Beauty Tips : मेरे होंठ बहुत छोटे हैं जबकि मुझे पाउटेड लिप्स पसंद हैं, मैं क्या करूं?

Beauty Tips : अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल-

मेरे होंठ बहुत छोटे हैं जबकि मुझे पाउटेड लिप्स पसंद हैं. बताएं मैं क्या करूं?

जवाब-

आप 1 चम्मच ऐलोवेरा जैल में 1/2 चम्मच कोकोनट औयल डालें. अब 1/2 चम्मच चीनी भी मिक्स कर लें. किसी बहुत ही सौफ्ट ब्रश से अपने होंठों के ऊपर मसाज करें. कुछ ही मिनटों में आप के होंठ पाउटेड नजर आने लग जाएंगे. छोटे लिप्स को जनरली बड़ा करने के लिए आप परमानैंट लिपस्टिक लगवा सकती हैं. इस से आप के होंठ हमेशा बड़े और खूबसूरत नजर आएंगे और साथ में गुलाबी रंग के भी दिखेंगे.

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जब महिलाएं लिपस्टिक खरीदने जाती हैं, तो अकसर उसी शेड की लिपस्टिक खरीदती हैं, जो उन्हें पसंद आता है. बिना यह सोचे कि इस शेड की लिपस्टिक उन की स्किनटोन पर सूट करेगी भी या नहीं. अगर स्किनटोन और लिप्स टाइप को ध्यान में रख कर लिपस्टिक खरीदी जाए, तो चेहरे की खूबसूरती और भी बढ़ जाती है. आइए, मेकअप आर्टिस्ट क्रिस्टल फर्नांडिस से जानें कि मोटे लिप्स वाली महिलाओं पर लिपस्टिक के कौनकौन से शेड्स अच्छे दिखते हैं:

1. रैड

रैड लिपस्टिक का चुनाव करते समय अपनी स्किनटोन को ध्यान में रखें. जैसे यदि आप गोरी हैं तो रौयल रैड शेड की लिपस्टिक लगाएं और अगर आप का कौंप्लैक्शन गेहुआं है, तो वाइन रैड कलर की लिपस्टिक खरीदें. इस से आप खूबसूरत नजर आएंगी.

2. मोव

मोटे लिप्स वाली महिलाओं को लगता है कि लिपस्टिक के डार्क शेड्स उन पर नहीं जंचेंगे. अगर आप भी यही सोचती हैं, तो आप गलत हैं. मोटे लिप्स पर रैड शेड ही नहीं, बल्कि मोव शेड्स की लिपस्टिक भी खूबसूरत नजर आती है. चूंकि मोव शेड शाइनी होता है, इसलिए इसे नियमित लगाने के बजाय पार्टी जैसे खास मौकों पर ही लगाएं.

3. सौफ्ट पिंक

अगर आप डार्क शेड की लिपस्टिक लगाना पसंद नहीं करतीं, तो सिंपल और सोबर लुक के लिए सौफ्ट पिंक शेड की लिपस्टिक लगा सकती हैं. इस से मोटे होंठ हाईलाइट नहीं होते हैं. ये शेड औफिस गोइंग महिलाओं के लिए भी बैस्ट हैं. इन्हें आप औफिस की खास मीटिंग में ही नहीं, रोजाना भी लगा सकती हैं.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

Moral Stories in Hindi : बेघर – क्या रुचि ने धोखा दिया था मानसी बूआ को

Moral Stories in Hindi :  भाभी ने आखिर मेरी बात मान ही ली. जब से मैं उन के पास आई थी यही एक रट लगा रखी थी, ‘भाभी, आप रुचि को मेरे साथ भेज दो न. अर्पिता के होस्टल चले जाने के बाद मुझे अकेलापन बुरी तरह सताने लगा है और फिर रुचि का भी मन वहीं से एम.बी.ए. करने का है, यहां तो उसे प्रवेश मिला नहीं है.’

‘‘देखो, मानसी,’’ भाभी ने गंभीर हो कर कहा था, ‘‘वैसे रुचि को साथ ले जाने में कोई हर्ज नहीं है पर याद रखना यह अपनी बड़ी बहन शुचि की तरह सीधी, शांत नहीं है. रुचि की अभी चंचल प्रकृति बनी हुई है, महाविद्यालय में लड़कों के साथ पढ़ना…’’

मानसी ने उन की बात बीच में ही काट कर कहा, ‘‘ओफो, भाभी, तुम भी किस जमाने की बातें ले कर बैठ गईं. अरे, लड़कियां पढ़ेंगी, आगे बढ़ेंगी तभी तो सब के साथ मिल कर काम करेंगी. अब मैं नहीं इतने सालों से बैंक में काम कर रही हूं.’’

भाभी निरुत्तर हो गई थीं और रुचि सुनते ही चहक पड़ी थी, ‘‘बूआ, मुझे अपने साथ ले चलो न. वहां मुझे आसानी से कालिज में प्रवेश मिल जाएगा. और फिर आप के यहां मेरी पढ़ाई भी ढंग से हो जाएगी…’’

रुचि ने उसी दिन अपना सामान बांध लिया था और हम लोग दूसरे दिन चल दिए थे.

मेरे पति हर्ष को भी रुचि का आना अच्छा लगा था.

‘‘चलो मनु,’’ वह बोले थे, ‘‘अब तुम्हें अकेलापन नहीं खलेगा.’’

‘‘आजकल मेरे बैंक का काम काफी बढ़ गया है…’’ मैं अभी इतना ही कह पाई थी कि हर्ष बात को बीच में काट कर बोले थे, ‘‘और कुछ काम तुम ने जानबूझ कर ओढ़ लिए हैं. पैसा जोड़ना है, मकान जो बन रहा है…’’

मैं कुछ और कहती कि तभी रुचि आ गई और बोली, ‘‘बूआ, मैं ने टेलीफोन पर सब पता कर लिया है. बस, कल कालिज जा कर फार्म भरना है. कोई दिक्कत नहीं आएगी एडमिशन में. फूफाजी आप चलेंगे न मेरे साथ कालिज, बूआ तो 9 बजे ही बैंक चली जाती हैं.’’

‘‘हांहां, क्यों नहीं. चलो, अब इसी खुशी में चाय पिलाओ,’’ हर्ष ने उस की पीठ ठोकते हुए कहा था.

रुचि दूसरे ही क्षण उछलती हुई किचन में दौड़ गई थी.

‘‘इतनी बड़ी हो गई पर बच्ची की तरह कूदती रहती है,’’ मुझे भी हंसी आ गई थी.

चाय के साथ बड़े करीने से रुचि बिस्कुट, नमकीन और मठरी की प्लेटें सजा कर लाई थी. उस की सुघड़ता से मैं और हर्ष दोनों ही प्रभावित हुए थे.

‘‘वाह, मजा आ गया,’’ चाय का पहला घूंट लेते ही हर्ष ने कहा, ‘‘चलो रुचि, तुम पहली परीक्षा में तो पास हो गई.’’

दूसरे दिन हर्ष के साथ स्कूटर पर जा कर रुचि अपना प्रवेशफार्म भर आई थी. मैं सोच रही थी कि शुरू में यहां रुचि  को अकेलापन लगेगा. कालिज से आ कर दिन भर घर में अकेली रहेगी. मैं और हर्ष दोनों ही देर से घर लौट पाते हैं पर रुचि ने अपनी ज्ंिदादिली और दोस्ताना लहजे से आसपास कई घरों में दोस्ती कर ली थी.

‘‘बूआ, आप तो जानती ही नहीं कि आप के साथ वाली कल्पना आंटी कितनी अच्छी हैं. आज मुझे बुला कर उन्होंने डोसे खिलाए. मैं डोसे बनाना सीख भी आई हूं.’’

फिर एक दिन रुचि ने कहा, ‘‘बूआ, आज तो मजा आ गया. पीछे वाली लेन में मुझे अपने कालिज के 2 दोस्त मिल गए, रंजना और उस का भाई रितेश. कल से मैं भी उन के साथ पास के क्लब में बैडमिंटन खेलने जाया करूंगी.’’

हर्ष को अजीब लगा था. वह बोले थे, ‘‘देखो, पराई लड़की है और तुम इस की जिम्मेदारी ले कर आई हो. ठीक से पता करो कि किस से दोस्ती कर रही है.’’

हर्ष की इस संकीर्ण मानसिकता पर मुझे रोष आ गया था.

‘‘तुम भी कभीकभी पता नहीं किस सदी की बातें करने लगते हो. अरे, इतनी बड़ी लड़की है, अपना भलाबुरा तो समझती ही होगी. अब हर समय तो हम उस की चौकसी नहीं कर सकते हैं.’’

हर्ष चुप रह गए थे.

आजकल हर्ष के आफिस में भी काम बढ़ गया था. मैं बैंक से सीधे घर न आ कर वहां चली जाती थी जहां मकान बन रहा था. ठेकेदार को निर्देश देना, काम देखना फिर घर आतेआते काफी देर हो जाती थी. मैं सोच रही थी कि मकान पूरा होते ही गृहप्रवेश कर लेंगे. बेटी भी छुट्टियों में आने वाली थी, फिर भैया, भाभी भी इस मौके पर आ जाएंगे. पर मकान का काम ही ऐसा था कि जल्दी खत्म होने के बजाय और बढ़ता ही जा रहा था.

रुचि ने घर का काम संभाल रखा था, इसलिए मुझे कुछ सुविधा हो गई थी. हर्ष के लिए चायनाश्ता बनाना, लंच तैयार करना सब आजकल रुचि के ही जिम्मे था. वैसे नौकरानी मदद के लिए थी फिर भी काम तो बढ़ ही गया था. घर आते ही रुचि मेरे लिए चायनाश्ता ले आती. घर भी साफसुथरा व्यवस्थित दिखता तो मुझे और खुशी होती.

‘‘बेटे, यहां आ कर तुम्हारा काम तो बढ़ गया है पर ध्यान रखना कि पढ़ाई में रुकावट न आने पाए.’’

‘‘कैसी बातें करती हो बूआ, कालिज से आ कर खूब समय मिल जाता है पढ़ाई के लिए, फिर लीलाबाई तो दिन भर रहती ही है, उस से काम कराती रहती हूं,’’ रुचि उत्साह से बताती.

इस बार कई सप्ताह की भागदौड़ के बाद मुझे इतवार की छुट्टी मिली थी. मैं मन ही मन सोच रही थी कि इस इतवार को दिन भर सब के साथ गपशप करूंगी, खूब आराम करूंगी, पर रुचि ने तो सुबहसुबह ही घोषणा कर दी थी, ‘‘बूआ, आज हम सब लोग फिल्म देखने चलेंगे. मैं एडवांस टिकट के लिए बोल दूं.’’

‘‘फिल्म…न बाबा, आज इतने दिनों के बाद तो घर पर रहने को मिला है और आज भी कहीं चल दें.’’

‘‘बूआ, आप भी हद करती हैं. इतने दिन हो गए मैं ने आज तक इस शहर में कुछ भी नहीं देखा.’’

‘‘हां, यह भी ठीक है,’’ मैं ने कहा, ‘‘तुम्हारे इतने दोस्त हैं, जिन के बारे में तुम बताया करती हो, उन के साथ जा कर फिल्म देख आओ.’’

मेरे इस प्रस्ताव पर रुचि चिढ़ गई थी अत: उस का मन रखने के लिए मैं ने हर्ष से कहा, ‘‘देखो, आप इसे कहीं घुमा लाओ, मैं तो आज घर पर ही रह कर आराम करूंगी.’’

‘‘अच्छा, तो मैं अब इस के साथ फिल्म देखने जाऊं.’’

‘‘अरे बाबा, फिल्म न सही और कहीं घूम आना, अर्पिता के साथ भी तो तुम जाते थे न.’’

हर्ष और रुचि के जाने के बाद मैं ने घर थोड़ा ठीकठाक किया फिर देर तक नहाती रही. खाना तो नौकरानी आज सुबह ही बना कर रख गई थी. सोचा बाहर का लौन संभाल दूं पर बाहर आते ही रंजना दिख गई थी.

‘‘आंटी, रुचि आजकल कालिज नहीं आ रही है,’’ मुझे देखते ही उस ने पूछा था.

सुनते ही मेरा माथा ठनका. फिर भी मैं ने कहा, ‘‘कालिज तो वह रोज जाती है.’’

‘‘नहीं आंटी, परसों टेस्ट था, वह भी नहीं दिया उस ने.’’

मैं कुछ समझ नहीं पाई थी. अंदर आ कर मुझे खुद पर ही झुंझलाहट हुई कि मैं भी कैसी पागल हूं. लड़की को यहां पढ़ाने लाई थी और उसे घर के कामों में लगा दिया. अब इस से घर का काम नहीं करवाना है और कल ही इस के कालिज जा कर इस की पढ़ाई के बारे में पता करूंगी.

‘‘मेम साहब, कपड़े.’’

धोबी की आवाज पर मेरा ध्यान टूटा. कपड़े देने लगी तो ध्यान आया कि जेबें देख लूं. कई बार हर्ष का पर्स जेब में ही रह जाता है. कमीज उठाई तो रुचि की जीन्स हाथ में आ गई. कुछ खरखराहट सी हुई. अरे, ये तो दवाई की गोलियां हैं, पर रुचि को क्या हुआ?

रैपर देखते ही मेरे हाथ से पैकेट छूट गया था, गर्भ निरोधक गोलियां… रुचि की जेब में…

मेरा तो दिमाग ही चकरा गया था. जैसेतैसे कपड़े दिए फिर आ कर पलंग पर पसर गई थी.

कालिज के अपने सहपाठियों के किस्से तो बड़े चाव से सुनाती रहती थी और मैं व हर्ष हंसहंस कर उस की बातों का मजा लेते थे पर यह सब…मुझे पहले ही चेक करना था. कहीं कुछ ऊंचनीच हो गई तो भैयाभाभी को मैं क्या मुंह दिखाऊंगी.

मन में उठते तूफान को शांत करने के लिए मैं ने फैसला लिया कि कल ही इस के कालिज जा कर पता करूंगी कि इस की दोस्ती किन लोगों से है. हर्ष से भी बात करनी होगी कि लड़की को थोड़े अनुशासन में रखना है, यह अर्पिता की तरह सीधीसादी नहीं है.

हर्ष और रुचि देर से लौटे थे. दोनों सुनाते रहे कि कहांकहां घूमे, क्याक्या खाया.

‘‘ठीक है, अब सो जाओ, रात काफी हो गई है.’’

मैं ने सोचा कि रुचि को बिना बताए ही कल इस के कालिज जाऊंगी और हर्ष को आफिस से ही साथ ले लूंगी, तभी बात होगी.

सुबह रोज की तरह 8 बजे ही निकलना था पर आज आफिस में जरा भी मन नहीं लगा. लंच के बाद हर्ष को आफिस से ले कर रुचि के कालिज जाऊंगी, यही विचार था पर बाद में ध्यान आया कि पर्स तो घर पर ही रह गया है और आज ठेकेदार को कुछ पेमेंट भी करनी है. ठीक है, पहले घर ही चलती हूं.

