आज के इस मौडर्न जमाने में पापा जैसे मीडियोकर लोग दो पैसे के लिए घर को अशांति का अखाड़ा बनाए रहते हैं, उन्हें आगे बढ़ने, सपनों का पीछा करने से कोई मतलब नहीं है. बस हमेशा आटेदाल का भाव ही गिनते रह जाएंगे. दुर्बा भी तो वैसी है. पूर्बा इतनी करीबी और तंगहाली में नहीं जी सकती. उसे लाट साहेबी ही पसंद है, चाहे ये लोग कितना ही उस का मजाक बनाएं.
इन दिनों पूर्बा धूप में रंग उड़े खाली टीन के डब्बे की तरह हो गई है. ऊपर से पीटो तो ढेर सारी निरर्थक आवाजें, अजूबा बातें ही उस का सहारा थीं इन दिनों, ‘‘बस कुछ दिन और देखना अमुक अभिनेता, अमुक राजनेता, अमुक सैलिब्रिटी मु झे अपने पास बुला लेंगे. मैं अब कुछ दिन में ही मैनेजर बन जाने वाली हूं. फिर छोटे से कमरे में चिकचिक करने वाली बहन के साथ मु झे कैद नहीं रहना होगा. फ्लैट का सार सामान ले कर मैं उस से बड़े फ्लैट में शिफ्ट हो जाऊंगी,’’ अनर्गल, अविराम वह खुद को तसल्ली देती रहती.
दुर्बा एक दिन खासा गुस्सा हो गई, ‘‘सारा दिन घर के लिए हम खट मरें और यह महारानी खाट पर पड़े अंशुल से अपनी सेवा कराए. उठो महारानी दीदी. अंशुल को झूठी माया के मोहजाल में फांस तुम ने उसे पढ़ाई से दूर किया तो अब मैं तुम्हारी दुश्मन. पापा कुछ सालों में रिटायर हो जाएंगे. अंशुल को जिम्मेदारी न सम झा कर उसे हवा में उड़ा रही हो. बिस्तर पर पड़ेपड़े गाना सुनने के बजाय उठ कर घर में कुछ हाथ बंटाओ.’’
‘‘तू बड़ी है कि मैं बड़ी?’’
‘‘जिम्मेदारी कौन उठा रहा है? परिवार के कामों में कौन हाथ बंटा रहा है? भाई को पढ़ने में मदद कौन कर रहा है? तुम्हारी यहां नहीं चलेगी दीदी महारानी. पापा का और्डर है वरना घर से बाहर जाने को तैयार रहो.’’
‘‘इस लौकडाउन में?’’
अब तक आशुतोषजी सारा वार्त्तालाप सुन रहे थे, वे खुद को अब रोक नहीं पाए, ‘‘हां इसी लौकडाउन में ही. तभी तो बात बाहर जाएगी और पुलिस आएगी और तभी गरीब अनुशासनप्रिय पिता अपना दुख बता सकेगा. अभी से इस घर में सादी जिंदगी से तालमेल बैठाओ… यहां तुम्हारी मनमानी नहीं चलेगी.’’
झल्लाते हुए पूर्बा ने उस वक्त बिस्तर तो छोड़ दिया, लेकिन गहरे सागर में औक्सीजन खत्म हो गए तैराक की स्थिति थी उस की.
ऐसी जिंदगी उसे पसंद नहीं जहां इतना हिसाबकिताब चलता हो. सुखसुविधाओं पर 1-1 पाई गिन कर खर्चना पड़े. एक घेरे के अंदर सांसें आतीजाती रहें बस. यह कोई जिंदगी है. उसे चाहिए तेज रोशनी का सफर. अनंतअंतहीन एक चमचमाता आलोकवर्ष सा जीवन और वह भी आसान रास्तों से, जहां मधुमालती की लताओं में वसंत का गान छिड़ा हो. जहां पुरवाई की मीठी बयारों ने स्वप्नराज्य तैयार कर दिया हो, जहां उस पर कोई सवाल खड़ा करने की गुंजाइश न हो.
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एक और चांस… पूर्बा ने पहचान के सारे सैलिब्रिटी और उस से लाभान्वित होने
वाले उम्मीदवारों को बारीबारी फोन लगा लिया. कहीं फोन बंद, कहीं नंबर बदली, कहीं फोन बज कर खत्म और कहीं पहचानी नहीं गई वह.
कैसे ये इतने बेरहम हो सकते हैं? किसी तरह अपने पास बुला लेते… उन की बातों से आशाएं जगतीं, इस घर से निकलने की उम्मीद बंधती. पता नहीं, लौकडाउन खुलने के बाद भी होटल में सब को काम पर बुलाया जाएगा या नहीं. इस घर की चारदीवारी में तो जैसे पापा और दुर्बा का भुतहा साया चेंप गया है. कुछ भी करो उन का ही डर मंडराता रहता है. पूर्बा बेइंतहा परेशान सी सोचती जा रही थी.
