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Short Story: सफाई और कोरोना

दोपहरबिस्तर पर लोटपोट होने के बाद सोच कर कि चल कर जरा हौल की सैर कर आऊं, दरवाजा खोल कर बाहर कदम रखा कि किसी चीज से पैर टकराया. मुंह से चीख निकली और मैं बम जैसे फटा, ‘‘यह क्या हाल बना रखा है, घर के आदमी के चलनेफिरने लायक जगह तो छोड़ा कम से कम?’’

उधर से भी जवाबी धमाका हुआ, ‘‘दिनभर सोने से फुरसत मिल गई हो तो थोड़ा काम खुद भी कर लो.’’

मैं भिनभिनाया, ‘‘अभी तो तुम भी दिनभर घर में ही क्यों नहीं थोड़ा साफसफाई पर ध्यान दे लेती.’’

वह तमतमाई, ‘‘आप भी तो दिनभर बिस्तर पर ही हैं, आप ही क्यों नहीं थोड़ी साफसफाई कर लेते?’’

मैं सीना फुलाया, ‘‘यह मेरा काम नहीं है, मैं मर्द हूं.’’

सुमि पास आ गई, ‘‘अच्छा, यह कौन सी किताब में लिखा है

कि यह काम मर्दों का नहीं है.’’

मैं ने तन कर कहा, ‘‘मेरी अपनी किताब में.’’

सुमि ने

कमर पर हाथ रखे, ‘‘तो कौन से काम मर्दों के करने के हैं, ये भी लिखा होगा तो बता दो जरा?’’

मैं ने बांहें फैला दीं, ‘‘हां, लिखा है न आओ, बताऊं?’’

सुमि के चेहरे पर ललाई दौड़ गई जिसे उस ने तमतमाहट में छिपा लिया, ‘‘क्वारंटाइन में हो डिस्टैंस मैंटेन करो.’’

मैं ने आहें भरी, ‘‘वही

तो कर रहा हूं और कितना

करूं? 24 घंटे का साथ फिर

भी दूरियां…’’

मैं सुमि की तरफ बढ़ा सुमि ने बीच में ही

रोक दिया.

‘‘ये फालतू काम करने के बजाय कुछ काम की बात करो.’’

‘‘ये भी काम का ही काम है.’’

‘‘नहीं अभी बरतन मांजना ज्यादा काम का काम है, आओ जरा बरतन मांज दो.’’

‘‘कहा न यह मेरा काम नहीं है…’’

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सुमि तिनक कर बोली, ‘‘यह मेरा काम नहीं वह मेरा काम नहीं कहने से काम नहीं चलेगा. चुपचाप बरतन मांज दो वरना पुलिस को फोन कर दूंगी कि यहां एक कोरोना का मरीज है.’’

मैं थोड़ा डरा पर ऊपर से बोला, ‘‘यह गीदड़ भभकियां किसी और देना. तुम फोन कर सकती हो तो क्या मैं फोन नहीं कर सकता? मैं भी फोन कर के बोल दूंगा कि यहां एक कोरोना की मरीज है.’’

सुमि इत्मीनान से बोली, ‘‘बोल दो, बढि़या है. वे मेरी जांच करेंगे जांच में कुछ निकलेगा

नहीं पर मुझे 14 दिन का आराम मिल जाएगा. यहां घर में सारे काम आप करना. अभी तो पकापकाया मिल रहा है. बड़े ठाठ हैं नवाब

साहब के फिर खुद पकाना, खुद खाना और बरतन भी मांजना.’’

अब मैं वाकई डर गया, ‘‘छोड़ो न यार मैं तो मजाक कर रहा था, देखो बरतनवरतन मांजना तो अपने बस का है नहीं, मैं सफाई का काम कर देता हूं.’’

मैं ने डब्बू, डिंगी को आवाज लगाई, ‘‘चलो बच्चो मम्मी की हैल्प करते हैं. थोड़ी सफाई कर लेते हैं आ जाओ…’’

सुमि ने टोका, ‘‘कोई जरूरत नहीं है, सफाईवफाई करने की जैसा पड़ा है पड़े रहने दो. आप से जो कह रही हूं वह करो बस.’’