घर पहुंची तो कोई आहट नहीं, सोचा, क्या रुचि कालिज से नहीं आई पर अपना बेडरूम अंदर से बंद देख कर मेरे दिमाग में हजारों कीड़े एकसाथ कुलबुलाने लगे. फिर खिड़की की ओर से जो कुछ देखा उसे देख कर तो मैं गश खातेखाते बची थी.

हर्ष और रुचि को पलंग पर उस मुद्रा में देख कर एक बार तो मन हुआ कि जोर से चीख पड़ूं पर पता नहीं वह कौन सी शक्ति थी जिस ने मुझे रोक दिया था. मन में उठा, नहीं, पहले मुझे इस लड़की को ही संभालना होगा. इसे वापस इस के घर भेजना होगा. मैं इसे अब और यहां नहीं सह पाऊंगी.

मैं लड़खड़ाते कदमों से पास के टेलीफोन बूथ पर पहुंची. फोन लगाया तो भाभी ने ही फोन उठाया था.

बिना किसी भूमिका के मैं ने कहा, ‘‘भाभी रुचि का पढ़ाई में मन नहीं लग रहा है, और तो और बुरी सोहबत में भी पड़ गई है.’’

‘‘देखो मनु, मैं ने तो पहले ही कहा था कि लड़की का ध्यान पढ़ाई में नहीं है, तुम्हारी ही जिद थी, पर ऐसा करो उसे वापस भेज दो. तुम तो वैसे ही व्यस्त रहती हो, कहां ध्यान दे पाओगी और इस का मन होगा तो यहीं कोई कोर्स कर लेगी…’’

भाभी कुछ और भी कहना चाह रही थीं पर मैं ने ही फोन रख दिया. देर तक पास के एक रेस्तरां में वैसे ही बैठी रही.

हर्ष यह सब करेंगे मेरे विश्वास से परे था पर सबकुछ मेरी आंखों ने देखा थीं. ठीक है, पिछले कई दिनों से मैं घर पर ध्यान नहीं दे पाई, अपनी नौकरी और मकान के चक्कर में उलझी रही, रात को इतना थक जाती थी कि नींद के अलावा और कुछ सूझता ही नहीं था, पर इस का दुष्परिणाम सामने आएगा, इस की तो सपने में भी मैं ने कल्पना नहीं की थी.

कुछ भी हो रुचि को तो वापस भेजना ही होगा. घंटे भर के बाद मैं घर पहुंची तो हर्ष जा चुके थे. रुचि टेलीविजन देख रही थी. मुझे देखते ही चौंकी.

‘‘बूआ, आप इस समय, क्या तबीयत खराब है? पानी लाऊं?’’

मन तो हुआ कि खींच कर एक थप्पड़ मारूं पर किसी तरह अपने को शांत रखा.

‘‘रुचि, आफिस में भैया का फोन आया था, भाभी सीढि़यों से गिर गई हैं, चोट काफी आई है, तुम्हें इसी समय बुलाया है, मैं भी 2-4 दिन बाद जाऊंगी.’’

‘‘क्या हुआ मम्मी को?’’

रुचि घबरा गई थी.

‘‘वह तो तुम्हें वहां जा कर ही पता लगेगा पर अभी चलो, डीलक्स बस मिल जाएगी. मैं तुम्हें छोड़ देती हूं, थोड़ाबहुत सामान ले लो.’’

आधे घंटे के अंदर मैं ने पास के बस स्टैंड से रुचि को बस में बैठा दिया था.

भाभी को फोन किया कि रुचि जा रही है. हो सके तो मुझे माफ कर देना क्योंकि मैं ने उस से आप की बीमारी का झूठा बहाना बनाया है.

‘‘कैसी बातें कर रही है. ठीक है, अब मैं सब संभाल लूंगी, तू च्ंिता मत कर. और हां, नए फ्लैट का क्या हुआ? कब है गृहप्रवेश?’’ भाभी पूछ रही थीं और मैं चुप थी.

क्या कहती उन से, कौन सा घर, कैसा गृहप्रवेश. यहां तो मेरा बरसों का बसाया नीड़ ही मेरे सामने उजड़ गया थीं. तिनके इधरउधर उड़ रहे थे और मैं बेबस अपने ही घर से ‘बेघर’ होती जा रही थी.

Hindi Storytelling : टूटे कांच की चमक

Hindi Storytelling : उस बिल्डिंग में वह हमारा पहला दिन था. थकान की वजह से सब का बुरा हाल था. हम लोग व्यवस्थित होने की कोशिश में थे कि घंटी बजी. दरवाजा खोल कर देखा तो सामने एक महिला खड़ी थीं.

अपना परिचय देते हुए वह बोलीं, ‘‘मेरा नाम नीलिमा है. आप के सामने वाले फ्लैट में रहती हूं्. आप नएनए आए हैं, यदि किसी चीज की जरूरत हो तो बेहिचक कहिएगा.

मैं ने नीचे से ऊपर तक उन्हें देखा. माथे पर लगी गोल बड़ी सी बिंदी, साड़ी का सीधा पल्ला, लंबा कद, भरा बदन उन के संभ्रांत होने का परिचय दे रहा था.

कुछ ही देर बाद उन की बाई आई और चाय की केतली के साथ नाश्ते की ट्रे भी रख गई. सचमुच उस समय मुझे बेहद राहत सी महसूस हुई थी.

‘‘आज रात का डिनर आप लोग हमारे साथ कीजिए.’’

मेरे मना करने पर भी नीलिमाजी आग्रहपूर्वक बोलीं, ‘‘देखिए, आप के लिए मैं कुछ विशेष तो बना नहीं रही हूं, जो दालरोटी हम खाते हैं वही आप को भी खिलाएंगे.’’

रात्रि भोज पर नीलिमाजी ने कई तरह के स्वादिष्ठ पकवानों से मेज सजा दी. राजमा, चावल, दहीबड़े, आलू, गोभी और न जाने क्याक्या.

‘‘तो इस भोजन को आप दालरोटी कहती हैं?’’ मैं ने मजाकिया स्वर में नीलिमा से पूछा तो वह हंस दी थीं.

जवाब उन के पति प्रो. रमाकांतजी ने दिया, ‘‘आप के बहाने आज मुझे भी अच्छा भोजन मिला वरना सच में, दालरोटी से ही गुजारा करना पड़ता है.’’

लौटते समय नीलिमाजी ने 2 फोल्ंिडग चारपाई और गद्दे भी भिजवा दिए. हम दोनों पतिपत्नी इस के लिए उन्हें मना ही करते रहे पर उन्होंने हमारी एक न चलने दी.

अगली सुबह, रवि दफ्तर जाते समय सोनल को भी साथ ले गए. स्कूल में दाखिले के साथ, नए गैस कनेक्शन, राशन कार्ड जैसे कई छोटेछोटे काम थे, जो वह एकसाथ निबटाना चाह रहे थे. ब्रीफकेस ले कर रवि जैसे ही बाहर निकले नीलिमाजी से भेंट हो गई. उन के हाथ में एक परची थी. रवि को हाथ में देते हुए बोलीं, ‘‘भाई साहब, कल रात मैं आप को अपना टेलीफोन नंबर देना भूल गई थी. जब तक आप को फोन कनेक्शन मिले, आप मेरा फोन इस्तेमाल कर सकते हैं.’’

नीलिमाजी ने 2 दिन में काम वाली बाई और अखबार वाले का इंतजाम भी कर दिया. जब घर सेट हो गया तब भी नीलिमा को जब भी समय मिलता आ कर बैठ जातीं. सड़क के आरपार के समाचारों का आदानप्रदान करते उन्हें देख मैं ने सहजता से अनुमान लगा लिया था कि उन्होंने महिलाओं से अच्छाखासा संपर्क बना रखा है.

उस समय मैं सामान का कार्टन खोल रही थी कि अचानक उंगली में पेचकस लगने से मेरे मुंह से चीख निकल गई तो नीलिमाजी मेरे पास सरक आई थीं. उंगली से खून निकलता देख कर वह अपने घर से कुछ दवाइयां और पट्टी ले आईं और मेरी चोट पर बांधते हुए बोलीं, ‘‘जो काम पुरुषों का है वह तुम क्यों करती हो. यह सोनल क्या करता रहता है पूरा दिन?’’

नीलिमा दीदी का तेज स्वर सुन कर सोनल कांप उठा. बेचारा, वैसे ही मेरी चोट को देख कर घबरा रहा था. जब तक मैं कुछ कहती, उन्होंने लगभग डांटते हुए सोनल को समझाया, ‘‘मां का हाथ बंटाया करो. ये कहां की अक्लमंदी है कि बच्चे आराम फरमाते रहें और मां काम करती रहे.’’

सोनल अपने आंसू दबाता हुआ घर के अंदर चला गया. मैं अपने बेटे की उदासी कैसे सहती. अत: बोली, ‘‘दीदी, सोनल मेरी बहुत मदद करता है पर आजकल इंटरव्यू की तैयारी में व्यस्त है.’’

‘‘इंटरव्यू, कैसा इंटरव्यू?’’

‘‘दरअसल, इसे दूसरे स्कूलों में ही दाखिला मिल रहा है. लेकिन हम चाहते हैं कि इसे ‘माउंट मेरी’ स्कूल में ही दाखिला मिले.’’

‘‘क्यों? माउंट मेरी स्कूल में कोई खास बात है क्या?’’ नीलिमा ने भौंहें उचका कर पूछा तो मुझे अच्छा नहीं लगा था. अपने घर किसी पड़ोसी का हस्तक्षेप उस समय मुझे बुरी तरह खल गया था.

बात को स्पष्ट करने के लिए मैं ने कहा, ‘‘यह स्कूल इस समय नंबर वन पर है. यहां आई.आई.टी. और मेडिकल की कोचिंग भी छात्रों को मिलती है.’’

‘‘अजी, स्कूल के नाम से कुछ नहीं होता,’’ नीलिमा बोलीं, ‘‘पढ़ने वाले बच्चे कहीं भी पढ़ लेते हैं.’’

‘‘यह तो है फिर भी स्कूल पर काफी कुछ निर्भर करता है. कुशाग्र बुद्धि वाले बच्चों को अच्छी प्रतिस्पर्धा मिले तो वे सफलता के सोपान चढ़ते चले जाते हैं.’’

‘‘लेकिन इतना याद रखना सविता, इन्हीं स्कूलों के बच्चे ड्रग एडिक्ट भी होते हैं. कुछ तो असामाजिक गतिविधियों में भी भाग लेते देखे गए हैं,’’ इतना कहतेकहते नीलिमा हांफने लगी थीं.

खैर, जैसेतैसे मैं ने उन्हें विदा किया.

नीलिमा की जरूरत से ज्यादा आवाजाही और मेरे घरेलू मामले में दखलंदाजी अब मुझे खलने लगी थी. कई बार सुना था कि पड़ोसिनें दूसरे के घर में घुस कर पहले तो दोस्ती करती हैं, बातें कुरेदकुरेद कर पूछती हैं फिर उन्हें झगड़े में तबदील करते देर नहीं लगती.

एक दिन मैं और पड़ोसिन ममता एक साथ कमरे में बैठे थे. तभी नीलिमा आ गईं और बोलीं, ‘‘यह तुम्हारा पंखा बहुत आवाज करता है, कैसे सो पाती हो?’’

यह कह कर वह अपने घर गईं और टेबल फैन उठा कर ले आईं.

‘‘कल ही मिस्तरी को बुलवा कर पंखा ठीक करवा लो. तब तक इस टेबल फैन से काम चला लेना.’’

पड़ोसिन ममता के सामने उन की यह बेवजह की घुसपैठ मुझे अच्छी नहीं लगी थी. रवि दफ्तर के काम में बेहद व्यस्त थे इसलिए इन छोटेछोटे कामों के लिए समय नहीं निकाल पा रहे थे. सोनल भी ‘माउंट मेरी स्कूल’ के पाठ्यक्रम के  साथ खुद को स्थापित करने में कुछ परेशानियों का सामना कर रहा था, मिस्तरी कहां से बुलाता? मैं भी इस ओर विशेष ध्यान नहीं दे पाई थी. मैं ने उन्हें धन्यवाद दिया और एक प्याली चाय बना कर ले आई.

चाय की चुस्कियों के बीच उन्होंने टटोलती सी नजर चारों ओर फेंक कर पूछा, ‘‘सोनल कहां है?’’

‘‘स्कूल में ही रुक गया है. कालिज की लाइब्रेरी में बैठ कर पढे़गा. आ जाएगा 4 बजे तक .’’

नीलिमा के चेहरे पर चिंता की आड़ीतिरछी रेखाएं उभर आईं. कभी घड़ी की तरफ  देखतीं तो कभी मेरी तरफ. लगभग सवा 4 बजे सोनल लौटा और किताबें अपने कमरे में रख कर बाथरूम में घुस गया. मैं ने तब तक दूध गरम कर के मेज पर रख दिया था.

नए कपड़ों में सोनल को देख कर नीलिमाजी ने मुझ से प्रश्न किया, ‘‘सोनल कहीं जा रहा है?’’

‘‘हां, इस के एक दोस्त का आज जन्मदिन है, उसी पार्टी में जा रहा है.’’

सोनल घर से बाहर निकला तो बुरा सा मुंह बना कर बोलीं, ‘‘सविता, जमाना बड़ा खराब है. लड़का कहां जाता है, क्या करता है, इस की संगत कैसी है आदि बातों का ध्यान रखा करो. अपना बच्चा चाहे बुरा न हो लेकिन दूसरे तो बिगाड़ने में देर नहीं करते.’’

नीलिमा की आएदिन की टीका- टिप्पणी के कारण सोनल अब उन से चिढ़ने लगा था. उन के आते ही उठ कर चला जाता. मुझे भी उन की जरूरत से ज्यादा घुसपैठ अच्छी नहीं लगती थी, किंतु उन के सहृदयी, स्नेही स्वभाव के कारण विवश हो जाती थी.

धीरेधीरे, मैं ने अपने घर का दरवाजा बंद रखना शुरू कर दिया. घर के  अंदर घंटी बंद करने का स्विच और लगवा लिया. अब जब भी दरवाजे पर घंटी बजती मैं ‘आईहोल’ में से झांकती. अगर नीलिमा होतीं तो मैं घंटी को कुछ देर के लिए अनसुनी कर देती और यह समझ कर कि घर के अंदर कोई नहीं है, वह लौट जातीं.

काफी राहत सी महसूस होने लगी थी मुझे. कई आधेअधूरे काम निबट गए. कुछ लिखनेपढ़ने का समय भी मिलने लगा. सोनल भी अब खुश रहता था. पढ़ने के बाद जो भी थोड़ाबहुत समय मिलता वह मेरे पास बैठ कर बिताता. शाम को जब रवि दफ्तर से लौटते, हम नीचे जा कर बैठ जाते. कुछ नए लोगों से जानपहचान बढ़ी, कुछ नए मित्र भी बने.

