एक नारी ब्रह्मचारी- भाग 3 : पति वरुण की हरकतों पर क्या था स्नेहा का फैसला

घर आ कर उस ने किसी को कुछ नहीं बताया, क्योंकि जानती थी कि उस का घर से निकलना बंद करवा दिया जाता. हो सकता था कि उस का स्कूल भी छुड़वा दिया जाता. इसलिए उसे चुप रहना ही बेहतर लगा. लेकिन आज सोचती है तो लगता है कि गलत किया. मारना चाहिए था पकड़ कर उसे, शोर मचाना चाहिए था, ताकि लोगों को पता तो चलता कि वह कितना गंदा इनसान है?

लेकिन एक डर कि उस की बदनामी हो जाएगी. हमारे समाज में दोषी वह नहीं होता, जो लड़की के साथ छेड़छाड़ करता है, उस का बलात्कार करता है, बल्कि दोषी तो लड़की होती है, क्योंकि उसे घर से नहीं निकलना चाहिए था. हमारे समाज में दोषी आजाद घूमते हैं और निर्दोष को घर में कैद कर दिया जाता है.

दरवाजे की घंटी से स्नेहा अतीत से वर्तमान में आ गई. दरवाजा खोला।तो सामने वरुण खड़ा मुसकरा रहा था.

“आ गए तुम…? और ये हाथ में क्या है?” वरुण के हाथ में लाल पन्नी से लपेटा एक पैकेट देख कर स्नेहा चिहुक उठी.

“अब अंदर भी आने दोगी या यहीं खड़ेखड़े सवालजवाब करोगी,” वरुण ने कहा, तो स्नेहा जरा साइड हो गई.

“खोल कर देखो तो इस में क्या है,” लाल पन्नी से लपेटा पैकेट स्नेहा की ओर बढ़ाते हुए वरुण उस के चेहरे के आतेजाते भावों को पढ़ने लगा.

“वाउ वरुण… इस में तो आईफोन है… मेरे लिए?” स्नेहा ने पूछा, तो आंखों के इशारे से वरुण बोला की हां ये फोन उस के लिए ही है.

‘‘ओह्ह, आई लव यू सो मच वरुण,” कह कर उस ने वरुण के गालों को चूम लिया.

“लेकिन, यह मोबाइल तो बहुत महंगा लगता है?कितने का आया है बताओ?”

“तुम आम खाओ न, गुठली क्यों गिनती हो ?” वरुण ने कहा.

“गिनूंगी, बताओ कहां से आए इतने पैसे…?” स्नेहा तो वरुण के पीछे ही पड़ गई कि आखिर अचानक से उस के पास इतने सारे पैसे कहां से आ गए?

“बोलो न वरुण, नहीं तो मुझे नहीं चाहिए यह मोबाइल… रखो अपना मोबाइल अपने पास,” स्नेहा ने मुंह बनाया.

“अरे भई, एरियर मिला था, उसी पैसे से ले कर आया हूं. तुम बोल रही थी न कि तुम्हारा मोबाइल ठीक से काम नहीं कर रहा है. बात करतेकरते कट जाता है, तो इसलिए नया ले आया और अगले महीने तुम्हारा जन्मदिन भी तो आ रहा है न, तो गिफ्ट समझ कर रख लो,” वरुण ने कहा, तो स्नेहा उस से लिपट गई यह बोल कर कि वह उस का कितना खयाल रखता है.

“हम और तुम… बातबात पर मुझे गालियां देती रहती हो. जरा किसी लड़की को देख क्या लेता हूं, आंखें दिखाने लगती हो, जबकि जानती हो कि मैं तुम से कितना प्यार करता हूं. मैं तो एक नारी ब्रहचारी हूं.“

“अच्छा ठीक है, मैं तुम्हें नहीं डाटूंगी, लेकिन तुम भी ऐसीवैसी हरकतें मत किया करो,” बोल कर स्नेहा हंस पड़ी.

स्नेहा जानती है कि वरुण उसे कभी धोखा नहीं दे सकता. लेकिन डर इस बात का है कि कोई उसे बेवकूफ न बना दे. कितनों को देखा है, लड़कियों के चक्कर में कंगाल बनते हुए.

सुबह वरुण को औफिस भेज कर रोज की तरह वह अपने काम में लग गई.

“सर, मे आई कम इन… वरुण के कैबिन के बाहर खड़ी एक महिला बोली.

वरुण किसी से फोन पर बात करने में व्यस्त था, इसलिए बिना देखे ही उस ने इशारों से उसे अंदर आने को बोल दिया.

“थैंक यू सर,” उस महिला की मधुर खनकती आवाज जब वरुण के कानों में पड़ी और उस ने अपनी नजरें उठा कर देखा तो बला की खूबसूरत उस महिला पर वरुण की नजर टिक गई. उस ने अपनी जिंदगी में पहली बार इतनी खूबसूरत महिला देखी थी. बड़ीबड़ी कजरारी नशीली आंखें, गुलाब की पंखुड़ियों से रसभरे होंठ, रेशमी बाल, जो उस के गोरेगोरे मुखड़े पर अठखेलियां करते हुए कभी उस की आंखों को, कभी गालों को तो कभी उस के गुलाब सी पंखुड़ियों से अधरों को छू रही थी और जिसे वह बारबार अपने कोमल हाथों से हटाने का असफल प्रयास कर रही थी.

“सर, मैं रूपम व्यास हूं,” जब उस महिला ने अपना नाम बताया, तो वरुण की सुस्ती तुरंत फुरती में बदल गई.

“बोलिए मैडम, मैं आप की क्या सहायता कर सकता हूं?‘‘ रूपम के चेहरे पर से नजरें हटाते हुए वरुण ने कहा.

“सर, मुझे अपना ब्यूटीपार्लर खोलने के लिए बैंक से 10-12 लाख रुपए का लोन चाहिए,” रूपम बोले जा रही थी और वरुण उस की मादक और मोहक खुशबू में सराबोर हुए जा रहा था. उस का मन कर रहा था कि वह यों ही बोलती रहे और वह ऐसे ही उसे निहारता रहे.

“सर, क्या मुझे बैंक से लोन मिल सकता है?”

‘‘हां… हां, क्यों नहीं मैडम. हम यहां बैठे किसलिए हैं, आप की सेवा में… मेरा मतलब कि आप जैसों की सेवा के लिए ही न,” उस की आंखों में झांकते हुए वरुण बोला, “वैसे, लोन तो आप को मिल जाएगा, कोई समस्या नहीं है. लेकिन इस के लिए गारंटर का होना जरूरी है. ऐसे हम किसी को लोन नहीं दे सकते,” लेकिन रूपम कहने लगी कि वह इस शहर में अभी कुछ महीने पहले ही रहने आई है. यहां किसी को ज्यादा नहीं जानती.

रूपम आगे और कुछ बोलती कि वरुण बीच में ही बोल पड़ा, “आप की बात सही है मैडम, लेकिन यह तो बैंक का रूल है. हम बिना गारंटर के किसी को भी लोन नहीं दे सकते,“ बोल कर वह हंस पड़ा.

“ठीक है सर, तो फिर मैं चलती हूं,” खड़ी होती हुई रूपम बोली. वह समझ गई कि इस बैंक में उसे लोन नहीं मिलने वाला, इसलिए उसे अब किसी दूसरे बैंक का रुख करना पड़ेगा.

“क्या बात है, आज बड़े चुपचुप लग रहे हो, सब ठीक तो है न?” खाना खाते समय वरुण को चुप देख कर स्नेहा ने पूछा, तो वह यह बोल कर कमरे की तरफ बढ़ गया कि आज औफिस में काम ज्यादा था, इसलिए जरा थकावट हो रही है.

‘बेचारा, औफिस में पूरे दिन खटता रहता है और मैं पागल फिर भी इस से लड़ती रहती हूं. कितनी बुरी हूं मैं भी,’ अपने मन में ही सोच स्नेहा ग्लानि से भर उठी. लेकिन वरुण यह सोच कर गुस्से से भर उठा कि वह भी न, एक नंबर का गधा है. इतनी सुंदर औरत खुद चल कर उस के पास आई और वह उसे इतनी आसानी से जाने दिया. हाऊ केन? और कुछ भी तो नहीं जानता वह उस के बारे में कि वह कौन है, कहां रहती है? अरे, कम से कम उस का फोन नंबर तो ले लिया होता,‘ लेकिन अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत. और गारंटर का क्या है, अपने किसी दोस्त को बना देता या खुद मैं भी तो बन सकता था न? अरे, कौन सा वह बैंक के पैसे ले कर भाग जाती? सही कहती है स्नेहा, मैं ने पिछली रोटी खाई है, तभी मेरा दिमाग सही समय पर काम नहीं करता,’ अपने मन में ही सोच वरुण पछतावे से भर उठा. रात में कितनी देर तक उसे नींद नहीं आई. फिर जाने कब उस की आंख लग गई. सुबह स्नेहा ने उठाया तब जा कर उस की आंख खुली.

