अमिताभ बच्चन से लेकर शिल्पा शेट्टी तक, इतने अन्धविश्वासी हैं ये सेलेब्स

सफलता और स्वास्थ्य लाभ के लिए आम इंसान की तरह सेलेब्स भी अन्धविश्वासी होते है. अधिकतर कलाकार बॉक्सऑफिस पर सफलता पाने के लिए फिल्मों के रिलीज से पहलेकिसी टोटके या पूजा-अर्चना का सहारा लेते है और इस गुड लक के लिए उन्हें जो भी करने पड़े, वे करते रहते है.इसके अलावा फिल्मों में किसी खास रंग या सीन को भी जानबूझकर डाला जाता है. इन सबमें एकता कपूर सबसे आगे है,उसके बाद अमिताभ बच्चन, सलमान खान, शाहरुख़ खान, आमिर खान, दीपिका पादुकोण जैसे कई सितारें है, जो अन्धविश्वासी होने के साथ-साथ इसे फोलो करने मेंबहुत अधिक रिजिड है. हालाँकि इसका दर्शकों पर कोई असर नहीं पड़ता, उनके लिए सही कहानी, निर्देशन और एक्टिंग ही खास होती है,जिसके बलबूते पर फिल्म बॉक्स ऑफिस पर हिट साबित होती है.

असल में जब व्यक्ति अपने जीवन में सफलता, स्वास्थ्यऔर रिश्ते की मजबूती को अपने बलबूते पर हल खोजमें असमर्थ होते है, तो तर्क छोड़कर अन्धविश्वास का सहारा लेते है, जिसमे कई बार जान-माल की क्षति भी होने पर व्यक्ति उसमे अपनी ही कुछ गलती निकालकर खुद को संतुष्ट कर लेते है. हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के ऐसे कई सितारें है, जो तर्क को साइड में रख अंधविश्वासी है.इसमें कुछ सेलेब्स अपनी किस्मत को चमकानेके लिए गहनों के तौर पर लकी चार्म पहनते है, तो कुछ ऐसे है, जिनके पास कुछ अजीबोगरीब अन्धविश्वास है. आइये जानते है सेलेब्स के अन्धविशवासी होने की वजह क्या है?क्या आज भी वे इसे मानते है?

अमिताभ बच्चन –

अपने अंधविश्वास को लेकर मेगास्टार अमिताभ बच्चन ने खुद एक इंटरव्यू में बताया कि वह क्रिकेट खेल के प्रेमी है लेकिन वह कभी लाइव मैच नहीं देखते है, क्योंकि उनको लगता है कि वह मैच देखेंगे, तो विकेट गिरेंगे और भारत हार जाएगा. वहीं वह एक नीलम की अंगूठी भी पहनते है, जिसको लेकर वह मानते है कि इस अंगूठी को पहनने के बाद ही उनके जीवन से बुरा वक्त खत्म हुआ था और उनकी किस्मत चमकी थी.

सलमान खान 

अभिनेता सलमान खान अपना लकी चार्म सेफायर ब्रेसलेट को मानते है, इसे उनके पिता ने गिफ्ट के रूप में दिया है. एक बार एक पार्टी में सलमान की ब्रेसलेट खो गयी, तब इसे अस्मित पटेल ने खोज कर उसे दिया. सलमान ने ऐसी एक ब्रेसलेट गोविंदा को उनके कैरियर को ठीक करने के लिए गिफ्ट के रूप में दिया है. हालाँकि गोविंदा पहले से ही ब्लू ब्रेसलेट पहनते है, पर उन्हें सलमान का दिया हुआ ब्रेसलेट भी बहुत पसंद है. सूत्रों की माने तो सलमान ने रमजान के दौरान फिल्म ‘किक’ के लिए इस गुड लॉक को पहना था और उस फिल्म में भी इसे पहना हुआ ही दिखाया गया है, हालाँकि फिल्म फ्लॉप रही.

शाहरुख़ खान

बादशाह खान का लकी नंबर उनके कार की है. वे नंबर की शक्ति को मानते है, इसलिए उनके कार का स्पेशल सीरियल नंबर 555 है.उनके गाड़ी में इस नंबर प्लेट का होना अनिवार्य है. वे इस नंबर की कार के बिना कही जाना पसंद नहीं करते. फिल्म ‘’चेन्नई एक्सप्रेस’ की पोस्टर के लिए उन्होंने जिस बाइक की सवारी की थी, उसका नंबर प्लेट पर भी 555 ही था.

कैटरिना कैफ

अभिनेत्री कैटरिना कैफ अपनी सफलता का श्रेय अजमेर शरीफ को देती है. वह बहुत ही अन्धविश्वासी है. हर फिल्म की रिलीज से पहले दरगाह जाती है और वह इसे जरुरी भी मानती है. दरगाह जाते वक्त वह ट्रेडिशनल कपडे पहनती है और चेहरे को जितना हो सके ढककर जाती है. वहां कैटरिना भीड़ से बचने के लिए अपने गार्ड्स द्वारा बनाये गए सर्किल के बीच में घूमती है. फिल्मों में छोटे ड्रेस पहनने को लेकर वह कई बार कंट्रोवर्सी की शिकार हुई, लेकिन उन्हें दरगाह जाने से कोई रोक नहीं सका.

आमिरखान

परफेक्शनिस्ट आमिरखान खुद को अन्धविश्वासी नहीं कहते, लेकिन वे किसी भी फिल्म को क्रिसमस के अवसर पर रिलीज करना पसंद करते है. साल 2007 में फिल्म ‘तारे जमीन पर’ की अपार सफलता के बाद उन्होंने फिल्म गजनी, 3 इडियट्स, धूम 3 आदि को दिसम्बर के महीने में ही रिलीज किया है. इस बारें में पूछने पर उनका कहना है कि वे अपने फैन्स को क्रिसमस पर फिल्म के ज़रिये गिफ्ट देते है.

रणवीरसिंह

अभिनेता रणवीर सिंह एक सफल कलाकार है, उनकी प्रतिभा जग जाहिर है,जिसे उन्होंने मेहनत के बल पर पाया है, लेकिन वे भी अपने पैर पर एक काला धागा बांधते है. इसे वे अपना लकी चार्म मानते है. इसे उनकी माँ ने पहनाया था, क्योंकि उन दिनों रणवीर काफी स्वास्थ्य समस्याओं का सामना कर रहे थे.

 

एकता कपूर

एकता कपूर के ‘क’अक्षर के प्रति दीवानगी किसी से छिपी नहीं है. उन्होंने कैरियर की शुरुआत‘क’ से शुरू होने वाली नामों से सीरियल बनाया, क्योंकि सास भी कभी बहू थी, कहानी घर घर की, कुंडली, कोई अपना सा आदि शोज किये,जो सफल रही. इसके अलावा एकता के हाथों में कई आध्यात्मिक धागे और अंगूठियां पहने देखा जा सकता है, जिसे वह अपने लिए शुभ मानती है. उनके इस अंधविश्वास के बारें में पूछने पर एकता इसे दुष्ट शक्ति बताती है, जिसे देखा नहीं, महसूस किया जाता है और उन सबसे खुद को दूर रखने के लिए ये सब पहनती है.

ऋत्विक रोशन

बॉलीवुड एक्टर ऋतिक रोशन अपने काम को लेकर हमेशा ही बहुत कमिटमेंट रखते हैं और  हमेशा पॉजिटिव माइंडसेट से रहते हैं. ऋतिक अपने एक्स्ट्रा अंगूठे को लकी मानते हैं और वो फिल्मों से लेकर इवेंट्स तक सभी में इसे एक बार अवश्य दिखाते हैं, क्योंकि वे इसे भाग्यशाली मानते है और इसकी सर्जरी करवाना नहीं चाहते.

रणवीर कपूर

रणबीर कपूर की बात करें तो नंबर 8 को वो अपने लिए लकी मानते है. आलिया भट्ट के शादी के कलीरे से लेकर गाड़ी के नंबर प्लेट तक 8 नंबर की बहुत ज्यादा अहमियत दिया गया है, इसे रणवीर इन्फिनिटी साइन के हिसाब से भी देखते हैं.

अक्षय कुमार

खिलाडियों के खिलाडी अक्षय कुमार वैसे तो खुद को अन्धविश्वासी नहीं कहते, लेकिन जब भी अपनी फीस तय करते है, उसका जोड़ 9 होना जरुरी है. साथ ही किसी खाली शीट पर ओम लिखकर दिन की शुरुआत करते है. इसके अलावा अक्षय कुमार को लगता है कि उनके यहाँ रहने पर बॉक्स ऑफिस कलेक्शन ठीक नहीं होगी, इसलिए रिलीज से पहले वह विदेश चले जाते है.

शिल्पा शेट्टी

फिटनेस फ्रिक सफल अभिनेत्री शिल्पा शेट्टी क्रिकेट की फैन हैं और उनके पास अपनी क्रिकेट टीम भी है.वह जब भी क्रिकेट ग्राउंड पर जाती हैं, तो अपनी कलाई पर दो घड़ियां पहनती हैं. इतना ही नहीं जब दूसरी टीम बैटिंग कर रही होती है, तो वह बैठते समय अपने पैरों को क्रॉस कर लेती हैं और जब उनकी खुद की टीम होती है, तो वो अपने पैरों को खोल लेती है.

बिपाशा बासु

हॉट और टैलेंटेड एक्ट्रेस बिपाशा बसु को बुरी नजर से बचने के लिए ईवल आई का इस्तेमाल करना बहुत पसंद है.वह हर शनिवार के दिन अपनी गाड़ी में नींबू मिर्च लगाने का रिवाज  फॉलो करती हैं.

विद्या बालन

अभिनेत्री विद्या बालन की अन्धविश्वासी एक अलग तरीके की है, एक खास ब्रांड का काजल वह आँखों पर लगाती है, उसे लगाये बिना वह घर से नहीं जाती. इसे वह लकी मानती है.

