Diwali Special: खुशियों की रोशनी फैलाएं दुखों का अंधेरा नहीं

दीवाली खुशियों का त्योहार है. दीवाली पर सब एकदूसरे को गिफ्ट और मिठाइयां दे कर खुशियां मनाते हैं. लेकिन आधुनिक परिवेश में धन की अधिकता के चलते लोगों ने खुशियों के इस त्योहार में कैक्टस बोने शुरू कर दिए हैं. अंधकार में दीपक जला कर रोशनी की ओर बढ़ने के बजाय कुछ स्त्रीपुरुष जुए और शराब के नशे के अंधेरे रास्ते पर चलते हुए दीवाली पर अपने खुशियों भरे जीवन में कटुता घोल रहे हैं. दीवाली पर जुआ खेलने की परंपरा किसी अंधविश्वास से शुरू हुई थी. आधुनिक परिवेश में धन की अधिकता, भौतिक साधनों की सुविधा के कारण जुआ घरघर में खेला जाने लगा है. दीवाली पर जुए की अधिकता देखी जाती है. अब फाइवस्टार होटलों और बड़ेबड़े फार्महाउसों में भी जुए के आयोजन होने लगे हैं. कार्ड पार्टियों के नाम पर हजारोंलाखों नहीं, करोड़ों रुपयों का जुआ खेला जाने लगा है. दीवाली पर शराब में डूब कर जुआ खेला जाता है.

पहले जुए और शराब का चलन पुरुषों तक ही सीमित था, लेकिन अब स्त्रियां भी इस में शामिल होने लगी हैं. यही नहीं शराब की पार्टियों में भी स्त्रियां बढ़चढ़ कर भाग ले रही हैं. दीवाली पर जुए में जीतने वाला व्यक्ति वर्ष भर जीतता रहता है. इस अंधविश्वास के चलते सभी वर्ग के लोग जुआ खेलते हैं. स्त्रियां भी जुआ खेलने में किसी से पीछे नहीं रहती हैं. धनी वर्ग की ही नहीं मध्यवर्ग की स्त्रियां भी जुए में बढ़चढ़ कर भाग लेती हैं. धनी वर्ग के स्त्रीपुरुषों में तो जुआ स्टेटस सिंबल बन चुका है. दीवाली की रात को ही नहीं, दीवाली के कुछ दिन आगेपीछे भी खूब जुआ खेला जाता है. कैसिनो, फार्महाउसों और बड़ेबड़े होटलों में हौल बुक करा कर जुए के आयोजन किए जाते हैं. इन आयोजनों में बड़ेबड़े दांव लगाए जाते हैं. क्व20 से 30 हजार हार जाने वाले की ओर कोई देखता भी नहीं. क्व5-10 लाख हारने वाले का ही नाम सब की जबान पर होता है.

लाखोंकरोड़ों दांव पर

कैसिनो में 10-20 लाख के दांव से 2-3 करोड़ दांव पर लगाने वाले बिजनैसमैन भी अब आगे आने लगे हैं. स्त्रियां बड़ीबड़ी रकमें हारने पर दुख के बजाय खुश होती देखी जाती हैं. रुपए हारना भी स्टेटस सिंबल बनता है. दीवाली पर क्व2-3 लाख हारने वाली महिला किट्टी पार्टी में बड़े गर्व से जुए में हारने की बात बताती है. तब सभी स्त्रियां उस की प्रशंसा करती हैं. उसे आदरणीय नजरों से देखा जाता है. जुए की परंपरा अब किट्टी पार्टियों में भी देखी जा सकती है. वैसे तो महिलाओं को किट्टी पार्टियों में कभी भी जुआ खेलते देखा जा सकता है, लेकिन दीवाली के आसपास बहुत जोरशोर से खेला जाता है. दीवाली के आसपास किट्टी पार्टी का आयोजन जिस कोठी या फ्लैट में किया जाता है उस पार्टी का आयोजन करने वाली महिला उस में ताश खेलने का कार्यक्रम भी रखती है. ताश के माध्यम से जुआ खेला जाता है. पार्टी में स्त्रियां अलगअलग समूह बना कर जुआ खेलती हैं. दीवाली पर जुए के आयोजन अब होटलों से अधिक फार्महाउसों में होने लगे हैं, क्योंकि दीवाली के अवसर पर बड़ेबड़े होटलों में जगह नहीं मिलती. फिर अधिकांश स्त्रीपुरुष होटलों में नहीं जा पाते. ऐसे लोगों ने फार्म हाउसों में कार्ड पार्टियों के नाम पर जुए और शराब की पार्टियां आयोजित करनी शुरू कर दी हैं. आयोजक अपने परिचितों को आमंत्रित करते हैं. यही नहीं, फेसबुक पर सूचना दे कर दूसरे लोगों को भी आमंत्रित करते हैं. दूसरे लोग फोन पर सीट बुक करा कर पार्टी में शामिल होते हैं. दीवाली पर जुआ खेलने और दूसरी मौजमस्ती करने के लिए अब कार्ड पार्टियों का आयोजन भी होने लगा है. कार्ड पार्टियां फार्महाउसों में आयोजित की जाती हैं. फार्महाउसों के मालिक कार्ड पार्टियों का आयोजन करते हैं लेकिन आजकल दूसरे लोग भी फार्म हाउस किराए पर ले कर कार्ड पार्टियां आयोजित करते हैं.

शराब के छलकते जाम

कार्ड पार्टियों में जुआ खुलेआम चलता है और शराब के जाम भी खूब छलकते हैं. इन फार्महाउसों में पुलिस का हस्तक्षेप भी बहुत कम होता है, क्योंकि फार्महाउस नगर के बड़ेबड़े बिजनैसमैनों के होते हैं और उन लोगों को बड़ेबड़े नेताओं का संरक्षण मिला होता है. नेताओं के संरक्षण मिले फार्महाउसों में जुए के साथसाथ शराब और शबाब की रंगीन पार्टियां भी खूब मजे से चलती हैं. ताश के पत्तों से जुआ खेला जाता है. ताश के पत्तों का जुआ स्त्रीपुरुष मिल कर खेलते हैं. ताश के पत्तों से जोड़े मिलाए जाते हैं. इस तरह नएनए जोड़े बना कर स्त्रीपुरुष खूब मौजमस्ती करते हैं. जुए के तरीके भी अलगअलग फार्महाउसों और होटलों में परिवर्तित होते रहते हैं. पार्टियों में अधिकतर स्त्रीपुरुष भाग लेते हैं. ऐसी पार्टियों में भाग लेने वाली नवयुवतियां घर या औफिस में किसी को नहीं बतातीं, लेकिन चोरीछिपे अधिकांश नवयुवतियां कार्ड पार्टियों में शामिल होती हैं. एक नवयुवती ने कार्ड पार्टी में जाने की बात बताई. वह पहले बौयफ्रैंड के साथ ‘लिव इन रिलेशन’ में रहती थी. तब अपने बौयफ्रैंड के साथ कार्ड पार्टियों में खूब जाती थी. पिछले वर्ष वह दीवाली पर जिस कार्ड पार्टी में गई थी उस में टैडीबियर का खेल खेला गया.

उस पार्टी में स्त्रीपुरुष पतिपत्नी के साथ शामिल हुए थे. कुछ लोग अपनी गर्लफ्रैंड के साथ आए थे. पार्टी में एक बड़ी टेबल पर एक टैडीबियर रखा गया था. दूर खड़े युवकयुवतियां एक गोल छल्ले (रिंग) को उछाल कर उस टैडीबियर पर फेंकते थे. पहले एक नवयुवती ने छल्ला फेंका. छल्ला टैडीबियर पर गिरा. अब युवक की बारी थी. एक नवयुवक ने छल्ला फेका. टैडीबियर बच गया. दूसरे नवयुवक ने छल्ला फेंका. वह भी टैडीबियर से दूर जा गिरा. कई नवयुवकों ने छल्ले फेंके. आखिर एक नवयुवक का छल्ला टैडीबियर पर गिरा. सभी उपस्थित स्त्रीपुरुषों ने जोरजोर से तालियां बजाईं और वह नवयुवक पहले छल्ला फेंकने वाली नवयुवती को बांहों में भर कर पास के कैबिन में ले गया. उस के बाद फिर टैडीबियर पर छल्ला फेंकने के लिए पहले एक नवयुवती आगे आई. इस तरह छल्ला फेंकने का कार्यक्रम देर तक चलता रहा.