‘‘निहार,’’ अचानक जैसे उसे बंद गुफा का द्वार मिल गया हो. उस के पापा का इसी शहर में घरेलू साजोसामान का अच्छा बड़ा ऐंपोरियम है. सुना है अभी अपने बड़े भैया के साथ वह भी सा झेदारी में दुकान चलाता है.
अगर इस वक्त वह जल्दी निर्णय नहीं ले पाई तो उस का क्व2-4 लाख की शादी में निबटान कर दिया जाएगा. फिर तो जिंदगी का बेड़ा गर्क हो जाएगा. निहार तब तक अच्छा विकल्प है जब तक उसे बड़ा ब्रेक न मिल जाए. ऐसे भी वह काफी सीधासादा है और उस के प्रेम में भी था. उसे न तो शादी के लिए मनाने में दिक्कत आएगी और न ही बाद में किसी बड़े औफर के लिए छोड़ कर जाने में.
निहार ने फोन जल्दी उठा लिया जिसे से पूर्बा काफी उत्साहित हो उठी.
‘‘निहार, मैं ने तुम्हें इन दिनों बहुत याद किया. मैं तुम्हें याद नहीं आई?’’
‘‘क्यों अकेला मैं ही बचा था, हाई क्लास सोसाइटी के तुम्हारे ढेर सारे दोस्त कहां गए? फिर इंस्ट्राग्राम के फौलोवर्स? वे अब कसीदे नहीं बरसाते तुम पर?’’
‘‘ऐ निहार, तुम इतने बदले से क्यों लग रहे हो? तुम मेरे सच्चे दोस्त हो न? वे सब गए. अब कहां इन बदरंग दीवारों वाले कमरों में इंस्ट्राग्राम के लिए तसवीरें खिंचवाऊंगी. पार्लर भी बंद और ब्यूटी प्रोडक्ट्स की दुकानें भी. पर तुम्हारा प्यार तो इन सब का मुहताज नहीं न… अब तो बस तुम और मैं. निहार, मु झे तुम्हारी जरूरत है. कहो कब आऊं तुम्हारे पास?’’
‘‘मैं नहीं बदला पूर्बा, जरूरत के हिसाब से तुम बदल गई हो. मैं खुद को सम झ चुका हूं और तुम्हें भी. सच्चे प्यार की दुहाई तुम मत दो. मेरा रास्ता अब तुम्हारी गली से हो कर नहीं जाता. आगे फोन मत करना.’’
खुद से दूर फोन फेंक कर पूर्बा निराश सी औंधे मुंह बिस्तर पर गिर पड़ी. हार मानी पूर्बा सिसक पड़ी.
अचानक सिर पर किसी के हाथ का स्पर्श मालूम हुआ. धीरेधीरे
उस के बालों में हाथ फेरता हुआ यह स्पर्श उसे प्रेम और विश्वास के आश्वासन से सराबोर करने लगा. उलटी लेटी पूर्बा सीधी हो गई. दुर्बा को सिर पर हाथ फेरते देख अवाक सी रह गई. वह तो मां की सोच रही थी.
‘‘दुर्बा,’’ वह दुर्बा की गोद में अपना मुंह छिपा कर बिलख पड़ी. क्या दुर्बा अंतर्यामी है. कैसे वह निराशा की घड़ी में साथ हो गई.
‘‘तुम निराश क्यों होती हो दी? तुम इस परिवार की जड़ों में पानी दो, बदले में यह तुम्हें हमेशा छांव देगा. घर के कामों में हाथ बंटाने के बाद बाकी बचे समय में तुम गाने की औनलाइन क्लास शुरू करो, मैं अपने दोस्तों और उन के छोटे भाईबहनों को सूचित कर दूंगी. बस फीस जरा कम रखना. आगे जब तुम्हारे लिए नौकरी की राह आसान होगी तो अपने काम के साथ गाना भी जारी रखना. देखना रोशनी तुम्हारे साथ चलेगी, तुम्हारे सपने पूरे होंगे, लेकिन मेहनत के बल पर.’’
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चौबीस घंटे दुश्मन की तरह सिर पर सवार रहने वाली दुर्बा अचानक कैसे बदल गई? क्या यह वही दुर्बा है? पूर्बा सोच में पड़ गई.
उसे यों एकटक देखती पा कर दुर्बा उस के गाल पर लाड़ से प्यारी सी चपत लगा कर बोली, ‘‘मैं क्या दुश्मन हूं तुम्हारी?’’
पूर्बा ने उठ कर दुर्बा के गाल पर नेह के उत्ताप से भरा एक गहरा चुंबन आंक दिया.