शरणागत: कैसे तबाह हो गई डा. अमन की जिंदगी- भाग 1

आईसीयू में लेटे अमन को जब होश आया तो उसे तेज दर्द का एहसास हुआ. कमजोरी की वजह से कांपती आवाज में बोला, ‘‘मैं कहां हूं?’’

पास खड़ी नर्स ने कहा, ‘‘डा. अमन, आप अस्पताल में हैं. अब आप ठीक हैं. आप का ऐक्सिडैंट हो गया था,’’ कह कर नर्स तुरंत सीनियर डाक्टर को बुलाने चली गई.

खबर पाते ही सीनियर डाक्टर आए और डा. अमन की जांच करने लगे. जांच के बाद बोले, ‘‘डा. अमन गनीमत है जो इतने बड़े ऐक्सिडैंट के बाद भी ठीक हैं. हां, एक टांग में फ्रैक्चर हो गया है. कुछ जख्म हैं. आप जल्दी ठीक हो जाएंगे. घबराने की कोई बात नहीं.’’

डाक्टर के चले जाने के बाद नर्स ने डा. अमन को बताया कि उन के परिवार वालों को सूचित कर दिया गया है. वे आते ही होंगे. फिर नर्स पास ही रखे स्टूल पर बैठ गई. अमन गहरी सोच में पड़ गया कि अपनी जान बच जाने की खुशी मनाए या अपने जीवन की बरबादी का शोक मनाए?

कमजोरी के कारण उस ने अपनी आंखें मूंद लीं. एक डाक्टर होने के नाते वह यह अच्छी तरह समझता था कि इस हालत में दिमाग और दिल के लिए कोई चिंता या सोच उस की सेहत पर गलत असर डाल सकती है पर वह क्या करे. वह भी तो एक इंसान है. उस के सीने में भी एक बेटे, एक भाई और पति का दिल धड़कता है. इन यादों और बातों से कहां और कैसे दूर जाए?

आज उसे मालूम चला कि एक डाक्टर हो कर मरीज को हिदायत देना कितना आसान होता है पर एक सामान्य मरीज बन कर उस का पालन करना कितना कठिन.

डा. अमन के दिलोदिमाग पर अतीत के बादल गरजने लगे… डा. अमन को याद आया अपना वह पुराना जर्जर मकान जहां वह अपने मातापिता और 2 बहनों के साथ रहता था. उस के पिता सरकारी क्लर्क थे. वे रोज सवेरे 9 बजे अपनी पुरानी साइकिल पर दफ्तर जाते और शाम को 6 बजे थकेहारे लौटते.

उस की मां बहुत ही सीधीसादी महिला थीं. उस ने उन्हें हमेशा घर के कामों में ही व्यस्त देखा, कभी आराम नहीं करती थीं. वे तीनों भाईबहन पढ़नेलिखने में होशियार थे. जैसे ही बहनों की पढ़ाई खत्म हुई उन की शादी कर दी गई. पिताजी का आधे से ज्यादा फंड बहनों की शादी में खर्च हो गया. उस के पिता की इच्छा

थी कि वे अपने बेटे को डाक्टर बनाएं. इस इच्छा के कारण उन्होंने अपने सारे सुख और आराम त्याग दिए.

वे न तो जर्जर मकान को ही ठीक करवा पाए और न ही स्कूटर या कार ले पाए. बरसात में जब जगहजगह से छत से पानी टपकने लगता तो मां जगहजगह बरतन रखने लगतीं. ये सब देख कर उस का मन बहुत दुखता था. वह सोचता कि क्या करना ऐसी पढ़ाई को जो मांबाप का सुखचैन ही छीन ले पर जब वह डाक्टरी की पढ़ाई कर रहा था तब पिता के चेहरे पर एक अलग खुशी दिखाई देती. उसे देख उसे बड़ा दिलासा मिलता था.

तभी दरवाजा खुलने की आवाज उसे वर्तमान में लौटा लाई. उस के मातापिता और बहनें आई थीं. पिता छड़ी टेकते हुए आ रहे थे. मां को बहनें पकड़े थीं. उस का मन घबराने लगा. सोचने लगा कि मैं कपूत उन के किसी काम न आया. मगर वे आज भी उस के बुरे समय में उस के साथ खड़े थे. जिसे सब से पहले यहां पहुंचना चाहिए था उस का कोसों दूर तक पता न था.

काश वह एक पक्षी होता, चुपके से उड़ जाता या कहीं छिप जाता. अपने मातापिता का सामना करने की उस की हिम्मत नहीं हो रही थी. उस ने आंखें बंद कर लीं. मां का रोना, बहनों का दिलासा देना, पिता का कुदरत से गुहार लगाना सब उस के कानों में पिघले सीसे की तरह पड़ रहा था.

तभी नर्स ने आ कर सब को मरीज की खराब हालत का हवाला देते हुए बाहर जाने को कहा. मातापिता ने अमन के सिर पर हाथ फेरा तो उसे ऐसे लगा मानो ठंडी वादियों की हवा उसे सहला रही हो. धीरेधीरे सब बाहर चले गए.

अमन फिर अतीत के टूटे तार जोड़ने लगा…

जैसे ही अमन को डाक्टर की डिग्री मिली घर में खुशी की लहर दौड़ गई. मातापिता खुशी से फूले नहीं समा रहे थे. बहनें भी खुशी से बावली हुई जा रही थीं. 2 दिन बाद ही इन खुशियों को दोगुना करते हुए एक और खबर मिली. शहर के नामी अस्पताल ने उसे इंटरव्यू के लिए बुलाया था. 2 सप्ताह बाद अमन की उस में नौकरी लग गई. उस के पिता की बहुत इच्छा थी

कि वह अपना क्लीनिक भी खोले. उस ने पिता की इच्छा पर अपनी हामी की मुहर लगा दी. वह अस्पताल में बड़े जोश से काम करने लगा.

अभी अमन की नौकरी लगे 1 साल भी नहीं हुआ था कि अचानक उस की जिंदगी में एक ऐसा तूफान आया कि उस ने उस के जीवन की दिशा ही बदल दी.

दोपहर के लंच के बाद अमन डा. जावेद के साथ बातचीत कर रहा था. डा. जावेद सीनियर, अनुभवी और शालीन स्वभाव के थे. वे अमन की मेहनत और लगन से प्रभावित हो कर उसे छोटे भाई की तरह मानने लगे थे.

उसी समय एक घायल लड़की को अस्पताल लाया गया. वह कालेज से आ रही थी कि उस की साइकिल का बैलेंस बिगड़ गया और वह बुरी तरह जख्मी हो गई. डा. जावेद, अमन और अन्य डाक्टर उस के इलाज में जुट गए. उसे काफी चोटें आई थीं. एक टांग में फ्रैक्चर भी हो गया था. लड़की के मातापिता बहुत घबराए हुए थे. उन्हें दिलासा दे कर बाहर वेटिंग हौल में बैठने को कहा. लड़की के इलाज का जिम्मा डा. अमन को सौंपा गया.

