जानें कैसा हो उमस में आपका डाइट

कोरोना की दूसरी लहर के बाद देश में राज्य स्तरीय लौकडाउन शुरू किया गया था. चूंकि अब मामलों में गिरावट आई है तो कई शहर अनलौक की प्रक्रिया अपना रहे हैं. लोगों का कामधंधा फिर से खुल गया तो लोग वापस बाहर निकलने लगे हैं. लेकिन बाहर निकलने के साथ बढ़ती उमस कोरोना समय में स्वास्थ्य पर खराब असर डाल सकती है.

उमस में न सिर्फ मौसम का तापमान बढ़ता है बल्कि शरीर का तापमान भी बढ़ने लगता है. बेचैनी, घरबराहट, सुस्ती के अलावा शरीर संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ता है. जिस में शरीर का डीहाइड्रेट होना, अति पसीना आना, जल्दी बीमार पड़ना, इम्यूनिटी की कमी होना संबंधित दिक्कतें आ सकती हैं.

ऐसे में इन दिक्कतों को दूर करने के लिए ऐसी डाइट टिप्स आजमाए जाने की जरूरत है जो शरीर को फायदा पहुंचाएं.

डाइट टिप्स

ताजा खाना खाएं और स्वस्थ रहें : बेहतर है कि उमस में तुरंत पकाया हुआ खाना ही खाएं क्योंकि इस मौसम में खाना जल्दी खराब होने की संभावना रहती है. साथ ही, ऐसा खाना अपनी डाइट में शामिल करें जो जल्दी पच जाए. गाजर, टमाटर, पालक, खीरे के अलावा पानी से भरपूर लौकी, तुरई जैसी सब्जियां कम कैलरी वाली होती हैं, साथ ही इन से एसिडिटी  जैसी समस्याएं भी दूर होती हैं. इन में उमस से लड़ने की ताकत होती है.

चायकौफी कम : उमस में कोशिश करें कि चाय या कौफी का अधिक सेवन न हो. कैफीन से शरीर में डीहाइड्रेशन होता है. इस के बजाय जूस, आइस टी, दही, लस्सी, छाछ, नीबू पानी, आम पन्ना, बेल शरबत, नारियल पानी, गन्ने का रस पी सकते हैं. आप ग्रीन टी का सेवन कर सकते हैं.

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ग्लूकोज सेवन : उमस में हर समय ग्लूकोस मौजूद रहना चाहिए. यह बहुत साधारण और आम चीज है. बाहर निकलते समय यह जरूरी है कि बोतल में पानी के साथ ग्लूकोस मिला कर लिया जाए. यह शरीर को डीहाइड्रेट होने से बचाता है.

फलों पर जोर : यदि मीठा खाने का मन हो तो कोशिश करें कि फल को ही प्रायोरिटी में रखें और मिठाई खाने से बचें. उमस के मौसम में ऐसे बहुत से फल होते हैं जिन में भरपूर पानी होता है जो शरीर को रिफ्रैश रहने में मदद पहुंचाते हैं, जैसे तरबूज, खरबूजा, अन्नानास, पपीता इत्यादि.

पेय पदार्थ आवश्यक

– उमस में कम से कम 3 लिटर पानी पीना आवश्यक है. शरीर का तापमान बढ़ता है तो सब से पहले शरीर में पानी की कमी महसूस होती है. ऐसे में समयसमय पर पानी पीते रहें.

– डाइट में लिक्विड के तौर पर सूप, सैलेड फ्रूट्स बढ़ाएं. मसालेदार और तेज खाने से बचें.

– खाने में सफाई का पूरा ध्यान रखें. इस मौसम में पानी से संबंधित काफी बीमारियां फैलने की संभावनाएं रहती हैं. ऐसे में पानी का साफ होना सब से जरूरी है.

– कहीं बाहर उमस से आए हों तो तुरंत ठंडा पदार्थ न लें. घर पर भी हों तो ऐसे पेय पदार्थों से दूर रहें जो अत्यधिक ठंडे हों. इस तरह के पदार्थ पाचनक्रिया के अलावा शरीर के नैचुरल कूलिंग सिस्टम पर प्रभाव डाल सकते हैं.

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मैं ब्रेन ट्यूमर सर्जरी और इलाज से जुड़े सवालों के बारे में जानना चाहती हूं?

सवाल

मेरी माताजी की उम्र 61 वर्ष है. उन्हें 1 महीना पहले फर्स्ट स्टेज का ब्रेन ट्यूमर डायग्नोसिस हुआ था. डाक्टर ने सर्जरी द्वारा ट्यूमर निकालने का सुझाव दिया था, लेकिन कोविड-19 के कारण हम सर्जरी नहीं करा पा रहे हैं. उन के लिए खतरा बढ़ तो नहीं जाएगा?

जवाब-

मस्तिष्क हमारे शरीर का एक बहुत ही आवश्यक और संवेदनशील भाग है. जब इस में ट्यूमर विकसित हो जाता है, तो जीवन के लिए खतरा बढ़ जाता है. अगर ट्यूमर हाई ग्रेड है, तो तुरंत उपचार कराना जरूरी है. उपचार कराने में देरी मृत्यु का कारण बन सकती है.

