क्या करें लिव इन रिलेशन में रहने से पहले

करीब 4 साल तक लिव इन रिलेशनशिप में रहने के बाद स्मृति ने जब देखा कि उस के बौयफ्रैंड सूरज ने किसी और लड़की से शादी कर ली है, तो उस के पैरों तले धरती खिसक गई.

पिछले कुछ दिनों से वह सूरज के हावभाव में बदलाव देख रही थी. पूछने पर वह अलगअलग बहाने बना देता था. कभी कहता कि औफिस में समस्या है, तो कभी कहता कि तबीयत ठीक नहीं है. एक दिन जब उस ने जोर दिया तो उस ने बताया कि जब वह अपने शहर गया, तो मातापिता ने उस की जबरदस्ती शादी करवा दी. वह अपनी और स्मृति की बात उन्हें इसलिए नहीं बता पाया, क्योंकि वे दोनों के अलगअलग जाति के होने की वजह से इस रिश्ते को मंजूरी नहीं देते.

स्मृति उस की सहजता से कह गई इस बात से हैरान हो गई. फिर उसी दिन वहां से अपनी मां के पास चली गई. फिर वह एक सामाजिक संस्था से मिली और कोशिश कर रही है कि सूरज उसे अपना ले. वह कोर्ट नहीं गई, क्योंकि उसे लगा कि इस से उस की बदनामी होगी. उस का कहना है कि सूरज कोशिश कर रहा है. वह अपनी पत्नी को तलाक दे कर उसे अपनाएगा, क्योंकि यह शादी उस ने अपने मातापिता की जिद से की है.

यहां सवाल यह उठता है कि अब तक सूरज अगर अपने रिश्ते को परिवार की नहीं बता पाया है, तो आगे कैसे बता कर स्मृति के साथ रहेगा? और अपनी पत्नी को छोड़ेगा कैसे? उस के लिए वजह क्या बनाएगा?

लिव इन रिलेशनशिप आज के समय में तेजी से बढ़ रहा है. एक समय ऐसा था जब ऐसे संबंध होने पर लोग खुल कर बात करना पसंद नहीं करते थे. लेकिन आजकल लोग खुल कर इस रिलेशनशिप में रहते हैं खासकर युवा इस रिश्ते को अपनाने में सहजता का अनुभव करते हैं, क्योंकि इस में दायित्व कम होता है.

सैक्स की आजादी

इस बारे में मुंबई की सोशल ऐक्टिविस्ट नीलम गोरहे कहती हैं, ‘‘यह रिश्ता तब तक ठीक रहता है जब तक महिलाओं को कोई समस्या नहीं आती. महिलाएं मेरे पास तब आती हैं जब उन का बौयफ्रैंड उन्हें छोड़ कर चला गया हो या चोरीछिपे शादी कर ली हो. ऐसे में हरेक महिला यही चाहती है कि रिश्ते को मैं ठीक कर दूं. उस लड़के से कहूं कि उसे अपना ले.

‘‘असल में इस रिश्ते के लिए अधिकतर लड़के ही आगे आते हैं, क्योंकि प्यार से अधिक इस में सैक्स की आजादी होती है. यह रिश्ता जितनी आजादी देता है, उतना ही खतरनाक भी होता है. मेरे पास एक मातापिता ऐसे आए जिन की लड़की का मर्डर हो चुका था पर कोई पू्रफ नहीं था. उसे मारने वाला उस का बौयफ्रैंड ही था.

3-4 साल से वह लड़की उस लड़के के साथ लिव इन रिलेशनशिप में थी, जिस का पता उस के मातापिता को नहीं था. जब पता चला तो मातापिता ने लड़की से उस से शादी करने के लिए कहा. लेकिन वह लड़का तब आनाकानी करने लगा, जिसे देख लड़की ने उस रिश्ते से बाहर निकलना चाहा. यह बात लड़के को जब पता चली तो उस ने उस का मर्डर कर दिया. उस का शव बाथरूम में मिला.

‘‘दरअसल, लड़के को यह लगा था कि अलग होने के बाद लड़की कोर्ट जा सकती है, क्योंकि वह पढ़ीलिखी थी. पू्रफ के अभाव में लड़का अभी बाहर है.’’

लिव इन रिलेशनशिप के अधिकतर मामले महानगरों में पाए जाते हैं, जहां काम या पढ़ाई के लिए युवा घर से दूर रहते हैं. उन के बीच अकसर इस तरह के रिश्ते हो जाते हैं. दरअसल, फ्लैट कल्चर में घर शेयर करने यानी साथ रहने में इन्हें फायदा भी नजर आता है.

इन रिश्तों को लड़के ही अधिकतर तोड़ते हैं, लेकिन रिश्ता टूटने पर भावनात्मक से सहज हो जाना कई बार लड़कियों के लिए मुश्किल हो जाता है, क्योंकि इस में लड़की के परिवार की भूमिका न के बराबर होती है.

नीलम कहती हैं, ‘‘इस तरह के रिश्ते को बढ़ावा देने में धर्म भी कम नहीं. अधिकतर लोग विपरीत धर्म या जाति में शादी करने के लिए इजाजत नहीं देते, इसलिए रिश्ते को छिपाना पड़ता है. कई बार तो लोग दोहरी जिंदगी भी जीते हैं, जो डिप्रैशन, मर्डर, आत्महत्या जैसी कई घटनाओं को जन्म देती है.

‘‘इस रिश्ते को शादी का नाम देने के लिए मातापिता, परिवार व समाज के सहयोग की आवश्यकता होती है, जो आमतौर पर नहीं मिलता. इस रिश्ते में बड़ी समस्या तब आती है जब दोनों के बीच में बच्चा आ जाता है. बच्चा जब स्कूल जाने लगता है तब उत्तरदायित्व समझ में आता है. हालांकि आजकल डी.एन.ए. टैस्ट का प्रावधान हो चुका है, जिस से महिला को काफी राहत मिल रही है.

‘‘शादी करना आजकल काफी खर्चीला भी होता है. इस के लिए समय और संसाधन की भी जरूरत होती है. वहीं अगर शादी असफल हो जाए तो तलाक के लिए कानूनी झंझट से गुजरना पड़ता है. लिव इन रिलेशन दरअसल शादी का प्रिव्यू है जिस से व्यक्ति यह अंदाजा लगा सकता है कि शादी सफल होगी या नहीं.

ठगी की शिकार महिलाएं

सीनियर ऐडवोकेट आभा सिंह कहती हैं कि लिव इन रिलेशनशिप बड़े शहरों में अधिक है और इसे सामाजिक कलंक अभी भी हमारे समाज में माना जाता है. बहुत कम महिलाएं हिम्मत कर अपना कानूनी अधिकार पाती हैं, क्योंकि कोर्ट, वकील की बातें बहुत कठोर होती हैं. उन्हें सह पाना आसान नहीं होता.

बहुत सारी ऐसी घटनाएं हैं जिस में महिलाएं ठगी गईं पर उन्होंने रिपोर्ट नहीं लिखवाई. बौलीवुड के सुपरस्टार राजेश खन्ना की मौत के बाद उन के बंगले का विवाद सामने आया. उन के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रहने वाली अनिता आडवाणी को परिवार के लोगों ने धक्के मार कर घर से बाहर निकाल दिया. जबकि वे 8 साल से राजेश खन्ना के साथ रह रही थीं. जब वे मेरे पास आईं, तो मैं ने पहली बात यही पूछी कि आप इतने दिनों तक कहां थीं? पहले क्यों नहीं आईं जब राजेश खन्ना जीवित थे? दरअसल, उन के पास ऐसा कोई पू्रफ यानी सुबूत नहीं था कि वे उन के साथ रह रही थीं, ऐसे केस में पू्रफ के लिए निम्न जगहों पर साथ रहने वाली का नाम होना चाहिए:

– जौइंट अकाउंट में.

– बिजली या मोबाइल बिल में.

– राशन कार्ड में.

ऐसा होने पर ही आप सिद्ध कर सकती हैं कि आप उस व्यक्ति से कुछ पाने की हकदार हैं.

