मानसिक रूप से कमजोर करती है सेल्फी लेने की आदत

आजकल लोगों के बीच, खास कर के युवाओं के बीच सेल्फी को लेकर जिस तरह की दीवानगी देखी जाती है वो हैरान करने वाला है. लोगों की ये आदत अब जानलेवा बन चुकी है. हाल ही में हुई एक स्टडी में ये बात सामने आई कि सेल्फी लोगों में कौस्मेटिक सर्जरी के लिए प्रौत्साहित करती है.

स्टडी के मुताबिक, सेल्फी लेने के बाद लोगों में मानसिक दबाव अधिक हो जाता है. ज्यादा सेल्फी लेने वाले लोग अधिक चिंतित महसूस करते हैं. उनका आत्मविश्वास कम हो जाता है और वे शारीरिक आकर्षक में कमी महसूस करते हैं. ज्यादा सेल्फी लेने वाले लोगों में अपने लुक्स को लेकर काफी हीन भावना बढ़ जाती है, ये भावना इतनी तीव्र होती है कि वो अपनी कौस्मेटिक सर्जरी कराने की सोचने लगते हैं.

इस स्टडी में करीब 300 लोगों को शामिल किया गया है.  अध्ययन में पाया गया कि किसी फिल्टर का उपयोग किए बिना सेल्फी पोस्ट करने वाले लोगों में चिंता बढ़ने और आत्मविश्वास में कमी देखी जाती है. सेल्फी लेने और उन्हें सोशल मीडिया पर पोस्ट करने के बाद मूड खराब होता है और इसका सीधा असर आत्मविश्वास पर पड़ता है.

स्टडी में ये भी देखा गया है कि ये मरीज सेल्फी लेने और उन्हें सोशल मीडिया पर पोस्ट करने के बाद अधिक चिंतित, आत्मविश्वास में कमी और शारीरिक आकर्षण में खुद को कमतर आंकते हैं. यही नहीं, जब मरीजों ने अपनी सेल्फी बार-बार ली तथा अपनी सेल्फी में बदलाव की तो सेल्फी के हानिकारक प्रभाव को महसूस किया.

बाईं करवट सोने के फायदों को जान हैरान हो जाएंगी आप

सभी लोगों के सोने का तरीका अलग अलग होता है. कुछ लोग दाईं ओर करवट ले कर सोते हैं तो कुछ बाईं ओर. कई लोग पेट के बल सोना ज्यादा पसंद करते हैं. पर क्या आपको पता है कि आपके सोने के तरीके में आपकी सेहत का राज छिपा है. सोने का तरीका आपकी सेहत को काफी प्रभावित करता है. पर क्या आपको पता है कि बाईं करवट सोना कितना फायदेमंद होता है?

इस खबर में हम आपको बाईं करवट सोने का फायदे बताएंगे.

  • डाइजेशन के लिए भी बाईं ओर करवट कर के सोना अच्छा होता है. असल में बाईं तरफ करवट लेकर सोने से शरीर में मौजूद वेस्ट मटेरियल आसानी से छोटी आंत से बड़ी आंत तक पहुंच जाता है. इसके बाद वेस्ट मटेरियल शरीर से आसानी से बाहर निकल जाता है और व्यक्ति को पेट संबंधी समस्याएं होने का खतरा कम होता है.
  • जिन लोगों को सोते वक्त खर्राटा लेने की समस्या होती है उनके लिए ये जेस्चर काफी अच्छा होता है. दरअसल, बाईं करवट लेकर सोने से जुबान और गला न्यूट्रल पोजिशन में रहते हैं, जिससे सोते समय सांस लेने में कोई दिक्कत नहीं होती है.
  • इन सारे फायदों के अलावा बाईं करवट लेकर सोने से गर्दन और कमर दर्द से राहत मिलती है. किडनी और लिवर बेहतर तरीके से काम करते हैं. गैस और सीने में जलन की समस्या नहीं होती है. अल्जाइमर का खतरा भी कम होता है.
  • जानकारों की माने तो बाईं करवट हो कर सोना सेहत के लिहाज से काफी अच्छा होता है. इस पोजिशन में सोने से पाचन अंग बेहतर काम करते हैं.
  • हमारा दिल बाईं ओर होता है. जब हम उसी तरफ करवट कर के सोते हैं को हमारे दिल पर कम दबाव होता है और हमारी सेहत के लिए ये फायदेमंद होता है.
  • प्रेग्नेंसी में महिलाओं को खास तौर पर बाईं करवट के सोना चाहिए. ऐसा इसलिए क्योंकि इस जेस्चर में उनकी कमर पर कम दबाव पड़ता है साथ ही गर्भाशय और भ्रूण में खून का बहाव अच्छे से होता है.