REVIEW: जानें कैसी है Thor- Love and Thunder

रेटिंगः तीन स्टार

निर्माताः मार्वल स्टूडियो

लेखकः जेनिफर केटिन रॉबिन्सन और टाइका वाइटीटी

निर्देशकः टाइका वाइटीटी

कलाकारः क्रिस हेम्सवर्थ, नताली पोर्टमैन, क्रिश्चियन बेल, टेसा थॉम्प्सन और क्रिस प्रैट

अवधिः लगभग दो घंटे

भारत में कॉमिक्स कमी नही है. सभी मानते हैं कि सिनेमा और साहित्य का अति गहरा व अटूट संबंध है. कॉमिक्स के किरदार हमेशा बच्चों से बूढों तक हर किसी को भाते रहे हैं. ‘नागराज’ से लेकर ‘दिल्ली प्रेस’ की पत्रिका ‘चंपक’ में भी कई लोकप्रिय कॉमिक्स किरदार हैं, जिन पर कई लंबी सीरीज की बेहतरीन फिल्में बन सकती हैं. मगर बौलीवुड के फिल्मकारों का ध्यान इस तरफ जाता ही नही है. जबकि ‘मार्वल स्टूडियोज’ अपनी ‘मार्वल कॉमिक्स’ पर लगातार फिल्में लेकर आता जा रहा है. मार्वल स्टूडियोज ने कॉमिक्स कहानियों के बलबूते पर ही व्यापार का एक विशाल साम्राज्य खड़ा कर लिया है. अब ‘मार्वल स्टूडियोज‘ की नई फिल्म ‘‘थॉरः लव एंड थंडर’’ आयी है, जो कि मार्वल सिनेमैटिक यूनिवर्स की कहानी की 29वीं फिल्म है. वास्तव में स्टैन ली ने कॉमिक्स के तौर पर एक काल्पनिक लोक असगार्ड के देवता थोर की कहानी सोची थी, उसे ही अब लैरी लीबर और जैक किर्बी जैसे लेखक विस्तार दे रहे हैं. यूं तो 1962 में ‘जर्नी इनटू मिस्ट्री’ नामक कॉमिक बुक से थोर नामक किरदार का जन्म हुआ था, जो कि 2011 में पहली बार ‘टीम एवेंजर्स’ का हिस्सा बनकर परदे पर अवतरित हुआ और गार्जियन्स अॉफ गैलेक्सी के साथ मिलकर कुछ अलग करने का वादा करके पिछली फिल्म में विदा लेने वाला थोर अब एक अलग रंग में ‘थौरः लव एंड थंडर’ में नजर आ रहा है. फिल्म में एक्शन के साथ हास्य भी है. मगर यह फिल्म प्यार पर सवाल उठाती है कि क्या ब्रम्हांड की सबसे बड़ी ताकत प्यार है?वहीं देवताओं के अस्तित्व पर भी सवाल उठाया गया है.

फिल्म में थोर का किरदार  निभाने वाले अभिनेता क्रिस हेम्सवर्थ ने ग्यारह वर्ष पहले पहली बार इस किरदार को निभाया था. और अब तक वह आठ बार थोर का किरदार निभा चुके हैं. मगर बतौर सोलो हीरो ‘थोरः लव एंड थंडर’ उनकी चैथी फिल्म है. शुरूआत में थोर उद्दंड और मनमौजी था, लेकिन वक्त के साथ उसमंे बदलाव आता गया.

कहानीः

प्यार में बार बार दिल तुड़वाने और अपनों को खोने के बाद थोर अपना जीवन इस गैलेक्सी की रक्षा के लिए समर्पित कर देता है और ब्रह्मांड में जहां भी उसकी मदद की जरूरत पड़ती है,  वह हमेशा ‘गार्डियंस अॉफ गैलेक्सी’ के साथ निकल पड़ता है. इसी कड़ी में उसे पता चलता है कि गोर द गॉड बुचर (क्रिश्चियन बेल) ने प्यास से अपनी बेटी के मरने के बाद देवताओं का खात्मा करने के मिशन पर है और उसने बहुत से देवताओं की निर्मम हत्या कर दी है. वास्तव में भीषण सूखे व पानी के लिए तरसते लोग मौत के मुॅह में समा जाते है. पृथ्वी पर अब केवल गोर द गॉड बुचर व उसकी छोटी बेटी ही बची है और बिना पानी के वह भी मुत्यु के कगार पर है. गोर हर देवता से अपनी बेटी को जिंदा रखने के लिए पानी की गुहार लगाता है. मगर उसकी मदद करने के लिए कोई देवता सामने नही आता. अंततः गोर की बेटी काल के मुॅह में समा जाती है, तब गोर द गॉड बुचर सभी देवताओे के विनाश के मिशन पर निकल पड़ता है.  यही नहीं,  उसका अगला निशाना थोर का ऐशगार्ड है,  जहां के बच्चों को उसने किडनैप कर लिया है. अब थोर, ज्यूस (रसल क्रो) सहित बाकी देवताओं को एकजुट करके गोर को खत्म करने का निर्णय लेता है. मगर ज्यूस उसका मजाक बनाता है. पर थोर अपनी यात्रा पर निकल पड़ता है. इस यात्रा में थोर की मुलाकात एक बार फिर अपने आठ वर्ष पुराने प्यार जेन फोस्टर होती है,  जो कैंसर के चैथे स्टेज पर है,  पर थोर के हथौड़े की ताकत से खुद माइटी थोर बना चुकी है. तो वहीं वलकैरी (टेसा थॉम्पसन) और स्टोनी क्रॉल भी उसका साथ देते हैं. अब सवाल है कि क्या थोर अपने मकसद में कामयाब होता है? इसके लिए फिल्म देखनी ही पड़ेगी.

लेखन व निर्देशनः

यूं तो निर्देशक टाइका वाइटीटी ने अपने काम को बाखूबी अंजाम दिया है. लेकिन फिल्म हिचकाले लेकर ही आगे बढ़ती है. शुरूआत में जब एक भक्त गोर अपनी निजी नुकसान के बदले देवताओं से बदला लेने के तहत देवताओं के विनाश के मिशन पर निकलता है, तो शुरूआती दृश्य सिहरा देते है. मगर फिर फिल्म पटरी से उतर जाती है. फिल्म में एक्शन,  इमोशन के साथ- साथ कॉमिडी का भरपूर तड़का है. मगर इस बार थोर की एडवैंचर व रोमांच की जो पहचान है, वह इस फिल्म में गायब है. इसे लेखक व निर्देशक की कमजोरी ही कही जाएगी. तों वही थोर व जेन की प्रेम कहानी भी बहुत ही सपाट है. आठ वर्ष बाद मुलाकात होने पर दोनों के बीच जो गर्मजोशी होनी चाहिए, उसका घोर अभाव है. एक्शन दृश्य भी कमाल के ेनही बन पाए हैं. वास्तव में लेखको ने गोर के शैतानी दिमाग व उसकी शैतानी हरकतांे को ठीक से विस्तार ही नही दिया है.

अभिनयः

थोर के किरदार में क्रिस हेम्सवर्थ ने अपने अभिनय से आकर्षण कायम रखा है. मगर नताली उनसे इक्कीस साबित हुई है. जी हॉ!माइती थोर के किरदार में नताली पोर्टमैन का अभिनय काफी सशक्त हैं. उन्होंने क्रिस हेम्सवर्थ को भी मात दे दी है. यह क्रिस हेम्सवर्थ के लिए खतरे की घंटी है और उन्हे अपने अभिनय को निखारने के लिए नए सिरे से विचार करना होगा. गोर का किरदार निभाने वाले अभिनेता क्रिश्चियन बेल अपने अभिनय की छाप छोड़ने में सफल रहे हैं, जबकि उनके किरदार को ठीक से विकसित नही किया गया. गोर का किरदार निभाने वाले अभिनेता क्रिश्चियन बेल अपने अभिनय की छाप छोड़ने में सफल रहे हैं, जबकि उनके किरदार को ठीक से विकसित नही किया गया.

मुझे खुद को मां के रूप में अंदर से तैयार करना पड़ा- शिवालिका ओबेराय

अब बौलीवुड का तरीका बदल गया है. अब हर कलाकार अपनी तरफ से पूरी तैयारी करके ही बौलीवुड में कदम रखता है. तभी तो शिवालिका ओबेराय ने अभिनय की टेनिंग लेने के बाद बतौर सहायक निर्देशक काम करते हुए फिल्म माध्यम को अच्छी तरह से समझा. उसके बाद उन्होने फिल्म ‘साली ये आशिकी’ से अभिनय के क्षेत्र में कदम रखा. यह फिल्म खास नही चली. लेकिन फिल्म‘खुदा हाफिज’से शिवालिका ओबेराय को अच्छी पहचान मिली और अब वह फिल्म ‘खुदा हाफिजः चैप्टर 2’ को लेकर एक्साइटेड हैं.

हाल ही में शिवालिका ओबेराय से लंबी बातचीत हुई. प्रस्तुत है उसका अंश. . .

आपके दादा जी फिल्म निर्माता थे. क्या इसी के चलते आपने भी फिल्मों से जुड़ने का फैसला लिया?

-पहली बात तो मैंने अपने दादाजी को देखा ही नही. सच यह है कि जब मेरे पिता जी सोलह वर्ष के थे, तभी मेरे दादा जी का देहांत हो गया था. मैने सिर्फ सुना है कि मेरे दादा जी ने एक फिल्म का निर्माण किया था. मेरे माता पिता फिल्म इंडस्ट्री से नहीं जुड़े हुए हैं. मेरी मां शिक्षक है. मेरी बहन कुछ और काम करती है. हुआ यह था कि स्कूल की पढ़ाई के दौरान ही मेरी नजर एक्टिंग स्कूल पर पड़ गयी थी, जो कि मेरे स्कूल के पास में ही था. वहां से मैने मम्मी से कहना शुरू किया था कि मुझे एक्टिंग स्कूल में जाकर देखना है कि क्या सिखाया जाता है.  फिर यह इच्छा कालेज पहुॅचते पहुॅचते बढ़ गयी. उस वक्त तक मुझे नही पता था कि मेरे दादाजी ने फिल्म बनायी थी. वैसे अलबम में मैने दादा जी निर्मित फिल्म ‘शीबा और हरक्यूलिस’ की फोटो एक बार देखी जरुर थी,  जिस पर लिखा था निर्माता महावीर ओबेराय. कालेज में पहुॅचने के बाद मैने अपनी मम्मी से कहा कि जब मेरे दादा जी फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े हुए थे? तो फिर आप मुझे क्यों रोक रही हैं? तब मेरी मम्मी ने मुझे बैठकर समझाया था कि फिल्म इंडस्ट्री बहुत ही ज्यादा इनप्रैडिक्टेबल है. इंसान का कैरियर स्थायी होना चाहिए, जो कि फिल्म इंडस्ट्री में नहीं होता. इसलिए पहले पढ़ाई पूरी करो. उसके बाद सोचना. आम बच्चों की तरह मेरे दिमाग में भी आया कि माता पिता को सब कुछ कठिन लगता है. पर मुझे कुछ करके दिखाना है. मैने अंग्रेजी और मनोविज्ञान विषय के साथ स्नातक की पढ़ाई पूरी की. उसी दौरान मैने अनुपम खेर के एक्टिंग स्कूल से तीन माह का अभिनय में डिप्लोमा कोर्स किया. फिर मैने अनुभव लेने के लिए सहायक निर्देशक बनी. तब मुझे मम्मी की बात याद आ गयी कि फिल्म इंडस्ट्री में कैरियर बनाना कितना कठिन है. मम्मी कहती थी कि ऐसे तो सुबह दस बजे से पहले सोकर नहीं उठती,  देखती हूं कि छह बजे सेट पर कैसे पहुॅचेगी? सच कहूं तो मेरी मम्मी ने मुझे बदलते हुए देखा ओर उन्हे अहसास हुआ कि यह अपने कैरियर को लेकर गंभीर है, इसलिए कर लेगी.