अनिता आडवाणी को 200 करोड़ की प्रौपर्टी में से कुछ भी नहीं मिला. हाई कोर्ट में भी उन की अर्जी खारिज कर दी गई. अब वे सुप्रीम कोर्ट जा रही हैं.

इन शर्तों को जानें

गुजारा भत्ता पाने के लिए भी सुप्रीम कोर्ट ने यह साफ कर दिया है कि लिव इन रिलेशन में निम्न 4 शर्तें पूरी होना जरूरी हैं:

– ऐसे युगल समाज के सामने पतिपत्नी के तौर पर आएं.

– वे शादी की कानूनी उम्र पूरी कर चुके हों.

– उन के रिश्ते कानूनी रूप से शादी करने के लिए वर्जित न हों.

– दोनों स्वेच्छा से लंबे वक्त तक यानी कम से कम 6 साल साथ रहे हों.

रिश्ता खराब नहीं

26 नवंबर 2013 को एक अदालती आदेश में रिलेशनशिप को क्राइम नहीं माना गया. इस से इस रिश्ते को अपनाने वाले युवाओं को काफी राहत मिली. मैरिज काउंसलर संजय मुखर्जी कहते हैं कि ऐसे केसेज में दिनोंदिन बढ़ोतरी हो रही है. यह रिश्ता खराब नहीं है. कई बार शादी के बाद पतिपत्नी में अनबन हो जाती है, इसलिए बहुत से यूथ इसे अपनाते हैं. अधिकतर आत्मनिर्भर महिलाएं ही इस रिश्ते को पसंद करती हैं, क्योंकि इस में सासससुर, ननद, देवर आदि का झंझट नहीं रहता.

यह रिश्ता एक तरह से ऐक्सपैरिमैंटल होता है, जिस में 3-4 महीने तो ठीक ही चल जाते हैं. समस्या 1 साल बाद आती है. मेरे हिसाब से 1 साल तक इस रिश्ते में रहने के बाद महिलाओं को शादी करने के बारे में सोचना चाहिए. इस के अलावा कुछ बातों पर उन्हें खास ध्यान देना चाहिए:

– अगर लड़का शादी न करना चाहे, तो वजह पता करें.

– दोनों अपनी कमाई जौइंट अकाउंट में साथसाथ डालें और दोनों उसी से खर्च करें.

– अगर शादी नहीं करनी है, तो पहले ही वकील से परामर्श कर स्टैंप पेपर पर अपने हिस्से को सुनिश्चित करवा लें.

इस के अलावा संजय कहते हैं कि लिव इन रिलेशन में बच्चे की प्लानिंग न करें ताकि आगे चल कर आने वाले बच्चे को अपराधबोध न हो.

वैसे हर रिश्ते की अपनी अलग अहमियत होती है. लेकिन जहां शादी एक महिला को सुरक्षित जीवन देती है, वहीं लिव इन रिलेशनशिप में असुरक्षा अधिक रहती है. सही यही होगा कि आप अपने रिश्ते को समझने की कोशिश करें और अपने भविष्य में आने वाली परेशानियों से अपनेआप को बचाएं.

घरवाले मेरी पसंद के लड़के से शादी के लिए तैयार नहीं हैं, मैं क्या करुं?

सवाल-

मैं एक लड़के से प्यार करती हूं और उस से विवाह करना चाहती हूं. मगर समस्या यह है कि लड़के के घर वालों को यह रिश्ता मंजूर नहीं है. मैं कोई गलत कदम नहीं उठाना चाहती. मुझे सलाह दें कि मैं क्या करूं?

जवाब-

आप ने यह नहीं बताया कि लड़के के घर वालों को इस रिश्ते पर आपत्ति क्यों है. यदि विरोध की कोई ठोस वजह नहीं है और लड़का इस रिश्ते को ले कर गंभीर है, तो उसे अपने घर वालों को अपनी दृढ़ इच्छा बता कर कि वह सिर्फ आप से ही विवाह करेगा, मनाने की कोशिश करें. यदि वे नहीं मानते और वह उन की इच्छा के विरुद्ध आप से विवाह करने की हिम्मत रखता है, तो आप कोर्ट मैरिज कर सकते हैं. देरसवेर लड़के के घर वाले भी राजी हो ही जाएंगे. हां, यदि लड़का घर वालों की मरजी के खिलाफ जाने का साहस नहीं रखता तो आप को इस संबंध पर यहीं विराम लगा देना चाहिए, क्योंकि जो रास्ता मंजिल तक नहीं पहुंचता उस राह पर चलते रहने का कोई फायदा नहीं है.

ये भी पढ़ें-

वे कौन से हालात हैं जो लड़की को घर छोड़ने को मजबूर कर देते हैं. आमतौर पर सारा दोष लड़की पर मढ़ दिया जाता है, जबकि ऐसे अनेक कारण होते हैं, जो लड़की को खुद के साथ इतना बड़ा अन्याय करने पर मजबूर कर देते हैं. जिन लड़कियों में हालात का सामना करने का साहस नहीं होता वे आत्महत्या तक कर लेती हैं. मगर जो जीना चाहती हैं, स्वतंत्र हो कर कुछ करना चाहती हैं वे ही हालात से बचने का उपाय घर से भागने को समझती हैं. यह उन की मजबूरी है. इस का एक कारण आज का बदलता परिवेश है. आज होता यह है कि पहले मातापिता लड़कियों को आजादी तो दे देते हैं, लेकिन जब लड़की परिवेश के साथ खुद को बदलने लगती है, तो यह उन्हें यानी मातापिता को रास नहीं आता है.

कुछ ऊंचनीच होने पर मध्यवर्गीय लड़कियों को समझाने की जगह उन्हें मारापीटा जाता है. तरहतरह के ताने दिए जाते हैं, जिस से लड़की की कोमल भावनाएं आहत होती हैं और वह विद्रोही बन जाती है. घर के आए दिन के प्रताड़ना भरे माहौल से त्रस्त हो कर वह घर से भागने जैसा कदम उठाने को मजबूर हो जाती है. यह जरूरी नहीं है कि लड़की यह कदम किसी के साथ गलत संबंध स्थापित करने के लिए उठाती है. दरअसल, जब घरेलू माहौल से मानसिक रूप से उसे बहुत परेशानी होने लगती है तो उस समय उसे कोई और रास्ता नजर नहीं आता. तब बाहरी परिवेश उसे आकर्षित करता है. मातापिता का उस के साथ किया जाने वाला उपेक्षित व्यवहार बाहरी माहौल के आगोश में खुद को छिपाने के लिए उसे बाध्य कर देता है.

घर से भागना नहीं है समाधान

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

घर से भागना नहीं है समाधान

वे कौन से हालात हैं जो लड़की को घर छोड़ने को मजबूर कर देते हैं. आमतौर पर सारा दोष लड़की पर मढ़ दिया जाता है, जबकि ऐसे अनेक कारण होते हैं, जो लड़की को खुद के साथ इतना बड़ा अन्याय करने पर मजबूर कर देते हैं. जिन लड़कियों में हालात का सामना करने का साहस नहीं होता वे आत्महत्या तक कर लेती हैं. मगर जो जीना चाहती हैं, स्वतंत्र हो कर कुछ करना चाहती हैं वे ही हालात से बचने का उपाय घर से भागने को समझती हैं. यह उन की मजबूरी है. इस का एक कारण आज का बदलता परिवेश है. आज होता यह है कि पहले मातापिता लड़कियों को आजादी तो दे देते हैं, लेकिन जब लड़की परिवेश के साथ खुद को बदलने लगती है, तो यह उन्हें यानी मातापिता को रास नहीं आता है.