ये एक चीज आपको देगी सुकून भरी नींद

देशभर में ठंड अपनी चरम पर है. कई हिस्सों में तापमान काफी कम होने के कारण लोगों को खासा परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. ठंड में कई लोगों को नींद के बार बार खुलने की समस्या होती है. उन्हें सोने में काफी परेशानी होती है. ऐसे में जरूरी होता है कि वो अपनी लाइफस्टाइल में कुछ बदलाव करें. इस खबर में हम आपको एक ऐसी  खास चीज के बारे में बताएंगे जिससे आप सुकून की नींद ले सकेंगी.

अच्छी सेहत के लिए अच्छी नींद बेहद जरूरी है. अगर आप अच्छी नींद नहीं ले रही तो कई तरह की बीमारियों के होने की संभावना अधिक हो जाती है. इसमें दिल की बीमारी, मोटापा और डाइबिटीज जैसी परेशानियां प्रमुख हैं. ऐसे में नींद पूरी करने के लिए बादाम का प्रयोग काफी असरदार होता है. ठंड के मौसम में बादाम का सेवन कर आप सुकून की नींद ले सकती हैं. हाल ही में हुए एक स्टडी में इस बात का खुलासा हुआ है.

आपको बता दें कि बादाम में भरपूर मात्रा में मैग्नीशियम पाया जाता है, जो शरीर में मैग्निशियम की 19 फीसदी जरूरत को पूरा करता है. जो लोग इंसौम्नियां की बीमारी से ग्रसित हैं उनके लिए ये बेहद फायदेमंद है.

एक स्टडी से ये बात सामने आई है कि बादाम के सेवन से नींद में दखल देने वाला स्ट्रेस हार्मोन कोर्टिसोल का स्तर कम होता है. इसके अलावा आप अच्छी नींद के लिए सोने से पहले गुनगुने पानी से नहा सकती हैं. इससे शरीर को गर्माहट मिलेगी और आपको अच्छी नींद आएगी.

त्वचा के जल जाने पर करें ये उपाय, होगा तुरंत फायदा

अक्सर हमारे शरीर का कोई ना कोई हिस्सा जल जाता है. ये जलन धूप, बिजली, गर्म पानी, भाप या किसी रसायन से हो सकती है. कई बार किचन में काम करते वक्त आपका कोई हिस्सा गर्म बर्तन या भाप से जल जाता है. कभी नंगा तार के संपर्क में आने से तो कभी धूप से भी त्वचा जल जाती है. ये सब बेहद तकलीफदेह होते हैं. इस खबर में हम आपको उन उपायों के बारे में बताएंगे जिससे आप किसी भी तरह से जल जाने पर आपको कौन से उपाय करने चाहिए.

जब आप भाप से जल जाएं

अक्सर आप भाप से जल जाती हैं, ऐसे में उस हिस्से पर जलन का निशान बन जाता है. ये निशान देखने में भद्दे लगते हैं. भाप से जलने की सूरत में ये उपाय बेहद प्रभावित होते हैं.

