काला अतीत- भाग 2: क्या देवेन का पूरा हुआ बदला

मर्द गलती कर माफी मांगने को अपना हक समझता है, लेकिन औरत की एक गलती पर सजा देने को आतुर रहता है. मर्द पराई औरतों को घूर सकता है, सिगरेटशराब पी सकता है, शराब के नशे में पत्नी को पीट सकता है, बातबात पर उस के मायके वालों को कोस सकता है, लेकिन अगर यही सब एक औरत करे तो वह बदचलन, बदमाश और न जाने क्याक्या बन जाती है.

कहने को तो जमाना बदल रहा है, लोगों की सोच बदल रही है, पर कहीं न कहीं आज भी औरतें मर्दों की पांव की जूती ही समझी जाती हैं. उन की जगह पति के पैरों में होती है. लेकिन मैं जानती हूं, मेरे देवेन ऐसे नहीं हैं बल्कि उन का तो कहना है कि पति और पत्नी दोनों गाड़ी के 2 पहिए की तरह होते हैं, एकदम बराबर. लेकिन अगर मैं कहूं कि उस महिला की तरह कभी मेरा भी बलात्कार हुआ था, तो क्या देवेन इस बात को हलके से ले सकेंगे? कहने को भले ही कह दिया कि उन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता, लेकिन पड़ता है. हर मर्द को पड़ता है.

जब एक धोबी के कहने पर मर्यादापुरुषोत्तम राम ने ही अपनी पत्नी सीता को घर से निकाल दिया था वह भी तब जब वह उन के बच्चे की मां बनने वाली थीं तो फिर देवेन पर मैं कैसे भरोसा कर लूं कि वे मुझे माफ कर देंगे? नहीं, मुझ में इतनी ताकत नहीं और इसलिए मैं ने अपना काला अतीत हमेशा के लिए अपने अंदर ही दफन कर लिया. भरेपूरे परिवार में मैं एकलौती बेटी थी. मैं घर में सब की प्यारी थी. दादी का प्यार, मां का दुलार और पापा का प्यार हमेशा मुझ पर बरसता रहता. लेकिन इस प्यार का मैं ने कभी नाजायज फायदा नहीं उठाया. पढ़ने में मैं हमेशा होशियार रही थी.

स्कूल में मेरे अच्छे नंबर आते थे. लेकिन औरों की तरह कभी मुझे डाक्टरइंजीनियर बनने का शौक नहीं रहा. मैं तो आईएएस बनना चाहती थी. जब भी किसी लड़की के बारे में पढ़ती या सुनती कि वह आईएएस बन गई, तो सोचती मैं भी आईएएस बनूंगी एक दिन.

दिनरात मेरी आंखों में बस एक ही सपना पलता कि मुझे आईएएस बनना है. पापा से बोल भी दिया था कि 12वीं कक्षा के बाद मैं यहां गोरखपुर में नहीं पढ़ूंगी. मुझे अपनी आगे की पढ़ाई दिल्ली जा कर करनी है. उस पर पापा ने कहा था कि जहां मेरा मन करे जा कर पढ़ाई कर सकती हूं, पर मेहनत करनी पड़ेगी क्योंकि आईएएस बनना कोई बच्चों का खेल नहीं है. उस पर मैं ने कहा था कि हां पता है मुझे और मैं खूब मेहनत करूंगी.

एक दिन जब मैं ने यह बात अपने दोस्त मोहन का बताया, जो की मेरे साथ मेरे ही क्लास में पड़ता था, तो उस का चेहरा उतर आया. कहने लगा कि वह मेरे जैसा पढ़ने में होशियार नहीं है. लेकिन उस का भी मन करता है दिल्ली जा कर पढ़ाई करने का. पढ़ाई क्या करनी थी, उसे तो बस मस्ती करने दिल्ली जाना था और यह बात उस के बाबूजी भी अच्छे से समझ रहे थे. तभी तो कहा था कि पैसे की बरबादी नहीं करनी है उन्हें. अभी 2-2 बेटियां ब्याहने को हैं और जब पता है कि लड़का पढ़ने वाला ही नहीं है, फिर गोबर में घी डालने का क्या फायदा.

उस की बात पर मुझे हंसी आ गई थी. सो छेड़ते हुए कह दिया, ‘‘हां, सही तो कह रहे हैं चाचाजी. गोबर में घी डालने का क्या फायदा. गोबर कहीं का. इस से तो अच्छा तू अपने बाबूजी का चूडि़यों का बिजनैस संभाल ले. पढ़ने से भी बच जाएगा और डांट भी नहीं पड़ेगी तुझे,’’ बोल कर मैं खिलखिला कर हंस पड़ी थी. लेकिन मुझे नहीं पता था कि मेरी बातें उसे इतनी बुरी लग जाएंगी कि वह मेरे साथ स्कूल जाना ही छोड़ देगा.

मोहन का और मेरा घर आसपास ही थे. उस की मां और मेरी मां की आपस में खूब बनती थी. हम दोनों साथ ही स्कूल आयाजाया करते थे. मोहन के साथ स्कूल जाने से मां के मन को एक तसल्ली रहती कि साथ में कोई है, रक्षक के तौर पर. लेकिन उस दिन की बात को ले कर मोहन मुझ से गुस्सा था. मुझे भी लगा, मैं ने गलत बोल दिया, ऐसे नहीं बोलना चाहिए था मुझे.

मैं उस से माफी मांगने उस के घर गई तो उस के सामने ही उस के मांबाबूजी उसे ताना मारते हुए कहने लगे कि एक सुमन को देखो, पढ़ने में कितनी होशियार है और एक तुम. किसी काम के नहीं हो.

मुझे बुरा भी लगा कि बेचारा, बेकार में डांट खा रहा है. उन्होंने तो यहां तक कह दिया कि इस बार अगर वह 12वीं कक्षा में पास नहीं हुआ, तो उसे चूडि़यों की दुकान पर बैठा देंगे. और हुआ भी वही. मोहन 12वीं कक्षा में फेल हो गया और वहीं मैं 96% अंक ला कर पूरे स्कूल में टौपर बन गई.

मेरे इतने अच्छे अंकों से पास होने पर मोहन मुझ से इतना जलभुन गया कि उस ने मुझ से बात करना ही छोड़ दिया. लेकिन इस में मेरी क्या गलती थी. फिर भी मैं उसे धैर्य बंधाती कि कोई बात नहीं, मेहनत करो, इस बार पास हो जाओगे.

मेरा दिल्ली के एक अच्छे कालेज में एडमिशन हो गया था और 2 दिन बाद ही मुझे दिल्ली के लिए निकलना था. इसलिए सोचा बाजार से थोड़ीबहुत खरीदारी कर लेती हूं. पीछे से किसी का स्पर्श पा कर चौंकी तो मोहन खड़ा था. वह मुझे देख कर मुसकराया तो मैं भी हंस पड़ी.

राहत की सांस ली कि अब यह मुझ से गुस्सा नहीं है. दोस्त रूठा रहे, अच्छा लगता है क्या?

‘‘क्या बात है बहुत खरीदारी हो रही है. वैसे क्याक्या खरीदा?’’

मेरे बैग के अंदर झांकते हुए उस ने पूछा, तो मैं ने कहा कि कुछ खास नहीं, बस जरूरी सामान है. वह कहने लगा कि अब तो मैं चली ही जाऊंगी इसलिए उस के साथ चाटपकौड़ी खाने चलूं. चाटपकौड़ी के नाम से ही मेरे मुंह में पानी आ गया और फिर मोहन जैसे दोस्त को मैं खोना नहीं चाहती थी. इसलिए बिना मांपापा को बताए उस के साथ चल पड़ी. एक हाथ से बैग थामे और दूसरा हाथ उस के कंधे पर रख मैं बस बोलती जा रही थी कि दिल्ली के अच्छे कालेज में मेरा एडमिशन हो गया और 2 दिन बाद जाना है. लेकिन मेरी बात पर वह बस हांहूं किए जा रहा था. उस ने जब अपनी बाइक चाटपकौड़ी की दुकान पर न रोक कर कहीं और मोड दी, तो थोड़ा अजीब लगा. टोका भी कि कहां ले जा रहे हो मुझे? तब हंसते हुए बोला कि क्या मुझे उस पर भरोसा नहीं है.

‘‘ऐसी बात नहीं है मोहन… वह मांपापा चिंता करेंगे न,’’ मैं ने कहा.

वह कहने लगा कि वह मुझे एक अच्छी जगह ले जा रहा है. लेकिन मुझे नहीं पता था कि मुझे ले कर उस की नीयत में खोट आ चुका है. वह हीनभावना से इतना ग्रस्त हो चुका था कि उस ने मुझे बरबाद करने की सोच ली थी. वह मुझे शहर से दूर एक खंडहरनुमा घर में ले गया और बोला कि इस घर से बाहर का नजारा बहुत ही सुंदर दिखता है. मैं ने कहा कि मुझे डर लग रहा है मोहन, चलो यहां से. लेकिन वह कहने लगा कि जब वह साथ है, तो डर कैसा.

जैसे ही हम खंडहर के अंदर गए और जब तक मैं कुछ समझ पाती उस ने मेरा मुंह दबा दिया और मेरे साथ यह कह कर वह मेरा बलात्कार करता रहा कि बहुत घमंड है न तुझे अपनी पढ़ाई पर. बड़ा आईएएस बनना चाहती हो तो देखते हैं कैसे बनती हो आईएएस. कहीं मुंह दिखाने के लायक नहीं छोड़ूंगा तुझे. वह मेरे शरीर को नोचता रहा और मैं दर्द से कराहती रही. मुझे तो विश्वास ही नहीं हो रहा था कि जिस मोहन को मैं ने अपना भाई माना वह मेरे साथ ऐसा कर सकता है. उस ने मेरी दोस्ती का ही नहीं बल्कि मेरे विश्वास का भी गला घोंट दिया था. मेरा बलात्कार करने के बाद वह मुझे वहीं छोड़ कर भाग गया. मेरा सारा सामान मेरे सपनों की तरह बिखर चुका था. मैं उठ भी नहीं पा रही थी. किसी तरह खुद को घसीटते हुए कपड़ों को अपनी तरफ खींचा और अपने बदन को ढकने लगी.

अधूरी मौत- भाग 4: शीतल का खेल जब उस पर पड़ा भारी

बंगले की गली से निकल कर जैसे ही वह मुख्य सड़क पर आने को हुई तो कार की हैडलाइट सामने खड़े बाइक सवार पर पड़ी. उस बाइक सवार की शक्ल हूबहू अनल के जैसी थी.

