न बनाएं लाइफ को फास्ट

आज के युवावर्ग को आमिर खान से सीखने की जरूरत है, क्योंकि आज के युवाओं में धैर्य की कमी है. उन्हें हर काम में जल्दबाजी होती है. खाना खाना हो तो जल्दी, कहीं जाना हो तो जल्दी, सड़क पर गाड़ी चलाना हो तो जल्दी, गर्लफ्रैंडबौयफ्रैंड बनाना हो तो जल्दी, ब्रेकअप करना हो तो जल्दी. वे समय दे कर काम खत्म करने की बजाय फटाफट करना चाहते हैं. उन्हें लगता है जिस तरह से एक क्लिक में गूगल पर हर सवाल का जवाब मिल जाता है, उसी तरह लाइफ में भी हर काम फटाफट करो और ऐंजौय करो. सोचनासमझना तो पुरानी पीढ़ी का काम है. वे तो यंग जैनरेशन हैं. अगर किसी बात के लिए पेरैंट्स कुछ कहते भी हैं तो उन का जवाब होता है कि किस के पास इतना समय है कि बैठ कर सोचे. अगर आगे बढ़ना है तो तेज भागना होगा.

जल्दबाजी में युवा भले ही काम तुरंत खत्म कर लेते हैं, पर वे इस बात को नहीं समझ पाते कि जल्दबाजी में किए गए काम में कुछ न कुछ कमी अवश्य रह जाती है.

आइए जानते हैं जल्दबाजी में किसकिस तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है:

जल्दबाजी में होती है कन्फ्यूजन: जो लोग जल्दबाजी में होते हैं वे जल्दीजल्दी बोलते हैं, सामने वाले को बात खत्म करने का मौका नहीं देते, बीच में ही टोकते रहते हैं, किसी की बात ध्यान से नहीं सुनते और जब उन्हें कोई काम दिया जाता है तो उसे वे कर नहीं पाते. तब उन्हें कन्फ्यूजन होती है कि क्या करें और क्या नहीं. कई बार तो सामने वाले की बात में हामी भर देते हैं और बाद में अफसोस करते हैं कि क्यों हामी भरी.

निर्णय लेने की क्षमता में कमी: जल्दबाजी में यह समझना मुश्किल होता है कि किस सिचुएशन में क्या करना चाहिए और इसी वजह से कठिन हालात का सामना करते समय चिड़चिड़े हो जाते हैं. सिचुएशन हैंडल नहीं कर पाते और कुछ ऐसा कह देते हैं जिस की वजह से महत्त्वपूर्ण रिश्ते खो देते हैं.

एकाग्रता में कमी: जब आप जल्दबाजी में होते हैं तब आप किसी भी काम में अपना ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते. आप का ध्यान भटकता रहता है. आप को लगता है कि जल्दी से काम खत्म कर के दूसरा काम शुरू कर दें. अगर किसी काम में ज्यादा समय लगता है तो वह काम बोझ लगने लगता है और आप बिना मन के काम खत्म कर देते हैं.

असफलता का सामना: हड़बड़ी में आप अपना शतप्रतिशत नहीं दे पाते और जब सफल नहीं होते तो उसे छोड़ कर दूसरा काम करना शुरू कर देते हैं. जल्दीजल्दी में समझ नहीं पाते कि क्या सही है और क्या गलत. इस से कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है. कई बार तो असफलता की वजह से गलत रास्ते का चुनाव करने से भी नहीं कतराते.

विश्वास कायम करने में असफल: आप सोचते होंगे कि आप जल्दीजल्दी काम कर के दूसरों पर अपना प्रभाव डालने में सफल होंगे. लेकिन एक सचाईर् यह भी है कि आप जल्दीजल्दी काम कर के सामने वाले पर अपना प्रभाव नहीं डाल सकते. जरा सोचिए एक ड्राइवर आप को बैठा कर गाड़ी बहुत तेजी से चला कर समय से पहले पहुंचाता है तो दूसरा सही स्पीड पर गाड़ी चला कर समय पर पहुंचाता है. आप दोनों में से किस ड्राइवर पर ज्यादा विश्वास करेंगे? यकीनन दूसरे पर. ठीक इसी तरह लाइफ में भी आप धैर्र्य व संयम से दूसरों पर प्रभाव डालने में सफल होते हैं.

हैल्थ के लिए नुकसानदायक: आज के युवाओं को वही खाना अच्छा लगता है जो फटाफट बन जाए. उन्हें लगता है कि कौन खाना बनाने में घंटों मेहनत करे. फटाफट बनाओ और फटाफट खाओ.  यही नहीं कहीं पर भी कुछ भी खा लेते हैं. यही कारण है कि उन्हें कम उम्र में कई तरह की बीमारियों का सामना करना पड़ता है.

कैरियर में जल्दबाजी करना पड़ता है महंगा: युवा काम सही तरीके से सीखने की बजाय जौब स्वीच करने में विश्वास करते हैं. अगर किसी दिन बौस या फिर अन्य कोईर् सीनियर उन के काम में कोई कमी निकाल दे तो घर आ कर बवाल खड़ा कर देते हैं कि मुझे इस कंपनी में काम नहीं करना. मैं इतना काम करता हूं, लेकिन मुझे कभी क्रैडिट नहीं मिलता वगैरहवगैरह. अगर कभी किसी बात पर जौब छोड़नी भी पड़े तो आगेपीछे की नहीं सोचते और जौब छोड़ देते हैं. लेकिन आप का ऐसा करना आप के कैरियर के लिए ठीक नहीं है. भले ही आप को एक जगह से काम छोड़ कर दूसरी जगह जौइन करने पर पैसे ज्यादा मिलें, लेकिन ऐसा कर के आप किसी भी काम में मास्टर नहीं बन पाते. आप को हर काम की थोड़ीथोड़ी नौलेज ही मिल पाती है. इसलिए जरूरी है कि आप अपने काम को बेहतर बनाने की कोशिश करें.

यही नहीं हर काम में जल्दबाजी दिखाने की वजह से आप को कई तरह की स्वास्थ्य समस्याओं का भी सामना करना पड़ता है. स्ट्रैस लैवल बढ़ता है. हारमोनल बदलाव आते हैं. आप के पर्सनल रिलेशन भी प्रभावित होते हैं. यह ठीक है कि आप सफल होना चाहते हैं, जीवन में आगे

बढ़ना चाहते हैं, लेकिन हर काम में जल्दबाजी दिखाने की बजाय अपने काम में थोड़ा परफैक्शन लाने का प्रयास करें, टाइम मैनेजमैंट का गुण सीखें. किसी काम को समय देने का अर्थ यह नहीं है कि आप आलसी या लेटलतीफ हैं, बल्कि इस का मतलब यह है कि आप सिस्टेमैटिक तरीके से काम करते हैं. इसलिए अब आप को कोई काम मिले तो उसे फटाफट खत्म करने के बजाय थोड़ा समय दे कर करने का प्रयास करें.

उन से करें मन की बात

शादी करने जा रही, जस्ट मैरिड लड़कियों के लिए खासतौर से और सभी पत्नियों के लिए आमतौर से ‘मन की बात’ इसीलिए करनी पड़ रही है क्योंकि पहले जो तूतू, मैंमैं, जूतमपैजार, सिर फुटव्वल एकडेढ़ साल बाद होते थे, अब 4-5 महीनों में हो रहे हैं. ऐडवांस्ड जमाना है भई सबकुछ फास्ट है.

पतियों से बहुत प्रौब्लम रहती है हमें. उन की बात तो होती रहती है. क्यों न एक बार अपनी बात कर लें हम?

– शादी हुई है, ठीक है, अकसर सब की होती है. तो खुद को पृथ्वी मान कर और पति को सूर्य मान कर उस की परिक्रमा मत करने लगो. न यह शकवहम पालो कि उस के सौरमंडल में अन्य ग्रह या चांद टाइप कोई उपग्रह होगा ही होगा. दिनरात उसी के आसपास मंडराना, अपनी लाइफ उसी के आसपास इतनी फोकस कर लेना कि उसे भी उलझन होने लगे, ऐसा मत करो, गिव हिम अ ब्रेक (यहां स्पेस पढि़ए). अपने लिए भी एक कोना रिजर्व रखना हमेशा.

– अपने अपनों को, दोस्त, सखीसहेलियों को छोड़ कर आने का दुख क्या होता है तुम से बेहतर कौन जानता है. तो उस से भी एकदम उस के पुराने दोस्तों और फैमिली मैंबर्स से कटने को मत कहो. बदला क्यों लेना है आखिर अपना घर छोड़ने का? ‘तुम तो मुझे टाइम ही नहीं देते.’ का मतलब ‘तुम बस मुझे टाइम दो’ नहीं होता समझो वरना हमेशा बेचारगी और उपेक्षा भाव में जीयोगी.

– जो काम हाउसहैल्प/घर के अन्य सदस्य कर रहे हों उन्हें जबरदस्ती हाथ में लेना यह सोच कर कि इन से परफैक्ट कर के दिखाओगी, कतई समझदारी नहीं है. अगर सास का दिल जीतने टाइप कोई मसला न हो तो इन से गुरेज करें, क्योंकि पुरुष

आमतौर पर इन मसलों में बौड़म होते हैं और आप को जब वे ताबड़तोड़ तारीफें न मिलें जो आप ने ऐक्सपैक्ट कर रखी हैं, तो डिप्रैशन होगा. बिना बात थकान और वर्कलोड अलग बढ़ेगा. तो जितने से काम चल रहा हो उतने से ही चलाओ.

– लीस्ट ऐक्सपैक्टेशंस पालो. जितनी कम अपेक्षाएं उतना सुखी जीवन. अगर ऐक्सपैक्टेशन या बियौंड ऐक्सपैक्टेशन कुछ मिल गया तो बोनस.

– न अपने खुश रहने का सारा ठेका पतिपरमेश्वर को दे दो न अपने दुखी होने का ठीकरा उस के सिर फोड़ो. अपनी खुशियां खुद ढूंढ़ो. अपनी हौबीज की बलि मत चढ़ाओ और न अपनी प्रतिभा को जंग लगाओ. बिजी रहोगी, खुश रहोगी तो वह भी खुश रहेगा. याद रखो तुम उस के साथ खुश हो, यह मैटर करेगा उसे. उसी की वजह से खुश हो नहीं. मैं कैसी दिख रही हूं, कैसा पका रही हूं, सब की अपेक्षाओं पर खरी उतर रही हूं, कहीं इन का इंट्रैस्ट मुझ में कम तो नहीं हो रहा ये ऐसी चीजें हैं, जिन में कई औरतें मरखप कर ही बाहर निकल पाती हैं, जबकि पतियों के पास और भी गम होते हैं जमाने के.

– शक का इलाज हकीम लुकमान के पास भी नहीं था. उम्मीद है ऐसी सर्जरी जो ब्रेन के उस हिस्से को काट फेंके जो शक पैदा करता है, जल्दी फैशन में आ जाए. तब तक ओवर पजैसिव और इनसिक्योर होने से बचो. कहीं का टौम क्रूज नहीं है वह जो सब औरतें पगलाती फिरें उस के पीछे. हो भी तो तुम्हारे खर्चे पूरा कर ले वही बहुत है. फिर फैमिली का भी तो पालन करना है. औलरैडी टौम है, तो बेचारे की संभावनाओं के कीड़े औलमोस्ट मर ही चुके समझो.

– लड़ाईझगड़े, चिड़चिड़ाना कौमन और एसैंशियल पार्ट हैं मैरिड लाइफ के. फिर बाद में वापस सुलह हो जाना भी उतना ही कौमन और एसैंशियल है. बस करना यह है कि जब अगला युद्ध हो तो पिछले के भोथरे हथियारों को काम में नहीं लाना है. पिछली बार भी तुम ने यही किया/कहा था, तुम हमेशा यही करते हो, रिश्तों में कड़वाहट घोलने में टौप पर हैं. जो बीत गई सो बात गई.

