Monsoon Special: बरसात में होने वाले फ्लू से बचने के उपाय खोज रही हैं आप?

गर्मी का मौसम लगभग जा चुका है और अब तो मौसम मिनट-मिनट में बदलने भी लगा है. हम जुलाई के महीने में कदम रख चुके हैं, तो जाहिर सी बात है कि आप मौनसून की पहली बारिश का भी बड़े मन से इंतजार कर रही होगीं. कहीं कहीं तो लोग इसका आनंद ले चुके हैं.लेकिन इस दौरान आपको अपनी सेहत को ले कर थोड़ा चौकन्‍ना भी रहना होगा क्‍योंकि इस मौसम में ठंड और फ्लू बड़ी तेजी के साथ फैलते हैं. बरसात के मौसम के साथ फ्लू का भी साथ में आना कोई नई बात नहीं है.

फ्लू एक अच्‍छे खासे इंसान को भी बिस्‍तर पर ला कर पटक देती है. इसलिये आपको कुछ जरुरी सावधानियां रखनी चाहिये. यहां पर हम ने कुछ आसान से नुस्‍खे दिये हुए हैं, जिसे आजमा कर आप बरसात के मौसम में होने वाले फ्लू से खुद को और अपने परिवार को बचा सकती हैं.

1. हाथों को धोएं

हाथों को खाना खाने से पहले जरुर धोना चाहिये. अगर आप किसी जगह पर साबुन का प्रयोग नहीं कर पा रहे हैं, तो सेनिटाइजर का प्रयोग करें.

2. अपने मुंह को बाहर हमेशा ढंक कर रखें

चाहे आपका दोस्‍त बीमार हो या फिर आप खुद, अपने चेहरे को रुमाल से या किसी कपड़े से ढंक कर रखें. इससे बीमारी एक दूसरे तक नहीं पहुंचेगी.

3. ठंडे खाद्य पदार्थ ना खाएं

इन दिनों आइस क्रीम, गोला, कोल्‍ड ड्रिंक या फिर कोई अन्‍या ठंडा खाद्य पदार्थ का सेवन ना करें. इस मौसम में वाइरल इंफेक्‍शन तुरंत फैलता है.

4. स्‍वस्‍थ भोजन खाएं

यदि आप इन दिनों स्‍वस्‍थ भोजन खाएंगी जिसमें हरी सब्‍जियां, प्रोटीन युक्‍त आहार, ताजे फल और साबुत अनाज शामिल रहेगा, तो आपका इम्‍यून सिस्‍टम और ज्‍यादा मजबूत बनेगा. इससे आप बुखार, कम और अन्‍य इंफेक्‍शन से डट कर मुकाबला कर सकते हैं.

5. खूब पानी पियें

पानी एक सस्‍ता इलाज है जिससे आप फ्लू से बच सकती हैं. रिसर्च से पता चला है कि जो लोग लगभग 3 गिलास पानी पीते हैं उन्‍हें दर्द भरे गले और नाक जाम होने की शिकायत उन लोगों की तुलना में ज्‍यादा होती है जो दिनभर में 8 गिलास पानी पीते हैं.

6. गरम चाय पियें

बरसात के समय आपको कम से कम एक कप चाय जरुर पीनी चाहिये. अच्‍छा होगा कि आप चाय में अदरक और इलायची भी डाल लें तो. पर चाय के आदि मत बनियेगा. यह एक प्राकृतिक एंटीबायोटिक का काम करती है.

7. तनाव से दूर रहें

तनाव लेने से स्‍वास्‍थ्‍य को हानि पहुंच सकती है. इससे आपको फ्लू और भी तेजी से जकड़ लेगा. स्‍ट्रेस लेने से इम्‍यून सिस्‍टम कमजोर होने लगता है और आपके ठीक होने के चांस कम हो सकते हैं.

8. धूम्रपान छोडें

स्‍मोकिंग करने से तो वैसे भी कई समस्‍याएं हो जाती हैं. लेकिन इससे खास कर के सांस संबन्‍धि समस्‍या जैसे ब्रोंकाइटिस होने की समस्‍या सबसे ज्‍यादा रहती है. यह इम्‍यून सिस्‍टम को भी कमजोर बना देता है.

मुझे कैंसर से डर लगता है, कैंसर से बचने के लिए मैं क्या कर सकती हूं?

सवाल

मुझे कैंसर से बहुत डर लगता है. लेकिन सब कहते हैं जिस को कैंसर होना है तो हो कर ही रहेगा. क्या इस से बचने के लिए हम कुछ नहीं कर सकते हैं?

जवाब

यह सही है कि कैंसर एक बहुत गंभीर और जानलेवा स्वास्थ्य समस्या है. कैंसर किसी को किसी भी उम्र में हो सकता है. लेकिन यह सही नहीं है कि इस से बचने के लिए आप कुछ नहीं कर सकते. कुछ उपाय हैं जिन के द्वारा आप कैंसर के खतरे को काफी कम कर सकते हैं जैसे कैंसर से होने वाली कुल मौतों में से एकतिहाई धूम्रपान के कारण होती हैं. इस के अलावा खानपान की गलत आदतें, वजन अधिक होना और शारीरिक सक्रियता की कमी भी कैंसर के प्रमुख रिस्क फैक्टर है.

विश्वभर में हुए कई शोधों में यह बात सामने आई है कि कैंसर के कुल मामलों में से 25 से 30त्न स्वस्थ्य व पोषक भोजन का सेवन कर के, शारीरिक रूप से सक्रिय रह कर और मोटापे का शिकार न हो कर बचे रह सकते हैं.

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परिवार के 2 लोग और एक परिचित कैंसर से जूझ रहे हैं. पूरे विश्वभर में कैंसर के मामले भयावह तरीके से बढ़ रहे हैं. मैं जानना चाहती हूं कि इस के कारण क्या हैं?

जवाब

आधुनिक जीवनशैली और खानपान की बदली आदतों ने कैंसर का खतरा बढ़ दिया है. आज फास्ट और जंक, प्रोसैस्ड फूड का चलन बढ़ गया है जिस में कैलोरी की मात्रा काफी अधिक और पोषकता कम होती है. गैजेट्स के बढ़ते चलन ने शारीरिक सक्रियता को काफी कम कर दिया है जिस के परिणामस्वरूप उर्जा का असंतुलन हो जाता है. विश्वभर में मोटापा एक महामारी की तरह फैल रहा है जो कैंसर का एक बड़ा रिस्क फैक्टर है. अनिद्रा और तनाव का बढ़ता स्तर भी इस समस्या को और बढ़ा रहा है. –डा. देनी गुप्ता

सीनियर कंसल्टैंटमैडिकल औंकोलौजीधर्मशिला नारायणा सुपर स्पैश्यलिटी हौस्पिटलदिल्ली   

पाठक अपनी समस्याएं इस पते पर भेजें : गृहशोभाई-8रानी झांसी मार्गनई दिल्ली-110055.

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मेरी सास को ब्रेस्ट कैंसर है, ऐसे में इम्यूनो थेरैपी कराना कितना सही होगा?

सवाल

मेरी सास को स्तन कैंसर है. क्या उन के लिए इम्यूनो थेरैपी से उपचार कराना ठीक रहेगा?

जवाब

कैंसर के उपचार के लिए कई थेरैपियां उपलब्ध हैं. इन का चयन इस आधार पर किया जाता है कि कैंसर कौन से चरण में हैमरीज का संपूर्ण स्वास्थ्य कैसा है और उस की उम्र कितनी है. जिन मरीजों की उम्र 75 से 80 वर्ष हैकीमोथेरैपी और रेडिएशन थेरैपी के साइड इफैक्ट्स को देखते हुए टारगेटेड थेरैपी और इम्यून थेरैपी से उपचार करने का प्रयास किया जाता है.

बायोलौजिकल या इम्यूनो थेरैपी कैंसर के एडवांस ट्रीटमैंट में अपना एक अलग ही महत्त्व रखती है. इस में कैंसर से ग्रस्त कोशिकाओं को मारने के लिए इम्यून तंत्र को स्टिम्युलेट किया जाता है. इस उपचार में मोनोक्लोनल ऐंटीबौडीजचैकपौइंट इनहिबिटर्सकैंसर वैक्सीनसाइटोकिन्स ट्रीटमैंट के द्वारा मरीज को ठीक किया जाता है.

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मेरे पति स्मोकिंग करते हैं. उन के फेफड़ों की स्थिति को देखते हुए डाक्टर ने उन्हें स्मोकिंग पूरी तरह बंद करने का सुझाव दिया है. क्या इस कारण मेरे और परिवार के दूसरे सदस्यों के लिए भी फेफड़ों के कैंसर का खतरा बढ़ जाएगा?