अनल…अनल कैसे हो सकता है. ओहो तो वीर ने उसे डराने के लिए यहां तक रच डाला कि अनल का हमशक्ल रास्ते में खड़ा कर दिया. अपने आप से बात करते हुए शीतल बोली,  ‘‘हद है कमीनेपन की.’’

‘‘जी मैडम, कुछ बोला आप ने?’’ ड्राइवर ने पूछा.

‘‘नहीं कुछ नहीं. चलते रहो.’’ शीतल बोली.

‘‘मैडम, मैं कल की छुट्टी लूंगा.’’ ड्राइवर बोला.

‘‘क्यों?’’ शीतल ने पूछा.

‘‘मेरी पत्नी को झाड़फूंक करवाने ले जाना है.’’ ड्राइवर बोला, ‘‘उस पर ऊपर की हवा का असर है.’’

‘‘अरे भूतप्रेत, चुड़ैल वगैरह कुछ नहीं होता. फालतू पैसा मत बरबाद करो.’’ शीतल ने सीख दी.

‘‘नहीं मैडम, अगर मरने वाले की कोई इच्छा अधूरी रह जाए तो वह इच्छापूर्ति के लिए भटकती रहती है. उसे भी मुक्त करा दिया जाना चाहिए.’’ ड्राइवर बोला.

‘‘अधूरी इच्छा?’’ बोलने के साथ ही शीतल को याद आया कि अनल की मौत भी तो एक अधूरी इच्छा के साथ हुई है. तो अभी जो दिखाई पड़ा, वह अनल ही था? अनल ही साए के माध्यम से उसे अपने पास बुला रहा था? उस के प्राइवेट नंबर पर काल कर रहा था? पिछले 12 घंटों से जीने की हिम्मत बटोरने वाली शीतल पर एक बार फिर डर का साया छाने लगा था.

क्लब की किसी भी एक्टिविटी में उस का दिल नहीं लगा. आज वह इस डर से क्लब से जल्दी निकल गई कि दिखाई देने वाला व्यक्ति कहीं सचमुच अनल तो नहीं. अभी कार क्लब के गेट के बाहर निकली ही थी कि शीतल की नजर एक बार फिर बाइक पर बैठे अनल पर पड़ी, जो उसे बायबाय करते हुए जा रहा था. लेकिन इस बार उस ने रंगीन नहीं एकदम सफेद कपड़े पहने थे.

‘‘ड्राइवर उस बाइक का पीछा करो.’’ पसीने में नहाई शीतल बोली. उस की आवाज अटक रही थी घबराहट के मारे.

‘‘बाइक? कौन सी बाइक मैडम?’’ ड्राइवर ने पूछा.

‘‘अरे, वही बाइक जो वह सफेद कपड़े पहने आदमी चला रहा है.’’ शीतल कुछ साहस बटोर कर बोली.

‘‘मैडम मुझे न तो कोई बाइक दिखाई पड़ रही है, न कोई इस तरह का आदमी. और जिस तरफ आप जाने का बोल रही हैं, वह रास्ता तो श्मशान की तरफ जाता है. आप तो जानती ही हैं, मैं अपने घर में इस तरह की एक परेशानी से जूझ रहा हूं. इसीलिए इस वक्त इतनी रात को मैं उधर जाने की हिम्मत नहीं कर सकता.’’ ड्राइवर ने जवाब दिया.

अब शीतल का डर और भी अधिक बढ़ गया. वह समझ चुकी थी, उसे जो दिखाई दे रहा है वह अनल का साया ही है. अब उसे ऐसा लग रहा था जैसे वह पंक्तियों की आवाज भी अनल की ही थी. क्या चाहता है अनल का साया उस से?

शीतल अभी यह सब सोच ही रही थी कि कार बंगले के उस मोड़ पर आ गई, जहां उस ने जाते समय अनल को बाइक पर देखा था. उस ने गौर से देखा उस मोड़ पर अभी भी एक बाइक पर कोई खड़ा है. अबकी बार कार की हैडलाइट सीधे खड़े हुए आदमी के चेहरे पर पड़ी.

उसे देख कर शीतल का चेहरा पीला पड़ गया. उसे लगा जैसे उस का खून पानी हो गया है, शरीर ठंडा पड़ गया है. वह अनल ही था. वही सफेद कपड़े पहने हुए था.

‘‘देखो भैया, उस मोड़ पर बाइक पर एक आदमी खड़ा है सफेद कपड़े पहन कर.’’ डर से कांपती हुई शीतल बोली.

‘‘नहीं मैडम, जिसे आप सफेद कपड़ों में आदमी बता रहीं हैं वो वास्तव में एक बाइक वाली कंपनी के विज्ञापन का साइन बोर्ड है जो आज ही लगा है.’’ ड्राइवर ने कहा और गाड़ी बंगले की तरफ मोड़ दी.

ड्राइवर की बात सुन कर फुल स्पीड में चल रहे एयर कंडीशन के बावजूद शीतल को इतना पसीना आया कि उस के पैरों में कस कर बंधी सैंडल में से उस के पंजे फिसलने लगे, कदम लड़खड़ाने लगे.

वह लड़खड़ाते कदमों से ड्राइवर के सहारे बंगले में दाखिल हुई. और ड्राइंगरूम के सोफे  पर बैठ गई. वह सोच ही रही थी कि अपने बैडरूम में जाए या नहीं. तभी शीतल अचानक बजी डोरबेल की आवाज से डर गई. किसी अनहोनी की आशंका से पसीनेपसीने होने लगी.

शीतल उठ कर बाहर जाना नहीं चाहती थी. वह ड्राइंगरूम की खिड़की से देखने लगी.

चौकीदार ने मेन गेट पर बने स्लाइडिंग विंडो से देखने की कोशिश की, मगर उसे कोई दिखाई नहीं दिया. अत: वह छोटा गेट खोल कर बाहर देखने लगा. ज्यों ही उस ने गेट खोला शीतल को सामने के लैंपपोस्ट के नीचे खड़ा अनल दिखाई दिया. इस बार उस ने काले रंग के कपड़े पहने हुए थे और वह दोनों बाहें फैलाए हुए था. चौकीदार उसे देखे बिना ही सड़क पर अपनी लाठी फटकारने लगा और जोरों से विसलिंग करने लगा.

इस का मतलब था कि चौकीदार को अनल दिखाई नहीं पड़ा. इसीलिए वह उस से बात न कर के जमीन पर लाठी फटकार कर अपनी ड्यूटी की खानापूर्ति कर रहा था.

शीतल सोचने लगी उस दिन अगर उस की इच्छापूर्ति कर देती तो शायद अनल इस रूप में नहीं आता और उसे इस तरह डर कर नहीं रहना पड़ता. कल ड्राइवर के साथ वह भी उस झाड़फूंक करने वाले ओझा के पास जाएगी. पुलिस से शिकायत करने से कुछ नहीं होगा.

शीतल अभी पूरी तरह से निर्णय ले भी नहीं पाई थी कि मोबाइल पर आई काल की रिंग से डर कर वह दोहरी हो गई. उस के हाथपैर कांपने लगे. वह जानती थी कि इस समय फोन करने वाला कौन होगा.

उस ने हिम्मत कर के मोबाइल की स्क्रीन पर देखा. इस बार किसी का नंबर डिसप्ले हो रहा था. नंबर अनजाना जरूर था, मगर यह नंबर उस के लिए एक प्रमाण बन सकता है. यही सोच कर उस ने फोन उठा लिया. उसे विश्वास था कि उसे फिर वही पंक्तियां सुनने को मिलेंगी.

लेकिन उस का अनुमान गलत निकला.

‘‘हैलो शीतू?’’ उधर से आवाज आई.

‘‘क..क..कौन हो तुम?’’ शीतल बहुत हिम्मत कर के अपनी घबराहट पर नियंत्रण रखते हुए बोली.

‘‘तुम्हें शीतू कौन बुला सकता है. कमाल हो गया, तुम अपने पति की आवाज तक नहीं पहचान पा रही हो. अरे भई, मैं तुम्हारा पति अनल बोल रहा हूं.’’ उधर से आवाज आई.

‘‘तु..तु…तुम तो मर गए थे न?’’ शीतल ने हकलाते हुए पूछा.

‘‘हां, मगर मेरी वह अधूरी मौत थी, इट वाज जस्ट ऐन इनकंपलीट डेथ. क्योंकि मैं अपनी एक अधूरी इच्छा के साथ मर गया था. इस कारण मुझे तुम से मिलने वापस आना पड़ा.’’ अनल बोला.

‘‘तुम अपनी इच्छापूर्ति के लिए सीधे घर पर भी आ सकते थे. मुझे इस तरह परेशान करने की क्या जरूरत है?’’ शीतल सहमे हुए स्वर में बोली.

‘‘देखो शीतू, मैं अब आत्मा बन चुका हूं और आत्मा कभी भी उस जगह पर नहीं जाती, जहां पर भगवान रहते हैं. पिताजी ने बंगला बनवाते समय हर कमरे में भगवान की एकएक मूर्ति लगाई थी. यही मूर्तियां मुझे तुम से मिलने से रोकती हैं. लेकिन मैं तुम से आखिरी बार मिल कर जाना चाहता हूं. बस मेरी आखिरी इच्छा पूरी कर दो.’’ उधर से अनल अनुरोध करता हुआ बोला.

‘‘मगर एक आत्मा और शरीर का मिलन कैसे होगा?’’ शीतल ने पूछा.

‘‘मैं एक शरीर धारण करूंगा, जो सिर्फ तुम को दिखाई देगा और किसी को नहीं. जैसे आज ड्राइवर व चौकीदार को दिखाई नहीं दिया.’’ अनल ने जवाब दिया.

काला अतीत- भाग 1: क्या देवेन का पूरा हुआ बदला

सुबह सुबह काम की ऐसी मारामारी रहती है कि अखबार पढ़ना तो दूर की बात, पलट कर देखने तक का टाइम नहीं होता मेरे पास. बच्चों को स्कूल और देवेन को औफिस भेज कर मुझे खुद अपने औफिस के लिए भागना पड़ता है. शाम को औफिस से आतेआते बहुत थक जाती हूं. फिर रात के खाने की तैयारी, बच्चों का होमवर्क कराने में कुछ याद ही नहीं रहता कि अपने लिए भी कुछ करना है. एक संडे ही मिलता है जिस में मैं अपने लिए कुछ कर पाती हूं.