मौजमस्ती का जरीया

दीवाली पर जुआ खेलने वालों के किस्से सुन कर महाभारत के युधिष्ठिर के जुआ खेलने और राजपाट के साथ द्रौपदी के हार जाने की बात भी छोटी लगने लगती है. आधुनिक परिवेश में तरहतरह से जुआ खेला जाता है. जुए में पुरुष अपनी पत्नी को हारने पर बहुत खुश होते हैं. पुरुषों का जुए में पत्नी हार जाने पर किसी दूसरी स्त्री के साथ मौजमस्ती करने का मौका जो मिलता है. जुए के कुकृत्यों के साथ दूसरे अनेक कुकृत्य भी शामिल होते जा रहे हैं. दीवाली अंधेरे में दीप जला कर खुशियां मनाने का त्योहार है. लेकिन लोग जुए और शराब में डूब कर अपने जीवन में अंधेरा कर लेते हैं. जुआ खेलने वाला व्यक्ति जुए में हारे धन की भरपाई के लिए किसी से उधार ले कर फिर जुआ खेलता है. लेकिन जब उधार के रुपए भी जुए में हार जाता है तब परिवार पर संकट के बादल छा जाते हैं. जुए में अधिक धन हार जाने वाले जब कर्ज से मुक्त नहीं हो पाते हैं तो वे डिप्रैशन का शिकार हो जाते हैं या फिर आत्महत्या करने के लिए मजबूर हो जाते हैं.

खुशियों का मोल समझे

जुए और शराब की मस्ती में डूबने वाले होश आने पर खुद को खाली हाथ ही पाते हैं. ऐसे में उन के पास पछताने के अलावा कोई और रास्ता नहीं होता. आजकल की व्यस्त जिंदगी में अपनों के साथ बिताने के लम्हें हैं ही कितने? इस दीवाली परिवार से नहीं, खुद से ये वादा करें कि जुए या नशे में पैसा और समय बरबाद करने की बजाए परिवार के साथ खुशियों के हलकेफुलके पल बिताएंगे. फिर देखिए कि किस तरह ये पल हमेशा के लिए यादगार बन जाएंगे.     

पति करियर को लेकर परेशान हैं, मैं क्या करुं?

सवाल-

मैं 26 वर्षीय विवाहिता हूं. मेरे मायके में सब बिजनैसमैन हैं पर मेरे पति नौकरीपेशा हैं. मेरी लव मैरिज है. मैं चाहती हूं कि पति भी मेरे भाइयों की तरह कोई बिजनैस करें. भाई आर्थिक मदद सहित हर तरह का सहयोग देने को तैयार हैं पर पति नहीं मान रहे. कहते हैं कि वे अपनी नौकरी से खुश हैं. शादी से पहले मैं ने सोचा था कि उन्हें मना लूंगी, क्योंकि तब वे मेरी हर बात मानते थे. वैसे शादी के बाद भी बदले नहीं हैं. सिर्फ कैरियर को ले कर अडिग हैं. बताएं, मैं क्या करूं?

जवाब-

आप ने प्रेम विवाह किया है और मानती हैं कि पति अब भी आप की परवाह करते हैं तो आप को भी उन की इच्छाअनिच्छा का खयाल रखना चाहिए. कैरियर को ले कर उन पर दबाव नहीं डालना चाहिए.

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अगर आपने हाल में ही 10 वीं या 12वीं पास की है या पहले से ही ग्रेजुएट हैं.लेकिन नौकरी न मिलने से परेशान हैं तो यह लेख आपके लिए ही है.यूं तो कहा जा सकता है कि इस भीषण बेरोजगारी के दौर में नौकरी मिलने की गारंटी किसी भी डिग्री या डिप्लोमा में नहीं है और यह सच भी है है.लेकिन इस बड़े सच के परे भी एक सच है.वह यह कि अगर आपने अपरेंटिस की हुई है तो समझिये नौकरी की गारंटी है.दूसरे शब्दों में अगर गारंटीड नौकरी चाहिए तो 10 वीं के बाद कभी भी किसी अपरेंटिस प्रोग्राम का हिस्सा बन जाइए नौकरी हर हाल में मिलेगी.

बेरोजगारी के इस भीषण दौर में भी अपरेंटिस किये लोगों को 100 फीसदी रोजगार मिल रहा है. 24 जून 2021 तक रेलवे में करीब 4000 अपरेंटिस की भर्ती होने जा रही है.एक रेलवे ही नहीं मई और जून के महीने में ऐसी दर्जनों सरकारी, गैर सरकारी, सार्वजनिक उपक्रम और मल्टीनेशनल कंपनियां तक अपरेंटिसशिप की रिक्तियां निकालती हैं. अपरेंटिसशिप का मतलब होता है एक किस्म का ट्रेनिंग प्रोग्राम.इस कार्यक्रम के तहत बिल्कुल नये लोगों को किसी क्षेत्र विशेष के काम की ट्रेनिंग दी जाती है.

लेकिन यह ट्रेनिंग विद्यार्थियों के सरीखे नहीं मिलती. यह ट्रेनिंग दरअसल ट्रेंड लोगों के साथ पूरे समय नियमित कर्मचारियों की तरह किये जाने वाले काम के रूप में मिलती है.यहां इन ट्रेनीज से पूरे समय एक नियमित कामगार के तौरपर काम कराया जाता है. जिस संस्थान में अपरेंटिसशिप होती है वहां इन ट्रेनीज पर वही नियम लागू होते हैं,जो नियमित कामगारों पर लागू होते हैं सिवाय वेतनमान के.अपरेंटिस संस्थान के नियमित कर्मचारियों की तरह ही भीकाम में आते हैं और उन्हीं की तरह उनकी भी छुट्टी होती है.

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Diwali Special: तो त्योहार बन जाएगा यादगार

आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में त्योहार ही हमें हंसीखुशी से सराबोर करते हैं पर आजकल त्योहारों पर महंगी चीजें खरीदने, महंगी चीजों से घर की सजावट करने और महंगे गिफ्टों के आदानप्रदान को ही अपनी शान समझा जाने लगा है. इन्हीं बेजान वस्तुओं में लोग अपनी खुशी ढूंढ़ने लगे हैं जबकि यह खुशी क्षणिक होती है. ऐसे में अपने परिवार के साथ त्योहार को कैसे मनाया जाए ताकि वह आप और आप के परिवार के लिए यादगार बन जाए और उस की अनुभूति हमेशा आप को गुदगुदाती रहे. आइए हम बताते हैं:

प्राथमिकताओं पर अमल

इस त्योहार पर आप यह जानने की कोशिश करें कि अब तक आप अपनी प्राथमिकताओं पर अमल करने में सफल रहे या नहीं. अगर नहीं तो इस त्योहार पर सब कुछ छोड़ कर अपने परिवार के साथ रहें. इस अवसर पर परिवार को ज्यादा से ज्यादा समय दें. परिवार की इस भावना को समझें कि वह बजाय किसी महंगी वस्तु के केवल और केवल आप का साथ चाहता है.

त्योहारों पर प्रियजनों के साथ समय बिताना बहुत महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि अपने परिवार से प्यारा और कुछ नहीं होता है. जिन्हें हम दिल से प्यार करते हैं उन के साथ कनैक्ट होने का यह सब से बैस्ट समय होता है. जब हम सारे गिलेशिकवे भुला कर एकसाथ त्योहार मनाते हैं तो उस का आनंद ही कुछ और होता है.

पुरानी यादों को दें नया रंग

पेरैंट्स अपने बच्चों की बचपन की तसवीरों का अलबम बना कर इस त्योहार पर उन्हें भेंट करें. इस से वे अपनी पुरानी यादों से जुड़ेंगे. इस से उन्हें जो खुशी होगी वह आप को और खुशी प्रदान करेगी.

इसी तरह बच्चे भी अपने पेरैंट्स की पुरानी तसवीरों को खोजें. फिर उन्हें फ्रेम करवा कर उन्हें गिफ्ट करें. इस त्योहार पर पेरैंट्स के लिए इस से अच्छा और कोई उपहार नहीं. ऐसे उपहार ही एकदूसरे को भावनात्मक रूप से जोड़ते हैं.

यादों को संजोएं कुछ ऐसे

अपने बच्चों के पहले खिलौने से ले कर उन के रिपोर्ट कार्ड व कपड़ों तक को संजोएं. फिर उन्हें रैप करा कर बच्चों को गिफ्ट करें. माना कि गुजरा समय भले लौट कर न आता हो. पर आप इन छोटीछोटी चीजों से अपने बच्चों को फ्लैशबैक में पहुंचा कर सुखद अनुभूति दे सकते हैं कि वे बचपन में इन खिलौने से खेलते थे. ये कपड़े पहनते थे, उन के ऐसे मार्क्स आते थे.

बच्चों को उन के पूर्वजों से रूबरू करवाएं

आजकल एकल परिवारों के चलते बच्चे अपने पूर्वजों से अनजान रहते हैं. ऐसे में आप का फर्ज बनता है कि आप इस त्योहार पर उन्हें अपने पूर्वजों से रूबरू होने का मौका दें खास कर बेटा, बहू, दामाद, बेटी, पोतीपोते को कि वे कैसे दिखते थे, उन में क्या खासीयत थी. इस के लिए आप पुरानी तसवीरों को अपडेट कर के उन्हें दें और उन्हें उन की बातें बताएं. अगर कोई पूर्वज अभी जीवित है, तो उन से इन्हें मिलाएं. इस से बच्चे तो खुश होंगे ही. उन से मिल कर बुजुर्गों को भी बहुत खुशी होगी.