  • भाप से जलने पर जले हिस्से को कम से कम 10 मिनट तक रखें.
  • जले हिस्से पर घड़ी, कड़ा जैसी चीजें ना पहने.
  • जले हुए हिस्से को किसी स्वच्छ कपड़े से ढंक लें

बिजली से जल जाने पर

  • बिजली से जलने पर व्यक्ति को सबसे पहले बिजली वाली जगह से दूर करें और जले भाग को ठंडे पानी से धोएं.
  • जले हुए हिस्से को बर्न शीट से ढंक लें.

किसी रसायन से जलने पर

  • अगर किसी भी रसायन से आपकी आंखें प्रभावित हुई हैं तो सबसे पहले आंख को नीचे कर के पानी से धोएं.
  • आंख को स्वच्छ पट्टी से ढंक लें.
  • रक्षात्मक दस्ताना पहन के शरीर पर लगा रसायन झाड़ लें.

धूप से जल जाने पर

  • धूप से जलने पर किसी छांव वाली जगह पर बैठ जाएं और शरीर को समान्य तापमान पर लाने की कोशिश करें.
  • लगातार ठंडा पानी पिएं. इससे शरीर हाइड्रेट रहेगा.
  • छाला हो जाने पर उसे फोड़े नहीं. अगर छाला फूट जाता है तो उसे साबुन से धो लें.

भूखे पेट क्यों आता है गुस्सा ?

जब व्यक्ति को तेज भूख लगती है उसे तेज गुस्सा आता है. इस खास स्थिति में लोगों की ये प्रतिक्रिया बेहद ही आम है. आखिरकार वैज्ञानिकों ने इस बात का पता लगा लिया है कि हमें भूख लगने पर गुस्सा क्यों आने लगता है. जानकारों की माने तो ऐसा जीवविज्ञान की परस्पर क्रिया, व्यक्तित्व और आसपास के माहौल की वजह से होता है.

अमेरिका की एक यूनिवर्सिटी में हुए हालिया शोध में शामिल शोधार्थी ने बताया कि, “हम सभी जानते हैं कि भूखा महसूस करने से कभी-कभी हमारी भावनाएं और दुनिया को लेकर हमारे विचार भी प्रभावित होते हैं. हाल ही में ‘हैंगरी ’शब्द आक्सफोर्ड शब्दकोष ने स्वीकार किया है, जिसका मतलबा होता है कि भूख की वजह से गुस्सा आना. ”

शोध में शामिल जानकारों की माने तो “हमारे अनुसंधान का उद्देश्य भूख से जुड़ी हुई भावनात्मक स्थितियों का मनोवैज्ञानिक तरीके से अध्ययन करना है. जैसे कि कोई कैसे भूखा होने के साथ ही गुस्सा भी हो जाता है.”

इन लोगों में कम होती है गुस्सा  होने की संभावना

400 से ज्यादा लोगों पर किए गए इस शोध में पता चला है कि सिर्फ माहौल ही इस बात पर असर नहीं डालता है कि क्यों कोई भूखे होने से गुस्सा हो जाएगा. यह लोगों के भावनात्मक जागरुकता के स्तर से भी तय होता है. वे लोग जो इस बात के प्रति अधिक जागरूक होते हैं कि उन्हें भूख लगी है या नहीं, ऐसे लोगों में गुस्सा होने की संभावना कम होती है.

बच्चों को चलाएं नंगे पांव, ये होते हैं फायदे

आजकल के मां बाप अपने बच्चे की सेहत को लेकर इतने ज्यादा सचेत रहते हैं कि कई बार उन्हें अच्छी चीजों से भी दूर कर देते हैं. आमतौर पर मां बाप छोटे बच्चों का नंगे पांव घूमना गलत मानते हैं. हाल ही में हुई एक स्टडी में ये बात सामने आई कि नंगे पांव रहने वाले बच्चों में कूदने और संतुलन बनाने की क्षमता उन बच्चों के मुकाबले बेहतर होती है जो ज्यादा समय तक जूते पहने रहते हैं. हालांकि ज्यादा समय तक जूते पहनने वाले मुख्य रूप से 6 से 10 साल तक के बच्चों ने परीक्षण के दौरान अच्छे परिणाम दिए हैं.

