बड़बोला: विपुल से आखिर क्यों परेशान थे लोग

शरणागत: कैसे तबाह हो गई डा. अमन की जिंदगी- भाग 3

एक दिन डा. अमन ने नीरा को समझाया, ‘‘खुदगर्ज लोगों के लिए क्यों अपने तन और मन को कष्ट दे रही हैं, जो एक दुर्घटना की खबर सुन कर आप से दूर हो गए. अच्छा हुआ ऐसे खुदगर्ज लोगों से आप का रिश्ता पक्का न हुआ.’’

इस के बाद नीरा अमन को अपना मित्र समझने लगी. वह अमन के आने का बेसब्री से इंतजार करती. अब वह अमन को अपने नजदीक पाने लगी थी. अमन अपने फुरसत के लमहे नीरा के कमरे में बिताता. राजनीति, सामाजिक समस्याओं, फिल्मों, युवा पीढ़ी आदि के बारे में खुल कर बहस होती. अमन का ऐसे रोजरोज बेझिझक आना और बातें करना नीरा के दिल पर लगी चोट को कम करने लगा था.

प्लस्तर खुलने में अब कुछ ही दिन बचे थे. नीरा के घर सूचना भेज दी गई थी. अमन जब नीरा के कमरे में गया तो वह एकाएक अमन से पूछने लगी, ‘‘क्या आप मुझे कोई छोटीमोटी नौकरी दिलवा सकते हैं?’’

अमन ने कारण पूछा तो वह बोली, ‘‘मैं अब घर नहीं जाऊंगी.’’

अमन यह सुन कर हैरान रह गया. अमन ने बहुत समझाया कि छोटीछोटी बातों पर घर नहीं छोड़ देते हैं, पर नीरा ने एक न सुनी.

वह बोली, ‘‘डा. अमन, मैं सिर्फ आप पर भरोसा करती हूं, आप को अपना समझती हूं. आप मेरे लिए कुछ कर सकते हैं? मैं इस समय आप की शरण में आई हूं.’’

अमन गहरी उलझन में पड़ गया. फिर कुछ सोच कर बोला, ‘‘आप का बीए का रिजल्ट तो अभी आया नहीं है. हां, कुछ ट्यूशन मिल सकती है, परंतु तुम रहोगी कहां?’’

यह सुन कर नीरा बेबसी से रो पड़ी. घर जाना नहीं चाहती थी और कोई ठौरठिकाना था नहीं. अमन उसे प्यार से समझाने लगा पर वह जिद पर अड़ गई. बोली, ‘‘मैं तो आप की शरण में हूं. आप मुझे अपना लो नहीं तो आत्महत्या का रास्ता तो खुला ही है,’’ और वह अमन के पैरों में झुक गई.

अमन बहुत बड़ी दुविधा में पड़ गया. उस ने नीरा को दिलासा दे कर पलंग पर बैठाया और फिर तेजी से बाहर निकल डा. जावेद के कमरे में पहुंच गया. वह उन्हें अपना बड़ा भाई व मार्गदर्शक मानता था. अमन ने अपनी सारी उलझन उन्हें कह सुनाई.

सब सुन कर डा. जावेद गंभीर हो गए. बोले, ‘‘मेरे विचार से तुम नीरा और उस के पारिवारिक झगड़े से दूर ही रहो. नीरा अभी नासमझ है. बहुत गुस्से में है, इसलिए ऐसा कह रही है. जब और कोई सहारा न मिलेगा तो खुद ही घर लौट जाएगी. अपनी सगाई न हो पाने का गुस्सा अपने परिवार पर निकाल रही है.’’

डा. जावेद की बातें उस के सिर के ऊपर से निकल रही थीं. अत: वह वहां से चुपचाप चला आया.

अमन सोच रहा था कि लड़की बेबस है, दुखी है. बड़ी उम्मीद से उस की शरण में आई है. अब वह उसे कैसे ठुकरा दे? इसी उधेड़बुन में वह अपने घर पहुंच गया.

अमन को देख मां और पिता खुश हो गए. मां जल्दी से चाय बना लाई. अमन गुमसुम सा अपनी बात कहने के लिए मौका ढूंढ़ रहा था.

पिता ने उस का चेहरा देख कर पूछा, ‘‘कुछ परेशान से लग रहे हो?’’

बस अमन को मौका मिला गया. उस ने सारी बात उन्हें बता दी. मातापिता हैरानपरेशान उसे देखते रह गए. थोड़ी देर कमरे में सन्नाटा छाया रहा. फिर पिताजी ने चुप्पी तोड़ते हुए कहा, ‘‘ऐसा फैसला तुम कैसे ले सकते हो? अपने सगे मातापिता को ठुकरा कर आने वाली दूसरे धर्म वाली से विवाह? यह कैसे मुमकिन है? माना हम गरीब हैं पर हमारा भी कोई मानसम्मान है या नहीं?’’

मां तो आंसू भरी आंखों से अमन को देखती ही रह गईं. उन के इस योग्य बेटे ने कैसा बिच्छू सा डंक मार दिया था. 1 घंटे तक इस मामले पर बहस होती रही पर दोनों पक्ष अपनीअपनी बात पर अडिग रहे.

पिता गुस्से में उठ कर जाने लगे तो अमन भी उठ खड़ा हुआ. बोला, ‘‘मैं नहीं मानता आप के रूढि़वादी समाज को, आडंबर और पाखंडभरी परंपराओं को… मैं तो इतना जानता हूं कि एक दुखी, बेबस लड़की भरोसा कर के मेरी शरण में आई है. शरणागत की रक्षा करना मेरा फर्ज है,’’ कहता हुआ वह बार निकल गया.

अस्पताल पहुंच कर अमन ने अपने खास 2-3 मित्रों को बुला कर उन्हें बताया कि वह नीरा से शादी करने जा रहा है. शादी कोर्ट में होगी.

यह सुन कर सारे मित्र सकते में आ गए. उन्होंने भी अमन को समझाना चाहा तो वह गुस्से में बोला, ‘‘तुम सब ने मेरा साथ देना है बस. मैं उपदेश सुनने के मूड में नहीं हूं.’’

‘विनाश काले विपरीत बुद्धि,’ कह कर सब चुप हो गए. अमन अस्पताल से मिलने वाले क्वार्टर के लिए आवेदन करने चला गया. इस समय उस के दिमाग में एक ही बात चल रही थी कि नीरा उस की शरण में आई है. उसे उस की रक्षा करनी है.

नीरा का प्लस्तर खुल गया था. छड़ी की मदद से चलने का अभ्यास कर रही थी. धीरेधीरे बिना छड़ी के चलने लगी. 4 दिन बाद अस्पताल से छुट्टी होनी थी. अमन ने 2 दिन बाद ही अपने मित्रों के साथ जा कर कोर्ट में नीरा से शादी कर ली. फिर मित्रों के साथ जा कर घर का कुछ सामान भी खरीद लिया. क्वार्टर तो मिल ही गया था. नीरा अमन के साथ जा कर अपने और अमन के लिए कुछ कपड़े, परदे वगैरा खरीद लाई. दोनों ने छोटी सी गृहस्थी जमा ली.

डिस्चार्ज की तारीख को नीरा के पिता उसे लेने आए, परंतु जब उन्हें नीरा की अमन के साथ शादी की सूचना मिली तो उन के पैरों तले की जमीन खिसक गई. मारे गुस्से के वे अस्पताल के प्रबंध अधिकारी और डाक्टरों पर बरसने लगे. वह पुलिस को बुलाने की धमकी देने लगे. ये सब सुन कर अमन और नीरा अस्पताल आ पहुंचे. नीरा को देख पिता आगबबूला हो गए. नीरा पिता के सामने तन कर खड़ी हो गई. बोली, ‘‘आप पहले मुझ से बात करिए. मैं और अमन दोनों बालिग हैं… किसी पर तोहमत न लगाइए. हम ने अपनी इच्छा से शादी की है.’’