 

एक नारी ब्रह्मचारी- भाग 2: पति वरुण की हरकतों पर क्या था स्नेहा का फैसला

कभीकभी वरुण का व्यवहार स्नेहा के लिए इतना एम्ब्रेसिंग हो जाता है कि वही शर्म से गड़ जाती है. अब वह कोई बच्चा तो है नहीं, जो दोचार थप्पड़ लगा कर समझा दिया जाए? उस दिन अपने दोस्त की वेडिंग एनिवर्सरी में कैसे वह उस खूबसूरत महिला के साथ शराब के नशे में झूमने लगा था. यह भी नहीं सोचा कि उस की इस हरकत से स्नेहा को कितना बुरा लग रहा होगा. और वह औरत भी कितनी बेशर्म थी, जो वरुण की बांहों में लिपटी मजे से थिरक रही थी. कौन थी वो औरत? जो भी हो, पर उसे देख कर लग नहीं रहा था कि वह शादीशुदा है. वैसे, अब कहां पता चल पाता है कि उक्त महिला शादीशुदा है या नहीं. क्योंकि सिंदूर, चूड़ियां और मंगलसूत्र पहनना तो अब बीते जमाने की बात हो गई.

आज की महिलाएं काफी मौडर्न बन चुकी हैं. वैसे, इस बात से स्नेहा को भी कोई फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि वह खुद शादी का टैग लगा कर घूमना पसंद नहीं करती. लेकिन हां, जब उसे किसी पार्टी में जाना होता है तो कभीकभार स्टाइल के लिए मांग में जरा सा सिंदूर भर लेती है. वैसे भी, करीना कपूर हो, दीपिका पादुकोण या अनुष्का शर्मा, सभी शादीशुदा हीरोइनें बस फैशन के लिए ही तो मांग में सिंदूर भरती हैं.

वैसे, वरुण को भी इन सब बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता. वह तो खुद कहता है, जरूरत क्या है यह सब करने की. खुल कर जियो यार. बचा हुआ खाना फ्रिज में रखते हुए स्नेहा सोचने लगी कि वरुण की हर बात सही है, पर उस का औरतों को घूरना, उस के साथ फ्लर्ट करना उसे जरा भी नहीं पसंद. तभी पीछे से आ कर वरुण ने उसे पकड़ लिया और कान में फुसफुसाते हुए बोला,
‘मेरी जान, चलो न. कितनी देर लगा रही हो. तुम्हारे बिना नींद नहीं आ रही है मुझे,’ अचानक से वरुण की पकड़ से स्नेहा सिहर उठी. मन तो उस का भी मचला, पर एकदम से उस ने अपना रुख बदल लिया.

“ऊंह… छोड़ो मुझे. और मेरे पास क्यों आए हो…?जाओ न अपनी उन महिला दोस्तों के पास, जिन के साथ हमेशा मोबाइल में चिपके रहते हो?” बोल कर स्नेहा ने कुहनी मारी, तो वरुण ने और कस कर उसे अपनी बांहों में जकड़ लिया.

“छोड़ो न वरुण, मुझे नहीं अच्छा लगता ये सब. तुम बड़े वो हो…” लेकिन उस की बात पूरी होने से पहले ही वरुण ने उस के मुंह पर उंगली रख दी और उसे अपनी गोद में उठा कर कमरे में ले गया और स्नेहा कुछ न बोल पाई.

सुबह स्नेहा के चेहरे पर न तो कोई गुस्सा था और न ही कोई शिकवाशिकायत, बल्कि वह तो गुनगुनाते हुए अपने वरुण के लिए अदरकइलायची वाली चाय बना रही थी. अपनी प्यार भरी बातों से आज फिर वरुण ने अपनी भोलीभाली पत्नी को शीशे में उतार लिया था.

वरुण को औफिस भेज कर स्नेहा किचन के बाकी काम निबटाने लगी. तब तक कमला भी आ गई. कमला चुप नहीं रह सकती कभी भी. काम करते हुए ही पटरपटर बोलते रहना उस की आदत है.

कमला, कमला नहीं, बल्कि एक चलताफिरता टेपरेकौर्डर थी. आसपड़ोस के घरों में क्या हो रहा है, किस पतिपत्नी के बीच मनमुटाव चल रहा है, किस सासबहू में टंटा हुआ, किस की बेटी भाग गई? सब रेकौर्ड कर के रखती है और जाजा कर दूसरे घरों में सुनाती है. काम करते हुए ही रस लेले कर वह आसपड़ोस के घरों की कहानियां बोलती रहती है और सब बड़े प्यार से सुनते हैं.

कमला काम करने के तो पैसे लेती ही है, रसीली खबरें सुनाने के भी उसे कुछ न कुछ मिल ही जाता है. खुश हो कर कोई उसे अपनी अच्छीभली साड़ियां, सूट दे देती हैं, तो किसी के घर से पुरानी लिपस्टिक, नेल पालिश या मेकअप का सामान मिल जाने पर वह झूम उठती है. अब दे भी क्यों न, जब बिना मेहनत किए दूसरेतीसरे घरों का ‘आंखोंदेखा हाल’ जो सुनने को मिल जाता है तो… इनसानों की फितरत में है दूसरों के घरों में ताकझांक करना. लोग क्या खाते हैं, क्या पहनते हैं, कैसे रहते हैं, उन की दिनचर्या क्या है? जानने की लोगों में बड़ी उत्सुकता रहती है. लेकिन खुद के घरों में क्या हो रहा है, यह उन्हें खुद पता नहीं होता है.

स्नेहा भी कमला के आने का बेसब्री से इंतजार करती, ताकि आसपड़ोस की चटपटी खबरें सुनने को मिल सकें.अपनी आदत के अनुसार आते ही कमला शुरू हो गई.

“क्या बात कर रही है कमला? मिश्राइन चाची का अपनी बहू से झगड़ा हुआ? अच्छा… बहू उन्हें अब अपने साथ नहीं रखना चाहती? हाय, क्या जमाना आ गया है देखो तो… लेकिन, वह तो अपनी बहू की बड़ाई करते नहीं थकती थी. जब देखो, मेरी बहू ये, मेरी बहू वो,” स्नेहा ने मुंह बिचकाया, तो कमला कहने लगी, “अरे दीदी, वह सब तो दिखावा था, असल में सासबहू एकदूसरे का मुंह तक देखना नहीं चाहती हैं. सास कहती है कि निकल जा इस घर से… और बहू कहती है कि तू निकल बुढ़िया, हम क्यों निकलें?

“सच कहूं दीदी, सही हुआ है उस मिश्राइन चाची के साथ… उस बुढ़िया ने अपनी बड़ी बहू का जीना हराम कर रखा था, तो देखो, मिल गया न सेर को सवा सेर.

‘‘अरे दीदी, इस मिश्राइन चाची को छोड़ो. मेनका मैडम के बारे में सुनो. अरे वही, पार्लर वाली.‘‘

“हां… हां, बता न क्या हुआ उस के साथ?” स्नेहा ने सांस रोक कर पूछा.

“दीदी, सुना है कि उस के फेशियल से किसी को रिएक्शन हो गया. चेहरा सूज कर लाल हो गया बेचारी का. वह औरत तो मेनका मैडम को पुलिस में ले जाने की धमकी देने लगी.‘‘

“ये क्या कह रही है तू कमला? पर तुझे यह सब कैसे पता चला?” हैरानी से स्नेहा बोली.

“आप को तो पता ही है कि मेनका मैडम ने मुझ पर पार्लर से सामान चोरी करने का इलजाम लगाया था? हां, तो तभी से मैं ने उन के घर काम करना छोड़ दिया. लेकिन मेरी ही बस्ती की एक औरत उस के घर काम करने जाती है. उस ने ही बताया कि वह महिला मेनका मैडम पर केस करने जा रही थी. फिर मेनका मैडम ने उस औरत के सामने हाथपैर जोड़े, अपने बच्चों का वास्ता दिया, तब जा कर वह रुकी. पता नहीं, कुछ पैसे भी दिए होंगे शायद उसे. तभी तो वह पुलिस के पास नहीं गई. अच्छा हुआ, सारी बेईमानी एक बार में निकल गई. सच कहती हूं दीदी बड़ा मजा आया सुन कर कि उस की सारी अकड़ टांयटांय फुस हो गई,” एक लंबी सांस छोड़ते हुए विजयी मुसकान के साथ कमला बोली, “हम्म… अपनेआप को बड़ी श्रीदेवी समझती थी,” कमला की बात पर स्नेहा की हंसी छूट गई.

वैसे, स्नेहा को भी खूब मजा आ रहा था मेनका की बुराई सुन कर. उस के घमंडी व्यवहार के कारण ही तो स्नेहा ने उस का पार्लर जाना छोड़ दिया था.

“और मेनका मैडम के पति तो एकदम गिरा हुआ इनसान है,” कमला फिर शुरू हो गई, “आज सुबह जब मैं काम पर आ रही थी, तब वह मुझे ऐसे घूरने लगा कि क्या कहूं. ऐसा लग रहा था जैसे खा ही जाएगा. मैं भी उस के सामने थू कर आगे बढ़ गई. अच्छा किया न दीदी? ऐसे लोगों के साथ ऐसा ही व्यवहार करना चाहिए,” बोल कर कमला जिस तरह से हंसने लगी, स्नेहा को अच्छा नहीं लगा.

“सच कहूं, ये मर्दजात बड़े छिछोरे होते हैं. औरत या लड़की देखी नहीं कि इन के मुंह से लार टपकने लगती है.‘‘

“अच्छा… अच्छा, चुप हो जा अब, बहुत बोलती है तू,” स्नेहा ने डपटा, तो वह चुप हो गई. लेकिन स्नेहा का सिर भारी होने लगा.

