मीठी परी: भाग 1- सिम्मी और ऐनी में से किसे पवन ने अपनाया

प्रकृति की अद्भुत देन नर और मादा न होते तो इस संसार का विकल्प कुछ और ही होता. स्त्रीपुरुष की देन के साथ कितना कुछ जुड़ा है- दिमाग की सोचविचार, भाषा, भंगिमा, प्रेम प्रदर्शन, दिशा, सहमति, समर्पण, उत्पत्ति, आनंद आदि. जन्मदात्री स्त्री का तो हृदय परिवर्तन ही हो जाता है जब वह अपने शरीर से उपजे नन्हे शरीर को पहली बार छूती है. पनपती है एक अनुभूति ममता.

रमा ने अपने दोनों बेटों नयन और पवन को पति के सहयोग से जो दिशा दी, उस का परिणाम सामने है. बड़ा बेटा नयन सेना में है. फिलहाल असम में तैनात है. छोटा बेटा पवन इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी कर विदेश में नौकरी करने के लिए जाने की तैयारी में है.

पिता दोनों को देखते हैं तो गर्व से फूले नहीं समाते, अपने जवान बेटों पर. और अब तो एक और खुशखबरी है, बिग्रेडियर बक्शी की बेटी संजना का नयन से शादी का प्रस्ताव. न कहने की कोई गुंजाइश नहीं. दोनों ओर से हां होते ही रस्मोरिवाज, लेनदेन का सिलसिला चलता रहा. शादी 6 महीने बाद होनी तय हुई.

नयन की शादी घर की पहली शादी थी, सो वे पतिपत्नी तैयारी की योजना में लग गए, होने वाली बहू के लिए गहनेकपड़ों के अलावा देनेलेने के लिए गिफ्ट्स, अतिथियों की लिस्ट, बाजेगाजे, पार्टी का प्रबंध आदि.

अचानक काला साया एक रात नयन के पिता को ले चला. औफिस से थोड़ा पहले घर आ, रमा को थोड़ा थका बता, आराम करने लेटे. जबरदस्ती चाय के साथ हलका नाश्ता करा रमा उन के माथे पर हलका स्पर्श दे, सहलाती रही जब तक वे सो नहीं गए. कंधे तक चादर ओढ़ा, थोड़ी देर उन के पास बैठी रही, फिर शाम का खाना बनाने के लिए उठ गई. दोनों बेटे भी घर आ कर पिता के आराम में बाधा न डालने की सोच, दबेपांव जा उन्हें सोता देख लौट आए.

नयन के कहने पर कि उन्हें आराम करने दें, रमा ने थोड़ा सा बच्चों के साथ खा लिया और कमरे में लौटी. पति को सोते में न जगाया जाए, यह सोच वह दूसरी चादर ले, पास चुपचाप लेट गई. बारबार उठ, बिस्तर के दूसरे कोने में दूसरी ओर लेटे पति को रात की मद्धिम लाइट में शांत सोते देख उन के अच्छे स्वास्थ्य की कामना करती रही. जब नींद ही नहीं आ रही तो उठा जाए, सोच कर रमा रसोई में जा कर अपने और पति के लिए चाय बना लाई.

धीरे से पति को आवाज दी, फिर हिलाया. माथा, मुंह, बांहें छू कर जो समझी, तो चीख मार बच्चों को आवाज दी. पता नहीं कब उस के पति इस दुनिया से चले गए थे. डाक्टर ने उन की मृत्यु का कारण घातक हार्टअटैक बताया जो कई घंटे पहले आ चुका था. बेटों ने खुद को, मां को संभालते हुए सब को सूचना दी व पड़ोसियों की सहायता से पिता के दाहसंस्कार की तैयारी व बाकी के प्रबंध में लग गए.

रमा के मायके से भाईभाभी ने पहुंच, उसे संभाला. नयन की होने वाली ससुराल वालों व और सब के आने पर शाम जब क्रियाकर्म करवा लौटे तो रुदन की दिल हिलाने वाली आवाजों से घर का कोनाकोना रो रहा था. रमा को कौन समझाए. बेटे की होने वाली शादी की कहां तो वह खुशीखुशी पति के साथ मिल सब तैयारियां कर रही थी और आज उन के बिना कोने में बैठी कितनी उदास व निरीह सी बैठी थी. शादी अब पति की बरसी होने तक टाल दी गई थी.

संजना के पिता ब्रिगेडियर बक्शी के प्रयत्न से नयन की 6 महीने की अपातकालीन छुट्टी का प्रबंध कर दिया गया था ताकि वह अपनी मां के पास रह, उसे इस दुख से उबार सके. समझदार रमा ने इस नियति की मार से उबरने का प्रयास कर अब अकेले ही अपनी हिम्मत जुटा, बच्चों के प्रति अपनी ममता व कर्तव्य को जानते हुए व्यस्त रहती. बेटे उस का पूरा ध्यान रखते.

अभी 2 महीने ही बीते थे कि पवन को सूचना मिली कि उसे यूनाइटेड किंगडम की एक अच्छी कंपनी में तुरंत जौब करने का औफर है. बच्चों के भविष्य को समझते हुए रमा ने हां कह उसे तुरंत जाने की तैयारी करने को कहा. पवन अपने बड़े भाई नयन की होने वाली पत्नी यानी अपनी भाभी संजना से मिलने गया, लंदन जाने के बाद इतनी जल्दी भाई की शादी पर आना हो पाए या नहीं. मां का मन चिंतित व उदास हुआ यह सोच कर कि बच्चा इतनी दूर जा रहा है, फिर मैं उसे देख भी पाऊंगी. पति की अकस्मात मृत्यु से ऐसे विचार आना स्वाभाविक थे. उस के जाने के दिन रमा के आंसू रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे.

खुले विचारों वाले पवन को लंदन पहुंच कर अच्छा लगा. कंपनी की तरफ से छोटा सा सुंदर अपार्टमैंट मिला और कार की भी सुविधा थी. उस ने अपने साथ काम करने वाले सहयोगियों से जल्दी दोस्ती गांठ ली, विशेषकर लड़कियों से. फुर्तीला, काम में अच्छा, व्यवहार में विनम्र, अच्छे कपड़े पहनने का शौकीन पवन जहां जाता, अपनी जगह स्वयं बना लेता.

वहां लोग फ्राइडे शाम को कुछ ज्यादा ही रिलैक्स्ड रहते हैं. पब पीने वालों से भरे होते और सड़कें मस्त जोड़ों से. कौन पत्नी है और कौन गर्लफ्रैंड क्या जानना, बस बांहों में बांहें डाले मौजमस्ती करते जीवन का भरपूर आनंद उठाते कितने ही जोड़े दिखते. पवन भी पब में शुक्रवार की शाम बिताता और वहां एक लड़की को कोने में अकेली आंखें नीचे किए बैठी बियर पीते देखता.

एक शुक्रवार को पवन से रहा नहीं गया. अपना बियरभरा गिलास लिए उस के पास की दूसरी कुरसी पर लगभग बैठता हुआ पूछ बैठा, ‘‘डू यू माइंड इफ आई…’’ पलकें उठा, उस की ओर देखते, वह बोली, ‘‘इट्स ओके.’’

बस 10 मिनट ही लगे पवन को उस लड़की के बारे में जानने में. पिछले महीने ही 2 वर्षों से साथ रहते बौयफ्रैंड से ब्रेकअप हुआ था. कारण, अपनी बीमार मां को साथ लाना. ‘‘सौरी टू नो दैट.’’ कहा तो ऐनी ने आंखें उठा देखा जिस में छिपा दर्द साफ झलक रहा था. ऐनी ने उस के बारे में कुछ नहीं पूछा. यह सिलसिला केवल शुक्रवार मिलने से अब रोज मिलने पर आ गया.

पवन ने एक इतवार ऐनी को बाहर लंच पर बुलाया और बाद में कौफी के लिए घर ले आया. अपार्टमैंट में चीजें बिखरी पड़ी थीं, अकेला रहता था, कौन देखने आने वाला है. इंडिया में घर को ठीकठाक रखना तो नौकर का काम होता था. अब यह कौफी का नया दौर चला तो हर शनिवार वह घर व रसोई ठीक कर लेता.

3 बार के बाद ऐनी ने कहा कि अगली बार लंच वह बना कर लाएगी. चीज से बने पकवान और रोस्टेड चिकन दोनों ने भरपूर आनंद ले खाया. टीवी पर मूवी देखी. शाम की कौफी बाहर गैलरी में बैठ पी. ठंडी हवा का आनंद लिया और अब रात घिर आई थी. न तो ऐनी का घर जाने का मन था और न ही पवन उसे जाने देना चाहता था. एक ही बार रुकने को कहा तो ऐनी ने दोनों हाथों से उस का चेहरा पकड़, आंखों में झांकते कहा, ‘ठीक है’. पवन को जैसे आंखों ही आंखों में ऐनी की इजाजत मिल गई.

हमेशा की तरह मां अपने बेटे से बात कर उस की खबर लेती रहती. पर इस बार सामने पड़ा फोन बजता रहा, पवन ने नहीं उठाया. वह मां को नई खबर नहीं देना चाहता था.

अगले हफ्ते ऐनी अपना सामान ला पवन के साथ रहने आ गई. अंधा क्या मांगे, दो आंखें. बिखरा सामान ठिकाने लग गया. सुबह का नाश्ता दोनों इकट्ठे बैठ कर खाते. शनिवार पब जाने और बाहर खाना खा कर आने का रूटीन बन गया. इतवार घर में रह मस्ती होती और अब पवन ने भी कुछकुछ पकाना सीख लिया था. शाम की कौफी बनाना अब उस की जिम्मेदारी थी.

अब पवन मां को स्वयं फोन कर थोड़ी सी बातें कर लेता, लेकिन अभी तक ऐनी की कोई चर्चा नहीं की. मां की बारबार शादी की बात वह यह कह कर टाल जाता कि अभी वह और अच्छी नौकरी की तलाश में है.

मां उसे कुछ समय के लिए वापस घर बुला रही थी. पिता की बरसी करनी थी और फिर एक महीने बाद नयन की संजना से शादी थी. रमा की भाभी उस के पास रहने व सहारा देने आ गईं. कहा जाता है कि सब काम समय पर होते चलते हैं. बस, जाने वाला ही चला जाता है. सब के प्रयत्न से शादी अच्छी हो गई. पर रमा बारबार होती गीली आंखों के आंसुओं को अंदर ही रोके रही, शगुन का काम था.

कुछ दिन मायके और ससुराल रह संजना नयन के साथ असम चली गई. नयन मां को अकेला छोड़ कर नहीं जाना चाहता था पर मां ने सब यादों को समेटे अपने घर में ही रहना तय किया. संजना कभीकभी फोन कर देवर का हाल जानती रहती थी.

उधर, ऐनी व पवन के बीच सब ठीक चल रहा था, कभी छुट्टियां ले दोनों कहीं घूम आते. देखतेदेखते 10 महीने बीत गए. मां ने इस बार पवन को खुशखबरी देते संजना के गर्भवती होने की बात बताई.

आगे पढ़ें- ऐनी यह सब सोचते हुए परेशान थी. वह…

लेखिका- वीना त्रेहन

Holi 2023: थोड़े से दूर… नॉट ब्रेक-अप

बहुत दिनों से एक बात कहना चाह रहा था, अर्जुन ने फिल्मी अंदाज में वैदेही का हाथ अपने हाथ में लिए कहा. अर्जुन कुछ और आगे कह पाता इससे पहले ही वैदेही ने मज़ाकिया लहजे में कहा, अगर एक स्मार्ट लड़की को कुछ कहना हो, तो लड़के के लिए सबसे जरूरी बात आई लूव यू ही होती है. और वह तो तुम तीन साल पहले ही बड़े अच्छे से कह चुके हो. अर्जुन बालों में हाथ घुमाते और गाल एक हाथ से खीचते हुए वैदेही आगे कहती हैं, आई लव यू ही क्या तुम उससे भी ज्यादा कह चुके हो.

वैदेही के बातों को मानो अनसुना सा करते हुये अर्जुन अपने में ही कुछ खो सा जाता है, मानों वह अपने सवालों का खुद ही जबाब तलाश कर रहा हो. अर्जुन के फिल्मी हीरो वाले सीरियस पोज को देखते हुए वैदेही कहती है, ऐसा क्या हुआ तुम तो चुप्पी ही साध गए. चलो बताओ क्या कहना चाहते हो?

अब वैदेही को सीरियस होते देख अर्जुन ने तुरंत ही बात को बदलते हुये कहता है चलो रहने दो फिर बाद में बताउगा, इतनी भी सीरियस होने की बात नहीं है. अर्जुन कुछ और कहता इससे पहले ही वैदेही बोलती है, इट इज नोट गुड, तुम हमेशा ऐसे ही करते हो. जब कुछ बताना नहीं होता तो कोई बात चालू ही क्यों करते हो.

अब वैदेही के मूड को बदलते हुये देखकर अर्जुन कहता है बिना सुने तो तुम इतनी नाराज हो रही हो सुनकर न जाने क्या करोगी?

तुरंत जबाब देते हुये वैदेही कहती है, यदि अच्छी बात होगी तो प्यार भी मिल सकता है और कुछ बकबास हुयी तो एक चाटा भी. वैदेही के मूड को कुछ नॉर्मल देख अर्जुन कहता है, सच में कहूँ जो मैं कहना चाहता हूँ.

वैदेही – हाँ कहो ना, क्या बात है.

अर्जुन – लेकिन एक शर्त है, अगर मंजूर हो तो बात शुरू करूँ.

वैदेही – अगर फालतू की कोई शर्त है तो बिलकुल नहीं मंजूर.

अर्जुन – यार हद है, एकदम छोटी सी शर्त है.

वैदेही – चलो मंजूर, बोलो अब.

वैदेही की शर्त बाली बात को मानने के बाद अर्जुन मन ही मन अब यह सोच रहा था कि वैदेही को यह बात कैसे कहूँ, जिससे वह मेरे मन में जो है वह समझ सके. क्योंकि शब्दों की कुछ सीमाएं तो हमेशा ही होती हैं, शब्द हमेशा आपकी भावनाओं को पूर्णता में अभिव्यक्त नहीं कर पाते. व्यक्ति चाहे जितना सोच ले, पहले से तैयारी कर ले, लेकिन जो वह सोचता है उसको शब्दों के जरिए नहीं बता सकता.