उन्हीं दिनों मैट्रो में एक नई फिल्म लगी थी. हम दोनों पतिपत्नी पिक्चर गए थे, बरसों बाद.

अचानक, रवि के मोबाइल की घंटी बजी. नीलिमाजी थीं. बदहवास, परेशान सी बोलीं, ‘‘भाई साहब, आप जहां भी हैं जल्दी घर आ जाइए. आप के घर का ताला तोड़ कर चोरी करने का प्रयास किया गया है.’’

धक्क से रह गया दिल. पिक्चर आधे में ही छोड़ कर दौड़तीभागती मैं घर की सीढि़यां चढ़ गई थी. रवि गाड़ी पार्क कर रहे थे. दरवाजे पर ही रमाकांतजी मिल गए. बोले, ‘‘घबराने की कोई बात नहीं है, भाभीजी. हम ने चोर को पकड़ कर अपने घर में बंद कर रखा है. पुलिस के आते ही उस लड़के को हम उन के हवाले कर देंगे.’’

मैं ने बदहवासी में दरवाजा खोला. अलमारी खुली हुई थी. कैमरा, वाकमैन, घड़ी के साथ और भी कई छोटीछोटी चीजें थैले में डाल दी गई थीं. लाकर को भी चोर ने हथौड़े से तोड़ने का प्रयास किया था पर सफल नहीं हो पाया था. एक दिन पहले ही रवि के एक मित्र की शादी में पहनने के लिए मैं बैंक से सारे गहने निकलवा कर लाई थी. कुछ नगदी भी घर में पड़ी थी. अगर नीलिमा ने समय पर बचाव न किया होता तो आज अनर्थ ही हो जाता.

मैंऔर रवि कुछ क्षण बाद जब नीलिमा के घर पहुंचे तो वह उस चोर लड़के को बुरी तरह मार रही थीं. रमाकांतजी ने पत्नी के चंगुल से उस लड़के को छुड़ाया, फिर बोले, ‘‘जान से ही मार डालोगी क्या इसे?’’ तब नीलिमा गुस्से में बोली थीं, ‘‘कम्बख्त, पैदा होते ही मर क्यों नहीं गया.’’

कुछ ही देर में पुलिस आ गई और उस लड़के को पकड़ कर अपने साथ ले गई. हम सब के चेहरे पर राहत के भाव उभर आए थे.

इस के बाद ही पसीने से लथपथ नीलिमा के सीने में तेज दर्द उठा तो सब उन्हें सिटी अस्पताल ले गए. डाक्टरों ने बताया कि हार्ट अटैक है. 3 दिन और 2 रातों के  बाद उन्हें होश आया. जिस दिन उन्हें अस्पताल से डिस्चार्ज होना था हम पतिपत्नी सुबह ही अस्पताल पहुंच गए थे. डाक्टरों ने हमें समझाया कि इन्हें हर प्रकार के टेंशन से दूर रहना होगा. जरा सा रक्तचाप बढ़ा तो दोबारा हार्टअटैक पड़ सकता है.

रमाकांतजी कुरसी पर बैठे एकटक पत्नी को देखे जा रहे थे. अचानक उन का गला भर आया. वे कांपते स्वर में बोले, ‘‘जिस के दिल में, ज्ंिदगी भर का नासूर पल रहा हो वह भला टेंशन से कैसे दूर रह सकता है. सविताजी, जिस लड़के ने आप के घर का ताला तोड़ कर चोरी करने का प्रयास किया वह हमारा बेटा था.’’

विश्वास नहीं हुआ था अपने कानों पर. लोगों को शिक्षित करने वाले रमाकांतजी और पूरे महल्ले की हितैषी नीलिमा का बेटा चोर, जो खुद के स्नेह से सब को स्ंिचित करती रहती थीं उन का अपना बेटा अपराधी?

रमाकांतजी ने बताया, ‘‘दरअसल, नीलिमा ने आप लोगों को कार में बिल्ंिडग से बाहर जाते हुए देख लिया था. कोई आधा घंटा भी नहीं बीता होगा, जब दूध ले कर लौट रही थीं कि आप के घर का ताला नदारद था और दरवाजा अंदर से बंद था. पहले नीलिमा ने सोचा कि शायद आप लोग लौट आए हैं लेकिन जब खटखट का स्वर सुनाई दिया तो उन्हें शक हुआ. धीरे से उन्होंने दरवाजा बाहर से बंद किया और चौकीदार को बुला लाई. थोड़ी देर में चौकीदार की सहायता से चोर को अपने घर में बंद कर दिया और फोन कर पुलिस को सूचित भी कर दिया.’’

हतप्रभ से हम पतिपत्नी एकदूसरे का चेहरा देखते तो कभी रमाकांतजी के चेहरे पर उतरतेचढ़ते हावभावों को पढ़ने का प्रयास करते.

‘‘शहर के सब से अच्छे स्कूल ‘माउंट मेरी कानवेंट’ में हम ने अपने बेटे का दाखिला करवाया था,’’ टूटतेबिखरते स्वर में रमाकांत बताने लगे, ‘‘इकलौती संतान से हमें भी ढेरों उम्मीदें थीं. यही सोचते थे कि हमारा बेटा भी होनहार निकलेगा. पर वह बुरी संगत में फंस गया. हम दोनों पतिपत्नी समझते थे कि वह स्कूल गया है पर वह स्कूल नहीं, अपने दोस्तों के पास जाता था. स्कूल से शिकायतें आईं तो डांटफटकार शुरू की, मारपीट का सिलसिला चला पर सब बेकार गया. उसे तो चरस की ऐसी लत लगी कि पहले अपने घर से पैसे चुराता, फिर पड़ोसियों के घरों में चोरी करने लगा. लोग हम से शिकायतें करने लगे तो हम ने स्पष्ट शब्दों में सब से कह दिया कि ऐसी नालायक औलाद से हमारा कोई संबंध नहीं है.’’

सहसा मुझे याद आया वह दिन जब निर्मला ने स्कूल के मुद्दे को छेड़ कर मुझ से कितनी बहस की थी. मेरे सोनल में शायद वह अपने बेटे की छवि देखती होंगी. तभी तो समयअसमय आ कर सलाहमशविरा दे जाती थीं. यह सोचते ही मेरी आंखों की कोर से टपटप आंसू टपक पड़े.

निर्मला की तांकनेझांकने की आदत से मैं कितना परेशान रहती थी. यही सोचती थी कि इन का अपने घर में मन नहीं लगता पर आज असलियत जान कर पता चला कि जब अपना ही खून अपने अस्तित्व को नकारते हुए बगावत का झंडा खड़ा कर बीच बाजार में इज्जत नीलाम कर दे तो कैसा महसूस होता होगा अभिभावकों को?

सच, व्यक्तित्व तो दर्पण की तरह होता है. जहां तक नजर देख पाती है उतना ही सत्य हम पहचानते हैं, शीशे के पीछे पारे की पालिश तक कौन देख सकता है? काश, नीलिमा की प्रतिछवि को पार कर कांच की चमक के पीछे दरकती गर्द की चुभन को मैं ने पहचाना होता पर अब भी देर नहीं हुई थी. वह मेरे लिए पड़ोसिन ही नहीं, आदरणीय बहन भी बन गई थीं.

Hindi Kahaniyan : अनुगामिनी

Hindi Kahaniyan :  जिलाधीश राहुल की कार झांसी शहर की गलियों को पार करते हुए शहर के बाहर एक पुराने मंदिर के पास जा कर रुक गई. जिलाधीश की मां कार से उतर कर मंदिर की सीढि़यां चढ़ने लगीं.

‘‘मां, तेरा सुहाग बना रहे,’’ पहली सीढ़ी पर बैठे हुए भिखारी ने कहा.

सरिता की आंखों में आंसू आ गए. उस ने 1 रुपए का सिक्का उस के कटोरे में डाला और सोचने लगी, कहां होगा सदाशिव?

सरिता को 15 साल पहले की अपनी जिंदगी का वह सब से कलुषित दिन याद आ गया जब दोनों बच्चे राशि व राहुल 8वीं9वीं में पढ़ते थे और वह खुद एक निजी स्कूल में पढ़ाती थी. पति सदाशिव एक फैक्टरी में भंडार प्रभारी थे. सबकुछ ठीकठाक चल रहा था. एक दिन वह स्कूल से घर आई तो बच्चे उदास बैठे थे.

‘क्या हुआ बेटा?’

‘मां, पिताजी अभी तक नहीं आए.’

सरिता ने बच्चों को ढाढ़स बंधाया कि पिताजी किसी जरूरी काम की वजह से रुक गए होंगे. जब एकडेढ़ घंटा गुजर गया और सदाशिव नहीं आए तो उस ने राशि को घनश्याम अंकल के घर पता करने भेजा. घनश्याम सदाशिव की फैक्टरी में ही काम करते थे.

कुछ समय बाद राशि वापस आई तो उस का चेहरा उतरा हुआ था. उस ने आते ही कहा, ‘मां, पिताजी को आज चोरी के अपराध में फैक्टरी से निकाल दिया गया है.’

‘यह सच नहीं हो सकता. तुम्हारे पिता को फंसाया गया है.’

‘घनश्याम चाचा भी यही कह रहे थे. परंतु पिताजी घर क्यों नहीं आए?’ राशि ने कहा.

रात भर पूरा परिवार जागता रहा. दूसरे दिन बच्चों को स्कूल भेजने के बाद सरिता सदाशिव की फैक्टरी पहुंची तो उसे हर जगह अपमान का घूंट ही पीना पड़ा. वहां जा कर सिर्फ इतना पता चल सका कि भंडार से काफी सामान गायब पाया गया है. भंडार प्रभारी होने के नाते सदाशिव को दोषी करार दिया गया और उसे नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया.

सरिता घर आ कर सदाशिव का इंतजार करने लगी. दिन भर इंतजार के बाद उस ने शाम को पुलिस में रिपोर्र्ट लिखवा दी.

अगले दिन पुलिस तफतीश के लिए घर आई तो पूरे महल्ले में खबर फैल गई कि सदाशिव फैक्टरी से चोरी कर के भाग गया है और पुलिस उसे ढूंढ़ रही है. इस खबर के बाद तो पूरा परिवार आतेजाते लोगों के हास्य का पात्र बन कर रह गया.

सरिता ने सारे रिश्तेदारों को पत्र भेजा कि सदाशिव के बारे में कोई जानकारी हो तो तुरंत सूचित करें. अखबार में फोटो के साथ विज्ञापन भी निकलवा दिया.

इस मुसीबत ने राहुल और राशि को समय से पहले ही वयस्क बना दिया था. वह अब आपस में बिलकुल नहीं लड़ते थे. दोनों ने स्कूल के प्राचार्य से अपनी परिस्थितियों के बारे में बात की तो उन्होंने उन की फीस माफ कर दी.

राशि ने शाम को बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना शुरू कर दिया. राहुल ने स्कूल जाने से पहले अखबार बांटने शुरू कर दिए. सरिता की तनख्वाह और बच्चों की इस छोटी सी कमाई से घर का खर्च किसी तरह से चलने लगा.

इनसान के मन में जब किसी वस्तु या व्यक्ति विशेष को पाने की आकांक्षा बहुत बढ़ जाती है तब उस का मन कमजोर हो जाता है और इसी कमजोरी का लाभ दूसरे लोग उठा लेते हैं.

सरिता इसी कमजोरी में तांत्रिकों के चक्कर में पड़ गई थी. उन की बताई हुई पूजा के लिए कुछ गहने भी बेच डाले. अंत में एक दिन राशि ने मां को समझाया तब सरिता ने तांत्रिकों से मिलना बंद किया.

कुछ माह के बाद ही सरिता अचानक बीमार पड़ गई. अस्पताल जाने पर पता चला कि उसे टायफाइड हुआ है. बताया डाक्टरों ने कि इलाज लंबा चलेगा. यह राशि और राहुल की परीक्षा की घड़ी थी.

ट्यूशन पढ़ाने के साथसाथ राशि लिफाफा बनाने का काम भी करने लगी. उधर राहुल ने अखबार बांटने के अलावा बरात में सिर पर ट्यूबलाइट ले कर चलने वाले लड़कों के साथ भी मजदूरी की. सिनेमा की टिकटें भी ब्लैक में बेचीं. दोनों के कमाए ये सारे पैसे मां की दवाई के काम आए.

‘तुम्हें यह सब करते हुए गलत नहीं लगा?’ सरिता ने ठीक होने पर दोनों बच्चों से पूछा.

‘नहीं मां, बल्कि मुझे जिंदगी का एक नया नजरिया मिला,’ राहुल बोला, ‘मैं ने देखा कि मेरे जैसे कई लोग आंखों में भविष्य का सपना लिए परिस्थितियों से संघर्ष कर रहे हैं.’

दोनों बच्चों को वार्षिक परीक्षा में स्कूल में प्रथम आने पर अगले साल से छात्रवृत्ति मिलने लगी थी. घर थोड़ा सुचारु रूप से चलने लगा था.

सरिता को विश्वास था कि एक दिन सदाशिव जरूर आएगा. हर शाम वह अपने पति के इंतजार में खिड़की के पास बैठ कर आनेजाने वालों को देखा करती और अंधेरा होने पर एक ठंडी सांस छोड़ कर खाना बनाना शुरू करती.

इस तरह साल दर साल गुजरते चले गए. राशि और राहुल अपनी मेहनत से अच्छी नौकरी पर लग गए. राशि मुंबई में नौकरी करने लगी है. उस की शादी को 3 साल गुजर गए. राहुल भारतीय प्रशासनिक सेवा की परीक्षा में उत्तीर्ण हो कर झांसी में जिलाधीश बन गया. 1 साल पहले उस ने भी अपने दफ्तर की एक अधिकारी सीमा से शादी कर ली.

सरिता की तंद्रा भंग हुई. वह वर्तमान में वापस आ गई. उस ने देखा कि बाहर काफी अंधेरा हो गया है. हमेशा की तरह उस ने सदाशिव के लिए प्रार्थना की और घर के लिए रवाना हो गई.

‘‘मां, बहुत देर कर दी,’’ राहुल ने कहा.

सरिता ने राहुल और सीमा को देखा और उन का आशय समझ कर चुपचाप खाना खाने लगी.

‘‘बेटा, यहां से कुछ लोग जयपुर जा रहे हैं. एक पूरी बस कर ली है. सोचती हूं कि मैं भी उन के साथ हो आऊं.’’

‘‘मां, अब आप एक जिलाधीश की भी मां हो. क्या आप का उन के साथ इस तरह जाना ठीक रहेगा?’’ सीमा ने कहा.

सरिता ने सीमा से बहस करने के बजाय, प्रश्न भरी नजरों से राहुल की ओर देखा.

