Monsoon Special: आंखों की सुरक्षा है जरुरी

अगर मौनसून में आंखों का ठीक प्रकार से ध्यान न रखा जाए तो उन में कई समस्याएं हो जाती हैं. मसलन, आंखों का सूजना, लाल होना, आंखों का संक्रमण भी हो सकता है. कंजक्टिवाइटिस, आई स्टाई, ड्राई आईज के साथसाथ कौर्नियल अल्सर होने का भी खतरा बढ़ जाता है.

मौनसून में होने वाली आंखों की प्रमुख समस्याएं हैं:

  1. कंजक्टिवाइटिस: कंजक्टिवाइटिस में आंखों के कंजक्टाइवा में सूजन आ जाती है. उन में जलन महसूस होती है. आंखों से पानी जैसा पदार्थ निकलने लगता है.

कारण: फंगस या वायरस का संक्रमण, हवा में मौजूद धूल या परागकण, मेकअप प्रोडक्ट्स.

उपचार: अगर आप कंजक्टिवाइटिस के शिकार हो जाएं तो हमेशा अपनी आंखों को ठंडा रखने के लिए गहरे रंग के ग्लासेज पहनें. अपनी आंखों को साफ रखें. दिन में कम से कम 3-4 बार ठंडे पानी के आंखों को छींटे दें. ठंडे पानी से आंखें धोने से रोगाणु निकल जाते हैं. अपनी निजी चीजें जैसे टौवेल, रूमाल आदि किसी से साझा न करें. अगर पूरी सावधानी बरतने के बाद भी आंखें संक्रमण की चपेट में आ जाएं तो स्विमिंग के लिए न जाएं. कंजक्टिवाइटिस को ठीक होने में कुछ दिन लगते हैं. बेहतर है कि किसी अच्छे नेत्ररोग विशेषज्ञ को दिखाया जाए और उचित उपचार कराया जाए.

2. कौर्नियल अल्सर: आंखों की पुतलियों के ऊपर जो पतली झिल्ली या परत होती है उसे कौर्निया कहते हैं. जब इस पर खुला फफोला हो जाता है, तो उसे कौर्नियल अल्सर कहते हैं. कौर्नियल अल्सर होने पर आंखों में बहुत दर्द होता है, पस निकलने लगता है, धुंधला दिखाई देने लगता है.

कारण: बैक्टीरिया, फंगस या वायरस का संक्रमण.

उपचार: यह आंखों से संबंधित एक गंभीर समस्या है. इस में डाक्टर से मिल कर तुरंत उपचार की आवश्यकता होती है.

3. ड्राई आईज: इस में आंखें लगातार आंसुओं का निर्माण करती हैं ताकि उन में नमी बनी रहे और ठीक प्रकार से दिखाई दे. इस के कारण अंतत: आंसुओं का प्रवाह असंतुलित हो जाता है, जिस के कारण आंखें ड्राई हो जाती हैं. ड्राई आईज की समस्या हर मौसम में होती है, लेकिन बरसात में यह समस्या अधिक बढ़ जाती है.

कारण: हवा, धूल और ठंडी हवा के संपर्क में अधिक रहना.

उपचार: इस का सब से बेहतर उपचार डाक्टर द्वारा सुझाए आई ड्रौप्स का इस्तेमाल करना है. अगर समस्या तब भी बनी रहे तो तुरंत किसी अच्छे नेत्ररोग विशेषज्ञ को दिखाएं.

4. आई स्टाई: आई स्टाई को सामान्य बोलचाल की भाषा में आंख में फुंसी होना कहते हैं. यह मौनसून में आंखों में होने वाली एक प्रमुख समस्या है. यह समस्या पलकों पर एक छोटे उभार के रूप में होती है. आमतौर पर यह समस्या आंखों को गंदे हाथों से रगड़ने से होती है या फिर नाक के बाद तुरंत आंखों को छूने से भी होती है. कुछ बैक्टीरिया जो नाक में पाए जाते हैं वे भी आई स्टाई का कारण बनते हैं.

कारण: मौनसून में बैक्टीरिया का संक्रमण.

उपचार: आईड्रौप्स और दूसरी दवाएं

मौनसून में आंखों की सुरक्षा

  1. आंखों को छूने से पहले हमेशा अपने हाथ धोएं.
  2. जब भी बाहर जाएं अपने साथ ऐंटीबैक्टीरियल लोशन जरूर रखें.
  3.  अगर कौंटैक्ट लैंस लगाते हैं, तो किसी के भी साथ अपना लैंस सौल्यूशन साझा न करें.
  4. नाखून छोटे रखें, क्योंकि बड़े नाखूनों में धूल जमा हो जाती है, जो फिर जब आंखें सीधे हाथों के संपर्क में आती हैं, तो धूल उन में जा सकती है.
  5.  ऐक्सपाइरी डेट के प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल न करें.
  6. आंखों के संक्रमण के दौरान मेकअप प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल न करें.
  7.  इस दौरान कौंटैक्ट लैंस न लगाएं.
  8.  धूल भरी आंधी, बारिश और तेज हवाओं से आंखों को सुरक्षित रखने के लिए ग्लासेज का इस्तेमाल करें.

Monsoon Special: मौनसून में रखें डाइजेशन का खास ख्याल

बरसात का मौसम दस्तक दे चुका है. बदलते मौसम के प्रभाव से बौडी इफेक्टअप्रभावित हुए बिना नहीं रहता. मौसम में बदलाव के साथ इम्यून सिस्टम और डाइजेशन में बदलाव होने लगता है. इस दौरान अपच से लेकर फूड पौइजनिंग, डायरिया जैसी कई हेल्थ प्रौब्लम का सामना करना पड़ता है. बरसात में सेहतमंद रहने के लिए विशेष सावधानियां रखनी चाहिए.

हेल्थ पाचन प्रणाली वही है, जो खाना को पचाए, पोषक पदार्थों को बौडी में अवशोषित करे और अवांछित पदार्थों को बौडी से बाहर निकाले. तभी बौडी की रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत होती है.

हमारे पेट में मौजूद पाचक एंजाइम्स और एसिड खाए गए खाना को तोड़ते हैं. तभी पोषक पदार्थ बौडी में अवशोषित हो पाते हैं जो खाना पेट में पूरी तरह नहीं पचता है वह बौडी के लिए बेकार होता है. खाने के अच्छी तरह पचने की शुरुआत मुंह से होती है. जी हां, सही ढ़ंग से चबाया गया खाना ही अच्छे से पच पाता है, क्योंकि इससे खाना छोटे-छोटे टुकड़ों में बंट कर लार में मिल जाता है. फिर पेट में ये छोटे-छोटे लार मिले टुकड़े अच्छी तरह टूट जाते हैं और बौडी को पोषण देने के लिए छोटी आंत में पहुंचते हैं.

अत: आपको न केवल सही खाना चुनना होगा, उसे अच्छी तरह चबाना भी होगा और आप का पाचनतंत्र भी इस काबिल होना चाहिए कि वह उसे अच्छी तरह तोड़ कर पोषक पदार्थों को अवशोषित कर सके. अगर हम जल्दीजल्दी में खाना निगलते हैं, हम खाने के साथ पानी भी पीते हैं तो ऐसा करना खाना को पेट में ठीक से टूटने नहीं देगा. ऐसे में बेहतर यही है कि खाना खाने से कम से कम 30 मिनट पहले व 30 मिनट बाद में ही पानी पीएं.

