बाप और बेटों का रिश्ता संक्रमण काल से गुजर रहा है. पहले बाप बेटे की विश्वसनीयता एवं चरित्र पर शंका किया करते थे, अब बेटे भी बाप को शंकालु दृष्टि से देखने लगे हैं. वे बचपन से ही प्रेम को आत्मसात करतेकरते मूंछ की रेख आने तक पूर्ण परिपक्व हो जाते हैं और उन्हें यौवन पार करतेकरते पिताश्री की गतिविधियां संदिग्ध लगने लगती हैं. अब प्यार और विवाह में आयु का बंधन नहीं रहा. 60 के आसपास के चार्ल्स अभी भी राजकुमार हैं और वह आयु में अपने से बड़ी राजकुमारी कैमिला पार्कर को ब्याह कर राजमहल ले आए. पिता की शादी में युवा पुत्रों-हैरी और विलियम्स ने उत्साह से भाग लिया और आशीर्वाद…क्षमा करें, शुभकामनाएं दीं. कैमिला की बेटी लारा पार्कर नवयुगल को निहारनिहार कर स्वप्नलोक में खोती रही. वर्तमानकाल में सांस्कृतिक, सामाजिक व पारिवारिक मूल्य तेजी से बदल रहे हैं. ऐसे सामाजिक संक्रांतिकाल खंड में एक बेटे ने बाप से पूछा, ‘‘पापा, आज आप बडे़ स्मार्ट लग रहे हैं. कहां जा रहे हैं?’’
‘‘कहीं नहीं, बेटा,’’ बाप नजरें चुराते हुए बोला.
‘‘मेरी हेयरक्रीम से आप की चांद चमक रही है. अब समझ में आया. क्रीम जाती कहां है. मम्मी की नजरें बचा कर आईब्रो पेंसिल से मूंछें काली करते हैं. कहते हैं, कहीं नहीं जा रहे. क्या चक्कर है पिताश्री?’’ बेटे ने फिर पूछा.
‘‘कुछ नहीं, कुछ नहीं,’’ बाप सकपकाया जैसे चोरी पकड़ी गई हो. फिर बोला, ‘‘बेटा, तुम तो फालतू में शक वाली बात कह रहे हो.’’
‘‘फालतू में नहीं, पापा, जरूर दाल में कुछ काला है. मम्मी सही कहती हैं, आप के लक्षण ठीक नहीं. मैं ने भी टीवी सीरियल देखे हैं. आप के कदम बहक गए हैं. आप को परलोक की चिंता नहीं. मुझे अपने भविष्य की है,’’ बेटा गंभीरता से बोला.
‘‘तुम्हारा भविष्य तुम्हारे हाथ में है. बेटा, पढ़नेलिखने में दिल लगाओ,’’ बाप ने समझाया.
‘‘मैं पढ़ने में दिल लगाऊं और आप…’’ कहतेकहते बेटा रुक गया.
बाप सोच रहा था. बेटे को डांटूं या समझाऊं. तभी उस की निगाह बेटे के पैर पर गई. अपना नया जूता बेटे के पैर में देख पहले तो उसे क्रोध आया पर अगले पल ही यह सोच कर रह गया कि बाप का जूता बेटे के पैर में आने लगा है. समझाने में ही भलाई है. फिर बोला, ‘‘तुम क्या कहना चाहते हो, बेटा?’’
बेटा मन ही मन सोच रहा था, ‘मेरा बाप बेकहम की तरह करोड़पति तो है नहीं, जो मुआवजा दे सके. न कोई सेलिब्रेटी है जिस का बदनाम हो कर भी नाम हो, न मैं आमिर की तरह अमीर हूं जो बाप से नाता तोड़ सकूं. पिताश्री घर में रहें इसी में परिवार की भलाई है. यह अकसर पैसा खींचने के लिए अच्छा है?’
प्रगटत: बेटे ने कहा, ‘‘कुछ नहीं, पापा, बाहर जा रहा था. 100 रुपए दे दीजिए.’’
