शुरूशुरू में तन्वी कुछ नाराजगी, कुछ डर के कारण नहीं गई. फिर धीरेधीरे उस ने भी जाना शुरू कर दिया. विजित के साथ छुट्टी के दिन या रविवार को वह भी मांपापा के पास चली जाती. ससुरजी का मूड तो कुछकुछ दिखाने के लिए सही हो गया पर सास का मूड उसे देख कर उखड़ा ही रहता. अभी उन्हें घर से अलग हुए 2 महीने भी नहीं हुए थे कि दिन वे सुबह औफिस जाने के लिए तैयार हो ही रहे थे कि विजित का मोबाइल बज उठा. पापा का फोन था. वे घबराए स्वर में बोल रहे थे. पापा बोल रहे थे कि मां का ऐक्सीडैंट हो गया है. जल्दी से घर आ जाओ.
‘‘हम अभी आते हैं पापा…’’ कह कर दोनों घबराए हुए दोनों जैसेतैसे घर की तरफ दौड़े… मां को उठा कर अस्पताल ले गए.
उन का ऐक्सरे हुआ तो पता चला पैर मुड़ने से पैर के बल गिरने से पैर में फ्रैक्चर हो गया है. प्लस्तर चढ़ गया. 45 दिन का प्लस्तर था. डाक्टर ने शुरू में तो पूर्ण आराम की सलाह दी थी. यहां तक कि बाथरूम तक भी व्हीलचेयर से ही ले जाना.
सबकुछ करा कर जब मां को ले कर विजित और तन्वी घर पहुंचे तो काफी देर हो गई थी.
तन्वी ने ही सब के लिए थकने के बावजूद जैसेतैसे खाना बनाया. उस रात दोनों वहीं रुक गए. रात को दोनों सोच में पड़ गए अब…?’’ पिता के बस का नहीं था मां की देखभाल करना,
‘‘मैं तो एकदम से छुट्टी भी नहीं ले सकता… कल से रिव्यू है… दिल्ली से बौस लोग आ रहे हैं… अलगे कुछ दिन मैं बहुत व्यस्त रहूंगा… इतने दिन से तैयारी कर रहा था…’’ विजित लाचारी और उल झन में बोला.
‘‘ऐसा करते हैं विजित…’’ विजित को सोच व उल झन में पड़े देख कर तन्वी बोली, ‘‘मेरी काफी छुट्टियां बाकी हैं… कल से मैं फिलहाल 15 दिन की छुट्टी ले लेती हूं… तब तक तुम्हारे रिव्यू खत्म हो जाएंगे. तब तुम छुट्टी लेने की कोशिश करना… उस के बाद दीदी को पूछ लो… यदि हफ्ते भर के लिए वे आ सकती हैं तो… फिर मैं दोबारा कोशिश करूंगी छुट्टी लेने की…’’
विजित ने चौंक कर तन्वी की तरफ देखा. उस के चेहरे पर मां की परेशानी से उपजे चिंता के भाव थे. वह मुग्ध भाव से तन्वी को देखता रह गया कि पता नहीं मां तन्वी को क्यों नहीं सम झ पातीं. मां तन्वी की पीढ़ी की बहुओं को भी अपने जमाने की सासों के चश्मे से देखती हैं और उन की तुलना अपने जमाने की बहुओं से करती हैं. लेकिन तब से अब तक जमाने में, समाज में, शिक्षा में, लड़कियों के पालनपोषण में बहुत परिवर्तन आ चुका है, इस बात पर बिलकुल विचार करना नहीं चाहतीं.
इस घोर परेशानी व उल झन के समय में तन्वी के सहयोग से उस का दिल भर आया था, मां ने क्या कुछ नहीं कहा तन्वी को… पर प्रत्यक्ष में बोला, ‘‘ठीक है, पर तुम्हें छुट्टी लेने में दिक्कत तो नहीं होगी…’’
‘‘नहीं, मिल जाएगी… जरूरत पर नहीं मिलेंगी तो किस काम की ये छुट्टियां…’’
रात में वह निश्चिंत हो कर सो पाया. तन्वी ने छुट्टियां ले कर पूर्ण तनमन से मां की देखभाल की. चूंकि यह शुरू का समय था, इसलिए ज्यादा कष्टपूर्ण व नाजुक था. देखभाल की ज्यादा जरूरत थी. तन्वी की निश्छल देखभाल से मां का मन बारबार पिघलने को होता. हालांकि वे उन विचारों की अधिक थीं जिन में वे बहू का प्यार कम उस का फर्ज ज्यादा सम झती थीं.
15 दिन बाद तन्वी औफिस चली गई और विजित ने छुट्टियां ले ली. विजित की छुट्टियां खत्म हुईं तो 1 हफ्ते के लिए दीदी मां की देखभाल के लिए आ गई. दीदी गई तो तन्वी ने कुछ दिन की छुट्टियां दोबारा ले लीं.
मां अब काफी ठीक हो गई थीं. सहारे से बाथरूम जाने लगी थीं. तन्वी पूरी देखभाल कर रही थी. धीरेधीरे मां पूरी तरह ठीक हो गईं.
विजित कृतज्ञ हो रहा था तन्वी के प्रति. उस ने इस परेशानी के समय मां के प्रति सभी पूर्वाग्रह भुला कर मन से उन की देखभाल व सेवा की थी और वह देख रहा था, कहीं न कहीं मां के मन को भी तन्वी की सेवा बांध गई थी.
तन्वी की जरूरतों पर कभी ध्यान न देने वाली मां उस से अब जबतब पूछ लेतीं कि उस ने खाना खा लिया या नहीं. चाय पी ली या फिर थोड़ी देर आराम कर ले तन्वी, थक गई होगी. विजित को खुशी होती यह देख कर.