अर्जुन की कुछ पल की चुप्पी को देख वैदेही के मन में भी सैकड़ों बातों आने-जाने लगी, जैसे कोई रीमोट से चैनल बदल रहा हो. इस बात को कहते हुये अर्जुन भी कुछ सहज महसूस नहीं कर रहा था, इतना नर्वस तो वह उस समय भी नहीं था जब उसने वैदेही को प्रपोज किया था. एक छोटी खामोशी को तोड़ते अर्जुन वैदेही के हाथ को पकड़ते हुये कहता है, शर्त के अनुसार तुम आज इस बात पर कोई रिएक्ट नहीं करोगी, आज रात के बाद कल हम इस पर बात करेंगे.

वैदेही – ओके, अब आगे भी तो कुछ बोलो.

हाथ में हाथ लिए आसमान को देखते हुये अर्जुन कहता है मैंने पिछले कुछ महीनों से महसूस किया है कि हम मिलने पर बहुत बाते करने लगे हैं, और कभी-कभी तो ये बाते हमारी तुम्हारी न होकर किसी और की ही होती हैं. मिलने पर इतनी बाते तो हम पहले कभी नहीं करते थे. और पहले जो बाते होती भी थी वह मेरी और तुम्हारी ही थी. मुझे तो लगता है वैदेही हमारे अंदर कुछ बदल सा गया है. अब तो कभी-कभी हमारा झगड़ा भी होने लगा है, भले अभी यह ज्यादा लंबा नहीं होता.

वैदेही के चेहरे के हावभाव कुछ बदलते हुये देखकर भी अर्जुन अपनी बात को आगे बढ़ाते हुये कहता है, अगर हम अपने इस प्यार को यूं ही आगे इसी सिद्दत से जारी रखना चाहते हैं.  तो हमें प्यार के इस मोड पर कुछ समय के लिए दूर हो जाना चाहिए. लड़ने झगड़ने के बाद तो सभी अलग होते हैं… ब्रेकअप करते हैं. हम दोनों कुछ एकदम नया करते हैं. तुम जानती हो रूटीन लाइफ से में कुछ बोर सा हो जाता हूँ, इसलिए हम कुछ एक्साइटिंग कुछ हटके करते हैं.

वैदेही – यू मीन ब्रेक-अप, मतलब तुम मुझसे अलग होने कि बात कह रहे हो, और वो भी ब्रेकअप विदाउट रीज़न.

अर्जुन – यार मैंने कहा था, कि आज रिएक्ट नहीं करोगी, प्लीज कल बात करेंगे ना.

वैदेही – लेकिन तुम्हें पता है तुम क्या कह रहे हो?

इतना कहते की वैदेही की पलके आंसुओं से भारी होने लगी, उसे समझ ही नहीं आ रहा था. वह क्या कहे, और ऐसा अचानक क्या हो गया जो अर्जुन ऐसा कह रहा है.

अर्जुन – हाँ बिलकुल मैं सोचकर यह बात तुमसे कह रहा हूँ, और वैदेही प्यार में प्रपोज, एक्सेप्ट, रोमांस, ब्रेक-अप के अलाबा भी बहुत कुछ होता है. हाँ एक बात और मैं तुमसे कह दूँ तुम ये जो ब्रेक-अप जैसी फालतू बात कर रही हो मेरा मतलब बो बिलकुल भी नहीं है.

अब समझ में आने की जगह अर्जुन कि बाते और अबूझ पहेली की तरह हो रही थी, वैदेही मन ही मन सोचे जा रही थी, अगर ब्रेक-अप नहीं तो क्यों यह दूर जाने की बात कह रहा है. वैदेही के कंधे पर हाथ रखते हुए अर्जुन कहता है, पता नहीं तुम अभी मेरी बात समझी या नहीं, पर अब जो मैं कह रहा हूँ, उस पर तुम कल ध्यान से खूब सोचकर विचार कर आना.

वैदेही के बालों को सहलाते हुये अर्जुन अपने मन में उठे प्रश्नों को वैदेही के सामने रखता है. वैदेही याद करो प्यार की शुरुआत में फोन पर हम घंटों बाते करते थे, पर आज फोन पर हम कितनी बात करते हैं? पहले मिलने पर क्या हमारे पास इतनी बाते थी, जितनी आज हम करते हैं? और आजकल हमारी बाते मेरी तुम्हारी ना होकर किसी और टॉपिक पर ही क्यों होती हैं? और दूसरे की बातों में हम कभी-कभी वेवजह झगड़ भी लेते हैं.

अर्जुन की यह सारी बाते अभी भी वैदेही के समझ के बाहर थी, अब इसी कनफ्यूज से  मन और दिमाग की स्थिति के साथ कुछ मज़ाकिया अंदाज में वैदेही कहती है, लोग सच ही कहते हैं साइकोलोजी और फिलोसफी पढ़ने-पढ़ाने वाले लोग आधे खिसक जाते हैं. और तुमने तो दोनों ही पढ़े हैं, इसलिए लग रहा है, कि तुम तो पूरे….

अर्जुन – अब तुम्हें जो कहना है वह कहो या समझो पर कल जरूर मेरी इन बातों को सोचकर आना .

आज घर जाते हुए भले दोनों हाथों में हाथ लिए चल रहे थे, पर दोनों खोये हुये थे किसी और ही दुनिया में. वैदेही चलते-चलते सोचे जा रही थी कि अर्जुन की तो आदत ही है, इस टाइप के इंटेलेक्चुयल मज़ाक करने की, लेकिन दूसरे ही पल वह यह भी सोच रही थी कि छोड़ने या अलग होने की बात तो आजतक कभी अर्जुन ने नहीं की है. इसलिए वह ऐसा मजाक तो नहीं करेगा. मन की उधेड़बुन तो नहीं थमी, लेकिन चलते-चलते पार्किंग स्टैंड जरूर आ गया.

जहां से दोनों को अलग होना था. दोनों ने एक दूसरों को सिद्दत भरी निगाहों और प्यार के साथ अलविदा किया और अपनी-अपनी गाड़ी को स्टार्ट करते हुये, अपने-अपने रास्ते पर चल दिए.

भले अर्जुन की बातों से वैदेही ज्यादा उदास और सोचने को मजबूर थी, पर अर्जुन भी कम बैचेन नहीं था. इसलिए ही तो कहते हैं कि अगर हम किसी के मन में अपनी बातों या कामों से उथल-पुथल मचाते हैं तो उसका प्रभाव हम पर भी कुछ ना कुछ जरूर ही होता है. हम चाहे कितने प्रबल इच्छाशक्ति वाले क्यों ना हों.

बारह घंटे के बाद स्माइली इमोजी और गुड्मोर्निंग के साथ अर्जुन का मेसेज वैदेही के मोबाइल पर आता है. बताओ कहाँ मिलना है? और आई होप तुमने जरूर सोचा होगा. वैदेही भी कनफ्यूज इमोजी के साथ गुड्मोर्निंग भेजती है और लिखती है. कल कहानी तुमने ही चालू की थी, तो आज तुम ही बताओ कहा खत्म करोगे. रिप्लाई करते हुये अर्जुन कहता है आज संडे भी है तो यूनिवर्सिटी के उसी पार्क में मिलते हैं जहां पहली बार मिले थे.

पार्क में अर्जुन हमेशा की तरह टाइम से पहले बैठा मिलता है. वैदेही भी पार्क के गेट से ही अर्जुन को देख लेती है मानों पार्क में उसके अलावा कोई और हो ही ना.

अर्जुन कुछ बोलता उससे पहले ही वैदेही कहती है तुमने जो भी कहा था उस पर खूब सोचा और उससे आगे-पीछे भी बहुत कुछ सोचा. हाँ तुम सही कहते हो पहले हम फोन पर ज्यादा बाते करते थे और मिलने पर हमारे पास बाते कम और अहसास ज्यादा थे. एक-दूसरे से मिलने पर बातों की जरूरत ही महसूस नहीं होती थी. एक दूसरे की मौजूदगी ही सब कह देती थी. और यह भी सही है पिछले कुछ दिनों से हम लोग एक दूसरे की बात या विचार का उतना सम्मान नहीं करते जैसा पहले था. पहले मुझे तुम्हारी गलत बाते भी सही लगती थी और अब कभी-कभी सही बात पर भी हम वेवजह बहस करने लगते हैं.

वैदेही कुछ और कहती इसी बीच में अर्जुन कहता है, तो बताओ ऐसा क्यों है?

वैदेही- अरे अब मैंने फिलोसफी थोड़े पढ़ी है, मैंने तो आर्किटेक्ट पढ़ी है, और आर्किटेक्ट में पहेलियाँ नहीं सीधे-सीधे पढ़ाई होती है. इसलिए तुम ही बताओ ऐसा क्यों है?

अर्जुन कुछ बोलता इससे पहले ही वैदेही कहती है, जो तुमने कहा था वह तो सोचा ही साथ ही मैंने यह भी सोचा कि अपने रिलेशन के पिछले तीन सालों में वैसा व्यवहार एक दूसरे से बिल्कुल नहीं किया, जो किसी प्यार करने वालों में एक साल के अंदर ही होने लगता है, एक भी बार हम दोनों ने एक-दूसरे से इरीटेट होकर ना फोन काटा ना ही स्विच आफ किया. न तुम कभी मुझसे गुस्सा हुये और न ही मैं तुमसे, फिर ना जाने तुम क्यों ब्रेकअप ओह सॉरी-सॉरी दूर होने की बात कर रहे हो.

वैदेही की सारी बातों को हमेशा की तरह उसी तल्लीनता से सुनकर अर्जुन कहता है, वैदेही तुम जो कह रही हो मेरे मन भी यही सब बाते आई थी. तुमसे अलग होने की बात करने से पहले. मैं भी यही सोचता रहा कि अगर दो प्यार करने वाले मिलने पर ज्यादा बात करने लगे हैं, थोड़ा सा बहस करने लगे, थोड़ा सा लड़ ले, तो इसमें क्या गलत है.

पर वैदेही मुझे लगता है जब अहसास कुछ कम होने लगते हैं तब शब्दों की जरूरत ज्यादा पड़ती है, और हम दोनों क्या, अगर किसी भी संबंध में सिर्फ शब्द ही रह जाए तो मान लेना चाहिए संबंध या तो खत्म हो गया है या फिर अगर है भी तो बस औपचारिकता भर है, ऐसे संबंध में आत्मा या जीवंतता नहीं है.

आज हमारे रिलेशन में भले कोई बड़ी समस्या नहीं है पर मुझे लगता है ये छोटी-छोटी  नोकझोक ही आगे चलकर बड़ी प्रोबलम बन जाती हैं. अर्जुन अपनी बातों को और समझाने का प्रयास करते हुये कहता है, वैदेही मैंने कई लोगों के प्यार के सफर में देखा हैं, पहले छोटी मोटी नोकझोक, फिर बेमतलब की बहसे, फिर आरोप-प्रत्यारोप और फिर चुप्पी, और अंत की चुप्पी बहुत ही दर्द देती है.

अर्जुन कुछ और कहता उसके बीच में ही वैदेही कहती है तो तुम्हारा मतलब है हमारे बीच अब अहसास नहीं बचा या प्यार नहीं है.

अर्जुन – नहीं नहीं मैंने ऐसा कब कहा कि हमारे बीच प्यार नहीं. बल्कि मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूँ कि जो हमारे बीच अहसास है, प्यार है वह बरकरार रहे. वैदेही अभी बहुत कुछ है हमारे बीच जो हमें एक दूसरे की ओर आकर्षित और रोमांचित करता है. मैं यही चाहता हूँ कि यही अहसास बने रहें.

वैदेही – तो अब तुम्ही बताओ कि हमें क्या करना चाहिए?

अर्जुन – हमें कुछ दिनों या महीनों के लिए दूर हो जाना चाहिए ताकि फिर से हम एक दूसरे से कुछ अजनबी हो सके, कुछ दिनों कि दूरी फिर से वह आकर्षण या कशिश पैदा करेगी, जहां शब्दों की फिर कम ही जरूरत होगी. और जितनी बात हम दोनों के फिर से मिलने पर होगी वह मेरी और तुम्हारी ही होगी, क्योंकि कुछ दिनों का अजनबीपन से बहुत कुछ हम दोनों के पास होगा जो हम एक-दूसरे से सुनना और बताना चाहेंगे.

वैदेही – ठीक है मान लिया तुम चाहते हो कि हँसते-हँसते कुछ समय के लिए हम दूर हो जाए, एक अच्छे रिलेशन को और मजबूर करने के लिए, पर ये होगा कैसे?

अर्जुन – अरे यार तुम आर्किटेक्ट में डिप्लोमा करने के लिए जो मूड बना रही हो, उसे अहमदाबाद में जॉइन करो, और हो जाओ अजनबी. और फिर मिलते हैं कुछ नए-नए से होकर, विथ न्यू एक्साइटमेंट के साथ.

वैदेही – थोड़े-थोड़े अजनबी बनने के चक्कर में कहीं इतनी दूर नहीं हो जाए कि फिर कभी मिल ही ना सकें.

अर्जुन – अगर कुछ दिनों कि दूरी हमें अलग कर देती है तो फिर तो हम दोनों को ही मान लेना होगा की हमारा रिश्ता उतना मजबूत था ही नहीं, और ये दूरी तोड़ने या दूर जाने के लिए नहीं बल्कि और नजदीक आने के लिए है.

वैदेही अर्जुन के इस प्रपोज़ल को दिल से स्वीकार कर पायी थी या नहीं, पर अर्जुन के इस दिमागी फितूर को मानते हुए अहमदाबाद में उसने अपना कोर्स जॉइन कर लिया. वैदेही नयी जगह, नए दोस्तों और पढ़ाई में कुछ व्यस्त से हो गयी थी, पर रात में अर्जुन की यादें हमेशा उसके साथ रहती थी.

अर्जुन और वैदेही को दूर हुए अभी दो महीने ही तो हुये थे पर अर्जुन का 6 महीने बाद मिलने का वादा जबाब देने लगा. छः महीने के पहले न फोन करने और न ही मिलने वाली अपनी ही बात को ना मानते हुए, अर्जुन ने आज वैदेही को मोबाइल पर मेसेज भेजा.

कुछ घंटे के इंतजार के बाद उसने फिर मेसेज भेजा, पर पहले मेसेज की तरह ही दूसरा मेसेज न तो रिसीव हुआ और न ही कोई जबाब आया.

मेसेज का जबाब न आने पर अर्जुन की बैचेनी बढ़ने लगी थी, बढ़ती बैचेनी ने अर्जुन के मेसेज की संख्या और लंबाई को भी बड़ा दिया. और अब मेसेज क्या वैदेही ने तो कॉल भी रिसीव नहीं किया था.