– हम लोग परेशान होने पर एकदूसरे से शेयर कर के हलकी हो लेती हैं, जबकि पुरुषों को ज्यादा सवालजवाब नहीं पसंद. कभी वह परेशान दिखे और पूछने पर न बताना चाहे तो ओवर केयरिंग मम्मा बनने की कोशिश मत करो. बताओ मुझे, क्या हुआ, क्यों परेशान हो, क्या बात है, मैं कुछ हैल्प करूं, प्यार नहीं खीझ बढ़ाते हैं. बेहतर है उसे एक कप चाय थमा कर 1 घंटे को गायब हो जाओ. फोकस करेगा तो समाधान भी ढूंढ़ लेगा. लगेगा तो बता भी देगा परेशानी की वजह. दोनों का मूड सही रहेगा फिर.

– कितनी भी, कैसी भी लड़ाई हो, शारीरिक हिंसा का एकदम सख्ती और दृढ़ता से प्रतिरोध करो. याद रखो एक बार उठा हाथ फिर रुकेगा नहीं. पहली बार में ही मजबूती से रोक दो. साथ ही बेइज्जती सब के सामने, माफीतलाफी अकेले में, यह भी न हो. अपनी सैल्फ रिस्पैक्ट को बरकरार रखो, हमेशा हर हाल में ईगो और सैल्फ रिस्पैक्ट के फर्क को समझते हुए.

– आदमी चेहरा और ऐक्सप्रैशंस पढ़ने में औरतों की तरह माहिर नहीं होते. इसलिए मुंह सुजा कर घूमने, भूख हड़ताल आदि के बजाय साफ बताओ क्या दिक्कत है.

– किसी भी मतलब किसी भी पुरुष से स्पष्ट और सही उत्तर की अपेक्षा हो तो सवाल एकदम सीधा होना चाहिए, जिस का हां या न में जवाब दिया जा सके. 2 उदाहरण हैं-

पहला

‘‘क्या हम शाम को मूवी चल सकते हैं?’’

‘‘हम्म, ठीक है, कोशिश करूंगा, जल्दी आने की, काम ज्यादा है.’’

दूसरा

‘‘क्या हम शाम को मूवी चलें? आ जाओगे टाइम पर?’’

‘‘नहीं, मीटिंग है औफिस में, लेट हो जाऊंगा तो चिढ़ोगी स्टार्टिंग की निकल गई. कल चलते हैं.’’

जब पुरुष का मस्तिष्क ‘सकना’ टाइप के कन्फ्यूजिंग शब्द सुनता है तो उत्तर भी कन्फ्यूजिंग देता है. अब पहली स्थिति में उम्मीद तो दिला दी थी. तैयार हो कर बैठने की मेहनत अलग जाती, टाइम अलग वेस्ट होता और पति के आने पर घमासान अलग. कभी किसी पुरुष को कहते नहीं सुना होगा कि क्या तुम मुझ से प्यार कर सकती हो या मुझ से शादी कर सकती हो? वे हमेशा स्पष्ट होते हैं, डू यू लव मी, मुझ से शादी करोगी? तो स्पष्ट सवाल की ही अपेक्षा भी करते हैं.

लास्ट बट नौट लीस्ट, अगर वह आप के साथ खड़ा है जिंदगी के इस सफर में, आप का साथ दे रहा है, तो यह सब से जरूरी बात है. आप इसलिए साथ नहीं हैं कि बुढ़ापे में अकेले न पड़ जाओ, न इसलिए कि इन प्यारेप्यारे बच्चों के फ्यूचर का सवाल है, बस इसलिए साथ हैं कि दोनों ने एकदूसरे का साथ चुना है, आखिर तक निभाने को…

डा नाजिया नईम

सैक्स लाइफ में इनकी नो ऐंट्री

दिलीप ने जब रुही से यह कहा कि वह बिस्तर पर अब पहले जैसा साथ नहीं देती, तो वह यह सुन कर परेशान हो उठी. फिर रुही ने सैक्स ऐक्सपर्ट डा. चंद्रकिशोर कुंदरा से संपर्क किया.

डा. कुंदरा के मुताबिक, सैक्स सफल दांपत्य जीवन का महत्त्वपूर्ण आधार है. इस की कमी पतिपत्नी के रिश्ते को प्रभावित करती है. पतिपत्नी की एकदूसरे के प्रति चाहत, लगाव, आकर्षण खत्म होने के कई कारण होते हैं जैसे शारीरिक, मानसिक, लाइफस्टाइल. ये सैक्स ड्राइव को कमजोर बनाते हैं.

तनाव: औफिस, घर का वर्कलोड, आर्थिक समस्या, असमय खानपान आदि का सीधा असर तनाव के रूप में नजर आता है, जो हैल्थ के साथसाथ सैक्स लाइफ को भी प्रभावित करता है.

डिप्रैशन: यह सैक्स का सब से बड़ा दुश्मन है. यह पतिपत्नी के संबंधों को प्रभावित करने के साथसाथ परिवार में कलह को भी जन्म देता है. डिप्रैशन के कारण वैसे ही सैक्स की इच्छा में कमी आ जाती है. ऊपर से डिप्रैशन की दवा का सेवन भी कामेच्छा को खत्म करने लगता है.

नींद पूरी न होना: 4-5 घंटे की नींद से हम फ्रैश फील नहीं कर पाते, जिस से धीरेधीरे हमारा स्टैमिना कम होने लगता है. इतना ही नहीं सैक्स में भी हमारा इंट्रैस्ट नहीं रहता है.

गलत खानपान: वक्तबेवक्त खाना और जंक फूड व प्रोसैस्ड फूड का सेवन भी सैक्स ड्राइव को खत्म करता है.

टेस्टोस्टेरौन की कमी: शरीर में मौजूद यह हारमोन हमारी सैक्स इच्छा को कंट्रोल करता है. इस की कमी से पतिपत्नी दोनों ही प्रभावित होते हैं.

बर्थ कंट्रोल पिल्स: बर्थ पिल्स महिलाओं में टेस्टोस्टेरौन लैवल को कम करती हैं, जिस से महिलाओं में सैक्स संबंधों को ले कर विरक्ति हो जाती है. पतिपत्नी का दांपत्य जीवन तभी सफल होता है, जब सैक्स में दोनों एकदूसरे को सहयोग करें. सैक्स एक दोस्त की तरह भी जीवन में रंग भर देता है. शादीशुदा जिंदगी से प्यार की कशिश और इश्क का रोमांच खत्म होने लगा है तो सावधान हो जाएं.

यदि आप की सैक्स लाइफ अच्छी है तो इस का सकारात्मक प्रभाव आप की सेहत पर भी पड़ता है.

जानिए, सैक्स के सेहत से जुड़े कुछ फायदे:

शारीरिक तथा मानसिक पीड़ा में राहत दिलाता है: सैक्स के समय शरीर में हारमोन पैदा होते हैं, जो दर्द की अनुभूति कम करते हैं. भले ही कुछ समय के लिए.

सर्दीजुकाम के असर को कम करता है: सैक्स गरमी, सर्दीजुकाम के प्रभाव को काफी हद तक कम कर देता है. अमेरिका स्थित ओहियो यूनिवर्सिटी के अध्ययन बताते हैं कि चुंबन एवं प्यारदुलार करने से रक्त में बीमारियों से लड़ने वाले टी सैल्स की तादाद बढ़ जाती है.

मानसिक तनाव को कम करता है: सैक्स मन को शांति देने के साथसाथ मूड को भी बढि़या बनाने वाले हारमोन ऐंडोर्फिंस के उत्पादन में वृद्धि करता है. इस के मानसिक तनाव कम हो जाता है.

मासिकधर्म के पूर्व की कमी को कम करता है: सैक्स में लगातार गरमी के चलते ऐस्ट्रोजन स्तर काफी हद तक कम होता है. इस दौरान शरीर में थकान कम महसूस होती है.

दिल के रोग और दौरों की आशंका कम होती है: अकसर दिल के मरीजों को सैक्स संबंध बनाने से दूर रहने की सलाह दी जाती है. मगर अपोलो अस्पताल के वरिष्ठ हृदयरोग विशेषज्ञ,  डा. के.के. सक्सेना के अनुसार, पत्नी के साथ सैक्स संबंध बनाने से पूरे शरीर का समुचित व्यायाम होता है, जिस से दिमाग तनावरहित हो जाता है. दिल के दौरों की आशंका कम हो जाती है. सैक्स संबंध बनाने से धमनियों में रक्त का प्रवाह और हृदय की मांसपेशियों की क्षमता बढ़ती है.

मेरा पहला प्यार वापस लौट आया है, मैं क्या करुं?

सवाल-

मैं एक लड़के से प्यार करती थी. फिर किसी बात पर हम दोनों में अनबन हो गई. 2 साल तक न उस ने मुझ से बात की और न ही मैं ने. इस बीच मेरी जिंदगी में एक और लड़का आ गया. मैं उसे प्यार करती हूं पर अपने पहले प्रेमी जितना नहीं. हम ने विवाह करने का फैसला कर लिया है. घर वाले भी हमारे रिश्ते से सहमत हैं. अब जब हमारी शादी होने वाली है मेरा पहला प्रेमी जिसे मैं अभी तक भुला नहीं पाई हूं, लौट आया है. वह भी अब मुझ से शादी करने को तैयार है. मैं समझ नहीं पा रही कि मुझे क्या करना चाहिए?

जवाब-

शादी कोई हंसीखेल नहीं है. आप का पहला प्रेमी 2 साल के लंबे अंतराल के बाद उस समय लौटा है जब आप किसी और लड़के से विवाह करने जा रही हैं. आप का पूर्वप्रेमी अवसरवादी लगता है. इसीलिए आप की शादी तय हो जाने के बाद उस ने अचानक न केवल आप से संपर्क साधा वरन तुरतफुरत आप के सामने विवाह का प्रस्ताव भी रख दिया. आप को अपने निर्णय पर अडिग रहना चाहिए. आप उस से कह दें कि आप का विवाह तय हो चुका है. वह अब आप से कभी संपर्क न करे.

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‘‘दा,तुम मेरी बात मान लो और आज खाने की मेज पर मम्मीपापा को सारी बातें साफसाफ बता दो. आखिर कब तक यों परेशान बैठे रहोगे?’’

बच्चों की बातें कानों में पड़ीं तो मैं रुक गई. ऐसी कौन सी गलती विकी से हुई जो वह हम से छिपा रहा है और उस का छोटा भाई उसे सलाह दे रहा है. मैं ‘बात क्या है’ यह जानने की गरज से छिप कर उन की बातें सुनने लगी.

‘‘इतना आसान नहीं है सबकुछ साफसाफ बता देना जितना तू समझ रहा है,’’ विकी की आवाज सुनाई पड़ी.

‘‘दा, यह इतना मुश्किल भी तो नहीं है. आप की जगह मैं होता तो देखते कितनी स्टाइल से मम्मीपापा को सारी बातें बता भी देता और उन्हें मना भी लेता,’’ इस बार विनी की आवाज आई.

‘‘तेरी बात और है पर मुझ से किसी को ऐसी उम्मीद नहीं होगी,’’ यह आवाज मेरे बड़े बेटे विकी की थी.

‘‘दा, आप ने कोई अपराध तो किया नहीं जो इतना डर रहे हैं. सच कहूं तो मुझे ऐसा लगता है कि मम्मीपापा आप की बात सुन कर गले लगा लेंगे,’’ विनी की आवाज खुशी और उत्साह दोनों से भरी हुई थी.

‘बात क्या है’ मेरी समझ में कुछ नहीं आया. थोड़ी देर और खड़ी रह कर उन की आगे की बातें सुनती तो शायद कुछ समझ में आ भी जाता पर तभी प्रेस वाले ने डोर बेल बजा दी तो मैं दबे पांव वहां से खिसक ली.