अगर ट्यूमर का विकास बहुत धीमा है तो आप उपचार कराने के लिए थोड़ा समय ले सकते हैं. कोविड-19 के डर से आप सर्जरी कराने में ज्यादा देर न करें, क्योंकि कुछ ट्यूमर इतने घातक होते हैं कि कई लोग ब्रेन ट्यूमर के डायग्नोसिस के 9-12 महीने में मर जाते हैं. समय पर डायग्नोसिस करा लिया जाए तो ठीक होने की संभावना काफी बढ़ जाती है.

सवाल

मेरे पति को ब्रेन ट्यूमर है. मैं जानना चाहती हूं कि इस के लिए कौन सा उपचार सब से बेहतर है?

जवाब-

ब्रेन ट्यूमर का उपचार उस के प्रकार, आकार और स्थिति पर निर्भर करता है. इस के साथ ही आप के संपूर्ण स्वास्थ्य और आप की प्राथमिकता का भी ध्यान रखा जाता है. अगर ट्यूमर ऐसे स्थान पर स्थित है, जहां औपरेशन के द्वारा पहुंचना संभव है तो सर्जरी का विकल्प चुना जाता है.

लेकिन जब ट्यूमर मस्तिष्क के संवेदनशील भाग के पास स्थित होता है, तो सर्जरी जोखिम भरी हो सकती है. इस स्थिति में सर्जरी के द्वारा जितना ट्यूमर निकाल दिया जाएगा उतना सुरक्षित होता है.

अगर ट्यूमर के एक भाग को भी निकाल दिया जाए तो भी लक्षणों को कम करने में सहायता मिलती है. इस के अलावा ब्रेन ट्यूमर के उपचार के लिए आवश्यकतानुसार, कीमोथेरैपी, रैडिएशन थेरैपी, टारगेट थेरैपी और रेडियोथेरैपी का इस्तेमाल भी किया जाता है.

सवाल

मैं 22 वर्षीय एक कालेज स्टूडैंट हूं. मुझे ब्रेन ट्यूमर है. मैं जानना चाहती हूं कि क्या रेडियो सर्जरी से ब्रेन ट्यूमर का उपचार संभव है?

जवाब-

रेडियो सर्जरी, ब्रेन ट्यूमर का एक अत्याधुनिक उपचार है. यह एक ही सीटिंग में हो जाता है और अधिकतर मामलों में मरीज उसी दिन घर जा सकता है. यह पारंपरिक रूप में सर्जरी नहीं है. इस में कैंसर ग्रस्त कोशिकाओं को मारने के लिए रैडिएशन की कई बीम्स का इस्तेमाल किया जाता है, जो एक बिंदु (ट्यूमर) पर फोकस होती हैं.

इस में विभिन्न प्रकार की तकनीकों का इस्तेमाल किया जाता है जैसे गामा नाइफ या लीनियर ऐक्सेलेटर. इसे रैडिएशन थेरैपी से बहुत बेहतर माना जाता है. इस की सफलता दर 80-90% है और साइड इफैक्ट्स भी बहुत कम होते हैं.

सवाल

मैं ने पिछले साल ब्रेन ट्यूमर के उपचार के लिए कीमोथेरैपी कराई थी. मैं जानना चाहती हूं कि क्या कैंसर रोगियों के लिए कोविड-19 के संक्रमण का खतरा अधिक है?

जवाब-

जो लोग पहले से ही शरीर के किसी भी भाग के कैंसर से जूझ रहे हैं उन में कोविड-19 के संक्रमण का खतरा स्वस्थ लोगों की तुलना में कई गुना अधिक हो जाता है, क्योंकि कैंसर के कारण शरीर अतिसंवेदनशील और प्रतिरक्षा तंत्र अत्यधिक कमजोर हो जाता है. ऐसे में शरीर वायरस के आक्रमण का मुकाबला नहीं कर पाता है.

जो लोग कैंसर का उपचार करा रहे हैं, विशेषकर कीमोथेरैपी, उन के लिए संक्रमण की आशंका अधिक हो जाती है, क्योंकि कीमोथेरैपी में इस्तेमाल होने वाला ड्रग्स प्रतिरक्षा तंत्र को नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है. इसलिए बहुत जरूरी है कि जो लोग कैंसर से जूझ रहे हैं या उस का उपचार करा रहे हैं, वे कोविड-19 से बचने के लिए सरकार द्वारा जारी किए गए दिशानिर्देशों का कड़ाई से पालन करें.

सवाल

मेरे पति को ब्रेन ट्यूमर था, लेकिन उपचार कराने के बाद भी उन्हें दैनिक गतिविधियां करने और बोलने में समस्या हो रही है. क्या करूं?

जवाब-

उपचार कराने के बाद भी अगर दैनिक गतिविधियां करने और बोलने में समस्या हो रही हो तो फिजिकल थेरैपी, स्पीच थेरैपी और औक्युपेशनल थेरैपी की सहायता ली जा सकती है.

अगर ब्रेन ट्यूमर मस्तिष्क के उस भाग में भी विकसित हुआ था, जहां से बोलने, सोचने और देखने की क्षमता नियंत्रित होती है तो कई बार उपचार के पश्चात मरीज की आवश्यकता के आधार पर डाक्टर स्पीच थेरैपी के सैशन लेने का सुझाव दे सकता है. इस के लिए स्पीच पैथोलौजिस्ट का सहारा लिया जा सकता है. मांसपेशियों की शक्ति को पुन: प्राप्त करने के लिए फिजिकल थेरैपी के सैशन दिए जाते हैं. औक्युपेशन थेरैपी, सामान्य दैनिक गतिविधियों को फिर से प्राप्त करने में सहायता करती है.

