रेतीली चांदी- भाग 3: क्या हुआ था मयूरी के साथ

देहरादून से वापस लौटते ही मयूरी को मां का भेजा पत्र मिला कि उन्होंने एक अच्छे संभ्रांत परिवार में उस का रिश्ता तय कर दिया है. केवल औपचारिक तौर पर वे लोग एक बार आमनेसामने लड़की को देखना चाहते हैं. तभी वे शगुन की रस्म भी कर देंगी. सो, अगली गाड़ी से ही वह घर आ जाए.

मां का पत्र पढ़ कर मयूरी थोड़ा पसोपेश में पड़ गई. अब वह मां को अपने दिल की बात कैसे बताए कि वह केवल राहुल को चाहती है व उसी से शादी करना चाहती है. मां का पत्र राहुल व सारा ने भी पढ़ा.

राहुल के चेहरे पर कई रंग आ कर चले गए. कुछ सोच कर वह बोला, ‘देख लो, फैसला तुम्हारे हाथ में है. एक तरफ तुम्हारी पसंद का देखापरखा तुम्हारा प्यार है, दूसरी तरफ एक अनजान परिवार जिसे न तुम ने पहले देखा है न बिलकुल जानती हो. बालिग हो, अपना फैसला खुद लेने का हक है तुम्हें. हम लोग यहीं कोर्ट में विवाह कर लेते हैं, बाद में मां को बता देंगे.’

‘पर इस तरह शादी कर लेने से मां को बहुत दुख होगा. हम दोनों बहनों के लिए उन्होंने बहुत दुख उठाए है.’ मयूरी के संस्कार उसे मां से बगावत करने से रोक रहे थे, पर अमीर राहुल से विवाह होने पर सुखसुविधा संपन्न जीवनयापन की चाह मां के फैसले के उलट करने को उकसा रही थी.

राहुल द्वारा कोर्टमैरिज के लिए जोर देने पर, उस से विवाह करने की दिली इच्छा होते हुए भी, वह मां को अंधेरे में रख कर यह विवाह नहीं करना चाहती थी. उसे वह ठीक नहीं समझ रही थी. वह विवाह तो करना चाहती थी पर मां की खुशी के साथ.

आखिर सोचविचार कर, एक बार मां को मनाने की कोशिश करने के लिए वह राहुल व सारा के साथ अगले ही दिन मां के पास जा पहुंची थी. वहां राहुल ने अपना परिचय देने के साथ ही मयूरी का हाथ भी मांग लिया तो वे इस प्रस्ताव से चौंक उठी थीं, ‘कहां तुम लोग और कहां हम. रिश्ता तो बराबरी वालों में ही अच्छा रहता है.’

‘बराबरी केवल पैसों से ही थोड़े न होती है. मुझे आप की बेटी बेहद पसंद है. आप फिक्र न करें, हमें कोई दानदहेज नहीं चाहिए?  बस, अपनी बेटी 3 कपड़ों में विदा कर दीजिएगा,’ राहुल ने अपील की.

‘पर तुम्हारे मातापिता भी आ जाते, तभी बात पक्की करते,’ वे असमंजस में पड़ कर बोलीं. इतने बड़े घर से बेटी का रिश्ता मांगा जाता देख वे थोड़ी हतप्रभ थीं, साथ ही उन्हें खुशी भी थी कि बेटी इतने बड़े संपन्न घर जा कर चैन से जिंदगी बसर करेगी.

‘हमारी मौम तो अब रही नहीं. हां, डैडी हैं, पर वे इस समय बिजनैस के सिलसिले में हौंगकौंग गए हुए हैं. सो, उन का आना तो फिलहाल संभव नहीं है. अपने डैडी से मैं खुद मयूरी को मिलाने ले जाऊंगा. तभी शादी का रिसैप्शन दिया जाएगा. अभी तो बस आप इजाजत दे दीजिए, ताकि मैं मयूरी से कोर्टमैरिज कर सकूं. क्योंकि 2 दिनों बाद ही मुझे भी बिजनैस की कई मीटिंग्स अटैंड करने फ्रांस जाना है और फिर शायद जल्दी आना नहीं हो पाएगा.’

‘पर इतनी जल्दी मयूरी का पासपोर्ट वगैरह कैसे बन पाएगा?’ वसुंधरा के मुंह से निकला.

‘वह मैं अरैंज करा दूंगा. मेरी जानपहचान है.’

राहुल ने कहा तो वसुंधरा को फिर इस रिश्ते के लिए न कहने की कोई वजह नहीं दिखी. उसे सबकुछ स्वप्न सा लग रहा था. वसुंधरा अपने रीतिरिवाजों के अनुसार विवाह की रस्में पूरी करवाना चाहती थी. पर पैसे व समय दोनों की बचत करने पर जोर दे कर राहुल कोर्टमैरिज करने के फैसले पर ही अड़ा रहा और दोचार जानपहचान वालों की मौजूदगी में उन लोगों ने एक हलफनामे पर हस्ताक्षर कर के विवाह की फौर्मेलिटीज पूरी कर दीं. वसुंधरा के बहुत मना करने पर भी राहुल डेढ़ लाख रुपए अपने यहां की ‘हक’ की रस्म के नाम पर उन्हें दे ही गया.  क्रमश:

क्या जो हसीन सपने मयूरी देख रही थी वाकई पूरे होने वाले थे या कुछ ऐसा होने वाला था जो कोई सोच भी नहीं सकता था.

मयूरी को होश आया तो उस ने खुद को अस्पताल के बैड पर पाया. उस के एक हाथ में टेप से चिपकी सूई लगी हुई थी और ग्लूकोज चढ़ रहा था. उस ने धीरे से आंखें खोल एक नजर आसपास डाली पर कमजोरी के कारण फिर आंखें बंद कर लीं. कुछ पल तो उसे यह समझने में ही लग गए कि वह वहां कैसे आई…जरूर सुबह मजदूरों ने उसे बेहोश पा कर यहां अस्पताल में ला कर भरती करा दिया होगा. तभी एक नर्स आ कर उस का ब्लडप्रैशर नापने लगी तो उस की आंखें खुल गईं.

नर्स के साथ ही एक डाक्टर भी थे जो उसे होश में आया देख पूछ रहे थे, ‘‘होश आ गया आप को, अब कैसा फील कर रही हैं?’’

‘‘काफी ठीक लग रहा है, मैं यहां आई कैसे?’’

‘‘आप 2 दिनों से बेहोश पड़ी हैं…’’ उस का बीपी चैक करती नर्स ने बताया तो वह चौंक पड़ी.

‘‘2 दिनों से?’’

‘‘जी हां, 2 दिनों से,’’ इस बीच डाक्टर उस की रिपोर्ट भी पढ़ते रहे.

‘‘पर मुझे यहां लाया कौन?’’ वह कमजोर सी आवाज में पूछ उठी.

‘‘वह तो भला हो खान चाचा का, जो आप को कचरे के ढेर के पास से उठा कर यहां लाए थे. वरना कुछ भी हो सकता था. उस की बांह पर से बीपी इंस्ट्रूमैंट की पट्टी खोलती नर्स बोली.’’

‘‘खान चाचा कौन हैं? कहां हैं? वह पूरी बात जानना चाह रही थी.

‘‘हमारे अस्पताल में स्टाफ के चीफ हैं. अभी औपरेशन थिएटर में डाक्टर साहब के साथ हैं, आते ही होंगे,’’ नर्स उसे बता कर अगले मरीज के पास पहुंच गई.

थोड़ी देर बाद ही 45-50 वर्षीय, खिचड़ी बालों वाले खान चाचा, औपरेशन पूरा होने के बाद उस के पास आए. उसे होश में आया देख उन्होंने राहत की सांस ली, ‘‘शुक्र है तुम्हें होश तो आया. अब कैसी तबीयत है?’’

‘‘बहुत बेहतर, आप का शुक्रिया कैसे अदा करूं, समझ नहीं पा रही,’’ उन्हें देखती मयूरी बोल उठी.

‘‘बेटा, शुक्रिया मेरा नहीं, समय का अदा करो. हम तो समय पर पहुंच गए थे.’’

‘‘मेरे लिए तो आप ही सबकुछ बन कर आए हैं.’’

‘‘अच्छा छोड़ो, यह बताओ तुम वहां कचरे के ढेर के पास कैसे पहुंच गईं? अपने घर का पता दो, तो तुम्हारे मातापिता को सूचना दूं. परेशान हो रहे होंगे वे लोग. यह तो कहो, मेरा घर वहीं पास में ही है. अपनी नाइट ड्यूटी खत्म कर के मैं वहां से गुजर रहा था, तब तुम्हारे कराहने की आवाज सुनी व बदन में हरकत देखी तो फौरन यहां ले आया.’’

मयूरी को समझ नहीं आ रहा था कि एक अजनबी पर वह कितना यकीन करे. एक बार धोखा खा चुकी थी, अब दोबारा नहीं खाना चाहती थी. पर उस के सामने कोई चारा न था. फिर खान चाचा तो नेक बंदे लग रहे थे. वरना आजकल की स्वार्थी दुनिया में, जहां लोग अपनों की मदद करने में हिचकते हैं, उस जैसी अनजान लड़की के लिए इतनी जहमत हरगिज नहीं उठाते. सो, उस ने संक्षेप में खान चाचा को सबकुछ सचसच बता दिया. वहां से भागते हुए वह तो उस बिल्ंिडग के अंदर पहुंचते ही बेहोश हो कर गिर पड़ी थी. सुबह वहां काम करने वालों ने शायद उसे मरा हुआ समझ कर पुलिस की झंझटों से बचने के लिए थोड़ी ही दूर पर बने कचरे के डलाव के पास डाल दिया होगा.

मयूरी के साथ घटी पूरी दास्तान सुन कर खान चाचा फिक्रमंद हो गए थे. उस की तबीयत थोड़ी संभल जाने पर अस्पताल से छुट्टी करा कर वे उसे अपने साथ अपने घर ले गए, जहां उन की पत्नी साबिया बेगम व बेटी सना थीं. उन्हें पहले ही संक्षेप में सबकुछ बता कर उन्होंने मयूरी को, भारत वापस लौटने तक अपने साथ ही रखने का मशवरा कर लिया था. सो, घर में सब ने उसे हाथोंहाथ लिया. जरा भी पराएपन का एहसास नहीं होने दिया. जानपहचान वालों से उसे अपना दूर का रिश्तेदार बता दिया गया था.

अगले दिन खान चाचा ने मयूरी की तरफ से राहुल के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करवा कर पासपोर्ट बनवाने के लिए अप्लीकेशन जमा करवा दिया. साथ ही, पूरे घटनाक्रम की एक प्रति भारतीय दूतावास को भी भेज दी.

आगे पढ़ें- रहने के लिए उसे खान चाचा ने…

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रेतीली चांदी- भाग 2: क्या हुआ था मयूरी के साथ

वसुंधरा को बेटी का यों बदलना अच्छा नहीं लगा था. मयूरी अभी भी तरहतरह से खुद को सही साबित करने के लिए तर्क पर तर्क दिए जा रही थी. मांबेटी को इत्मीनान से बात करने के लिए अकेला छोड़, सारा कुछ काम का बहाना बना कर बाहर चली गई थी.

उस के जाते ही वसुंधरा मयूरी से बोली, ‘बेटी, तुम घर से बाहर पहली बार निकली हो. दस तरह के लोग तुम्हें मिलेंगे. जो भी करना बहुत सोचसमझ कर करना. अपनी जरूरत पूरी करना अच्छा है और जरूरी भी पर फुजूलखर्ची नहीं होनी चाहिए. तुम अब कमाने लगी हो तो उस में से कुछ बचत करने की आदत भी डालो. मौडर्न होने में कोई बुराई नहीं है पर याद रखो, जिस्म की खूबसूरती उसे ढकने में ही है, न कि उस की नुमाइश करने में. यह सारा कैसी लड़की है?’

‘बहुत ही अच्छी है मां. अमीर परिवार की है पर घमंड जरा भी नहीं है. मेरी तो वह बहुत अच्छी दोस्त बन गई है,’ और फिर मयूरी उस के परिवार के बारे में विस्तार से बताती रही.

‘इतने अमीर घर की हो कर भी यहां क्यों नौकरी कर रही है?’

‘नौकरी तो वह अपने दम पर कुछ कमाने के लिए करती है. खाली बैठने से तो अच्छा ही है. फिर मां, बड़े लोगों से दोस्ती करने में हर्ज ही क्या है. वास्तव में उसी ने मुझे यह ड्रैस सैंस दिया है.’

‘बेटा, ये सब उच्च वर्गीय अमीरों के चोंचले हैं कि जितना ज्यादा पैसा, उतने ही कम कपड़े,’ मां उसे बीच में टोकती हुई बोली.

‘ओह मां, आप भी क्या बेकार की बातें ले बैठीं. आजकल तो सभी लड़कियां ऐसे ही रहती हैं,’ मयूरी बुरा सा मुंह बना कर बोली, ‘दुनिया कहां से कहां पहुंच गई है, पर आप चाहती हैं कि मैं फिर वही पुरानी बहनजी टाइप बन कर ही रहूं तो ठीक है.’

‘बेटा, मुझे गलत मत समझो. दुनिया चाहे कहीं पहुंच गई हो पर औरत के लिए वह आज भी नहीं बदली है. तुम से बस यही कहना है कि आगे कभी कोई गलत कदम न उठा लेना. बहकाने वाले तो बहुत मिल जाएंगे, संभालने वाला कोई नहीं मिलता. सारा तो अमीर घराने की है. उन के रहनसहन चालचलन और हमारे में बहुत फर्क है.’

