Mother’s Day Special: सरप्राइज- मां और बेटी की अनोखी कहानी

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सरप्राइज: मां और बेटी की अनोखी कहानी- भाग 3

उधर पलभर के लिए सन्नाटा छाया तो तनुजा ने कहा, ‘‘अरे बेटा, सौरी, प्लीज रिनी को मत बताना कि मेरे मुंह से ये सब निकल गया है. उस ने मुझे धमकी दी है कि अगर मैं ने अपना मुंह खोला तो वह हम मांबेटे पर झूठा केस कर के फंसवा देगी.’’

अरुण को जैसे धक्का लगा था, ‘‘आंटी, रिनी के मेरी तरह और दोस्त भी हैं?’’

‘‘नहीं बेटा, मुझे कुछ नहीं पता,’’ घबराने की ऐक्टिंग करते हुए कह कर तनुजा ने फोन रख कर गहरी सांस ली.

पलभर बाद ही अरुण का फिर फोन आ गया, ‘‘आंटी, आप मुझे इन लोगों के फोन नंबर दे सकती हैं?’’

‘‘नहीं बेटा, मुझे नहीं पता.’’

‘‘ठीक है आंटी, आप मेरा नंबर लिख लें. जब भी इन में से कोई आए आप प्लीज मुझे फोन पर बता देना… मेरी रिक्वैस्ट है आप से. अब मेरी समझ में आ रहा है कि क्या हो रहा है. आप मेरे हैल्प करें आंटी, मैं आप की हैल्प करूंगा.’’

‘‘ठीक है बेटा, तुम तो मेरे बेटे की तरह हो.’’

2 दिन बाद ही यश आया था. दोनों ‘बार्बेक्यूनेशन’ डिनर के लिए जा रहे हैं, तनुजा ने सुन लिया. उन्होंने अरुण को फोन पर बता दिया. यह भी कहा, ‘‘बस बेटा, मेरा नाम न लेना. यह लड़की हमें फंसा देगी.’’

‘‘नहीं आंटी, आप चिंता न करें, थैक्स.’’

‘बार्बेक्यूनेशन’ में जो हुआ उस की तो रिनी ने कभी कल्पना भी नहीं की थी. अरुण ने रिनी और यश को वहां ऐसा लताड़ा कि रिनी के मुंह से बोल न फूटा. यश की आंखों से भी परदा हट गया था. अरुण और यश ने मिल कर रिनी को ऐसीऐसी गालियां दीं कि म्यूजिक तेज था, इसलिए तमाशा नहीं बना वरना वह लोगों की नजरों का सामना ही न कर पाती. वह तो वहां से भाग ही गई. उस के बाद अरुण और यश जो मिले तो पहली बार थे पर रिनी से मिले धोखे का, बेवकूफ  बनने का जो दुख था, दोनों ने जबदरदस्त डिनर कर शेयर किया.

रिनी घर पहुंची तो उस के चेहरे पर हवाइयां उड़ी हुई थीं, जिसे देख कर तनुजा के

दिल को कुछ सुकून मिला, तसल्ली हुई. अंदाजा लगाया कि कुछ तो हुआ है. रिनी ने न कुछ खायापीया, न कोई बात की, बस, अपने कमरे में पड़ी रही.

तनुजा ने अपना मोबाइल नंबर अरुण को दे दिया था. देर रात उस ने फोन किया. कहा, ‘‘आंटी, थैक्यू वैरी मच. आज यश और मेरे सामने रिनी की पोल खुल गई. वह वहां से भाग ही गई और हां आंटी, यश और मेरी दोस्ती भी हो गई. आंटी, लड़के ऐसा करते हैं तो कितना तमाशा होता है… यहां एक विवाहित लड़की 4-4 लड़कों को मूर्ख बना रही थी. उस के नाटकों का अंत अभी हुआ नहीं है… मेरी यश से बात हो गई है… हम उसे सबक सिखा कर रहेंगे, आप का पीछा छुड़वाएंगे.’’

‘‘जीते रहो, बेटा.’’

‘‘अभी बहुत कुछ बाकी है. बस, ईशान और अनिल का पता चल जाए तो आगे काम करें.’’

‘‘अनिल अकसर जिम में रिनी के साथ ही वर्कआउट करता है और ईशान का साडि़यों का कोई शोरूम है, शायद ‘नारी’ नाम है.’’

‘‘आंटी, बस हो गया काम.’’

‘‘हां बातों में मैं ने इतना सुना है.’’

‘‘बस, अब हम ढूंढ़ लेंगे.’’

अरुण और यश ने दोनों का पता लगा ही लिया. इतना भी मुश्किल नहीं था. चारों जब साथ बैठे तो रिनी की असलियत जान कर पहले तो हैरान हुए, फिर गुस्सा हुए और फिर हंसने लगे. ईशान ने कहा, ‘‘यार, बदनाम हम हैं और ये लड़कियां क्या कम हैं? कितनी साडि़यां ले गई मुझ से और पहनी तुम लोगों के सामने.’’

चारों अब एकदूसरे के साथ हंसीमजाक कर रहे थे.

अनिल बोला, ‘‘मैं तो जिम में वर्कआउट करतेकरते फंस गया, यार सिर्फ शरीर की नहीं, दुष्ट लड़की ने पैसों की भी अच्छी ऐक्सरसाइज करवा दी.’’

अरुण ने कहा, ‘‘ऐसी लड़की को इतनी आसानी से हम भी नहीं छोड़ेंगे. भला हो उन आंटी का जिन्होंने हमें सब सच बता दिया.

चलो, अगर 5वां मूर्ख नहीं मिला होगा तो इस समय घर पर ही होगी. चल कर उस का थोड़ा इलाज कर आते हैं. तभी चैन मिलेगा. आंटी तो हमारा ही साथ देंगी. बेचारे मांबेटा बुरे फंसे. चलो, उन्होंने हमारी आंखें खोलीं. हम भी उन की हैल्प कर आते हैं,’’ और फिर चारों हंसते हुए खड़े हो गए.

दरवाजा तनुजा ने ही खोला, रिनी तो अपने बैडरूम में थी. तनुजा मुसकराते हुए फुसफुसाई, ‘‘तुम सब को ढेर सा धन्यवाद.’’

अरुण भी फुसफुसाया, ‘‘आप को भी धन्यवाद आंटी. आप ने हमें और मूर्ख बनने से बचा लिया… कहां है मैडम?’’ तनुजा ने बैडरूम की तरफ इशारा कर दिया.

ईशान ने कहा, ‘‘अब आप चुप रहना आंटी. आज हम आप की परेशानी भी खत्म करते हैं. बस, अब आप देखना.’’

अनिल जोर से चिल्लाया, ‘‘कहां है धोखेबाज लड़की?’’ रिनी ने अंदर सुना तो बदहवास सी बाहर आई. चारों लड़कों को साथ खड़ा देख उस की सिट्टीपिट्टी गुम हो गई. कांपते स्वर में बोली, ‘‘क्या है? यहां क्यों आए सब?’’

‘‘तुम लड़कों को धोखा देती हो, पैसे लूटती हो, सास को धमकी देती हो, हम सब तुम्हारे खिलाफ रिपोर्ट करने पुलिस स्टेशन जा रहे हैं.’’

रिनी पुलिस के नाम से घबरा गई. फिर तनुजा की तरफ देख कर बोली, ‘‘सौरी, प्लीज हैल्प मी.’’