लड़की बेहोश थी. उस के होश में आने का वहीं बैठ कर इंतजार करने लगा. लड़की बहुत सुंदर थी. तीखे नैननक्श, गोरा रंग, लंबे बाल. उस के होश में आने पर उस के मातापिता को बुलाया गया. बातोंबातों में पता चला कि लड़की का नाम नीरा है. बीए फाइनल का आखिरी पेपर दे कर लौट रही थी. सहेली के साथ बातें करती आ रही थी. तभी ऐक्सिडैंट हो गया.

आगे पढ़ें- अमन ने उन्हें धीरज बंधाते हुए…

शरणागत: कैसे तबाह हो गई डा. अमन की जिंदगी- भाग 4

2 महीने में ही नीरा अपनी दिनचर्या से ऊब गई. उसे अपने कालेज के लुभावने दिनों की याद आने लगी. कभी खाना बनाने का भी मूड न करता. कभी दालसब्जी कच्ची रह जाती, कभी रोटी जल जाती. उस ने अमन के सामने आगे पढ़ाई करने का प्रस्ताव रखा जिसे उस ने तुरंत मान लिया और घर के कामकाज के लिए एक नौकरानी का इंतजाम कर दिया.

अमन की सादगी का फायदा उठाते हुए नीरा ने अपने परिवार से भी मोबाइल के जरीए टूटे रिश्ते जोड़ लिए. अब वह कभीकभी कालेज के बाद अपने मायके भी जाने लगी. अमन इन सब बातों से बेखबर था. वह जीजान से नीरा को खुश रखने की कोशिश करता.

कुछ समय बाद अमन को लगा कि नीरा में बहुत बदलाव आ गया है. वह कालेज से आ कर या तो लैपटौप पर चैट करती है या फिर मोबाइल पर धीरेधीरे बातें करती रहती है. अमन कब आया, कब गया, खाना खाया या नहीं उसे इस बात का कोई ध्यान नहीं रहता. उस ने सबकुछ नौकरानी पर छोड़ दिया था.

अमन अंदर ही अंदर घुटने लगा. उस ने पाया कि आजकल नीरा बातबात में किसी राहुल नाम के प्रोफैसर का जिक्र करती है जैसे कितना अच्छा पढ़ाते हैं, बहुत बड़े स्कौलर हैं, देखने में भी बहुत स्मार्ट हैं आदिआदि.

अमन ने कहा, ‘‘भई, ऐसे सभी गुणों से पूर्ण व्यक्ति से हम भी मिलना चाहेंगे. कभी उन्हें घर बुलाओ.’’

यह सुन कर नीरा कुछ सकपका सी गई. समय बीतता गया. नीरा की लापरवाहियां बढ़ती ही जा रही थीं. कभी कपड़े धुले न होते, तो कभी घर अस्तव्यस्त होता. अमन ने दबे स्वर में आगाह भी किया. पर नीरा ने कोई ध्यान न दिया.

नीरा रात को भी कभी सिरदर्द, तो कभी थका होने का बहाना कर जल्दी सो जाती. अमन की नींदें गायब होने लगीं. उसे ऐसा लगने लगा कि वह ठगा गया है. अपनी शरण में आई लड़की का मान रखने के लिए उस ने अपने घरबार, मांबाप, बहनों सब को छोड़ दिया पर उसे क्या मिला? यही सोचतेसोचते पूरी रात करवटें लेते बीत जाती.

वैसे तो अमन के जीवन में चिंताओं और तनाव के बादल हमेशा के लिए छा गए थे, परंतु एक दिन तो ऐसा तूफान आया कि उस के जीवन का सारा सुखचैन उड़ा ले गया.

एक दिन डा. जावेद के साथ अमन एक होटल में गया. होटल में कौफी का और्डर दे कर वे बैठे ही थे कि अचानक हौल के कोने में बैठे एक जोड़े पर अमन की निगाह रुक गई. एक गोरा सुंदर सा युवक अपनी महिला साथी के हाथों को पकड़े बैठा था. कभी बातें करता तो कभी ठहाके लगाता.

अचानक उस युवक ने उस युवती के हाथों को चूम लिया. युवती जोर से खिलखिला कर हंस पड़ी. उस के हंसते ही सारे राज खुल गए. दरअसल युवती और कोई नहीं नीरा ही थी. ध्यान से देखा तो उस की साड़ी भी पहचान में आ गई. यही साड़ी तो आज कालेज जाते समय नीरा पहन कर गई थी.

अमन का चेहरा सफेद पड़ गया. यह देख कर डा. जावेद ने भी पलट कर उधर देखा, वे भी नीरा को पहचान गए. होटल में कुछ अनहोनी न हो जाए, इसलिए वे गुस्से में कांपते अमन को लगभग खींचते हुए होटल से बाहर ले आए. लड़खड़ाती टांगों से किसी तरह अमन कार में बैठ गया. गुस्से से वह अभी तक कांप रहा था.

डा. जावेद उसे अपने घर ले आए. अमन के दिल पर गहरी चोट लगी थी. वह डा. जावेद से आंखें नहीं मिला पा रहा था. जब वह थोड़ा नौर्मल हुआ तो डा. जावेद ने बड़े भाई की तरह उस की पीठ पर हाथ फेरते हुए समझाया, ‘‘अमन, नीरा से मैं खुद बात करूंगा. उस ने ऐसा क्यों किया, सब कुछ पूछूंगा. अमन लव मैरिज में दोनों ओर से पूर्ण समर्पण होना जरूरी होता है. 1 महीने में तुम नीरा को कितना जान पाए? और नीरा तुम्हें कितना जान पाई? बस यहीं पर तुम अपने जीवन की सब से बड़ी भूल कर बैठे. मैं ने तुम्हें आगाह भी किया था पर तब तुम पर शरणागत का मान रखने, रक्षा करने का भूत सवार था.’’

अमन लज्जित सा उठ खड़ा हुआ. डा. जावेद अमन को उस के घर तक पहुंचा आए.

अमन बड़ी बेचैनी से नीरा का इंतजार करने लगा. वह अंदर ही अंदर सुलग रहा था. उस ने सोच लिया कि आज नीरा से आरपार की बात करेगा. बहुत धोखा दे चुकी है.

नीरा रोज की तरह दोपहर बाद घर आई. अमन को घर में देख हैरान हो गई. बोली, ‘‘अरे, आज बहुत थक गई. तुम खाना खा लेना. मैं नहा कर आती हूं.’’