वसुंधरा अपनी तरफ से बेटी को तरहतरह से समझा कर लौटती बस से वापस चली गई.

मयूरी ने मां की कुछ बातें समझीं, कुछ को उन के पुराने खयालों की सोच समझ कर एक कान से सुन कर, दूसरे से निकाल दीं. उस की जिंदगी उस की मनमरजी के अनुसार ही चलती रही. मां के समझाने से इतना असर जरूर हुआ कि उस ने कुछ पैसा घर भेजना व कुछ बैंक में जमा कराना शुरू कर दिया.

कुछ दिनों बाद सारा ने उसे बताया कि लंदन से उस के बड़े भाई राहुल बिजनैस के सिलसिले में दिल्ली आने वाले हैं. तब वे 2 दिनों के लिए उस के साथ मसूरी भी जाएंगे. उस ने मयूरी से भी साथ चलने व घूमने के लिए कहा.

‘अच्छा, मां से पूछ कर बताऊंगी.’

मयूरी के सहज ढंग से कहने पर सारा खिलखिला कर हंस पड़ी, ‘क्या दूध पीती बच्ची हो जो ये सब बातें भी अब मां से पूछ कर करोगी? कब तुम्हारी चिट्ठी वहां पहुंचेगी, कब वे जवाब देंगी. कोई फोन तो है नहीं तुम्हारे घर. तब तक तो राहुल भैया सब काम निबटा कर वापस भी जा चुके होंगे.’

उस के हंसी उड़ाने वाले अंदाज में हंसने से मयूरी झेंप गई.

‘नहीं, तब भी. औफिस से भी तो इतनी जल्दी छुट्टी नहीं मिलेगी,’ उस ने खुद का बचाव सा करते हुए कहा तो सारा चुटकी बजाते हुए बोली, ‘उस की तुम फिक्र मत करो, बौस से मैं बात कर लूंगी. वे मेरे डैडी के बहुत अच्छे दोस्तों में से हैं. मैं कहूंगी तो मना नहीं करेंगे.’

आखिर मसूरी घूमने की इच्छा तो मयूरी की भी थी. सो, सारा के जोर देने पर उस ने भी साथ चलने की हामी भर दी.

2 दिनों बाद मयूरी ने राहुल को पहली बार उस तीनसितारा होटल में देखा था जहां उस ने सारा व मयूरी को डिनर के लिए बुलाया था. किसी सीरियस बिजनैसमैन की जगह 25-30 वर्षीय अपटूडेट नौजवान राहुल को देख पहले तो वह उस से बातचीत में थोड़ा सकुचाती रही, पर उन दोनों के मधुर व्यवहार से वह प्रभावित हुए बिना न रह सकी थी.

खूबसूरत डिजायनर मोमबत्तियों का हलका उजाला, तरहतरह की जलतीबुझती रोशनियां, गूंजता सुरीला संगीत और डांसफ्लोर पर एकदूसरे में खोए से प्रेमी युगल…सब कुछ मयूरी के लिए नए थे. अनजाने ही वह उधर देखती खुद को राहुल के साथ डांसफ्लोर पर थिरकने की कल्पना कर उठी. तभी, मयूरी ने राहुल को अपने सामने खड़ा पाया जो उस की तरफ हाथ बढ़ाए उसे ही देख रहा था.

‘मे आई प्लीज?’

‘पर मुझे डांस नहीं आता,’ वह एकदम घबरा सी गई, मानो उस की चोरी पकड़ी गई हो.

‘कोई बात नहीं, मेरे साथ आइए, अपनेआप आ जाएगा,’ वह मुसकरा कर बोला.

उस की आवाज की कशिश व देखने का अंदाज मयूरी को अंदर से कहीं कमजोर बना रहा था. तभी सारा ने भी उसे जाने के लिए कहा और लगभग ठेल सा ही दिया. अगले 2 घंटे मयूरी के लिए सपने की दुनिया में सैर करने के समान थे. माहौल का असर उस पर हावी होता जा रहा था. उस का दिल चाह रहा था, काश, यह संगीत कभी न रुके और वह इसी तरह पूरी जिंदगी राहुल के साथ एक लय पर थिरकती उस के करीब बनी रहे. उस के जिस्म से आती भीनीभीनी खुशबू उसे मदहोश बना रही थी.

वहां से लौट कर भी मयूरी राहुल के खयालों में ही खोई रही थी. अगले 2 दिनों का मसूरी ट्रिप भी उस के लिए कई यादगार लमहे छोड़ गया था. राहुल के वापस जाने के बाद मयूरी को सबकुछ कितना खालीखाली सा लगता रहा था. सारा उस के मन की हालत समझ रही थी. और अब गाहेबगाहे उसे राहुल का नाम लेले कर छेड़ने से बाज नहीं आती थी.

ऐसे मौकों पर मयूरी के लाख झुठलाने पर भी उस के लाल होते गाल उस के दिल की भावनाओं की चुगली कर जाते. अनजाने ही उस की आंखों में राहुल जैसा जीवनसाथी पाने का एक छोटा सा सपना पलने लगा था.

सपनों पर किसी देश, समाज या धर्म का बंधन तो होता नहीं. ये तो बस मन में उठती भावनाओं का रूप होते हैं. देशविदेश घूमने की चाह व उच्च सामाजिक रुतबा पाने की ख्वाहिश शायद उस के सपनों के मूल में थी. पर उन की सामाजिक स्थिति के बीच जमीनआसमान का अंतर होने से कभीकभी उसे खुद पर ही झुंझलाहट भी हो आती कि क्यों वह ऐसे सपने देखती ही है जिन के पूरा होने की कोई उम्मीद ही न हो. क्या दोचार दिन साथ घूम लेने से ही वह उस की प्रेयसी हो जाएगी.

राहुल अमीर है, स्मार्ट है. कितने ही बड़ों घरों से उस के लिए रिश्ते आते होंगे. ऐसे में वह तो कहीं भी नहीं ठहरती. किंतु राहुल के सामने आने पर, उस की आंखों में अपने लिए कुछ खास सा भाव देख वह फिर दिल के हाथों मजबूर हो, उस की तरफ एक खिंचाव सा महसूस करने लगती. इधर वसुंधरा भी अब मयूरी के लिए अपनी जातबिरादरी में लड़का ढूंढ़ने लगी थी.

हर 2 महीने बाद राहुल दिल्ली आता तो देहरादून जरूर जाता. तब अकसर ही सारा व मयूरी के साथ कभी मसूरी, कभी सहस्त्रधारा आदि का प्रोग्राम बना कर घूमने निकल जाता. वहां सारा कभी उन्हीं के साथ रहती, कभी अलग घूमने निकल जाती. तब केवल वे दोनों व उन की तनहाइयां ही रह जातीं. पर राहुल ने कभी उस का बेजा फायदा उठाने की कोशिश नहीं की. जिस से मयूरी का उस पर यकीन बढ़ता गया, साथ ही आपस में हंसीमजाक भी. आखिर जाने से एक दिन पहले राहुल ने उस से अपने दिल की बात कह ही दी.

‘मुझ से शादी करोगी?’

इतने दिनों से जो बात उस के ख्वाबोंखयालों में मंडराती रहती थी, आज हकीकत में सुन कर पहले तो उसे यकीन ही नहीं हुआ, फिर मयूरी की पलकें झुक गईं और होंठों पर एक लजाई हुई मुसकराहट छा गई थी.

‘कुछ तो कहो?’ उस ने उस का चेहरा उठाते हुए पूछा.

‘अच्छा, मां से बात करो,’ कह कर उस ने सिग्नल दे दिया था.

आगे पढ़ें- मां का पत्र पढ़ कर मयूरी थोड़ा…

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लेखक- निखिल अग्रवाल  

प्राची सुंदर और प्रतिभावान नाट्य कलाकार थी. उस की गलती यह थी कि वसीम से प्रेमिल रिश्ते निभाते हुए उस ने कभी उस की प्रवृत्ति को जाननेसमझने की जरूरत नहीं समझी. यही वजह थी कि ब्रेकअप के बाद भी वह सिर्फ इसलिए उस की जान का प्यासा बन कर घूमने लगा क्योंकि वह अपने साथी कलाकार और दोस्त अंकित के साथ घूमनेफिरने लगी थी. आखिर उस ने…

तारीख – 25 अप्रैल, 2019

समय – सुबह 7 बजे

घटनास्थल – यूनाइटेड वे गरबा ग्राउंड

स्थान – गुजरात का महानगर वडोदरा.

सुबह भले ही अलसाई सी थी, लेकिन सूरज ऊपर चढ़ आया था. हल्की हवा जरूर चल रही थी, लेकिन गरमी ने अपने तेवर दिखाने शुरू कर दिए थे. कुछ लोग घरों से मौर्निंग वौक पर निकले थे तो कुछ दूध ब्रेड वगैरह लेने के लिए. कुछ लोग जब गरबा ग्राउंड के पास से निकल रहे थे तो उन की निगाह पेड़ के नीचे लेटी एक लड़की पर पड़ी. उस के आधे चेहरे पर दुपट्टा पड़ा हुआ था, जिस की वजह से चेहरा ठीक से नजर नहीं आ रहा था.

सुबहसुबह एक लड़की को इस तरह पड़ी देख लोगों के  कदम ठिठक गए. एक बुजुर्ग ने लोगों को उस के बारे में बात करते देखा तो बोले, ‘‘ऐसे क्या देख रहे हो, आवाज लगाओ, ठीक होगी तो कुछ बोलेगी.’’

लोगों को बुजुर्ग की बात ठीक लगी. एक दो ने आवाज दी, ‘‘ऐ लड़की, उठो, यहां क्यों सो रही हो?’’

लेकिन लड़की में कोई हलचल नहीं हुई. दोबारा आवाज लगाने का भी कोई परिणाम नहीं निकला. यह देख लोगों ने अपनीअपनी राय देनी शुरू कर दी. कुछ कह रहे थे कि संभव है किसी नशे में हो तो कुछ की राय थी कि उस के साथ कोई अनहोनी हुई है. तभी एक आदमी ने आगे बढ़ कर लड़की के चेहरे से दुपट्टा हटा दिया. एक करवट पड़ी वह लड़की 23-24 साल की थी, देखने में सुंदर.

लड़की के शरीर पर ऐसा कोई निशान नजर नहीं आया, जिस से यह लगता कि उस के साथ कोई अनहोनी हुई है. एक व्यक्ति ने लड़की की नब्ज टटोल कर देखी, तो उस में जीवन के लक्षण नजर नहीं आए. उस का शरीर ठंडा पड़ चुका था.

वहां मौजूद लोगों ने लड़की को पहचानने की कोशिश की लेकिन कोई भी पहचान नहीं पाया. अलबत्ता एक दो लोगों ने यह जरूर कहा कि इस लड़की को कभीकभार आसपास आतेजाते देखा जरूर था. उन्होंने यह अंदेशा भी जताया कि संभव है, वह कहीं आसपास की ही रहने वाली हो.

इस बीच किसी ने मोबाइल से पुलिस को सूचना दे दी थी. कुछ ही देर में जेपी रोड थाने की पुलिस वहां पहुंच गई. पुलिस ने लड़की को हिलाडुला कर देखा. पता चला कि उस की मृत्यु हो चुकी है. उस के शरीर पर किसी तरह के हमले के निशान नहीं थे. अलबत्ता गौर से देखने पर गले पर छीनाझपटी और दबाने के निशान जरूर दिखाई दिए.

इस से यह बात साफ हो गई कि उस की हत्या गला घोंट कर की गई है. पुलिस ने सबूतों की तलाश में इधरउधर नजरें दौड़ाईं तो लाश से कुछ दूरी पर एक स्कूटी खड़ी दिखाई दी. वहीं एक लेडीज पर्स भी पड़ा था. पुलिस ने पर्स खोल कर देखा तो उस में कुछ कागज मिले, जिन से यह पता चल गया कि मृतका का नाम प्राची मौर्य है.

इस बीच वहां काफी भीड़ एकत्र हो गई थी. लड़की की हत्या की सूचना मिलने पर पुलिस के कई अफसर भी मौके पर पहुंच गए थे. भीड़ में से कुछ लोगों ने उस लड़की के शव की शिनाख्त प्राची मौर्य के रूप में कर दी. लोगों से पता चला कि प्राची पुरानी पादरा रोड पर रिलायंस मौल की गली में स्थित आर्किड बंगला में रहती थी. जहां प्राची की लाश मिली थी, उस से उस का मकान करीब 200 मीटर दूर था.

थाना जेपी रोड पुलिस हत्या का केस दर्ज करने के बाद आर्किड बंगला पहुंची और प्राची की मां यशोदा और बहन साची से पूछताछ की. सुबहसुबह पुलिस को घर पर आया देख प्राची की मां और बहन डर गए. पुलिस ने उन्हें प्राची की लाश मिलने के बारे में बता कर पूछा कि उसे कौन मार सकता है?

प्राची की मौत की खबर सुन कर उस की मां व बहन रोने लगीं. पुलिस ने उन्हें ढांढस बंधा कर प्राची के दोस्तों आदि के बारे में पूछा. पता चला कि प्राची नाट्य कलाकार थी. वह एक दिन पहले यानी 24 अप्रैल को अपने थिएटर ग्रुप के साथ वडोदरा से खंभात गई थी. वह घर पर कह कर गई थी कि आधी रात के बाद तक वडोदरा लौट आएगी.

घर वाले रातभर प्राची के घर आने का इंतजार करते रहे, लेकिन वह नहीं आई. मां यशोदा ने रात को उस के मोबाइल पर फोन भी किया, पर बात नहीं हुई. इस के बाद घर वालों ने सोचा कि संभव है रात हो जाने की वजह से प्राची का थिएटर ग्रुप खंभात में ही रुक गया हो. सुबह आ जाएगी. इसलिए वे लोग निश्चित हो कर सो गए थे.