यश चिल्ला रहा था, ‘‘तुम्हारी पोल हम खोल कर रहेंगे. हम सब के पास तुम्हारे साथ खिंचे बहुत फोटो हैं… मैरिड होते हुए 4-4 बौयफ्रैंड्स को बेवकूफ बना रखा था. मैं तो न्यूजपेपर में छपवाऊंगा तुम्हारे कारनामे.’’

रिनी सचमुच घबरा रही थी. तनुजा को बोलने का यही सही समय लगा. कहा, ‘‘चलो बच्चो, मुझे भी इस के खिलाफ रिपोर्ट करनी है… धमकियां दे दे कर इस ने हमें बहुत परेशान किया है… अब तो तुम लोग भी गवाह हो, चलो, पुलिस स्टेशन चलते हैं.’’

रिनी ने धीरे से कहा, ‘‘प्लीज, आई एम सौरी.’’

तनुजा ने कहा, ‘‘एक ही शर्त है कि इसी समय इस घर से दफा हो जाओ. अजय आए तो तलाक के पेपर आराम से साइन कर देना नहीं तो तुम अब बच नहीं पाओगी. तुम्हें केस करने का बहुत शौक था न? मैं करूं अब केस? ये सब गवाही देंगे.’’

‘‘ठीक है, मैं कल ही चली जाऊंगी.’’

‘‘नहीं, अभी जाओ,’’ चारों लड़के घूरते हुए रिनी की हालत पस्त कर रहे थे.

रिनी ने कहा, ‘‘ठीक है, मैं अपना सामान ले लूं.’’

‘‘कोई सामान नहीं ले जाओगी,’’ तनुजा ने कठोर स्वर में कहा, ‘‘बस, अब जाओ.’’

रिनी अंदर गई अपना पर्स और एक बैग में जल्दी से अपने कपड़े डाल कर बाहर आई.

तनुजा ने लड़कों से कहा, ‘‘तुम भी जाओ बच्चो… भविष्य में तुम लोगों की जरूरत होगी तो फोन करूंगी.’’

‘‘हां आंटी, यह जरा भी परेशान करे तो हमें जरूर बताना. हमारे पास इस के खिलाफ बहुत सुबूत हैं.’’

रिनी सिर झुकाए चली गई. लड़के भी चले गए. तनुजा सोफे पर बैठ गईं. चैन की सांस ली. सब एक सपना सा लग रहा था. कितने दिनों से वे किस मानसिक यंत्रणा में जी रही थीं, यह वही जानती थीं.

अजय को तनुजा ने फोन पर ये सब नहीं बताया. विदेश गए बेटे को वे किसी भी तरह का तनाव नहीं देना चाहती थीं.

जब अजय लौटा तो घर में रिनी को न देख तनुजा से पूछा तो उन्होंने पूरी बात बेटे को बताई. सुन कर वह तो मां का मुंह ही देखता रह गया. फिर दोनों खूब जोरजोर से हंस पड़े और एकदूसरे के गले लग गए.

अजय ने कहा, ‘‘मां, बड़ा कमाल किया. इतनी बड़ी मुसीबत से इतनी जल्दी छुटकारा मिल गया, मुझे तो यकीन ही नहीं हो रहा है.’’

‘‘बेटे की मुसीबत दूर करने के लिए थोड़ा नाटक किया, जो सफल रहा. ये सब जरूरी था. मेरी कोशिश यही थी कि मैं तुम्हें तुम्हारे लौटने पर यह सरप्राइज दे सकूं? कैसा रहा सरप्राइज?’’

‘‘शानदार,’’ अजय ने मां के गले लगते हुए कहा, ‘‘थैंक्यू, मां.’’

सरप्राइज: मां और बेटी की अनोखी कहानी- भाग 2

अजय से असलियत ज्यादा दिन छिपी न रह सकी. एक दिन अजय को उस का सहयोगी हार्दिक जबरदस्ती लंच के लिए बाहर ले गया. रेस्तरां में जाते ही उस ने एक कोने में किसी लड़के के साथ बैठी रिनी को देख लिया, हार्दिक ने भी देख लिया था, हार्दिक अजय का बहुत अच्छा दोस्त था. थोड़ी दूर एक कोने में बैठ कर अजय ने रिनी को फोन किया.

रिनी ने फोन उठाया.

‘‘रिनी, कहां हो?’’

‘‘एक फ्रैंड के घर.’’

‘‘घर कब तक आओगी?’’

‘‘देखती हूं.’’

फोन पर बात करते हुए अजय रिनी की टेबल पर जा कर खड़ा हो गया. उस का चेहरा गुस्से से लाल हो रहा था.

रिनी ने बेशर्मी से कहा, ‘‘अच्छा तो मेरी जासूसी हो रही है? तुम्हारी मां ने भेजा होगा?’’

‘‘शटअप.’’

‘‘इस से मिलो, यह है मेरा खास दोस्त, यश.’’

अजय ने कुछ कहने के लिए जैसी ही मुंह खोला, रिनी ने चेतावनी दी, ‘‘यहां तमाशा खड़ा कर के अपना ही नुकसान करोगे अजय.’’

अजय ने माहौल पर नजर डाली, लंचटाइम था, रेस्तरां पूरा भर चुका था.

‘‘मैं तुम से घर पर बात करूंगा, उठो, चलो.’’

‘‘नहीं मैं तो अभी लंच कर रही हूं. शाम को मिलते हैं.’’

रिनी की बेहयाई देख अजय का गुस्सा काबू के बाहर हो रहा था. हार्दिक उस का हाथ पकड़ उसे रेस्तरां से बाहर ले गया. पास के ही किसी और रेस्तरां में बैठ कर हार्दिक ने कहा, ‘‘जो हुआ, बुरा हुआ. ठंडे दिमाग से काम लेना, अजय. रिनी के तेवर मुझे ठीक नहीं लग रहे.’’

अजय फिर औफिस नहीं गया. सीधा घर आ गया. हार्दिक को ही उस ने

अपना सामान संभालने के लिए बोल दिया.

बेटे को असमय आए देख तनुजा चौंकी. अजय ने पूरी बात मां को बता दी. दोनों सिर पकड़ कर बैठे रह गए. रिनी घर में घुसी. मजाक उड़ाते हुए बोली, ‘‘मांबेटे ने पंचायत कर ली?’’

अजय दहाड़ उठा, ‘‘निकल जाओ यहां से.’’

पर्स सोफे पर पटकते हुए आराम से पसर गई रिनी, ‘‘कौन निकालेगा मुझे?’’ ज्यादा होशियारी की तो मांबेटे को ऐसी चक्की पिसवाऊंगी कि दोनों बाहर आने के लिए तरस जाओगे. मेरी लाइफ में दखलंदाजी न करना ही तुम दोनों के लिए अच्छा रहेगा.’’

‘‘तुम ने मुझ से शादी क्यों की थी? कोई जोरजबरदस्ती तो थी नहीं.’’

‘‘हां, मुझे कौन मजबूर कर सकता है. पति का नाम चाहिए था, घरपैसा चाहिए था, नौकरी करने का मुझे शौक नहीं… मेरे नखरे उठाने के लिए इतने बेवकूफ घूमते हैं. मैं बस ऐंजौय करती हूं,’’ फिर गुनगुनाते हुए अपने बैडरूम में चली गई.