नीरा के पिता यह सुन कर हैरान रह गए. फिर पैर पटकते हुए वहां से चले गए. उधर जब अमन के घर यह खबर पहुंची तो मातापिता दोनों टूट गए. पिता तो सदमे के कारण बुरी तरह डिप्रैशन में चले गए. मां के आंसू न थम रहे थे. डाक्टर ने बताया कि मानसिक चोट लगी है. इस माहौल से दूर ले जाएं. तब शायद तबीयत में कुछ सुधार आ जाए. दोनों बहनों ने अपनी बचत से मांपिताजी का हरिद्वार जाने और रहने का इंतजाम कर दिया.

आगे पढ़ें- 2 महीने में ही नीरा अपनी…

लाल साया: भाग-2

‘‘महेश तो आज छुट्टी पर है. गांव गया है.‘‘

‘‘फिर तो बहुत अच्छा है. हम दोनों आज शाम तक निकल जाते हैं. सब को लगेगा कि हम तीनों चले गए.‘‘

‘‘ठीक है, मैं ड्राइवर को बोल दूंगा.”

‘‘नहीं, नहीं, अंकल, आप के ड्राइवर के साथ नहीं.”

‘‘हां, ठीक कह रहे हो. मैं टैक्सी बुला दूंगा.‘‘

‘‘जी.”

दोपहर में तीनों लड़के नीचे आए तो विमला देवी की सूजी आंखें उन के दिल का भेद खोल रही थीं.

‘‘पापा मुझे माफ कर दीजिए. मैं आज के बाद कभी शराब को हाथ भी नहीं लगाऊंगा,” कहते हुए विशेष पिता के पैरों में गिर पड़ा. वह फूटफूट कर रो रहा था.

निशब्द उन्होंने उठा कर बेटे को गले लगा लिया.

‘‘रिचा… पापा रिचा… मुझे कुछ याद नहीं है…” वह हिचकियों के साथ बोला.

‘‘मैं हूं ना बेटा… सब संभाल लूंगा… और फिर तुम इतने भाग्यशाली हो कि तुम्हारे इतने अच्छे दोस्त हैं.”

‘‘अंकल, हम दोनों दिन में ही निकल जाते हैं. हम ने ऊपर सब ठीक कर दिया है.”

‘‘मैं ने दूसरा ड्राइवर बुला रखा है. वह तुम्हें छोड़ आएगा. और हां बेटा, जैसे विशेष वैसे ही तुम लोग. इसलिए यह छोटी सी भेंट है. तुम्हारे मकान के लिए पच्चीस लाख का यह चेक है. और तुम्हारे बिजनेस के लिए पच्चीस लाख का यह चेक है.‘‘

‘‘अरे अंकल…‘‘

‘‘बस रख लो बेटा, मुझे खुशी होगी,‘‘ बिना आंखें मिलाए सेठजी बोले.

कालोनी में इस बात की चर्चा जाने कैसे फैल गई कि सेठ मदन लाल के घर रात में गोली चली थी. सफाई देदे कर दोनों परेशान थे. विमला देवी ने तो सब से मिलना ही बंद कर दिया. सेठ मदन लाल तनाव में रहने लगे. ऊपर से रिचा की गुमशुदगी की रिपोर्ट के चलते पुलिस जांच करने उन के घर आ धमकी. बड़ी मुश्किल से लेदे कर सेठजी ने मामला निबटाया.

इस घटना को 4-6 महीने बीत गए थे. एक दिन विमला देवी बोलीं, ‘‘सुनिएजी, कहीं विशेष की शादी की बात चलाइए. अब उस की शादी तो करनी ही है ना…‘‘

‘‘देखो, थोड़ा इंतजार करना पड़ेगा. जल्दबाजी ठीक नहीं. देख तो रही हो जितने शादी के प्रस्ताव थे, सभी कोई ना कोई बहाना कर पीछे हट गए. पता नहीं कैसे समाज में हमारे परिवार को ले कर नकारात्मक माहौल बन गया है. तो अब थोड़ी प्रतीक्षा ही करनी होगी.”

‘‘मुझे तो बड़ी चिंता हो रही है.”

‘‘मां, मुझे शादी नहीं करनी है. कितनी बार तो कह चुका हूं. फिर वही विषय ले कर बैठ जाती हैं आप,” विशेष अचानक कमरे में आ गया था.

तभी मदन लाल जी का फोन घनघनाया.

‘‘हां उमेश, बेटा.‘‘

‘‘अरे, पिछले हफ्ते ही तो 10 लाख तुम्हारे अकाउंट में डाले थे. नहीं, अब मैं और नहीं दे सकता,’’ कह कर उन्होंने गुस्से से फोन काट दिया.

‘‘उमेश… आप से पैसे मांग रहा है?” चकित सा विशेष पिता को देख रहा था.

‘‘पैसे नहीं मांग रहा है… ब्लैकमेल कर रहा है. 10-10 लाख दो बार ले चुका है और अब फिर…‘‘ गुस्से से वे हांफने लगे थे.

‘‘मुझे कुछ नहीं बताया उस ने,” विशेष के स्वर में हैरानी थी.

‘‘अरे, आप को क्या हो रहा है?” विमला देवी उठ कर पति के सीने पर हाथ फेरने लगीं, जिसे वे कस कर दबा रहे थे. उन्हें तुरंत अस्पताल पहुंचाया गया, परंतु बचाया नहीं जा सका.

हंसताखिलखिलाता घर बिखर गया. घर में जैसे मुर्दनी छा गई थी. विशेष पिता की जगह अपनी शर्राफे की दुकान पर बैठने लगा था. दिन जैसेतैसे कट रहे थे.

‘‘विशेष, छुटकी की शादी का न्योता आया है. जाना पड़ेगा,” मां विशेष के आते ही बोलीं.

‘‘ठीक है मां, मैं मामाजी के यहां आप के जाने की व्यवस्था कर देता हूं.”

‘‘नहीं बेटा तुझे भी चलना होगा.”

‘‘आप जानती तो हैं मां…”

‘‘जानती हूं, तू कहीं नहीं जाना चाहता. परंतु मीरा की शादी में भी तू पढ़ाई के कारण नहीं जा पाया था. उन्हें लगेगा, उन की गरीबी के कारण तू उन के घर नहीं आता.”

‘‘यह सच नहीं है मां. मेरे लिए रिश्ते महत्व रखते हैं. गरीबीअमीरी तो मैं सोचता भी नहीं. मैं मामाजी की बहुत इज्जत करता हूं,‘‘ विशेष ने प्रतिवाद किया.

‘‘जानती हूं, इसीलिए चाहती हूं कि तू मेरे साथ चल. दो दिन की ही तो बात है,‘‘ बेटे के सिर पर हाथ फेरते हुए वे बोलीं.

‘‘ठीक है मां, जैसा आप चाहे.‘‘

गांव में उन की गाड़ी के रुकते ही धूम मच गई ‘‘बूआजी आ गईं, बूआजी आ गईं.”

भाईभाभी के साथ छुटकी भी दौड़ी आई और उस के साथ में थी उस की प्यारी सहेली रजनी. विशेष पर नजर पड़ते ही अपनी सुधबुध खो बैठी. सब एकदूसरे को दुआसलाम कर रहे थे और रजनी अपलक विशेष को निहारे जा रही थी.

‘‘रजनी, भैया को ऐसे क्यों  घूर रही हो?‘‘ छुटकी ने कोहनी मारी.

सब उधर ही देखने लगे. रजनी के साथसाथ विशेष भी झेंप गया, ‘‘नहीं… कुछ नहीं…‘‘ कहते हुए रजनी बूआजी का सामान निकलवाने लगी.

‘‘आप रहने दीजिए, मैं निकलवा दूंगा,’’ विशेष ने उसे टोका.