ऐसा करने से बच्चे भी परिवार के अन्य लोगों से मिल कर उन्हें जान सकेंगे कि हमारे परिवार में कौनकौन है.

ईट टुगैदर

अपने परिवार के साथ लंच या डिनर का प्रोग्राम ऐसी जगह बनाएं, जो परिवार के सभी सदस्यों को पसंद हो. ऐसे माहौल में हंसीखुशी के अलावा और कोई बात न हो. एकदूसरे की बातों को सुनें, समझें, रुचियों के बारे में जानें. ऐसा करने से अपनेपन की भावना तो जगेगी ही, साथ ही इन सब बातों के बीच खाने का मजा भी बढ़ जाएगा.

लौंगड्राइव पर जाएं

इस त्योहार पर अपनी खुशियों को आप अपने परिवार को लौंगड्राइव पर ले जा कर पूरी कर सकते हैं. इस से आप का भरपूर मनोरंजन होगा. पूरे परिवार का एकसाथ सफर करना यादगार ट्रिप बन जाएगा, क्योंकि ऐसे मौके कम ही आते हैं जब पूरी फैमिली एकसाथ कहीं जाए.

इस तरह यह त्योहार आप और आप के परिवार के लिए यादगार बन जाएगा और आप इन सुनहरी यादों में सालोंसाल खोए रहेंगे.

ननद के कारण शादीशुदा लाइफ में प्राइवेसी नहीं मिल रही, मैं क्या करुं?

सवाल-

मैं 19 वर्षीय पटना की रहने वाली विवाहिता हूं. विवाह हुए 6 महीने हुए हैं. पति दिल्ली में कार्यरत हैं. इसी महीने पति के साथ दिल्ली शिफ्ट हुई हूं तो ससुराल वालों ने मेरी अविवाहित ननद को उस के लिए लड़का देखने की जिम्मेदारी के साथ हमारे साथ भेज दिया. उस के साथ से अनजान शहर में मुझे पति की गैरमौजूदगी में सहारा तो मिलता है पर दिक्कत भी है. सिनेमा जाएं या कहीं और हर जगह उसे साथ ले कर जाना पड़ता है. इस से हमें प्राइवेसी नहीं मिलती. बताएं क्या करें?

जवाब-

ननद के रूप में आप को एक सहेली मिल गई है. इस से नए माहौल में आप को ऐडजस्ट करने में मदद मिली है वरना पति के औफिस जाने के बाद दिनभर आप बोर हो जातीं. जहां तक प्राइवेसी की बात है, तो पति का साथ तो वैसे भी आप को रात को ही मिलता. इस वक्त भी शयनकक्ष में आप की प्राइवेसी में खलल डालने वाला कोई नहीं है. इसलिए जितना भी समय पति के साथ आप को मिलता है उसे भरपूर जीएं. वह आप का क्वालिटी टाइम होना चाहिए. फिर ननद विवाह योग्य है. आज नहीं तो कल उस का विवाह हो जाएगा. तब आप अपनी प्राइवेसी को जी भर कर ऐंजौय करेंगी.

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प्रथा नहीं जानती थी कि यों जरा सी बात का बतंगड़ बन जाएगा. हालांकि अपने क्षणिक आवेश का उसे भी बहुत दुख है, लेकिन अब तो बात उस के हाथ से जा चुकी है. वैसे भी विवाहित ननदों के तेवर सास से कम नहीं होते. फिर रजनी तो इस घर की लाडली छोटी बेटी थी. सब के स्नेह की इकलौती अधिकारी… उस के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे परिवार के लिए ये जरा सी बात बहुत बड़ी बात थी.

‘हां, जरा सी बात ही तो थी… क्या हुआ जो आवेश में रजनी को एक थप्पड़ लग गया. उसे इतना तूल देने की क्या जरूरत थी. वैसे भी मैं ने किसी द्ववेष से तो उसे थप्पड़ नहीं मारा था. मैं तो रजनी को अपनी छोटी बहन मानती हूं. रजनी की जगह मेरी अपनी बहन होती तो क्या इसे पी नहीं जाती. लेकिन रजनी लाख बहन जैसी होगी, बहन तो नहीं है न. इसीलिए तांडव मचा रखा है,’ प्रथा जितना सोचती उतना ही उल झती जाती. मामले को सुल झाने का कोई सिरा उस के हाथ नहीं आ रहा था.

दूसरा कोई मसला होता तो प्रथा पति भावेश को अपनी बगल में खड़ा पाती, लेकिन यहां तो मामला उस की अपनी छोटी बहन का है, जिसे रजनी ने अपने स्वाभिमान से जोड़ लिया है. अब तो भावेश भी उस से नाराज है. किसकिस को मनाए… किसकिस को सफाई दे… प्रथा सम झ नहीं पा रही थी.

हालांकि ननद पर हाथ उठते ही प्रथा को अपनी गलती का एहसास हो गया था. लेकिन वह जली हुई साड़ी बारबार उसे अपनी गलती नहीं मानने के लिए उकसा रही थी. दरअसल, प्रथा को अपनी सहेली की शादी की सालगिरह पार्टी में जाना था. भावेश पहले ही तैयार हो कर उसे देर करने का ताना मार रहा था ऊपर से जिस साड़ी को वह पहनने की सोच रही थी वह आयरन नहीं की हुई थी.

पूरी कहानी पढ़ने के लिए- जरा सी बात: क्यों ननद से नाराज थी प्रथा

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ससुराल या मायका, बेटी का घर आखिर कहां

नीलम के पति की अचानक मृत्यु से वह अपने दोनों छोटे बच्चों के साथ अकेली रह गई. बेटे की मृत्यु के बाद ससुराल वाले आ कर कुछ दिन ठीकठाक रहे, उस के बाद सास और नीलम के साथ रोजरोज किसी न किसी बात को ले कर कहासुनी होने लगी. इस में उस की छोटी ननद भी मां के साथ मिल कर भलाबुरा कहने लगी. इस से बचने के लिए नीलम ने अपने पति की कंपनी में नौकरी की तलाश की और उसे नौकरी मिल गई, पर सास के ताने कम नहीं हुए, उन का कहना था कि भले ही तुम नौकरी करती हो, लेकिन घर का काम नहीं करती. मेरे लिए बच्चों की देखभाल करना और खाना बनाना संभव नहीं.

तब नीलम ने खाना बनाने वाली और घर के सारे कामों के लिए एक नौकरानी रख दी पर इस से भी सास संतुष्ट नहीं हुई क्योंकि वह अच्छा खाना नहीं बनाती. समस्या तो उस दिन हुई जब सास और ननद ने नीलम को अपने मायके जाने के लिए कह दिया. नीलम का कहना था कि मां के घर से उस का औफिस काफी दूर है, ऐसे में वहां जा कर रहना संभव नहीं और यह घर भी तो उस का है.

इस पर सास ने तुरंत कहा कि नहीं इस में तुम्हारा नाम नहीं है और तुम्हारे ससुर ने पैसा दिया था, इसलिए बेटा और पिता ने इसे तुम्हारी शादी से पहले खरीदा है, इसलिए तुम्हारा नाम नहीं है. इस पर नीलम ने कहा कि मैं तो उन की पत्नी हूं और कानूनन मेरा हक है.

इस पर सास ने कहा कि ठीक है, कानून की सहायता से लड़ लो क्योंकि पहले तुम ने ससुर की डैथ के बाद मुझे और मेरी बेटी को अपने पास नहीं रखा, मैं विवश हो कर अलग रही, लेकिन अब तुम भी उसी रास्ते पर हो, जहां पर मैं आज से कुछ साल पहले से हूं. तब नीलम को लगने लगा कि वह इस घर में नहीं रह सकती. शांति के लिए उसे घर छोड़ना पड़ेगा.

नीलम ने पिता को फोन कर अपनी बात बताई और बच्चों के साथ रहने चली गई. वहां भी कुछ दिनों तक ठीक था, लेकिन भाई और भाभी के आते ही कभी खाना तो कभी बच्चों को ले कर कहासुनी होने लगी. एक दिन नीलम ने अपनी सहेली को सारी बातें बताईं, तो सहेली ने उसे अलग किराए का घर ले कर रहने की सलाह दी, लेकिन बच्चों को छोड़ कर वह औफिस कैसे जाएगी? उस के पूछने पर सहेली ने उसे डे केयर में बच्चे को रखने की सलाह दी.

नीलम ने वैसा ही किया और एक नौकरानी भी कुछ समय के लिए रख ली. ऐसे में नीलम जितना कमाती थी, उतना उस के लिए काफी नहीं था. अत: रात में कुछ डाटा जैनरेटिंग का काम भी शुरू कर दिया क्योंकि वह अब कानून के पचड़े में नहीं पड़ना चाहती और बच्चों की पढ़ाई पर ध्यान देने लगी.