“सुन, तेरा काम पूरा हो जाए तो एक कप चाय बनाती जाना. मेरा सिर भारी हुआ जा रहा है,” बोल कर स्नेहा किताब उठा कर उस के पन्ने पलटने लगी. लेकिन उस के चेहरे के आगे उस स्कूटी वाली लड़की का चेहरा नाचने लगा, जिसे वरुण गंदी नजरों से घूर रहा था और वह उस से बचने की कोशिश कर रही थी.

‘उस लड़की का मन भी तो वरुण के मुंह पर थूकने का कर रहा था?’ सोच कर स्नेहा शर्म से गढ़ गई. अपनी जिंदगी में हर एक लड़की को एक न एक बार इस सिचुएसन से गुजरना ही पड़ता है. कभीकभी तो करीबी दोस्त या परिवार का ही कोई सदस्य लड़कियों का शोषण करता है और वह कुछ बोल नहीं पाती है. एकाएक स्नेहा को वर्षों पुरानी बात याद हो आई और उस का मन कड़वाहट से भर उठा.

वह और उस की दोस्त मालती एक ही स्कूल में साथ पढ़ती थीं. दोनों का साथ आनाजाना, पढ़ना होता था. चूंकि दोनों का घर आसपास ही था, तो अकसर दोनों एकदूसरे के घर भी आयाजाया करती थीं. लेकिन उसे बुरा लगता, जब मालती का भाई उसे गंदी नजरों से घूरता. वह तो उसे अपने भाई की तरह मानती थी, लेकिन वह उस पर गंदी नजर रखता था.

एक बार अकेले पा कर वह स्नेहा के साथ गंदी हरकतें करने लगा. उसे यहांवहां छूने लगा. स्नेहा चिल्लाती रही, ‘भैया छोड़ो मुझे,’ मगर वह उस के स्तन को दबाता रहा. तब स्नेहा 15 साल की थी. कितनी मुश्किल से वह वहां से अपनी जान बचा कर भागी थी, वही जानती है.

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एक तरफ निरुपमा उस की प्रेमिका, उस के सुखदुख की सच्ची साथी, हमदर्द, जिस ने उस के लिए अपना सब कुछ समर्पित कर दिया और बदले में कुछ नहीं चाहा था. समाज भले ही उसे मोहित की रखैल कह कर पुकारे पर मोहित स्वयं जानता था कि यह सत्य से परे है. रखैल शब्द में तो कई अधिकार निहित होते हैं. उसे रखने के लिए तो एक संपूर्ण व्यवस्था की आवश्यकता होती है. रोटी, कपड़ा, मकान सभी कुछ जुटाना होता है. बस एक वैधता का सर्टिफिकेट ही तो नहीं होता, लेकिन क्या इतना आसान होता है रखैल रखना?

पर मोहित के लिए आसान था सब कुछ. उस के पास धनदौलत की कमी नहीं थी. वह चाहता तो निरुपमा जैसी 10 रख सकता था. पर निरुपमा स्वाभिमानी, आत्मनिर्भर स्त्री थी. वह स्वयं के बलबूते पर जीवनयापन करने का माद्दा रखती थी. वर्षों से सिंचित इस संबंध को एक ही झटके में नकारना मोहित के लिए आसान नहीं था.

दूसरी तरफ थी दीप्ति, जो विधिविधान से मोहित की पत्नी बन उस के जीवन में आई थी. पति के सुख में सुख और दुख में दुख मानने वाली दीप्ति ने कभी अपने ‘स्व’ को अस्तित्व में लाने की कोशिश ही नहीं की. जब परस्त्री की पीड़ा दीप्ति के चेहरे पर आंसुओं के रूप में हावी हो जाती, तो मोहित तमाम ऊंचीनीची विवशताओं का हवाला दे कर उसे शांत कर देता.

वर्षों से निरुपमा और दीप्ति के बीच खुद को रख दोनों में बखूबी संतुलन कायम किया था मोहित ने. स्वयं को दोनों की साझी संपत्ति साबित कर दोनों का विश्वास हासिल करने में सफल रहा था वह. नीति को हाशिए पर रख नियति का हवाला दे कर मोहित स्वयं के अपराधबोध को भी मन ही मन साफ करता रहा था.

इस वक्त मोहित औफिस की चेयर पर आगे की ओर फिसल कर, पैर पसारे, आंखें मूंदे विचारों में खोया था… काश ऐसा होता… काश वैसा होता.

कालेज में पढ़ने वाला उत्साही, जोशीला, गठीला, सजीला मोहित सब को अपनी ओर आकर्षित करने का सामर्थ्य रखता था. उन दिनों बरसात का मौसम था. कालेज की शुरुआत के दिन थे वे, जब कालेज में पढ़ाई कम मस्ती ज्यादा होती है. एक दिन मोहित अपने मित्र रोहन के साथ कालेज से दोपहर 2 बजे निकला, तो बारिश की तेज झड़ी शुरू हो गई. अपनी मोटरसाइकिल को किसी पेड़ की ओट के नीचे रोकने से पहले ही मोहित और उस का मित्र दोनों ही पूरी तरह भीग गए. अब रुकने से क्या फायदा, हम भीग तो चुके हैं सोच कर मोहित ने रोहन को उस के स्टौप पर छोड़ा व अपने घर का रुख किया.

वह अगले बस स्टौप से ज्योंही आगे निकला. अचानक उस की नजरें बस स्टौप पर खड़ी एक छुईमुई सी लड़की पर पड़ीं. उसे लगा, जैसे इसे कहीं देखा है. उस ने तुरंत ब्रेक लगा कर मोटरसाइकिल मोड़ी व पलट कर बस स्टौप तक आ गया. छुईमुई सी लड़की घबरा कर उसे ही देख रही थी. पुराने टूटे बस स्टाप से टपकते पानी और हवा के झोंकों के कारण पानी की बौछारें उसे बुरी तरह भिगो चुकी थीं. तेज बारिश और बस स्टौप का सन्नाटा उस के अंदर भय पैदा कर रहा था. अपने पर्स को

दोनों हाथों से सीने से चिपकाए वह सहमी हुई खड़ी थी.

मोहित ने पास आते ही पहचान लिया कि यह लड़की तो उसी के कालेज की है. 2-4 दिन से उस ने यह नया चेहरा कालेज में देखा था.

‘‘ऐक्सक्यूज मी… मे आई हैल्प यू?’’ मोहित ने अदब से पूछा.

पर सहमी सी आवाज में प्रत्युत्तर मिला, ‘‘नो थैंक्स… मेरी 12 नंबर की बस आने ही वाली है…’’

नए शहर में अनजान व्यक्ति से दूर रहने की मम्मी की हिदायतें उसे याद आ गईं. फिर ये तो लड़का है, पता नहीं इस के मन में क्या हो. आजकल चेहरे से तो सभी शरीफ नजर आते हैं… मन ही मन वह सोचने लगी.

‘‘12 नंबर बस यानी संचार नगर? मैं

वहीं जा रहा हूं… चलिए, आप को छोड़ दूं… इतनी बारिश में अकेली कब तक खड़ी

रहेंगी आप?’’

मोहित का उद्देश्य केवल मदद करने का ही था, पर शायद अब भी विश्वास नहीं जम पाया तो लड़की ‘न’ में गरदन हिला कर दूसरी ओर देखने लगी.

लड़की की मासूमियत पर मोहित को तरस आ रहा था और हंसी भी. मैं क्या इतना लोफर, आवारा नजर आता हूं… उस ने मन ही मन सोचा और मुसकरा कर अपनी मोटरसाइकिल वहीं खड़ी कर दी व स्वयं भी बस स्टौप के नीचे खड़ा हो गया.

लड़की को संशय भरी निगाहों से अपनी ओर देखते ही वह बोल पड़ा, ‘‘12 नंबर बस आने तक तो खड़ा हो सकता हूं? पूरी सड़क सुनसान है, आप मुसीबत में पड़

सकती हैं यहां पर. चिल्लाने पर एक परिंदा भी नहीं आएगा.’’

सुन कर लड़की ने कोई भाव व्यक्त नहीं किया व चुप्पी साधे बस आने की दिशा की ओर टकटकी लगाए देखती रही. ज्यादा प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ी उसे. 5 मिनट में ही 12 नंबर बस आ गई और वह बस में चढ़ गई. बस में चढ़ते ही उस ने पलट कर मुसकरा कर धन्यवाद भरे भाव से मोहित की ओर ऐसे देखा, जैसे क्षण भर पूर्व मोहित के साथ शुष्क व्यवहार के लिए माफी चाहती हो. बस के गति पकड़ते ही मोहित ने भी प्रत्युत्तर में अविलंब अपना हाथ लहरा दिया.

यही थी मोहित और निरुपमा की पहली भेंट, जिस में दोनों एकदूसरे का नाम भी नहीं जान पाए थे. 2 दिन बाद ही अपार्टमैंट के छठे माले से मोहित लिफ्ट से जैसे ही नीचे उतरा, तो सामने की सीढि़यों से नीचे उतरती उस अनजान लड़की को देख कर सुखद आश्चर्य से भर गया.

‘‘अरे, आप यहां?’’ लड़की ने मुसकरा कर पूछा. आज उस के चेहरे पर उस दिन वाले डर और असुरक्षा के भाव नहीं थे.

‘‘हां, मैं इसी अपार्टमैंट के छठवें माले पर रहता हूं. मेरा नाम मोहित है… मोहित साहनी. मैं बी.कौम. फाइनल ईयर का स्टूडैंट हूं आप के ही कालेज में. पर आप यहां कैसे?’’