मैं ने जिद की, ‘‘अरे यार सफाई करना

मेरे लिए ज्यादा इजी रहेगा. करने दो न देखो, कितनी गंदगी पड़ी है हर जगह कितना पसरा

पड़ा है.’’

सुमि ने जैसे अल्टीमेटम देते हुए कहा, ‘‘न सफाई करनी है न करवानी है… जैसे पड़ा है पड़ा रहने दो, आप अपनी मर्दानगी इन बरतनों पर दिखाओ इन्हें चमका कर.’’

मैं फिर चिनमिनाया, ‘‘देखो एक तो यह

सब मेरे काम नहीं हैं फिर भी मैं करने को तैयार हूं तो जो काम मैं कर सकता हूं वही करने दो न.’’

सुमि फिर तुनकी, ‘‘एक बार कह तो

दिया सफाई नहीं करनी तो नहीं करनी क्यों पीछे पड़े हैं…’’

मैं भी जोर से बोला, ‘‘क्यों नहीं करनी? इतनी गंदगी में तुम कैसे रह सकती हो. तुम्हें आदत होगी तो होगी इतनी गंदगी में रहने की पर मुझे नहीं है तो मैं तो सफाई ही करूंगा.’’

सुमि ने मुंह बिचकाया,‘‘आए बड़े मिस्टर क्लीन. जैसे पहले व्हाइट हाउस में ही रहते थे… मैं भी कोई पाइप में रहती नहीं आई हूं पर अभी मुझे सफाई में नहीं रहना बस.’’

मैं ने भौंहें चढ़ाई, ‘‘क्यों पर क्यों नहीं रहना, क्यों नहीं करनी सफाई? इतने गंदे पसरे वाले घर में मन लग जाएगा तुम्हारा? अभी तो 24 घंटे तुम भी घर में ही हो…’’

सुमि ने होंठ टेढ़े किए, ‘‘हां तो इसी घर में रहना चाहती हूं, कहीं और नहीं जाना चाहती और यह भी चाहती हूं कि आप और बच्चे भी इसी घर में रहें कहीं किसी के घर न जाए.’’

मेरा सिर चकराया, ‘‘कमाल है, सफाई

का इस घर या कहीं जाने से क्या संबंध है?

तुम भी न कुछ का कुछ कहीं का कहीं जोड़ती रहती हो.’’

सुमि बोली, ‘‘संबंध कैसे नहीं हैं,

बिलकुल संबंध हैं, सौलिड संबंध हैं, जबरदस्त संबंध हैं.’’

मैं ने कहा, ‘‘वही तो पूछ रहा हूं, क्या संबंध है? तुम्हारी डेढ़ अक्ल ने निकाला है तो बता भी दो…’’

सुमि ने कंधे उचकाए, ‘‘इस में डेढ़ अक्ल, ढाई अक्ल वाली कोई बात नहीं है, सीधीसीधी बात है, देखो जितनी गंदगी होगी उतना इम्युनिटी सिस्टम अच्छा होगा. इम्युनिटी सिस्टम अच्छा होगा तो कोरोना का प्रभाव कम होगा. हम ऐसी गंदगी में रहेंगे तो न कोरोना होगा न हम कहीं और जाएंगे.’’

मेरा दिमाग घूम गया, ‘‘ये क्या लौजिक है, किस ने कहा गंदगी में रहने से कोरोना

नहीं आएगा?’’

सुमि ने अत्यधिक विश्वास से कहा, ‘‘आप खुद देखो न, कोरोना के सब से ज्यादा मरीज कहां थे और कहां पर मरे?’’

मैं ने कहा, ‘‘स्पेन, इटली में…’’

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‘‘और?’’

‘‘यूएसए, फ्रांस, ब्रिटेन…’’

‘‘तो देखो ये सभी देश साफस्वच्छ देशों में आते हैं कि नहीं. जितने साफ सुथरे थे उतना कोरोना का प्रभाव बढ़ता गया, लोगों की सांसें घटती गई.