इस से यह पता चलता है कि अगर लड़की की शादी हो जाने पर किसी एक को किसी कारण से सूटकेस ले कर बाहर निकलना पड़े तो वह व्यक्ति खाली हाथ ही बाहर निकलता है, उस के रहने की जगह न तो मायके में होती है और न ही ससुराल में. हालांकि ऐसा अधिकतर महिलाओं के साथ होता है, लेकिन कई पुरुषों को भी ऐसी नौबत आती है, अगर घर पत्नी के नाम हो क्योंकि आजकल अधिकतर युवा खुद के नाम से घर न खरीद कर पत्नी के नाम से खरीदते हैं. इस की वजह सरकारी स्टैंप ड्यूटी का कम लगना, टैक्स में कमी, लोन की ब्याज दर में कमी आदि कई सुविधाएं हैं.

अगर पतिपत्नी दोनों काम करते हों तो दोनों को अलगअलग टैक्स में भी राहत मिलती है. इस के अलावा कई शहरों में स्टैंप ड्यूटी में कमी होती है, मसलन दिल्ली, उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा आदि कई शहरों में महिला के नाम प्रौपर्टी खरीदने पर 1 से 2% की छूट मिलती है, लेकिन दोनों के बीच अधिक झगड़े होने पर इसे खुद के नाम से करवाना पति के लिए समस्या हो जाती है.

समझें पार्टनर की नियत

नीलम के अलावा आशा भी ऐसी ही समस्या की शिकार हुई. 10 साल परिचय के बाद उस ने अपने बौयफ्रैंड के साथ शादी की. आशा दूसरे शहर से मुंबई आ कर पेइंग गैस्ट में रहती थी क्योंकि उस की पोस्टिंग मुंबई में थी.

एक दिन आशा अपने पुराने साथी विमल से मौल में मिली क्योंकि वह मुंबई का लड़का था. पहले तो वह हैरान हुई, पर बाद में बातचीत गहरी होने लगी, दोस्ती प्यार में बदल गई तो दोनों ने शादी की और मुंबई में एक छोटा फ्लैट खरीद कर रहने लगी.

कुछ दिनों तक सब ठीक चला, लेकिन आशा की बेटी जब 6 महीने की हुई, तो दोनों के बीच काम और बेटी की देखभाल को ले कर झगड़ा होने लगा. रोजरोज की चिकचिक से परेशान हो कर आशा अपने 6 महीने की बेटी को ले कर अलग हो गई. वह मायके न जा कर आसपास एक कमरा किराए पर ले कर रहने लगी.

सुबह भागदौड़ कर वह बेटी का टिफिन बना कर बेटी को मां के पास छोड़ती और शाम को वापस आते वक्त बेटी को घर ले आती थी. आशा ने इस में सब से पहले लोन ले कर एक छोटा फ्लैट खरीदा और वहां रहने लगी, इस के बाद उस ने कभी मुड़ कर नहीं देखा. आज उस की बेटी 20 साल की हो चुकी है.

बढ़ी है महिलाओं की आत्मनिर्भरता

एक सर्वे में यह भी पाया गया है कि महिलाएं आज खुद के नाम से प्रौपर्टी खरीदने में काफी उत्सुक रहती हैं क्योंकि वे वित्तीय रूप से आत्मनिर्भर होती हैं. इस में पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं की घर खरीदारी में वनफिफ्थ की बढ़ोतरी हुई है. रियल स्टेट अब केवल पुरुषप्रधान ही नहीं रहा, बल्कि 30% महिलाएं शहरों में घर खरीद रही हैं.

रियल स्टेट के सीनियर कर्मचारी श्वेता बताती है कि आजकल महिलाएं एक अच्छी नौकरी या व्यवसाय में होती हैं और वे कार से पहले अपने नाम का घर खरीदना चाहती हैं. यह ऐज ग्रुप 25 से 34 की होता है. इस दिशा में घर की खरीदारी अधिक बढ़ने की वजह महिलाओं का अपने लिए एक सुरक्षित जीवन निश्चित करना है.

मुंबई में बिल्डर्स भी अकेले रहने वाली महिलाओं के लिए नईनई स्कीम्स निकालते हैं, जहां सुरक्षा और आराम को प्राथमिकता दी जाती है.

परिवारों का शिक्षित होना जरूरी

इस बारे में मुंबई की एडवोकेट बिंदु दूबे बताती हैं कि शादी से पहले एकदूसरे का परिवार कितना शिक्षित है यह देखना जरूरी है क्योंकि शिक्षित परिवार की सोच बदलने की संभावना रहती है. इस के अलावा दोनों परिवारों के बीच में यह समझता होना चाहिए कि वे दहेज लेने और देने पर विश्वास नहीं करते क्योंकि कई बार लड़के भी मातापिता के आगे बोल नहीं पाते. जबकि लड़कों को मजबूती से कुछ गलत होने पर पेरैंट्स का विरोध करना जरूरी होता है.

इस से लड़की की शादी के समय कुछ ऐसी स्थिति हो जाती है, जिस में वह पिता को असम्मानित, विवश होते हुए देखती है. वह तब चुप रह कर सहती है, लेकिन उस के मन में ये बातें बैठ जाती हैं. इस कटुता को वह शादी के बाद कैसे बाहर निकाले. इस से परिवार में कहासुनी होने लगती है.

इसलिए दहेज न देने और न ही लेने को शादी से बहुत पहले ही सुनिश्चित कर लें हालांकि कई बार सबकुछ देखने के बाद भी गलत हो सकता है, लेकिन जहां तक हो सके दोनों परिवार में पारदर्शिता होनी चाहिए. लड़के के अलावा परिवार के शिक्षित होने पर परिवार की सोच और आदतें अच्छी होने का अंदेशा रहता है.

एकदूसरे से झठ न बोलें

ऐडवोकेट बिंदु आगे कहती हैं कि मेरे पास ऐसे कई केसेज डोमैस्टिक वायलैंस के आते हैं, जिन का हल अभी तक नहीं हो पाया. पहले से एकदूसरे के बारे में जानकारी होने पर भी बाद में खटपट चलती रहती है, दोनों परिवारों के बीच आरोपप्रत्यारोप का दौर चलता रहता है. परिवारों का आपसी मेलमिलाप से बेटी और बेटे के पेरैंट्स को एकदूसरे के रहनसहन का पता चलता है. शादी से पहले लड़के को अपने घर की स्थिति को बिना छिपाए लड़की को बता देना उचित होता है. दोनों में एकदूसरे के साथ तालमेल बैठाने में समय लगता है. इस में सब से जरूरी शिक्षा है, जिस के द्वारा आपसी तालमेल बैठाना संभव होता है.

बेटी की शादी कर देने से पहले कुछ और बातों पर ध्यान देने की जरूरत है:

– कम पढ़ेलिखे, शादी न करने वाली और अनपढ़ बेटियों के पेरैंट्स को बेटी के नाम कुछ प्रौपर्टी का हिस्सा लिख देना आवश्यक है क्योंकि आजकल की बहुत सारी पढ़ीलिखी लड़कियां शादी नहीं करतीं. कानूनन बेटी को पेरैंट्स की प्रौपर्टी का अंश मिलता है, लेकिन आज के अधिकतर पेरैंट्स बेटे को अपनी सारी प्रौपर्टी दे देते हैं. उन का मानना है कि बेटी की शादी करवाने में खर्च करना पड़ता है, इसलिए उन की शिक्षा पूरी नहीं करवाते, उन की इच्छा के अनुरूप काम करने नहीं देते, जबकि बेटे को हायर ऐजुकेशन देने के लिए पैसे खर्च करने पड़ते हैं. इस सोच की वजह से बेटी के ससुराल वालों को लगता है कि उन के घर से निकलने के बाद वह लड़की दरदर भटकेगी. इसलिए पेरैंट्स को चाहिए कि लड़कियों को कुछ प्रौपर्टी उन के नाम कर देनी चाहिए.

– पहली अनबन दहेज से ही शुरू होती है, जिस का अंत अभी तक नहीं हो पाया. यह एक गलत कुचक्र है. आज अशिक्षित बेटी की शादी नहीं होती, भले ही घर में बैठना पड़े पर ससुराल पक्ष को लड़की पढ़ीलिखी होनी चाहिए.

– लड़की अधिक लालची नहीं होनी चाहिए. पेरैंट्स के द्वारा दी गई संपत्ति को कई बार पति के कहने पर बेचने के लिए राजी हो जाती है. यह एक आश्चर्य की बात है कि आज भी अधिकतर लड़कियों को अपने कानूनी हक का पता नहीं होता. परिवार और समाज की सोच में बदलाव अभी ट्रांजिशन पीरियड में है.

उठाती है गलत फायदे

बिंदु का कहना है कि इस में नुकसान भी है, कुछ लड़कियां जिन्हें कानून की जानकारी है, वे चुपचाप निकल पाती हैं, कुछ जान कर भी घर से नहीं जातीं क्योंकि वे रिश्ते और बदनाम से डरती हैं. जबकि कुछ लड़कियां इस कानून का गलत फायदा उठाती हैं, मेरे पास कई पति ऐसे भी आए, जो पत्नियां कानून का गलत इस्तेमाल कर पति के घर पर कब्जा कर लेती है और पति बाहर रहने पर मजबूर होता है. सासससुर भी वहां नहीं रह सकते.