पुलिस को प्राची की मां यशोदा और बहन साची पूछताछ में ऐसी कोई खास बात तो पता नहीं चली लेकिन उस के एकदो दोस्तों के मोबाइल नंबर जरूर मिल गए. पुलिस ने प्राची के उन दोस्तों से बात की. उन से पता चला कि प्राची वडोदरा के एप्लौस थिएटर एंड आर्ट ग्रुप में काम करती थी. एप्लौस थिएटर ग्रुप 24 अप्रैल को एक परफौरमेंस देने के लिए खंभात गया था.

खंभात वडोदरा से करीब 70 किलोमीटर दूर है. इस थिएटर ग्रुप को खंभात के औयल एंड नेचुरल गैस कारपोरेशन (ओएनजीसी) के औफिसर्स क्लब ने नाटक ‘स्पीचलैस’ की परफौरमेंस देने के लिए बुलाया था. नाटक के लिए प्राची के साथ 20 कलाकारों की टीम वडोदरा से खंभात गई थी.

प्राची के दोस्तों से पता चला कि रंगकर्मियों की टीम नाटक की परफौरमेंस दे कर 24-25 अप्रैल की रात को करीब साढ़े बारह-एक बजे के बीच खंभात से वडोदरा लौट आई थी. पुलिस को प्राची के दोस्तों से यह भी पता चला कि प्राची अपने थिएटर ग्रुप के साथी अंकित के साथ अपने घर चली गई थी.

पुलिस ने प्राची के दोस्तों से अंकित का मोबाइल नंबर ले लिया. एक पुलिस टीम ने पंचनामा बना कर प्राची के शव को पोस्टमार्टम के लिए अस्पताल भेज दिया.

पुलिस ने अंकित को फोन किया तो पता चला कि जब वह प्राची को उस के घर छोड़ने जा रहा था, तो उस का पुराना बौयफ्रैंड वसीम मिला था. वसीम और प्राची के बीच काफी कहासुनी हुई थी, झगड़ा भी हुआ था.

अंकित ने यह भी बताया कि वसीम ने प्राची पर हमला भी किया था, लेकिन उस ने प्राची को बचा लिया था. बाद में रात करीब सवा 2 बजे वह प्राची को उस की सोसाइटी के पास मेन रोड पर छोड़ कर अपने घर चला गया था.

वसीम ने प्राची के साथ झगड़ा और मारपीट की थी. यह पता चलने पर पुलिस ने उस की तलाश शुरू कर दी. पुलिस ने प्राची के दोस्तों से वसीम के घर का पता मालूम कर लिया. एक पुलिस टीम वसीम के घर पहुंची.

वसीम के पिता सीआईएसएफ के रिटायर्ड सबइंसपेक्टर हैं. वसीम के घर वालों से पुलिस को पता चला कि वह भरूच के इंजीनियरिंग कालेज में इलेक्ट्रौनिक एंड कम्युनिकेशन इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा है. वह सुबह कालेज जाने की बात कह कर घर से निकल गया था.

पुलिस ने वसीम के घर से उस की एक फोटो ले ली. घर वालों से पता चला कि वसीम भरूच स्थित अपने कालेज ट्रेन द्वारा जाता है. भरूच शहर वडोदरा से करीब 70 किलोमीटर दूर है. वडोदरा से भरूच के लिए थोड़ीथोड़ी देर के अंतराल से रोजाना 45 से ज्यादा ट्रेनें हैं. इसलिए यह पता नहीं चल पाया कि वसीम कौन सी टे्रन से भरूच जाता है.

पुलिस की एक टीम तुरंत वडोदरा रेलवे स्टेशन पहुंच गई. पुलिस ने स्टेशन पर फोटो के सहारे वसीम की तलाश की. लेकिन लगातार ट्रेनों की आवाजाही और सैकड़ों यात्रियों की भीड़ में वसीम को खोजना मुश्किल था.

एक पुलिसकर्मी ने टिकट विंडो पर जा कर वहां मौजूद क्लर्क को वसीम की फोटो दिखा कर पूछा कि इस हुलिए के किसी युवक ने भरूच की टिकट ली है क्या. क्लर्क ने फोटो देख कर बताया कि कुछ देर पहले ही इस युवक ने टिकट ली थी.

इस से पुलिस को यकीन हो गया कि वसीम या तो किसी ट्रेन से भरूच के लिए निकल चुका है, या ट्रेन के इंतजार में स्टेशन पर ही होगा. पुलिस ने सब से पहले यह पता लगाया कि भरूच जाने वाली सब से पहली टे्रन कब और कौन से प्लेटफौर्म पर आएगी.

पता चला कि टे्रन आने वाली है. पुलिस टीम उस ट्रेन के आने से पहले ही प्लेटफार्म पर चारों तरफ फैल गई. फोटो के आधार पर पुलिस ने वसीम को प्लेटफौर्म पर ही पकड़ लिया.

पुलिस टीम उसे थाने ले आई और उस से पूछताछ की. पूछताछ में वसीम ने प्राची से दोस्ती होने की बात तो स्वीकार की, लेकिन उस से झगड़ा होने और उस की हत्या करने की बात से साफ इनकार कर दिया. लेकिन जब पुलिस ने सख्ती दिखाई तो उस ने प्राची मौर्य की हत्या करने की बात कबूल कर ली.

थिएटर कलाकार की हत्या की सूचना वडोदरा महानगर के रंगकर्मियों में आग की तरह फैली. रंगकर्मियों में इस से आक्रोश छा गया. सोशल मीडिया के जरिए प्राची हत्याकांड चर्चा का विषय बन गया था.

प्राची हत्याकांड का कुछ ही घंटों में खुलासा होने पर डीसीपी (अपराध) जयदेव सिंह जडेजा ने स्वयं वसीम से पूछताछ की. पूछताछ में प्राची मौर्य की हत्या की जो कहानी उभर कर सामने आई वह वसीम की कुंठा और बदले की आग का परिणाम निकली.

प्राची और वसीम उर्फ अरहान मलेक इंजीनियरिंग के विद्यार्थी थे. प्राची सीनियर थी और वसीम जूनियर. करीब 4 साल पहले प्राची इंजीनियरिंग के 5वें सेमेस्टर में थी. उस समय वसीम तीसरे सेमेस्टर की पढ़ाई कर रहा था. वसीम ने ठीक से पढ़ाई नहीं की थी, जिस की वजह से उस की बैक लग गई थी.

इंजीनियरिंग की पढ़ाई वैसे भी काफी टफ होती है. उस पर वसीम की बैक लग गई. तो उसे पढ़ाई में पिछड़ने की चिंता होने लगी. अब उसे एक साथ 2 सेमेस्टर की परीक्षा देनी थी. वसीम ने दोस्त होने के नाते अपनी सीनियर साथी प्राची से मदद मांगी. प्राची ने आगे बढ़ कर उसे ट्यूशन देने की बात कही. वसीम भी यही चाहता था.

ट्यूशन पढ़ते पढ़ाते हुए दोनों में प्यार के बीज अंकुरित होने लगे. पहले वे कालेज के सीनियर और जूनियर स्टूडेंट होेने के नाते केवल दोस्त थे. अब वे दोस्ती से आगे बढ़ कर प्यार की पींगे बढ़ाने लगे. समय के साथ उन का प्यार परवान चढ़ने लगा. यूनिवर्सिटी से निकलने के बाद दोनों पार्क में बैठ कर घंटों तक प्रेमप्यार की बातें करते. समय के साथ उन का प्यार प्रगाढ़ होता गया.

चढ़ते यौवन की उम्र ही ऐसी होती है कि अच्छाबुरा या आगेपीछे कुछ नहीं सूझता. प्राची और वसीम के साथ भी यही हुआ. एक मिनट भी एकदूसरे से जुदा नहीं होना चाहते थे. दिन में अधिकांश समय साथ बिताने के बाद भी उन का मन नहीं भरता था, तो दोनों देर रात तक चैटिंग करते थे. नित्य नियम से दोनों कम से कम 20 मिनट चैटिंग करते थे.

फिर अचानक ऐसा कुछ हुआ कि इसी साल फरवरी में प्राची और वसीम के बीच ब्रेकअप हो गया. 4 साल का प्यार एक ही झटके में परिंदों के घोंसलों के तिनकों की तरह बिखर गया. दोनों एकदूसरे से अलग हो गए. दिलों में एकदूसरे के लिए नफरत पैदा हो गई.

वसीम से अलग होने के बाद प्राची अभिनय पर ध्यान देने लगी. वह बेहतरीन ड्रामा आर्टिस्ट थी. उस की गिनती वडोदरा के मंझे हुए कलाकार के रूप में होती थी. कालेज के जमाने से ही वह नाटकों में भाग लेती थी, धीरेधीरे उस के अभिनय में निखार आ गया था.

प्राची ने अपने जीवन में खुशियों के रंग भरने के लिए करीब 2 महीने पहले एप्लौस थिएटर एंड आर्ट ग्रुप जौइन कर लिया था. वह एप्लौस के कलाकारों के साथ रंगकर्म में अभिनय करने लगी. अपने इस काम से वह पूरी तरह खुश थी और नए सिरे से अपनी जिंदगी को संवारने के बारे में सोचने लगी थी.

दूसरी ओर वसीम अपने पुराने प्यार को नहीं भूला. अलग होने के बावजूद उस ने कई बार प्राची को फोन किया. प्राची मोबाइल स्क्रीन पर वसीम का नाम देख कर ही झुंझला जाती थी. उस ने कई बार वसीम को प्यार से और कई बार फटकार कर समझाया. लेकिन वसीम ने उसे फोन करना बंद नहीं किया. थकहार कर प्राची ने वसीम का नंबर ब्लौक कर दिया.

नंबर ब्लौक कर दिए जाने के बाद वसीम गुस्से में भर उठा. वह प्राची से बदला लेने की सोचने लगा. उस ने प्राची की गतिविधियों पर नजर रखनी शुरू कर दी. वसीम को पता लगा कि प्राची रोजाना देर रात तक मोबाइल पर औनलाइन रहती है. इस से वसीम को शक हुआ कि प्राची अब किसी अन्य युवक के संपर्क में है.

वसीम ने प्राची के नए दोस्त के बारे में मालूमात किया. पता चला कि उस का अपने साथी कलाकार अंकित से दोस्ताना व्यवहार है. वसीम को लगा कि प्राची का अंकित से कोई चक्कर है. यह बात उसे नागवार लगी. पहले तो वह प्राची से बदला लेने की सोच रहा था. अब उस ने प्राची को ठिकाने लगाने की योजना बनाई.

प्राची एप्लौस ड्रामा स्टूडियो के थिएटर ग्रुप के साथ 24 अप्रैल को नाटक ‘स्पीचलैस’ की परफौरमेंस देने खंभात गई. वसीम ने पहले ही पता लगा लिया था कि प्राची और उस के साथी कब लौटेंगे. उस ने प्राची के रात को ही वापस लौटने की बात कंफर्म करने के लिए फेसबुक पर सर्च कर प्राची के एक साथी का नंबर हासिल किया.

फिर वसीम ने किसी कलाकार का घर वाला बन कर उस से बात की और पूछा कि आप लोग कहां हैं और कब लौटेंगे. प्राची के साथी ने जवाब दिया कि हम खंभात से वडोदरा आ रहे हैं, अभी रास्ते में हैं. रात करीब साढ़े 12 बजे के आसपास पहुंच जाएंगे.

इस पर वसीम वडोदरा में अलकापुरी इलाके में एप्लौस ड्रामा स्टूडियो के पास प्राची के आने का इंतजार करने लगा. रात करीब पौने एक बजे कलाकारों की गाड़ी अलकापुरी पहुंची. सारे कलाकार गाड़ी से उतर गए. इन में प्राची सहित कई युवतियां भी थीं. युवतियों को लेने के लिए उन के घर वाले आए थे. प्राची के साथ अंकित भी गया था, वह भी साथ लौट आया था.

प्राची की स्कूटी और अंकित की मोटरसाइकिल स्टूडियो में खड़ी थीं. दोनों ने अपनीअपनी गाडि़यां लीं. अंकित ने प्राची से कहा कि रात बहुत हो गई है. मैं तुम्हें घर छोड़ आता हूं. प्राची को अंकित से केई परेशानी नहीं थी, क्योंकि वह उस का दोस्त था. वसीम छिप कर दोनों पर नजर रखे हुए था.

दोनों अपनेअपने दुपहिया पर चल पड़े. वसीम ने अपनी गाड़ी से उन का पीछा किया. प्राची और अंकित रास्ते में रुक कर एक गार्डन में बैठ कर बातें करने लगे. दोनों को इतनी रात गए गार्डन में बैठ कर बातें करते देख वसीम को यकीन हो गया कि प्राची और अंकित के बीच प्यार की खिचड़ी पक रही है. यह देख कर वसीम आगबबूला हो उठा.

गार्डन में जा कर उस ने उन दोनों से कहा कि तुम इतनी रात गए यहां क्यों बैठे हो. इसी के साथ उस ने मोबाइल से दोनों की तसवीरें ले लीं. साथ ही कहा कि पुलिस को फोन करता हूं.

प्राची समझ गई कि ब्रेकअप होने के बावजूद वसीम अभी तक उस पर अपना हक जताता है. इसीलिए परेशान करने के मकसद से उस ने तसवीरें ली हैं, और पुलिस को बुलाने की धौंस दे रहा है.