‘‘एशियाई देशों में देखो चीन को छोड़

कर, कोरोना के कितने मरीज हैं? हमारे यहां

भी देखो जो शहर साफसुथरे थे वहां कोरोना

छाती ताने घूमता फिर रहा है, पर जो देश

और शहर गंदगी को अहमियत देते रहे आज उतना ही कम कोरोना से जूझ रहे हैं. हमारे

यहां भी देखो, रोज ही तो लोकल न्यूज चैनल

पर दिखा रहे हैं कि शहर में कितनी गंदगी हो

रही है. अभी पूरा शहर खाली पड़ा है आराम

से सफाई हो सकती है पर कोई ध्यान दे रहा क्या?

‘‘नहीं न, वह इसलिए कोरोना गंदगी देख कर पलट जाए, तो आप घर की सफाई भी रहने दो, जितना हम गंदगी में रहेंगे हमारी इम्युनिटी पावर बढे़गी और कोरोना से लड़ने की शक्ति भी. बाद की बाद में देखेंगे. आप तो अभी बरतन मांजो बस.’’

मैं मुंह खोले बेवकूफ सा उस की बात सुनता रहा. समझ नहीं पा रहा था इस का क्या जवाब दूं? बेचारे हमारे नेता स्वच्छ भारत मिशन चला कर देश को साफसुथरा बनाने में जीजान से कोशिश कर रहे हैं. यहां इस का यह नया ही फंडा. क्या वाकई यह सही कह रही है? सफाई से कोरोना प्रभावशाली व शक्तिशाली हो जाता है? इस पर रिसर्च बाद में करूंगा, फिलहाल

तो सिंक के पास खड़ा सोच रहा हूं कि बरतन कैसे मांजू?

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शह और मात: भाग-1

“पल्लवी, तुम्हारे चेहरे पर कुछ लगा है,” शरद ने पल्लवी के चेहरे की ओर इशारा करते हुए कहा.

वह उस की सहकर्मी भी थी और अच्छी दोस्त भी.

“कहां?” पल्लवी ने अपने चेहरे पर उंगलियां फिराते हुए पूछा.

“यहां,” शरद ने आगे झुक कर जैसे ही पल्लवी के गाल को छुआ, वह दर्द से कराहते हुए पीछे हो गई.

“संजीव ने तुम पर फिर से हाथ उठाया?” शरद ने उस की आंखों में झांकते हुए प्रश्न किया.

“ऐसा कुछ नहीं है. बेखयाली में कुछ लग गया होगा. मैं अभी आती हूं,” पल्लवी नजरें चुराती हुई उठ कर वहां से जाने लगी.

“अपने जिस्म पर पड़े निशानों को कब तक मेकअप से छिपाती रहोगी पल्लवी? मैं अब भी कहता हूं, मेरा हाथ थाम लो,” शरद के सवाल को सुन कर पल्लवी एक पल के लिए रुकी, लेकिन अगले ही पल तेज कदमों से वहां से चली गई.

पल्लवी के जाने के बाद भी शरद वहीं बैठा रहा. उस के दोस्त मोहसिन ने पीछे से आ कर उसकी पीठ पर धौल जमाई, “और तुम कब तक पल्लवी से इकतरफा मोहब्बत करते रहोगे? क्या तुम जानते नहीं कि वह शादीशुदा है?”

“जानता हूं यार. पूरा औफिस जानता है कि पल्लवी का पति उस के साथ कैसा जानवरों जैसा सुलूक करता है. मगर वह फिर भी उस के खिलाफ एक शब्द नहीं कहती है. मुझ से उस की यह हालत देखी नहीं जाती है,” शरद ने हताश हो कर अपने बालों में हाथ फिराया.

“लेकिन जब पल्लवी ही उस के साथ रहना चाहती है तो कोई कर भी क्या सकता है. वैसे एक बात बता, क्या तू पल्लवी को ले कर सीरियस है?” मोहसिन ने पूछा.

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“मैं पल्लवी से बहुत प्यार करता हूं और मैं जानता हूं कि वह भी मुझ से प्यार करती है. वह बस एक बार हां कह दे फिर मैं सब संभाल लूंगा,” शरद ने गंभीरता से उत्तर दिया.

“मैं कामना करुंगा कि तुम्हारी मोहब्बत को मंजिल मिल जाए. अब जल्दी चल लंच ब्रैक खत्म हो गया है.”