तनुजा को बेटे पर बड़ा तरस आया. क्या करें… वे दोनों तो फंस गए थे. सारे अरमान चूरचूर हो गए थे. अजय ने रिनी से बात करना ही बंद कर दिया. इस के 10 दिन बाद ही अजय को 15 दिनों के लिए सिंगापुर जाना पड़ा. उस का तो वैसे ही आजकल दम घुट रहा था. सोचा, टूर पर रह कर आराम से सोचूंगा कि क्या किया जाए. मां को ढेर सारी हिदायतें दे कर अजय चला गया. रिनी की जैसे लौटरी निकल आई.

रातदिन तनुजा की आंखों के आगे बेटे का उदास चेहरा घूमता रहता. फोन

पर उस की गंभीर, उदास आवाज पर दिल रो उठता.

नहीं, ऐसे तो नहीं चलेगा. वह अपने बेटे का जीवन यों खराब होते नहीं देख सकती. रिनी के मातापिता से बात करनी चाहिए, इस से पहले उन से बहुत कम ही बात होती थी. उन के बात करने का ढंग तनुजा को कभी पसंद तो नहीं आया था पर अभी मजबूरी थी शायद कोई रास्ता निकले, यह सोच कर तनुजा ने रिनी की मम्मी दीप्ति को सब बता कर अपनी परेशानी का कोई हल बताने के लिए कहा तो तनुजा को हैरत का एक तेज झटका लगा जब दीप्ति ने कहा, ‘‘हमारी बेटी ऐसी ही है. एक के साथ बंधना उस का स्वभाव ही नहीं और हम पतिपत्नी तो बहुत बिजी रहते हैं… हमारा तो बड़ी मुश्किल से रिनी से पीछा छूटा है… आप जानें वह जानें. हां यह बात तो है कि कानून उस की ही सुनेगा इसलिए आप मांबेटा अपना मुंह बंद ही रखो तो अच्छा होगा.’’

इस चेतावनी के बाद फोन रख कर तनुजा सिर पकड़े बैठी रह गईं. समझ गईं उस के मातापिता ने अपनी बला उन के सिर टाल दी है.

दिनरात सोचने के बाद रातदिन रिनी की हरकतें देख तनुजा के मन में कई योजनाएं आ ही गईं, जिन पर अमल करने के लिए वे मन ही मन तैयार हो गईं. वे अपने बेटे के जीवन से यह धोखा देने वाली, झूठे इलजाम लगाने की धमकी देने वाली लड़की को भगा कर रहेंगी. यश, अरुण, ईशान और अनिल… में से एक समय पर एक ही आता था, रिनी के लिए ये सब गिफ्ट्स लाते, उसे बाहर घुमाने ले जाते, रिनी इन लड़कों को खूब मूर्ख बनाती है, समझ गई थीं तनुजा.

एक दिन तनुजा ने फोन पर सुन लिया कि ईशान रिनी को लेने 3 बजे नीचे आएगा. तनुजा जान गई थीं कि रिनी को टाइम पर तैयार रहने की आदत नहीं है. वह लेट करती है.

अपनी योजना को रूप देने के लिए मार्केट से घर के सामान का भारी बैग लाते हुए नीचे ही ईशान को मिल गईं, तनुजा को यह लड़का हमेशा कुछ भला सा लगता था. उन्हें देखते ही उस ने बाइक खड़ी की और पास आ कर बोला, ‘‘अरे आंटी, आप इतना सामान अकेले ला रही हैं?’’

‘‘और कौन लाएगा, बेटा? पिछली बार तो सब अनिल ले आया था… अब वह काफी दिन से आया नहीं. खैर, थैंक्स, बेटा.’’

‘‘कौन अनिल आंटी?’’

‘‘अनिल को नहीं जानते? जैसे रिनी के पास तुम आते हो, जैसे तुम दोस्त हो, वैसे ही अनिल, यश और अरुण भी तो हैं.’’

‘‘मैं समझा नहीं आंटी… ये लोग कौन हैं?’’

‘‘नहीं बेटा, सौरी, मेरे मुंह से निकल गया. प्लीज रिनी को मत बताना, उस ने कहा है कि मैं ने उस की कोई भी हरकत किसी को बताई तो वह मांबेटे को झूठे इलजाम में फंसा कर जेल भेज देगी.’’

ईशान सचमुच शरीफ  ही था. उसे तो रिनी ने अपने प्यार की दुहाई दे कर फंसाया था. उस के मन में पहले ही एक विवाहित लड़की से संबंध रखने का अपराधबोध था. युवा था, गलती कर बैठा था, रिनी के रूपजाल में फंस गया था पर अब एक सभ्य, संभ्रांत महिला के मुंह से जो भी सुना, धक्का लगा.

तभी रिनी नीचे उतर आई. माथे पर त्योरियां डाल कर तनुजा से पूछा, ‘‘आप यहां क्या कर रही हैं?’’

‘‘कुछ नहीं, घर का सामान लेने गई थी,’’ रिनी ईशान की बाइक पर बैठ कर बेशर्मी से बिना बात किए हंसती हुई चली गई. तनुजा ने नोट किया कि ईशान का चेहरा गंभीर है.

तनुजा ने फोन पर तो सुना था कि रिनी ईशान के साथ मूवी जाएगी पर 1 घंटे में ही रिनी पैर पटकते हुए वापस आई और सीधे अपने बैडरूम में चली गई. शायद ईशान पर तनुजा के कहे की कुछ प्रतिक्रिया हुई है, यह सोच कर तनुजा को बड़ी आशा बंधी कि वह कोशिश करेगी तो अपनी योजना में जरूर सफल होगी.

एक दिन अरुण ने घर के लैंडलाइन पर फोन कर दिया. फोन ये लड़क अकसर करते

रहते थे, कभी भी. रिनी देर तक सो रही होती थी और उस का फोन बंद होता था तो भी अकसर कोई न कोई लैंडलाइन पर फोन कर लेता था. तनुजा अब ऐसे ही किसी मौके की तलाश में थी.

अरुण ने संकोचपूर्वक पूछा, ‘‘आंटी, रिनी कहां है?’’ फोन नहीं उठा रही है.

तनुजा अलर्ट हुईं. कहा, ‘‘बेटा, यश, अनिल या ईशान के साथ ही होगी.’’

‘‘ये लोग कौन हैं, आंटी? आप के रिश्तेदार हैं?’’

‘‘न… न… बेटा, जैसे तुम हो, ऐसे ही लोग हैं… उस की दोस्ती तो कई लोगों से है न, बेटा.’’

आगे पढ़ें- सच जानने के बाद क्या था अरूण का फैसला

सरप्राइज: मां और बेटी की अनोखी कहानी- भाग 1

अजयटूर पर जाने से पहले पास खड़ी अपनी मां तनुजा को गंभीर देख मुसकराते हुए बोला, ‘‘अरे मां, 1 हफ्ते के लिए ही तो जा रहा हूं, आप क्यों मेरे हर बार जाने पर इतना चुप, उदास हो जाती हैं?’’

तनुजा ने फीकी हंसी हंस कर पास खड़ी अजय की पत्नी रिनी को देखा जो उन्हें घूरघूर कर देख रही थी.

अजय ने फिर कहा, ‘‘मां, रिनी को देखो, इस ने कितनी जल्दी मेरी टूरिंग जौब से एडजस्ट कर लिया है,’’ फिर तनुजा के गले में प्यार से बाहें डाल दीं. कहा, ‘‘टेक केयर, मां. शनिवार को सुबह आ ही जाऊंगा. बाय रिनी, तुम दोनों अपनाअपना ध्यान रखना.’’