‘‘आप तो पाहुन हैं,” वो खिलखिलाई और बैग उठा कर अंदर भाग गई.

‘‘बहुत ही प्यारी बच्ची है बीबीजी. अपनी छुटकी की सब से पक्की सहेली है. जान छिड़कती हैं दोनों एकदूसरे पर,” स्नेह से भौजाई बोलीं.

जब तक सब लोग आ कर बैठे, रजनी सब के लिए शरबत ले कर हाजिर थी. बूआजी सब से बोलतीबतियाती रहीं, पर निगाह उन की हर पल रजनी पर ही टिकी रही. एक आशा की किरण दिखाई दी थी उन्हें. रजनी का स्पष्ट झुकाव उन के सुदर्शन बेटे पर दिखाई दे रहा था. और कितने महीनों बाद विशेष भी खुश दिखाई दे रहा था. शाम को जब ढोलक की थाप पर रजनी नाची तो विमला देवी लट्टू ही हो गईं.

‘‘भाभी, रजनी तो वाकई बहुत अच्छा नाचती है.”

‘‘हां बीबीजी, बहुत भली और गुणी लड़की है. पढ़ने में भी अव्वल आती है. वजीफा पाती है. लगन की ऐसी पक्की कि जाड़ा, गरमी, बरसात साइकिल से कसबे तक पढ़ने जाती है,” स्नेह पगे स्वर में भौजाई बोलीं.

‘‘अपने विशेष के लिए कैसी रहेगी?” वे सीधे भाभी की आंखों में देख रही थीं.

‘‘बीबीजी, लड़की तो बहुत ही अच्छी है. लाखों में एक. जोड़ी भी बहुत अच्छी लगेगी, लेकिन…‘‘ बात अधूरी ही छोड़ दी उन्होंने.

‘‘लेकिन क्या…?‘‘

‘‘लेकिन, बहुत गरीब परिवार से है. आप की हैसियत की तो छोड़ दीजिए. साधारण शादी भी नहीं कर सकेंगे वे लोग.‘‘

आगे पढ़ें- रजनी के लिए आए इस प्रस्ताव से छुटकी की शादी की…

शरणागत: कैसे तबाह हो गई डा. अमन की जिंदगी- भाग 2

इन का परिवार पहाड़ी था, परंतु ईसाई धर्म अपना लिया था. उन की बिरादरी में बहुत से परिवार थे, जिन्होंने पाखंडों और रूढि़वादिता से तंग आ कर अपनी इच्छा से इस धर्म को अपनाया था. अगले दिन जब अमन वार्ड में मरीजों को देखने गया तो नीरा उसी वार्ड में थी. उस के मातापिता भी वहीं खड़े थे. डा. अमन ने जब नीरा का हालचाल पूछा तो उस ने अपनी लंबीलंबी पलकें झपका कर ठीक महसूस करने का इशारा कर दिया. उस के पिता उतावले से हो कर पूछने लगे, ‘‘डाक्टर हड्डी जुड़ने में कितना समय लगेगा? ठीक तो हो जाएगी न?’’

अमन ने उन्हें धीरज बंधाते हुए कहा, ‘‘हड्डी जुड़ने में थोड़ा समय लगेगा. आप चिंता न करें, आप की बेटी बिलकुल ठीक हो जाएगी.’’

यह सुन कर उन दोनों के चेहरे पर गहरी चिंता झलकने लगी. यह देख कर अमन को हैरानी हुई. उस ने नीरा के पिता से कहा, ‘‘आप की बेटी ठीक है. फिर यह चिंता किसलिए कर रहे हैं?’’

इस पर नीरा के पिता ने झिझकते हुए बताया, ‘‘डाक्टर साहब, नीरा की परीक्षा खत्म होने के बाद सगाई होने वाली है. हमारी बिरादरी के एक आईएएस लड़के से इस की शादी की बात पक्की हो रखी है. 3 दिन बाद लड़का सगाई की रस्म के लिए आने वाला है. उस के मातापिता यहीं रहते हैं.’’

अमन ने कहा, ‘‘देखिए, आप पहले बेटी की सेहत पर ध्यान दीजिए. सगाई बाद में होती रहेगी,’’ कह अमन अन्य मरीजों का मुआयना कर वार्ड से बाहर जाने से पहले नीरा से बोला, ‘‘मेरे पास कुछ किताबें हैं, आप को भिजवाता हूं, पढ़ती रहेंगी तो मन लगा रहेगा.’’

आज नीरा के होने वाले पति व उस के परिवार वालों की आने की उम्मीद में उस के मम्मीपापा जल्दी आ गए. वे नीरा के लिए गुलाबी रंग का सलवारकुरता लाए थे. नीरा के चेहरे पर भी खुशी झलक रही थी. जल्दी से नर्स को बुला कर हाथमुंह धो कर कपड़े बदल वह बेसब्री से इंतजार करने लगी.

सुबह से शाम हो गई पर लड़के के परिवार का कहीं दूरदूर तक अतापता न था. अमन जब शाम को वार्ड में आया तो देखा नीरा के मातापिता चेहरे लटकाए जा रहे थे, नीरा को यह कह कर कि चर्च में जा कर पता करते हैं. शाम को वे वहां आएंगे ही… सब ठीकठाक हो. नीरा भी थकावट और चिंता से बेहाल थी. चुपचाप चादर ओढ़ कर सो गई.

अगले दिन नीरा के मातापिता आए तो उन के चेहरों पर उदासी छाई थी. जैसे अरसे से बीमार हों.

अमन वार्ड के अन्य मरीजों को देख रहा था. नीरा की मां आते ही रोष भरी आवाज में बोल उठीं, ‘‘मैं कहती थी न कि दाल में कुछ काला है. चर्च में लड़के का परिवार आया था पर परायों जैसा व्यवहार था. औपचारिक हायहैलो का जवाब दे कर चर्च से निकल गए. तुम्हारा रिश्ता करवाने वाली महिला आशा भी नजरें चुरा रही थी. मैं ने पास जा कर पूछा तो बोली, ‘‘लड़के का परिवार बहुत नीच निकला. जब मैं ने नीरा के संग सगाई के प्रोग्राम के बारे में पूछा तो नीरा के बारे में उलटासीधा बोलने लगे कि नीरा हाथ छोड़ कर साइकिल चला रही थी…कुछ लड़कों के साथ रेसिंग कर रही थी. ऐक्सिडैंट इसी कारण हुआ..

‘‘न भई न मेरे लड़के ने तो साफ मना कर दिया कि नहीं करता सगाई. कहीं नीरा की टांग में फर्क रह गया तो उस की जिंदगी बरबाद हो जाएगी. उसे तो आएदिन क्लब व पार्टियों में जाना पड़ता है.

‘‘भई हम ने तो वही किया जो बेटे ने कहा. अच्छा हुआ अभी बातचीत ही हुई थी, कोई रस्म नहीं हुई थी.’’

सारी बात सुन कर नीरा की मां पस्त हो कर स्टूल पर बैठ गईं और सिसकने लगीं. पिता भी सिर झुकाए पलंग पर बैठ गए. ये सब सुन कर नीरा गुस्से से कांपने लगी. फिर चिल्ला कर बोली, ‘‘उन की इतनी हिम्मत… मेरे लिए ऐसा बोला. उस दिन तो लड़के की मां तारीफों के पुल बांध रही थीं, नीरा के हाथ में चाय का गिलास था. उस ने उसे जोर से पटक दिया. वार्ड के अन्य मरीज उसे देखने लगे. डा. अमन और उस के सहयोगी नीरा को शांत करने की कोशिश करने लगे. नीरा के पिता नीरा की मां को डांटते हुए बोले, ‘‘अभी सबकुछ बताना था?’’

नीरा की मां भी भरी बैठी थीं. गुस्से में जोर से बोलीं, ‘‘तो क्या बताने के लिए मुहूर्त निकलवाती?’’