ब्रैक खत्म होने के बाद भी शरद की नजरें रह रहकर पल्लवी पर जा कर टिक जाती थीं. पल्लवी ने कुछ ही महीनों पहले यह औफिस जौइन किया था. उस के सरल और सुंदर व्यक्तित्व ने शरद का मनमोह लिया था. उसे पता था कि पल्लवी शादीशुदा है इसलिए उस ने अपनी भावनाओं को मन में ही रखा और मर्यादा की लकीर पार नहीं की.

पल्लवी सब से बहुत कम बात करती थी पर जब शरद ने पल्लवी की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया तो उस ने खुशीखुशी थाम लिया. वह चाहता था कि पल्लवी हमेशा खुश रहे. लेकिन जब धीरेधीरे पल्लवी की शादीशुदा जिंदगी की कुरूप सचाई सामने आनी शुरू हुई तो वह खुद पर काबू नहीं रख पाया.

पल्लवी का पति संजीव एक नंबर का नकारा और शराबी था. वह अकसर पल्लवी के साथ मारपीट करता था, जिस के निशान वह कई दिनों तक मेकअप के सहारे छिपाती रहती थी.

पल्लवी की हालत देख कर शरद का मन तड़प उठता था. वह बस किसी तरह उसे इस नर्क से मुक्ति दिलाना चाहता था और इस के लिए कुछ भी करने के लिए तैयार था. लेकिन इस बात से डरता था कि कहीं पल्लवी उसे गलत न समझ ले. इसी उधेड़बुन में एक दिन उसने पल्लवी को अपने दिल की बात बता दी. शरद को लगा था कि वह उस की बात सुन कर नाराज हो जाएगी लेकिन पल्लवी की प्रतिक्रिया तो उस की उम्मीद के बिलकुल परे थी. पल्लवी ने हां नहीं की तो इनकार भी नहीं किया. बस डबडबाई आंखों से शरद की ओर देखती रही जैसे खुद भी मन ही मन उस से प्यार करती हो.

पल्लवी की इस मूक सहमति से शरद को थोड़ी हिम्मत मिल गई थी और वह उस पर अपना अधिकार समझने लगा था. इसी अधिकार के नाते वह पल्लवी से कहता था कि वह संजीव को छोड़ कर उस से शादी कर ले. मगर पल्लवी को पता नहीं किस बात ने अब तक रोक रखा था. शरद ने गहरी सांस ली और अपने काम में व्यस्त हो गया.

अगले दिन शाम के समय पल्लवी अपने औफिस के बाहर सड़क पर औटोरिकशा का इंतजार कर रही थी. शरद‌ उसी समय बाइक से अपने घर जाने के लिए निकल रहा था. वह पल्लवी को देख कर रुक गया, “पल्लवी, आओ मैं तुम्हें घर तक छोड़ देता हूं.”

पल्लवी बिना कुछ कहे बाइक पर बैठ गई. रास्ते में उस ने शरद को एटीएम के सामने बाइक रोकने के लिए कहा और बाइक से उतर कर भीतर चली गई. कुछ मिनटों के बाद पल्लवी बाहर आई तो वह बहुत मायूस लग रही थी.

“क्या बात है पल्लवी? सब ठीक तो है ना?” शरद ने उस की मायूसी की वजह जाननी चाही.

“मुझे घर का किराया देने के लिए ₹ 10 हजार निकालने थे, लेकिन मेरे अकाउंट में इतना बैलेंस ही नहीं है. जरूर संजीव ने रुपए निकाल लिए होंगे. किराया भी आज ही देना है,” पल्लवी ने परेशान होते हुए कहा.

“बस इतनी सी बात. तुम परेशान क्यों हो रही हो, मैं तुम्हें रुपए दे देता हूं,” शरद ने कहा.

“लेकिन शरद मैं तुम से रुपए कैसे ले सकती हूं और अभी तो सैलरी मिलने को भी कई दिन बाकी हैं.”

“लेकिनवेकिन कुछ नहीं. मैं अभी रुपए निकाल कर लाता हूं.”

शरद पल्लवी एटीएम से रुपए निकाल लाया और पल्लवी के हाथ में नोट पकड़ा दिए.