कल से तन्वी की छुट्टियां भी खत्म हो रही थीं. कल से उसे औफिस जाना था. मां अब पूरी तरह से ठीक थीं. रात का खाना खिला कर खाना खाने के बाद वे अपने घर जाने के लिए तैयार हो गए. तन्वी कमरे में जा कर मां से मिल कर बाहर आ गई.
विजित भी मां से मिलने कमरे में चला गया. बोला, ‘‘अच्छा मां चलते हैं… अब आप बिलकुल ठीक हैं… अपना ध्यान रखना… हम आतेजाते रहेंगे… तन्वी की भी काफी छुट्टियां हो गई हैं, कल से वह भी औफिस जाएगी…’’
‘‘हां बेटा, बहुत सेवा की तन्वी ने मेरी…’’ मां का स्वर कुछकुछ पश्चात्ताप से भरा था, ‘‘तन्वी को सम झाने में शायद भूल कर दी मैं ने…’’
‘‘कोई बात नहीं मां…’’ वह संतुष्ट होता हुआ बोला, ‘‘आप सम झ गईं, हमारे लिए यही काफी है और मातापिता की सेवा व देखभाल करना तो हमारा फर्ज है… आप को जब भी जरूरत होगी, हम आप के पास होंगे मां…’’ वह भीगे स्वर में बोला. मां की आंखों में भी नमी तैर गई.
‘‘विजित, तन्वी अब वापस आ जाए बेटा… क्यों अलग जा रहे हो रहने… जहां दो बरतन होंगे तो थोड़ेबहुत तो बजेंगे ही… पर इस का मतलब यह तो नहीं कि मैं तुम लोगों को प्यार नहीं करती… बड़ों की बातों का इतना भी क्या बुरा मानना…’’ मां का स्वर कातर हो गया था.
‘‘ओह, मां…’’ वह मां को गले लगाता हुआ बोला, ‘‘आप इतनी भावुक क्यों हो रही हैं… आप के ही तो बच्चे हैं हम… दूर थोड़े ही न हो गए हैं आप से… जरा सी दूरी पर ही तो हैं…’’ वह धीरेधीरे मां की पीठ सहलाने लगा.
‘‘मां, एक घर में एक छत के नीचे रह रहे थे… पास थे आप के, पर आप के दिल से दूर थे… जब थोड़ा दूर हैं तो दिल के पास हैं… पास रह कर दूर रहने से, दूर रह कर पास रहना ज्यादा अच्छा है मां… मु झे उम्मीद है आप मेरी बात सम झ रही होंगी…’’ वह मां से अलग होता हुआ बोला.
‘‘साथ रह कर थोड़े दिन बाद फिर वही सब शुरू हो, वही दमघोंटू वातावरण, वही रिश्तों की खींचतान, बहुत मुश्किल होती है मां मु झे… तन्वी के लिए भी ये सब मुश्किल है नौकरी के साथ झेलना… मैं अब तन्वी के ऊपर अपनी कोई सोच लादना नहीं चाहता… अपने और तन्वी के रिश्ते को थोड़ा और समय दो… हो जाने दो इस रिश्ते को परिपक्व… बदल जाने दो अपने खुद के विचारों को आप… जैसे आप को तन्वी पर विश्वास हो गया, वैसे ही तन्वी का विश्वास भी हो जाने दो आप पर…
‘‘जब तक तन्वी मु झे स्वयं घर लौटने के लिए नहीं कहेगी, तब तक मैं यह कदम नहीं उठाऊंगा… और तब तक आप भी इंतजार करो. मैं जानता हूं तन्वी को, जिस दिन उसे अपने और आप के रिश्ते पर विश्वास हो जाएगा वह खुद ही वापस आ जाएगी…
‘‘मेरे लिए तो दोनों रिश्ते प्रिय हैं मां… मैं तो चाहूंगा ही कि आप और तन्वी के बीच प्यार और प्यारभरा रिश्ता विकसित हो…जैसे तन्वी ने आप का दिल जीता. आप का उस पर विश्वास लौटा… वैसे ही तन्वी का विश्वास भी लौट आएगा आप पर… मु झे पूरा भरोसा है… तभी साथ रहने का मजा है मां…’’ कह कर वह उठ खड़ा हुआ.
विजित पीछे मुड़ा तो पापा खड़े थे. आज पहली बार उसे पापा के चेहरे पर अपनी कही बात पर सहमति के भाव नजर आए. उन्होंने बेहद अपनेपन व बेहद भरोसे से उस का कंधा थपथपा दिया. बाहर आया तो तन्वी उस का इंतजार कर रही थी. वह जानता था, मां अभीअभी मुश्किल दौर से निकली हैं, इसलिए इतनी बदली हुई हैं. वर्षों की आदतें और विचार 4 दिन में नहीं बदलते.
जब फिर से साथ रहना शुरू करेंगे तो फिर से उन्हें अपनी वाणी और विचारों पर अकुंश रखना मुश्किल होगा. अभी और समय देना होगा उन्हें तन्वी को सम झाने का… और उन फालतू बातों से अधिक अपने बच्चों की जरूरत अपनी जिंदगी में महसूस करने का. तब तक तन्वी भी कुछ मां के नजदीक आ जाएगी तो फिर शायद उसे उन की बात इतनी बुरी न लगे, जितनी अभी लगती है.
जैसे मातापिता की देखभाल और सेवा करना उस का फर्ज है वैसे ही तन्वी भी उस से ही बंधी हुई इस घर में आई है, उस की जिंदगी में आई है. उसे एक सुंदर, स्वच्छ, अच्छी, संतुलित जिंदगी देना भी उस का कर्तव्य है. सोचता हुआ वह तन्वी के साथ घर से बाहर निकल गया.