आपकी मम्मी शिक्षक हैं. शिक्षक बच्चों पर अपनी बात न सिर्फ थोपने का प्रयास करता है, बल्कि वैसा ही बच्चे से करवा लेता है?

-आपने एकदम सही कहा. मेरी मम्मी के अंदर भी बच्चांे को अपनी बात समझा लेने का अद्भुत गुण है. पर मैं खुद को बदलने के लिए जो मेहनत कर रही थी, उसे मेरी मम्मी देख रही थीं. बतौर सहायक निर्देशक काम करने के दौरान मैं अपने माता पिता से एक वर्ष तक दूर रही हूं. सोलह वर्ष से मैं काम कर रही हूं, पर मम्मी ने मुझसे स्नातक तक की पढ़ाई करवायी है. तो जो वह चाहती थीं, वह भी उन्होने मुझसे करवाया.

सीधे अभिनय की बजाय सहायक निर्देशक के रूप में कैरियर शुरू करने के पीछे आपकी क्या सोच थी?

-किताबी ज्ञान की बजाय सेट पर जाकर  प्रैक्टिकल ज्ञान अर्जित करना ही मकसद था. सेट पर छोटी छोटी बरतें जब अलग होती हैं,  तो उसका क्या असर होता है, वह समझ मंे आया. कैमरा रेडी नही है. इस तरह की सौ समस्याएं होती है. कैमरे के सामने कलाकार के अभिनय करने मात्र से फिल्म नही बनती. फिल्म निर्माण में सौ से अधिक लोग होेते हैं, उतनी ही चीजे होती है. एक चीज गड़बड़ हो जाए, तो उसका किस तरह से कलाकार की अभिनय क्षमता पर असर हो सकता है, वह समझना और उससे कैसे उबरा जाए यह सब भी सीखना था. बतौर सहायक निर्देशक मैने जो कुछ सीखा, उसी के चलते‘ये साली आशिकी’ और ‘खुदा हाफिज’ फिल्मों में मैं बतौर अभिनेत्री अपना सर्वश्रेष्ठ दे पायी थी.

बतौर सहायक निर्देशक काम करते हुए आपने ऐसी कौन सी बात सीखी, जो अभिनय में सबसे ज्यादा काम आ रही है?

-पैशंस. . जिंदगी में धैर्य रखना बहुत कठिन काम है, बतौर सहायक निर्देशक काम करते हुए मैने धैर्य रखना सीखा. अब मेरे अंदर उतावलापन नही है. ‘हाउसफुल 3’ में बतौर सहायक निर्देशक काम करने के बाद मेरे पास जो दो वर्ष थे, जब तक मुझे मेरी पहली फिल्म बतौर अभिनेत्री नही मिली, तब तक बहुत कठिन समय था. हर दिन आॅडीशन देना, रिजेक्शन होना, तो यह सब सहन करती रही. इसी बीच मैने खुद को व्यस्त रखने के एड भी किए. जो हम चाहते हैं, वह मिलने तक खुद का धैर्य बनाए रखना सबसे मुश्किल चीज है.

ऑडीशन में रिजेक्शन होने पर परेशान होती होंगी?

-रिजेक्शन की वजह से परेशान होना स्वाभाविक है. पर मैं हर आॅडीशन में बेहतर होती गयी. क्योंकि मेरे अंदर एक जिद रही है कि जिसकी कमी बताई जाए, उसे दूर करने के लिए जुट जाना. तो मैं हर आॅडीशन के बाद अपनी कमी को दूर करती रही. मैं हर रिजेक्शन के बाद ठान लेती थी कि मुझे अब इससे बेहतर परफार्मेंस देनी है. मुझसे कई लोगों ने कहा कि आप फिल्म इंडस्ट्री का हिस्सा नही है, इसलिए अभिनेत्री नही बन सकती. तो मैने ठान लिया था कि मैं अभिनेत्री बनकर दिखाउंगी. मैने लोगों को गलत साबित करने के लिए अपनी पूरी ताकत लगा दी.

आपकी पहली फिल्म ‘ये साली आशिकी’ को बाक्स आफिस पर सफलता नही मिली थी. जबकि यहां सब कुछ सफलता पर निर्भर करता है?

-आपने एकदम सही कहा. फिल्म में मै और वर्धन पुरी के अलावा निर्देशक नए थे. इसलिए बाक्स आफिस पर इसने ठीक ठाक बिजनेस नहीं किया था. जबकि फिल्म क्रिटिक्स ने हमारे अभिनय की तारीफ की थी. फिल्म का ठीक से प्रचार भी नही हुआ. लोगों को फिल्म के बारे में पता ही नही चला. लेकिन मेरे कैरियर की दूसरी फिल्म ‘खुदा हाफिज’के सफल होने के बाद लोगो ने ‘ये साली आशिकी’ देखी. मुझे ‘ये साली आशिकी’ के लिए फिल्मफेअर अवार्ड के लिए नोमीनेट किया गया था, पर पुरस्कार नही मिला था. तो बुरा लगा था कि मैने इतनी मेहनत की और नतीजा शून्य रहा. लेकिन मैने ठान लिया था कि मैं अपनी पहचान अपनी खूबसूरती के बल पर नही बल्कि अभिनय क्षमता क बल पर बनाउंगी. मैं चाहती हूं कि लोग मुझे उत्कृष्ट अदाकारा के रूप में पहचानें.

तो पहली फिल्म की असफलता के बाद खुद को किस तरह बदलने की बात सोची?

-मुझे लोगों ने बताया था कि मैने अपनी तरफ से अच्छा अभिनय किया है. पर इस फिल्म की असफलता के बाद मैने निर्णय लिया कि अब मैं दूसरी फिल्म अलग तरह के जॉनर की करुंगी. वैसे भी पहली फिल्म में हल्का सा ‘ग्रे’ शेड वाला किरदार निभाते हुए कैरियर शुरू करना रिस्क था, जिसे मैने उठाया. मैने दूसरी हीरोईनों की तरह रोमांटिक फिल्म से कैरियर की शुरूआत नहीं की थी. इस फिल्म न करने की सलाह मुझे कई लोगों ने दी थी. फिर भी बिना प्रचार के कुछ लोगों ने इस फिल्म को महज अलग तरह की होने के चलते देखा. मेरा मानना है कि अगर हम हर फिल्म में एक जैसा करते रहेंगंे, तो फिर दूसरी अभिनेत्रियों और मेेरी अभिनय यात्रा में कोई अंतर नहीं रह जाएगा. ‘ये साली आशिकी’ के प्रदर्शन से पहले ही मैने फिल्म ‘खुदा हाफिज’ अनुबंधित कर ली थी। ‘ये साली आशिकी’ की शूटिंग पूरी होने के बाद से मेरे पास फिल्मों के आफर आ रहे थे. मैं आॅडीशन देने के साथ ही फिल्म की पटकथाएं भी पढ़ रही थी. पर मुझे समझ मंे नही आ रही थी. जब फिल्म ‘खुदा हाफिज’ की पटकथा मुझे मिली, तो मैने पाया कि यह एक रियालिस्टिक कहानी है. इसके साथ ही इसमें प्यार व ढेर सारा इमोशंस भी है. किरदार मेरी शख्सियत से एकदम विपरीत है. मुझे अहसास हुआ कि इसमें एक कलाकार के तौर पर मेरी अभिनय क्षमता की रेंज लोगों की समझ में आएगी. तो मैने ‘खुदा हाफिज’ की और मेरा यह निर्णय सही रहा.

‘खुदा हाफिज’ और ‘खुदा हाफिज 2’’ में कितना अंतर है?

-यह कहानी भी रियालिस्टिक ही है. पहले भाग में मेरा नरगिस का किरदार इन्नोसेंट,  संकोची, शर्मीली, शहर से बाहर ज्यादा न निकलने वाली लड़की थी. सीधी सादी, नेक्स्ट डोर गर्ल थी. लेकिन उसके साथ जो हादसा होता है, उससे उसके अंदर जो बदलाव आता है, वह बदलाव अब आपको ‘खुदा हाफिज 2’ में नरगिस के अंदर नजर आएगा. उसके साथ तो कुछ बीता, वह उसी को पता है कि उसने उससे कैसे डील किया. तो आपको ‘खुदा हाफिज 2’ में नजर आएगा कि नरगिस क्या डील कर रही है. एक लड़की को एक कमरे के अंदर क्या अहसास होता है. इसमें पहले भाग की अपेक्षा इस भाग मंे इमोश्ंास का ग्राफ भी नजर आएगा. इन्नोेसेंस भी नजर आएगा. उसके अंदर की ताकत नजर आएगी. यहां पर नरगिस  एक एडॉप्टेड बच्चे की मां है. तो मां के जो इमोशंस हैं और वह भी एडौप्टेड बच्चे के साथ, उसके लिए मुझे काफी काम करना पड़ा. मैने इस फिल्म की लखनउ में एक माह तक शूटिंग के दौरान अपनी मां से बात नहीं की थी और मेरी मां ने मुझे को फोन करके बताया था कि मेरी बहन ने जुड़वा बच्चों को जन्म दिया है. उस दिन मै यात्रा कर रही थी. मतलब मैं अपने किरदार में इस कदर इंवालब थी.

आप स्वाभाविक तौर पर जब मां बनती हैं, तो उसके इमोशंस व अहसास बहुत अलग होते हैं. पर एडॉप्टेड बच्चे की मां के अहसास व इमोशंस अलग होते हैं. इन्हे लाने के लिए आपको किस तरह की तैयारी करनी पड़ी?

