इन चीजों को भूल कर भी ना खाएं खाली पेट

आपके खानपान में ही आपकी सेहत का राज छिपा है. कितने स्वस्थ हैं आप, आप क्या खाते हैं इसपर निर्भर करता है. इसके अलावा आपके खाने का वक्त भी काफी अहम होता है. किस समय पर क्या चीज खाई जा रही है, आपके सेहत को प्रभावित करती है.

कोई भी खाना तभी आपके शरीर को तब लगता है जब सही समय पर उसे खाया जाए. गलत समय पर उसे खाने से आपकी सेहत पर नकारात्मक असर हो सकता है. इस खबर में हम आपको बताएंगे कि ऐसी कौन सी चीजें हैं जिन्हें खाली पेट नहीं खाना चाहिए.

कार्बोहाइड्रेटेड ड्रिंक

कार्बोहाइड्रेटेड ड्रिंक्स सेहत के लिए अच्छी नहीं होती है. खाली पेट इनका सेवन और भी खतरनाक होता है. सुबह में, खाली पेट इसका सेवन बहुत हानिकारक होता है. इसके प्रयोग से कैंसर और दिल की बीमारी जैसी गंभीर परेशानियां हो सकती हैं.

कौफी या चाय

बहुत से लोगों की सुबह में चाय या कौफी की आदत होती है. इसका सेहत पर बहुत बुरा असर होता है. खाली पेट कौफी पीने से शरीर में हाइड्रोक्लोरिक एसिड की मात्रा बढ़ जाती है. इसके अलावा कब्ज की परेशानी भी होने लगती है. पाचन क्रिया पर इसका बुरा असर होता है.

पेस्ट्रीड

पेस्ट्री नाश्ते के लिहाज से अच्छा औप्शन है. चूंकि इसमें यीस्ट अधिक होती है, खाली पेट खाने  से आपको परेशानी हो सकती है.

टमाटर

जी हां, अपनी तमाम खूबियों के बाद भी टमाटर को खाली पेट खाना हानिकारक है. इसमें एसिड की मात्रा अधिक होती है. अपने एसिडिक नेचर के कारण इसका खाली पेट सेवन करना हानिकारक हो सकता है. ये पेट पर जरूरत से ज्यादा दवाब डालते हैं और इससे पेट में दर्द हो सकता है. अल्सर से पीड़ित लोगों के लिए ये खतरनाक स्थिति हो सकती है.

खट्टे फलों से रहें दूर

खट्टे फल जैसे संतरा, नींबू, अंगूर को भूल कर भी खाली पेट नहीं खाना चाहिए. इन फलों में विटामिन सी की मात्रा अधिक होती है. खाली पेट इनके सेवन से पेट की बीमारी का खतरा अधिक रहता है.

 

आधुनिक महिलाओं में बांझपन की बीमारी का कारण और निदान

महिलाओं के जीवन में मां बनना सबसे बड़ा सुख माना जाता है लेकिन आजकल की आधुनिक जीवनशैली और अन्‍य कारणों की वजह से अब महिलाओं में बांझपन यानि इनफर्टिलिटी की समस्‍या बढ़ रही है. अगर आप भी बांझपन का शिकार हैं या इससे बचना चाहती हैं तो आइए जानते हैं औनलाइन हेल्थकेयर कंपनी myUpchar से इसके कारण, लक्षण और इलाज के बारे में.

क्‍या होता है बांझपन

बांझपन वह स्थिति है जिसमें महिलाएं गर्भधारण नहीं कर पाती हैं. अगर कोई महिला प्रयास करने के बाद भी 12 महीने से अधिक समय तक गर्भधारण नहीं कर पाती है तो इसका मतलब है कि वो महिला बांझपन का शिकार है. गौरतलब है कि गर्भधारण न हो पाने का कारण पुरुष बांझपन भी हो सकता है.

कुछ महिलाएं शादी के बाद कभी कंसीव नहीं कर पाती हैं तो कुछ स्त्रियों को एक शिशु को जन्‍म देने के बाद दूसरी बार गर्भधारण करने में मुश्किलें आती हैं. इस तरह बांझपन दो प्रकार का होता है.

क्‍या है बांझपन का कारण

  • फैलोपियन ट्यूब अंडे को अंडाशय से गर्भाशय तक पहुंचाती है, जहां भ्रूण का विकास होता है. पेल्विक में संक्रमण या सर्जरी के कारण फैलोपियन ट्यूब को नुकसान पहुंच सकता है जिससे शुक्राणुओं को अंडों तक पहुंचने में दिक्‍कत आती है और इसी वजह से महिलाओं में बांझपन उत्‍पन्‍न होता है.
  • महिलाओं के शरीर में हार्मोनल असंतुलन होने के कारण भी इनफर्टिलिटी हो सकती है. शरीर में सामान्‍य हार्मोनल परिवर्तन ना हो पाने की स्थिति में अंडाशय से अंडे नहीं निकल पाते हैं.
  • गर्भाशय की असामान्य संरचना, पौलिप्स या फाइब्रौएड के कारणबांझपन हो सकता है.
  • तनाव भी महिलाओं में बांझपन का प्रमुख कारण है.
  • महिलाओं की ओवरी 40 वर्ष की आयु के बाद काम करना बंद कर देती है. अगर इस उम्र से पहले किसी महिला की ओवरी काम करना बंद कर देती है तो इसकी वजह कोई बीमारी, सर्जरी, कीमोथेरेपी या रेडिएशन हो सकती है.
  • पीसीओएस की बीमारी के कारण भी आज अधिकतर महिलाएं बांझपन का शिकार हो रही हैं. इस बीमारी में फैलोपियन ट्यूब में सिस्‍ट बन जाते हैं जिसके कारण महिलाएं गर्भधारण नहीं कर पाती हैं.