प्राची ने वसीम को फटकारा, तो वह उस से झगड़ा करने लगा.  अंकित भी समझ गया कि वसीम के इरादे नेक नहीं है. इसलिए उस ने प्राची के साथ वहां से निकलने में ही भलाई समझी.

अंकित और प्राची गार्डन से निकल गए और अपनेअपने दुपहिया पर सवार हो कर चल दिए. रात करीब सवा 2 बजे अंकित ने प्राची को उस के घर के पास सोसायटी की बिल्डिंग के बाहर मेन रोड पर छोड़ दिया. अंकित प्राची को गुडनाइट बाय कह कर अपने घर चला गया.

अंकित के चले जाने के बाद प्राची अपने घर जाने लगी, तभी छिप कर पीछा कर रहा वसीम वहां आ गया. उस ने प्राची से पुराने प्रेम संबंध बनाए रखने की बात कहते हुए अंकित को ले कर सवाल किए. प्राची ने कहा कि मेरातुम्हारा ब्रेकअप हो चुका है. यह मेरा पर्सनल मामला है, तुम हमारे बीच में मत पड़ो और जाओ यहां से.

इस बात पर प्राची और वसीम में झगड़ा हो गया. प्राची ने गुस्से में आ कर वसीम के दो चांटे लगा दिए. इस से वसीम तिलमिला उठा. वह प्राची का गला दबाने लगा.

प्राची ने मुकाबला किया, तो उस के नाखून वसीम को चुभ गए. दोनों सड़क पर गिर गए. सड़क पर गिरते ही वसीम उस के गले को कस कर दबाने लगा. वसीम के हाथों की कसावट से प्राची बेहोश हो गई.

इस बीच एक मोटरसाइकिल सवार वहां से गुजरा तो वसीम ने खड़े हो कर मोबाइल पर बात करने का नाटक किया. बाइक सवार कुछ देर रुक कर वहां से चला गया. इस के बाद वसीम ने सड़क पर बेहोश पड़ी प्राची का गला एक बार फिर जोरों से दबाया. जब उसे लगा कि अब प्राची जीवित नहीं है. तो वह वहां से चला गया.

रास्ते में कुछ दूर जाने के बाद वसीम का दिमाग घूमा तो वह प्राची का मोबाइल उठाने के लिए वापस आया. जब वह प्राची के पास से मोबाइल उठा रहा था तो उस ने देखा कि प्राची की सांसें चल रही हैं.

इस बार उस ने प्राची के गले में पड़ा दुपट्टा निकाला और उसी से उस का गला घोंट दिया. प्राची के मरने का पक्का यकीन होने पर वसीम ने उस की लाश को घसीट कर सड़क के किनारे पेड़ और दीवार के बीच फेंक दिया. फिर उस ने उस के चेहरे पर उसी का दुपट्टा डाल दिया.

प्राची को मौत की नींद सुलाने के बाद वसीम रात करीब साढ़े 3 बजे गोरवा इलाके में स्थित अपने घर पहुंचा. घर जा कर वह अपने कमरे में सोने चला गया. लेकिन नींद नहीं आई. वह बैड पर करवटें बदलता रहा. बारबार उस के सामने प्राची का चेहरा घूमता रहा.

सुबह उठ कर वसीम नहायाधोया, फिर बैग उठा कर भरूच स्थित कालेज जाने के लिए घर से निकल गया. वडोदरा स्टेशन पहुंच कर उस ने भरूच की ट्रेन का टिकट लिया. वह ट्रेन का इंतजार कर ही रहा था कि तभी पुलिस टीम ने उसे स्टेशन पर ही दबोच लिया.

अगर पुलिस टीम 5-7 मिनट भी लेट हो जाती तो वसीम भरूच चला जाता. फिर पता नहीं कब हाथ आता और कब प्राची हत्याकांड का रहस्य उजागर हो पाता.

प्राची की मौत से रहस्य का पर्दा उठने और उस के कातिल के पकड़े जाने के बाद 26 अप्रैल को प्राची की अंतिम यात्रा के समय मां यशोदा और छोटी बहन साची के रुदन से माहौल गमगीन हो गया. मां मेरा बेटा चला गया. कह कर रो रही थी.

बहन आई लव यू, तू मत जा… कहते हुए प्राची की लाश से लिपट रही थी. मांबेटी के इस रुदन से वहां मौजूद लोगों की आंखों से आंसू आ गए. मध्य प्रदेश में रहने वाले प्राची के पिता बेटी के अंतिम संस्कार में नहीं पहुंच सके थे.

(कहानी सौजन्य- मनोहर कहानियां) 

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अंत: क्या हुआ था मंगल के साथ

लेखक- चितरंजन भारती

मेरे घर वालों को जिस बात का डर था, अंत में वही हुआ- मंगल पांडे हत्याकांड के सिलसिले में पुलिस पूछताछ करने के लिए मेरे घर भी आ धमकी थी- मंगल पांडे से मेरा कोई विशेष वास्ता न था, सिवा इस के कि वह मेरा बचपन का दोस्त और सहपाठी था- बाद में हम नदी के दो किनारों की तरह हो गए- मैं नियमित पढा़ई करता हुआ एक कालिज में प्राध्यापक हो गया और वह माफिया गिरोहों के साथ लग कर करोडों में खेलने लगा था- तथापि यह कहना गलत नहीं होगा कि मेरी उस से यदाकदा भेंट हो ही जाती थी- मगर मैं ने यह नहीं सोचा था कि यही यदाकदा की मुलाकात एक दिन मेरे गले की फांस बन जाएगी-

मैं पहले ही कहती थी कि उस मंगल से ज्यादा मेलजोल ठीक नहीं, मां बड़बडा़ रही थीं, खुद तो मर गया पर हमारी जान को सांसत में डाल गया-

अब चुप भी रहो, मैं झुंझला कर कमीज बदलते हुए मां से बोला, फ्घर में पुलिस आई है तो क्या हुआ- थोडी़बहुत पूछताछ की औपचारिकता पूरी करेगी और क्या- हमारे घर में कोई हीरेजवाहरात हैं या नोटों की गड्डियां भरी पडी़ हैं, जो डरने की जरूरत है-

घर में पुलिस आ धमकी और तू कहता है कि डरने की क्या जरूरत, मां गुर्राईं, पुलिस हमारे घर की तलाशी लेगी- हमारी महल्ले में क्या इज्जत रह जाएगी?

इस समय घर में हीलहुज्जत न करना ठीक था- पुलिस इंस्पेक्टर के पास पूछताछ करने और घर की तलाशी लेने का वारंट भी था- उस ने सब से पहले मुझ पर एक गहरी नजर डाली और फिर बैठक का सरसरी नजरों से मुआयना किया- मैं ने देखा उस की जीप बाहर खडी़ थी, जिस में ड्राइवर बैठा था- 2 सिपाही अंदर खडे़ थे, जबकि 3 अपनी राइफलों को साथ लिए बाहर खडे़ थे- पहले तो उन्हें देख कर मुझे पसीना आ गया- फिर मैं ने खुद को अंदर से संयत और मजबूत किया- यह सोच कर कि जब मैं कहीं से भी गलत नहीं, तो फिर डरने की क्या बात- फिर भी जरा सी भी ढिलाई अथवा प्रश्नोत्तरों में गड़बडी़ होते ही मैं फंस सकता हूं, इस का अंदाजा मुझे था- पुलिस इंस्पेक्टर ने छूटते ही सवाल दागा, फ्आप मंगल पांडे को कब से जानते थे?

फ्वह मेरे बचपन का दोस्त और सहपाठी था, मैं ने शांत रहने की कोशिश करते हुए कहा, फ्वह मेरे महल्ले का ही रहने वाला था- बाद में हमारे रास्ते अलगअलग हो गए थे-

उस का आप से क्या व्यावसायिक संबंध था?

फ्मुझ से, मेरा मुंह खुला का खुला रह गया, फ्उस से भला मेरा क्या व्यावसायिक संबंध हो सकता था- वह किसी भी तरीके से अमीर और प्रभावशाली आदमी बनना चाहता था, जबकि मैं थोडे़ में ही खुश रहने वाला आदमी हूं- क्या आप को ऐसा नहीं लगता?

लगता तो है, इंस्पेक्टर व्यंग्य से बैठक के कोने में रखी खटारा मोपेड को देख कर मुसकराया, फ्आप को पता है कि हमारे पास आप के घर की तलाशी का वारंट भी है और हम आप को गिरपतार भी कर सकते हैं- लेकिन अगर आप सचसच जवाब देंगे, तो आप इन से बच सकते हैं- वैसे भी यह आप का फर्ज है कि आप भारतीय नागरिक होने के नाते हमारी खोजबीन में मदद करें-

घर की तलाशी के नाम पर मेरा माथा घूम गया- फौरन ही आंखों के सामने एक दृश्य आया, जिस में पुलिस मुझे हथकडी़ पहना कर ले जा रही है और सारा महल्ला मुझे घूरघूर कर देखते हुए कह रहा है, ‘देख लो, मंगल पांडे का एक और साथी पकडा़ गया-’ मगर यह इंस्पेक्टर दोहरी बात क्यों कर रहा है- एक तरफ धमकी भी दे रहा है, दूसरी तरफ मदद की बात भी कह रहा है- मुझे लगा कि शायद इंस्पेक्टर को भी यह अजीब लगता हो कि मंगल मेरा कैसा दोेस्त था, जिस के घर की हालत बस, औसत दरजे की है- इस से मुझ में थोडा़ साहस का संचार हुआ-

फ्आप मुझ से जो मदद चाहेंगे, वह मैं अवश्य करूंगा- फिर भी मंगल जैसे माफिया को मैं ठीक से नहीं जानता- माफिया शब्द का सही अर्थ क्या है, आप विश्वास करें, मैं ठीक से नहीं जानता- मैं तो उसे बस, एक साधारण दोस्त के रूप में ही जानता रहा-

आप उस से आखिरी बार कब मिले थे?

यह सवाल थोडा़ गड़बडा़ने वाला था और मैं गड़बडा़या भी- अपनी स्मृति पर जोर देते हुए मैं ने बताया कि लगभग 3 महीने पहले एक साधारण होटल के पास उस से मुलाकात हुई थी और वहीं होटल की बेंच पर बैठ कर साथसाथ चाय पी थी- वह भी मुझे इस कारण याद है, क्योंकि वह दुकान वाला तो मुझे अच्छी तरह जानता था, मगर मारुति से उतरे लकदक कपडे़ पहने उस मनमोहक मंगल को देख कर अवाक था जो 4 निजी सुरक्षादस्तों से घिरा था और मुझ जैसे अदना आदमी के साथ सड़क की पटरी पर ही खडे़खडे़ कांच के साधारण गिलास में चाय पीने लगा था- मैं ने इस बात को हलके रूप में लिया था- मगर उस चाय वाले की नजर में मेरी इज्जत बढ़ गई थी-

आप की उस से क्या बातें हुईं?

कुछ खास नहीं- भला मैं उस से क्या बात करता, वह भी सड़क के फुटपाथ पर- हां, वह मेरे मध्यवर्गीय जीवन जीने पर व्यंग्य अवश्य कर रहा था- कुछ हंसीमजाक की बात हुई- बाद में चाय के पैसे चुकाने को कहा-

फ्और उस ने एक नोटों की गड्डी भी दी-

मैं अंदर से थोडा़ भयभीत तो था ही मगर अब चौंकने की बारी थी- तो इस इंस्पेक्टर को सबकुछ जानकारी है- फिर यह पूछताछ क्यों कर रहा है- मैं ने थोडा़ कडे़ लहजे में कहा, फ्दी नहीं, देना चाहता था- मगर मैं ने ली नहीं-

फ्क्यों?