-आपके एकदम सही कहा. दोनों अवस्था में अहसास अलग अलग ही होते हैं. इतनी छोटी उम्र और कैरियर की शुरूआत में ही मां का किरदार न निभाने की सलाह मुझे कई लोगों ने दी थी. जब निर्देशक फारुख सर ने मुझसे ऐसा करने के लिए कहा तो मेरी आंखों में आंसू थे. देश में बहुत कम लोगो को एडॉप्शन के बारे में पता है. ऐसे लोग एडॉप्टेड बच्चे को लेकर मां के इमोशंस को भी नही समझ सकते. देखिए, एडॉप्टेशन एक सामाजिक मुद्दा है. लोगों को लगता है कि अपना बच्चा ही अपना होता है, एडॉप्टेड बच्चा अपना नही होता. जबकि यह गलत है. तो इस तरह के कई सामाजिक मुद्दे इस फिल्म में उठाए गए हैं. मुझे तो यॅूं भी बच्चे बहुत पसंद हैं. लेकिन मुझे खुद को मां के रूप में अंदर से तैयार करना पड़ा था.

आपकी फिल्म ‘खुदा हाफिज’ ओटीटी पर स्ट्रीम हुई थी. अब ‘ये साली आशिकी’ के बाद ‘‘खुदा हाफिज 2’ भी सिनेमाघरों में प्रदर्शित होगी. आपको नही लगता कि ओटीटी पर की बजाय सिनेमाघर में फिल्म के रिलीज होने पर जो रिस्पांस मिलता है, वह एक कलाकार के लिए बहुत अलग होता है?

-देखिए, कोविड के वक्त जब लोगो के पास मनोरंजन के सारे साधन बंद थे, तब ओटीटी पर ‘खुदा हाफिज’ आयी और लोगों ने इसे काफी देखा. उस वक्त लोग आॅन लाइन ही ढेर सारा कांटेंट देख रहे थे. एक कलाकार के तौर पर मैं ओटीटी और थिएटर हर जगह प्रदर्शित होने वाली फिल्म में अभिनय करना चाहती हूं. लेकिन जब हम खुद को बड़े परदे पर देखते हैं, तो बहुत ही अलग तरह के अहसास होते हैं. लेकिन जब लोग मोबाइल पर हमारी फिल्म देख रहे होते हैं, तो यह देखकर अलग तरह का अहसास होता है. कोविड के वक्त ओटीटी पर आने वाली हमारी फिल्म ‘खुदा हाफिज’ बहुत बड़ी बन गयी थी. हर कोई इसके बारे में बात कर रहा था. मैं तो खुश हूं. लेकिन ‘खुदा हाफिज 2’ पूरी तरह से सिनेमाघरों के लिए बनी है. इसमें उसी स्तर का एक्शन है. ग्रैंजर है.

REVIEW: आर माधवन का नया आयाम है ‘रॉकेट्रीः द नाम्बी इफेक्ट’

रेटिंगः साढ़े तीन स्टार

निर्माताः सरिता माधवन, आर माधवन, वर्गीस मूलन और विजय मूलन

लेखक व निर्देशकः आर माधवन

कलाकारःआर माधवन,  सिमरन,  रजित कपूर, राजीव रवींद्रनाथन,  कार्तिक कुमार,  शाहरुख खान,  गुलशन ग्रोवर व अन्य

अवधिः दो घटे 37 मिनट

एनसीसी कैडेट के रूप में अच्छी प्रतिभा दिखाने के चलते चार वर्ष तक ब्रिटिश आर्मी से ट्रेनिंग लेकर फौजी बनकर लौटे आर माधवन को चार माह उम्र ज्यादा हो जाने के कारण भारतीय सेना का हिस्सा बनने से वंचित रह जाने के बाद आर माधन ने इंजीनियरिंरग की पढऋाई की. फिर वह स्पीकिंग स्किल व पर्सनालिटी डेवलवपेंट के प्रोफेसर बने. फिर टीवी सीरियलों में उन्हे अभिनय करने का अवसर मिला. टीवी पर 1800  एपीसोडों में अभिनय करने के बाद आर माधवन को मणि रत्नम ने तमिल फिल्म में रोमांटिक हीरो बना दिया और वह तमिल फिल्मों के सुपर स्टार बन गए. फिर कई तरह के किरदार निभाए. आनंद एल राय के निर्देशन में ‘तनु वेड्स मनु’ में अभिनय कर सिनेमा को एक नई दिशा देने का भी काम किया. फिर ‘साला खडूस’ का निर्माण किया और अब बतौर लेखक, निर्देशक व अभिनेता आर माधवन फिल्म ‘‘रॉकेट्रीः द नाम्बी इफेक्ट’’ लेकर आए हैं. आर माधवन हमेशा उन फिल्मों को हिस्सा बनने का प्रयास करते आए हैं, जो कि आम जीवन का प्रतिबिंब बने. आर माधवन की नई फिल्म ‘‘रॉकेट्रीः द नांबी इफेक्ट’ बहुत ही अलग तरह की फिल्म है. बौलीवुड के फिल्मकार इस तरह की फिल्में बनाने से दूर रहना पसंद करते हैं. यह एक विज्ञान व इसरो वैज्ञानिक फिल्म होते हुए भी भावनाओ से ओतप्रोत है.  इसकी कहानी भावपूर्ण है. दर्शक फिल्म के माध्यम से त्रिवेंद्रम निवासी इसरो वैज्ञानिक नंबी नारायण के जीवन व कृतित्व से रूबरू होते हुए उनके साथ हुए अन्याय को भी महसूस करते हैं. फिल्म ‘रॉकेट्रीः द नांबी इफेक्ट’ न जुनूनी लोगों की दास्तां है, जो अपने घर व परिवार को हाशिए पर ढकेल कर काम में ही अपनी जिंदगी लगा देते हैं. मगर उनके अपने ही उनकी पीठ पर छूरा घोंप देते हैं.

इस फिल्म की गुणवत्ता का अहसास इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस फिल्म को देखते हुए स्वयं महान वैज्ञानिक नंबी नारायण रो रहे थे.

कहानीः

फिल्म की कहानी इसरो के मशहूर वैज्ञानिक रहे नंबी नारायण की कहानी है. लिक्विड इंजन व क्रायजनिक इंजन बनाने में उनकी अहम भूमिका रही है. वह विक्रम साराभाई के शिष्य रहे. बाद मंे अब्दुल कलाम आजाद व सतीश धवन के साथ भी काम किया. नारायणन ने नासा फैलोशिप अर्जित कर 1969 में प्रिंसटन विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया. वहां पर अपनी प्रतिभा के बल पर महज दस माह के रिकॉर्ड समय में प्रोफेसर लुइगी क्रोको के तहत रासायनिक रॉकेट प्रणोदन में अपनी थीसिस पूरी की. उसके बाद उन्हे नासा में नौकरी करने का आफर भी मिला था. मगर वह क्रायजिनक इंजन पर भारत में ही काम करने के मकसद से नासा का आफर ठुकरा कर भारत आ गए. यहां  इसरो की नौकरी करते हुए नम्बी नारायण ने विज्ञान जगत में कई अनोखे प्रयोग किए. उन्हेाने ‘विकास’ रॉकेट का इजाद किया. यह विकास इंजन ही इसरो से भेजे जाने वाले सभी उपग्रहों को अंतरिक्ष में ले जा रहा है. 1992 में भारत ने क्रायोजेनिक ईंधन-आधारित इंजन विकसित करने के मकसद से चार इंजनों की खरीद का सौदा रूस के साथ किया था. मगर अमरीकी राष्ट्रपति जॉर्ज एच डब्लू बुश के दबाव में रूस ऐसा नही कर पा रहा था. तब नंबी नारायण के प्रयासों से  भारत ने दो मॉकअप के साथ चार क्रायोजेनिक इंजन बनाने के लिए रूस के साथ एक नए समझौते पर हस्ताक्षर किए. और अमरीकी सैनिकों की नजरों से बचाकर इन्हे भारत लाने में सफल हुए थे. मगर तभी 1994 में नंबी नारायण पर पाकिस्तान को रॉकेट साइंस तकनीक बेचने का आरोप लगा. उन्हे काफी यातनाएं दी गयीं. अंततः साल की अदालती लड़ाई के बाद उन्हे सारे आरोपों से बरी कर दिया गया. 2019 में नरेंद्र मोदी सरकार ने नंबी नारायण को पद्मभू षण से सम्मानित किया. 24 वर्षों बाद उनकी गरिमा वापस लौटी, लेकिन अगर उन्हें इसरो में यह समय काम करने को मिला होता, तो शायद भारत रॉकेट साइंस में किसी अन्य मुकाम पर होता.

मगर हमारे भारत देश में अक्सर जीनियस या यूं कहें कि अति बुद्धिमान लोगों के साथ राजनीति के तहत या अन्य वजहों से ऐसी बदसलूकी हो जाती है और ऐसे लोगों के बारे में कहीं कोई सुध नही लेता है और उन्हे लंबे वक्त तक निर्दोष होते हुए भी तमाम पीड़ाओं से गुजरना पड़ता है. फिल्म के अंत में शाहरुख खान राष्ट् की तरफ से नंबी से माफी मांगते है, मगर माफी देने से इंकार करते हुए नंबी कहतेहैं-‘अगर मैं निर्दोष था, तो कोई तो दोषी था. आखिर वह दोषी कौन था. ’’