आज संडे था इसलिए मैं आराम से मैं अखबार के साथ चाय का मजा ले रही थीं. तभी एक न्यूज पढ़ कर शौक्ड रह गई. लिखा था एक पति ने इसलिए अपनी पत्नी को घर से बाहर निकाल दिया क्योंकि शादी के पहले उस का बलात्कार हुआ था.

मुझे अखबार में आंख गड़ाए देख देवेन ने पूछा कि ऐसा क्या लिखा है अखबार में, जो मैं चाय पीना भी भूल गई. चाय एकदम ठंडी हो चुकी थी सो मैं ने एक घूंट में ही सारी चाय खत्म की और बोली, ‘‘देखो न देवेन, कैसा जमाना आ गया. एक पति ने इसलिए अपनी पत्नी को धक्के मार कर घर से बाहर निकाल दिया क्योंकि शादी से पहले उस का बलात्कार हुआ था. पति को लगा उस की पत्नी ने उस से झूठ कहा. उसे धोखे में रखा आज तक.

‘‘उस की नजर में वह अपवित्र है, इसलिए अब वह उसे तलाक देना चाहता है. लेकिन बताओ जरा, इस में उस औरत का क्या दोष? क्या उस ने जानबूझ कर अपना बलात्कार करवाया? यह सोच कर नहीं बताया होगा कि कहीं उस का पति उसे छोड़ न दे और हादसा तो किसी के साथ भी हो सकता है न देवेन, लेकिन वह अपवित्र कैसे बन गई? फिर तो वह बलात्कारी भी अपवित्र हुआ.’’

‘‘सही बात है. और फिर गड़े मुरदे उखाड़ने का क्या फायदा,’’ चाय का घूंट भरते हुए देवेन बोले.

‘‘सच बोलूं, तो लोग भले ही ज्यादा पढ़लिख गए हैं, देश तरक्की कर रहा है, पर कुछ लोगों की सोच आज भी वहीं के वहीं है दकियानूसी और फिर इस में उस औरत का क्या दोष है? दोषी तो वह बलात्कारी हुआ न? उसे पकड़ कर मारो, जेल में डालो उसे.

‘‘मगर यहां गुनहगार को नहीं, बल्कि पीडि़ता को सजा दी जा रहा है जो सरासर गलत है.’’

मेरी बात से सहमति जताते हुए देवेन बोले कि मैं बिलकुल सही बोल रही हूं. देवेन की

सोच पर मुझे गर्व हुआ. लगा मैं कितनी खुशहाल औरत हूं जो मुझे देवेन जैसे पति मिले. कितने उच्च विचार हैं इन के. लेकिन फिर लगा, हैं तो ये भी मर्द ही न. दूसरों के लिए बोलना आसान होता है, लेकिन बात जब खुद पर आती है तो लोगों के लिए पचाना मुश्किल हो जाता है.

मैं ने देवेन का मन टटोलते हुए पूछा, ‘‘देवेन, अच्छा एक बात बताओ. इस आदमी की जगह अगर तुम होते, तो क्या करते?’’

अचानक से ऐसे सवाल से देवेन मुझे अचकचा कर देखने लगे.

‘‘मेरे कहने का मतलब है कि अगर कल को तुम्हें पता चल जाए कि शादी से पहले मेरा बलात्कार हुआ था और मैं ने तुम से वह बात छिपा कर रखी, तो तुम्हारा क्या रिएक्शन होगा? क्या तुम भी मुझे घर से बाहर निकाल दोगे? तलाक दे दोगे मुझे?’’

मेरी बात पर देवेन खाली कप को गोलगोल घुमाने लगे. शायद सोच रहे हों मेरी बात का क्या जवाब दिया जाए. फिर मेरी तरफ देख कर एक गहरी सांस छोड़ते हुए बोले, ‘‘पहले तुम बताओ कि अगर कल को तुम्हें पता चल जाए कि शादी से पहले मेरा किसी औरत से संबंध था, तो तुम क्या करोगी? मुझे इस घर से बाहर निकाल दोगी या तलाक दे दोगी मुझे.’’

देवेन ने तो मेरे सवालों में मुझे ही उलझा दिया.

बोलो कि चुप क्यों हो गई मैडम? देवेन मुसकराए और फिर वही सवाल दोहराया कि अगर उन के अतीत के बारे में मुझे पता चल जाए, तो क्या मैं उन्हें छोड़ दूंगी? अलग हो जाऊंगी उन से?

‘‘सच में बड़े चालाक हो तुम,’’ मैं हंसी, ‘‘तुम ने तो मेरी बातों में मुझे ही उलझा दिया देवेन,’’ पीछे से देवेन के गले में बांहें डालते हुए मैं बोली, ‘‘मैं तुम्हें तलाक नहीं दूंगी क्योंकि वह शादी के पहले की बात थी और पहले तुम क्या थे, किस के साथ तुम्हारा संबंध था, नहीं था, इस बात से मुझे कुछ लेनादेना नहीं है.’’

मेरी बात पर देवेन हंसते हुए मेरे हाथों को चूम कर बोले कि तो फिर उन का भी यही जवाब है और इसी बात पर 1-1 कप चाय और हो जाए.

मैं चाय बना ही रही थी कि दोनों बच्चे अतुल्य और मिक्की आंखें मींचते हुए ‘मम्मामम्मा कह मेरे पीछे हो लिए. उन्हें पुचकारते हुए मैं चाय ले कर देवेन के पास पहुंच गई. बच्चे पूछने लगे कि आज हम कहां घूमने चलेंगे तो मैं ने उन्हें जल्दी से तैयार होने को कहा और खुद किचन में चली गई.

नाश्ता करने के बाद हमेशा की तरह हम कहीं बाहर घूमने निकल पड़े. एक संडे ही तो मिलता जब हम रिलैक्स हो कर कहीं घूम सकते हैं, शौपिंग कर सकते हैं. कोरोना के मामले भले ही कम हो गए हैं, पर अभी भी कहीं बाहर खाने में डर तो लगता ही है. इसलिए मैं ने घर से ही कुछ नाश्ता बना कर और बिस्कुट, नमकीन, चिप्स वगैरह बैग में रख लिए थे ताकि बाहर से कुछ खरीदना न पड़े. बच्चे हैं, थोड़ीथोड़ी देर पर भूख लगती रहती है.

शहर की भीड़भाड़ से दूर हम एक शांत जगह चादर बिछा कर बैठ गए. बच्चे खेलने में व्यस्त हो गए और हम बातों में. कुछ देर बाद देवेन भी बच्चों के साथ बच्चे बन कर क्रिकेट में हाथ आजमाने लगे और मैं बैठी उन्हें खेलते देख यह सोचने लगी कि भले ही देवेन ने कह दिया कि मेरे अतीत से उन का कुछ लेनादेना नहीं है, लेकिन जानती हूं कि सचाई जानने के बाद उन के दिल में भी मेरे लिए वह प्यार और इज्जत न होगी, जो आज है.

कहीं पढ़ा था कि मर्द पजैसिव और शक्की मिजाज के होते हैं. वे कभी बरदाश्त नहीं कर सकते. एक पत्नी अपने पति की लाख गलतियों को माफ कर सकती है, पर पति अपनी पत्नी की एक भी गलती को सहन नहीं कर पाता. गाहेबगाहे उसी बात को ले कर ताना मारना, जलील करना, नीचा दिखाना और फिर अंत में छोड़ देना.

मेरी सहेली रचना के साथ क्या हुआ. भावनाओं में बह कर बेचारी ने सुहागरात पर अपने पति के सामने अपने प्रेमी का जिक्र कर दिया. यह भी बता दिया कि वह भी उस पर जान छिड़कता था. दोनों शादी करना चाहते थे, मगर उन के परिवार वाले राजी नहीं हुए.

रचना के पति ने कितनी चालाकी से उसे विश्वास में ले कर कहा था कि अब हम दोनों एक हैं, तो हमारे बीच कोई राज नहीं रहनी चाहिए. तब रचना ने 1-1 कर अपनी पूरी प्रेम कहानी पति को सुना दी. सुन कर उस समय तो उस के पति ने कोई रिएक्ट नहीं किया, पर कहीं न कहीं उस के अहं को ठेस पहुंची थी और जिस का बदला वह धीरेधीरे रचना को प्रताडि़त कर लेने लगा. बातबात पर उस पर शक करता. कहीं जाती तो उस के पीछे जासूस छोड़ देता. छिपछिप कर उस का फोन चैक करता. कहीं न कहीं उस के दिमाग में यह बात बैठ गई थी कि आज भी रचना को अपने पुराने प्रेमी से संबंध हैं और दोनों उस की पीठ पीछे रंगरलियां मनाते हैं, जबकि ऐसा कुछ भी नहीं था. मगर उसी बात को ले कर वह रचना से झगड़ा करता. शराब के नशे में गालियां बकता, मारता और उस के मांबाप को कोसता कि अपनी चरित्रहीन बेटी उस के पल्ले बांध दी.

कहते हैं दुनिया में हर मरज की दवा है, पर शक की कोई दवा नहीं. पति के खराब व्यवहार के कारण रचना का जीवन नर्क बन चुका था और फिर एक रोज अजिज आ कर उस ने अपने पति से तलाक ले लिया और आज अकेले ही अपने दोनों बच्चों को पाल रही है, जबकि उस के पति के खुद कई औरतों से संबंध रह चुके थे. लेकिन रचना ने कभी उसे इस बात के लिए नहीं कोसा.

अधूरी मौत- भाग 3: शीतल का खेल जब उस पर पड़ा भारी

शीतल अपने बैडरूम की तरफ भागी, मगर वह बाहर से उसी प्रकार बंद था जैसे वह कर के गई थी. दरवाजा बाहर से बंद होने के बावजूद कोई अंदर कैसे जा सकता है, यह सोच कर वह गैलरी की तरफ गई. गैलरी की तरफ जाने वाला दरवाजा भी अंदर से लौक था.

शीतल ने सोचा शायद कोई चोर होगा, अत: वह सुरक्षा के नजरिए से अपने साथ बैडरूम में रखी अनल की रिवौल्वर ले कर गैलरी में गई. मगर वहां कोई नहीं था. शीतल को अपनी आंखों पर भरोसा नहीं हो रहा था.

उस ने चौकीदार को आवाज दी. चौकीदार के आने पर उस ने पूछा, ‘‘ऊपर कौन आया था?’’

‘‘नहीं मैडम, ऊपर तो क्या आप के जाने के बाद बंगले में कोई नहीं आया.’’ चौकीदार ने जवाब दिया.

सुबह जैसे ही शीतल की नींद खुली, उसे रात की घटना याद आ गई.

