Kahaniyan : रोज की तुलना में अंजुल आज जल्दी उठ गई. आज उस का औफिस में पहला दिन है. मास मीडिया स्नातकोत्तर करने के बाद आज अपनी पहली नौकरी पर जाते हुए उस ने थोड़ा अधिक परिश्रम किया. अनुपम देहयष्टि में वह किसी से उन्नीस नहीं.
सभी उस की खूबसूरती के दीवाने थे. अपनी प्रखर बुद्धि पर भी पूर्ण विश्वास है. अपने काम में तीव्र तथा चतुर. स्वभाव भी मनमोहक, सब से जल्दी घुलमिल जाना, अपनी बात को कुशलतापूर्वक कहना और श्रोताओं से अपनी बात मनवा लेना उस की खूबियों में शामिल है. फिर भी उस ने यह सुन रखा है कि फर्स्ट इंप्रैशन इज द लास्ट इंप्रैशन. तो फिर रिस्क क्यों लिया जाए भले?
मचल ऐडवर्टाइजिंग ऐजेंसी का माहौल उसे मनमुताबिक लगा. आबोहवा में तनाव था भी और नहीं भी. टीम्स आपस में काम को ले कर खींचातानी में लगी थीं किंतु साथ ही हंसीठिठोली भी चल रही थी. वातावरण में संगीत की धुन तैर रही थी और औफिस की दीवारों पर लोगों ने बेखौफ ग्राफिटी की हुई थी.
अंजुल एकबारगी प्रसन्नचित्त हो उठी. उन्मुक्त वातावरण उस के बिंदास व्यक्तित्व को भा गया. उस की भी यही इच्छा थी कि जो चाहे कर सकने की स्वतंत्रता मिले. आज तक अपने जीवन को अपने हिसाब से जीती आई थी और आगे भी ऐसा ही करने की चाह मन में लिए जीवन के अगले सोपान की ओर बढ़ने लगी.
बौस रणदीप के कैबिन में कदम रखते हुए अंजुल बोली, ‘‘हैलो रणदीप, आई एम अंजुल, योर न्यू इंप्लोई.’’ उस की फिगर हगिंग यलो ड्रैस ने रणदीप को क्लीन बोल्ड कर दिया. फिर ‘‘वैलकम,’’ कहते हुए रणदीप का मुंह खुला का खुला रह गया.
अंजुल को ऐसी प्रतिक्रियाओं की आदत थी. अच्छा लगता था उसे सामने वाले की ऐसी मनोस्थिति देख कर. एक जीत का एहसास होता था और फिर रणदीप तो इस कंपनी का बौस है. यदि यह प्रभावित हो जाए तो ‘पांचों उंगलियां घी में और सिर कड़ाही में’ वाली कहावत को चिरतार्थ होते देर नहीं लगेगी. वैसे रणदीप करीब 40 पार का पुरुष था, जिस की हलकी सी तोंद, अधपके बाल और आंखों के नीचे काले घेरे उसे आकर्षक की परिभाषा से कुछ दूर ही रख रहे थे.
अंजुल अपना इतना होमवर्क कर के आई थी कि उस का बौस शादीशुदा है. 1 बच्चे का बाप है, पर जिंदगी में तरक्की करनी है तो कुछ बातों को नजरअंदाज करना ही होता है, ऐसी अंजुल की सोच थी.
अपने चेहरे पर एक हलकी स्मित रेखा लिए अंजुल रणदीप के समक्ष बैठ गई. उस का मुखड़ा जितना भोला था उस के नयन उतने ही चपल दिल मोहने की तरकीबें खूब आती थीं.
रणदीप लोलुप दृष्टि से उसे ताकते हुए कहने लगा, ‘‘तुम्हारे आने से इस ऐजेंसी में और भी बेहतर काम होगा, इस बात का मुझे विश्वास है. मुझे लगता है तुम्हारे लिए मीडिया प्लानिंग डिपार्टमैंट सही रहेगा. अपने ए वन ग्रेड्स और पर्सनैलिटी से तुम जल्दी तरक्की कर जाओगी.’’