बड़ी मुश्किल से उन्हें बाहर भेज कर नीरा को नींद का इंजैक्शन लगाया गया. पल भर में ही सब कुछ घटित हो गया.

अमन सोचने लगा वास्तव में नीरा के साथ अन्याय हुआ है. यदि यह ऐक्सिडैंट शादी के बाद होता तो क्या होता? उसे समाज के ऐसे मतलबी लोगों से नफरत होने लगी. उसे नीरा से सहानुभूति सी होने लगी कि अच्छीभली लड़की के जीवन में जहर घोल दिया.

नीरा अभी इस घटना से उबर भी नहीं पाई थी कि एक और घटना हो गई, जिस ने नीरा की जीवनधारा को उलटी दिशा में मोड़ दिया.

2 दिन बाद ही नीरा की मां जब नीरा से मिलने आईं तो बहुत ही गुस्से में थीं. आते ही आवदेखा न ताव नीरा पर बरस पड़ीं. बोलीं, ‘‘नीरा सचसच बताओ तुम सचमुच हाथ छोड़ कर साइकिल चला रही थी? लड़कों के साथ रेसिंग कर रही थी? सारी कालोनी में तुम्हारे ही चर्चे हैं.’’

नीरा का दिल पहले ही चोट खाया था. यह बातें उसे नश्तर की तरह चुभने लगीं. मां और बेटी के बीच बहस ने खतरनाक रूप ले लिया. नीरा पलंग से उठने की कोशिश में गिर गई. डाक्टर ने उसे प्राइवेट रूम में शिफ्ट कर दिया. सीनियर डाक्टर ने नीरा के घर वालों पर नीरा से मिलने की पाबंदी लगा दी क्योंकि इस का नीरा की सेहत पर गलत असर पड़ रहा था और अस्पताल का माहौल भी बिगड़ रहा था. हां, वे नीरा का हाल डाक्टरों से फोन से पूछ सकते थे.

शारीरिक और मानसिक चोट ने नीरा को बुरी तरह तोड़ दिया था. वह न तो किसी से बातचीत करती और न ही दवा व भोजन समय पर लेती. सभी डाक्टरों ने उसे समझाया पर वह टस से मस न हुई.

आगे पढ़ें- नीरा अमन को अपना मित्र समझने लगी. वह…

तुम आज भी पवित्र हो– भाग 2

क्षितिजा के पूछने पर कि उस की पत्नी और बच्चे कहां हैं तो कोल्डड्रिंक्स का गिलास उस के हाथ में पकड़ाते हुए उस का बौस नरेश कहने लगा कि खाने का सारा अरैंजमैंट उस की पत्नी ने ही किया है,

पर अचानक से उस के किसी दूर के रिश्तेदार, जो इसी शहर में रहते थे उन की मौत हो गई तो उसे फौरन वहां जाना पड़ा. वह बस आती ही होगी.

‘‘क्षितिजा यह सोच कर धीरेधीरे कोल्डड्रिंक्स के घूंट भरने लगी कि जब उस की पत्नी आ जाएगी तब सब साथ में ही खाना खाएंगे. मगर उसे इस बात की चिंता भी हो रही थी कि मां उस के लिए परेशान हो रही होंगी. अपने फोन की बैटरी लो होने के कारण, जब वह बौस के फोन से मुझे फोन लगाने लगी तो यह कह कर नरेश ने उस के हाथ से फोन ले लिया कि अब वह कोई छोटी बच्ची नहीं रही जो हर बात की खबर अपनी मां को देती रही.

‘‘अरे, अब तो वह शादी कर के अपने पिया के घर चली जाएगी तो क्या फिर भी मां को हर बात की जानकारी देती रहेगी? उस की बातों पर क्षितिजा भी मुसकरा पड़ी.

लेकिन उसे एहसास होने लगा कि उस की आंखें बोझिल होने लगी हैं. कुछ समझबोल पाती, उस से पहले ही वह वहीं सोफे पर लुढ़क गई.

‘‘सुबह जब उस की आंखें खुलीं तो उस ने खुद को एक बड़े से बैड पर पाया. उस का पूरा बदन दर्द के मारे टूट रहा था. लग रहा था जैसे किसी ने उस के शरीर को मचोड़ कर रख दिया हो. मगर हैरान तो वह तब रह गई जब उस ने अपने को बिलकुल वस्त्रहीन पाया. फिर अचानक उसे मेरा खयाल आया और जैसे ही वह बैड पर से उठने की कोशिश करने लगी. नरेश सामने आ कर खड़ा हो गया. उस के हाथ में शराब से भरा गिलास था.’’

‘‘एक बड़ा सा घूट भरते हुए वह बोला कि आराम से… आराम से… वैसे ठीक तो हो न?’’ वह कुछ समझबूझ पाती नरेश उसे घूरते हुए बोला बहुत मजा आया सच में… तुम ने मेरी रात रंगीन कर दी. इस रात को मैं हमेशा याद रखूंगा. बोल कर वह जोर से हंसा और फिर शराब से भरा गिलास एक बार में ही गटक गया.

‘‘नरेश को इस रूप में देख और उस की बातें सुन कर क्षितिजा की आंखें हैरानी से फैल गई. उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि नरेश ने उस के साथ ये सब कुछ किया? चादर से ही अपने नंगे बदन को किसी प्रकार ढकती हुई बोली कि तो तुम ने मेरे साथ…धोखे से अपने घर बुला कर तुम ने मेरा बलात्कार किया? और वहां मेरी मां…

‘‘क्षितिजा की बातों पर वह जोर से हंसा और फिर बोला कि तो क्या अपनी मरजी से तुम मेरे साथ सोने के लिए राजी हो जाती? और मां… हा…हा…हा…

कर वह ठहाके लगाने लगा.’’

‘‘उस की बेशर्मी देख गुस्से से क्षितिजा की आंखें लाल हो गईं. ललकारते हुए बोली कि ठीक है अब देखो मैं क्या करती हूं.

कहीं का नहीं छोडूंगी मैं तुम्हें. सब बताऊंगी पुलिस को कि किस तरह से तुम ने मुझे धोखे से अपने घर बुलाया और फिर कैसे मेरी बेहोशी का फायदा उठाया. बोल कर वह कमरे से निकलने लगी कि नरेश ने यह बोल कर उस का मुंह बंद कर दिया कि अगर उस ने ऐसा सोचा भी तो वह उस का न्यूड वीडियो जो उस ने बना लिया है उसे वायरल कर देगा. इसलिए उस की भलाई इसी में है कि अपना मुंह बंद रखे.’’

सारी बात सुन कर नमन का खून खौल उठा. मन तो किया उस का कि अभी जा कर उस नरेश का खून कर दे, पर उस ने अपने गुस्से पर कंट्रोल कर लिया और सोचने लगा कि अगर उस शख्स के खिलाफ पुलिस में शिकायत करे तो वह खबर तुरंत अखबारों और टीवी की सुर्खियां बन जाएगी और तब शायद क्षितिजा और अवसाद में चली जाएगी, हो सकता है बदनामी के डर से वह खुद को ही खत्म कर ले.

लेकिन अगर दोषी को सजा नहीं मिलती है तो भी खौफ में वह जी नहीं पाएगी.

क्या शादी के बाद बलात्कार को याद कर वह अपना वैवाहिक जीवन अच्छी तरह जी पाएगी कभी? ‘नहीं, मैं अपनी क्षितिजा को यों घुटघुट कर मरते नहीं देख सकता. मैं इसे इस अवसाद से बाहर निकाल कर ही रहूंगा और इस के लिए चाहे मुझे कुछ भी क्यों न करना पड़े मैं पीछे नहीं हटूंगा, और फिर मन ही मन नमन ने फैसला कर लिया कि अब उसे क्या करना है. नमन और क्षितिजा कालेज के समय से ही एकदूसरे से प्यार करते थे. उन की शादी से उन के परिवार वालों को भी कोई आपत्ति नहीं थी पर वे दोनों चाहते थे कि जौब लगने के बाद ही शादी के बंधन में बंधे. नौकरी लगते ही वादे के अनुसार दोनों ने शादी करने का फैसला ले लिया. कुछ दिन बाद ही दोनों की सगाई होनी थी और ये सब हो गया.