1. डाइजेशन धीमा होना

मौनसून में जठराग्नि मंद पड़ जाती है, जिससे डाइजेशन प्रोसेस प्रभावित होती है. बरसात के पानी और कीचड़ से बचने के लिए लोग घरों में दुबके रहते हैं जिससे शारीरिक सक्रियता कम हो हो जाती है. यह भी पाचनतंत्र को नकारात्मक रूप से प्रभावित करती है. इससे बचने के लिए हल्के संतुलित और पोषक खाना का सेवन करें. शारीरिक रूप से सक्रिय रहें. अगर बारिश के कारण आप टहलने नहीं जा पा रहे हैं या जिम जाने में परेशानी हो रही है तो घर पर ही वर्कआउट करें.

2. मौनसून में इनडाइजेशन होना आम बात

बरसात में डाइजेशन एंजाइमों की कार्य प्रणाली प्रभावित होती है. इससे भी खाना ठीक प्रकार से नहीं पचता. बरसात में औयली, मसालेदार खाना और कैफीन का सेवन भी बढ़ जाता है. इससे भी इनडाइजेशन की प्रौब्लम हो जाती है. नम मौसम में सूक्ष्म जीव ज्यादा मात्रा में पनपते हैं. इनसे होने वाले संक्रमण से भी अपच की प्रौब्लम अधिक होती है.

 3. खराब पानी से होने वाली बिमारी है डायरिया

डायरिया एक खराब पानी से होने वाली बिमारी है. यह दूषित खाद्य पदार्थों और जल पीने से होता है. वैसे तो यह किसी को कभी भी हो सकता है, लेकिन बरसात में इसके मामले काफी बढ़ जाते हैं. दस्त लगना इस का सब से प्रमुख लक्षण है. पेट में दर्द और मरोड़, बुखार, मल में रक्त आना, पेट फूलना जैसे लक्षण भी दिखाई देते हैं. फूड पौइजनिंग के कारण भी डायरिया हो जाता है.

4. मौनसून में फूड पौइजनिंग में रखें खास ध्यान

फूड पौइजनिंग तब होती है जब हम ऐसे खाना का सेवन करते हैं जो बैक्टीरिया, वाइरस, दूसरे रोगाणुओं या विषैले तत्त्वों से संक्रमित होता है. बरसात के मौसम में आर्द्रता और कम टैम्प्रेचर के कारण रोगाणुओं को पनपने के लिए उपयुक्त वातावरण मिल जाता है. इसके अलावा बरसात में कीचड़ और कचरे के कारण जगह-जगह गंदगी फैल जाती है, इस से संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है. यही कारण है कि बरसात में फूड पौइजनिंग के मामले भी बढ़ जाते हैं. इस मौसम में बाहर का खाना खाने या फिर अधिक ठंडे पदार्थों के सेवन से भी फूड पौइजनिंग की आशंका बढ़ जाती है.

5. खानपान का रखें खास ध्यान

बरसात में डाइजेशन को दुरुस्त रखने और बीमारियों से बचने के लिए इन बातों का खयाल रखें:

– संतुलित, पोषक और सुपाच्य खाना कासेवन करें.

– कच्चे खा-पदार्थ नमी को बहुत शीघ्रता से अवशोषित कर लेते हैं, इसलिए ये बैक्टीरिया के पनपने के लिए आदर्श स्थान होते हैं. अत: बेहतर यही रहेगा कि कच्ची सब्जियां इत्यादि न खाएं. सलाद के रूप में भी नहीं. इस मौसम में फफूंद जल्दी पनपती है, इसलिए ब्रैड, पाव आदि खाते समय इस बात का विशेष ध्यान रखें कि उनमें कहीं फफूंद तो नहीं लगी है.

– सड़क किनारे के ढाबों पर न खाएं, क्योंकि इस तरह के खाना से संक्रमण का खतरा अधिक होता है.

– ऐसा खाना खाएं, जिससे ऐसिडिटी कम से कम हो.

– बारिश के मौसम में मांस, मछली, मीट खाने से फूड पौइजनिंग की आशंका बढ़ जाती है. इस मौसम में कच्चा अंडा और मशरूम खाने सेभी बचें.

– बरसात में तला खाना खाने को मन तो बहुत करता है लेकिन उस से दूर रहना ही बेहतर है, क्योंकि इस से पाचन क्षमता कम होती है. कम मसाले और तेल वाला खाना पाचन प्रौब्लमओं से बचाता है.

– अधिक नमक वाले खा-पदार्थ जैसे अचार, सौस आदि न खाएं या फिर कम खाएं, क्योंकि ये बौडी में पानी को रोकते हैं जिस से पेट फूलता है.

– फलों और सब्जियों के जूस का भी कम मात्रा में सेवन करें.

– ओवर ईटिंग से बचें. तभी खाएं जब भूख महसूस करें.

– ठंडे और कच्चे खाना के बजाय गरम खाना जैसे सूप, पका खाना खाएं.

माता-पिता के निधन के बाद मेरे भतीजे को एंग्जाइटी अटैक्स आने लगे हैं, मैं क्या करुं?

सवाल

मेरी बहन और जीजाजी की कोरोना के कारण मृत्यु हो गई है. उन का 14 वर्षीय बेटा, जो उस वक्त उन के साथ ही था, उस ने 1 सप्ताह के भीतर अपने माता और पिता दोनों का अंतिम संस्कार किया. हालांकि हम उस बच्चे को अपने साथ अपने परिवार में ले आए हैं, लेकिन आज मेरा भतीजा पूरी तरह से शांत हो गया है. वह न ही किसी से बात करता है और न ही ठीक से पढ़ाई कर पाता है और खेल भी नहीं पाता. वह हाथपैर में दर्द बताता है और उस को एंग्जाइटी अटैक्स भी आते हैं. हम ने हर तरह से उस की डाक्टरी जांच करवाई है, लेकिन उस की हालत में कोई सुधार नहीं आ पा रहा है. क्या करें?

जवाब-

इतनी छोटी उम्र में इतना बड़ा सदमा बरदाश्त करना बेहद मुश्किल होता है. यकीनन बच्चा सीवियर डिप्रैशन और ऐंग्जाइटी का मरीज है. इस स्थिति से उबरने में आप के प्यार और सहयोग की बेहद जरूरत है. उसे किसी साइकोलौजिकल काउंसलर से काउंसलिंग जरूर दिलवाएं क्योंकि जब तक वह खुद इस स्थिति को ऐक्सैप्ट कर के उस से बाहर निकलने की कोशिश नहीं करेगा दवा भी ज्यादा असर नहीं कर पाएगी. काउंसलिंग के बाद जल्दी उपचार के लिए आप ट्रांस्क्रैनिअल मैग्नेटिक स्टिम्युलेशन की मदद ले सकती हैं.

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काउंसलर रवि कुमार सरदाना बताते हैं कि वर्तमान समय  में बच्चों के अंदर पनप रहे तनाव, अवसाद व डर को दूर करने के लिए अभिभावकों की जिम्मेदारी अपने बच्चों के प्रति कई गुणा बढ़ गई है. उन्हें बच्चों को क्वालिटी टाइम देने के लिए गैजेट्स से थोड़ी दूरी बना कर चलना होगा, तभी वे बच्चों को समझ पाएंगे व उन्हें अपनी तरफ खींच पाएंगे. आप को बच्चा बन कर उन के साथ बच्चों जैसे खेल खेलने होंगे. चाइल्ड साइकोलौजी को समझना होगा. वे बड़ों के साथ न तो ज्यादा खेलना पसंद करते हैं और न ही उन से अपनी कोई बात साझा करना चाहते हैं. ऐसे में आप को उन को समझने के लिए उन जैसा बनना होगा, उन की चीजों में दिलचस्पी लेनी होगी. बच्चों को स्ट्रैस से दूर रखने के लिए उन्हें उन सब चीजों में इन्वौल्व करें, जिन में उन की रुचि हो क्योंकि मनपसंद चीज मिलने से वे खुश रहने लगेंगे, जो उन्हें तनाव से भी दूर रखेगा और साथ ही उन की कला को भी उभारने का काम करेगा.