कुछ ऊंचनीच होने पर मध्यवर्गीय लड़कियों को समझाने की जगह उन्हें मारापीटा जाता है. तरहतरह के ताने दिए जाते हैं, जिस से लड़की की कोमल भावनाएं आहत होती हैं और वह विद्रोही बन जाती है. घर के आए दिन के प्रताड़ना भरे माहौल से त्रस्त हो कर वह घर से भागने जैसा कदम उठाने को मजबूर हो जाती है. यह जरूरी नहीं है कि लड़की यह कदम किसी के साथ गलत संबंध स्थापित करने के लिए उठाती है. दरअसल, जब घरेलू माहौल से मानसिक रूप से उसे बहुत परेशानी होने लगती है तो उस समय उसे कोई और रास्ता नजर नहीं आता. तब बाहरी परिवेश उसे आकर्षित करता है. मातापिता का उस के साथ किया जाने वाला उपेक्षित व्यवहार बाहरी माहौल के आगोश में खुद को छिपाने के लिए उसे बाध्य कर देता है.

आज लड़केलड़कियों को समान दर्जा दिया जा रहा है. उन में आपस में मित्रता आम बात है. मगर पाखंडों में डूबे मध्यवर्गीय परिवारों में लड़कियों का लड़कों से दोस्ती करने को शक की निगाह से देखा जाता है. यदि कोई लड़की किसी लड़के से बात करती है, तो उस पर संदेह किया जाता है. जब घर वालों के व्यंग्यबाण लड़की की भावनाओं को आहत करते हैं तो उस के अंदर विद्रोह की भावना जागती है, क्योंकि वह सोचती है कि जब वह गलत नहीं है तब भी उसे संदेह की नजरों से देखा जा रहा है, तो क्यों न अपने व्यक्तित्व को लोग और समाज जैसा सोचते हैं वैसा ही बना लिया जाए? जब बात सीमा से परे या सहनशक्ति से बाहर हो जाती है तो यह विद्रोह की भावना विस्फोट का रूप इख्तियार कर लेती है. लेकिन ऐसे हालात में भी घर वालों का सहयोगात्मक रवैया उस के बाहर बढ़ते कदमों को रोक सकता है, मगर अकसर मातापिता का उपेक्षापूर्ण रवैया ही इस के लिए सब से ज्यादा जिम्मेदार रहता है.

मातापिता की बड़ी भूल

ज्यादातर मातापिता सहयोग की भावना की जगह गुस्से से काम लेते हैं. दरअसल, युवावस्था एक ऐसी अवस्था होती है, जब बच्चों को सब कुछ नयानया लगता है. उन के मन में सब को जानने और समझने की जिज्ञासा रहती है. यदि उन्हें सही ढंग से समझाया जाए तो वे ऐसे कदम न उठाएं, क्योंकि यह उम्र का ऐसा पड़ाव होता है, जहां वह किसी के रोके नहीं रुकता. युवा बच्चे के मन की हर बात, हर इच्छा उस पर जनून बन कर सवार होती है, जिसे सिर्फ और सिर्फ मातापिता की सहानुभूति और प्रेमपूर्ण व्यवहार ही शिथिल कर सकता है. यदि मातापिता यह सोचते हैं कि बच्चे उन की डांट, मार या उपेक्षापूर्ण रवैए से सुधर जाएंगे तो यह उन की सब से बड़ी भूल होती है.

जरूरी है सहयोगात्मक रवैया

माना कि लड़कियों के घर से भागने की जिम्मेदार वे खुद हैं. पर इस में मातापिता और परिवेश का भी पूरापूरा योगदान रहता है. मातापिता लड़कियों की भावनाओं को समझने का प्रयास नहीं करते. जबकि उन का सहयोगात्मक रवैया बेहद जरूरी होता है. मगर लड़कियों को भी चाहिए कि वे भावावेश या जिद में आ कर कोई निर्णय न लें. बड़ों की बात को विवेकपूर्ण सुन कर ही कोई निर्णय करें, क्योंकि यथार्थ यह भी है कि एक पीढ़ी अंतराल के कारण विचारों में परिवर्तन होता है, जिस से मतभेद स्थापित होते हैं. बड़ों का विरोध करें, मगर उन की उचित बातों को जरूर मानें वरना यही पलायन प्रवृत्ति जारी रही तो आप ही जरा कल्पना कीजिए कि भविष्य में हमारे समाज का स्वरूप क्या होगा?

पति पर दोबारा कैसे भरोसा करुं?

सवाल-

मैं 23 वर्षीय युवती हूं. मैं ने प्रेम विवाह किया था. मेरे 2 बच्चे हैं. विवाहपूर्व मेरे पति के एक शादीशुदा महिला से संबंध थे. कुछ महीने पहले पता चला है कि पति अब भी उस औरत से तो संबंध बनाए हुए ही है, सुना है एक दूसरी औरत से भी उन की दोस्ती है. जब से मुझे पति के व्यभिचार का पता चला है मैं तनावग्रस्त हूं. मैं ने जहर खा कर जान देने की भी कोशिश की पर बचा ली गई. पति वादा करते हैं कि आइंदा किसी से कोई संबंध नहीं रखेंगे. पर मुझे अब उन पर रत्ती भर भी भरोसा नहीं है. कुछ समझ में नहीं आ रहा कि क्या करूं. जिस व्यक्ति के लिए मैं ने अपना सबकुछ छोड़ दिया उसी ने मेरा भरोसा तोड़ा. बताएं, क्या करूं?

जवाब-

लगता है पति चुनने में आप से भूल हुई है. लेकिन अब पति जैसे भी हैं उन्हें संभालने, राह पर लाने की जिम्मेदारी आप ही की है. उन्हें समझाएं कि वे अब 2-2 बच्चों के पिता हैं, इसलिए अपना आचरण सुधारें वरना इस का प्रभाव बच्चों पर भी पड़ेगा. आप भी उन पर कड़ी नजर रखें. तनावग्रस्त रहना या फिर आत्महत्या जैसा कायराना कदम उठाना सही नहीं है. पति पर घर की और बच्चों की जिम्मेदारी डालें ताकि वे उस में व्यस्त रहें और उन्हें भटकाने के लिए समय ही न मिले.

ये भी पढ़ें- 

‘‘कोई घर अपनी शानदार सजावट खराब होने से नहीं, बल्कि अपने गिनेचुने सदस्यों के दूर चले जाने से खाली होता है,’’ मां उस को फोन करती रहीं और अहसास दिलाती रहीं, ‘‘वह घर से निकला है तो घर खालीखाली सा हो गया है.’’

‘मां, अब मैं 20 साल का हूं, आप ने कहा कि 10 दिन की छुट्टी है तो दुनिया को समझो. अब वही तो कर रहा हूं. कोई भी जीवन यों ही तो खास नहीं होता, उस को संवारना पड़ता है.’

‘‘ठीक है बेबी, तुम अपने दिल की  करो, मगर मां को मत भूल जाना.’’ ‘मां, मैं पिछले 20 साल से सिर्फ आप की ही बात मानता आया हूं. आप जो कहती हो, वही करता हूं न मां.’

‘‘मैं ने कब कहा कि हमेशा अच्छी बातें करो, पर हां मन ही मन यह मनोकामना जरूर की,’’ मां ने ढेर सारा प्यार उडे़लते हुए कहा. वह अब मां को खूब भावुक करता रहा और तब तक जब तक कि मां की किटी पार्टी का समय नहीं हो गया.

पूरी कहानी पढ़ने के लिए- मुरझाया मन: उसे प्यार में क्यों मिला धोखा

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

स्नेह से दूर करें बच्चों का अकेलापन

हम आज ऐसी दुनिया में रहते हैं, जहां लोग सिर्फ भाग रहे हैं और यह भागमभाग सिर्फ भौतिकवादी सुखों को पाने की है. हम सभी इस दौड़ का हिस्सा इसलिए बनते हैं कि हम अपने बच्चों को बेहतर सुखसुविधा और बेहतर भविष्य दे सकें, उन का जीवन आसान व आरामदायक बना सकें, आर्थिक स्थिरता ला कर उन के सपने पूरे कर सकें. लेकिन इस भागदौड़ में हम नहीं समझ पाते हैं कि इतना सब पाने में हम कुछ अत्यंत महत्त्वपूर्ण यानी अपने बच्चों से दूर हो रहे हैं.