बांझपन के लक्षण

  • myUpchar की गायनेकोलौजिस्ट डा. अर्चना नरूला के अनुसार लम्बे समय तक गर्भधारण में असमर्थता ही बांझपन का सबसे मुख्‍य लक्षण है.
  • अगर किसी महिला का मासिक धर्म 35 दिन या इससे ज्‍यादा दिन का हो तो ये बांझपन का लक्षण हो सकता है. इसके अलावा बहुत कम दिनों की माहवारी या 21 दिन से पहले माहवारी का आना अनियमित माहवारी कहलाता है जोकि बांझपन बन सकता है.
  • चेहरे पर अनचाहे बाल आना या सिर के बालों का झड़ना भी महिलाओं में इनफर्टिलिटी की वजह से हो सकता है.

बांझपन से कैसे बचें

बांझपन से बचने के लिए जीवनशैली में सुधार करना सबसे जरूरी है. यहां कुछ ऐसे सरल सुझाव दिए गए हैं जिन्हें अपनाकर इनफर्टिलिटी से बच सकते हैं.

संतुलित आहार खाएं

  • बांझपन को दूर करने के लिए उचित भोजन करना बहुत जरूरी है. अपने आहार में जस्ता, नाइट्रिक औक्साइड और विटामिन सी और विटामिनई जैसे पोषक तत्वों को शामिल करें.
  • ताजी फल-सब्जियां खाएं. शतावरी और ब्रोकली से फर्टिलिटी बढ़ती है. इसके अलावा बादाम, खजूर, अंजीर जैसे सूखे-मेवे खाएं.
  • आपको रोज़ कम से कम 5-6 खजूर या किशमिश खानी चाहिए. डेयरी उत्पाद, लहसुन, दालचीनी, इलायची को अपने आहार में शामिल करें.
  • सूरजमुखी के बीज खाएं. चकोतरा और संतरे का ताजा रस पीएं. फुल फैट योगर्ट और आइस्‍क्रमी से भी फर्टिलिटी पावर बढ़ती है.
  • जो महिलाएं अपनी फर्टिलिटी पावर को बढ़ाना चाहती हैं उन्‍हें अपने आहार में टमाटर, दालें, बींस और एवोकैडो को शामिल करना चाहिए.
  • अनार में फोलिक एसिड और विटामिन बी प्रचुर मात्रा में होता है. फर्टिलिटी को बढ़ाने के लिए महिलाओं को अनार का सेवन जरूर करना चाहिए.
  • विटामिन डी के लिए अंडे खाएं और ओमेगा 3 फैटी एसिड युक्‍त खाद्य पदार्थों का सेवन करें. कंसीव करने की संभावनाओं को बढ़ाने के लिए रोज़ एक केला खाएं.
  • अश्‍वगंधा शरीर में हार्मोंस के संतुलन को बनाए रखता है और प्रजनन अंगों की समुचित कार्यक्षमता को बढ़ावा देती है. बार-बार गर्भपात होने के कारण शिथिल गर्भाशय को समुचित आकार देकर उसे बनाने में अश्‍वगंधा मदद करता है. महिलाओं को अपने आहार में दालचीनी को भी जरूर शामिल करना चाहिए.

इन खाद्य पदार्थों से रहें दूर

  • धूम्रपान और शराब बांझपन का प्रमुख कारण हैं इसलिए इनसे दूर रहें.
  • तैलीय भोजन और सफेद ब्रैड जैसे परिष्कृत कार्बोहाइड्रेट से बचें.
  • प्रिजर्वेटिव्स फूड, कैफीन और मांस का सेवन कम करें. फ्रेंच फ्राइज, तली हुई और मीठी चीजों का बहुत कम सेवन करें.
  • इसके अलावा कोल्‍ड ड्रिंक आदि भी ना पीएं. कौफी और चाय भी कम पीएं क्‍योंकि इनमें कैफीन की मात्रा अधिक होती है जिसका फर्टिलिटी पर बुरा असर पड़ता है.

ये आदतें छोड़ दें

  • मासिक धर्म के दिनों में तैलीय और मसालेदार भोजन ना लें.
  • मारिजुआना या कोकीन का सेवन ना करें.
  • धूम्रपान करने से ओवरी की उम्र और अंडों की आपूर्ति कम हो जाती है. धूम्रपान फैलोपियन ट्यूब और सर्विक्‍स को भी नुकसान पहुंचाता है जिससे एक्‍टोपिक प्रेग्‍नेंसी या गर्भपात का खतरा बढ़ जाता है. इसलिए सिगरेट बिलकुल ना पीएं.
  • शराब का सेवन ना करें. गर्भधारण से पूर्व शराब का सेवन करने वाली महिलाओं में औव्‍यूलेशन विकार हो सकता है इसलिए शराब से दूर रहें.
  • अगर आपका वजन बहुत ज्‍यादा या कम है तो उसे भी संतुलित करें. इनफर्टिलिटी से जूझ रही महिलाओं को अपना वजन संतुलित रखना चाहिए.
  • आधुनिक युग में बांझपन का प्रमुख कारण तनाव है. तनाव से दूर रहकर बांझपन की समस्‍या से बचा जा सकता है. मानसिक शांति पाने के लिए रोज़ सुबह प्राणायाम करें.

बांझपन की जांच

अगर कोई महिला लंबे समय से गर्भधारण नहीं कर पा रही है तो उसे डौक्टर के निर्देश पर निम्‍न जांच करवानी चाहिए:

  • ओव्यूलेशनटेस्ट: इसमें किट से घर पर ही ओव्यूलेशन परीक्षण कर सकती हैं.
  • हार्मोनल टेस्‍ट: ल्‍युटनाइलिंग हार्मोन और प्रोजेस्‍टेरोन हार्मोन की जांच से भी बांझपन का पता लग सकता है. ल्युटनाइज़िंगहार्मोन का स्तर ओव्यूलेशन से पहले बढ़ता है जबकि प्रोजेस्टेरोन हार्मोन ओव्यूलेशन के बाद उत्पादित हार्मोन होता है. इन दोनों हार्मोंस के टेस्‍ट से ये पता चलता है कि ओव्यूलेशन हो रहा है या नहीं.  इसके अलावा प्रोलैक्टिन हार्मोन के स्तर की भी जांच की जाती है.
  • हिस्टेरोसल पिंगोग्राफी: ये एक एक्स-रे परीक्षण है. इससे गर्भाशय, फैलोपियन ट्यूब और उनके आस-पास का हिस्‍सा देखा जा सकता है. एक्‍स-रे रिपोर्ट मेंगर्भाशय या फैलोपियन ट्यूब को लगी कोई चोट या असामान्‍यता को देखा जा सकता है. इसमें अंडे की फैलोपियन ट्यूब से गर्भाशय तक जाने की रूकावट भी देख सकते हैं.
  • ओवेरियन रिज़र्वटेस्ट: ओव्यूलेशन के लिए उपलब्ध अंडे की गुणवत्ता और मात्रा को जांचने में मदद करता है. जिन महिलाओं में अंडे कम होने का जोखिम होता है, जैसे कि 35 वर्ष से अधिक उम्र की महिलाएं, उनके लिए रक्त और इमेजिंग टेस्ट का इस्तेमाल किया जा सकता है.
  • थायरौयड और पिट्यूटरी हार्मोन की जांच: इसके अलावा प्रजनन प्रक्रियाओं को नियंत्रित करने वाले ओव्यूलेटरीहार्मोन्स के स्तर के साथ-साथ थायरौयड और पिट्यूटरी हार्मोन  की जांच भी की जाती है.
  • इमेजिंग टेस्ट: इसमें पेल्विक अल्ट्रासाउंड होता है जोकि गर्भाशय या फैलोपियन ट्यूब में हुए किसी रोग की जांच करने के लिए किया जा सकता है.

बांझपन का इलाज

चूंकि बांझपन एक जटिल विकार है इसलिए डा. नरूला कहती हैं कि, “इनफर्टिलिटी का इलाज इसके होने के कारण, आयु, यह समस्या कितने समय से है और व्यक्तिगत प्राथमिकताओं पर निर्भर करता है. बांझपन के इलाज में वित्तीय, शारीरिक और मनोवैज्ञानिक स्थिति महत्‍व रखती है.”

आइए जानें आपके पास क्या विकल्प हैं इनफर्टिलिटी को दूर करने के लिए:

  • दवाएं: ओव्यूलेशन विकार के कारण गर्भधारण ना हो पाने की स्थिति में दवाओं से इलाज किया जाता है. ये दवाएं प्राकृतिक हार्मोन फॉलिकल स्टिमुलेटिंग हार्मोन (एफएसएच) और ल्यूटिनाइजिंग हार्मोन (एलएच) की तरह काम करती हैं.इन दवाओं से ओव्यूलेशन को ट्रिगर किया जाता है.
  • आधुनिक तकनीक: प्रजनन क्षमता बढ़ाने के लिए सबसे अधिक इस्तेमाल किए गए तरीकों में शामिल हैं –
    • इन्ट्रायूट्राइन गर्भाधान (आईयूआई) – आईयूआई के दौरान, लाखों स्वस्थ शुक्राणुओं को गर्भाशय के अंदर ओव्यूलेशन के समय रखा जाता है.
    • आईवीएफ – इस प्रक्रिया में अंडे की कोशिकाओं को महिला के गर्भ से बाहर निकालकर उसे पुरुष के स्‍पर्म के साथ निषेचित किया जाता है. ये पूरी प्रक्रिया इनक्‍यूबेटर के अंदर होती है और इस पूरी प्रक्रिया में लगभग तीन दिन का समय लगता है. भ्रूण के पर्याप्‍त विकास के बाद इसे वापिस महिला के गर्भ में पहुंचा दिया जाता है. इस प्रक्रिया के 12 से 15 दिनों तक महिला को आराम करने की सलाह दी जाती है.
  • सर्जरी: कई सर्जिकल प्रक्रियाएं बांझपन को ठीक यामहिला प्रजनन क्षमता में सुधार ला सकती हैं. हालांकि, बांझपन के इलाज में अब ऊपर बताई गयी नई पद्धतियां आ चुकी हैं जिनके कारण सर्जरी बहुत ही कम की जाती है. गर्भधारण की संभावनाओं को बेहतर बनाने के लिए लैप्रोस्कोपिक या हिस्ट्रोस्कोपी सर्जरी की जा सकती है. इसके अलावा फैलोपियन ट्यूब अवरुद्ध होने पर ट्यूबल सर्जरी भी की जा सकती है.

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गर्भावस्था में होने वाली उल्टी को इन पांच तरीकों से करें काबू

गर्भावस्था में उल्टी का होना बेहद आम बात है. इस दौरान महिलाओं में कई तरह के शारीरिक बदलाव होते हैं. इसका असर उनके मानसिक सेहत पर भी होता है. इस दौरान उनमें कई तरह के हार्मोंनल बदलाव होते हैं जिसके कारण उल्टी की समस्या होती है.

उल्टी होना गर्भावस्था की पहचान होती है. इसके अलावा प्रेग्नेंसी के तीसरे महीने से जी मिचलना और मौर्निंग सिकनेस भी होने लगते हैं. अगर आपकी उल्टी सामान्य है तो घबराने की कोई बात नहीं लेकिन अगर आपको बहुत अधिक उल्टी हो रही है तो तुरंत सतर्क हो जाइए.

इस खबर में हम आपको कुछ घरेलू उपायों के बारे में बताएंगे जिससे आप इन परेशानियों का घर बैठे इलाज कर सकेंगी.

  • ऐसी स्थिति में आंवले का मुरब्बा खाना भी काफी असरदार होता है.
  • गर्भावस्था के लगातार उल्टी होने पर सूखे या हरे धनिया को पीस कर मिश्रण बना लें. समय समय पर इसका सेवन करने से उल्टी की समस्या बंद हो जाती है. इसमें काला नमक मिला कर भी सेवन किया जा सकता है.
  • जीरा, नमर, नींबू का रस और सेंधा नमक का मिश्रण तैयार कर लें. कुछ देर पर इसे चूसते रहें. ऐसा करने से आपको फायदा होगा.
  • तुलसी के पत्ते के रस में शहद मिलाकर चाटने से भी फायदा होता है.
  • अगर आपको लगातार उल्टियां हो रही हैं तो रात में एक ग्लास पानी में काले चने को भींगा कर छोड़ दें और सुबह में उस पानी को पी लें. ऐसा करने से आपको काफी फायदा होगा.