बच्चों की आधीअधूरी बातें सुनने के बाद तो और किसी काम में मन ही नहीं लगा. बारबार मन में यही प्रश्न उठते कि मेरा वह पुत्र जो अपनी हर छोटीबड़ी बात मुझे बताए बिना मुंह में कौर तक नहीं डालता है, आज ऐसा क्या कर बैठा जो हम से कहने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा है. सोचा, चल कर साफसाफ पूछ लूं पर फिर लगा कि बच्चे क्या सोचेंगे कि मम्मी छिपछिप कर उन की बातें सुनती हैं.

पूरी कहानी पढ़ने के लिए- पहला पहला प्यार : मां को कैसे हुआ अपने बेटे की पसंद का आभास

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

रिश्तों को जोड़ने की कड़ी हैं बच्चे

प्रिया की शादी के 1 साल तक घर वालों ने उस से मां बनने या परिवार आगे बढ़ाने को ले कर कोई बात नहीं की. इस मामले में उस के पति भी हमेशा सपोर्टिव रहे और पूछने पर यही कहा कि जब तुम चाहो सिर्फ तभी मां बनने का फैसला लेना. मगर जब शादी के कुछ साल तक बच्चा नहीं हो तो लोगों के दिमाग में सिर्फ एक ही बात आती है कि कुछ कमी होगी. प्रिया के साथ भी ऐसा ही हुआ. लोग उस में ही कमी तलाशने लगे और दबे मुंह ताने भी देने लगे.

‘बच्चा नहीं हो रहा, जरूर कुछ कमी होगी’ प्रिया को इस तरह की बातें भी सुनने को मिलने लगीं. दरअसल, आज भी कई लोगों को फैमिली प्लानिंग के बारे में कोई जानकारी नहीं है. उन्हें लगता है कि बस शादी हुई और बच्चा हो जाना चाहिए और अगर नहीं हुआ है तो जरूर कोई कमी होगी. देखा जाए तो यह कमी पुरुष में भी हो सकती है. लेकिन प्रैक्टिकली इस कमी का इशारा सिर्फ महिला की तरफ ही होता है.

इन तानों से बचने के लिए प्रिया ने शादी के करीब 2 साल बाद ही फैमिली प्लानिंग खत्म कर मां बनने का फैसला लिया. उस ने अपने पति से इस बारे में बात की. इस के बाद शुरू हुई वह कहानी जहां कई लोगों की जिंदगी एक नए रास्ते की तरफ मुड़ जाती है. प्रिया ने प्राकृतिक तरीके से प्रैगनैंट होने की काफी कोशिश की, मगर ऐसा नहीं हो सका. घर में सब उदास से रहते. सास और वह खुद भी किसी छोटे बच्चे को देखती तो दिल में हूक सी उठती. हर महीने वे 3 दिन आते और उसे फिर से निराश कर के चले जाते.

कई तरह के डाक्टरी चैकअप और इलाज के बाद भी जब कोई नतीजा नहीं निकला तब प्रिया को प्रैगनैंसी के लिए आईवीएफ की मदद लेनी पड़ी. आईवीएफ के जरीए वह जल्द ही प्रैगनैंट हो गई. फिर बहुत इंतजार के बाद जब नन्हा सा फूल उस की गोद में खेलने लगा तो घर भर में खुशी की लहर दौड़ गई. बच्चे को गोद में लेते ही सब के चेहरे पर रौनक छा जाती. वह बच्चा पूरे परिवार को जोड़ने और घर भर की खुशियों की वजह बन गया.

नई खुशी और उत्साह की वजह

सच में किसी भी परिवार के लिए बच्चे का जन्म एक नई खुशी और उत्साह की वजह बनता है. बच्चा उन के जीवन में नए रंग ले कर आता है. बच्चे के जन्म के साथ ही शादीशुदा जिंदगी में एक मजबूती आ जाती है. रिश्तों में प्रगाड़ता और घर में रौनक आ जाती है. पतिपत्नी एकदूसरे के ज्यादा करीब आते हैं. एकदूसरे की तकलीफ सम झने लगते हैं और एक अनकहा सा जुड़ाव महसूस करते हैं.

जिन मुद्दों पर शादी के बाद 2 लोगों के बीच अकसर बहस हो जाती थी, बच्चे पैदा होने के बाद वे मुद्दे कहीं खो जाते हैं. दोनों मिल कर केवल बच्चे की सेहत और उस की सुरक्षा के बारे में सोचने लग जाते हैं. बच्चे की मासूमियत के आगे घर के सारे गम फीके से लगने लग जाते हैं. लेकिन वही बच्चा जब बीमार हो जाता है तो जैसे मांबाप के दिन का चैन और रातों की नींदें ही उड़ जाती हैं.

दरअसल, बच्चे परिवार का वह हिस्सा होते हैं जो बीज से निकल कर एक छोटे से पौधे के रूप में जन्म लेते हैं. बच्चों के जन्म लेने से हर परिवार की खुशियां दोगुनी हो जाती हैं. मातापिता बच्चों की परवरिश से ले कर उन्हें बड़ा करने तक उन की सारी जिम्मेदारियां उठाते हैं. बच्चा जबजब रोता है तबतब माता अपने सारे काम छोड़ कर उस को चुप करवाने के लिए चली आती है.

बच्चा जब भी किसी वस्तु के लिए जिद करता है तो पिता समेत पूरा घर उस की हर जिद के लिए दिनरात एक कर देता है. बच्चे के जन्म के साथ ही पति का पत्नी के साथसाथ परिवार के दूसरे सदस्यों के साथ भी रिश्ता और मजबूत हो जाता है.

पतिपत्नी करीब आते हैं

बच्चे का आगमन पतिपत्नी को जोड़ता है. वे एक इकाई के रूप में काम करने लगते हैं. दोनों का ध्येय अपने दिल के टुकड़े को आराम पहुंचाना और सही तरीके से उस का विकास होता देखना होता है. उन के पास एकदूसरे के साथ लड़ने का समय नहीं रहता. वे सम झने लगते हैं कि बच्चे को अपने पेरैंट्स का प्यार चाहिए. बच्चे को प्यारदुलार देने के लिए पतिपत्नी को भी करीब आना पड़ता है ताकि उसे एक खुशहाल माहौल में मां और पिता दोनों का प्यार एकसाथ मिल सके. इस तरह से एक बच्चा पतिपत्नी को दूर नहीं बल्कि करीब लाने का काम करता है.

साथ समय बिताना

नन्हे बच्चे के आने के साथ ही मातापिता की दिनचर्या बदल जाती है. वे बच्चे के साथ जागते हैं और बच्चे के साथ ही सोते हैं. उस के साथ हंसते हैं और बच्चे के रोने पर एकसाथ परेशान भी होते हैं. बच्चे का डायपर बदलने से ले कर उस के खानेपीने का इंतजाम करने और खिलौने से खिलाने, नहलानेधुलाने और बीमार पड़ने पर रातभर उस का खयाल रखने का काम भी दोनों मिल कर करते हैं और इस वजह से उन्हें ज्यादा समय साथ बिताने का मौका मिलता है.

सिर्फ मातापिता ही नहीं बल्कि दादादादी, बूआ, चाचा जैसे घर के दूसरे सदस्यों को भी बच्चे के साथ समय बिताने का मौका मिलता है और वे इसे भरपूर ऐंजौय करते हैं. इस तरह पूरा परिवार एकजुट हो जाता है.

जुड़ाव

एक बच्चे के आ जाने के बाद मांबाप उस के साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिताना चाहते हैं. इस दौरान उन्हें भी एकदूसरे से एक खास जुड़ाव का एहसास होने लगता है. एकदूसरे के लिए की गई छोटीछोटी कोशिश पतिपत्नी को और करीब लाने का काम करती है. बच्चे की देखभाल के बहाने पतिपत्नी कई तरह की बातें शेयर करते हैं. उन के बीच कम्यूनिकेशन मजबूत होता है और इसी के साथ उन का रिश्ता भी मजबूत होता है.

औरत के जीवन में प्रैगनैंसी यानी गर्भावस्था एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण मुकाम होता है. कुछ दंपती बच्चे की प्लानिंग करते हैं और उन का मातापिता बनने का सफर आसानी से शुरू हो जाता है, वहीं कुछ दंपतियों को कई कोशिशों के बाद भी यह खुशी मिलने में एक अरसा लग जाता है. इस के अलावा कई बार कुछ सामान्य शारीरिक दोषों की वजह से भी औरत गर्भावस्था के सुख से वंचित रह जाती है. ऐसे में आजकल पतिपत्नी यह सपना आईवीएफ के जरीए भी पूरा करने लगे हैं. यह बच्चे के लिए तरसते दंपतियों की जिंदगी में खुशियों के दीप जलाने की एक बेहतरीन और नई तकनीक है.

आइए, जानते हैं प्रैगनैंसी और आईवीएफ से जुड़ी कुछ रोचक और जरूरी बातें:

गर्भावस्था क्या है: गर्भावस्था का एहसास और इस की पूरी प्रक्रिया से ले कर बच्चे के मां के हाथों में आने तक सबकुछ इतना जादुई है कि कभीकभी यकीन करना कठिन होता है कि छोटा सा फर्टिलाइज्ड एग कैसे मां के गर्भाशय में पहुंच कर एक बच्चे का रूप ले लेता है. दरअसल, गर्भावस्था का पूरा मामला हारमोंस के एक ऐसे बायोलौजिकल डांस पर टिका होता है जिस की एक भी बीट आप को मिस नहीं करनी चाहिए वरना फिर अगले महीने का इंतजार करने के अलावा कोई चारा नहीं रह जाता है. अगला महीना यानी अगला औव्यूलेशन पीरियड.

एक सामान्य लड़की के यूटरस यानी गर्भाशय में सिर्फ 10 मिलीलिटर यानी 2 चम्मच पानी समाने जितनी क्षमता होती है. लेकिन जब गर्भावस्था का समय आता है तब इस की क्षमता बढ़ कर इतनी ज्यादा हो जाती है कि इस में लगभग 5 लिटर फ्लूड आ जाता है. गर्भाशय खुद को इतना ज्यादा फैला लेता है कि इस में बढ़ते बच्चे के लिए पूरी जगह बनने लगती है.

एक औरत के मां बनने के लिए पतिपत्नी का सिर्फ शारीरिक संबंध बनाना ही काफी नहीं है बल्कि यह संबंध महिला का औव्यूलेशन पीरियड के समय बनाना जरूरी होता है. कई लड़कियों को औव्यूलेशन पीरियड के बारे में जानकारी नहीं होती है, इसलिए मां बनने की उन की इच्छा बहुत देर से पूरी होती है.

जटिल प्रक्रिया: सामान्य रूप से गर्भावस्था एक एग और स्पर्म के मिलने की प्रक्रिया है. लेकिन वास्तव में इस के पीछे शरीर के भीतर बहुत कुछ घटित होता है. साइंस की भाषा में गर्भावस्था तब शुरू होती है जब एक फर्टिलाइज्ड एग गर्भाशय में प्रवेश करता है. यह पूरी प्रक्रिया काफी जटिल है और इस को सम झने के लिए स्पर्म और एग के बारे में सम झना जरूरी है.

स्पर्म एक प्रकार के माइक्रोस्कोपिक सैल होते हैं जो टैस्टिकल्स में बनते हैं. स्पर्म अन्य फ्लूड्स के साथ मिल कर सीमन तैयार करता है जो इजैक्यूलेशन के दौरान पुरुष जननांग से बाहर निकलता है. जितनी बार इजैक्युलेशन होता है उतनी बार लाखों की संख्या में स्पर्म निकलते हैं, लेकिन गर्भावस्था के लिए सिर्फ एक स्पर्म और एग के मिलने की जरूरत होती है. एग्स ओवरीज में होते हैं. हारमोंस जो महिलाओं के मासिकचक्र के लिए जिम्मेदार होते हैं उन की ही वजह से हर महीने कुछ एग मैच्योर हो जाते हैं.

