से सामना कैसे होगा? वह कैसा व्यवहार करेंगी?
शेफाली जानती थी कि उस को बस में बैठाने के बाद बूआ ने फोन पर इस की सूचना पापा को दे दी होगी. शायद घर में उस के आने के इंतजार में होंगे सभी…
सामान का बैग हाथ में लिए घर के दरवाजे के अंदर दाखिल होते एक बार तो शेफाली को ऐसा लगा था कि किसी बेगानी जगह पर आ गई है.
पापा उस के इंतजार में ड्राइंगरूम में ही बैठे थे. उन के साथ मानसी और अंकुर भी थे जोकि दौड़ कर उस से लिपट गए.
उन को प्यार करते हुए शेफाली की नजरें पापा से मिलीं. चाह कर भी शेफाली मुसकरा नहीं सकी. उस ने केवल इतना ही कहा, ‘‘हैलो पापा, कैसे हैं आप?’’
‘‘अच्छा हूं. अपनी सुनाओ. सफर में कोई तकलीफ तो नहीं हुई?’’
‘‘नहीं…और होती भी तो अब कोई फर्क नहीं पड़ता. मुझ को कुछ समय से तकलीफें बरदाश्त करने की आदत पड़ चुकी है,’’ कोशिश करने पर भी अपने गुस्से और आक्रोश को छिपा नहीं सकी शेफाली.
इस पर पापा ने मानसी और अंकुर से कहा, ‘‘तुम दोनों जा कर जरा अपनी दीदी का कमरा ठीक करो, मैं तब तक इस से बातें करता हूं.’’
पापा का इशारा समझ कर दोनों तुरंत वहां से चले गए.
‘‘मैं जानता हूं तुम मुझ से नाराज हो,’’ उन के जाने के बाद पापा ने कहा.
‘‘मुझ को बहाने के साथ घर से बाहर भेज कर मेरी ममी की जगह एक दूसरी ‘औरत’ को दे दी पापा और इस के बाद भी आप उम्मीद करते हैं कि मुझ को नाराज होने का भी हक नहीं?’’
‘‘यह मत भूलो कि वह ‘औरत’ अब तुम्हारी नई मां है,’’ पापा ने शेफाली को चेताया.
इस से शेफाली जैसे बिफर गई और बोली, ‘‘मैं इस रिश्ते को कभी स्वीकार नहीं करूंगी, पापा,’’
‘‘मैं इस के लिए तुम पर जोर भी नहीं डालूंगा, मगर तुम उस से एक बार मिल लो…शिष्टाचार के नाते. वह ऊपर कमरे में है,’’ पापा ने कहा.
‘‘मैं सफर की वजह से बहुत थकी हुई हूं, पापा. इस वक्त आराम करना चाहती हूं. इस बारे में बाद में बात करेंगे,’’ शेफाली ने अपने कमरे की तरफ बढ़ते हुए रूखी आवाज में कहा.
शेफाली कमरे में आई तो सबकुछ वैसे का वैसा ही था. किसी भी चीज को उस की जगह से हटाया नहीं गया था.
मानसी और अंकुर वहां उस के इंतजार में थे.
कोशिश करने पर भी शेफाली उन के चेहरों या आंखों में कोई मायूसी नहीं ढूंढ़ सकी. इस का अर्थ था कि उन्होंने मम्मी की जगह लेने वाली औरत को स्वीकार कर लिया था.
‘‘तुम दोनों की पढ़ाई कैसी चल रही है?’’ शेफाली ने पूछा.
‘‘एकदम फर्स्ट क्लास, दीदी,’’ मानसी ने जवाब दिया.
‘‘और तुम्हारी नई मम्मी कैसी हैं?’’ शेफाली ने टटोलने वाली नजरों से दोनों की ओर देख कर पूछा.
‘‘बहुत अच्छी. दीदी, तुम ने मां को नहीं देखा?’’ मानसी ने पूछा.
‘‘नहीं, क्योंकि मैं देखना ही नहीं चाहती,’’ शेफाली ने कहा.
‘‘ऐसी भी क्या बेरुखी, दीदी. नई मम्मी तो रोज ही तुम्हारी बातें करती हैं. उन का कहना है कि तुम बेहद मासूम और अच्छी हो.’’
‘‘जब मैं ने कभी उन को देखा नहीं, कभी उन से मिली नहीं, तब उन्होंने मेरे अच्छे और मासूम होने की बात कैसे कह दी? ऐसी मीठी और चिकनीचुपड़ी बातों से कोई पापा को और तुम को खुश कर सकता है, मुझे नहीं,’’ शेफाली ने कहा.
शेफाली की बातें सुन कर मानसी और अंकुर एकदूसरे का चेहरा देखने लगे.
उन के चेहरे के भावों को देख कर शेफाली को ऐसा लगा था कि उन को उस की बातें ज्यादा अच्छी नहीं लगी थीं.
मानसी से चाय और साथ में कुछ खाने के लिए लाने को कह कर शेफाली हाथमुंह धोने और कपडे़ बदलने के लिए बाथरूम में चली गई.