‘‘मैं भी यही चाहती हूं. अपनी सफलता के लिए आप जैसा कहेंगे, मैं वैसा करती जाऊंगी,’’ द्विअर्थी संवाद करने में अंजुल माहिर थी. उस की आंखों के इशारे को समझाते हुए रणदीप ने उसे एक सरल लड़के के साथ नियुक्त करने का मन बनाया. फिर अपने कैबिन में अर्पित को बुला कर बोला, ‘‘सीमेंट कंपनी के नए प्रोजैक्ट में अंजुल तुम्हें असिस्ट करेंगी. आज से ये तुम्हारी टीम में होंगी.’’
‘‘इस ऐजेंसी में तुम्हें कितना समय हो गया?’’ अंजुल ने पहला प्रश्न दागा.
अर्पित एक सीधा सा लड़का था. बोला, ‘‘1 साल. अच्छी जगह है काम सीखने के लिए. काफी अच्छे प्रोजैक्ट्स आते रहते हैं. तुम इस से पहले कहां काम करती थीं?’’
अर्पित की बात का उत्तर न देते हुए अंजुल ने सीधा काम की ओर रुख किया, ‘‘मुझे क्या करना होगा? वैसे मैं क्लाइंट सर्विसिंग में माहिर हूं. मैं चाहती हूं कि मुझे इस सीमेंट कंपनी और अपनी क्रिएटिव टीम के बीच कोऔर्डिनेशन का काम संभालने दिया जाए.’’
अगले दिन अंजुल ने फिर सब से पहले रणदीप के कैबिन से शुरुआत की, ‘‘हाय रणदीप, गुड मौर्निंग,’’ कर उस ने पहले दिन सीखे सारे काम का ब्योरा देते हुए रणदीप से कुछ टिप्स लेने का अभिनय किया और बदले में रणदीप को अपने जलवों का भरपूर रसास्वादन करने दिया. रणदीप की मधुसिक्त नजरें अंजुल के सुडौल बदन पर इधरउधर फिसलती रहीं और वह बेफिक्री से मुसकराती हुई रणदीप की आसक्ति को हवा देती रही.
जल्द ही अंजुल ने रणदीप के निकट अपनी जगह स्थापित कर ली. अब यह रोज का क्रम था कि वह अपने दिन की शुरुआत रणदीप के कैबिन से करती. रणदीप भी उस के यौवन की खुमारी में डुबकी लगाता रहता.
उस सुबह कौफी देने के बहाने रणदीप ने अंजुल के हाथ को हौले से छुआ. अंजुल ने इस की प्रतिक्रिया में अपने नयनों को झाका कर ही रखा. वह नहीं चाहती थी कि रणदीप की हिम्मत कुछ ढीली पड़े. फिर काम दिखाने के बहाने वह उठी और रणदीप के निकट जा कर ऐसे खड़ी हो गई कि उस के बाल रणदीप के कंधे पर झालने लगे. इशारों की भाषा दोनों तरफ से बोली जा रही थी.
तभी अर्पित बौस के कैबिन में प्रविष्ट हुआ तो दोनों संभल गए. उफनते दूध में पानी के छींटे लग गए. किंतु अर्पित के शांत प्रतीत होने वाले नयनों ने अपनी चतुराई दर्शाते हुए वातावरण को भांप लिया.
इस प्रकरण के बाद अर्पित का अंजुल के प्रति रवैया बदल गया. अब तक अंजुल को नई
सीखने वाली मान कर अर्पित उस की हर मुमकिन मदद कर रहा था, परंतु आज के दृश्य के बाद वह समझा गया कि इस मासूम दिखने वाली सूरत के पीछे एक मौकापरस्त लड़की छिपी है. कौरपोरेट वर्ल्ड एक माट्स्करेड पार्टी की तरह हो सकता है जहां हरकोई अपने चेहरे पर एक मास्क लगाए अपनी असली सचाई को ढकते हुए दूसरों के सामने अपनी एक छवि बनाने को आतुर है.