एग के मैच्योर होने का मतलब है कि वह स्पर्म के साथ फर्टिलाइज होने के लिए तैयार है. हारमोंस की वजह से गर्भाशय की बाहरी सतह भी थोड़ी मोटी हो जाती है जिस से महिला का शरीर गर्भावस्था के लिए तैयार होता है.

औव्यूलेशन पीरियड और गर्भावस्था

मासिकचक्र शुरू होने से कुछ दिनों पहले एक मैच्योर एग ओवरी से बाहर निकलता है और फैलोपियन ट्यूब से होते हुए यूटरस में प्रवेश करता है जिसे औव्यूलेशन पीरियड कहा जाता है. इस दौरान गर्भवती होने की संभावना सब से ज्यादा होती है. इस दौरान जब स्पर्म और एग जुड़ते हैं तो इसे फर्टिलाइजेशन कहा जाता है. जब यह फर्टिलाइज्ड एग गर्भाशय की तरफ जाता है तब वह ज्यादा से ज्यादा सैल्स में विभाजित होने लगता है जिस से एक बौलनुमा आकृति बन जाती है.

कोशिकाओं की ये गेंदनुमा आकृति फर्टिलाइजेशन के 3-4 दिन बाद गर्भाशय में प्रवेश करती है. जब यह गर्भाशय की दीवार से जुड़ जाती है तो इसे इंप्लांटेशन कहा जाता है जो गर्भावस्था की औफिशियल शुरुआत होती है. इन सारी प्रक्रियाओं के करीब 9 महीने के बाद बच्चे का जन्म होता है.

कमी महिला में ही नहीं पुरुष में भी हो सकती है: जब एक फर्टिलाइज्ड एग गर्भाशय में इंप्लांट हो जाता है तब प्रैगनैंसी हारमोंस की वजह से पीरियड्स रुक जाते हैं. लेकिन अगर एग स्पर्म से नहीं जुड़ता है या फर्टिलाइज्ड एग यूटरस में इंप्लांट नहीं होता है तो पीरियड्स के साथ ये फर्टिलाइज्ड एग्स भी बाहर निकल जाते हैं और गर्भवती होने के लिए अगले महीने का इंतजार जरूरी हो जाता है.

कई बार महीनों तक कोशिश करने के बाद भी गर्भावस्था की स्थिति सामने नहीं आती. इस की वजह मोटापा और ज्यादा उम्र के अलावा पीसीओएस (पौलिसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम) या पीसीओडी जैसे कारण हो सकते हैं. कई दफा 2 खास हारमोन प्रोजेस्टेरौन और ऐस्ट्रोजन के बीच संतुलन बिगड़ जाता है या कई बार अंडाशय में सिस्ट (गांठ) बनने लगती हैं. इस से शरीर में कई समस्याएं होने लगती हैं और गर्भ ठहरने में बाधा पहुंचती है.

शादी के बाद सबकुछ सही होने पर भी दंपती को 6 महीनों से ले कर साल तक का समय गर्भावस्था की स्थिति तक पहुंचने में लग सकता है. इस से ज्यादा समय लगने पर जरूर डाक्टर की सलाह लेनी चाहिए और उसी के अनुसार दवा व उपचार किया जाना चाहिए. कमी सिर्फ महिला में ही नहीं बल्कि पुरुष में भी हो सकती है. हालांकि इन समस्याओं का उपचार भी संभव है.

मां न बन पाने पर हत्या

हाल ही में बिहार के बगहा में संतान नहीं होने पर विवाहिता के गले में रस्सी डाल कर

हत्या का मामला सामने आया. हत्या के बाद ससुराल वाले घर छोड़ कर फरार हो गए. रामनगर थाना के भुवाल साह ने अपनी बेटी निर्मला की शादी 4 साल पूर्व बगहा नगर के कैलाश नगर निवासी भोला साह से की थी. 4 साल बीत जाने के बाद उस की कोई संतान नहीं हुई जिस को ले कर ससुराल वाले उस को प्रताडि़त करते थे, उस के साथ मारपीट करते थे और आएदिन ताने देते थे. कई बार घर से भी निकाल देते थे.

उसे घर में रखने के लिए रुपयों की मांग करते थे. सास अपने बेटे पर दूसरी शादी करने का दबाव भी बनाती थी. अंत में उन्होंने महिला की हत्या ही कर दी.

यह कोई अकेली घटना नहीं है. इस तरह की घटनाएं अकसर होती रहती हैं जब औरत पर बां झ होने का आरोप लगा कर और प्रताडि़त कर उसे दुनिया से ही रुखसत कर दिया जाता है मानों सारा दोष स्त्री का ही हो. ऐसे घर भी होते हैं जहां बच्चा न होने की वजह से घर में रोजरोज कलह होती है.

लड़ाई झगड़ों के बीच रिश्तों के बीच का प्रेम दम तोड़ने लगता है. घर में हमेशा अ

शांति और असंतुष्टि का साम्राज्य छाया रहता है. इस से भी बढ़ कर कुछ लोग तो संतान न होने पर ओ झामौलवी और बाबाओं के दर का चक्कर लगाने लगते हैं और इस तरह रहासहा सुकून और लाखों रुपए भी बरबाद करते हैं.

उपचार के कई विकल्प

भारत में बां झपन के उपचार के कई विकल्प मौजूद हैं, जिन में अंडाशय को अंडे की बेहतर गुणवत्ता के लिए स्टिम्युलेट करने की दवाएं शामिल हैं. इस के साथ अब दूरबीन से होने वाली सर्जरी में काफी तरक्की हुई है जैसे लैप्रोस्कोपी और हिस्ट्रोस्कोपी. ये न केवल समस्या का पता लगाने में मदद करती हैं, बल्कि बेहतर सफलता दर के साथ इस समस्या का उपचार भी करती हैं.

इस के अलावा कृत्रिम प्रजनन तकनीक जैसे इनविट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) मौजूद है. इस में अंडे और शुक्राणुओं को मिलाया जाता है और इन विट्रो यानी शरीर के बाहर निषेचित किया जाता है. उस के बाद उसे फिर गर्भ में स्थानांतरित कर दिया जाता है. यह तकनीक दंपतियों के बीच तेजी से लोकप्रिय हो रही है.

एआरटी जैसे आईवीएफ, आईसीएसआई आदि बां झपन के लिए एक वरदान है, मगर काफी महंगी है. इस का खर्च प्रति साइकिल करीब 1.5 से 2.5 लाख रुपए आता है जो इसे गरीबों की पहुंच से बाहर कर देता है.

कुछ समय पहले तक बेऔलाद महिलाओं को आईवीएफ की मदद से 45 साल की उम्र तक मां बनने की इजाजत थी, लेकिन लोकसभा में ‘असिस्टेड रिप्रोडक्टिव टैक्नोलौजी (रैगुलेशन) यानी एआरटी बिल 2020’ पास होने के बाद संतानहीन महिलाएं आईवीएफ की मदद से 50 साल की उम्र तक मां बन सकेंगी.

एग डोनर महिलाओं को मिलने वाले मेहनताने में सुधार होगा और उन की सेहत का खयाल भी रखा जाएगा. बहुत सारी महिलाओं के शरीर में ‘एग’ की कमी होती है. इन के लिए एग डोनर की सुविधा ली जाती है.

उम्मीदों को मिली उड़ान

आज पूरे विश्व में करीब 90 लाख बच्चे आईवीएफ की मदद से जन्म ले रहे हैं. ‘इंडियन आईवीएफ मार्केट आउटलुक 2020’ की रिपोर्ट के अनुसार 2014 से 2020 के बीच आईवीएफ मार्केट में 15% की बढ़त हुई. ‘आरएनसीओएस’ बिजनैस कंसल्टैंसी सर्विसेज की इस रिपोर्ट के मुताबिक पिछले कुछ सालों में कई वजहों से इनफर्टिलिटी बढ़ी है, जिस में अधिक उम्र में शादी होना और लाइफस्टाइल को जिम्मेदार ठहराया गया है. यूनाइटेड नेशंस के डेटा के अनुसार भारत में इनफर्टिलिटी रेट बढ़ी है.

मैं अपनी पत्नी को धोखा दे रहा हूं, मैं क्या करुं?

सवाल

मैं 28 साल का हूं. मेरी शादी को 4 साल हो चुके हैं. मेरी छोटी साली भी हमारे साथ रहती है.

एक दिन बीवी घर पर नहीं थी और मैं टीवी देख रहा था, तभी साली अचानक कमरे में आई और मुझे गिरा कर चूमने लगी. मेरे मना करने पर भी उस ने अपने सारे कपड़े उतार दिए और उस ने वह सब कर डाला, जो अमूमन बीवी करती है.

अब वह मुझ से रोजाना संबंध बनाने को कहती है और रात में भी अपने साथ सोने को कहती है. मना करने पर अपनी बहन को बताने की धमकी देती है. मैं क्या करूं?

जवाब

आप का तो घर बैठे ही बंपर ड्रा निकल आया, मगर यह बम की तरह खतरनाक भी हो सकता है. साली कहीं पेट से हो गई, तो और बवाल हो जाएगा. बीवी को पता चलेगा, तो भी फसाद ही होगा.

बेहतर यही होगा कि आप किसी बहाने से साली को वापस उस के घर भेज दें और हो सके तो अपना तबादला कहीं दूर करा लें.

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भौजाई से प्यार, पत्नी सहे वार

19 जनवरी, 2017 को उत्तर प्रदेश के जिला सिद्धार्थनगर के थाना जोगिया उदयपुर के थानाप्रभारी शमशेर बहादुर सिंह औफिस में बैठे मामलों की फाइलें देख रहे थे, तभी उन की नजर करीब 4 महीने पहले सोनिया नाम की एक नवविवाहिता की संदिग्ध परिस्थितियों में ससुराल में हुई मौत की फाइल पर पड़ी. सोनिया की मां निर्मला देवी ने उस के पति अर्जुन और उस की जेठानी कौशल्या के खिलाफ उस की हत्या की रिपोर्ट दर्ज कराई थी. घटना के बाद से दोनों फरार चल रहे थे. उन की तलाश में पुलिस जगहजगह छापे मार रही थी. लेकिन कहीं से भी उन के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली थी.

आरोपियों की गिरफ्तारी को ले कर एसपी राकेश शंकर का शमशेर बहादुर सिंह पर काफी दबाव था, इसीलिए वह इस केस की फाइल का बारीकी से अध्ययन कर आरोपियों तक पहुंचने की संभावनाएं तलाश रहे थे. संयोग से उसी समय एक मुखबिर ने उन के कक्ष में आ कर कहा, ‘‘सरजी, एक गुड न्यूज है. अभी बताऊं या बाद में?’’

‘‘अभी बताओ न कि क्या गुड न्यूज है,ज्यादा उलझाओ मत. वैसे ही मैं एक केस में उलझा हूं.’’ थानाप्रभारी ने कहा, ‘‘जो भी गुड न्यूज है, जल्दी बताओ.’’

इस के बाद मुखबिर ने थानाप्रभारी के पास जा कर उन के कान में जो न्यूज दी, उसे सुन कर थानाप्रभारी का चेहरा खिल उठा. उन्होंने तुरंत हमराहियों को आवाज देने के साथ जीप चालक को फौरन जीप तैयार करने को कहा. इस के बाद वह खुद भी औफिस से बाहर आ गए. 5 मिनट में ही वह टीम के साथ, जिस में एसआई दिनेश तिवारी, सिपाही जय सिंह चौरसिया, लक्ष्मण यादव और श्वेता शर्मा शामिल थीं, को ले कर कुछ ही देर में मुखबिर द्वारा बताई जगह पर पहुंच गए. वहां उन्हें एक औरत और एक आदमी खड़ा मिला.