“शरद मैं सैलरी मिलते ही तुम्हारे रुपए  वापस कर दूंगी,” पल्लवी ने भावुक होते हुए कहा.

“ज्यादा मत सोचो पल्लवी. घर का किराया समय पर दे देना बस. अब चलो घर नहीं जाना है क्या?” शरद ने मुसकराते हुए कहा और बाइक स्टार्ट कर दी.

अपने घर से कुछ दूरी पर पल्लवी ने शरद को बाइक रोकने के लिए कहा, “बस शरद यहां से मैं अपनेआप चली जाऊंगी.”

शरद ने कुछ कहे बिना बाइक रोक दी और पल्लवी उसे बाय बोल कर चली गई.

शरद ने पहले भी कई बार पल्लवी को यहां छोड़ा था. वह जानता था कि पल्लवी अपने पति संजीव के डर के कारण उसे यहीं रोक देती थी. पल्लवी के जाने के बाद शरद वहीं खड़ा हो कर उसे आंखों से ओझल होने तक देखता रहा.

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इधर पल्लवी जैसे ही चाबी से दरवाजा खोल कर अपने घर में दाखिल हुई, संजीव हाथ में शराब का गिलास लिए सोफे पर बैठा उस का इंतजार कर रहा था.

“रुपए मिले?” संजीव ने पूछा.

“हां, ₹10 हजार मिले हैं,” पल्लवी ने पर्स से नोट निकाल कर मेज पर रख दिए.

“चलो आज की पार्टी का इंतजाम तो ‌हो गया. लेकिन अगली बार अपने प्रेमी की जेब से जरा बड़ी रकम निकलवाना. आजकल ₹10 हजार में क्या होता है?” संजीव ने नोटों को अपनी ओर सरकाते हुए कहा.

आगे पढ़ें- पल्लवी बिना कुछ कहे अपने कमरे में चली गई. वहां रुक कर…

जीवन की नई शुरुआत: भाग-1

अरे रे रे, कोई रोको उसे, मर जाएगा वो,” अचानक से आधी रात को शोर सुन कर सारे लोग जाग गए और जो देखा, देख कर वे भी चीख पड़े. जल्दी से उसे वहां से खींच कर नीचे उतारा गया, वरना जाने क्या अनर्थ हो गया होता.

यह तीसरी बार था, जब रघु अपनी जान देने की कोशिश कर रहा था.  लेकिन इस बार भी उसे किसी ने बचा लिया, वरना अब तक तो वह मर गया होता.

क्वारंटीन सेंटर का निरीक्षण करने पहुंचे डीएम यानी जिलाधिकारी को जब रघु की आत्महत्या करने की बात पता चली और यह भी कि वह न तो ठीक से खातापीता है और न ही किसी से बात करता है. वह खुद में ही गुमशुम रहता है. कुछ पूछने पर बस वह अपने घर जाने की बात कह रो पड़ता है, तो डीएम को भी फिक्र होने लगी कि अगर इस लड़के ने क्वारंटीन सेंटर में कुछ कर लिया तो बहुत बुरा होगा.

जिलाधिकारी ने वहां रह रहे एकांतवासियों से पूछा कि उन्हें दिया जा रहा भोजन गुणवत्तायुक्त है या नहीं? हाथ धोने के लिए साबुन, मास्क, तौलिया आदि की व्यवस्था के बारे में भी जानकारी ली, फिर वहां की देखभाल करने वाले केयर टेकर को खूब फटकार लगाई कि वह करता क्या है?एक इनसान आत्महत्या करने की क्यों कोशिश कर रहा है, उस से जानना नहीं चाहिए?

“फांसी लगाने की कोशिश कर रहे थे, पर क्यों?” उस जिलाधिकारी ने जब रघु के समीप जा कर पूछा, तो भरभरा कर उस की आंखें बरस पड़ीं.

“कोई तकलीफ है यहां? बोलो न, मरना क्यों चाहते हो? अपने परिवार के पास नहीं जाना है?”

जब जिलाधिकारी मनोज दुबे ने कहा, तो सिसकियां लेते हुए रघु कहने लगा, “जाना है साहब, कब से कह रहा हूं मुझे मेरे घर जाने दो, पर कोई मेरी सुनता ही नहीं.”