आज लंच में अर्पित ने अंजुल को टालते हुए कहा, ‘‘आज मुझे कुछ काम है. तुम लंच कर लो,’’ वह अब अंजुल से बहुत निकटता नहीं चाह रहा था. उस की देखादेखी टीम के अन्य लोगों ने भी अंजुल को टालना आरंभ कर दिया. इस से अंजुल को काम समझाने और करने में दिक्कत आने लगी.
‘‘जो नई पिच आई है, उस में मैं तुम्हारे साथ चलूं? मुझे पिच प्रेजैंटेशन करना आ जाएगा,’’ अंजुल ने अपनी पूरी कमनीयता का पुट लगा कर अर्पित से कहा. अपने कार्य में दक्ष होते हुए भी उस ने अर्पित की ईगो मसाज की.
‘‘उस का सारा काम हो चुका है. तुम्हें अगली पिच पर ले चलूंगा. आज तुम औफिस में दूसरी प्रेजैंटेशन पर काम कर लो,’’ अर्पित ने हर प्रयास करना शुरू कर दिया कि अंजुल केवल औफिस में ही व्यस्त रहे.
अपने हाथ से 2 पिच के अवसर निकलते ही अंजुल भी अर्पित की चाल समझाने लगी, ‘उफ, बेवकूफ है अर्पित जो मुझे इतना सरलमति समझा रहा है. क्या सोचता है कि यदि यह मुझे अवसर नहीं प्रदान करेगा तो मैं अनुभवहीन रह जाऊंगी,’ सोचते हुए अंजुल ने सीधा रणदीप के कैबिन में धावा बोल दिया.
‘‘रणदीप, क्या मैं आप के साथ आज लंच कर सकती हूं? आप के साथ मेरे इंडक्शन की फीडबैक बाकी है,’’ अंजुल ने अपने प्रस्ताव को इस तरह रखा कि वह आवश्यक कार्य प्रतीत हुआ. अत: रणदीप ने सहर्ष स्वीकारोक्ति दे दी.
लंच के दौरान अंजुल ने अपने काम का ब्योरा दिया और साथ ही दबेढके शब्दों में एक स्वतंत्र क्लाइंट लेने की पेशकश कर डाली, ‘‘टीम में सभी इतने व्यस्त रहते हैं कि किसी से काम सीखना मुझे उन के काम में रुकावट बनना लगता है और फिर अपनी शिक्षा, प्रशिक्षण व अनुभव के बल पर मुझे पूर्ण विश्वास है कि एक क्लाइंट मैं हैंडल कर सकती हूं, यदि आप अनुमति दें तो?’’
बातचीत के दौरान अंजुल के नयनों का मटकना, उस के भावों का अर्थपूर्ण चलन उस के अधरों पर आतीजाती स्मितरेखा, कभी पलकें उठाना तो कभी झाकाना, सबकुछ इतना मनमोहक था कि रणदीप के पुरुषमन ने उसे एक अवसर देने का निश्चय कर डाला, ‘‘ठीक है, सोचता हूं कि तुम्हें किस अकाउंट में डाल सकता हूं.’’
उस शाम अंजुल ने आर्ट गैलरी में कुछ समय व्यतीत करने का सोची. जब से जौब लगी तब से उस ने कोई तफरी नहीं की. दिल्ली आर्ट गैलरी शहर की नामचीन जगहों में से एक है सो वहीं का रुख कर लिया. मंथर गति से चलते हुए अंजुल वहां सजी मनोरम चित्रकारियां देख रही थी कि अगली पेंटिंग पर प्रचलित लौंजरी ब्रैंड ‘औसम’ के मालिक महीप दत्त को खड़ा देखा. ऐजेंसी में उस ने सुना था कि पहले महीप दत्त का अकाउंट उन्हीं के पास था, किंतु पिछले साल से उन्होंने कौंट्रैक्ट रद्द कर दिया, जिस के कारण ऐजेंसी को काफी नुकसान हुआ. स्वयं को सिद्ध करने का यह स्वर्णिम अवसर वह जाने कैसे देती. उस ने तुरंत महीप दत्त की ओर रुख किया.