कोरोना के टाइम में बच्चे घरों में बंद हैं. किसी से भी नहीं मिल पा रहे हैं. दोस्तों से खुले रूप में मिलनेजुलने  पर पाबंदियां जो हैं. खुद को हर समय चारदीवारी के पीछे पा कर अकेलापन महसूस कर रहे हैं. हर समय सब के घर में रहने के कारण घर का माहौल भी काफी तनावपूर्ण होता जा रहा है. घर में छोटीछोटी बातों पर नोकझोंक बच्चों के मन पर बहुत गहरा प्रभाव डाल रही है. ऐसे में इस नए बदलाव से उन्हें बाहर निकालने की जिम्मेदारी पेरैंट्स की है ताकि यह अकेलापन उन के मन पर इतना हावी न हो जाए कि आप के लिए बाद में उन्हें संभालना मुश्किल हो जाए. इसलिए समय रहते संभल जाएं और अपने बच्चों को भी संभालें.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

अगर आप सलाद नहीं खाती हैं तो…

सलाद भोजन का एक अनिवार्य अंग है.लेकिन एक सर्वे में पाया गया है कि महिलाएँ अक्सर खुद की थाली में सलाद परोसने से कतराती हैं या आलस करती हैं. वो इसके पीछे तर्क देती हैं कि अरे,  हमें सलाद की आदत बिल्कुल भी नहीं है या  ऐसा कबती हैं कि चलो आज रहने दो कल जरूर  खा लूंगी बात यह है कि  आज जरा जल्दी खाना निपटा लूं.पर यह बहाना बहुत घातक है क्योंकि सलाद को टाल देने की यह आदत फिर हौले -हौले स्वभाव ही बन जाती है इस तरह सलाद खुराक से हट ही जाता है लेकिन सलाद न खाने से बहुत नुकसान होते हैं इसके अनगिनत फायदे हैं लीजिए यह जान लीजिये.

सामान्य प्याज, टमाटर वाले सलाद  में पाया जाने वाला पोषक तत्व फाइबर और विटामिन सी से भरपूर होता है.  ये साइट्रिक एसिड से युक्त होता है. इसमें विटामिन सी के साथ अन्य पोषक तत्व होते हैं. और ये कैंसर जैसी गंभीर बीमारी के खतरे को कम करता है.टमाटर, खीरा, प्याज, हरी मिर्च और नींबू के रस  वाला  खट्टा-मीठा रसीला सलाद बहुत लाभदायक होता है. ये भूख को जगाता है साथ ही  ये तमाम औषधीय गुणों से भी भरपूर है.  इसमें एंटी इन्फ्लैमेटरी, एंटी-हेल्मिंथिक, एंटी-माइक्रोबियल, एंटी-ऑक्सीडेंट और एंटी-माइक्रोबियल जैसे गुण होते हैं. और ये सलाद  पेट से जुड़ी समस्या जैसे अल्सर, गैस,कब्ज, एसिडीटी आदि से छुटकारा पाने में मदद करता है. मूली, गाजर, चुकंदर वाले सलाद के  तो क्या कहने ,ये केवल दिखने में ही काफी फैंसी नहीं होता जबकि  इसमें कैलोरी की मात्रा कम होती है.

इसमें एंटीऑक्सीडेंट गुण होते हैं. अध्ययनों के अनुसार ऐसा रंगीन सलाद हृदय रोग, फेफड़ों के कैंसर, कोलोरेक्टल कैंसर और मेटाबोलिक रोग के जोखिम को कम कर सकता है. इसके अलावा इसमें फाइबर और कुदरती ग्लूकोज जैसे कई अन्य पोषक तत्व भी होते हैं..ये कैंसर, मोटापा और डायबिटीज जैसी बीमारियों से लड़ने में मदद करता है. महिलाओं मे इम्युनिटी बढ़ाने में मदद करता है. ये बुखार और पीलिया को भी ठीक करता है. सलाद की तासीर ठंडी होती है. कोई भी सलाद हो इसमें  टैनिन,फाइबर,फॉस्फोरस, प्रोटीन और आयरन जैसे तत्व तो होते ही हैं. एक प्लेट सलाद में प्रचुर मात्रा में प्रोटीन होते है. जो शरीर में वसा की मात्रा को बढ़ने नहीं देते है. इसके कारण शरीर का वजन नहीं बढ़ता है. जिनको अपना वजन कम करना है तो उनको एक बड़ी प्लेट रंग बिरंगे सलाद का सेवन रोजाना करना चाहिए.

सलाद  में कई तरह के विटामिन और एंटीऑक्सीडेंट तत्व के गुण होते है. जो शरीर के रक्त चाप को नियंत्रण करने में सहायता करते है. रक्त चाप के मरीजों को दोनो समय आहार से पहले सलाद का चबाचबाकर  सेवन करना चाहिए.

प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए सलाद एक अच्छी औषधि है. इसके  के एंटीऑक्सीडेंट तत्व शरीर की इम्युनिटी सिस्टम को मजबूत रखने में सहायता करता है. जिसके कारण शरीर को बीमारियों से लड़ने की ताकत मिले यानि वह व्यक्ति जल्दी बीमार नहीं होता है.

आंखो के लिए  तो सलाद की प्लेट बहुत ही अनुकूल है. रंगीन सलाद बहुत गुणों से भरा हुआ रहता है. रोजाना इसका का सेवन करने आंखो की रौशनी और शक्ति भी  बढ़ती है. आंखो से जुडी समस्या को ठीक करने में सहायता करता है.  सलाद की  कच्ची सब्जियां मन को खुश रखती हैं. हर दिन सलाद खाना है यह शपथ लीजिए.

अगर की ये गलती तो सिंदूर भी हो सकता है खतरनाक

30 साल की सरला पिछले कुछ समय से सिर और माथे पर दाने होने से परेशान थी. डाक्टर को दिखाया तो पता चला कि वह मांग भरने के लिए जो सिंदूर लगाती है, वह घटिया किस्म का है.

यह सुन कर सरला हैरान रह गई और तुरंत इस बीमारी से छुटकारा पाने के लिए अपना इलाज शुरू करा दिया.

लेकिन राधा ने ऐसा नहीं किया. या यों कह सकते हैं कि उस की सास ने उसे रीतिरिवाजों के चलते ऐसा नहीं करने दिया.

दरअसल, राधा की शादी को अभी कुछ ही महीने हुए थे और रोज सुबह नहाने के बाद मांग भरने से उस के सिर में दर्द रहने लगा था.

पहले तो वह समझी नहीं थी लेकिन जब दर्द बरदाश्त से बाहर होने लगा तो वह अपने पति रंजन के साथ डाक्टर के पास गई थी.

डाक्टर ने जांच में पाया कि राधा के सिरदर्द की वजह उस का घटिया किस्म का सिंदूर लगाना है, जो वह थोक के भाव में अपनी मांग में भरती है.

डाक्टर ने राधा को जरूरी दवाएं देते हुए कहा कि तुम कुछ दिन बस नाम के लिए मांग भरना या मत भरना.

पतिपत्नी तो डाक्टर की यह सलाह समझ गए लेकिन जब राधा की सास को यह बात पता चली तो वह बिदक गई और बोली कि फैशन की मारी राधा ने चार जमात क्या पढ़ ली, डाक्टर के साथ मिल कर हमें गुमराह कर रही है, ताकि आगे मांग भरने से बच सके. ऐसा कभी हुआ है कि हमारे घर में किसी सुहागिन ने अपनी मांग सूनी रखी हो?