‘‘मैं भी इसी अपार्टमैंट के दूसरे माले पर रहती हूं… निरुपमा दास… बी.एससी. प्रथम वर्ष में इसी साल प्रवेश लिया है. दरअसल, हमें यहां आए अभी 2 ही हफ्ते हुए हैं.’’

‘‘ओह… मतलब इस शहर में आप लोग नए हैं. उस दिन ठीक से पहुंच गई थीं आप?’’ मोहित ने पूछा तो निरुपमा ने मुसकरा कर हामी भर दी.

‘‘दरअसल, उस दिन आप अपरिचित थे… फिर नए शहर में अनजान व्यक्ति पर इतनी जल्दी भरोसा नहीं किया जा सकता न…’’ निरुपमा ने सफाई देते हुए कहा.

‘‘हां ये तो है… वैसे अब तो हम अपरिचित नहीं हैं… आप यदि कालेज जा रही हैं, तो मेरे साथ चल सकती हैं.’’

‘‘आज तो नहीं, बस स्टौप पर मेरी सहेली मेरा इंतजार कर रही होगी,’’ निरुपमा ने घड़ी देखते हुए मुसकरा कर कहा और निकल गई.

अपार्टमैंट में होने वाले कार्यक्रमों के दौरान मोहित और निरुपमा का परिवार निकट आ गया. दोनों का एकदूसरे के घर आनाजाना भी शुरू हो गया. मोहित और निरुपमा की मित्रता धीरेधीरे तब और अधिक परवान चढ़ी, जब दोनों के पिताओं में दोस्ती प्रगाढ़ हो गई. दरअसल, दोनों के पिताओं के बीच एक कौमन फैक्टर था शतरंज, जो दोनों को निकट ले आया था. अकसर किसी न किसी एक के घर शतरंज की बाजी लग जाती थी और एकसाथ मिलबैठ कर खातेपीते और मौजमस्ती करते.

दास दंपती की 2 बेटियां थीं, निरुपमा और उस से 5 वर्ष छोटी अनुपमा. मोहित अपने मांबाप का इकलौता बेटा था. दोनों परिवार के बीच संबंध गहराते जा रहे थे. पारिवारिक निकटता, उम्र का प्रभाव, अधिक सान्निध्य जैसी परिस्थितियां अनुकूल थीं. नतीजतन मोहित और निरुपमा के बीच प्रेमांकुर तो फूटने ही थे. दोनों परिवारों के बीच के ये संबंध तब अचानक टूट गए, जब मोहित के पिता ने उस का रिश्ता कहीं और तय कर दिया.

निरुपमा ने सुना तो वह चुप हो गई, पर उसे विश्वास था मोहित पर कि वह इस रिश्ते से इनकार कर देगा. मोहित ने भरसक प्रयास किया पर पिताजी अड़े रहे.

‘‘मैं मेहराजी से वादा कर चुका हूं. इसी भरोसे पर वे अपना अगला कौंट्रैक्ट अपनी कंपनी को सौंप चुके हैं. अब बिना वजह मना नहीं किया जा सकता. मेहराजी की बेटी दीप्ति पढ़ीलिखी, सुंदर और समझदार लड़की है. फिर मना करने के लिए कोई जायज वजह भी तो हो.’’

निरुपमा वजह तो थी पर मोहित के पिता के लिए विशेष वजह नहीं बन सकी.

‘‘प्यारव्यार इस उम्र में उठने वाला ज्वारभाटा है. यह जीवन का आधार नहीं बन सकता. प्यार तुम्हारा पेट नहीं भरेगा मोहित. थोड़ा व्यावहारिक बन कर सोचना और जीना सीखो. तुम्हें मेरे साथ काम शुरू किए अभी केवल 6 माह हुए हैं. बिजनैस के गुर अभी तुम ने सीखे ही कितने हैं? मेहरा से मिला कौंट्रैक्ट कोई ऐसावैसा नहीं है, बल्कि लाखों का प्रोजैक्ट है. तुम खुद सोचो इस बारे में. निरुपमा से शादी करोगे तो तुम्हें मेरे बिजनैस में से एक कौड़ी भी नहीं मिलेगी. तुम्हें मुझ से अलग हो कर कमानाखाना और जीना होगा. अगर दम है तो अपना रास्ता नाप सकते हो और यदि समझदार हो तो मेरे खयाल से अपने पैर पर खुद कुल्हाड़ी मारने का काम नहीं करोगे.’’

न जाने मोहित पर पिताजी की उन बातों का क्या प्रभाव रहा कि उस ने उसी दिन से निरुपमा से कन्नी काट ली.

निरुपमा के लिए यह सदमा बरदाश्त से बाहर था. रोरो कर बेहाल हो गई वह. बेटी की खुशियों की खातिर दास दंपती अपने स्वाभिमान को ताक पर रख कर मोहित के घर अपनी झोली फैलाए पर सिवा दुख और जिल्लत के उन्हें कुछ हासिल नहीं हुआ.

निरुपमा ने स्वयं को कमरे में बंद कर लिया. बाहर आनाजाना, मिलनाजुलना, हंसनाबोलना सब बंद. कुछ दिनों में दुख से उबर जाएगी, यही सोचा था दास दंपती ने. पर दुख और सदमे से निरुपमा अपना मानसिक संतुलन खो बैठी फिर शुरू हुआ मानसिक चिकित्सालयों के चक्कर काटने का सिलसिला. पूरे 2 साल बाद निरुपमा की दिमागी हालत में सुधार हो पाया था. धीरेधीरे सामान्य स्थिति की ओर लौट रही थी वह. उस के होंठों पर लगी चुप्पी धीरेधीरे खुलने लगी और उस ने पुन: स्वयं को कालेज की गतिविधियों में व्यस्त कर लिया.

दास दंपती ने चैन की सांस ली. बेटी दुख से उबर गई, यही उन के लिए बहुत था. अब जल्द से जल्द वे निरुपमा का विवाह कर देना चाहते थे. पर इस संबंध में चर्चा छिड़ते ही फिर से घर में कर्फ्यू जैसा लग गया. निरुपमा ने एलान कर दिया कि वह विवाह नहीं करेगी, सारी उम्र कुंआरी रहेगी. आत्मनिर्भर बनेगी, कमाएगी और मांबाप का सहारा बनेगी.

मां ने सुना तो वे बौखला गईं, ‘‘पागल मत बनो नीरू, ऐसा भी कहीं होता है. शादी तो करनी होगी बेटी. फिर जब तक तुम्हारी शादी नहीं होती, तब तक हम अनु की शादी के बारे में भी नहीं सोच सकेंगे. आखिर उस की भी तो शादी करनी है हमें.’’

‘‘तो मैं कहां रोक रही हूं? बेहतर होगा कि आप लोग मेरे भविष्य के बारे में सोचना छोड़ दें. अनु की शादी कर दें…’’ निरुपमा क्रोध और तनाव से तमतमा उठी.

‘‘पर नीरू ऐसे कब तक चलेगा… हमारे बाद कोई सहारा तो होना चाहिए न…’’

‘‘नहीं मां, मुझे नहीं चाहिए किसी का सहारा. मैं अकेली ही काफी हूं खुद के लिए…’’

निरुपमा जिद पर अड़ी रही. पूरे 6 वर्षों तक मांबाप उसे मनाने का भरसक प्रयास

करते रहे पर उस ने अपनी जिद नहीं छोड़ी. अंतत: अनु की शादी निरुपमा से पहले ही कर देनी पड़ी.

Father’s day 2023: वह कौन थी- भाग 1

अमरनाथ ने अपने हाथ में पकड़े पत्र को एक बार फिर से पढ़ लेना चाहा. उन की बूढ़ी आंखों से आंसुओं की 2 बूंदें अपनेआप टपक कर पत्र पर फैल गईं.

पत्र में भेजे संदेश ने अमरनाथ को उन के भोगे हुए दिनों में बहुत पीछे तक ऐसा धकेल कर रख दिया था कि उन्हें लगा जैसे पत्र में लिखे हुए सारे के सारे अक्षर उन के जिस्म के चप्पेचप्पे से चिपक गए हों. अमरनाथ के लिए सब से अधिक तकलीफदेह जो बात थी वह यह कि पत्र लिखने वाली ने अपने जीवन में पत्र लिखा तो था, लेकिन उस को डाक में डालने का आदेश नर्सिंग होम की निदेशिका को अपने मरने के बाद ही दिया था. जब तक यह पत्र अमरनाथ को मिला इसे लिखने वाली इस संसार को अंतिम नमस्कार कर के जा चुकी थी.

खुद को किसी प्रकार संभालते हुए अमरनाथ ने एक बार फिर से पत्र को पढ़ा. पत्र के शुरू में उन का नाम लिखा था, ‘एमर.’

स्टैसी अमरनाथ को ‘अमर’ के स्थान पर ‘एमर’ नाम से ही संबोधित किया करती थी.

मैं जानती हूं कि मेरा यह अंतिम पत्र न केवल तुम्हारे लिए मेरा अंतिम नमस्कार होगा बल्कि शायद तुम को बहुत ज्यादा तकलीफ भी दे. जब चलते- चलते थक गई और दूर कब्रिस्तान की तनहाइयों में सोए लोगों की तरफ से मुझ को बुलाने की आवाजें सुनाई देने लगीं तो सोचा कि चलने से पहले तुम से भी एक बार मिल लूं. आमनेसामने न सही, पत्र के द्वारा ही.

