रीमा का सारा दिन चिड़चिड़ाना, छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा करना और बेवजह रोने लग जाना, नींद न आना, किसी काम में मन न लगना और अकेले बैठना, उसके इस व्यवहार से घर के सारे लोग परेशान थे. पति चिल्लाता कि कोई कमी नहीं है, फिर भी यह खुश नहीं रह सकती है, सास अलग ताने मारती कि इसे तो काम न करने के बहाने चाहिए. जब देखो अपने कमरे में जाकर बैठ जाती है.
भौतिकतावादी संस्कृति से उपजी समस्याएं
रीमा की तरह कितने लोग हैं जो आज ऐसे हालातों से गुजर रहे हैं और जानते तक नहीं कि वे डिप्रेशन का शिकार हैं. वक्त जिस तेजी से बदला है और भौतिकवादी संस्कृति और सोशल मीडिया ने जिस तरह से हमारे जीवन में पैठ बनाई है, उसने डिप्रेशन को बड़े पैमाने पर जन्म दिया है और हर उम्र का व्यक्ति चाहे बच्चा ही क्यों न हो, इससे जूझ रहा है. मानसिक रूप से एक लड़ाई लड़ने वाले इंसान को बाहर से देखने पर अंदाजा नहीं लगाया जा सकता कि वह भीतर से टूट रहा है. यहां तक कि ऐसे लोग जिनकी जिंदगी रुपहले पर्दे पर चमकती दिखाई देती है, भी इसका शिकार हो चुके हैं, जैसे आलिया भट्ट, वरुण धवन, मनीषा कोईराला, शाहरुख खान, और प्रसिद्ध लेखक जे.के. ऱॉउलिंग, कुछ ऐसे नाम हैं जो डिप्रेशन का शिकार हो चुके हैं. सुशांत सिंह राजपूत की मौत के बाद से डिप्रेशन को लेकर समाज में चिंता और ज्यादा बढ़ गई है. केवल पैसे या स्टेट्स की कमी ही अब इसकी वजह नहीं रही है. भौतिकतावादी संस्कृति ने दिखावे की संस्कृति को बढ़ाया है डिसकी वजह से हर जगह प्रतिस्पर्धा बढ़ी है और जो इस प्रतिस्पर्धा में खुद को असफल या पीछे रह जाने के एहसास से घिरा पाता है, वह डिप्रेशन का शिकार हो जाता है. संघर्ष करने, चुनौतियों का सामना और सहनशीलता कम होने से केवल ‘अपने लिए’ जीने की चाह ने संबंधों में दूरियां पैदा कर दी हैं. यही वजह है कि व्यक्ति समाज से कटा हुआ अनुभव करता है और अकेलेपन का शिकार हो जाता है.
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‘‘मैं इन दिनों बहुत डिप्रेस्ड फील कर रही हूं.’’ ‘‘मैं बहुत लो फील कर रहा रहा हूं,’’ ये वाक्य अकसर सुनाई देते हैं तब पता चलता है कि वह डिप्रेशन में है, लेकिन कोई इस स्थिति में जा रहा है, अगर पहले ही पता चल जाए तो समय रहते उसे संभाला जा सकता है और आत्महत्या करने जैसी दुखद पीड़ा से उन्हें बचाया जा सकता है.
डॉ. समीर पारेख, डायरेक्टर, मेंटल हेल्थ एंड बिहेवेरियल साइंसेज, फोर्टिस हेल्थकेयर के अनुसार, ‘‘आज भी डिप्रेशन के लिए थेरेपिस्ट की मदद लेने की बात को लेकर एक हिचक कायम है. लेकिन डिप्रेशन से ग्रस्त व्यक्ति को यह समझाएं कि जैसे चोट लगने पर आप डॉक्टर के पास जाते हैं, उसी तरह थेरेपिस्ट से नियमित अंतराल पर मिलना जरूरी है. यह एक बीमारी है, यह बात स्वीकार कर लेना, उनके लिए आवश्यक है. अगर फिर भी वह जाने को तैयार न हो तो उसे योग या मेडीटेशन करने, संगीत सीखने या किसी हॉबी को अपनाने की सलाह दी जा सकती है. इस तरह उसे अपना ध्यान दूसरी जगह लगाने में मदद मिलेगी.’’