शोधकर्ताओं ने बताया कि बच्चों ने कूदने और संतुलन बनाने में बेहतर प्रदर्शन किया है, जो यह दर्शाता है कि बचपन किशोरावस्था में बुनियादी संतुलन का विकास लंबे समय तक नंगे पैर रहने से बेहतर होता है.

जानकारों की माने तो नंगे पैर रहने से ज्यादा प्रकृति के करीब रहने का एहसास होता है और पैरों में कुछ पहनकर चलने से पैरों के स्वास्थ्य और संचालन की प्रगति प्रभावित होती है.

आपको बता दें कि इस स्टडी में संतुलन, लंबी कूद और 20 मीटर दौड़ की गतिविधियों के लिए ग्रामीण दक्षिण अफ्रीका तथा उत्तरी जर्मनी के शहरी क्षेत्रों के 6-18 आयु वर्ग के 810 लोगों को शामिल किया गया है. नतीजों में सामने आया है कि नंगे पैर चलने वाले लोगों ने संतुलन और ऊंची कूद में जूते पहनकर चलने वाले लोगों के मुकाबले बेहतर प्रदर्शन किया है.

आइए जाने कि नंगे पैर चलने के और कौन से फायदे हो सकते हैं

  • नंगे पैर चलने से बौडी पोश्चर सही रहता है. इससे कमर भी सीधी रहती है. इससे कमर और रीढ़ की हड्डी से जुड़ी बहुत सी परेशानियां दूर हो जाती हैं.
  • पैरों में होने वाले दर्द में भी नंगे पांव चलने से फायदा होता है.
  • नंगे पैर चलने से खून का प्रवाह सही रहता है. इससे पैरों का निचला हिस्सा मजबूत होता है.
  • एक शोध के अनुसार, नंगे पैर चलने से तनाव भी कम होता है और दिमाग शांत होता है.

देश के 15 करोड़ लोग हैं इस बीमारी से पीड़ित, आप भी करें चेक

देश के करीब 15 करोड़ लोगों को मानसिक स्वास्थ से संबंधित देख भाल की जरूरत होती है. राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2015-16 के आंकड़ों में ये बात सामने आई है. मानसिक स्वास्थ्य के लक्षणों और मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं की जागरूकता में कमी के कारण देश में उपचार के बीच अंतर पैदा हुआ है.

जानकारों के मुताबिक ज्यादातर लोगों की ये परेशानी केवल देखभाल से ठीक हो सकती है. आपको बता दें कि इस तरह की बीमारियों के लक्षण में तनाव, थकान, शरीर का दर्द है. इसके अलावा किसी के साथ बैठने या बस बात करते रहने का दिल करता है. इस तरह की बीमारियों का समय पर इलाज शुरू नहीं किया गाया तो बीमारी समय के साथ गंभीर होती जाती है.

इन परेशानियों के पीछे अवसाद के अलावा मानसिक स्वास्थ्य, गरीबी, घरेलू हिंसा और कम उम्र में विवाह जैसी समस्याएं जुड़ी हो सकती हैं. इसलिए जरूरी है कि इसको बड़े पैमाने पर देखा जाए. आपको बता दें कि सरकार की ओर से भी इस तरह की परेशानियों के लिए कुछ प्रभावशाली कदम नहीं देखा गया है. यही कारण है कि देश के केवल 27 प्रतिशत जिलों में मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम है, जबकि कई जगहों पर इसकी पूरी टीम तक नहीं है. भारतीय लोग मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों के प्रति इम्यून नहीं है, लेकिन इस बात में भरोसा नहीं करते कि उन्हें भी यह समस्या हो सकती है.

मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के लिए ये करें

  • खड़े या साबूत अनाजों से तैयार आहार का उपभोग करें
  • अपने आहार में हरी साग सब्जियों, प्रटीन युक्त, स्वस्थ वसा और जटिल कार्बोहाइड्रेट वाले आहारों को शामिल करें
  • खूब पानी पिएं. ज्यादा पानी पीने से लिम्फैटिक सिस्टम से विषाक्त पदार्थ दूर होते हैं
  • यह ऊतकों को डिटौक्सीफाई और फिर से बनाने के लिए आवश्यक हैं

बिना स्मोक करे ही महिलाएं हो रही है लंग कैंसर की शिकार

डा. अरविंद कुमार ने थोरेसिक सर्जन के रूप में पूरे विश्व में अपनी एक विशेष पहचान बनाई है. डा. कुमार ने 10  हजार से अधिक थोरेसिक सर्जरियां की हैं. वे मिनिमली इनवेसिव (की-होल) और रोबोटिक सर्जरी में भी दक्ष हैं. भारत में सबसे पहले “विडियो असिस्टेड थोरोस्कोपिक सर्जरी (वीएटीएस)” का श्रेय भी उन्हीं को जाता है.

डा. कुमार ने नई दिल्ली स्थित औल इंडिया इंस्टीट्यूट औफ मेडिकल साइंसेस (एम्स) से एम.बी.बी.एस और फिर एम.एस. (सर्जरी) की पढ़ाई की और फिर यहीं कईं वर्षों तक एक सर्जन और प्रोफेसर के रूप में काम किया. डा. कुमार को कईं विश्व प्रसिद्ध संस्थाओं से अंतर्राष्ट्रीय फैलोशिप प्राप्त है जिनमें लिवरपुल हौस्पिटल सिडनी, औस्ट्रेलिया, युनिवर्सिटी औफ फ्लोरिडा, यूएसए आदि सम्मिलित हैं. चिकित्सा के क्षेत्र में उनके उत्कृष्ट योगदान

को देखते हुए उन्हें 2014 में एमिनेंट मेडिकल पर्सन औफ द ईयर श्रेणी में, डा. बी.सी.राय पुरुस्कार सहित कई सम्मान मिले हैं.

वर्तमान में डा. कुमार, नई दिल्ली स्थित श्री गंगाराम हौस्पिटल में सेंटर फौर चेस्ट सर्जरी के चेयरमैन और इंस्टीट्यूट औफ रोबोटिक सर्जरी के निदेशक के रूप में अपनी सेवाएं दे रहे हैं. वे  लंग केयर फाउंडेशन के फाउंडर एंड मैनेजिंग ट्रस्टी भी हैं.

देखा जाए तो पिछले कुछ वर्षों में लंग कैंसर के मामलों में तेजी से वृद्धि हो रही है. पहले इसे “स्मोकर्स डिसीज” कहा जाता था लेकिन अब स्थिति पूरी तरह बदल चुकी है. अब युवा, महिलाएं और धुम्रपान न करने वाले भी तेजी से इस की चपेट में आ रहे हैं. लंग केयर फाउंडेशन द्वारा हाल में किए एक अध्ययन के अनुसार, भारत में लंग कैंसर के शिकार 21 प्रतिशत लोग 50 से कम उम्र के हैं.  इन में से कुछ की उम्र तो 30 वर्ष से भी कम है.

पुरुषों के साथसाथ  महिलाएं भी अब इस की चपेट में अधिक आ रही हैं. जो अनुपात पहले 10 पुरुषों पर 1 महिला का था वो अब बढ़कर 4 हो गया है. आइये जानते हैं डा. अरविन्द कुमार से इस बीमारी से जुड़ी विस्तृत जानकारी;

लंग कैंसर क्या है और कैसे होता है?

फेफडों में असामान्‍य कोशिकाओं का अनियंत्रित विकास होने पर लंग कैंसर होता है.  यह कोशिकाएं फेफड़ों के किसी भी भाग में या वायुमार्ग (ट्रैकिया) में भी हो सकती हैं. लंग कैंसर की कोशिकाएं बहुत तेजी से विभाजित होती हैं और बड़ा ट्यूमर बना लेती हैं. इन के कारण फेफड़ों के कार्य में बाधा पहुंचती है. विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन के अनुसार प्रति वर्ष विश्‍व भर में 76 लाख लोगों की मृत्‍यु फेफड़ों के कैंसर के कारण होती है जो विश्‍व में होने वाली मृत्यु का 13 प्रतिशत है.