शाम को शीतल पूरी तरह चौकन्नी थी. वह कल जैसी गलती दोहराना नहीं चाहती थी. बंगले से निकलते समय उस ने खुद अपने बैडरूम को लौक किया और चौकीदार को लगातार राउंड लेने की हिदायत दी.

रात को वह क्लब से घर लौटी, तभी उस के मोबाइल की घंटी बज उठी.

‘‘हैलो..’’

‘‘मेरे दिल ने जो मांगा मिल गया, मैं ने जो भी चाहा मिल गया…’’ दूसरी तरफ से किसी पुरुष के गुनगुनाने की आवाज आ रही थी.

‘‘कौन है?’’ शीतल ने तिलमिला कर पूछा.

जवाब में वह व्यक्ति वही गीत गुनगुनाता रहा. शीतल ने झुंझला कर फोन काट दिया और आए हुए नंबर की जांच करने लगी. मगर स्क्रीन पर नंबर डिसप्ले नहीं हो रहा था. उसे याद आया यह तो वही पंक्तियां थीं, जो वह उस हिल स्टेशन पर होटल में अनल के सामने बुदबुदा रही थी.

कौन हो सकता है यह व्यक्ति? मतलब होटल के कमरे में कहीं गुप्त कैमरा लगा था जो उस होटल में रुकने वाले जोड़ों की अंतरंग तसवीरें कैद कर उन्हें ब्लैकमेल करने के काम में लिया जाता होगा. लेकिन जब उन्हें उस की और अनल की ऐसी कोई तसवीर नहीं मिली तो इन पंक्तियों के माध्यम से उस का भावनात्मक शोषण कर ब्लैकमेल कर रुपए ऐंठना चाहते होंगे.

शीतल बैडरूम में जाने के लिए सीढि़यां चढ़ ही रही थी कि एक बार फिर से मोबाइल की घंटी बज उठी. इस बार उस ने रिकौर्ड करने की दृष्टि से फोन उठा लिया. फिर वही आवाज और फिर वही पंक्तियां. उस ने फोन काट दिया. मगर फोन काटते ही फिर घंटी बजने लगी. बैडरूम का लौक खोलने तक 4-5 बार ऐसा हुआ.

झुंझला कर शीतल ने मोबाइल ही स्विच्ड औफ कर दिया. उसे डर था कि यह फोन उसे रात भर परेशान करेगा और वह चैन से नहीं सो पाएगी.

शीतल कपड़े चेंज कर के आई और लाइट्स औफ कर के लेटी ही थी कि उस के बैडरूम में लगे लैंडलाइन फोन पर आई घंटी से वह चौंक गई. यह तो प्राइवेट नंबर है और बहुत ही चुनिंदा और नजदीकी लोगों के पास थी. क्या किसी परिचित के यहां कुछ अनहोनी हो गई. यही सोचते हुए उस ने फोन उठा लिया.

फोन उठाने पर फिर वही पंक्तियां कानों में पड़ने लगीं. शीतल बुरी तरह से घबरा गई. एसी के चलते रहने के बावजूद उस के माथे पर पसीना उभर आया. कोई उसे डिस्टर्ब न करे, इसलिए उस ने लैंडलाइन फोन का भी प्लग निकाल कर डिसकनेक्ट कर दिया.

फोन डिसकनेक्ट कर के वह मुड़ी ही थी कि उस की नजर बैडरूम की खिड़की पर लगे शीशे की तरफ गई. शीशे पर किसी पुरुष की परछाई दिख रही थी, जो कल की ही तरह बाहें फैलाए उसे अपनी तरफ बुला रहा था.

वह जोरों से चीखी और बैडरूम से निकल कर नीचे की तरफ भागी. चेहरे पर पानी के छीटें पड़ने से शीतल की आंखें खुलीं.

‘‘क्या हुआ?’’ उस ने हलके से बुदबुदाते हुए पूछा.

घर के सारे नौकर और चौकीदार शीतल को घेर कर खड़े थे और उस का सिर एक महिला की गोद में था.

‘‘शायद आप ने कोई डरावना सपना देखा और चीखते हुए नीचे आ गईं और यहां गिर कर बेहोश हो गईं.’’ चौकीदार ने बताया.

‘‘सपना…? हां शायद,’’ कुछ सोचते हुए शीतल बोली, ‘‘ऐसा करो, वह नीचे वाला गेस्टरूम खोल दो, मैं वहीं आराम करूंगी.’’

सुबह उठ कर शीतल पुलिस में शिकायत करने के बारे में सोच ही रही थी कि एक नौकर ने आ कर सूचना दी.

‘‘मैडम, वीर सर आप से मिलाना चाहते हैं.’’

‘‘वीर? अचानक? इस समय?’’ शीतल मन ही मन बुदबुदाते हुई बोली.

‘‘भाभीजी जैसा कि आप ने कहा था मैं ने इंश्योरेंस कंपनी के औफिसर्स से बात की है. चूंकि यह केस कुछ पेचीदा है फिर भी वह कुछ लेदे कर केस निपटा सकते हैं.’’ वीर ने कहा.

‘‘कितना क्या और कैसे देना पड़ेगा? हमारी तरफ से कौनकौन से पेपर्स लगेंगे?’’ शीतल ने शांत भाव से पूछा.

‘‘हमें उस हिल स्टेशन वाले थाने से पिछले तीन केस की ऐसी रिपोर्ट निकलवानी होगी, जिस में लिखा होगा कि उस खाई में गिरने के बाद उन लोगों की लाशें नहीं मिलीं.

‘‘इस काम के लिए अधिकारियों को मिलने वाली राशि का 25 परसेंट मतलब ढाई करोड़ रुपए देना होगा. यह रुपए उन्हें नगद देने होंगे. कुछ पैसा अभी पेशगी देना होगा बाकी क्लेम सेटल होने के बाद. चूंकि बात मेरे माध्यम से चल रही है अत: पेमेंट भी मेरे द्वारा ही होगा.’’ वीर ने बताया.

‘‘ढाई करोड़ऽऽ..’’ शीतल की आंखें चौड़ी हो गईं, ‘‘यह कुछ ज्यादा नहीं हो जाएगा?’’ वह बोली.

‘‘देखिए भाभीजी, अगर हम वास्तविक क्लेम पर जाएंगे तो सालों का इंतजार करना होगा. शायद कम से कम 7 साल. फिर उस के बाद कोर्ट का अप्रूवल.’’ वीर ने अपना मत रखा.

‘‘आप क्या चाहते हैं, इस डील को स्वीकार कर लिया जाए?’’ शीतल ने पूछा.

‘‘जी मेरे विचार से बुद्धिमानी इसी में है.’’ वीर बोला, ‘‘अभी हमें सिर्फ 25 लाख रुपए देने हैं. ये 25 लाख लेने के बाद इंश्योरेंस औफिस एक लेटर जारी करेगा, जिस के आधार पर हम उस हिल स्टेशन वाले थाने से पिछले 3 केस की केस हिस्ट्री लेंगे.

‘‘इस हिस्ट्री के आधार पर कंपनी हमारे क्लेम को सेटल करेगी और 10 करोड़ का चैक जारी करेगी.’’ वीर ने पूरी योजना विस्तार से समझाई.

‘‘ठीक है 1-2 दिन में सोच कर बताती हूं. 25 लाख का इंतजाम करना भी आसान नहीं होगा.’’ शीतल बोली.

‘‘अच्छा भाभीजी, मैं चलता हूं.’’ वीर उठते हुए नमस्कार की मुद्रा बना कर बोला.

शीतल की तीक्ष्ण बुद्धि यह समझ गई की वीर दोस्ती के नाम पर धोखा दे रहा है. और हो न हो, यह वही शख्स है जो उसे रातों में डरा रहा है. यह मुझे डरा कर सारा पैसा हड़पना चाहता है. मैं ऐसा नहीं होने दूंगी और इसे रंगेहाथों पुलिस को पकड़वाऊंगी.

रोजाना की तरह आज भी लगभग 8 बजे शाम को वह क्लब जाने के लिए निकली. आज शीतल बेफिक्र थी, क्योंकि उसे पता चल चुका था कि पिछले दिनों हो रही घटनाओं के पीछे किस का हाथ है. अब उस का डर निकल चुका था. उस ने वीर को सबक सिखाने की योजना पर भी काम चालू कर दिया था.

अधूरी मौत- भाग 2: शीतल का खेल जब उस पर पड़ा भारी

लगभग एक घंटे की चढ़ाई के बाद दोनों पहाड़ी की सब से ऊंची चोटी पर थे.

‘‘हाय कितना सुंदर लग रहा है. यहां से घर, पेड़, लोग कितने छोटेछोटे दिखाई पड़ रहे हैं. ऐसा लगता है जैसे नीचे बौनों की बस्ती हो. मन नाचने को कर रहा है,’’ शीतल खुश हो कर बोली, ‘‘दूर तक कोई नहीं है यहां पर.’’

‘‘अरे शीतू, संभालो अपने आप को ज्यादा आगे मत बढ़ो. टेंट वाले ने बताया है ना नीचे बहुत गहरी खाई है.’’ अनल ने चेतावनी दी.

‘‘यहां आओ अनल, एक सेल्फी इस पौइंट पर हो जाए.’’ शीतल बोली.

‘‘लो आ गया, ले लो सेल्फी.’’ अनल शीतल के नजदीक आता हुआ बोला.

‘‘वाह क्या शानदार फोटो आए हैं.’’ शीतल मोबाइल में फोटो देखते हुए बोली.

‘‘चलो तुम्हारी कुछ स्टाइलिश फोटो लेते हैं. फिर तुम मेरी लेना.’’

‘‘अरे कुछ देर टेंट में आराम कर लो. चढ़ कर आई हो, थक गई होगी.’’ अनल बोला.

‘‘नहीं, पहले फोटो.’’ शीतल ने जिद की, ‘‘तुम यह गौगल लगाओ. दोनों हथेलियों को सिर के पीछे रखो. हां और एक कोहनी को आसमान और दूसरी कोहनी को जमीन की तरफ रखो. वाह क्या शानदार पोज बनाया है.’’ शीतल ने अनल के कई कई एंगल्स से फोटो लिए.

‘‘अब उसी चट्टान पर जूते के तस्मे बांधते हुए एक फोटो लेते हैं. अरे ऐसे नहीं. मुंह थोड़ा नीचे रखो. फोटो में फीचर्स अच्छे आने चाहिए. ओफ्फो…ऐसे नहीं बाबा. मैं आ कर बताती हूं. थोड़ा झुको और नीचे देखो.’’ शीतल ने निर्देश दिए.