फ्क्योंकि मैं मुपत की कमाई को हाथ नहीं लगाता-

फ्खूब फिलासफी झाड़ लेते हो-

फ्अपनीअपनी सोच है-

फ्हम आप से ज्यादा छेड़छाड़ न कर के वापस जा रहे हैं, इंस्पेक्टर उठते हुए बोला, फ्वैसे तो हमें नियमतः आप के घर की तलाशी लेनी थी, मगर फिलहाल, आप पर संदेह करने का कोई कारण नहीं बनता- तथापि आप को यह भी बता दें कि आजकल तथाकथित शरीफ और सफेदपोश लोग ही ज्यादा गड़बडि़यां करते हैं- मुझे ऐसा लग रहा है कि आप मंगल पांडे के बारे में कुछ खास बातें जानते हैं- फिर भी बताना नहीं चाहते. घ्यह आप की मरजीघ्है. घ्मगर जब भी मैं आप को तपतीश के लिए थाने बुलाऊं, आप अवश्य आएंगे-

फ्मुझे आप से सहयोग कर खुशी होगी इंस्पेक्टर साहब, मैं पिजरे से मुक्त पक्षी की तरह मुक्ति का एहसास करते हुए बोला, फ्वैसे मैं आप से फिर कहता हूं कि मंगल के बारे में मेरी जानकारी सिर्फ अखबारों और पत्रिकाओं तक ही सीमित है-

इंस्पेक्टर मेरी बात अनसुनी करता हुआ जीप में बैठ गया- जीप के जाते ही मैं ने महल्ले में नजर दौडा़ई- उधर घरों के दरवाजों और खिड़कियों के पास से मेरे घर की ओर निगाह टिकाए उत्सुक आंखों में कुछ न देख पाने का गम महसूस किया- मुझे देख मेरे घर के लोग इस तरह से संतोष की सांस ले रहे थे मानो मैं फांसी पर चढ़तेचढ़ते बालबाल बच गया हूं-

मगर मेरे मन में पुलिस इंस्पेक्टर के आनेजाने का आतंक जैसे अभी तक कायम था- अगर वह नहीं मानता और अनापशनाप सवाल ही करता तो मैं क्या करता- भले ही घर में कुछ न मिलता, मगर तलाशी के बहाने पूरे घर की उलटपलट कर देता तो क्या होता- हथकडी़ न भी पहनाता, पर सिर्फ जीप में बैठा कर पूछताछ के लिए थाने ले जाता, तो भी महल्ले में क्या कुछ नहीं अफवाह फैलती. और यह सब किस की वजह से हुआ, उस मंगल पांडे की वजह से, जो संयोग से मेरा सहपाठी था और माफिया गिरोह का मुखिया बन गया था-

ऐसी बात न थी कि मेरा मंगल पांडे से बिलकुल ही मेलजोल और उठनाबैठना न था- एकाध माह में तो मैं उस से मिल ही लिया करता था- उस का एक खास कारण यह था कि मुझे सिर्फ उस के कारण अपने ऐसे किराएदार से मुक्ति मिली थी जो हमारे घर के आधे हिस्से पर लगभग कब्जा ही जमा चुका था- बाद में मैं ने उस के खानेपीने का इंतजाम एक होटल में किया था-

उस का मकान हमारे महल्ले में मेरे घर से थोडी़ ही दूर पर उस जगह था, जहां सड़क और गली मिलती थी- उस के पिता एक साधारण सिपाही थे- 4 भाईबहनों में वह सब से छोटा था- शुरू से ही वह सीधासादा था- फिर भी जब कभी वह कोई बात ठान लेता तो वह उस के लिए पत्थर की लकीर के समान हो जाती थी- इसलिए उस के पिताजी अकसर कहा करते, ‘ऐसी सूखी हड्डी ले कर इतना गुस्सा करेगा तो कैसे काम चलेगा-’

कदकाठी में ही नहीं, बल्कि पढा़ईलिखाई में भी हम दोनों साधारण थे- हम दोनों के घर की माली हालत भी ठीक न थी- बस, घर किसी तरह चल रहा था और हम पढ़ रहे थे- फिर भी एक सीधासादा लड़का, जिस की पारिवारिक पृष्ठभूमि और संस्कार अच्छे रहे हों, आखिर अपराध की दुनिया में चला कैसे गया, यह आश्चर्य की बात थी- और फिर मंगल पांडे वहां गया नहीं बल्कि वहां का शहंशाह भी बन गया, यह घोर आश्चर्य की बात थी-

अपने छोटे से आपराधिक जीवनकाल में वह फटाफट सफलता की सीढि़यां चढ़ते दौलत से खेलने लगा- हत्याएं और अपहरण करनेकरवाने लगा और सत्ता की सीढि़यां चढ़ने केघ्मंसूबे बांधने लगा- यह सब सोचना काफी अजीब सा लगता है, मगर फिर भी यह सच तो था ही-

बात सिर्फ छोटी सी थी- पर उस छोटी सी घटना ने मंगल की जीवनधारा को बदल दिया था-

उस वक्त हम इंटर के छात्र थे- नई उम्र थी इसलिए जोश से सराबोर रहते थे- उन्हीं दिनों हमें गली के चाय एवं पान की दुकानों पर घूमनेबैठने और गप्पें मारने का शौक भी चर्राया हुआ था- हम अपनी आधीअधूरी जानकारियों का आदानप्रदान कर परमज्ञानी होने का दंभ भी पाले हुए थे- उसी समय की घटना थी वह-

घटना कुछ यों हुई कि मंगल पांडे की बहन के साथ महल्ले के एक दादानुमा लड़के ने छेड़छाड़ कर दी थी- मंगल उस से भिड़ गया था- उस झगडे़ में मंगल उस से पिट गया था- दूसरे दिन उस लड़के ने उस पर कुछ फब्तियां भी कसीं- पूरे दिन मंगल गुस्से में उबलता रहा-

शाम को उस ने उस लड़के को एक दुकान के पास घेरा और जाने कहां से जुगाड़ किया गया चाकू उस के पेट में उतार दिया- तमाशबीन भाग खडे़ हुए- मंगल ने उस लड़के को ताबड़तोड़ कई चाकू मारे और गलियों के रास्ते गुम हो गया-

घटना कुछ इस तेजी से घटी कि हम सभी ठगे से देखते रह गए- इस के बाद हम दोनों परिवारों में बढ़ते तनाव और पुलिसकर्मियों का आनाजाना देखते रहे- मंगल पांडे का कोई अतापता न था- फिर धीरेधीरे सभी कुछ सामान्य होने लगा था-

उस घटना के बाद स्थानीय अखबारों की सुर्खियों में रहने वाला मंगल पांडे एक बार फिर तब अखबारों की सुर्खियों में आया जब पडो़सी प्रदेश के एक मंत्री के मारे जाने में उस का हाथ बताया गया- उस का बडा़ भाई अब प्राइवेट फर्म की नौकरी छोड़ कर सड़क और रेलवे की ठेकेदारी लेने लगा था और इसी के साथ मंगल का वह साधारण सा घर देखतेदेखते आलीशान कोठी में बदल गया- महल्ले में यह आम चर्चा थी कि वह एक स्थानीय माफिया गिरोह से जुड़ गया है और वह अपने घर भी आताजाता है- वह अब ‘शेर सिह’ के नाम से कुख्यात हो गया था, जिस के पीछे पुलिस लगी थी- मगर वह अब राजनीतिबाजों के संरक्षण में उन का संरक्षक था-

जब मेरी प्राध्यापक की नौकरी लगी तो मैं ने खुद ही मिठाई ले कर पूरे महल्ले में घरघर जा कर बांटी थी- उसी क्रम में मैं जब उस के भी घर गया तो वहां की साजसज्जा देख कर अवाक रह गया- मंगल पांडे का मकान एक भव्य भवन के रूप में बदल गया है, यह हम सभी जानते थे- मगर वह अंदर से इतना आकर्षक और ठाटबाट वाला होगा, इस का हमें पता न था- उस के घर में गाडी़ थी और उस के भाइयों के पास दरजन भर ट्रकों का बेडा़ था- उस की बहन मुझे अंदर के एक कमरे में बैठा गई- थोडी़ देर में जो मेरे सामने खडा़ था, उसे देख कर मैं हतप्रभ था- वह मंगल पांडे था-

उस से हाथ मिलाते वक्त मेरे हाथ कांप से गए. क्या यह वही साधारण हाथ है जिस ने हत्या की है- भड़कीली पोशाक में सजा वह मुझे देख मुसकरा रहा था.

‘यह कौन सी मास्टरी की नौकरी कर ली- मुझ से कहा होता यार, तो मैं तुझे कोई अच्छी सी नौकरी दिलवाता,’ मंगल ने कहा था।

‘तुम मुझे नौकरी दिलवाते,’ मैं हंस पडा़, ‘तुम कौन सेे मंत्री बन गए हो-’

‘इन तथाकथित मंत्रियों को तो मैं अपनी जेब में रखता हूं,’ वह लापरवाही भरे अंदाज में बोला, ‘और बडे़बडे़ अधिकारियों को तो मैं चुटकी बजाते एक कोने से दूसरे कोने में स्थानांतरित करा सकता हूं-’

अचानक उस कमरे में उस के पिताजी आए और उसे देखते ही चीखे, ‘तू यहां फिर आ गया- क्यों आया यहां? मैं तेरी सूरत नहीं देखना चाहता-’

‘चला जाऊंगा,’ वह बेरुखी भरे शब्दों में बोला, ‘आप इतना चिल्लाते क्यों हैं?’

‘नहीं, जाओ यहां से- नहीं तो मैं खुद फोन कर पुलिस द्वारा तुम्हें पकड़वा दूंगा-’

‘पुलिस, और वह मुझे पकडे़गी,’ वह व्यंग्य से मुसकराया, ‘उसे मैं पैसा देता हूं- कहिए तो मैं ही उसे बुलवा दूं,’ उस ने जेब से मोबाइल फोन निकाला- तब तक उस के पिताजी जा चुके थे- उस ने फोन पर किसी को कार भेजने को कहा- फिर फोन बंद कर मुझ से बोला, ‘तुम मुझे सिविल लाइंस वाले घर पर मिलना- यहां पिताजी अब भी मुझ से चिढ़ते हैं- यह रहा मेरा पता। और तुम्हें कोई जरूरत हो तो मुझ से मिलना- अरे हां, मैं ने तुम्हारी खुशी की मिठाई तो खाई ही नहीं,’ और उस ने मिठाई का एक टुकडा़ अपने मुंह में रख लिया था-

कुछ दिन बाद ही उस का एक आदमी मुझे उस के घर ले गया, जहां वह अकेला रहता था- मगर वह वहां अकेला नहीं था- वहां उस के कुछ नौकरों, आदमियों के साथ उस की रखैल पूजा भी थी- उस के कमरे की अलमारियां विभिन्न ब्रांडों वाले शराब से सजी थीं-

‘आज तुम मेरी सफलता का स्वाद चखो,’ डाइनिग टेबल के पास मुझे ले जा कर वह बोला, ‘यहां वह सबकुछ है जिसे तुम खा सकते हो और पी भी सकते हो-’

उस ने एक उन्मुक्त ठहाका लगाया, तो मैं सहम गया- अजीबोगरीब हथियारों से लैस अपने आदमियों से घिरा और अपनी जेब में एक विदेशी रिवाल्वर रखे अपनी रखैल के साथ जो बैठा है, क्या यह वही मंगल पांडे है जिसे मैं बचपन से जानता हूं, जो कभी मेरा दोस्त था और जिसे मैं देखना चाहता था- मजबूरन मुझे उस के साथ भोजन करना ही पडा़- इस आधे घंटे के दौरान उस ने अपनी उपलब्धियों और सफलताओं का कच्चा चिट्ठा मेरे सामने रख दिया था- उस की पहुंच किनकिन राजनेताओं और उच्चाधिकारियों तक थी और कैसेकैसे वह काम करता था, यह जानना मेरे लिए किसी अजूबे से कम नहीं था- इसी बीच उस के एक आदमी ने एक अटैची उस के पास रख दी, जो रुपयों से भरी थी- उस ने लापरवाही से अटैची खोली- रुपयों के 2-3 बंडलों को देखा और अटैची को बंद कर दिया-

‘इतना कुछ पा कर भी क्या तुम्हें ऐसा नहीं लगता कि कहीं कोई चीज खो भी गई है,’ मैं शांत स्वर में बोला, ‘मंगल, सच बताना, क्या ऐसा नहीं लगता?’

‘मैं ने अपनी सामाजिकता खोई है- अपना निजत्व खोया है,’ उस के स्वर में थोडा़ रूखापन था, ‘सब से बडी़ बात, मैं ने अपने पिताजी को खो दिया- मगर तुम्हीं बताओ, जब यह समाज ही ऐसा है कि सभी मुखौटे लगाए बैठे हैं तो मैं क्या करता- अपने बचाव का रास्ता सभी अख्तियार करते हैं और मैं ने भी किया, तो क्या बुरा किया.’

‘मगर यह कैसा रास्ता चुना तुम ने, जो अपराध की अंधेरी सुरंग से हो कर गुजरता है और आगे का तुम्हारा क्या भविष्य है?’

‘मेरा भविष्य अत्यंत उज्ज्वल है,’ वह गर्व से बोला, ‘अगले चुनाव में मैं भी एक उम्मीदवार बन कर तुम्हारे सामने आऊंगा, तब तुम देखना- मगर उस के लिए कुछ रुपयों का जुगाड़ तो कर लूं-’

‘रुपया तो तुम्हारे पास बहुत है,’ मैं उस की तिजोरी की ओर इशारा कर बोला, ‘और कितना चाहिए?’

‘करोडों़ रुपए,’ वह हंस पडा़, ‘तुम नहीं जानते, और जानने की कोशिश भी न करना- बहुत बुरा है यह रास्ता- इस रास्ते का अंत सिर्फ मौत है- चूंकि मैं इस रास्ते पर चल पडा़ हूं, पीछे हटने का मतलब सिर्फ मौत ही है-’

‘और आगे क्या है?’

‘सुरक्षा, सफलता और सत्ता का स्वाद है-’

वापसी के वक्त मैं यही सोचता रह गया कि अपनी इज्जत बचाने की खातिर अपनी बहन के साथ छेड़खानी करने वाले जिस गुंडे की मंगल हत्या करता है, आज वही रखैलें रखने और गुंडागर्दी करने पर उतर आया है- गाडि़यों और रखैलों को कपडों़ की तरह बदलता और शाही ठाट से रहता है- इस शहर के 3 घरों पर कब्जा जमाए हुए है और ऊंची पहुंच रखता है- मगर फिर याद आता है उस के पिता और बहन का चेहरा- चाहे वह कितनी भी सफलता की सीढि़यां तय कर ले, वह उन तक पहुंच नहीं सकता। और यहीं उस की पराजय है-

बाद में अपनी नई नौकरी और पारिवारिक परेशानियों में मैं उलझ कर रह गया- हम अपने ही एक ऐसे किराएदार से उलझे थे जो दबंग तो था ही, मुकदमेबाजी में भी उलझा कर रख दिया था- अंततः जब मुझे समझ में आ गया कि मकान का वह हिस्सा, जिस में वह रहता है, हमारे हाथ से निकल जाएगा, तो मैं ने मंगल पांडे की शरण ली और उस ने उस मकान को दूसरे ही दिन खाली करवा लिया, तो मेरे आश्चर्य का ठिकाना न रहा था-

‘जो व्यक्ति ठेके पर हत्याएं करता हो, उस के लिए यह मामूली बात है,’ वह मुसकरा कर बोला था, ‘कभी जरूरत हो तो आना- यह काम तो मैं ने दोस्ती के नाते मुपत में कर दिया और यह तो मेरे बाएं हाथ का खेल है-’

मैं सिहर पडा़- उस किराएदार को निकालने के लिए मैं ने जो तरीका अपनाया था उसी से मैं अपराधबोध से ग्रस्त था- आज तो उस ने उसे भगा दिया, मगर कल मंगल पांडे नहीं रहा और वह आ जाए, तो क्या होगा- यही मैं सोचता था- वैसे अनुभव ने मुझे यह तो सिखाया ही कि अपनी सुरक्षा आप करनी चाहिए- मगर क्या मेरे लिए यह संभव है?