जवाब

विश्वभर में धूम्रपान को फेफड़ों के कैंसर का सब से बड़ा रिस्क फैक्टर माना जाता है. आप धूम्रपान नहीं करतीं लेकिन अपने पति के कारण आप पैसिव स्मोकर तो हैं ही. ऐसे में आप के लिए फेफड़ों के कैंसर का खतरा सामान्य लोगों से अधिक है. आप अपने पति को धूम्रपान पूरी तरह बंद करने के लिए सम?ाएं. यह न केवल उन के लिए बल्कि आप और आप के परिवार के लिए भी अच्छा रहेगा. स्मोकिंग और सैकंड हैंड या पैसिव स्मोकिंग केवल फेफड़ों के कैंसर का ही खतरा नहीं बढ़ाता बल्कि श्वासमार्गमुख गुहाआहार नालअग्नाशयपेटआंतमलाशयमूत्राशयकिडनी जैसे 12 प्रकार के कैंसर का खतरा बढ़ाता है.

-डा. देनी गुप्ता

सीनियर कंसल्टैंटमैडिकल औंकोलौजीधर्मशिला नारायणा सुपर स्पैश्यलिटी हौस्पिटलदिल्ली   

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Monsoon Special: इन 7 टिप्स से बरसात में रहेंगे फिट एंड फाइन

चिलचिलाती गरमी से मौनसून की बौछारें राहत तो देती हैं पर बारिश के बाद वातावरण में बढ़ती उमस के कारण वायरल, बैक्टीरियल और फंगल संक्रमण भी सक्रिय हो जाते हैं. इस दौरान डेंगू, मलेरिया आदि के मामले भी बढ़ जाते हैं. फिर उमस भरे मौसम में शरीर में पानी की कमी भी हो सकती है.

तो क्या मौनसून का लुत्फ न उठाएं? नहीं, मौनसून का दिल खोल कर लुत्फ उठाने के लिए बस इन स्वास्थ्य संबंधी उपायों का पालन करें:

 1. मच्छरों से बचाव

वैसे तो डेंगू व मलेरिया के मामले गरमी के महीनों से ही दिखने लगते हैं, लेकिन जब मौनसून की बौछारें शुरू होती हैं तो ये बीमारियां चरम पर पहुंच जाती हैं. उमस बढ़ते ही कीड़ेमकोड़ों को पनपने का माकूल माहौल जो मिल जाता है. ठहरे हुए पानी में मच्छरों को प्रजनन करने की अच्छी जगह मिल जाती है और हवा में बढ़ती उमस उन्हें पनपने का अच्छा मौका मिल जाता है. इसीलिए मच्छरजनित बीमारियों का कहर मौनसून के मौसम में चरम पर होता है. अत: घर के आसपास ठहरे हुए पानी में मच्छर मारने वाली दवा का छिड़काव करें.

2. भरपूर पानी पीते रहें

अत्यधिक उमस का मतलब है कि बहुत ज्यादा पसीना निकलेगा. लिहाजा डीहाइड्रेशन होना पक्का है. पूरे वर्ष की तरह मौनसून के दौरान भी खुद को हाइड्रेटेड रखना जरूरी है. शुद्ध जल का पर्याप्त सेवन करें ताकि आप का शरीर और त्वचा हाइड्रेटेड बनी रहे. इस से आप के शरीर को संक्रमण से लड़ने की ताकत भी मिलती है और आप पानी की कमी होने से भी बचे रहते हैं. इस के अलावा भरपूर पानी पीने से शरीर के विषाक्त तत्त्व भी पेशाब के रास्ते शरीर से बाहर निकलते रहते हैं.

3. बैक्टीरियल एवं फंगल संक्रमण से बचाव

मौनसून के मौसम में बैक्टीरियल और फंगल संक्रमण बड़ी तेजी से फैलता है, क्योंकि इस मौसम का तापमान और नमी उन की वृद्धि के लिए अनुकूल हो जाती है. त्वचा के संक्रमण से बचने के लिए जरूरी है कि आप अपनी त्वचा को ज्यादा समय तक भीगने से बचाएं. सीलन के कारण फंगल संक्रमण बढ़ता है. बैक्टीरियल और फंगल समस्याओं से बचे रहने के लिए ऐंटीबैक्टीरियल साबुन, क्रीम और पाउडर का इस्तेमाल करें, खासकर तब जब आप की त्वचा ज्यादा संवेदनशील हो.

आर्द्र मौसम में फंगल तेजी से फैलता है. त्वचा के मुड़ने वाले स्थानों पर लाल निशान पड़ जाते हैं. इस के अलावा तैलीय त्वचा में तेजी से दाने निकल आते हैं और खुजली भी होने लगती है. बहुत ज्यादा पसीना निकलने की स्थिति में यदि आप त्वचा को सुखा कर नहीं रखते और कपड़े नहीं बदलते हैं तो भी ऐसी समस्याएं बढ़ जाती हैं. ज्यादा देर तक पसीने वाले मोजे पहनने से भी समस्या बढ़ जाती है. इसलिए अपने पैरों और जांघों को सूखा और संक्रमण मुक्त रखें.

स्नान करने के बाद तौलिए से त्वचा और सिर को पोंछ कर सुखा लें. जब भी पैरों को धोएं, उन्हें तौलिए से अच्छी तरह पोंछ कर सुखा लें और उंगलियों के बीच के हिस्सों को भी सुखा लें. इस से आप संक्रमण से बचे रहेंगे. घर में प्रवेश करते ही पैरों को धो लें और संभव हो तो पानी में बेटाडीन की कुछ बूंदें मिला कर उस में पैरों को कुछ देर डुबोए रखें. जरूरत हो तो ऐंटीफंगल पाउडर का भी इस्तेमाल कर सकते हैं. पैरों में हवा की आवाजाही बनाए रखने के लिए खुले जूते या चप्पलें पहनें.

4. तैलीय और बाहर के भोजन से परहेज करें

मौनसून के मौसम में अपचता भी एक बड़ी समस्या होती है. जब उमस अधिक होती है तो शरीर में भोजन पचाने की क्षमता कमजोर पड़ जाती है. फिर जब आप का पाचनतंत्र कमजोर रहता है तो गरिष्ठ भोजन आप के पेट को आसानी से बिगाड़ सकता है. लिहाजा आप अपने पेट को बिगड़ने न दें. इसे संक्रमण की चपेट में न आने दें. तैलीय भोजन भी त्वचा में संक्रमण और अन्य समस्याएं पैदा करने के लिए जिम्मेदार होता है. अत: इस दौरान हलका और आसानी से पचने वाला भोजन ही करें.

इस दौरान चूंकि संक्रमण चरम पर होता है, इसलिए बाहर के भोजन से परहेज करना ही बेहतर होगा. मौनसून के दौरान सड़क किनारे के ढाबों और रैस्टोरैंट में खाना खाने से दूर ही रहें. घर में बना भोजन ही करें. इस से संक्रमण की चपेट में आने की संभावना कम रहेगी, जो इस दौरान वातावरण में तेजी से फैल चुका होता है.

5. आंखों को भी रखें साफ

इस मौसम में आंखों का वायरल संक्रमण भी चिंता का कारण बनता है. हालांकि इस मौसम में संक्रमण से बचना मुश्किल होता है, लेकिन यह तय है कि आंखों की साफसफाई करते रहने से आप संक्रमण के खतरे को कम कर सकते हैं. घर में प्रवेश करते ही साबुन से हाथ धो कर आंखों को पानी से अच्छी तरह धोएं.

हर रात सोने से पहले आंखों में गुलाबजल की कुछ बूंदें डालें. पानी में सल्फर का टुकड़ा डाल कर भी रख सकते हैं. फिर उस पानी से आंखों को साफ कर सकते हैं.

6. प्रतिरक्षण प्रणाली मजबूत रखें

संक्रमण से लड़ने का सब से अच्छा तरीका अपने शरीर को अंदर से मजबूत बना कर रखना है और यह मजबूती सही खानपान से ही संभव हो सकती है. शरीर को चमकदार और अंदर से मजबूत बनाए रखने के लिए नियमित रसदार फल और हरी सब्जियां खाएं. सेब, नाशपाती और अनार जरूर खाएं. भोजन में लहसुन का इस्तेमाल करें. नियमित दही खाएं.

7. साफसफाई के नियमों का पालन करें

मौनसून के दौरान संक्रमण तेजी से फैलता है. इसलिए खुद को जितना साफसुथरा रखेंगे आप के संक्रमित होने की उतनी ही कम संभावना रहेगी. हम सार्वजनिक परिवहन में सफर करते हैं, सार्वजनिक स्थानों और सामुदायिक केंद्रों में जाते हैं जहां हर तरह के लोग होते हैं. इन में से कई लोग संक्रमण से ग्रस्त हो सकते हैं. अत: उन से संक्रमित न होने का सब से अच्छा उपाय यही है कि घर आते ही हाथों और चेहरे को अच्छी तरह धो लें. संभव हो तो स्नान ही कर लें तथा शरीर को अच्छी तरह सुखा लें.

– डा. रविंद्र गुप्ता, इंटरनल मैडिसिन कंसल्टैंट, कोलंबिया एशिया हौस्पिटल

 

Monsoon Special: बारिश और एलर्जी

मौनसून में जरा सी भी लापरवाही ऐलर्जी और इन्फैक्शन से ग्रस्त कर सकती है. बरसात के शुरू होने के साथ ही ये बीमारियां काफी परेशान करने लगती हैं. इस के साथ ही त्वचा और आंखों से संबंधित रोग भी काफी परेशान करते हैं.