‘‘मां, सीमा ठीक कहती है. अगले माह हम सब कार से अजमेर और फिर जयपुर जाएंगे. रास्ते में मथुरा पड़ता है, वहां भी घूम लेंगे.’’

अगले महीने वे लोग भ्रमण के लिए निकल पड़े. राहुल की कार ने मथुरा में प्रवेश किया. मथुरा के जिलाधीश ने उन के ठहरने का पूरा इंतजाम कर के रखा था. खाना खाने के बाद सब लोग दिल्ली के लिए रवाना हो गए. थोड़ी दूर चलने पर कार को रोकना पड़ा क्योंकि सामने से एक जुलूस आ रहा था.

‘‘इस देश में लोगों के पास बहुत समय है. किसी भी छोटी सी बात पर आंदोलन शुरू हो जाता है या फिर जुलूस निकल जाता है,’’ सीमा ने कहा.

राहुल हंस दिया.

सरिता खिड़की के बाहर आतेजाते लोगों को देखने लगी. उस की नजर सड़क के किनारे चाय पीते हुए एक आदमी पर पड़ गई. उसे लगा जैसे उस की सांस रुक गई हो.

वही तो है. सरिता ने अपने मन से खुद ही सवाल किया. वही टेढ़ी गरदन कर के चाय पीना…वही जोर से चुस्की लेना…सरिता ने कई बार सदाशिव को इस बात पर डांटा भी था कि सभ्य इनसानों की तरह चाय पिया करो.

चाय पीतेपीते उस व्यक्ति की निगाह भी कार की खिड़की पर पड़ी. शायद उसे एहसास हुआ कि कार में बैठी महिला उसे घूर रही है. सरिता को देख कर उस के हाथ से प्याली छूट गई. वह उठा और भीड़ में गायब हो गया.

उसी समय जुलूस आगे बढ़ गया और कार पूरी रफ्तार से दिल्ली की ओर दौड़ पड़ी. सरिता अचानक सदाशिव की इस हरकत से हतप्रभ सी रह गई और कुछ बोल भी नहीं पाई.

दिल्ली में वे लोग राहुल के एक मित्र के घर पर रुके.

रात को सरिता ने राहुल से कहा, ‘‘बेटा, मैं जयपुर नहीं जाना चाहती.’’

‘‘क्यों, मां?’’ राहुल ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘क्या मेरा जयपुर जाना बहुत जरूरी है?’’

‘‘हम आप के लिए ही आए हैं. आप की इच्छा जयपुर जाने की थी. अब क्या हुआ? आप क्या झांसी वापस जाना चाहती हैं.’’

‘‘झांसी नहीं, मैं मथुरा जाना चाहती हूं.’’

‘‘मथुरा क्यों?’’

‘‘मुझे लगता है कि जुलूस वाले स्थान पर मैं ने तेरे पिताजी को देखा है.’’

‘‘क्या कर रहे थे वह वहां पर?’’ राहुल ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘मैं ने उन्हें सड़क के किनारे बैठे देखा था. मुझे देख कर वह भीड़ में गायब हो गए,’’ सरिता ने कहा.

‘‘मां, यह आप की आंखों का धोखा है. यदि यह सच भी है तो भी मुझे उन से नफरत है. उन के कारण ही मेरा बचपन बरबाद हो गया.’’

‘‘मैं जयपुर नहीं मथुरा जाना चाहती हूं. मैं तुम्हारे पिताजी से मिलना चाहती हूं.’’

‘‘मां, मैं आप के मन को दुखाना नहीं चाहता पर आप उस आदमी को मेरा पिता मत कहो. रही मथुरा जाने की बात तो हम जयपुर का मन बना कर निकले हैं. लौटते समय आप मथुरा रुक जाना.’’

सरिता कुछ नहीं बोली.

सदाशिव अपनी कोठरी में लेटे हुए पुराने दिनों को याद कर रहा था.

3 दिन पहले कार में सरिता थी या कोई और? यह प्रश्न उस के मन में बारबार आता था. और दूसरे लोग कौन थे?

आखिर उस की क्या गलती थी जो उसे अपनी पत्नी और बच्चों को छोड़ कर एक गुमनाम जिंदगी जीने पर मजबूर होना पड़ा. बस, इतना ही न कि वह इस सच को साबित नहीं कर सका कि चोरी उस ने नहीं की थी. वह मन से एक कमजोर इनसान है, तभी तो बीवी व बच्चों को उन के हाल पर छोड़ कर भाग खड़ा हुआ था. अब क्या रखा है इस जिंदगी में?

खट् खट् खट्, किसी के दरवाजा खटखटाने की आवाज आई.

सदाशिव ने उठ कर दरवाजा खोला. सामने सरिता खड़ी थी. कुछ देर दोनों एक दूसरे को चुपचाप देखते रहे.

‘‘अंदर आने को नहीं कहोगे? बड़ी मुश्किलों से ढूंढ़ते हुए यहां तक पहुंच सकी हूं,’’ सरिता ने कहा.

‘‘आओ,’’ सरिता को अंदर कर के सदाशिव ने दरवाजा बंद कर दिया.

सरिता ने देखा कि कोठरी में एक चारपाई पर बिस्तर बिछा है. चादर फट चुकी है और गंदी है. एक रस्सी पर तौलिया, पाजामा और कमीज टंगी है. एक कोने में पानी का घड़ा और बालटी है. दूसरे कोने में एक स्टोव और कुछ खाने के बरतन रखे हैं.

सरिता चारपाई पर बैठ गई.

‘‘कैसे हो?’’ धीरे से पूछा.

‘‘कैसा लगता हूं तुम्हें?’’ उदास स्वर में सदाशिव ने कहा.

सरिता कुछ न बोली.

‘‘क्या करते हो?’’ थोड़ी देर के बाद सरिता ने पूछा.

‘‘इस शरीर को जिंदा रखने के लिए दो रोटियां चाहिए. वह कुछ भी करने से मिल जाती हैं. वैसे नुक्कड़ पर एक चाय की दुकान है. मुझे तो कुछ नहीं चाहिए. हां, 4 बच्चों की पढ़ाई का खर्च निकल आता है.’’

‘‘बच्चे?’’ सरिता के स्वर में आश्चर्य था.

‘‘हां, अनाथ बच्चे हैं,’’ उन की पढ़ाई की जिम्मेदारी मैं ने ले रखी है. सोचता हूं कि अपने बच्चों की पढ़ाई में कोई योगदान नहीं कर पाया तो इन अनाथ बच्चों की मदद कर दूं.’’

‘‘घर से निकल कर सीधे…’’ सरिता पूछतेपूछते रुक गई.

‘‘नहीं, मैं कई जगह घूमा. कई बार घर आने का फैसला भी किया पर जो दाग मैं दे कर आया था उस की याद ने हर बार कदम रोक लिए. रोज तुम्हें और बच्चों को याद करता रहा. शायद इस से ज्यादा कुछ कर भी नहीं सकता था. पिछले 5 सालों से मथुरा में हूं.’’

‘‘अब तो घर चल सकते हो. राशि अब मुंबई में है. नौकरी करती है. वहीं शादी कर ली है. राहुल झांसी में जिलाधीश है. मुझे सिर्फ तुम्हारी कमी है. क्या तुम मेरे साथ चल कर मेरी जिंदगी की कमी पूरी करोगे?’’ कहतेकहते सरिता की आंखों में आंसू आ गए.

सदाशिव ने सरिता को उठा कर गले से लगा लिया और बोला, ‘‘मैं ने तुम्हें बहुत दुख दिया है. यदि तुम्हारे साथ जा कर मेरे रहने से तुम खुश रह सकती हो तो मैं तैयार हूं. पर क्या इतने दिनों बाद राहुल मुझे पिता के रूप में स्वीकार करेगा? मेरे जाने से उस के सुखी जीवन में कलह तो पैदा नहीं होगी? क्या मैं अपना स्वाभिमान बचा सकूंगा?’’

‘‘तुम क्या चाहते हो कि मैं तुम से दूर रहूं,’’ सरिता ने रो कर कहा और सदाशिव के सीने में सिर छिपा लिया.

‘‘नहीं, मैं चाहता हूं कि तुम झांसी जाओ और वहां ठंडे दिल से सोच कर फैसला करो. तुम्हारा निर्णय मुझे स्वीकार्य होगा. मैं तुम्हारा यहीं इंतजार करूंगा.’’

सरिता उसी दिन झांसी वापस आ गई. शाम को जब राहुल और सीमा साथ बैठे थे तो उन्हें सारी बात बताते हुए बोली, ‘‘मैं अब अपने पति के साथ रहना चाहती हूं. तुम लोग क्या चाहते हो?’’

‘‘एक चाय वाला और जिलाधीश साहब का पिता? लोग क्या कहेंगे?’’ सीमा के स्वर में व्यंग्य था.

‘‘बहू, किसी आदमी को उस की दौलत या ओहदे से मत नापो. यह सब आनीजानी है.’’

‘‘मां, वह कमजोर आदमी मेरा…’’

‘‘बस, बहुत हो गया, राहुल,’’ सरिता बेटे की बात बीच में ही काटते हुए उत्तेजित स्वर में बोली.

राहुल चुप हो गया.

‘‘मैं अपने पति के बारे में कुछ भी गलत सुनना नहीं चाहती. क्या तुम लोगों से अलग हो कर वह सुख से रहे? उन के प्यार और त्याग को तुम कभी नहीं समझ सकोगे.’’

‘‘मां, हम आप की खुशी के लिए उन्हें स्वीकार सकते हैं. आप जा कर उन्हें ले आइए,’’ राहुल ने कहा.

‘‘नहीं, बेटा, मैं अपने पति की अनुगामिनी हूं. मैं ऐसी जगह न तो खुद रहूंगी और न अपने पति को रहने दूंगी जहां उन को अपना स्वाभिमान खोना पड़े.’’

सरिता रात को सोतेसोते उठ गई. पैर के पास गीलागीला क्या है? देखा तो सीमा उस का पैर पकड़ कर रो रही थी.

‘‘मां, मुझे माफ कर दीजिए. मैं ने आप का कई बार दिल दुखाया है. आज आप ने मेरी आंखें खोल दीं. मुझे आशीर्वाद दीजिए कि मैं भी आप के समान अपने पति के स्वाभिमान की रक्षा कर सकूं.’’

सरिता ने भीगी आंखों से सीमा का माथा चूमा और उस के सिर पर हाथ फेरा.

‘‘मेरा आशीर्वाद हमेशा तुम्हारे साथ रहेगा.’’

भोर की पहली किरण फूट पड़ी. जिलाधीश के बंगले में सन्नाटा था. सरिता एक झोले में दो जोड़े कपड़े ले कर रिकशे पर बैठ कर स्टेशन की ओर चल दी. उसे मथुरा के लिए पहली ट्रेन पकड़नी थी.

Hindi Stories Online : मैं पुरुष हूं – क्यों माधवी को छोड़ना चाहता था तरुण

Hindi Stories Online :  मिसेज मेहता 20 साल की बेटी आलिया के साथ व्यस्त थीं. वे आज अपनी साड़ियों को अलमारी से बाहर निकाल रही थीं. साड़ियों को एक बार धूप में सुखाने का इरादा था उन का.

““क्या मम्मी, आप ने तो सारा घर ही कबाड़ कर रखा है,”” मिसेज मेहता का 24-वर्षीय बेटा तरुण बोला.

““अरे बेटे, मैं अपनी अलमारी सही कर रही हूं. मेरी इतनी महंगीमहंगी साड़ियां हैं, इन्हें भी तो देखरेख चाहिए.””

““ये इतनी भारी साड़ियां आप लोग कैसे संभाल लेती हो भला?”” तरुण ने कहा.

““यह सब हमारी संस्कृति की निशानी है,” मिसेज मेहता ने इठलाते हुए कहा.

““अब भला साड़ियों से हमारी संस्कृति का क्या लेनादेना मां? एक बदन ढकने के लिए 5 मीटर लंबी साड़ी लपेटने में भला कौन सी संस्कृति साबित होती है?”” तरुण ने चिढ़ते हु

““अब तुम्हारे मुंह कौन लगे. जब तेरी घरवाली आएगी तब बात करूंगी तुझ से,” ”मां ने हंसते हुए कहा.

तरुण बैंक में कैशियर के पद पर काम कर रहा था और अपनी सहकर्मी माधवी से प्यार करता था. दोनों ने साथ जीनेमरने की कसमें भी खा ली थीं. पर माधवी से शादी को ले कर तरूण हमेशा ही शंकालु रहता था क्योंकि माधवी नए जमाने की लड़की थी जो बिंदास अंदाज में जीती थी. उसे मोटरसाइकिल चलाना पसंद था और अपनी आवाज को बुलंद करना भी उसे अच्छी तरह आता था. उस की यही बात तरुण को संशय में डालती थी कि हो सकता है कि माधवी मां की पसंद पर खरी न उतरे.

“आजकल की लड़कियों को देखो, टौप के अंदर से ब्रा की पट्टी दिखाने से उन्हें कोई परहेज नहीं है. हमारे समय में तो मजाल है कि कोई जान भी पाता कि हम ने अंदर क्या पहन रखा है.”

मां की इस तरह की बातें सुन कर तो तरुण का मन और भी फीका हो जाता था.

माधवी के पापा को लास्ट स्टेज का कैंसर था, इसलिए वे माधवी की शादी जल्द से जल्द कर देना चाहते थे. माधवी भी तरुण पर दबाव बना रही थी कि वह भी घर में अपनी शादी की बात चलाए.

माधवी के बारबार कहने पर एक दिन तरुण ने मां को माधवी के बारे में बताया और माधवी का फोटो भी दिखा दिया.

फोटो देख कर तो मां ने कुछ नहीं कहा पर ऐसा लगा कि माधवी जैसी मौडर्न लड़की को वे अपनी बहू नहीं बनाना चाहती हैं.

““मां, वैसे माधवी घरेलू लड़की ही है. हां, उस के नैननक्श जरूर ऐसे हैं जिन से वह मौडर्न और अकड़ू टाइप की लगती है,”” माधवी की तारीफ का समा बांध दिया था तरुण ने.

तरुण के पिता तो बचपन में ही गुजर गए थे. तब से ले कर आज तक मिसेज मेहता अपना जीवन आलिया और तरुण के लिए ही तो गुजार रही हैं.

तरुण की मां उस की हर पसंद व नापसंद का ध्यान रखती थीं. जवान होते बच्चों की भावनाएं बहुत तीव्र होती हैं और अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए वे कोई भी कदम उठाने से पीछे नहीं हटते.

मां ने आलिया से सवालिया नजरों में ही पूछ लिया कि “यह लड़की तेरी भाभी के रूप में कैसी लगेगी?” आलिया ने भी इशारों में ही बता दिया. आलिया के इस खामोश जवाब का मतलब मां अच्छी तरह समझ गई थीं.

आलिया वैसे भी अकसर खामोश ही रहती थी. उस की इस खामोशी को लोग घमंडी की उपमा देते थे.