‘‘आप महीप दत्त हैं न ‘औसम’ ब्रैंड के मालिक?’’ अपने मुख पर उत्साह के सैकड़ों दीपक जला कर उस ने बात की शुरुआत की.
‘‘यस. आप हमारी क्लाइंट हैं क्या?’’ महीप अपने ब्रैंड को प्रमोट करने का कोई मौका नहीं चूकते थे.
‘‘मैं आप की क्लाइंट हूं और आप मेरे.’’
‘‘मैं कुछ समझा नहीं?’’
‘‘दरअसल, मैं आप के ब्रैंड की लौंजरी इस्तेमाल करती हूं और एक हैप्पी क्लाइंट हूं. मेरा नाम अंजुल है और मैं मचल ऐडवर्टाइजिंग ऐजेंसी में कार्यरत हूं, जिस के आप एक हैप्पी क्लाइंट नहीं हैं. सही कहा न मैं ने?’’ वह अपना हाथ आगे बढ़ाते हुए बोली.
‘‘तो आप यहां मचल की तरफ से आई हैं?’’ महीप ने हैंड शेक करते हुए कहा, परंतु उन के चेहरे पर तनाव की रेखाएं सर्वविदित थीं, ‘‘मैं काम की बात केवल अपने औफिस में करता हूं,’’ कहते हुए वे आगे बढ़ गए.
‘‘काम की बात तो यह है महीप दत्तजी कि मैं आप को वह फीडबैक दे सकती हूं, जो आप के लिए सुननी जरूरी है और वह भी फ्री में. मैं यहां आप से मचल की कार्यकर्ता बन कर नहीं, बल्कि आप की क्लाइंट के रूप में मिल रही हूं. विश्वास मानिए, मुझे आइडिया भी नहीं था कि मैं यहां आप से मिल जाऊंगी,’’ अंजुल के चेहरे पर मासूमियत के साथ ईमानदारी के भाव खेलने लगे. वह अपने चेहरे की अभिव्यक्ति को स्थिति के अनुकूल मोड़ना भली प्रकार जानती थी.
बोली, ‘‘मैं जानती हूं कि अब आप अपने विज्ञापन किसी एजेंसी के द्वारा नहीं, बल्कि सोशल मीडिया पर इन्फ्लुऐंसर के जरीए करते हैं. किंतु एक इन्फ्लुऐंसर की पहुंच केवल उस के फौलोअर्स तक सीमित होती है. मेरा एक सुझाव है आप को- आप का प्रोडक्ट प्रयोग करने वाली महिलाएं आम गृहिणियां या कामकाजी महिलाएं अधिक होती हैं, उन की फिगर मौडल की दृष्टि से बिलकुल अलग होती है.
‘‘मौडल का शरीर एक आदर्श फिगर होता है, जबकि आम महिला की जरूरत भिन्न होती है. तो क्यों न आप अपने विज्ञापन में मौडल की जगह आम महिलाओं से अपनी बात कहलवाएं. यदि वे कहेंगी तो यकीनन अधिक प्रभाव पड़ेगा,’’ अपनी बात कह कर अंजुल महीप दत्त की प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा करने लगी.
कुछ क्षण मौन रह कर महीप ने अंजुल के सुझाव को पचाया. फिर अपनी कलाई पर
बंधी घड़ी देख कहने लगे, ‘‘तुम से मिल कर अच्छा लगा, अंजुल. आल द बैस्ट,’’ और महीप चले गए.