हिंदू धर्म में हर शादीशुदा औरत से यह उम्मीद की जाती है कि वह अपनी मांग लाल रंग के सिंदूर से भर कर रखे. अगर वह ऐसा नहीं करती है तो उस के पति पर मुसीबत आ सकती है या वह मर भी सकता है. पर क्या मिलावट करने वालों को भगवान का भी डर नहीं होता?

सिंदूर में आमतौर पर लैड औक्साइड कैमिकल मिला दिया जाता है, जो एक जहरीली धातु है. इसे मांग में भरने से सिर और माथे की चमड़ी लगातार कई सालों तक इस के संपर्क में आती रहती है, जिस से दाने होने के अलावा बाल झड़ने, टूटने, छोटे पड़ने और जल्दी सफेद होने लगते हैं.

चमड़ी के छेदों के साथ यह कैमिकल दिमाग के भीतर तक पहुंच जाता है जिस से नींद न आना, सिरदर्द, चिड़चिड़ापन जैसी समस्याएं पैदा हो जाती हैं. खून के साथ मिल कर यह शरीर के दूसरे भागों में पहुंच कर और भी बहुत सी बीमारियां पैदा कर सकता है.

दिल्ली के अपोलो अस्पताल में स्किन कौस्मैटिक सर्जरी के स्पैशलिस्ट डाक्टर अनूप धीर ने बताया, ‘‘आमतौर पर लाल और संतरी रंग के सिंदूर में लैड औक्साइड की मात्रा ज्यादा होने से यह नुकसानदायक हो जाता है. अगर किसी को स्किन की एलर्जी नहीं भी है तो उसे भी कैमिकल भरा ऐसा सिंदूर नुकसान पहुंचा सकता है. अगर यह आंख में गिर जाए तो बड़ी परेशानी पैदा कर सकता है.

‘‘अगर किसी के साथ ऐसा हो जाता?है तो उसे साफ पानी से अपनी आंखें धोनी चाहिए और किसी एमबीबीएस डिगरीधारी डाक्टर से आंखों में डालने की दवा लें.

‘‘शादीशुदा औरतों को चाहिए कि वे कम मात्रा में अपनी मांग में सिंदूर भरें. अगर आप को स्किन की एलर्जी है तो इस बारे में डाक्टर से जरूर सलाह लें. अच्छी क्वालिटी का ही सिंदूर इस्तेमाल करें और चटक रंग के चक्कर में सस्ता सिंदूर न खरीदें.’’

Mother’s Day Special: जब फेल हो जाएं ओवरीज

भारत में 25% महिलाएं अनियमित माहवारी या माहवारी से जुड़ी समस्याओं से जूझ रही हैं. 90% मामलों में बीमारी के कारणों का पता नहीं चलता है.

मां बनने की उम्र पर आ कर किसी युवती को यह पता चले कि वह कभी मां नहीं बन सकती है, तो उस के लिए दुनिया मानो रुक सी जाती है. मां न बन पाने के लिए कई कारण जिम्मेदार होते हैं, जिन में से एक है ओवरीज का फेल हो जाना.

आइए, जानते हैं कि किन कारणों से यह समस्या पैदा होती है और क्या है इस से निबटने का तरीका:

पीओएफ यानी प्रीमैच्योर ओवरीज फेल

पीओएफ का मतलब है 40 की उम्र से पहले ओवरीज का सामान्य काम न करना. मतलब कि ओवरीज का सामान्य रूप से ऐस्ट्रोजन हारमोन का निर्माण न करना या नियमित रूप से अंडे का रिलीज न करना.

कई बार उम्र से पहले ओवरीज के फेल होने को मेनोपौज से जोड़ दिया जाता है, लेकिन ये स्थितियां भिन्न हैं. किसी महिला की ओवरीज फेल होती हैं तो उसे अनियमित माहवारी हो सकती है और वह गर्भधारण भी कर सकती है. उम्र से पहले मेनोपौज का अर्थ है कि माहवारी का स्थाई तौर पर रुक जाना. उस के बाद गर्भवती होना नामुमकिन होता है.

कैसे पहचानें इस अनचाहे खतरे को

अगर आप को अनियमित माहवारी, बहुत ज्यादा गरमी लगना व पसीना आने की शिकायत हो तो जल्द से जल्द किसी फर्टिलिटी सैंटर में जा कर अपनी जांच करवानी चाहिए. अगर ब्लड टैस्ट में आप का फौलिकल स्टिम्यूलेटिंग हारमोन 25% से ज्यादा है, तो आप को पीओएफ का खतरा है.

पीओएफ का कारण

पिछले कुछ समय से महिलाओं में उम्र से पहले ओवरीज फेल होने के मामले बढ़े हैं. हालांकि यह समस्या आनुवंशिक है, लेकिन पर्यावरण और जीवनशैली जैसेकि धूम्रपान, शराब का सेवन, लंबी बीमारी जैसे थायराइड व ओडेटो इम्यून बीमारियां, रेडियोथेरैपी या कीमोथेरैपी होना भी इस के मुख्य कारण हैं.

इसके अलावा टीबी भी उम्र से पहले ओवरीज फेल होने का कारण हो सकती है. भारत में 30 से 40 साल की आयुवर्ग में पीएफओ के मामले 0.1% हैं, लेकिन 25% महिलाएं अनियमित माहवारी या माहवारी के कई महीने तक न होने के बाद फिर से शुरू होने जैसी समस्याओं से जूझ रही हैं.

युवतियां भी हो सकती हैं शिकार

कम उम्र की लड़कियां भी इस बीमारी की चपेट में आ सकती हैं. डा. शोभा गुप्ता बताती हैं कि आज का बदलता पर्यावरण और जीवनशैली के कारण शरीर में कई बदलाव आ रहे हैं. ऐसे में उम्र से पहले ओवरीज फेल होने के कई मामले देखने को मिल रहे हैं.

इस तरह की बीमारियों से बचने के लिए बेहतर है कि समय पर परिवार बढ़ाने के बारे में सोचें. साथ ही, अगर किसी भी तरह की दिक्कत आ रही हो तो मैडिकल जांच जरूर करवाएं. इस तरह की समस्या होने पर घबराने की जरूरत नहीं है, क्योंकि इस समस्या का भी चिकित्सा के क्षेत्र में समाधान है.

आईवीएफ तकनीक

एग डोनेशन तकनीक अपना कर बच्चे की चाहत को पूरा किया जा सकता है. एग डोनेशन का मतलब है ओवम को फ्रीज कर के रखना. इस से महिलाएं 35 की उम्र के बाद भी आईवीएफ तकनीक के जरीए गर्भधारण कर सकती हैं.

इस तकनीक में महिला को 14 दिन तक हारमोन के इंजैक्शन लगाए जाते हैं. उस के बाद उस के परिपक्व ओवम को फ्रीज किया जाता है. यह तकनीक उन दंपतियों के लिए वरदान है, जो कैरियर या किसी अन्य बीमारी जैसेकि उम्र से पहले ही ओवरीज के फेल होने से ग्रस्त हैं.

डा. शोभा गुप्ता बताती हैं, ‘‘आईवीएफ विशेषज्ञा होने के नाते मैं गर्भधारण में उम्र के महत्त्व को समझती हूं. लेकिन अगर किसी दंपती को इस में देरी करनी है, तो एग डोनेशन अच्छा समाधान है.’’

टैस्ट ट्यूब बेबी

टैस्ट ट्यूब बेबी को ले कर लोगों में अनेक जिज्ञासाएं होती हैं. जबलपुर के नौदरा ब्रिज स्थित आइडियल फर्टिलिटी के संचालक डा. दीपंकर बनर्जी ने बताया कि स्त्री की फैलोपियन ट्यूब यदि बंद हो अथवा अन्य कोई कारण हो, जिस से साधारण रूप से बच्चा नहीं हो सकता हो तो स्त्री के अंडों को बाहर निकाल कर उस के पति के शुक्राणु से शरीर के बाहर भ्रूण बनाते हैं और फिर स्त्री के गर्भ में बैठा देते हैं. यदि शुक्राणु निल (नहीं) हैं, तो शुक्राशय से शुक्राणु निकाल कर टैस्ट ट्यूब बेबी कर सकते हैं या फिर बंद नली को खोल सकते हैं. इस में किसी बैड रैस्ट की जरूरत नहीं पड़ती और न ही किसी तरह के औपरेशन की.