असल में यहां सही बैलेंस का होना जरूरी है, जिस में बच्चों की सही परवरिश, उन के साथ खुल कर बातचीत करना आदि. बेटियों को पता होना चाहिए कि पति उन का बैंक बैलेंस नहीं, उन्हें भी कमाना है. केवल चूल्हेचौके पर काम करना उन का जीवन नहीं. शिक्षित हो कर काम करना और आत्मनिर्भर बनना ही उन के जीवन की पूंजी है. केवल पारिवारिक झगड़े ही नहीं, बल्कि पति की अचानक मृत्यु के बाद उन्हें कौन देखेगा? शिक्षा और रोजगार के समुचित अवसर दोनों को ही मिलने चाहिए.

बड़े काम के हैं मैरिज मैनेजमैंट के ये 5 नियम

किसी कंपनी को चलाना किसी मैरिज को मैनेज करने जैसा ही हो सकता है. सुनने में यह अजीब बात लग सकती है. पर गौर करें तो दोनों में ही कहीं एक समानता नजर आएगी. तो फिर वैवाहिक जिंदगी को अपने बिजनैस या प्रोफैशनल लाइफ की तरह मैनेज करने में बुराई ही क्या है?

जैसे आप किसी बिजनैस को चलाने के लिए बजट बनाते हैं, लोगों को काम सौंपते हैं, उन्हें समयसमय पर प्रोत्साहित करते हैं, रिवार्ड देते हैं. ठीक वैसे ही वैवाहिक जीवन में भी बजट बनाना पड़ता है, एकदूसरे को काम सौंपे जाते हैं, जिम्मेदारियां बांटी जाती हैं, साथी को प्रोत्साहित किया जाता है, उसे समयसमय पर गिफ्ट दे कर अपने प्यार का इजहार कर यह जताया जाता है कि वह उस के जीवन में कितना महत्त्वपूर्ण है.

ग्रोइंग बिजनैस की तरह समझें

कोई भी अपने वैवाहिक जीवन की तुलना बिजनैस के साथ करना पसंद नहीं करता है. ऐसा करने से रिश्ते से रोमांस खत्म होता लगता है. पर विवाह में भी अपेक्षाएं और सीमाएं वैसी ही होती हैं जैसी कि किसी कंपनी में. आर्थिक जिम्मेदारियां, स्वास्थ्य संबंधी फायदे और प्रौफिट मार्जिन विवाहित संबंध में भी देखे जा सकते हैं. अगर हम अपने रिश्ते को एक ग्रोइंग बिजनैस की तरह देखते हैं, जिस में भविष्य की योजनाएं होती हैं, तब हमारा विवाह भी ग्रो कर सकता है.

हमें भावनात्मक संसाधनों को निर्मित करने, वित्तीय स्थिरता को बढ़ाने और अनापेक्षित स्थितियों का सामना करने के लिए वैकल्पिक योजनाएं बनाने के लिए समय की आवश्यकता होती है. यही बात बिजनैस पर भी लागू होती है, जिस में सही तरह से बनाई गई योजनाएं ही लक्ष्य तक पहुंचाने में मदद करती हैं.

पार्टनरशिप डील है

अगर सीधे शब्दों में कहें तो मैरिज को एक प्रकार की पार्टनरशिप ही मानें जिसे आप सफल बनाना चाहती हैं. मैरिज काउंसलर दिव्या राणा का कहना है कि लक्ष्य बनाएं और एक टीम की तरह उसे पूरा करने के लिए सहमत हों. याद रखें कि सब से सफल पार्टनरशिप प्रत्येक पार्टनर की बेहतरीन व अनोखी विशेषताओं का उपयोग करती है. आप में से कोई फाइनैंस संभालने में ऐक्सपर्ट हो सकता है तो दूसरा प्लानिंग में. आप को एकदूसरे की इन विशेषताओं का वैसे ही सम्मान करना चाहिए जैसे कि बिजनैस पार्टनर आपस में करते हैं.

मनोवैज्ञानिक अनुराधा सिंह मानती हैं कि अपनी शादी को एक प्राइवेट कंपनी की तरह अच्छे कम्यूनिकेशन के साथ चलाना और उसे सफल बनाने की इच्छा रखना बहुत माने रखता है. एक अच्छा बिजनैसमैन अपने कर्मचारी को सम्मान देता है और उस का खयाल रखता है, इसी वजह से कर्मचारी उस का सम्मान करते हैं और उम्मीद से ज्यादा काम करते हैं.

इस वजह से बिजनैस सुगमता और व्यवस्थित ढंग से चलने के साथसाथ लाभ भी देता है. इसी तरह जब हम अपने साथी का सम्मान करते है, उस की हर छोटीबड़ी बात की परवाह करते हैं, हमें उन से बदले में कहीं अधिक मिलता है, कई बार उम्मीद से ज्यादा.

बिजनैस के साथ प्लैजर को भी मिक्स करें. बिजनैस को भी ऐंजौय करें और मैरिज को भी. इस से संतुलन बने रहने के साथसाथ जोश और उत्साह भी बना रहेगा जो निरंतर आगे बढ़ते रहने को प्रोत्साहित करेगा. विवाह अगर नीरस बन जाए तो जीवन की गाड़ी खींचना बोझ लगने लगता है, तो फिर दायित्वों के साथ थोड़ा प्लैजर भी क्यों न मिक्स कर लिया जाए?

वर्क ऐथिक्स हैं जरूरी

चाहे बिजनैस हो या मैरिज दोनों ही वर्क ऐथिक्स पर चलते हैं. दोनों में ही निवेश करना पड़ता है. जिस तरह से आप अपने पोर्टफोलियो को मैनेज करते हैं, उसी तरह मैरिज में भी आप को अपने संबंधों के पोर्टफोलियो को मैनेज और अपडेट करते रहना पड़ता है.

अगर आप अपने मनपसंद प्रोफैशन में सफल होने के लिए कड़ी मेहनत कर सकते हैं तो क्या वही वर्क ऐथिक्स आप की मैरिज पर लागू नहीं होते? बात आश्चर्यजनक लग सकती है पर अपने कैरयर में आप ने जो सफलता व निपुणता हासिल की है, उसे ही मैरिज में ट्रांसफर कर दीजिए. फिर उसी तरह से एक मजबूत परिवार निर्मित कर पाएंगे जैसे कि आप ने अपनी कंपनी खड़ी की है.

ईगो को रखें दूर

मैरिज हो या बिजनैस, दोनों में ही अगर ईगो फैक्टर सिर उठाने लगे तो बिजनैस चौपट हो जाता है और मैरिज में टकराव या अलगाव झेलना पड़ जाता है. इसीलिए माना जाता है कि एक सही तरह से चलने वाला बिजनैस एक सही ढंग से चल रही शादी के समान है. दोनों ही अपनेअपने खिलाडि़यों के ईगो को बढ़ने नहीं देते.

ईगो वह संवेग है, जो युगल को अपने स्वार्थ से बाहर आने और एकदूसरे के प्रति पूर्ण समर्पित होने से रोकता है, चाहे युगल एकदूसरे को बहुत ज्यादा प्यार व सम्मान देने की चाह ही क्यों न रखते हों. इसी तरह बिजनैस के फेल होने का मुख्य कारण ईगो ही होता है, क्योंकि मालिक को वह अपने मातहतों के साथ सही ढंग से पेश आने या उन की परेशानियों को समझने से रोकता है.

कमिटमैंट है जरूरी

विवाह हो या बिजनैस दोनों ही जगह सहयोग अपेक्षित है. दोनों ही जगह अगर समझौते की स्थिति न हो तो असफलता हाथ लगते देर नहीं लगती है. समझौते के साथसाथ कम्यूनिकेशन एक ऐसा आधार है, जो दोनों को ही सफल बनाता है.

एकदूसरे को बदलने की कोशिश करने के बजाय दोनों को अपने को सुधारने पर काम करने को तैयार रहना चाहिए. कम्युनिकेशन के साथसाथ कमिटमैंट भी एक आवश्यक तत्त्व है शादी को निभाने के लिए वैसे ही जैसे वह बिजनैस को चलाने के लिए आवश्यक होता है. जहां कमिटमैंट नहीं वहां युगल में न विश्वास होगा न समर्पण की भावना और न ही जिम्मेदारी का भाव.

इसी तरह अगर बिजनैस में कमिटमैंट न हो तो बौस उस के प्रति न तो चिंतित रहेगा न ही उसे सुधारने के लिए मेहनत करेगा. ऐसी स्थिति में बिजनैस लंबे समय तक कायम नहीं रह पाएगा. वैसे ही शादी भी इस के अभाव में एक जगह पर आ कर ठहर जाएगी और पतिपत्नी दोनों के लिए एकदूसरे का साथ किसी सजा से कम नहीं होगा.