अब अर्जुन के मन में सौ सवाल उठ रहे थे, क्या वैदेही गुस्सा हो गयी? कहीं वैदेही को कुछ हो तो नहीं गया? या कहीं कोई और बात तो नहीं? अर्जुन के मेसेज और कॉल करने और वैदेही के जबाब न देने का सिलसिला लगभग 15-20 दिन चला. अंततः अर्जुन ने ठान लिया की वह अब खुद ही अहमदाबाद जाएगा.

माना जाता है कि स्त्री के व्यक्तिव की यह खूबी और पुरुष के व्यक्तिव की यह कमी होती है, जिसके कारण पुरुष अपनी ही सोची बात, विचार या निर्णय पर अक्सर कायम नहीं रह पाता, जबकि एक स्त्री किसी दूसरे की बात, विचार या निर्णय को उतनी ही सिद्दत से निभाने का सामर्थ्य रखती है, जैसे वह विचार या निर्णय उसने ही लिया हो.

जिस दिन अर्जुन को अहमदाबाद जाना था उसके एक दिन पहले अचानक रात में अर्जुन के मोबाइल पर वैदेही के आने वाले मेसेज की खास रिंगटोन बजती है, इतने लंबे इंतजार के बाद वैदेही के मेसेज आने से मोबाइल की स्क्रीन के साथ अर्जुन की आंखे भी चमक रही थी.

पर मेसेज में न जाने ऐसा क्या लिखा हुआ था, जैसे-जैसे अर्जुन मेसेज की लाइने पढ़ रहा था, पढ़ने के साथ उसके चेहरे की रंगत भी उड़ती जा रही थी.

मेसेज पढ़ने के बाद अर्जुन वैदेही से पहली बार मिलने से लेकर उस अंतिम मुलाक़ात को याद कर रहा था, बेड पर लेटकर एकटक ऊपर की ओर देखते हुये अर्जुन की आँखों से नमी झलकने लगी थी. कहा जाता है जब दर्द गहरा होता है तो आँसू बिना रोये, बिना आबाज के ही बहने लगते हैं. कुछ पल पहले जिस मेसेज के आने से अर्जुन की आंखे खुशी से चमकी थी, वही आंखे मेसेज पड़ने के बाद नम थी. वैदेही के मेसेज को कई बार पढ़ने के बाद भी अर्जुन को यकीन नहीं हो रहा था कि यह सब सही है…

…..डियर अर्जुन इतने दिनों से तुम मेसेज और कॉल कर रहे हो पर मैंने कोई जबाब नहीं दिया उसके लिए सॉरी… मैं तुमसे बिल्कुल भी गुस्सा नहीं हूँ, पर क्या करूँ तुमने जो कहा था  मैं वही तो कर रही हूँ. और तुम जानते हो तुम्हारी हर खवाहिस को मैं दिल से पूरा करने की कोशिश करती हूँ. सच अर्जुन अभी भी मुझे पता नहीं कि दूर होने के लिए तुमने यह मजाक में कहा था, या फिर किसी और वजह से, हो सकता है मेरे कैरियर बनाने के लिए तुमने ऐसा किया हो, पर अर्जुन यह सच है कि मैं तुमसे दूर होने की सोच भी नहीं सकती थी. अर्जुन पिछले दिनों एक बात मेरे मन में रोज ही आती है, अभी तो हम सिर्फ प्यार में थे और शादी जैसा कोई बंधन भी नहीं था, पर तुम्हारे रूटीन लाइफ से बोर हो जाने के कारण हम कुछ दिनों के लिए दूर हो गए. पर अर्जुन यदि शादी के बाद भी तुम रूटीन लाइफ से बोर होने लगे तब क्या होगा. अर्जुन हम जैसी लड़कियों का गुण कहें या मजबूरी हम तो दिल से जिस कन्धें और हाथ को एक बार थाम लेते हैं, उसे ही ज़िंदगी भर के लिए अपना साहिल समझ लेते हैं, लड़कियों की ज़िंदगी में खासकर इंडिया में रूटीन लाइफ से बोर होने का आपसन नहीं होता है.  इसलिए मेरे और तुम्हारे बीच की इस कुछ दिनों की दूरी को फिलहाल अपना ब्रेक-अप ही समझ रही हूँ. हाँ ज़िंदगी बहुत लंबी है इसलिए आगे का मुझे भी कुछ पता नहीं क्या होगा? दुआ करती हूँ हम दोनों की ज़िंदगी में अच्छा ही हो. अब मेसेज और कॉल नहीं करना क्योंकि तुम्हारे सवालों और बातों का मेरे पास इस मेसेज के अलावा कोई और जबाब नहीं है, लव यू…तुम्हारी वैदेही.

Holi 2023: चोरी का फल- क्या राकेश वक्त रहते समझ पाया?

मीठी परी: भाग 3- सिम्मी और ऐनी में से किसे पवन ने अपनाया

नयन ने सीधी बात शुरू की, ‘‘पवन, मैं समझता हूं कि ऐसे हालात में तुम क्रिस को हमारा बेटा समझ यहां छोड़ जाओ. आगे की सोचो, तुम वापस जाना चाहो या यहां रहो, यह तुम्हारा अपना फैसला होगा. मां को हम समझा लेंगे.’’ पवन का दिलआंखें ऐसे रोईं कि भाभी भी साथ रोती हुई, उस को तसल्ली दे, उस की पीठ थपथपाती रही.

‘‘सब ठीक हो जाएगा, हौसला रखो, पवन,’’ कह कर नयन उठ बाहर चले गए.

इस बार मां को इस दुख से उबारने की जिम्मेदारी पवन ने स्वयं ली. भरे मन से क्रिस को भाभी के पास छोड़ मां के पास जा, बिना रोए, ढांढ़स बांध, सारी बात बताई. मां ने उस के सिर पर हाथ रख कर कहा, ‘‘बेटा, किस को दोष दें, समय की बात है.’’ मां ने समझाया, ‘‘जो हुआ सो हुआ, अब वह जल्दी अपना घर बसाए. शादी टूटने की बात तो ठीक है पर बच्चे की चर्चा न ही हो तो अच्छा है.’’

पवन ने वापस लौट कुछ समय के बाद घर और नौकरी बदल ली. बैठता तो क्रिस को याद करने के साथ यह भी सोचता कि कैसी ममतामयी और समझदार हैं संजना भाभी, कितनी सहजता से भाई ने क्रिस को अपने बेटे जैसे रखने के बारे में सोच लिया. मां भी क्या रिश्ता है, कितनी सरलता से मां ने उसे आगे की सोचने की सलाह दी. क्या ऐनी के मन में ऐसा कोई भाव नहीं जागा.

इतवार का दिन था, पवन 10 बजे तक लेटा रहा. रात किनकिन विचारों में उलझा रहा था. तभी फोन बजा. भाई का फोन था, बता रहा था कि क्रिस ठीक है और उस की कुछ फोटो अपलोड कर भेजी हैं. साथ ही, यह भी बताया कि ईमेल पर किसी की पूरी डिटेल्स, फोटो और पता लिखा है. तुम स्वयं भी साइट देख सकते हो. मां और संजना लड़की के परिवार से मिल सब जानकारी ले भी आए और तुम्हारे विषय में भी बता दिया है. याद रहे, क्रिस अब हमारा बेटा है. जैसा मां का सुझाव था वैसे ही करो. लड़की सिम्मी अपने भाईभाभी के पास पिछले 2 वर्षों से रह रही है जो यूके में कई वर्षों से हैं. तुम्हारा पता नहीं दिया. मां चाहती हैं कि तुम स्वयं देखभाल कर बात बढ़ाओ.

पवन का मन खुश न हो, दुखी हुआ, काश, ऐनी के साथ ही सब ठीक रहता तो…किसे दोष दे. पवन को लगा शायद पहली बार सब मां के आशीर्वाद के बिना हुआ था इसलिए…टालता रहा. पर जब मां ने पूछा कि उन्हें फोन क्यों नहीं किया, सिम्मी के परिवार से क्यों नहीं मिला तो अब तक कहा कि इस इतवार सिम्मी के परिवार को फोन अवश्य करूंगा.

फोन किया तो सिम्मी ने ही उठाया, पूछा, ‘‘कहिए, किस से बात करनी है?’’

‘‘संजयजी से, जरा रुकें, भाभी को मैसेज दे दें.’’

झिझकते हुए पवन ने अपना परिचय दिया तो भाभी फोन पर बात करती हुई खुश हो पूछ बैठी, ‘‘आप आज शाम मिल सकते हैं.’’

‘‘जी, ठीक है, कहां?’’

‘‘संजयजी अभी आते होंगे, वे आप को बताएंगे.’’ अब तो पवन घबराया कि क्या बताए क्या छिपाए.

शाम कौ सैंट्रलसिटी रैस्टोरैंट में मिले. सिम्मी ने स्वयं अपनी शादी व तलाक के बारे में बताया कि लड़का जरमनी से आया था पर जल्दी ही उस के ड्रग ऐडिक्ट होने की बात सामने आई. सिम्मी ने अस्पताल और समयसमय पर थेरैपी के साथ रीहैबिलिटेशन के पेपर दिखाए. उस का मानना था कि ऐसी आदत जल्दी छूटती नहीं. वह यहां एमबीए कर रही है. इतना कहते हुए अपने भाईभाभी का आभार प्रकट किया.

साधारण सी दिखती लड़की का साहस और सोच पवन को अच्छी लगी. पवन अभी साहस जुटा रहा था अपने बारे में बताने का कि सिम्मी के भाई ने कहा कि आप के बारे में मांपापा व बड़े भाई को जानकारी है और अब आप का और सिम्मी का निर्णय ही हमारा फैसला होगा.

कुछ दिनों के बाद भाई की सलाह से सिम्मी ने फोन पर पवन से बात की और दोनों बाहर मिले. सिम्मी की तरफ से हां पर पवन ने फोन पर मां को बताया कि ठीक है. फिर भी जाने क्यों, जो पवन के साथ हो चुका था, उस का डर उस के मन के किसी कोने में छिपा बैठा था.

बर्मिंघम की कोर्ट में शादी के अवसर पर पवन का भाई नयन पहुंचा. सादी सी सैरामनी के साथ और परिवार के नाम पर 5 लोगों ने बाहर खाना खाया और नवदंपती को विदाई दी. नयन एक हफ्ता होटल में रुक इधरउधर घूम वापस लौटा. संजना भाभी खुश थी. मां ने महल्ले में लड्डू बंटवाए और पवन की विदेश में शादी की सब को खबर दी. पहले की घटित हुई सारी कहानी पर खाक डाल दी गई.

एक सप्ताह का आनंदमय समय इकट्ठा बिता पवन काम पर लौटा और सिम्मी पढ़ाई में लग गई. पवन की मां या भाभी से सिम्मी बहुत आदर से फोन पर बात करती. सिम्मी के भाईभाभी भी कभी थोड़ी देर के लिए आ जाते और बहन को खुश देख राहत की सांस लेते. परीक्षा खत्म हुई और अच्छा रिजल्ट पा सिम्मी के साथ पवन भी खुश हुआ और उस को सुंदर सी ड्रैस गिफ्ट की.

सिम्मी ने पवन को यह कह हैरान कर दिया कि नौकरी तो कभी भी की जा सकती है पर परिवार बढ़ाना है तो हम दोनों की आयु देखते हमें पहले बच्चे के विषय में सोचना चाहिए. पवन खुश, ‘‘अरे, सोचना क्या, इरादा नेक है.’’ जब समय मिलता, दोनों कहीं न कहीं घूम आते. 2 महीने बीते तो पाया कि सिम्मी गर्भवती है. सब बहुत खुश और सिम्मी के पैर तो खुशी के मारे धरती पर टिक ही नहीं रहे थे, ‘‘हमारा पहला बच्चा.’’

पवन सिम्मी का पूरा ध्यान रखता.

6 महीने बीतने को आए जब एक दिन औफिस से लौटने पर सिम्मी ने एक फोटो सामने रखते पवन से पूछा, ‘‘यह कौन है, कितना प्यारा बच्चा है?’’ पवन के काटो तो खून नहीं, यह फोटो उस ने ऐनी की क्रिस को गोद लिए पहले दिन डेकेयर छोड़ने जाने पर खींची थी. अच्छा हुआ कि वह नहीं था उस फोटो में. उस ने बड़ी सावधानी से कैमरे, अलबम, फ्रेम से सब फोटो बड़े दुख के साथ निकाल फेंक दी थी. यह फोटो किसी दूसरी फोटो के साथ उलटी लगी रह गई थी जिसे वह देख नहीं पाया. अपने को संभालते हुए, एक सहकर्मी व उस के बेटे की बता फोटो ले ली. सिम्मी की ओर से कोई प्रश्न न पूछा जाए, सोच कर पवन किचन में अपने व सिम्मी के लिए चाय बनाने लगा.

ऐनी अब स्कौटलैड में ही थी पर पवन के घर व औफिस बदलने की उसे खबर थी. ऐनी की बहन के विवाह को 10 वर्ष हो चुके थे. पर कोई संतान नहीं थी. काफी इलाज कराने के बाद कोई संभावना भी नहीं थी. घर में बच्चा गोद लेने की चर्चा चल रही थी.

ऐनी सब पीछे छोड़ तो आई थी पर कभीकभी उस का मन क्रिस को याद कर उदास हो जाता. उस ने बहन से सलाह की कि यदि उस का पति माने तो वह क्रिस को गोद ले सकती है. उस के पास क्रिस के जन्म पर अस्पताल से मिला प्रमाणपत्र है जिस पर उस का व पवन का नाम लिखा है. बात तय हो गई.

यूके में कोर्ट द्वारा पवन को सम्मन भिजवा दिया गया जिस में ऐनी ने बिना किसी शर्त के बेटे क्रिस को अपनाने की अपील की. पत्र पवन के नाम था, पर घर पर सिम्मी को मिला. खोला तो ऐनी नाम देख उसे याद हो आया यही नाम तो बताया गया था पवन की पहली पत्नी का. पर बच्चा उस की तो कभी चर्चा ही नहीं की किसी ने? सिम्मी का 8वां महीना चल रहा था और उस के मानसपटल पर इतने विचार आजा रहे थे कि वह बहुत घबरा गई. पवन को फोन पर तुरंत घर आने को कह वह बैठ गई. अचानक तसवीर उभरी जो उस को अलबम में मिली थी जिसे पवन ने सहकर्मी और उस का बेटा बताया था. कहीं वह बच्चा पवन…क्या हो रहा है ये सब, वह मन को शांत करते हुए सोफे पर बैठ गई.

घबराए आए पवन ने उसे यों बैठे देखा तो सोचा, अवश्य उस की तबीयत ठीक नहीं. कहा, ‘‘उठो, अस्पताल चलते हैं.’’