लंग कैंसर मुख्य रूप से किस वजह से होता है?

लंग कैंसर के 10 में से 5 मामलों में सब से प्रमुख कारण तंबाकू का सेवन होता है. लेकिन अब स्थिति  बदल रही है. अब लंग कैंसर के मामले धुम्रपान न करने वालों में भी तेजी से बढ़ रहे हैं.

जो लोग धुम्रपान करने वालों के साथ रहते हैं, सेकंड हैंड स्मोकिंग के कारण उन में भी लंग कैंसर होने की आशंका 24 प्रतिशत तक बढ़ जाती है.

सीओपीडी से पीड़ित लोगों में लंग कैंसर का खतरा चार से छह गुना बढ़ जाता है. इस के अलावा वायु प्रदूषण और अनुवांशिक कारणों से भी लंग कैंसर होता है.

कोई कैसे समझे की उसे लंग कैंसर हो गया है?  इस के शुरूआती लक्षण क्या हैं?

लगातार अत्‍यधिक खांसी रहना ,बलगम में खून आना , सांस लेने और निगलने में समस्‍या आना, आवाज कर्कश हो जाना,  सांस लेते समय तेज आवाज आना, न्‍युमोनिया हो जाना जैसे लक्षण दिखें तो समझें कि लंग कैंसर हो सकता है.

लगातार खांसी रहना और खांसी में खून आना, लंग कैंसर के प्रमुख लक्षण है जो पुरुष व महिलाओं दोनों में होते है. बाकी लक्षण ऐसे है जो दूसरी बीमारियों में भी हो सकतें है.

फेफड़ों के कैंसर के नए और आधुनिक उपचार क्या है?

कैंसर का उपचार इस पर निर्भर करता है कि कैंसर का प्रकार क्‍या है और यह किस चरण पर है. लंग कैंसर के इलाज के कई तरीके हैं – सर्जरी, कीमोथेरेपी, टारगेटथेरेपी, रेडिएशनथेरेपी  एवं इम्यूनोथेरपी.

फेफड़ों के कैंसर की सर्जरी

फेफड़ों के कैंसर की सर्जरी तब संभव है जब उस का उपयुक्त स्टेज पर डायग्नोसिस हो जाए. पहले और दूसरे चरण में सर्जरी कारगर रहती है, क्यों कि तब तक बीमारी फेफड़ों तक ही सीमित रहती है. सर्जरी थर्ड ए स्टेज में भी की जा सकती है, लेकिन जब कैंसर फेफड़ों के अलावा छाती की झिल्ली से बाहर निकल जाता है या दूसरे अंगों तक फैल जाता है तब सर्जरी से इस का उपचार नहीं किया जा सकता. ऐसी स्थिति में कीमोथेरेपी, टारगेट थेरेपी और रेडिएशन थेरेपी की सहायता ली जाती है.

कीमोथेरेपी

कीमोथेरेपी में  साइटोटौक्सिक दवाइयों को नस में इंजेक्शन के द्वारा शरीर के अंदर पहुंचाया जाता है, जो कोशिकाओं के लिए घातक होती है. इस से अनियंत्रित रूप से बढ़ती हुई कोशिकाएं तो नष्‍ट होती हैं साथ ही यह कई स्‍वस्‍थ कोशिकाओ को  भी प्रभावित करती है.

टारगेट थेरैपी

कीमोथेरैपी के दुष्‍प्रभावों को देखते हुए टारगेट थेरैपी का विकास किया गया है. इस में सामान्‍य कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाए बिना कैंसरग्रस्‍त कोशिकाओं को नष्‍ट किया जाता है. इस के साइडइफेक्‍टस  भी कम होते हैं.