सवाल

मैं 58 वर्षीय एक घरेलू महिला हूं. 1 साल पहले मुझे ब्रेन ट्यूमर हो गया था. तुरंत उपचार कराने से अब मैं ठीक हो गई हूं. लेकिन मुझे हमेशा डर लगा रहता है कि कहीं ट्यूमर दोबारा विकसित न हो जाए?

जवाब-

अनावश्यक तनाव न पालें औटर अपनी सोच सकारात्मक रखें. अपना ध्यान रखें और डाक्टर द्वारा सुझाई दवाएं उचित समय पर लें और तब तक लेना बंद न करें जब तक डाक्टर न कहे. अगर आप जरूरी सावधानियां बरतेंगी तो दोबारा ब्रेन ट्यूमर होने का खतरा बहुत कम हो जाएगा.

इस के अलावा जीवनशैली में परिवर्तन लाना जैसे नियमित रूप से ऐक्सरसाइज करना, पोषक और संतुलित भोजन का सेवना करना

और पर्याप्त मात्रा में पानी का सेवन, शरीर को अधिक शक्तिशाली और ट्यूमर के विकास के लिए अधिक रिजिस्टैंस बनाता है.

  -डा. मनीष वैश्य

निदेशक, न्यूरो सर्जरी विभाग, मैक्स सुपर स्पैश्यलिटी हौस्पिटल, वैशाली, गाजियाबाद. 

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मेरे सिर में लगातार दर्द हो रहा है, मैं क्या करूं?

सवाल-

मैं 52 वर्षीय कामकाजी महिला हूं. पिछले कुछ महीनों से मुझे लगातार सिरदर्द हो रहा है. थोड़े दिनों से रात में भी इतना तेज दर्द होता है कि नींद खुद जाती है. मैं क्या करूं?

जवाब-

कभीकभी सिरदर्द हो तो कोई बात नहीं, लेकिन अगर आप को लगातार कई दिनों से सिरदर्द हो रहा हो, रात में तेज सिरदर्द होने से नींद खुल रही हो, चक्कर आ रहे हों, सिरदर्द के साथ जी मिचलाने और उलटियां होने की समस्या हो रही हो तो समझिए कि आप के मस्तिष्क में प्रैशर बढ़ रहा है. मस्तिष्क में प्रैशर बढ़ने का कारण ब्रेन ट्यूमर हो सकता है. अगर आप पिछले कुछ दिनों से इस तरह की स्थिति का सामना कर रही हैं तो सतर्क हो जाएं और तुरंत डायग्नोसिस कराएं.

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अगर आपको अक्सर ही सिरदर्द और सुस्ती की शिकायत रहती है या फिर देखने बोलने में भी समस्या होती है, तो सावधान हो जाइये क्योंकि हो सकता है कि आपके ऊपर ब्रेन ट्यूमर का खतरा मंडरा रहा हो. बता दें कि ट्यूमर दो तरह का होता है. एक जिसे ब्रेन कैंसर कहा जाता है और दूसरा सामान्य ट्यूमर. ब्रेन कैंसर स्वास्थ्य के लिए घातक होता है. हालांकि दोनों ही तरह के ट्यूमर में दिमाग की कोशिकाएं क्षतिग्रस्त होती हैं.

दिमाग में किसी एक या अधिक कोशिकाओं के असामान्य रूप से बढ़ने की वजह से ब्रेन ट्यूमर होता है. ब्रेन ट्यूमर किसी भी उम्र में हो सकता है और जैसे जैसे आपकी उम्र बढ़ती है बढ़ती ट्यूमर का खतरा भी बढ़ता जाता है. ब्रेन ट्यूमर के लक्षणों को पहचानना बहुत मुश्किल है. ऐसे में कई बार मरीज को पता ही नहीं चलता कि उसे ब्रेन ट्यूमर है.

आज हम आपको ब्रेन ट्यूमर के कुछ सामान्य लक्षणों के बारे में बताने जा रहे हैं जिससे आप समय रहते इसकी पहचान कर उपचार करा सकती हैं.

लगातार सिरदर्द का बने रहना

सिरदर्द के वैसे तो कई सारे कारण हो सकते हैं, लेकिन लगातार सिरदर्द होने का एक कारण ब्रेन ट्यूमर भी है. अन्य कारणों से सिरदर्द और ब्रेन ट्यूमर की वजह से होने वाले सिरदर्द में अंतर कर पाना डाक्टर्स के लिए भी काफी मुश्किल होता है. ऐसे में अगर आपको सर्दी, खांसी और छींक के साथ लगातार सिरदर्द हो रहा हो और उपचार करने के बावजूद ठीक नहीं हो रहा हो तो यह ब्रेन ट्यूमर का लक्षण हो सकता है. ऐसा होने पर जल्द ही डाक्टर के पास जाए और उसका परामर्श लें.

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मेरे बेटे के दूध के दांत में कीड़ा लगा है, क्या यह इलाज जरूरी है?