अमन के सब्र का बांध टूट गया. उस ने नीरा से दोटूक पूछा, ‘‘तुम आज कालेज के बाद कहीं गई थी?’’

नीरा सफेद झूठ बोल गई, ‘‘अरे, आज तो सभी प्रोफैसर आए थे. एक के बाद एक लैक्चर होते रहे.’’

अमन का क्रोध बढ़ता जा रहा था. नीरा उठ कर जाने लगी तो अमन ने उस का हाथ पकड़ लिया. पूछा, ‘‘होटल आकाशदीप में कौन बैठा था तुम या तुम्हारी कोई हमशक्ल?’’

यह सुन कर नीरा घबरा गई. बौखला कर चिल्लाने लगी, ‘‘अच्छा तुम मेरी जासूसी भी करने लगे हो? तुम्हारी सोच इतनी ओछी है, मैं सोच भी नहीं सकती थी. प्रोफैसर के साथ कौफी पीने चली गई तो कौन सा आसमान गिर गया?’’

‘‘अच्छा, कौफी पीतेपीते प्रोफैसर हाथ चूमने लगते हैं?’’ अमन बोला.

चोरी पकड़ी जाने पर नीरा गुस्से में चीजें उठाउठा कर पटकने लगी. वह चिल्लाते चिल्लाते बोली, ‘‘मैं ने भी कितने संकीर्ण विचारों वाले व्यक्ति से शादी कर ली… वास्तव में तुम मेरे योग्य नहीं हो. मैं ने जल्दबाजी में गलत व्यक्ति को चुन लिया,’’ कह झटके से उठी और अपने कुछ कपड़े एक बैग में डाल खट से दरवाजा खोल बाहर निकल गई.

अमन कुछ देर तक तो बुत बना बैठा रहा, फिर अचानक उसे होश आया तो बाइक उठा कर नीरा को देखने निकल गया.

नीरा की बातें अमन के दिमाग पर ऐसे लग रही थीं जैसे कोई हथौड़ों से वार कर रहा हो. वह बाइक चला रहा था पर उस का ध्यान कहीं और था. अयोग्य व्यक्ति, संकीर्ण विचारों वाला, जासूसी करना, छोटी सोच यही बातें उस के दिमाग से टकरा रही थीं. तभी उस की बाइक सामने से तेजी से आ रही कार से जा टकराई और वह छिटक कर दूर जा गिरा. उस के बाद क्या हुआ उसे नहीं पता. अब अस्पताल में होश आया.

अचानक किसी आवाज से अमन की तंद्रा टूटी तो उस ने देखा सामने उस की बहन और डा. जावेद खड़े थे. डा. जावेद ने उसे तसल्ली देते हुए कहा, ‘‘अमन, गनीमत है इतना बड़ा ऐक्सिडैंट होने पर भी तुम खतरे से बाहर हो… अब तुम नीरा के बारे में सोच कर परेशान न होना. अगर उसे अपनी गलती का एहसास हो गया तो वह माफी मांग कर लौट आएगी और अगर ऐसा नहीं करती तो समझ लो वह तुम्हारे योग्य ही नहीं है. तुम उसे उस के हाल पर छोड़ दो. बस जल्दी ठीक हो जाओ.’’

बहन ने भी डा. जावेद के सुर में सुर मिलाया. बोली, ‘‘हां अमन, अभी तो तुम्हें घर भी ठीक करवाना है, क्लीनिक भी खोलना है.’’

यह सुन कर अमन तेज दर्द में भी मुसकरा दिया.

बड़बोला: विपुल से आखिर क्यों परेशान थे लोग

शरणागत: कैसे तबाह हो गई डा. अमन की जिंदगी- भाग 3

एक दिन डा. अमन ने नीरा को समझाया, ‘‘खुदगर्ज लोगों के लिए क्यों अपने तन और मन को कष्ट दे रही हैं, जो एक दुर्घटना की खबर सुन कर आप से दूर हो गए. अच्छा हुआ ऐसे खुदगर्ज लोगों से आप का रिश्ता पक्का न हुआ.’’

इस के बाद नीरा अमन को अपना मित्र समझने लगी. वह अमन के आने का बेसब्री से इंतजार करती. अब वह अमन को अपने नजदीक पाने लगी थी. अमन अपने फुरसत के लमहे नीरा के कमरे में बिताता. राजनीति, सामाजिक समस्याओं, फिल्मों, युवा पीढ़ी आदि के बारे में खुल कर बहस होती. अमन का ऐसे रोजरोज बेझिझक आना और बातें करना नीरा के दिल पर लगी चोट को कम करने लगा था.

प्लस्तर खुलने में अब कुछ ही दिन बचे थे. नीरा के घर सूचना भेज दी गई थी. अमन जब नीरा के कमरे में गया तो वह एकाएक अमन से पूछने लगी, ‘‘क्या आप मुझे कोई छोटीमोटी नौकरी दिलवा सकते हैं?’’

अमन ने कारण पूछा तो वह बोली, ‘‘मैं अब घर नहीं जाऊंगी.’’

अमन यह सुन कर हैरान रह गया. अमन ने बहुत समझाया कि छोटीछोटी बातों पर घर नहीं छोड़ देते हैं, पर नीरा ने एक न सुनी.

वह बोली, ‘‘डा. अमन, मैं सिर्फ आप पर भरोसा करती हूं, आप को अपना समझती हूं. आप मेरे लिए कुछ कर सकते हैं? मैं इस समय आप की शरण में आई हूं.’’

अमन गहरी उलझन में पड़ गया. फिर कुछ सोच कर बोला, ‘‘आप का बीए का रिजल्ट तो अभी आया नहीं है. हां, कुछ ट्यूशन मिल सकती है, परंतु तुम रहोगी कहां?’’

यह सुन कर नीरा बेबसी से रो पड़ी. घर जाना नहीं चाहती थी और कोई ठौरठिकाना था नहीं. अमन उसे प्यार से समझाने लगा पर वह जिद पर अड़ गई. बोली, ‘‘मैं तो आप की शरण में हूं. आप मुझे अपना लो नहीं तो आत्महत्या का रास्ता तो खुला ही है,’’ और वह अमन के पैरों में झुक गई.

अमन बहुत बड़ी दुविधा में पड़ गया. उस ने नीरा को दिलासा दे कर पलंग पर बैठाया और फिर तेजी से बाहर निकल डा. जावेद के कमरे में पहुंच गया. वह उन्हें अपना बड़ा भाई व मार्गदर्शक मानता था. अमन ने अपनी सारी उलझन उन्हें कह सुनाई.

सब सुन कर डा. जावेद गंभीर हो गए. बोले, ‘‘मेरे विचार से तुम नीरा और उस के पारिवारिक झगड़े से दूर ही रहो. नीरा अभी नासमझ है. बहुत गुस्से में है, इसलिए ऐसा कह रही है. जब और कोई सहारा न मिलेगा तो खुद ही घर लौट जाएगी. अपनी सगाई न हो पाने का गुस्सा अपने परिवार पर निकाल रही है.’’