अपने दैनिक कार्यों और बच्चों के लिए समय के निकालने के बीच में संतुलन बनाना कईर् कामकाजी अभिभावकों के लिए चुनौती होता है. व्यस्त समय में अभिभावक बच्चों को पूरा समय नहीं दे पाते. नतीजे में अभिभावकों के प्रति बच्चों में आत्मीय लगाव खत्म होने की प्रवृत्ति तेजी से बढ़ रही है. अकेलापन दूर करने के लिए बच्चे मोबाइल, कंप्यूटर या लैपटौप आदि संसाधनों में समय बिता रहे हैं. इस से बच्चों में चिड़चिड़ाहट तथा हीनभावना बढ़ रही है. अधिकांश परिवारों में मातापिता दोनों काम पर जाते हैं, ऐसे में उन्हें कोशिश करनी चाहिए कि वे अपने बच्चों के लिए रोजाना थोड़ा समय जरूर निकालें.

दरअसल, बच्चों के मन में कई तरह के सवाल होते हैं और हर सवाल का हल उन के पास नहीं होता है. इसलिए उन्हें हमारी जरूरत होती है. जिस तरह से आप अपनी औफिस मीटिंग के लिए समय निकालते हैं उसी तरह बच्चों के लिए भी समय निकालें. उन्हें एहसास होने दें कि आप के लिए वे महत्त्वपूर्ण हैं क्योंकि आप के बच्चों को आप के तोहफों से ज्यादा आप की मौजूदगी की जरूरत है.

आइए जानते हैं शैमरौक प्रीस्कूल्स की एग्जीक्यूटिव डायरैक्टर और शेमफोर्ड फ्यूचरिस्टिक स्कूल्स की फाउंडर डायरैक्टर मीनल अरोड़ा के कुछ ऐसे टिप्स जिन से आप अपने बच्चों के साथ बेहद प्रभावी व गुणवत्तापूर्ण तरीके से समय बिता सकें.

छोटे कदम, बड़े परिणाम

हमारे छोटेछोटे कदम बच्चों के मस्तिष्क पर बहुत प्रभाव डालते हैं. बच्चों को गुडमौर्निंग, गुडआफ्टरनून, गुडनाइट विश करना, स्कूल जाते समय गुड डे कहना, उन्हें गले लगा लेना, उन्हें गोद में उठा लेना, उन्हें देख कर प्यार से मुसकराना, अपने बच्चे के गाल पर किस करना आदि बच्चों के साथ की गई अभिभावकों की छोटीछोटी ये क्रियाएं दर्शाती हैं कि ‘मुझे तुम्हारा खयाल है.’ ये छोटीछोटी बातें बच्चों के लिए उस की दुनिया होती हैं और बच्चों को हमेशा अभिभावकों का साथ चाहिए होता है, सुकून चाहिए होता है. चाहे आप उन से कितना ही नाराज क्यों न हों, उन्हें हर दिन बताएं कि आप उन से कितना प्यार करते हैं. सब के पसंदीदा बौलीवुड अभिनेता शाहरुख खान की एक पिता के रूप में बेहतरीन छवि है. वे भले ही कितने ही व्यस्त क्यों न हों, दिन में 2-3 बार अपने बच्चों से जरूर बातें करते हैं.

भोजन का वक्त खुशियों का वक्त

पेरैंट्स को चाहिए कि वे दिन में कम से कम एक समय का भोजन बच्चे के साथ बैठ कर करें और बेहतर होगा डिनर करें क्योंकि यही वह समय होता है जब सभी सदस्य काम से लौट कर दिनभर की थकान के बाद एकसाथ बैठते हैं. पूरे परिवार के  साथ बैठ कर बातें करने को अपनी दिनचर्या का जरूरी हिस्सा बनाएं और उन से दिनभर के काम व उपलब्धियों के बारे में बात करें. इस दौरान यदि आप का बच्चा कहता है कि उसे आप से कुछ कहना है, तो इस बात को गंभीरता से लें, और सब काम छोड़ कर उस की बात को ध्यान से सुनें. बच्चे को उस की सफलताओं और उपलब्धियों के लिए बधाईर् दें. बच्चों की सफलता  के लिए उन की तारीफ करें क्योंकि इस से उन्हें आगे बढ़ने में मदद मिलेगी. डिनर करते समय अपने बच्चों को परिवार व उन से संबंधित चर्चाओं में शामिल करें. उन की बेहतरी से संबंधित मामलों में उन की भी राय लें. इस से न सिर्फ उन्हें पारिवारिक मुद्दे समझने में मदद मिलेगी बल्कि उन में अपना खुद का नजरिया विकसित करने का आत्मविश्वास भी आएगा.

समय को लमहों से मापें

बच्चों के साथ समय बिताने के लिए तरीके ढूंढ़ें. उन्हें घर के छोटेछोटे काम करने के लिए प्रोत्साहित करें. इस से न सिर्फ आप को उन के साथ ज्यादा समय बिताने में मदद मिलेगी बल्कि  इस से उन में जिम्मेदारी का एहसास भी आएगा. इस के साथ ही यह बच्चे व आप के बीच खुशनुमा और दुखभरी बातें साझा करने के लिए भी सही समय होगा.

जब आप घर पहुंचते हैं और घर के काम व डिनर आदि निबटाने की जल्दी में होते हैं तो अपने बच्चे को अपने कामों में जोड़ें और उन की मदद लें. साथ ही, उन की मदद के लिए उन्हें धन्यवाद भी दें. इन कामों के साथसाथ अपने बच्चे से बातचीत करते रहें और उसे कुछ सिखाने की कोशिश भी. कपड़े धोने जैसे कामों के बीच आप उस से उस की दिनभर की गतिविधियों और उस के मन की बातें जान सकते हैं. हफ्तेभर आप ठीक से बच्चों के लिए यदि समय न निकाल सकें तो वीकेंड पर आप उन्हें कुछ खास महसूस करा सकते हैं और उस के साथ जुड़ सकते हैं. बच्चों को बाहर घूमने जाना पसंद होता है, जैसे किसी मौल में या ऐतिहासिक जगह पर या परिवार के साथ पिकनिक पर जाना आप को उस  के साथ ढेरों बातें करने का मौका दे सकता है.

कहानी सुनाएं, समां बाधें

बच्चों के साथ किताबें पढे़ं. बच्चों को नई कहानियां हमेशा रोमांचक लगती हैं. उन को नई किताबों से परिचित कराएं, उन के साथ बैठ कर खुद भी कुछ नईर् अच्छी कहानियों से जानपहचान करें. इस से आप और आप के बच्चे जानकारी भी हासिल कर पाएंगे और साथ में अच्छा समय भी व्यतीत कर पाएंगें. इन खुशनुमा लमहों को उन के सपनों तक ले जाएं. उन के सपनों की दुनिया में उन के साथ कदम रखें. उन्हें काल्पनिक कहानियां सुनाएं, उन की कल्पना को बढ़ावा दें. उन के भीतर छिपे हुए प्रतिभाशाली लेखक को बाहर लाएं और कहानियों के अंत पर उन की राय लेने की कोशिश करें. उन्हें इन भूमिकाओं को निभाने के लिए प्रोत्साहित करें और अच्छी तरह अपना किरदार चुनने में उन की मदद करें.

सन डे, फन डे, हौलिडे

अपने परिवार के साथ आउटिंग पर जरूर जाएं, फिर चाहे यह बड़ी हो या छोटी. और हां, अपने गैजेट्स साथ ले कर नहीं जाएं. आउटिंग पर उन के साथ बातचीत करें, मस्तीभरे खेल खेलें और जीवन को खुल कर जिएं. अपने बचपन के दिनों को याद करें, बचपन की यादें ताजा करें और अपने बचपन में खेले जाने वाले खेलों को बच्चों के साथ फिर खेलें. सप्ताह के दौरान जीवन में आने वाली एकरूपता को तोड़ने का सब से अच्छा तरीका है, फिर से बच्चा बन जाना.