आलिया की सहज और मूक स्वीकृति पा कर मां ने भी माधवी से तरुण की शादी करने की इच्छा जाहिर की.

तरुण खुशीखुशी 2 दिनों बाद ही माधवी को घर ले आया. माधवी आज पीले रंग के सलवार सूट में थी. उस ने अपने बालों को खुला छोड़ा हुआ था जो बारबार उस के माथे पर गिर जाते थे और जिन्हें बड़ी अदा से सही करती थी वह.

माधवी से मां ने दोचार सवालजवाब किए और उस के घरेलू हालात के बारे में जानकारी हासिल की. माधवी ने उन्हें बताया कि घर में उस के मांबाप और माधवी ही रहते हैं और पापा कैंसर से पीड़ित हैं, इसलिए घर चलाने का जिम्मा भी उसी पर आ पड़ा है.

इसी प्रकार की औपचारिक बातों के बाद माधवी ने मां और आलिया से विदा ली.

माधवी के जाने के बाद तरुण अपनी मां का निर्णय जानने के लिए मचला जा रहा था. मां ने इस सस्पैंस को थोड़ी देर बनाए रखना उचित समझा. लेकिन तरुण की हालत देख कर उन्होंने हंसते हुए इस रिश्ते के लिए हामी भर दी थी.

तरुण ने तुरंत ही माधवी के मोबाइल पर व्हाट्सऐप मैसेज कर दिया कि मां शादी के लिए तैयार हो गई हैं. अब, बस, जल्दी से तारीख तय कर लेते हैं. मैसेज देख कर माधवी भी खुशी से फूले नहीं समा रही थी. उस की शादी से उस के मांबाप के मन से एक बोझ भी हट जाने वाला था.

अगले दिन बैंक से निकलने के बाद तरुण और माधवी कैफे में गए और अपने भविष्य की तमाम योजनाओं पर विचार करने लगे. दोनों की आंखों में रोमांस और रोमांच का सागर लहरा रहा था.

वापसी में शाम ज्यादा हो गई थी और अंधेरा घिर आया था. तरुण ने माधवी को खुद ही उस के घर तक छोड़ने का मन बनाया और अपनी बाइक पर उस को बैठा कर चल दिया.

बैंक से माधवी के घर की ओर जाते हुए एक पुलिया पड़ती थी जहां पर आवागमन कुछ कम हो जाता था. वहां पर पहुंचते ही तरुण की बाइक पंक्चर हो गई.

“शिट मैन…..पंक्चर हो गई. मेकैनिक देखना पड़ेगा.” इधरउधर नजर दौड़ाने लगा था तरुण. ठीक उसी समय वहां पर 3-4 मुस्टंडे कहीं से प्रकट हो गए. वे सब शराब के नशे में थे. तरुण चौकन्ना हो गया था कि तभी उस के सिर के पीछे किसी ने डंडे से वार किया. बेहोश होने लगा था तरुण. इसी बीच, बाकी के 2 मुस्टंडों ने माधवी को पकड़ लिया और सड़क के किनारे खड़ी एक कार में ले जा कर जबरन उस के साथ बारीबारी मुंह काला करने लगे.

तरुण बेहोश था. माधवी उन गुंडों की हवस का शिकार बनती रही और उस के बाद वे गुंडे उन दोनों को उसी अवस्था में सड़क के किनारे छोड़ कर चले गए. जब उसे होश आया, तब तक माधवी का सबकुछ लुट चुका था. आतेजाते लोगों ने उन दोनों पर नजर डाली. कुछ ने उन के वीडियो भी बनाए. पर मदद किसी ने भी नहीं की. उन्हें मदद तब ही मिल पाई जब पुलिस की पैट्रोलिंग जीप वहां से गुजरी.

तमाम सवालात के बाद पुलिस ने माधवी को अस्पताल में भरती कराया और तरुण को प्राथमिक उपचार के बाद घर जाने दिया गया.

तरुण के दिलोदिमाग पर जोरदार झटका लगा था पर 10 दिनों तक घर में रुकने के बाद उस ने पहले की तरह ही अपने काम पर जाना शुरू कर दिया. पर उस ने माधवी की खोजखबर लेना उचित नहीं समझा.

माधवी सदमे में थी. पर घर की जिम्मेदारियां निभाने के लिए वह बैंक भी आने लगी और पहले की तरह ही काम भी संभाल लिया. माधवी ने जिंदगी की पुरानी लय पाने की दिशा में कदम बढ़ाने शुरू कर दिए. पर इस सफर में उसे अब तरुण का साथ नहीं मिल पा रहा था. वह माधवी की तरफ देखता भी नहीं था, बात करना तो बहुत दूर की बात थी.

माधवी के स्त्रीमन ने बहुत जल्दी ताड़ लिया कि तरुण उस के साथ ऐसा रूखा व्यवहार क्यों कर रहा है, पर बेचारी कर क्या सकती थी. वह अब एक बलात्कार पीड़िता थी. चुपचाप अपने को काम में बिजी कर लिया था माधवी ने.

कुछ समय बीता, तो मां ने तरुण से माधवी के बारे में पूछा, ““आजकल तू माधवी की बात नहीं करता. तुम लोगों ने शादी की तारीख फाइनल की या नहीं?””

““कैसी बातें करती हो मां. अब क्या मैं उस के साथ शादी करूंगा? मेरा मतलब है कि उस का बलात्कार हो चुका है. बलात्कार पीड़िता से कहीं कोई शादी भी करता है भला? म….मैं समाज से कुछ अलग तो नहीं? ”

मां के चेहरे पर कई रंग आनेजाने लगे. उन की आंखों में कई सवाल उमड़ आए थे.

“लगता है मेरी परवरिश में ही कुछ कमी रह गई. ”मन ही मन बुदबुदा उठी थी मां. उन की आंखों की कोर नम हो चली थी जिसे उन्होंने तरुण से बड़ी सफाई से छिपा लिया और बिना कुछ कहे अपने कमरे में चली गईं.

“बलात्कार किसी के भी साथ हो सकता है मेरे साथ, आलिया के साथ… तो क्या तब भी तरुण उसे ऐसे ही त्याग देगा जैसे उस ने माधवी को छोड़ दिया है? हां, एक पुरुष ही तो है वह, जो हमेशा ही दूध का धुला होता है.”

कई तरह के सवाल मां के जेहन में उमड़ आए और कुछ कसैली यादें उन के मन को खट्टा करने लगीं.

5 साल पहले की ही तो बात है. उन दिनों तरुण ट्रेनिंग करने के लिए शहर से बाहर गया हुआ था. आलिया को अचानक बुखार आ गया था. डाक्टर को दिखा कर दवा तो ले आई थीं मिसेज मेहता पर आज सुबह से फिर बुखार तेज हो गया था. डाक्टर से फोन पर उन्होंने संपर्क किया तो उस ने एक दूसरी टेबलेट का नाम बताते हुए कहा कि यह टेबलेट आसपास के मैडिकल स्टोर से ले कर खिला दीजिए, आराम मिल जाएगा.

वे नुक्कड़ वाले मैडिकल स्टोर पर दवाई लेने ही तो गई थीं कि पीछे से किसी ने आलिया के कमरे का दरवाजा खटकाया था. आलिया ने अनमने मन से दरवाजा खोला, तो सामने बगल में रहने वाले 55 साल के अंकल थे. अंकल को यह पता था कि आलिया घर में अकेली है और इसी का लाभ उस ने उठाया, बुखार में तप रही आलिया का बलात्कार कर दिया. जब वे घर पहुंचीं तो आलिया फर्श पर पड़ी हुई थी. बड़ी मुश्किल से ही अपने ऊपर हुए अत्याचार को कह पाई थी आलिया. उन्होंने उसे सीने से लगा लिया और वे दोनों सुबकते रहे थे. पूरे 3 दिन तक फ्लैट का दरवाजा तक नहीं खुला. बदनामी के डर से पुलिस में भी रिपोर्ट नहीं लिखवाई. तरुण से भी नहीं बताया और आननफानन दूसरा फ्लैट तलाश कर लिया था और बगैर तरुण के आने का इंतजार किए ही फ्लैट बदल भी लिया था.

इस राज को अपने सीने में हमेशा के लिए दफन कर लिया था मिसेज मेहता ने. पर आज, तरुण की बातें सुन कर उन के घाव हरे हो गए थे और दर्द भी उभर आया था. पर वे चुप नहीं रहेंगी. उन्होंने आंसू पोछे और तरूण के सामने जा कर खड़ी हो गईं.

““अगर माधवी का रेप हो गया तो क्या वह जूठी हो गई? क्या वह अब माधवी नहीं रही?” मां तेज सांसें ले रही थीं.

““हां मां, भला मैं अपनेआप को ही किसी की जूठन क्यों खिलाऊं?” लापरवाही दिखा रहा था तरुण.

““पर भला इस में माधवी का क्या दोष है?”

““हो सकता है मां. पर ये सब बातें फिल्मों में ही अच्छी लगती हैं. मैं जानबूझ कर तो मक्खी नहीं निगल सकता न.””

““पर दोष तो उन लोगों का है जो इस घृणित कृत्य के लिए जिम्मेदार हैं, न कि माधवी का.””

मां और तरुण में बहस जारी थी. मां लगातार तरूण को समझाने की कोशिश कर रही थीं. पर तरुण की अपनी ही दलीलें थीं. काफी देर बाद भी जब तरुण टस से मस न हुआ तब मां ने उसे वह राज बताना जरूरी समझ लिया था जो अभी तक छिपाए रखा था.

““और अगर किसी ने तेरी बहन आलिया का बलात्कार किया हो तो क्या तब भी तेरी बातों में ऐसी ही कड़वाहट रहेगी? ”

““क्या मतलब है आप का, मां?”

““मतलब साफ है. आलिया का रेप हमारे फ्लैट के पड़ोस में रहने वाले उस 55 साल के बूढ़े ने किया और तब से आलिया किसी के साथ भी सहज नहीं हो पाती और गुमसुम रहती है. तुम्हें समझ नहीं आता वह इतनी चुप क्यों रहती है? अब क्या इस में आलिया का दोष था? क्या हम आलिया को सिर्फ इस बात के लिए छोड़ दें कि वह किसी पुरुष की वहशी मानसिकता का शिकार हो चुकी है?” ”मां लगातार बोलते जा रही थीं. इस समय वे सिर्फ तरुण की मां नहीं थीं बल्कि उन तमाम औरतों का प्रतिनिधित्व कर रही थीं जो बलात्कार का शिकार होती हैं.

तरुण कोने में खड़ी आलिया की तरफ बढ़ा. आलिया की आंखों से आंसू बह रहे थे. तरुण को आता देख वह झट से कमरे में घुस गई और भड़ाक से दरवाजा बंद कर लिया.

तरुण कभी रोती हुई मां की तरफ देखता, तो कभी आलिया के कमरे के बंद दरवाजे की तरफ. उस के दिमाग में माधवी का चेहरा घूमने लगा था.

अगले दिन शाम को बैंक से तरुण का फोन आया, ““मां मुझे आने में देर हो जाएगी. आज मैं और माधवी मैरिज प्लानर के पास जा रहे हैं अपनी शादी की तैयारी के लिए.

Weekend Recipes Ideas : वीकेंड पर बढ़ाना चाहते हैं खाने का जायका, तो ट्राई करें ये स्टफ्ड अरवी

Weekend Recipes Ideas:  

स्टफ्ड अरवी

सामग्री

250 ग्राम अरवी, 150 ग्राम प्याज, 1 छोटा चम्मच अजवाइन, 1/2 छोटा चम्मच हलदी पाउडर, 1 छोटा चम्मच धनिया पाउडर, 1/4 छोटा चम्मच लालमिर्च पाउडर, 1/4 छोटा चम्मच धनिया व जीरा पाउडर

1/2 छोटा चम्मच अमचूर पाउडर, 2 साबूत लालमिर्चें, 1 बड़ा चम्मच सरसों का तेल, नमक स्वादानुसार.

विधि

अरवी को छील कर अच्छी तरह पानी से धो पोंछ लें. सूखे मसालों और नमक को मिलाएं. प्रत्येक अरवी में चाकू से क्रौस बनाएं और उस में यह मसाला भर दें. ध्यान रहे अरवी नीचे से जुड़ी रहनी चाहिए. प्याज को लंबाई में काट लें. एक नौनस्टिक कड़ाही में तेल गरम कर के अजवाइन और साबूत लालमिर्च का तड़का लगाएं. इस में प्याज डाल कर 2 मिनट भूनें. फिर अरवी डाल ढक कर गलने तक पकाएं. अरवी गल जाए तो अच्छी तरह भून लें. दम वाली स्टफ्ड अरवी तैयार है.

बनाना स्टफ्ड फ्रैंच टोस्ट

सामग्री अंडे के मिक्स्चर की

1 अंडा द्य  1/2 गिलास दूध द्य  3 बड़े चम्मच चीनी द्य  1 छोटा चम्मच वैनिला ऐसैंस.

विधि

एक बड़ा बाउल ले कर उसमें सारी सामग्री को अच्छी तरह मिलाकर फेंटें.

सामग्री कैरामल सौस की

एकचौथाई कप चीनी द्य  1/2 बड़ा चम्मच पानी द्य  1/2 बड़ा चम्मच बटर द्य  एकचौथाई कप क्रीम.

विधि

एक मीडियम भारी तले वाले सौस पैन को मीडियम आंच पर रख कर उसमें चीनी और पानी को डाल कर अच्छी तरह मिलाएं. फिर बिना मिलाए उसे तब तक पकाएं जब तक मिश्रण सुनहरा न हो जाए. फिर आंच से उतार कर उसमें तुरंत बटर डाल कर अच्छी तरह फेंटें. इसके तुरंत बाद इसमें क्रीम डाल कर तब तक फेंटें जब तक सौस स्मूद न हो जाए. फिर कैरामेल सौस को ठंडा करने के लिए रखें.

अन्य सामग्री

4 ब्रैडपीस द्य  1 केला द्य  2 चीज स्लाइस द्य  2 छोटे चम्मच बटर.

विधि

सबसे पहले 4 ब्रैडस्लाइस लें. फिर 2 स्लाइस पर चीज स्लाइस रखें. अब कटे हुए केले के टुकड़ों को चीज के ऊपर सैट करें. फिर केले के टुकड़ों पर ऊपर से कैरामल सौस डालें. फिर ऊपर से ब्रैड की स्लाइस से कवर करें. 2 स्टफ्ड सैंडविच तैयार हैं. अब सैंडविच को तैयार अंडे के मिक्स्चर में

5 सैकंड डिप करें. अब बड़ा तवा ले कर मीडियम आंच पर बटर को गरम करें. फिर सैंडविच को दोनों तरफ से सुनहरा होने तक पकाएं और तुरंत कैरामल सौस और केले की स्लाइसेज के साथ सर्व करें.