‘‘नहीं, कोर्ट में जाओ,’’ कहते हुए सिम्मी ने लिफाफा थमाया. पवन को तो जैसे घड़ों पानी पड़ गया हो, कहां जा डूबे, क्या करे? सिम्मी ने उसे हाथ पकड़ कर पास बैठाया, फिर उठ कर पानी ला कर पिलाया और धीरे से उस का झुका मुंह उठा, पूछा, ‘‘पवन, बस, सच बताओ, बाकी हम संभाल लेंगे.’’

अब छिपाने को कुछ रह ही नहीं गया था. पवन सिम्मी के कंधे पर सिर रख फफक कर रो पड़ा. सिम्मी ने उसे बांहों में सहलाया, ‘‘रोओ नहीं, शांत हो जाओ.’’

जब वह पूरी तरह शांत हो गया तो माफी मांगते सच उगल दिया.

सिम्मी ने कहा, ‘‘अब पूरी सचाई से बताओ कि तुम क्या चाहते हो?

‘‘प्लीज सिम्मी, मेरा साथ नहीं छोड़ना.’’

‘‘पवन अगर तुम ने हमें शादी से पहले अपने बेटे के बारे में बताया होता तो सच मानो वह आज हमारे साथ होता पर फिक्र न करो वह अब भी हमारे घर में है तुम्हारे भाईभाभी के साथ. जब चाहे उसे यहां ले आओ. हमारे 2 बच्चे हो जाएंगे.

बोलती सिम्मी का मुख पवन गौर से परखता रहा, क्या यह सच कह रही है, क्या ऐसा संभव है, क्या अब मेरा बेटा मेरे पास रह सकता है?

सिम्मी ने उसे धीरे से झिंझोड़ा, ‘‘पवन, मैं तुम्हारे बेटे की मां बनने को तैयार हूं. उठो, नोटिस का जवाब दो. कल किसी अच्छे वकील से मिलो. उठो पवन, शाम की चाय नहीं पिलाओगे.’’

पवन हैरान, ‘कैसी औरत है, कितनी सहजता से सब समेट लिया. कोई शिकायत नहीं, कितना बड़ा दिल है इस का. बिना कहे क्षमा कर दिया.’

दोनों ने मिल कर चाय पी और फिर सिम्मी बोली, ‘‘पवन, जरा भाईभाभी को फोन कर क्रिस का हाल जानें और उन्हें बताएं कि दूसरे बच्चे के होने के बाद हम पहले उसे लेने वहां आएंगे.’’

‘‘सच सिम्मी.’’

‘‘हां, सच पवन. और सुनो, मां को भी अपना फैसला बताएंगे तो वे भी खुश होंगी. रही मेरे परिवार की बात, तो उन से मैं स्वयं निबट लूंगी.’’

ये सब सुन पवन ने फोन लगा, सिम्मी को पकड़ाया और साथ ही झुक उस का माथा चूम लिया. सिम्मी

ने शरारत से देख, कहा, ‘‘अब मेरी बारी…अब तुम्हारा मुंह मीठा कर दिया मैं ने, कड़वी बातें भूल जाओ. मैं हूं मीठी परी, मुझ से कभी झूठ न बोलना.’’ पवन ने अपने दोनों कान पकड़ नहीं की मुद्रा में सिर हिलाया तो सिम्मी अपने पेट पर दोनों हाथ रख जोर से हंस दी. पवन हैरान था उस का यह सुहावना रूप देख, धीरे से बुदबुदाया, ‘मीठी परी’.

लेखिका- वीना त्रेहन

चोरी का फल: भाग 3- क्या राकेश वक्त रहते समझ पाया?

यह सच है कि मैं अपने घर वालों से कट कर रहने लगा. आफिस के सहयोगियों या पड़ोसियों के साथ खाली समय में उठनाबैठना भी मैं ने कम कर दिया. किसी से फालतू बात कर के मैं उसे शिखा व अपने बारे में कुछ पूछने या कहने का मौका नहीं देना चाहता था. इस तरह सामाजिक दायरा घटते ही मैं धीरेधीरे अजीब से असंतोष, तनाव व खीज का शिकार बनने लगा.

एक दिन शिखा को अपनी बांहों में भर कर बोला, ‘‘मेरा मन करता है कि तुम हमेशा मेरी बांहों में इसी तरह बनी रहो. अब तो अपने इस घर का अकेलापन मुझे काटने लगा है.’’

उदास से लहजे में शिखा ने जवाब दिया, ‘‘हम दोनों को सामाजिक कायदेकानून का ध्यान रखना ही होगा. अपने पति व सास को छोड़ कर सदा के लिए आप के पास आ जाने की हिम्मत मुझ में नहीं है. फिर मेरा ऐसा कदम बेटे रोहित के भविष्य के लिए ठीक नहीं होगा और उस के हित की फिक्र मैं अपनी जान से ज्यादा करती हूं.’’

‘‘मैं तुम्हारे मनोभावों को समझता हूं, शिखा. देखो, तकदीर ने मेरे साथ कैसा मजाक किया है. मेरी पत्नी मुझे बहुत प्यारी थी पर उसे जिंदगी छोटी मिली. तुम्हें मैं बहुत प्रेम करता हूं, पर तुम सदा के लिए खुल कर मेरी नहीं हो सकती हो. जब कभी इस तरह की बातें सोचने लगता हूं तो मन बड़ा अकेला, उदास और बेचैन हो जाता है.’’

जो बात दिमाग में बैठ जाए फिर उसे भुलाना या निकाल कर बाहर फेंकना बड़ा कठिन होता है. शिखा मेरे दिल के बहुत करीब थी, फिर भी मेरे अंदर का असंतोष व बेचैनी बढ़ती ही गई.

रोहित के जन्म की 5वीं सालगिरह पर मेरे असंतोष का घड़ा पूरा भर कर एक झटके में फूट गया.

इत्तफाक से जन्मदिन के कुछ रोज पहले संजीव को स्टाक मार्किट से अच्छा फायदा हुआ. तड़कभड़क से जीने के शौकीन संजीव ने फौरन रोहित के जन्मदिन की पार्टी धूमधाम से मनाने का फैसला कर लिया.

उस दिन घर के आगे टेंट लगा. हलवाई ने खाना तैयार किया. डी.जे. सिस्टम पर बज रहे गानों की धुन पर खूब सारे मेहमान थिरकने लगे. कम से कम 250-300 लोग वहां जरूर उपस्थित रहे होंगे.

रोहित उस दिन स्वाभाविक तौर पर सब के आकर्षण का केंद्र बना. उस के साथ घूमते हुए शिखा व संजीव ने इतनी अच्छी पार्टी देने के लिए खूब वाहवाही लूटी.

मैं एक तरफ उपेक्षित सा बैठा रहा. शिखा को फुर्सत नहीं मिली, मेरे साथ चंद मिनट भी गुजारने की. शायद मेरे साथ हंसबोल कर वह अपने करीबी रिश्तेदारों को बातें बनाने का मौका नहीं देना चाहती थी.

मैं पार्टी का बिलकुल भी मजा नहीं ले सका. उस बड़ी भीड़ में मैं अपने को अकेला, उदास व उपेक्षित सा महसूस कर रहा था.

मेरा मन एक तरफ तो मांग कर रहा था कि शिखा को मेरे पास आ कर मेरा भी ध्यान रखना चाहिए था. उस के परिवार की हंसीखुशी में मेरा योगदान कम नहीं था. दूसरी तरफ मन शिखा के पक्ष में बोलता. मैं उस का प्रेमी जरूर था पर यह कोई भी समझदार स्त्री खुलेआम अपने करीबी लोगों के सामने रेखांकित नहीं कर सकती.

मैं जब इस तरह की कशमकश से तंग आ गया तो बिना किसी को बताए घर चला आया.

उस रात मुझे बिलकुल नींद नहीं आई. जिस ढर्रे पर मेरी जिंदगी चल रही थी उस से गहरा असंतोष मेरे दिलोदिमाग में पैदा हुआ था.

मेरी सारी रात करवटें बदलते गुजरी पर सुबह मन शांत था. पिछली परेशानी भरी रात के दौरान मैं ने अपनी जिंदगी से जुड़े कई महत्त्वपूर्ण निर्णय लिए थे.

अगले दिन शिखा 11 बजे के करीब आई. मेरे गंभीर चेहरे को देख कर चिंतित स्वर में बोली, ‘‘क्या आप की तबीयत ठीक नहीं है?’’

‘‘मैं ठीक हूं,’’ मैं ने उसे अपने सामने बैठने का इशारा किया.

‘‘कल पार्टी में किसी ने कुछ गलत कहा? गलत व्यवहार किया?’’ वह परेशान हो उठी.

‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं हुई.’’

‘‘फिर यों बुझेबुझे से क्यों लग रहे हो?’’

‘‘रात को ठीक से सो नहीं पाया.’’

‘‘किसी बात की परेशानी थी?’’

‘‘हां, मैं तुम्हारा ही इंतजार कर रहा था, शिखा. कुछ जरूरी बातें करनी हैं मुझे तुम से.’’

‘‘कहो.’’

मैं ने कुछ लम्हों की खामोशी के बाद भावहीन स्वर में उसे बताया, ‘‘मैं आज मेरठ वाली उस लड़की को देखने जा रहा हूं जिस का मेरे लिए रिश्ता आया है.’’

‘‘मैं तो हमेशा आप को मेरठ जाने की सलाह देती रही हूं.’’

‘‘शिखा, मैं खुद नहीं जाता था क्योंकि तुम्हारे अलावा किसी और स्त्री को अपनी जिंदगी में प्रवेश देना मुझे अनुचित लगता था…वैसा करना उस मेरठ वाली लड़की के साथ धोखा करना होता.’’

‘‘क्या अब आप ने मुझे अपने दिल से निकालने का फैसला कर लिया है?’’ यह कहतेकहते शिखा की आंखों में आंसू छलक आए.

‘‘शिखा, तुम बिना आंसू बहाए मेरी बात को समझने की कोशिश करो, प्लीज,’’ मैं ने अपनी आवाज को कमजोर नहीं पड़ने दिया, ‘‘देखो, तुम्हारी घरगृहस्थी सदा तुम्हारी रहेगी. मैं चाह कर भी उस का स्थायी सदस्य कभी नहीं बन सकता हूं. तुम्हारा नाम संजीव के साथ ही जुड़ेगा, मेरे साथ नहीं.

‘‘यह बात कल रात मुझे बिलकुल साफ नजर आई.

‘‘चोरी का मीठा फल खाने का अपना मजा है…तुम्हारे प्यार को मैं बहुत कीमती व महत्त्वपूर्ण मानता रहा हूं. अब थक गया हूं, अकेले इस घर में रातें बिताते हुए… अब मैं सिर्फ फल खाना नहीं बल्कि अपनी छोटी सी बगिया बनाना चाहता हूं जिसे मैं अपना कह सकूं…जिसे फलताफूलता देख मैं ज्यादा खुशी व सुकून महसूस कर सकूं.’’

‘‘मैं ने आप को अपनी घरगृहस्थी की बगिया बनाने से कभी नहीं रोका,’’ शिखा भावुक स्वर में बोली, ‘‘आप जरूर शादी कर लें. आप की इच्छा होगी तो मैं खुशीखुशी आप की जिंदगी में प्रेमिका बन कर बनी रहूंगी.’’

‘‘नहीं, शिखा, वैसा करना बिलकुल गलत होगा,’’ मैं ने तीखे स्वर में उस के प्रस्ताव का विरोध किया.

‘‘तब क्या आज आप मुझे हमेशा के लिए अलविदा कह रहे हैं?’’ वह रोंआसी हो उठी.

भीगी पलकें और भारी मन से मैं इतना भर कह सका, ‘‘आई एम सारी, शिखा, दोस्ती की सीमाएं लांघ कर तुम्हें अपनी प्रेमिका नहीं बनाना चाहिए था मुझे. मैं सिर्फ तुम्हारे मन में जगह बना कर रखता तो आज मेरी भावी शादी के कारण हमें एकदूसरे से दूर न होना पड़ता.’’

शिखा उठ कर खड़ी हो गई और थके से स्वर में बोली, ‘‘सर, आप जैसे नेक इनसान को कभी भुला नहीं पाऊंगी. पर शायद आप का फैसला बिलकुल सही है. मैं चलती हूं.’

चोरी का फल: भाग 2- क्या राकेश वक्त रहते समझ पाया?

मैं बड़े प्यार से उस का चेहरा निहार रहा था. मेरी आंखों के भाव पढ़ कर उस के गोरे गाल अचानक गुलाबी हो उठे.

मैं उसे चाहता हूं, यह बात उस दिन शिखा पूरी तरह से समझ गई. उस दिन से हमारे संबंध एक नए आयाम में प्रवेश कर गए.

जिस बीज को उस दिन मैं ने बोया था उसे मजबूत पौधा बनने में एक महीने से कुछ ज्यादा समय लगा.

‘‘हमारे लिए दोस्ती की सीमा लांघना गलत होगा, सर. संजीव को धोखा दे कर मैं गहरे अपराधबोध का शिकार बन जाऊंगी.’’

जब भी मैं उस से प्रेम का इजहार करने का प्रयास करता, उस का यही जवाब होता.

शिखा को मेरे प्रस्ताव में बिलकुल रुचि न होती तो वह आसानी से मुझ से कन्नी काट लेती. नाराज हो कर उस ने मुझ से मिलना बंद नहीं किया, तो उस का दिल जीतने की मेरी आशा दिनोदिन बलवती होती चली गई.

वह अपने घर की परिस्थितियों से खुश नहीं थी. संजीव का व्यवहार, आदतें व घर का खर्च चलाने में उस की असफलता उसे दुखी रखते. मैं उस की बातें बड़े धैर्य से सुनता. जब उस का मन हलका हो जाता, तभी मेरी हंसीमजाक व छेड़छाड़ शुरू होती.

उस के जन्मदिन से एक दिन पहले मैं ने जिद कर के उस से अपने घर चलने का प्रस्ताव रखा और कहा, ‘‘अपने हाथों से मैं ने तुम्हारे लिए खीर बनाई है, अगर तुम मेरे यहां चलने से इनकार करोगी तो मैं नाराज हो जाऊंगा.’’

मेरी प्यार भरी जिद के सामने थोड़ी नानुकुर करने के बाद शिखा को झुकना ही पड़ा.

मैं ने उस के जन्मदिन के मौके पर एक सुंदर साड़ी उपहार में दी और उसे पहली बार मैं ने अपनी बांहों में भरा तो वह घबराए लहजे में बोली, ‘‘नहीं, यह सब ठीक नहीं है. मुझे छोड़ दीजिए, प्लीज.’’