दिनप्रतिदिन क्षितिजा को और अवसाद में जाते देख उस के माता-पिता और नमन बहुत परेशान थे. सब ने अनेक प्रकार से उसे समझाने की कोशिश की, पर उसे तो जैसे काठ मार गया था. न तो वह किसी से ठीक से बात करती थी और न ही ठीक से कुछ खातीपीती थी. दिनबदिन शरीर और कमजोर होता जा रहा था. अंदर ही अंदर टूट रही थी. उस मंजर को याद कर कभी-कभी आधी रात में ही उठ जाती और फिर उसे संभालना काफी मुश्किल हो जाता था.

आज फिर वही भयानक दृश्य क्षितिजा को दहला गया और वह घबरा कर उठ बैठी. उस की आंखों से टपटप आंसू बहने लगे. उस की हथेलियों को अपने दोनों हाथों के बीच दबा कर नमन कहने लगा. ‘‘क्षितिजा, मेरी तरफ देखो, अकेली तुम ही एक लड़की नहीं हो इस दुनिया में जो इस दुख से गुजर रही हो. ऐसी कितनी लड़कियां होंगी जो इस दुख से गुजरी होंगी और गुजर रही होंगी, तो क्या सब ने हिम्मत हार दी होगी? जीना छोड़ दिया सब ने? अरे, गलती किसी और ने की है. फिर तुम क्यों खुद को सजा दे रही हो बोलो?

देखो अपनी मां की तरफ, क्या हालत हो गई है उन की और देखो मेरी आंखों में, क्या लगता है कि अब इन आंखों में तुम्हारी तसवीर नहीं है?

‘‘क्षितिजा,

तुम यह बिलकुल मत समझना कि किसी के छूने भर से तुम्हारा कौमार्य भंग हो गया या तुम अपवित्र हो गई या फिर पहले की तरह नहीं रही. फालतू की बातों को कभी अपने ऊपर हावी मत होने देना तुम. आज भी मेरे लिए तुम उतनी ही मासूम और पवित्र हो जितनी पहले थी और देखना, उस पापी को उसके किए की सजा एक दिन जरूर मिलेगी,’’ कह कर नमन ने क्षितिजा को अपने सीने से लगा लिया.

आगे पढ़ें- नमन किसी तरह उसे उस खौफ से बाहर निकालना

तुम आज भी पवित्र हो– भाग 1

कल से नमन क्षितिजा को फोन लगाए जा रहा था, पर न तो वह अपना फोन उठा रही थी और न ही वापस उसे फोन कर रही थी.

लेकिन आज जब उस का फोन बंद आने लगा तो नमन आशंका से भर उठा.

‘‘हैलो आंटी, क्षितिजा कहां है? मैं कल से उसे फोन लगा रहा हूं, पर वह फोन नहीं उठा रही है और आज तो उस का फोन ही बंद आ रहा है. कहां है क्षितिजा?’’

नमन के कई बार पूछने पर भी जब सुमन ने कोई जवाब नहीं दिया तो वह बेचैन हो उठा. बोला, ‘‘आंटी, क्या हुआ सब ठीक तो है?’’

‘‘बेटा, वो…वो… क्षितिजा अस्पताल में…’’ इतना बोल कर सुमन सिसक कर रोने लगीं. ‘‘अस्पताल में?’’ अस्पताल का नाम सुनते ही नमन घबरा गया, ‘‘पर… पर क्या हुआ उसे?’’

फिर सुमन ने जो बताया उसे सुन कर नमन के पैरों तले की जमीन खिसक गई. फिर बोला, ‘‘ठीक है आंटी, आ… आप रोइए मत. मैं कल सुबह की फ्लाइट से ही वहां पहुंच रहा हूं.’’

नमन को देखते ही क्षितिजा के आंसू फूट पड़े. वह उस के सीने से लग कर एक बच्ची की तरह बिलखबिलख कर देर तक रोती रही.

‘‘बस क्षितिजा बस, अब मैं आ गया हूं न… सब ठीक हो जाएगा,’’ उस के आंसू पोंछते हुए नमन बोला.

मगर डर के मारे वह इसलिए नमन को नहीं छोड़ रही थी कि वह दरिंदा फिर उस के सामने न आ जाए. हिचकियां लेते हुए कहने लगी, ‘‘नमननमन उ… उस ने मुझे कहीं का नहीं छोड़ा. उस ने धोखे से मेरे साथ… बोलतेबोलते वह बेहोश हो

गई.’’ ‘‘जब से यहां आई हैं ऐसा ही हो रहा है. लगता है डर घुस गया है इन के मन में. देखिए, मैं अब भी यहीं कहूंगा कि आप सब को पुलिस में

शिकायत कर देनी चाहिए. आखिर दोषी को सजा तो मिलनी चाहिए न? वैसे आप सब को जो ठीक लगे,’’ डाक्टर बहुत ही रहम दिल इंसान थे. उन से क्षितिजा की हालत देखी नहीं जा रही थी. उन्होंने सब को समझाते हुए कहा.

मगर क्षितिजा के मातापिता ऐसा नहीं चाहते थे. वे नहीं चाहते थे कि उन की बेटी समाज में बदनाम हो, क्योंकि लड़की का भले ही कोई दोष न हो पर सुनना हमेशा उसी को पड़ता है.

क्षितिजा की ऐसी हालत और उस के मातापिता के मन के डर को समझते हुए नमन बोला, ‘‘हमें पुलिस में कोई शिकायत नहीं करनी डाक्टर. बस क्षितिजा जल्दी से स्वस्थ हो जाए, फिर हम उसे यहां से ले जाएंगे.’’

‘‘ठीक है जैसी आप लोगों की मरजी,’’ कह कर डाक्टर चले गए.

2 दिन बाद. कुछ हिदायतों के साथ डाक्टर ने क्षितिजा को अस्पताल से छुट्टी दे दी. नमन के पूछने पर कि आखिर ये सब हुआ कैसे, सुमन बताने लगीं, ‘‘जिस दिन तुम औफिस के काम से दुबई जाने के लिए निकले उस के अलगे ही दिन क्षितिजा और मैं सगाई की खरीदारी के लिए निकल गए. समय कम था, इसलिए तुम ने कहा था कि क्षितिजा अपनी पसंद से तुम्हारे लिए भी अंगूठी और शेरवानी ले ले. उस रोज वह इतनी खुश थी कि बस बोले ही जा रही थी कि तुम्हारे ऊपर कैसी और कौन से रंग की शेरवानी अच्छी लगेगी और यह भी कि उसे भी शेरवानी से मैच करता ही लहंगा लेना है ताकि लोग कहें कि वाह भई क्या लग रहे हैं दोनों.

‘‘सारी खरीदारी बस हो चुकी थी कि उसी वक्त क्षितिजा के बौस का फोन आ गया. कहने लगा कि कोई जरूरी फाइल है जो मिल नहीं रही है तो वह आ कर जरा उस की मदद कर दे.’’

‘‘अब यह क्या तरीका है क्षितिजा? जब उसे पता है कि तुम छुट्टी पर हो तो फिर कैसे… पर मेरी बात को बीच ही में काटते हुए बोली कि मां, कल औडिट होने वाला है न इसलिए उस फाइल की जरूरत होगी और शायद मैं ने वह गलती से अपने लौकर में रख दी होगी. आप चिंता न करो मैं जल्दी आ जाऊंगी. कह

वह वहीं औफिस के सामने उतर गई और मुझे ड्राइवर के साथ घर भेज दिया.’’