1.स्किन इन्फैक्शन

बरसात की शुरुआत होते ही हमारी त्वचा के लिए परेशानी बढ़ जाती है. चूंकि इस दौरान वातावरण में ह्यूमिडिटी बहुत ज्यादा होती है. ऐसे में बैक्टीरिया, वायरस, फंगस आदि काफी तेजी से ग्रो करते हैं और जैसे ही ये त्वचा के संपर्क में आते हैं, त्वचा को संक्रमित कर देते हैं. हालांकि इन दिनों त्वचा को अगर सब से ज्यादा किसी माइक्रोब से संक्रमित होने का डर होता है, तो वह है फंगस. बरसात के मौसम में सब से ज्यादा फंगस यानी फफूंद के कारण ही त्वचा संक्रमित होती है और कई प्रकार के स्किन डिजीज होने की संभावना बनी रहती है.

2.रैड पैचेज यानी लाल चकत्ते

फंगल इन्फैक्शन की वजह से त्वचा खासकर बगलें, पेट और जांघों के बीच के जोड़ और स्तनों पर गोल, लाल पपड़ीनुमा चकत्ते निकल आते हैं. इन में काफी खुजली होती है.

इस परेशानी से बचने के लिए बगल, ग्रोइन और शरीर में जहांजहां जोड़ हैं वहां ऐंटीफंगल पाउडर लगाएं ताकि पसीना और नमी एकत्रित न होने पाए. बारबार फंगल इन्फैक्शन होने पर मैडिकेटेड पाउडर का इस्तेमाल करें.

3.हीट रैशेज

इस मौसम में पसीना काफी आता है, जिस से त्वचा के छिद्र यानी स्किन पोर्स बंद हो जाते हैं. इस वजह से त्वचा पर लाल फुंसियां यानी घमौरियां निकल आती हैं. इन में काफी खुजली और जलन होती है.

प्रिकली हीट पाउडर लगाएं. ढीले और सूती कपड़े पहनें. त्वचा की साफसफाई का पूरा खयाल रखें. घमौरियों के होने पर कालामाइन लोशन का इस्तेमाल करें. इस से खुजली से राहत मिलेगी.

4.पैरों का इन्फैक्शन

फंगल इंफैक्शन के कारण पैरों की उंगलियां संक्रमित हो जाती हैं. असल में इस मौसम में नंगे पांव गीले फर्श पर चलने या देर तक पानी में पैरों के रहने के कारण वहां मौजूद फंगस उंगलियों को संक्रमित कर देता है.

इस संक्रमण की वजह से उंगलियां लाल हो कर सूज जाती हैं और उन में खुजली भी होती है. इस संक्रमण के होने पर रोगी को चलने में काफी तकलीफ होती है. इस संक्रमण के कारण कई बार अंगूठे के नाखून यानी टो नेल्स और दूसरे नाखून भी संक्रमित हो जाते हैं. इस संक्रमण के होने पर नाखून बदरंग और कमजोर हो कर अपनी चमक खो देते हैं.

फुट और नेल इन्फैक्शन से बचने के लिए गीली जमीन पर नंगे पैर न चलें. पैरों को ज्यादा देर तक गीला न रहने दें. गीले जूतेचप्पल पहनने से बचें. बहुत देर तक जूतेमोजे न पहने रखें, क्योंकि इस से पसीना निकलता है और वह सूख नहीं पाता है, जिस से फंगल इन्फैक्शन हो सकता है. इस मौसम में सैंडल्स और फ्लोटर्स ही पहनें. नाखूनों को समयसमय पर काटते रहें और उन की साफसफाई का विशेष ध्यान रखें. सूती मोजे पहनें.

5.साइट संक्रमण

मौनसून में आंखों को सब से ज्यादा तकलीफ साइट संक्रमण से ही होती है. इस संक्रमण के होने पर पलकों पर एक प्रकार का लंप यानी गांठ सी हो जाती है. इस की वजह से आंखों में काफी दर्द होता है. यह संक्रमण बैक्टीरिया द्वारा आंखों के संक्रमित होने के कारण होता है. गरम पानी में कपड़ा डुबो कर सेंकने और हर 2-3 घंटे पर आंखों की सफाई करने से रोगी को आराम मिलता है.

इस के अलावा इस मौसम में आंखों का लाल हो जाना. उन में जलनचुभन और खुजली होना आम बात है.

6.ऐथलीट फुट

यह बीमारी उन लोगों को होती है, जो काफी लंबे समय तक पानी में रहते हैं, खासकर गंदे पानी में. इस संक्रमण की शुरुआत अंगूठे से होती है. वहां की त्वचा सफेद या हरे रंग की हो जाती है. उस में बहुत ज्यादा खुजली होने लगती है. कई बार तो यहां की त्वचा से दुर्गंधयुक्त स्राव या पस भी निकलने लगता है.

इस संक्रमण से बचने के लिए पानी से निकलने के बाद पैरों को गरम पानी और साबुन से साफ करें. उस के बाद अच्छी तरह सुखाएं. बूट पहनने से बचें.

7.अस्थमा

मौनसून में हवा में परागकण और फंगस जैसे ऐलर्जन के मौजूद रहने के कारण अस्थमा की परेशानी बढ़ जाती है. मौनसून में अस्थमा के तेज होने के कई कारण होते हैं:

– गरज के साथ तेज बारिश के होने से इस मौसम में रोगी को अस्थमा के अटैक आने लगते हैं. चूंकि इस मौसम में तेज हवा चलती है इस कारण बड़ी मात्रा में फूलों के परागकण निकल कर हवा में फैल जाते हैं, जो सांस के साथ रोगी के शरीर में चले जाते हैं. नतीजा रोगी की परेशानी बढ़ जाती है.

– इस मौसम में ह्यूमिडिटी यानी आर्द्रता के बढ़ने से फंगल स्पोर्स या मोल्ड्स काफी तेजी से पनपते हैं. ये फंगस या मोल्ड्स दमे के रोगी के लिए बेहद स्ट्रौंग ऐलर्जन होते हैं. ऐसे में वातावरण में इन की वृद्धि अस्थमा रोगियों की परेशानी का सबब बन जाती है. यही कारण है कि इस मौसम में दमा के अटैक ज्यादा आते हैं.

– बरसात के कारण हवा में सल्फर डाइऔक्साइड और नाइट्रोजन औक्साइड की मात्रा में वृद्धि हो जाती है. फलतया वायु प्रदूषण के स्तर में वृद्धि हो जाती है. ये सल्फर डाइऔक्साइड और नाइट्रोजन औक्साइड दमे के रोगियों को सीधा प्रभावित करते हैं और परेशानी बढ़ा देते हैं.

– मौनसून के दौरान गाडि़यों के धुएं के कारण होने वाला वायु प्रदूषण आसानी से समाप्त नहीं होता. इस वजह से अस्थमा अटैक का खतरा बढ़ जाता है.

– मौनसून के मौसम में कुत्ते, बिल्ली अकसर घर के अंदर ही रहते हैं, बाहर कम निकलते हैं. इस वजह से उन के बालों में रूसी की मात्रा बढ़ जाती है. यह रूसी भी अस्थमा रोगियों की परेशानी को बढ़ाती है.

– मौनसून के दौरान वायरल इन्फैक्शन में वृद्धि हो जाती है. इस वजह से भी रोगी में दमे के लक्षण उभर आते हैं.

 सावधानियां 

– इस दौरान नियमित रूप से दमा की दवा लेते रहें. जो गंभीर रूप से अस्थमा से पीडि़त हों वे अपने साथ इनहेलर के द्वारा ली जाने वाली दवा भी लेते रहें ताकि उन के वायुकोष में सूजन न हो.

– आर्द्रता यानी ह्यूमिडिटी और नम जगहों को समयसमय पर एअर आउट करें. डीह्यूमिडिफायर के माध्यम से ऐसी जगहों की आर्द्रता को 25 से 50% तक कम करें.

– जरूरत पड़ने पर एअर कंडीशन का प्रयोग करें.

– बाथरूम की नियमित सफाई करें और उन उत्पाद का इस्तेमाल करें, जो फफूंद को खत्म करते हों.

– भाप को बाहर निकालने के लिए ऐग्जौस्ट फैन का इस्तेमाल करें.

– इन दिनों इनडोर प्लांट्स को बैडरूम से बाहर रखें.

– बाहरी स्रोतों जैसे गीली पत्तियों, बाग की घास, कूड़े आदि से दूर रहें, क्योंकि वहां फफूंद होने का डर रहता है.

– फंगस को खत्म करने के लिए ब्लीच और डिटर्जैंट वाली क्लीनिंग सौल्यूशन का प्रयोग करें.

– जिस समय सब से ज्यादा परागकण हवा में फैले हों जैसे एकदम सुबह उस समय बाहर जाने से बचें.

– जब परागकण ज्यादा मात्रा में हवा में फैले हों उस समय खिड़कियां बंद रखें.