अपनी बांहों की कैद से मैं ने उसे मुक्त नहीं किया क्योंकि वह छूटने का प्रयास बडे़ बेमन से कर रही थी. उस के मादक जिस्म का नशा मुझ पर कुछ इस तरह हावी था कि मैं ने उस के कानों और गरदन को गरम सांसें छोड़ते हुए चूम लिया. उस ने झुरझुरी के साथ सिसकारी ली. मुंह से ‘ना, ना’ करती रही पर मेरे साथ और ज्यादा मजबूती से वह लिपट भी गई.

शिखा को गोद में उठा कर मैं बेडरूम में ले आया. वहां मेरे आगोश में बंधते ही उस ने सब तरह का विरोध समाप्त कर समर्पण कर दिया.

सांचे में ढले उस के जिस्म को छूने से पहले मैं ने जी भर कर निहारा. वह खामोश आंखें बंद किए लेटी रही. उस की तेज सांसें ही उस के अंदर की जबरदस्त हलचल को दर्शा रही थीं. हम दोनों के अंदर उठे उत्तेजना के तूफान के थमने के बाद भी हम देर तक निढाल हो एकदूसरे से लिपट कर लेटे रहे.

कुछ देर बाद शिखा के सिसकने की आवाज सुन कर मैं चौंका. उस की आंखों से आंसू बहते देख मैं प्यार से उस के चेहरे को चूमने लगा.

उस की सिसकियां कुछ देर बाद थमीं तो मैं ने कोमल स्वर में पूछा, ‘‘क्या तुम मुझ से नाराज हो?’’

जवाब में उस ने मेरे होंठों का चुंबन लिया और भावुक स्वर में बोली, ‘‘प्रेम  का इतना आनंददायक रूप मुझे दिखाने के लिए धन्यवाद, राकेश.’’

हमारे संबंध एक और नए आयाम में प्रवेश कर गए. मैं अब तनावमुक्त व प्रसन्न रहता. शिखा ही नहीं बल्कि उस के घर के बाकी सदस्य भी मुझे अच्छे लगने लगे. मैं भी अपने को उन के घर का सदस्य समझने लगा.

मैं शिखा के घर वालों की जरूरतों का ध्यान रखता. कभी संजीव को रुपए की जरूरत होती तो शिखा से छिपा कर दे देता. मैं ने शिखा की सास के घुटनों के दर्द का इलाज अच्छे डाक्टर से कराया. उन्हें फायदा हुआ तो उन्होंने ढेरों आशीर्वाद मुझे दे डाले.

इन दिनों मैं अपने को बेहद स्वस्थ, युवा, प्रसन्न और भाग्यशाली महसूस करता. शिखा ने मेरी जिंदगी में खुशियां भर दीं.

एक रविवार की दोपहर शिखा मुझे शारीरिक सुख दे कर गई ही थी कि मेरे मातापिता मुझ से मिलने आ पहुंचे. मेरठ से मेरे लिए एक रिश्ता आया हुआ था. वह दोनों इसी सिलसिले में मुझ से बात करने आए थे.

‘‘वह लड़की तलाकशुदा है,’’ मां बोलीं, ‘‘तुम कब चलोगे उसे देखने?’’

‘‘किसी रविवार को चले चलेंगे,’’ मैं ने गोलमोल सा जवाब दिया.

‘‘अगले रविवार को चलें?’’

‘‘देखेंगे,’’ मैं ने फिर टालने की कोशिश की.

मेरे पिता अचानक गुस्से में बोले, ‘‘इस से तुम मेरठ चलने को ‘हां’ नहीं कहलवा सकोगी क्योंकि आजकल इस के सिर पर उस शिखा का जनून सवार है.’’

‘‘प्लीज पापा, बेकार की बातें न करें. शिखा से मेरा कोई गलत रिश्ता नहीं है,’’ मैं नाराज हो उठा.

‘‘अपने बाप से झूठ मत बोलो, राकेश. यहां क्या चल रहा है, इस की रिपोर्ट मुझ तक पहुंचती रहती है.’’

‘‘लोगों की गलत व झूठी बातों पर आप दोनों को ध्यान नहीं देना चाहिए.’’

मां ने पिताजी को चुप करा कर मुझे समझाया, ‘‘राकेश, सारी कालोनी शिखा और तुम्हारे बारे में उलटीसीधी बातें कर रही है. उस का यहां आनाजाना बंद करो, बेटे, नहीं तो तुम्हारा कहीं रिश्ता होने में बड़ा झंझट होगा.’’

‘‘मां, किसी से मिलनाजुलना गुनाह है क्या? मेरी जानपहचान और बोलचाल सिर्फ शिखा से ही नहीं है, मैं उस के पति और उस की सास से भी खूब हंसताबोलता हूं.’’

अपने झूठ पर खुद मुझे ऐसा विश्वास पैदा हुआ कि सचमुच ही मारे गुस्से के मेरा चेहरा लाल हो उठा.

मुझे कुछ देर और समझाने के बाद मां पिताजी को ले कर मेरठ चली गईं. उन के जाने के काफी समय बाद तक मैं बेचैन व परेशान रहा. फिर शाम को जब मैं ने शिखा से फोन पर बातें कीं तब मेरा मूड कुछ हद तक सुधरा.

शिखा को ले कर मेरे संबंध सिर्फ मांपिताजी से ही नहीं बिगड़े बल्कि छोटे भाई रवि और उस की पत्नी रेखा के चेहरे पर भी अपने लिए एक खिंचाव महसूस किया.

शिखा के मातापिता ने भी उस से मेरे बारे में चर्चा की थी. उन तक शिखा और मेरे घनिष्ठ संबंध की खबर मेरी समझ से रेखा ने पहुंचाई होगी, क्योंकि रेखा जब भी मायके जाती है तब वह शिखा के मातापिता से जरूर मिलती है. यह बात खुद शिखा ने मुझे बता रखी थी.

‘‘मम्मी, पापा, राकेशजी के ही कारण आज तुम्हारी बेटी इज्जत से अपनी घरगृहस्थी चला पा रही है. रोहित उन्हें बहुत प्यार करता है. संजीव उन की बेहद इज्जत करते हैं. मेरी सास उन्हें अपना बड़ा बेटा मानती हैं. हमारे बीच अवैध संबंध होते तो उन्हें मेरे घर में इतना मानसम्मान नहीं मिलता. आप दोनों अपनी बेटी की घरगृहस्थी की सुखशांति की फिक्र करो, न कि लोगों की बकवास की,’’ शिखा के ऐसे तीखे व भावुक जवाब ने उस के मातापिता की बोलती एक बार में ही बंद कर दी.

आगे पढ़ें- उदास से लहजे में शिखा ने…

Valentine’s Special: बसंत का नीलाभ आसमान- क्या पूरा हुआ नैना का प्यार

लेखक- geetanjali chy

अब यह मौसम का खुमार था या उसकी अल्हड़ उम्र का शूरुर  जो उसे दुनिया बेहिसाब खुबसूरत लग रही थी. जितने रंग फिजाओं में घुले थे उसकी गंध से नैना का हृदय सराबोर था. बसंत के  फूलों से मुकाबला करती नैना की खुबसूरती मौसम के मिज़ाज से भी छेड़खानी करती चलती थी. जब सारा जहाँ जाती हुई ठंड को रूसवा करने के डर से जैकेट डालकर सुबह सुबह घूमने निकलता तब नैना बगैर स्वेटर शाल के बसंती फिजाँ में इठलाती सारे जमाने को अपने जादू में बाँध लेती थी.

दो बहनों में  बड़ी नैना एक मध्यमवर्गीय परिवार से ताल्लुक रखती थी. माँ के सानिध्य से मरहूम नैना अपने पिता के साथ रहती थी.घर की बड़ी बेटी होने के बावजूद उसका बचपना नहीं गया था . बल्कि उसकी छोटी बहन ही कुछ अधिक शान्त, संयम, गम्भीर और बुजुर्ग बनी बैठी रहती. नैना के पिता एक प्रगतिशील व्यक्तित्व के स्वामी थे, जो नैना की हरकतों पर यदाकदा उसे स्नेह भरी फटकार लगा देते थे.

पर नैना भी कहाँ किसी से कम थी सारी डांट फटकार का लेखा जोखा तैयार रखती थी और फिर मौका मिलते ही कभी स्वास्थ्य के लिए उपदेश दे डालती, तो कभी पिता की राजनीति के प्रति दिवानगी को देख कर विद्रोहिनी हो जाती. राजनीति के नाम से नैना को इतनी चिढ़ थी कि वह अपनी सारी नजाकत, खुबसूरती, मासूमियत और शब्दों की मर्यादा को ताक पर रखकर इतनी ढीठ बन जाती कि उसका सारा विद्रोह, सारी झुँझलाहट, मिज़ाज का सारा तीखापन बाहर आ जाता था.

बाप बेटी की इस तकरार से आजिज रहने वाली नताशा अक्सर खिसियाकर कहती  – “राजनीति से इतना प्रेम और घृणा दोनों ही खतरनाक है. नैना तुम जो राजनीति के नाम पर दाँत पीस पीसकर लड़ती हो, तुम्हारी शादी जरूर किसी राजनैतिक परिवार में होगी. ”

इतना सुनने के साथ नैना नताशा पर भड़क जाती और पिता पुत्री का समझौता हो जाता. पर कहते हैं न कि वाणी में माँ सरस्वती का वास होता है. अल्हड़, पवित्र,निश्छल व्यक्तित्व की स्वामिनी नैना कब नैतिक को पसंद आ गयी, इसका अहसास उसे तब हुआ जब शहर के एमएलए नैतिक का रिश्ता नैना के लिए आया.

इस खबर ने जहाँ नैना की आत्मा का गला घोंट दिया था, तो वहीं उसके पिता रसूखदार राजनैतिक परिवार को रिश्ते के लिए मना करने का हौसला नहीं दिखा पाये.विवाह के प्रस्ताव को मना कर तलवार की धार पर चलने का सामर्थ उनमें न था. वर्तमान सामाजिक परिस्थितियों में प्रणय, विवाह और तृप्ति उन्हें ज्यादा प्रासंगिक नजर आ रही थी. वरना होने को तो कुछ भी हो सकता था.

अपने ही कुबोल से कुपित नताशा स्वयं को मुनि का अवतार समझ रही थी. उधर अपने अहर्निश अन्तर्द्वन्द्व में उलझी नैना रोयी, खीझी पर अपने परिवार की खैरियत के लिए एम एल ए से शादी करने को तैयार हो गई. वो अपने इनकार से पिता का दिल नहीं दुखाना चाहती थी. अपने कुढ़न और खीज से छोटी बहन का भविष्य खतरे में नहीं डालना चाहती थी.

नियत समय पर ब्याह सम्पन्न हुआ. एक तो पिता और बहन को छोड़ कर जाने का गम और फिर बेदिली का रिश्ता नैना चुप हो गयी थी. आँसू को छुपाने के लिए नसों के सहारे उन्हें हृदय में उतार देती, पर जब आँसूओं के सैलाब से हृदय डूबने लगता तो आँसू यकबयक पलकों पर उतर आते. मायके से बिदा होकर जब ससुराल आयी तो ऐसा लगा मानों स्वर्ग को किसी ने इन्द्रधनुषों के रंगों से भर दिया हो. पर जब वैभव और ऐश्वर्य के बादलों से झांककर वह नैतिक को देखती तो उसे लगता कि किस्मत ने उसे किसी पाप का दंड दिया है.

नैतिक बाबू गम्भीर और फिलासफर किस्म के इंसान थे. सुदर्शन पुरुष सा आभामंडल उनके यश का कारण था.काम और समाज सेवा की तमाम मसरूफियत के बीच कहीं कोई प्रेमी हृदय तो अवश्य था जिसमें नैना के जिंदादिल व्यक्तित्व ने अपना घर बना लिया था. नैना से विवाह के बाद वह अपनी भावना, प्रणय की कल्पनाओं को व्यक्त कर देना चाहता था, पर नैना के मौन को देख कर डर जाता . जब भी स्नेह भरे स्पर्श की चेष्टा करता, तब नैना की मौन तल्खी से सहसा कटुता और व्यंग्य से उबल उठता.

पहले पहल तो उसे लगा मानों नये परिवेश को आत्मसात नहीं कर पाने की वजह से नैना इस प्रकार का रवैया अपना रही है. परंतु शिघ्र ही नैतिक को नैना के हृदय में उग्र जहरीले काँटों का आभास हो गया. जुबान की तल्ख़ी की चुभन फिर कमजोर हो जाती है, पर नैना की निर्मम उपेक्षा नैतिक को कटुता के जहर से अभिषिक्त कर रही थी.

दो लोग एक साथ जीवन की एक ही समस्या के अंतर्विरोधों में उलझे हुए थे. मन में एक ठहराव आ गया था और वक्त ठहरने का नाम नहीं ले रहा था. नैना के हृदय ने मन से विद्रोह करना शुरू कर दिया था. अब वह जब भी नैतिक को देखती तो उसे वह सुकुमार और पवित्र लगता. नफरत पर भावुकता हावी होने लगी. हृदय और मन नैतिक का अलग अलग मुल्यांकन करता. हृदय को नैतिक देवदूत लगता तो दिमाग को पथभ्रष्ट देवदूत जिसे खरीदने को गुनाहगारों की सारी फौज खड़ी हो.

वहीं नैतिक नैना के तिरस्कार से ज्यादा उसके बदले हुए रूप से गमजदा था. जिस बिंदासपन, जिंदादिली और मस्तमौला अंदाज का वह कायल हो गया था. वही सबकुछ नैना का किसी ने छीन लिया था. उसका दिल और दिमाग बेबस हो रहा था. अपने ही प्यार का निबाह न कर पाने की कसक से वो नैना से दूर हो रहा था.

एक ही घर में दोनों अजनबियों की तरह जी रहे थे और एक ऐसी चाबी की तलाश कर रहे थे, जिसका कोई ताला ही नहीं था. नैना की भावनाएँ, उसका हृदय, उसकी आत्मा, उसके प्राण हार मान लेना चाहते थे, लेकिन उसका मन अब भी अपनी बात पर अड़ा हुआ था. हृदय में प्रेम की कोमल उपस्थिति को मन झल्लाहट और अन्तर्द्वन्द्व से अस्वीकार कर रहा था.

ताज्जुब है कि दिल और दिमाग की रस्साकशी में दिमाग का नियंत्रण खो गया नैना सीढ़ियों से नीचे गिर गई. दोनों टांग टूटने के दर्द से ज्यादा असुरक्षा और अस्वीकार कर दिए जाने की भावना से तड़प उठी. अस्पताल के बिस्तर पर पड़ी पड़ी न जाने कौन कौन से बुरे ख्यालों से बिंधने लगी. कभी सपना देखती कि नैतिक उसे अपने से दूर कीचड़ में फेंक कर है. तो अगले ही पल पाँवों में तीखे दर्द से सारा बदन काँपने लगता.