जश्न और उल्लास

त्योहार और विशेष अवसर तब और खास बन जाते हैं जब वे परिवार के साथ मिल कर मनाएं जाते हैं. यह ऐसा समय होता है जब पूरा परिवार साथ रहता है और साथ में मस्ती करता है. इस अवसर का लाभ उठाएं. आप अपने बच्चे के सब से अच्छे दोस्त व शुभचिंतक बनें. बच्चों के साथ हम जो समय बितातेहैं वह सब से कीमती होता है. इन लमहों को नजरअंदाज नहीं करें क्योंकि ये वे मजेदार पल होते हैं, जो आप के व बच्चों के चेहरों पर मुसकान लाते हैं और पेरैंट्स व बच्चों को खुशहाल व संतुष्ट बनाते हैं. कभी अपने बच्चों को अमीर बनने के लिए शिक्षित नहीं करें बल्कि उन्हें खुश रहने के लिए शिक्षित करें, जिस से उन्हें चीजों की अहमियत पता हो, उन की कीमत नहीं.

मैं जौब करना चाहती हूं, लेकिन परिवार नहीं मान रहा?

सवाल-

मैं 26 वर्षीय युवती हूं. विवाह को 4 वर्ष हो चुके हैं. एक 3 वर्ष का बेटा है. घर में सासससुर और देवर है. हमारा अपना घर है. पति का अच्छा पैतृक व्यवसाय है, अर्थात आर्थिक रूप से काफी संपन्न हैं. मैं नौकरी करना चाहती हूं, परिवार वाले यही दलील देते हैं. विवाहपूर्व मैं नौकरी करती थी. इन लोगों के कहने पर ही मैं ने नौकरी छोड़ी थी. उसी कंपनी से मुझे फिर औफर आया है पर कोई नहीं मान रहा. मैं सारा दिन चूल्हेचौके में, जहां कोई खास काम मेरे करने लायक नहीं है, नहीं बिताना चाहती.

जवाब-

यदि पति और परिवार वाले आप के नौकरी करने के हक में नहीं हैं तो आप को इस की जिद नहीं करनी चाहिए. घर के कामकाज के साथसाथ आप पति के काम में मदद कर सकती हैं, बच्चे की देखभाल भलीभांति कर सकती हैं और अपनी कोई रुचि विकसित कर सकती हैं, किसी समाजसेवी संस्था में अपनी सेवाएं दे सकती हैं. इन के अलावा और भी कई काम हैं जिन्हें आप अपनी योग्यता और सुविधा के अनुसार घर पर रह कर कर सकती हैं.

ये भी पढ़ें- 

जून का महीना था. सुबह के साढ़े 8 ही बजे थे, परंतु धूप शरीर को चुभने लगी थी. दिल्ली महानगर की सड़कों पर भीड़ का सिलसिला जैसे उमड़ता ही चला आ रहा था. बसें, मोटरें, तिपहिए, स्कूटर सब एकदूसरे के पीछे भागे चले जा रहे थे. आंखों पर काला चश्मा चढ़ाए वान्या तेज कदमों से चली आ रही थी. उसे घर से निकलने में देर हो गई थी. वह मन ही मन आशंकित थी कि कहीं उस की बस न निकल जाए. ‘अब तो मुझे यह बस किसी भी तरह नहीं मिल सकती,’ अपनी आंखों के सामने से गुजरती हुई बस को देख कर वान्या ने एक लंबी सांस खींची. अचानक लाल बत्ती जल उठी और वान्या की बस सड़क की क्रौसिंग पर जा कर रुक गई.

पूरी कहानी पढ़ने के लिए- चक्रव्यूह भेदन : वान्या क्यों सोचती थी कि उसकी नौकरी से घर में बरकत थी

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

मैं अपनी नाराज दोस्त से दोबारा कैसे मिलूं?

सवाल-

कुछ महीनों पहले एक युवक से इंटरनैट के माध्यम से मेरी दोस्ती हुई. नैट पर चैटिंग के अलावा फोन पर भी हम दिन में कई बार बात करते हैं. अब तक वह मुझे काफी शरीफ और संजीदा युवक लगा पर एक दिन उस ने अचानक मुझे डिनर के लिए एक होटल में आमंत्रित किया तो मैं सन्न रह गई. मैं ने कहा कि दिन में कहीं मिल सकती हूं पर रात में और वह भी किसी होटल में नहीं. मेरे घर वाले इस की इजाजत नहीं देंगे. इस पर उस ने मुझे काफी भलाबुरा कहा कि मैं किस जमाने में जी रही हूं. ऐसी छोटी सोच रखने वाली लड़की से वह दोस्ती नहीं रख सकता वगैरहवगैरह. उस दिन से हमारी बात नहीं हुई है. मुझे उस की बहुत याद आती है. क्या उस की बात मान लूं? 

जवाब-

दोस्ती के बीच किसी प्रकार की शर्त या जिद नहीं आनी चाहिए. यदि आप के दोस्त को आप से मिलना था तो वह अपनी सुविधा को देखते हुए दिन में भी मिल सकता था. यदि वह इतनी सी बात के लिए आप से दोस्ती खत्म कर रहा है तो आप को इस अध्याय को यहीं बंद कर देना चाहिए. उस के आगे झुकने की जरूरत नहीं है. जहां तक उस की याद आने की बात है, तो वह समय के साथ धूमिल पड़ जाएगी.

ये भी पढ़ें-

सोनिका सुबह औफिस के लिए तैयार हो गई तो मैं ने प्यार से उस के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, ‘‘बेटी, आराम से नाश्ता कर लो, गुस्सा नहीं करते, मन शांत रखो वरना औफिस में सारा दिन अपना खून जलाती रहोगी. मैनेजर कुछ कहती है तो चुपचाप सुन लिया करो, बहस मत किया करो. वह तुम्हारी सीनियर है. उसे तुम से ज्यादा अनुभव तो होगा ही. क्यों रोज अपना मूड खराब कर के निकलती हो?’’

पूरी कहानी पढ़ने के लिए- जूनियर, सीनियर और सैंडविच: क्यों नाराज थी सोनिका

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

निसंतान दंपती बच्चे को कैसे लें गोद, कानूनी प्रक्रिया भी समझें

शादी के बाद हर दंपती की चाहत संतानप्राप्ति की होती है. कुछ दंपती ऐसे होते हैं जिन की यह चाहत पूरी नहीं हो सकती. ऐसे में उन के पास एक विकल्प यह रहता है कि वे किसी बच्चे को गोद ले कर उसे अपने बच्चे के रूप में पालेंपोसें. किसी बच्चे को गोद लेने की एक कानूनी प्रक्रिया है. आइए, जानते हैं इस के विभिन्न पहलुओं को :

गोद लेने की प्रक्रिया के तहत कोई व्यक्ति किसी बच्चे को तभी गोद ले सकता है जबकि उस की अपनी जीवित संतान न हो, फिर भले ही वह संतान लड़का हो या लड़की. हां, किसी भी बच्चे को गोद लेने के लिए पतिपत्नी दोनों की सहमति आवश्यक है. यदि महिला या पुरुष अविवाहित, तलाकशुदा, विधवा है तो उस की अकेले की ही सहमति पर्याप्त है.

वैधानिक कार्यवाही

गोद लेने की प्रक्रिया आसान है. इस के लिए गोद लेने वाले और गोद देने वाले की सहमति ही पर्याप्त है. हां, यदि बच्चा किसी अनाथाश्रम से गोद लेना हो तो कुछ वैधानिक कार्यवाही अवश्य करनी पड़ती है. एक बार यदि आप ने किसी बच्चे को गोद ले लिया तो वैधानिक रूप से आप ही उस के मातापिता माने जाएंगे और पिता के रूप में गोद लेने वाले व्यक्ति का ही नाम मान्य होगा. लेकिन हां, उसे अपने मूल मातापिता और गोद लेने वाले मातापिता दोनों की संपत्ति में अधिकार मिलता है.