पुलिस की गाड़ी देख कर दोनों नजरें चुराने लगे. पुलिस जैसे ही उन के करीब पहुंची, उन के चेहरों पर हवाइयां उड़ने लगीं. शमशेर बहादुर सिंह ने उन से नाम और वहां खड़े होने का कारण पूछा तो वे हकलाते हुए बोले, ‘‘साहब, बस का इंतजार कर रहे थे.’’

‘‘क्यों, अब और कहीं भागने का इरादा है क्या?’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘नहीं साहब, आप क्या कह रहे हैं, हम समझे नहीं, हम क्यों भागेंगे?’’ आदमी ने कहा.

‘‘थाने चलो, वहां हम सब समझा देंगे.’’ कह कर शमशेर बहादुर सिंह दोनों को जीप में बैठा कर थाने लौट आए. थाने में जब दोनों से सख्ती से पूछताछ की गई तो उन्होंने अपने नाम अर्जुन और कौशल्या देवी बताए. उन का आपस में देवरभाभी का रिश्ता था.

अर्जुन अपनी पत्नी सोनिया की हत्या का आरोपी था. उस की हत्या में कौशल्या भी शामिल थी. हत्या के बाद से दोनों फरार चल रहे थे. थानाप्रभारी ने सीओ महिपाल पाठक के सामने दोनों से सोनिया की हत्या के बारे में पूछताछ की तो उन्होंने सारी सच्चाई उगल दी. सोनिया की जितनी शातिराना तरीके से उन्होंने हत्या की थी, वह सारा राज उन्होंने बता दिया. नवविवाहिता सोनिया की हत्या की उन्होंने जो कहानी बताई, वह इस प्रकार थी—

उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थनगर जिले का एक थाना है जोगिया उदयपुर. इसी थाने के अंतर्गत मनोहारी गांव के रहने वाले जगदीश ने अपने छोटे बेटे अर्जुन की शादी 4 जुलाई, 2013 को पड़ोस के गांव मेहदिया के रहने वाले रामकरन की बेटी सोनिया से की थी. शादी के करीब 3 सालों बाद 25 अप्रैल, 2016 को गौने के बाद सोनिया ससुराल आई थी.

पति और ससुराल वालों का प्यार पा कर सोनिया बहुत खुश थी. अपने काम और व्यवहार से सोनिया घर में सभी की चहेती बन गई. सब कुछ ठीकठाक चल रहा था कि अचानक सोनिया ने पति अर्जुन में कुछ बदलाव महसूस किया. उस ने गौर करना शुरू किया तो पता चला कि अर्जुन पहले उसे जितना समय देता था, अब वह उसे उतना समय नहीं देता.

पहले तो उस ने यही सोचा कि परिवार और काम की वजह से वह ऐसा कर रहा होगा. लेकिन उस की यह सोच गलत साबित हुई. उस ने महसूस किया कि अर्जुन अपनी भाभी कौशल्या के आगेपीछे कुछ ज्यादा ही मंडराता रहता है. वह भाभी के साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिताता है.

जल्दी ही सोनिया को इस की वजह का भी पता चल गया. अर्जुन के अपनी भाभी से अवैध संबंध थे. भाभी से संबंध होने की वजह से वह सोनिया की उपेक्षा कर रहा था. कमाई का ज्यादा हिस्सा भी वह भाभी पर खर्च कर रहा था. यह सब जान कर सोनिया सन्न रह गई.

कोई भी औरत सब कुछ बरदाश्त कर सकती है, लेकिन यह हरगिज नहीं चाहती कि उस का पति किसी दूसरी औरत के बिस्तर का साझीदार बने. भला नवविवाहिता सोनिया ही इस बात को कैसे बरदाश्त करती. उस ने इस बारे में अर्जुन से बात की तो वह बौखला उठा और सोनिया की पिटाई कर दी. उस दिन के बाद दोनों में कलह शुरू हो गई.

सोनिया ने इस बात की जानकारी अपने मायके वालों को फोन कर के दे दी. उस ने मायके वालों से साफसाफ कह दिया था कि अर्जुन का संबंध उस की भाभी से है. शिकायत करने पर वह उसे मारतापीटता है. यही नहीं, उस से दहेज की भी मांग की जाती है. सोनिया की परेशानी जानते हुए भी मायके वाले उसे ही समझाते रहे.

वे हमेशा उस के और अर्जुन के संबंध को सामान्य करने की कोशिश करते रहे, पर अर्जुन ने भाभी से दूरी नहीं बनाई, जिस से सोनिया की उस से कहासुनी होती रही, पत्नी की रोजरोज की किचकिच से अर्जुन परेशान रहने लगा. उसे लगने लगा कि सोनिया उस के रास्ते का रोड़ा बन रही है. लिहाजा उस ने भाभी कौशल्या के साथ मिल कर एक खौफनाक योजना बना डाली.

24-25 सितंबर, 2016 की रात अर्जुन और कौशल्या ने साजिश रच कर सोनिया के खाने में जहरीला पदार्थ मिला दिया. अगले दिन यानी 25 सितंबर की सुबह जब सोनिया की हालत बिगड़ने लगी तो अर्जुन उसे जिला अस्पताल ले गया.

उसी दिन सुबह सोनिया के पिता रामकरन को मनोहारी गांव के किसी आदमी ने बताया कि सोनिया की तबीयत बहुत ज्यादा खराब है, वह जिला अस्पताल में भरती है. यह खबर सुन कर वह घर वालों के साथ सिद्धार्थनगर स्थित जिला अस्पताल पहुंचा. तब तक सोनिया की हालत बहुत ज्यादा खराब हो चुकी थी. डाक्टरों ने उसे कहीं और ले जाने को कह दिया था.

26 सितंबर की सुबह 4 बजे पता चला कि सोनिया की मौत हो चुकी है. बेटी की मौत की खबर मिलते ही रामकरन अपने गांव के कुछ लोगों को साथ ले कर बेटी की ससुराल मनोहारी गांव पहुंचा तो देखा सोनिया के मुंह से झाग निकला था. कान और नाक पर खून के धब्बे थे. हाथ की चूडि़यां भी टूटी हुई थीं. लाश देख कर ही लग रहा था कि उस के साथ मारपीट कर के उसे कोई जहरीला पदार्थ खिलाया गया था.

बेटी की लाश देख कर रामकरन की हालत बिगड़ गई. उन के साथ आए गांव वालों ने पुलिस कंट्रोल रूम को हत्या की सूचना दे दी. सूचना पा कर कुछ ही देर में थाना जोगिया उदयपुर के थानाप्रभारी शमशेर बहादुर सिंह पुलिस बल के साथ मौके पर पहुंच गए. उन्होंने सोनिया के शव को कब्जे में ले कर पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया.

बेटी की मौत से रामकरन को गहरा सदमा लगा था, जिस से उन की तबीयत खराब हो गई थी. उन्हें आननफानन में इलाज के लिए अस्पताल ले जाया गया. इस के बाद पुलिस ने सोनिया की मां निर्मला की तहरीर पर अर्जुन और उस की भाभी कौशल्या के खिलाफ भादंवि की धारा 498ए, 304बी, 3/4 डीपी एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया था.

2 दिनों बाद जब पोस्टमार्टम रिपोर्ट आई तो पता चला कि सोनिया के साथ मारपीट कर के उसे खाने में जहर दिया गया था. घटना के तुरंत बाद अर्जुन और कौशल्या फरार हो गए थे. लेकिन पुलिस उन के पीछे हाथ धो कर पड़ी थी. उन दोनों की गिरफ्तारी न होने से लोगों में आक्रोश बढ़ रहा था.

आखिर 4 महीने बाद मुखबिर की सूचना पर अर्जुन और कौशल्या गिरफ्तार कर लिए गए थे. पूछताछ के बाद पुलिस ने उन्हें सक्षम न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया. कथा लिखे तक दोनों की जमानतें नहीं हो सकी थीं.पुलिस अधीक्षक राकेश शंकर ने घटना का खुलासा करने वाली पुलिस टीम की हौसलाअफजाई करते हुए 2 हजार रुपए का नकद इनाम दिया है.

भाभी के चक्कर में अर्जुन ने अपना घर तो बरबाद किया ही, भाई का भी घर बरबाद किया. इसी तरह कौशल्या ने देह की आग को शांत करने के लिए देवर के साथ मिल कर एक निर्दोष की जान ले ली.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

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कुछ इस तरह निभाएं घर की जिम्मेदारी

अकसर पत्नियों को शिकायत रहती है कि पति घरेलू कामों में उन की मदद नहीं करते. किसी हद तक उन की यह शिकायत सही भी है, क्योंकि शादी के बाद ज्यादातर पति घर के बाहर की जिम्मेदारी तो बखूबी निभाते हैं, मगर बात अगर रसोई में पत्नी की मदद करने की हो या घर की साफसफाई की तो अमूमन सभी पति कोई न कोई बहाना बना कर इन कामों से बचने की कोशिश करते नजर आते हैं. कहने को तो पतिपत्नी गाड़ी के 2 पहियों की तरह होते हैं, मगर जब आप एक ही पहिए पर घरगृहस्थी का सारा बोझ डाल दोगे तो फिर गाड़ी का लड़खड़ाना तो लाजिम है.

अकसर पत्नियां घर के कामों में इतनी उलझ जाती हैं कि उन के पास खुद के लिए भी समय नहीं होता. ऐसे में यदि उन्हें घर के कामों में पति का सहयोग मिल जाए तो उन का न सिर्फ बोझ कम हो जाता है, बल्कि पतिपत्नी के रिश्ते में मिठास और बढ़ जाती है.

यों बांटें काम

घर के काम को हेय समझना छोड़ कर पति कुछ कामों की जिम्मेदारी ले कर अननी गृहस्थी की बगिया को महका सकते हैं. ऐसे कई काम हैं, जिन्हें पतिपत्नी दोनों आपस में बांट कर कर सकते हैं:

– किचन को लव स्पौट बनाएं, अकसर पति किचन में जाने के नाम से ही कतराते हैं, मगर यहां आप पत्नी के साथ खाना पकाने के साथसाथ प्यार के एक नए स्वाद का भी आनंद ले सकते हैं. सब्जी काटना, खाना टेबल पर लगाना, पानी की बोतलें फ्रिज में भर कर रखना, सलाद तैयार करना आदि काम कर आप पत्नी की मदद कर सकते हैं. यकीन मानिए आप के इन छोटेछोटे कामों को आप की पत्नी दिल से सराहेगी.

– कभी पत्नी के उठने से पहले उसे सुबह की चाय पेश कर के देखिए, आप के इस छोटे से प्रयास को वह दिन भर नहीं भूलेगी. अगर पत्नी की तबीयत ठीक नहीं है तो ऐसे में हलकाफुलका नाश्ता बना कर उसे थोड़ा आराम दे सकते हैं.

– यदि पति किचन में कुछ पकाना चाहे तो उन्हें टोकिए मत. रसोईघर को व्यवस्थित रखें. सभी डब्बों में लेबल लगा कर रखने से पति हर चीज के लिए आप से बारबार नहीं पूछेंगे.

– अगर आप को शिकायत है कि आप की पत्नी सारा वक्त बाथरूम में कपड़ों की सफाई में गुजार देती है और आप के लिए उन से पास जरा भी फुरसत नहीं है तो इस का सारा दोष पत्नी को मत दीजिए. छुट्टी वाले दिन आप इस काम में उस का हाथ बंटा सकते हैं. कपड़ों को ड्रायर कर के उन्हें सुखाने डालते जाएं. इस तरह एकसाथ काम करते हुए आप दोनों को बतियाने का मौका भी मिल जाएगा.