सवाल

मेरे 9 वर्षीय बेटे के दूध के दांत में कीड़ा लगा है. घर में सभी बड़ों का कहना है कि हमें अनावश्यक ही उस का इलाज कराने के चक्कर में नहीं पड़ना चाहिए. दूध का दांत है निकल ही जाना है. पर जब जब किसी कारण हम उसे बच्चों के डाक्टर के पास ले जाते हैं, तो वह हमें इस का इलाज कराने की सलाह देता है. क्या यह इलाज सचमुच जरूरी है?

जवाब

आप के बेटे का डाक्टर बिलकुल सही सलाह दे रहा है. दांत में कीड़ा लगे रहने से बच्चे के स्वास्थ्य पर कई तरह से बुरा असर पड़ सकता है. उस के मुंह से बास आने से दूसरे बच्चे उस से कन्नी काटने लग सकते हैं, बच्चे को भोजन चबाने में दिक्कत हो सकती है, जिस के चलते उस के जबड़े का विकास ठीक से नहीं हो पाएगा. यह इन्फैक्शन दांत की मज्जा से जबड़े की हड्डी में भी फैल सकता है. इतना ही नहीं, कुछ नए शोध अध्ययनों के अनुसार इस के फलस्वरूप आगे चल कर शारीरिक स्वास्थ्य पर गंभीर दुष्प्रभाव भी देखने में आ सकते हैं. अत: समय से इलाज करा लेने से बच्चा इन सब परेशानियों से आसानी से बच सकता है.

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बच्चों को भी साफसफाई और स्वस्थ आदतों के बारे में समझाना चाहिए. साफसुथरा रहने से वे न केवल स्वस्थ रहेंगे, बल्कि उन का आकर्षण और आत्मविश्वास भी बढ़ेगा. बचपन की आदतें हमेशा बनी रहती हैं इसलिए जरूरी है कि वे बचपन से ही हाइजीन के गुर सीखें.

ओरल हाइजीन

ओरल हाइजीन प्रत्येक बच्चे की दिनचर्या का एक प्रमुख अंग होना चाहिए. ऐसा करने से बच्चा कई बीमारियों जैसे कैविटी, सांस की बदबू और दिल की बीमारियों से बचा रहेगा.

क्या करें

– बच्चे ध्यान रखें कि रोजाना दिन में 2 बार कम से कम 2 मिनट के लिए अपने दांतों को ब्रश से साफ करें. खासतौर पर खाना खाने के बाद सफाई बहुत ही जरूरी है.

– बच्चे कम उम्र से ही रोजाना ब्रश और कुल्ला करने की आदत डालें.

– टंग क्लीनर से जीभ साफ करना सीखें.

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बीमारी नहीं Disorder है OCD

ओसीडी को मजबूरी या ऑब्‍सेशन के रूप में परिभाषित किया जा सकता है क्‍योंकि कई लोग जब इससे ग्रसित होते हैं तो उनकी स्थिति को दूसरा व्‍यक्ति आसानी से समझने का प्रयास करता है.

ओसीडी से ग्रसित लोग, उनके जुनूनी आवेगों, विचारों और आग्रहों की अनदेखी करते रहते हैं और खुद को ही सही मानते हैं.

उन्‍हें अंदरूनी भय होता है और वो उससे अकेले ही फाइट करने में जुटे रहते हैं. साधारण शब्‍दों में कहा जाएं, तो ओसीडी से ग्रसित लोग, साधारण बातों में भी बखेड़ा कर देते हैं और अपनी ही सोच को थोपने का प्रयास करते हैं.

सामान्‍य तौर पर, ओसीडी से ग्रसित लोग खुद को हर समय अकेला महसूस करते हैं, उन्‍हें लगता है कि वो असहाय हैं और किसी को भी उनकी परवाह नहीं है. ये व्‍यवहार उनके मन में दिन में कई बार आ सकता है या वो कुछ-कुछ समय पर इसके शिकार हो जाते हैं. ओसीडी से पीडि़त लोग, अपने मन में सबसे ज्‍यादा मनगंढत कहानियों को बनाते हैं, वो अलग ही पिक्‍चर को क्रिएट करते रहते हैं.

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इस प्रकार के रोगियों के तर्क बेहद बेकार और बिना सिर पैर के होते हैं. लेकिन वे दूसरों का जीवन, अपने व्‍यवहार से खराब कर देते हैं.

ओसीडी से बच्‍चे भी प्रभावित हो सकते हैं. टीनएज की लड़कियां या लड़के, अक्‍सर स्‍कूली दिनों में इससे ग्रसित हो जाते हैं. ऐसे में बच्‍चे के माता-पिता को खास ध्‍यान रखना चाहिए.

पिछले दशक में क्‍लीनिकल अध्‍ययन में यह स्‍पष्‍ट हो चुका है कि यह मानसिक विकार, दवाईयां और थेरेपी के माध्‍यम से सही किया जा सकता है. इसके उपचार में कुछ दवाईयों को नियमित रूप से निश्चित समय तक दिया जाता है ताकि व्‍यक्ति खुद को बैलेंस कर सके और अपने मूड स्‍वींग पर काबू पा सकें.

थेरेपी से उसे सही और गलत के बारे में बताया जाता है. यह कोई शर्मनाक बीमारी नहीं है, जो कि लाइलाज हो. यह एक प्रकार का विकार है, जिसे आसानी से ठीक किया जा सकता है.