उन के चेहरे पर कोई भाव न पढ़ने के कारण अंजुल असमंजस में वहीं खड़ी रह गई.
अगले दिन अंजुल औफिस में अपने कंप्यूटर पर कुछ काम कर रही थी कि रणदीप का फोन आया, ‘‘क्या मेरे कैबिन में आ सकती हो?’’
अंजुल तुरंत रणदीप के कैबिन में पहुंची. वहां उन के साथ महीप दत्त को बैठा देख कर उस के आश्चर्य का ठिकाना न रहा. सिर हिला कर हैलो किया. रणदीप ने उसे बैठने का इशारा किया.
‘‘महीप हमारे साथ दोबारा जुड़ना चाहते हैं और साथ ही यह भी कि उन का अकाउंट तुम हैंडल करो,’’ कहते हुए रणदीप के मुख पर कौंटै्रक्ट वापस मिलने की प्रसन्नता थी तो अंजुल के चेहरे पर अपनी जीत की दमक. अब उस के रास्ते में कोई रोड़ा न था. उस ने साधिकार अपना स्वतंत्र अकाउंट प्राप्त किया था.
‘‘इस कौंट्रैक्ट की खुशी में क्या मैं आप को एक डिनर के लिए इन्वाइट कर सकती हूं?’’ अचानक अंजुल ने पूछा.
यह सुन कर रणदीप चौंक गया. फिर बोला, ‘‘कल चलते हैं. आज मुझे अपनी पत्नी के साथ बाहर जाना है,’’ रणदीप ने जानबूझा कर अपनी पत्नी का जिक्र छेड़ा ताकि अंजुल भविष्य की कोई कल्पना न करने लगे और फिर फ्लर्ट किसे बुरा लगता है खासकर तब जब सबकुछ सेफजोन में हो.
‘औसम’ के औफिस में जब अंजुल मीडिया प्लानिंग डिपार्टमैंट की तरफ से क्रिएटिव दिखाने पहुंची तो वहां उसे करण मिला. करण ‘औसम’ की ओर से अंजुल को काम समझाने के लिए नियुक्त किया गया था. आज एक लौंजरी ब्रैंड के साथ मीटिंग के लिए अंजुल बेहद सैक्सी ड्रैस पहन कर गई. उसे देखते ही करण, जोकि लगभग उसी की उम्र का अविवाहित लड़का था, अंजुल पर आकृष्ट हो उठा. जब उसे ज्ञात हुआ कि अंजुल के यहां आने का उपलक्ष्य क्या है, तो उस के हर्ष ने सीमा में बंधने से इन्कार कर दिया.
‘‘हाय अंजुल,’’ करण की विस्फारित आंखें उस के मन का हाल जगजाहिर कर रही थीं, ‘‘मैं तुम्हारा मार्केटिंग क्लाइंट हूं.’’
होंठों को अदा से भींचती हुई अंजुल ने जानबूझा कर अपना हाथ बढ़ा कर मिलाते हुए कहा, ‘‘और मैं तुम्हें सर्विस दूंगी, पर कोई ऐसीवैसी सर्विस न मांग लेना वरना…’’ कहते हुए अंजुल ने उस के कंधे पर आहिस्ता से अपना हाथ रखा और हंस पड़ी.
उस के शरारती नयन करण के अंदर एक सुरसुरी पैदा करने लगे. मन ही मन वह बल्लियों उछलने लगा. आज से पहले उस ने कभी इतनी हौट लड़की के साथ काम नहीं किया था. बहुत जल्दी दोनों में दोस्ती हो गई. करण ने अंजुल को अगले हफ्ते अपने औफिस की पार्टी का न्योता दे डाला.
‘‘इतनी जल्दी पार्टी इन्वाइट? हम आज ही मिले हैं,’’ अंजुल ने करण की गति को थामने का नाटक करते हुए कहा.
‘‘मैं टाइम वेस्ट करने में विश्वास नहीं करता,’’ वह अपने पूरे वेग से दौड़ना चाह रहा था.