– अकसर सभी घरों में हफ्ते भर की सब्जियां ला कर फ्रिज में स्टोर कर दी जाती हैं. टीवी पर अपना पसंदीदा शो या क्रिकेट मैच देखने में मशगूल पति को आप मटर छीलने के लिए बोल सकती हैं या फिर सब्जियां साफ करने के लिए दे सकती हैं.

– गार्डन में लगे पौधों को पानी देने का काम पति से बोल कर करवा सकती हैं.

– घर में कोई पालतू जानवर है तो उसे टहलाने की जिम्मेदारी दोनों मिल कर उठाएं.

– बच्चों को पढ़ाने के लिए कुछ विषय आप चुन लें. कुछ पति को दें.

– पति व घर के अन्य सदस्यों में अपने छोटेमोटे काम स्वयं करने की आदत डलवाएं. नहाने के बाद गीला तौलिया सूखने डालना, अपने कपड़े, मोजे आदि अलमारी में सलीके से रखने जैसे कई ऐसे काम हैं, जिन्हें घर का हर सदस्य खुद कर सकता है.

– यदि आप चाहती हैं कि पति घरेलू कामों में आप की दिल से मदद करें तो प्यार व मनुहार से कहें. यदि आप जबरदस्ती कोई काम उन पर थोपेंगी तो जाहिर है मिनटों का काम करने में उन्हें घंटों लग जाएं और कार्य भी ढंग से पूरा न हो. शुरू में उन के साथ मिल कर काम करें.

थोड़ा धैर्य बनाए रखें. धीरेधीरे ही सही, मगर एक बार पति आप के कामों में सहयोग देने लगेंगे तो उन्हें भी इस बात का एहसास होगा कि आप दिन भर में कितना खटती हैं. पति हो या पत्नी जब घर दोनों का है तो घर के कामों का जिम्मा भी दोनों मिल कर उठाएं. तभी तो वैवाहिक जीवन की गाड़ी सुचारु रूप से चलेगी.

पहली नजर का प्यार और अट्रैक्शन

यह पहली नजर का उफ क्या असर है. तुम्हारी कसम, डगमगाए से हम हैं… उंगलियों में चाबी का गुच्छा नचाते, फुल वौल्यूम में गाते हुए अतुल ने बंधु के कमरे में प्रवेश किया. मेज पर फैली अपनी किताबों को समेटते हुए बंधु ने अतुल से पूछा, ‘‘यार, क्या बात है, बड़ा खुश नजर आ रहा है?’’ ‘‘यार, बात ही ऐसी है,’’ कहते हुए अतुल गाने की फिर वही पंक्तियां दोहराने लगा.

बंधु ने अपनी बेचैनी दबाते हुए फिर पूछा, ‘‘अब कुछ बताएगा भी या यों ही गला फाड़ता रहेगा?’’ जब अतुल ने कालेज में ही पढ़ने वाली नीता के साथ अपनी पहली नजर में ही प्यार हो जाने का किस्सा सुनाया तो बंधु हंसने लगा और हंसतेहंसते बोला, ‘‘यार, तू इसे पहली नजर क्यों कह रहा है? मुझे तो लगता है यह शायद तेरी 26वीं नजर वाला प्यार है. एमए में हम दोनों को साथ पढ़ते हुए अभी सिर्फ एक साल ही बीता है, लेकिन इन 12 महीनों में तेरी नजरें 25 युवतियों से तो पहली नजर वाला प्यार कर ही चुकी हैं.

अपनी पहली नजर के प्यार की यों मखौल उड़ता देख अतुल चिढ़ सा गया, बोला, ‘‘मैं सब समझता हूं, तुझ से तो कुछ होता नहीं, बस, बैठाबैठा मेरी तरक्की देख कर जलता रहता है.’’ दोस्त को मनाते हुए बंधु बोला,’’ यार, तू तो नाराज हो रहा है. अरे, मैं क्यों तेरी तरक्की से जलने लगा, मैं तो चाहता हूं कि तू और तरक्की करे. लेकिन जिसे तू प्यार कह रहा है वह प्यार न हो कर मात्र आकर्षण है.’’

बंधु की बात बीच में ही काटता हुआ अतुल बोला, ‘‘यार, तेरी हर समय यह लैक्चरबाजी मुझे पसंद नहीं. अरे, दिलों की बात तू क्या जाने? नीता और मैं दोनों एकदूसरे को कितना चाहने लगे हैं, हम शादी भी करेंगे. तब तेरा मुंह बंद हो जाएगा.’’ कुछ दिनों बाद अतुल के नीता से चल रहे प्रेमप्रसंग का वही अंत हुआ जो उस के पिछले 25 का हुआ था. क्या सच में पहली नजर का प्यार प्रेमियों के अंदर पनपता है? अगर पहली नजर वाला प्यार उत्पन्न होता है तो कुछ समय बाद प्यार से लहराता दिल अचानक सूख क्यों जाता है.

विपरीत सैक्स के प्रति अपार आकर्षण पहली नजर में होने वाला प्यार काफी हद तक यौनाकर्षण से जुड़ा होता है. लड़केलड़कियां एकदूसरे से विपरीत सैक्स के कारण अपार आकर्षण अनुभव करने लगते हैं. उस आकर्षण को ही वे सच्चा प्यार समझने लगते हैं. वास्तव में यह प्यार नहीं होता. यह तो मात्र एक आकर्षण है, जो विपरीत सैक्स के बीच स्वाभाविक रूप से होता है.

विपरीत सैक्स की आपस में बहुत ज्यादा निकटता से कभीकभी प्यार होने जैसी गलतफहमी होने लगती है. 15 वर्ष की शालू को लगने लगा जैसे वह अपने मास्टर के बिना नहीं जी पाएगी. 25 वर्षीय मास्टरजी उसे घर में सितार सिखाने आते थे. एकांत कमरे में मास्टरजी की समीपता से उसे लगने लगा कि वह मास्टरजी से बहुत प्यार करने लगी है. वह तो अच्छा हुआ कि शालू पर चढ़ा मास्टरजी का आकर्षण सिर चढ़ कर बोलने लगा. रातदिन बेटी के मुंह से मास्टरजी के किस्से सुन कर शालू की मम्मी का माथा ठनका, बात बिगड़ने से पहले ही मम्मी ने संभाल ली. कुछ दिन तो शालू ने मास्टरजी को बहुत मिस किया, लेकिन धीरेधीरे वह मास्टरजी को भूलने लगी. अब तो मास्टरजी को देख कर उस का मन दुखी हो जाता है. वह स्वयं से प्रश्न करती है, आखिर इन बौनेकाले मास्टरजी में ऐसा क्या था जो मैं इन पर लट्टू हो गई थी. विपरीत सैक्स के आकर्षण का समीपता के अलावा और भी कारण हो सकते हैं जो दिल में प्यार पैदा कर देते हैं.

कल्पना के अनुरूप मिल जाना हर लड़का या लड़की की जीवनसाथी के बारे में जरूर कुछ न कुछ कल्पना होती है. कल्पना के अनुरूप कोई भी एक गुण मिल जाने पर प्यार हो जाता है. एक कौन्फ्रैंस में देवेश नागपुर गए थे. वहीं उन्होंने जींसटौप में सजी हंसमुख मीनाक्षी को देखा, तो उन्हें लगा वे उसे अपना दिल ही दे बैठे हैं. एक सप्ताह की कौन्फ्रैंस में 5 दिन दोनों ने साथसाथ बिताए. वहां आए सभी लोगों को भी देवेश और मीनाक्षी के प्रेम को प्रेमविवाह में बदलने का पूरा विश्वास था. लेकिन जाने से 2 दिन पहले की बात है. मीनाक्षी देवेश से मिलने उन के कमरे में आई.

देवेश उस समय चाय बना रहे थे. मीनाक्षी को आया देख कर उन्होंने उस के लिए भी चाय बनाई. 2 कपों में चाय बना कर देवेश ने मेज पर रखी, मीनाक्षी ने चाय उठाई. अपने कप में बाहर की ओर लगी चाय को उस ने रूमाल से नजाकत से पोंछा. देवेश इस उम्मीद में थे कि उन के कप में लगी चाय भी पोंछेगी, लेकिन उस ने उन के कप की ओर ध्यान ही नहीं दिया. चाय पी कर जूठे कपप्लेट वहीं छोड़ कर वह चली गई. देवेश मीनाक्षी के इस व्यवहार से आहत हो गए. मीनाक्षी के प्रति उन के मन में प्यार का छलकता सागर उसी समय सूख गया. यह अवश्य था कि उन की पसंद के अनुसार मीनाक्षी स्मार्ट थी, हंसमुख थी, लेकिन जिसे उन की जरा भी परवाह नहीं, ऐसी जीवनसाथी उन्हें जीवन में क्या सुख देगी.

उसी समय कई दिनों से बढ़ाई प्यार की डोर उन्होंने एक झटके से काट डाली. उस के बाद मीनाक्षी से उन्होंने कोई बात नहीं की. अगले दिन वे नागपुर से कानपुर लौट आए. जब मीनाक्षी की ही समझ में कोई कारण न आया तो औरों की समझ में क्या आता. आखिर सब ने देवेश के जाने के बाद उन्हें धूर्त, मक्कार तथा फ्लर्ट की संज्ञा दी.

अवगुण आकर्षण पर भारी प्यार हो जाने तथा प्यार के टूट जाने के पीछे मुख्य कारण है हमारी पंसद का बिखरी अवस्था में होना. हमारे दिमाग में जहां एक ओर गुणों की लंबीचौड़ी लिस्ट होती है, वहीं अवगुणों की लिस्ट भी मौजूद रहती है. हमारे इच्छित सभी गुणों का एकसाथ मिलना असंभव होता है.

जब किसी से प्यार होता है तो उस प्यार के पीछे हम उस के किसी गुण से आकर्षित हो कर उस से प्यार करते हैं. लेकिन प्यार में नजदीकी बढ़ने के साथ ही अगर कोई बुराई सामने आ जाती है, तो वह प्यार के आकर्षण को वहीं समाप्त कर देती है. एक श्रीमान हैं. उम्र 40 वर्ष के लगभग है. लेकिन अभी तक कुंआरे हैं. दिल हथेली पर लिए घूमते हैं. मौका मिलते ही दिल लड़की को सौंपने में नहीं हिचकिचाते, चाहे बदले में उन्हें जूते ही खाने पड़ें. लेकिन कई लड़कियों से दिल लगाने के बाद भी वे अकेले के अकेले हैं. कारण, एक न एक गुण तो उन्हें हर लड़की का आकर्षित कर ही लेता है. लेकिन प्यार में नजदीक आने के बाद कोई अवगुण उन के शादी के जोश को समाप्त कर देता है.

वैसे, दिल के साथ दिमाग का प्रयोग करने वाले प्रेमियों की संख्या काफी कम होती है. चूंकि प्यार अंधा होता है, इसलिए अवगुणों की ओर तो ध्यान जाता ही नहीं. प्यार में डूबे अकसर प्रेमीप्रेमिका एकदूसरे के अवगुणों के प्रति आंखें मूंद कर प्यार के अंधे होने को सत्य साबित करते हैं. किस की कौन सी अदा कब किस के दिल में

मुग्धा बस से दिल्ली जा रही थी. मुग्धा खिड़की से बाहर का दृश्य निहार रही थी अचानक सिगरेट का धुआं उस की नाक में घुसा. उस ने बुरा सा मुंह बनाते हुए पलट कर देखा. बगल की सीट पर ही बैठा नवयुवक बड़ी मस्ती से सिगरेट के छल्ले निकालनिकाल कर मंत्रमुंग्ध हो, उसे देख रहा था. मुग्धा बुरी तरह झल्लाई, ‘‘आप को कुछ तमीज है.’’ युवक ने सहम कर देखा और फौरन जली हुई सिगरेट अपने जूतों के नीचे मसल डाली. मुग्धा उसे देखती रह गई. अब बाहर के दृश्यों को देखने में उस का मन न लगा. रहरह कर आंखें उसी युवक पर टिक जातीं जो सिगरेट बुझा कर उदास सा बैठा था.