डा. जावेद की बातें उस के सिर के ऊपर से निकल रही थीं. अत: वह वहां से चुपचाप चला आया.

अमन सोच रहा था कि लड़की बेबस है, दुखी है. बड़ी उम्मीद से उस की शरण में आई है. अब वह उसे कैसे ठुकरा दे? इसी उधेड़बुन में वह अपने घर पहुंच गया.

अमन को देख मां और पिता खुश हो गए. मां जल्दी से चाय बना लाई. अमन गुमसुम सा अपनी बात कहने के लिए मौका ढूंढ़ रहा था.

पिता ने उस का चेहरा देख कर पूछा, ‘‘कुछ परेशान से लग रहे हो?’’

बस अमन को मौका मिला गया. उस ने सारी बात उन्हें बता दी. मातापिता हैरानपरेशान उसे देखते रह गए. थोड़ी देर कमरे में सन्नाटा छाया रहा. फिर पिताजी ने चुप्पी तोड़ते हुए कहा, ‘‘ऐसा फैसला तुम कैसे ले सकते हो? अपने सगे मातापिता को ठुकरा कर आने वाली दूसरे धर्म वाली से विवाह? यह कैसे मुमकिन है? माना हम गरीब हैं पर हमारा भी कोई मानसम्मान है या नहीं?’’

मां तो आंसू भरी आंखों से अमन को देखती ही रह गईं. उन के इस योग्य बेटे ने कैसा बिच्छू सा डंक मार दिया था. 1 घंटे तक इस मामले पर बहस होती रही पर दोनों पक्ष अपनीअपनी बात पर अडिग रहे.

पिता गुस्से में उठ कर जाने लगे तो अमन भी उठ खड़ा हुआ. बोला, ‘‘मैं नहीं मानता आप के रूढि़वादी समाज को, आडंबर और पाखंडभरी परंपराओं को… मैं तो इतना जानता हूं कि एक दुखी, बेबस लड़की भरोसा कर के मेरी शरण में आई है. शरणागत की रक्षा करना मेरा फर्ज है,’’ कहता हुआ वह बार निकल गया.

अस्पताल पहुंच कर अमन ने अपने खास 2-3 मित्रों को बुला कर उन्हें बताया कि वह नीरा से शादी करने जा रहा है. शादी कोर्ट में होगी.

यह सुन कर सारे मित्र सकते में आ गए. उन्होंने भी अमन को समझाना चाहा तो वह गुस्से में बोला, ‘‘तुम सब ने मेरा साथ देना है बस. मैं उपदेश सुनने के मूड में नहीं हूं.’’

‘विनाश काले विपरीत बुद्धि,’ कह कर सब चुप हो गए. अमन अस्पताल से मिलने वाले क्वार्टर के लिए आवेदन करने चला गया. इस समय उस के दिमाग में एक ही बात चल रही थी कि नीरा उस की शरण में आई है. उसे उस की रक्षा करनी है.

नीरा का प्लस्तर खुल गया था. छड़ी की मदद से चलने का अभ्यास कर रही थी. धीरेधीरे बिना छड़ी के चलने लगी. 4 दिन बाद अस्पताल से छुट्टी होनी थी. अमन ने 2 दिन बाद ही अपने मित्रों के साथ जा कर कोर्ट में नीरा से शादी कर ली. फिर मित्रों के साथ जा कर घर का कुछ सामान भी खरीद लिया. क्वार्टर तो मिल ही गया था. नीरा अमन के साथ जा कर अपने और अमन के लिए कुछ कपड़े, परदे वगैरा खरीद लाई. दोनों ने छोटी सी गृहस्थी जमा ली.

डिस्चार्ज की तारीख को नीरा के पिता उसे लेने आए, परंतु जब उन्हें नीरा की अमन के साथ शादी की सूचना मिली तो उन के पैरों तले की जमीन खिसक गई. मारे गुस्से के वे अस्पताल के प्रबंध अधिकारी और डाक्टरों पर बरसने लगे. वह पुलिस को बुलाने की धमकी देने लगे. ये सब सुन कर अमन और नीरा अस्पताल आ पहुंचे. नीरा को देख पिता आगबबूला हो गए. नीरा पिता के सामने तन कर खड़ी हो गई. बोली, ‘‘आप पहले मुझ से बात करिए. मैं और अमन दोनों बालिग हैं… किसी पर तोहमत न लगाइए. हम ने अपनी इच्छा से शादी की है.’’

नीरा के पिता यह सुन कर हैरान रह गए. फिर पैर पटकते हुए वहां से चले गए. उधर जब अमन के घर यह खबर पहुंची तो मातापिता दोनों टूट गए. पिता तो सदमे के कारण बुरी तरह डिप्रैशन में चले गए. मां के आंसू न थम रहे थे. डाक्टर ने बताया कि मानसिक चोट लगी है. इस माहौल से दूर ले जाएं. तब शायद तबीयत में कुछ सुधार आ जाए. दोनों बहनों ने अपनी बचत से मांपिताजी का हरिद्वार जाने और रहने का इंतजाम कर दिया.

आगे पढ़ें- 2 महीने में ही नीरा अपनी…

लाल साया: भाग-2

‘‘महेश तो आज छुट्टी पर है. गांव गया है.‘‘

‘‘फिर तो बहुत अच्छा है. हम दोनों आज शाम तक निकल जाते हैं. सब को लगेगा कि हम तीनों चले गए.‘‘

‘‘ठीक है, मैं ड्राइवर को बोल दूंगा.”

‘‘नहीं, नहीं, अंकल, आप के ड्राइवर के साथ नहीं.”

‘‘हां, ठीक कह रहे हो. मैं टैक्सी बुला दूंगा.‘‘

‘‘जी.”

दोपहर में तीनों लड़के नीचे आए तो विमला देवी की सूजी आंखें उन के दिल का भेद खोल रही थीं.

‘‘पापा मुझे माफ कर दीजिए. मैं आज के बाद कभी शराब को हाथ भी नहीं लगाऊंगा,” कहते हुए विशेष पिता के पैरों में गिर पड़ा. वह फूटफूट कर रो रहा था.

निशब्द उन्होंने उठा कर बेटे को गले लगा लिया.

‘‘रिचा… पापा रिचा… मुझे कुछ याद नहीं है…” वह हिचकियों के साथ बोला.

‘‘मैं हूं ना बेटा… सब संभाल लूंगा… और फिर तुम इतने भाग्यशाली हो कि तुम्हारे इतने अच्छे दोस्त हैं.”