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क्या आपके बच्चे के बालों में जूंएं हैं

लेखिका-सोनिया राणा

एक मां अपने बच्चे का गर्भधारण से ले कर जीवनपर्यंत उस का खयाल रखती है. उस के लिए क्या बेहतर है, किस खाने और शारीरिक ऐक्टिविटी से बच्चे का मानसिक और शारीरिक विकास बेहतर होगा से ले कर उस के भविष्य तक को ले कर एक मां ही है, जो सब से ज्यादा सोचती है.

ऐसे में जब कभी बच्चा बीमार हो जाए तो मां उस के ठीक होने के लिए क्या कुछ नहीं करती. एक मां की केयर में सब से पहले उस के बच्चे ही आते हैं. उस की कोशिश रहती है कि उस के बच्चे चिंतामुक्त हो खुशहाल और स्वस्थ जीवन बिताएं.

अगर ऐसे में हम कहें कि कोई है, जो दिनरात आप के बच्चे का खून चूस रहा है तो कैसे कोई मां चैन की नींद सो सकती है.

दरअसल, यहां बात जूंओं की हो रही है, जो स्कूल या पार्क में खेलखेल में मासूम बच्चों के बालों में घुस कर उन के सिर से खून चूसती हैं, जिस से बच्चा खेल और पढ़ाई से हट कर हर वक्त सिर्फ सिर में खुजली कर के परेशान होता रहता है.

दरअसल, जूंओं की प्रकृति ऐसी होती है कि वे बहुत जल्दी बालों में गंदगी और पसीने से पैदा हो जाती हैं एकदूसरे की टोपी प्रयोग करना या फिर दूसरे का तकिया, कंघी या फिर तौलिया प्रयोग करने से फैल जाते हैं.

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यों करें जूंएं खत्म

अगर आप के बच्चे भी दोस्तों के साथ जूंएं साथ ले कर घर आएं तो आप को उन की दोस्ती खत्म करने के बजाय जूंओं को खत्म करने की जरूरत है. अब इस के बाद आप यह भी सोचेंगी कि कहीं बाजार में मिलने वाले जूंओं से छुटकारा दिलाने का वादा करने वाले प्रोडक्ट्स में मौजूद कैमिकल्स से आप के बच्चे को कोई नुकसान तो नहीं होगा? तो परेशान होने की जरूरत नहीं, बल्कि इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए ऐसे प्रोडक्ट्स को चुनने की जरूरत है, जो आप के बच्चे के लिए सेफ भी हों और जूंओं के लिए असरदार भी.

हालांकि बहुत से लोग आप को जूंओं से छुटकारे के लिए नीम का तेल, टीट्री औयल, बेकिंग सोडा और विनेगर जैसे घरेलू नुसखों को आजमाने की सलाह भी देंगे, लेकिन देखा गया है कि ये नुस्खे जुंओं पर कुछ हद तक ही काम कर पाते हैं और परेशानी लगातार बनी रहती है, क्योंकि जूंएं रोजाना 8 से 10 अंडे देती हैं.

इन से छुटकारा पाने के लिए जरूरी है कि आप ऐसे प्रोडक्ट्स चुनें, जो गुलदाउदी, शिकाकाई और रीठा के गुणों से युक्त हों, जिस में गुलदाउदी ऐक्सट्रैक्ट जूंओं से आप के बच्चे को छुटकारा देगा, साथ ही उस में मौजूद शिकाकाई और रीठा बालों को मजबूती देंगे.

कैसे करें इस्तेमाल

– बालों को पहले किसी साधारण शैंपू से अच्छी तरह धो लें.

– बालों को तौलिए से पोंछें, लेकिन उन में नमी रहने दें.

– बालों में अच्छी तरह ऐंटीलीस क्रीम लगाएं, कानों के पीछे भी अच्छी तरह क्रीम लगाएं.

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– बेहतर परिणाम के लिए 10 मिनट तक बालों में क्रीम को लगा रहने दें.

– 10 मिनट के बाद बालों को साफ पानी से अच्छी तरह धो लें.

– गीले बालों में पतले दांतों वाली कंघी करें.

मेरे सहकर्मी को हार्ट फेल्योर की शिकायत रहती है, इसका क्या मतलब है?

सवाल- 

मेरे सहकर्मी को हार्ट फेल्योर की शिकायत रहती है. इस का क्या मतलब है? क्या हृदय वाकई काम करना बंद कर देता है?

जवाब-

हार्ट फेल्योर एक स्थिति है जिस में कमजोर हृदय खून की सामान्य मात्रा पंप करने में सक्षम नहीं होता. इस से वह पूरे शरीर में औक्सीजन और पोषक तत्त्व प्रभावी ढंग से नहीं पहुंचा पाता. हार्ट फेल्योर को बीमारी नहीं कहा जा सकता. यह एक क्रौनिक सिंड्रोम है, जो आमतौर पर धीरेधीरे विकसित होता है. इस से शरीर को सामान्य ढंग से काम करते रहने के लिए पोषण मिलना कम होता जाता है.