कहते हुए रघु फिर सिसकियां लेते हुए रो पड़ा, तो जिलाधिकारी मनोज को उस पर दया आ गई.

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“हां, तो चले जाना, इस में कौन सी बड़ी बात है, बल्कि यहां कोई रहने नहीं आया है.  अवधि पूरी होगी, सभी को भेज दिया जाएगा अपनेअपने घर.  बताओ, और कोई बात है? यहां किसी चीज की समस्या हो रही है?”

“नहीं… लेकिन, मेरे मांबाप बूढ़े और बीमार हैं, उन्हें मेरी जरूरत है,” कहते हुए रघु का गला भर्रा गया.  लेकिन जिलाधिकारी को लग रहा था कि बात कुछ और भी है, जो रघु को खाए जा रही है.

अपने घरपरिवार से दूर क्वारंटीन सेंटर में 15-20 दिनों से रह रहे रघु पर मानसिक दबाव बढ़ने लगा था. वह रात को उठ कर यहांवहां घूमने लगता और अजीब सी हरकतें करता था. कभी वह क्वारंटीन सेंटर की ऊंची दीवार को नापता, तो कभी बड़े से लंबे दरवाजे को आंखें गड़ा कर देखता. कई बार तो वह पेड़ पर चढ़ जाता, ताकि वहां से फांद कर दीवार पार कर सके, पर कामयाब नहीं हो पाता.

रघु की इस हरकत पर उसे फटकार भी पड़ी थी.  लेकिन उस का कहना था कि उसे घर जाना है, क्योंकि अब उस के सब्र का बांध टूटने लगा है. उस ने कई बार मरने की भी धमकी दी थी कि अगर उसे उस के घर नहीं जाने दिया गया तो वह अपनी जान दे देगा. लेकिन कौन सुनने वाला था यहां उस का? सब उसे ‘पागल-बताहा’ कह कर चुप करा देते और हंसते. जैसे सच में वह कोई पागल हो.  लेकिन वह पागल नहीं था. यह बात कैसे समझाए सब को कि उसे यहां से जाना है, नहीं तो सब खत्म हो जाएगा.

जिलाधिकारी मनोज के पूछने पर रघु कहने लगा, “साहब, अच्छीखासी खुशहाल जिंदगी चल रही थी हमारी. किसी चीज की कमी नहीं थी. पर इस कोरोना ने एक झटके में सब बरबाद कर दिया साहब, कुछ नहीं बचा, कुछ नहीं, ना ही नौकरी और ना ही मेरा प्यार…”

बोलतेबोलते रघु की हिचकियां बंध गईं और वह बिलख कर रोने लगा, “साहब, हम गरीबों की तो किस्मत ही खराब है, वरना क्या दालरोटी पर भी मार पड़ जाती? अच्छीखासी जिंदगी चल रही थी हमारी.  मेहनतमजदूरी कर के खुश थे हम. लेकिन सब मटियामेट हो गया.”

अपने आंसू पोंछते हुए रघु बताने लगा कि अभी दो साल पहले ही वह अपने गांव सिवान से गुजरात आया था. वह यहां मिस्त्री का काम करता था, जिस से उस की अच्छीखासी कमाई हो जाती थी. अपने मांबाप के पास घर भी पैसे भेजता था. लेकिन अब क्या करेगा, समझ नहीं आ रहा है.

बताने लगा कि वह यहां अहमदाबाद में एक कमरे का घर ले कर रह रहा था. सोचा था कि मांबाप को भी ले आएगा, सब साथ मिल कर रहेंगे. लेकिन जिंदगी में ऐसी उथलपुथल मच जाएगी, नहीं सोचा था.

रघु हमेशा खुश रहने वाला, हंस कर बोलने वाला इनसान था और यही बात मुन्नी को, जो उस की ही बस्ती में रहती थी और वह नेपाल से थी, उस के करीब लाता था.