‘‘अंकल, हम दोनों दिन में ही निकल जाते हैं. हम ने ऊपर सब ठीक कर दिया है.”

‘‘मैं ने दूसरा ड्राइवर बुला रखा है. वह तुम्हें छोड़ आएगा. और हां बेटा, जैसे विशेष वैसे ही तुम लोग. इसलिए यह छोटी सी भेंट है. तुम्हारे मकान के लिए पच्चीस लाख का यह चेक है. और तुम्हारे बिजनेस के लिए पच्चीस लाख का यह चेक है.‘‘

‘‘अरे अंकल…‘‘

‘‘बस रख लो बेटा, मुझे खुशी होगी,‘‘ बिना आंखें मिलाए सेठजी बोले.

कालोनी में इस बात की चर्चा जाने कैसे फैल गई कि सेठ मदन लाल के घर रात में गोली चली थी. सफाई देदे कर दोनों परेशान थे. विमला देवी ने तो सब से मिलना ही बंद कर दिया. सेठ मदन लाल तनाव में रहने लगे. ऊपर से रिचा की गुमशुदगी की रिपोर्ट के चलते पुलिस जांच करने उन के घर आ धमकी. बड़ी मुश्किल से लेदे कर सेठजी ने मामला निबटाया.

इस घटना को 4-6 महीने बीत गए थे. एक दिन विमला देवी बोलीं, ‘‘सुनिएजी, कहीं विशेष की शादी की बात चलाइए. अब उस की शादी तो करनी ही है ना…‘‘

‘‘देखो, थोड़ा इंतजार करना पड़ेगा. जल्दबाजी ठीक नहीं. देख तो रही हो जितने शादी के प्रस्ताव थे, सभी कोई ना कोई बहाना कर पीछे हट गए. पता नहीं कैसे समाज में हमारे परिवार को ले कर नकारात्मक माहौल बन गया है. तो अब थोड़ी प्रतीक्षा ही करनी होगी.”

‘‘मुझे तो बड़ी चिंता हो रही है.”

‘‘मां, मुझे शादी नहीं करनी है. कितनी बार तो कह चुका हूं. फिर वही विषय ले कर बैठ जाती हैं आप,” विशेष अचानक कमरे में आ गया था.

तभी मदन लाल जी का फोन घनघनाया.

‘‘हां उमेश, बेटा.‘‘

‘‘अरे, पिछले हफ्ते ही तो 10 लाख तुम्हारे अकाउंट में डाले थे. नहीं, अब मैं और नहीं दे सकता,’’ कह कर उन्होंने गुस्से से फोन काट दिया.

‘‘उमेश… आप से पैसे मांग रहा है?” चकित सा विशेष पिता को देख रहा था.

‘‘पैसे नहीं मांग रहा है… ब्लैकमेल कर रहा है. 10-10 लाख दो बार ले चुका है और अब फिर…‘‘ गुस्से से वे हांफने लगे थे.

‘‘मुझे कुछ नहीं बताया उस ने,” विशेष के स्वर में हैरानी थी.

‘‘अरे, आप को क्या हो रहा है?” विमला देवी उठ कर पति के सीने पर हाथ फेरने लगीं, जिसे वे कस कर दबा रहे थे. उन्हें तुरंत अस्पताल पहुंचाया गया, परंतु बचाया नहीं जा सका.

हंसताखिलखिलाता घर बिखर गया. घर में जैसे मुर्दनी छा गई थी. विशेष पिता की जगह अपनी शर्राफे की दुकान पर बैठने लगा था. दिन जैसेतैसे कट रहे थे.

‘‘विशेष, छुटकी की शादी का न्योता आया है. जाना पड़ेगा,” मां विशेष के आते ही बोलीं.

‘‘ठीक है मां, मैं मामाजी के यहां आप के जाने की व्यवस्था कर देता हूं.”

‘‘नहीं बेटा तुझे भी चलना होगा.”

‘‘आप जानती तो हैं मां…”

‘‘जानती हूं, तू कहीं नहीं जाना चाहता. परंतु मीरा की शादी में भी तू पढ़ाई के कारण नहीं जा पाया था. उन्हें लगेगा, उन की गरीबी के कारण तू उन के घर नहीं आता.”

‘‘यह सच नहीं है मां. मेरे लिए रिश्ते महत्व रखते हैं. गरीबीअमीरी तो मैं सोचता भी नहीं. मैं मामाजी की बहुत इज्जत करता हूं,‘‘ विशेष ने प्रतिवाद किया.

‘‘जानती हूं, इसीलिए चाहती हूं कि तू मेरे साथ चल. दो दिन की ही तो बात है,‘‘ बेटे के सिर पर हाथ फेरते हुए वे बोलीं.

‘‘ठीक है मां, जैसा आप चाहे.‘‘

गांव में उन की गाड़ी के रुकते ही धूम मच गई ‘‘बूआजी आ गईं, बूआजी आ गईं.”

भाईभाभी के साथ छुटकी भी दौड़ी आई और उस के साथ में थी उस की प्यारी सहेली रजनी. विशेष पर नजर पड़ते ही अपनी सुधबुध खो बैठी. सब एकदूसरे को दुआसलाम कर रहे थे और रजनी अपलक विशेष को निहारे जा रही थी.

‘‘रजनी, भैया को ऐसे क्यों  घूर रही हो?‘‘ छुटकी ने कोहनी मारी.

सब उधर ही देखने लगे. रजनी के साथसाथ विशेष भी झेंप गया, ‘‘नहीं… कुछ नहीं…‘‘ कहते हुए रजनी बूआजी का सामान निकलवाने लगी.

‘‘आप रहने दीजिए, मैं निकलवा दूंगा,’’ विशेष ने उसे टोका.

‘‘आप तो पाहुन हैं,” वो खिलखिलाई और बैग उठा कर अंदर भाग गई.

‘‘बहुत ही प्यारी बच्ची है बीबीजी. अपनी छुटकी की सब से पक्की सहेली है. जान छिड़कती हैं दोनों एकदूसरे पर,” स्नेह से भौजाई बोलीं.

जब तक सब लोग आ कर बैठे, रजनी सब के लिए शरबत ले कर हाजिर थी. बूआजी सब से बोलतीबतियाती रहीं, पर निगाह उन की हर पल रजनी पर ही टिकी रही. एक आशा की किरण दिखाई दी थी उन्हें. रजनी का स्पष्ट झुकाव उन के सुदर्शन बेटे पर दिखाई दे रहा था. और कितने महीनों बाद विशेष भी खुश दिखाई दे रहा था. शाम को जब ढोलक की थाप पर रजनी नाची तो विमला देवी लट्टू ही हो गईं.

‘‘भाभी, रजनी तो वाकई बहुत अच्छा नाचती है.”