सभी आ रहे थे और जल्दी ठीक होने का ढ़ाढ़स देकर चले जा रहे थे. फिर नताशा का भी आना हुआ और आने के साथ बोली ” अरे जीजा जी से सेवा ही करवाना था तो झूठ का बीमार हो जाती. टांगों को कुर्बान करने की क्या जरुरत थी. वैसे भी इतनी हट्टी कट्टी हो तुम्हें उठाना बैठाना कितना मुश्किल होगा बेचारे के लिए. ”

“अच्छा,  सच में.किसी को मेरी भी इतनी चिंता है”नैतिक बोला.

हादसे के बाद नैतिक ने नैना को पल भर भी अकेला नहीं छोड़ा. उसकी हर छोटी बड़ी जरूरत को पूरा करने के क्रम में जो विश्वास और प्रेम की अभिव्यक्ति नैतिक ने की, उसे शब्दों के जामे की जरूरत नहीं थी. नैतिक के मौन अभिव्यक्ति ने नैना के मष्तिष्क की मुर्छा को समाप्त कर दिया था.

और जिस दिन नैना का अस्पताल से डिसचार्ज होने का दिन आया तो नैतिक नैना के लिए गुलाब के फूलों गुलदस्ता ले आया. होंठों में मुसकान और आँखों में शरारत को छिपाते हुए एक गुलाब निकल कर नैतिक को देकर नैना बोली  “हैप्पी वेलेंटाइन डे. ”

और नैतिक हँस पड़ा.दोनों मुसकुरा रहे थे. चेहरे की आभा देखकर लगरहा था जैसे हवाओं में,फिजाओं में बसंत के मौसमी फूलों की खुबसूरती और गंध की बजाये,मोहब्बत के फूल खिलें हों और उसकी गंध से दोनों का तन मन पिघल रहा हो.महीने भर के सानिध्य और दोनों के संबंधों की गर्माहट भरे साथ में वे भी प्रेम के स्पर्श को महसूस कर थे. स्नेह और स्पर्श की ऊष्मा से उनका मन धुलकर ऐसे निखर गया जैसे बसंत का नीलाभ आसमान.

Valentine’s Special: कढ़ा हुआ रूमाल- शिवानी के निस्वार्थ प्यार की कहानी

तिनसुखिया मेल के एसी कोच में बैठे प्रोफैसर महेश एक पुस्तक पढ़ने में मशगूल थे. वे एक सैमिनार में भाग लेने गुवाहाटी जा रहे थे.

पास की एक सीट पर बैठी प्रौढ़ महिला बारबार प्रोफैसर महेश को देख रही थी. वह शायद उन्हें पहचानने का प्रयास कर रही थी. जब वह पूरी तरह आश्वस्त हो गई तो उठ कर उन की सीट के पास गई और शिष्टतापूर्वक पूछा, ‘‘सर, क्या आप प्रोफैसर महेश हैं?’’

यह अप्रत्याशित सा प्रश्न सुन कर प्रोफैसर महेश असमंजस में पड़ गए. उन्होंने महिला की ओर देखते हुए कहा, ‘‘मैं ने आप को पहचाना नहीं, मैडम.’’

‘‘मेरा नाम माधवी है. मैं लखनऊ यूनिवर्सिटी में प्रोफैसर हूं. मेरी एक सहेली थी प्रोफैसर शिवानी,’’ वह महिला बोली.

‘‘थी… से आप का क्या मतलब है?’’ प्रोफैसर महेश ने उस की ओर देखते हुए पूछा.

‘‘वह अब इस दुनिया में नहीं है. उस ने किसी को अपनी किडनी डोनेट की थी. उसी दौरान शरीर में सैप्टिक फैल जाने के कारण उस की मृत्यु हो गई थी,’’ महिला ने कहा.

‘‘क्या?’’ प्रोफैसर महेश का मुंह आश्चर्य से खुला रह गया था.

‘‘जी सर. उसे शायद अपनी मृत्यु का एहसास पहले ही हो गया था. मरने से 2 दिन पहले उस ने मु?ो यह रूमाल और एक पत्र आप को देने के लिए कहा था. उस के द्वारा दिए पते पर मैं आप से मिलने दिल्ली कई बार गई. मगर आप शायद वहां से कहीं और शिफ्ट हो गए थे.’’ यह कह कर उस महिला ने वह रूमाल और पत्र प्रोफैसर को दे दिया.

वह महिला जा कर अपनी सीट पर बैठ गई. प्रोफैसर महेश बुत बने अपनी सीट पर बैठे थे.

तिनसुखिया मेल अपनी पूरी रफ्तार से दौड़ रही थी और उस से भी तेज रफ्तार से अतीत की स्मृतियां प्रोफैसर महेश के मानसपटल पर दौड़ रही थीं.

आज से 25 वर्ष पूर्व उन की तैनाती एक कसबे के डिग्री कालेज में प्रोफैसर के रूप में हुई थी. कालेज कसबे से दोढाई किलोमीटर दूर था. कालेज में छात्रछात्राएं दोनों पढ़ते थे. कालेज का अधिकांश स्टाफ कसबे में ही रहता था.

प्रोफैसर महेश का व्यक्तित्व बड़ा आकर्षक था और उन के पढ़ाने का ढंग बहुत प्रभावी. इसलिए छात्रछात्राएं उन का बड़ा सम्मान करते थे. वे बड़े मिलनसार और सहयोगी स्वभाव के थे. इसलिए स्टाफ में भी उन के सब से बड़े मधुर संबंध थे.

एक दिन वे क्लास में पढ़ा रहे थे, तभी चपरासी उन के पास आया और बोला, ‘सर, प्रिंसिपल सर आप को अपने औफिस में बुला रहे हैं.’

प्रोफैसर महेश सोच में पड़ गए. फिर वे प्रिंसिपल रूम की ओर चल दिए.

उन्हें देख कर प्रिंसिपल साहब बोले, ‘प्रोफैसर महेश, बीए सैकंड ईयर की छात्रा शिवानी अचानक क्लास में बेहोश हो गई है. उसे किसी तरह होश तो आ गया है मगर अभी उस की तबीयत पूरी तरह ठीक नहीं है. आप ऐसा करिए, उसे अपने स्कूटर से उस के घर छोड़ आइए.’

उस समय स्टाफ के 2-3 लोगों के पास ही स्कूटर था. शायद इसी कारण प्राचार्यजी ने उन्हें यह कार्य सौंपा था.

वे शिवानी को स्कूटर पर बैठा कर कसबे की ओर चल दिए. वे कसबे में पहुंचने ही वाले थे कि सड़क के किनारे खड़े बरगद के पेड़ के पास शिवानी ने कहा, ‘सर, स्कूटर रोक दीजिए.’

प्रोफैसर महेश ने स्कूटर रोक दिया और शिवानी से पूछा, ‘‘क्या बात है शिवानी, क्या तुम्हें फिर चक्कर आ रहा है?’

‘मु?ो कुछ नहीं हुआ सर, मैं तो आप से एकांत में बात करना चाहती थी, इसलिए मैं ने कालेज में बेहोश होने का नाटक किया था,’ उस ने बड़े भोलेपन से कहा.

‘क्या?’ प्रोफैसर ने हैरानी से उस की ओर देखा. फिर पूछा, ‘आखिर, तुम ने ऐसा क्यों किया और तुम मु?ा से क्या बात करना चाहती हो?’

‘सर, मैं आप से प्यार करती हूं और आप को यही बात बताने के लिए मैं ने यह नाटक किया था,’ वह प्रोफैसर की ओर देख कर मुसकरा रही थी.

प्रोफैसर हतप्रभ खड़े थे. उन्हें सम?ा में ही नहीं आ रहा था कि वे उस से क्या कहें. काफी देर तक वे चुप रहे. फिर बोले, ‘यह तुम्हारी पढ़ने की उम्र है, प्यार करने की नहीं. अभी तो तुम प्यार का मतलब भी नहीं जानतीं.’

‘आप ठीक कह रहे हैं, सर. मगर मैं अपने इस दिल का क्या करूं, यह तो आप से प्यार कर बैठा है,’ वह प्रोफैसर की ओर देख कर मुसकराते हुए बोली.

‘तुम्हें मालूम है कि मैं शादीशुदा हूं और मेरे 2 बच्चे हैं. और मेरी तथा तुम्हारी उम्र में कम से कम 20 साल का अंतर है,’ प्रोफैसर ने उसे सम?ाते हुए कहा.

‘मु?ो इन बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता, सर. मैं तो केवल एक ही बात जानती हूं कि मैं आप से प्यार करती हूं, बेपनाह प्यार,’ वह दार्शनिक अंदाज में बोली.

प्रोफैसर ने उसे सम?ाने का हरसंभव प्रयास किया. मगर उस पर कोई असर नहीं हुआ. तो उन्होंने यह कह कर कि, अब तुम ठीक हो इसलिए यहां से अपने घर पैदल चली जाना, वे कालेज लौट गए.

प्रोफैसर महेश ने इस बात को उस का बचपना समझ और गंभीरता से नहीं लिया. शिवानी किसी न किसी बहाने से उन के करीब आने और उन से बात करने का प्रयास करती रहती. परंतु वह उन के जितना करीब आने का प्रयास करती, वे उतना ही उस से दूर भागते. वे नहीं चाहते थे कि कालेज में यह बात चर्चा का विषय बने.

कसबे में छोटे बच्चों का कोई कौन्वैंट स्कूल नहीं था, इसलिए वे यहां अकेले ही किराए के मकान में रहते थे. उन की पत्नी और बच्चे उन के मम्मीपापा के साथ रहते थे.

एक दिन शाम का समय था. प्रोफैसर कमरे में अकेले बैठे एक किताब पढ़ रहे थे. तभी दरवाजे पर खटखट हुई. उन्होंने दरवाजा खोला. सामने शिवानी खड़ी थी. उसे इस प्रकार अकेले अपने घर पर देख वे असमंजस में पड़ गए.

इस से पहले कि वे कुछ कहते, वह कमरे में आ कर एक कुरसी पर बैठ गई. आज पहली बार प्रोफैसर ने शिवानी को ध्यान से देखा. 20-21 वर्ष की उम्र, लंबा व छरहरा बदन, गोराचिट्टा रंग और आकर्षक नैननक्श. उस के लंबे घने बाल उस की कमर को छू रहे थे. सादे कपड़ों में भी वह बेहद सुंदर लग रही थी.

कमरे के एकांत में एक बेहद सुंदर नवयुवती प्रोफैसर के सामने बैठी थी और वह उन से प्यार करती है, यह सोच कर प्रोफैसर के मन में गुदगुदी सी होने लगी. उन्होंने अपने मन को संयत करने का बहुत प्रयास किया मगर वे अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रखने में असफल रहे. उन के मन में तरहतरह की हसीन कल्पनाएं उठने लगीं, चेहरे का रंग पलपल बदलने लगा.

इस सब से बेखबर शिवानी कुरसी पर शांत और निश्चल बैठी थी. उस के एक हाथ में सफेद रंग का रूमाल था. प्रोफैसर उठ कर उस के पास गए और उस के गालों को थपथपाते हुए पूछा, ‘शिवानी, तुम यहां अकेले क्या करने आई हो?’

उस ने प्रोफैसर की आंखों में झांक कर देखा, पता नहीं उसे उन की आंखों में क्या दिखाई दिया, वह ?ाटके के साथ कुरसी से उठ कर खड़ी हो गई. उस के चेहरे के भाव एकाएक बदल गए थे. प्रोफैसर के हाथों को अपने गालों से झटके के साथ हटाते हुए वह बोली, ‘प्लीज, डोंट टच मी. आई डोंट लाइक दिस.’

प्रोफैसर के ऊपर पड़ा बुद्धिजीवी का लबादा फट कर तारतार हो चुका था. शिवानी का यह व्यवहार उन के लिए अप्रत्याशित था. उन्हें समझ ही नहीं आ रहा था कि वे उस से क्या कहें.

‘तुम तो कहती हो कि तुम मुझ से बहुत प्यार करती हो,’ प्रोफैसर महेश ने शिवानी की ओर देखते हुए कहा.

‘हां सर, मैं आप को बहुत प्यार करती हूं. मगर मेरा प्यार गंगाजल की तरह निर्मल और कंचन की तरह खरा है,’ उस ने दृढ़ स्वर में कहा.

‘ये सब फिल्मी डायलौग हैं,’ प्रोफैसर ने खिसियानी हंसी हंसते हुए कहा.

‘सर, जरूरत पड़ने पर मैं यह सबित कर दूंगी कि आप के प्रति मेरा प्यार कितना गहरा है,’ यह कह कर वह कमरे से चली गई थी. काफी देर तक प्रोफैसर अवाक खड़े रहे थे, फिर अपने काम में लग गए थे.

इस के बाद शिवानी ने उन से बात करने या मिलने का प्रयास नहीं किया. वे भी धीरेधीरे उसे भूल गए. कुछ समय बाद उन का उस कालेज से स्थानांतरण हो गया. सरकारी सेवा होने के कारण कई जगह स्थानांतरण हुए और आखिर में वे दिल्ली में सैटल्ड हो गए.

2 साल पहले प्रोफैसर को किडनी प्रौब्लम हो गई. कई महीने तक तो डाइलिसिस पर रहे, फिर डाक्टरों ने कहा कि अब किडनी ट्रांसप्लांट के अलावा कोई चारा नहीं है. तब प्रोफैसर ने अपने परिवार में इस संबंध में सब से बातचीत की. उन की पत्नी, दोनों बेटों और बेटी ने राय दी कि पहले किडनी के लिए विज्ञापन देना चाहिए. हो सकता है कि कोई जरूरतमंद पैसे के लिए अपनी किडनी डोनेट करने के लिए तैयार हो जाए. अगर 2-3 बार विज्ञापन देने के बाद भी कोई डोनर नहीं मिलता है तो हम लोग फिर इस बारे में बातचीत करेंगे.

बेटे ने राजधानी के सभी अखबारों में किडनी डोनेट करने वाले को 20 लाख रुपए देने का विज्ञापन छपवाया. विज्ञापन में प्रोफैसर का नाम, पूरा पता दिया गया. विज्ञापन दिए एक महीना हो गया था. जिस अस्पताल में प्रोफैसर महेश का इलाज चल रहा था. एक दिन वहां से फोन आया.

‘सर, आप के लिए गुड न्यूज है. आप को किडनी देने के लिए एक डोनर मिल गई है. उस की उम्र 45 साल के करीब है और वह आप को किडनी डोनेट करने के लिए तैयार है. मगर उस की एक शर्त है कि, किडनी ट्रांसप्लांट होने से पहले उस का नाम व पता किसी को न बताया जाए.’