‘‘मगर जब 2 घंटे बीत जाने के बाद भी वह घर नहीं आई तब मैं ने

उसे फोन लगाया तो बोली कि बस मैं निकल ही रही हूं और फिर फोन काट दिया. हम खाने पर उस का इंतजार करते रहे, वह नहीं आई. तब फिर मैं ने उसे फोन लगाया, पर इस बार तो फोन ही नहीं उठा रही थी. क्षितिजा के पापा कहने लगे कि रास्ते में होगी… शायद फोन की आवाज सुनाई नहीं दे रही

होगी… तुम चिंता न करो आ जाएगी. पर मां का दिल है, चिंता तो होगी ही न? लेकिन जब मेरी बरदाश्त की हद हो गई तब मैं ने उस के बौस को फोन

लगाया तो वह बोला कि वह तो घर कब की निकल चुकी है. उस की बातें सुन कर मेरी टैंशन और ज्यादा बढ़ गई.

‘‘फिर मैं ने उस के सारे दोस्तों से पूछा कि क्या क्षितिजा उन के घर पर है? पर सब का एक ही जवाब था नहीं. समझ में नहीं आ रहा था कि क्षितिजा कहां जा सकती है और उस ने अपना फोन

क्यों बंद कर रखा है? यह सोचसोच कर मेरा डर के मारे बुरा हाल था. मैं सोच रही थी कि कहीं मेरी बेटी को कुछ हो तो नहीं गया.

‘‘हार कर मैं ने क्षितिजा के पापा को उस के औफिस तक भेजा और जब उन्होंने वहां ताला लगा देखा तो वे भी घबरा गए. जब वहां के वाचमैन से पूछा तो वह कहने लगा

कि हां क्षितिजा आई तो थी पर फिर बौस के साथ ही उन की गाड़ी में बैठ कर चली गई. माथा ठनका कि फिर उस के बौस ने झूठ क्यों बोला… रात

के 12 साढ़े 12 बजे तक, जब किसी की जवान बेटी घर से बाहर हो और उस का फोन भी न

लग रहा हो तो जरा सोचिए उन मांबाप पर क्या बीतेगी?

‘‘चिंता के मारे भूखप्यासनींद सबकुछ हवा हो चुका था हमारा. पूरी रात हम ने आंखों में काट दी. सोचा सुबह होते ही पुलिस में इतला कर देंगे. तभी दरवाजे की घंटी बजी. मैं ने दौड़ कर दरवाजा खोला और फिर जो देखा, उसे देख कर सन्न रह गई. क्षितिजा के कपड़े अस्तव्यस्त थे और वह दीवार से लग कर खड़ी मुझे एकटक निहार रही थी.

‘‘मैं पहले उसे अंदर लाई और फिर झट से दरवाजा बंद कर दिया ताकि कोई देख न ले. समझ में तो आ ही गया था मुझे, फिर भी मैं ने पूछा कि कहां चली गई थी बेटा और तुम्हारा फोन भी नहीं लग रहा था? क्या तुम्हारे बौस को… बौस का नाम सुनते ही वह फूट पड़ी. उस की आंखों से झरझर कर आंसू बहने लगे.

‘‘मैं ने इसे झंझोड़ कर पूछा कि क्या हुआ बता? किसी ने तेरे साथ… पर कुछ बोलने से पहले ही वह बेहोश हो गई. जल्दी से हम उसे अस्पताल ले आए. डाक्टर ने जांच कर बताया कि उस के साथ बलात्कार हुआ है. यह सुन कर हमारे पैरों तले की जमीन खिसक गई कि कुछ दिन बाद सगाई होने  वाली थी…यह उस के साथ क्या हो गया? सदमे से वह बारबार बेहोश हो रही है तो हम उस से पूछते क्या कि किस ने उस के साथ ऐसी घिनौनी हरकत की? कुछ ठीक होने पर जब मैं ने पूछा कि वह तो अपने बौस को कोईर् फाइल देने गई थी, तो फिर ये सब कैसे हुआ और किस ने किया?

‘‘तब बताने लगी कि उस के बौस ने ही धोखे से उस के साथ… उस रात अपने बौस के बहुत आग्रह करने पर कि वह डिनर उस के साथ, उस के घर पर ही चल कर करे, चाह कर भी वह मना नहीं कर पाई. वैसे पहले भी 1-2 बार वह उस के घर जा चुकी थी. फिर यह भी सोचा कि बौस की पत्नी तो होगी ही घर पर, लेकिन घर एक नौकर के अलावा और कोई न था. वह भी खाना टेबल पर लगा कर चला गया.

आगे पढ़ें-क्षितिजा के पूछने पर कि उस की पत्नी औ…

लाल साया: भाग-1

सफेद रंग की वह कोठी उस दिन खुशियों से चहक रही थी. होती भी क्यों ना, घर का इकलौता बेटा विशेष अपने दोस्तों के साथ आज आ रहा था.

‘‘भैया आ गए, भैया आ गए,” महेश ने उद्घोष सा किया. सेठ मदन लाल और उन की धर्मपत्नी विमला देवी तेजी से बाहर की ओर लपके. कार से उतर कर विशेष ने मातापिता के पैर छुए, तो मां ने अपने लाल को गले लगा लिया. उन की आंखें रो रही थीं.

‘‘क्या मां, आप मुझे देख कर हमेशा रोने क्यों लगती हैं? आप को मेरा आना अच्छा नहीं लगता क्या?” विशेष लाड़ लड़ाते हुए बोला.

‘‘चल पागल,” मां ने नकली गुस्से के साथ हलकी सी चपत लगाई.

अब तक उमेश के साथ रिचा और उदय भी गाड़ी से उतर आए थे. उन के बैठक में बैठते ही महेश एक के बाद एक नाश्ते की प्लेटें लगाने लगा.

‘‘अरे भैया, एक हफ्ते का नाश्ता हमें आज ही करा दोगे क्या?” उदय आंखें फैला कर बोला.

‘‘उदय यार, मां को लगता है न, जब मैं उन के पास नहीं होता हूं, तब मैं शायद भूखा ही रहता हूं, इसलिए जब आता हूं तो बस खिलाती ही जाती हैं. बच नहीं सकते हो, इसलिए चुपचाप खा लो.”

रिचा जो मां के साथ सोफे पर बैठी थी, मां के गले में बांहें डाल कर बोली, ‘‘मां तो होती ही ऐसी हैं.”

विमला देवी प्यार से उस का गाल थपथपाने लगीं.

‘‘उमेश बेटा, तुम क्या कर रहे हो?” समोसा उठाते हुए सेठ मदन लाल ने पूछा.

‘‘अंकल मेरी दिल्ली में इलेक्ट्रिकल सामान की शौप है. अच्छी चलती है,” उस के स्वर में सफलता की ठसक थी.

‘‘और शादी…?” मां ने पूछा.

‘‘बस अब शादी का ही इरादा है आंटी. चाहता हूं कि पत्नी को अपने ही मकान में विदा करा कर लाऊं. एक फ्लैट देखा है. पच्चीस लाख का है. लोन अप्लाई किया है. बस मिलते ही अगला कदम शादी होगा. आप लोगों को आना होगा.”

‘‘हां… हां, जरूर आएंगे. और उदय तुम क्या कर रहे हो?” सेठजी उदय की ओर घूमे.

‘‘बस अंकल, अभी तो हाथपैर ही मार रहा हूं. बिजनेस करना चाहता हूं, पर पूंजी नहीं है. व्यवस्था में लगा हूं. अब देखिए ऊंट किस करवट बैठता है,” कहते हुए उदय ने कंधे उचकाए.

‘‘मन छोटा क्यों करते हो बेटा. ऊपर वाला सब रास्ता बना देते हैं. अब चलो ऊपर के कमरे में जा कर तुम सब आराम कर लो,” मां स्नेह से बोलीं.

चारों बच्चों की चुहलबाजी से घर भर गया था. चारों रात का खाना खा कर ऊपर चले गए.