तस्मे बांधने के चक्कर में अनल कब अनबैलेंस हो गया पता ही नहीं चला. अनल का पैर चट्टान से फिसला और वह पलक झपकते ही नीचे गहरी खाई में गिर गया. एक अनहोनी जो नहीं होनी थी हो गई.

‘‘अनल…अनल…अनल…’’ शीतल जोरजोर से चीखने लगी. उस ने ड्राइवर को फोन लगाया.

‘‘भैया, अनल पैर फिसलने के कारण खाई में गिर गए हैं. कुछ मदद करो.’’ शीतल जोर से रोते हुए बोली.

‘‘क्या..?’’ ड्राइवर आश्चर्य से बोला, ‘‘यह तो पुलिस केस है. मैं पुलिस को ले कर आता हूं.’’

लगभग 2 घंटे बाद ड्राइवर पुलिस को ले कर वहां पहुंच गया.

‘‘ओह तो यहां से पैर फिसला है उन का.’’ इंसपेक्टर ने जगह देखते हुए शीतल से पूछा.

‘‘जी.’’ शीतल ने जवाब दिया.

‘‘आप दोनों ही आए थे, इस टूर पर या साथ में और भी कोई है?’’ इंसपेक्टर ने प्रश्न किया.

‘‘जी, हम दोनों ही थे. वास्तव में यह हमारा डिलेड हनीमून शेड्यूल था.’’ शीतल ने बताया.

‘‘देखिए मैडम, यह खाई बहुत गहरी है. इस में गिरने के बाद आज तक किसी के भी जिंदा रहने की सूचना नहीं मिली है. सुना है.

‘‘आप के घर में और कौनकौन हैं?’’ इंसपेक्टर ने पूछा.

‘‘अनल के पिताजी हैं सिर्फ. जोकि पैरालिसिस से पीडि़त हैं और बोलने में असमर्थ.’’ शीतल ने बताया, ‘‘इन का कोई भी भाई या बहन नहीं हैं. 5 साल पहले माताजी का स्वर्गवास हो गया था.’’

‘‘तब आप के पिताजी या भाई को यहां आना पड़ेगा.’’ इंसपेक्टर बोला

‘‘मेरे परिवार से कोई भी इस स्थिति में नहीं है कि इतनी दूर आ सके.’’ शीतल ने कहा.

‘‘आप के हसबैंड का कोई दोस्त भी है या नहीं.’’ इंसपेक्टर ने झुंझला कर पूछा.

‘‘हां, अनल का एक खास दोस्त है वीर है. उन्हीं ने हमारी शादी करवाई थी.’’ शीतल ने जवाब दे कर इंसपेक्टरको वीर का नंबर दे दिया.

इंसपेक्टर ने वीर को फोन कर थाने आने को कहा.

‘‘सर, लगभग 60 मीटर तक सर्च कर लिया मगर कोई दिखाई नहीं पड़ा. अब अंधेरा हो चला है, सर्चिंग बंद करनी पड़ेगी.’’ सर्च टीम के सदस्यों ने ऊपर आ कर बताया.

‘‘ठीक है मैडम, आप थाने चलिए और रिपोर्ट लिखवाइए. कल सुबह सर्च टीम एक बार फिर भेजेंगे.’’ इंसपेक्टर ने कहा, ‘‘वैसे कल शाम तक मिस्टर वीर भी आ जाएंगे.’’

दूसरे दिन शाम के लगभग 4 बजे वीर थाने पहुंच गया. इंसपेक्टर ने पूरी जानकारी उसे देते हुए पूछा, ‘‘वैसे आप के दोस्त के और उन की पत्नी के आपसी संबंध कैसे हैं?’’

‘‘अनल और शीतल की शादी को 9 महीने हो चुके हैं और अनल ने मुझ से आज तक ऐसी कोई बात नहीं कही, जिस से लगे कि दोनों के बीच कुछ एब्नार्मल है.’’ वीर ने इंसपेक्टर को बताया.

‘‘और आप की भाभीजी मतलब शीतलजी के बारे में क्या खयाल है आपका?’’ इंसपेक्टर ने अगला प्रश्न किया.

‘‘जी, वो एक गरीब घर से जरूर हैं मगर उन की बुद्धि काफी तीक्ष्ण है. उन्होंने बिजनैस की बारीकियों पर अच्छी पकड़ बना ली है. अनल भी अपने आप को चिंतामुक्त एवं हलका महसूस करता था.’’ वीर ने बताया.

‘‘देखिए, आप के बयानों के आधार पर हम इस केस को दुर्घटना मान कर समाप्त कर रहे हैं. यदि भविष्य में कभी लाश से संबंधित कोई सामान मिलता है तो शिनाख्त के लिए आप को बुलाया जा सकता है.’’ इंसपेक्टर ने कहा.

‘‘जी बिलकुल.’’

‘‘वीर भैया, अनल की आत्मा की शांति के लिए सभी पूजापाठ पूरे विधिविधान से करवाइए. मैं नहीं चाहती अनल की आत्मा को किसी तरह का कष्ट पहुंचे.’’ शहर पहुंचने पर भीगी आंखों के साथ शीतल ने हाथ जोड़ कर कहा.

‘‘जी भाभीजी आप निश्चिंत रहिए,’’ वीर बोला.

एक दिन वीर ने शीतल से कहा, ‘‘करीब 6 महीने पहले अनल ने एक बीमा पौलिसी ली थी, जिस में अनल की प्राकृतिक मौत होने पर 5 करोड़ और दुर्घटना में मृत्यु होने पर 10 करोड़ रुपए मिलने वाले हैं. यदि आप कहें तो इस संदर्भ में काररवाई करें.’’

‘‘वीर भाई साहब, आप जिस बीमे के बारे में बात कर रहे हैं, उस के विषय में मैं पहले से जानती हूं और अपने वकीलों से इस बारे में बातें भी कर रही हूं.’’ शीतल ने रहस्योद्घाटन किया.

अनल का स्वर्गवास हुए 45 दिन बीत चुके थे. अब तक शीतल की जिंदगी सामान्य हो गई थी. धीरेधीरे उस ने घर के सभी पुराने नौकरों को निकाल कर नए नौकर रख लिए थे. हटाने के पीछे तर्क यह था कि वे लोग उस से अनल की तरह नरम व पारिवारिक व्यवहार की अपेक्षा करते थे. जबकि शीतल का व्यवहार सभी के प्रति नौकरों जैसा व कड़ा था. नए सभी नौकर शीतल के पूर्व परिचित थे.

इस बीच शीतल लगातार वीर के संपर्क में थी तथा बीमे की पौलिसी को जल्द से जल्द इनकैश करवाने के लिए जोर दे रही थी.

शीतल की जिंदगी में बदलाव अब स्पष्ट दिखाई देने लगा था. एक दिन शीतल क्लब से रात 12 बजे लौटी. कार से उतरते हुए उसे घर की दूसरी मंजिल पर किसी के खड़े होने का अहसास हुआ.

उस ने ध्यान से देखने की कोशिश की मगर धुंधले चेहरे के कारण कुछ समझ में नहीं आ रहा था. आश्चर्य की बात यह थी कि जिस गैलरी में वह शख्स खड़ा था, वह उस के ही बैडरूम की गैलरी थी. और वह ऊपर खड़ा हो कर बाहें फैलाए शीतल को अपनी तरफ आने का इशारा कर रहा था.

अधूरी मौत- भाग 1: शीतल का खेल जब उस पर पड़ा भारी

‘‘मेरे दिल ने जो मांगा मिल गया, जो कुछ भी चाहा मिला.’’ शीतल उस हिल स्टेशन के होटल के कमरे में खुदबखुद गुनगुना रही थी.

‘‘क्या बात है शीतू, बहुत खुश नजर आ रही हो.’’ अनल उस के पास आ कर कंधे पर हाथ रखते हुए बोला.

‘‘हां अनल, मैं आज बहुत खुश हूं. तुम मुझे मेरे मनपसंद के हिल स्टेशन पर जो ले आए हो. मेरे लिए तो यह सब एक सपने के जैसा था.

‘‘पिताजी एक फैक्ट्री में छोटामोटा काम करते थे. ऊपर से हम 6 भाईबहन. ना खाने का अतापता होता था ना पहनने के लिए ढंग के कपड़े थे. किसी तरह सरकारी स्कूल में इंटर तक पढ़ पाई. हम लोगों को स्कूल में वजीफे के पैसे मिल जाते थे, उन्हीं पैसों से कपड़े वगैरह खरीद लेते थे.

‘‘एक बार पिताजी कोई सामान लाए थे, जिस कागज में सामान था, उसी में इस पर्वतीय स्थल के बारे में लिखा था. तभी से यहां आने की दिली इच्छा थी मेरी. और आज यहां पर आ गई.’’ शीतल होटल के कमरे की बड़ी सी खिड़की के कांच से बाहर बनते बादलों को देखते हुए बोली.

‘‘क्यों पिछली बातों को याद कर के अपने दिल को छोटा करती हो शीतू. जो बीत गया वह भूत था. आज के बारे में सोचो और भविष्य की योजना बनाओ. वर्तमान में जियो.’’ अनल शीतल के गालों को थपथपाते हुए बोला.

‘‘बिलकुल ठीक है अनल. हमारी शादी को 9 महीने हो गए हैं. और इन 9 महीनों में तुम ने अपने बिजनैस के बारे में इतना सिखापढ़ा दिया है कि मैं तुम्हारे मैनेजर्स से सारी रिपोर्ट्स भी लेती हूं और उन्हें इंसट्रक्शंस भी देती हूं. हिसाबकिताब भी देख लेती हूं.’’ शीतल बोली.

‘‘हां शीतू यह सब तो तुम्हें संभालना ही था. 5 साल पहले मां की मौत के बाद पिताजी इतने टूट गए कि उन्हें पैरालिसिस हो गया. कंपनी से जुड़े सौ परिवारों को सहारा देने वाले खुद दूसरे के सहारे के मोहताज हो गए.

‘‘नौकरों के भरोसे पिताजी की सेहत गिरती ही जा रही थी. तुम नई थीं, इसीलिए पिताजी का बोझ तुम पर न डाल कर तुम्हें बिजनैस में ट्रेंड करना ज्यादा उचित समझा. पिताजी के साथ मेरे लगातार रहने के कारण उन की सेहत भी काफी अच्छी हो गई है. हालांकि बोल अब भी नहीं पाते हैं.