रघु का साथ मुन्नी को खूब भाता था. उस के पिता बड़े बाजार से थोक भाव में सब्जीफल ला कर बाजार में बेचते थे. उसी से उन के 8 परिवार का खर्चा चलता था. मुन्नी भी दोचार घरों में झाड़ूबरतन कर के कुछ पैसे कमा लेती थी. मगर रघु को मुन्नी का दूसरे के घरों में झाड़ूबरतन करना जरा भी अच्छा नहीं लगता था. उसे जब कोई गंदी नजरों से घूरता, तो रघु की आंखों में खून उतर आता. मन करता उस का कि जान ही ले ले उस की. कितनी बार उस ने मुन्नी से कहा कि छोड़ दे वह लोगों के  घरों में काम करना. पर मुन्नी उस की बात को यह कह कर टाल दिया करती कि उसे क्यों बुरा लगता है? कौन लगती है वह उस की?

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वैसे तो मुन्नी को भी दूसरे के घरों में झाड़ूबरतन करना अच्छा नहीं लगता था, मगर क्या करे वह भी? अब  8-8 जनों का पेट एक की कमाई से थोड़े ही भर सकता था.  कितनी बार लोगों की भेदती नजरों का वह निशाना बनी है. जिन घरों में वह काम करती है, वहां के मर्द ही उस पर गंदी नजर रखते हैं.

कहते तो बेटीबहन समान है, पर गलत इरादों से यहांवहां छूछाप कर देते हैं. देखने की कोशिश करते हैं कि लड़की कैसी है? लेकिन मुन्नी उस टाइप की लड़की थी ही नहीं. वह तो अपने काम से मतलब रखती थी. गरीबों के पास एक इज्जत ही तो होती है, वही चली जाए तो मरने के अलावा और कोई रास्ता नहीं बचता है. कुछ बोल भी नहीं सकती थी, अगर आवाज उठती तो उलटे मुंह गिरती. सो बच कर रहने में ही अपनी भलाई समझती थी.

गलती मुन्नी के मांबाप की भी कम नहीं थी. एक बेटे की खातिर पहले तो धड़ाधड़ 5 बेटियां पैदा कर लीं और अब उसी बेटी को दूसरेतीसरे घरों में काम करने भेजने लगे, ताकि पैसे की कमाई होती रहे.

चूंकि मुन्नी घर में सब से बड़ी थी, इसलिए छोटे भाईबहनों की जिम्मेदारी भी उस के ऊपर ही थी. बेचारी दिनभर चक्करघिन्नी की तरह पिसती रहती, फिर भी मां से गालियां पड़तीं कि ‘करमजली कहां गुलछर्रे उड़ाती फिरती है पूरे दिन.’

इधर मुन्नी को देखदेख कर रघु का कलेजा दुखता रहता, क्योंकि प्यार जो करने लगा था वह उस से. अपने काम से वापस आ कर हर रोज वह घर के बाहर खटिया लगा कर बैठ जाता और मुन्नी को निहारता रहता था. लेकिन आज कहीं भी उसे मुन्नी नहीं दिख रही थी, सो हैरानपरेशान सा वह इधरउधर देख ही रहा था कि उस के सिर पर आ कर कुछ गिरा. देखा, तो पेड़ पर चढ़ी मुन्नी उस के सिर पर पत्ता तोड़तोड़ कर फेंक रही थी.

“ओय मुन्नी… तू ने फेंका?” रघु लपका.

“नहीं तो… फेंका होगा किसी ने,” एक पत्ता मुंह में दबाते हुए शरारती अंदाज में मुन्नी बोली.

“देख, झूठ मत बोल, मुझे पता है कि तुम ने ही फेंका है.”

“अच्छा… और क्याक्या पता है तुझे?” कह कर वह पेड़ से नीचे कूद कर भागने लगी कि रघु ने झपट कर उस का हाथ पकड़ लिया.

“छोड़ रघु, कोई देख लेगा,” अपना हाथ रघु की पकड़ से छुड़ाते हुए मुन्नी बोली.

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“नहीं छोडूंगा. पहले ये बता, तू ने मेरे सिर पर पत्ता क्यों फेंका?” आज रघु को भी शरारत सूझी थी.

“हां, फेंका तो… क्या कर लेगा?” अपने निचले होंठ को दांतों तले दबाते हुए मुन्नी बोली और दौड़ कर अपने घर भाग गई.

आगे पढ़ें- रघु मुन्नी को देखते ही उत्साह से भर उठता और…

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