विमला देवी बोलीं, ‘‘यह 2 दिन तो पता ही नहीं चले, पर आप ने उन्हें ऊपर क्यों भेज दिया? बच्चे तो अभी गपें मार रहे थे?”

‘‘अरे भाग्यवान, बच्चे अब बड़े हो गए हैं. उन्हें थोड़ी प्राइवेसी चाहिए होती है. तो हम उन के आनंद में रोड़ा क्यों बनें?”

‘‘हां, यह तो सही कह रहे हैं,” कहते हुए विमला देवी मेज पर से प्लेटें उठाने लगीं.

‘‘अरे, तुम क्यों उठा रही हो? महेश कहां है?‘‘

‘‘उस के गांव से फोन आया था कि मां बीमार है उस की, तो मैं ने छुट्टी दे दी.‘‘

‘‘अरे, फिर कैसे होगा? अभी तो ये बच्चे हैं.‘‘

‘‘आप चिंता मत करिए. सब हो जाएगा.‘‘

‘‘मैं कल दूसरे खानसामे का पता करता हूं,‘‘ चिंतित स्वर में सेठजी बोले.

गोली की आवाज से सेठजी की नींद टूट गई. वे समझ नहीं पा रहे थे, यह कैसी आवाज है और कहां से आई. वे फिर से सोने की कोशिश करने लगे, तभी आंगन के पीछे के बगीचे में किसी भारी चीज के गिरने की आवाज आई.

उन्होंने पलट कर पत्नी की ओर देखा. वे गहरी नींद में थीं, तभी सीढ़ियों पर से कदमों की आवाजें आने लगी. वे सधे कदमों से उठे और आंगन में आ गए. आंगन का दरवाजा पूरा खुला हुआ था. वे दबे कदमों से धीरेधीरे दरवाजे की ओर बढ़े. बाहर झांका तो एकदम घबरा गए. तीन आकृतियां अंधेरे में भी स्पष्ट दिखाई दे रही थीं. तभी एक आकृति ने लाइटर जलाया और सेठजी की आंखें फटी रह गईं.

यह तो विशेष, उदय और उमेश थे, पर अंधेरे में ये तीनों यहां क्या कर रहे हैं. सोचते हुए सेठजी ने कड़क कर पूछा, ‘‘कौन है वहां?”

उमेश लपक कर उन के पास आ गया और फुसफुसाया, ‘‘अंकल, आवाज मत करिए. बहुत गड़बड़ हो गई है.”

‘‘क्या हुआ?”

‘‘नशे में, विशेष ने रिचा को धक्का दे दिया… और वह ऊपर से गिर कर मर गई.”

‘‘क्या…?” सदमे से उन की आंखें फैल गईं. वे वहीं बैठ गए.

‘‘अंकल, आप खुद को संभालिए और विशेष को भी. मैं कुछ करता हूं,‘‘ उमेश सेठजी का हाथ पकड़ कर बोला.

‘‘ठीक से देखो, शायद डाक्टर उसे बचा पाए,‘‘ डूबते स्वर में वे बोले.

‘‘नहीं अंकल, मैं देख चुका हूं… अंकल, यहां कहीं फावड़ा है क्या?‘‘

बिना कुछ बोले सेठजी ने एक ओर इशारा किया.

‘‘आप यहीं बैठिए अंकल,‘‘ कहता हुआ उमेश वापस दोस्तों के पास चला गया और नशे में धुत्त विशेष को सहारा दे कर सेठजी के पास ले आया. विशेष बडबडाए जा रहा था, ‘‘मैं ने मार दिया. मैं ने मार दिया.‘‘

बेटे का यह हाल देख कर सेठजी की आंखें बरसने लगीं.

उमेश ने उदय की मदद से बड़ा सा गड्ढा खोद कर उस में रिचा को गाड़ कर समतल कर दिया. फिर अंदर जा कर एक आदमकद स्त्री की मूर्ति जो कमर पर घड़ा लिए हुई थी उठा लाया और उस को घुटने तक उसी में गाड़ दिया. 5-6 गमले भी उस के अगलबगल सजा दिए.

पौ फटने लगी थी. विशेष वहीं जमीन पर सो गया था. सेठजी स्वयं को संभाल चुके थे. रातभर की कड़ी मेहनत से थके हुए उमेश व उदय उन के पास आए.

‘‘बेटा…” सेठजी के पास शब्द नहीं थे.

‘‘अंकल, आप चिंता मत कीजिए. विशेष हमारा बहुत प्रिय मित्र है. हम उसे किसी संकट में नहीं पड़ने देंगे. यह बात बस हम चारों के बीच में ही रहेगी.”

‘‘हम तुम्हारे आभारी रहेंगे बेटा,” सेठजी की रोबीली आवाज की जगह एक पिता की निरीहता ने ले ली थी.

‘‘अंकल, आप को अपना माली बदलना पड़ेगा,‘‘ उमेश मूर्ति की ओर देख कर बोला.

‘‘ठीक है.‘‘

‘‘और अंकल, हम विशेष को ऊपर ले जा रहे हैं. आज आप किसी को ऊपर मत आने दीजिएगा, नहीं तो रिचा की अनुपस्थिति को छुपाना मुश्किल हो जाएगा.‘‘

आगे पढ़ें- फिर तो बहुत अच्छा है. हम दोनों आज शाम तक निकल जाते हैं. सब…

Women’s Day 2023: मां का घर- भाग 3

आज पूजा को पुरानी सारी बातें याद आ रही हैं. जब तक वह मां के साथ थी, हर समय उन पर हावी रहती, ‘मां, आप अपनी सहेलियों को घर न बुलाया करें, कितना बोर करती हैं. हर समय वही बात, शादी कब करोगी, कोई बौयफें्रड है क्या? आप की वह सफेद बालों वाली सहेली मोहिनीजी तो मुझे बिलकुल पसंद नहीं. कितना तेज बोलती हैं और कितना ज्यादा बोलती हैं.’

‘मैं ने मां को समझा ही नहीं,’ पूजा बुदबुदाई और उठ खड़ी हुई. सुप्रिया ने टोका, ‘‘कहां चली, पूजा?’’

‘‘मां को ढूंढ़ने.’’ ‘‘कहां?’’

‘‘पता नहीं, सुप्रिया. पर एक बार मैं उन से मिल कर माफी मांगना चाहती हूं.’’ ‘‘तुम चाहो तो मैं तुम्हारे साथ चल सकती हूं,’’ सुप्रिया ने कहा.

अगले दिन सुवीर ने दोनों सहेलियों को हवाई जहाज से मुंबई भेजने की व्यवस्था कर दी. वह खुद भी साथ जाना चाहता था पर पूजा ने कहा, ‘‘जरूरत होगी तो मैं तुम्हें बुला लूंगी. मुंबई हमारी जानीपहचानी जगह है.’’

सुप्रिया के मायके में सामान रख दोनों सहेलियां सब से पहले कांदिवली पूजा के घर गईं. पूजा धीरा आंटी के घर पहुंची तो उसे देख कर वे चौंक गईं, ‘‘अरे पूजा, तू? अनुराधा की कोई खबर मिली?’’ ‘‘यही तो पता करने आई हूं. आप बता सकती हैं कि मां की वे सहेलियां कहां रहती हैं जो हमारे घर कभीकभी आती थीं?’’

धीरा आंटी सोचने लगीं, फिर बोलीं, ‘‘सब के बारे में तो नहीं जानती, पर बैंक में तुम्हारी मां के साथ काम करने वाली आनंदी को मैं ने कई बार उन के साथ देखा था बल्कि 10 दिन पहले भी आनंदी यहां आई थीं.’’ ‘‘मां ने आप से अपने जाने को ले कर कुछ कहा था…’’

‘‘नहीं पूजा, तुम्हारी मां हम लोगों से कम ही बोलती थीं. दरअसल, 10 साल पहले जब तुम्हारी मां ने शादी की थी, तब से…’’ कहतेकहते अपने होंठ काट लिए धीरा ने. ‘‘मां की शादी?’’ पूजा को झटका लगा. वह गिड़गिड़ाती हुई बोली, ‘‘प्लीज आंटी, आप मुझे सबकुछ सचसच बताइए. शायद आप की बातों से मुझे मां गई कहां हैं यह पता चल जाए?’’