न जाने उस में मुग्धा को क्या लगा कि वह उस युवक के भोलेपन पर मुग्ध हो गई. कुछ देर पहले जितनी बेरुखी से उस ने उसे डांटा था, अब आवाज में उस से दोगुनी मिठास घोलते हुए उस ने युवक से पूछा, ‘‘आप इतनी सिगरेट क्यों पीते हैं?’’ फिर बातचीत का ऐसा सिलसिला चला कि कुछ ही घंटों में वे दोनों एकदूसरे के काफी करीब आ गए. इस घटना के कुछ ही समय बाद दोनों विवाहबंधन में भी बंध गए. ठीक इसी तरह निशा अंगरेजी वाले सर, आनंद की आवाज पर फिदा है. सहेलियों के बीच बैठी हो या परिवार वालों के, उस की बातों का केंद्रबिंदु आनंद सर ही रहते हैं.

‘‘क्या आवाज है उन की. लगता है जैसे कहीं बहुत दूर से आ रही है.’’ जितनी देर आनंद सर कक्षा में पढ़ाते, निशा पढ़ाईलिखाई भूल, मंत्रमुग्ध हो आनंद सर की आवाज के जादू में डूबी रहती. निशा अपने सर की आवाज की दीवानी है तो कक्षा में सब से स्मार्ट दिखने वाली शशि, ग्रामीण कैलाश को देखते न अघाती थी, उस के आकर्षण का केंद्रबिंदु था कैलाश की ठोड्डी में पड़ने वाला गड्ढा. इसी तरह न जाने किस की कौन सी अदा कब किसी के दिल में प्यार की चिनगारी सुलगा दे, यह बतलाना बहुत मुश्किल है.

मैं अपने बौयफ्रेंड को कैसे मनाऊं?

सवाल

मेरा बौयफ्रैंड मेरे साथ सोना चाहता है, पर मुझे पेट से होने का डर लगता है. मुझे उसे मना करना अच्छा नहीं लगता. ऐसे में क्या ठीक है?

जवाब

बौयफ्रैंड को सोने का मौका कतई न दें. आप पेट से हो गईं, तो वह किनारा कर लेगा. सिर्फ बातचीत तक ही सीमित रहें. हमबिस्तरी शादी के बाद ही करें.

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प्यार के बदले सैक्स नहीं

प्यार एक गहरा और खुशनुमा एहसास है. जब किसी से प्यार होने लगता है तो हम शुरुआत में अकसर उस की सकारात्मक चीजें ही देखते हैं. उस समय हमें अपना अच्छाबुरा कुछ समझ नहीं आता और यही वह खुमारी होती है जब हम प्रेमी के प्यार के बदले में उस की हर जायजनाजायज मांग भी पूरी करने लगते हैं. लेकिन कुछ पल ठहर कर एक बार सोच लें कि कहीं आप प्रेमी को प्यार के बदले अपना शरीर तो नहीं सौंप रही हैं. अगर ऐसा है तो संभल जाइए, क्योंकि यह सही नहीं है. यह वक्त सिर्फ प्यार करने का है, सैक्स तो शादी के बाद भी हो सकता है. इस में आखिर इतना उतावलापन और जल्दबाजी क्यों?

प्यार को प्यार ही रहने दें

प्यार एक खूबसूरत एहसास है, इसे दिल से महसूस करें न कि शरीर से. एकदूसरे के साथ समय बिताएं, एकदूसरे को समझें, प्यारभरी बातें करें, भविष्य के सपने बुनें, एकदूसरे की केयर करें, अपनेपन का एहसास साथी के मन में जगाएं, उसे विश्वास दिलाएं कि आप उस के लिए एकदम सही जीवनसाथी साबित होंगे. अपने कैरियर पर ध्यान दें. खुद खुश रहें और साथी को भी खुश रखें. यह वक्त बस यही करने का है बाकी जो भावनाएं हैं उन्हें शादी के बाद के लिए बचा कर रखें.

प्यार में आकर्षण बना रहेगा

अगर आप किसी से प्यार करती हैं और सैक्स नहीं किया है तो सैक्स को ले कर चाह और एक आकर्षण बना रहने के कारण साथी के प्रति खिंचाव हमेशा बना रहेगा, लेकिन एक बार सैक्स हो जाने के बाद कोई नयापन नहीं रहेगा और वह आकर्षण जो आप को एकदूसरे के प्रति खींचता था, खत्म हो जाएगा.

अपराधबोध नहीं होगा

एक बार संभोग करने के बाद उसे बदला नहीं जा सकता. कई बार बाद में पता चलता है कि प्रेमी आप के लिए सही नहीं है तब वक्त से पहले संबंध बना लेने का अपराधबोध होता है. इसलिए जरूरी है कि जब तक पूरी तरह से आश्वस्त न हो जाएं तब तक संबंध न बनाएं.

उत्सुकता बनी रहेगी

जब कोई भी काम समय पर करते हैं तो उस का आनंद ही अलग होता है, लेकिन जब आप सैक्स शादी से पहले ही कर लेते हैं तो इसे ले कर कोई उत्सुकता नहीं रहती. यदि सैक्स न करने से आप की उत्सुकता बनी रहती है तो बेहतर है इसे शादी तक न किया जाए.

यौन रोगों से बचे रहेंगे

सैक्स के प्रति लापरवाही यौन रोग होने का खतरा काफी हद तक बढ़ा देती है. उस समय आप की प्राथमिकताएं शारीरिक आकांक्षाओं को पूरा करना होता है, लेकिन सैक्स करते समय किनकिन सावधानियों का खयाल रखना चाहिए यह बात आप सोचते नहीं हैं और गंभीर बीमारी की गिरफ्त में आ जाते हैं.

सच्चे प्यार में सैक्स का कोई मतलब नहीं

सच्चा प्यार किसी को देखते ही नहीं हो जाता, यह एकदूसरे को जानने और समझने के बाद होता है. सच्चे प्यार में कोई जल्दबाजी नहीं होती, इस में ठहराव होता है. एकदूसरे की आपसी अंडरस्टैंडिंग होती है, एकदूसरे पर भरोसा होता है, एकदूसरे की कद्र होती है. सच्चा प्यार हमेशा के लिए होता है. इस में प्रेमी एकदूसरे से दिल की गहराइयों से जुड़े होते हैं. एकदूसरे के प्रति अपनीअपनी जिम्मेदारियों का एहसास होता है इसलिए उन्हें पता होता है कि सैक्स का सही समय शादी के बाद ही है और ऐसा करने के लिए वे एकदूसरे पर जोर भी नहीं डालते, क्योंकि इस के लिए इंतजार करना भी उन के इसी सच्चे प्यार का एक अहम हिस्सा होता है.

प्रेमी की पहचान करने का सही वक्त

यदि प्रेमी बारबार आप से शारीरिक संबंध बनाने पर जोर दे रहा है तो इस का मतलब उसे आप से ज्यादा इंट्रस्ट संबंध बनाने में है. उसे आप की भावनाओं का खयाल रखते हुए शादी तक इस चीज के लिए सब्र रखना चाहिए, लेकिन अगर वह ऐसा नहीं कर पा रहा है तो या तो उस की नीयत में खोट है या फिर वह आप का साथ निभाने के काबिल ही नहीं है.

सैक्स के नुकसान

बोरियत हो जाएगी

कुछ लोगों के लिए सैक्स ही सबकुछ होता है और जब उन्हें उस की पूर्ति हो जाती है तो उन की सारी इच्छाएं पूरी हो जाती हैं और फिर उन्हें प्रेमिका में कोई रुचि नहीं रहती. उन्हें उस के साथ समय बिताने, घूमने, हंसीमजाक करने में बोरियत लगने लगती है. ऐसे में रिश्ते का लंबे समय तक खिंच पाना मुश्किल हो जाता है.

प्रैग्नैंट हो गईं तो मुश्किल

बाजार में कई तरह के गर्भनिरोधक उपलब्ध हैं, लेकिन कई बार वे भी पूरी तरह से सक्षम नहीं होते. कई बार आप को पता भी नहीं चलता कि आप गर्भवती हैं और जब पता चलता है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है. इस के बाद मानसिक परेशानी का ऐसा दौर शुरू होता है जो आप को अंदर तक तोड़ कर रख देता है.

शादी न हुई तो दिक्कत

आज सारी परिस्थितियां आप के पक्ष में हैं और आप को लग रहा है कि आप के प्रेमी से ही आप की शादी होगी, लेकिन समय बदलते देर नहीं लगती, हो सकता है कल परिस्थितियां कुछ और हों. आप दोनों की किन्हीं कारणों से शादी न हो पाए, तो फिर क्या करेंगी?

जिस के साथ आप की शादी होगी अगर उस को आप के शादी से पहले के संबंधों के बारे में पता चल गया तो जिंदगी दूभर हो जाएगी या फिर हमेशा आप डरती रहेंगी कि कहीं यह बात खुल गई तो? ऐसे में आप शादी के बाद के खूबसूरत पलों को ढंग से ऐंजौय नहीं कर पाएंगी.

रिश्ते से बाहर आना मुश्किल

अगर आप अपने बौयफ्रैंड के साथ बिना संबंध बनाए डेट कर रहे हैं और आप को लगता है कि आप दोनों इस रिश्ते को आगे बढ़ाने में सहमत नहीं हैं तो रिश्ता खत्म करना आप के लिए काफी आसान होता है, लेकिन एक बार शारीरिक संबंध बन जाने के बाद उस रिश्ते से बाहर आना भावनात्मक और सामाजिक स्तर पर बहुत कठिन हो जाता है.

मलाल न हो

आप जिस व्यक्ति के साथ संबंध बना रही हैं वह आप के लिए काफी महत्त्वपूर्ण होना चाहिए. केवल शारीरिक जरूरतें पूरी करने के लिए संबंध बनाना सही नहीं है.

ब्लैकमेलिंग का शिकार न हों

कई बार देखने में आता है कि जिस पर हम सब से ज्यादा भरोसा करते हैं वही हमारा विश्वास तोड़ता है. आएदिन अखबार ऐसी सुर्खियों से भरे रहते हैं कि प्यार करने के बाद सैक्स किया, फिर धोखा दिया. अकसर प्रेमी इस तरह की वारदात को अंजाम देते हैं इसलिए अगर बौयफ्रैंड धोखेबाज निकला और उस ने आप का कोई वीडियो बना लिया और फिर इस के जरिए आप को ब्लैकमेल करने लगा तो फिर क्या होगा?

माना कि आप का बौयफ्रैंड ऐसा नहीं है पर यह काम उस का कोई दोस्त या कोई अनजान भी तो कर सकता है, तब क्या करेंगी? किस से मदद मांगेंगी? इसलिए ऐसा काम करना ही क्यों, जिसे करने के बाद परेशानी भुगतनी पड़े. इसलिए तमाम बातों को ध्यान में रख कर ही आगे कदम बढ़ाएं अन्यथा ताउम्र इस का दंश झेलना पड़ेगा.      

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

बच्चों को परिवार से जोड़ना है तो रखें इंटरनैट से दूर

कुछ वर्षों से सोशल मीडिया यानी सोशल नैटवर्किंग साइट्स ने लोगों के जीवन में एक खास जगह तो बना ली है परंतु इस का काफी गलत प्रभाव पड़ रहा है. इस में कोई शक नहीं कि डिजिटल युग में इंटरनैट के प्रयोग ने लोगों की दिनचर्या को काफी आसान बना दिया है. पर इस का जो नकारात्मक रूप सामने आ रहा है वह दिल दहलाने वाला है.

जानकारों का कहना है कि इंटरनैट और सोशल मीडिया की लत से लोग इस कदर प्रभावित हैं कि अब उन के पास अपना व्यक्तिगत जीवन जीने का समय नहीं रहा.

