परी हूं मैं……, जानम समझा करों…. जैसी एलबम बनाकर चर्चा में आने वाले सिंगर, कंपोजर, प्रोड्यूसर लेस्ली लुईस कहते है कि अबतक मैंने बहुत सारा काम दूसरों के लिए किया है, लेकिन अब मैं अपने लिये कुछ करना चाहता हूं. लेस्ली उस समय के रॉक & पॉप गानों से परिचय करवाने वाले पहले कंपोजर है. उनके पिता पी एल रॉय एक तबला वादक और कोरियोग्राफर थे, इससे उनके घर में संगीतकारों का आना-जाना होता था, जिससे उन्हें संगीत में रूचि बढ़ी और वे इस क्षेत्र में आ गए.
गजल गायक हरिहरन के साथ मिलकर कोलोनियल एलबम बनाने वाले लुईस ने आशा भोसले, केके समेत कई गायकों के साथ उन्होंने काम किया, लेकिन, अब वे खुद के गीतों को अपनी आवाज में संगीतबद्ध करना चाहता है. उन्हें लगता है कि अगर गायक और संगीतकार एक हो, तो वह गीत के संगीत के साथ ज्यादा न्याय कर सकता है, ऐसे में कोशिश है कि फिल्मों के लिए ज्यादा से ज्यादा गाऊं. आज एलबम का दौर खत्म हो रहा है और टेलीविजन गैर फिल्मों गीतों को ज्यादा प्रोत्साहित नहीं करता.
सवाल –क्या नए जेनरेशन की शिष्या काव्या जोन्स के साथ गाना गाने में किसी प्रकार की परेशानी हुई?
जवाब – इसमें लगन और मेहनत करने की एक धुन है. वह सबके पास नहीं है. आज के जेनरेशन फ़ास्ट फ़ूड की तरह सब कुछ फ़ास्ट-फ़ास्ट करना चाहती है, एक जगह टिक कर धैर्य के साथ काम नहीं करती. यहाँ वहां भटकती है और किसी भी संगीत को पूर्ण रूप से सीख नहीं पाती. अगर मैं कभी नए बच्चों से उनके घराना, क्या सीखा, उनकी जड़े कहाँ की है, पूछता हूं, तो उन्हें समझ में नहीं आता, लेकिन काव्या हर दिन, वक्त, मीटिंग, शो में मेरे साथ रहने पर उसे मेरे घराने को समझने में आसानी रही और उसी के अनुसार वह सीख रही है.
सवाल – आज के यूथ रैप अधिक करते है, जिसमे न तो मेलोडी होती है और न ही धुन, इसे कैसे लेते है, जबकि आप भी वेस्टर्न संगीत के ही प्रसंशक है?
जवाब – संगीत की भाषा पूरे विश्व में हर जगह एक ही होती है, सुर सबमेंप्रधान होता है और मेलोडी संगीत में होना जरुरी है, क्योंकि भाषा कोई भी हो, सभी संगीत की शुरुआतओम से होती है, स्वर हमारे हृदय में है. पूरा यूनिवर्स ओम पर चलता है, उसी से ही मेलोडी बनती है, जो सुनने में अच्छा लगता है. इसी मेलोडी में अगर शब्द जोड़ दिए जाय, तो उस गाने को सुनने में और भी सुंदर लगता है. शब्द न समझने पर मेलोडी से उस गाने को सुना जा सकता है. मेरे नये गाने में पॉप के साथ-साथ मेलोडी भी है. रैप में अगर कुछ बोला जा रहा है, तो उसे सुनना पड़ता है, थोड़े दिन अच्छा लगता है, बाद में सुनना कोई पसंद नहीं करता. मेलोडी जीवन पर्यंत रहेगी. 1940, 50 60,70,80,90 की फिल्मों के गाने जिसे लता मंगेशकर,आशा भोसलें, किशोर कुमार आदि ने गाये है, उनके गाने आज भी सुने जाते है. सभी गाने आज रिमिक्स हो रही है, क्योंकि उनके पास मेलोडी है. रैप नहीं चल सकती, क्योंकि ये एटीट्यूड दिखाती हुई संगीत है, जो आगे चलकर नीरस लगती है.
सवाल –भारतीय संस्कृति में रॉक और पॉप को परिचय कराना कितना कठिन था?