‘‘दिन में सपने देख रहे हो…’’
‘‘दिन में सपने देखने को प्लानिंग कहते हैं, मैडम,’’ अंजुल की खुमारी पहले ही दिन से करण के सिर चढ़ कर बोलने लगी.
पार्टी में अंजुल काली चमकदार ड्रैस में कहर ढा रही थी. करण तो उस के पास से हटने का नाम ही नहीं ले रहा था. कभी दौड़ कर स्नैक्स लाता तो कभी ड्रिंक.
‘‘क्या कर रहे हो करण. मैं खुद ले लूंगी जो मुझे चाहिए होगा,’’ उस की इन हरकतों से मन की तहों में पुलकित होती अंजुल ने ऊपरी आवरण ओढ़ते हुए कहा.
‘‘ये सब मैं तुम्हारे लिए नहीं, अपने लिए कर रहा हूं. मुझे पता है किस को खुश करने से मैं खुश रहूंगा,’’ करण फ्लर्ट करने का कोई अवसर नहीं गंवाना चाहता था.
पार्टी में सब ने बहुत आनंद उठाया. खायापीया, थिरकेनाचे. पार्टी खत्म होने
को थी कि अंजुल के पास अचानक महीप आ पहुंचे. इसी बात की राह वह न जाने कब से देख रही थी.
औसम की पार्टी में आने का एक कारण यह भी था.
‘‘तुम्हें यहां देख कर अच्छा लगा,’’ संक्षिप्त सा वाक्य महीप के मुख से निकला.
‘‘तुम महीप दत्त को कैसे जानती हो?’’ उन की मुलाकात से करण अवश्य अचरज में पड़ गया, ‘‘बहुत ऊंची चीज लगती हो.’’
‘‘हैलो, चीज किसे बोल रहे हो?’’ अंजुल ने अपनी कोमल उंगलियों से एक हलकी सी चपत करण के गाल पर लगाते हुए कहा, ‘‘आफ्टर औल, महीप दत्त हमारे क्लाइंट हैं,’’ उस ने इस से अधिक कुछ बताने की आवश्यकता नहीं समझा.
अंजुल हर दूसरे दिन औसम के औफिस पहुंच जाती. करण से फ्लर्ट करने से उस के कई काम बन जाते, यहां तक कि जब उस की ऐड कैंपेन डिजाइन में कुछ कमी रह जाती तब भी उसे काम करवाने के लिए फालतू समय मिल जाता. ‘औसम’ के फाइनैंस सैक्सशन से भी अंजुल एकदम समय पर पेमैंट निकलवाने में कारगर सिद्ध होती.
‘‘हमारे यहां एक फाइनैंस डिपार्टमैंट पेमैंट को ले कर बहुत बदनाम है, पर देखता हूं कि तुम्हारी हर पेमैंट टाइम से हो जाती है. वहां भी अपना जादू चलाती हो क्या?’’ एक दिन करण के पूछने पर अंजुल खीसें निपोरने लगी. अब उसे क्या बताती कि अपनी सैक्सी बौडी पर मर्दों की लोलुप्त नजरों को झेलना उस की कोई मजबूरी नहीं, अपितु कई नफे हैं. जरा अदा से हंस दिए, एकाध बार हाथ से हाथ छुआ दिया, आंखों की गुस्ताखियों वाला खेल खेल लिया और बन गया अपना मन चाहा काम.
कुछ माह बीतने के बाद इतने दिनों की जानपहचान, हर मुलाकात में फ्लर्ट, दोनों का लगभग एक ही उम्र का होना, ऐसे कारणों की वजह से अंजुल को आशा थी कि संभवतया करण उस के साथ लिवइन में रहने की पेशकश कर सकता है. तभी तो वह हर बार अपने मकानमालिक के खड़ूस होने, अधिक किराया होने, कमरा अच्छा न होने जैसी बातें किया करती, ‘‘काश, मैं किसी के साथ अपना किराया आधा बांट सकती.’’