लेखन व निर्देशनः

आर माधवन एक बेहतरीन अभिनेता होने के साथ ही अच्छे लेखक भी हैं. वह पहले भी कुछ फिल्में लिख चुके हैं. कुछ फिल्मों के संवाद लिख चुके हैं. मगर निर्देशन में उनका यह पहला कदम है. उनकी माने तो पहले कोई दूसरा निर्देशक था, मगर ऐन वक्त पर उसके छोड़ देने पर आर माधवन को खुद ही निर्देशन की बागडोर भी संभालनी पड़ी. परिणामतः कुछ निर्देशकीय कमियां भी नजर आती हैं. आर माधवन ने इस कहानी को बयां करने के लिए एक अलग तरीका अपनाया है. बौलीवुड अभिनेता शाहरुख खान नंबी नारायण का इंटरव्यू लेते हैं और तब नंबी के मंुह से शाहरुख खान उनकी कहानी सुनते हैं. पर मूल कहानी शुरू होने से पहले नंबी नारायण की गिरफ्तारी व उनके परिवार के साथ पहले दिन जो कुछ हुआ था, उसके दृश्य आते हैं, इसकी जरुरत नही थी. इसके अलावा फिल्म में कई दृश्य अंग्रेजी भाषा में हैं. आर माधवन ने ऐसा फिल्म को पूरी तरह से वास्तविक बनाए रखने के लिए किया है. मगर वह उन दृश्यों में ‘हिंदी’ में ‘सब टाइटल्स’दे सकते थे. इससे दर्शक के लिए फिल्म से जुड़ना आसान हो जाता. इसके बावजूद इस विज्ञान फिल्म को जिस तरह से आर माधवन ने परदे पर उतारा है, वह एक भावनात्मक फिल्म के रूप मंे दर्शको के दिलो तक पहुंचती है. इंटरवल से पहले के हिस्से में वैज्ञानिक शब्दों का उपयोग जरुर दर्शकों को थोड़ा परेशान करता है. मगर इंटरवल के बाद कहानी काफी इमोशनल है और दर्शक नंबी के उस इमोशन को मकसूस करता है. फिल्म को वास्तविक बनाए रखने के लिए पूरी फिल्म वास्तविक लोकेशनों पर ही फिल्मायी गयी है. फिल्म का वीएफएक्स भी कमाल का है. 1969 से लेकर अब के माहौल को जीवंत करना एक निर्देशक के तौर पर उनकी सबसे बड़ी चुनौती रही है, जिसे  सफलता पूर्वक अंजाम देने में वह सफल रहे हैं. फिल्म में कई ऐसे दृश्य है जो कि बिना संवादों के भी काफी कुछ कह जाते हें. मसलन एक दृश्य है. अदालत से जमानत पर रिहा होने के बाद जब  नंबी अपनी पत्नी मीरा संग उसे अस्पातल में दिखाकर वापस लौट रहे होते हैं, तब भीषण बारिश हो रही है और पानी में भीग रहे तिरंगे के नीचे यह दंपति बेबस खड़ा है. क्योंकि कोई भी रिक्शावाला या गाड़ी वाला उन्हे बैठाने को तैयार नही है.

पता नही क्यों वास्तविकता गढ़ते हुए भी आर माधवन ने हाल ही में गिरफ्तार किए गए पूर्व आई बी अधिकारी आर बी श्रीकुमार का नाम नहीं लिया, जो कि 1994 में केरला में ही तैनात थे.

अभिनयः

नंबी नारायण के किरदार में आर माधवन ने शानदार अभिनय किया है.  आर माधवन ने अपने अभिनय के बल पर 29 वर्ष से लेकर 70 वर्ष तक की उम्र के नंबी नारायण को परदे पर जीवंतता प्रदान की है. इसके लिए आर माधवन ने प्रोस्थेटिक मेकअप का उपयोग नहीं किया है. उन्होने नंबी नारायण की ही तरह अपने दंातों को दिखाने के निए अपना जबड़ा तक टुड़वाया. बाल भी रंगे और बालो को असली नजर आने के ेलिए 18 घ्ंाटे कुर्सी पर बैठकर रंगवाते थे. पूरी फिल्म को अपने कंधो पर उठाकर आर माधवन ने अपनी अभिनय प्रतिभा के नए आयाम पेश किए हैं. नंबी नारायण की पत्नी मीरा के किरदार में तमिल अदाकारा सिमरन ने भी बेहतरीन अभिनय किया है. उन्होने पति का घर में समय न दे पाने से लेकर देशभक्त पति के उपर झूठा इल्जाम लगने की पीड़ा को बाखूबी परदे पर दिखाया है.

नंबी नारायण से इंटरव्यू लेने वाले अभिनेता शाहरुख खान अपनी पहचान के साथ ही है. उन्होंने इंटरव्यू लेने वाले के किरदार को बहुत बेहतरीन तरीके से न सिर्फ निभाया है बल्कि अपने अभिनय से नंबी की पीड़ा का अहसास करते हुए भी नजर आते हैं. लंबे समय बाद शाहरुख खान ने छोटे किरदार में ही सही मगर बेहतरीन परफार्म किया है.

मीडिया की इस रिपोर्ट के कारण Alia Bhatt को आया गुस्सा, कही ये बात

बॉलीवुड एक्ट्रेस आलिया भट्ट इन दिनों अपनी प्रैग्नेंसी के चलते सोशलमीडिया पर छाई हुई हैं. जहां फैंस और सेलेब्स एक्ट्रेस पर प्यार लुटा रहे हैं तो वहीं हाल ही में मीडिया की एक खबर ने एक्ट्रेस को नाराज कर दिया है. आइए आपको बताते हैं पूरी खबर….

आलिया ने कही ये बात

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शादी के 2 महीने बाद ही अपनी प्रैग्नेंसी की न्यूज फैंस को बताने वाली एक्ट्रेस ने हाल ही में एक मीडिया समूह को आड़े हाथ लिया है. एक एंटरटेनमेंट पोर्ट्ल की खबर पर एक्ट्रेस ने अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए सोशलमीडिया पर एक स्टोरी शेयर की है. दरअसल, एक रिपोर्ट ने दावा किया था कि एक्ट्रेस की प्रेग्नेंसी के चलते पति रणबीर कपूर उन्हें लेने के लिए यूके जाएंगे. हालांकि एक्ट्रेस ने पोर्ट्ल के पोस्ट को शेयर करते हुए लिखा, ‘हम आज भी उन लोगों के दिमाग में रहते हैं. जो कि कुछ पितृसत्तामक लोगों की दुनिया में रहते हैं. आपकी जानकारी के लिए… कुछ भी देरी से नहीं होने वाला है. किसी को किसी को लेकर आने की जरूररत नहीं हैं.  मैं एक औरत हूं एक पार्सल नहीं. मुझे बिल्कुल भी आराम करने की जरूरत नहीं है. लेकिन ये सुनकर अच्छा लगा कि आप सभी को डॉक्टर का सर्टिफिकेशन भी है.  ये 2022 है.  क्या हम कृप्या करके इस सोच की दुनिया से बाहर निकल सकते हैं.  अगर आप मुझे माफ करें तो मेरा शूट रेडी है. ‘

 

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शूटिंग के बीच सुनाई खुशखबरी

एक्ट्रेस आलिया भट्ट इन दिनों अपनी हॉलीवुड फिल्म की शूटिंग में बिजी है. वहीं इस दौरान ही उन्होंने अपनी प्रैग्नेंसी का खुलासा किया और फैंस का सोशलमीडिया के जरिए शुक्रिया भी अदा किया है. वहीं खबरों की मानें तो हॉलीवुड की फिल्म शूट करने के बाद वह रॉकी और रानी की प्रेम कहानी को भी पूरा करेंगी. इसके अलावा रणबीर कपूर की बात करें तो वह इन दिनों अपकमिंग फिल्म शमशेरा के प्रमोशन में बिजी हैं.

REVIEW: तलाक जैसे संवेदनशील मुद्दे पर बेतुकी फिल्म है JUG JUGG JEEYO

रेटिंगः दो स्टार

निर्माताः धर्मा प्रोडक्शंस और वायकाम 18 स्टूडियो

निर्देशकः राज मेहता

कलाकारः अनिल कपूर, नीतू कपूर, वरूण धवन,  किआरा अडवाणी,  मनीष पौल, प्रजाक्ता कोली,  टिस्का चोपड़ा, वरूण सूद,  एलनाज नौरोजी व अन्य.

अवधिः दो घंटे तीस मिनट

‘‘गुड न्यूज’’ फेम निर्देशक राज मेहता इस बार पारिवारिक ड्रामा वाली हास्य फिल्म ‘‘जुग जुग जियो’’ लेकर आए हैं, जो कि काफी निराश करती है.

कहानीः

फिल्म की कहानी पटियाला,  पंजाब के एक परिवार की है,  जिसके मुखिया भीम हैं. भीम(अनिल कपूर) के परिवार में उनकी पत्नी गीता(नीतू कपूर), बेटा कुकू(वरूण धवन ), कुकू की पत्नी नैना (किआरा अडवाणी) और बेटी गिन्नी ( प्रजाक्ता कोली  ) है. इस अत्याधुनिक परिवार की लीला अजीब है. भीम अपनी शादी के 35 वर्ष बाद अपनी पत्नी गीता को तलाक देने जा रहे हैं, पर वजह नही पता. जबकि उनका बेटा कुकू शादी के पांच वर्ष बाद अपनी पत्नी नैना को तलाक देेने जा रहा है, इसे भी वजह पता नही. बेटी गिन्नी प्यार तो गौरव से करती है, मगर अपने माता पिता व भाई भाभी को आदर्श दंपति मानते हुए पिता द्वारा सुझाए गए युवक बलविंदर से विवाह करने जा रही है. कुकू और नैना एक दूसरे से पांचवीं  कक्षा में पढ़ते समय से प्यार करते आ रहे हैं और दोनों शादी भी कर लेते हैं. शादी के बाद दोनो टोरंटो , कनाडा चले जाते हैं, क्योंकि वहां पर नैना की नौकरी लग जाती है. जबकि कुकू वहां पर नाइट क्लब में बाउंसर की नौकरी करने लगते हैं. अचानक शादी की पांचवीं सालगिरह के दिन दोनों एक दूसरे को तलाक लेेने का निर्णय सुना देते हैं. पर तय करते हैं कि पटियाला में गिन्नी की शादी के ेबाद यह दोनो अपने निर्णय से परिवार के सदस्यों को अवगत कराएंगे. पटियाला पहुॅचकर दोनांे आम शादी शुदा जोड़े की ही तरह रहते हैं. गिन्नी की शादी की रस्में शुरू होती है और एक दिन भीम शराब के नशे में अपने बेटे कुकू से कह देता है कि गिन्नी की शादी के बाद वह गीता को तलाक देकर अपनी प्रेमिका मीरा( टिस्का चोपड़ा) के साथ रहने जा चले जाएंगे. यह बात कुकू को पसंद नही आती. फिर कुकू अपने साले गुरप्रीत शर्मा (मनीष पौल ) की सलाह पर बलविंदर से बैचलर पार्टी में भीम को भी बुलाने के लिए दबाव डालते हैं, जिससे भीम की ठरक मिट सके. पर यहां एक अलग ही हंगामा हो जाता है. उधर गिन्नी अपनी बैचलर पार्टी से बाहर निकलकर अपने प्रेमी गौरव (वरूण सूद )  के साथ ‘किसिंग’ करती है. कई तरह के नाटकीय घटनाक्रमों के साथ फिल्म का अंत हो जाता है.