गर्भावस्था में इसे करें अपनी डाइट में शामिल, स्वस्थ होता है बच्चा

गर्भावस्था के दौरान महिलाओं के खानपान का विशेष ध्यान दिया जाता है. इस दौरान गर्भवती महिला के डाइट का सीधा प्रभाव उसके बच्चे पर भी होता है. इसलिए जरूरी है कि उसके पोषण का खासा ख्याल रखा जाए. जानकारों की माने तो गर्भावस्था के दौरान अंडा खाना बेहद फायदेमंद होता है. अंडे में भरपूर मात्रा में प्रोटीन, सेलेनियम, जिंक, विटामिन A, D और कुछ मात्रा में B कौम्प्लेक्स भी पाया जाता है. जो शरीर की सभी जरूरतों को पूरा करने का सबसे बेहतर सूपर फूड है.

कई तरह के स्टडीज से भी ये बात सामने आई है कि गर्भावस्था के दौरान अंडा खाने से बच्चे का दिमाग तेज होता है. इसके साथ ही उसकी सीखने की क्षमता भी तेज होती है. इस खबर में हम आपको बताएंगे कि गर्भावस्था में अंडा खाना कैसे लाभकारी है और आपके बच्चे पर उसका सकारात्मक असर कैसे होगा.

अंडा प्रोटीन का प्रमुख स्रोत है. इसमें प्रोटीन की प्रचूरता होती है. आपको बता दें कि गर्भ में पल रहे बच्चे के लिए प्रोटीन बेहद जरूरी तत्व होता है. असल में उसकी हर कोशिका का निर्माण प्रोटीन से होता है. गर्भावस्था में अंडा खाने से भ्रूण का विकास बेहतर होता है.

आपको बता दें कि गर्भवती महिला के लिए एक दिन में दो सौ से तीन सौ तक एडिशनल कैलोरी लेनी चाहिए. इससे उसे और बच्चे, दोनों को पोषण मिलता है. अंडे में करीब 70 कैलोरी होती है जो मां और बच्चे दोनों को एनर्जी देती है.

आपको बता दें कि अंडे में 12 तरह के विटामिन्स होते हैं. इसके अलावा कई तरह के लवण भी इसमे होते हैं. इनमें मौजूद choline और ओमेगा-3 फैटी एसिड बच्चे के संपूर्ण विकास को बढ़ावा देते हैं. इसके सेवन से बच्चे को मानसिक बीमारियां होने का खतरा कम हो जाता है और उसका दिमागी विकास भी होता है.

अगर गर्भवती महिला का ब्लड कोलेस्ट्रौल स्तर सामान्य है तो वह दिन में एक या दो अंडे खा सकती है. अंडे में कुछ मात्रा में सैचुरेटेड फैट भी होता है. अगर महिला का कोलेस्ट्रौल लेवल अधिक है तो उसे जर्दी वाला पीला हिस्सा नहीं खाना चाहिए.

घुटनों के आर्थ्राइटिस को दूर रखने में लाइफस्टाइल में क्या बदलाव होने चाहिए?

सवाल-

मैं 38 वर्षीय आईटी प्रोफैशनल हूं. जब मैं औफिस में बैठा रहता हूं तब भी मेरे घुटनों में बहुत तेज दर्द और जकड़न होती है. मुझे जिम जाने और वर्कआउट करने का समय कभीकभी ही मिल पाता है. मैं ने घुटनों के दर्द के लक्षणों की खोज की तो पाया कि घुटनों का आर्थ्राइटिस 30 वर्ष की प्रारंभिक अवस्था और 40 वर्ष की उम्र में आम समस्या है. क्या आप घुटनों के आर्थ्राइटिस को दूर रखने में जीवनशैली में बदलाव की जरूरत पर और ज्यादा विस्तार से प्रकाश डाल सकते हैं? वे बेसिक चीजें कौन सी हैं, जिन से मैं अपने घुटनों को दुरुस्त रख सकता हूं और दर्द की समस्या से छुटकारा पा सकता हूं?

जवाब-

मैं आप को डाक्टर से सलाह लेने और घुटनों का उचित इलाज कराने की सलाह दूंगा. इंटरनैट पर देख कर खुद अपना इलाज करने से आप को गलत जानकारी मिल सकती है और आप की हालत बिगड़ सकती है. अपने घुटनों को स्वस्थ रखने के लिए आप को जिम में जाने और बहुत ज्यादा देर तक नहीं बैठना है और समयसमय पर ब्रेक ले कर हलकाफुलका व्यायाम करना है.

किसी भी तरह का हलका व्यायाम जैसे 30 मिनट तक चलने और एस्केलेटर की जगह सीढि़यों से आनेजाने से आप को घुटनों के दर्द से काफी आराम मिल सकता है. सब से ज्यादा महत्त्वपूर्ण बात यह है कि अगर आप का वजन ज्यादा है तो यह आप के घुटनों का मजबूत रखने में सब से बड़ी रुकावट है.

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रह्यूमेटाइड आर्थ्राइटिस एक जटिल बीमारी है, जिस में जोड़ों में सूजन और जलन की समस्या हो जाती है. यह सूजन और जलन इतनी ज्यादा हो सकती है कि इस से हाथों और शरीर के अन्य अंगों के काम और बाह्य आकृति भी प्रभावित हो सकती है. रह्यूमेटाइड आर्थ्राइटिस पैरों को भी प्रभावित कर सकती है और यह पंजों के जोड़ों को विकृत कर सकती है.

इस बीमारी के लक्षण का पता लगाना थोड़ा मुश्किल होता है. रह्यूमेटाइड आर्थ्राइटिस में सूजन, जोड़ों में तेज दर्द जैसे लक्षण होते हैं. पुरुषों की तुलना में यह बीमारी महिलाओं को अधिक देखने को मिलती है. वैसे तो यह समस्या बढ़ती उम्र के साथसाथ होती है, लेकिन अनियमित दिनचर्या और गलत खानपान के कारण कम उम्र की महिलाओं में भी यह बीमारी देखने को मिल रही है.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz
 
सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

लिवर से जुड़ी प्रौब्ल्म का इलाज बताएं?