Couple Goals : शादी बाद पार्टनर को क्या बताएं क्या नहीं, यहां जानिए

Couple Goals :  अफयेर होना आजकल काफी आम है. कई लोग तो शादी से पहले ही अपने प्रेम संबंधों को शारीरिक संबंध तक ले कर चले जाते हैं और बाद में कई बार किसी वजह से ऐसे लोगों की शादियां उन के प्रेमी या फिर प्रेमिका से नहीं हो पाती. ऐसे में जो भी पार्टनर उस इंसान को मिलता है, तो क्या उस से अपने पुराने संबंधों के बारे में जिक्र करना चाहिए…

हाल ही में टीसीएस के रिक्रूट मैनेजर मानव शर्मा की आत्महत्या का मामला काफी सुर्खियों में रहा. इस केस में पूरा विवाद ही पत्नी के शादी से पहले का अफयेर था जिस के बारे में निकिता ने खुद अपने पति को यह बात बताई थी. लेकिन पति को यह बरदाश्त नहीं हुआ और वह निकिता से तलाक लेना चाहता था लेकिन वह तलाक देना नहीं चाहती थी. इस के चलते विवाद इतना बढ़ गया कि मानव ने आत्महत्या कर ली.

सिक्के का दूसरा पहलू

इस कहानी का सच क्या है यह तो तफ्तीश में सामने आ ही जाएगा. लेकिन इस से एक सवाल जरूर उठ खड़ा हुआ है कि क्या शादी से पहले के अफयेर के बारे में पार्टनर को सबकुछ बताना चाहिए या नहीं?

इस बारे में सब की अपनी अलगअलग राय हो सकती है. जहां आकाश का इस बारे में कहना है कि यह तो पतिपत्नी के संबंधों और आपस की बौंडिंग पर निर्भर करता है कि क्या और कितना बताया जा सकता है, वहीं सुषमा का कहना है कि कुछ सच छिपाने में ही समझदारी है वरना रिश्ते में विश्वास और प्यार खत्म हो जाता है. बस, ध्यान रखना चाहिए कि इस तरह की गलतियां दोबारा न हो.

प्रखर का इस बारे में कहना है कि किसी भी रिश्ते की शुरुआत सचाई और ईमानदारी के साथ होनी चाहिए. जहां तक बात है इस का रिश्ते पर गलत असर पड़ेगा, तो इस बारे में मेरा मानना है कि आजकल यह कोई नई बात नहीं है. हम शादी से पहले भी कई लोगों के साथ रिलेशन में आते हैं और उन्हें परखते हैं कि क्या हम इस बंदे के साथ पूरी लाइफ बिता सकते हैं या नहीं? कई बार हमें अपना वह रिश्ता खत्म करना पड़ता है तो क्या हुआ लेकिन अब शादी के बाद तो हम लौयल हैं.

अफयेर के बारे में बताने के साइड इफैक्ट्स भी हो सकते हैं

शादी से पहले अपने साथी को इस बारे में बता रहे हैं तो सोच लें की पार्टनर जितने प्यार से आप के पहले अफयेर के बारे में पूछ रहा है उतने ही प्यार से वह रिश्ता तोड़ सकता है और शादी से इनकार कर सकता है. इस बात के लिए पूरी तरह से तैयार हो कर ही अपने अफयेर की बात बताएं.

यदि आप को ऐसा लगता है कि पार्टनर आप के पास्ट लव रिलेशनशिप को ऐक्सेप्ट कर सकता है, तो भी उसे केवल इस का ओवर व्यू दें. डिटेल में कुछ भी बात करने से बचें क्योंकि यह आप के पार्टनर को अनकंफर्टेबल कर सकता है.

अफयेर के बारे में पता चलने पर हो सकता है कि पार्टनर आप से पूछे कि आप का रिश्ता कहां तक पहुंचा था? क्या हाथ भी पकड़ा था? क्या किस भी किया था? या उस से आगे भी कुछ था? अब आप खुद ही सोच लें कि इन बातों का आप क्या जवाब देंगी और वह उसे कितना सच मानेगा.

कहने के लिए तो लोग काफी मौर्डन और खुले विचारों के हो गए हैं, लेकिन जब बात दूसरों को समझने की आती है, तो लोग पहले जजमेंटल ही होते हैं। ऐसे में यदि आप एक लड़की हैं और शादी से पहले लव रिलेशनशिप में रह चुकी हैं, तो हो सकता है कि आप के पास्ट को जानने के बाद आप को कैरेक्टरलैस बोल दिया जाए. इसलिए पार्टनर को यह बात बताने से पहले 100 बार सोचें.

अगर आप लड़के हैं और अपनी पत्नी को यह सब बताने वाले हैं, तो सोच लें कि अगर पत्नी ने आप पर शक करना शुरू कर दिया तो आप अपने दोस्तों तक से मिलने को तरस जाएंगे क्योंकि उसे हमेशा यही शक होगा कि कहीं आप अपनी ऐक्स से दोबारा तो नहीं मिल रही.

जब इस बात के ताने पार्टनर आप को पूरी जिंदगी सुनाएं

कहीं ऐसा न हो कि एक बार अपनी शादी से पहले की गलती बता कर आप हमेशा इस गिल्ट में उन के सामने आएं या फिर वह आप को हर बात में आप की की हुई गलतियां याद दिलाएं. इसलिए ऐसी बात करनी ही क्यों जिस से लाइफ अनकंफर्टेबल हो जाएं.

पुराने अफयेर से शादी बरबाद न हो इस के लिए क्या करें

● अपने अफयेर की हिस्ट्री बताने की जरूरत नहीं.

● शादी से पहले के अफेयर को न बताएं लेकिन अगर वह लड़का कहीं मिल जाए तो आराम से सहज रूप में उस का परिचय करा दें. अपने अफयेर की हिस्ट्री बताने की जरूरत नहीं है. यह खतरनाक भी हो सकता है. यह भी हो सकता है कि वह आप के अफयेर की बात को ऐक्सेप्ट न कर पाएं.

रास्ते में कहीं टकरा जाए प्रेमी तो साथी से मिलवाएं

अगर किसी दिन बहार घूमते हुए प्रेमी कहीं दिख गया तो आप आंखें ना फेरें. उस को बुला लें, बात कराएं. अगर वह शादी में मिला, रैस्टोरेंट में मिला, पार्टी में मिला तो सहज रूप में जैसे कुलीग था ऐसे मिलवाएं. आप खुद को बिलकुल सामान्य बना कर रखें पति के सामने.

प्रेमी की शादी हो जाए तो घर भी बुला सकती हैं

अगर प्रेमी की शादी हो जाए, तो कोशिश करें कि कभीकभी घर पर बुला लें. ऐसा इसलिए करना जरूरी है ताकि कोई तीसरा आदमी पति को यह न कहे कि तुम्हारी बीवी का तो इस के साथ अफयेर था. अगर कहेंगे तो फिर पति कह सकता है कि मैं उसे जानता हूं. वह मेरे घर भी आ चुका है, मैं उस की बीवी को भी जानता हूं. इस से बोलने वाले का मुंह तुरंत बंद हो जाएगा. घर बुला कर इतने अच्छे से और नौर्मल मिलें जैसे कोई नया पड़ोसी आया है.

न कोई पुरानी बात करें, न दोस्तों की चर्चा करें

अगर साथी कही मिल गया है या आप ने घर बुलाया है तो उस से अपने कॉलेज की या फिर पुराने दोस्तों की कोई ज्यादा बात मत करें. आप की भाषा और व्यवहार कंट्रोल हो. उसे लगना चाहिए कि बहुत नौर्मल सा कोई दोस्त है. मिला तो बुला लिया.

सोशल मीडिया पर दिख जाए तो क्या करें

रात गई बात गई लेकिन अगर कहीं वह सोशल मीडिया पर दिख जाए तो कह दे कि यह तो मेरे साथ था. आप उसे ज्यादा छिपाएंगी तो भी अच्छा नहीं है और बैठ कर यह बताना कि मैं एक चीज बताना चाहती हूं कि मेरा अफयेर था, यह कहने पर पति घबरा भी सकता है. फिर पति उस से पूछ भी सकता है कि क्या तुम हाथ पकड़ते थे? किस करते थे? क्या तुम इस से आगे भी जाते थे? वगैरह।

ये सब बेकार की बातें हैं. इन में न पड़ें. लेकिन एक बार आप ने दिखा दिया या मिलवा दिया तो बात खत्म और दोबारा फिर कभी उस से न मिलें.

पुरानी बातों को भूल कर आगे बढ़ें

‘आप कुछ कर भी नही सकते,’ ‘जो गुजर गया वह अतीत है…’ वगैरह बात कर बहुतों की शादीशुदा जिंदगी खराब हो चुकी है. वर्तमान आप के हाथों मे है, उसे बरबाद न होने दें। आप के साथी ने आप को अपना हमसफर अतीत से आगे बढ़ने के बाद ही चुना होगा, इसलिए पुरानी बातों को भूलने में ही फायदा है.

अपने भावी जीवन के विषय में सोचना शुरू कर दीजिए जिस में आप की विवाहित पत्नी भी सहभागी होगी। आप का जो भूतकाल है उसे वर्तमान में न जोड़ें. दोनों को इकट्ठा कर देने में किसी का कोई फायदा नहीं है, बल्कि दोनों की जिंदगी दुखदाई हो जाएगी.

आप का साथी कभी भी यह सोचना नहीं चाहेगा कि जो उस का है उस का किसी अन्य के साथ इस तरह का संबंध हो। उस के दिमाग से कभी भी वह नहीं उतरेगा .

वह हमेशा हर बात में उस के साथ आप की कल्पना कर के दुखी होगा और आप को भी दुख देगा। इस से अच्छा कभी इस बात का सामना भी हो जाए तो मुकरने मे कोई बुराई नहीं है. जिंदगी आप की है, सुख पाने का भी आप को अधिकार है. भूलीबिसरी यादें मत दोहराएं.

अपने जीवन में केवल खुशियों की तलाश कीजिए. जीवन बहुत सुंदर है. उस की सुंदरता में खो जाइए और कड़वे अनुभवों को कभी याद मत करिए.

Uttarakhand Tourist Places : वेकेशन के लिए बैस्ट हैं उत्तराखंड के ये औफबीट डैस्टिनेशंस

Uttarakhand Tourist Places : वैसे तो उत्तराखंड में बद्रीनाथ, केदारनाथ, नैनीताल, मसूरी, हरिद्वार और ऋषिकेश आदि कुछ सब से आम आकर्षण हैं जहां सैलानियों की भीड़ लगी रहती है. लेकिन उत्तराखंड में कुछ ऐसे औफबीट पर्यटन स्थल भी हैं जिन के बारे में बहुत ही कम लोग जानते हैं. कम एक्सप्लोर होने का कारण यह नहीं कि ये खूबसूरत नहीं हैं. ये जगह भी उतने ही खूबसूरत हैं जितने यहां के दूसरे फेमस प्लेसेस हैं. ज्यादा भीड़ न होने की वजह से यहां आप को बेहद सुकून मिलेगा. चिलचिलाती गरमी और शहरी जीवन की भागदौड़ से दूर ये स्थल आप के दिल को लुभावने नजारों और सुखद अहसास से भर देंगे. बर्फ से ढकी पर्वत श्रृंखलाएं, खूबसूरत झीलें, झरने, घाटियां और हरेभरे जंगल वाले इन अनोखे स्थलों की सैर कर आप का दिल नई ताजगी के साथ खिल उठेगा.

आइए जानते हैं उत्तराखंड के ऐसे ही कुछ औफबीट डैस्टिनेशंस के बारे में:

मुक्तेश्वर

अगर आप उत्तराखंड में कम प्रसिद्ध जगहों या सब से अनोखी जगहों की तलाश में हैं तो मुक्तेश्वर पर विचार करें. यह छोटा पहाड़ी गांव छुट्टियां बिताने के लिए आदर्श है. उत्तराखण्ड की जमीं पर बसा यह डैस्टिनेशन घास के मैदानों, झरनों और फलों के बागों का परफैक्ट कौम्बिनेशन है. जिम कॉर्बेट जो एक ब्रिटिश लेखक थे उन्होंने अपनी बुक ‘द मैन ईटर्स औफ कुमाऊं’ को यहीं पर रह कर लिखा था. दिल्ली से यहां पहुचने में सिर्फ 5-7 घंटे का समय लगता है.

पेओरा

अल्मोड़ा और नैनीताल के बीच स्थित पेओरा एक शानदार स्थान है और उत्तराखंड के कम औफबीट डैस्टिनेशंस में से एक है. करीब 6,600 फीट की ऊंचाई पर स्थित यह क्षेत्र अपने राजसी कुमाऊं हिमालय पर्वतमाला के जंगलों और विशाल सेब और बेर के बागों के लिए जाना जाता है. यह छोटा सा गांव हिमाचल में एक औफबीट पर्यटन स्थल है जो आप को सुकून और ताजगी से भर देता है.

खिर्सू

खिर्सू उन लोगों के लिए एक बेहतरीन जगह है जो सुंदरता और मन की शांति चाहते हैं. हरेभरे ओक और देवदार के जंगल और सेब के बागों से घिरा यह प्यारा सा गांव गढ़वाल हिमालय में बसे उत्तराखंड में घूमने के लिए सब से अच्छी जगहों में से एक है. पौड़ी से 19 किलोमीटर की दूरी पर स्थित खिर्सू हाइकर्स, बैकपैकर्स और स्वतंत्र यात्रियों के लिए स्वर्ग है. यह जून के महीने में उत्तराखंड में घूमने के लिए सब से अच्छी जगहों में से एक है.

मुनस्यारी

मुनस्यारी एक शानदार पहाड़ी रिट्रीट और उत्तराखंड के बेहतरीन औफबीट स्थानों में से एक है जो ट्रेकर्स और एडवेंचर प्रेमियों के बीच प्रसिद्ध है. हरेभरे पहाड़ों और जंगलों से घिरा इस स्थान का स्वच्छ और शांत वातावरण उत्तराखंड के अन्य सभी स्थानों से बेहतर है.

कनाताल

चंबामसूरी मार्ग के मध्य में स्थित कनाताल उत्तराखंड के सब से बेहतरीन औफबीट स्थलों में से एक है जो लुभावने दृश्यों और एडवेंचर के लिए प्रसिद्ध है. इसलिए जो लोग प्रकृति में कुछ शांतसमय बिताना चाहते हैं या कैंपिंग, ट्रैकिंग, रैपलिंग, रौक क्लाइम्बिंग और वैली क्रौसिंग जैसे कुछ रोमांचकारी गतिविधियों का आनंद लेना चाहते हैं उन के लिए कनाताल एक बेहतरीन विकल्प है.

चकराता

उत्तराखंड की सब से शांत और अनोखी जगहों में से एक चकराता मनमोहक दृश्य और शांति का एहसास प्रदान करता है. उत्तराखंड का यह औफबीट हिल स्टेशन हाइकिंग, राफ्टिंग, स्कीइंग और गुफा यात्राओं के लिए लोकप्रिय है. यह करीब 7,000 फीट की ऊंचाई पर यमुना घाटी के ऊपर स्थित है. इस सुंदर गांव में घने पेड़ हैं.