अजय चला गया, घर का दरवाजा बंद कर रिनी ने फौरन अपने नाइट सूट की जेब में रखा अपना मोबाइल निकाला और कोई नंबर मिलाया और फिर अपने बैडरूम की तरफ चली गई. तनुजा वहीं सोफे पर बैठ गईं. रिनी ने भले ही अपने बैडरूम का दरवाजा बंद कर लिया था पर वह इतनी धीरे नहीं बोल रही थी कि तनुजा को सुनाई न पड़े. टू बैडरूम फ्लैट में रिनी दरवाजा बंद कर के कितना भी यह सोचे कि वह अकेले में बात कर रही है पर आवाज तनुजा के कानों तक पहुंच ही जाती है हमेशा. इस का रिनी को अंदाजा ही नहीं है.

तनुजा ने सुन लिया कि अब रिनी अपने बौयफ्रैंड यश के साथ मूवी और लंच के लिए जा रही है. आधे घंटे के अंदर रिनी सजीधजी पर्स उठा कर बाहर निकल गई, तनुजा से एक शब्द भी बिना बोले. तनाव से तनुजा का सिर भारी होने लगा. बैठीबैठी सोचने लगीं कि मांबेटे के जीवन पर यह लड़की ग्रहण बन कर कहां से आ गई. अजय ने जब तनुजा को रिनी के बारे में बताया था तो तनुजा को खुशी ही हुई थी. उन के मेहनती, सरल से बेटे के जीवन में आई इस लड़की का तनुजा ने दिल खोल कर स्वागत किया था.

इस घर में 2 ही तो जने थे, मांबेटा. अजय के पिता तो एक सड़क दुर्घटना में सालों

पहले इस दुनिया से जा चुके थे. रिनी को उन्होंने खूब लाड़प्यार से बहू स्वीकारा था. उस के मातापिता भी इसी शहर में थे. दोनों कामकाजी थे. रिनी अकेली संतान थी. तनुजा मौडर्न, सुशिक्षित महिला  थीं. वे काफी साल अध्यापन में व्यस्त रही थीं.

आज तनुजा बैठ कर पिछले साथ की घटनाओं पर फिर एक बार नजर डाल रही थीं. विवाह के बाद कुछ दिन तो सामान्य ही बीते थे पर रिनी का रवैया उन्हें तब खटकने लगा था जब अजय के टूर पर जाते ही रिनी का कोई न कोई दोस्त घर जा जाता था. लड़कियां तो कभीकभार इक्कादुक्का ही आती थीं, लड़के कई आते थे. तनुजा पुराने विचारों की भी नहीं थीं कि लड़कीलड़के की दोस्ती को गलत ही समझे पर यहां कुछ तो था जो उन्हें खटक रहा था. यही यश एक दिन आया था. उन्हें हैलो आंटी कहता हुआ सीधे रिनी के बैडरूम में चला गया था. तनुजा को बहुत गुस्सा आया था कि यह कौन सा तरीका है. तनुजा ने रिनी को आवाज दी तो यश ने बैडरूम के बाहर आ कर कहा, ‘‘आंटी, रिनी के सिर में दर्द है, वह आराम कर रही है.’’

तनुजा ने पूछ लिया, ‘‘तुम क्या कर रहेझ्र हो फिर?’’

‘‘उस के पास बैठा हूं, रिनी ने ही मुझे फोन पर बुलाया है,’’ कह कर यश ने बैडरूम का दरवाजा बंद कर लिया.

तनुजा के तनमन में अपमान व क्रोध की एक ज्वाला सी उठी. उन का मन हुआ कि रिनी के बैडरूम का दरवाजा भड़भड़ा कर खुलवा दें और यश को घर के बाहर कर दें पर ऐसा कुछ करने की नौबत ही नहीं आई.

रिनी ही स्लीवलैस पारदर्शी गाउन में उन के सामने पैर पटकते हुए खड़ी हो गई, ‘‘आप आज यह बात साफसाफ जान ही लें कि मैं अपनी मरजी से जीने वाली लड़की हूं, मैं किसी से नहीं डरती. और हां, अपने बेटे से मेरी शिकायत करने के लिए मुंह खोला तो अंजाम क्या होगा, इस की कल्पना भी आप नहीं कर सकतीं.’’

तनुजा ने डांट कर पूछा, ‘‘क्या कर लोगी? बेशर्म लड़की.’’

‘‘आप और आप के बेटे के खिलाफ पुलिस स्टेशन जा कर शिकायत कर दूंगी… मारपिटाई और दहेज का केस कर मांबेटे को जेल में डलवा दूंगी… जानती हैं न कानून आजकल लड़की की पहले सुनता है.’’

तनुजा पसीने से नहा गईं कि यह बित्ती सी लड़की उन्हें धमकी दे रही है. उफ, हम कहां फंस गए? मेरे शरीफ बेटे के जीवन में यह लड़की कहां से आ गई. थोड़ी देर बाद रिनी यश के साथ बाहर चली गई.

और एक अकेला यश ही नहीं, अरुण, ईशान और अनिल भी रिनी के पास आतेजाते रहते थे. तनुजा के रातदिन तो आजकल इसी चिंता में बीत रहे थे कि किस तरह बेटे को इस से छुटकारा मिले. उन्होंने एक दिन रिनी से कहा, ‘‘तुम अजय के जीवन से चली क्यों नहीं जाती? इन्हीं में से एक के साथ रहना.’’

रिनी ने टका सा जवाब दिया, ‘‘नहीं, रहूंगी तो यहीं, मैं एक के साथ बंध कर नहीं रह सकती.’’

‘‘तो फिर अजय से विवाह क्यों किया?’’

‘‘मम्मीपापा मुझ से परेशान थे. कहते थे शादी कर यहां से जाओ. यहां सिर्फ आप थीं. बंधना मेरा स्वभाव ही नहीं. अच्छा होगा, आप मुंह बंद रखें और जैसे मुझे जीना है, जीने दें. इसी में मांबेटे की भलाई है.’’

टूर पर अजय रोज तनुजा से बात करता था, रिनी से भी संपर्क में रहता था.

तनुजा रिनी के अभिनय पर हैरान रह जाती थी.

अजय टूर से आया तो शनिवार, रविवार दोनों दिन रिनी आदर्श पत्नी की तरह अजय के आगेपीछे घूमती रही, उस की पसंद की चीजें बनाती रही. तनुजा को गंभीर देख अजय ने हंस कर पूछा, ‘‘क्यों मां, मेरे पीछे सासबहू में झगड़ा हुआ क्या?’’

रिनी फौरन बोली, ‘‘हम सासबहू हैं ही नहीं, हम तो मांबेटी हैं.’’

तनुजा चुप रहीं. कई बार मन में आया कि अजय को सब सचसच बता दें… रिनी के चरित्र की पोलपट्टी खोल कर रख दें पर रिनी ने कानून की धमकी दी थी और वे जानती थीं कि मांबेटा दोनों परेशानी में पड़ सकते हैं. आजकल वे रातदिन यही सोच रही थीं कि कैसे इस बेलगाम लड़की से छुटकारा मिले.

आगे पढ़ें- क्या अजय को पता चली रिनी की सच्चाई?