ऐसी महिलाएं, जिन की माहवारी बंद हो चुकी हो या बंद हो रही हो एवं बच्चा नहीं हो तो उन के लिए अंडदान करवा कर गर्भधारण करवा सकते हैं. एक टैस्ट ट्यूब बेबी पर खर्च करीब 90 हजार रूपया आता है. आजकल भ्रूण व शुक्राणु बैंकिंग तथा संग्रहण की भी सुविधा उपलब्ध है. डी.एन.ए. परीक्षण द्वारा अजन्मे बच्चे की थैलेसीमिया व सिकल सैल की पूर्ण जांच की जाती है.

– डा. शोभा गुप्ता

आईवीएफ विशेषज्ञा, मदर्स लैप आईवीएफ सैंटर से बातचीत पर आधारित

Mother’s Day Special: जीवन पर हावी तो नहीं बांझपन

कुछ महिलाओं में अचानक प्रैगनैंसी जैसे लक्षण नजर आने लगते हैं जैसे माहवारी चक्र का बाधित होना, स्तनों में दूध बनना, कामेच्छा कम होना आदि. असल में इस का संबंध एक ऐसी स्थिति से होता है, जिसे हाइपरप्रोलैक्टिनेमिया कहा जाता है. इस में खून में प्रोलैक्टिन हारमोन का स्तर सामान्य से अधिक हो जाता है. ऐस्ट्रोजन के प्रोडक्शन में बड़े स्तर पर हस्तक्षेप होने से माहवारी चक्र में बदलाव आने लगता है.

प्रोलैक्टिन का मुख्य काम गर्भावस्था के दौरान स्तनों को और विकसित करने, दूध पिलाने के लिए उन्हें उभारने और दूध बनाने का होता है. वैसे किसी महिला के प्रैगनैंट न होने के दौरान भी यह हारमोन कम मात्रा में खून में घुला रहता है. लेकिन प्रैगनैंसी खासतौर से बच्चे के जन्म के बाद इस का स्तर काफी बढ़ जाता है. इस स्थिति में 75% से ज्यादा महिलाएं प्रैगनैंट न होने के बावजूद दूध उत्पन्न करने लगती हैं.

पुरुषों में भी प्रोलैक्टिन का स्तर बढ़ने से कामवासना में कमी, नपुंसकता, लिंग में पर्याप्त तनाव न आना और स्तनों का आकार बढ़ना जैसी समस्याएं सामने आने लगती हैं. टेस्टोस्टेरौन का स्तर कम होना भी इसी स्थिति के बाद का एक परिणाम है. अगर ऐसी स्थिति में इलाज न कराया जाए, तो शुक्राणुओं की गुणवत्ता घटने लगती है और वे ज्यादा देर जीवित भी नहीं रह पाते हैं. इस के चलते उन के निर्माण में गड़बड़ी भी आने लगती है.

प्रसव या गर्भधारण करने की उम्र में महिलाओं में यह ज्यादा प्रचलित है. हालांकि इस में महिलाओं की प्रासंगिक स्थिति सामान्य ही बनी रहती है. ऐसी महिलाएं, जिन का ओवेरियन रिजर्व अच्छा हो, उन्हें भी माहवारी में अनियमितता का सामना करना पड़ सकता है और यह एक तरह से इस डिसऔर्डर के आगमन का संकेत होता है.

बांझपन का कारण

खून में प्रोलैक्टिन का स्तर बढ़ने से प्रजनन क्षमता पर असर पड़ता है. इस में या तो पिट्यूटरी स्टाक कंप्रैस हो जाती है या फिर डोपामाइन का स्तर घट जाता है अथवा प्रोलैक्टिनोमा (पिट्यूटरी ऐडीनोमा का एक प्रकार) का जरूरत से ज्यादा प्रोडक्शन होने लगता है, जो हाइपोथैलेमस से गोनाडोट्रोपिन को रिलीज करने वाले हरमोरन (जीएनआरएच) के स्राव को रोकता है.

गोनाडोट्रोपिन को रिलीज करने वाले हरमोन (जीएनआरएच) के स्तर में कमी आने की वजह से ल्यूटीनाइजिंग हारमोन (एलएच) और फौलिकल स्टिम्युलेटिंग हारमोन (एफएसएच) के स्राव में भी कमी आने लगती है. परिणामस्वरूप बां झपन का सामना करना पड़ता है.

बांझपन की स्थिति

एक बार जब प्रोलैक्टिन का स्तर बढ़ जाता है, तो महिलाओं में माहवारी कम होने लगती है और खून में ऐस्ट्रोजन का स्तर घटने से अनियमितता के साथसाथ बां झपन की स्थिति भी पैदा होने लगती है. कुछ मामलों में माहवारी के प्रवाह में बदलाव इमेनोरिया के रूप में भी देखने को मिलता है, जिस में प्रजनन क्षमता वाली उम्र में भी माहवारी कम होने लगती है. कई बार तो प्रैगनैंट न होने या किसी मैडिकल हिस्ट्री की वजह से भी स्तनों में दूध बनाने लगता है और उन में दर्द भी महसूस होता है क्योंकि प्रोलैक्टिन का स्तर बढ़ने और कामेच्छा की कमी होने के साथ ही योनी में सूखापन आने से स्तनों के टिशू भी चेंज होने लगते हैं.

महिलाओं के उलट पुरुषों में माहवारी जैसा कोई भरोसेमंद लक्षण नजर नहीं आने की वजह से इस के वास्तविक कारण का पता लगाना बेहद मुश्किल होता है. उन में धीरेधीरे कामेच्छा की कमी आने, लिंग में पर्याप्त तनाव न आने, प्रजनन क्षमता में कमी आने और स्तनों का आकार बढ़ने जैसे लक्षण जरूर नजर आ सकते हैं. मगर कई बार ये कारक भी आसानी से नजर नहीं आते और उस की वजह से वास्तविक कारणों की पहचान नहीं हो पाती है.

महिलाओं में इस के संबंधित परिणाम

इस स्थिति में जैसे ही अंडाशय से ऐस्ट्रोजन का प्रोडक्शन प्रभावित होता है, बां झपन की संभावना बढ़ने के साथ ही ऐस्ट्रोजन की कमी के कारण बोन मिनरल डैंसिटी बीएमडी भी घटने लगती है और ओस्टियोपोरोसिस होने का खतरा भी बढ़ जाता है. ऐस्ट्रोजन हार्ट को बीमारियों से बचाने में भी बेहद महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है, इसलिए इस के स्तर में असंतुलन पैदा होने से आगे चल कर हार्ट से जुड़ी बीमारियां होने का खतरा भी पैदा हो जाता है. पिट्यूटरी ट्यूमर की वजह से प्रोलैक्टिन का जरूरत से ज्यादा प्रोडक्शन होने के कारण सिर में तेज दर्द और नजर कमजोर होने के साथसाथ अन्य हारमोंस के प्रोडक्शन में भी कमी आ जाती है, जिस के चलते हाइपरथायरोडिज्म हो सकता है, जो बां झपन के एक और कारण के रूप में सामने आता है.