हार्ट फेल्योर की स्थिति अकसर इसलिए बनती है कि या तो आप की मैडिकल स्थिति ऐसी बन जाती है या फिर पहले से ऐसी होती है. इस में कोरोनरी आर्टरी डिजीज, हार्ट अटैक या उच्च रक्तचाप शामिल है. इस से आप का हृदय क्षतिग्रस्त हो गया होता है या उस पर अतिरिक्त कार्यभार पड़ गया होता है. इसे भले ही हार्ट फेल्योर कहा जाता है पर इस का मतलब यह नहीं कि आप का हृदय काम करना बंद करने वाला है. इस का मतलब है कि आप के हृदय को आप के शरीर की जरूरतें पूरी करने में खासकर गतिविधियों के दौरान मुश्किल हो रही है.

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हार्ट अटैक एक बहुत ही गंभीर स्थिति होती है जिसमें हमारी जान जाने तक का खतरा भी होता है. इसमें हमारा रक्त प्रवाह ब्लॉक हो जाता है और हमारे ह्रदय की मसल्स डेमेज होने लगती हैं. जैसा कि हमने आज तक देखा या सुना है हम सोचते हैं कि हार्ट अटैक के लक्षण केवल छाती में दर्द होना या फिर जमीन पर गिरना ही होते हैं. परन्तु असल में जब आप को हार्ट अटैक आने की सम्भावना होती है तो यह लक्षण आप के आस पास भी नहीं फिरते हैं. हार्ट अटैक के कुछ लक्षण बहुत ही अजीब व हैरान पूर्वक भी हो सकते हैं जिनमें से एक लक्षण होता है उबासियां लेना. क्या आप चौंक गए? चलिए जानते हैं इसके बारे में.

उबासी लेने हार्ट अटैक के बीच का सम्बन्ध

आम तौर पर हम उबासी लेने को नींद आने का एक लक्षण मानते हैं या जब हम बहुत अधिक थक जाते हैं और हमें सोने की जरूरत होती है तब हमें उबासी आती है. परन्तु यदि आप ने नींद भी ले ली और आप थके हुए भी नहीं है तो भी अगर आप को उबासियां आ रही हैं तो यह एक गंभीर लक्षण हो सकता है. आप को इसे हल्के में नहीं टाल देना चाहिए.

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ताकि गैजेट्स का आंखों पर न हो असर

टैक्नोलौजी डिजिटलाइजेशन के इस युग में खुद को उन का मुरीद होने से रोक पाना मुश्किल है. कंप्यूटर, स्मार्टफोन, टैबलेट्स, लैपटौप्स और टैलीविजन जैसे डिजिटल डिवाइस अब सिर्फ लोगों की जरूरत नहीं रह गए हैं, बल्कि अब लोग इन के ऐडिक्ट हो चुके हैं. हमारे इस ऐडिक्शन की कीमत हमारी आंखों को चुकानी पड़ती है. इन गैजेट्स व डिवाइस के चलते हमारी आंखें न सिर्फ थक जाती हैं, बल्कि उन में जलन व लाल होने की शिकायत भी होने लगती है. ऐसी तकलीफों से बचने के लिए पेश हैं, कुछ टिप्स:

रूटीन चैकअप: अगर आप कंप्यूटर में लगातार काम करती हैं, तो साल में 1 बार नेत्रविज्ञानी के पास जरूर जाएं. अगर आप की आंखें लाल रहती हैं और उन में खुजली होती है तो समझ लीजिए कि आप की आंखों को जांच की जरूरत है.

रिड्यूस ग्लेयर: सिस्टम के मौनिटर पर ऐंटीग्लेयर स्क्रीन जरूर लगवाएं. संभव हो तो अपने आसपास की दीवारों पर गहरे रंग का पेंट करवाएं. इस से रिफ्लैक्शन की प्रक्रिया रुक जाती है, जो आप की आंखों को आराम पहुंचाती है.

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बे्रक लें: लगातार लंबे समय तक कंप्यूटर पर काम करते रहना आंखों को नुकसान पहुंचाता है. कंप्यूटर की स्क्रीन पर एकटक देर तक देखना सही नहीं है. हर 1 घंटे में कुछ मिनट का बे्रक जरूर लें.

स्पैक्ट्स में प्रोटैक्टिव लैंस का प्रयोग: सही लैंस के इस्तेमाल से आंखों को सुरक्षित रखा जा सकता है. कौंटैक्ट लैंस आंखों की नमी को बचाने का काम करते हैं. कंप्यूटर पर लगातार काम करते रहने से आंखों की नमी को नुकसान पहुंचता है. ऐसे में सही लैंस का चुनाव करना बेहद जरूरी है. इसिलोर के क्रिजाल प्रिवेंसिया आंखों के लिए बहुत लाभकारी हैं. ये लैंस कंप्यूटर और स्मार्टफोन की स्क्रीन से निकलने वाली ब्लू लाइट से आंखों को बचाते हैं.

ऐक्सरसाइज आंखों की: अपनी हथेलियों को तब तक रगड़ें जब तक वे गरम न हो जाएं. इस के बाद उन्हें आंखों पर रखें. इस से आंखों को आराम मिलता है. लगातार कंप्यूटर पर काम करने व इस के प्रभाव से आंखों को बचाने के लिए आप 20-20-20 रूल फौलो कर सकती हैं. अपनी कंप्यूटर स्क्रीन से हर 20 मिनट में 20 सैकंड के लिए नजरें हटाएं तथा कंप्यूटर के बीच की दूरी कम से कम 20 इंच बनाए रखें.

