रेटिंगः एक स्टार
निर्माताः आमिर खान प्रोडक्शंस और वायकाम 18
निर्देशकः अद्वैत चंदन
लेखकः अतुल कुलकर्णी
कलाकारः आमिर खान, करीना कपूर खान, नागा चैतन्य, मोना, मानव विज, आर्या शर्मा, मेहमान कलाकार शाहरुख खान व अन्य.
अवधिः दो घंटे 45 मिनट
बौलीवुड के फिल्मकारों के पास मौलिक कहानियां व मौलिक कहानी लेखकों का घोर अभाव है. इसी के चलते अब हर कोई विदेशी या दक्षिण की फिल्मों को ही हिंदी में बनाने पर उतारू हैं. पर यह सभी नकल भी ठीक से नही कर पा रहे हैं. इसमंे आमिर खान भी पीछे नहीं है. आमिर खान की ग्यारह अगस्त को सिनेमाघरों में पहुंची फिल्म ‘‘लाल सिंह चड्ढा’’ मौलिक फिल्म नही है, बल्कि 1994 में प्रदर्शित अमरीकन फिल्म ‘फॉरेस्ट गंप’’ का भारतीय करण है, जो कि मंदबुद्धि फारेस्ट नामक एक इंसान की बचपन से पिता बनने तक की एंडवेंचरस कहानी है. इसका भारतीय करण करते समय भारतीय संदर्भ जोड़ने के अलावा लाल सिंह को दयालु दिखाने के चक्कर में काफी गड़बड़ा गयी है. मूल फिल्म से लाल सिंह चड्ढा की कहानी काफी विपरीत है. मूल फिल्म के अनुसार लाल सिंह की मां अपने बेटे के लिए कोई सौदा नही करती. बल्कि भारतीय संवेदनाओ के अनुसार कहानी आगे बढ़ती है. मगर मूल कहानी के विपरीत लाल सिंह चड्ढा युद्ध के मैदान से पाकिस्तानी आतंकवादी को बचाकर भारतीय सेना के ही अस्पताल मे इलाज करवाने के बाद उसे अपना बिजनेस पार्टनर भी बनाता है? कुछ समय बाद उसे पाकिस्तान जाने की इजाजत दे देता है. इसे कैसे जायज ठहराया जा सकता है? तो क्या आमिर खान का मानना है कि मुंबई पर आतंकवादी हमला करने वाले कसाब को भी फांसी देने की बजाय उसे भी सुधारने का अवसर देना चाहिए था?
कहानीः
यह कहानी पठानकोट से ट्रेन में बैठे लाल सिंह चड्ढा (आमिर खान) से शुरू होती है, जो कि अपने बचपन से कहानी सुनाना शुरू करती है. लाल सिंह के बचपन की कहानी के साथ ही देश में घट रही घटनाएं भी सामने आती रहती हैं. यह कहानी पठानकोट के गांव में जन्में लालसिंह चड्ढा की है. जिसके परनाना के पिता, परनाना और नाना सेना में थे और यह तीनों युद्ध के मैदान से कभी जीवित नहीं लौटे. वह अपने नाना के ही घर में अपनी मां (मोना सिंह) के साथ रह रहे हैं. लाल सिंह ठीक से चल नही पाते हैं. डाक्टरों ने उनके पैर में लोहे की राड बांधकर सहारा दे रखा है. लाल सिंह का आई क्यू लेवल काफी कम है, इसलिए उसे काफी परेशानी झेलनी पड़ती है. स्कूल का पादरी प्रिंसिपल मंदबुद्धि होने के चलते लाल सिंह को मंद बुद्धि स्कूल में पढ़ाने की बात उसकी मां से कहते हैं. पर लाल सिंह की मां के जिद के आगे वह झुक जाता है. स्कूल में काफी परेशानी झेलनी पड़ती है. सभी उसे बेवकूफ समझते हैं. स्कूल में लाल सिंह को रूपा डिसूजा नामक दोस्त मिलती है. बचपन में ही लाल सिंह अपनी मां के साथ दिल्ली जाते हैं और जब वह प्रधानमंत्री आवास के सामने खड़े होकर तस्वीरें खिचवा रहे होते हैं, तभी पीछे से गोलियों की आवाज आती है और पता चलता है कि प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या हो गयी है. सिख विरोधी दंगे शुरू हो जाते हैं. बेटे को दंगाइयों से बचाने के लिए लाल सिंह की मां उसके बाल काट देती है, जिससे वह सरदार नजर न आए.
स्कूल दिनों में ही एक मौका ऐसा आता है, जब कुछ लड़कों से बचने के लिए भागते भागते लाल सिंह के पैर को जकड़कर रखने वाली लोहे की राड टूट जाती हैं और लाल सिंह अपने पैरों पर दौड़ने लगते हैं.