‘‘तुम अपना रूम शेयर करने को तैयार हो? मैं तो कभी भी शेयर न करूं. मुझे अपनी प्राइवेसी बहुत प्यारी है,’’ करण की ऐसी फुजूल की बातों से अंजुल का मनोबल गिर जाता.
‘‘जरा मेरे कैबिन में आना, अंजुल,’’ रणदीप ने इंटरकौम पर कहा.
अंजुल ने उस के कैबिन में प्रवेश किया तो हर ओर से ‘हैप्पी बर्थडे टु यू’ के सुर गुंजायमान होने लगे.
रणदीप आज उस का जन्मदिन खास अपने कैबिन में औफिस के सभी लोगों को बुला कर मना रहा था, ‘‘अंजुल, हमारे औफिस में जब से आईं हैं तब से इन की मेहनत और लगन ने हमारी ऐजेंसी को कहां से कहां पहुंचा दिया…’’, रणदीप सब को संबोधित करते हुए कहने लगा.
‘‘ऐसा लग रहा है जैसे हम तो यहां काम करने नहीं तफरी करने आते हैं,’’ लोगों में सुगबुगाहट होने लगी.
‘‘हमारा तो कभी जन्मदिन नहीं मनाया गया,’’ अर्पित फुंका बैठा था. आखिर उस के नीचे आई अंजुल आज औफिस में उस से अधिक धूम मचा रही थी.
‘‘आप अंजुल हैं क्या जो रणदीप आप की तरफ यों मेहरबान हों?’’ दबेढके ठहाकों के स्वर अंजुल के कानों में चुभने लगे.
औफिस में शानदार पार्टी फिर कभी रणदीप तो कभी करण तो कभी फाइनैंस डिपार्टमैंट के अनिल साहब… अंजुल ने कहां नहीं अपने तिलिस्म का जादू बिखेरने का प्रयास किया. किंतु हाथ क्या लगा. केवल दफ्तर के लोगों की खुसपुसाहट. पुरुष सहकर्मियों की लार टपकाती निगाहें या फिर महिला सहकर्मियों की घृणास्पद हेय दृष्टि.
आज अंजुल पूरे 32 वर्ष की हो गई थी, परंतु इतनी खूबसूरती और इतनी हौट फिगर होते हुए भी कोई उस का हाथ थामने को तैयार नहीं था. सब को केवल उस की कमर में अपनी बांह की चाहत थी. व्यग्र मन और निद्राहीन नयन लिए अंजुल कई घंटे बिस्तर पर लेटी अपने कमरे की छत ताकती रही.
जब पिछले महीने वह अपना रूटीन चैकअप करवाने डाक्टर के पास गई थी तब उस लेडी डाक्टर ने भलमनसाहत में सलाह दी थी कि देखिए अंजुल, स्त्रियों का शरीर एक जैविक घड़ी के हिसाब से चलता है. मां और बच्चे की अच्छी सेहत के लिए 30 वर्ष की आयु से पहले बच्चा हो जाए तो सर्वोत्तम रहता है किंतु 35 वर्ष से देर करना श्रेयस्कर नहीं रहता. आप की बायोलौजिकल क्लौक चल रही है. आप को सैटल होने के बारे में सोचना चाहिए. इन विचारों में घिरी अंजुल के कानों में घड़ी की टिकटिक का शोर बजने लगा. व्याकुलता से उस ने तकिए से अपने कान ढक लिए.
अगले दिन अंजुल ने औफिस में एक नए प्रोजैक्ट की पिच के बारे में सुना तो रणदीप से उसे मांगने पहुंच गई.
‘‘परंतु यह प्रोजैक्ट मुंबई में है और तुम दिल्ली का ‘औसम’ अकाउंट हैंडल कर रही हो,’’ रणदीप के सुरों में हिचकिचाहट थी.