सही रोशनी: बहुत ज्यादा रोशनी होने से आंखों पर तनाव पड़ता है. ऐसे में बहुत ज्यादा रोशनी वाले स्थान पर कंप्यूटर में काम न करें. फ्लोर लैंप की रोशनी कंप्यूटर पर काम करने के लिए सही रहती है.

पानी का चमत्कार: पानी वाकई चमत्कारी होता है. आंखों को दिन में कई बार पानी से धो कर आप न सिर्फ उन्हें साफ बल्कि तरोताजा भी रख सकती हैं. थोड़ेथोड़े अंतराल में पानी पीते रहने से भी आंखों को फायदा होता है. लगातार कंप्यूटर पर काम करते रहने से आंखों से किनारे पर सूजन आ जाती है. पानी पीते रहने से आप इस परेशानी से दूर रह सकती हैं.

सही पोश्चर: कंप्यूटर पर काम करने के दौरान आप के बैठने के पोश्चर से आंखों से विजन पर बहुत फर्क पड़ता है. आप के काम करने की जगह का स्ट्रक्चर व कुरसी भी आंखों पर असर डालती है. काम करने के दौरान कंप्यूटर से आप की आंखों की दूरी करीब 20 से 24 इंच होनी चाहिए और कंप्यूटर की स्क्रीन आंखों से 10 से 15 इंच नीचे होनी चाहिए. आप डैस्क लैंप भी प्रयोग कर सकती हैं, लेकिन इस बात का ध्यान रखें कि लैंप की रोशनी बहुत ज्यादा  हो.

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हैल्दी डाइट: बैलेंस डाइट के जरीए आप विटामिन ए, सी और ई की कमी को दूर कर सकती हैं. ये सभी विटामिन आंखों के स्वास्थ्य के लिए जरूरी होते हैं. फल, सब्जियां खाएं. इन में टमाटर, पालक और हरी पत्तेदार सब्जियां लें. डाक्टर आंखों के स्वास्थ्य के लिए मछली खाने की सलाह भी देते हैं. इस से ओमेगा-3 मिलता है, जो आंखों के लिए अच्छा होता है.

– शिव कुमार
सीईओ, इसिलोर इंडिया

औनलाइन क्लास के कारण आंखों में जलन, दर्द की शिकायत पाई गई है. मुझे क्या करना चाहिए?

सवाल-

मेरे बेटे की उम्र 4 साल है, उस ने 2020 में औनलाइन क्लास के द्वारा अपनी स्कूली शिक्षा शुरू की थी, लेकिन 1 साल के भीतर ही आंखों में जलन, दर्द की शिकायत पाई गई है. मुझे क्या करना चाहिए?

जवाब-

डब्ल्यूएचओ के दिशानिर्देशों के अनुसार, 5 साल से कम उम्र के बच्चों  को स्क्रीन के सामने नहीं बैठना चाहिए. लेकिन अब बच्चों को अपनी आंखों को लगातार स्क्रीन पर रखना पड़ता है, जिस से उन की आंखों पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है और स्वास्थ्य संबंधी अन्य समस्याएं भी पैदा होती हैं. इन के प्रभाव को कम करने के लिए आप को बच्चे को खेलखेल में आंखों की ऐक्सरसाइज करवानी चाहिए. बच्चों के लिए पलकों को लगातार झपकना एक सरल व बेहतर ऐक्सरसाइज है, जिसे आप खेलखेल में भी करवा सकती हैं. पलकों को लगातार झपकना एक सामान्य प्रक्रिया है. इस ऐक्सरसाइज से आंखें तरोताजा रहती हैं और उन से तनाव दूर होता है.

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इन दिनों पॉवर वाले चश्मे पहने बच्चों की बढ़ती संख्या को  देखकर बहुत चिंता होती है. टेक्नोलॉजी हमारी मदद करने और हमारे जीवन को सरल बनाने के लिए होती है, लेकिन बहुत से आविष्कारों ने बच्चों के स्वास्थ्य को प्रभावित किया है और उन्हें आलसी बना दिया है. कोविड-19 महामारी के दौरान ऑनलाइन क्लास के लिए गैजेट्स के सामने ज्यादातर बच्चे अपना समय बिता रहे हैं. इसकी वजह से बच्चे बाहर खेलने बहुत कम जा पा रहे हैं. लेकिन यह चीज उनके स्वास्थ्य के लिए बहुत खतरनाक है खासकरके उनकी आंख के लिए यह बहुत खतरनाक है. इसलिए यह जरूरी है कि हम उनके स्क्रीन के सामने बैठने के समय को कम करें और उन्हें ऐसी डाइट दें, जो स्वाभाविक रूप से उनकी आंखों की रोशनी में सुधार करें. उन्हें बैलेंस्ड डाइट देने के अलावा मीडियम एक्सरसाइज और नियमित आंखों की जाँच खराब दृष्टि से निपटने के लिए सरल उपाय होती हैं.

पूरी खबर पढ़ने के लिए- औनलाइन स्टडी के दौरान बच्चों की आंखों का रखें ख्याल

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अकसर हवाईयात्रा करते समय मेरे कानों में दर्द होने लगता है, मुझे क्या सावधानी बरतनी चाहिए?