‘‘100 रुपए,’’ बाप दम साध कर बोला, ‘‘कल ही तो दिए थे. अब फिर…’’ पर उस ने समझौता करने में ही भलाई समझी. 100 रुपए देते हुए उस ने मुसीबत से छुटकारा पाया.
अब जेब खाली थी. अपना कार्यक्रम स्थगित किया, शयनकक्ष में झांका. पत्नी दूरदर्शन देखने में व्यस्त थी. पत्नी के मनोरंजन कार्यक्रम में व्यवधान डालने के परिणाम की कल्पना कर ही वह सिहर उठा. वह बाप से पति बनने की प्रक्रिया से गुजर रहा था. चुपचाप किचन में चाय बनाने लगा. पत्नी के व्यस्त कार्यक्रम के मध्य उसे चाय पिला कर पतिधर्म निभाने का विचार करने लगा. तभी बरतन गिरने की आवाज से चौंकी पत्नी की चिल्लाहट गूंजी, ‘‘पप्पू, क्या खटरपटर मचा रखी है? क्लाइमेक्स बरबाद कर दिया.’’
‘‘जी, पप्पू नहीं पप्पू का पापा,’’ पति ने भय से उत्तर दिया.
‘‘कितनी बार मना किया कि किचन में संभल कर काम करो. 20 साल में कुछ नहीं सीख पाए. तुलसी की साड़ी देखो, एक एपीसोड में 6 बदलती है और मैं 6 माह से यही रगड़ रही हूं. मेरे भाग्य में तुम्हीं लिखे थे,’’ पत्नी ने विषय बदल दिया.
‘‘अरे भाग्यवान, क्यों नाराज होती हो. लो, मेरे हाथ की चाय पियो,’’ पति चापलूसी के स्वर में बोला.
‘‘हाय राम, पूरा दूध डाल दिया. फिर भी चाय है या काढ़ा,’’ पत्नी चाय सुड़कते हुए बोली.
‘‘दवा समझ कर पी लो, मैं तो 20 साल से पी रहा हूं.’’
‘‘मेरे हाथ की चाय तुम्हें काढ़ा लगती है, तो कल से तुम्हीं बनाओ.’’
‘‘बुरा मान गईं. मैं तो रोज बनाता हूं. क्या देख रही हो, कुमकुम…’’
‘‘सीरियल का नाम भी याद है. मुझे बदनाम करते हो, देख लो मजेदार है.’’
‘‘नहीं, मुझे काम है,’’ कहते हुए पति कमरे से बाहर निकलने लगा.
‘‘कांटा लगा…देखोगे?’’
जब से आकाशीय तत्त्व ने दूरदर्शन के माध्यम से गृहप्रवेश किया है, दिन में चांद दिखने लगा है और रात में सूरज या यों कहें कि दिन में सोते हैं, रात में टीवी देखते हैं. घर में सभी की समयसारणी निश्चित है कि कौन कब क्या देखेगा. बच्चे पढ़ाई सीरियल के हिसाब से करते हैं. खाने का समय बदल ही गया है. जब पत्नी के जायके का सीरियल नहीं आता तभी खाना मिलता है. खाने का जायका भी सीरियल के जायके पर निर्भर हो गया है. रसपूर्ण सीरियल के मध्य ठंडा व नीरस और नीरस सीरियल के मध्य गरम और रसपूर्ण भोजन मिलता है. दूरदर्शन ने नई पीढ़ी को अत्यधिक समझदार बना दिया है. वे मम्मी से मासूमियत से माला-डी के बारे में पूछते हैं. वयस्कों के चलचित्र भोलेपन से देखते हैं.
हमारी कथा के नायक पति, जो कभीकभी बाप बन जाते हैं, क्रोधित होते हुए घर में प्रवेश करते हैं, ‘‘कहां है पप्पू, सूअर का बच्चा?’’
‘‘मैं यहां हूं, पापा.’’