कैसे करें डायग्नोज

इस कंडीशन को डाइग्नोज करने के लिए सब से पहले तो मरीज की मैडिकल हिस्ट्री देख कर यह पता लगाया जाता है कि कहीं उसे पहले से ही अस्पष्ट कारणों के चलते स्तनों से दूध का स्राव होने या स्तनों का आकार बढ़ने की समस्या तो नहीं रही है या फिर अनियमित माहवारी अथवा बां झपन की समस्या पहले से तो नहीं रहती है.

पुरुषों में यह पता लगाना जरूरी होता है कि उन की सैक्सुअल फंक्शनिंग कहीं पहले से तो खराब नहीं रही है और स्तनों से दूध का स्राव होने की समस्या कहीं पहले से तो नहीं है. अगर मैडिकल हिस्ट्री से हाइपरप्रोलैक्टिनेमिया के होने का पता चलता है, तो सब से पहले ब्लड टैस्ट के जरीए यह पता लगाया जाता है कि सीरम प्रोलैक्टिन का स्तर कितना है. इस में खाली पेट खून की जांच कराने को प्राथमिकता दी जाती है. अगर सीरम प्रोलैक्टिन का स्तर ज्यादा है, तो फिर आगे अन्य जरूरी टैस्ट करवाए जाते हैं.

आमतौर पर माहवारी न होने की स्थिति में सब से पहले प्रैगनैंसी टैस्ट कराया जाता है. इस के अलावा थायराइड हारमोन के स्तर का पता लगाने के लिए थायराइड के टैस्ट करवाए जाते हैं ताकि यह साफ हो जाए कि मरीज को हाइपरथायरोडिज्म तो नहीं है. अगर प्रोलैक्टिन का स्तर बहुत ज्यादा है, तो उस की वजह से ट्यूमर होने की आशंका भी पैदा हो जाती है. ऐसे में ब्रेन और पीयूष ग्रंथियों का एमआरआई कराने की सलाह भी दी जाती है, जिस में हाई फ्रीक्वैंसी रेडियो तरंगों के जरीए टिशू की इमेज ली जाती है और ट्यूमर के आकार का पता लगाया जाता है.

क्या इलाज संभव है

इलाज का पहला कदम उन प्रमुख कारणों का पता लगाना है, जिन के चलते यह स्थिति पैदा हुई. ये कारण शारीरिक भी हो सकते हैं. कुछ विशेष प्रकार की दवा लेने की वजह से भी ऐसा हो सकता है. इस के अलावा थायराइड या हाइपोथैलिमिक डिसऔर्डर या पिट्यूटरी ट्यूमर या फिर किसी सिस्टेमिक डिजीज की वजह से भी ऐसा हो सकता है.

एक बार जब बीमारी की वास्तविक वजह का पता चल जाता है और किसी ट्यूमर के होने की संभावना खत्म हो जाती है, तो ऐसी दवा के जरीए उपचार शुरू किया जाता है, जो शरीर में प्रोलैक्टिन के स्तर में कमी लाती है. इस से एफएसएच, एलएच और ऐस्ट्रोजन का स्तर फिर से सामान्य होने लगता है. नतीजतन प्रजनन क्षमता फिर से पहले की तरह कायम हो जाती है और माहवारी भी नियमित रूप से होने लगती है.

   -डा. तनु बत्रा

आईवीएफ ऐक्सपर्ट, इंदिरा आईवीएफ हौस्पिटल, जयपुर. 

Vegan Diet को हेल्दी बनाएंगे प्रोटीन से भरपूर ये 5 Food

क्या है वीगन डाइट

वीगन डाइट जिसे वीगानिज़्म भी कहा जाता है, एक ऐसी डाइट है, जिसमें मांस, अंडा, दूध, दही या पशु से बनने मिलने वाले उत्पादों को नहीं खाया जाता. बल्कि वीगन डाइट में सबसे अधिक पेड़पौधों से मिलने वाले खाद्य पदार्थों को खाया जाता है.  इस डाइट में कच्चे ऑर्गेनिक आहार का अधिक सेवन किया जाता है. साबुत फल, सब्जियां और अनाज इस डाइट की विशेषता हैं.  इसे शुद्ध शाकाहारी आहार या प्लांट बेस्ड डाइट भी कहा जाता है.

अब ऐसे में सवाल उठता है कि वीगन डाइट में मांस, अंडा, दूध, दही जैसे खाद्य पदार्थ न होने की वजह से प्रोटीन की कमी को कैसे पूरा किया जाए? इस संबंध में पल्लवबिहानी बोल्डफ़िट के फाउंडर ऐसे सुपरफूड्स के बारे में बताएंगे, जिनके सेवन से आप वीगन डाइट को फॉलो करते हुए प्रोटीन का भरपूर सेवन कर सकते हैं.

वीगन डाइट में प्रोटीन के स्रोत –

शाकाहारी लोगों में प्रोटीन की कमी को पूरा करने के लिए बहुत से खाद्य उत्पाद हैं.  उच्च गुणवत्ता वाले शाकाहारी प्रोटीन स्रोतों की कमी नहीं है, लेकिन बता दें कि सबसे अधिक सोया से बने उत्पादों में प्रोटीन की मात्रा पाई जाती है. बता दें कि टोफू, दालें, बीन्स, अनाज सभी में प्रोटीन भरपूर मात्रा में होता है.  जैसे-

  • दाल एक कप18 ग्राम प्रोटीन
  • काले राजमा एक कप15 ग्राम प्रोटीन
  • चना एक कप12 ग्राम प्रोटीन
  • 114ग्राम टोफू में 11 ग्राम प्रोटीन
  • क्विनोआ एक कप9 ग्राम प्रोटीन

इसके अतिरिक्त नट, नट बटर, कई प्रकार की फलियों और अनाज में भी प्रोटीन पाया जाता है. वीगन डाइट में प्रोटीन की कमी पूरी करने के लिए वेजीटेरियन प्रोटीन पाउडर या वेगन प्लांट प्रोटीन का भी स्मूदी में मिलाकर सेवन किया जा सकता है. इसमें कार्ब की मात्रा बहुत कम होती है, शुगर शून्य के बराबर और यह कीटो फ्रेंडली भी होता है.

वीगन डाइट के लिए प्रोटीन से भरपूर 5 सुपरफूड्स –  

आपने सुना होगा कि वीगन डाइट को फॉलो करने के दौरान प्रोटीन से भरपूर खाद्य पदार्थ या मल्टी विटामिन्स से भरपूर डाइट लेना जरूरी होता है. आइए जानते हैं वीगन डाइट के लिए प्रोटीन से भरपूर खाद्य पदार्थ कौन से हैं.

टोफू टोफू पनीर या चीज का वीगन स्वरूप है.  टोफू डेयरी उत्‍पादों के बेहतरीन विकल्‍प के रूप में इस्‍तेमाल होता है.  हालांकि इसका स्‍वाद पनीर से थोड़ा अलग होता है. प्रोटीन से भरपूर टोफू का इस्‍तेमाल कई व्‍यंजनों को बनाने में किया जा सकता है. वीगन डाइट में टोफू को शामिल करके आप प्रोटीन की कमी को आसानी से दूर कर सकते हैं. इसके अलावा टोफू में अमीनो एसिड के नौ सभी जरूरी तत्‍व शामिल होते हैं.  इसमें आयरन, कैल्शियम और कई मिनरल्स जैसे मैंगनीज और फास्फोरस होता है. टोफू मैग्नीशियम, कॉपर, जिंक और विटामिन बी1 से भी भरपूर होता है.  ये सभी मल्टीविटामिन शरीर को सुचारू रूप से चलाने में मदद करते हैं.