तुम्हारे भारत लौट जाने के बाद मैं कितनी अधिक अकेली हो चुकी थी, यह शायद तुम नहीं समझ सकोगे. तुम क्या गए कि जैसे मेरा घर, मेरा बगीचा और घर की समस्त वस्तुएं तक वीरान हो गईं. ऐसा भी नहीं था कि मैं जैसे तुम्हारे वियोग में वैरागन हो गई थी अथवा तुम को प्यार करती थी. हां, तुम्हारी कमी अवश्य मुझ को परेशान कर देती थी. वह भी शायद इसलिए कि मैं ने तुम्हारे साथ अपने जीवन के पूरे 8 वर्ष एक ही छत के नीचे गुजारे थे.

जीवन के इतने ढेर सारे दिन हम दोनों ने किस रिश्ते से एकसाथ जिए थे? मैं आज तक इस रिश्ते को कोई भी नाम नहीं दे सकी हूं. अकसर सोचा करती थी कि हमारा आपस में कोई भी शारीरिक संबंध नहीं था. एक ही देश में जन्म लेने का भी कोई नाता नहीं था. मन और भावनाओं से भी प्रेमीयुगल की अनुभूति जैसा भी कोई रिश्ता हम नहीं बना सके थे. मैं कहां और तुम कहां, लेकिन फिर भी हम एकदूसरे के काम आए. आपस में साथसाथ बैठ कर हम ने अपनाअपना दुख बांटा, एक- दूसरे को जाना, समझा और परस्पर सहायता की. शायद इतना सबकुछ ही काफी होगा अपने परस्पर बनाए हुए उन बेनाम संबंधों के लिए, जिस के स्नेहबंधन की डोर का एक सिरा तुम थामे रहे और एक मैं पकड़े रही.

दुनिया का रिवाज है कि किसी एक को एक दिन डोर का एक सिरा छोड़ना ही पड़ता है. तुम अपनत्व की इस डोर का एक छोर पकड़े अपने वतन चले गए और मैं अपना सिरा थामे यहां बैठी रही. पर अब मैं इस स्नेह बंधन की डोर का एक छोर छोड़ कर जा रही हूं, इस विश्वास के साथ कि इनसान के स्नेहबंधन का सच्चा नाता तो उस डोर से जुड़ता है जो विश्वास, अपनत्व और निस्वार्थ इनसानियत के धागों से बुनी गई होती है.

कितनी अजीब बात है कि हम दोनों का जीवन एक सा लगता है. आपबीती भी एक जैसी है. हम दोनों के अपनेअपने खून के वे रिश्ते जो अपने कहलाते थे, वे भी अपने न बन सके और जिसे हम दोनों जानते भी न थे, जिस के बारे में कभी सोचा भी नहीं, उसी के साथ अपनी खोई और बिखरी हुई खुशियां बटोर कर हम ने अपना जीवन सहज कर लिया था.

पत्र पढ़तेपढ़ते अमरनाथ की आंखें फिर से भर आईं. जीवन से थके शरीर की बूढ़ी और उदास आंखों को अमरनाथ ने अपने हाथ से साफ किया और फिर सोचने लगे अपने जीवन के उस पिछले सफर के बारे में, जिस में वह कभी हालात के मारे हुए एक दिन स्टैसी के साथसाथ कुछ कदम चले थे.

अमरनाथ उस दिन कितने खुश थे जब उन का सब से बड़ा लड़का नीतेश अमेरिका जाने के लिए हवाई जहाज में बैठा था. नीतेश ने इंजीनियरिंग की थी सो उस को केवल थोड़ी सी अतिरिक्त पढ़ाई अमेरिका में और करनी पड़ी थी. और एक दिन अमेरिका की मशहूर कोक कंपनी में इंजीनियर का पद पा कर वहां हमेशा रहने के लिए अपना स्थान पक्का कर लिया. 2 साल के बाद नीतेश भारत से शादी कर के अपनी पत्नी नीता को भी साथ ले गया.

नीतेश के अमेरिका में व्यवस्थित होतेहोते उस के दोनों छोटे भाई रितेश और मीतेश भी वहां आ गए. उन्होंने भी भारत में आ कर शादी की और फिर अमेरिका में अपनी- अपनी घरगृहस्थी में व्यस्त हो गए.

अब अमरनाथ के पास केवल उन की एक लड़की रिनी बची थी. एक दिन उस का भी विवाह हुआ और वह भी अपने पति के घर चली गई. इस तरह घर में बच गए अमरनाथ और उन की पत्नी. वह किसी प्रकार जीवन की इस नाव की पतवार को संभाले हुए थे.

आराम और सहारे की तलाश करता अमरनाथ का बूढ़ा शरीर जब और भी अधिक थकने लगा तो उन्हें एक दिन एहसास हुआ कि लड़कों को विदेश भेज कर कहीं उन्होंने कोई भूल तो नहीं कर दी है.

एक दिन उन की पत्नी रात को सोने गईं और फिर कभी नहीं जाग सकीं. सोते हुए ही दिल का दौरा पड़ने से वह सदा के लिए चल बसी थीं. पत्नी के चले जाने के बाद अब अमरनाथ नितांत अकेले ही नहीं बल्कि पूरी तरह से असहाय भी हो चुके थे.

अपने अकेलेपन से तंग आ कर एक दिन अमरनाथ ने बच्चों को वापस भारत आने का आग्रह किया. तब आग्रह पर उन के लड़कों ने उन्हें जो जवाब दिया उस में विदेशी रहनसहन और पाश्चात्य रीति- रिवाजों की बू थी. जिस देश और समाज के वे अब बाशिंदे बन चुके थे उस में विवेक कम और झूठी प्रशंसा के तर्क अधिक थे. बच्चों की दलीलों को सुन कर अमरनाथ ने अपने किसी भी लड़के से दोबारा वापस भारत आने के लिए न तो कोई आग्रह किया और न ही कोई जिद.

अपने बच्चों की दलीलें और बातें सुन कर अमरनाथ ने चुप्पी साध लेना ही उचित समझा था. वह चुप हो गए थे और अपने तीनों लड़कों से बात तक करनी बंद कर दी. ऐसे में लड़कों का कोई पत्र आता तो वह उत्तर ही नहीं देते. फोन आता तो या तो उठाते ही नहीं और यदि कभी भूलेभटके उठा भी लिया तो ‘व्यस्त हूं, बाद में फोन करूंगा’ कह कर वह बात ही नहीं करते थे. अंत में उन के लड़कों को जब एहसास हो गया कि पिताजी उन के रवैए से नाराज हैं तो उन की कभीकभार आने वाली टेलीफोन की घंटियां भी सुनाई देनी बंद हो गईं.

यह सिलसिला बंद हुआ तो अमरनाथ की जिंदगी के कटु अनुभवों के गुबारों में स्वार्थी संतान की यादों और स्मृतियों की कसक अपनेआप ही धूमिल पड़ने लगी. उन्होंने हालात से समझौता कर के स्वयं को अपने ही हाल पर छोड़ दिया.

एक दिन अचानक ही उन का सब से छोटा लड़का मीतेश बगैर अपने आने की सूचना दिए घर आया तो वर्षों बाद संतान का मुख देखते ही अमरनाथ का सारा गुस्सा पलक झपकते ही हवा हो गया. उन्होंने सारे गिलेशिकवे भूल कर मीतेश को अपने सीने से लगा लिया. फिर जब मीतेश ने अपना भारत आने का सबब बताते हुए यह कहा कि वह उन को अमेरिका ले जाने के लिए भारत आया है, उन्हें बाकी जीवन के दिन अपने बच्चों के साथ व्यतीत करने चाहिए तो अमरनाथ ने अपने स्वाभिमान और जिद के सारे हथियार डाल दिए. और एक दिन मीतेश की सलाह पर उन्होंने अपनी कपड़े की दुकान और पुश्तैनी मकान बेच दिया. इस से जो पैसा मिला उसे बैंक में जमा कर दिया. इस तरह अमरनाथ एक दिन विदेश की उस भूमि पर सदा के लिए बसने आ गए जिस का बखान उन्होंने अब तक किताबों और टेलीविजन में देखा और पढ़ा था.

Mother’s Day Special: सरप्राइज- मां और बेटी की अनोखी कहानी

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सरप्राइज: मां और बेटी की अनोखी कहानी- भाग 3

उधर पलभर के लिए सन्नाटा छाया तो तनुजा ने कहा, ‘‘अरे बेटा, सौरी, प्लीज रिनी को मत बताना कि मेरे मुंह से ये सब निकल गया है. उस ने मुझे धमकी दी है कि अगर मैं ने अपना मुंह खोला तो वह हम मांबेटे पर झूठा केस कर के फंसवा देगी.’’

अरुण को जैसे धक्का लगा था, ‘‘आंटी, रिनी के मेरी तरह और दोस्त भी हैं?’’

‘‘नहीं बेटा, मुझे कुछ नहीं पता,’’ घबराने की ऐक्टिंग करते हुए कह कर तनुजा ने फोन रख कर गहरी सांस ली.

पलभर बाद ही अरुण का फिर फोन आ गया, ‘‘आंटी, आप मुझे इन लोगों के फोन नंबर दे सकती हैं?’’

‘‘नहीं बेटा, मुझे नहीं पता.’’