‘‘हां बीबीजी, बहुत भली और गुणी लड़की है. पढ़ने में भी अव्वल आती है. वजीफा पाती है. लगन की ऐसी पक्की कि जाड़ा, गरमी, बरसात साइकिल से कसबे तक पढ़ने जाती है,” स्नेह पगे स्वर में भौजाई बोलीं.

‘‘अपने विशेष के लिए कैसी रहेगी?” वे सीधे भाभी की आंखों में देख रही थीं.

‘‘बीबीजी, लड़की तो बहुत ही अच्छी है. लाखों में एक. जोड़ी भी बहुत अच्छी लगेगी, लेकिन…‘‘ बात अधूरी ही छोड़ दी उन्होंने.

‘‘लेकिन क्या…?‘‘

‘‘लेकिन, बहुत गरीब परिवार से है. आप की हैसियत की तो छोड़ दीजिए. साधारण शादी भी नहीं कर सकेंगे वे लोग.‘‘

आगे पढ़ें- रजनी के लिए आए इस प्रस्ताव से छुटकी की शादी की…

Women’s Day 2023: मां का घर- क्या अपने अकेलेपन को बांटना चाहती थीं मां

लाल साया: भाग-1

सफेद रंग की वह कोठी उस दिन खुशियों से चहक रही थी. होती भी क्यों ना, घर का इकलौता बेटा विशेष अपने दोस्तों के साथ आज आ रहा था.

‘‘भैया आ गए, भैया आ गए,” महेश ने उद्घोष सा किया. सेठ मदन लाल और उन की धर्मपत्नी विमला देवी तेजी से बाहर की ओर लपके. कार से उतर कर विशेष ने मातापिता के पैर छुए, तो मां ने अपने लाल को गले लगा लिया. उन की आंखें रो रही थीं.

‘‘क्या मां, आप मुझे देख कर हमेशा रोने क्यों लगती हैं? आप को मेरा आना अच्छा नहीं लगता क्या?” विशेष लाड़ लड़ाते हुए बोला.

‘‘चल पागल,” मां ने नकली गुस्से के साथ हलकी सी चपत लगाई.

अब तक उमेश के साथ रिचा और उदय भी गाड़ी से उतर आए थे. उन के बैठक में बैठते ही महेश एक के बाद एक नाश्ते की प्लेटें लगाने लगा.

‘‘अरे भैया, एक हफ्ते का नाश्ता हमें आज ही करा दोगे क्या?” उदय आंखें फैला कर बोला.

‘‘उदय यार, मां को लगता है न, जब मैं उन के पास नहीं होता हूं, तब मैं शायद भूखा ही रहता हूं, इसलिए जब आता हूं तो बस खिलाती ही जाती हैं. बच नहीं सकते हो, इसलिए चुपचाप खा लो.”

रिचा जो मां के साथ सोफे पर बैठी थी, मां के गले में बांहें डाल कर बोली, ‘‘मां तो होती ही ऐसी हैं.”

विमला देवी प्यार से उस का गाल थपथपाने लगीं.

‘‘उमेश बेटा, तुम क्या कर रहे हो?” समोसा उठाते हुए सेठ मदन लाल ने पूछा.

‘‘अंकल मेरी दिल्ली में इलेक्ट्रिकल सामान की शौप है. अच्छी चलती है,” उस के स्वर में सफलता की ठसक थी.

‘‘और शादी…?” मां ने पूछा.

‘‘बस अब शादी का ही इरादा है आंटी. चाहता हूं कि पत्नी को अपने ही मकान में विदा करा कर लाऊं. एक फ्लैट देखा है. पच्चीस लाख का है. लोन अप्लाई किया है. बस मिलते ही अगला कदम शादी होगा. आप लोगों को आना होगा.”

‘‘हां… हां, जरूर आएंगे. और उदय तुम क्या कर रहे हो?” सेठजी उदय की ओर घूमे.

‘‘बस अंकल, अभी तो हाथपैर ही मार रहा हूं. बिजनेस करना चाहता हूं, पर पूंजी नहीं है. व्यवस्था में लगा हूं. अब देखिए ऊंट किस करवट बैठता है,” कहते हुए उदय ने कंधे उचकाए.

‘‘मन छोटा क्यों करते हो बेटा. ऊपर वाला सब रास्ता बना देते हैं. अब चलो ऊपर के कमरे में जा कर तुम सब आराम कर लो,” मां स्नेह से बोलीं.

चारों बच्चों की चुहलबाजी से घर भर गया था. चारों रात का खाना खा कर ऊपर चले गए.

विमला देवी बोलीं, ‘‘यह 2 दिन तो पता ही नहीं चले, पर आप ने उन्हें ऊपर क्यों भेज दिया? बच्चे तो अभी गपें मार रहे थे?”

‘‘अरे भाग्यवान, बच्चे अब बड़े हो गए हैं. उन्हें थोड़ी प्राइवेसी चाहिए होती है. तो हम उन के आनंद में रोड़ा क्यों बनें?”

‘‘हां, यह तो सही कह रहे हैं,” कहते हुए विमला देवी मेज पर से प्लेटें उठाने लगीं.

‘‘अरे, तुम क्यों उठा रही हो? महेश कहां है?‘‘

‘‘उस के गांव से फोन आया था कि मां बीमार है उस की, तो मैं ने छुट्टी दे दी.‘‘

‘‘अरे, फिर कैसे होगा? अभी तो ये बच्चे हैं.‘‘

‘‘आप चिंता मत करिए. सब हो जाएगा.‘‘

‘‘मैं कल दूसरे खानसामे का पता करता हूं,‘‘ चिंतित स्वर में सेठजी बोले.

गोली की आवाज से सेठजी की नींद टूट गई. वे समझ नहीं पा रहे थे, यह कैसी आवाज है और कहां से आई. वे फिर से सोने की कोशिश करने लगे, तभी आंगन के पीछे के बगीचे में किसी भारी चीज के गिरने की आवाज आई.

उन्होंने पलट कर पत्नी की ओर देखा. वे गहरी नींद में थीं, तभी सीढ़ियों पर से कदमों की आवाजें आने लगी. वे सधे कदमों से उठे और आंगन में आ गए. आंगन का दरवाजा पूरा खुला हुआ था. वे दबे कदमों से धीरेधीरे दरवाजे की ओर बढ़े. बाहर झांका तो एकदम घबरा गए. तीन आकृतियां अंधेरे में भी स्पष्ट दिखाई दे रही थीं. तभी एक आकृति ने लाइटर जलाया और सेठजी की आंखें फटी रह गईं.

यह तो विशेष, उदय और उमेश थे, पर अंधेरे में ये तीनों यहां क्या कर रहे हैं. सोचते हुए सेठजी ने कड़क कर पूछा, ‘‘कौन है वहां?”