सौतेली मां को ले कर शेफाली के अंदर कशमकश जारी थी. आखिर तो उस का सामना सौतेली मां से होना ही था. एक ही घर में रहते हुए ऐसा संभव नहीं था कि उस का सामना न हो.
मानसी चाय के साथ नमकीन और डबलरोटी के पीस पर मक्खन लगा कर ले आई थी.
भूख के साथ सफर की थकान थी सो थोड़ा खाने और चाय पीने के बाद शेफाली थकान मिटाने के लिए बिस्तर पर लेट गई.
मस्तिष्क में विचारों के चक्रवात के चलते शेफाली कब सो गई उस को इस का पता भी नहीं चला.
शेफाली ने सपने में देखा कि मम्मी अपना हाथ उस के माथे पर फेर रही हैं. नींद टूट गई पर बंद आंखों में इस बात का एहसास होते हुए भी कि? मम्मी अब इस दुनिया में नहीं हैं, शेफाली ने उस स्पर्श का सुख लिया.
फिर अचानक ही शेफाली को लगा कि हाथ का वह कोमल स्पर्श सपना नहीं यथार्थ है. कोई वास्तव में ही उस के माथे पर धीरेधीरे अपना कोमल हाथ फेर रहा था.
चौंकते हुए शेफाली ने अपनी बंद आंखें खोल दीं.
आंखें खोलते ही उस को जो चेहरा नजर आया वह विश्वास करने वाला नहीं था. वह अपनी आंखों को बारबार मलने को विवश हो गई.
थोड़ी देर में शेफाली को जब लगा कि उस की आंखें जो देख रही हैं वह सच है तो वह बोली, ‘‘आप?’’
दरअसल, शेफाली की आंखों के सामने वंदना का सौम्य और शांत चेहरा था. गंभीर, गहरी नजरें और अधरों पर मुसकराहट.
‘‘हां, मैं. बहुत हैरानी हो रही है न मुझ को देख कर. होनी भी चाहिए. किस रिश्ते से तुम्हारे सामने हूं यह जानने के बाद शायद इस हैरानी की जगह नफरत ले ले, वंदना ने कहा.
‘‘मैं आप से कैसे नफरत कर सकती हूं?’’ शेफाली ने कहा.
‘‘मुझ से नहीं, लेकिन अपनी मां की जगह लेने वाली एक बुरी औरत से तो नफरत कर सकती हो. वह बुरी औरत मैं ही हूं. मैं ही हूं तुम्हारी सौतेली मां जिस की शक्ल देखना भी तुम को गवारा नहीं. बिना देखे और जाने ही जिस से तुम नफरत करती रही हो. मैं आज वह नफरत तुम्हारी इन आंखों में देखना चाहती हूं.
‘‘हम जब पहले मिले थे उस समय तुम को मेरे साथ अपने रिश्ते की जानकारी नहीं थी. पर मैं सब जानती थी. तुम ने सौतेली मां के कारण घर आने से इनकार कर दिया था. किंतु सौतेली मां होने के बाद भी मैं अपनी इस रूठी हुई बेटी को देखे बिना नहीं रह सकती थी. इसलिए अपनी असली पहचान को छिपा कर मैं तुम को देखने चल पड़ी थी. तुम्हारे पापा, तुम्हारी बूआ ने भी मेरा पूरा साथ दिया. भाभी को सहेली के बेटी बता कर अपने घर में रखा. मैं अपनी बेटी के साथ रही, उस को यह बतलाए बगैर कि मैं ही उस की सौतेली मां हूं. वह मां जिस से वह नफरत करती है.
‘‘याद है तुम ने मुझ से कहा था कि मैं बहुत अच्छी हूं. तब तुम्हारी नजर में हमारा कोई रिश्ता नहीं था. रिश्ते तो प्यार के होते हैं. वह सगे और सौतेले कैसे हो सकते हैं? फिर भी इस हकीकत को झुठलाया नहीं जा सकता कि मैं मां जरूर हूं, लेकिन सौतेली हूं. तुम को मुझ से नफरत करने का हक है. सौतेली मांएं होती ही हैं नफरत और बदनामी झेलने के लिए,’’ वंदना की आवाज में उस के दिल का दर्द था.
‘‘नहीं, सौतेली आप नहीं. सौतेली तो मैं हूं जिस ने आप को जाने बिना ही आप को बुरा समझा, आप से नफरत की. मुझ को अपनेआप पर शर्म आ रही है. क्या आप अपनी इस नादान बेटी को माफ नहीं करेंगी?’’ आंखों में आंसू लिए वंदना की तरफ देखती हुई शेफाली ने कहा.
‘‘धत, पगली कहीं की,’’ वंदना ने झिड़कने वाले अंदाज से कहा और शेफाली का सिर अपनी छाती से लगा लिया.
प्रेम के स्पर्श में सौतेलापन नहीं होता. यह शेफाली को अब महसूस हो रहा था. कोई भी रिश्ता हमेशा बुरा नहीं होता. बुरी होती है किसी रिश्ते को ले कर बनी परंपरागत भ्रांतियां.