‘‘ठीक है आंटी, आप मेरा नंबर लिख लें. जब भी इन में से कोई आए आप प्लीज मुझे फोन पर बता देना… मेरी रिक्वैस्ट है आप से. अब मेरी समझ में आ रहा है कि क्या हो रहा है. आप मेरे हैल्प करें आंटी, मैं आप की हैल्प करूंगा.’’

‘‘ठीक है बेटा, तुम तो मेरे बेटे की तरह हो.’’

2 दिन बाद ही यश आया था. दोनों ‘बार्बेक्यूनेशन’ डिनर के लिए जा रहे हैं, तनुजा ने सुन लिया. उन्होंने अरुण को फोन पर बता दिया. यह भी कहा, ‘‘बस बेटा, मेरा नाम न लेना. यह लड़की हमें फंसा देगी.’’

‘‘नहीं आंटी, आप चिंता न करें, थैक्स.’’

‘बार्बेक्यूनेशन’ में जो हुआ उस की तो रिनी ने कभी कल्पना भी नहीं की थी. अरुण ने रिनी और यश को वहां ऐसा लताड़ा कि रिनी के मुंह से बोल न फूटा. यश की आंखों से भी परदा हट गया था. अरुण और यश ने मिल कर रिनी को ऐसीऐसी गालियां दीं कि म्यूजिक तेज था, इसलिए तमाशा नहीं बना वरना वह लोगों की नजरों का सामना ही न कर पाती. वह तो वहां से भाग ही गई. उस के बाद अरुण और यश जो मिले तो पहली बार थे पर रिनी से मिले धोखे का, बेवकूफ  बनने का जो दुख था, दोनों ने जबदरदस्त डिनर कर शेयर किया.

रिनी घर पहुंची तो उस के चेहरे पर हवाइयां उड़ी हुई थीं, जिसे देख कर तनुजा के

दिल को कुछ सुकून मिला, तसल्ली हुई. अंदाजा लगाया कि कुछ तो हुआ है. रिनी ने न कुछ खायापीया, न कोई बात की, बस, अपने कमरे में पड़ी रही.

तनुजा ने अपना मोबाइल नंबर अरुण को दे दिया था. देर रात उस ने फोन किया. कहा, ‘‘आंटी, थैक्यू वैरी मच. आज यश और मेरे सामने रिनी की पोल खुल गई. वह वहां से भाग ही गई और हां आंटी, यश और मेरी दोस्ती भी हो गई. आंटी, लड़के ऐसा करते हैं तो कितना तमाशा होता है… यहां एक विवाहित लड़की 4-4 लड़कों को मूर्ख बना रही थी. उस के नाटकों का अंत अभी हुआ नहीं है… मेरी यश से बात हो गई है… हम उसे सबक सिखा कर रहेंगे, आप का पीछा छुड़वाएंगे.’’

‘‘जीते रहो, बेटा.’’

‘‘अभी बहुत कुछ बाकी है. बस, ईशान और अनिल का पता चल जाए तो आगे काम करें.’’

‘‘अनिल अकसर जिम में रिनी के साथ ही वर्कआउट करता है और ईशान का साडि़यों का कोई शोरूम है, शायद ‘नारी’ नाम है.’’

‘‘आंटी, बस हो गया काम.’’

‘‘हां बातों में मैं ने इतना सुना है.’’

‘‘बस, अब हम ढूंढ़ लेंगे.’’

अरुण और यश ने दोनों का पता लगा ही लिया. इतना भी मुश्किल नहीं था. चारों जब साथ बैठे तो रिनी की असलियत जान कर पहले तो हैरान हुए, फिर गुस्सा हुए और फिर हंसने लगे. ईशान ने कहा, ‘‘यार, बदनाम हम हैं और ये लड़कियां क्या कम हैं? कितनी साडि़यां ले गई मुझ से और पहनी तुम लोगों के सामने.’’

चारों अब एकदूसरे के साथ हंसीमजाक कर रहे थे.

अनिल बोला, ‘‘मैं तो जिम में वर्कआउट करतेकरते फंस गया, यार सिर्फ शरीर की नहीं, दुष्ट लड़की ने पैसों की भी अच्छी ऐक्सरसाइज करवा दी.’’

अरुण ने कहा, ‘‘ऐसी लड़की को इतनी आसानी से हम भी नहीं छोड़ेंगे. भला हो उन आंटी का जिन्होंने हमें सब सच बता दिया.

चलो, अगर 5वां मूर्ख नहीं मिला होगा तो इस समय घर पर ही होगी. चल कर उस का थोड़ा इलाज कर आते हैं. तभी चैन मिलेगा. आंटी तो हमारा ही साथ देंगी. बेचारे मांबेटा बुरे फंसे. चलो, उन्होंने हमारी आंखें खोलीं. हम भी उन की हैल्प कर आते हैं,’’ और फिर चारों हंसते हुए खड़े हो गए.

दरवाजा तनुजा ने ही खोला, रिनी तो अपने बैडरूम में थी. तनुजा मुसकराते हुए फुसफुसाई, ‘‘तुम सब को ढेर सा धन्यवाद.’’

अरुण भी फुसफुसाया, ‘‘आप को भी धन्यवाद आंटी. आप ने हमें और मूर्ख बनने से बचा लिया… कहां है मैडम?’’ तनुजा ने बैडरूम की तरफ इशारा कर दिया.

ईशान ने कहा, ‘‘अब आप चुप रहना आंटी. आज हम आप की परेशानी भी खत्म करते हैं. बस, अब आप देखना.’’

अनिल जोर से चिल्लाया, ‘‘कहां है धोखेबाज लड़की?’’ रिनी ने अंदर सुना तो बदहवास सी बाहर आई. चारों लड़कों को साथ खड़ा देख उस की सिट्टीपिट्टी गुम हो गई. कांपते स्वर में बोली, ‘‘क्या है? यहां क्यों आए सब?’’

‘‘तुम लड़कों को धोखा देती हो, पैसे लूटती हो, सास को धमकी देती हो, हम सब तुम्हारे खिलाफ रिपोर्ट करने पुलिस स्टेशन जा रहे हैं.’’

रिनी पुलिस के नाम से घबरा गई. फिर तनुजा की तरफ देख कर बोली, ‘‘सौरी, प्लीज हैल्प मी.’’

यश चिल्ला रहा था, ‘‘तुम्हारी पोल हम खोल कर रहेंगे. हम सब के पास तुम्हारे साथ खिंचे बहुत फोटो हैं… मैरिड होते हुए 4-4 बौयफ्रैंड्स को बेवकूफ बना रखा था. मैं तो न्यूजपेपर में छपवाऊंगा तुम्हारे कारनामे.’’

रिनी सचमुच घबरा रही थी. तनुजा को बोलने का यही सही समय लगा. कहा, ‘‘चलो बच्चो, मुझे भी इस के खिलाफ रिपोर्ट करनी है… धमकियां दे दे कर इस ने हमें बहुत परेशान किया है… अब तो तुम लोग भी गवाह हो, चलो, पुलिस स्टेशन चलते हैं.’’

रिनी ने धीरे से कहा, ‘‘प्लीज, आई एम सौरी.’’

तनुजा ने कहा, ‘‘एक ही शर्त है कि इसी समय इस घर से दफा हो जाओ. अजय आए तो तलाक के पेपर आराम से साइन कर देना नहीं तो तुम अब बच नहीं पाओगी. तुम्हें केस करने का बहुत शौक था न? मैं करूं अब केस? ये सब गवाही देंगे.’’

‘‘ठीक है, मैं कल ही चली जाऊंगी.’’

‘‘नहीं, अभी जाओ,’’ चारों लड़के घूरते हुए रिनी की हालत पस्त कर रहे थे.

रिनी ने कहा, ‘‘ठीक है, मैं अपना सामान ले लूं.’’

‘‘कोई सामान नहीं ले जाओगी,’’ तनुजा ने कठोर स्वर में कहा, ‘‘बस, अब जाओ.’’

रिनी अंदर गई अपना पर्स और एक बैग में जल्दी से अपने कपड़े डाल कर बाहर आई.

तनुजा ने लड़कों से कहा, ‘‘तुम भी जाओ बच्चो… भविष्य में तुम लोगों की जरूरत होगी तो फोन करूंगी.’’

‘‘हां आंटी, यह जरा भी परेशान करे तो हमें जरूर बताना. हमारे पास इस के खिलाफ बहुत सुबूत हैं.’’

रिनी सिर झुकाए चली गई. लड़के भी चले गए. तनुजा सोफे पर बैठ गईं. चैन की सांस ली. सब एक सपना सा लग रहा था. कितने दिनों से वे किस मानसिक यंत्रणा में जी रही थीं, यह वही जानती थीं.

अजय को तनुजा ने फोन पर ये सब नहीं बताया. विदेश गए बेटे को वे किसी भी तरह का तनाव नहीं देना चाहती थीं.

जब अजय लौटा तो घर में रिनी को न देख तनुजा से पूछा तो उन्होंने पूरी बात बेटे को बताई. सुन कर वह तो मां का मुंह ही देखता रह गया. फिर दोनों खूब जोरजोर से हंस पड़े और एकदूसरे के गले लग गए.

अजय ने कहा, ‘‘मां, बड़ा कमाल किया. इतनी बड़ी मुसीबत से इतनी जल्दी छुटकारा मिल गया, मुझे तो यकीन ही नहीं हो रहा है.’’