लाल साया: आखिर क्या था लाल साये को लेकर लोगों में डर?

लाल साया: भाग-3

‘‘क्या करते हैं इस के पिता?‘‘

‘‘खेतों में मजदूरी करते हैं. बहुत नेक इनसान हैं दोनों. ये उन की इकलौती संतान है.”

‘‘आप उन से बात कराइए.”

‘‘आप मजदूर परिवार से बहू लाएंगी?”

‘‘इतनी योग्य बहू मिल रही है, तो क्यों नहीं?”

‘‘बीबीजी, एक बार विशेष से तो पूछ लीजिए.”

‘‘वो देखिए भाभी, डांस कर के सीधे विशेष के पास खड़ी है. कैसे दोनों हंसहंस कर बातेें कर रहे हैं. आप को पूछने की जरूरत लग रही है क्या?” मुसकरा कर विमला देवी ने पूछा.

रजनी के लिए आए इस प्रस्ताव से छुटकी की शादी की खुशी दुगुनी हो गई. विशेष ने मौका देख रजनी को किनारे बुलाया और बोला, ‘‘मुझे तुम्हें कुछ बताना है.‘‘

‘‘अब जो भी बताना, शादी के बाद ही बताना,” कहती हुई रजनी मंडप में जा कर छुटकी के पास बैठ गई.

दो दिन के आगेपीछे दोनों सहेलियां एक ही शहर में विदा हो कर आ गईं. गाड़ी से उतर कर रजनी अपनी कोठी को देख कर खुद ही अपने भाग पर विश्वास नहीं कर पा रही थी. धीरेधीरे रजनी अपने इस नए घर में रचनेबसने लगी. परंतु उसे जाने क्यों किसी तीसरे के होने का एहसास लगातार होता. विशेष भी सपने में लगातार किसी से माफी मांगता रहता. कभीकभी अचानक वह डर कर उठ जाता. पूछने पर वह कहता, ‘‘कुछ नहीं, सो जाओ.‘‘

एक दिन उसे आंगन में एक लड़की लाल सूट में दिखाई दी. जब रजनी उस के पीछे भागी, तो वह आंगन से पीछे की बगिया की ओर चली गई. रजनी उस के पीछेपीछे वहां पहुंची तो उसे लगा कि वह लाल साया उस घड़े वाली मूर्ति में समा गया है.

यह देख रजनी बुरी तरह डर गई. सास से कहा, तो उन्होंने कहा, ‘‘तुम्हारा भ्रम है बहू.‘‘

कई दिनों से रजनी देख रही थी कि विशेष के फोन पर किसी उमेश का फोन बारबार आ रहा था. परंतु वह उठा नहीं रहा था. पर उस फोन के बाद विशेष बहुत विचलित हो जाता था. रजनी समझ नहीं पा रही थी कि समस्या क्या है. पूछने पर विशेष टाल दे रहा था.

रजनी ने इस समस्या की तह में जाने का फैसला किया. रसोई में जा कर वह बोली, ‘‘महेश भैया चाय बन गई क्या?‘‘

‘‘हां, हां, बस बनी ही समझो बहूरानी. आज आप जल्दी जाग गए.‘‘

‘‘हां, अच्छा यह बताइए कि आप के भैया के दोस्त कौनकौन हैं?‘‘

‘‘काहे?‘‘

‘‘ऐसे ही, कोई आता ही नहीं है ना, इसीलिए पूछा. कोई काम नहीं था. जाने दीजिए.‘‘

‘‘बहूरानी, भैया के ज्यादा दोस्त नहीं हैं. घर पर तो केवल दो ही दोस्त देखे हैं हम ने. एक उदय और एक उमेश. बहुत समय पहले आए रहे,” चाय पकड़ता हुआ महेश बोला. पता नहीं, क्या सोच कर उस ने रिचा का नाम नहीं लिया.

दिन में रजनी अपनी सहेली छुटकी के घर चली गई. वहां लंच पर आए उस के पति सबइंस्पेक्टर विजय से भी मुलाकात हो गई.

‘‘जीजाजी, आप की थोड़ी मदद चाहिए थी.”

‘‘अरे साली साहिबा, आप आदेश दीजिए.”

‘‘मुझे लगता है कि मेरे पति को कोई परेशान कर रहा है.”

‘‘कौन…?”

‘‘यह मैं नहीं जानती, पर मुझे दो पर शक है.‘‘

‘‘अच्छा, किस पर…?‘‘

‘‘एक मेरे पति का दोस्त है उमेश, उस पर और एक आत्मा है.”

‘‘आत्मा…? पागल हुई है क्या रजनी तू?” छुटकी हड़बड़ा कर बोली.

‘‘एक मिनट छुटकी, उसे अपनी बात कहने दो.”

कमरे में मौन पसर गया.
‘‘तो साली साहिबा, आप को वह आत्मा कभी दिखाई दी क्या?”

‘‘जी, आज सपने में आ कर मुझसे मुक्ति दिलाने की प्रार्थना कर रही थी. न्याय दिलाने की गुहार लगा रही थी.”

‘‘सपने में…?”

‘‘हां, आज सपने में आई थी. वैसे दो बार घर के आंगन में लाल सूट पहन कर घूमते हुए देखा है मैं ने उसे. पर उस के पीछे जाने पर वह बगीचे में लगी मूर्ति में समा जाती है.‘‘

अपने पर्स में से रजनी ने एक कागज का टुकड़ा निकाला, ‘‘यह उमेश का नंबर है. मैं आप की सुविधा के लिए ले आई थी.”

‘‘यह आप ने बहुत अच्छा किया. आप मुझे विशेष का नंबर भी दे दीजिए. मुझे थोड़ा समय दीजिएगा. मैं इस रहस्य को सुलझाने की कोशिश करता हूं. आप का एरिया मेरे थाने में ही आता है.”

हफ्ता भी नहीं बीता था कि सुबहसुबह विनय रजनी के घर आ गए.

‘‘अरे रजनी देखो तो सही, तुम्हारी सहेली के पति आए हैं,” स्वयं को संयत रखते हुए विशेष ने पत्नी को आवाज दी और विनय को बैठक में ले आया.

‘‘मुझे आप से कुछ बात करनी थी?”

‘‘मुझ से…?‘‘ आश्चर्य और घबराहट दोनों थी विशेष की आवाज में.

‘‘आप को कोई ब्लैकमेल कर रहा है?‘‘ विजय ने सीधेसीधे पूछा.

‘‘ज्ज ज जी म म मेरा मतलब है क्या?” विशेष बुरी तरह घबरा गया.

‘‘देखिए विशेष, हम रिश्तेदार हैं. मेरी हमदर्दी आप के साथ है. मैं एक ब्लैकमेल के केस को हल करने की जांच में लगा हुआ हूं. उसी सिलसिले में आप का नंबर भी मिला. उमेश एक ब्लैकमेलर है. उसे तो खैर हम पकड़ ही लेंगे, परंतु वह आप को बारबार फोन क्यों कर रहा है. यही जानने के लिए मैं आया हूं,‘‘ विजय शांत स्वर में बोले.

विशेष सिर पकड़ कर सोफे पर बैठ गया. उस के नेत्र बरस रहे थे. पत्नी और मां भी आ गए थे. रजनी का हाथ पकड़ कर वह बोला, ‘‘रजनी ये ही वो बात है, जो मैं शादी से पहले तुम्हें बताना चाहता था, पर तब तुम ने सुना नहीं. बाद में इसे बताने, ना बताने का कोई अर्थ नहीं था. तुम्हारे पूछने पर भी नहीं बताया.