कैसे पहचानें
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक डिप्रेशन एक मानसिक बीमारी है, जो आमतौर पर मनस्थिति में होने वाले उतार-चढ़ाव और कम समय के लिए होने वाली भावनात्मक प्रतिक्रिया है, जबकि चिंता में व्यक्ति डर और घबराहट का अनुभव करता है. जब कोई व्यक्ति किसी स्थिति में खुद को बेबस महसूस करता है, तो इसे चिंता कहते हैं. लेकिन जब व्यक्ति को लगने लगता है उसके जीने का कोई अर्थ नहीं है, तो यह स्थिति डिप्रेशन कहलाती है. डिप्रेशन का अर्थ होता है आशाहीनता की स्थिति. जब मनुष्य को अपने जीवन में किसी भी प्रकार की उम्मीद या आशा की संभावना नहीं दिखाई देती, तो वह डिप्रेशन की स्थिति में चला जाता है. तब व्यक्ति हमेशा उलझन में और हारा हुआ महसूस करता है. उसके अंदर आत्मविश्वास की कमी हो जाती है, काम में ध्यान नहीं लगा पाता और अकेला रहना पसंद करता है. समाजशास्त्री एमिल दुरखाइम ने अपनी पुस्तक ‘आत्महत्या’ में लिखा कि जो लोग अपने समाज से कम जुड़े या कटे होते हैं, अकसर ऐसे ही लोग आत्महत्या अधिक करते हैं. यदि कोई व्यक्ति उदास है, हताश महसूस कर रहा है, तो उसे नज़रअंदाज़ करने के बजाय उसे मनोवैज्ञानिक के पास ले जाएं
भ्रम होना या किसी बात को लेकर निश्चित न हो पाना, बार-बार भूलना, हर छोटी घटना पर अचानक निराश हो जाना, लगातार सोचना और तनाव में रहना. सोचते रहने से उनका एक नकारात्मक दृष्टिकोण बन जाता है और वह हर किसी को शक की नजर से देखने लगता है. खुद पर उसका विश्वास उठने से शंका ही उसे घेरे रहती है और अपने ही वजूद पर सवाल खड़े करता रहता है कि “मैं आखिर क्यों जी रहा/रही हूं, हर चीज इतनी बुरा क्यों है, मैं इससे बेहतर क्यों नहीं हो सकता/सकती’’ आदि. अपने ही सवालों में जब तकोई व्यक्ति उलझा दिखाई दे तो समझ लें कि वह डिप्रेशन से घिरा है.
सोने के तरीके में आने वाला बदलाव भी इसकी बड़ी पहचान है. या तो व्यक्ति बहुत ज्यादा सोएगा या नींद नहीं आएगी, रात में बेचैनी बनी रहेगी और सुबह उठने की इच्छा नहीं होगी.
डिप्रेशन होने पर या तो भूख बढ़ जाती है या कम हो जाती है. कुछ का वजन कम होने लगता है और कुछ का बढ़ने लगता है. उसे लगता है वह बीमार है. सिरदर्द, पेट या पीठ दर्द हमेशा बना रहता है.
इसके अतिरिक्त ऐसे लोगों को गुस्सा बहुत आता है, वह भी बिना कारण के. डॉं. समीर पारेख कहते हैं इसके शिकार लोगों में सोशल मीडिया की लत देखने को भी मिली है. वे सोशल मीडिया अपडेट के लिए लगातार उसे देखते रहते हैं. निरंतर सोशल मीडिया से जुड़े रहना अनियंत्रित डिप्रेशन को बढ़ाता है.