क्या बात है, आज कालिज नहीं जाना क्या?

मैं ने चौंक कर पीछे देखा- पीछे मां खडी़ पूछ रही थीं, अब उस की चिता क्या करना, जो मर गया- जैसी करनी, वैसी भरनी- मौत से खेलेगा तो मौत ही तो मिलेगी- इस पर इतना सोचविचार क्या करना.

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हम बिकाऊ नहीं: प्रिया ने क्या किया था

‘‘सर,आज उस औनलाइन कंपनी में आप की मीटिंग है. उस के बाद दोपहर का खाना कंपनी के स्टाफ के साथ. हमारे गहनों को उन की वैबसाइट में डालने के सिलसिले में आज आप सौदा पक्का कर रहे हैं और दस्तखत भी करेंगे. यही आज का आप का प्रोग्राम है,’’ रामनाथ के निजी सचिव दया ने उन की डायरी को देख कर कहा और फिर संबंधित फाइल उन्हें दे दी.

रामनाथ ने उस फाइल को देख कर पूछा, ‘‘उस औनलाइन कंपनी की तरफ से कौन आ रहा है?’’ यह सवाल पूछते ही उन के मन में एक अजीब सा एहसास हुआ.

‘‘सर, पहले दिन से ही उस कंपनी की तरफ से हम से बातचीत करती आ रही वह लड़की प्रिया ही आएगी सौदा पक्का करने.’’

यह सुनते ही रामनाथ के मन में खुशी फैल गई. न जाने क्यों जब से प्रिया को पहली बार देखा या तब से रामनाथ का मन उस के प्रति आकर्षित हो गया था.

जब रामनाथ ने यह तय किया था कि वे एक अंतर्राष्ट्रीय औनलाइन कंपनी के साथ मिल कर अपने गहनों के व्यापार को नई ऊंचाइयों तक ले जाएंगे तो 1 महीना पहले जब दया ने कहा था कि उस कंपनी की ओर से एक लड़की आई है तो रामनाथ ने उसे हलके में लिया था.

रामनाथ उस शहर के ही नहीं, बल्कि देश के सब से बड़े व्यवसायियों में से एक थे. उन की वार्षिक आय करोड़ों में थी. उन के कई सारे कारोबार हैं जैसे सैटेलाइट टीवी, दैनिक और मासिक पत्रिकाएं, सोने, हीरे और प्लैटिनम के गहने तैयार कर अपने ही शोरूम में बेचना, 3-4 फाइवस्टार होटल, रियल ऐस्टेट. खासकर उन के गहने ग्राहकों के बीच बहुत लोकप्रिय थे. यह देख कर रामनाथ ने अपने कारोबार को और आगे बढ़ाने के लिए औनलाइन व्यापार में दाखिल होने का निर्णय लिया. उसी सिलसिले में उस अंतर्राष्ट्रीय कंपनी की ओर से प्रिया को पहली बार देखा था.

रामनाथ की आयु लगभग 50 साल थी. लंबा कद, सांवला रंग. उसी उम्र के अन्य लोगों की तरह तोंद नहीं. संक्षिप्त में कहें तो कोई भी उन्हें न तो सुंदर और न ही बदसूरत कह सकता था. अपने माथे पर कुमकुम का टीका लगाते थे और यह कुमकुम ही उन की अलग पहचान बन गई.

रामनाथ ने दया से कहा, ‘‘अंदर भेजो उस लड़की को,’’ और फिर फाइल में मग्न हो गए.

तभी सुरीली आवाज आई, ‘‘मे आई कम इन सर?’’

सुन कर फाइल से नजरें हटा कर आवाज की दिशा की ओर देखा. वहां सामने 22-23 उम्र की एक लड़की मुसकराती नजर आई. उसे देख कर रामनाथ की भौंहें खिल उठीं, फिर तुरंत खुद को संभालते हुए कहा, ‘‘कम इन’’ और फिर फाइल बंद कर दी.

लड़की लंबे कद की थी. आज के जमाने की युवतियों की तरह एक चुस्त जीन्स और स्लीवलैस ढीला टौप पहने थी. वातानुकूलित कमरे में बड़े ही अंदाज के साथ अंदर आई. हाथ में एक लैपटौप था. बाल कटे थे, कलाई पर महंगी घड़ी और कीमती फ्रेमवाले चश्मे के अलावा और कोई गहना नहीं था. उसे देख रामनाथ ने एक पल को सोचा कि इस लड़की को सुंदर बनाने के लिए किसी अन्य चीज की जरूरत ही नहीं है.

‘‘मैं हूं प्रिया. मैं अपनी अंतर्राष्ट्रीय कंपनी की ओर से आप से सौदा पक्का करने आई

हूं. मैं अपने बारे में कुछ कहना चाहती हूं. आईआईएम, अहमदाबाद से एमबीए खत्म करने के बाद कैंपस इंटरव्यू में इस कंपनी ने मुझे चुना. पिछले 6 महीनों से यहीं काम कर रही हूं. यह है मेरा बिजनैस कार्ड,’’ कह प्रिया ने रामनाथ से हाथ मिलाया.

उस का हाथ बहुत ही कोमल था. उस की आवाज में रामनाथ को एक संगीत सा लगा. जब लड़की अपनी कुरसी पर बैठी तो ऐसा लगा कि पूरा कमरा ही नूर से भर गया हो.

प्रिया ने अपनी कंपनी के बारे में बहुत कुछ कहा. अकसर इस तरह के सौदे को रामनाथ बस 1-2 मिनट बात कर के अपने किसी चुनिंदा अधिकारी को उस सौदे की जिम्मेदारी सौंप देते थे. मगर न जाने क्यों इस बार उन्होंने ऐसा नहीं किया. 20 मिनट की बातचीत के बाद प्रिया अपनी कुरसी से उठ कर बोली, ‘‘सर आप से मिल कर बेहद खुशी हुई. इस सौदे को आगे ले चलने के लिए आप अपनी कंपनी की ओर से अपने किसी भरोसेमंद अधिकारी को मुझ से मिलवाइएगा.’’

यह सुन कर रामनाथ ने कहा, ‘‘नहीं, इस मामले को मैं खुद संभालना चाहता हूं. लीजिए यह मेरा कार्ड, रात 9 बजे के बाद फोन कीजिएगा. आमतौर पर मैं उस समय अपने दफ्तर का काम बंद कर देता हूं. तब हम आराम से बात कर सकते हैं.’’

यह सुन कर प्रिया को ताज्जुब हुआ और उस के चेहरे में यह आश्चर्य साफ नजर आया और उस ने आधुनिक अदा में अपने कंधों को उठा कर नीचे कर के इसे प्रकट भी किया.

उस पहली मुलाकात के बाद 2 बार दोनों मिले. 3-4 बार फोन पर भी बात हुई. रामनाथ को पता नहीं था, मगर उन का मन अपनेआप उस लड़की की ओर चला गया. उन की निरंतर गर्लफ्रैंड कोई नहीं. काम हो जाने के बाद उसी वक्त पैसा दे कर मामले को रफादफा करने की आदत है उन में. किसी को रखनेबनाने की दिलचस्पी नहीं है उन में. उन के मुताबिक ऐसा करना बेवकूफी है और कोई भी औरत उन के लायक नहीं है. औरतों के लिए इतना ही आदर है उन के मन में. औरतों को आम की तरह चूसना और उस के बाद फेंकना रामनाथ यही करते आए आज तक. उन का मानना है कि पैसा फेंक कर किसी को भी खरीद सकते हैं. बस अंतर इतना ही कि कौन कितना मांग रही है.

ऐसे में यह स्वाभाविक ही है कि  उन्होंने प्रिया को भी उसी नजरिए से देखा हो. प्रिया की कोमलता और सुंदरता उन के मन को विचलित कर रही थी. ऊपर से उस लड़की के चालचलन और अकलमंदी ने रामनाथ के मन को पागल ही बना दिया. उन्होंने उस लड़की को किसी न किसी प्रकार हासिल करने की मन ही मन ठान ली.

‘उस दिन सौदा पक्का कर दस्तखत करने के बाद उस लड़की को लंच पर ले

जाऊंगा तो उस लड़की की कमजोरी का पता चल जाएगा जिस से काम आसानी से हो जाएगा,’ सोच कर रामनाथ के चेहरे पर मुसकराहट फैल गई और फिर उस पल का बेसब्री से इंतजार

करने लगे.

उस दिन उन के अपने फाइवस्टार होटल के डाइनिंगहौल के मंद प्रकाश में प्रिया और भी सुंदर लगी. प्रिया ने एक ऐसा टौप पहना थी कि उस के प्रति रामनाथ का आकर्षण और बढ़ता गया. बहुत प्रयास कर के अपने जज्बातों को काबू में रखा.

‘‘हाउ कैन आई हैल्प यू सर,’’ विनम्र भाव से पूछा वेटर ने.

रामनाथ ने अपने लिए एक कौकटेल का और्डर दिया.

फिर वेटर ने प्रिया से पूछा, ‘‘ऐंड फौर द लेडी सर,’’

सुनते ही प्रिया ने बेझिझक कहा, ‘‘गौडफादर फौर मी.’’

इस नाम को सुनते ही रामनाथ चौंक गए. यह लड़की इतना सख्त कौकटेल पीएगी, वे सोच भी नहीं सकते थे कि इतनी छोटी उम्र की लड़की ऐसा कौकटेल पी सकती है जो आदमी पर भी भारी पड़ सकता है.

कौकटेल आने के बाद दोनों पीने लगे. रामनाथ सोच रहे थे कि बात

कैसे शुरू की जाए. तभी प्रिया खुद बोली, ‘‘जी रामनाथ… हम ने डील साइन करा दी. मेरा काम यहीं तक है. इस के आगे हमारी कंपनी की तरफ से कोई और आएगा,’’ कहते वह बड़ी अदा के साथ कौकटेल पीने लगी. उस के पीने का अंदाज देख कर यह स्पष्ट हुआ कि यह लड़की इसे अकसर पीती है.

एक राउंड के बाद रामनाथ ने प्रिया के हाथ पकड़ कर उस के चेहरे को गौर से देखा ताकि उस की भावना को समझ सकें. प्रिया ने धीरे से रामनाथ के हाथों को हटा कर उन की आंखों में आंखें डाल कर पूछा, ‘‘तो रामनाथ आप मेरे साथ सोना चाहते हैं?’’

प्रिया का यह सवाल सुन कर रामनाथ हैरान रह गए. उन की जिंदगी में प्रिया पहली लड़की है जो इस तरह सीधे मुद्दे पर आई. इतनी छोटी उम्र में इतनी हिम्मत… रामनाथ को सच में एक झटका सा लगा.

गौडफादर को सिप करते हुए प्रिया बोली, ‘‘मैं इतनी भी भोली नहीं हूं कि आप का इरादा न समझ सकूं… पहले दिन ही मुझे पता चल गया था कि आप के मन में क्या चल रहा है… आप जैसे बड़ेकारोबारी मुझ जैसी चुटकी लड़कियों के साथ व्यवसाय के मामले में बात नहीं करते और इस काम को अपने किसी अधिकारी को ही देते लेकिन आप ने ऐसानहीं किया. और तो और आप अपना पर्सनल कार्ड भी मुझे दे कर मुझ से बात करने लगे… और यह लंच मेरी जैसी एक मामूली लड़की के साथ… मैं बेवकूफ नहीं हूं. आप के मन में क्या चल रहा है यह आईने की तरह मुझे साफ दिख रहा है. इट इज ओब्वियस… आप को कुछ बोलने की जरूरत ही नहीं.’’

रामनाथ सच में अवाक रह गए थे. उन्होंने अब तक कई लड़कियों को अपने जाल में फंसा लिया था, मगर किसी लड़की में इस तरह बात करनेझ्र की जुर्रत होगी यह उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था.

अपने कोमल हाथों से कांच के गिलास को इधरउधर घुमा कर प्रिया ही बोली, ‘‘मेरा इस तरह सीधे मुद्दे पर आना आप को चौंका गया पर गोलगोल बातें करना मेरी आदत ही नहीं… मेरे खयाल से आप का यह इरादा गलत नहीं है… आप ने अपने मन की इच्छा प्रकट की और अब अपनी राय बताने की मेरी बारी है.’’

‘‘सच कहूं तो मुझे कोई एतराज नहीं, मगर मेरी कुछ शर्तें हैं, जिन्हें आप को मानना पड़ेगा. जब बात जिस्म की होती है तो दोनों तरफ से एक लगाव का होना जरूरी है. मेरी खूबसूरती खासकर मेरा यौवन आप को मेरी ओर आकर्षित कर गया, मगर आप को अपने करीब आने की मंजूरी देने के लिए आप में ऐसा क्या है, जब मैं ने सोचा तो पता चल ही गया पैसा… बहुत ज्यादा पैसा जो मेरे पास नहीं है… वह पैसा जिसे पाने का जनून है मुझ में.’’