सवाल-

2 वर्ष पहले मेरा लिवर प्रत्यारोपण हुआ था. मैं एक टैटू बनवाना चाहती हूं, लेकिन मैं ने सुना है कि यह मेरे नए लिवर को प्रभावित कर सकता है. अगर मैं टैटू बनवाती हूं तो क्या मुझे कोई समस्या होगी?

जवाब-

टैटू बनवाने से हैपेटाइटिस सी होने का खतरा अधिक होता है, जो आगे चल कर आप के प्रत्यारोपित लिवर को नुकसान पहुंचा सकता है. फिर भी यदि आप टैटू बनवाने के लिए बहुत उत्सुक हैं, तो पहले अपने लिवर प्रत्यारोपण करने वाले शल्य चिकित्सक अथवा अन्य किसी लिवर रोग विशेषज्ञ से परामर्श कर लें.

सवाल-

मैं 45 वर्षीय पुरुष हूं. काम के ज्यादा तनाव के कारण मैं ने शराब पीनी शुरू कर दी और फिर इस की लत लग गई. कई वर्षों की लत के बाद 1 वर्ष पहले मुझे लिवर सिरोसिस होने का पता चला. उस के बाद मैं ने शराब पीनी पूरी तरह छोड़ दी. क्या लिवर सिरोसिस के लिए कोई प्राकृतिक उपचार है?

यदि आप ने शराब छोड़ दी है तो इस बीमारी के बढ़ने की संभावना कम है. फिर भी किसी लिवर विशेषज्ञ से अवश्य परामर्श लें.

जवाब-

मेरी उम्र 34 वर्ष है. कुछ दिनों से मुझे अपने शरीर की क्रियाओं में कुछ बदलाव दिखाई दे रहा है. मुझे अकसर डायरिया और उलटियों की शिकायत हो जाती है. मैं अकसर फूड पौइजनिंग का भी शिकार हो जाता हूं. मैं ने अभी डाक्टर से सलाह नहीं ली है. मुझे क्या करना चाहिए?

फौरन डाक्टर से मिलें.

सवाल-

मैं 6 महीने बाद बिजनैस के लिए दक्षिण अमेरिका जा रहा हूं और वहां 2 वर्ष रहूंगा. मैं ने सुना है कि वहां हैपेटाइटिस ए काफी प्रचलित है. मुझे क्या सावधानियां बरतनी चाहिए? यदि मुझे हैपेटाइटिस ए हो जाता है तो उपचार के क्या साधन हैं?

जवाब-

हैपेटाइटिस ए से बचाव के लिए प्रभावी और सुरक्षित टीके 6 महीने के अंतराल पर 2 बार लगवाने पड़ते हैं, जो 20 वर्षों तक सुरक्षित रखते हैं. चूंकि आप 6 महीने बाद जा रहे हैं, तो एक अभी लगवा लें और दूसरा जाने से ठीक पहले यानी 6 महीने बाद. इस के अलावा अपने खानपान को ले कर भी सावधानी बरतें.

– डा. आर.पी.चौबे श्री बालाजी ऐक्शन मैडिकल इंस्टिट्यूट

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नार्मल या सी-सेक्शन डिलिवरी : आपके बच्चे की सेहत के लिए क्या है बेहतर?

आज कल ज्यादातर बच्चों की डिलिवरी आधुनिक चिकित्सा पद्धति यानि सी-सेक्शन से हो रही है. सेहत के जोखिम, दर्द और भी कई समस्याओं को देखते हुए लोग नार्मल डिलिवरी कराना बेहतर समझते हैं. हाल में एक रिसर्च में यह बात सामने आई कि जिन बच्चों की डिलिवरी नार्मल होती है, यानि औपरेशन के बिना, वो बच्चे ज्यादा स्वस्थ होते हैं.

अध्ययन की माने तो गर्भावस्था और प्रसव के दौरान माइक्रोबायोम वातावारण में गड़बड़ी, विकसित होते बच्चे के शुरुआती माइक्रोबायोम को प्रभावित कर सकती हैं. जिसके कारण बच्चे को भविष्य में स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है.

अध्ययन में ये भी बताया गया कि सी-सेक्शन जैसी प्रसव पद्धतियां इन माइक्रोबायोम को प्रभावित करती हैं और बच्चों के इम्यून, मेटाबौलिज्म और तंत्रिक संबंधी प्रणालियों के विकास में नकारात्मक असर डालती हैं. जानकारों की माने तो शिशु के स्वास्थ्य के लिए केवल शिशु की ही नहीं, बल्कि मां के मोइक्रोबायोम की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है. अगर मां के माइक्रोबायोट में किसी प्रकार की गड़बड़ी होती है तो बच्चे को दमा, मोटापा, एलर्जी जैसी कई परेशानियां हो सकती हैं.

अध्ययन में ये बात सामने आई कि सामान्य प्रसव में जन्म के तत्काल बाद मां की त्वचा का शिशु की त्वचा से संपर्क और स्तनपान जैसी पारंपरिक क्रियाएं बच्चे में माइक्रोबायोम के विकास को बढ़ाने और बच्चे के स्वास्थ्य विकास में सकारात्मक प्रभाव डालने में मदद कर सकती हैं.

जैसी बौडी चाहिए वैसी पाइए, करने होंगे बस ये काम

हर महिला की चाहत होती है कमनीय काया. एक समय था जब यह चाहत कल्पना ही रह जाती थी और अकसर थुलथुल, गदराए बदन वाली स्त्रियां बस एक आह भर कर ही रह जाती थीं. पर अब वक्त बदल चुका है, वक्त की मांग भी बदल चुकी है. अब तो आप जैसी चाहिए वैसी काया पाइए. एक अच्छे कौस्मैटिक सर्जन से एक मुलाकात निश्चित तौर पर आप के सपनों में रंग भर देगी. शारीरिक संरचना में कहीं न कहीं कोई कमी तो रहती ही है. कहीं कमर मोटी, कहीं लटके स्तन तो कहीं अत्यंत छोटे स्तन. पर समस्या कोई भी हो क्यों झेला जाए उसे जब सब का निदान हो सकता है. यह कैसे हो सकता है इस के बारे में बताया कौस्मैटिक सर्जन डा. अजय कश्यप और डा. जे.बी. रती ने.