मुझे यह जान कर हैरानी हुई कि डोनर अपना नाम, पता क्यों नहीं बताना चाहती. फिर हम सब ने सोचा कि शायद उस की कोई मजबूरी होगी.

ट्रांसप्लांट की सारी फौर्मैलिटीज पूरी कर ली गईं और नियत तारीख पर उन की किडनी का ट्रांसप्लांटेशन हो गया, जो पूरी तरह से सफल रहा.

इस के कई दिनों बाद जब प्रोफैसर महेश अपने को काफी सहज अनुभव करने लगे तो उन्होंने एक दिन डाक्टर साहब से पूछा कि ‘डाक्टर साहब, वे लेडी कैसी हैं जिन्होंने उन्हें अपनी किडनी डोनेट की थी.’

कुछ देर तक डाक्टर साहब खामोश रहे, फिर बोले कि वह लेडी तो परसों बिना किसी को कुछ बताए अस्पताल से चली गई. हैरानी की बात यह है कि वह अपनी डोनेशन फीस भी नहीं ले गई.

‘क्या..?’ प्रोफैसर का मुंह विस्मय से खुला का खुला रह गया था. जब उन्होंने यह बात अपने परिवार के लोगों को बताई तो उन सब को बड़ी हैरानी हुई. सभी को यह बात सम?ा ही नहीं आ रही थी कि आज के इस आपाधापी के दौर में 20 लाख रुपए ठुकरा देने वाली यह लेडी आखिर कौन थी. काफी दिनों तक प्रोफैसर इसी उधेड़बुन में रहे. उन्होंने उस लेडी का पता लगाने की हरसंभव कोशिश की, मगर इस के बारे में कुछ पता नहीं चला.

‘‘आप को कहां तक जाना है, सर,’’ अचानक टीटीई ने आ कर प्रोफैसर महेश की तंद्रा को भंग कर दिया. वे अतीत से वर्तमान में लौट आए. टिकट चैक करने के बाद टीटीई चला गया.

प्रोफैसर महेश ने वह रूमाल उठाया जो शिवानी ने उन्हें देने के लिए प्रोफैसर माधवी को दिया था. उन्होंने रूमाल को पहचानने की कोशिश की. यह शायद वही कढ़ा हुआ रूमाल था जो शिवानी उन्हें देने उन के कमरे पर आई थी. सफेद रंग के उस रूमाल के एक कोने में सुनहरे रंग से इंग्लिश का अक्षर एस कढ़ा हुआ था. एस यानी शिवानी के नाम का पहला अक्षर.

अब प्रोफैसर महेश को डोनर की सारी पहेली समझ में आ गई थी. उन्होंने रूमाल में रखे हुए मुड़ेतुड़े पत्र को खोल कर पढ़ा, लिखा था-

‘‘प्रोफैसर साहब,

‘‘आप का जीवन मेरे लिए बहुत बहुमूल्य है, इसलिए मैं ने अपने जीवन को संकट में डाल कर आप की जान को बचाया. मगर मैं ने ऐसा कर के आप पर कोई एहसान नहीं किया. मुझे तो इस बात की खुशी है कि मैं जिसे हृदय की गहराइयों से प्यार करती थी, उस के किसी काम आ सकी.

‘‘आप की शिवानी.’’

पत्र पढ़ कर प्रोफैसर महेश का मन गहरी वेदना से भर उठा. शिवानी का यह निस्वार्थ प्यार देख कर उन की आंखों से आंसू बहने लगे. उन्होंने शिवानी का दिया हुआ रूमाल उठाया और उस से अपने आंसुओं को पोंछने लगे. ऐसा कर के शायद उन्होंने शिवानी के सच्चे अमर प्रेम को स्वीकार कर लिया था.

हाय सैक्सी: डेजी से दूर हुआ रोहित

कालेज के गेट में ऐंटर करते ही मृणालिनी ने रोहित को देखा तो अचंभे से चिल्लाई, ‘‘हाय रोहित,’’ लेकिन रोहित का ध्यान कहीं और था. उस ने मृणालिनी की ओर देखा भी नहीं और डेजी के पास पहुंच कर बोला, ‘‘हाय डेजी, माई स्वीट हार्ट.’’

मृणालिनी ने देखा तो चौंकी. कितना बदल गया है रोहित. कहां तो स्कूल में मुझे कनखियों से देखता शर्माता था और कहां यह बदला रूप. मृणालिनी और रोहित दिल्ली के एक नामी कालेज में पढ़ते थे. स्कूल में मृणालिनी रोहित से एक क्लास पीछे थी. दोनों साइंस स्ट्रीम से पढ़ाई कर रहे थे. रोहित मृणालिनी के घर से थोड़ी दूरी पर ही रहता था सो कभीकभी नोट्स आदि लेने व पढ़ाई में हैल्प के लिए वह रोहित के घर चली जाती थी. रोहित शर्माता हुआ उस से बात करने में भी हिचकता था. लेकिन कभीकभी उन दिनों भी वह मृणालिनी की सुंदरता की तारीफ करता तो वह सिहर उठती. मन ही मन वह उसे चाहने लगी थी. कई सपने देख बैठी थी रोहित से मिलन के. लेकिन कालेज में ऐडमिशन के बाद से ही रोहित का उस से संपर्क कम होने लगा था. जब मृणालिनी ने भी 12वीं पास कर ली और उसी कालेज में ऐडमिशन लिया तो वह इस बात से अनजान  थी कि रोहित उसे यहीं मिल जाएगा. मृणालिनी ने कालेज में प्रवेश किया तो उसे किसी अन्य लड़की से बतियाते देख जैसे अपना सपना टूटता लगा.

रोहित जिस से बात कर रहा था वह गजब की थी. गोरा रंग, तीखे नयन, लंबे बाल तिस पर धूप का चश्मा और ड्रैस ऐसी कि कोई भी शरमा जाए. फंकी टीशर्ट के साथ निकर में से निकलती उस की सुडौल टांगें और टीशर्ट व निकर के बीच में झांकती आकर्षक नाभि उसे सैक्सुअली अट्रैक्शन दे रही थी. मृणालिनी मन मार कर उस के पास गई और रोहित को पुकारा. रोहित ने मुड़ कर देखा तो पूछने लगा, ‘‘अरी मृणालिनी तुम. इसी कालेज में ऐडमिशन लिया है क्या?’’

‘‘हां,’’ वह इतना ही कह पाई थी कि रोहित डेजी का हाथ पकड़ जाते हुए बोला, ‘‘यह है डेजी, मेरी क्लासमेट. अच्छा, मिलते हैं फिर,’’ और चला गया. ‘कहां तो रोहित उसे देख चमक जाता था और कहां अब इग्नोर करता उस सैक्सी बाला के साथ चला गया. ऐसा क्या जादू है इस में,’ वह सोचने लगी. तभी अमिता ने उसे पुकारा, ‘‘अरे मृणालिनी, क्लास में नहीं चलना क्या?’’

‘‘हां, चलो.’’ कह कर वह अमिता के साथ चल दी. रास्ते में अमिता ने पूछा, ‘‘तुम रोहित को जानती हो क्या?’’

‘‘हां…’’ कुछ रुकते हुए मृणालिनी ने अपनी स्कूली दोस्ती की बात उसे बता दी. अमिता बोली, ‘‘कहां तुम और कहां डेजी, देखा है उस के लुक को, उस की सैक्स अपील को. एक तुम हो मोटा नजर का चश्मा लगा कर सलवारकुरते में बहनजी बन कर आ जाती हो. मैं ने तो तुम्हें कभी जींस में भी नहीं देखा. आजकल पर्सनैलिटी बनाने के लिए सैक्सी लुक चाहिए. रोहित तो वैसे ही फ्लर्ट किस्म का लड़का है. सैक्सुअली अट्रैक्शन के पीछे भागने वाला.

‘‘उस के साथ जो लड़की थी, पता है मिस कालेज है वह. दोनों एक ही क्लास में हैं. पहले रोहित भी शर्मीला था पर धीरेधीरे इतना खुल गया कि फ्लर्ट करने लगा.’’ आज मृणालिनी का मन क्लास में न लगा. उस के मन में एक ही बात कौंध रही थी कि वह कैसे रोहित को पाए. कैसे रोहित के दिल में जगह बनाए. ‘‘चलो, सब चले गए,’’ अमिता ने कहा तो जैसे मृणालिनी नींद से जागी. उस की डबडबाई आंखें उस के दिल का हाल बयां कर रही थीं. अमिता को समझते देर न लगी. वह बोली, ‘‘अभी तक रोहित के बारे में सोच रही हो, छोड़ो उसे बिंदास जिओ.’’

‘‘नहीं अमिता मेरा मन नहीं मानता,’’ मृणालिनी रोंआसी हो गई.

‘‘मृणालिनी, अगर तुम रोहित को पाना चाहती हो तो मौडर्न बनो, खुद में अट्रैक्शन पैदा करो, तुम किसी भी तरह से डेजी से कम नहीं हो. विद्या बालन वाला बहनजीनुमा लुक छोड़ो, आज बिपाशा बनने में कोई हर्ज नहीं देखना, रोहित ही नहीं पूरा कालेज तुम्हारे पीछेपीछे भागेगा.’’ मृणालिनी उदास सी घर पहुंची. हाथमुंह धोते समय बाथरूम में लगे शीशे में खुद को निहारा तो अमित के शब्द उस के कानों में गूंजने लगे. ‘वाकई बहनजी ही तो लगती हूं मैं. ठीक कह रही थी अमिता. सैक्सुअली अट्रैक्शन तो जैसे मुझ में है ही नहीं. इस उम्र में देह आकर्षण ही तो विपरीतलिंगी को अट्रैक्ट करता है. मैं भी बदलूंगी अपने लुक को.’ लंच करते समय उस ने मम्मी से पूछा, ‘‘मम्मी, क्या मैं अपने लिए दोचार अच्छी ड्रैसेज खरीद लूं.’’ मां ने भी मना नहीं किया और शाम को खुद उस के साथ मार्केट गईं. मृणालिनी को सलवारकमीज, पाजामी, लैगिंग्स के बजाय जींसटौप, ट्यूब ड्रैस, शौर्ट्स, निकर जैसी स्टाइलिश ड्रैसेज खरीदते देख मम्मी हैरान हुईं. लेकिन मृणालिनी ने कह दिया, ‘‘आजकल यही सब चलता है. बोल्ड अंदाज न हो तो मम्मी कोई नहीं पूछता कालेज में.’’ मम्मी शांत हो गईं. घर आ कर मृणालिनी एकएक ड्रैस ट्राई करने लगी. शौर्ट ड्रैस ट्राई करते समय उस का ध्यान टांगों के बालों पर गया तो उसे खुद से ही घिन हुई. फिर उस ने कल के लिए जींस और टौप पहनना ही उचित समझा और निर्णय किया कि कल कालेज से आ कर ब्यूटी पार्लर भी जाएगी. मृणालिनी को जींस और टौप में देख उस की सहेलियां हतप्रभ रह गईं. अमिता ने भी देखा तो बोली, ‘‘वाउ, क्या फिगर है यार.’’

मृणालिनी तारीफ सुन फूली न समाई. जब उस ने कालेज के लड़कों को एकटक अपनी तरफ देखते हुए देखा तो उस का हौसला बढ़ा. वह बड़े चाव से रोहित के क्लासरूम के बाहर गई, लेकिन वह कुछ लड़कियों से बातचीत में मशगूल था. जब बहाने से बुलाया तो वह उसे एकटक देखता रह गया. फिर बहाना बनाती मृणालिनी बोली, ‘‘मुझे फर्स्ट ईयर के तुम्हारे नोट्स चाहिए. दोगे क्या?’’ ‘‘हां, ले लेना पर अभी जाओ,’’ उसे इग्नोर करता रोहित बोला तो मृणालिनी को बहुत बुरा लगा. उस ने आ कर अमिता को बताया तो वह भी नाराज हुई.

‘‘अरे, तुम्हें कालेज में भी नोट्स मांगने थे. उसे कौफी पीने चलने को कहती. कैंटीन में खाने चलने को कहती ताकि अपने दिल की बात कह सके,’’ अमिता ने समझाया. ‘‘ठीक है अगली बार देखूंगी,’’ कह वह वहां से चली गई. लेकिन उस ने सोच लिया था कि वह अपने लिए अट्रैक्शन पैदा कर के ही रहेगी. घर आ कर लंच किया और ब्यूटी पार्लर चल दी. टांगबांहों की वैक्सिंग और मैनीक्योरपैडिक्योर करवाया, साथ ही थ्रैडिंग भी. अगले दिन रैड ट्यूब ड्रैस के साथ सीधेसीधे बालों का हेयरस्टाइल बना, साथ में हाईहील सैंडिल पहन कर वह गजब ढाती दिखी. कालेज पहुंची तो दूर से ही उस की चाल, मखमली टांगें, सुंदर बांहें देख सभी दिल थाम बैठे. अमिता ने देखा तो टोक दिया, ‘‘यह क्या हुलिया बना लिया तुम ने,’’ फिर उस का चश्मा उतारती हुई बोली, ‘‘कम से कम इसे तो उतार लेती. ऐसे लगता है जैसे मखमली चादर में टाट का पैबंद लगा दिया हो.’’

‘‘क्या करूं अमिता. इस के बिना ब्लैकबोर्ड पर कुछ दिखेगा नहीं. मैं पढ़ूंगी कैसे? मुझे कालेज की पढ़ाई भी तो करनी है,’’ मृणालिनी बोली.

‘‘तो कौंटैक्ट लैंस लगा लो. जरूरी है मोटा चश्मा लगाना और हां, अगर लगाना ही है तो धूप का चश्मा लगाओ न ताकि देखते ही हर कोई बोले, ‘गोरे गोरे मुखड़े पे कालाकाला चश्मा…’’’ यह बात मृणालिनी की समझ में आ गई थी. अब मृणालिनी ने चश्मे को भी बाय कह दिया. रोज तरहतरह की अटै्रक्टिव ड्रैसेज पहन उस की इमेज भी सैक्सुअल अट्रैक्ट करने वाली बन गई थी. हर कोई उसे मुड़मुड़ कर देखता. उस दिन मृणालिनी रैड ड्रैस में थी. सभी उस की प्रशंसा कर रहे थे. वह खुशीखुशी रोहित के पास गई तो वह भी उसे देखता रह गया. फिर हायहैलो के बाद मृणालिनी बोली, ‘‘रोहित, आज शाम कौफी पीते हुए घर चलें. वहीं से तुम मुझे घर छोड़ देना.’’