‘‘सो वाट, रणदीप, मैं दोनों को हैंडल कर सकती हूं. मुंबई में भी तो हमारा एक औफिस है. मैं वहां विजिट करती रहूंगी और ‘औसम’ तो जाती ही रहती हूं,’’ अंजुल ने रणदीप को अपनी बात मानने हेतु राजी कर लिया.
मुंबई पहुंच कर अंजुल औफिस के गैस्ट हाउस में ठहरी. कमरा एकदम साधारण
था, किंतु उस के यहां आने का लक्ष्य कुछ और था. अंजुल डरने लगी थी कि कहीं ऐसा न हो जाए कि उस के हाथों से उस की उम्र तेजी से रेत की मानिंद फिसल जाए और वह खाली हथेलियों को मलती रह जाए. अपनी सैक्सी बौडी की बदौलत उस ने कई अवसर पाए थे, जिन्हें उस ने अपनी बुद्धि व चपलता के बलबूते बखूबी भुनाया था.
उस का अनुमान रहा था कि इसी आकर्षण के कारण उसे अपना जीवनसाथी मिल जाएगा, परंतु अब बढ़ती उम्र ने उसे डरा दिया था. हो सकता है करण बात आगे बढ़ाए, मगर अभी तक उस ने ऐसा कोई इशारा नहीं दिया, केवल फ्लर्ट करता रहता है.
इसलिए समय रहते उसे अपने लिए एक जीवनसाथी तो खोजना ही पड़ेगा. मुंबई में 2 दफ्तरों में जा कर हो सकता है उसे अपने औफिस या फिर क्लाइंट औफिस में कोई मिल जाए…
जब अंजुल मुंबई में क्लाइंट के औफिस पहुंची तो उसे एक लड़के से मिलवाया गया. लड़का बेहद खूबसूरत लगा. उसे देख कर अंजुल के मन में सुनहरे ख्वाब सजने लगे.
‘‘माई नेम इस ऋषि. मैं इस औफिस की तरफ से आप का कौंटैक्ट पौइंट रहूंगा,’’ ऋषि ने अपना परिचय दिया.
‘‘आप का नाम, आप का व्यक्तित्व, सबकुछ शानदार है. आप से मिल कर बेहद प्रसन्नता हुई,’’ अंजुल ने अपने दिल में उठ रही हिलोरों को बाहर बहने से बिलकुल नहीं रोका.
उस की बात सुन कर ऋषि हौले से हंस पड़ा. काम पर अपनी पकड़ से अंजुल ने उसे पहली ही मीटिंग में प्रभावित कर दिया. फिर लंच के समय ऋषि ने अंजुल से पूछा कि औफिस की तरफ से उस के लिए क्या मंगवाया जाए?
‘‘कुछ भी चलेगा बस साथ में आप की कंपनी जरूर चाहिए,’’ अंजुल अब समय बरबाद नहीं करना चाहती थी.
पहले ही दिन से दोनों में अच्छी मित्रता हो गई. अपने बचपन, शिक्षा, कैरियर, परिवार संबंधी काफी बातें साझा करने के बाद दोनों ने शाम को एकदूसरे से विदा ली. गैस्ट हाउस लौट कर अंजुल ने कपड़े बदले और निकल गई गेटवे औफ इंडिया की सैर करने. ‘कल ऋषि से कहूंगी कि मुंबई की सैर करवाए,’ वह सोचने लगी. आज इसलिए नहीं कहा कि कहीं वह डैसपरेट न लगे. सुबह जो कमरा उसे बहुत साधारण लगा था, अब वहीं उसे उजले सपनों ने घेर लिया.
अगले दिन क्लाइंट औफिस जाते हुए रास्ते में करण का फोन आया, ‘‘हाय जानेमन, कैसा लग रहा है मुंबई?’’
‘‘फर्स्ट क्लास, शहर भी और यहां के लोग भी,’’ अंजुल ने चहक कर उत्तर दिया.