– रोएंदार तकिए और बिस्तर का इस्तेमाल न करें.

– सप्ताह में 1 बार गरम पानी से चादरों और तकियों के कवरों को साफ करें.

– महीने में 2 बार गरम पानी से घर के सारे परदों को साफ करें.

– इन दिनों कालीन न बिछाएं. अगर कालीन बिछा रखा है, तो उसे साफ करते समय मास्क का प्रयोग करें.

– इस बात का ध्यान रखें कि घर में धूल न जमने पाए. गीले कपड़े से लैंपशेड, खिड़कियों के शीशों को साफ करें.

8.आई इन्फैक्शन

इन दिनों हवा में मौजूद परागकण, धूलकण और दूसरे ऐलर्जन के कारण आंखें संक्रमित हो कर लाल हो जाती हैं. इसे ऐलर्जिक कंजक्टिवाइटिस कहते हैं. इस वजह से आंखों में सूजन आ जाती है. हालांकि इस कंजक्टिवाइटिस में आंखों से पानी नहीं निकलता है, लेकिन उन में खुजली बहुत ज्यादा होती है. इस परेशानी से बचने के लिए ऐलर्जन से बच कर रहें. समयसमय पर आंखों में आईड्रौप डालें.

सावधानी

– गंदे हाथों से आंखों को स्पर्श न करें.

-अगर आप को महसूस होता है कि आप को ऐलर्जिक कंजक्टिवाइटिस हो गया है, तो तुरंत साफ पानी से आंखों को धोएं और ठंडे पानी में पट्टी डुबो कर आंखों पर दबा कर रखें.

– अगर घर में किसी को कंजक्टिवाइटिस हुआ है, तो उसे ड्रौप डालने के बाद अपने हाथों को साफ पानी से धोएं.

– इन दिनों अपना तौलिया, साबुन, तकिया और दूसरी व्यक्तिगत चीजें किसी दूसरे के साथ शेयर न करें. ऐसा करना इसलिए जरूरी है, क्योंकि इन्फैक्शन हमेशा हाथों, कपड़ों आदि से फैलता है.

– इन दिनों कौंटैक्ट लैंस के इस्तेमाल से बचें.

– घर से बाहर निकलते समय धूप का चश्मा जरूर लगाएं.

– सड़क किनारे बिकने वाली चीजों को खाने से बचें.

– बाहर से आने के बाद अपने हाथों को साफ पानी से धोएं.

– बारबार आंखों को स्पर्श न करें.

– आंखों को पोंछने के लिए रूमाल या तौलिए के बजाय डिस्पोजेबल टिशू का इस्तेमाल करें.

– हाथों को समयसमय पर साफ पानी से धोते रहें.

– इन दिनों कौस्मैटिक्स का इस्तेमाल न करें.

– आंखों की साफसफाई का पूरा ध्यान रखें. उन्हें साफ और ठंडे पानी से धोएं.

– आंखों को दिन में 3-4 बार साफ करें.

– नाखूनों को समयसमय पर काटते रहें.

– अगर आंखों में चुभन महसूस हो रही है, तो रगड़ें नहीं वरना संक्रमण हो सकता है.

– परेशानी होने पर डाक्टर को दिखाएं

डा. पी के मल्होत्रा

सरोज सुपर स्पैश्यलिटी हौस्पिटल, नई दिल्ली

Monsoon Special: बारिश के साइड इफैक्ट्स

मानसून की रिमझिम बारिश लोगों को चिलचिलाती गरमी से तो राहत दिलाती है, मगर यह भी सच है कि इस मौसम में सिर्फ बड़ेबुजुर्गों को ही नहीं, युवाओं, महिलाओं और बच्चों को भी तरहतरह की बीमारियों का सामना करना पड़ता है. इस मौसम में लगातार बारिश होती रहती है, जिस से हर जगह पानी, कीचड़, गंदगी देखने को मिलती है. इस से जीवाणुओं और विषाणुओं को पनपने का भरपूर मौका मिलता है. मक्खीमच्छर इसी मौसम में सब से ज्यादा पनपते हैं. इस मौसम में पाचनतंत्र भी कमजोर हो जाता है, जिस से शरीर का इम्यून सिस्टम गड़बड़ा जाता है. शरीर की रोगाणुओं और विषाणुओं से लड़ने की ताकत कम हो जाती है और संक्रामक रोगों के होने का खतरा बढ़ जाता है. इसलिए जरूरी है कि इस मौसम में अपने स्वास्थ्य पर तो ध्यान दे हीं, परिवार के सदस्यों को भी रोगों से बचने के उपाय बताएं.

बीमारियां कैसीकैसी

गंदा पानी संक्रामक रोगों के फैलने का बहुत बड़ा कारण है. जगहजगह गंदे पानी के जमाव की वजह से कीटपतंगों व मक्खीमच्छरों के पनपने की आशंका होती है. मच्छरों के काटने से मलेरिया तथा डेंगू फैलता है. बारिश के दिनों में पानी के तेज बहाव के कारण पानी के पाइप लीक करने लगते हैं और कई जगह टूट भी जाते हैं, जिस की वजह से बारिश या फिर सीवेज का पानी वाटर सप्लाई के पानी में मिल कर उसे प्रदूषित कर देता है. इस से कौलरा, टायफाइड, डायरिया, हैपेटाइटिस जैसी बीमारियों के होने की आशंका बढ़ जाती है. मौसम के तापमान में अचानक गिरावट आ जाने तथा सर्द हवाओं की वजह से खांसीजुकाम, निमोनिया, टौंसिलाइटिस, त्वचा संबंधी रोग, आंखों का रोग जैसे कंजंक्टिवाइटिस के होने की भी आशंका बनी रहती है. इस मौसम में हृदय, फेफड़ों, गुरदों, मस्तिष्क संबंधी बीमारियां तथा पीलिया होने की आशंका भी ज्यादा होती है. समय रहते ध्यान न देने से कई बार मरीज की मौत भी हो जाती है.

समय पर कराएं इलाज

मानसून में मच्छरों से मलेरिया, डेंगू जैसी जानलेवा बीमारियां ज्यादा होती हैं. इन के प्रति थोड़ी सी भी लापरवाही से परिणाम घातक हो सकता है. डेंगू काफी खतरनाक रोग होता है. यह बड़ेबूढ़ों के साथ बच्चों को भी संक्रमित करता है, इसलिए इस की थोड़ी सी भी शंका हो यानी मरीज को तेज बुखार, उलटियां, कमजोरी, सिरदर्द होने लगे तो तुरंत इलाज कराएं. गंदे पानी की वजह से पाचनतंत्र की बीमारियां भी आम बात है. इन में टायफाइड, डायरिया, डिसेंट्री के साथसाथ कालरा तक के होने की संभावना होती है. उलटियां, दस्त, बुखार, कमजोरी महसूस होने पर तुरंत इलाज कराएं. अत्यधिक उलटियां या दस्त होने पर मरीज के शरीर में पानी की कमी हो जाती है. ऐसी स्थिति में समय पर अस्पताल न ले जाने पर मरीज के मरने तक की संभावना रहती है. यदि कोई डायबिटीज, हार्टअटैक तथा उच्च रक्तचाप जैसी बीमारियों से ग्रस्त हो तो उसे भी इस मौसम में विशेषतौर पर सावधानी बरतनी चाहिए. डायबिटीज के मरीजों को नंगे पांव चलने से बचना चाहिए. गंदे पानी तथा कीचड़ से सने पैरों से संक्रमण की संभावना बढ़ जाती है. नंगे पांव चलने की वजह से लैप्टोस्पाइरोसिस नामक संक्रमण हो सकता है.

यदि इस मौसम में बच्चों को सर्दी, खांसी या बुखार होने लगे, तो तुरंत अस्पताल ले जाना चाहिए. बहुत छोटे बच्चों को मौसम बदलने की वजह से खासकर श्वसनतंत्र की बीमारियां, जैसे निमोनिया होने की प्रबल संभावना होती है. इस का भी इलाज समय से कराना जरूरी होता है.