‘‘काश, वह काली रात मेरे जीवन में ना आई होती. उस रात हम छत पर पार्टी कर रहे थे. मैं पीता नहीं हूं. परंतु दोस्तों ने मुझे बहुत पिला दी थी. शायद इसीलिए मुझे चढ़ गई थी. मुझे कुछ होश नहीं था. दोस्तों ने बताया कि नशे में मैं ने रिचा को छत से धक्का दे दिया था. वह सिर के बल गिर कर मर गई.

‘‘मुझे तो होश नहीं था. उन दोनों ने ही रिचा की लाश को ठिकाने लगाया और इस राज को अपने तक सीमित रखने का वादा कर चले गए. पिताजी ने दोनों को पच्चीसपच्चीस लाख रुपए दिए थे. थोड़े समय बाद उमेश पिताजी को ब्लैकमेल करने लगा. एक दिन पिताजी को बहुत गुस्सा आ गया. उसी में हार्ट अटैक से उन की मृत्यु हो गई. दस महीने वह शांत रहा और अब फिर से वह मुझे फोन कर रहा है. मैं जवाब नहीं दे रहा. जानता हूं कि एक बार दे दूंगा तो इस का कोई अंत नहीं होगा. कोई रास्ता भी नहीं सूझ रहा. ऊपर से मुझे और रजनी को रिचा लाल सूट में आंगन में घूमती दिखाई देती है. उस दिन उस ने यही लाल सूट पहना था,” विशेष ने विजय की ओर देखा.

‘‘रास्ता तो एक ही है विशेष, आप को आत्मसमर्पण करना होगा,” विजय बोले.

‘‘लेकिन जीजाजी, ये तो वो दोस्त कह रहे हैं न कि धक्का विशेष ने दे दिया था. क्या पता, उन में से ही किसी ने दिया हो?‘‘

‘‘हां, यह संभव है, पर जब तक सिद्ध नहीं होता, तब तक तो…”

‘‘क्या हम उस लाश की फौरेंसिक जांच नहीं करा सकते? उस से तो पता चल जाएगा ना?” रजनी ने पूछा.

‘‘हां, उस से पता चल जाएगा. और यह मैं करा भी दूंगा. फिलहाल तो आप को समर्पण करना होगा. मेरा एक दोस्त है, बहुत अच्छा वकील है. मैं उस से बात कर लूंगा. वह आप का केस लड़ेगा. उदय और उमेश को पकड़ने के लिए दो टीमें जा चुकी हैं.”

फौरेंसिंक टीम ने कंकाल को जब निकाला तो उस के नीचे एक रिवौल्वर भी दबी मिली. और जब रिपोर्ट आई, तो सब चकित रह गए. रिपोर्ट हूबहू वही कह रही थी, जो उदय ने कोर्ट में बयान दिया था. रिचा की मौत गिरने से नहीं गोली लगने से हुई थी. रिवौल्वर पर उमेश के फिंगरप्रिंट्स भी मिले थे.

मजिस्ट्रेट के सामने इकबालिया स्टेटमैंट में उदय ने बयान दिया, ‘‘उस रात उमेश ने रिचा के सामने विवाह का प्रस्ताव रखा था, जिसे उस ने मना कर दिया. गुस्से में उमेश ने गोली चला दी और वो रिचा के सिर के पार हो गई. विशेष नशे में धुत्त पड़ा था. उदय डर कर चिल्लाने लगा, तो उस ने उसे शांत कराया और समझाया कि जो हो गया, वह हो गया. विशेष के पिता बहुत अमीर हैं. हम रिचा को गिरा कर कहेंगे कि विशेष ने नशे में उसे धक्का दे कर मार डाला और इस राज के बदले उन से पैसे वसूल लेंगे. और यही हुआ. अंकल ने बिना मांगे हमें पच्चीस-पच्चीस लाख रुपए दे दिए. उस के बाद का मुझे कुछ पता नहीं. हम ने एकदूसरे से कोई संपर्क नहीं किया.”

फौरेंसिक रिपोर्ट और चश्मदीद की गवाही के आधार पर विशेष को कोर्ट ने बाइज्जत बरी कर दिया.

पत्नी व मां के साथ कोर्ट से बाहर आ कर इंस्पेक्टर विजय से हाथ मिलाते हुए विशेष बोला, ‘‘आप ने और रजनी ने मिल कर मुझे जेल से ही नहीं, बल्कि लाल साए के आतंक से भी मुक्त करा दिया है. इतने समय बाद आज मैं सुकून से सो सकूंगा.”

लाल साए का राज अब राज नहीं था. वह असल में उमेश ही था, जो खिड़की से लाल ओढ़नी में घुस कर झलक दिखा कर भाग जाता था. उदय के साथ मिल कर उस ने यह नाटक इन फालतू बातों में विश्वास करने वाले परिवार को पैसे देते रहने के लिए रचा था.

रजनी ने पहले ही दिन पैरों के निशान से भांप लिया था कि वे मर्द के निशान हैं किसी आत्मावात्मा के नहीं.

शरणागत: कैसे तबाह हो गई डा. अमन की जिंदगी

शरणागत: कैसे तबाह हो गई डा. अमन की जिंदगी- भाग 1

आईसीयू में लेटे अमन को जब होश आया तो उसे तेज दर्द का एहसास हुआ. कमजोरी की वजह से कांपती आवाज में बोला, ‘‘मैं कहां हूं?’’

पास खड़ी नर्स ने कहा, ‘‘डा. अमन, आप अस्पताल में हैं. अब आप ठीक हैं. आप का ऐक्सिडैंट हो गया था,’’ कह कर नर्स तुरंत सीनियर डाक्टर को बुलाने चली गई.

खबर पाते ही सीनियर डाक्टर आए और डा. अमन की जांच करने लगे. जांच के बाद बोले, ‘‘डा. अमन गनीमत है जो इतने बड़े ऐक्सिडैंट के बाद भी ठीक हैं. हां, एक टांग में फ्रैक्चर हो गया है. कुछ जख्म हैं. आप जल्दी ठीक हो जाएंगे. घबराने की कोई बात नहीं.’’

डाक्टर के चले जाने के बाद नर्स ने डा. अमन को बताया कि उन के परिवार वालों को सूचित कर दिया गया है. वे आते ही होंगे. फिर नर्स पास ही रखे स्टूल पर बैठ गई. अमन गहरी सोच में पड़ गया कि अपनी जान बच जाने की खुशी मनाए या अपने जीवन की बरबादी का शोक मनाए?

कमजोरी के कारण उस ने अपनी आंखें मूंद लीं. एक डाक्टर होने के नाते वह यह अच्छी तरह समझता था कि इस हालत में दिमाग और दिल के लिए कोई चिंता या सोच उस की सेहत पर गलत असर डाल सकती है पर वह क्या करे. वह भी तो एक इंसान है. उस के सीने में भी एक बेटे, एक भाई और पति का दिल धड़कता है. इन यादों और बातों से कहां और कैसे दूर जाए?

आज उसे मालूम चला कि एक डाक्टर हो कर मरीज को हिदायत देना कितना आसान होता है पर एक सामान्य मरीज बन कर उस का पालन करना कितना कठिन.