रोमांटिक पलों के 15 एनर्जी बूस्टर

नेहा की शादी को अभी सिर्फ 5 साल ही हुए और अभी से अपने लाइफ पार्टनर के साथ रोमांस में इतनी उदासी. हालांकि उन का रिश्ता उतना पुराना नहीं हुआ जितनी उदासी उन दोनों ने ओढ़ रखी है. बेडरूम में घुसते ही उन्हें बोरियत महसूस होती है ऐसा क्या हुआ जो उन के रिलेशन में वो गरमाहट, वो रोमांस और वो प्यार नहीं रहा जो शादी के तुरंत बाद का था.

एक रिसर्च के मुताबिक मस्तिष्क में मौजूद लव केमिकल डोपामाइन, नोपाइनफ्रिन और फिलेथाइलामान कुछ सालों तक के लिए बहुत एक्टिव रहते हैं पर उम्र के साथसाथ ये कैमिकल थोड़े धीमे पड़ने लगते हैं. जब पतिपत्नी अपने रूटीन शेड्यूल में बिजी हो जाते हैं तब रिलेशन में धीरेधीरे प्रेम की मिठास और उसे पाने की ललक की रफ्तार धीमी पड़ जाती है. ऐसे समय में दोनों पार्टनर को सैक्स लाइफ में फिर से रोमांस भरने के लिए कुछ अलग और अनूठा करने की सलाह दी जाती है.

रिलेशन को बनाएं रोमांटिक

इस बारे में मशहूर साइकोलौजिस्ट अनुजा कपूर का कहना है कि पतिपत्नी के बिजी शेड्यूल और समय की कमी के कारण सैक्स और रोमांस करने में वो बात नहीं रही. बेडरूम में घुसते ही अपने पार्टनर के साथ वही बोरिंग टच, वही घिसीपिटी बातें, वही संतुष्टि और वही अहसास, सैक्स लाइफ का कब स्विच औफ कर देता है, पता ही नहीं चलता, पर चिंता की बात नहीं रिलेशन को रोमांटिक बनाने के लिए दोनों तरफ से पहल की जरूरत होती है. दो लोगों की थिंकिंग, फीलिंग ही किसी रिश्ते को खास बनाती है, कहते हैं न खुशियां हमारे आसपास ही होती हैं बस उसे ढूंढ़ने की जरूरत होती है, तो देर किस बात की, उम्र का कोई भी दौर हो, हर दौर में बौडी की जरूरत को समझते हुए आप अपनी सैक्सुअल लाइफ को उम्रभर रोमांटिक बनाए रखने के लिए कुछ रोमांटिक टिप्स फालो करें. क्योंकि ये ही आप की बोरिंग लाइफ में एनर्जी बूस्ट का काम करेंगे.

रोमांटिक पलों को खास बनाए रोमांटिक एनर्जी बूस्ट

सैक्स भी एक वर्कआउट की तरह होता है. जिस में ढेर सारी कैलोरीज बर्न होती है ऐसे में प्रत्येक महिला को 30 की उम्र के बाद ऐसे ऐनर्जी बूस्ट सप्लीमैंट्स लेने चाहिए जो आप का एनर्जी लेवल बढ़ाए इस के साथ ही एक्सरसाइज, योगा, ऐरोबिक्स आदि करें जिस से बौडी फ्लैक्सीबल बने.

1. खुद को करें ब्यूटीफाई

बढ़ती उम्र के साथ आप की बौडी में भी काफी चेंजेज आते हैं जैसे चेहरे पर फाइन लाइंस, ढलती स्किन आदि ऐसे में अपने को अपटूडेट रखने के लिए अपना ब्यूटी ट्रीटमैंट हर महीने करवाइए जिस से आप की खूबसूरती में और भी निखार आ सके और आप के पार्टनर आप की खूबसूरती में ही खो जाए.

2. फ्लर्टिंग है जरूरी

रोमांटिक पलों को खास बनाने के लिए आप को अपनी लाईफ में फ्लर्टिंग जरूर करनी चाहिए और वो भी हैल्दी फ्लर्टिंग. अब आप अपने पार्टनर के अलावा किसी और से हैल्दी फ्लर्टिंग करती हैं तो बौडी में एक्साइटमैंट और एनर्जी आती है और यही एनर्जी आप को अपने पार्टनर के साथ सैक्स के समय गुड फील कराती है कि पार्टनर के अलावा और भी कोई आप को औब्जर्व करता है जिस में, आप के लुक, ड्रेस की तारीफ या आप की पर्सनाल्टी की तारीफ भी हो सकती है, एक औरत को आप बांध नहीं सकते अगर आप किसी लड़के के साथ हैल्दी रिलेशनशिप नहीं रखेंगी तो अपने पार्टनर के साथ भी उदासीन रहेंगी.

3. पार्टनर की गर्लफ्रैंड बनें

रोमांस के समय अपने लाइफ पार्टनर की वाइफ न बन कर गर्लफ्रैंड बनने की कोशिश करें उस की आंखों में प्यार से देखें और उसे अपनी सैक्सी बातों और अदाओं से फील गुड कराना बहुत जरूरी है तभी आप अपनी सैक्स लाइफ में रोमांस का रंग भर सकती हैं.

4. ओपननैस बहुत जरूरी

अपनी सैक्स लाइफ में रोमांच भरने के लिए ओपननैस बहुत जरूरी है ऐसे समय में आप अपने पार्टनर से हर तरह की बात कर सकती हैं, उस के साथ पार्न मूवी देखें, जिस से आप अपने अंदर ऐक्साइटमेंट महसूस करें, नौनवेज जोक्स का मजा लें. हफ्ते में एक बार रोमांटिक कैंडल लाइट डिनर पर जरूर जाएं. अगर घर में लाइफ बोरिंग हो रही हो तो सैक्स और रोमांस का मजा लेने के लिए आप दोनों किसी होटल व रिसौर्ट को भी चुन सकते हैं.

5. लव एंड टच का तड़का

अपने प्यार का प्रदर्शन करने के लिए एकदूसरे को समयसमय पर टच करना, हग करना और किस करने, प्यार की थपकी देना और पब्लिक प्लेस पर हाथ पकड़ने का अहसास ही काफी रोमांटिक होता है.

6. रूम को करें डेकोरेट

रोमांस में डूबने के लिए अगर मूड नहीं बन रहा है तो कुछ सुझाव आजमाएं. सेंटेड कैंडल और फूलों से कमरा सजाए. असैंसिशयल औयल की कुछ बूंदें चादर और तकिए पर भी छिड़क सकती हैं. इस से प्यार का असर दोगुना होगा.

म्यूजिक थेरेपी से अपनी लव लाइफ को बेहतर बनाने के लिए दोनों गीतसंगीत का आनंद लं. संगीत आप के अंदर छाई उदासीनता को एनर्जी से भर देता है, रोमांटिक संगीत सेक्स और रोमांस में फील गुड साबित होता है, तनाव के स्तर को कम करता है और मन को खुश रखता है. इस से मूड क्रिएट होता है.

7. यादें संजोए

पुरानी यादों को ताजा करें पुरानी पिक्चर व विडियो देख कर, पुरानी बातों को फिर से दोहराएं. इस से आप का प्यार और गहरा होगा.

8. कैद करें प्यार के पलों को

जब आप अपने पार्टनर के साथ हों तो उस खूबसूरत अहसास को कैमरे में कैद कर अपनी व अपने पार्टनर की शानदार तस्वीरें लें. इन पलों के कुछ विडियो बनाएं और सयसमय पर इस का आनंद लें.

9. सैक्सी लांजरी का चुनाव करें

अपनी लव लाइफ को और सैक्सी बनाने के लिए ऐसी लौंजरी का चुनाव करें जो ज्यादा कौंप्लीकेटेड न हो अगर आप की लौंजरी बड़ी सरता से पाट्रनर के हाथों से उतरती तो उस रोमांचित एहसास के कहने ही क्या.

एक नैटवर्किंग साइट के सर्वे के अनुसार 100 में से 80 पुरुष अपने पार्टनर को सैक्सी लौंजरी में देखना पसंद करते हैं, कोई अपने साथी को स्विमसूट में देखना चाहता है तो कोई नैट वाली बिकनी में तो कोई केवल हाफ कप वाली लौंजरी में इस के अलावा रंग भी बहुत मैटर करता है. रेड, ब्लैक जैसे कलर पुरुषों को बहुत पसंद आते हैं तो अगली बार जब भी लौंजरी की शौपिंग पर जाएं तो उन प्यार भरे एहसासों की छवि अपने जेहन में जरूर बना लें. जब यह सैक्सी लौंजरी पहन कर आप अपने पार्टनर के सामने जाएंगी तो आप का यह रूप आप की सैक्स लाइफ को बूस्ट करेगा.

10. फुल अटैंशन दें

रोमांस के समय एकदूसरे को फुल अटैंशन देना ही एक प्यारा एहसास है. अपने पार्टनर को यह एहसास दिलाएं कि सिर्फ आप की उस का सब कुछ हो उन के अलावा आप कुछ भी नहीं. ऐसे समय पर और कोई बात न कर के सिर्फ और सिर्फ सैक्स रोमांस की बातें करें.