सवाल-

अकसर हवाईयात्रा करते समय मेरे कानों में दर्द होने लगता है. मुझे क्या सावधानी बरतनी चाहिए?

जवाब

हवाईजहाज में सफर के दौरान अकसर लोगों को कानों में दर्द की शिकायत होती है. कानों के परदों पर भी दबाव महसूस होता है. यह समस्या प्लेन के लैंडिंग करते समय अधिक होती है. इस से बचने के लिए इयर प्लग का इस्तेमाल करें. आप चूइंगम चबा कर भी इस समस्या से बच सकती हैं. इस के अलावा अगर कोई और समस्या हो या प्लेन में यात्रा करने के अलावा भी कानों में दर्द महसूस हो तो डाक्टर को दिखाएं.

सवाल-

पिछले महीने एक दुर्घटना में मेरे कान के परदे में छेद हो गया है. इस के उपचार के कौनकौन से विकल्प हैं?

जवाब-

अगर कोई जानलेवा घटना जैसे कि विस्फोट या वाहन चलाते समय कोई दुर्घटना घटित होने से कान में अचानक तेज दर्द हो तो समझिए कि कान के मध्य भाग को नुकसान पहुंचा है. अगर कान के परदे में छोटा छेद हो गया है तो वह अपनेआप ही भर जाता है. लेकिन अगर बड़ा छेद हो तो उपचार कराना जरूरी हो जाता है. मैडिकेटेड पेपर से कान के परदे वाले स्थान पर पैचिंग कर दी जाती है. गंभीर मामले में शरीर के दूसरे भाग से ऊतक ले कर छेद को बंद करने के लिए वहां लगा दिए जाते हैं. समय रहते उपचार न कराया जाए तो कान में तेज दर्द हो सकता है और संक्रमण होने का खतरा भी बढ़ जाता है.

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सवाल-

मैं एक डिस्को बार में काम करती हूं, पिछले कुछ दिनों से मुझे थोड़ा कम सुनाई दे रहा है. क्या करूं?

जवाब-

आंतरिक कान में छोटीछोटी हेयर सैल्स की एक कतार होती है. ये मस्तिष्क को संकेत पहुंचाते हैं. तेज आवाज में संगीत सुनने से ये हेयर सैल्स चपटे हो जाते हैं, लेकिन कुछ समय बाद फिर से अपनी सामान्य स्थिति में आ जाते हैं.

लंबे समय तक चलने वाला ध्वनि प्रदूषण इन्हें क्षतिग्रस्त कर नष्ट कर सकता है. उम्र बढ़ने के साथ यह समस्या और गंभीर हो जाती है, जिस से सुनने की क्षमता समाप्त हो जाती है.

तेज आवाज से बचाव के लिए हियरिंग प्रोटैक्शन डिवाइसेज जैसे इयर प्लग और इयर मफस का इस्तेमाल करें. अगर जौब के कारण इन का इस्तेमाल संभव न हो तो जौब बदल लें, क्योंकि युवावस्था में ही सुनने की क्षमता सुरक्षित रखने का प्रयास करना जरूरी है.

सवाल-

मेरे कानों में बहुत मैल जमा होता है. थोड़ा कड़ा भी हो जाता है. क्या करूं?

जवाब-

अधिकतर लोग सोचते हैं कि शरीर की तरह कानों को भी साफ रखना चाहिए. लेकिन कानों के मामले में आप को चिंता करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि ये

स्वयं अपनेआप को साफ कर लेते हैं. कई बार हम कानों को साफ करने के चक्कर में उन में कोई नुकीली चीज डाल देते हैं, जिस से अस्थायी रूप से सुनने की क्षमता प्रभावित हो सकती है या कान का परदा फट सकता है. इसलिए कानों में बिना सोचेसमझे कुछ न डालें. इयर वैक्स अपनेआप इयर कैनल से बाहर आ जाता है. अगर इयर वैक्स कड़ा हो गया है और इयर कैनल को अवरुद्ध कर रहा है, तो डाक्टर से संपर्क करें.

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सवाल-

मेरे बेटे की उम्र 6 माह है, लेकिन वह ताली बजाने और कोई आवाज करने पर सिर नहीं घुमाता है. क्या उस की सुनने की क्षमता सामान्य नहीं है?

जवाब-

सामान्यतया 4 माह तक बच्चा ताली बजाने और आवाज करने पर उस तरफ सिर या आंख की पुतली नहीं घुमाता है. लेकिन आप का बच्चा 6 माह का हो गया है और आवाज के प्रति कोई प्रतिक्रिया नहीं दे रहा है तो आप किसी अच्छे ईएनटी से उस की श्रवण क्षमता की जांच कराएं.

अगर वह सामान्य रूप से सुन नहीं पा रहा है तो उसे सुनने की मशीन लगवा देनी चाहिए. अगर वह अत्यधिक बहरेपन का शिकार है, तो 1 साल की उम्र में काक्लियर इंप्लांट करा देने चाहिए. इस से ऐसे बच्चे भी सामान्य रूप से बोलना और सुनना शुरू कर लेते हैं.

-डा. अभय कुमार

एमएस, वीएमसीसी और सफदर जंग अस्पताल, दिल्ली.

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