उमेश लपक कर उन के पास आ गया और फुसफुसाया, ‘‘अंकल, आवाज मत करिए. बहुत गड़बड़ हो गई है.”

‘‘क्या हुआ?”

‘‘नशे में, विशेष ने रिचा को धक्का दे दिया… और वह ऊपर से गिर कर मर गई.”

‘‘क्या…?” सदमे से उन की आंखें फैल गईं. वे वहीं बैठ गए.

‘‘अंकल, आप खुद को संभालिए और विशेष को भी. मैं कुछ करता हूं,‘‘ उमेश सेठजी का हाथ पकड़ कर बोला.

‘‘ठीक से देखो, शायद डाक्टर उसे बचा पाए,‘‘ डूबते स्वर में वे बोले.

‘‘नहीं अंकल, मैं देख चुका हूं… अंकल, यहां कहीं फावड़ा है क्या?‘‘

बिना कुछ बोले सेठजी ने एक ओर इशारा किया.

‘‘आप यहीं बैठिए अंकल,‘‘ कहता हुआ उमेश वापस दोस्तों के पास चला गया और नशे में धुत्त विशेष को सहारा दे कर सेठजी के पास ले आया. विशेष बडबडाए जा रहा था, ‘‘मैं ने मार दिया. मैं ने मार दिया.‘‘

बेटे का यह हाल देख कर सेठजी की आंखें बरसने लगीं.

उमेश ने उदय की मदद से बड़ा सा गड्ढा खोद कर उस में रिचा को गाड़ कर समतल कर दिया. फिर अंदर जा कर एक आदमकद स्त्री की मूर्ति जो कमर पर घड़ा लिए हुई थी उठा लाया और उस को घुटने तक उसी में गाड़ दिया. 5-6 गमले भी उस के अगलबगल सजा दिए.

पौ फटने लगी थी. विशेष वहीं जमीन पर सो गया था. सेठजी स्वयं को संभाल चुके थे. रातभर की कड़ी मेहनत से थके हुए उमेश व उदय उन के पास आए.

‘‘बेटा…” सेठजी के पास शब्द नहीं थे.

‘‘अंकल, आप चिंता मत कीजिए. विशेष हमारा बहुत प्रिय मित्र है. हम उसे किसी संकट में नहीं पड़ने देंगे. यह बात बस हम चारों के बीच में ही रहेगी.”

‘‘हम तुम्हारे आभारी रहेंगे बेटा,” सेठजी की रोबीली आवाज की जगह एक पिता की निरीहता ने ले ली थी.

‘‘अंकल, आप को अपना माली बदलना पड़ेगा,‘‘ उमेश मूर्ति की ओर देख कर बोला.

‘‘ठीक है.‘‘

‘‘और अंकल, हम विशेष को ऊपर ले जा रहे हैं. आज आप किसी को ऊपर मत आने दीजिएगा, नहीं तो रिचा की अनुपस्थिति को छुपाना मुश्किल हो जाएगा.‘‘

आगे पढ़ें- फिर तो बहुत अच्छा है. हम दोनों आज शाम तक निकल जाते हैं. सब…

Women’s Day 2023: मां का घर- भाग 3

आज पूजा को पुरानी सारी बातें याद आ रही हैं. जब तक वह मां के साथ थी, हर समय उन पर हावी रहती, ‘मां, आप अपनी सहेलियों को घर न बुलाया करें, कितना बोर करती हैं. हर समय वही बात, शादी कब करोगी, कोई बौयफें्रड है क्या? आप की वह सफेद बालों वाली सहेली मोहिनीजी तो मुझे बिलकुल पसंद नहीं. कितना तेज बोलती हैं और कितना ज्यादा बोलती हैं.’

‘मैं ने मां को समझा ही नहीं,’ पूजा बुदबुदाई और उठ खड़ी हुई. सुप्रिया ने टोका, ‘‘कहां चली, पूजा?’’

‘‘मां को ढूंढ़ने.’’ ‘‘कहां?’’

‘‘पता नहीं, सुप्रिया. पर एक बार मैं उन से मिल कर माफी मांगना चाहती हूं.’’ ‘‘तुम चाहो तो मैं तुम्हारे साथ चल सकती हूं,’’ सुप्रिया ने कहा.

अगले दिन सुवीर ने दोनों सहेलियों को हवाई जहाज से मुंबई भेजने की व्यवस्था कर दी. वह खुद भी साथ जाना चाहता था पर पूजा ने कहा, ‘‘जरूरत होगी तो मैं तुम्हें बुला लूंगी. मुंबई हमारी जानीपहचानी जगह है.’’

सुप्रिया के मायके में सामान रख दोनों सहेलियां सब से पहले कांदिवली पूजा के घर गईं. पूजा धीरा आंटी के घर पहुंची तो उसे देख कर वे चौंक गईं, ‘‘अरे पूजा, तू? अनुराधा की कोई खबर मिली?’’ ‘‘यही तो पता करने आई हूं. आप बता सकती हैं कि मां की वे सहेलियां कहां रहती हैं जो हमारे घर कभीकभी आती थीं?’’

धीरा आंटी सोचने लगीं, फिर बोलीं, ‘‘सब के बारे में तो नहीं जानती, पर बैंक में तुम्हारी मां के साथ काम करने वाली आनंदी को मैं ने कई बार उन के साथ देखा था बल्कि 10 दिन पहले भी आनंदी यहां आई थीं.’’ ‘‘मां ने आप से अपने जाने को ले कर कुछ कहा था…’’

‘‘नहीं पूजा, तुम्हारी मां हम लोगों से कम ही बोलती थीं. दरअसल, 10 साल पहले जब तुम्हारी मां ने शादी की थी, तब से…’’ कहतेकहते अपने होंठ काट लिए धीरा ने. ‘‘मां की शादी?’’ पूजा को झटका लगा. वह गिड़गिड़ाती हुई बोली, ‘‘प्लीज आंटी, आप मुझे सबकुछ सचसच बताइए. शायद आप की बातों से मुझे मां गई कहां हैं यह पता चल जाए?’’

धीरा गंभीर हो कर बताने लगीं, ‘‘तुम समीरजी के बारे में तो जानती ही हो. जिस दिन तुम्हारी मां को पता चला कि समीर बीमार हैं, उन्हें टी.बी. हो गई है, तुम्हारी मां ने घबरा कर मुझे ही फोन किया था. मैं और वे अच्छी सहेली थीं और अपना दुखदर्द बांटा करती थीं. मैं ने तुम्हारी मां को अपने घर बुलाया. समीर अनुराधा की जिंदगी में ताजा हवा का झोंका थे. तुम्हारी मां उन का बहुत सम्मान करती थीं और प्यार भी करती थीं. मैं अनुराधा को ले कर समीर के पास गई थी. समीर की हालत वाकई खराब थी. अनुराधा ही समीर को ले कर अस्पताल गईं लेकिन उन की जिंदगी में तो जैसे चैन था ही नहीं.’’ ‘‘क्या हुआ? समीर अंकल अच्छे तो हो गए?’’ पूजा ने बेसब्री से पूछा.