11. सेक्सुअल प्लेजर दें

अपने पार्टनर को रोमांस के हर पहलू को समझाएं, उसे हर पौसिबल सैक्सुअल प्लेजर दें. सैक्स के बारे में कम्यूनिकेशन करें, यह जानने के लिए कि आप की रोमांटिक बातों का आप के पार्टनर पर क्या इफैक्ट पड़ता है.

12. गेम खेलें

अपनी लाइफ में रोमांस को बरकरार रखने के लिए सैक्स गेम्स खेले पर ये मस्ती भरे और एक्साइटमैंट वाले होने चाहिए, ये गेम्स नई चीजें ट्राई करने की नर्वसनेस से पीछा छुड़ाते हैं और आप अपने पार्टनर के साथ खुल कर मजा लेते हैं.

13. लव नोट्स लिखें

अपने पाट्रनर के लिए दिल की बातें कागज पर लिखें, लव नोट्स बहुत प्रभाव डालते हैं. आप के पार्टनर ने आप के लिए कुछ लिखा है यही सोच कर आप को एक अलग सी फीलिंग्स होगी जो आप के प्यार के पलों को और रोमांटिक बनाएगी.

14. मूड को करें फ्रेश

मूड को फ्रेश करने के लिए आप सैक्सी अंदाज में चौकलेट केक एक दूसरे को खिलाएं. ये अंदाज सामान्य मूड को भी सैक्सी मूड बना देगा और आप का मूड भी फ्रेश हो जाएगा.

15. हाइजीन जरूरी

मूड को फ्रेश करने के लिए आप दोनों एकसाथ हर्बल बाथ लें, एकदूसरे की मसाज एसेंशियल औयल करें. ये ही पल खुशनुमा पल आप को और ज्यादा एक्साइटमेंट देंगे. सैक्स और रोमांस के एंजौयमेंट के लिए जरूरी है बौडी पर किस का मजा उठाने के लिए ब्रश करें, माउथवाश से क्लीन करें, महकती साफसुथरी बौडी को किस करना आप का पार्टनर कभी नहीं भूलेगा.

प्यार और रोमांस सिर्फ फिजिकल नहीं होना चाहिए. प्यार में इमोशनल फीलिंग ही रिलेशन को स्ट्रांग बनाती है और अगर इस से आप सैक्स और रोमांस का तड़का लगा देंगी तो लाइफ बनेगी स्ट्रांग से भी स्ट्रांग. तो क्यों ना इन बातों का पालन अभी से किया जाए.

अब मूड औफ नहीं लव औन होगा

1. आमरा अपनी सैक्स लाइफ से खुश हैं, लेकिन चाहतें अनेक हैं. उन के पति भी खुश हैं बैड पर, लेकिन कहीं न कहीं आमरा को दुख है कि उन के पति बैड पर उस का मन क्यों नहीं पढ़ पाते. आमरा उन से स्पर्श की चाहत रखती हैं. मगर बैड पर जाते ही आरव अपना होशहवास खो देते हैं. जल्दबाजी के कारण एकदूसरे में खो नहीं पाते. आलम यह है कि आमरा सैक्स से बचती हैं.

2. रागिनी पिछले 5 सालों से खुशहाल विवाहित जीवन जी रही हैं. रागिनी और गगन के प्यार की निशानी उत्सव 4 साल का है. आजकल वे कुछ बुझीबुझी लगती हैं. इस का कारण है उन की उदासीन बैडरूम लाइफ. दिन भर रागिनी घर के हर छोटेबड़े काम को मैनेज करने में बिजी रहती हैं. दोपहर से रात तक उत्सव की देखरेख में अलर्ट रहती हैं. उत्सव को सुलाने के बाद अपने बैड पर जाने से परहेज करती हुई वे उत्सव के कमरे में उस के साथ ही सो जाती हैं. इस का कारण पता चला कि हड़बड़ी वाली रोजाना की सैक्स लाइफ, जो रागिनी और गगन दोनों का मूड औफ कर तनाव का कारण बनती है.

3. माही एक कामकाजी महिला है. शाम को औफिस से लौटते ही माही और रंजन अपनी दुलारी 10 साल की बेटी परी के साथ समय बिताते हैं. डिनर तक तो सब ठीक रहता है, लेकिन बैडरूम लाइफ दोनों को अपसैट कर देती है. असल में माही बैडरूम में पति के साथ अकेले में समय बिताना चाहती हैं. रंजन की बांहों में समा कर दिन भर की और भविष्य की बातें करना चाहती हैं. उस के बाद जेहन की थकान को प्यार में डूब कर मिटाना चाहती हैं, लेकिन रंजन उन की भावनाओं की कद्र न कर सीधे सैक्स का मूड बना लेते हैं. नजीजतन, मशीनी प्रक्रिया की तरह सैक्स होता है और बाद में माही का मन बुझाबुझा रहता है.

ऊपर बताए गए तीन केसों में एक बात सामने आई कि सैक्स में गलतियां हमेशा के लिए एकदूजे से दूर कर देती हैं. माना जाता है कि प्यार करना और प्यार को निभाना औरत जानती है. प्यार को सैक्स का अंजाम देने में पति माहिर होते हैं. यह काफी हद तक सच है. मौका कोई भी हो, कैसी भी स्थिति हो, थकावट से शरीर स्थूल हो या मूड हो या न हो पर पति का बैड पर जाते ही सैक्स का मूड बन जाता है या यों कहें कि पति सैक्स के लिए बमुश्किल ही इनकार करेगा. इस पर उस की पत्नी नानुकर करे, तो उसे वह सहन नहीं. यहां हम पतियों पर किसी प्रकार का आक्षेप नहीं लगा रहे. दूसरी ओर पत्नियां भी प्यार को सैक्स का अंजाम देना चाहती हैं, लेकिन प्यार से प्यार तक. ऐसा नहीं होने पर दोनों ओर से खीज होती है.

इस संबंध में सैक्सोलौजिस्ट का मानना है कि प्यार में कैद होते ही अधिकांश पतियों के दिलदिमाग में सैक्स उछालें मारता है. दिन भर काम करने के दौरान भी दिमाग के किसी कोने में बेसब्री बैड लाइफ का ऐंजौयमैंट जीने की होती है. ऐसे में पति आउट औफ कंट्रोल होते जाते हैं. बस, प्यार को तुरतफुरत अंजाम देना और पार्टनर की खीज महसूस किए बिना सो जाना. यही नहीं, कई बार पति भी खीज महसूस करते हैं, जो पार्टनर में तनाव का कारण बनती है. दूसरे शब्दों में कहें तो बैड पर प्यार में जल्दबाजी दिखाना दोनों पार्टनर्स के लिए ठीक नहीं. बैड पर आप का और उन का मूड हमेशा औन रहे और प्यार हमेशा औन रहे इस के लिए गलतियों पर नजर डालते हैं. इन से बचिए और मूड करें औन:

क्लाइमैक्स की बेताबी

इरादे बुलंद हों तो कदम खुदबखुद मंजिल तक पहुंच जाते हैं. फिर चाहे राहें पथरीली अथवा मखमली ही क्यों न हों. बुलंद इरादों के बलबूते मंजिल पर फतह होती है. इस सफर में कई कठिनाइयों, तकलीफों, सहूलतों से गुजरना पड़ता है. यही फलसका आप की सैक्स लाइफ पर भी लागू होता है. अधिकांश पति बैड पर पहुंचते ही सैक्स के लिए तैयार हो जाते हैं. कुछ ही पलों में प्यार को अंजाम देने में मशगूल हो जाते हैं. इस फलसफे से बेखबर कि चरम तक पहुंचने के लिए कई राहों से गुजरना पतिपत्नी दोनों के लिए उपयुक्त रहता है. इस हड़बड़ी में पति फोरप्ले को पूरी तरह नजरअंदाज करता है. रोजाना की क्रिया से पत्नी उकता जाती है. अगली बार यह गलती न करें. क्लाइमैक्स से पहले बांहों में भर कर प्यारदुलार करें.

अहम है फोरप्ले

इस बात को गांठ बांध लें कि जब बिस्तर पर दोनों खुश होते हैं, तब अंजाम दोनों को खुशी देता है. लेकिन बिस्तर पर पति की प्यार में हड़बड़ी का अंजाम पत्नी को खीज देता है. जाहिर है, उस के मूड से पति का मूड भी औफ हो जाएगा. अगली बार बिस्तर पर जल्दबाजी की गलती न दोहराएं. थोड़ा धैर्य रखें. पहले प्यारदुलार यानी फोरप्ले से पत्नी का मूड बनाएं. पत्नी के उत्तेजित होने के बाद दोनों अंजाम के पलपल की हसीन जन्नत को महसूस कर पाएंगे अन्यथा इस दैनिक मशीनी क्रिया के बाद भी आप दोनों खालीपन, तनाव, निराशा व खीज से भरे रहेंगे.