फ्लैक्सीड्स–  फ्लैक्सीड्स यानि अलसी के बीज.  फ्लैक्सीड्स प्रोटीन, फाइबर और ओमेगा -3 फैटी एसिड से भरपूर होते हैं. फ्लैक्सीड्स को दिनभर में किसी भी वक्त स्नैक्स के रूप में या स्मूीदी में मिलाकर या डेजर्ट के रूप खा सकते हैं. ये न सिर्फ कुछ समय के लिए भूख को शांत करेगा बल्कि इससे शरीर को आवश्यक प्रोटीन भी प्राप्त होता है. 100 ग्राम फ्लैक्सीड्स में 18 ग्राम प्रोटीन शामिल होता है. इसके अलावा इसमें विटामिन बी1, विटामिन बी6, फोलेट, कैल्शियम, आयरन, मैग्नीशियम, फास्फोरस,पोटेशियम जैसे शरीर के लिए जरूरी पोषक तत्व शामिल होते हैं.

दाल हम सभी जानते हैं कि दालों में उच्‍च मात्रा में प्रोटीन पाया जाता है. दाल चावल भारत में दोपहर के भोजन में बहुत मशहूर हैं. इसके सेवन से आप पर्याप्त मात्रा में प्रोटीन का सेवन करते हैं. दालें कई प्रकार की हैं आप अपनी पसंद के मुताबिक किसी भी दाल का सेवन करके प्रोटीन की कमी को दूर कर सकते हैं.  इसके अलावा इनमें कार्बोहाइड्रेट, फाइबर, आयरन, सेलेनियम और फोलेट होता है, जोकि शरीर को आवश्यक पोषण देने का काम करता है.

बीन्स  अगर आप वीगन डाइट को खास बनाने के लिए कुछ अलग सोर्स की तलाश कर रहे हैं तो बीन्स से बेहतर कुछ नहीं. राजमा, काले चने, छोले, इनमें से किसी को भी उबाल कर सलाद के तौर पर खाया जा सकता है. ये ना सिर्फ प्रोटीन से भरपूर होते हैं बल्कि ये एंटीऑक्सीडेंट्स होते हैं, जो कि शरीर में फ्री रेडिकल्स के प्रभाव से लड़ते हैं , इसके अलावा इनमें फोलेट, आयरन, कैल्शियम, पोटेशियम,फाइबर जैसे आवश्यक तत्व भी होते हैं.

एडामे: एडामे एक प्रकार की फली है, जिसमें सोयाबीन पाया जाता है.  ये फली भी मटर के समान दिखती है और हरी सब्जियों के परिवार से संबंधित है. यह एशिया और जापान में बहुत लोकप्रिय है. एडामे को उबालकर इसमें और थोड़ा नमक डालकर और अपनी पसंद के कई तरह के मसालों को मिलाकर इसे खाया जाता है. एडामे में उच्च स्तर का प्रोटीन भी होता है जो शरीर के संपूर्ण विकास में मदद करता है. एडामे फोलेट, विटामिन-के और फाइबर से भी भरपूर होता है. कम कैलोरी होने के कारण ये न सिर्फ वजन घटाने, बल्कि कॉलेस्ट्रॉफल को नियंत्रि‍त करने और कैंसर से लड़ने में भी मददगार साबित होता है.

ऐसी स्थिति में जरूरी होते हैं सप्लीमेंट्स

आमतौर पर देखा गया है कि वीगन डाइट फॉलो करने वाले लोगों में विटामिन बी 12, विटामिनडी, आयोडीन, ओमेगा-3डीएचए और ईपीए, विटामिन के2, जिंक, सेलेनियम, मैगनीशियम की कमी हो जाती है.  ऐसे में लोगों को प्रोटीन और अन्य विटामिन्स से भरपूर खाद्य पदार्थ लेने की सलाह दी जाती है, लेकिन किन्हीं कारणों से जब खाद्य पदार्थों के माध्यम से विटामिन और मिनरल्स की कमी पूरी नहीं होती तो उन्हें वीगन एसेंशियल न्यूट्रिशन से भरपूर सप्लीमेंट्स लेने की सलाह दी जाती है.

डायबिटीज और प्रजनन: क्या आप डायबिटीज के साथ गर्भधारण कर सकते हैं?

एक परिवार की शुरूआत करना, जीवन के सबसे खुशनुमा सफर में से एक होता है! वैसे यह थकाने वाला भी हो सकता है. इस पर हैरानी होना, स्वाभाविक बात है कि क्या यह पुरानी बीमारी आपकी प्रजनन यात्रा को प्रभावित कर सकती है, खासकर यदि आप टाइप 2 डायबिटीज से पीड़ित हैं.

डायबिटीज आप पर और आपके बच्चे के लिये गंभीर परिणाम खड़ी कर सकती है और इसलिए जानकारी हासिल करना और सावधानी बरतना, आपके प्रजनन को आसान बनाने के लिये बेहद जरूरी हो जाता है. अच्छी बात ये है कि समय से पहले इसके बारे में प्लानिंग करने और अपने डॉक्टर की मदद लेने से इससे जुड़े जोखिमों को काफी हद तक कम करने में मदद मिल सकती है. इसके परिणामस्वरूप, आप हेल्दी प्रेग्नेंसी का अनुभव ले पाएंगी और एक स्वस्थ बच्चे को जन्म दे पाएंगी.

डॉ.अस्वति नायर,आईवीएफ स्पेशलिस्ट, नोवा साउथेंड आईवीएफ एंड फटिर्लिटी, राजौरी गार्डन की बता रही हैं टाइप 1 या टाइप 2 डायबिटीज के साथ प्रेग्नेंसी के लिये कैसे तैयारी करें.

गर्भधारण करने का प्रयास शुरू करने के कम से कम 6 महीने पहले अपने गाइनकोलॉजिस्ट या फर्टिलिटी विशेषज्ञ से परामर्श लें. उनसे पूछें कि कैसे ब्लड शुगर को अच्छी तरह नियंत्रित रखा जा सकता है, वहीं जरूरी सप्लीमेंट जैसे फोलेट के बारे में पूछें. आपको दवाइयां बदलने को लेकर भी सलाह मिल सकती है.

यदि आपकी सेहत अच्छी है, आप गर्भवती हैं और आपका डायबिटीज पूरी तरह नियंत्रित है तो एक सामान्य प्रेग्नेंसी और प्रसव की बेहतर संभावना है. यदि प्रेग्नेंसी के दौरान डायबिटीज अच्छी तरह नियंत्रित ना हो तो आपको आगे चलकर स्वास्थ्य संबंधी गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं और यह आपके बच्चे के लिये भी खतरनाक हो सकता है.

डायबिटीज किस तरह प्रजनन को प्रभावित करता है?
डायबिटीज, महिलाओं और पुरुषों दोनों में ही प्रजनन को प्रभावित करता है और इसका संबंध खराब स्पर्म क्वालिटी, एम्ब्रयो का क्षतिग्रस्‍त होना और डीएनए के क्षतिग्रस्‍त होने से है. डायबिटीज की वजह से होने वाला हॉर्मोनल अवरोध, इम्प्लांटेशन और गर्भधारण में होने वाली देरी का प्रमुख कारण है.

डायबिटीज, महिला प्रजनन अंगों की नसों और रक्त वाहिकाओं को प्रभावित करके यौन रोग का कारण बन सकता है.यह मासिक धर्म चक्र में व्यवधान पैदा कर सकता है, जिसके परिणामस्वरूप समय से पहले मोनोपॉज हो सकता है. डायबिटीज, इस प्रकार एक महिला की प्रजनन अवधि को कम कर देता है.इसके अलावा, ब्लड ग्लूकोज का उच्च स्तर और कोलेस्ट्रॉल के स्तर से इरेक्शन की समस्या होती है.इसे इरेक्टाइल डिसफंक्शन कहा जाता है. डायबिटीज मेलिटस, स्पर्म में डीएनए के विखंडन को बढ़ा सकता है, जोकि बेहद खतरनाक है क्योंकि यह गर्भधारण की संभावना को कम कर सकता है और कुछ मामलों में गर्भपात के जोखिम को बढ़ा सकता है. खंडित शुक्राणु द्वारा निषेचित अंडा एक अस्वास्थ्यकर भ्रूण के जन्म का कारण बनता है.