आपको किसी व्यक्ति में अचानक बदलाव महसूस हो तो उसे डिप्रेशन से बचाने के लिए पहले से तैयारी अवश्य कर लें.
क्या करें
- कोशिश करें कि वह अकेला न रहे. उसकी उदासी को दूर करने के लिए उसका मन किसी ऐसी चीज में लगाएं जो उसे पसंद हो.
- उससे ज्यादा से ज्यादा बात करने की कोशिश करें. उसकी सुनें, अपनी राय कम दें. वह भी कहे, उसके आधार पर उसका आकलन करने के बजाय उसके अंदर के डर, निराशा और सवालों को बाहर आने दें.
- कोई डिप्रेशन में है, यह समझने के लिए, इस बीमारी के बारे में जानकारी हासिल करें. इसके लक्षणों के बारे में पढ़ें और ऐसे लोगों के लेख भी जिन्होंने डिप्रेशन से बाहर निकलने में दूसरों की मदद की थी. जैसे ऐसे लोगों के सोने के तरीकों में बदलाव आ जाता है. वे या केवल कुछ घंटों के लिए सोते हैं या बहुत ज्यादा समय तक सोते रहते हैं. उनके खाने-पीने की आदतों के बदलाव पर भी गौर करें. कहीं वे पहले की अपेक्षा ज्यादा तो नहीं खाने लगे हैं या उन्हें भूख लगनी बंद तो नहीं हो गई है. उनके मूड में भी परिवर्तन आने लगता है. गुस्सा, चिंता, अपराधबोध, उदासी की भावना से वे घिरे रहने लगते हैं. अगर ऐसा दिखे तो उनके प्रति संवेदनशील रहें और अपने व्यवहार से जताएं कि आपको उनकी परवाह है.
- ऐसे लोगों के व्यवहार और मनोदशा पर बहुत ज्यादा बात करने के बजाय, उन्हें महसूस कराएं कि वे जैसे भी हैं, आप हमेशा उनका साथ देंगे और बेहिचक होकर वे उनसे जो चाहे शेयर कर सकते हैं.
- उन्हें सलाह न दें, न ही आश्वासन कि सब ठीक हो जाएगा. उनकी मन की उथल-पुथल को समझें. यह जानें कि वे क्या करना चाहते हैं. ऐसे लोगों के मन में अकसर आत्महत्या या खुद को नुकसान पहुंचाने के ख्याल आते हैं. उन्हें विश्वास में लेकर ही पता लगाया जा सकता है उनके दिमाग में ऐसी बातें तो नहीं आ रही हैं.
- परिवार, समाज और प्रियजनों के लिए उनकी कितनी अहमियत है, इसका एहसास समय-समय पर कराते रहें. निरर्थक होने की भावना डिप्रेशन को बढ़ाती है.
- उनकी मदद करते समय उन्हें ऐसा न लगे कि वे खुद कोई काम नहीं कर सकते हैं. डिप्रेशन से घिरे लोगों को अकसर लगता है कि उनकी जरूरत किसी को नहीं है. इसलिए वे दूसरों पर बोझ न बनें, यह सोचकर एक दूरी बनाने लगते हैं. इस तरह वे और ज्यादा अकेले हो जाते हैं जो उनके लिए अच्छा नहीं है. उन्हें एहसास कराएं कि आप उनकी जिंदगी में बहुत महत्व रखते हैं.
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- ऐसे लोगों का ख्याल रखना आसान नहीं होता है, इसलिए धैर्य रखें. उनसे किसी तरह की अपेक्षा रखे बिना उन्हें भरपूर प्यार दें. ऐसे लोगों के अंदर आशावादी सोच पैदा करना उन्हें ठीक करने की दिशा में पहला कदम होता है. जिंदगी को एक और मौका देने के लिए संघर्ष करने की उन्हें वजह दें, वे जल्दी ही अपने डिप्रेशन से बाहर निकल आएंगे. उन्हें वापस सामान्य जिंदगी जीने के लिए समय व एक स्पेस दोनों की जरूरत होती है.