लेखन व निर्देशनः

कहानी व पटकथा की नींव ही कमजोर है. कहानी को बेवजह रबर की तरह खींचा गया है. ढाई घंटे की अवधि वाली इस फिल्म में लेखक व निर्देशक  दोनों यह नही बता सके कि नैना यानी कि किआरा अडवाणी कनाडा में कहां नौकरी करती है और नैना व कुकू के बीच तलाक की नौबत क्यों आयी? जबकि पत्नी नैना के कैरियर के लिए कुकू पटियाला छोड़कर कनाडा जाकर बाउंसर की नौकरी करता है. इसी तरह भीम क्यों गीता केा छोड़कर मीरा के साथ जिंदगी जीने का निर्णय लेता है, नही बताया. एक तरफ गीता, नैना को समझाती है कि विवाह को सफल बनाने के लिए नारी को समझौतावादी होना चाहिए, तो कुछ समय बाद वह सम्मान की भी बात करती है. पूरी तरह से लेखक व निर्देशक खुद ही कंन्फ्यूज हैं. उन्हे नही पता कि वह किस तरह की की कहानी सुनाना चाहते हैं. नैना व ककू के जो हालात हैं, वही हालात ज्यों का त्यों 2006 में आयी फिल्म ‘कभी अलविदा ना कहना’ में शाहरुख खान व रानी मुखर्जी के किरदारों के बीच दर्शक देख चुके हैं. इतना ही नही फिल्म के संवादो मंे कहीं कोई अहसास नजर नहीं आता. कहानी पंजाबी पृष्ठभूमि की है, इसलिए कहीं भी बेवजह पंजाबी गाने ठॅंूसे गए हैं. तलाक जैसे संवेदनशील मुद्दे पर  राज मेहता दर्शकों को अच्छी कहानी सुनाने में बुरी तरह से असफल रहे हैं. फिल्म का क्लायमेक्स एकदम घटिया है. क्लायमेक्स में लेखक व निर्देशक यह भी भूल गए कि वह भारतीय परिवार की कहानी बता रहे हैं. गानों के फिल्मांकन में पानी की तरह पैसा बहाया गया है, मगर सब बेकार. एक भी गाना प्रभाव नहीं छोड़ता. डेढ़ सौ करोड़ की लागत वाली इस फिल्म में दर्शकों को बांध कर रखने की ताकत नही है.

अभिनयः

राज मेहता की किस्मत अच्छी रही कि उन्हे बेहतरीन कलाकारों के साथ काम करने का अवसर मिला. सभी कलाकारों ने अपनी तरफ से सर्वश्रेष्ठ देेने का प्रयास किया है, मगर जब उन्हे कहानी,  पटकथा व संवादों का सहयोग नहीं मिलेगा, तो कलाकार क्या करेगा?फिर भी कुकू के किरदार में वरूण धवन ने बेहतरीन अभिनय किया है. नृत्य हो या नाटकीय दृश्य या हास्य हर जगह वह बेहतर कलाकार के रूप में उभरते हैं. किआरा अडवाणी ने एक बार फिर साबित कर दिखाया कि उनके अंदर अभिनय प्रतिभा की कमी नही है. नीतू कपूर को अभिनय में वापसी के लिए इससे अच्छा अवसर नही मिल सकता था. लेकिन इन सभी कलाकारों के मुकाबले अति उत्तम अभिनय अनिल कपूर का रहा. वह पूरी फिल्म को अपने कंधों पर लेकर चलते हैं. हास्य और भावनाओं के बीच बेहतरीन सामंजस्य बैठाने का काम अनिल कपूर ने ही किया है.

कब शादी करेंगी Kiara Advani, इंटरव्यू में दिया ये जवाब

संघर्ष और संघर्ष करना मेरे जीवन का मुख्य बन गया था, क्योंकि मुझे फिल्मों में काम करने की इच्छा बचपन सेथी, इसलिए मुझे जो भी मौके मिले, अभिनय करती गयी. कुछ लोगों ने मुझे ताने भी मारे, पर मैंने हार नहीं मानी. आज फिल्म भूल भुलैया 2 सफल फिल्म बनी, इसकी वजह मुझे मौका मिलना है, फिर मैं अपनी प्रतिभा को आगे ला पाई. अभी फिल्म जुग – जुग जियों आने वाली है. फिल्म सफल होने के लिए मैं अपनी फिंगर क्रॉस कर रही हूँ, अभी तो काम शुरू हुआ है, आगे बहुत कुछ करना बाकी है, ऐसा लगातार चलता रहे, मेरी यही विश है, हंसती हुई कहती है, अभिनेत्री कियारा अडवानी.

कियारा आडवानी का अब हिंदी सिनेमा जगत में एक जानी-मानी नाम बन चुकी है. उनकी सफल फिल्में कबीर सिंह, गुड न्यूज़, लक्ष्मी, भूल भुलैया 2 आदि है. उन्होंने कैरियर की शुरुआत फिल्म ‘फगली’ से किया था, फिल्म नहीं चली और कियारा को अच्छी भूमिका नहीं मिली. इसके बाद फिल्म ‘कबीर सिंह’ में उनके काम को सभी ने सराहा और उन्हें काम मिलना शुरू हुआ.

कियारा के पिता, जगदीप आडवाणी व्यवसायी है. माँ जेनेविज जाफरी आधी मुस्लिम आधी ब्रिटिश मूल की है. उन्होंने अपनी स्नातक मास कम्युनिकेशन में की है. यहाँ तक पहुँचने में उन्होंने बहुत मेहनत और धीरज धरी है.

सवाल – अभी आपकी फिल्में लगातार सफल हो रही है,इसका श्रेय किसे देना चाहती है?

जवाब – इसका अर्थ ये हुआ कि अच्छी कहानी होने पर फिल्में चलती है, दर्शक देखते है, पिछले दिनों कोविड की वजह से काम ढाई साल से रुका था. सबको लगा था किदर्शकों को  हॉल तक लाना मुश्किल होगा, पर भूलभूलैया 2 में दर्शक आये और उन्हें मेरी फिल्म पसंद भी आई क्योंकि कोविडने व्यक्ति की जो इमोशन को ख़त्म कर दिया था, वह फिर से शुरू हो चुका है.

सवाल – फिल्म की सफलता को कैसे सेलिब्रेट करती है?

जवाब – फिल्म की सफलता के बाद सेलिब्रेट करना रह गया है.मेरे लिए सफलता को सेलिब्रेट करना अच्छा होता है, मैं ग्राउंडेड रहती हूँ. सेलिब्रेशन फिल्म धोनी द अन टोल्ड स्टोरी से शुरू हुई है, इसके बाद कबीर सिंह थी. इसमें मैं परिवार के साथ कही घूमने जाना या समय बिताना पसंद करती हूँ. पहले जब मेरे पास सफल फिल्मे नहीं थी, तो काम भी नहीं था. अभी सफल फिल्में है तो अवसर की कमी हो गयी है. अभी जो फिल्में आ रही है,इन फिल्मों का काम कई साल से चल रहा था, इस बीच सबको कोविड हुआ, काम रुक गयी, ऐसा करते-करते ये फिल्में बनी है. उम्मीद है अगली साल तक मुझे सेलिब्रेशन के लिए एक सप्ताह का मौका मिलेगा और मैं अपने परिवार के साथ कही जा सकूंगी.

सवाल –फिल्मों की सफलता के बाद आप में क्या बदलाव आया है?

जवाब – फिल्मों की सफलता से मुझमे किसी प्रकार का बदलाव नहीं आया है. मैं पहले की तरह अभी भी मॉल में जाती हूँ, वहां अगर कोई मुझसे सेल्फी मांगता है तो मैं उसे मना नहीं करती, क्योंकि उनकी वजह से आज मैं यहाँ तक पहुंची हूँ, अगर वे आयेंगे नहीं तो मुझे कौन पहचानेगा? उनके लिए मेरी ये छोटी सी सेल्फी अगर उनका दिन बना देती है तो मुझे देने में कोई समस्या नहीं होनी चाहिए. ये ही मेरे प्रसंशक है जो सालों तक मेरी इस सेल्फी को सम्हाल कर रखने वाले है.

सवकल – आप मेहनत के बलबूते पर यहाँ पहुंची है, अभी फिल्म इंडस्ट्री के निर्माता, निर्देशकों के वर्ताव में कितना बदलाव देख रही है?

जवाब –  ये सही है कि मैंने कई फिल्मों में काम करने के बाद भी असफलता ही हाथ लगी, इससे मैं बैक फुट पर चली गयी,फिर उससे निकलना मुश्किल था. मुझे समझना पड़ा कि ये  मेरे कैरियर का अंत नहीं है. पहली फिल्म की असफलता के बाद लगा कि अब सब खत्म हो चुका है. तब मैंने अपने दिल को समझाया कि हर शुक्रवार को हर फिल्म सफल नहीं हो सकती और इस दौरान मैंने अपने अंदर अधिक सुधार की कोशिश की. इससे मुझे अच्छा करने की प्रेरणा मिली.

सवाल –कोविड के बाद सभी ने परिवार के महत्व को समझा, जो पहले किसी के पास परिवार को समझने का समय नहीं था, आप में क्या बदलाव आया?

जवाब – मैंने हमेशा से परिवार को ही अधिक महत्व दिया है, लेकिन कोविड के समय सभी ने बहुत सारा वक्त परिवार के साथ बिताया है. तब उन्हें परिवार के मूल्य को सभी ने समझा. समय ऐसा था, जब सभी ने अपने किसी प्रियजनको कोविड से खोया है. पैसे से वे अपनों को बचा नहीं पाए. इससे परिवार को अब सभी आगे रखकर काम कर रहे है. भाग-दौड़ की जिंदगी से खुद को अलग रख रहे है. इस फिल्म में भी रिश्तों के बीच समझौता, टकरार को बखूबी दिखाने की कोशिश की गयी है. रिश्तों में अनबन होती है, लेकिन इसे नर्चर करते रहना पड़ता है. कोविड की वजह से लोगों के जीवन में बहुत मायूसी रही है और ऐसे अब लोग मनोरंजक फिल्में देखना और हँसना पसंद कर रहे है. मैं वैसी ही फिल्में करना चाहती हूँ.

सवाल –जेंडर डिस्क्रिमिनेशन हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में बहुत है, क्या आपने इसे महसूस किया?

जवाब – महसूस किया है, लेकिन मेरे हिसाब से केवल हीरो ही नहीं पूरी टीम एक फिल्म की सफलता के लिए जिम्मेदार होती है. समाज, परिवार और धर्म में भी जेंडर डिस्क्रिमिनेशन का सामना करना पड़ता है. मुझे तो ख़ुशी तब होती है जब दर्शक मेरे अभिनय को फिल्म में पसंद करते है. कई बार भूमिका छोटी होने पर भी उसका महत्व अधिक होता, ऐसी भूमिका करने में मुझे कोई समस्या नहीं.

सवाल – शादी कब कर रही है?