‘‘बेटे की मुसीबत दूर करने के लिए थोड़ा नाटक किया, जो सफल रहा. ये सब जरूरी था. मेरी कोशिश यही थी कि मैं तुम्हें तुम्हारे लौटने पर यह सरप्राइज दे सकूं? कैसा रहा सरप्राइज?’’

‘‘शानदार,’’ अजय ने मां के गले लगते हुए कहा, ‘‘थैंक्यू, मां.’’

सरप्राइज: मां और बेटी की अनोखी कहानी- भाग 2

अजय से असलियत ज्यादा दिन छिपी न रह सकी. एक दिन अजय को उस का सहयोगी हार्दिक जबरदस्ती लंच के लिए बाहर ले गया. रेस्तरां में जाते ही उस ने एक कोने में किसी लड़के के साथ बैठी रिनी को देख लिया, हार्दिक ने भी देख लिया था, हार्दिक अजय का बहुत अच्छा दोस्त था. थोड़ी दूर एक कोने में बैठ कर अजय ने रिनी को फोन किया.

रिनी ने फोन उठाया.

‘‘रिनी, कहां हो?’’

‘‘एक फ्रैंड के घर.’’

‘‘घर कब तक आओगी?’’

‘‘देखती हूं.’’

फोन पर बात करते हुए अजय रिनी की टेबल पर जा कर खड़ा हो गया. उस का चेहरा गुस्से से लाल हो रहा था.

रिनी ने बेशर्मी से कहा, ‘‘अच्छा तो मेरी जासूसी हो रही है? तुम्हारी मां ने भेजा होगा?’’

‘‘शटअप.’’

‘‘इस से मिलो, यह है मेरा खास दोस्त, यश.’’

अजय ने कुछ कहने के लिए जैसी ही मुंह खोला, रिनी ने चेतावनी दी, ‘‘यहां तमाशा खड़ा कर के अपना ही नुकसान करोगे अजय.’’

अजय ने माहौल पर नजर डाली, लंचटाइम था, रेस्तरां पूरा भर चुका था.

‘‘मैं तुम से घर पर बात करूंगा, उठो, चलो.’’

‘‘नहीं मैं तो अभी लंच कर रही हूं. शाम को मिलते हैं.’’

रिनी की बेहयाई देख अजय का गुस्सा काबू के बाहर हो रहा था. हार्दिक उस का हाथ पकड़ उसे रेस्तरां से बाहर ले गया. पास के ही किसी और रेस्तरां में बैठ कर हार्दिक ने कहा, ‘‘जो हुआ, बुरा हुआ. ठंडे दिमाग से काम लेना, अजय. रिनी के तेवर मुझे ठीक नहीं लग रहे.’’

अजय फिर औफिस नहीं गया. सीधा घर आ गया. हार्दिक को ही उस ने

अपना सामान संभालने के लिए बोल दिया.

बेटे को असमय आए देख तनुजा चौंकी. अजय ने पूरी बात मां को बता दी. दोनों सिर पकड़ कर बैठे रह गए. रिनी घर में घुसी. मजाक उड़ाते हुए बोली, ‘‘मांबेटे ने पंचायत कर ली?’’

अजय दहाड़ उठा, ‘‘निकल जाओ यहां से.’’

पर्स सोफे पर पटकते हुए आराम से पसर गई रिनी, ‘‘कौन निकालेगा मुझे?’’ ज्यादा होशियारी की तो मांबेटे को ऐसी चक्की पिसवाऊंगी कि दोनों बाहर आने के लिए तरस जाओगे. मेरी लाइफ में दखलंदाजी न करना ही तुम दोनों के लिए अच्छा रहेगा.’’

‘‘तुम ने मुझ से शादी क्यों की थी? कोई जोरजबरदस्ती तो थी नहीं.’’

‘‘हां, मुझे कौन मजबूर कर सकता है. पति का नाम चाहिए था, घरपैसा चाहिए था, नौकरी करने का मुझे शौक नहीं… मेरे नखरे उठाने के लिए इतने बेवकूफ घूमते हैं. मैं बस ऐंजौय करती हूं,’’ फिर गुनगुनाते हुए अपने बैडरूम में चली गई.

तनुजा को बेटे पर बड़ा तरस आया. क्या करें… वे दोनों तो फंस गए थे. सारे अरमान चूरचूर हो गए थे. अजय ने रिनी से बात करना ही बंद कर दिया. इस के 10 दिन बाद ही अजय को 15 दिनों के लिए सिंगापुर जाना पड़ा. उस का तो वैसे ही आजकल दम घुट रहा था. सोचा, टूर पर रह कर आराम से सोचूंगा कि क्या किया जाए. मां को ढेर सारी हिदायतें दे कर अजय चला गया. रिनी की जैसे लौटरी निकल आई.

रातदिन तनुजा की आंखों के आगे बेटे का उदास चेहरा घूमता रहता. फोन

पर उस की गंभीर, उदास आवाज पर दिल रो उठता.

नहीं, ऐसे तो नहीं चलेगा. वह अपने बेटे का जीवन यों खराब होते नहीं देख सकती. रिनी के मातापिता से बात करनी चाहिए, इस से पहले उन से बहुत कम ही बात होती थी. उन के बात करने का ढंग तनुजा को कभी पसंद तो नहीं आया था पर अभी मजबूरी थी शायद कोई रास्ता निकले, यह सोच कर तनुजा ने रिनी की मम्मी दीप्ति को सब बता कर अपनी परेशानी का कोई हल बताने के लिए कहा तो तनुजा को हैरत का एक तेज झटका लगा जब दीप्ति ने कहा, ‘‘हमारी बेटी ऐसी ही है. एक के साथ बंधना उस का स्वभाव ही नहीं और हम पतिपत्नी तो बहुत बिजी रहते हैं… हमारा तो बड़ी मुश्किल से रिनी से पीछा छूटा है… आप जानें वह जानें. हां यह बात तो है कि कानून उस की ही सुनेगा इसलिए आप मांबेटा अपना मुंह बंद ही रखो तो अच्छा होगा.’’

इस चेतावनी के बाद फोन रख कर तनुजा सिर पकड़े बैठी रह गईं. समझ गईं उस के मातापिता ने अपनी बला उन के सिर टाल दी है.

दिनरात सोचने के बाद रातदिन रिनी की हरकतें देख तनुजा के मन में कई योजनाएं आ ही गईं, जिन पर अमल करने के लिए वे मन ही मन तैयार हो गईं. वे अपने बेटे के जीवन से यह धोखा देने वाली, झूठे इलजाम लगाने की धमकी देने वाली लड़की को भगा कर रहेंगी. यश, अरुण, ईशान और अनिल… में से एक समय पर एक ही आता था, रिनी के लिए ये सब गिफ्ट्स लाते, उसे बाहर घुमाने ले जाते, रिनी इन लड़कों को खूब मूर्ख बनाती है, समझ गई थीं तनुजा.

एक दिन तनुजा ने फोन पर सुन लिया कि ईशान रिनी को लेने 3 बजे नीचे आएगा. तनुजा जान गई थीं कि रिनी को टाइम पर तैयार रहने की आदत नहीं है. वह लेट करती है.

अपनी योजना को रूप देने के लिए मार्केट से घर के सामान का भारी बैग लाते हुए नीचे ही ईशान को मिल गईं, तनुजा को यह लड़का हमेशा कुछ भला सा लगता था. उन्हें देखते ही उस ने बाइक खड़ी की और पास आ कर बोला, ‘‘अरे आंटी, आप इतना सामान अकेले ला रही हैं?’’

‘‘और कौन लाएगा, बेटा? पिछली बार तो सब अनिल ले आया था… अब वह काफी दिन से आया नहीं. खैर, थैंक्स, बेटा.’’

‘‘कौन अनिल आंटी?’’

‘‘अनिल को नहीं जानते? जैसे रिनी के पास तुम आते हो, जैसे तुम दोस्त हो, वैसे ही अनिल, यश और अरुण भी तो हैं.’’

‘‘मैं समझा नहीं आंटी… ये लोग कौन हैं?’’

‘‘नहीं बेटा, सौरी, मेरे मुंह से निकल गया. प्लीज रिनी को मत बताना, उस ने कहा है कि मैं ने उस की कोई भी हरकत किसी को बताई तो वह मांबेटे को झूठे इलजाम में फंसा कर जेल भेज देगी.’’

ईशान सचमुच शरीफ  ही था. उसे तो रिनी ने अपने प्यार की दुहाई दे कर फंसाया था. उस के मन में पहले ही एक विवाहित लड़की से संबंध रखने का अपराधबोध था. युवा था, गलती कर बैठा था, रिनी के रूपजाल में फंस गया था पर अब एक सभ्य, संभ्रांत महिला के मुंह से जो भी सुना, धक्का लगा.

तभी रिनी नीचे उतर आई. माथे पर त्योरियां डाल कर तनुजा से पूछा, ‘‘आप यहां क्या कर रही हैं?’’

‘‘कुछ नहीं, घर का सामान लेने गई थी,’’ रिनी ईशान की बाइक पर बैठ कर बेशर्मी से बिना बात किए हंसती हुई चली गई. तनुजा ने नोट किया कि ईशान का चेहरा गंभीर है.