बेहतर है बचाव

कहते हैं इलाज से बेहतर है बचाव. इसलिए इन दिनों यदि भावी मुसीबतों से बचाव के लिए तैयारी कर लें, तो मानसून के दौरान होने वाली समस्याओं से तो नजात पा लेंगे, मानसून की बारिश का भी भरपूर आनंद उठा सकेंगे. इस दौरान क्याक्या सावधानियां बरतनी चाहिए. आइए जानें- 

मच्छरों से बचाव : बारिश के दिनों में मच्छरों का प्रजनन बड़ी तेजी से होता है. बारिश के ठहरे पानी में ये तेजी से पनपते हैं. इस दौरान घर तथा बाहर जगहजगह नालियों, गड्ढों, कूलरों, पुराने बरतनों और ड्रमों में पानी जमा रहता है, जहां इन की संख्या में बेतहाशा वृद्धि होती है. इन के काटने से मलेरिया जैसी घातक बीमारी के होने की संभावना होती है. अत: इन से बचाव के लिए हर तरह की एहतियात बरतनी चाहिए. मानसून से पहले ही घर की नालियों की सफाई करवा दें. यदि कहीं गड्ढा है, तो उसे मिट्टी से भरवा दें ताकि बारिश का पानी जमा न हो पाए. मार्केट में मलेरिया से बचाव के लिए दवाएं मिलती हैं, जिन का पहले से सेवन कर लेने से इस की संभावना नहीं रहती. रात को मच्छरदानी लगा कर सोएं. कई लोग मच्छरदानी की जगह मस्क्यूटो क्वायल लगा कर सोते हैं, जिस का निरंतर प्रयोग हानिकारक हो सकता है. इस के धुएं में पाए जाने वाले रसायन शरीर के लिए हानिकारक होते हैं. शाम को घर में नीम की सूखी पत्तियों का धुआं करें. मच्छरों को भगाने के लिए यह अचूक घरेलू उपाय है. मच्छरों को पनपने से रोकने के लिए नालियां, गड्ढों तथा आसपास जमे पानी में मिट्टी का तेल या फिनाइल का छिड़काव करें. यदि आप घूमने जा रहे हैं, तो मस्क्यूटो रेवेलेंट ट्यूब रखना न भूलें. बच्चों को भी रात को सोते समय उन के हाथपैरों, बांहों आदि खुली जगहों पर इसे लगाएं.

डाइट का रखें ध्यान : मानसून में प्रदूषित पेयजल से होने वाली बीमारियों से बचा जा सकता है. हमेशा उबला या फिल्टर्ड पानी ही पिएं. बाहर का पानी, जूस या कच्चे भोज्यपदार्थों का सेवन करने से परहेज करें खासकर सड़क के किनारे खड़े ठेले वालों से चाट, पकौड़े, समोसे न तो खुद खाएं और न ही अपने बच्चों को खाने को दें.

डाक्टरों का मानना है कि फिल्टर्ड वाटर को भी उबाल कर पिएं. केवल फिल्टर कर देने से सारे विषाणु या जीवाणु नहीं मरते हैं. प्रदूषित पानी से टायफाइड, पीलिया, डायरिया, डिसेंट्री, कौलरा के साथसाथ पाचनतंत्र की कई दूसरी बीमारियां भी होती हैं. इन से बचने के लिए खुला खाना खाने और बिना पैकिंग वाला दूषित पानी पीने से बचना चाहिए. खाना बनाने के लिए भी फिल्टर्ड पानी का प्रयोग करें या पानी को खौला कर ठंडा कर लें. गरम पानी पीने से खाना अच्छी तरह पचता है. बाहर के खुले भोज्यपदार्थों पर मक्खियां भिनभिनाती हैं, उन्हें न खाएं. कच्ची सब्जियां खाने से बचें. बारिश के गंदे पानी में चलने से भी तरहतरह की बीमारियां होती हैं, क्योंकि इस से सीवेज वाटर में पाए जाने वाले कीटाणु या जीवाणु शरीर के सीधे संपर्क में आ जाते हैं, जो रोग का कारण बनते हैं. अत: बच्चों को गंदे पानी में चलने या खेलने से रोकें. उन्हें मौसम के अनुरूप ड्रैस पहनाएं ताकि सर्दीखांसी से बचाव हो सके. इस मौसम में बच्चों को गमबूट पहनने के लिए दें और घर लौटने के बाद यदि कपड़े भीगे हों तो उन्हें तुरंत बदल दें. भीगे कपड़ों से सर्दीखांसी होने की संभावना रहती है. बाल गीले हों तो साफ तथा सूखे तौलिए से अच्छी तरह पोंछ दें. एयरकंडीशंड कमरों में गीले कपड़ों में न जाने दें. पैर गीले या गंदे हों तो उन्हें साफ पानी में धोने तथा सूखे तौलिए से पोंछ लेने की हिदायत दें.

मानसून में पाचनतंत्र से संबंधित 2 तरह की बातें देखने को मिलती हैं. पहली, भोजन को पचाने की गति धीमी हो जाती है, जिस कारण सारे खाद्यपदार्थ आसानी से नहीं पचते. फलस्वरूप शरीर की रोग प्रतिरोधी क्षमता कम हो जाती है. दूसरी बात यह है कि इस दौरान बैक्टीरिया तथा वायरस ज्यादा सक्रिय हो जाते हैं. इसलिए खानपान में यदि पर्याप्त हाइजीन मेंटेन नहीं करेंगे तथा सही खाना नहीं खाएंगे तो संक्रमण की प्रबल संभावना रहेगी. इस मौसम में यह समस्या सामने आती है कि क्या खाएं, क्या नहीं. अत: इस मौसम में कच्ची सब्जियों के सेवन से बचें. फलों से भी परहेज करें, क्योंकि फलों तथा सब्जियों में नमी की वजह से तरहतरह के बैक्टीरिया तथा वायरस पनपते हैं. अत: इन की जगह अंकुरित तथा पूरी तरह से पकी सब्जियां ही खाएं. मांस से भी परहेज करें, क्योंकि गरिष्ठ भोजन आसानी से नहीं पचता. यदि आप नानवेज नहीं छोड़ना चाहते तो ताजा ही खाएं. मछली इस मौसम में न खाएं, क्योंकि इस समय मार्केट में ताजा मछलियां कम मिलती हैं.

अपनी डाइट में सूप, गाय का दूध तथा नारियलपानी की मात्रा को बढ़ा दें. इस से शरीर की रोगाणुओं से लड़ने की क्षमता बढ़ती है. ज्यादा तेल, घी तथा मसालेदार खाने से भी बचें. पानी में शहद तथा नीबू की थोड़ी मात्रा डाल कर सेवन करें. इस से इम्यून सिस्टम सुदृढ़ होता है.

खानपान के नियम

खाने में नमक का प्रयोग कम से कम करें, क्योंकि इस से गैस तो बनती ही है, शरीर में पानी का जमाव भी होता है.

अत्यधिक तले भोज्यपदार्थों से परहेज करें, क्योंकि इस मौसम में पाचन क्षमता कमजोर होती है.

मक्का, बाजरा के आटे में अत्यधिक पोषक तत्त्व होते हैं, इसलिए इस आटे का सेवन करें. ऐसे खाद्यपदार्थ जिन में पानी की मात्रा ज्यादा होती है, जैसे करी आदि, को न लें.

सलाद से परहेज करें.

खट्टे भोज्यपदार्थों से बचें.

बाजार के रायते, पनीर का सेवन न करें.

मानसून में करेलों, मेथी के सेवन से संक्रमण से बचाव होता है. इन्हें डाइट में शामिल करें.

कुछ अतिरिक्त सावधानियां

घर को अंदर तथा बाहर से हमेशा साफ तथा सूखा रखें.

घर के आंगन में या बाहर आसपास बारिश के पानी को जमा न होने दें.

शरीर को ढक कर रखें. कम तापमान होने पर संक्रमण की संभावना होती है.

एसी वाले कमरे में भीगे केश तथा भीगे कपड़े पहन कर न जाएं.

पैर गीले हों तो सुखा लें. उन्हें गीला मत छोड़ें.

फल तथा सब्जियों को साफ पानी से धोएं.

खूब पानी पिएं ताकि शरीर में पानी की कमी न होने पाए.

बच्चों को कीचड़, बारिश के गंदे पानी में न खेलने दें.

Monsoon Special: बरसात में बच्चों की केयर

गरमी के बाद बरसात का आना तनमन को सराबोर कर जाता है, क्योंकि गरमी से राहत जो मिलती है. लेकिन मौनसून का यह मौसम अपने साथ बहुत सारी स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां भी लाता है खासकर छोटों यानी छोटे बच्चों के लिए.

चूंकि छोटे बच्चे स्वयं तो अपनी देखभाल करने में असमर्थ होते हैं, इसलिए उन की देखभाल की जिम्मेदारी होती है मातापिता पर. अत: मौनसून शुरू होते ही मातापिता को चाहिए कि वे अपने छोटे बच्चों की देखभाल में कतई लापरवाही न बरतें और निम्न बातों का खयाल रखें:

1. स्वच्छता

बरसात के मौसम में घर के आसपास व घर के अंदर सफाई का पूरापूरा खयाल रखें. कहीं भी पानी न भरा रहे, क्योंकि जमा पानी में मक्खी-मच्छर, कीड़ेमकोड़े पैदा होते हैं, जिन से डायरिया, हैजा, डेंगू, चिकनगुनिया व त्वचा संबंधी बीमारियां फैलने का डर बना रहता है. वैसे तो ये बीमारियां सभी के लिए जानलेवा सिद्ध हो सकती हैं, परंतु छोटे बच्चे अगर इन की चपेट में आ जाएं तो बड़ी मुश्किल से बाहर निकल पाते हैं.

2. आहार पर ध्यान

बरसात के मौसम में बच्चों के खाने का भी विशेष खयाल रखें. उन्हें हलका, ताजा, सुपाच्य खाना दें. मौसमी फलों का सेवन भी जरूर कराएं. हरी सब्जियों व ताजे फलों को साफ पानी से अच्छी तरह धो कर ही बच्चों को खिलाएं. उन्हें सड़कों के किनारे मिलने वाले खुले खाद्यपदार्थों को खाने से रोकें.