चौकोरी

उत्तराखंड में घूमने के लिए सब से बेहतरीन औफबीट जगहों में से एक चौकोरी अपने सुगंधित चाय के बागानों, हरेभरे देवदार और अल्पाइन जंगलों और फलों के बागों के लिए जाना जाता है. चौखंबा, नंदा देवी, त्रिशूल और पंचचूली चोटियों की सुरम्य पृष्ठभूमि के साथ, चौकोरी उत्तराखंड में घूमने के लिए एक अनोखी जगह है जो अविस्मरणीय दृश्य प्रस्तुत करती है.

पिथौरागढ़ जिले में स्थित चौकोरी उत्तराखंड राज्य में पश्चिमी हिमालय शृंखला को सुशोभित करता है. यहां आप को कस्तूरी उद्यान वृक्ष भी देखने को मिल जाएंगे. 160 फीट की ऊंचाई वाला चिन?ारना गांव से लगभग 10 किलोमीटर दूर एक कैम्पिंग स्पौट है.

चोपता

चोपता में आप को हरेभरे जंगल, दूरदूर तक फैले घास के मैदान, घाटियां और बर्फ से ढके पहाड़ देखने को मिलते हैं. चंद्रशिला और तुंगनाथ जैसे ट्रेकिंग स्थलों के रास्ते में यह एक लोकप्रिय पड़ाव है. चोपता उत्तराखंड में उन लोगों के लिए सब से औफबीट जगहों में से एक है जो कम प्रसिद्ध हाइकिंग ट्रैक की तलाश में हैं. चोपता से लगभग 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित चित्रा गुफाभी घूमने के लिए एक खूबसूरत जगह है. आप यहां प्रमुख आकर्षण कंचुला कोरक और कस्तूरी मृग अभयारण्य को भी एक्सप्लोर कर सकते हैं. मुख्य देहरादून रेलवे स्टेशन और हवाईअड्डा चोपता घाटी से लगभग 100 किलोमीटर दूर हैं. इसलिए आप रेलवे स्टेशन या हवाईअड्डे से टैक्सी लेकर आसानी से चोपता पहुंच सकते हैं. चोपता उत्तराखंड की सब से शांत और औफबीट जगहों में से एक है.

खाती गांव

उत्तराखंड के बागेश्वर क्षेत्र में स्थित खाती गांव सब से बेहतरीन औफबीट आकर्षणों में से एक है. पिंडारा नदी के तट पर स्थित यह प्राचीन और सुंदर शहर हरेभरे ओक और रोडोडेंड्रोन के पेड़ों से घिरा हुआ है. यह पिंडारी ग्लेशियर से पहले का अंतिम आबादी वाला क्षेत्र है इसलिए इस का व्यवसायीकरण नहीं किया गया है.

कौसानी

उत्तराखंड में कौसानी घूमने के लिए सब से शांत और औफबीट जगहों में से एक है जो शहर की हलचल से दूर है. नंदा देवी और पंचचूली जैसे बर्फ से ढके हिमालय के पहाड़ों के विस्तृत मनोरम दृश्यों के लिए प्रसिद्ध उत्तराखंड के बागेश्वर क्षेत्र में यह स्थान प्रकृति प्रेमियों, फोटोग्राफरों, ट्रेकर्स, यात्रियों और हनीमून मनाने वालों के लिए परफैक्ट है. अगर आप सर्दियों में शानदार बर्फबारी देखना चाहते हैं तो कौसानी के आकर्षण से बढ़ कर कुछ नहीं है. कौसानी घूमने का सब से अच्छा समय गरमियों के महीनों के दौरान होता है जब मौसम सुहावना होता है. अगर आप बर्फबारी देखना चाहते हैं तो सर्दियों का मौसम भी एक बढि़या समय है. उत्तराखंड में कई एडवेंचर स्पोर्ट्स हैं जिन का आप लुत्फ उठा सकते हैं. रौक क्लाइम्बिंग, रैपलिंग, ट्रैकिंग, कैंपिंग और माउंटेनबाइकिंग जैसी लोकप्रिय गतिविधियों का यहां आनंद लिया जा सकता है.

एबौट माउंट

एबौट माउंट फोटोग्राफरों के लिए स्वर्ग है. यहां घने पर्णपाती जंगल हैं जो पिथौरागढ़ क्षेत्र की सुरम्य सुंदरता में योगदान देते हैं. यह स्थान उत्तराखंड में घूमने के लिए औफबीट स्थानों की सूची में सब से ऊपर है क्योंकि यह पक्षियों को देखने और आरामदेह छुट्टी के लिए आदर्श है.

धारचूला

बर्फ से ढके पहाड़ों, सुंदर घाटियों और जंगलों से घिरा धारचूला उत्तराखंड के कम प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों में से एक है. कैलाश, मानस सरोवर और छोटा कैलाश मार्गों पर स्थित यह छोटा सा पहाड़ीइलाका ट्रैकिंग के लिए बेहतरीन है और कुमाऊंनी और शौना जनजाति के लोगों का घर है. काली नदी के तट पर बसा यह स्थान असाधारण सुंदरता और शांति से आप को चकित और मोहित करदेगा. धारचूला से पंचचूली चोटी का अद्भुत नजारा सभी यात्रियों को आकर्षित और प्रसन्न करता है.

रानीखेत

रानीखेत उत्तराखंड के कम प्रसिद्ध स्थलों में से एक है क्योंकि यहां बहुत कम पर्यटक आते हैं. नतीजतन आप के पास इस स्थान की सुंदरता को निर्बाध रूप से अनुभव करने का एक शानदार अवसर है. रानीखेत हिमालय के शानदार दृश्य, फूलों से लदे खुबानी के बगीचे और सुहावने मौसम के लिए जाना जाता है.

एस्कोट

उत्तराखण्ड के पिथौरागढ़ जिले का यह डैस्टिनेशन डेफिनेटली आप का मन जीत लेगी. पहले एस्कोट को 80 किलोग्राम का गढ़ कहा जाता था. यह उत्तराखण्ड का एक सीक्रेट हिल स्टेशन है. यहां की ‘मस्क डियर सैंक्चुरी’ बहुत फेमस है. एस्कोट के पहाड़ों पर ?ामते बादल और फ्रेश एटमौस्फियर आप को पूरी तरह तरोताजा कर देंगे.

लैंसडाउन

लैंसडाउन भारत की राजधानी दिल्ली से केवल 275 किलोमीटर दूर है. अपने इस सफर को आप मात्र 6 घंटे में पूरा कर सकते हैं. कहा जाता है कि पहले इस जगह का नाम कालू डांडा था लेकिन एक ब्रिटिश अधिकारी लौर्ड लैंसडाउन के नाम पर इस जगह का नाम बदल कर लैंसडाउन कर दिया गया. आज लैंसडाउन इंडियन आर्मी की गढ़वाल राइफल्स का मुख्यालय है. लैंसडाउन हरियाली के बीच यहां के खूबसूरत बदलों और मौसम के लिए फेमस है.

लोहाघाट

उत्तराखंड के सीक्रेट डैस्टिनेशन में से एक है लोहाघाट जहां आप को एकदम शांत माहौल ऐंजौय करने को मिलता है. अगर आप भीड़ से दूर वाली शांति ऐंजौय करना चाहते हैं तो यह आप के लिए अच्छा औप्शन हो सकता है. ‘कोलीढेक’ लेक यहां का फेमस टूरिस्ट अट्रैक्शन है.

धनौल्टी

धनौल्टी उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल जिले में काफी ऊंचाई पर बसा हुआ एक हिल स्टेशन है. अगर आप ऐसी जगह ढूंढ़ रहे हैं जहां लोगों की कम भीड़भाड़ हो तो जून की छुट्टियों में धनौल्टी घूमने का प्लान बना सकते हैं. धनौल्टी घने जंगलों, पहाड़ों, नदी, ?ारनों से लेस हिल स्टेशल है. यहां आने वाले लोगों का कहना है कि यहां आ कर एक अलग ही शांति का अनुभव होता है. यहां आप को ईको पार्क से ले कर पौटेटो गार्डन तक देखने को मिलेगा. धनौल्टी घूमने के लिए बैस्ट मौसम दिसंबर से जून के बीच का माना जाता है.

नौकूचियाताल

यह एक खूबसूरत जगह है जो नैनीताल से लगभग 28 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. नौकुचियाताल एक शांत जगह है जो उन लोगों के लिए बहुत बढि़या है जो प्रकृति के बीच कुछ समय बिताना चाहते हैं. यहां का एक प्रमुख आकर्षण खूबसूरत नौकुचियाताल ?ाल है. इस ?ाल की सब से खास बात यह है कि इस में 9 कोने हैं. एक पर्यटक के तौर पर आप ?ाल के पास स्थित ‘टूरिस्टरेस्ट हाउस’ में ठहर सकते हैं. ?ाल के पास रहना वाकई शांतिपूर्ण अनुभव है और शहर की भागदौड़ भरी जिंदगी से दूर रहने वाले लोगों के लिए यह एक बेहतरीन अनुभव है. आप नौकुचैताल ?ाल के पास कई तरह के खानेपीने के साथ कई कैफे और रेस्तरां का मजा ले सकते हैं. ?ाल में बोटिंग गतिविधियां भी उपलब्ध हैं.

भीमताल

भीमताल उत्तराखंड न तो बहुत भीड़भाड़ वाला है और न ही बहुत सुनसान. यह उत्तराखंड में घूमने के लिए सब से खूबसूरत जगहों में से एक है. भीमताल के प्रमुख आकर्षणों में से एक खूबसूरत भीमताल ?ाल है जो पूरे भारत से कई पर्यटकों को आकर्षित करती है. भीमताल नैनीताल और काठगोदाम के बीच स्थित है. यह अकेले यात्रा करने वालों और बैकपैकर्स के बीच एक पसंदीदाजगह है. कई जोड़े अपना हनीमून बिताने के लिए भी यहां आते हैं. इस की वजह यहां की खूबसूरती और प्राकृतिक वातावरण है.

Social Media : सोशल मीडिया पर क्या देखें क्या सुनें, कौन तय करेगा ?

Social Media : सोशल मीडिया पर इन दिनों यूट्यूबर रणवीर इलाहाबादिया को ले कर जबरदस्त बहस चल रही है. लोगों में उन के बयान को ले कर काफी आक्रोश है. उन्हें ले कर ट्रोलिंग रुकने का नाम नहीं ले रही है. रणवीर ने इस शो में एक प्रतिभागी से मातापिता के निजी संबंधों को ले कर आपत्तिजनक टिप्पणी की थी, जिस में समय रैना और अपूर्वा माखीजा ने भी उन का साथ दिया.

लोगों के आक्रोश को देखते हुए रणवीर ने इस बात के लिए माफी मांग ली और कहा कि मेरा कमैंट सही नहीं था और फनी भी नहीं था. कौमेडी मेरी विशेषज्ञता नहीं है. मैं इस का कोई स्पष्टीकरण नहीं दूंगा. मैं बस माफी मांगना चाहता हूं.

रणवीर के इस बयान पर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने इस पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की और कहा कि फ्रीडम औफ स्पीच सभी को है लेकिन हमारी आजादी वहां समाप्त हो जाती है जहां हम किसी और की आजादी का अतिक्रमण करते हैं. सब से बड़ी बात यह कि इस कंटैंट को एडल्ट भी नहीं बताया गया है, इसे बच्चे भी आसानी से देख सकते हैं जो सही नहीं है.

वहीं शिवसेना की राज्यसभा सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने चेतावनी देते हुए कहा कि वे ‘इंडियाज गाट लेटैंट’ शो को आईटी और कम्युनिकेशन से जुड़ी संसद की स्थाई समिति के सामने ले जाएंगी. उन्होंने लिखा कि कौमेडी के नाम पर जिस तरह के अपशब्द और अश्लील बातें की जाती हैं, इस के लिए हमें एक हद तय करनी होगी क्योंकि ऐसे शो युवाओं के दिमाग को प्रभावित करते हैं और ऐसे शो पूरी तरह से बकवास कंटैंट मुहैया कराते हैं.

कम उम्र में कामयाबी

बता दें कि रणवीर इलाहाबादिया एक यूट्यूबर हैं और वे ‘बीयरबाइसैप्स’ के नाम से यह शो करते हैं. इस शो में वे देश की कई नामचीन हस्तियों का इंटरव्यू कर चुके हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें 2024 में नैशनल अवार्ड से सम्मानित किया था. 2022 में उन्हें फोबर्स अंडर 30 एशिया सूची में शामिल किया था. रणवीर ने 22 साल की उम्र में अपना पहला यूट्यूब चैनल खोला था और आज वे 7 चैनलों का संचालन कर रहे हैं. इन के 1 करोड़ से अधिक सब्सक्राइबर हैं.

कौमेडियन कपिल शर्मा का भी एक पुराना वीडियो 2023 का वायरल हो रहा है, जिस में सैलिब्रिटी और क्रिकेट के कई सितारे गैस्ट के रूप में पहुंचे थे. ऐपिसोड की शुरुआत में कपिल शर्मा ने मजाकिया अंदाज में कहा था कि हमारे देश में 2 चीजों का बड़ा क्रेज है- एक फिल्में और दूसरा क्रिकेट. कई बच्चे सुबह 4 बजे पढ़ाई के लिए भले न उठ पाएं लेकिन क्रिकेट मैच देखने के लिए 2 बजे रात को उठ जाते हैं और फिर मांबाप की कबड्डी देख कर सो जाते हैं.

यह कौन तय करता है

हम जब किसी रैस्टोरैंट या होटल में खाना खाने जाते हैं तब हमें एक मेन्यू दिया जाता है और उसे देख कर हम तय करते हैं कि हमें अपने खाने में क्या और्डर करना है. किसी की कोई जबरदस्ती नहीं होती कि हमें यही खाना है. वैसे ही टैलीविजन का रिमोट कंट्रोल और स्मार्टफोन हमारे हाथ में होता है. हमें क्या देखना है, क्या नहीं देखना है, यह तय करने का अधिकार केवल हमारे पास होना चाहिए क्योंकि हर व्यक्ति की अपनी पसंद, रुचि और सोचनेसम?ाने की क्षमता अलग होती है. एक स्वतंत्र समाज में लोगों को यह तय करने की पूरी आजादी है कि वे क्या देखे और क्या सुनें.

हालांकि कुछ सीमाएं भी होती हैं जैसेकि अगर कोई चीज हिंसा भड़काने वाली हो, नफरत फैलाने वाली हो या समाज में अराजकता उत्पन्न करने वाला हो तो वहां सरकार या समाज की जिम्मेदारी बनती है इसे रोकने की. लेकिन इस का मतलब यह नहीं होना चाहिए कि सरकार या समाज व्यक्ति की पसंद पर पूरी तरह से नियंत्रण कर ले. सरकार का काम केवल यह सुनिश्चित करना है कि कोई सामग्री कानून और नैतिकता की सीमाओं को न लांघे न कि यह तय करना है कि लोग क्या देखें और क्या सुनें.