तनुजा ने फोन पर तो सुना था कि रिनी ईशान के साथ मूवी जाएगी पर 1 घंटे में ही रिनी पैर पटकते हुए वापस आई और सीधे अपने बैडरूम में चली गई. शायद ईशान पर तनुजा के कहे की कुछ प्रतिक्रिया हुई है, यह सोच कर तनुजा को बड़ी आशा बंधी कि वह कोशिश करेगी तो अपनी योजना में जरूर सफल होगी.

एक दिन अरुण ने घर के लैंडलाइन पर फोन कर दिया. फोन ये लड़क अकसर करते

रहते थे, कभी भी. रिनी देर तक सो रही होती थी और उस का फोन बंद होता था तो भी अकसर कोई न कोई लैंडलाइन पर फोन कर लेता था. तनुजा अब ऐसे ही किसी मौके की तलाश में थी.

अरुण ने संकोचपूर्वक पूछा, ‘‘आंटी, रिनी कहां है?’’ फोन नहीं उठा रही है.

तनुजा अलर्ट हुईं. कहा, ‘‘बेटा, यश, अनिल या ईशान के साथ ही होगी.’’

‘‘ये लोग कौन हैं, आंटी? आप के रिश्तेदार हैं?’’

‘‘न… न… बेटा, जैसे तुम हो, ऐसे ही लोग हैं… उस की दोस्ती तो कई लोगों से है न, बेटा.’’

आगे पढ़ें- सच जानने के बाद क्या था अरूण का फैसला

सरप्राइज: मां और बेटी की अनोखी कहानी- भाग 1

अजयटूर पर जाने से पहले पास खड़ी अपनी मां तनुजा को गंभीर देख मुसकराते हुए बोला, ‘‘अरे मां, 1 हफ्ते के लिए ही तो जा रहा हूं, आप क्यों मेरे हर बार जाने पर इतना चुप, उदास हो जाती हैं?’’

तनुजा ने फीकी हंसी हंस कर पास खड़ी अजय की पत्नी रिनी को देखा जो उन्हें घूरघूर कर देख रही थी.

अजय ने फिर कहा, ‘‘मां, रिनी को देखो, इस ने कितनी जल्दी मेरी टूरिंग जौब से एडजस्ट कर लिया है,’’ फिर तनुजा के गले में प्यार से बाहें डाल दीं. कहा, ‘‘टेक केयर, मां. शनिवार को सुबह आ ही जाऊंगा. बाय रिनी, तुम दोनों अपनाअपना ध्यान रखना.’’

अजय चला गया, घर का दरवाजा बंद कर रिनी ने फौरन अपने नाइट सूट की जेब में रखा अपना मोबाइल निकाला और कोई नंबर मिलाया और फिर अपने बैडरूम की तरफ चली गई. तनुजा वहीं सोफे पर बैठ गईं. रिनी ने भले ही अपने बैडरूम का दरवाजा बंद कर लिया था पर वह इतनी धीरे नहीं बोल रही थी कि तनुजा को सुनाई न पड़े. टू बैडरूम फ्लैट में रिनी दरवाजा बंद कर के कितना भी यह सोचे कि वह अकेले में बात कर रही है पर आवाज तनुजा के कानों तक पहुंच ही जाती है हमेशा. इस का रिनी को अंदाजा ही नहीं है.

तनुजा ने सुन लिया कि अब रिनी अपने बौयफ्रैंड यश के साथ मूवी और लंच के लिए जा रही है. आधे घंटे के अंदर रिनी सजीधजी पर्स उठा कर बाहर निकल गई, तनुजा से एक शब्द भी बिना बोले. तनाव से तनुजा का सिर भारी होने लगा. बैठीबैठी सोचने लगीं कि मांबेटे के जीवन पर यह लड़की ग्रहण बन कर कहां से आ गई. अजय ने जब तनुजा को रिनी के बारे में बताया था तो तनुजा को खुशी ही हुई थी. उन के मेहनती, सरल से बेटे के जीवन में आई इस लड़की का तनुजा ने दिल खोल कर स्वागत किया था.

इस घर में 2 ही तो जने थे, मांबेटा. अजय के पिता तो एक सड़क दुर्घटना में सालों

पहले इस दुनिया से जा चुके थे. रिनी को उन्होंने खूब लाड़प्यार से बहू स्वीकारा था. उस के मातापिता भी इसी शहर में थे. दोनों कामकाजी थे. रिनी अकेली संतान थी. तनुजा मौडर्न, सुशिक्षित महिला  थीं. वे काफी साल अध्यापन में व्यस्त रही थीं.

आज तनुजा बैठ कर पिछले साथ की घटनाओं पर फिर एक बार नजर डाल रही थीं. विवाह के बाद कुछ दिन तो सामान्य ही बीते थे पर रिनी का रवैया उन्हें तब खटकने लगा था जब अजय के टूर पर जाते ही रिनी का कोई न कोई दोस्त घर जा जाता था. लड़कियां तो कभीकभार इक्कादुक्का ही आती थीं, लड़के कई आते थे. तनुजा पुराने विचारों की भी नहीं थीं कि लड़कीलड़के की दोस्ती को गलत ही समझे पर यहां कुछ तो था जो उन्हें खटक रहा था. यही यश एक दिन आया था. उन्हें हैलो आंटी कहता हुआ सीधे रिनी के बैडरूम में चला गया था. तनुजा को बहुत गुस्सा आया था कि यह कौन सा तरीका है. तनुजा ने रिनी को आवाज दी तो यश ने बैडरूम के बाहर आ कर कहा, ‘‘आंटी, रिनी के सिर में दर्द है, वह आराम कर रही है.’’

तनुजा ने पूछ लिया, ‘‘तुम क्या कर रहेझ्र हो फिर?’’

‘‘उस के पास बैठा हूं, रिनी ने ही मुझे फोन पर बुलाया है,’’ कह कर यश ने बैडरूम का दरवाजा बंद कर लिया.

तनुजा के तनमन में अपमान व क्रोध की एक ज्वाला सी उठी. उन का मन हुआ कि रिनी के बैडरूम का दरवाजा भड़भड़ा कर खुलवा दें और यश को घर के बाहर कर दें पर ऐसा कुछ करने की नौबत ही नहीं आई.

रिनी ही स्लीवलैस पारदर्शी गाउन में उन के सामने पैर पटकते हुए खड़ी हो गई, ‘‘आप आज यह बात साफसाफ जान ही लें कि मैं अपनी मरजी से जीने वाली लड़की हूं, मैं किसी से नहीं डरती. और हां, अपने बेटे से मेरी शिकायत करने के लिए मुंह खोला तो अंजाम क्या होगा, इस की कल्पना भी आप नहीं कर सकतीं.’’

तनुजा ने डांट कर पूछा, ‘‘क्या कर लोगी? बेशर्म लड़की.’’

‘‘आप और आप के बेटे के खिलाफ पुलिस स्टेशन जा कर शिकायत कर दूंगी… मारपिटाई और दहेज का केस कर मांबेटे को जेल में डलवा दूंगी… जानती हैं न कानून आजकल लड़की की पहले सुनता है.’’

तनुजा पसीने से नहा गईं कि यह बित्ती सी लड़की उन्हें धमकी दे रही है. उफ, हम कहां फंस गए? मेरे शरीफ बेटे के जीवन में यह लड़की कहां से आ गई. थोड़ी देर बाद रिनी यश के साथ बाहर चली गई.

और एक अकेला यश ही नहीं, अरुण, ईशान और अनिल भी रिनी के पास आतेजाते रहते थे. तनुजा के रातदिन तो आजकल इसी चिंता में बीत रहे थे कि किस तरह बेटे को इस से छुटकारा मिले. उन्होंने एक दिन रिनी से कहा, ‘‘तुम अजय के जीवन से चली क्यों नहीं जाती? इन्हीं में से एक के साथ रहना.’’

रिनी ने टका सा जवाब दिया, ‘‘नहीं, रहूंगी तो यहीं, मैं एक के साथ बंध कर नहीं रह सकती.’’

‘‘तो फिर अजय से विवाह क्यों किया?’’

‘‘मम्मीपापा मुझ से परेशान थे. कहते थे शादी कर यहां से जाओ. यहां सिर्फ आप थीं. बंधना मेरा स्वभाव ही नहीं. अच्छा होगा, आप मुंह बंद रखें और जैसे मुझे जीना है, जीने दें. इसी में मांबेटे की भलाई है.’’

टूर पर अजय रोज तनुजा से बात करता था, रिनी से भी संपर्क में रहता था.

तनुजा रिनी के अभिनय पर हैरान रह जाती थी.

अजय टूर से आया तो शनिवार, रविवार दोनों दिन रिनी आदर्श पत्नी की तरह अजय के आगेपीछे घूमती रही, उस की पसंद की चीजें बनाती रही. तनुजा को गंभीर देख अजय ने हंस कर पूछा, ‘‘क्यों मां, मेरे पीछे सासबहू में झगड़ा हुआ क्या?’’

रिनी फौरन बोली, ‘‘हम सासबहू हैं ही नहीं, हम तो मांबेटी हैं.’’

तनुजा चुप रहीं. कई बार मन में आया कि अजय को सब सचसच बता दें… रिनी के चरित्र की पोलपट्टी खोल कर रख दें पर रिनी ने कानून की धमकी दी थी और वे जानती थीं कि मांबेटा दोनों परेशानी में पड़ सकते हैं. आजकल वे रातदिन यही सोच रही थीं कि कैसे इस बेलगाम लड़की से छुटकारा मिले.

आगे पढ़ें- क्या अजय को पता चली रिनी की सच्चाई?

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