‘‘मैं चाहता हूं कि इस हिल स्टेशन से हम एक निशानी ले कर जाएं जो हमारे अपने लिए और उस के दादाजी के लिए जीने का सहारा बने.’’ अनल शीतल के पीछे खड़ा था. वह दोनों हाथों का हार बना कर गले में डालते हुए बोला.

‘‘वह सब बातें बाद में करेंगे. अभी तो 7 दिन हैं, खूब मौके मिलेंगे.’’ शीतल बोली.

अगली सुबह अनल ने कहा, ‘‘देखो, आज 5 विजिटिंग पौइंट्स पर चलना है. 9 बजे टैक्सी आ जाएगी. हम यहां से नाश्ता कर के निकलते हैं. लंच किसी सूटेबल पौइंट पर ले लेंगे.’’

‘‘हां, मैं तैयार होती हूं.’’ शीतल बोली.

‘‘सर, आप की टैक्सी आ गई है.’’ नाश्ते के बाद होटल के रिसैप्शन से फोन आया.

‘‘ठीक है हम नीचे पहुंचते हैं.’’ अनल बोला.

दिन भर घुमाने के बाद ड्राइवर ने दोनों को होटल में छोड़ दिया. शीतल अनल के कंधे का सहारा ले कर टैक्सी से निकलते हुए बोली, ‘‘अनल, जब हम घूम कर लौट रहे थे तब उस संकरे रास्ते पर क्या एक्सीडेंट हो गया था? ट्रैफिक जाम था. तुम देखने भी तो उतरे थे.’’

‘‘एक टैक्सी वाले से एक बुजुर्ग को हलकी सी टक्कर लग गई. बुजुर्ग इलाज के लिए पैसे मांग रहा था. इसीलिए पूरा रास्ता जाम था.’’ अनल ने बताया. ‘‘ऐसा ही एक एक्सीडेंट हमारी जिंदगी में भी हुआ था, जिस से हमारी जिंदगी ही बदल गई.’’ अनल ने आगे जोड़ा.

‘‘हां मुझे याद है. उस दिन पापा मेरे रिश्ते की बात करने कहीं जा रहे थे. तभी सड़क पार करते समय तुम्हारे खास दोस्त वीर की स्पीड से आती हुई कार ने उन्हें टक्कर मार दी. जिस से उन के पैर की हड्डी टूट गई और वह चलने से लाचार हो गए.’’ शीतल बोली.

‘‘हां, और तुम्हारे पिताजी ने हरजाने के तौर पर तुम्हारी शादी वीर से करने की मांग रखी.’’

‘‘मेरा रिश्ते टूटने की सारी जवाबदारी वीर की ही थी. इसलिए हरजाना तो उसी को देना था न.’’ शीतल अपने पिता की मांग को जायज ठहराते हुए बोली.

‘‘वीर तो बेचारा पहले से ही शादीशुदा था, वह कैसे शादी कर सकता था? मेरी मम्मी की मौत के बाद वीर की मां ने मुझे बहुत संभाला और पिताजी को पैरालिसिस होने के बाद तो वह मेरे लिए मां से भी बढ़ कर हो गईं.

‘‘कई मौकों पर उन्होंने मुझे वीर से भी ज्यादा प्राथमिकता दी. उस परिवार को मुसीबत से बचाने के लिए ही मैं ने तुम से शादी की.

‘‘मेरे बिजनैस की पोजीशन को देखते हुए कोई भी पैसे वाली लड़की मुझे मिल जाती. मैं किसी गरीब घर की लड़की से शादी करने के पक्ष में था ताकि वह पिताजी की देखभाल कर सके.’’

‘‘मतलब तुम्हें एक नौकरानी चाहिए थी जो बीवी की तरह रह सके.‘‘शीतल के स्वर में कुछ कड़वापन था.

‘‘बड़ेबुजुर्गों के मुंह से सुना था कि जोडि़यां स्वर्ग में बनती हैं. मगर हमारी जोड़ी सड़क पर बनी. लेकिन मुझे तुम से कोई शिकायत नहीं हैं. मैं ने पिछले 9 महीनों में एक नई शीतल गढ़ दी है, जो मेरा बिजनैस हैंडल कर सकती है. बस एक ही ख्वाहिश और है जिसे तुम पूरा कर सकती हो.’’ अनल हसरतभरी निगाहों से शीतल की तरफ देखते हुए बोला.

‘‘अनल, पहाड़ों पर चढ़नेउतरने के कारण बदन दर्द से टूट रहा है. कोई पेनकिलर ले कर आराम से सोते हैं. वैसे भी सुबह 4 बजे उठना पड़ेगा सनराइज पौइंट जाने के लिए. यहां सूर्योदय साढ़े 5 बजे तक हो ही जाता है.’’ शीतल सपाट मगर चुभने वाले लहजे में बोली.

अनल अपना सा मुंह ले कर बिस्तर में दुबक गया.

अगली सुबह ड्राइवर आया तो शीतल उस से बोली, ‘‘ड्राइवर भैया, आज ऐसी जगह ले चलो जो एकदम से अलग सा एहसास देती हो.’’

‘‘जी मैडम, यहां से 20 किलोमीटर दूर है. इस टूरिस्ट प्लेस की सब से ऊंची जगह. वहां से आप सारा शहर देख सकती हैं, करीब एक हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित है.

‘‘वहां पर आप टेंट लगा कर कैंपिंग भी कर सकते है. यहां टेंट में रात को रुकने का अपना ही रोमांच है. वहां आप को डिस्टर्ब करने के लिए कोई नहीं होगा.’’ ड्राइवर ने उस जगह के बारे में बताया.

‘‘और लोग भी तो होते होंगे वहां पर?’’ अनल ने पूछा.

‘‘सामान्यत: भीड़ वाले समय में 2 टेंटों के बीच लगभग 100 मीटर की दूरी रखी जाती है. आप की इच्छानुसार आप का टेंट नो डिस्टर्ब वाले जोन में लगा देंगे.’’ ड्राइवर ने बताया.

‘‘चलो ना अनल. ऐसी जगह पर तुम्हारी इच्छा भी पूरी हो जाएगी.’’ शीतल जोर देते हुए बोली.

‘‘चलो भैया आज उसी टेंट में रुकते हैं.’’ अनल खुश होते हुए बोला.

लगभग एक घंटे के बाद वह लोग उस जगह पर पहुंच गए.

‘‘साहब, यहां से लगभग एक किलोमीटर आप को संकरे रास्ते से चढ़ाई करनी है.’’ ड्राइवर गाड़ी पार्किंग में लगाते हुए बोला.

‘‘अच्छा होता तुम भी हमारे साथ ऊपर चलते. एक टेंट तुम्हारे लिए भी लगवा देते.’’ अनल गाड़ी से उतरते हुए बोला.

‘‘नहीं साहब, मैं नहीं चल सकता. मैं आज अपने परिवार के साथ रहूंगा. यहां आप को टेंट 24 घंटे के लिए दिया जाएगा. उस में सभी सुविधाएं होती हैं. आप खाना बनाना चाहें तो सामान की पूरी व्यवस्था कर दी जाती है और मंगवाना चाहें तो ये लोग बताए समय पर खाना डिलीवर भी कर देते हैं. यहां कैंप फायर का अपना ही  मजा है. इस से जंगली जानवरों का खतरा भी कम रहता है.’’ ड्राइवर ने बताया.

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प्रायश्चित्त- भाग 2: क्या प्रकाश को हुआ गलती का एहसास

‘एक परिवार टूटता है तो कितने सपने टूटते हैं, कितने अरमान बिखरते हैं, पता है तुझे? प्रेम, जिस प्रेम की तू दुहाई दे रही है वह प्रेम नहीं, भ्रम है तेरा. कोरी वासना है. ऐसे पुरुष कायर होते हैं, न वे पत्नी के होते हैं न प्रेमिका के. प्रेम में कोई इतना स्वार्थी कैसे हो सकता है? किसी के अरमानों की लाश पर अपने प्रेम का महल खड़ा करेगी तू. अपना किया किसी न किसी रूप में एक दिन अपने ही सामने आता है, पछताएगी तू,’ मां एक लंबी सांस ले कर फिर बोलीं, ‘कोई भी निर्णय लेने से पहले सोच ले, कहीं ऐसा न हो कि अपमान और तिरस्कार के दर्द को धोने के लिए तेरे पास प्रायश्चित्त के आंसू भी कम पड़ जाएं, पर मैं जानती हूं कि इसे तू समझ नहीं सकेगी. तू समझना ही नहीं चाहती. मेरी बात मान ले और एक बार प्रकाश की पत्नी से मिल कर आ.’

निशा तो नहीं गई, पर एक दिन निशा की मां माया प्रकाश की पत्नी रजनी से मिलने पहुंच गईं. रजनी को देख कर माया पलकें झपकाना भी भूल गईं. उन का मुंह खुला का खुला रह गया. रजनी कितनी सुंदर थी. निशा और रजनी की क्या तुलना, क्या यही देख कर प्रकाश निशा की ओर आकृष्ट हुआ.

‘बेटा, मैं निशा की मां हूं. पता है तुझे निशा और प्रकाश…’ वे आगे कुछ कह न सकीं. ‘पता है,’ सारी पीड़ा को मन के कुएं में डाल कर रजनी ने मानो मुसकराहट के आवरण से चेहरा ढक दिया हो. ‘और तू चुप है?’

‘और क्या करूं, मां?’ उस के  मुख से ‘मां’ का संबोधन सुन माया चकित थीं. रजनी बोलती रही, ‘प्यार कोई किला तो नहीं है न जिस के चारों ओर पहरा लगाया जाए या उसे जीतने के लिए जान की बाजी लगा दी जाए, आखिर कुछ तो होगा ही निशा में जो मेरा प्रकाश मुझ से छीन ले गई.’

‘बेटा, तुम ने प्रकाश से बात की?’ ‘मुझे उन से कोई बात नहीं करनी, वे कोई भी निर्णय लेने के लिए आजाद हैं. मां, वह प्यार क्या जिसे झली फैला कर भीख की तरह मांगा जाए. अधिकार तो दिया जाता है, जो छीना जाए उस अधिकार में प्यार कहां? आप चिंतित न हों.’

‘कैसे चिंतित न होऊं, एक मां हूं मैं, किसी की दुनिया उजाड़ कर बेटी की मांग सजाऊं? सारा दोष निशा का है.’ ‘निशा को क्यों दोष दे रही हैं आप, वह तो न मुझ से मिली है न मुझे जानती है, वह मेरी दुश्मन कैसे हो सकती है. दोष है तो मेरे समय का.’