डा. अमन के दिलोदिमाग पर अतीत के बादल गरजने लगे… डा. अमन को याद आया अपना वह पुराना जर्जर मकान जहां वह अपने मातापिता और 2 बहनों के साथ रहता था. उस के पिता सरकारी क्लर्क थे. वे रोज सवेरे 9 बजे अपनी पुरानी साइकिल पर दफ्तर जाते और शाम को 6 बजे थकेहारे लौटते.

उस की मां बहुत ही सीधीसादी महिला थीं. उस ने उन्हें हमेशा घर के कामों में ही व्यस्त देखा, कभी आराम नहीं करती थीं. वे तीनों भाईबहन पढ़नेलिखने में होशियार थे. जैसे ही बहनों की पढ़ाई खत्म हुई उन की शादी कर दी गई. पिताजी का आधे से ज्यादा फंड बहनों की शादी में खर्च हो गया. उस के पिता की इच्छा

थी कि वे अपने बेटे को डाक्टर बनाएं. इस इच्छा के कारण उन्होंने अपने सारे सुख और आराम त्याग दिए.

वे न तो जर्जर मकान को ही ठीक करवा पाए और न ही स्कूटर या कार ले पाए. बरसात में जब जगहजगह से छत से पानी टपकने लगता तो मां जगहजगह बरतन रखने लगतीं. ये सब देख कर उस का मन बहुत दुखता था. वह सोचता कि क्या करना ऐसी पढ़ाई को जो मांबाप का सुखचैन ही छीन ले पर जब वह डाक्टरी की पढ़ाई कर रहा था तब पिता के चेहरे पर एक अलग खुशी दिखाई देती. उसे देख उसे बड़ा दिलासा मिलता था.

तभी दरवाजा खुलने की आवाज उसे वर्तमान में लौटा लाई. उस के मातापिता और बहनें आई थीं. पिता छड़ी टेकते हुए आ रहे थे. मां को बहनें पकड़े थीं. उस का मन घबराने लगा. सोचने लगा कि मैं कपूत उन के किसी काम न आया. मगर वे आज भी उस के बुरे समय में उस के साथ खड़े थे. जिसे सब से पहले यहां पहुंचना चाहिए था उस का कोसों दूर तक पता न था.

काश वह एक पक्षी होता, चुपके से उड़ जाता या कहीं छिप जाता. अपने मातापिता का सामना करने की उस की हिम्मत नहीं हो रही थी. उस ने आंखें बंद कर लीं. मां का रोना, बहनों का दिलासा देना, पिता का कुदरत से गुहार लगाना सब उस के कानों में पिघले सीसे की तरह पड़ रहा था.

तभी नर्स ने आ कर सब को मरीज की खराब हालत का हवाला देते हुए बाहर जाने को कहा. मातापिता ने अमन के सिर पर हाथ फेरा तो उसे ऐसे लगा मानो ठंडी वादियों की हवा उसे सहला रही हो. धीरेधीरे सब बाहर चले गए.

अमन फिर अतीत के टूटे तार जोड़ने लगा…

जैसे ही अमन को डाक्टर की डिग्री मिली घर में खुशी की लहर दौड़ गई. मातापिता खुशी से फूले नहीं समा रहे थे. बहनें भी खुशी से बावली हुई जा रही थीं. 2 दिन बाद ही इन खुशियों को दोगुना करते हुए एक और खबर मिली. शहर के नामी अस्पताल ने उसे इंटरव्यू के लिए बुलाया था. 2 सप्ताह बाद अमन की उस में नौकरी लग गई. उस के पिता की बहुत इच्छा थी

कि वह अपना क्लीनिक भी खोले. उस ने पिता की इच्छा पर अपनी हामी की मुहर लगा दी. वह अस्पताल में बड़े जोश से काम करने लगा.

अभी अमन की नौकरी लगे 1 साल भी नहीं हुआ था कि अचानक उस की जिंदगी में एक ऐसा तूफान आया कि उस ने उस के जीवन की दिशा ही बदल दी.

दोपहर के लंच के बाद अमन डा. जावेद के साथ बातचीत कर रहा था. डा. जावेद सीनियर, अनुभवी और शालीन स्वभाव के थे. वे अमन की मेहनत और लगन से प्रभावित हो कर उसे छोटे भाई की तरह मानने लगे थे.

उसी समय एक घायल लड़की को अस्पताल लाया गया. वह कालेज से आ रही थी कि उस की साइकिल का बैलेंस बिगड़ गया और वह बुरी तरह जख्मी हो गई. डा. जावेद, अमन और अन्य डाक्टर उस के इलाज में जुट गए. उसे काफी चोटें आई थीं. एक टांग में फ्रैक्चर भी हो गया था. लड़की के मातापिता बहुत घबराए हुए थे. उन्हें दिलासा दे कर बाहर वेटिंग हौल में बैठने को कहा. लड़की के इलाज का जिम्मा डा. अमन को सौंपा गया.

लड़की बेहोश थी. उस के होश में आने का वहीं बैठ कर इंतजार करने लगा. लड़की बहुत सुंदर थी. तीखे नैननक्श, गोरा रंग, लंबे बाल. उस के होश में आने पर उस के मातापिता को बुलाया गया. बातोंबातों में पता चला कि लड़की का नाम नीरा है. बीए फाइनल का आखिरी पेपर दे कर लौट रही थी. सहेली के साथ बातें करती आ रही थी. तभी ऐक्सिडैंट हो गया.

आगे पढ़ें- अमन ने उन्हें धीरज बंधाते हुए…

शरणागत: कैसे तबाह हो गई डा. अमन की जिंदगी- भाग 4

2 महीने में ही नीरा अपनी दिनचर्या से ऊब गई. उसे अपने कालेज के लुभावने दिनों की याद आने लगी. कभी खाना बनाने का भी मूड न करता. कभी दालसब्जी कच्ची रह जाती, कभी रोटी जल जाती. उस ने अमन के सामने आगे पढ़ाई करने का प्रस्ताव रखा जिसे उस ने तुरंत मान लिया और घर के कामकाज के लिए एक नौकरानी का इंतजाम कर दिया.

अमन की सादगी का फायदा उठाते हुए नीरा ने अपने परिवार से भी मोबाइल के जरीए टूटे रिश्ते जोड़ लिए. अब वह कभीकभी कालेज के बाद अपने मायके भी जाने लगी. अमन इन सब बातों से बेखबर था. वह जीजान से नीरा को खुश रखने की कोशिश करता.

कुछ समय बाद अमन को लगा कि नीरा में बहुत बदलाव आ गया है. वह कालेज से आ कर या तो लैपटौप पर चैट करती है या फिर मोबाइल पर धीरेधीरे बातें करती रहती है. अमन कब आया, कब गया, खाना खाया या नहीं उसे इस बात का कोई ध्यान नहीं रहता. उस ने सबकुछ नौकरानी पर छोड़ दिया था.

अमन अंदर ही अंदर घुटने लगा. उस ने पाया कि आजकल नीरा बातबात में किसी राहुल नाम के प्रोफैसर का जिक्र करती है जैसे कितना अच्छा पढ़ाते हैं, बहुत बड़े स्कौलर हैं, देखने में भी बहुत स्मार्ट हैं आदिआदि.

अमन ने कहा, ‘‘भई, ऐसे सभी गुणों से पूर्ण व्यक्ति से हम भी मिलना चाहेंगे. कभी उन्हें घर बुलाओ.’’