स्वच्छ पानी: दूषित पानी बरसात के दिनों में बीमारी का मुख्य कारण बनता है, इसलिए बच्चों को साफ पानी ही पीने को दें. पीने के पानी को 10-15 मिनट तक उबाल कर साफ बरतन में रखें. जब भी घर से बाहर निकलें तो पानी की बोतल साथ जरूर रखें. अगर पानी खरीदना ही पड़े तो किसी अच्छी कंपनी का सीलबंद पानी ही लें.

3. विशेष देखभाल

बच्चों को नहलाते समय भी साफ पानी का ही प्रयोग करें. गंदे पानी से नहाने पर त्वचा संबंधी रोग हो जाते हैं. नहलाने के बाद उन का बदन पोंछ कर साफ व सूखे कपड़े पहनाएं. गीले कपड़े भूल कर भी कभी न पहनाएं. बाल भी सूखे रखें. बच्चे जब भी बारिश में भीगें तब उन्हें तुरंत साफ पानी से नहलाएं और सूखे कपड़े पहनाएं.

बच्चों की बरसात में सुरक्षा हेतु इन कुछ विशेष बातों का भी खयाल रखना लाभकारी होगा.

मसलन, बाल रोग विशेषज्ञा, डा. सुप्रिया शर्मा के अनुसार, बच्चों को विटामिंस, कैल्सियम, आयरन तीनों को समान रूप से जरूर दें, क्योंकि इन तीनों के सेवन से बच्चों की रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है, जो उन्हें बरसाती रोगों जैसे डायरिया, वायरल, आई फ्लू जैसे रोगों से बचाती हैं.

– बच्चों से कहें कि जैसे ही वे बाहर से आएं अपने चेहरे को साफ पानी से जरूर धोएं क्योंकि विषाणु ज्यादातर आंखों, नाक, मुंह के द्वारा ही शरीर में प्रवेश करते हैं. उन्हें हाथ साफ रखने की भी सलाह दें. अगर बच्चा छोटा है तो इन सब बातों का खयाल आप खुद रखें.

– रात को बच्चों के लिए मच्छरदानी का प्रयोग करें. बच्चे जब भी घर से बाहर जाएं उन्हें मच्छरों से बचाव के लिए मिलने वाली मोसकिटो स्ट्रिप लगा कर ही भेजें.

– बच्चों को सूप, जूस, कौफी, चाय व हलदी मिला मिल्क पीने को दें. बाहर के खाने की जगह पापड़, चिप्स, पकौड़े आदि घर पर बना कर दें. इस से न केवल बच्चों का टेस्ट बदलेगा, बल्कि उन्हें हैल्दी स्नैक्स भी मिलेंगे.

– बच्चों के बारिश में भीगने के बाद उन के सीने पर यूकलिप्टस औयल की मालिश जरूर करें. इस से बच्चों की जकड़न दूर होगी व सांस लेने में आसानी होगी.

Monsoon Special: बारिश में स्किन एलर्जी

ऐलर्जी दूर करने के उपाय

– एक ठंडे, गीले कपड़े को प्रभावित हिस्से पर लपेट दें.

– अपनी स्किन पर ठंडी क्रीम लगाएं. शरीर पर मौइस्चराइजर या बौडी लोशन लगाएं.

– खुजली से छुटकारा पाने के लिए खुजली दूर करने वाली क्रीम का प्रयोग किया जा सकता है.

– कुनकुने पानी से स्नान करने से भी राहत मिलती है.

– उन पदार्थों से परहेज करें जो स्किन में समस्या पैदा करते हैं. वैसे आभूषण न पहनें जिन से प्रौब्लम होती है.

– खुजली होने पर सिंथैटिक कपड़े पहनने के बजाय सूती कपड़ों का उपयोग करें.

– ऐलर्जी की दवा का सेवन कर के भी आप इस समस्या से राहत पा सकते हैं.

24 साल की अंजलि वर्मा काफी बिंदास स्वभाव की लड़की है. उसे घूमनाफिरना, शौपिंग करना और खूबसूरत दिखना बहुत पसंद है. गरमी के मौसम में भी वह एक से बढ़ कर एक ड्रैसेज खरीदती है और पूरे मेकअप में निकलती है. मगर पिछले कुछ दिनों से उसे घमौरियों की समस्या होने लगी है.

पिछले संडे जब वह अपनी सहेली की बर्थडे पार्टी में पहुंची तो सब उसे देख कर चौंक उठे. स्टाइलिश वनपीस ड्रैस और खुले बालों में वह बहुत सुंदर लग रही थी. मगर शाम होतेहोते उसे पीठ और गले के निचले हिस्से में खुजली शुरू हो गई. यह खुजली बढ़ती ही गई और छोटे लाललाल दाने निकल आए. तब उस की सहेली ने उसे ऐलर्जी की दवा दी और उसे नहाने भेजा. नहाने के बाद उसे अपने कौटन के कपड़े पहनने को दिए, साथ ही प्रभावित हिस्सों में ऐलोवेरा जैल भी लगा दिया. धीरेधीरे उस की प्रौब्लम कम हो गई.

दरअसल, गरमी के दिनों में स्किन संबंधी रोगों जैसे घमौरियां आदि की संभावना बढ़ जाती है. लापरवाही बरतने से यह रोग गंभीर भी हो सकता है. स्किन पर लाल रंग के दाने और उन में खुजली का होना आमतौर पर घमौरियों के लक्षण हैं. इस स्थिति में शरीर में या तो पसीने वाली जगहों पर या सिंथैटिक कपड़े से ढकी जगह पर छोटेछोटे लाल चकत्ते हो जाते हैं जिन में खुजली होने लगती है.

यह अधिक गरमी या टाइट कपड़े पहनने के कारण भी होता है. इस से बचने के लिए जितना हो सके धूप से बचें. बाहर निकलना ही हो तो कैप लगा कर और अंब्रेला ले कर तथा शरीर के खुले हिस्सों पर सनस्क्रीन लगा लें. पौलिएस्टर या नायलोन के कपड़ों की जगह सूती, ढीले और आरामदायक कपड़े पहनें.

यदि हमारी स्किन किसी विशेष चीज के प्रति संवेदनशील है तो ऐसे में स्किन पर उस चीज के प्रभाव से दाने, मुंहासे या लाल चकत्ते निकल सकते हैं. स्किन ऐलर्जी के बहुत से कारण हो सकते हैं:

– कुछ लोगों को खास तरह के खाने से ऐलर्जी होती है. कोई चीज खाने भर से उन्हें खुजली की समस्या हो सकती है.

– कुछ लोगों को किसी दवा के साइड इफैक्ट के कारण भी खुजली या ऐलर्जी हो सकती है.

– कैमिकल वाले सौंदर्यप्रसाधनों के इस्तेमाल से भी खुजली हो सकती है. कैमिकल युक्त हेयर डाई या हेयर कलर के इस्तेमाल से अकसर खुजली की समस्या हो जाती है. इसी तरह किसी को फाउंडेशन से तो किसी को किसी खास फेस क्रीम से भी ऐसी प्रौब्लम हो जाती है.

– कुछ महिलाओं की स्किन जेवरों के प्रति संवेदनशील होती है. ऐसी महिलाएं यदि धातु से बनी कोई जेवर पहनती हैं तो उन्हें स्किन पर खुजली हो सकती है. गरमियों में जेवर जब पसीने के संपर्क में आते हैं तो ऐसे में स्किन पर ऐलर्जी हो जाती है.

– कुछ लोगों को सिंथैटिक कपड़ों से भी ऐलर्जी होती है.

– पालतू जानवर को छूने या हार्ड साबुन के ज्यादा प्रयोग से भी खुजली शुरू हो सकती है. इस से स्किन पर लाली या दाने आ जाते हैं. छाले भी हो सकते हैं.

– किडनी या थायराइड की समस्या से भी खुजली हो सकती है.

– सूखी स्किन की प्रौब्लम भी इस की एक वजह है. बहुत अधिक गरम या ठंडे मौसम में ऐसा संभव है. ऐसे में एक अच्छा मौइस्चराइजर नियमित रूप से लगाना जरूरी है.

– किसी तरह के कीड़े के काटने पर भी स्किन पर खुजली या कोई और प्रौब्लम पैदा हो सकती है.

– फंगल इन्फैक्शन भी खुजली का कारण हो सकता है.

– डायबिटीज के कारण भी ऐसी समस्या हो सकती है.

– सर्दियों में अकसर लोग ऊनी कपड़े पहनती हैं जिस के कारण स्किन पर खुजली जैसी समस्या पैदा हो सकती है.

– किडनी खराब होने पर खुजली की समस्या हो जाती है.

– पित्ती या चिकन पौक्स के कारण भी स्किन पर खुजली या खराश होनी शुरू हो जाती है.

– कुछ लोगों को परफ्यूम से ऐलर्जी होती है. ऐसे लोग जब परफ्यूम का इस्तेमाल करते हैं तो उन की स्किन पर लाल चकत्ते हो जाते हैं.