रैडिएशन थेरैपी

रेडिएशन थेरेपी में कैंसर कोशिकाओं को मारने के लिये अत्‍यधिक शक्‍ति वाली उर्जा की किरणों का उपयोग किया जाता है. इस का उपयोग कई कारणों से किया जाता है. कईं बार इसे सर्जरी के बाद, बची हुई कैंसर कोशिकाओं को क्लीन अप करने के लिए किया जाता है तो कई बार इसे सर्जरी के पहले कीमोथेरेपी के साथ किया जाता है ताकि सर्जरी के द्वारा निकाले जाने वाले ट्युमर के आकार को छोटा किया जा सके.

इम्‍यूनोथेरैपी थेरैपी

बायोलौजिकल उपचार के अंतर्गत कैंसरग्रस्‍त कोशिकाओं को मारने के लिये इम्‍यून तंत्र को स्‍टीम्‍युलेट किया जाता है.  पिछले 2-3 वर्षों से ही इस का इस्तेमाल लंग कैंसर के उपचार के लिए किया जा रहा है. कई रोगियों में इसे मूल इलाज के रूप में इस्तेमाल किया जाता है.

फेफड़ों के कैंसर से अपना बचाव कैसे किया जा सकता है ?

  • धुम्रपान न करें, न ही तंबाकू का सेवन करें.
  • प्रदूषित हवा में सांस लेने से बचें.
  • विषैले पदार्थों के संपर्क से बचें. कोयला व् मार्बल की खदानों से दूर रहें.
  • अगर मातापिता या परिवार के किसी सदस्‍य को लंग कैंसर है तो विस्‍तृत जांच कराएं.
  • घर में वायु साफ करने वाले पौधे जैसे कि एरिका पौम, एलुवेरा, स्नैक प्लांट इत्यादि लगवाएं.
  • शारीरिक रूप से सक्रिय रहें. नियमित रूप से योग और एक्‍सरसाइज करें.

चाहिए तेज तर्रार दिमाग वाले बच्चे, तो ये खबर आपके लिए है

प्रेग्नेंसी में बच्चे की सेहत का राज होता है प्रेग्नेंसी के दौरान मां की डाइट. गर्भावस्था में मां का खानपान किस तरह का है इसपर निर्भर करता है कि बच्चे का सेहत कैसा होने वाला है. अगर आप चाहती हैं कि आपका बच्चा सेहतमंद रहे, मानसिक तौर पर तेज हो तो ये खबर आपके लिए है. बच्चों को मानसिक तौर पर स्मार्ट बनाने के लिए जरूरी है कि मांएं को पोषक खाद्य पदार्थों के साथ साथ विटामिंस की खुराक लेती रहें.

अमेरिका में हुए एक शोध में ये बात सामने आई कि प्रेग्नेंसी के दौरान जिन महिलाओं ने विटामिन सप्लिमेंट की खुराक लेती हैं उनके बच्चे, उन महिलाओं के बच्चों की तुलना में दिमागी तौर पर अधिक तेज तर्रार हैं जिनकी माएं गर्भावस्था के दौरान विटामिन सप्लिमेंट नहीं लेती थी.

आपको बता दें कि इस शोध को 9 से 12 साल के करीब 3000 बच्चों पर किया गया है. जानकारों की माने तो प्रेग्नेंसी के दौरान मां के खानपान का असर बच्चों के संज्ञानात्मक  क्षमताओं पर होता है. विटामिन के तत्व जो प्रेग्नेंसी में बच्चों की मानसिक क्षमताओं को सकारात्मक ढंग से प्रभावित करते हैं वो हैं फौलिक एसिड, रिबोफ्लेविन, नियासिन और विटामिन बी12, विटामिन सी और विटामिन डी. इन तत्वों को अपनी डाइट में शामिल करने वाली माओं के बच्चों में सोचने, समझने की क्षमता अच्छी रहती है. शोधकर्ताओं के अनुसार प्रेग्नेंसी के दौरान सिर्फ भोजन से इन सभी पोषक तत्वों की भरपूर और पर्याप्त मात्रा नहीं मिल पाती. इसलिए भोजन के साथ-साथ विटामिन सप्ल‍िमेंट्स की खुराक भी जरूरी हैं.