‘‘क्यों, क्या हुआ? क्यों आसमान सिर पर उठाए हो?’’ पत्नी ने हस्तक्षेप किया.
‘‘पूछो इस से, मोटरसाइकिल पर लिए किसे घुमा रहा था?’’
‘‘किसे घुमा रहा था. मेरी सिस्टर थी ललिता,’’ बेटे ने निर्भीक हो कर उत्तर दिया.
‘‘लो, एक नई सिस्टर पैदा हो गई. मुझे तो मालूम नहीं, तुम्हारी मम्मी से ही पूछ लेते हैं,’’ बाप ने बेटे की मां की ओर देखा.
‘‘हाय राम, यह भी दिन देखने थे. पहले बेटे पर, अब मुझ पर शक करते हो? मेरी भी अग्निपरीक्षा लोगे? यह सब सुनने के पहले मैं मर क्यों नहीं गई,’’ पत्नी ने माथे पर हाथ मारते हुए कहा.
‘‘देखो मम्मी, पापा की बुद्धि कुंठित है, सोच दकियानूसी है, पुराने जमाने के आदमी हैं, दुनिया मंगल पर पहुंच रही है और आप हैं कि चांद पर अटके हैं. जरा आंखें खोलिए, पापा,’’ बेटे ने समझाया.
‘‘तुम ने मेरी आंखें खोल दीं, बेटे, अभी तक अंधा था. अब समझ आया, साहिबजादे क्या गुल खिला रहे हैं.’’
‘‘पापा, अब गुल नहीं खिलते, ईमेल खुलते हैं, चैटिंग होती है. सुपर कंप्यूटर के जमाने में आप स्लाइड रूल खिसका रहे हैं. बदलिए आप. मुझ से चाहते क्या हैं?’’ बेटे ने पूछा.
‘‘मैं क्या चाहूंगा? तुम अच्छी तरह पढ़लिख कर नाम कमाओ, बस.’’
‘‘पढ़लिख कर आप जैसी नौकरी करूं, यही न?’’
‘‘मैं ने यह नहीं कहा. कुछ भी अच्छा करो, कोई रोलमाडल चुनो. कुछ सभ्यता सीखो,’’ बाप ने समझाया.
‘‘आप की पीढ़ी से किसे चुनूं? गांधी, नेहरू, सुभाष, शास्त्री देखे नहीं. जे पी, विवेकानंद के बारे में बस, सुना है. आप के जमाने के रोलमाडल कौन हैं? फिल्म वाले, डकैत, पैसे वाले, रसूख वाले, दोहरे चरित्र के नेता, अफसर…आप बताएं किस जैसा बनूं?’’
‘‘तुम बहुत बातें करने लगे हो, यही सीखा है. तुम्हारे दादा के सामने मेरी आवाज नहीं निकलती थी.’’
‘‘आप कुछ नहीं कहते थे…क्यों?’’ बेटे ने प्रश्न किया.
‘‘मैं अनुशासित था.’’
‘‘आप यह नहीं कहेंगे, दादाजी अनुशासनप्रिय थे. आप के सामने बात करता हूं तो आप कहते हैं, मैं उद्दंड हूं. यह नहीं कहते कि आप अनुशासनप्रिय नहीं. आप की पीढ़ी अनुशासनप्रिय नहीं. परिणाम हमारी पीढ़ी है,’’ बेटे ने अपना पक्ष रखा.
‘‘कहां की बकबक लगा रखी है?’’ बाप खीजते हुए बोला.
‘‘आप कहें तो प्रवचन. हम कहें तो बकबक. यही आप की पीढ़ी का दोहरा चरित्र है. आप विचार करें, मैं बाहर मूड फे्रश कर के आता हूं,’’ कहता हुआ बेटा उठा और बाहर चला गया.
बाप सोच रहा था, ‘नई पीढ़ी में गजब का आत्मविश्वास है. पप्पू बात सही कह रहा था या गोली खिला कर चला गया?’