जवाब – शादी अभी करने के बारें में नहीं सोचा है, लेकिन शादी तब करुँगी, जब मुझे लगेगा कि शादी से मेरे कैरियर पर कोई प्रभाव नही पड़ेगा. मैंने परिवार में अच्छी, सफल शादियाँ देखी है और मुझे वैसी ही परिवार और पार्टनर चाहिए, जहाँ सास और बहू में अच्छी तालमेल हो.

डेब्यू से पहले ही Shanaya Kapoor का छाया लुक, ऐसे जीत रही हैं फैंस का दिल

करण जौहर की प्रौड्यूस की गई बौलीवुड फिल्म बेधड़क से में एक्टर संजय कपूर की बेटी शनाया कपूर फिल्मी दुनिया में कदम रखने वाली हैं, जिसके लिए वह डांस से लेकर अपने लुक्स पर खास ध्यान दे रही हैं. हाल ही में कपूर्स सिस्टर्स की लेट नाइट पार्टी में एक्ट्रेस शनाया कपूर का ग्लैमरस अंदाज देखने को मिला है, जिसे देखकर फैंस बेहद खुश हैं. हालांकि इससे पहले कई बार वह अपने ग्लैमरस अंदाज से फैंस का दिल जीत चुकी हैं. आइए आपको बताते हैं पूरी खबर…

शनाया कपूर ने लूटी लाइमलाइट

हाल ही में एक्ट्रेस जाह्नवी कपूर ने अपनी बहन खुशी कपूर के मुंबई लौटने की खुशी में एक पार्टी दी थी, जिसमें अदाकारा कपूर सिस्टर्स का जलवा देखने को मिला था. हालांकि इस पार्टी में एक्ट्रेस शनाया कपूर ने अपने लुक्स से जान डाल दी थी. शिमरी ड्रैस में पार्टी में पहुंची एक्ट्रेस ने अपने इस लुक को फ्लौंट करते हुए एक से बढ़कर एक फोटोज क्लिक करवाई और सोशलमीडिया पर शेयर की थीं, जिसे देखते ही फैंस दिवाने हो गए हैं.

जाह्नवी कपूर भी नहीं थीं कम

 

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दरअसल, हाल ही में अपनी डेब्यू फिल्म द आर्चीज के ऊटी शिड्यूल को पूरा करके खुशी कपूर मुंबई लौटी थीं, जिसके चलते जाह्नवी कपूर ने पार्टी रखी थी. वहीं इस पार्टी की थीम के चलते हर कोई शिमरी अंदाज में नजर आया था. जहां एक्ट्रेस जाह्नवी कपूर पर्पल कलर की शिमरी ड्रैस में नजर आईं थीं तो वहीं एक्ट्रेस खुशी कपूर शनाया कपूर से मैचिंग सिल्वर शिमरी ड्रैस में नजर आईं.

 

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फैशन में नहीं हैं कम

एक्ट्रेस शनाया कपूर के फैशन की बात करें तो वह बिकिनी हो या इंडियन अवतार, हर लुक में फैंस का दिल जीतती हैं. वहीं अपने इंस्टाग्राम पेज पर अपने नए-नए लुक से फैंस के दिलों पर बिजलियां गिराती हुई नजर आती हैं. फैंस को उनका हर अंदाज बेहद पसंद आता है.

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क्या निर्देशक Aanand L Rai और अक्षय कुमार को फिल्म Raksha Bandhan का मिलेगा सहारा

फिल्मकार आनंद एल राय जब तक आम दर्शकों की पसंद के अनुरूप छोटे शहरों की छोटी छोटी बातों व सामाजिक मुद्दों को लेकर  तनु वेड्स मनु’,‘रांझणा’, ‘तनु वेड्स मनु रिटर्न’,‘निल बटे सन्नाटा’,‘शुभ मंगल सावधान’ जैसी फिल्में लेकर आते रहे,तब तक वह सफलता के शिखर की तरफ बढ़ते चले गए. आनंद एल राय की इन सभी फिल्मों को दर्शकों ने काफी पसंद किया. मगर इन फिल्मों की सफलता के बाद आनंद एल राय गफलत के शिकार हो गए. उन्होने मान लिया कि जो वह सोचते है,वही सही है. बस यहीं से मामला गड़बड़ा गया. परिणामतः ‘मुक्काबाज’,‘जीरो’,‘लाल कप्तान’, ‘हसीन दिलरूबा’,‘अतरंगी रे’ जैसी उनकी फिल्में बाक्स आफिस पर कोई कमाल न दिखा पायीं. इनमें से ‘जीरो’ और ‘अतरंगी रे’ का निर्माण करने के साथ ही आनंद एल राय ने निर्देशन भी किया.

मगर इन फिल्मों की असफलता से आनंद एल राय ने कुछ सबक सीखा और एक बार फिर वह जमीनी सतह से जुड़े विषय  पर ‘रक्षाबंधन’’ फिल्म लेकर आ रहे हैं,जो कि आगामी ग्यारह अगस्त को देश भर के सिनेमाघरों में पहुॅचेगी, जिसका ट्रेलर चंादनी चैक स्थित डिलाइट सिनेमाघर मंे रिलीज किया गया. . फिल्म ‘रक्षाबंधन’ की कहानी पुरानी दिल्ली के बस्ती चांदनी चैक  की पृष्ठभूमि में चार बहनों व भाई के बीच प्यार,अपनापन व लगाव के साथ मध्यमवर्गीय जीवन की कहानी है. फिल्म ‘‘रक्षा बंधन’’ का ट्रेलर एक भाई(अक्षय कुमार) और उसकी चार बहनों(सहजमीन कौर, दीपिका खन्ना, सादिया खतीब और स्मृति श्रीकांत) के बीच प्यार भरे रिश्ते और चंचल मजाक को दर्शाता है. इसी के साथ भाई(अक्षय कुमार ) की प्रेम कहानी भी है. वह जिस लड़की(भूमि पेडनेकर ) से बचपन से प्यार करता है,उसके संग खुद विवाह नही रचा पा रहा है,क्यांेकि वह अपनी चार बहनों का विवाह कराने के लिए दर दर भटक रहा है . यानी कि इसमें कहीं न कहीं दहेज प्रथा पर भी बात की गयी है. हिमांशु शर्मा और कनिका ढिल्लों लिखित इस फिल्म में सीमा पाहवा,नीरज सूद व अभिलाष थपलियाल की भी अहम भूमिकाएं हैं.

यॅूं तो फिल्म ‘‘रक्षाबंधन’’ का ट्रेलर 21 जून को दिल्ली में रिलीज किया गया. मगर हमें मुंबई में 20 जून को ही देखने का अवसर मिल गया था. ट्रेलर देखने के बाद जब आनंद एल राय से हमारी अनौपचारिक बातचीत हुई,तो उस बातचीत में आनंद एल राय ने कहा-‘‘ मैं अपने मन की बात कह रहा हॅूं. मैने महूसस किया कि हम डिजिटिलाइजेशन और डिजिटल के लिए सिनेमा बनाने के फेर में दर्शकों की पसंद को ही भुला बैठे और हम अपने दशकों से ही दूर हो गए. इस अहसास के बाद मैने पुनः दर्शकों की नब्ज को पकड़कर रिश्तों की भावनात्मक कहानी ‘रक्षाबंधन’ लेकर आ रहा हॅूं. इसकी कहानी का कंेद्र बिंदु भाई बहन के बीच प्यार का अटूट भावनात्मक बंधन है,जिससे हर दर्शक रिलेट करेगा और इसे पसंद करेगा. हमें लगता है कि हम इस बात को ट्रेलर से भी बता पा रहे हंै. ’’

भारतीय परिवेश में ‘रक्षा बंधन’’ का खास महत्व है. यह भाई बहन के प्यार के साथ ही भाई द्वारा बहन को उसकी रक्षा करने का वादा करने का त्योहार है. इस पर बहुत कम फिल्में बनी हैं. 1976 में ‘रक्षा बंधन’ नामक फिल्म को जबरदस्त सफलता मिली थी. वैसे तो 2001 में इस नाम को पुनः रजिस्टर करवाया गया था. मगर इस विषय पर ज्यादा फिल्मंे नही बनी. 2000 तक कुछ फिल्मों में ‘रक्षाबंधन’ के कुछ दृश्य व गाने नजर आते रहे. मगर फिर धीरे धीरे बौलीवुड से ‘रक्षाबंधन’ का त्यौहार ही नहीं भाई बहन व पारिवारिक रिश्ते ही गायब होते चले गए. इस दृष्टिकोण से आनंद एल राय की फिल्म ‘‘रक्षाबंधन’’ दर्शकों को भा सकती है. मगर सब कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि उन्होने फिल्म में इसे किस तरह से पेश किया है. आधुनिक जमाने में ‘रक्षाबंधन’’ की परंपरा में भी काफी बदलाव आया है. इसके अलावा ट्रेलर से आभास होता है कि फिल्म की कहानी का हिस्सा दहेज जैसी कुप्रथा भी है. पर इसे किस तरह से पेश किया गया है,उसी पर फिल्म की सफलता व असफलता निर्भर करेगी. इतना ही नही अनौपचारिक बातचीत में आनंद एल राय ने जिन बातो का जिक्र किया और जिसका उन्हे ज्ञान हुआ है,उसे वह अपनी फिल्म को दर्शकों तक पहुॅचाने के लिए किस तरह से अमल में लाते हैं,उस पर भी काफी कुछ निर्भर करेगा.

इसके अलावा इस फिल्म में नायक की भूमिका में अक्षय कुमार हैं. इस फिल्म से अक्षय कुमार ने भी काफी उम्मीदे बांध रखी हैं. फिल्म के ट्रेलर लंाच के बाद अक्षय कुमार ने कहा-‘‘मेरी बहन अलका के साथ मेरा रिश्ता मेरे पूरे जीवन का मुख्य बिंदु रहा है. एक रिश्ते को पर्दे पर इतना खास और शुद्ध साझा करने में सक्षम होना जीवन भर की भावना है. जिस तरह से आनंद राय जी  दिल और आत्मा के साथ सरल कहानी को सामने लेकर आए हंै,वह इस बात का प्रमाण ह. अस इंडस्ट्ी में उनके जैसे बहुत कम लोग हैं,जो स्क्रीन पर इतनी नाजुकता से भावनाओं को प्रस्तुत कर सकते हैं.  मैं इसका हिस्सा बनकर धन्य हॅूं. ’’

निर्माता व निर्देशक आनंद एल राय के साथ ही अक्षय कुमार के लिए भी फिल्म ‘‘रक्षा बंधन’’ सबसे बड़ी अग्नि परीक्षा है. क्योंकि अक्षय कुमार की ‘लक्ष्मी’, ‘बेलबौटम’, ‘बच्चन पांडे’ व ‘सम्राट पृथ्वीराज’ जैसी फिल्मों की बाक्स आफिस पर बड़ी दुर्गति हो चुकी है. दर्शकों का एक वर्ग उनसे काफी नाराज है. तो अब अक्षय कुमार को अपेन उन प्रशंसकों व दर्शकों को अपनी तरफ लाने का दोहरा भार है. देखना है कि फिल्म के रिलीज से पहले वह इस काम को किस तरह से अंजाम देेते हैं.