किसी भी निसंतान दंपती को बच्चा गोद ले का फैसला जल्दबाजी में नहीं, बल्कि धैर्यपूर्वक सोचसमझ कर लेना चाहिए. किसी भी बच्चे को गोद लेने के फैसले से पूर्व मनोवैज्ञानिक रूप से दंपती को तैयार होना चाहिए, न कि किसी के दबाव में आ कर यह निर्णय लेना चाहिए.

बच्चा गोद लेने से पूर्व दंपती को इस बात पर गंभीरतापूर्वक विचार करना चाहिए कि उन्हें लड़का चाहिए या लड़की? जिस पर दोनों सहमत हों, उसे ही गोद लें.

इस बात पर भी विचार कर लेना जरूरी है कि बच्चा किसी निकट के रिश्तेदार से गोद लेना है या अनाथाश्रम से. यदि आप जाति, धर्म, वंश आदि में विश्वास रखते हैं तो बेहतर होगा कि उसी हिसाब से बच्चे को चुनें. यदि आप अनाथाश्रम से बच्चा गोद लेने का निर्णय लेते हैं तो इस के पीछे लावारिस बच्चे के लिए दयाभाव नहीं होना चाहिए और न ही यह सोचें कि आप किसी अनाथ बच्चे का उद्धार कर रहे हैं.

केंद्र सरकार देश में बच्चों को गोद लेने को बढ़ावा देने के उद्देश्य से उस की प्रक्रिया को ज्यादा आसान बनाएगी, ऐसे संकेत हैं. इस के लिए इंतजार अवधि को एक साल से घटा कर कुछ माह करने तथा अनाथालयों के पंजीकरण को अनिवार्य किए जाने जैसे बड़े सुधार किए जाएंगे.

गोद लेना होगा आसान

भारत में करीब 50 हजार बच्चे अनाथ हैं. हर साल महज 800 से एक हजार बच्चे ही गोद लिए जाते हैं. इसे बढ़ावा देने के लिए महिला और बाल विकास मंत्रालय बड़े सुधार करने की योजना बना रहा है. महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी के अनुसार, ‘सभी अनाथालयों के पंजीकरण को अनिवार्य किया जाएगा और गोद लेने की प्रक्रिया सरल बनाई जाएगी.’

सुधारों का मकसद गोद लेने की प्रक्रिया की बाधाओं और भावी अभिभावकों की शंकाओं को दूर करना है. नए दिशार्निदेशों की रूपरेखा का प्रारूप तैयार किया जा रहा है. इस से गोद लेने के लिए इंतजार की अवधि महज कुछ महीने हो जाएगी. फिलहाल इस में एक साल तक का वक्त लगता है. मंत्रालय इसे किशोर न्याय (बच्चों की देखरेख और संरक्षण) विधेयक में विशेषतौर पर पेश करने की दिशा में काम कर रहा है.

इस विधेयक को केंद्रीय मंत्रिमंडल से मंजूरी  मिलने का इंतजार है. सुधार के तहत फोस्टर केयर (पालनपोषण) व्यवस्था की एक नई शुरुआत करने का विचार है. इस के तहत 6 या 7 साल की उम्र से ज्यादा के बच्चे को लोग बिना गोद लिए अपने घर ले जा सकेंगे. मंत्रालय का कहना है, ‘‘लोग गोद लेना भले नहीं चाहते हों, लेकिन ऐसे लोग हैं जो चाहते हैं कि घर में बच्चे हों और उन्हें स्कूल भेजा जाए. सरकार उन बच्चों का खर्च वहन करेगी.’’

देश में बेटों से ज्यादा बेटियां गोद ली जा रही हैं. सैंट्रल एडौप्शन रिसोर्स अथौरिटी यानी कारा की ताजा रिपोर्ट में यह बात सामने आई है. कारा के मुताबिक, 2014-15 में 2,300 लड़कियां गोद ली गईं. जबकि लड़कों का आंकड़ा 1,688 रहा. यानी लोगों ने बेटों के मुकाबले करीब 36 प्रतिशत ज्यादा बेटियों को चुना. और यह तब है जबकि बेटियों को गोद लेने के कानून ज्यादा सख्त हैं. मसलन, सिंगल फादर है तो बेटी नहीं मिलेगी.

गोद लेने वाले ज्यादातर लोग कहते हैं कि उम्रदराज होने पर बेटियों के साथ रहना ज्यादा सुरक्षित है. बेटे छोड़ देते हैं, पर बेटियां हमेशा साथ देती हैं.

अभिभावक बनी मां

देश में अब मां कानूनीरूप से बच्चे की अभिभावक बनने की अधिकारी हो गई है. महिलाएं अब बच्चे को गोद भी ले सकेंगी. अब तक सिर्फ पुरुषों को ही गोद लेने व संतान का अभिभावक होने का हक था. संसद ने निजी कानून (संशोधन) बिल 2010 पारित किया था. इस के तहत गार्जियंस ऐंड वार्ड्स एक्ट 1890 तथा हिंदू गोद प्रथा तथा मेंटिनैंस कानून 1956 में संशोधन किया गया है. राष्ट्रपति ने निजी कानून (संशोधन) बिल 2010 को मंजूरी दे दी. यह गजट में प्रकाशित हो चुका है.

हिंदू गोद प्रथा तथा मेंटिनैंस कानून 1956 में संशोधन किया गया. यह कानून हिंदू, जैन, बौद्ध व सिख पर प्रभावी होता है. संशोधन का मकसद विवाहित महिलाओं के लिए गोद लेने की राह से बाधाएं हटाना है.

अब तक अविवाहित, तलाकशुदा तथा विधवा महिलाओं को बच्चे को गोद लेने का हक था लेकिन जो महिलाएं अपने पति से अलग रहते हुए तलाक के लिए कानूनी लड़ाई में उलझती थीं, वे किसी बच्चे को गोद नहीं ले सकती थीं. नए संशोधन के बाद पति से अलग रह रही विवाहित महिला को भी अपने पति की रजामंदी से बच्चे को गोद लेने का हक होगा. यह इजाजत तलाक की प्रक्रिया में भी मांगी जा सकती है. यदि पति अपना धर्म बदल लेता है या विक्षिप्त घोषित कर दिया जाए, तो उस की इजाजत जरूरी नहीं होगी.

भारत में हिंदू दत्तक व भरणपोषण अधिनियम लागू किया गया है. यह हिंदुओं के अलावा जैन, सिख और बौद्ध धर्मावलंबियों पर लागू होता है. मुसलिमों में अपनी पुरानी परंपरा के अनुसार गोद लिया जा सकता है जबकि ईसाई व पारसी समुदायों में इस के लिए कोई धार्मिक कानून नहीं है, पर वे भी बच्चे गोद ले सकते हैं.

कौन गोद ले किस को

यदि कोई पुरुष किसी लड़की को गोद ले चाहता है तो उस का उस लड़की से उम्र में 21 साल बड़ा होना आवश्यक है. इसी प्रकार यदि कोई महिला किसी लड़के को गोद लेना चाहती है तो उस का उस लड़के से 21 वर्ष बड़ा होना जरूरी है.

आप उसी बच्चे को गोद ले सकते हैं जो पहले से किसी के यहां गोद न गया हो अथवा जिस का अभी तक विवाह न हुआ हो. आमतौर पर 15 वर्ष से अधिक उम्र के बच्चे को गोद नहीं लिया जा सकता. हां, यदि उस समाज में ऐसी प्रथा हो तो बात अलग है.

यदि आप अनाथाश्रम के बजाय किसी अन्य माध्यम या रिश्तेदारी से बच्चा गोद लेना चाहते हैं तो उस के मूल पिता की अनुमति आवश्यक है. हां, यदि पिता जीवित न हो, पागल हो या विधर्मी हो तो अकेली मां की अनुमति चल सकती है. यदि मांबाप दोनों मर गए हों या बच्चे को लावारिस हालत में छोड़ गए हों तो अदालती कार्यवाही के माध्यम से बच्चा गोद ले सकते हैं.