स्किन ऐलर्जी के प्रकार

फंगल इन्फैक्शन: फंगल इन्फैक्शन एक प्रकार की स्किन ऐलर्जी है जो फंगस के द्वारा होती है. इसे माइकोसिस भी कहते हैं. फंगल इन्फैक्शन चेहरे, हाथों की स्किन या शरीर के किसी भी भाग में हो सकता है. इस ऐलर्जी में स्किन पर एक प्रकार का खुरदरापन सा होने लगता है और खुजली भी होती है. यह इन्फैक्शन शरीर के ऐसी जगहों की स्किन पर ज्यादा होता है जहां थोड़ी नमी होती है जैसेकि पैरों की उंगलियों के बीच, एडि़यों, नाखूनों, जननांग, स्तन इत्यादि.

लाइकेन प्लेनस: यह भी एक प्रकार का स्किन इन्फैक्शन या स्किन ऐलर्जी है जो 30 साल से अधिक के व्यक्तियों में देखने को मिलती है. यह एक तरह से खुजली वाले लाल चकत्ते होते हैं जो शरीर के किसी भी भाग पर हो सकते हैं लेकिन कलाइयों, पैरों के निचले भाग, पीठ, गरदन इत्यादि में इस ऐलर्जी के होने की ज्यादा संभावना बनी रहती है. यह ऐलर्जी जेनेटिक होती है.

ऐक्जिमा: ऐक्जिमा एक ऐसी बीमारी है जिस में स्किन में तेज खुजली होती है और स्किन रूखी हो जाती है. कुछ लोगों में यह समस्या इतनी तकलीफदेह हो जाती है कि उन्हें इस का लंबा ट्रीटमैंट कराना पड़ता है. मौसम बदलने के साथ ही यह दिक्कत और बढ़ जाती है. कुछ लोगों को इतनी तेज खुजली होती है कि स्किन से खून तक आने लगता है. यह बड़े लोगों तथा बच्चों दोनों को ही हो सकती है.

पित्ती: यह एक प्रकार की स्किन ऐलर्जी है जिस में स्किन पर बड़ेबड़े लाल चकत्ते उभर आते हैं. स्किन पर बने इन लाल चकत्तों में बहुत ज्यादा खुजली होती है. जितना ज्यादा उस जगह को खुजलाते हैं यह ऐलर्जी और तेजी से बढ़ने लगती है. यह कुछ दिनों में अपनेआप भी ठीक हो जाती है.

स्किन ऐलर्जी के लिए घरेलू उपाय

टी ट्री औयल: स्किन ऐलर्जी में टी ट्री औयल काफी हैल्पफुल होता है. इस में ऐंटीमाइक्रोबियल और ऐंटीइनफ्लैमेटरी प्रौपर्टीज होती हैं जो कई तरह की स्किन ऐलर्जी से छुटकारा दिलाती हैं. स्किन में होने वाली रैडनैस और खुजली से छुटकारा पाने के लिए टी ट्री औयल एक बेहतर औप्शन है.

तुलसी: तुलसी ऐंटीबैक्टीरियल गुणों से भरपूर होती है जो आप की स्किन को संक्रमण से बचाने का काम करती है. इस के अलावा इस में ऐंटीइनफ्लैमेटरी गुण होते हैं जो स्किन ऐलर्जी से जुड़ी रैडनैस, सूजन और खुजली में आराम दिलाते हैं. साथ ही तुलसी ऐंटीऐलर्जिक भी होती है. तुलसी के पत्तों को धो कर इस का पेस्ट बना लें. अब इसे प्रभावित जगह पर लगाएं और 20 से 30 मिनट बाद धो लें.

सेब का सिरका: सेब के सिरके में ऐंटीइनफ्लैमेटरी और ऐंटीबैक्टीरियल गुण होते हैं. इन गुणों की मदद से इसे स्किन पर लगाने से ऐलर्जी से आराम मिलता है और स्किन पर संक्रमण बढ़ता नहीं है.

आप पानी को गरम कर के उस में सेब का सिरका मिला लें. अब रुई की मदद से इस मिश्रण को प्रभावित जगह पर लगाएं. 15 से 20 मिनट लगा रहने के बाद धो लें.

ऐलोवेरा: ऐलोवेरा जैल को हीलिंग गुणों के लिए जाना जाता है. इस में मौजूद ऐंटीइनफ्लैमेटरी गुण खुजली और लाल चकत्तों से राहत दिलाने में मदद करते हैं.

ताजा ऐलोवेरा जैल को प्रभावित जगह पर लगाएं और 30 मिनट लगा रहने दें. सूखने पर धो लें.

नारियल तेल: नारियल तेल मौइस्चराइजिंग गुणों से भरपूर होता है. इस में ऐनाल्जेसिक और ऐंटीइनफ्लैमेटरी गुण मौजूद होते हैं, इसलिए यह स्किन की ऐलर्जी के कारण होने वाली रैडनैस और खुजली से छुटकारा दिलाने में मदद करता है. इसे इस्तेमाल करने के लिए नारियल के तेल की कुछ बूंदों को हथेली पर ले कर प्रभावित स्किन पर लगाएं. 20 से 30 मिनट बाद स्किन को सादे पानी से धोएं और फिर तौलिए से सुखा लें.

नीम: नीम में ऐंटीइनफ्लैमेटरी और ऐंटीबैक्टीरियल गुण होते हैं. यह स्किन ऐलर्जी के इलाज में असरदार माना जाता है. नीम के पत्तों को पीस कर पेस्ट बना लें और स्किन पर लगा कर 20 से 30 मिनट के लिए छोड़ दें. सूखने पर पानी से धो लें.

Monsoon Special: बारिश में टाइफाइड से बचें

मानसून की सुहानी दस्तक कई बीमारियों की सौगात भी लाती है. टाइफाइड उनमें से एक है. अगर समय रहते पकड़ में आ जाए तो एंटीबायोटिक्स देने से ठीक हो जाता है. लेकिन टाइफाइड आमतौर पर समय पर पकड़ में नहीं आता. शुरू में तो मामूली बुखार लगता है जिसे अकसर अनदेखा कर देते हैं. कई बार पता ही नहीं चलता कि बच्चों को बुखार है, लेकिन यह बुखार अंदर ही अंदर पनप रहा होता है.

इसमें सालमोनेला बैक्टीरिया पानी या खाने के द्वारा हमारी आंत में जाते हैं जिससे आंत में अल्सर (जख्म) हो जाता है. यह अल्सर बुखार की वजह बनता है. यह बै‍क्टीरिया ज्यादातर पोल्ट्री प्रोडक्ट्‍स जैसे अंडे को खाने से शरीर में जाता है.

ज्यादातर मुर्गियों में सालमोनेला इंफेक्शन होता है. मुर्गी अंडे के ऊपर पॉटी कर देती है. अगर उस अंडे में दरार है, तो वह बै‍क्टीरिया अंडे के अंदर चला जाएगा. इस अंडे को अच्‍छी तरह से पकाए बगैर खा लेने से बै‍क्टीरिया शरीर के अंदर चले जाते हैं.

अगर इम्युन सिस्टम मजबूत नहीं है तो ये बै‍क्टीरिया आंतों के द्वारा खून में चले जाते हैं, तो वे शरीर के किसी भी अंग को संक्रमित कर सकते हैं. इसे टाइफाइड कहते हैं.

इसके लक्षणों में भूख न लगना, वजन कम होना, मांस‍पेशियां कमजोर होना, इलेक्ट्रोलाइट असंतुलित होना, पेट दर्द, डिहाइड्रेशन आदि शामिल हैं. जब मरीज के लिए उठना – बैठना तक कठिन हो जाता है, तब उसे अस्पताल लेकर आते हैं और कहते हैं कि मरीज लंबे समय से बुखार से पीड़ित है.

जांच : 1 तब टाइफी डॉट टेस्ट और ब्लड कल्चर किया जाता है जिससे 2-3 दिन के अंदर टाइफाइड होने की पुष्टि हो जाती है.

जांच : 2 एक अन्य विडाल टेस्ट भी है. अगर एक हफ्ते तक लगातार बुखार हो, तो यह उसको डायग्नोज करने के लिए है.

ट्रीटमेंट : इसमें शरीर के इलेक्ट्रोलाइट संतुलित करने से लेकर एंटीबायोटिक्स ट्रीटमेंट दिया जाता है.

सावधानी : मरीज को अंडा, चिकन, दूध-दही और पानी देने में सावधानी बरतें. मुर्गी के अंडे को ठीक से पकाकर खिलाएं. अगर दूध पॉइश्चराइज्ड नहीं है, तो उससे भी टाइफाइड हो जाता है. दूध और पानी को अच्छी तरह उबालकर दें.

इसमें हर मामले में सफाई का ध्यान रखा जाए, तो यह बीमारी नहीं होती. वहीं इस मौसम में बाहर का खाना न दें.

बचाव क्या हो

– टाइफाइड से बचाव के लिए बच्चों में 3 साल में एक बार टीका लगाना जरूरी होता है. यह टीका 2 साल की उम्र से लगाना शुरू किया जाता है. यह 2, 5 और 8 साल की उम्र में लगाया जाता है.