लाल सिंह चड्ढा और रूपा डिसूजा की जिंदगी तब बदलने लगती है, जब दोनों कालेज पहुंचते हैं. तेज दौड़ने के चलते लाल सिंह को कालेज की दौड़ टीम का हिस्सा बना लिया जाता है. उधर अति महत्वाकांक्षी और अमीर बनने का ख्वाब देखने वाली रूपा (करीना कूपर खान) एक अमीर लड़के हरी के साथ रोमांस करना शुरू करती है. जबकि लाल सिंह भी रूपा से प्यार करता है. वह अपने नाना या परनाना की तरह सेना में नहीं जाना चाहता. लाल सिंह कहता है कि मैं किसी को मारना नहीं चाहता. पर एक दिन वह हरी को थप्पड़ मार देता है, जिससे नाराज होकर हरी, रूपा से संबंध खत्म कर देता है.
अपने भविष्य को लेकर द्विविधा से ग्र्रस्त लाल सिंह सेना में भर्ती हो जाता है. सेना में सह सैनिक बाला (नागा चैतन्य ) से उसकी दोस्ती होती है. बाला उसके साथ सेना से रिटायरमेंट के भागीदारी में व्यापार शुरू करने की योजना बनाता है. कारगिल में छह आतंकवादियों के छिपे होने की खबर मिलने पर सेना की एक टुकड़ी को भेजा जाता है, जिसमें लाल सिंह और बाला भी है. पर वहां मामला उलटा पड़ जाता है. क्योंकि वहां छह से कई गुना ज्यादा पाकिस्तानी सैनिक आतंकवादी भारी गोला बारूद के साथ मौजूद होते हैं. भारतीय सेना की टुकड़ी उनके हमलों से घबराकर पीछे लौटने लगती है. पीछे लौटते हुए लाल सिंह बसे तेज दौड़कर नीचे उतरता है. अचानक उसे बाला की याद आती है. वह बाला को लेने फिर से वापस पहाड़ी की तरफ भागता है. बीच में उसे एक घायल सैनिक मिलता है. उसे वह उठाकर नीचे सुरक्षित पहुंचाकर फिर बाला के लिए जाता है. ऐसा करते करते वह पाकिस्तानी सैनिक आतंकवादी के मुखिया मोहम्मद (मालव विज ), जो बुरी तरह से घायल है और बाला को भी वापस लेकर आता है. बाला की मौत हो जाती है. पर मोहम्मद का भारतीय सेना के अस्पताल में इलाज होता है. जिसे बाद में लाल सिह अपना बिजनेस मार्टनर बना लेता है. उधर वह रूपा को भूला नही है. मगर रूपा गलत राह पर चल पड़ी है. एक दिन मोहम्मद वापस पाकिस्तान लौट जाता है. कई घटनाक्रम तेजी से बदलते हैं. अंत में मालूम चलता है कि लाल सिंह चड्ढा, असल में सिर्फ और सिर्फ भाग सकता था. जब वो भाग रहा था, उस बीच उसने अपना जीवन जिया. न केवल अपना जीवन जिया, बल्कि और न जाने कितनों को जीना सिखाया. और वो, ये सब कुछ, बेहद निर्मोही ढंग से कर रहा था.
लेखन व निर्देशनः
पौने तीन घंटे लंबी अवधि की फिल्म अति धीमी चाल से लाल सिंह चड्ढा की भटकती हुई कहानी है. दर्शक जिस तरह से मूल फिल्म ‘‘फौरेस्ट गंप’’ के साथ जुड़ता है, उस तरह ‘लाल सिंह चड्ढा’ के संग नही जुड़ पाता. आगे बढ़ती रहती है. यह फीचर फिल्म कम डाक्यूमेंट्री वाली फिल्म है. लाल सिंह चड्ढा के जीवन व रूपा के साथ उनकी प्रेम कहानी के साथ बीच बीच में आपातकाल हटाने, सिख विरोधी दंगों, भारत को विश्व कप क्रिकेट में मिली पहली जीत, औपरेशन ब्लू स्टार, इंदिरा गांधी की हत्या, उनके अंतिम संस्कार में सुबकते राजीव गांधी, सिख विरोधी दंगे, मंडल कमंडल, आडवाणी की रथ यात्रा, बाबरी विध्वंस, मुंबई बम धमाके, अबू सलेम और मोनिका बेदी की कथित प्रेम कहानी से लेकर वाराणसी के घाटों पर लिखा नारा-‘अबकी बार मोदी सरकार’ सहित देश में पिछले पचास वर्षों के दौरान घटित सभी ऐतिहासिक घटनाक्रम भी आते रहते हैं. मगर 2002 के गुजरात दंगों का कहीं कोई जिक्र नही आता? क्या यह इतिहास के साथ छेड़छाड़ नही है? इस हिसाब से यह फिल्म कुछ घटनाक्रमों का ऐतिहासिक दस्तावेज जरुर है.