जवाब – पॉप मीठा संगीत है, क्योंकि पोपुलर गाने को पॉप कहते है. पॉपुलैरिटी की वजह मेलोडी का होना है, हर व्यक्ति उसे सुनना चाहता है, जिसमें जानम समझा करों….. जैसे गाने है. रॉक में एक एटीट्यूड होती है, जो सुनने में थोड़ा हार्श लगता है. नई जेनरेशन एंटी एस्टाब्लिशमेंट को पसंद करती है. हमारे देश में गाने में मिठास सभी पसंद करते है. रॉक म्युजिक में एंग्री यंग मैन वाली फीलिंग होती है. के के सिंगर के लिए मैंने थोड़ा रॉक अपनाया था, जो सबको बहुत पसंद आया. 90 के दशक में लोग बहुत पसंद नहीं करते थे, लेकिन अब नई जेनरेशन इसे अधिक पसंद करने लगे है. इन्टरनेट होने की वजह से संगीत का विकास अधिक हुआ है.
सवाल –गानों में शब्दों का प्रयोग मनमर्जी तरीके से होता है, जिसका अर्थ नहीं निकलता, बेतुकी लगती है, आप की सोच इस बारें में क्या है?
जवाब – इस जेनरेशन के बच्चे उर्दू नहीं समझते, इसलिए उन्हें केवल तुकबंदी कर ही लिरिक बनाना आता है. मेरी गानों में आम जनता की भाषा को प्राथमिकता दी गयी है. हिंदी फिल्मों के गानों में भी अब वही शुरू हो चुका है, मसलन क्या बोलती तू…..क्या मैं बोलूँ…. ऐसे शब्द आज के यूथ समझते है, लेकिन कुछ अच्छे शब्द के अर्थ उन्हें पता नहीं होता, मैंने कई गानों के साथ ऐसा महसूस किया है.
सवाल – आपने कई बड़े सिंगर और फिल्मों के लिए संगीत दिए है, आज के जेनरेशन के साथ कुछ करने की इच्छा रखते है क्या ?
जवाब – मैंने कई बड़े सिंगर्स के साथ काम किया है, लेकिन लेस्ली लुईस के लिए नहीं किया अब उनके लिए करूँगा (हँसते हुए). मैं शोज में गाना गाने पर मेरी आवाज को सुनकर चौक जाते है. मैंने सबके लिए गाने बनाई, पर अपने लिए नहीं बनाया.
सवाल – संगीत में आने की प्रेरणा कैसे मिली?
जवाब – मेरे पिता कोरियोग्राफर के अलावा तबला बजाते थे, उन्हें संगीत का बहुत शौक था. घर पर जाकिर हुसैन, उनके पिता भी मेरे घर आते थे. संगीत का माहौल था. डांस और गायकों का हमेशा आना-जाना रहता था. इसके अलावा शास्त्रीय डांस के लिए शास्त्रीय गायक होना चाहिए, जिससे संगीत का मेल डांस के लिए ठीक हो. संगीत के इस माहौल में रहने पर मुझे धीरे-धीरे संगीत से प्यार होने लगा और इस क्षेत्र में आ गया. अच्छी बात यह रही कि मुझे अच्छे कलकारों का साथ मिला. अभी तकनीक का दौर है, इसमें सभी को वैसे ही जाना है. फिर चाहे, इन्स्टाग्राम हो या यू ट्यूब सभी पर यूथ कुछ न कुछ कर छोड़ते है, जिसे लोग पसंद कर रहे है. संगीत को सिम्पल form में यूथ के पास लेकर आना है.
सवाल – आगे की योजनायें क्या है?
जवाब – अभी मैं स्वतंत्र आर्टिस्ट के रूप में काम कर रह हूं. मेरे गाने को खुद गाता और लिखता हूं.
सवाल – अपने जीवन की यादों को शेयर करें, जिसे अभी भी आप याद करते है?
जवाब – 17 साल की उम्र में मैं गिटार बजाना चाहता था, उन्होंने मुझे राहुल देव बर्मन के पास भेजा, वहां आशा भोसलें और आर डी बर्मन थे. वहां मेरे पिता ने मेरा परिचय बी कॉम फेल कहकर किया, इस पर आशा भोसले ने मुझे बहुत समझाया और अच्छी पढाई करने की सलाह दी, लेकिन अंत में मैंने ही उनकी एलबम ‘राहुल एंड आई” बाद में बनाई, जिसे सभी ने पसंद किया.
सवाल – 75 साल की इंडिपेंडेंट हुए देश के बारें में आपकी राय क्या है?
जवाब – पहले एक ड्रेस सालों तक पहनते थे, अब नहीं. संगीत भी पिछले कुछ वर्षों से घुलमिल गया है, जिसे सही कर मुझे सबके बीच में लेकर आना है. मधुर संगीत का माहौल फिर से आयेगा.