सोशल मीडिया की लत रिश्तों पर भारी पड़ने लगी है. बढ़ते तलाक के मामलों में तो इस का कारण माना ही जाता है, इस से भी खतरनाक स्थिति ब्लूव्हेल और हाईस्कूल गैंगस्टर जैसे गेम्स की है. नोएडा में हुए दोहरे हत्याकांड की वजह हाईस्कूल गैंगस्टर गेम बताया गया है. जानलेवा साबित हो रहे इन खेलों से खुद के अलावा समाज को भी खतरा है. अभिभावकों का कहना है कि परिजनों के समक्ष बच्चों को वास्तविक दुनिया के साथ इंटरनैट से सुरक्षित रखना भी एक चुनौती है. इस का समाधान रिश्तों की मजबूत डोर से संभव है. वही इस आभासी दुनिया के खतरों से बचा सकती है.

पहला केस : दिल्ली के साउथ कैंपस इलाके के नामी स्कूल में एक विदेशी नाबालिग छात्र ने अपने नाबालिग विदेशी सहपाठी पर कुकर्म का आरोप लगाया. दोनों ही 5वीं क्लास में पढ़ते हैं.

दूसरा केस : 9वीं क्लास के एक छात्र ने हाईस्कूल गैंगस्टर गेम डाउनलोड किया. 3-4 दिनों बाद जब यह बात उस के एक सहपाठी को पता चली तो उस ने शिक्षकों और परिजनों तक मामला पहुंचा दिया. परिजनों ने भी इस बात को स्वीकार किया कि बच्चे के व्यवहार में काफी दिनों से उन्हें परिवर्तन दिखाई दे रहा था. समय रहते सचेत होने पर अभिभावक और शिक्षकों ने मिल कर बच्चे की मनोस्थिति को समझा और उसे इस स्थिति से बाहर निकाला.

तीसरा केस : 12वीं कक्षा के एक छात्र की पिटाई 11वीं में पढ़ रहे 2 छात्रों ने इसलिए की क्योंकि वह उन की बहन का अच्छा दोस्त था. यही नहीं, उसे पीटने वाले दोनों भाई विशाल और विक्की उसे जान से मारने की धमकी भी दे चुके थे और ऐसा उन्होंने इंटरनैट से प्रेरित हो कर किया.

चौथा केस : 7वीं कक्षा की एक छात्रा ने मोबाइल पर ब्लूव्हेल गेम डाउनलोड कर लिया. उस में दिए गए निर्देश के मुताबिक उस ने अपने हाथ पर कट लगा लिया. उस की साथी छात्रा ने उसे देख लिया और शिक्षकों को पूरी बात बता दी. कहने के बावजूद छात्रा अपने परिजनों को स्कूल नहीं आने दे रही थी. दबाव पड़ने पर जब परिजनों को स्कूल बुलाया गया तो पता चला कि घर पर भी उस का स्वभाव आक्रामक रहता है. इस के बाद काउंसलिंग कर के उस को गलती का एहसास कराया गया.

एक छात्रा के अनुसार, ‘‘पढ़ाई के लिए हमें इंटरनैट की जरूरत पड़ती है. लगातार वैब सर्फिंग करने से कई तरह की साइट्स आती रहती हैं. यदि हमारे मातापिता साथ होंगे तो हमें अच्छेबुरे का आभास करा सकते हैं. इसलिए हम जैसे बच्चों के पास पापामम्मी या दादादादी का होना जरूरी है.’’

एक अभिभावक का कहना है, ‘‘डिजिटल युग में अब ज्यादातर पढ़ाई इंटरनैट पर ही निर्भर होने लगी है. छोटेछोटे बच्चों के प्रोजैक्ट इंटरनैट के माध्यम से ही संभव हैं. आवश्यकता पड़ने पर उन्हें मोबाइल फोन दिलाना पड़ता है. बहुत सी बातों की तो आप और हमें जानकारी भी नहीं होती. कब वह गलत साइट खोल दे, यह मातापिता के लिए पता करना बड़ा मुश्किल होता है.’’

एक स्कूल प्रिंसिपल का कहना है,  ‘‘एकल परिवार की वजह से बच्चों का आभासी दुनिया के प्रति आकर्षण बढ़ रहा है. यदि बच्चे संयुक्त परिवार में रहते तो वे विचारों को साझा कर लेते. अभिभावकों को उन की गतिविधियों और व्यवहार पर नजर रखनी चाहिए. हम ने अपने स्कूल में एक सीक्रेट टीम बनाई है जो बच्चों पर नजर रखती है. 14-15 साल के बच्चों में भ्रमित होने के आसार ज्यादा रहते हैं.’’

अपराध और गेम्स

इंटरनैट पर इन दिनों कई ऐसे खतरनाक गेम्स मौजूद हैं जिन्हें खेलने की वजह से बच्चे अपराध की दुनिया में कदम रख रहे हैं. इस का सब से ज्यादा असर बच्चों पर पड़ रहा है. साइबर सैल की मानें तो विदेशों में बैठे नकारात्मक मानसिकता के लोग ऐसे गेम्स बनाते हैं. इस के बाद वे इंटरनैट के माध्यम से सोशल मीडिया पर गेम्स का प्रचारप्रसार कर बच्चों को इस का निशाना बनाते हैं.

साइबर सैल में कार्यरत एक साइबर ऐक्सपर्ट ने बताया कि हाईस्कूल गैंगस्टर और ब्लूव्हेल जैसे गेम्स से 13 से 18 साल के बच्चों को सब से ज्यादा खतरा है. इस उम्र में बच्चे अपरिपक्व होते हैं. इन को दुनियाभर के बच्चों में स्पैशल होने का एहसास कराने का लालच दे कर गेम खेलने के लिए मजबूर किया जाता है. गेम खेलने के दौरान बच्चों से खतरनाक टास्क पूरा करने के लिए कहा जाता है. अपरिपक्व होने के कारण बच्चे शौकशौक में टास्क पूरा करने को तैयार हो जाते हैं. वे अपना मुकाबला गेम खेलने के दौरान दुनिया के अलगअलग देशों के बच्चों से मान रहे होते हैं. गेम खेलने के दौरान वे सहीगलत की पहचान नहीं कर पाते. गेम के दौरान बच्चों में जीत का जनून भर कर उन से अपराध करवाया जाता है.

एक सर्वेक्षण में शामिल 79 प्रतिशत बच्चों ने कहा कि इंटरनैट पर उन का अनुभव बहुत बार नकारात्मक रहा है. 10 में से 6 बच्चों का कहना था कि इंटरनैट पर उन्हें अजनबियों ने गंदी तसवीरें भेजीं, किसी ने उन्हें चिढ़ाया इसलिए वे साइबर क्राइम के शिकार हुए.

इन औनलाइन घटनाओं का वास्तविक जीवन में भी गहरा प्रभाव पड़ता है. इंटरनैट पर दी गई व्यक्तिगत जानकारी का दुरुपयोग होना, किसी विज्ञापन के चक्कर में धन गंवाना आदि बालमन पर गहरा प्रभाव छोड़ते हैं.

मानसिक विकारों के शिकार

सर्वेक्षण की रिपोर्ट के मुताबिक, सोशल नैटवर्किंग साइट्स पर अपना खाता खोलने वाले 84 प्रतिशत बच्चों का कहना था कि उन के साथ अकसर ऐसी अनचाही घटनाएं होती रहती हैं जबकि सोशल नैटवर्किंग साइट्स पर सक्रिय न रहने वाले बच्चों में से 58 फीसदी इस के शिकार होते हैं.

बाल मनोविज्ञान के जानकारों के अनुसार, आज के बच्चे बहुत पहले ही अपनी औनलाइन पहचान बना चुके होते हैं. इस समय इन की सोच का दायरा बहुत छोटा रहता है और इन में खतरा भांपने की शक्ति नहीं रहती. उन का कहना है कि ऐसी स्थिति में बच्चों को अपने अभिभावक, शिक्षक या अन्य आदर्श व्यक्तित्व की जरूरत होती है जो उन्हें यह समझाने में मदद करें कि उन्हें जाना कहां है, क्या कहना है, क्या करना और कैसे करना है. लेकिन इस से भी ज्यादा जरूरी है यह जानना कि उन्हें क्या नहीं करना चाहिए.

सोशल नैटवर्किंग साइट्स का एक और कुप्रभाव बच्चों का शिक्षक के प्रति बदले नजरिए में दिखता है. कई बार बच्चों के झूठ बोलने की शिकायत मिलती है. 14 साल के बच्चों द्वारा चोरी की भी कई शिकायतें बराबर मिल रही हैं. मुरादाबाद के संप्रेषण गृह के अधीक्षक सर्वेश कुमार ने बताया, ‘‘पिछले 2 वर्षों के दौरान मुरादाबाद और उस के आसपास के इलाकों से लगभग 350 नाबालिगों को गिरफ्तार कर संप्रेषण गृह भेजा गया है. इन में से ज्यादा नाबालिग जमानत पर बाहर हैं लेकिन 181 बच्चे अभी संप्रेषण में हैं.’’

आक्रामक होते बच्चे

मनोचिकित्सक डाक्टर अनंत राणा के अनुसार, पहले मातापिता 14 साल से ज्यादा उम्र के बच्चों को काउंसलिंग के लिए लाते थे, लेकिन आज के दौर में

8 साल की उम्र के बच्चों की भी काउंसलिंग की जा रही है. अपराध की दुनिया में कदम रखने वाले बच्चे ज्यादातर एकल परिवार से ताल्लुक रखते हैं. ऐसे परिवारों में मातापिता से बच्चों की संवादहीनता बढ़ रही है, जिस वजह से बच्चे मानसिक विकारों के शिकार हो रहे हैं. ऐसे में वे अपने पर भी हमला कर लेते हैं. काउंसलिंग के दौरान बच्चे बताते हैं कि परिजन अपनी इच्छाओं को उन पर मढ़ देते हैं. इस के बाद जब बच्चे ठीक परफौर्मेंस नहीं दे पाते तो उन्हें परिजनों की नाराजगी का शिकार होना पड़ता है. ऐसे हालात में ये आक्रामक हो जाते हैं.

8 से 12 साल के बच्चों की काउंसलिंग के दौरान ज्यादातर परिजन बताते हैं कि उन के बच्चों को अवसाद की बीमारी है. उन का पढ़ाई में मन नहीं लगता. टोकने पर वे आक्रामक हो जाते हैं और इस से अधिक उम्र के बच्चे तो सिर्फ अपनी दुनिया में ही खोए रहते हैं.

साइबर सैल की मदद लें

आप का बच्चा किसी खतरनाक गेम को खेल रहा है या उस की गतिविधियां मोबाइल पर मौजूद इस तरह के गेम की वजह से संदिग्ध लग रही हैं, तो तुरंत साइबर विशेषज्ञ से सलाह ले सकते हैं. फोन पर भी आप साइबर सैल की टीम से संपर्क कर सकते हैं. इस के लिए गूगल एरिया के साइबर सैल औफिस के बारे में जानकारी लें. वहां साइबर सैल विशेषज्ञ के नंबर भी मिल जाएंगे.

ध्यान दें परिजन

–      परिजन बच्चों को समय दें और उन से भावनात्मक रूप से मजबूत रिश्ता बनाएं.

–      बच्चे की मांग अनसुनी करने से पहले उस की वजह जानें.

–      बच्चों के दोस्तों से भी मिलें ताकि बच्चे की परेशानी की जानकारी हो सके.

–      बच्चों को अच्छे व बुरे का ज्ञान कराएं.

–      बच्चों को व्यायाम के लिए भी उकसाएं.

–      बच्चों से अपनी अपेक्षाएं पूरी करने के बजाय उन की काबिलीयत के आधार पर उन से उम्मीद रखें.

 

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