– टाइफाइड का वैक्सीन 65 प्रतिशत सुरक्षा प्रदान करता है. यह शत-प्रतिशत बचाव का तरीका नहीं है.

–  इसे लगाने से में रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है. जिसने टीका लगवाया है, अगर वह बीमार हो भी जाए, तो जल्दी ठीक हो जाता है.

साइड इफेक्ट : इस बीमारी से दूसरी दिक्कतें भी हो सकती हैं. यह दिल और दिमाग पर असर करती है.

क्या करें : टायफाइड से बचने के लिए अपने हाथ थोड़ी-थोड़ी देर में धोते रहें. ऐसा करने से आप इंफेकशन से दूर रह सकते हैं. खास तौर पर खाना बनाते समय, खाना खाते समय और शौचालय के उपयोग के बाद साबुन से अपने हाथ धोएं. कच्चे फल और सब्जि‍यां खाने से बचें. ज्यादा गर्म खाद्य-पदार्थों का सेवन करें. संग्रहित खाद्य-पदार्थों से बचें. घर की चीज़ों को नियमित रूप से साफ करें. टाइफाइड के टीके भी टाइफाइड की रोकथाम में अच्छे साबित हुए हैं.

टाइफाइड पैदा करने वाले साल्मोनेला बैक्टीरिया को एंटीबॉयोटिक दवाओं से खत्म किया जाता है. हालांकि कुछ मामलों में लबे समय तक एंटीबॉयटिक दवाओं के इस्तेमाल से टाइफाइड के जीवाणु एंटीबॉयोटिक दवाओं के प्रति प्रतिरोधी (रेजिस्टेंट) हो जाते हैं. इस स्थिति से बचने के लिए योग्य डॉक्टर के परामर्श के अनुसार ही चिकित्सा कराएं. टाइफाइड की स्थिति में रोगी के शरीर में पानी की कमी न होने पाए, इसके लिए पीड़ित व्यक्ति को पर्याप्त मात्रा में पानी और पोषक तरल पदार्थ लेना चाहिए.

मानसून में इन 10 टिप्स की मदद से छोटे बच्चों को दें पूरी हाइजीन

भारी गर्मी के बाद बारिश का आनंद लेना सभी को पसंद आता है, लेकिन मानसून में बीमारियों का ख़तरा भी सबसे ज़्यादा होता है, क्योंकि इस समय आसपास जमा हुए पानी में मच्छर तेज़ी से पनपने लगते हैं, जो डेंगू, मलेरिया और चिकनगुनिया जैसी बीमारियों को जन्म देते हैं. वहीं दूसरी ओर कपड़ों, दीवारों और हवा में मौजूद नमी के कारण बैक्टीरिया भी बढ़ने लगते है, ऐसे में इस मौसम में हाइजीन और मच्छरों से सुरक्षित रहना बहुत ज़रूरी होता है.

ख़ासकर छोटे बच्चों को लेकर सावधानी बरतनी चाहिए, क्योंकि उनके बीमार होने की संभावना अधिक होती है. इसलिए आसपास के माहौल को हमेशा साफ़ रखना आवश्यक होता है, ताकि बच्चा मच्छरों से सुरक्षित रहे. हालाँकि ये करना आसान नहीं होता, लेकिन निरंतर प्रयास से थोड़ा कम किया जा सकता है.

इस बारें में माइलो एक्सपर्ट श्वेता गुप्ता कहती है कि मच्छरों को भगाने में कॉइल और स्प्रे जैसी चीज़ों का इस्तेमाल करना इफेक्टिव हो सकता है, लेकिन इससे बच्चे को हेल्थ संबंधित समस्याएं होने की संभावनाएं बढ़ जाती है. इसलिए इस मानसून के मौसम में बच्चे का ध्यान रखने के लिए कुछ सुझाव निम्न है,

1. 2 माह से कम उम्र के बच्चे को मच्छरों और कीटों से सुरक्षा देने के लिए सिर्फ़ अच्छे कपड़ों और बेड नेट का ही इस्तेमाल करें.

2. हमेशा बच्चे को उठाने से पहले हाथों को अच्छी तरह से साफ़ कर लें. हाथों को कुछ समय के अंतराल में धोते रहें.बच्चों की इम्यूनिटी कमज़ोर होती है, जिस वजह सेवे जल्दी बीमार पड़ जाते हैं. साथ ही बच्चे के हाथों को भी साफ़ रखें. असल में बच्चे जिस भी चीज़ को देखते हैं, उसे मुँह में डालने की कोशिश करते है, ऐसे में बच्चों के हाथों की सफाई भी मेडिकेटिड साबुन से करनी चाहिए, क्योंकि उनकी त्वचा बहुत ही नाज़ुक होती है.

3. बच्चे को कॉटन के ऐसे ढीले कपड़े पहनाएं, जो बच्चे के हाथों और पैरों को अच्छे से कवर करते हो, ताकि मच्छर बच्चे की त्वचा तक न पहुंच सके और बच्चे की त्वचा को हवा भी लगती रहें. ध्यान रखें कि बच्चे को कपड़े पहनाने से पहले उसका शरीर पूरी तरह से सूख चुका हो, क्योंकि अक्सर गीली त्वचा पर बैक्टीरिया पनपने लगते हैं और त्वचा पर फंगल इंफेक्शन होने की संभावना होती है.

4. मच्छरों को दूर रखने में मॉस्किटो रेपलेंट बहुत ही इफेक्टिव तरीके़ से काम करता है. इसमें नैचुरल पदार्थ से बने रेपलेंटहोता है और ये आसानी से मच्छरों को दूर भगा सकता है, लेकिन इसका ज़्यादा उपयोग फफोले, मेमोरी लॉस और साँस लेने में तकलीफ जैसी समस्याओं को बढ़ा सकता है. इसलिए बच्चे की सुरक्षा के लिए डीईईटी-फ्री और लेमनग्रास, सिट्रोनेला, नीलगिरी और लैवेंडर जैसी चीज़ों से बने रेपेलेंट का ही इस्तेमाल करें.

5. मॉस्किटो पैचेस मच्छरों को दूर रखने में इफेक्टिव तरीक़े से काम करता है. आप इसे बच्चे के कपड़ों, क्रिब, बेड और स्ट्रॉलर पर लगा सकते हैं.

6. अपने बच्चे के स्ट्रॉलर, कैरियर या क्रिब को मच्छरदानी से कवर कर दें, ताकि मच्छर आपके बच्चे तक न पहुंच सके. आप घर के अंदर और बाहर जाने पर भी मच्छरदानी का उपयोग कर सकते हैं. ऐसा करने से मच्छर आपके बच्चे की त्वचा तक नहीं पहुंच पाएंगे.

7. घर में साफ़-सफाई का विशेष तौर पर ध्यान रखें.एसी के पानी की ट्रे, प्लांट गमलों में पानी, आदि किसी जगह पर पानी जमा न होने दें. यहाँ तक कि वॉशरूम में बाल्टी में पानी भर कर न रखें. अगर कहीं से पानी लीक होता हो, तो उसका भी ध्यान रखें. दरअसल, जमे हुए पानी में मच्छर और कीड़ें तेज़ी से पनपते हैं.

8. भले ही आपका घर कितना ही साफ़ क्यों न हो, लेकिन आप अपने बच्चे को किसी भी चीज़ को मुँह में रखने से नहीं रोक सकते. इसलिए यह ज़रूरी है कि आपके बच्चे के संपर्क में आने वाली हर चीज़ साफ़ हो, ख़ासकर खिलौने. आप ठोस खिलौनों को साबुन की मदद से धो सकते हैं. वहीं, सॉफ्ट खिलौनों को वॉशिंग मशीन में धो सकते हैं.

9. बेबी वाइप्स के साथ उन साबुन का भी इस्तेमाल करें, जो आपके बच्चे की नाजु़क त्वचा के अनुकूल हो. न्यू बोर्न बेबी के लिए अल्कोहल-फ्री और पानी पर आधारित वाइप्स का ही उपयोग करें, क्योंकि इस तरह की वाइप्स बच्चे की त्वचा को ख़ासतौर पर पोषण देती है.

10. अगर आपके बच्चे को डेंगू हो जाता है, तो उसके लक्षणों पर नज़र रखें, ताकि उसे सही ट्रीटमेंट दिया जा सके. बुखार,उल्टी, सिरदर्द, मुँह का सूखापन, पेशाब में कमी, रैशेज और ग्रंथि में सूजन आना आदि कुछ आम लक्षण हैं. इन लक्षणों को नज़रअंदाज नहीं करना चाहिए. बच्चे में इनमें से कोई भी लक्षण दिखने पर तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें.

इस छोटी उम्र में बच्चे अपना ख़्याल ख़ुद नहीं रख सकते हैं. बीमारियों से बचने के लिए उन्हें ख़ास केयर की ज़रूरत होती है. इसलिए इस मानसून में टिप्स को फॉलो कर, अपना और अपने परिवार का बेहतर तरीक़े से ख़्याल रख सकती है.

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