आपको बता दें कि शुरुआती तीन साल के दौरान ही जो बच्चे ताजे फल, हरी सब्ज‍ियां, मछली और अनाज खाते हैं, उनका स्कूल में रिजल्ट बेहतर होता है. कई शोधों में ये बात स्प्ष्ट हुई है कि जिन बच्चों की डाइट अच्छी रहती है उनमे कौन्फिडेंस भी बेहतर होता है.

प्रेग्नेंसी के दौरान इन चीजों से रहें दूर

प्रेग्नेंसी के दौरान महिलाओं को कई तरह की सावधानियां बरतनी पड़ती है जिससे कोख में पल रहे बच्चे को किसी तरह की परेशानी ना हो. इस दौरान ध्यान रखना चाहिए कि गर्भवती महिला को अच्छा खान पान मिले, नियमित एक्सरसाइज और जरूरी सप्लीमेंट्स मिलते रहें. इन बातों के अलावा ऐसी और भी कुछ चीजें हैं जिनमें लापवाही करना नुकसानदायक हो सकता है.

आइए कुछ ऐसी ही बातों के बारे में विस्तार से जाने.

दूर रहें नुकसानदायक गंध ले

कई चीजों के गंध आपके बच्चे के लिए हानिकारक हो सकता है. अगर आप दीवारों पर पेंट करने वाली हैं तो रुक जाइए. पेंट की गंध आपके बच्चे के लिए हानिकारक हो सकता है.

 गर्म पानी से ना नहाएं

गर्भावस्था के दौरान गर्म पानी से नहाना खतरनाक हो सकता है. हालांकि हमेशा इसका असर बुरा नहीं होता. लेकिन संभव है कि शरीर का तापमान 101 डिग्री तक पहुंच जाए और आपका ब्लड प्रेशर गिर सकता है. ऐसा होने पर आपके बच्चे को जरूरी पोषक तत्व और औक्सीजन की कमी हो सकती है. और्गैनाइजेशन ऑफ टेराटोलौजी इन्फौर्मेशन सर्विस की माने तो गर्भवती महिलाओं को अपने शरीर का तापमान 101 डिग्री से नीचे ही रखने की कोशिश करनी चाहिए.

फलों के जूस के अत्यधिक सेवन से बचें

जी हां, गर्भावस्था में अत्यधिक जूस के सेवन से बचें. इसका प्रमुख कारण है कि इसमें शुगर की मात्रा अधिक होती है. जूस पीने से बेहतर है कि आप फलों को खाएं.

पीठ के बल ना सोएं

प्रेग्नेंसी के दौरान पीठ के बल सोने से बचें. इस वक्त सबसे अच्छा होता है कि आप बाईं ओर करवट ले कर सोएं. हालांकि आपके लिए ये थोड़ा मुश्किल हो सकता है. आपको बता दें कि जब गर्भवती महिला पीठ के बल लेटती है तो गर्भाशय का पूरा भार शरीर के दूसरे अंगों पर पड़ता है. इससे ब्लड सर्कुलेशन भी बिगड़ सकता है. पीठ के बल सोने से सांस संबंधी समस्याएं भी हो सकती हैं.

 स्किन केयर प्रोडक्ट्स

आप अपनी त्वचा पर कुछ भी लगाएंगी वो आपके शरीर द्वारा सोख लिया जाता है. इसका प्रभाव आपके बच्चे पर भी होता है. इस दौरान आपको किसी भी तरह के केमिकल्स के उपयोग से बचाव करना चाहिए. खासतौर पर एसिड, रेटिनौयड और बेंजाइल पेरोक्साइड से दूरी बनाएं. अपने ब्यूटी प्रोडक्ट खरीदने से पहले एक बार उसके कंपोनेंट्स जरूर चेक कर लें.

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