‘और प्रकाश? प्रकाश का कोई कुसूर नहीं?’ ‘है मां, लेकिन, उसे सजा देने वाली मैं कौन होती हूं. अब तो उन्होंने मुझ से माफी मांगने का अपना अधिकार भी खो दिया है. कहीं पानी का बहाव पत्थर डालने से रुका है, वह तो उसी वेग से उछल कर बहने के लिए दिशा तलाश लेता है.’

रजनी के कहे शब्दों को माया समझ न सकीं. उन्हें लगा कि पति के विद्रोह ने इसे विक्षिप्त कर दिया है. उन्होंने मन ही मन फैसला किया कि उसे एक बार प्रकाश से मिलना होगा, जहां निशा न हो.

एक दिन निशा की अनुपस्थिति में प्रकाश आया. खुद पर नियंत्रण न रख सकीं और बोलीं, ‘बेटा, मैं एक मां हूं. तुम्हारा, निशा का, रजनी का, किसी का बुरा कैसे सोच सकती हूं, पर न्यायअन्याय के बारे में तो सोचना पड़ेगा न. माना कि निशा नादान है, प्यार ने उसे अंधा बना दिया है, उस ने आज तक जिस चीज पर उंगली रखी वह उसे मिली है. खोना क्या होता है, इस का उसे एहसास नहीं है. पर तुम तो समझदार हो, अपने अच्छेबुरे की अक्ल है तुम में. अपनी जिम्मेदारी समझ. तुम अकेली रजनी और 2 छोटेछोटे बच्चे किस के भरोसे छोड़ आए हो. क्या प्यार की खाई में इतने नीचे जा गिरे हो कि आसमान भी धुंधला दिखाई पड़ रहा है.’

प्रकाश की आंखें भर आईं. वे बोले, ‘मां, मैं सब समझता हूं. मैं मानता हूं कि मुझ से भूल हो गई. मैं ने रजनी की कीमत पर निशा की कामना नहीं की थी. मैं तो निशा और रजनी दोनों से माफी मांगने को तैयार हूं. निशा तो शायद माफ भी कर दे, पर रजनी, वह तो इस विषय में क्या, किसी भी विषय में मुझ से बात करने को तैयार नहीं. पत्थर बन गई है वह. मेरी क्षमायाचना का उस पर कोई असर नहीं होता. अगर मैं उस के कदमों पर गिर भी पड़ूं तो भी वह मुझे माफ नहीं करेगी, बेहद स्वाभिमानी औरत है वह,’ लाचारी प्रकाश के शब्दों में समाती गई. वे फिर बोले, ‘वक्त ने आज मुझे जिंदगी के उस चौराहे पर ला कर खड़ा कर दिया है, जहां की हर डगर निशा तक जाती है, सिर्फ निशा तक. अब तो न मुझे रजनी से बिछुड़ने का गम है न निशा से मिलने की खुशी.’

वक्त गुजरता गया. रजनी से तलाक मिल गया और प्रकाश का ब्याह निशा से हो गया. उस के बाद रजनी बच्चों को ले कर पता नहीं कहां चली गई. किसी को कुछ पता नहीं. न वह अपने मायके गई न ससुराल. उस के बगैर जीना इतना मुश्किल होगा, प्रकाश ने सोचा न था. प्रकाश चाह कर भी पूरी तरह खुद को रजनी से जुदा न कर सके. कई बार निशा झंझला कर कहती, ‘अगर उस रिश्ते का मातम मनाना था तो मुझ से ब्याह करने की क्या आवश्यकता थी. कोशिश तो करो, समय के साथ सबकुछ भुला सकोगे.’

‘क्या भुला सकूंगा, निशा मैं, यह कि 8 साल पहले अपना सबकुछ छोड़ कर एक भोलीभाली लड़की मेरे कदमों के पीछेपीछे चली आई थी, यह कि मैं ने अग्नि के सामने जीवनभर साथ निभाने की कसमें खाई थीं. कैसे भूल जाऊं उस की सिंदूर से भरी मांग, कैसे भूल जाऊं उस के हाथों की लाल चूडि़यां. किसी का सुखचैन लूट कर किसी की खुशियों पर डाका डाल कर तुम्हारा दामन खुशियों से भरा है मैं ने. मैं इतना निर्मोही कैसे हो गया? कैसे भूल जाऊं कि जो घरौंदा मैं ने और रजनी ने मिल कर बनाया था उसे मैं ने अपने ही हाथों नोच कर फेंक दिया और क्या कुसूर था उन 2 मासूम बच्चों का? क्या अधिकार था मुझे उन से खुशियां छीनने का? क्या कभी मैं इन तमाम बातों से अपने को मुक्त कर पाऊंगा?’

प्रायश्चित्त- भाग 3: क्या प्रकाश को हुआ गलती का एहसास

‘प्रकाश, क्या होता जा रहा है तुम्हें, संभालो खुद को. सत्य से सामना करने का साहस जुटाओ. बीता कल अतीत की अमानत होता है, उस के सहारे आज को नहीं जिया जा सकता. एक बुरा सपना समझ कर सबकुछ भूलने का प्रयास करो.’

‘काश कि यह सब एक सपना होता निशा, अफसोस तो यह है कि यह सब एक हकीकत है. मेरे जीवन का एक हिस्सा है.’

प्रकाश के दर्द को जान कर निशा खामोश थी, उस ने इस घटना को अपने जीवन की सब से बड़ी भूल के रूप में स्वीकार कर लिया था. वह समझती थी कि इंसान खुद को परिस्थितियों के अनुरूप नहीं ढाल पाता तो परिस्थितियां ही उसे अपने अनुरूप ढाल लेती हैं, पर ऐसा कुछ नहीं हुआ. रमिता का आगमन भी प्रकाश को सामान्य न कर सका. उस की बालसुलभ क्रियाएं भी उन्हें लुभा न सकीं. शायद कुछ पाने से ज्यादा कुछ खोने का गम था उन्हें.

प्रकाश के दिल की तड़प अब निशा के दिल को भी तड़पा जाती. तभी तो उस ने एक दिन कहा, ‘अगर रमिता में तुम्हें दीपक और ज्योति नजर आते हैं तो हम रजनी को ढूंढें़गे, उसे समझबुझ कर बच्चों को अपने पास ले आएंगे.’

‘नहीं निशा, अब मुझ में साहस नहीं है, रजनी के सामने जा कर खड़े होने का. और फिर रजनीरूपी बेल जिस वृक्ष से लिपटी है वह दीपक और ज्योति ही तो हैं. मैं उस की जड़ों को झकझरना नहीं चाहता. मैं रजनी के जीवन की बचीखुची रोशनी भी उस से छीनना नहीं चाहता.’

निशा का पूरा ध्यान रमिता की परवरिश की ओर लग गया. वक्त गुजरता गया. प्रकाश पहले से ज्यादा गुमसुम रहने लगे. हां, रमिता के प्रति अपनी जिम्मेदारी को निभाना उन्हें बखूबी आ गया था. वे नहीं चाहते थे कि प्रायश्चित्त की जो आग उन के दिल में सुलग रही है, उस की आंच भी रमिता तक पहुंचे. जिंदगी के 17-18 साल यों ही बीत गए.

रजनी नाम का जख्म समय के साथ भर तो गया, पर निशान अब भी बाकी था. 2 वर्षों पहले रजनी का एक खत प्रकाश के नाम आया. निशा ने उसे उलटपलट कर देखा, पर फिर प्रकाश को थमा दिया. पत्र सामने खुला पड़ा था, नजरें पत्र की लिखावट पर फिसलती चली गईं.

‘प्रकाश, तुम्हारे दोनों बच्चे अब बड़े हो गए हैं, ज्योति डाक्टर बन गई है और अपनी पसंद के लड़के से शादी कर रही है. तुम्हारा बेटा दीपक अब मुझे ले कर विदेश में बसना चाहता है. मैं जानती हूं, तुम्हारे हृदय के भीतर छिपा इन का पिता इन से मिलने को तड़प रहा होगा. अब मैं तुम से नाराज भी नहीं हूं. सच मानो, मैं ने तो तुम्हें कब का माफ कर दिया है.’

‘रजनी.’

नीचे पता लिखा हुआ था और साथ में ज्योति की शादी का कार्ड भी था.

प्रकाश ने कार्ड सहित पत्र निशा की ओर बढ़ा दिया.

‘नहीं निशा, मैं नहीं कर सकता रजनी का सामना. उस का दिल बहुत बड़ा है. वह कह सकती है कि उस ने मुझे माफ कर दिया. लेकिन मैं कैसे माफ कर दूं अपनेआप को? मेरी सजा यही है कि मैं उम्रभर तड़पता रहूं और यही होगा मेरे पापों का प्रायश्चित्त भी.’

‘तब से ले कर आज तक प्रायश्चित्त ही तो करती आ रही हूं मैं और आप भी. अब और कितना?’ सिसक उठी निशा.

भूलीबिसरी घटनाओं की यादें आआ कर दिमाग के दरवाजे को खटखटाती रहीं. मन अतीत की गलियों में पता नहीं कब तक भटकता रहा कि अचानक शांताबाई की आवाज सुनाई पड़ी, ‘‘बहूजी, आज और कितनी देर तक इस कमरे में रहेंगी आप? नाश्ता तैयार है,’’ निशा हड़बड़ा गई, स्वयं को व्यवस्थित करते हुए बोली, ‘‘साहब कहां हैं?’’

‘‘उन के पास तो कोई बैठा है, उसी से बातें कर रहे हैं.’’

‘‘कौन है?’’

‘‘क्या पता, आवाज तो दामादजी जैसी है,’’ शांताबाई ने लापरवाही से कहा.

‘‘और तू अब बता रही है मुझे,’’ निशा उठ खड़ी हुई.

‘‘मैं तो आप को यह बताने आई थी कि आप को रमिता दीदी बुला रही हैं.’’

‘‘अच्छाअच्छा ठीक है, तू जा अपना काम कर.’’

मां को देखते ही रमिता बिफर पड़ी, ‘‘मां, वह क्या करने यहां आया है? कह दो उस से चला जाए यहां से, मैं उस की सूरत भी नहीं देखना चाहती.’’

‘‘हां, बेटा, ठीक है, तुम्हारे पापा उस से बात कर रहे हैं न, जो उचित होगा वही करेंगे. कोई भी निर्णय बिना कुछ सोचेसमझे मत लो.’’

रमिता ने नजर उठा कर देखा, सामने पापा खड़े थे और उन के पीछे सिर झकाए खड़ा था तुषार.