‘‘हमारे पहुंचने से पहले वहां समीर के मातापिता आ गए थे. उन्होंने अनुराधा के सामने यह शर्त रखी कि वह समीर से शादी करे वरना वे उस की शादी कहीं और कर देंगे. बीमार समीर को जीवनसाथी की जरूरत है और अब बूढ़े मांबाप में इतनी शक्ति नहीं कि उस की देखभाल कर सकें. ‘‘समीर बैंक में नौकरी करते थे, देखने में अच्छे थे, एक पैर ठीक नहीं था तो क्या, कोई न कोई लड़की तो मिल ही जाती. समीर के मातापिता का दिल रखने के लिए अनुराधा और समीर ने कोर्ट में जा कर शादी कर ली.

‘‘मुझे अनुराधा का यों शादी करना अच्छा नहीं लगा. शायद इस की वजह यह थी कि तुम मां की शादी का विरोध कर चुकी थीं. उस समय मैं भी अनुराधा से नाराज हो गई. इस के बाद हमारे संबंध पहले जैसे न रहे,’’ इतना कहतेकहते धीरा की आवाज भर्रा गई. पूजा की आंखों में आंसू आ गए. वह बोली, ‘‘आंटी, हम औरतें ही दूसरी औरतों को जीने नहीं देतीं. मां की खुशी हमें बरदाश्त नहीं हुई.’’

धीरा ने सिर हिलाया, ‘‘आज पलट कर सोचती हूं तो अपने ऊपर ग्लानि हो आती है. काश, मैं ने उस समय अनुराधा को समझा होता.’’ पूजा भी मन ही मन यही सोच रही थी कि काश, उस ने मां को समझा होता.

धीरा ने अचानक कहा, ‘‘हो सकता है, मोहिनी को अनुराधा के बारे में पता हो. वह यहीं पास में रहती है. चलो, मैं भी चलती हूं तुम्हारे साथ.’’ धीरा फौरन साड़ी बदल आईं. तीनों एक आटो में बैठ कर दहिसर की तरफ चल पड़ीं. पूजा अरसे बाद मोहिनीजी से मिल रही थी. उन के पूरे बाल सफेद हो गए थे. पूजा के साथ धीरा और सुप्रिया को देख वे ठिठकीं. पूजा आगे बढ़ कर उन के गले लग कर रोने लगी. मोहिनी ने पूजा को बांहों में भींच लिया और पुचकारते हुए कहा, ‘‘मत रो बेटी, तुझे यहां देख कर मुझे एहसास हो गया है कि तू बहुत बदल गई है.’’

‘‘मुझे मां के पास ले चलिए, मौसी,’’ पूजा ने रोंआसी आवाज में कहा. मोहिनीजी ने पूजा के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, ‘‘तुम अपनी मां को ढूंढ़ती हुई इतनी दूर आई हो तो मैं तुम्हें मना नहीं करूंगी. लेकिन बेटी, अनुराधा को और तकलीफ मत देना, बहुत दिनों बाद मैं ने उसे हंसते देखा है, सालों बाद वह अपनी जिंदगी जी रही है.’’

अगले दिन जब पूजा और सुप्रिया मोहिनी के साथ इगतपुरी जाने को निकलने लगीं तो धीरा भी साथ चल पड़ीं. सुबह की बस थी. दोपहर से पहले वे इगतपुरी पहुंच गईं. वहां से एक जीप में बैठ कर वे आगे के सफर पर चल पड़ीं. जीप पेड़पौधों से ढके एक घर के सामने रुकी. घर के अंदर से वीणा वादन की आवाज आ रही थी.

मोहिनी ने दरवाजा खटखटाया तो एक कुत्ता बाहर निकल आया और उन्हें देख कर भौंकने लगा. अंदर से आवाज आई, ‘‘विदूषक, इतना हल्ला क्यों मचा रहे हो? कौन आया है?’’ अनुराधा की आवाज थी. जब वे सामने आईं तो पूजा के दिल की धड़कन जैसे रुक ही गई. सलवारकमीज और खुले बालों में वे अपनी उम्र से 10 साल छोटी लग रही थीं. माथे पर टिकुली, मांग में हलका सा सिंदूर और हाथों में कांच की चूडि़यां. भराभरा चेहरा. पूजा पर नजर पड़ते ही अनुराधा सन्न रह गईं. पूजा दौड़ती हुई उन के गले लग गई.

मांबेटी मिल कर रोने लगीं. पूजा ने किसी तरह अपने को जज्ब करते हुए कहा, ‘‘मां, मुझे माफ कर सकोगी?’’ अनुराधा ने सिर हिलाया और बेटी को कस कर भींच लिया.

‘‘मां, पिताजी कहां हैं? मुझे उन से मिलना है,’’ पूजा की आवाज में बेताबी थी. अनुराधा उन सब को ले कर अंदर गई. समीर रसोई में सब्जी काट रहे थे. पूजा उन के पास गई तो समीर ने उस के सिर पर हाथ रख कर प्यार से कहा, ‘‘वेलकम होम बिटिया.’’

अनुराधा को कुछ कहनेसुनने की जरूरत ही नहीं पड़ी. पूजा समझ गई कि साल में 2 बार मां 10 दिन के लिए कहां जाती थीं. क्यों चाहती थीं कि पूजा शादी कर अपने घर में खुश रहे. शाम को बरामदे में सब बैठे थे. पूजा ने सिर मां की गोद में रखा था. वह दोपहर से न जाने कितनी बार रो चुकी थी. मां का हाथ एक बार फिर चूम वह भावुक हो कर बोली, ‘‘मां, मैं कितनी पागल थी. औरत हो कर तुम्हारा दिल न समझ सकी. आज जब मैं अपने परिवार में खुश हूं तो मुझे एहसास हो रहा है कि तुम मेरी वजह से सालों से अपने पति से अलग रहीं.’’

अनुराधा को विश्वास नहीं हो रहा था कि उस की बेटी के साथसाथ उस की पुरानी सहेली धीरा भी लौट आई है, उस की खुशियों में शरीक होने. रात को सुवीर का फोन आया तो पूजा उत्साह से बोली, ‘‘पता है सुवीर, मेरे साथ दिल्ली कौन आ रहा है? मां और पापा. दोनों कुछ दिन हमारे साथ रहेंगे, फिर हम जाएंगे दीवाली में उन्हें छोड़ने.’’ अनुराधा और समीर मुसकरा रहे थे. बेटी मायके जो आई है.

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