रामनाथ ने प्रिया की ओर देख कर कहा, ‘‘क्या तुम यह चाहती हो कि मैं तुम से शादी करूं?’’

रामनाथ की बात सुन कर प्रिया जोर से हंसने लगी. उस की हंसी से यह

साफ दिख रहा था कि उस के अंदर के गौडफादर ने अपना काम करना शुरू कर दिया है.

‘‘ओ कमऔन आप इतने बेवकूफ कैसे बन सकते हैं… शादी और आप से सच में आप मजाक ही कर रहे होंगे. आप किस जमाने में जी रहे हैं… शादी के बारे में तो मैं दूरदूर तक नहीं सोच सकती. अभीअभी मैं ने आप से कहा कि आप के पास मुझे आकर्षित करने वाली सिर्फ एक ही चीज है और वह है पैसा और आप मुझे अपने साथ रिश्ता जोड़ने की बात कर रहे हैं. हाउ द हेल कैन यू थिंक लाइक दिस?’’

‘‘आज की दुनिया में हम जैसी युवतियों का जीना ही मुश्किल है. हमारे आगे बहुत सारी चुनौतियां हैं, हमारी नौकरी में भी ढेर सारी दिक्कतें हैं. आप लोगों को इस के बारे में पता नहीं. अगर हम अमेरिका जाएं तो वहां भी जिंदगी आसान नहीं है. इन सभी कठिनाइयों को दूर करने का एक ही रास्ता है पैसा… बहुत सारा पैसा.’’

प्रिया क्या कहना चाहती है, रामनाथ को सच में पता नहीं चला.

‘‘मैं आप के इस प्रस्ताव को मानती हूं, मगर इस के बदले में आप अन्य औरतों को जिस तरह 3 या 4 लाख फेंकते हैं वे मेरे लिए पर्याप्त नहीं. आप के बारे में बहुत सारे अध्ययन करते समय मुझे पता चला कि आप के सभी कारोबारों में यह सोने और हीरे का व्यवसाय बहुत ही लाभदायक है. मैं आप के सामने 2 विकल्प रखती हूं. आप इस व्यवसाय को मेरे नाम कर दीजिए वरना आप के कारोबारों में जिन 3 बिजनैस को मैं चुनती हूं उन में मुझे 51% भागीदारी बनाइए और उस के बाद हमारा रिश्ता शुरू.

‘‘हां, यह मत समझना कि पैसे देने से आप मुझ पर किसी प्रकार का हुकम चला सकते हैं. हर महीने सिर्फ 10 दिन हम इस फाइवस्टार होटल में 1 घंटे के लिए मिल सकते हैं, बस. अगर आप को यह डील मंजूर है तो मुझे फोन कर दीजिएगा वरना अलविदा,’’ और फिर प्रिया अपना हैंडबैग ले कर वहां से चली गई.

रामनाथ का सारा नशा उतर गया. लौटती प्रिया को एकटक देखते रह गए. एक पल को पता ही नहीं चला कि वे भारत में हैं या किसी पश्चिमी देश में.

होटल से बाहर आई प्रिया को नशे की वजह से चक्कर आने लगा तो

अपनेआप को संभालने की कोशिश करने लगी तभी एक गाड़ी उस के पास आ कर रुकी. गाड़ी से एक हाथ बाहर आया और फिर प्रिया को

खींच कर गाड़ी में बैठा लिया. वह और कोई नहीं प्रिया का जिगरी दोस्त रोशन था. कुछ दूर चलने के बाद गाड़ी को किनारे खड़ा कर उस ने प्रिया के चेहरे पर पानी के छींटे मारे और फिर एक बोतल नीबू पानी पीने को दिया. नीबू पानी पीते ही प्रिया उलटी करने लगी. कुछ देर में होश में आ गई.

‘‘बहुत खूब प्रिया. जैसे हम ने योजना बनाई थी बिलकुल उसी तरह तुम ने बोल कर उस आदमी को अच्छा सबक सिखाया. अच्छा हुआ कि तुम ने उस के मंसूबे को सही वक्त पर पहचान लिया और उस कामुक व्यक्ति को अपनी औकात दिखा दी. उस जैसे आदमी यह सोचते हैं कि अपने पैसों, शान, शोहरत, रुतबे आदि से किसी भी लड़की को अपने बिस्तर तक ले जा सकते हैं.

‘‘उन के मन में औरत के लिए इज्जत नहीं. उन के लिए औरत एक खिलौना है, जिस के साथ मन चाहे समय तक खेले और फिर चंद रुपए दे कर फेंक दिया. यह लोग इंसान के रूप में समाज में भेडि़यों की तरह औरत को अपनी हवस का शिकार बनाते हैं. वह अब हैरान हो कर बैठा होगा और समझ गया होगा कि औरत बिकाऊ नहीं है. उस की संकीर्ण सोच पर पड़ा पर्दा हट गया होगा.’’

प्रिया के थके चेहरे पर हलकी सी मुसकराहट फैल गई जो औरत की जीत की मुसकराहट थी.

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पलटवार : भाग 3- जब स्वरा को दिया बहन और पति ने धोखा

सुबह उठ कर उस ने अपनी दिनचर्या के अनुसार सारे काम किए. अमित तथा श्रेया को बैड टी दी. डाइनिंग टेबल पर नाश्ता लगा दिया और नहाने के लिए जाने को हुई तभी उस का मोबाइल बज उठा. अमित जल्दी से फोन उठाने के लिए लपका, तभी स्वरा ने उठा लिया. स्क्रीन पर नाम देख कर मुसकराने लगी. ‘हैलो, हांहां, पूरा प्रोग्राम वही है, कोई भी फेरबदल नहीं है. मैं भी बस तैयार हो कर तुम्हारे पास ही आ रही हूं.’ फोन रख कर उस ने बड़े ही आत्मविश्वास से अमित की ओर मुसकरा कर देखा.

अमित की आंतें जलभुन गईं. आज फिर कहां जा रही है, लगता है पर निकल आए हैं, कतरने होंगे, घर के प्रति पूरी तरह समर्पित, भीरू प्रवृत्ति की स्त्री इतनी मुखर कैसे हो गई, क्या इसे मेरी तनिक भी चिंता नहीं है. इस तरह तो यह मुझे धोखा दे रही है. क्या करूं, कुछ समझ में नहीं आ रहा है. इस के पापा ने तो बताया था कि विशेष से श्रेया की शादी फिक्स हो गई है तो फिर यह क्या है? इसी ऊहापोह में फंसा हुआ वह अपने कमरे में जा कर धड़ाम से बैड पर गिर गया. आज फिर औफिस की छुट्टी हो गई, लेकिन कब तक? आखिर कब तक? वह इसी प्रकार छुट्टी लेता रहेगा. बस, अब कुछ न कुछ फैसला तो करना ही है. वह सोचने पर विवश था.

तभी, श्रेया ने धीरे से परदा हटा कर झांका, ‘‘जीजू, आज शाम की फ्लाइट से मैं मांपापा के पास पुणे वापस जा रही हूं. मैं ने अपना त्यागपत्र कंपनी को भेज दिया है. अब जब अगले माह मेरी शादी हो रही है और मुझे कनाडा चले जाना है तो जौब कैसे करूंगी.’’

अमित मौन था. उस ने श्रेया को यह भी नहीं बताया कि उस के पापा का फोन आया था और वह इन सब बातों से अवगत है. श्रेया अपने कमरे में चली गई पैकिंग करने. अमित बैड पर करवटें बदल रहा था मानो अंगारों पर लोट रहा हो.

दरवाजे की घंटी की आवाज पर अमित ने दरवाजा खोला. स्वरा ही थी. ‘‘आ गईं आप? अमित के स्वर में व्यंग्य था, ‘‘बड़ी जल्दी आ गईं, अभी तो रात के 10 ही बजे हैं. इतनी भी क्या जल्दी थी, थोड़ी देर और एंजौय कर लेतीं.’’

‘‘शायद, तुम ठीक कह रहे हो’’, स्वरा ने मुसकरा कर अंदर आते हुए कहा, ‘‘तुम दोनों की फिक्र लगी थी, भूख लगी होगी, अब खाना क्या बनाऊंगी, कहो तो चीजसैंडविच बना दूं. चाय के साथ खा लेना.’’

‘‘बड़ी मेहरबानी आप की. इतनी भी जहमत उठाने की क्या जरूरत है. श्रेया शाम की फ्लाइट से पुणे वापस चली गई है. तुम्हारे पापा का फोन आया था. मैं ने भी खाना बाहर से और्डर कर के मंगा लिया था. तुम टैंशन न लो. जाओ, सो जाओ,’’ अमित ने कुढ़ते हुए कहा और सोने लगा.

स्वरा मन ही मन हंस रही थी. कैसी मिर्च लगी है जनाब को, कितने दिनों से मैं जो उपेक्षा की शरशय्या पर लोट रही थी, उस का क्या. न तो मैं मूर्ख हूं, न ही अंधी, जो इन दोनों की बढ़ती नजदीकियों को समझ नहीं पा रही थी या देख नहीं पा रही थी.

अरे, अमित तो पुरुष है भंवरे की प्रवृत्ति वाला, जहां कहीं भी सौंदर्य दिखा, मंडराने लगा. यद्यपि ऐसा कभी भी नहीं हुआ कि पिछले 2 वर्षों में उस ने कभी भी अपनी बेवफाई का कोई भी परिचय दिया हो, लेकिन श्रेया, वह तो मेरी सगी बहन है, मेरी ही मांजायी. क्या उसे मेरा ही घर मिला था सेंध लगाने को. अमित से निकटता बढ़ाने से पूर्व क्या उसे एक बार भी मेरा खयाल नहीं आया. किसी ने सच ही कहा है, ‘आग और फूस एक साथ रहेंगे तो लपटें तो उठेंगी हीं,’ जिन्हें वह स्पष्ट देख रही थी. उस ने मन ही मन निश्चय ले लिया था कि यह बात अब और आगे नहीं बढ़ने देगी.

सुबह वह थोड़ा निश्ंिचत हो कर  उठी. नहाधो कर नाश्ता लगाया.  ‘‘अमित, श्रेया इतनी जल्दी क्यों चली गई. आज भी तो जा सकती थी,’’ उस ने सामान्य लहजे में कहा.

‘‘तो तुम्हें क्या, तुम अपनी लाइफ एंजौय करो. तुम्हें तो यह भी नहीं पता होगा कि श्रेया की शादी विशेष के साथ तय हो गई है. जो अगले माह में होगी. तुम्हारे पापा का ही फोन आया था. अरे हां, यह विशेष कहीं वही तो नहीं जिस के साथ तुम घूमफिर रही हो,’’ अमित ने चुभने वाले लहजे में कहा.

अब स्वरा चुप न रह सकी, ‘‘हां,  वही है. बताया तो था हम लोग क्लासमेट थे. तुम मिलना चाहो तो लंच पर बुला लेते हैं. और उस ने फोन लगा दिया. अमित हैरान था. इस के पापा ने तो बताया था कि विशेष वहां आया हुआ है तो फिर ये किस के साथ 2 दिनों से घूमफिर रही थी.’’

स्वरा ने बड़ा ही शानदार लंच बनाया था. सभी कुछ अमित की पसंद का था. पालक पनीर, भरवां करेले, मटर पुलाव, फू्रट सलाद, पाइनऐप्पल रायता और केसरिया खीर. 2 बजे दरवाजे की घंटी बज उठी. अमित ने दरवाजा खोला, सामने उस के मामा की बेटी निधि खड़ी मुसकरा रही थी. वह स्वरा की भी खास सहेली बन गई थी.

‘‘हाय दादा, भाभी कहां हैं?’’

‘‘वह तो किचन में है. उस का कोई दोस्त लंच पर आने वाला है. बस, उसी की तैयारी कर रही है,’’ अमित हड़बड़ा गया था.

‘‘अच्छा, तो भाभी से कहिए उन का दोस्त आ गया है,’’ निधि मुसकरा रही थी.

‘‘क्या? कहां है?’’ अमित का माथा चकरा रहा था.

‘‘आप के सामने ही तो है.’’

‘‘तुम?’’

‘‘सच, भाभी बहुत मजेदार हैं. 2 दिनों से जो मजे वे कर रही थीं, वर्षों से नहीं किए थे.’’

‘पूरे दिनदिन भर साथ रहना, रात में देर से आना,’ अमित उलझन में था. तभी पीछे से हंसती हुई स्वरा ने आ कर अमित के गले में अपनी बांहें डाल दीं, ‘‘हां अमित, ये हम दोनों की मिलीभगत थी,’’ स्वरा के स्वर में मृदु हास्य का पुट था.

‘‘दादा, और श्रेया कहां है, भाभी कह रही थीं आजकल आप उस के साथ घूमफिर व खूब मौजमस्ती कर रहे हैं,’’  निधि के स्वर में तल्खी थी.

‘‘अरे भई, इन्हीं की बहन की आवभगत में लगा था ताकि श्रेया को यह न लगे कि मैं उस की अवहेलना कर रहा हूं. आखिर वह मेरी इकलौती साली है और फिर सौंदर्य किसे आकर्षित नहीं करता. फिर, हमारे बीच दोस्ती ही तो थी,’’ अमित ने सफाई पेश की ताकि वह असल बात को छिपा सके.

‘‘अच्छा, वाह दादा, दोस्ती क्या ऐसी थी कि रात में देरदेर से आते थे. अकसर बाहर ही खापी लेते थे.’’

अब अमित खामोश था. उस की कुछ भी कहनेसुनने की अब हालत नहीं थी. सच ही तो है, जब 2 दिनों से स्वरा उस के बगैर ही एंजौय करती रही, तब वह भी तो जलभुन रहा था और वह तो इतने दिनों से मेरी उपेक्षा की शिकार हो रही थी. जबकि उस के समर्पण में कोई भी कमी न थी. तो स्वरा ने गलत क्या किया?