‘‘गलती हर इंसान से होती है, बेटी, पर अपनी गलती को स्वीकार कर लेने का साहस बहुत कम लोगों में होता है. अपने किए पर तुषार खुद शर्मिंदा है. वह मानता है कि वह भटक गया था. उसे अफसोस है कि उस ने तुम्हारा दिल दुखाया है. जन्मों के रिश्तों को पलों में मत टूट जाने दो, रमिता. मान लो बेटा कि तूफान तुम्हारे दिलों के द्वार पर दस्तक दे कर वापस लौट गया है. उठो रमिता और माफ कर दो तुषार को. आज वह तुम्हें मनाने आया है, अगर आज वह चला गया तो शायद लौट कर कभी न आए. मैं नहीं चाहता कि तुम दोनों रूठने और मनाने की सीमा पार कर जाओ. आज वह चल कर तुम्हारे पास आया है, इस का अर्थ यह नहीं कि वह सिर्फ दंड का अधिकारी है,’’ प्रकाश का गला बोलतेबोलते भर्रा उठा, स्वर थरथराने लगे, ‘‘उसे माफ कर दो, रमिता, नहीं तो पछतावे की आग से तुम भी नहीं बच सकोगी, सबकुछ जल कर राख हो जाएगा. प्यार भी और नफरत भी. कुछ भी नहीं बचेगा.’’

रमिता हैरान थी. आज जिंदगी में पहली बार पापा को इतना कुछ कहते सुन रही थी. पापा तुषार का पक्ष ले रहे हैं? मगर क्यों?

रमिता ने पलट कर प्रश्नभरी नजर मां पर डाली.

निशा भी प्रकाश से सहमत थी, मानो उस की निगाहें कह रही हों, ‘कुछ बातों को समझना इतना जरूरी नहीं होता रमिता जितना उन पर अमल करना.’

रमिता के कदम तुषार की ओर बढ़ चले. निशा ने आगे बढ़ कर नन्ही अंकिता को तुषार की गोद में दे दिया. रमिता जाते समय पलटपलट कर अपने मातापिता को देखती रही.

निशा और प्रकाश भी रमिता और तुषार को आंखों से ओझल होने तक देखते रहे. दोनों की आंखें अनायास ही छलक उठीं.

प्रायश्चित्त- भाग 1: क्या प्रकाश को हुआ गलती का एहसास

निशा के दिल और दिमाग में शून्यता गहराती जा रही थी. रोतेरोते रमिता का चेहरा लाल पड़ गया था, आंखों की पलकें सूज आई थीं. अपनी औलाद की आंखों में इतने सारे दुख की परछाइयां देख कर कौन मां विचलित नहीं हो जाएगी. इसलिए निशा का तड़प उठना भी स्वाभाविक ही था. वह एक बार रमिता को देखती, तो एक बार उस की गोद में पड़ी उस मासूम बच्ची अंकिता को जो दुनियादारी से बेखबर थी.

2 वर्षों पहले ही कितनी धूमधाम से निशा ने रमिता और तुषार का ब्याह किया था. दोनों एकदूसरे को पसंद करते थे. एकदूसरे से प्रेम करते थे, फिर.अचानक निशा की नजर दरवाजे पर खड़ी शांताबाई पर पड़ी.

‘‘क्या है, तू यहां खड़ीखड़ी क्या कर रही है?’’ घूरते हुए निशा ने शांताबाई से कहा, ‘‘तुझ से दूध मांगा था न मैं ने बच्ची के लिए. और, मेरे नहाने के लिए पानी गरम कर दिया तू ने?’’

‘‘दूध ही तो लाई हूं, बहूजी, और पानी भी गरम कर दिया है.’’ ‘‘ठीक है, अब जा यहां से,’’ शांताबाई से दूध की बोतल छीन कर निशा बोली, ‘‘अब खड़ेखड़े मुंह क्या देख रही है. जा, जा कर अपना काम कर,’’ निशा अकारण ही झंझला पड़ी उस पर.

‘‘बहूजी, फूल तोड़ दूं?’’ ‘‘और क्या, रोज नहीं तोड़ती क्या?’’ निशा अच्छी तरह जानती थी कि शांता क्यों किसी न किसी बहाने यहीं चक्कर काटते रहना चाहती है.

सुबह जब रमिता आई तो प्रकाश वहीं बाहर बरामदे में बैठे चाय पी रहे थे. कोई नई बात नहीं थी, वैसे भी रमिता हर  3-4 दिन में मां की अदालत में तुषार के खिलाफ कोई न कोई मुकदमा ले कर हाजिर रहती और फैसला भी उसी के पक्ष में होता. कभी यह कि, तुषार आजकल लगातार औफिस से घर देर से आता है, तो कभी यह कि तुषार फिल्म दिखाने का वादा कर के समय पर नहीं आया, तो कभी यह कि तुषार मेरा जन्मदिन भूल गया.

इन बातों को उस की मां निशा ने भले ही महत्त्व दिया हो, पर पिता प्रकाश हर बात हंसी में उड़ा देते. अकसर यही होता कि शाम को तुषार आता, सारे गिलेशिकवे छूमंतर और दोनों हंसतेमुसकराते वापस अपने घर चले जाते. पर आज बात कुछ और ही थी. प्रकाश की आंखें अखबार पर मंडरा रही थीं, पर कान कमरे में चल रहे मांबेटी के संवाद पर ही लगे रहे.

‘‘बस, मां, अब और नहीं. अब यह न कहना कि झगड़ा तुम ने ही शुरू किया होगा या तुम्हें तो समझता करना ही नहीं आता. मैं अब उस घर में कभी कदम नहीं रखूंगी. मैं तो कभी सोच भी नहीं सकती कि तुषार के दिल में मेरे सिवा किसी और का भी खयाल रहता है. बताओ मां, मेरे प्यार में ऐसी कौन सी कमी थी जो तुषार… मैं ने अपनी आंखों से उस लड़की की बांहों में बांहें डाले तुषार को बाजार में घूमते और फिर सिनेमाघर में जाते देखा है,’’ सिसकती हुई रमिता बोली, ‘‘मां, मैं तुषार से बहुत प्यार करती हूं, मैं उस के बिना जी नहीं सकती.’’

बेटी की बातें सुन कर निशा खामोश रह गई. प्रकाश बेचैनी से उस के उत्तर का इंतजार कर रहे थे. क्या निशा के पास रमिता के प्रश्न का कोई जवाब है? ‘‘कैसे बाप हो तुम? बेटी रोरो कर बेहाल हुई जा रही है और तुम्हारे पास उस के लिए सहानुभूति के बोल भी नहीं हैं.’’

प्रकाश ने देखा निशा की भी आंखें नम थीं और गला भरा हुआ था. ‘‘बैठो,’’ प्रकाश ने उस का हाथ पकड़ कर अपने करीब बैठा लिया और बोले, ‘‘कुछ देर के लिए उसे अकेला छोड़ दो. अभी वह बहुत परेशान है. वक्त हर समस्या का समाधान ढूंढ़ लेता है,’’ इतना कह कर प्रकाश की नजरें फिर अखबार के शब्दजाल में खो गईं.

प्रकाश की इन्हीं दार्शनिक बातों से निशा विचलित हो उठती है. निशा ने प्रकाश की चश्मा चढ़ी गंभीर आंखों को घूरा और मन ही मन सोचने लगी कि कहां से लाते हैं ये इतना धैर्य. ‘‘ऐसे क्या देख रही हो?’’ बिना देखे ही न जाने कैसे आभास हो गया उन्हें निशा के घूरने का.

‘‘कुछ नहीं,’’ ठहर कर बोली वह, ‘‘जो दर्द मुझे इस कदर तड़पा रहा है उस से आप इतने अनजान कैसे हो? सबकुछ परिस्थितियों के हवाले कर के इतना निश्ंिचत कैसे रहा जा सकता है?’’

‘‘निशा, कभीकभी जीवन में कुछ ऐसा घटता है जिस पर इंसान का वश नहीं रहता, कुछ नहीं कर सकता वह,’’ प्रकाश निशा के मन का तनाव कम करना चाहते थे.

‘‘तो आप का मतलब यह है कि हम यों ही हाथ पर हाथ धरे बैठे रहें,’’ निशा बड़बड़ाती हुई कमरे की ओर बढ़ चली, ‘‘तुम पुरुष भी कैसे होते हो, गंभीर से गंभीर समस्या से भी मुंह मोड़ कर बैठ जाते हो.’’

उस कमरे में पहुंचते ही निशा के मन ने मन से ही प्रश्न किया, ‘तुम्हें सुनाई देती है किसी के सपने टूटने की आवाज? क्या होता है अरमानों का बिखरना, कैसे लुटती है किसी की दुनिया, क्या तुम जानती हो या नहीं जानती?’

निशा अपने भीतर की आवाज सुन कर सोचने लगी कि आज क्या होता जा रहा है उसे? 24 साल पहले की गई भूल का एहसास उसे आज क्यों हो उठा? तो क्या उस के किए की सजा उस की बच्ची को मिलेगी. अपनी गलतियों को याद कर उस की आंखों से अश्रुधारा बह निकली. मन को नियंत्रित करने के सारे प्रयास विफल सिद्ध हुए. वक्त ने उसे अतीत के दलदल में धकेल दिया और वह उस में हर पल धंसती चली गई थी.

याद आ रहा था उसे मां का तमतमाया हुआ चेहरा. उस दिन उस ने मां को अपने और प्रकाश के विषय में सबकुछ बताया था. मां के शब्द उस के कानों में ऐसे गूंज रहे थे मानो कल की बात हो. ‘निशा, तू जानती है न बेटा, कि प्रकाश शादीशुदा है.’

‘हां मां,’  बात काटते हुए निशा बोली, ‘पर यह कहां का इंसाफ है कि एक इंसान जिस रिश्ते को स्वीकार ही नहीं करता, उस का बोझ ढोता रहे और फिर उस की पत्नी रजनी, वह खुद नहीं रहना चाहती प्रकाश के साथ.’

‘बेटा, रिश्ते कोई पतंग की डोर तो नहीं कि एक हाथ से छूटी और दूसरे ने लूट ली. और वह क्यों ऐसा चाहेगी, कभी सोचा है तू ने? एक पत्नी अपने पति के साथ कब रहना नहीं चाहती, जानना चाहती है तू, इसलिए नहीं कि वह उस से ज्यादा किसी और को चाहता है, बल्कि इसलिए कि उस ने उस के विश्वास को तोड़ा है. एक मर्यादा का उल्लंघन किया है,’ थोड़ा ठहर कर वे बोलीं.

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