जानें क्या है प्यार की झप्पी के 5 फायदे

पतिपत्नी के बीच छोटेमोटे झगड़े उन के डेली रूटीन का हिस्सा होते हैं, जहां वे बिना सोचेसमझे झगड़ पड़ते हैं. वहीं ऐसे में प्यार की एक छोटी सी झप्पी बड़ा कमाल दिखा सकती है. वह छोटे से झगड़े को बड़ा झगड़ा बनने की स्पीड में बे्रक लगा सकती है.

ऐसा नहीं कि प्यार की झप्पी सिर्फ झगड़ों को ही सुलझाती है. दरअसल, प्यार की छोटी सी झप्पी पतिपत्नी के रिश्ते में बड़ेबड़े कमाल भी दिखाती है.

मनोवैज्ञानिक मानते हैं कि जब हम किसी को गले लगाते हैं, तो हमारे शरीर से गुस्से को बढ़ाने वाले हारमोन तेजी से कम होने लगते हैं. सामने वाला गुस्से को भूल कर आप के प्यार को महसूस करता है यानी आप की प्यार की झप्पी उस के गुस्से को पल भर में दूर कर देती है और वह आप को माफ कर देता है.

बिना बोले सब कुछ बोले

पतिपत्नी के बीच प्यार को प्रकट करने का सब से अनूठा व कारगर तरीका है प्यार की झप्पी, जिस में बिना बोले आप अपनी भावनाएं प्रकट कर सकते हैं. पत्नी ने अगर अच्छा खाना बनाया हो तो पति दे उसे प्यार की एक झप्पी और अगर पति ने किसी अच्छी इनवैस्टमैंट पौलिसी में इनवैस्ट किया हो तो पत्नी दे उसे एक प्यार की झप्पी. पतिपत्नी के बीच हैल्दी और हैप्पी मैरिड लाइफ का अचूक नुसखा है प्यार की झप्पी, जिसे कभी भी और कहीं भी दिया जा सकता है.

पतिपत्नी का एकदूसरे के प्रति अपने प्यार का प्रदर्शन का तरीका है प्यार की झप्पी, जिस का अर्थ होता है कि तुम मुझे सब से प्यारे हो. प्यार की झप्पी देते समय यह हरगिज न सोचें कि आप कहां हैं किस के सामने हैं. दोस्तों के समक्ष जब आप पतिपत्नी एकदूसरे के प्रति अपने प्यार को प्रदर्शित करने के लिए एकदूसरे को गले लगाते हैं, तो दोस्तों की नजरों में आप का सम्मान और अधिक बढ़ जाता है. आप दोनों की नजदीकी और प्यार जगजाहिर हो जाता है.

दुखसुख का साथी

ऐसा नहीं कि सिर्फ खुशी के मौकों पर पतिपत्नी एकदूसरे को गले लगा कर अपना प्यार और नजदीकी जाहिर कर सकते हैं. वे परेशानी और दुख के पलों में भी एकदूसरे को गले लगा कर एकदूसरे के और करीब आ सकते हैं और दुख साझा कर सकते हैं.

आस्ट्रेलिया के वैज्ञानिकों ने एक अनुसंधान के बाद निष्कर्ष निकाला है कि जब हम किसी को दुख या तकलीफ में गले लगाते हैं, तो वह राहत महसूस करता है. रिपोर्ट में इस बात को मां व बच्चे के उदाहरण से स्पष्ट किया गया है कि जब बच्चे को चोट लगती है और मां उसे गले लगाती है तो उस का दर्द व तकलीफ दूर हो जाती है. वैज्ञानिकों के अनुसार, दरअसल होता यह है कि जब हम अपने साथी को गले लगाते हैं तो खून में औक्सीटोसिन नामक हारमोन का स्राव होता है, जिस से उच्च रक्तचाप में कमी आती है, तनाव व बेचैनी कम होती है और स्मरण शक्ति भी बेहतर होती है.

दुख व तकलीफ के क्षणों में जब पतिपत्नी एकदूसरे को प्यार वाली झप्पी देते हैं, तो सारी तकलीफ दूर हो जाती है, क्योंकि उन में बढ़ता है प्यार और जुड़ जाता है अटूट बंधन.

गिलेशिकवे मिटाती

औफिस से घर पहुंचने में देर हो गई. पत्नी ने बाजार से जरूरी सामान लाने को बोला था लेकिन आप भूल गए या फिर पत्नी ने अच्छी साड़ी पहनी, लेकिन आप तारीफ करना भूल गए तो पत्नी की नाराजगी जायज है. ऐसे में पत्नी की नाराजगी दूर करने का सब से अच्छा तरीका है प्यार की झप्पी. फिर देखिएगा कि कैसे उस की नाराजगी पल भर में दूर हो जाएगी. पत्नी के गुस्से को शांत करने का सब से बेहतर माध्यम है उसे गले लगा कर उस से माफी मांगना और अपने प्यार का प्रदर्शन करना. आप की यह झप्पी उस के गुस्से को बर्फ की तरह पिघला देगी, क्योंकि उस में होगी आप के प्यार की गरमाहट.

कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के एक शोध के अनुसार आलिंगन और स्पर्श का संबंध ऐसे कई स्वास्थ्य गुणों से है, जो तनाव और पीड़ा को कम करते हैं. शोध के अनुसार इस का सब से अधिक असर महिलाओं पर होता है यानी अगर पत्नी नाराज हो तो उसे प्यार की झप्पी से पल भर में मनाया जा सकता है.

कीजिए प्यार का इजहार

जब शाहरुख खान, गौरी खान, अरबाज व मलाइका जैसी सैलिब्रिटीज पब्लिक प्लेस में एकदूसरे को गले लगाते हैं, तो आप कितना रोमांचित महसूस करते हैं. अपने रिश्ते में भी उसी रोमांस को लाइए. अपने प्यार को सार्वजनिक कीजिए. एकदूसरे को प्यार की झप्पी देते समय उस में झिझक, दुविधा या संशय को कोई स्थान न दीजिए, क्योंकि जब आप सार्वजनिक स्थल पर सब के सामने अपनी पत्नी को गले लगाते हैं, तो वह आप दोनों के बीच एक सुरक्षा चक्र बना देता है और आप का प्यार का प्रदर्शन आप की प्रबल मानसिकता के साथसाथ आप के सच्चे प्यार को प्रदर्शित करता है.

वैसे भी जब आप दोनों के पास विवाह का सर्टिफिकेट है तो फिर खुल्लमखुला प्यार किया तो डरना क्या की तर्ज पर अपने प्यार का इजहार कीजिए.

पुराने दिन ताजा कीजिए

विवाह के कुछ वर्षों बाद जब घर व औफिस की जिम्मेदारियों के बीच पतिपत्नी के रिश्तों में बोझिलता आ जाती है, तो ऐसे में प्यार की झप्पी पुराने दिनों की यादों को ताजा करती है और पतिपत्नी के प्यार में रोमांस का तड़का लगाती है. जिंदगी में मिठास घोलती है. जब आप एकदूसरे के अच्छे काम से और परेशानी में प्यार की झप्पी देते हैं, तो सैंस औफ टुगेदरनैस का एहसास होता है. प्यार की झप्पी एक ऐसा रामबाण है जिस से पतिपत्नी के जीवन में पुरानी यादों के खुशनुमा लमहों को दोबारा लाया जा सकता है.

दोस्ती करें और ब्रेकअप फीवर से बचें

अकसर ब्रेकअप के बाद प्रेमीप्रेमिका एकदूसरे को भूलने के लिए हर फंडा अपनाते हैं. एकदूसरे को सोशल साइट्स पर ब्लौक करते हैं. वैसी जगहों पर जाना छोड़ देते हैं जहां उन के पार्टनर आते हैं. कुछ तो कौमन फ्रैंड्स से भी दूरी बना लेते हैं ताकि उन्हें ब्रेकअप का कारण न बताना पड़े.

पर कभी ब्रेकअप के बाद अपने ऐक्स से दोस्ती करने के बारे में नहीं सोचते, जबकि ब्रेकअप के बाद अपने ऐक्स से दोस्ती रखना  न केवल फायदेमंद होता है, बल्कि यह आप को मानसिक रूप से भी सबल बनाता है, जिस से आप खुश रहते हैं और डिप्रैशन से बाहर निकलते हैं.