उन से कौस्मैटिक सर्जरी के बारे में जो बात हुई पेश हैं यहां उस के खास अंश:

कलात्मक अभिरुचियों के कारण डा. अजय कश्यप का रुझान कौस्मैटिक सर्जरी की ओर गया और फिर शुरू हुआ शारीरिक कमियों को ठीक करने का दौर. डा. अजय कश्यप बताते हैं कि जब भी कोई शारीरिक सौंदर्य को बढ़ाने के लिए केस आता है, तो उसे सौंदर्य में ढालने के लिए ही हम सर्जरी करते हैं.

आमतौर पर स्तनों से संबंधित कौन से केस आते हैं, जिन्हें आप औपरेट करते हैं? 

स्तनों से संबंधित हर प्रकार के केस आते हैं. जैसे छोटे स्तनों को बड़ा करना, लटके व बड़े स्तनों को छोटा करना, निप्पल को उठाना या उस का ब्राउनिश हिस्सा जो फैला होता है उसे कम करना. निप्पल बड़े हों तो छोटे हो सकते हैं. निप्पल के ब्राउन भाग को कम करने यानी एरियोला रिडक्शन के केस भी आते रहते हैं. दरअसल, हर महिला की चाहत होती है कि उस के अंग सुंदर लगें. हम अंगों को सुंदर बनाते हैं.

आमतौर पर किस आयु की स्त्रियां ज्यादा आती हैं?

यों तो 20 से 40 के बीच की महिलाएं ज्यादा आती हैं. पर कुछ 50 के आसपास भी आती हैं. इन के बच्चे बड़े हो जाते हैं और इस आयु में वे अपने विषय में सोचती हैं.

अगर कौस्मैटिक सर्जरी की निगाह से देखें तो शारीरिक सौंदर्य कैसे बदलते रहे हैं?

1980 के दौर में ऐथलैटिक शरीर का ज्यादा चलन था. पर अब समय बदल चुका है, लड़कियां जीरो फिगर के चक्कर में रहने लगी हैं. शादी से पहले भी वे जीरो फिगर के लिए औपरेशन कराती हैं. और वे फिगर तो थिन चाहती हैं पर स्तन थोड़े भारी ही चाहती हैं.

जब बदन जीरो फिगर की हो तो स्तनों का क्या अनुपात रहता है? बहुत पतली कमर पर भारी स्तन कैसे लगेंगे?

ब्रैस्ट के भी रेशियो होते हैं. कमर के हिसाब से ब्रैस्ट का साइज होता है. जैसे कमर 24 इंच हो तो ब्रैस्ट 36 इंच होनी चाहिए. ब्रैस्ट कप सी साइज का होना चाहिए.

छोटे स्तनों को आप बड़ा तो सिलिकौन इंप्लांट से करते हैं पर कई बार औपरेशन के बाद ब्रैस्ट सख्त सी हो जाती है. क्या कहेंगे आप?

जी हां, कई बार इंप्लांट से हार्डनैस हो जाती है. इसलिए हम कभीकभी कस्टमर के फैट से ही ब्रैस्ट बना देते हैं, जिसे औटोलोगस फैट ब्रैस्ट औगमैंटेशन कहते हैं. शरीर में जिस जगह भी फैट हो जैसे, जांघ, पेट, कूल्हे या कमर में, वहीं से निकाल कर उस से स्तन बना देते हैं. इस प्रकार अपने ही फैट से ब्रैस्ट बिना इंप्लांट के बनती है.

क्या आप के पास अविवाहिताएं भी आती हैं?

जी हां, अविवाहिताएं भी आती हैं. बेशक कम आती हैं पर आती हैं.

बड़े स्तनों को छोटा कराना कैसा रहता है?

बड़े और लटके स्तनों की तो कई समस्याएं हैं. इस में स्तनों के नीचे खुजली व फंगल इन्फैक्शन हो जाता है, कंधों में दर्द रहता है और देखने में फिगर अजीब लगता है. कई बार एक ब्रैस्ट बड़ी व एक छोटी होती है. वह तब भी बुरी लगती है. समस्या कोई भी हो, औपरेशन से सब ठीक हो जाता है.

आप के अनुसार सर्वोत्तम फिगर कौन सी होती है? आजकल किस प्रकार के स्तनों का चलन है और कौन सा वर्ग आप के पास ज्यादा आता है?

हमारे पास ग्लैमर वर्ल्ड के ही लोग ज्यादा आते हैं. देखिए, अच्छी फिगर तो वही होती है जिस में पतली कमर हो. यानी साइज 36-24-36 हो. यही महिलाएं चाहती भी हैं और हम औपरेशन कर के ऐसा शारीरिक सौंदर्य देते भी हैं. रहा सवाल ब्रैस्ट के लेटैस्ट फैशन का, तो हर महिला यह चाहती है कि पतली कमर हो और ब्रैस्ट सुदढ़ और उठी हुई हो. उन के इन्हीं सपनों में तो हम रंग भरते हैं.

इन औपरेशंस में खर्च कितना आता है?

यह औपरेशन पर निर्भर करता है. आमतौर पर 1 लाख से 2 लाख के बीच खर्च आता है.

डा. जे.बी. रती ने बताया कि हमारा काम बहुत चुनौती भरा होता है. यहां बीमार लोग नहीं आते. यहां तो सुंदर लगने के लिए औपरेशन करवाने लोग आते हैं और उन के पैमाने पर हमें खरा उतरना पड़ता है. फिर सौंदर्य के सब के अपने मापदंड होते हैं. कई महिलाएं चाहती हैं कि कमर बेहद पतली हो और ब्रैस्ट बेहद भारी हों, तो कुछ महिलाएं कुछ और चाहती हैं.