मगर कहानी व पटकथा के स्तर पर अतुल कुलकर्णी ने एक अजेंडे के तहत ही पूरी फिल्म लिखी है. लेखक व निर्देशक ने फिल्म में सिख दंगों का चित्रण किया है, जिसमें आठ नौ वर्ष का बालक अपनी मां के साथ फंस गया है. हालात ऐसे हैं कि लाल सिंह को बचाने के लिए उसकी मां पास में पड़े कांच के टुकड़े से उसके बाल काट देती है, जिससे वह सरदार न लगे. मगर लेखक व निर्देशक यह नही दिखा पाए कि इस घटनाक्रम का अबोध बालक लाल सिंह के मनमस्तिष्क पर किस तरह का मनोवैज्ञानिक असर पड़ा?लाल सिंह की संगत और लाल सिंह के घर में रहते हुए लाल सिंह के साथ सोेने के बावजूद रूपा क्यों गलत राह पकड़ती है, इसे स्पष्ट नहीं किया गया. पूरी फिल्म में जब भी दंगे होते हैं, तो इस सच को स्वीकार करने की बनिस्बत ‘मलेरिया’ नाम दिया गया है. इतिहास के सच को दिखाते हुए इस तरह का डर क्यों? यदि डर है तो फिल्म न बनाएं. करीना के किरदार यानी कि रूपा के किरदार को मोनिका बेदी के रूप में चित्रित करना क्यो जरुरी समझा गया. अबू सलेम फिल्म नही बनाता था. एक सैनिक अपनी दयालुता वश किसी दुश्मन देश के सैनिक या आतंकवादी को उठा लाए, तो करूा भारतीय सेना उस सैनिक का इतिहास भूगोल आदि की बिना जांच किए सैनिक अस्पताल में उसका इलाज करने के साथ ही उसे टेलीफोन बूथ चलाने की इजाजत देगा? उसके बाद वह वापस पाकिस्तान किस पासपोर्ट पर गया? इस पर भारतीय फिल्म सेंसर की अनदेखी समझ से परे है?क्योंकि यह दृश्य तो भारतीय सेना और पासपोर्ट जारी करने वाले विदेश मंत्रालय पर भी सवाल उठाता है?क्या इसे सिनेमाई स्वतंत्रता मानकर नजरंदाज किया जाना चाहिए? लेखक व निर्देशक ने ऐसा क्यों किया, इसके पीछे उनकी क्या सोच रही है? यह तो वह जाने. पर मूल फिल्म ‘फौरेस्ट गम’ में अमरीकी सैनिक, वियतनाम युद्ध में वियतनामी नही अमरीकी सैनिक को ही उठाकर लाता है और उसी के साथ भागीदारी में व्यापार भी करता है. इतना ही नही पठानकोट, पंजाब के गांव के बालक को पढ़ने के लिए क्रिश्चियन स्कूल व पादरी दिखाकर धर्म को बेचने की जरुरत क्यों पड़ी?
निर्देशक के तौर पर फिल्म में अद्वैत चंदन का नाम जरुर हे, मगर फिल्मू के अपरोक्ष रूप से निर्देशक आमिर खान ही हैं. फिल्म के निर्माता भी वह स्वयं हैं.
फिल्म का गीत संगीत भी आकर्षित नहीं करता.
अभिनयः
आमिर खान को परफैक्शनिट कलाकार माना जाता है. वह बेहतरीन कलाकार हैं. इसमें कोई दो राय नहीं है. मगर लाल सिंह चड्ढा के किरदार को निभाते हुए आमिर खान ने वही सब किया है, जो वह इससे पहले ‘थ्री इडिएट’ या ‘पीके’ में कर चुके हैं. वही आंखों को चैड़ा करना, गर्दन को टेढ़ा करना, गला साफ करना, पैंट को ऊंचा उठाना आदि. . बल्कि कई दृश्यों में तो ‘ओवर एक्टिंग’ करते नजर आते हैं. काली निराशा से आशावाद की ओर बढ़ने वाले दुश्मन देश के सैनिक मोहम्मद के किरदार में मानव विज अपनी छाप छोड़ जाते हैं. बाला के किरदार में नागा चैतन्य का किरदार छोटा है, मगर मनोरंजन के क्षण लाते हैं. रूपा के किरदार में करीना कपूर खान भी दर्शकों को आकर्षित करती हैं.