कुल मिलाकर फिल्म ‘‘रखाबंधन’’ का ट्रेलर कुछ अच्छी उम्मीदें जगाता है,मगर इस फिल्म को सही अंदाज में दर्शकों तक कैसे फिल्मकार आनंद एल राय पहुॅचाते हैं, उस पर सारा दारोमदार रहेगा. पिछले कुछ समय में कुछ बेहतरीन फिल्मों को भी दर्शकों ने नकार दिया, क्योंकि उन फिल्मों का प्रचार ही गलत ढंग से हुआ था. फिल्म की  विषयवस्तु कंटेंट को सही रूप में पहुॅचाना भी आज की तारीख में सबसे बड़ी चुनौती बन गयी है. हर फिल्मकार व कलाकार को याद रखना होगा कि अब दर्शक महज कलाकार या निर्देशक का नाम देखकर अपनी जेब से पैसे खर्च कर फिल्म देखने के लिए सिनेमाघर नही जाना चाहता. उसे एक अच्छी कहानी व मनोरंजन चाहिए.

Father’s day 2022: Celebs से जानें उनके पिता के साथ बिताई खट्टी मीठी बातें  

हर साल Father”s Day जून महीने की तीसरे रविवार को मनाया जाता है. इसे मनाने का उद्देश्य पिता के प्रति आभार जताना है, क्योंकि एक बच्चे के पालन-पोषण में जितना जरुरी एक माँ की होती है, उतनी ही पिता की भी आवश्यकता होती है. इसलिए इस दिन को सभी बच्चे अपने हिसाब से पिता के पसंद के सामान, सरप्राइज डिनर, ट्रिप, फूल आदि देकर  सेलिब्रेट करते है.

फादर डे की शुरुआत कब और कैसे हुई इस बारें में लोगों के अलग-अलग मत है. कुछ का मानना है कि फादर्स डे 1907 में वर्जिनिया में पहली बार मनाया गया था, कुछ मानते है कि 1910 में वाशिंगटन में मनाया गया था, जबकि वर्ष 1916 में अमेरिकी राष्ट्रपति वुडरो विल्सन ने इसे मनाने की मंजूरी दी. साल 1966 में राष्ट्रपति लिंडन जॉनसन ने इसे जून महीने की तीसरे रविवार को मनाने की आधिकारिक घोषणा की, इसके बाद से फादर्स डे को जून के तीसरे संडे को मनाया जाता है.

बच्चों के साथ पिता का सम्बन्ध बहुत ही प्यारा होता है, लेकिन आज की भाग-दौड़ की जिंदगी में बच्चों को पिता के साथ बातें करने या उन्हें समझने का वक्त नहीं होता, ऐसे में ये दिन बच्चों को एक बार फिर से उनके संबंधों को ताजा करने का अच्छा विकल्प है, इसलिए आम बच्चों से लेकर सेलेब्रिटी बच्चे भी शूटिंग पर फंसे रहने की वजह से पिता और फादर्स डे को मिस कर रहे है, आइये जाने पिता से उनके सम्बन्ध, उनकी नजदीकियां, प्यार और टकरार सब कैसा है. जानते है मिलीजुली प्रतिक्रिया उनकी जुबानी.

चारु मलिक

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अभिनेत्री चारू कहती है कि मैं पूरे साल फादर्स डे और मदर्स डे मनाना चाहती हूँ. पिता बेटियों के हमेशा ही बहुत स्पेशल होते है, क्योंकि माँ के साथ बातूनी रिश्ते का इक्वेशन होता है, जबकि पिता के साथ एक अलग ही प्यारा रिश्ता होता है. ये सही है कि उनसे हम अधिक बात नहीं करते, पर उनका प्यार हमेशा किसी न किसी रूप में मिलता रहता है. मैं और मेरी जुड़वाँ बहन पारुल दोनों ही पिता के बहुत करीब है. वे भी हम दोनों के साथ एक मजबूत सम्बन्ध रखते है. मेरे पिता इन्ट्रोवर्ट है और अधिक बात नहीं करते, लेकिन जो भी बात कहते है वह हमारे लिए बहुत उपयोगी होता है. वे एक वकील है और हमेशा अपने केसेज को लेकर व्यस्त रहते है. लाइब्रेरी में बैठकर इन केसेज की स्टडी करते है. उनका शांत और धैर्यवान होना हमारे लिए बहुत ही अच्छा रहा, क्योंकि जब वे बचपन में मुझे मैथ पढाया करते थे और मैं उसमे अच्छे अंक नहीं ला पाती थी. उन्होंने मुझे गणित की बेसिक चीजों को सिखाया. मेरी माँ की मृत्यु के बाद सभी उनके बहुत करीब हो चुके है, ताकि माँ की यादों को वे कुछ हद तक कम कर सकें. अभी वे अमेरिका में पारुल के साथ रहते है. मैंने पिता से कठिन समय में शांत रहना, धैर्य न खोना आदि सीखा है. इसके अलावा मेरे पिता बहुत अच्छा खाना बनाते है और हमें हमारे पसंद का व्यंजन बनाकर खिलाते है.

नसिर खान 

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फिल्म और टीवी अभिनेता नसिर खान का अपने पिता कॉमेडियन और अभिनेता जॉनी वाकर के साथ बहुत अच्छी बोन्डिंग थी. वे कहते है कि उन्होंने मुझे कभी डांटा नहीं. वे मेरे साथ बहुत ही सौम्य स्वभाव रखते थे, लेकिन वे अपने सिद्धांतो पर हमेशा अडिग रहे. मैं परिवार का छोटा बेटा होने की वजह से उन्होंने मुझे अपना कैरियर चुनने की पूरी आज़ादी दी थी. इसके अलावा परिवार के बच्चों के किसी भी निर्णय को वे कभी नहीं लेते थे, उसकी जिम्मेदारी मेरी माँ की थी. वे स्ट्रिक्ट पिता नहीं थे. बड़े होने पर मुझे उनके व्यक्तित्व को काफी हद तक समझ में आया. वे एक शांत इंसान थे और सबके लिए कुछ अच्छा करने की इच्छा रखते थे. मेरे हिसाब से पिता का बच्चों और पत्नी से हमेशा बातचीत करते रहना चाहिए , ताकि एक दूसरे की भावनाओं को समझने का अवसर मिले.

अनुज सचदेवा 

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अभिनेता अनुज का कहना है कि इमोशन को व्यक्त करने का तरीका पुरुषों में अलग होता है. बेटे के लिए उनके इमोशन 2 से 3 बातों के बाद ख़त्म हो जाती है, मसलन आप कैसे हो, क्या कर रहे हो या तबियत कैसी है? आदि. ऐसे कुछ प्रश्नों के उत्तर जान लेने के बाद बातें खत्म हो जाती है, जैसा मैंने अभी तक अपने पिता से सुना है और मुझे लगता है कि सभी पिता और बेटे में सम्बन्ध ऐसा ही होता होगा. मेरे पिता मेरे कैरियर में एक माइलस्टोन की तरह है. मेरे साथ मेरे पिता की सोच का कभी भी मेल नहीं हुआ, जो हर किसी के साथ होता है और ये जेनरेशन गैप का ही परिणाम है, लेकिन मेरे पिता ने हमेशा मेहनत करना सिखाया है, जिसमे शोर्ट कट की कोई जगह नहीं. 

अशोक कुमार बेनीवाल 

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अभिनेता अशोक कुमार बेनीवाल का कहना है कि पूरे विश्व में मैं अपने पिता के सबसे करीब हूँ. उनके साथ मेरा स्ट्रोंग ट्रेडिशनल सम्बन्ध और जुड़ाव है. इनका व्यक्तित्व मेरे लिए बहुत खास है, जब भी मुझे उनकी जरुरत होती है, वे हमारे साथ होते थे. मेरे किसी भी सन्देश को पिता तक पहुँचाने में मेरी माँ का हमेशा सहयोग रहा है. पिता ने अपनी सामर्थ्यता से अधिक किसी काम को करने में मुझे सहयोग दिया. उन्होंने मुझे इमानदारी, मेहनत और लगन से काम करने की सीख दी, जिसे मैंने अपने जीवन में उतारा है. आज वे हमारे बीच नहीं है, मैं उन्हें बहुत मिस करता हूँ. मुझे आज भी याद आता है जब मैंने अपने पिता, माँ, बड़ी बहन और 6 रिश्तेदारों को वर्ष 2013 को हुए केदारनाथ फ्लड में खो दिया.

सुधा चंद्रन 

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अभिनेत्री सुधा चंद्रन कहती है कि मेरे लिए फादर्स डे केवल एक दिन नहीं 365 दिन भी उनके लिए बात करूँ तो कम पड़ जायेंगे. मेरे हिसाब से हर लड़की के लिए उसका पहला हीरो उसका पिता होता है. मैने हमेशा से उनके जैसा बनना चाहती थी. वे एक विनम्र परिवार से थे. केवल 13 साल की उम्र से उन्होंने अपने परिवार को सेटल किया था.मेरे पिता की तरफ से दो पुरस्कार मेरे लिए बहुत माईने रखती है, जब मैं अस्पताल में थी और मुझे नकली पैर मिला था. उन्होंने कहा था कि मैं तुम्हारा वो पैर बनूँगा, जिसे तुमने खोया है. मैंने पूछा था कि ऐसा आप कब तक कर पाएंगे? इस पर उन्होंने कहा था कि मैं तुम्हारे साथ तब तक रहना चाहता हूँ, जब तक तुम्हे जरुरत है और ये सही था जब मैं कामयाबी की पीक पर थी, तब वे हमें छोड़ गए. दूसरा अवार्ड मुझे तब मिला जब मैंने पहली बार नकली पैर से डांस किया. परफोर्मेंस के बाद जब मैं घर आई तो उन्होंने मेरे पैर छू लिए. उनके इस व्यवहार के बारें में पूछने पर बताया था कि मैं उनके लिए कला की मूर्ति हूँ.

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