धीरा गंभीर हो कर बताने लगीं, ‘‘तुम समीरजी के बारे में तो जानती ही हो. जिस दिन तुम्हारी मां को पता चला कि समीर बीमार हैं, उन्हें टी.बी. हो गई है, तुम्हारी मां ने घबरा कर मुझे ही फोन किया था. मैं और वे अच्छी सहेली थीं और अपना दुखदर्द बांटा करती थीं. मैं ने तुम्हारी मां को अपने घर बुलाया. समीर अनुराधा की जिंदगी में ताजा हवा का झोंका थे. तुम्हारी मां उन का बहुत सम्मान करती थीं और प्यार भी करती थीं. मैं अनुराधा को ले कर समीर के पास गई थी. समीर की हालत वाकई खराब थी. अनुराधा ही समीर को ले कर अस्पताल गईं लेकिन उन की जिंदगी में तो जैसे चैन था ही नहीं.’’ ‘‘क्या हुआ? समीर अंकल अच्छे तो हो गए?’’ पूजा ने बेसब्री से पूछा.

‘‘हमारे पहुंचने से पहले वहां समीर के मातापिता आ गए थे. उन्होंने अनुराधा के सामने यह शर्त रखी कि वह समीर से शादी करे वरना वे उस की शादी कहीं और कर देंगे. बीमार समीर को जीवनसाथी की जरूरत है और अब बूढ़े मांबाप में इतनी शक्ति नहीं कि उस की देखभाल कर सकें. ‘‘समीर बैंक में नौकरी करते थे, देखने में अच्छे थे, एक पैर ठीक नहीं था तो क्या, कोई न कोई लड़की तो मिल ही जाती. समीर के मातापिता का दिल रखने के लिए अनुराधा और समीर ने कोर्ट में जा कर शादी कर ली.

‘‘मुझे अनुराधा का यों शादी करना अच्छा नहीं लगा. शायद इस की वजह यह थी कि तुम मां की शादी का विरोध कर चुकी थीं. उस समय मैं भी अनुराधा से नाराज हो गई. इस के बाद हमारे संबंध पहले जैसे न रहे,’’ इतना कहतेकहते धीरा की आवाज भर्रा गई. पूजा की आंखों में आंसू आ गए. वह बोली, ‘‘आंटी, हम औरतें ही दूसरी औरतों को जीने नहीं देतीं. मां की खुशी हमें बरदाश्त नहीं हुई.’’

धीरा ने सिर हिलाया, ‘‘आज पलट कर सोचती हूं तो अपने ऊपर ग्लानि हो आती है. काश, मैं ने उस समय अनुराधा को समझा होता.’’ पूजा भी मन ही मन यही सोच रही थी कि काश, उस ने मां को समझा होता.

धीरा ने अचानक कहा, ‘‘हो सकता है, मोहिनी को अनुराधा के बारे में पता हो. वह यहीं पास में रहती है. चलो, मैं भी चलती हूं तुम्हारे साथ.’’ धीरा फौरन साड़ी बदल आईं. तीनों एक आटो में बैठ कर दहिसर की तरफ चल पड़ीं. पूजा अरसे बाद मोहिनीजी से मिल रही थी. उन के पूरे बाल सफेद हो गए थे. पूजा के साथ धीरा और सुप्रिया को देख वे ठिठकीं. पूजा आगे बढ़ कर उन के गले लग कर रोने लगी. मोहिनी ने पूजा को बांहों में भींच लिया और पुचकारते हुए कहा, ‘‘मत रो बेटी, तुझे यहां देख कर मुझे एहसास हो गया है कि तू बहुत बदल गई है.’’

‘‘मुझे मां के पास ले चलिए, मौसी,’’ पूजा ने रोंआसी आवाज में कहा. मोहिनीजी ने पूजा के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, ‘‘तुम अपनी मां को ढूंढ़ती हुई इतनी दूर आई हो तो मैं तुम्हें मना नहीं करूंगी. लेकिन बेटी, अनुराधा को और तकलीफ मत देना, बहुत दिनों बाद मैं ने उसे हंसते देखा है, सालों बाद वह अपनी जिंदगी जी रही है.’’

अगले दिन जब पूजा और सुप्रिया मोहिनी के साथ इगतपुरी जाने को निकलने लगीं तो धीरा भी साथ चल पड़ीं. सुबह की बस थी. दोपहर से पहले वे इगतपुरी पहुंच गईं. वहां से एक जीप में बैठ कर वे आगे के सफर पर चल पड़ीं. जीप पेड़पौधों से ढके एक घर के सामने रुकी. घर के अंदर से वीणा वादन की आवाज आ रही थी.

मोहिनी ने दरवाजा खटखटाया तो एक कुत्ता बाहर निकल आया और उन्हें देख कर भौंकने लगा. अंदर से आवाज आई, ‘‘विदूषक, इतना हल्ला क्यों मचा रहे हो? कौन आया है?’’ अनुराधा की आवाज थी. जब वे सामने आईं तो पूजा के दिल की धड़कन जैसे रुक ही गई. सलवारकमीज और खुले बालों में वे अपनी उम्र से 10 साल छोटी लग रही थीं. माथे पर टिकुली, मांग में हलका सा सिंदूर और हाथों में कांच की चूडि़यां. भराभरा चेहरा. पूजा पर नजर पड़ते ही अनुराधा सन्न रह गईं. पूजा दौड़ती हुई उन के गले लग गई.

मांबेटी मिल कर रोने लगीं. पूजा ने किसी तरह अपने को जज्ब करते हुए कहा, ‘‘मां, मुझे माफ कर सकोगी?’’ अनुराधा ने सिर हिलाया और बेटी को कस कर भींच लिया.

‘‘मां, पिताजी कहां हैं? मुझे उन से मिलना है,’’ पूजा की आवाज में बेताबी थी. अनुराधा उन सब को ले कर अंदर गई. समीर रसोई में सब्जी काट रहे थे. पूजा उन के पास गई तो समीर ने उस के सिर पर हाथ रख कर प्यार से कहा, ‘‘वेलकम होम बिटिया.’’

अनुराधा को कुछ कहनेसुनने की जरूरत ही नहीं पड़ी. पूजा समझ गई कि साल में 2 बार मां 10 दिन के लिए कहां जाती थीं. क्यों चाहती थीं कि पूजा शादी कर अपने घर में खुश रहे. शाम को बरामदे में सब बैठे थे. पूजा ने सिर मां की गोद में रखा था. वह दोपहर से न जाने कितनी बार रो चुकी थी. मां का हाथ एक बार फिर चूम वह भावुक हो कर बोली, ‘‘मां, मैं कितनी पागल थी. औरत हो कर तुम्हारा दिल न समझ सकी. आज जब मैं अपने परिवार में खुश हूं तो मुझे एहसास हो रहा है कि तुम मेरी वजह से सालों से अपने पति से अलग रहीं.’’

अनुराधा को विश्वास नहीं हो रहा था कि उस की बेटी के साथसाथ उस की पुरानी सहेली धीरा भी लौट आई है, उस की खुशियों में शरीक होने. रात को सुवीर का फोन आया तो पूजा उत्साह से बोली, ‘‘पता है सुवीर, मेरे साथ दिल्ली कौन आ रहा है? मां और पापा. दोनों कुछ दिन हमारे साथ रहेंगे, फिर हम जाएंगे दीवाली में उन्हें छोड़ने.’’ अनुराधा और समीर मुसकरा रहे थे. बेटी मायके जो आई है.

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