नया नहीं है कौमेडी में अश्लीलता का तरीका

यह बात सही है कि रणवीर इलाहाबादिया ने अश्लीलता की सारी हदें पार कर दीं लेकिन कौमेडी शो में अश्लीलता का तरीका कोई नई बात नहीं है. यहां तक कि लोगों को यह मनोरंजक ही लगता है, साइकोलौजी में इसे खास जगह मिली हुई है. मनोविज्ञान की एक टर्म है, रिलीज या रिलीफ थ्योरी. इस में लोग वे बातें करते हैं, जिन्हें करना या सुनना आमतौर पर वर्जित है. जाहिर है टैबू सब्जैक्ट पर बात यों ही तो नहीं होगी. लिहाजा, इसे कौमेडी की परत में लपेट कर परोसा और सुना जाता है खासकर स्टैंडअप या मौडर्न कौमेडी में.

कौमेडी में अश्लील कंटैंट का घालमेल मनोविज्ञान में भी स्वीकार्य है. इस के लिए कई सारी टर्म्स हैं जो मानती हैं कि रिस्ट्रिक्टेड बातों पर मजाक के बहाने चर्चा होनी चाहिए. इसे टैबू ह्यूमर भी कहते हैं.

जरूरी है हंसना और हंसाना

रिलीज थ्योरी की बात सब से पहले मनोवैज्ञानिक सिगमंड फ्रायड ने 1905 में की थी. अपनी किताब ‘जोक्स ऐंड देयर रिलेशन टू द अनकौंशस’ में फ्रायड ने लिखा है कि हंसने से ब्रेन में जमती साइकिक ऐनर्जी बाहर निकलती है. अकसर हमारे दिमाग में कई ऐसी चीजें जमा रहती हैं, जिन पर चर्चा को सामाजिक तौर पर गलत माना जाता है. लेकिन कौमेडी के बहाने हम उस पर मजाक करते और सुनते हैं, जिस से दोनों ही पक्षों का तनाव कम हो जाता है और दिमाग काफी हलकाफुलका महसूस करता है.

यह वर्जित विषय यौन संबंध या भावनाओं से ले कर समाज की गैरबराबरी तक कुछ भी हो सकता है. लेकिन नैतिक पाबंदियों के चलते हम इन पर बात नहीं कर पाते बल्कि सोच का ढक्कन लगा कर रखते हैं. वहीं कौमेडी में यह कैप हटा दिया जाता है. चूंकि यह सीधे अचेतन मन को आराम देता है, यही वजह है कि सैक्सुअल या डार्क ह्यूमर को बेहद असरदार पाया जाता रहा है.

क्या कहती है साइंस

साइंस कहती है कि जब हम किसी सैक्सुअल जोक पर हंसते हैं तो ब्रेन में डोपामिन, ऐंडोर्फिंस और औक्सिटोसिन जैसे हारमोन निकलते हैं. ये फील गुड हारमोंस हैं जो स्ट्रैस कम करते हैं. इन के अलावा इन से मस्तिष्क के फ्रीफ्रंटल कौंटैक्स में हलचल होती है जो सीधे रिवोर्ड सिस्टम से जुड़ा है. 2017 में मनोवैज्ञानिक ‘जर्नल इवौल्युशनरी साइकोलौजी’ में एक रिसर्च छपी थी, जिस के मुताबिक डार्क ह्यूमर लोगों को एकदूसरे के करीब भी लाता है.

कुल मिला कर इस तरह की कौमेडी एक तरह की सेफ बगावत है जिस में प्रतिबंधित चीजों पर बात भी हो जाए और हमारी छवि पर भी कोई असर न पड़े.

यही वजह है कि दशकों से इस तरह की कौमेडी होती रही है. देश के कई हिस्सों में आज भी महिलाएं शादीब्याह में ऐसे गीत गाती हैं जो आमतौर पर काफी अश्लील माने जाते हैं. लेकिन उस माहौल में और गीतसंगीत की शक्ल में बेहद मजेदार लगते हैं. इस में शौक वैल्यू भी होती है जो एकदम से सामने आ कर चौंकाती और हंसाती है.

कब मिलने लगी ऐसे कंटैंट को मान्यता

70 के दशक में कौमेडी की शुरुआत अमेरिका में हुई लेकिन तब मजाक इतने बोल्ड नहीं हुआ करते थे बल्कि पारिवारिक ह्यूमर के बीच कहींकहीं थोड़ीबहुत अश्लीलता का तरीका होता था. 90 के दशक में ऐसा ह्यूमर पूरी तरह से मेन स्ट्रीम हो गया. ओटीटी के दौर में नो फिल्टर कौमेडी आने लगी जो काफी बोल्ड होती थी और लोगों को पचा पाना मुश्किल था. यही समय था जब हमारे यहां भी स्टैंडअप कौमेडी के चलन के साथ मजाकमस्ती होने लगी. लेकिन आज पेटी के नीचे और मांबाप के संबंधों पर मजाक होने लगा है.

रणवीर इलाहाबादिया की आपत्तिजनक टिप्पणी पर जहां कई लोगों ने इसे काफी शर्मनाक बताया, वहीं कुछ लोगों का कहना है कि इस से ज्यादा आपत्तिजनक चीजें तो ओटीटी पर दिखाई जाती हैं.

पहले भी विवादों में रहा यह शो

‘इंडियाज गौट लेटैंट’ शो पहली बार विवादों में नहीं आया है. इस से पहले भी कई आपत्तिजनक टिप्पणियों के लिए यह विवादों में रह चुका है. इसी शो में अरुणाचल प्रदेश के लोगों के कुत्ते का मांस खाने के बारे में टिप्पणी की गई थी. इस के अलावा दीपिका पादुकोण की प्रैगनैंसी और डिप्रैशन का मजाक बनाया गया था.

2021 में रणवीर महिलाओं के कपड़ों पर सैक्सीएस्ट कमैंट करने की वजह से सोशल मीडिया पर बुरी तरह से ट्रोल हुए थे. हम क्या देखें और क्या सुनें यह केवल हम तय कर सकते हैं और कोई नहीं.

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सवाल

मैं 20 वर्षीय युवती एक युवक से प्यार करती हूं, लेकिन पिछले महीने मेरे घर वालों ने मेरी सगाई एक अन्य युवक से कर दी जो अच्छाखासा सैटल है. मैं ने मां से कहा भी पर वे नहीं मानीं, कारण था मेरे बौयफ्रैंड का सैटल न होना. बौयफ्रैंड से मेरे शारीरिक संबंध भी हैं. मुझे समझ नहीं आ रहा कि मैं क्या करूं?

जवाब

जब आप किसी से प्यार करती हैं तो उस से शादी के लिए भी पहले से घर में बता कर रखना चाहिए था, साथ ही आप के बौयफ्रैंड को भी चाहिए था कि वह जल्दी से अपने पैरों पर खड़ा हो ताकि आप का हाथ मांग सके, तिस पर आप इतनी आगे बढ़ गईं कि शारीरिक संबंध भी बना लिए.

‘खैर, जब प्यार किया तो डरना क्या.’ आप के सामने लक्ष्य है उसे भेदिए. सब से पहले अपने बौयफ्रैंड से सैट होने को कहिए, हो सके तो उस की मदद कीजिए. आप भी अपनी कोशिश कर  कोई जौब इत्यादि कीजिए, इस से आप घर में बता सकती हैं कि हम दोनों मिल कर अपनी गृहस्थी चला लेंगे. मातापिता लड़की के सुरक्षित भविष्य को ले कर आश्वस्त होंगे तो अवश्य मान जाएंगे आप के रिश्ते को.

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शादी से पहले शारीरिक संबंध में बरतें सावधानी

आजकल लगभग सभी समाचारपत्रों और पत्रिकाओं में पाठकों की समस्याओं वाले स्तंभ में युवकयुवतियों के पत्र छपते हैं, जिस में वे विवाहपूर्व शारीरिक संबंध बना लेने के बाद उत्पन्न हुई समस्याओं का समाधान पूछते हैं. विवाहपूर्व प्रेम करना या स्वेच्छा से शारीरिक संबंध बनाना कोई अपराध नहीं है, मगर इस से उत्पन्न होने वाली समस्याओं पर विचार अवश्य करना चाहिए. इन बातों पर युवकों से ज्यादा युवतियों को ध्यान देने की आवश्यकता है, ताकि भविष्य में उन्हें दिक्कतों का सामना न करना पड़े :

विवाहपूर्व शारीरिक संबंध भले ही कानूनन अपराध न हो, मगर आज भी ऐसे संबंधों को सामाजिक मान्यता नहीं है. विशेष कर यदि किसी लड़की के बारे में समाज को यह पता चल जाए कि उस के विवाहपूर्व शारीरिक संबंध हैं तो समाज उस के माथे पर बदचलन का टीका लगा देता है, साथ ही गलीमहल्ले के आवारा लड़के लड़की का न सिर्फ जीना दूभर कर देते हैं, बल्कि खुद भी उस से अवैध संबंध बनाने की कोशिश करते हैं.

युवती के मांबाप और भाइयों को इन संबंधों का पता चलने पर घोर मानसिक आघात लगता है. वृद्ध मातापिता कई बार इस की वजह से बीमार पड़ जाते हैं और उन्हें दिल का दौरा तक पड़ जाता है. लड़की के भाइयों द्वारा प्रेमी के साथ मारपीट और यहां तक कि प्रेमी की जान लेने के समाचार लगभग रोज ही सुर्खियों में रहते हैं. युवकों को तो अकसर मांबाप समझा कर सुधरने की हिदायत देते हैं, मगर लड़की के प्रति घर वालों का व्यवहार कई बार बड़ा क्रूर हो जाता है. प्रेमी के साथ मारपीट के कारण लड़की के परिवार को पुलिस और कानूनी कार्यवाही तक का सामना करना पड़ता है.

अधिकतर युवतियों की समस्या रहती है कि उन्हें शादीशुदा व्यक्ति से प्यार हो गया है व उन्होंने उस से शारीरिक संबंध भी कायम कर लिए हैं. शादीशुदा व्यक्ति आश्वासन देता है कि वह जल्दी ही अपनी पहली पत्नी से तलाक ले कर युवती से शादी कर लेगा, मगर वर्षों बीत जाने पर भी वह व्यक्ति युवती से या तो शादी नहीं करता या धीरेधीरे किनारा कर लेता है. ऐसे किस्से आजकल आम हो गए हैं.

इस तरह के हादसों के बाद युवतियां डिप्रेशन में आ जाती हैं व नौकरी छोड़ देती हैं. इस से उबरने में उन्हें वर्षों लग जाते हैं. कई बार युवक पहली पत्नी के होते हुए भी दूसरी शादी कर लेते हैं. मगर याद रखें, ऐसी शादी को कानूनी मान्यता नहीं है और बाद में बच्चों के अधिकार के लिए लंबी कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ सकती है जिस का फैसला युवती के पक्ष में आएगा, इस की संभावना बहुत कम रहती है.

शारीरिक संबंध होने पर गर्भधारण एक सामान्य बात है. विवाहित युवती द्वारा गर्भधारण करने पर दोनों परिवारों में खुशियां मनाई जाती हैं वहीं अविवाहित युवती द्वारा गर्भधारण उस की बदनामी के साथसाथ मौत का कारण भी बनता है.

अभी हाल ही में मेरी बेटी की एक परिचित के किराएदार के घर उन के भाई की लड़की गांव से 11वीं कक्षा में पढ़ने के लिए आई. अचानक एक शाम उस ने ट्रेन से कट कर अपनी जान दे दी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला कि लड़की गर्भवती थी. उसे एक अन्य धर्म के लड़के से प्यार हो गया और दोनों ने शारीरिक संबंध कायम कर लिए, मगर जब लड़के को लड़की के गर्भवती होने का पता चला तो वह युवती को छोड़ कर भाग गया. अब युवती ने आत्महत्या का रास्ता चुन लिया. ऐसे मामलों में अधिकतर युवतियां गर्भपात का रास्ता अपनाती हैं, लेकिन कोई भी योग्य चिकित्सक पहली बार गर्भधारण को गर्भपात कराने की सलाह नहीं देगा.

अधिकतर अविवाहित युवतियां गर्भपात चोरीछिपे किसी घटिया अस्पताल या क्लिनिक में नौसिखिया चिकित्सकों से करवाती हैं, जिस में गर्भपात के बाद संक्रमण और कई अन्य समस्याओं की आशंका बनी रहती है. दोबारा गर्भधारण में भी कठिनाई हो सकती है. अनाड़ी चिकित्सक द्वारा गर्भपात करने से जान तक जाने का खतरा रहता है.

युवती का विवाह यदि प्रेमी से हो जाता है तब तो विवाहोपरांत जीवन ठीकठाक चलता है, मगर किसी और से शादी होने पर यदि भविष्य में पति को किसी तरह से पत्नी के विवाहपूर्व संबंधों की जानकारी हो गई तो वैवाहिक जीवन न सिर्फ तबाह हो सकता है, बल्कि तलाक तक की नौबत आ सकती है.

विवाहपूर्व शारीरिक संबंधों में मुख्य खतरा यौन रोगों का रहता है. कई बार एड्स जैसा जानलेवा रोग भी हो जाता है. खास बात यह है कि इस रोग के लक्षण काफी समय तक दिखाई नहीं देते हैं, लेकिन बाद में यह रोग उन के पति और होने वाले बच्चे को हो जाता है. प्रेमी और उस के दोस्तों द्वारा ब्लैकमेल की घटनाएं भी अकसर होती रहती हैं. उन के द्वारा शारीरिक यौन शोषण व अन्य तरह के शोषण की आशंकाएं हमेशा बनी रहती हैं.

युवती का विवाह यदि अन्यत्र हो जाता है और वैवाहिक जीवन ठीकठाक चलता रहता है, घर में बच्चे भी आ जाते हैं, लेकिन यदि भविष्य में बच्चों को अपनी मां के किसी दूसरे पुरुष से संबंधों के बारे में पता चले तो उन्हें गंभीर मानसिक आघात पहुंचेगा, खासकर तब जब बच्चे टीनएज में हों. मां के प्रति उन के मन में घृणा व उन के बौद्धिक विकास पर भी इस का असर पड़ता है.

इन संबंधों के कारण कई बार पारिवारिक, सामाजिक व धार्मिक विवाद व लड़ाईझगड़े भी हो जाते हैं, जिन में युवकयुवती के अलावा कई और लोगों की जानें जाती हैं. इस के बावजूद यदि युवकयुवती शारीरिक संबंध बना लेने का निर्णय कर ही लेते हैं, तो गर्भनिरोधक विशेषकर कंडोम का प्रयोग अवश्य करें, क्योंकि इस से गर्भधारण व यौन संक्रमण का खतरा काफी हद तक खत्म हो जाता है.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

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