रोहित कुछ कहता, इस से पहले ही पास खड़ी डेजी ने उस की बांहों में बांह डाल दी तो वह चुप रह गया. इस पर मृणालिनी को काफी ईर्ष्या हुई. रोहित के लिए उस के दिल में जो प्यार था वह धुंधला पड़ रहा था, अब वह सिर्फ रोहित को डेजी जैसा बन कर दिखाना चाहती थी. रोहित और डेजी को झुकाने का यह अवसर भी उसे जल्द ही मिल गया. दरअसल, मृणालिनी ने अपनी हर ड्रैस में सैल्फी खींचखींच कर कई बार अपनी डीपी चेंज की व फेसबुक पर अपना हर पोज अपलोड किया जिसे काफी लाइक भी मिले. उस दिन उस का फेसबुक पर लाइक के साथ एक कमैंट भी था. ‘तुम मिस कालेज के लिए ट्राई क्यों नहीं करतीं. छा जाओगी.’ मृणालिनी को यह बात जंच गई. उस ने झट से अमिता को फोन किया और मिस कालेज प्रतियोगिता में भाग लेने की इच्छा जताई. अमिता ने बताया, ‘‘इस प्रतियोगिता का सारा अरेंजमैंट तो रोहित ही देख रहा है. तुम उसी से बात करो. हां, अगर डांस में भाग लेना हो तो मैं तुम्हारी हैल्प कर सकती हूं क्योंकि इस बार डांस ग्रुप को कोरियोग्राफ करने वाली हूं मैं.’’

अगले दिन मृणालिनी रोहित से मिली और मिस कालेज कंपीटिशन में भाग लेने की इच्छा बताई. तभी वहां खड़ी डेजी बोल पड़ी, ‘‘अब कौए भी हंस की चाल चलेंगे,’’ और उस की सहेलियां हंस पड़ीं. मृणालिनी को बात चुभ गई. रोहित ने भी इस कंपीटिशन में भाग लेने से मना किया कि यह तुम्हारे बस का नहीं. लेकिन इरादे की पक्की मृणालिनी नाम लिखवा कर ही मानी. फिर वह अमिता के पास गई और डांस प्रोग्राम भी करना चाहा. अब मृणालिनी रोज 2 घंटे डांस की रिहर्सल करती. फिर रैंप पर चलने की प्रैक्टिस और रात को पढ़ाई. साथ ही अपने खानपान, व्यायाम का भी ध्यान रखती. कालेज फैस्टिवल का दिन था. पहले डांस प्रोग्राम था और मृणालिनी का ही पहला कार्यक्रम था. दिल पक्का कर वह स्टेज पर उतरी और डांस शुरू किया, ‘सैक्सी सैक्सी सैक्सी मुझे लोग बोलें, हाय सैक्सी, हैलो सैक्सी क्यों बोलें…’ गाने के साथ उस के स्टैप्स और ड्रैस ने ऐसा धमाल मचाया कि स्टेज से उतरते ही लोग उसे सैक्सी…सैक्सी कहने लगे.

उस के डांस पर पूरा हाल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा. कालेज के फैस्टिवल में अंतिम कार्यक्रम ‘मिस कालेज’ का कंपीटिशन था. सो उसे थोड़ा आराम करने का समय भी मिल गया. उस ने रैंप पर आने के लिए वही रैड ट्यूब ड्रैस चुनी जिस पर सब से ज्यादा लाइक मिले थे. वह इस ड्रैस में गजब की सैक्सुअली अट्रैक्टिव लग रही थी. जब वह रैंप पर उतरी तो उस के गाने व नृत्य के कायल स्टूडैंट्स सैक्सी…सैक्सी… कह उठे. सारा वातावरण हाय सैक्सी… की धुन से सराबोर हो गया. जितनी तालियां मृणालिनी के अट्रैक्शन पर बजीं उतनी किसी अन्य पर नहीं. लिहाजा, उसे ही ‘मिस कालेज’ का ताज पहनाया गया. अगले ही पल जब उसे मिस कालेज की ट्रौफी दी गई तो डेजी देखदेख कर जलन के मारे गढ़ी जा रही थी और ट्रौफी व ताज के साथ अनूठे अंदाज में खड़ी मृणालिनी सब पर बिजलियां गिरा रही थी.

अगले दिन मृणालिनी ने कालेज गेट से ऐंटर किया ही था कि आवाज आई, ‘‘हाय सैक्सी…’’ जानीपहचानी आवाज सुन कर मृणालिनी रुकी तो देख दंग रह गई. उस के पीछे रोहित था.

‘‘अरे, रोहित तुम.’’

‘‘हां, आज तक मैं तुम्हें इग्नोर करता रहा पर तुम ने सिरमौर बन कालेज में नाम कमा मुझे बता दिया कि मैं गलत था. आज शाम कालेज के बाद मेरे साथ कौफी पीने चलोगी. वहीं से साथ घर चलेंगे.’’ ‘‘नहीं, मैं कोई दूध पीती बच्ची नहीं रोहित. कल तक जब तुम एक शर्मीले लड़के थे ठीक था. फिर तुम फ्लर्टी हो गए और कभी इस की बगल तो कभी उस की बगल. मेरी दोस्ती भी भूल गए. याद है सब से पहले तुम्हीं ने मुझे खूबसूरत कहा था लेकिन कालेज में आ कर तुम्हें सिर्फ सैक्सुअल अट्रैक्शन में रुचि रही सो मुझे इग्नोर करते रहे. मैं तुम्हारे पीछे भागती फिरती थी और तुम मेरी ओर देखते भी न थे…’’

अभी मृणालिनी ने अपनी बात पूरी भी नहीं की थी कि पीछे से आवाज आई, ‘‘हाय सैक्सी…’’

‘‘ओह, कपिल तुम,’’ फिर एक नजर रोहित पर डाल कपिल से बोली, ‘‘चलो, आज कौफी हाउस चलते हैं अमिता को भी बुला लेते हैं,’’ कहती हुई मृणालिनी कपिल के साथ चली गई अमिता का धन्यवाद करने जिस ने उसे इस मुकाम तक पहुंचाया था. रोहित ठगा सा दोनों को जाता हुआ देख रहा था.

चोरी का फल: भाग 1- क्या राकेश वक्त रहते समझ पाया?

शिखा पर पहली नजर पड़ते ही मेरे मन ने कहा, क्या शानदार व्यक्तित्व है. उस के सुंदर चेहरे पर आंखों का विशेष स्थान था. उस की बड़ीबड़ी आंखों में ऐसी चमक थी कि सामने वाले के दिल को छू ले.

वह एक दिन रविवार की सुबह मेरे छोटे भाई की पत्नी रेखा के साथ मेरे घर आई. शनिवार को शिखा हमारी बहुराष्ट्रीय कंपनी में नौकरी के लिए इंटरव्यू दे कर आई थी. रेखा के पिता उस के पिता के अच्छे दोस्त थे. मेरी सिफारिश पर उसे नौकरी जरूर मिल जाएगी, ऐसा आश्वासन दे कर रेखा उसे मेरे पास लाई थी.

‘‘सर, मुझे नौकरी की सख्त जरूरत है. आप मेरी सहायता कीजिए, प्लीज,’’ यों प्रार्थना करते हुए उस की आंखों में एकाएक आंसू छलक आए.

अब तक शिखा ने मेरे दिल में अपनी खास जगह बना ली थी. मेरे मन ने कहा कि मैं भविष्य में उस से संपर्क बनाए रखूं.

‘‘मैं पूरी कोशिश करूंगा कि आप का काम हो जाए. इस कागज पर आप जरूरी ब्योरा लिख दें,’’ मैं ने पैड और पेन उसे पकड़ा दिया.

करीब 10 मिनट बाद शिखा रेखा के साथ चली गई, लेकिन इन कुछ मिनटों में उस ने मेरा दिल जीत लिया था.

शिखा को क्लर्क की नौकरी दिलाना मेरे लिए कठिन काम नहीें था. करीब 10 दिन बाद मैं उस की नियुक्ति की अच्छी खबर ले कर शाम को उस के घर पहुंच गया.

वहां मेरी मुलाकात उस के पति संजीव, सास निर्मला व 4 वर्षीय बेटे रोहित से हुई. शिखा की नियुक्ति की खबर सुन घर का माहौल खुशी से भर गया.

शिखा के घर की हर चीज इस बात की तरफ इशारा कर रही थी कि वे लोग आर्थिक रूप से संपन्न नहीं थे. संजीव बातूनी किस्म का इनसान था. उस की बातों से यह भी मालूम हो गया कि उस की स्टौक मार्किट में बहुत दिलचस्पी थी.

कुछ देर बाद संजीव मुंह मीठा कराने के लिए बाजार मिठाई लेने चला गया. मैं ने तब आग्रह कर के शिखा को अपने सामने बैठा लिया.

अपनी सास की मौजूदगी में वह ज्यादा नहीं बोल रही थी. उस से पूछे गए मेरे अधिकतर सवालों के जवाब उस की सास ने ही दिए.

बातोंबातों में मुझे इस परिवार के बारें में काफी जानकारी मिली. संजीव एक प्राइवेट कंपनी में अकाउंटेंट था. उस की पगार अच्छी थी, फिर भी वे लोग भारी कर्जे से दबे हुए थे. शेयर मार्किट में संजीव ने बारबार घाटा उठाया, पर बहुत अमीर बनने की धुन के चलते इस लत ने अब तक उस का पीछा नहीं छोड़ा था.

‘‘सर, आप की कृपा से मुझे नौकरी मिली है और मैं आप का यह एहसान कभी नहीं भूलूंगी. अब दो वक्त की रोटी और रोहित की पढ़ाई का खर्च मैं अपने बलबूते पर उठा सकूंगी,’’ शिखा की बड़ीबड़ी आंखों में मुझे अपने लिए सम्मान के भाव साफ नजर आए.

‘‘शिखा, तुम्हें नौकरी दिलाने वाली बात अब खत्म हुई. इस के बाद तुम ने मुझे ‘धन्यवाद’ कहा तो मैं फौरन उठ कर चला जाऊंगा,’’ अपनी आवाज को मैं ने नाटकीय रूप से सख्त किया, पर मेरे होंठों पर मुसकराहट बनी रही.

‘‘अब नहीं दूंगी धन्यवाद, सर,’’ वह मुसकराई और फिर उठ कर रसोई की ओर चली गई.

कुछ देर बाद बडे़ अच्छे माहौल में हम सब ने चायनाश्ता किया. फिर मैं उन से विदा लेना चाहता था, पर ऐसा संभव नहीं हुआ क्योंकि बेहद अपनेपन के साथ आग्रह कर के शिखा ने मुझे रात का खाना खा कर जाने के लिए रोक लिया.

उस शाम के बाद से मेरा उस घर में जाना नियमित सा हो गया. कुछ दिनों बाद रोहित के जन्मदिन की पार्टी में मैं शामिल हुआ. फिर एक त्योहार आया और शिखा ने मुझे घर खाने के लिए आमंत्रित किया. मैं छुट्टी वाले दिन उन के यहां कुछ न कुछ खानेपीने की चीज ले कर पहुंच जाता. एक बार मेरी कार में सब पिकनिक मना आए. धीरेधीरे इस परिवार के साथ मेरे संबंध गहरे होते चले गए.

चाय पीने के लिए मैं फोन कर के शिखा को अपने कक्ष में बुला लेता. ऐसा अकसर लंच के समय में होता. उस के साथ बिताया हुआ वह आधा घंटा मेरी रगरग में चुस्तीफुर्ती भर जाता.

शिखा जैसी खूबसूरत और खुशमिजाज युवती के साथ सिर्फ मैत्रीपूर्ण संबंध रखना अब मेरे लिए दिन पर दिन कठिन होने लगा था. अगर मैं किसी कार्य में व्यस्त न होता तो वह मेरे खयालों में छाई रहती. हमारे संबंध दोस्ती की सीमा को लांघ कर कुछ और खास हो जाएं, यह इच्छा मेरे मन में लगातार गहराती जा रही थी.

एक दिन अपने कक्ष में चाय पीते हुए मैं ने शिखा से पूछा, ‘‘तुम्हें पता है शिखा, मैं किस दिन को अपने लिए भाग्यशाली मानता हूं.’’

‘‘आप बताओगे नहीं तो मुझे कैसे पता चलेगा,’’ उस ने जवाब सुनने के लिए अपना ध्यान मेरे चेहरे पर केंद्रित कर लिया.

‘‘जिस दिन तुम मेरे घर नौकरी पाने के सिलसिले में आई थीं,’’ मैं ने कहा.

‘‘मेरे लिए तो वह यकीनन महत्त्वपूर्ण दिन था,’’ शिखा बोली, ‘‘पर आप क्योें उसे अपने लिए भाग्यशाली मानते हैं?’’

‘‘वह दिन मेरे जीवन में न आया होता तो आज मैं तुम्हारे जैसी अच्छी दोस्त कैसे पाता.’’

मेरे स्वर की भावुकता को पहचान कर शिखा नजरें झुका कर फर्श को निहारने लगी.

‘‘तुम मेरी अच्छी दोस्त हो न, शिखा?’’ यह सवाल पूछते हुए अपने गले में मैं ने कुछ अटकता सा महसूस किया.

उस ने मेरी तरफ देख कर एक बार सिर हिला कर ‘हां’ कहा और फिर से नीचे फर्श देखने लगी.

‘‘दुनिया वाले कुछ न कुछ गलत हमारे संबंध में देरसवेर जरूर कहेंगे, पर उस कारण तुम मुझ से दूर तो नहीं हो जाओगी?’’ मैं ने व्याकुल भाव से पूछा.

‘‘जब हमारे दिलों में पाप नहीं है तो लोगों की बकवास को हम क्यों अहमियत देंगे?’’ शिखा ने मजबूत स्वर में मुझ से उलटा सवाल पूछा, ‘‘बिलकुल नहीं देंगे.’’

मैं ने अपना दायां हाथ बढ़ा कर उस के हाथ पर रखा और उस की आंखों में आंखेें डाल कर बोला, ‘‘तुम मुझे अपना समझ कर हमेशा अपने दुखदर्द मेरे साथ बांट सकती हो.’’

‘‘थैंक्स,’’ उस के होंठों पर उभरी छोटी सी मुसकान मुझे अच्छी लगी.

उस के हाथ पर मेरी पकड़ थोड़ी मजबूत थी. उस ने अपना हाथ आजाद करने का प्रयत्न किया, पर असफल रही. कुछ घबराए से अंदाज में उस ने मेरे चेहरे पर खोजपूर्ण दृष्टि डाली.

आगे पढ़ें- शिखा को मेरे प्रस्ताव में…

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