एक स्वस्थ गर्भावस्था का सफर-
टाइप 1 वाली कुछ महिलाओं को उनके इंसुलिन डोज को बदलने या फिर इंसुलिन पंप लेने की सलाह दी जा सकती है. वहीं, टाइप 2 डायबिटीज से पीड़ित महिलाओं को प्रेग्नेंसी के शुरूआती चरणों में बिना किसी दवा के केवल आहार के माध्यम से अपना ब्लड शुगर नियंत्रित करने की सलाह दी जा सकती है. नीचे, लाइफस्टाइल में बदलाव के कुछ और कारक दिए गए हैं जोकि आपको अपने डायबिटीज को नियंत्रित करने में थोड़ी और मदद कर सकते हैं.
1. आहार विशेषज्ञ/डाइटिशियन से सलाह लेना
2. मादक पदार्थ (धूम्रपान, शराब) का इस्तेमाल करने से बचना
3. दवाओं में बदलाव
4.विटामिन और मिनरल सप्लीमेंट लेना

सेहतमंद गर्भावस्था सुनिश्चित करने के लिये नीचे कुछ कारक दिए गए हैं, जिन्हें आपको नियंत्रित करने की जरूरत है.

ब्लड ग्लूकोज का स्तर: हो सकता है आप पहले से ही अपना अच्छी तरह ख्याल रख रहे हों, लेकिन गर्भावस्था के लिये यह और भी जरूरी हो जाता है. यह आपके और आपके बच्चे की सेहत के लिये महत्वपूर्ण है कि आपके ब्लड ग्लूकोज का स्तर स्थिर रहे.उपवास (भोजन से पहले) के दौरान आदर्श ब्लड ग्लूकोज का स्तर 4.0 और 5.5 mmol/L के बीच होता है और भोजन के 2 घंटे बाद 7.0 mmol/L से कम होता है. यदि आपको डायबिटीज है, तो स्वस्थ रहने और स्वस्थ बच्चे को जन्म देने के लिये गर्भावस्था से पहले और गर्भावस्था के दौरान जितना हो सके अपने ब्लड ग्लूकोज के स्तर को सामान्य रखना जरूरी है.

HbA1c स्तर:
आपके प्रजनन के शुरूआत में, आपके HbA1c का स्तर आवश्यक रेंज के अंदर रहना जरूरी है. ऐसा इसलिए है, क्योंकि HbA1c का अधिक स्तर आपके बच्चे के विकास को प्रभावित कर सकता है. खासातौर से गर्भावस्था की पहली तिमाही (पहले आठ हफ्ते) के दौरान यह महत्वपूर्ण है, जब बच्चे के अंगे विकसित हो रहे होते हैं.

HbA1c के स्तर को 48 mmol/mol से नीचे रखना बेहद आवश्यक है.यदि इसका स्तर 48 mmol/mol से अधिक हो जाता है तो खतरे को कम करने के लिये आपको सावधानियां बरतनी चाहिए.

फॉलिक एसिड:
अपने बच्चे के खतरों को कम करने के लिये गर्भधारण करने से पहले कम से कम 12 हफ्तों के लिये हर रोज 5 एमजी डोज लेना जरूरी है.

आहार और एक्सरसाइज:
एक्सरसाइज और संतुलित आहार, ब्लड ग्लूकोज के लक्ष्य तक पहुंचने में आपकी मदद कर सकते हैं. शारीरिक सक्रियता, तनाव को दूर कर, आपके दिल और हड्डियों को मजबूती देकर, मांसपेशियों की ताकत बढ़ाकर और आपके जोड़ों को लचीला बनाए रखकर, एक सेहतमंद ब्लड प्रेशर और कोलेस्ट्रॉल के स्तर को बनाए रखने में मदद करता है.गर्भावस्था के दौरान हर दिन 30 मिनट का ब्रिस्क वॉक भी रक्तसंचार को नियमित बनाए रखने का एक बेहतरीन तरीका है. अपनी मेडिकल टीम से बात करें कि वो आपको प्रभावी गतिविधियों के बारे में बताएं जोकि गर्भावस्था के दौरान आपके लिये सबसे अच्छे हैं.

अगर आप भी हेडफोन लगाती हैं तो सावधान हो जाइए

आज के समय में मोबाइल एक ऐसी जरूरत बन चुकr है, जिसके बिना आज के जीवन की कल्पना जैसे मुश्किल सी हो गई है. आप भी मोबाइल के बिना एक दिन भी नहीं बिता सकते हैं. मोबाइल फोन्स आज हमारी जिन्दगी का एक अहम हिस्सा बन चुके हैं. आज के समय के सभी लोग चाहे वह युवा वर्ग हो, बच्चे हों या बुजुर्ग, मोबाइल के शौकीन हैं. पर देखा गया है कि लोग मोबाइल का न सही इस्तेमाल करते हैं और न ही सही ढंग से करते हैं, जिस कारण ये हमारे लिए खतरा साबित होता है.

हम आपको बताना चाहते हैं कि जब भी आप बस या ट्रेन से सफर कर रहे होते हैं या बाहर घूमते वक्त भी, यहां तक की रात को सोते वक्त भी मोबाइल की लीड या हेडफोन लगाकर बात करते हैं या फिर गाने सुनते रहते हैं. यूं हर वक्त कान में हेडफोन लगाकर गाने सुनना या बात करना आपके लिए कितना खतरनाक साबित हो सकता है.

आपने शायद कई बार सोचा तो होगा कि हेडफोन लगाना आपके लिए खतरनाक हो सकता है पर फिर आप इस बात को भूल गए होंगे. तो हम आपको बता दें कि हेडफोन लगाकर गाने सुनने और लगातार फोन पर हेडफोन लगाकर बातें करने से आपको क्या-क्या गंभीर नुकसान हो सकते हैं..

1. जब भी आप अपनी गाड़ी चलाते हैं और कानों में लीड लगाकर रखते हैं, तो जाहिर है कि आपको अन्य गाड़ियों के हार्न का आवाज नहीं सुनाई देगी और ऐसे में हमें दुर्घटना होने का खतरा हरदम बना रहता है. इससे बचने का केवल यही उपाय है कि आप गाड़ी चलाते समय कानों में लीड लगाकर गाने न सुने. गाड़ी पर रहते हुए फोन भी नहीं उठाना चाहिए.

2. सुनने में अजीब तो लग सकता है पर ये सच है कि अधिक समय तक कानों में लीड लगाने से आप बहरे भी हो सकते हैं. साथ ही कान खराब होने की संभावनाऐं तो कई फीसदी बढ़ती ही हैं.

3. रात को सोते समय कानों में लीड लगाकर सो जाने से आपके कान की नसें कमजोर होने लगती हैं और एक बार कान की नसें कमजोर हो जाएं, तो वे जीवन भर आपको परेशान करती हैं.

4. इसके अलावा हेडफोन के ऐसे इस्तेमाल से कान में दर्द, सूजन, इन्फेक्शन और मानसिक तनाव भी पैदा होता है. ये बात आपकी सेहत के लिए ठीक नहीं है.

5. जब आप हेडफोन लगाकर गाने सुनते हैं, तो इससे आपके दिमाग के डैमेज या क्षतिग्रस्त होने का खतरा होता है. कई बार इससे सरदर्द की समस्या भी सामने आती है. आपके दिमाग को कई अंदरूनी समस्याओं का भी सामना कर पड़ सकता है, जो आपके जीवन के लिए वाकई एक गंभीर समस्या बन सकती है.

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