यह सुन कर नीरा कुछ सकपका सी गई. समय बीतता गया. नीरा की लापरवाहियां बढ़ती ही जा रही थीं. कभी कपड़े धुले न होते, तो कभी घर अस्तव्यस्त होता. अमन ने दबे स्वर में आगाह भी किया. पर नीरा ने कोई ध्यान न दिया.

नीरा रात को भी कभी सिरदर्द, तो कभी थका होने का बहाना कर जल्दी सो जाती. अमन की नींदें गायब होने लगीं. उसे ऐसा लगने लगा कि वह ठगा गया है. अपनी शरण में आई लड़की का मान रखने के लिए उस ने अपने घरबार, मांबाप, बहनों सब को छोड़ दिया पर उसे क्या मिला? यही सोचतेसोचते पूरी रात करवटें लेते बीत जाती.

वैसे तो अमन के जीवन में चिंताओं और तनाव के बादल हमेशा के लिए छा गए थे, परंतु एक दिन तो ऐसा तूफान आया कि उस के जीवन का सारा सुखचैन उड़ा ले गया.

एक दिन डा. जावेद के साथ अमन एक होटल में गया. होटल में कौफी का और्डर दे कर वे बैठे ही थे कि अचानक हौल के कोने में बैठे एक जोड़े पर अमन की निगाह रुक गई. एक गोरा सुंदर सा युवक अपनी महिला साथी के हाथों को पकड़े बैठा था. कभी बातें करता तो कभी ठहाके लगाता.

अचानक उस युवक ने उस युवती के हाथों को चूम लिया. युवती जोर से खिलखिला कर हंस पड़ी. उस के हंसते ही सारे राज खुल गए. दरअसल युवती और कोई नहीं नीरा ही थी. ध्यान से देखा तो उस की साड़ी भी पहचान में आ गई. यही साड़ी तो आज कालेज जाते समय नीरा पहन कर गई थी.

अमन का चेहरा सफेद पड़ गया. यह देख कर डा. जावेद ने भी पलट कर उधर देखा, वे भी नीरा को पहचान गए. होटल में कुछ अनहोनी न हो जाए, इसलिए वे गुस्से में कांपते अमन को लगभग खींचते हुए होटल से बाहर ले आए. लड़खड़ाती टांगों से किसी तरह अमन कार में बैठ गया. गुस्से से वह अभी तक कांप रहा था.

डा. जावेद उसे अपने घर ले आए. अमन के दिल पर गहरी चोट लगी थी. वह डा. जावेद से आंखें नहीं मिला पा रहा था. जब वह थोड़ा नौर्मल हुआ तो डा. जावेद ने बड़े भाई की तरह उस की पीठ पर हाथ फेरते हुए समझाया, ‘‘अमन, नीरा से मैं खुद बात करूंगा. उस ने ऐसा क्यों किया, सब कुछ पूछूंगा. अमन लव मैरिज में दोनों ओर से पूर्ण समर्पण होना जरूरी होता है. 1 महीने में तुम नीरा को कितना जान पाए? और नीरा तुम्हें कितना जान पाई? बस यहीं पर तुम अपने जीवन की सब से बड़ी भूल कर बैठे. मैं ने तुम्हें आगाह भी किया था पर तब तुम पर शरणागत का मान रखने, रक्षा करने का भूत सवार था.’’

अमन लज्जित सा उठ खड़ा हुआ. डा. जावेद अमन को उस के घर तक पहुंचा आए.

अमन बड़ी बेचैनी से नीरा का इंतजार करने लगा. वह अंदर ही अंदर सुलग रहा था. उस ने सोच लिया कि आज नीरा से आरपार की बात करेगा. बहुत धोखा दे चुकी है.

नीरा रोज की तरह दोपहर बाद घर आई. अमन को घर में देख हैरान हो गई. बोली, ‘‘अरे, आज बहुत थक गई. तुम खाना खा लेना. मैं नहा कर आती हूं.’’

अमन के सब्र का बांध टूट गया. उस ने नीरा से दोटूक पूछा, ‘‘तुम आज कालेज के बाद कहीं गई थी?’’

नीरा सफेद झूठ बोल गई, ‘‘अरे, आज तो सभी प्रोफैसर आए थे. एक के बाद एक लैक्चर होते रहे.’’

अमन का क्रोध बढ़ता जा रहा था. नीरा उठ कर जाने लगी तो अमन ने उस का हाथ पकड़ लिया. पूछा, ‘‘होटल आकाशदीप में कौन बैठा था तुम या तुम्हारी कोई हमशक्ल?’’

यह सुन कर नीरा घबरा गई. बौखला कर चिल्लाने लगी, ‘‘अच्छा तुम मेरी जासूसी भी करने लगे हो? तुम्हारी सोच इतनी ओछी है, मैं सोच भी नहीं सकती थी. प्रोफैसर के साथ कौफी पीने चली गई तो कौन सा आसमान गिर गया?’’

‘‘अच्छा, कौफी पीतेपीते प्रोफैसर हाथ चूमने लगते हैं?’’ अमन बोला.

चोरी पकड़ी जाने पर नीरा गुस्से में चीजें उठाउठा कर पटकने लगी. वह चिल्लाते चिल्लाते बोली, ‘‘मैं ने भी कितने संकीर्ण विचारों वाले व्यक्ति से शादी कर ली… वास्तव में तुम मेरे योग्य नहीं हो. मैं ने जल्दबाजी में गलत व्यक्ति को चुन लिया,’’ कह झटके से उठी और अपने कुछ कपड़े एक बैग में डाल खट से दरवाजा खोल बाहर निकल गई.

अमन कुछ देर तक तो बुत बना बैठा रहा, फिर अचानक उसे होश आया तो बाइक उठा कर नीरा को देखने निकल गया.

नीरा की बातें अमन के दिमाग पर ऐसे लग रही थीं जैसे कोई हथौड़ों से वार कर रहा हो. वह बाइक चला रहा था पर उस का ध्यान कहीं और था. अयोग्य व्यक्ति, संकीर्ण विचारों वाला, जासूसी करना, छोटी सोच यही बातें उस के दिमाग से टकरा रही थीं. तभी उस की बाइक सामने से तेजी से आ रही कार से जा टकराई और वह छिटक कर दूर जा गिरा. उस के बाद क्या हुआ उसे नहीं पता. अब अस्पताल में होश आया.

अचानक किसी आवाज से अमन की तंद्रा टूटी तो उस ने देखा सामने उस की बहन और डा. जावेद खड़े थे. डा. जावेद ने उसे तसल्ली देते हुए कहा, ‘‘अमन, गनीमत है इतना बड़ा ऐक्सिडैंट होने पर भी तुम खतरे से बाहर हो… अब तुम नीरा के बारे में सोच कर परेशान न होना. अगर उसे अपनी गलती का एहसास हो गया तो वह माफी मांग कर लौट आएगी और अगर ऐसा नहीं करती तो समझ लो वह तुम्हारे योग्य ही नहीं है. तुम उसे उस के हाल पर छोड़ दो. बस जल्दी ठीक हो जाओ.’’

बहन ने भी डा. जावेद के सुर में सुर मिलाया. बोली, ‘‘हां अमन, अभी तो तुम्हें घर भी ठीक करवाना है, क्लीनिक भी खोलना है.’’

यह सुन कर अमन तेज दर्द में भी मुसकरा दिया.

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