किस वर्ग के लोग आप के पास ज्यादा आते हैं?

आमतौर पर मौडल्स, फिल्म और टीवी के लोग ज्यादा आते हैं, क्योंकि वे अच्छी बौडी शेप चाहते हैं. वैसे आम लोग भी आते हैं.

शरीर के किसकिस भाग का औपरेशन करते हैं?

लगभग हर भाग का पर सब से ज्यादा स्तनों से संबंधित औपरेशन होते हैं. उन के अलावा पेट को कम करना, कमर पतली करना, नाक को सुंदर बनाना, होंठ ज्यादा पतले हों तो उन्हें मोटा करना (आजकल थोड़े मोटे होंठ फैशन में हैं) वगैरह के औपरेशन करते हैं.

स्तनों के औपरेशंस के विषय में बताइए?

बड़े व लटके स्तनों को तो हम छोटा कर ही देते हैं, छोटे स्तनों को इंप्लांट द्वारा बड़ा कर देते हैं. इस के अलावा निप्पलों को भी औपरेट कर देते हैं. पर निप्पल छोटे किए जाते हैं. हम छोटों को बड़ा नहीं कर सकते. यह औपरेशन महिलाओं का तो हम करते ही हैं पर स्तनों की समस्या कई पुरुषों में भी पाई जाती है. कई पुरुषों का एक या दोनों ही स्तन महिलाओं जैसे हो जाते हैं. उन्हें हम औपरेट कर के नौर्मल बनाते हैं. ऐसा हारमोनल असंतुलन के कारण होता है.

आजकल किस प्रकार के स्तन चलन में हैं जिन्हें महिलाएं पसंद करती हैं?

पतली कमर हो और ब्रैस्ट भारी और एकदम उठी हुई होनी चाहिए. इसीलिए लटकी ब्रैस्ट को महिलाएं औपरेशन से ठीक कराती हैं. कहने का मतलब यह है कि वे अच्छी फिगर की लगना चाहती हैं. हम औपरेशन से यही सब कर देते हैं. लटकी ब्रैस्ट को उठा देते हैं, सर्जरी से उसे टाइट कर देते हैं. आमतौर पर मौडल्स न तो छोटी ब्रैस्ट चाहती हैं, न ही बहुत बड़ी, बीच का साइज उन्हें ठीक लगता है, पर नोटिसेबल साइज हो. कई महिलाओं की बहुत छोटी ब्रैस्ट होती हैं तब हम सिलिकौन ब्रैस्ट इंप्लांट से उन्हें बड़ा बना देते हैं.

इस का खर्चा कितना आता है?

देखिए, इंप्लांट बाहर से आते हैं जो 35,000 से 45,000 तक के होते हैं. लेकिन सारा खर्च क्व1 लाख से ऊपर ही आता है.

इस में समय कितना लगता है?

ब्रैस्ट इंप्लांट में 2 से 3 घंटे लगते हैं पर ब्रैस्ट कम करने या ब्रैस्ट उठाने में 5 घंटे से कुछ ज्यादा ही समय लग जाता है.

वजन बढ़ाने के लिए अपनाएं ये 10 उपाय

जिस तरह वजन का बढ़ना एक बीमारी है, उसी तरह से वजन का जरुरत से ज्यादा कम होना भी एक बीमारी ही है. अगर शरीर बहुत कमजोर और दुबला-पतला हो तो आपका हर कोई मजाक उड़ाता है और आप हर जगह हंसी का पात्र बनते हैं.

वजन की कमी को दूर करने के लिए आपको कुछ खास खाद्य पदार्थ को अपने रोज के भोजन में शामिल करना चाहिए. हम आपको बताएंगे कि किन चीजों को खाने से आप आसानी से अपने आपको चुस्त-दुरुस्त और हष्ट-पुष्ट बना सकते हैं.

1. आलू

आलू कार्बोहाइड्रेट का एक अच्छा और संपूर्ण स्रोत है, आलू खाने से मोटापा बढ़ता है. आपको आलू को उबालकर उसे दूध के साथ खाना चाहिए, इससे आपको जल्दी फायदा होगा.

2. अनार

अनार विटामिन का अच्छा स्रोत माना जाता है. बहुत से गुणों से भरपूर अनार आपके शरीर में खून को बढ़ाता है. कई स्वास्थ्य सलाहकर, अच्छे स्वास्थ्य की दृष्टि से इसे एक महत्त्वपूर्ण फल मानते हैं. अनार का नियमित रूप से सेवन करने से रक्त संचार की गति भी बढ़ती है और आपका मोटापा बढ़ता है.

3. बादाम

रोज रात को बादाम की पांच से सात गिरी को पानी में भिगो कर रख दें और सुबह उनका छिलका उतारकर उन्हें पीसकर, उसमें लगभग 30 ग्राम मक्खन और मिश्री मिलाकर इस मिश्रण को डबल रोटी या सामान्य रोटी के साथ खाएं. वजन बढ़ाने के लिए आप इसे खाने के बाद फिर एक गिलास गर्म दूध भी पी सकते हैं. नियमत ऐसा करने से वजन बढ़ने के साथ-साथ आपकी स्मरण शक्ति भी तेज होती है.

4. दूध और रोटी

जो लोग मोटे नहीं है और अपना वजन बढ़ाना चाहते हैं उन्हें रोजाना दूध के साथ रोटी खानी चाहिए.

5. घी

मोटापे के लिए घी बहुत ही फायदेमंद और आवश्यक है. वजन बढ़ाने और मोटे होने के लिए आपको गर्म रोटी और दाल में घी मिलाकर खाना चाहिए. इसके अलावा शक्कर में घी मिलाकर खाने से भी मोटापा बढ़ता है.

6. पनीर

पनीर खाने में स्वादिष्ट होने के साथ-साथ वाला प्रोटीन का भी एक अच्छा स्रोत है, इसलिए अगर आप अपना वजन बढ़ाना चाहते हैं तो नियमित रूप से पनीर खाना शुरू कर दें.