मन को पढि़ए

सिर्फ पति अपने आनंद को तवज्जो न दे. थोड़ा पत्नी का भी ध्यान रखे. पत्नी की बिस्तर पर पसंदनापसंद का भी ध्यान रखे. फोरप्ले से अंजाम और अंजाम के बाद की सहलाहट का ध्यान रखे. बहुत सी बातें पत्नी जबां पर नहीं लाती. वह सब पति पर छोड़ती है. उन का पूरा न होना उस में अजीब सा खालीपन भर देता है. एक खुशहाल बैडलाइफ के लिए पति को पत्नी के मन की बात समझनी होगी.

कुछ पल मस्ती, कुछ पल शरारत

अकसर पति बिस्तर में मस्ती व शरारत में बहकना भूल जाते हैं. सीधे अंजाम की सीढ़ी चढ़ते जाते हैं. भले ही अंजाम में पत्नी का शारीरिक साथ रहता है, पर वह मन से दूर होती है या यों कहें कि पति बिस्तर में पत्नी का खयाल नहीं रखता यानी पत्नी के कोमल बदन का भी नहीं. अगली बार यह गलती न हो, इस का ध्यान रखें. इस बात का भी ध्यान रहे कि पत्नी को रतिक्रिया में जोरजबरदस्ती कतई पसंद नहीं होती है.

सिनेमा नहीं है बैडरूम

आमतौर पर पति फिल्मों में फिल्माए गए बैडरूम दृश्यों को असल जिंदगी में जीना चाहता है. उस की चाहत रहती है कि पत्नी का भी इस में सहयोग मिले. पत्नी के नानुकर करने पर पति का गुस्सा 7वें आसमान पर होता है. कई बार नौबत इमोशनल ब्लैकमेल से बढ़ती हुई अलगाव तक पहुंच जाती है. पति इसे स्वीकार ले कि असल जिंदगी का बैडरूम फिल्मी परदे से बहुत अलग होता है. याद रहे हर बार प्यार का मीठा अंजाम दोनों को संतुष्टि और सहजता देता है.

जिम्मेदारी दोनों की

सैक्सोलौजिस्ट यही कहते हैं कि चरमोत्कर्ष की पूरी जिम्मेदारी पति पर नहीं डाली जानी चाहिए. अंजाम तभी सफल होता है जब पतिपत्नी दोनों का सहयोग हो. अधिकांश पतियों की आदत होती है कि वे अंजाम का सुख लेने के बाद पत्नी को भूल जाते हैं. प्यार भरा स्पर्श हो या न हो पति आसानी से अंजाम तक पहुंच ही जाते हैं. वे इस बात से बेखबर होते हैं कि अपने इजैट्यूलेशन के बाद उन की पत्नी मीठे सुख की जन्नत की सैर नहीं कर पाती. ऐसे में चरमोत्कर्ष तक नहीं पहुंचने का ठीकरा किसी एक के सिर पर फोड़ना गलत है.

कोर्ट मैरिज के लिए हमें क्या करना होगा?

सवाल-

मैं कुछ दिन पहले ही 18 वर्ष की हुई हूं. मैं जानना चाहती हूं कि क्या अब मैं कोर्ट मैरिज कर सकती हूं? यह भी बताएं कि इस के लिए हमें क्या करना होगा?

जवाब-

कोर्ट मैरिज करने के लिए आप को वकील के पास जाना होगा. वह कागज बना कर मैरिज रजिस्ट्रार के सामने रखेगा. फिर वही पूरी बात बताएगा. यह मामला जीवन का है पर गुप्त नहीं रह पाता, यह ध्यान रखें.

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प्यार करने वालों को अक्सर घरवालों के विरोध का सामना करना पड़ता है. यह ऐतराज कई बार औनर किलिंग जैसी हैवानियत की वजह भी बन जाता है जो प्यार करने वालों के सपनों को तहस नहस कर देता है. इस समस्या से निबटने का एक आसान रास्ता है , कोर्ट मैरिज.

इस संदर्भ में 2 अलग धर्म के बौलिवुड सितारे सैफ और करीना की शादी का उदाहरण लिया जा सकता है जिन्होंने शादी के लिए कानूनी रास्ता अख्तियार किया. बांद्रा स्थित रजिस्ट्रार औफिस जा कर उन्होंने शादी से सम्बंधित जरूरी कागजात जमा किए और आवेदन के 30 दिनों के भीतर कोर्ट मैरिज कर ली.

स्पेशल मैरिज एक्ट 1945 के अंतर्गत होने वाले विवाह को कोर्ट मैरिज कहते हैं. कोर्ट मैरिज में 2 लोगों के धर्म ,जाति या उम्र को नहीं देखा जाता बल्कि उन की सहमति और पात्रता देखी जाती है .

पात्रता

युवक-युवती दिमागी तौर स्वस्थ हों. संतानोत्पति में समर्थ हों.

लड़के की उम्र काम से काम 21 वर्ष और लड़की की उम्र 18 साल होनी चाहिए. दोनों ने अपनी इच्छा से पूरे होशोहवाश में शादी की सहमति दी हो. विवाह में कोई क़ानूनी अड़चन न हो.

कोर्ट मैरिज करने के लिए युवक और युवती को इस बाबत एक फौर्म भर कर लिखित सूचना अपने क्षेत्र के जिला विवाह अधिकारी को देनी होती है. फिर नोटिस जारी करने का शुल्क जमा करना होता है जो काफी कम होता है. इस आवेदन के साथ युवकयुवती को फोटो पहचान पत्र, और एड्रैस प्रूफ भी प्रस्तुत करना होता है. उस के बाद विवाह अधिकारी द्वारा 30 दिन का नोटिस जारी किया जाता है. इस नोटिस को कार्यालय के नोटिस बोर्ड और किसी सार्वजनिक जगह पर चिपकाया जाता है. ताकि किसी को आपत्ति हो तो वह अपना पक्ष रख सके.

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मेरे पति नौकरी करने के पीछे पड़े हैं, मैं क्या करुं?

सवाल-

मैं 30 वर्षीय विवाहिता हूं. पति की आयु 38 वर्ष है. मेरी शादी 2 वर्ष पूर्व हुई थी. मैं संतानोत्पत्ति के लिए उत्सुक हूं जबकि पति चाहते हैं कि मैं फिलहाल नौकरी करूं. पति की उम्र अधिक है, इसलिए मैं उन से कहती हूं कि पहले हम परिवार पूरा कर लेते हैं उस के बाद नौकरी कर लूंगी. पर उन्हें पता नहीं क्यों मेरी बात समझ में नहीं आ रही?

जवाब-

पति की ही नहीं आप की भी उम्र हो गई है, इसलिए आप को संतानोत्पत्ति के विषय में सोचना ही चाहिए. उम्र बढ़ने के साथ गर्भधारण करने और संतानोत्पत्ति के समय दिक्कत आती है, इसलिए पति को समझाएं.

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निर्देशक गुलजार की 1975 में आई फिल्म ‘आंधी’ ने सफलता के तमाम रिकौर्ड तोड़ डाले थे. इस फिल्म पर तब तो विवाद हुए ही थे, यदाकदा आज भी सुनने में आते हैं, क्योंकि यह दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की जिंदगी पर बनी थी. संजीव कुमार इस फिल्म में नायक और सुचित्रा सेन नायिका की भूमिका में थीं, जिन का 2014 में निधन हुआ था. ‘आंधी’ का केंद्रीय विषय हालांकि राजनीति था. लेकिन यह चली दरकते दांपत्य के सटीक चित्रण के कारण थी, जिस के हर फ्रेम में इंदिरा गांधी साफ दिखती थीं, साथ ही दिखती थीं एक प्रतिभाशाली पत्नी की महत्त्वाकांक्षाएं, जिन्हें पूरा करने के लिए वह पति को भी त्याग देती है और बेटी को भी. लेकिन उन्हें भूल नहीं पाती. पति से अलग हो कर अरसे बाद जब वह एक हिल स्टेशन पर कुछ राजनीतिक दिन गुजारने आती है, तो जिस होटल में ठहरती है, उस का मैनेजर पति निकलता है.

दोबारा पति को नजदीक पा कर अधेड़ हो चली नायिका कमजोर पड़ने लगती है. उसे समझ आता है कि असली सुख पति की बांहों, रसोई, घरगृहस्थी, आपसी नोकझोंक और बच्चों की परवरिश में है न कि कीचड़ व कालिख उछालू राजनीति में. लेकिन हर बार उसे यही एहसास होता है कि अब राजनीति की दलदल से निकलना मुश्किल है, जिसे पति नापसंद करता है. राजनीति और पति में से किसी एक को चुनने की शर्त अकसर उसे द्वंद्व में डाल देती है. ऐसे में उस का पिता उसे आगे बढ़ने के लिए उकसाता रहता है. इस कशमकश को चेहरे के हावभावों और संवादअदायगी के जरीए सुचित्रा सेन ने इतना सशक्त बना दिया था कि शायद असल किरदार भी चाह कर ऐसा न कर पाता.

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