अकस्मात उस ने स्वरा को अपनी बाहों में उठा लिया और गोलगोल चक्कर काटते हुए हंसतेहंसते बोला, ‘‘भई वाह, तुम्हें तो राजनीति में होना चाहिए था. मेरी ओर से तुम्हारा गोल्ड मैडल पक्का.’’

स्वरा भी उस के गले में बाहें डाले झूल रही थी. उस का सिर अमित के सीने पर टिका था. निधि ने दोनों का प्यार देख कर वहां से चली जाना ही उचित समझा. उसे लगा कि दोनों के बीच कुछ था जो अब नहीं है. अब उस के वहां होने का कोई औचित्य भी नहीं था. उस ने राहत की सांस ली और गेट से बाहर आ गई.

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जाग सके तो जाग: क्या हुआ था साध्वी के साथ

लेखक- तेजेंद्र खेर

घर के ठीक सामने वाले मंदिर में कोई साध्वी आई हुई थीं. माइक पर उन के प्रवचन की आवाज मेरे घर तक पहुंच रही थी. बीचबीच में ‘श्रीराम…श्रीराम…’ की धुन पर वे भजन भी गाती जा रही थीं. महिलाओं का समूह उन की आवाज में आवाज मिला रहा था.

अकसर दोपहर में महल्ले की औरतें हनुमान मंदिर में एकत्र होती थीं. मंदिर में भजन या प्रवचन की मंडली आई ही रहती थी. कई साध्वियां अपने प्रवचनों में गीता के श्लोकों का भी अर्थ समझाती रहती थीं.

मैं सरकारी नौकरी में होने की वजह से कभी भी दोपहर में मंदिर नहीं जा पाती थी. यहां तक कि जिस दिन पूरा भारत गणेशजी की मूर्ति को दूध पिला रहा था, उस दिन भी मैं ने मंदिर में पांव नहीं रखा था. उस दिन भी तो गांधीजी की यह बात पूरी तरह सच साबित हो गई थी कि भीड़ मूर्खों की होती है.

एक दिन मंदिर में कोई साध्वी आई हुई थीं. उन की आवाज में गजब का जादू था. मैं आंगन में ही कुरसी डाल उन का प्रवचन सुनने लगी. वे गीता के एक श्लोक का अर्थ समझा रही थीं…

‘इस प्रकार मनुष्य की शुद्ध चेतना उस के नित्य वैरी, इस काम से ढकी हुई है, जो सदा अतृप्त अग्नि के समान प्रचंड रहता है. मनुस्मृति में उल्लेख है कि कितना भी विषय भोग क्यों न किया जाए, पर काम की तृप्ति नहीं होती.’ थोड़ी देर बाद प्रवचन समाप्त हो गया और साध्वीजी वातानुकूलित कार में बैठ कर चली गईं.

दूसरे दिन घर के काम निबटा, मैं बैठी ही थी कि दरवाजे की घंटी बजी, मन में आया कि कहला दूं कि घर पर नहीं हूं. पर न जाने क्यों, दूसरी घंटी पर मैं ने खुद ही दरवाजा खोल दिया.

बाहर एक खूबसूरत युवती और मेरे महल्ले की 2 महिलाएं नजर आईं. उस खूबसूरत लड़की पर मेरी निगाहें टिकी की टिकी रह गईं, लंबे कद और इकहरे बदन की वह लड़की गेरुए रंग की साड़ी पहने हुए थी.

उस ने मोहक आवाज में पूछा, ‘‘आप मंदिर नहीं आतीं, प्रवचन सुनने?’’

मैं ने सोचा, यह बात उसे मेरी पड़ोसिन ने ही बताई होगी, वरना उसे कैसे पता चलता.

मैं ने कहा, ‘‘मेरा घर ही मंदिर है. सारा दिन घर के लोगों के प्रवचनों में ही उलझी रहती हूं. नौकरी, घर, बच्चे, मेरे पति… अभी तो इन्हीं से फुरसत नहीं मिलती. दरअसल, मेरा कर्मयोग तो यही है.’’

वह बोली, ‘‘समय निकालिए, कभी अकेले में बैठ कर सोचिए कि आप ने प्रभु की भक्ति के लिए कितना समय दिया है क्योंकि प्रभु के नाम के सिवा आप के साथ कुछ नहीं जाएगा.’’

मैं ने कहा, ‘‘साध्वीजी, मैं तो साधारण गृहस्थ जीवनयापन कर रही हूं क्योंकि मुझे बचपन से ही सृष्टि के इसी नियम के बारे में सिखाया गया है.’’

मालूम नहीं, साध्वी को मेरी बातें अच्छी लगीं या नहीं, वे मेरे साथ चलतेचलते बैठक में आ कर सोफे पर बैठ गईं.

तभी एक महिला ने मुझ से कहा, ‘‘साध्वीजी के चरण स्पर्श कीजिए और मंदिरनिर्माण के लिए कुछ धन भी दीजिए. आप का समय अच्छा है कि साध्वी माला देवी स्वयं आप के घर आई हैं. इन के दर्शनों से तो आप का जीवन बदल जाएगा.’’

मुझे उस की बात बड़ी बेतुकी लगी. मैं ने साध्वी के पैर नहीं छुए क्योंकि सिवा अपने प्रियजनों और गुरुजनों के मैं ने किसी के पांव नहीं छुए थे.

धर्म के नाम पर चलाए गए हथकंडों से मैं भलीभांति परिचित थी. इस से पहले कि साध्वी मुझ से कुछ पूछतीं, मैं ने ही उन से सवाल किया, ‘‘आप ने संन्यास क्यों और कब लिया?’’

साध्वी ने शायद ऐसे प्रश्न की कभी आशा नहीं की थी. वे तो सिर्फ बोलती थीं और लोग उन्हें सुना करते थे. इसलिए मेरे प्रश्न के उत्तर में वे खामोश रहीं, साथ आई महिलाओं में से एक ने कहा, ‘‘साध्वीजी ने 15 बरस की उम्र में संन्यास ले लिया था.’’

‘‘अब इन की उम्र क्या होगी?’’ मेरी जिज्ञासा बराबर बनी हुई थी, इसीलिए मैं ने दूसरा सवाल किया था.

‘‘साध्वीजी अभी कुल 22 बरस की हैं,’’ दूसरी महिला ने प्रवचन देने के अंदाज में कहा.

मैं सोच में पड़ गई कि भला 15 बरस की उम्र में साध्वी बनने का क्या प्रयोजन हो सकता है? मन को ढेरों सवालों ने घेर लिया कि जैसे, इन के साथ कोई अमानुषिक कृत्य तो नहीं हुआ, जिस से इन्हें समाज से घृणा हो गई या धर्म के ठेकेदारों का कोई प्रपंच तो नहीं.

कुछ माह पहले ही हमारे स्कूल की एक सिस्टर (नन) ने विवाह कर लिया था. कुछ सालों में उस का साध्वी होने का मोहभंग हो गया था और वह गृहस्थ हो गई थी. एक जैन साध्वी का एक दूध वाले के साथ भाग जाने का स्कैंडल मैं ने अखबारों में पढ़ा था.

‘जिंदगी के अनुभवों से अनजान इन नादान लड़कियों के दिलोदिमाग में संन्यास की बात कौन भरता है?’ मैं अभी यह सोच ही रही थी कि साध्वी उठ खड़ी हुईं, उन्होंने मुझ से दानस्वरूप कुछ राशि देने के लिए कहा. मैं ने 100 रुपए दे दिए.

थोड़ी सी राशि देख कर, साध्वी ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘तुम में तो इतनी सामर्थ्य है, चाहे तो अकेले मंदिर बनवा सकती हो.’’

मैं ने कहा, ‘‘साध्वीजी, मैं नौकरीपेशा हूं. मेरी और मेरे पति की कमाई से यह घर चलता है. मुझे अपने बेटे का दाखिला इंजीनियरिंग कालेज में करवाना है. वहां मुझे 3 लाख रुपए देने हैं. यह प्रतियोगिता का जमाना है. यदि मेरा बेटा कुछ न कर पाया तो गंदी राजनीति में चला जाएगा और धर्म के नाम पर मंदिर, मसजिदों की ईंटें बजाता रहेगा.’’

तभी मेरी सहेली का बेटा उमेश घर में दाखिल हुआ. साध्वी को देखते ही उस ने उन के चरणों का स्पर्श किया.

साध्वी के जाने के बाद मैं ने उसे डांटते हुए कहा, ‘‘बेशर्म, उन के पैर क्यों छू रहा था?’’

‘‘अरे मौसी, तुम पैरों की बात करती हो, मेरा बस चलता तो मैं उस का…अच्छा, एक बात बताओ, जब भक्त इन साध्वियों के पैर छूते होंगे तो इन्हें मर्दाना स्पर्श से कोई झनझनाहट नहीं होती होगी?’’

मैं उमेश की बात का क्या जवाब देती, सच ही तो कह रहा था. जब मेरे पति ने पहली बार मेरा स्पर्श किया था तो मैं कैसी छुईमुई हो गई थी. फिर इन साध्वियों को तो हर आम और खास के बीच में प्रवचन देना होता है. अपने भाषणों से तो ये बड़ेबड़े नेताओं के सिंहासन हिला देती हैं, सारे राजनीतिक हथकंडे इन्हें आते हैं. भीड़ के साथ चलती हैं तो क्या मर्दाना स्पर्श नहीं होता होगा? मैं उमेश की बात पर बहुत देर तक बैठी सोचती रही.

त को कोई 8 बजे साध्वी माला देवी का फोन आया. वे मुझ से मिलना चाहती थीं. मैं उन के चक्कर में फंसना नहीं चाहती थी, इसलिए बहाना बना, टाल दिया. पर कोई आधे घंटे बाद वे मेरे घर पर आ गईं, उन्हीं गेरुए वस्त्रों में. उन का शांत चेहरा मुझे बरबस उन की तरफ खींच रहा था. सोफे पर बैठते ही उन्होंने उच्च स्वर में रामराम का आलाप छेड़ा, फिर कहने लगीं, ‘‘कितनी व्यस्त हो सांसारिक झमेलों में… क्या इन्हें छोड़ कर संन्यास लेने का मन नहीं होता?’’

मैं ने कहा, ‘‘माला देवी, बिलकुल नहीं, आप तो संसार से डर कर भागी हैं, लेकिन मैं जीवन को जीना चाहती हूं. आप के लिए जीवन खौफ है, पर मेरे लिए आनंद है. संसार के सारे नियम भी प्रकृति के ही बनाए हुए हैं. बच्चे के जन्म से ले कर मृत्यु, दुख, आनंद, पीड़ा, माया, क्रोध…यह सब तो संसार में होता रहेगा, छोटी सी उम्र में ही जिंदगी से घबरा गईं, संन्यास ले लिया… दुनिया इतनी बुरी तो नहीं. मेरी समझ में आप अज्ञानवश या किसी के छल या बहकावे के कारण साध्वी बनी हैं?’’

वे कुछ देर खामोशी रहीं. जो हमेशा प्रवचन देती थीं, अब मूक श्रोता बन गई थीं. वे समझ गई थीं कि उन के सामने बैठी औरत उन भेड़ों की तरह नहीं है जो सिर नीचा किए हुए अगली भेड़ों के साथ चलती हैं और खाई में गिर जाती हैं.

मेरे भीतर जैसे एक तूफान सा उठ रहा था. मैं साध्वी को जाने क्याक्या कहती चली गई. मैं ने उन से पूछा, ‘‘सच कहना, यह जो आप साध्वी बनने का नाटक कर रही हैं, क्या आप सच में भीतर से साध्वी हो गई हैं? क्या मन कभी बेलगाम घोड़े की तरह नहीं दौड़ता? क्या कभी इच्छा नहीं होती कि आप का भी कोई अपना घर हो, पति हो, बच्चे हों, क्या इस सब के लिए आप का मन अंदर से लालायित नहीं होता?’’

मेरी बातों का जाने क्या असर हुआ कि साध्वी रोने लगीं. मैं ने भीतर से पानी ला कर उन्हें पीने को दिया, जब वे कुछ संभलीं तो कहने लगीं, ‘‘कितनी पागल है यह दुनिया…साध्वी के प्रवचन सुनने के लिए घर छोड़ कर आती है और अपने भीतर को कभी नहीं खोज पाती. तुम पहली महिला हो, जिस ने गृहस्थ हो कर कर्मयोग का संन्यास लिया है, बाहर की दुनिया तो छलावा है, ढोंग है. सच, मेरे प्रवचन तो उन लोगों के लिए होते हैं, जो घरों से सताए हुए होते हैं या जो बहुत धन कमा लेने के बाद शांति की तलाश में निकलते हैं. इन नवधनाढ्य परिवारों में ही हमारा जादू चलता है. तुम ने तो देखा होगा, हमारी संतमंडली तो रुकती ही धनाढ्य परिवारों में है. लेकिन तुम तो मुझ से भी बड़ी साध्वी हो, तुम्हारे प्रवचनों में सचाई है क्योंकि तुम्हारा धर्म तुम्हारे आंगन तक ही सीमित है.’’

एकाएक जाने क्या हुआ, साध्वी ने मेरे चरणों को स्पर्श करते हुए कहा, ‘‘मैं लोगों को संन्यास लेने की शिक्षा देती हूं, पर तुम से अपने दिल की बात कह रही हूं, मैं संसारी होना चाहती हूं.’’

उन की यह बात सुन कर मैं सुखद आश्चर्य में डूब गई.

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