7. छुहारा

पौष्टिक तत्वों से भरपूर छुहारा आपके शरीर में रक्त बनाता है और इसे बढ़ाने में भी मदद करता है. रोज रात सोने से पहले, एक ग्लास दूध में छुहारे को उबाल कर उसे पीने से चर्बी बढ़ती है और शरीर स्वस्थ्य दिखाई देता है.

8. दालें और सब्जियां

मोटे होने की इक्षा रखने वाले लोगों को छिलके वाली उड़द की दाल, अंकुरित दाले, काले चने, मूंगफली, मटर, गाजर का रस, आंवला आदि का अधिक सेवन करना चाहिए. ये सभी वजन बढ़ाने वाले खाद्य पदार्थ हैं.

9. सोयाबिन

सोयाबिन कैलोरी, प्रोटीन, कैल्शियम, फाइबर, विटामिन बी और आयरन से भरपूर होता है. सोयाबिन एक ऐसा पदार्थ है, जो मोटापा बढ़ाने और कम करने दोनों काम करती है.

10. केला

कैलोरीज, कार्बोहाइड्रेट्ज और पोटेशियम आदि उर्जा के स्रोत केले में भरपूर मात्रा में  होते हैं, अगर आप वाकई अपना वजन बढ़ाना चाहते हैं तो रोजाना एक ग्लास गर्म दूध के साथ दो केले अवश्य खाएं.

Menstrual हाइजीन टिप्स

पीरियड्स यानि माहवारी महिलाओं के स्वाभाविक विकास का परिचायक है. पहले जहां एक लडकी को पीरियड्स की शुरुआत 12 से 15 साल की उम्र में हुआ करती थी, वहीं आज यह 10 साल की उम्र में ही हो जाती है.

हमारी दादीनानी के समय में पैड्स आम जनता की पहुंच में नहीं थे इसलिए वे घर के फटेपुराने कपड़ों की परतें बना कर प्रयोग करतीं थीं. यही नहीं, उन्हीं कपड़ों को धो कर वे फिर से भी प्रयोग करती थीं पर आज हमारे पास इन दिनों में प्रयोग करने के लिए भांतिभांति के पैड्स, टैंपोन और कप मौजूद हैं और महिलाएं इन्हें यूज भी करती हैं. पर इन दिनों साफसफाई और कुछ अन्य बातों का ध्यान रखना बेहद जरूरी है.

अकसर जानकारी के अभाव में महिलाएं साधारण सी सावधानियां भी नहीं रख पातीं और यूरिनरी और फंगल इन्फैक्शन का शिकार हो जाती हैं. बाजार में उपलब्ध किसी भी साधन का पीरियड्स में उपयोग करें पर निम्न बातों का ध्यान जरूर रखें :

  1. सैनेटरी पैड्स

सैनेटरी पैड्स महिलाओं द्वारा सर्वाधिक मात्रा में प्रयोग किए जाते हैं क्योंकि यह कम कीमत में आसानी से मिल जाते हैं पर अकसर महिलाएं इन्हें एक बार प्रयोग करने के बाद बदलने में कंजूसी करती हैं जबकि पैड्स खून के बहाव को एक जगह पर एकत्र कर देते हैं जिस से अकसर अंग में संक्रमण, ऐलर्जी और रैशेज हो जाते हैं. इसलिए अपने खून के बहाव के अनुसार पैड्स को 4-5 घंटे के अंतराल पर बदलना बेहद जरूरी है. साथ ही यदि बहाव अधिक है तो चौड़े पैड्स का प्रयोग करें ताकि किसी भी प्रकार के लीकेज से बची रहें.

2. टैंपोस

पैड्स के मुकाबले टैंपोस काफी आरामदायक और सुरक्षित होते हैं. ये खून को भी अच्छीखासी मात्रा में सोखने की क्षमता रखते हैं पर इन्हें बनाने में भी कैमिकल का प्रयोग किया जाता है इसलिए इन्हें भी नियमित अंतराल पर बदलना जरूरी होता है अन्यथा इन का कैमिकल शरीर को हानि पहुंचा सकता है.

डाक्टरों के अनुसार, इसे 8 घंटे से अधिक नहीं पहनना चाहिए और रात में टैंपुन के स्थान पर पैड का प्रयोग करना चाहिए अन्यथा जलन और खुजली की समस्या हो सकती है.

 

3. मैंस्ट्रुअल कप

यह पीरियड्स के लिए सब से सुरक्षित माना जाता है क्योंकि यह कैमिकल रहित सिलिकौन का एक कप होता है जिसे अंग के मुख पर रखा जाता है और भर जाने पर साफ कर के फिर से प्रयोग किया जा सकता है पर किसी भी प्रकार की ऐलर्जी अथवा इन्फैक्शन होने पर इस का प्रयोग केवल डाक्टर की सलाह पर ही करना चाहिए. साफ करते समय डेटौल और सैवलौन आदि का प्रयोग भी करना चाहिए ताकि यह पूरी तरह कीटाणुमुक्त हो जाए.

रखें इन बातों का भी ध्यान

  • इन दिनों में अपनी इंटीमेट हाइजीन का विशेष ध्यान रखें ताकि किसी भी प्रकार के इन्फैक्शन से बची रहें.
  • सदैव अच्छी कंपनी के प्रोडक्ट्स का ही प्रयोग करें.
  • पीरियड्स के शुरुआती और अंतिम दिनों में जब फ्लो कम होता है तो पैंटी लाइनर पैड्स का प्रयोग किया जा सकता है। यह पैड पैंटी में आसानी से चिपक जाते हैं.
  • इन दिनों में बहुत भारी वजन को उठाने और लोअर बौडी पार्ट की ऐक्सरसाइज को करने से बचें क्योंकि इन दिनों में लोअर पार्ट में काफी बदलाव होते हैं.
  • सिंथैटिक कपड़े की जगह केवल सूती पैंटी का ही प्रयोग करें क्योंकि कई बार सिंथैटिक कपड़े से इंटीमेट पार्ट में रैशेज हो सकते हैं.

(जे पी हौस्पिटल, भोपाल की वरिष्ठ गाइनोकोलौजिस्ट, डाक्टर सुधा अस्थाना से की गई बातचीत पर आधारित)

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