क्यों पसंद नहीं करते दोस्ती करना

आमतौर पर ब्रेकअप के बाद दोस्ती रखना इसलिए पसंद नहीं किया जाता, क्योंकि इस से साथी और उस की यादों से निकलने में काफी तकलीफ होती है, पर ब्रेकअप के बाद आपस में दोस्ती का रिश्ता रख कर आप एकदूसरे की मदद कर सकते हैं. इस में कोई बुराई नहीं है बल्कि इस से यह स्पष्ट होता है कि आप के दिल में एकदूसरे के प्रति कोई गलत धारणा नहीं है.

बौलीवुड अदाकारा दीपिका पादुकोण ने अपने ऐक्स बौयफ्रैंड रणवीर कपूर से ब्रेकअप के बाद भी बहुत ही प्यारा और दोस्ताना रिश्ता रखा है. दीपिका की कई बातें ब्रेकअप के बाद मूवऔन करना और अपने ऐक्स के साथ दोस्ताना रिश्ता रखना सिखाती हैं. पर्सनल बातों को किनारे रखते हुए प्रोफैशनली दीपिका ने रणवीर कपूर के साथ फिल्म साइन की और दर्शकों ने इस फिल्म को काफी सराहा. इस बात से पता चलता है कि हमें प्यार और काम में कैसे बैलेंस बना कर रखना चाहिए. अगर आप और आप का ऐक्स एक ही जगह पढ़ते या काम करते हैं तो अपने काम को कभी भी रिश्ते की खातिर इग्नोर न करें और न ही ब्रेकअप को खुद पर हावी होने दें.

बौलीवुड कपल्स जिन्होंने ब्रेकअप के बाद भी निभाई दोस्ती

रणवीर दीपिका

रणवीर और दीपिका की दोस्ती को बौलीवुड सलाम करता है. ब्रेकअप के बाद दोस्ती के रिश्ते को मैंटेन रखना कोई इन से सीखे.

अनुष्का रणबीर

रणबीर सिंह और अनुष्का शर्मा ने अपनी पहली फिल्म ‘बैंड बाजा बरात’ के बाद एकदूसरे को डेट करना शुरू कर दिया था. लेकिन इन का यह रिश्ता बहुत समय तक चल नहीं पाया और ब्रेकअप हो गया. ब्रेकअप के बाद ये कुछ समय के लिए एकदूसरे से दूर थे, लेकिन फिर दोनों ने दोस्ती कर ली.

शिल्पा अक्षय

90 के दशक में इन की हिट जोड़ी थी, लेकिन कुछ समय बाद ये अलग हो गए और अक्षय ने टिंवकल से शादी कर ली और शिल्पा ने राज कुंदरा में प्यार ढूंढ़ लिया, लेकिन आज भी दोनों अच्छे दोस्त की तरह मिलते हैं.

ऋषि डिंपल

रणवीर ने दीपिका से ब्रेकअप के बाद दोस्ती काफी अच्छे से बरकरार रखी. आखिरकार इतने अच्छे से मैनेज करना उन्होंने अपने पापा से सीखा है. ऋषि कपूर ने भी एक जमाने में डिंपल कापडि़या के साथ दोस्ती मैंटेन की थी.

क्या न करें

सोशल प्लेटफौर्म न छोड़ें

अकसर ऐसा होता है कि ब्रेकअप के बाद हम सोशल प्लेटफौर्म छोड़ देते हैं, अकाउंट डिऐक्टिवेट कर देते हैं या फिर पार्टनर को ब्लौक कर देते हैं. ऐसे में सोशल साइट्स पर बने रहें, लेकिन वहां अपने इमोशंस को ज्यादा पोस्ट न करें.

इंसल्ट करने की गलती न करें

ब्रेकअप की वजह से हम इतने तनाव में आ जाते हैं कि हम क्या करते हैं, हमें खुद भी पता नहीं होता, इसलिए इंसल्ट करने की गलती न करें. अगर आप ऐसा करती हैं तो नुकसान आप का ही है.

इमोशनल ब्लैकमेल न करें

युवतियां ब्रेकअप के बाद काफी इमोशनल ब्लैकमेल करती हैं, बारबार फोन पर रोती हैं. इस तरह की हरकत न करें. ऐसा करने से पार्टनर को लगने लगता है कि अगर वह आप के टच में रहेगा तो उसे हमेशा आप का यह ड्रामा झेलना पड़ेगा.

ब्रेकअप के बाद न दिखाएं पजैसिवनैस

कुछ युवतियां जब तक रिलेशन में होती हैं तब तक वे रिलेशन को तवज्जो नहीं देतीं, लेकिन जैसे ही ब्रेकअप होता है वे पजैसिव बनने लगती हैं, अजीबअजीब हरकतें करने लगती हैं और दोस्ती बरकरार रखने का मौका खो देती हैं.

शहर व जौब न छोड़ें

ब्रेकअप के बाद अकेलापन लगता है, किसी काम में मन नहीं लगता. ऐसे में कुछ तो जौब छोड़ देते हैं या फिर शहर बदल लेते हैं ताकि सबकुछ भूल जाएं. लेकिन ऐसा करना समस्या का हल नहीं है. ऐसा कर के आप खुद का भविष्य खराब करते हैं.

अवौइड करने की भूल न करें

ब्रेकअप के बाद आप पार्टनर को अवौइड न करें. ऐसा न करें कि जहां आप का पार्टनर जा रहा हो, आप वहां सिर्फ इसलिए जाने से मना कर दें कि वहां आप का ऐक्स बौयफ्रैंड भी आ रहा है. अवौइड कर के आप लोगों को बातें बनाने का मौका देती हैं.

क्या करें

मिलें तो नौर्मल बिहेव करें

ब्रेकअप के बाद जब पार्टनर से मिलें तो नौर्मल बिहेव करें, ऐसा न हो कि आप उसे हर बात पर पुरानी बातें याद दिलाते रहें, कहते रहें कि पहले सबकुछ कितना अच्छा था, हम कितनी मस्ती करते थे और आज देखो, हमारे पास बात करने के लिए भी कुछ नहीं है. ऐसा भी न करें कि ब्रेकअप के बाद मिलें तो ओवर ऐक्साइटेड बिहेव करें, यह दिखाने के लिए कि आप पहले से ज्यादा खुश हैं, बल्कि ऐसे रहें जैसे आप अपने बाकी फैं्रड्स के साथ रहती हैं.

चिल यार का फंडा अपनाएं

ब्रेकअप के बाद खुद को स्ट्रौंग रखने के लिए चिल यार का फंडा अपनाएं. आप सोच रही होंगी कि चिल यार का फंडा क्या है? चिल यार का फंडा है जैसे अपना मेकओवर करवाएं, फ्रैंड्स के साथ पार्टी करें, वे सारी चीजें करें जो आप रिलेशनशिप की वजह से नहीं कर पाती थीं.

अपनी तरफ से दें फ्रैंडशिप प्रपोजल

भले ही सामने वाला आप से फ्रैंडशिप रखने में रुचि न दिखाए, लेकिन आप फिर भी खुद से फ्रैंडशिप का प्रपोजल दें. आप के व्यवहार को देख कर सामने वाला भी आप से दोस्ती बरकरार रखेगा.

एक सीमा तय करें

ब्रेकअप के बाद की दोस्ती में एक दायरा तय करें, क्योंकि पहले की बात कुछ और थी. अब चीजें बदल चुकी हैं. अब आप दोनों दोस्त हैं. ऐसा न हो कि आप के बीच का रिश्ता तो खत्म हो गया है लेकिन इस के बाद भी आप के बीच कभी शारीरिक संबंध बन जाएं. इसलिए एक दायरा तय करें. अगर आप ने तय किया है कि दोस्ती का रिश्ता बरकरार रखेंगे तो इस रिश्ते की गरिमा को बना कर रखें.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें