पिता के रूप में अभिनेता अनिल कपूर की सोच क्या है, पढ़ें इंटरव्यू

हॉलीवुड और बॉलीवुड में अपनी एक अलग छवि बनाने वाले अभिनेता अनिल कपूर ने हर शैली में काम किया है और आज भी नई-नई भूमिका निभाकर दर्शकों को चकित कर रहे है. कॉमेडी हो या सीरियस, हर अंदाज में वे फिट बैठते है. उन्होंने जिस भी फिल्म में काम किया, दर्शकों के आकर्षण का केंद्र बने, इसे वे अपनी उम्र के हिसाब से सही फिल्म और किरदार का चुनना बताते है, जो उन्हें सावधानी से करना पड़ता है, जिसमें वे अपने दिल की सुनते है. यही वजह है कि उन्होंने काम से कोई ब्रेक नहीं लिया. उनके साथ ‘कॉम बैक’ का कोई टैग नहीं लगा. हंसमुख और विनम्र स्वभाव के अनिल कपूर खुद को नकारात्मक चीजों से दूर रखना पसंद करते है, ताकि हर सुबह उन्हें नया और फ्रेश लगे. खुश रहना और किसी तनाव को पास न आने देना ही उनके फिटनेस का राज है. उन्होंने हर बार माना है कि जीवन एक है और इसमें उतार-चढ़ाव का आना स्वाभाविक है. अनिल कपूर पहली बार धर्मा प्रोडक्शन के साथ फिल्म ‘जुग-जुग जियो’ में पिता की भूमिका निभा रहे है. जो रिलीज पर है. कोविड की वजह से ये फिल्म रिलीज नहीं हो पाई थी, इसलिए सभी इसके आने का इन्तजार कर रहे है.

इतना ही नहीं अनिल कपूर एक अच्छे अभिनेता के अलावा अभिनेत्री सोनम कपूर, अभिनेता हर्षवर्धन कपूर और रिया कपूर के पिता भी है, उन्होंने बच्चों को एक दोस्त की तरह पाला, जिसमे साथ दिया उनकी पत्नी सुनीता कपूर ने. जिससेउन्होंने इमानदारी के साथ काम किया. आइये जानते है अनिल कपूर से उनके पिता बनने और उससे जुड़े कुछ अनुभव जो पेरेंट्स के लिए बहुत उपयोगी होगा, आइये जानते है, इस बारें में उनकी सोच क्या है.

सवाल – ये फिल्म पिता-पुत्र के संबंधों पर आधारित है, रियल लाइफ में आप किस तरह के पिता है ? क्या बच्चों को अनुसाशन में रखना पसंद करते है?

जवाब – फिल्मों का सम्बन्ध और रियल लाइफ का सम्बन्ध बहुत अलग होता है. (हँसते हुए) रियल पिता को समझने के लिए घर आना पड़ेगा. मैं कभी भी स्ट्रिक्ट पिता नहीं हूं, प्यार से उन्हें कुछ भी कराया जा सकता है, स्ट्रिक्ट होने से नहीं. साथ ही धैर्य की भी बहुत जरुरत पड़ती है, स्ट्रिक्ट होने से बच्चा कभी भी अच्छा नहीं बन सकता. तकनिकी युग के बच्चे पहले से ही सब जानते है, इसलिए उन्हें समझ कर पेरेंट्स को कोई सुझाव देनी चाहिए. बच्चों को अपना क्षेत्र चुनने की पूरी आज़ादी भी पेरेंट्स को देनी चाहिए.

सवाल – आपका और आपकी पत्नी सुनीता कपूर का एक कामयाब रिश्ता रहा है, इस बारें में क्या कहना चाहते है?

जवाब – किसी भी रिलेशनशिप में कॉम्प्रोमाइज करने की जरुरत होती है. इससे व्यक्तिदूसरे की तरफ से देख सकता है और कोई ऐसी बात किसी को कह नहीं पाता, जिससे वह व्यक्ति हर्ट हो. गलती हर इन्सान से होती है और उसे मान लेना सबसे सहज बात होती है.

सवाल – इतने सालों बाद भी जब आपकी फिल्म रिलीज पर होती है, तो क्या आपमें पहले जैसा एक्साइटमेंट होता है?

जवाब – ये फिल्म की बनावट पर निर्भर करता है कि फिल्म की कहानी क्या है और निर्देशक कौन है. अगर मैंने किसी डायरेक्टर के साथ पहले भी काम किया है, तो अधिक चिंता नहीं करता.

सवाल – अभिनेत्री नीतू कपूर के साथ काम करना कैसा रहा?

जवाब – नीतू मेरे परिवार की एक सदस्य है और पहली बार मैं उनके साथ फिल्म में काम कर रहा हूं, इसलिए काम करना सहज था, क्योंकि वह खूबसूरत, फ्रेश और नए लुक में सबके सामने आएगी. अभिनय के अलावा उन्हें डांस भी आता है, मैं उन्हें तब से जानता हूं, जब से वह ऋषि कपूर को डेट कर रही थी.

सवाल – सालों साल एक जैसे कद काठी होने का राज क्या है? फिल्मों को चुनते समय किस बात का ध्यान रखते है?

जवाब – मैं पहले जैसा था, वैसा अब नहीं लग सकता, लेकिन मैं खुद पर बहुत ध्यान देता हूं. साथ ही मैं कभी गलतफहमी में नहीं जीता, मैंने उन फिल्मों चुना जो मेरी उम्र के हिसाब से ठीक हो. दर्शक मुझे कुछ कहे, इससे पहले ही मैंने खुद को चुपचाप हीरों से चरित्र अभिनेता में बदल दिया. ये मेरे लिए सही था. मैंने उन फिल्मों को चुना, जिसमे मैं लीड भले ही न हूं, लेकिन जरुरी है. ये चुनाव मेरे लिए सफल रहा. आज मैं बहुत खुश हूं कि दर्शक आज भी मुझे देखना चाहते है. आज के दर्शकों को कोई मुर्ख नहीं बना सकता. इसके अलावा मैं नियमित वर्कआउट करता हूं. किसी प्रकार का नशा नहीं करता. मुझे दक्षिण भारतीय व्यजन में स्टीम्ड इडली बहुत पसंद है, क्योंकि ये बहुत सुरक्षित भोजन है.

सवाल – आप अभी भी किसी फिल्म में सेंटर ऑफ़ अट्रैक्शन बने रहते है, इस बारें में क्या कहना चाहते है? सोशल मीडिया पर आप कितने एक्टिव है?

जवाब – उम्र के हिसाब से हमेशा अभिनय करना चाहिए, अभी मैं वरुण धवन की भूमिका नहीं निभा सकता. मैं अपने उम्र की भूमिका निभा रहा हूं. इसलिए सभी मेरे चरित्र को पसंद करते है. हालाँकि इस फेज में आना कठिन था, पर मैंने खुद को समझाया.

सोशल मीडिया पर मैं अधिक एक्टिव नहीं, लेकिन मेरे काफी यंग फोलोअर्स है, जो अधिकतर मिम्स भेजते है. मैं उनका जवाब मिम्स से ही देता हूं. (हँसते हुए) यंग फोलोअर्स अधिक होने की वजह मेरी भूमिका है, जो यंग को भी आकर्षित करती है. फिल्म वेलकम में मेरी भूमिका मजनू भाई की थी, जो पेंटिंग बनाता है. मुझे जब पेंटिंग बनाकर निर्देशक अनीस बज्मी ने दी, तो किसी को पता नहीं था कि मेरी ये भूमिका इतनी पोपुलर होगी. यूथ को मेरा ये किरदार इतना पसंद होगा. मैं कई बार कुछ निर्देशक की कहानियां भी नहीं पढता, क्योंकि वे मेरे टेस्ट को जान चुके है. फिल्म अच्छी तरह बननी चाहिए, सफल हो या न हो ये तो दर्शकों की टेस्ट पर निभर करता है. मैं खुद निर्णय लेता हूं और अंत तक उसे पूरा करता हूं.

सवाल – कंट्रोवर्सी को आप कैसे लेते है और खुद को क्या समझाते है?

जवाब – मैं कंट्रोवर्सी को देखता नहीं हूं, उन लेखों को पढता हूं, जिन्होंने मेरी बातों को ठीक तरह से लिखा है. क्रिटिक सही है, क्योंकि इससे मैं खुद को इम्प्रूव कर सकता हूं, पर मेरे घर में बहुत सारे अच्छे आलोचक है, मैं उनकी अवश्य सुनता हूं.

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B Praak के नवजात बच्चे की हुई मौत, सिंगर ने बयां किया दर्द

बीते दिनों वाइफ मीरा बच्चन का बेबी शॉवर सेलिब्रेट करने वाली पौपुलर सिंगर बी प्राक (B Praak) के नवजात बच्चे की मौत हो गई है, जिसका दर्द शेयर करते हुए उन्होंने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट के जरिए शेयर किया है. आइए आपको बताते हैं पूरी खबर…

नवजात बच्चे की मौत पर शेयर किया पोस्ट

 

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हाल ही में डिलीवरी के बाद बी प्राक ने बच्चे की मौत की खबर अपने फैंस को दी है. दरअसल, सिंगर ने सोशलमीडिया पर एक पोस्ट शेयर किया था, जिसमें लिखा था कि बहुत ही दर्द के साथ मैं बताना चाहता हूं कि हमारे दूसरे बच्चे का निधन हो गया है. जन्म के तुरंत बाद वह इस दुनिया से चल बसा. बतौर पैरेंट्स ये हमारे लाइफ की सबसे दुखद घटना है. हम सभी डॉक्टर्स और स्टाफ के एफर्ट्स का धन्यवाद करते हैं. मैं सभी से गुजारिश करता हूं कि इस दुखद समय में हमारी प्राइवेसी का ख्याल रखा जाए. सभी की प्रार्थना की जरूरत है. आपका प्यारा बी प्राक और मीरा.

 

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बेबी शॉवर किया था सेलिब्रेट

 

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पंजाबी गानों से फैंस का दिल जीत चुके सिंगर बी प्राक ने हाल ही में अपनी वाइफ मीरा बच्चन की प्रैग्नेंसी की न्यूज शेयर की थी, जिसके उन्होंने बेबी शॉवर भी सेलिब्रेट किया था. हालांकि बच्चे की मौत की खबर से सेलेब्स और फैंस उन्हें हौंसला रखने की बात कह रहे हैं और सांत्वना जता रहे हैं.

बता दें, सिंगर बी प्राक (B Praak Wife) ने साल 2019 में मीरा बच्चन के साथ शादी की थी, जिनसे उनका बेटा अदब है. वहीं प्रौफेशनल करियर की बात करें तो ‘रांझा’, ‘फिलहाल 2’, ‘मन भरया’, ‘बारिश की जाए’ जैसे गानों की म्यूजिक वीडियो के अलावा वह अक्षय कुमार की फिल्म केसरी में तेरी मिट्टी भी गा चुके हैं, जो फैंस को काफी पसंद आया था.

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बॉलीवुड की दुल्हनों को पीछे छोड़ रहा है साउथ की Nayanthara का ब्राइडल लुक, देखें फोटोज

साउथ की पौपुलर एक्ट्रेसेस में से एक नयनतारा (Nayanthara) हाल ही में शादी के बंधन में बंध चुकी हैं, जिसकी फोटोज और वीडियो सोशलमीडिया पर वायरल हो रही हैं. वहीं उनके ब्राइडल लुक (Nayanthara Bridal Look) की फैंस तारीफ करते नहीं थक रहे हैं. नयनतारा का लुक देखकर हर कोई बौलीवुड एक्ट्रेस के लुक को पानी कम बता रहा है. आइए आपको दिखाते हैं साउथ की एक्ट्रेस के ब्राइडल लुक की झलक…

ब्राइडल लुक के लिए चुना लाल रंग  

 

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बॉयफ्रेंड विग्नेश शिवन (Vignesh Shivan) से 9 जून को शादी करने वाली एक्ट्रेस नयनतारा की वेडिंग फोटोज बेहद खूबसूरत हैं. शादी के लिए एक्ट्रेस ने लाल रंग चुना था. लहंगे की जगह एक्ट्रेस लाल कलर की नेट वाली साड़ी और फुल स्लीव्ज ब्लाउज में नजर आई. वहीं ज्वैलरी की बात करें तो ग्रीन एमराल्ड ज्वैलरी और चोकर से उन्होंने अपना पूरा ब्राइडल लुक सजाया था. साउथ इंडियन स्टाइल की साड़ी छोड़ एक्ट्रेस ने नेट की साड़ी पहनकर बौलीवुड और साउथ की एक्ट्रेस के वेडिंग लुक से हटकर बनाया था.

 

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पति ने लिखा खास मैसेज

 

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एक्ट्रेस के पति विग्नेश शिवन ने अपनी वेडिंग फोटोज फैंस के साथ शेयर करते हुए लिखा नयन मैम से कादम्बरी तक… Thangamey से मेरी बेबी तक. फिर Uyir और मेरी कनमनी भी… अब मेरी पत्नी. विग्नेश का पोस्ट देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि नयनतारा से शादी करके वह कितने खुश हैं. वहीं शादी की रस्मों की इन फोटोज देखकर फैंस दोनों की तारीफ कर रहे हैं. हालांकि एक्ट्रेस के वेडिंग लुक की चर्चा इन दिनों सोशलमीडिया पर छाई हुई है.

 

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बता दें, एक्ट्रेस नयनतारा की शादी में कई बड़े सितारे पहुंचे थे, जिनमें कोरोना से ठीक हुए एक्टर शाहरुख खान का नाम भी शामिल हैं. वहीं साउथ और बौलीवुड इंडस्ट्री के कई नामी सितारे भी इस शादी में शिरकत करते हुए नजर आ चुके हैं.

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OTT को लेकर क्या कहती हैं एक्ट्रेस रुपाली सूरी, पढ़ें संघर्ष की कहानी

थिएटर से अभिनय की शुरुआत करने वाली अभिनेत्री रुपाली सूरी ने इंटरनेशनल फीचर फिल्म ‘डैड होल्ड माय हैंड’ से की थी.  इस फिल्म में उन्हें रत्ना पाठक शाह के साथ काम करने का मौका मिला. निर्देशन के साथ-साथ विक्रम गोखले ने खुद ही इस फिल्म को एडिट और कम्पोज भी किया है. इसमें उन्होंने बड़ी ही खूबसूरती से लॉकडाउन की कहानी को शूट किया है. रुपाली अभी कुछ वेब सीरीज और फिल्मों में काम कर रही है. व्यस्त समय के बीच उन्होंने गृहशोभा के लिए खास बात की, आइये जाने उनकी कहानी.

सवाल –अभिनय की प्रेरणा कहाँ से मिली?

जवाब –मेरे परिवार में कोई भी इस इंडस्ट्री से नहीं है, लेकिन छोटी उम्र में मेरी फीचर मॉडल की तरह होने की वजह से कई फैशन शोज में भाग लिया. इसके अलावा उस दौरान घर में कुछ तंगी होने की वजह से माँ ने मुझे आये हुए प्रोजेक्ट को करने के लिए कहा, उस प्रोजेक्ट के पूरा होते ही दूसरा प्रोजेक्ट आ गया, इस तरह से काम छूटा नहीं. काम करने बाद  मैं इस क्षेत्र में प्रेरित हुई और कॉलेज के बाद ही मैंने निश्चय कर लिया था किमुझे एक्टिंग करनी है, क्योंकि तब तक मैं काम सीख चुकी थी.

मॉडलिंग का काम मैंने दूसरी कक्षा से कर दी थी और स्कूल में काम कम था, लेकिन कॉलेज में इसकी रफ़्तार तेज हुई, मॉडलिंग के अलावा मैंने कई सीरियल्स में भी काम किये. फिर धीरे-धीरे वेब सीरीज, फिल्मे आदि मिलती गयी, क्योंकि अभिनय को समझने के लिए इफ्टामें ज्वाइन किया उनके साथ कई शोज किये. मेरा वह शुरूआती दौर था, जिसमे कला, अभिनय के साथ बहुत सारी बातों को सीखना था. मुझे ये समझना जरुरी था कि मैं खुद क्या और कितना काम कर सकती हूं. इसलिए मैंने थिएटर के मंच पर कई एक्सपेरिमेंटल शोज किये. वहां तालियों की गडगडाहट, दर्शकों का तुरंत रिएक्शन मिलता था. अभी भी मैं स्टेज की दुनिया को मिस करती हूं.मुझे कई बार ऐसा लगता है कि इंडस्ट्री ने मुझे चुन लिया है, मैंने नहीं चुना है.

सवाल – कितना संघर्ष रहा?

जवाब – संघर्ष का स्तर हमेशा अलग होता है, एक समय जब मैंने आर्थिक तंगी के कारण काम शुरू किया था, दूसरे स्तर के संघर्ष में मेरे पास बस, टैक्सी, ऑटो के पैसे नहीं थे. कैसे मैं आगे बढ़ी हूं, ये मैं जानती हूं. तीसरा संघर्ष फैशन शो में जाने के लिए मेरे पास जूते खरीदने के पैसे नहीं थे. ये सब मेरे लिए कोई संघर्ष नहीं कह सकती, क्योंकि ऐसा करते हुए आगे बढ़ने में मज़ा आया था. आज पीछे मुड़कर देखने पर मुझे महसूस होता है कि इतनी स्ट्रगल के बाद ही मुझमे आत्मविश्वास आ पाया और मैंने जो अपनी छोटी एक सफल दुनिया बनाई है वह बन नहीं पाती. मेरी बड़ी बहन भी अभिनय से जुडी है. दोनों के रास्ते एक है, लेकिन अप्रोच अलग-अलग है.

सवाल – क्या आपको बड़ी बहन का सहयोग मिला ?

जवाब – सहयोग से अधिक मैं उससे प्रेरित अवश्य हुई हूं. उन्होंने अपने जीवन में मेहनत कर एक जगह बनायीं है. उनके सही कदम और गलतियों से मैंने बहुत कुछ सीखा है. वह मेरे लिए ‘लाइव लेसन’ है. मैं साधारण परिवार से हूं, मेरे पिता गारमेंट के व्यवसाय में थे, अब रिटायर्ड है और मेरी माँ गुजर चुकी है. मेरी माँ बहुत कम उम्र में बिछड़ गई. इस वजह से हम दोनों बहने बहुत ही हम्बल बैकग्राउंड से है.

सवाल – इंडस्ट्री में गॉडफादर न होने पर काम मिलना मुश्किल होता है, क्या आपको काम मिलने में परेशानी हुई ?

जवाब – ये तो होता ही रहता है, क्योंकि पेरेंट्स के काम से उनके बच्चों कोलाभ मिलता है. ये केवल इंडस्ट्री के लिए नहीं हर जगह लागू होता है. पहला मौका उन्हें जल्दी मिलता है, लेकिन काम के ज़रिये उन्हें भी प्रूव करना पड़ता है कि वे इस इंडस्ट्री के लिए सही है.

सवाल – कई बार काम होते-होते कलाकार रिजेक्ट हो जाते है, क्या आपको रिजेक्शन का सामना करना पड़ा? उसे कैसे लिया?

जवाब – बहुत बार मुझे इन चीजो का सामना करना पड़ा, कई बार मैंने रात 10 बजे मैनेजर को जगाकर पूछती थी कि मैंने क्या गलत किया. कई बार तो साइनिंग अमाउंट मिलने के बाद भी रिजेक्ट हुई. कई बार सेट पर पहुँचने के बाद मुझे अगले दिन नहीं बुलाया गया. इसकी वजह समझना मुश्किल होता है, कभी कोई कहता है कि इस रोल के लिए मैं ठीक नहीं, तो कोई कुछ दूसरा बहाना बनाते है. सामने कोई कुछ अधिक नहीं कहता. एक बार मैं निर्देशक अनीस बज्मी की फिल्म में कास्ट हुई, लेकिन उन्होंने साफ कह दिया था कि नए कलकार के साथ वे काम नहीं करते, उन्हें एक अनुभवी कलाकार चाहिए.

सवाल – स्ट्रेस होने पर रिलीज कैसे करती है?

जवाब – मैं आधी रात को मैनेजर से घंटों बात करती हूं और वह मुझे समझाती है. अगर वह नहीं है तो मैं कथक डांस कर सारा स्ट्रेस निकाल देती हूं. मैं एक कलाकार हूं और हर इमोशन को फील करती हूं, लेकिन एक बार उससे निकलने पर वापस मैं उसमे नहीं घुसती और आगे बढ़ जाती हूं.

सवाल – किस शो ने आपकी जिंदगी बदली?

जवाब – टीवी ने मुझे बहुत सहयोग दिया है, उसकी शोज से मुझे आज भी लोग याद करते है. मेरी वेब सीरीज, फिल्मों की अलग और टीवी की एक अलग पहचान है. शो ‘शाका लाका बूम-बूम’ में मेरे चरित्र, विज्ञापनों आदि को लोग आज भी याद रखते है, इस तरह बहुत सारे ऐसी टीवी शो है, जिससे मैं सबके घरों तक पहुँच पाई.

सवाल – ओटीटी आज बहुत अधिक दर्शकों के बीच में पोपुलर है, इसका फायदा नए कलाकारों को कितना मिल पाता है?

जवाब – ओटीटी आने से इंडस्ट्री में लोगों के काम और वेतन काफी बढ़ गयी है. जिस तरह टीवी ने आज से कुछ साल पहले कलाकारों को अभिनय करने का एक बड़ा मौका दिया था, वैसी ही ओटीटी के आने से काम बहुत बढ़ा है. काम और पैसे का बढ़ना ही इंडस्ट्री के लोगों के लिए निश्चित रूप से एक प्रोग्रेस है. इससे ये भी कलाकारों को पता चला है कि केवल फिल्म ही नहीं, आप ओटीटी पर अभिनय कर संतुष्ट हो सकते है. ये एक प्रोग्रेसिव दौर है.

सवाल – परिवार का सहयोग कितना रहा ?

जवाब – परिवार के सहयोग के बिना आप कुछ भी नहीं कर सकते. पहले दिन से मुझे ये आज़ादी मिली है, मुझे कभी कुछ रोका या टोका नहीं गया है. एक ट्रस्ट और कॉंफिडेंट दिया गया है, जो मेरे लिए जरुरी था.

सवाल – आपके ड्रीम क्या है?

जवाब – मेरी ड्रीम्स बहुत छोटी -छोटी है, मैं छोटी चीजों को पाकर खुश हो जाती हूं. ये छोटी चीजे मिलकर एक दिन बड़ी हो जाती है. मैं हमेशा प्रेजेंट में रहती हूं. डांस मेरा पैशन है, लेकिन कब ये जरुरत बन गयी पता नहीं चला. मैं अपनी सुविधा के लिए शो करती हूं, रियाज करती हूं, ये मुझे संतुलित रखती है. मेरे कथक गुरु राजेंद्र चतुर्वेदी है.

सवाल – खाना बनाने का शौक है?

जवाब – मुझे खाना बनाना पसंद है, माँ की रेसिपी को मैं हमेशा नए अंदाज में बनाती हूं.

सवाल – आपके जीवन जीने का अंदाज क्या है?

जवाब – आसपास के सबको खुश रखना और वर्तमान में जीना.

मेरी एक दादी है, जो हर मगज़ीन में मुझे खोजती है, उसे खरीदती रहती है और एक शेल्फ पर अलग से रख देती है. किसी को हाथ लगाने नहीं देती,

सवाल – क्या आप एनिमल लवर है?

जवाब – मुझे जानवरों से बहुत प्यार है. मेरे निर्देशक भरतदाभोलकर भी एक एनिमल लवर है. मेरा उनसे जुड़ाव भी जानवरों की वजह से हुआ है, मेरी डौगी डॉन सूरी भी 15 साल साथ रहने के बाद उसकी डेथ हो गयी. मुझे उसकी बहुत याद आती रहती है.

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परदे पर हीरो, पढ़ाई में जीरो

एक इंटरव्यू में अभिनेत्री जाह्नवी कपूर से जब उन की शिक्षा के बारे में पूछा गया, तो पहले तो उन्होंने गर्व से कहा कि उन्होंने केवल 9वीं कक्षा तक पढ़ाई की है क्योंकि बचपन से उन्हें पढ़ाई पसंद नहीं थी और 5 साल की उम्र से वे अपनी मां और अभिनेत्री श्रीदेवी के साथ उन के शूटिंग सैट पर जाती रहती थी. उन्हें ये सब देखना पसंद था क्योंकि उन्हें भी अभिनेत्री बनना था. फिर अचानक कहती हैं कि क्या अभिनय के लिए शिक्षा जरुरी है? ऐसा मैं नहीं मानती. क्रिएटिविटी के लिए शिक्षा कहीं पर भी आवश्यक नहीं होती. पुराने कलाकर तो अधिकतर कम पढ़ेलिखे या बिलकुल भी शिक्षित नहीं थे. फिर भी सब ने अच्छा काम किया और सफल रहे.

यह सही है कि जाह्नवी जैसी कई आर्टिस्ट शिक्षा को अभिनय में जरूरी महसूस नहीं करते क्योंकि उन्हें पता होता है कि उन्हें अच्छा काम मिलने में कोई संघर्ष नहीं है क्योंकि वे सेलेब्स के बच्चे हैं और उन के पिता ही फिल्म के प्रोड्यूसर हैं. इन से अलग कुछ कलाकार ऐसे भी हैं, जिन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी कर इंडस्ट्री में काम शुरू किया है.

एक इंटरव्यू में अभिनेता विकी कौशल से उन का इंजीनियरिंग की पढ़ाई के बाद अभिनय में उतरना क्या सही है, पूछने पर उन का कहना है कि पढ़ेलिखे होने पर चरित्र के ग्राफ को सम झने में आसानी होती है क्योंकि अभिनय में भी चरित्र का खाका बनाया जाता है, जिस के अनुसार यह पूरी फिल्म बनती है, साथ ही आज की तकनीक को सम झना भी बहुत जरूरी है.

समाज में शिक्षा और शिक्षितों का महत्त्व बहुत अधिक होता है, फिर चाहे वह बौलीवुड हो या आम इंसान. हर व्यक्ति के जीवन में शिक्षा की मुख्य भूमिका होती है. जैसा कहा जाता है कि शिक्षा के बिना जीवन का कोई महत्त्व नहीं होता क्योंकि इस के द्वारा ही व्यक्ति को सफलता की सीढ़ी चढ़ने से कोई नहीं रोक सकता.

शिक्षा केवल कैरियर के लिए ही नहीं, बल्कि व्यक्ति के मार्गदर्शन, एक योजनाबद्ध और संवेदनशील के साथ आगे बढ़ने में सहायक होती है. कई बार कुछ कारणों से सेलेब्स की शिक्षा अधूरी रह जाती है, लेकिन इस का खमियाजा उन्हें आगे चल कर भुगतना पड़ता है.

करते हैं खुद को अपडेट

पुराने कई कलाकारों ने एक समय के बाद खुद को अपडेट करने के लिए अंगरेजी सीखी ताकि विदेश में उन्हें किसी प्रकार की समस्या न हो. इस के अलावा यह देखा गया है कि जिन सेलेब्स के बच्चों को आसानी से ऐक्टिंग फील्ड में आने का मौका मिलता है, वे खासकर कम पढ़ाई करते हैं. इस के अलावा उन की एक फिल्म सफल न होने पर भी उन्हें कई बार मौका मिलता है, जिस से वे आगे जा कर अभिनय सीख जाते हैं.

ऐसे में वे ग्लैमर से आकर्षित हो कर इंडस्ट्री में आ जाते हैं और खुद को स्थापित नहीं कर पाते, जबकि आउटसाइडर को बहुत मुश्किल से एक मौका मिलता है और उस में वह अगर सफल नहीं होता है, तो दूसरा औफर मिलना मुश्किल होता है. इसलिए उन का पढ़ालिखा होना बहुत जरूरी होता है क्योंकि अभिनय में सफल न होने पर उन्हें दूसरे काम करने पड़ते हैं क्योंकि मुंबई जैसे शहर में बिना जौब के रहना कठिन होता है.

आज फिल्म मेकिंग में भी तकनीक का बहुत प्रयोग होता है. ऐसे में शिक्षित कलाकारों को किसी भी निर्देशन को फौलो करने में आसानी होती है. आइए, जानते हैं, वे सेलेब्स जो कालेज नहीं गए,

सोनम कपूर

सोनम कपूर ने 12वीं कक्षा तक पढ़ने के बाद पत्राचार के जरीए ग्रैजुएशन करने के लिए एडमिशन लिया, लेकिन बीच में पढ़ाई छोड़ अपने फिल्मी सफर की शुरुआत कर ली. एक इंटरव्यू में सोनम ने कहा, ‘‘मैं ने 12वीं कक्षा की पढ़ाई बीच में छोड़ दी और अभिनेत्री बन गई क्योंकि मैं 4 साल तक इंतजार नहीं कर सकती थी, लेकिन आज शिक्षा का महत्त्व सम झती हूं. मेरे पिता अनिल कपूर ने मु झे कई बार पढ़ाई पूरी करने के लिए कहा, पर मेरा मन पढ़ाई से ऊब चुका था. आज के दौर मैं सभी का शिक्षित होना आवश्यक है.’’

काजोल

काजोल ने बौलीवुड में एक से बढ़ कर एक फिल्मों में काम किया है और आज भी वे बौलीवुड में पूरी तरह से सक्रिय हैं. काजोल ने 17 साल की उम्र में बौलीवुड में कदम रख लिया था जिस के चलते उन्होंने बीच में ही अपनी पढ़ाई छोड़ दी. एक इवेंट में काजोल ने कहा, ‘‘मैं ने कभी दिल लगा कर पढ़ाई नहीं की है. स्कूल की शिक्षा समाप्त कर मैं ने फिल्मों में काम करना शुरू कर दिया था, लेकिन आज मैं शिक्षा के महत्त्व को जानती हूं. मु झे दुख इस बात का है कि मैं ने एक बहुत बड़ी गलती की है. आज मैं अपने बच्चों को पूरी शिक्षा देने की कोशिश कर रही हूं.’’

कंगना रनौत

अपने बयानों की वजह से अकसर सुर्खियों में रहने वाली कंगना 12वीं कक्षा में ही फेल हो गई थीं. इस हिसाब से वे 10वीं कक्षा पास ही हैं. वे कहती हैं, ‘‘मैं असल पढ़ाई तो नहीं कर पाई, पर इंडस्ट्री ने मु झे अच्छी तरह से पाठ पढ़ा दिया है. मैं जानती हूं कि बड़े शहरों में रहने वाली लड़कियों को अपनी शिक्षा पूरी करने का मौका मिलता है क्योंकि वे कौन्फिडैंट और चेतनाशील होती हैं, लेकिन छोटे शहरों में लोग लड़कियों के अधिक पढ़ने पर जोर नहीं देते, उन की इच्छा को दबा दिया जाता है और उन की शादी कर दी जाती है. महिलाओं को उन की आजादी के साथ रहने देना जरूरी है और उन से किसी भी प्रकार की आशा रखना ठीक नहीं जैसाकि शादी के बाद परिवार वाले करते हैं.’’

आलिया भट्ट

अपने हुस्न और अपनी अदाकारी से लोगों का दिल जीतने वाली एक्ट्रैस आलिया भट्ट भी केवल 12वीं कक्षा पास हैं. वे कहती हैं, ‘‘शिक्षा को ले कर मु झे किसी प्रकार का रिग्रैट नहीं है. मैं आगे पढ़ाई के लिए कभी कालेज जाना नहीं चाहती थी और न ही आगे पढ़ाई को फिर से जारी रखना चाहूंगी क्योंकि मैं 100% कैरियर इस क्षेत्र में ही बनाऊंगी.

अर्जुन कपूर

अभिनेता अर्जुन कपूर की पढ़ाई में कभी दिलचस्पी नहीं थी. उन्होंने मुंबई के एक स्कूल में 11वीं कक्षा तक पढ़ाई की है, पढ़ाई छोड़ने की वजह 11वीं कक्षा की परीक्षा क्लियर न कर पाना था, जिस के बाद उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी. एक संस्था के उद्घाटन पर उन्होंने बताया, ‘‘शिक्षा सभी के लिए बहुत जरूरी है, जितना एक बच्चा पढ़ेगा उतना ही वह बच्चा भविष्य में देश के लिए अच्छा काम करेगा. एक ऐक्टर के तौर पर मैं अनुभव करता हूं कि मेरी शिक्षा, मेरा लालनपालन और मेरी लाइफ उस का ही अस्तित्व है, जिसे मैं शिक्षा के द्वारा अच्छा बना सकता था.’’

करिश्मा कपूर

90 के दशक की पौपुलर अभिनेत्री करिश्मा कपूर ने टीनऐज में फिल्मों में कदम रखा था. ऐसा उन्होंने अपने परिवार की आर्थिक स्थिति के खराब हो जाने पर किया था. उन्होंने पढाई छोड़ कैरियर पर अधिक बल दिया ताकि परिवार को आर्थिक रूप से कुछ सहायता मिले. करिश्मा कहती हैं, ‘‘मैं अपने कैरियर को ले कर आश्वस्त नहीं थी, लेकिन धीरेधीरे सब सही हुआ. मेरी मां ने हमेशा हम दोनों बहनों को ग्लैमर से दूर आम बच्चों की तरह पाला है. शिक्षा का महत्त्व हमेशा रहता है, जिसे मैं आज फील करती हूं.’’

टाइगर श्रौफ

जैकी श्रौफ के बेटे टाइगर ने भी 12वीं के बोर्ड एग्जाम के बाद पढ़ाई छोड़ दी और मार्शल आर्ट सीखने विदेश चले गए. वे कहते हैं, ‘‘मेरा आगे पढ़ने का मन नहीं था. अगर पहली फिल्म ‘हीरोपंती’ सफल नहीं होती, तो मु झे आगे पढ़ाई के लिए सोचना पड़ता. यह सही है कि आज शिक्षित होना सभी के लिए आवश्यक है.

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विक्की कौशल ने दोबारा रचाई शादी! जानें क्या है मामला

बौलीवुड एक्टर विक्की कौशल ने साल 2021 में एक्ट्रेस कटरीना कैफ संग शादी रचाई थी, जिसकी फोटोज और वीडियो आज भी सोशलमीडिया पर वायरल होती रहती हैं. इसी बीच एक्टर विक्की कौशल की एक वीडियो वायरल हो रही है, जिसमें वह दोबारा घोड़ी पर चढे हुए नजर आ रहे हैं. आइए आपको बताते हैं पूरी खबर…

ऐसे हुई विक्की कौशल की दोबारा शादी

 

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हाल ही में शादी के बाद पहले अवौर्ड शो आईफा 2022 में पहुंचे विक्की कौशल की शो के होस्ट रितेश देशमुख और मनीष पॉल ने टांग खींची. दरअसल, शो में अकेले आए विक्की कौशल की टांग खींचते हुए होस्ट ने उन्हें घोड़ी चढाई और फिर  कैटरीना कैफ का बड़ा सा पोस्टर लेकर उन्हें वरमाला पहनाई. एक्टर की इस वीडियो पर फैंस के मजेदार रिएक्शन देखने को मिल रहे हैं.

 

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शादी के बाद लाइफ के बारे में कही ये बाद

 

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आईफा अवॉर्ड 2022 में फिल्म ‘सरदार उधम सिंह’ के लिए बेस्ट एक्टर का अवॉर्ड जीत चुके विक्की कौशल ने हाल ही में शादी के बाद अपनी लाइफ के बारे में चुप्पी तोड़ते हुए एक इंटरव्यू में कहा था कि  ‘कैटरीना कैफ के साथ मैरिड लाइफ बहुत अच्छी चल रही है… सुकून भरी है. मैं कैटरीना कैफ को अवॉर्ड शो में मिस कर रहा हूं. उम्मीद है कि अगले साल हम आईफा में एक साथ आएंगे.’

 

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बता दें, ‘सरदार उधम सिंह’ के बाद एक्टर विक्की कौशल ‘गोविंदा नाम मेरा’ और आनंद तिवारी और लक्ष्मण उतरेकर की अनटाइटल्ड फिल्म का हिस्सा हैं. वहीं ‘सूर्यवंशी’ के बाद एक्ट्रेस कैटरीना कैफ फिल्म ‘टाइगर 3’, फिल्म ‘मेरी क्रिसमस’ और फिल्म ‘फोनभूत’ जैसी फिल्मों की शूटिंग में बिजी हैं, जिसके कारण दोनों एक दूसरे से दूर हैं. हालांकि वह कई बार एयरपोर्ट पर साथ नजर आ चुके हैं.

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‘सम्राट पृथ्वीराज’ की रिलीज के बीच छाए Manushi Chhillar के लुक्स, फैंस कर रहे तारीफ

Miss World 2017 का खिताब अपने नाम कर चुकीं मॉडल और एक्ट्रेस मानुषी छिल्लर (Manushi Chhillar) इन दिनों अक्षय कुमार के साथ अपनी फिल्म सम्राट पृथ्वीराज को लेकर चर्चा में हैं. जहां फिल्म की तारीफ हो रही है तो वहीं एक्ट्रेस के इंडियन लुक्स के फैंस कायल हो गए हैं. इसी के चलते आज हम आपको बॉलीवुड में अपनी डेब्यू फिल्म सम्राट पृथ्वीराज के प्रमोशन में पहने मानुषी के इंडियन लुक्स की झलक दिखाएंगे.

अनारकली सूट में पहुंची मंदिर

 

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अपनी डेब्यू फिल्म की रिलीज के बीच एक्ट्रेस मानुषी छिल्लर सिद्धिविनायक मंदिर पहुंची. जहां वह सफेद अनारकली में बेहद खूबसूरत लग रही थीं. फुल स्लीव्स औऱ हल्की एम्बौयडरी के साथ बालों में गजरा लगाए एक्ट्रेस बेहद खूबसूरत लग रही थीं.

प्रमोशन के दौरान दिखी सादगी

 

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इसके अलावा एक्ट्रेस मानुषी बेहद सादगी भरे अंदाज में अपनी फिल्म का प्रमोशन करती नजर आईं. औफशोल्डर अनारकली में वह बेहद खूबसूरत लग रही थीं. वहीं फोटोज देखकर फैंस उनकी तारीफें करते नहीं थक रहे थे.

साड़ी में भी दिखाई अदाएं

 

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हाल ही में एक्ट्रेस मानुषी छिल्लर ने साड़ी पहनी थी. फ्यूशिया पिंक कढ़ाईदार साड़ी में गोल्डन बॉर्डर एक्ट्रेस बेहद सिंपल लेकिन एलिगेंट लग रही थीं. फैंस को एक्ट्रेस का ये सादगी भरा अंदाज काफी पसंद आ रहा है.

इंडियन लुक्स में आती हैं नजर

 

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फिल्म के प्रमोशन के दौरान ही नहीं एक्ट्रेस मानुषी छिल्लर कई बार इंडियन लुक्स में नजर आ चुकी हैं. रफ्फल साड़ी हो या लहंगा, हर लुक में वह बेहद स्टाइलिश लगती है. हालांकि फैंस को उनकी सादगी काफी पसंद है. इसके अलावा फिल्म सम्राट पृथ्वीराज में एक्ट्रेस की अक्षय कुमार संग कैमेस्ट्री फैंस का दिल जीत रही है. वहीं सोशलमीडिया पर उनकी एक्टिंग के भी चर्चे जोरों पर हैं. हालांकि देखना होगा की एक्ट्रेस की डेब्यू फिल्म दर्शकों के दिलों पर कितना राज कर पाती है.

 

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REVIEW: जानें कैसी है Akshay और Manushi की फिल्म Samrat Prithviraj

रेटिंगः डेढ़ स्टार

निर्माताः आदित्य चोपड़ा

लेखक व निर्देशकः डॉं.  चंद्रप्रकाश द्विवेदी

कलाकारः अक्षय कुमार, मानुषी छिल्लर, मानव विज, संजय दत्त, सोनू सूद, ललित तिवारी व अन्य

अवधिः दो घंटे 15 मिनट

भारतीय इतिहास में सम्राट पृथ्वीराज चैहान को वीर योद्धा माना जाता है. मगर उन्ही पर बनायी गयी फिल्म ‘‘सम्राट पृथ्वीराज’’ में  पृथ्वीराज की वीरता पर ठीक से रेखांकित नही किया गया है. इसके अलावा पिछले एक सप्ताह से अक्षय कुमार और डां. चंद्रप्रकाश द्विवेदी जिस तरह के विचार व्यक्त कर रहे थे,  उससे फिल्म कोसों दूर है. डां.  चंद्रप्रकाश द्विवेदी ने यह फिल्म एक खास नरेटिब को पेश करते हुए बनायी है, मगर इसमें भी बुरी तरह से असफल रहे है.

कहानीः

फिल्म शुरू होती है गजनी,  अफगानिस्तान में मो. गोरी(मानव विज )के दरबार से, जहां बंदी बनाए गए सम्राट पृथ्वीराज चैहान (अक्षय कुमार ) को लाया जाता है, उनकी आंखें जा चुकी हैं. दर्शक दीर्घा में चंद बरदाई (सोनू सूद )भी हैं. वह वहां भी सम्राट की महानता का बखान करने वाला गीत गा रहे हैं. पृथ्वीराज का मुकाबला तीन शेरों से होता है, जिन्हे वह शब्द भेदी बाण से मार गिराते हैं. फिर वह मो.  घोरी से कहते हैं कि जानवरांे को छोड़िए आप या आपका बहादुर सैनिक मुझसे लड़ें. यदि मेरी जीत हो तो मेरे साथ सभी हिंदुस्तानियों को रिहा किया जाए. इसके बाद वह जमीन पर गिर पड़ते हैं और फिर कहानी अतीत में चली जाती है. और कहानी शुरू होती है कनौज के राजा जयचंद(आशुतोष राणा) की बेटी संयोगिता(मानुषी छिल्लर) और अजमेर के राजा पृथ्वीराज की प्रेम कहानी से. फिर तराइन का पहला युद्ध होता है, जहां मो. गोरी को हार का सामना करना पड़ता है. तो वहीं अजमेर के राजा पृथ्वीराज (अक्षय कुमार) को दिल्ली का राजा बनाया जाना उनके संबंधी और कन्नौज के राजा जयचंद (आशुतोष राणा) को रास नहीं आता. यही नहीं सम्राट पृथ्वीराज खुद से प्रेम करने वाली जयचंद की बेटी संयोगिता (मानुषी छिल्लर) को भी स्वयंवर के मंडप से उठा लाते हैं. इससे अपमानित जयचंद तराइन के पहले युद्ध में पृथ्वीराज के हाथों शिकस्त हासिल कर चुके गजनी के सुलतान मोहम्मद गोरी (मानव विज) को पृथ्वीराज को धोखे से बंदी बनाकर उसे सौंप देने की चाल चलता है.  जिसमें वह कायमाब होता है और सम्राट पृथ्वीराज,  मो. गोरी के बंदी बन जाते हैं.  कहानी फिर से वर्तमान में आती है पृथ्वीराज के आव्हान को स्वीकार कर मो.  गोरी ख्ुाद पृथ्वीराज  से युद्ध करने के लिए मैदान में उतरता है. फिर क्या होता है, इसके लिए फिल्म देखना ही ठीक होगा.

लेखन व निर्देशनः

फिल्म में संजय दत्त के अभिनय को छोड़कर ऐसा कुछ भी नही है, जिसकी तारीफ की जाए. फिल्म के लेखक व निर्देशक डां.  चंद्र प्रकाश द्विवेदी के बारे में कहा जाता है कि उन्हे इतिहास की बहुत अच्छी समझ है, मगर अफसोस फिल्म देखकर इस बात का अहसास नही होता. हमने अब तक जो कुछ किताबांे में पढ़ा है, या जो लोक गाथाएं सुनी हैं,  उनसे विपरीत फिल्म का क्लायमेक्स  गढ़कर डां.  चंद्रप्रकाश द्विवेदी ने देश की जनता के सामने एक नए इतिहास को पेश किया है. यह इतिहास उन्हे कहां से पता चला यह तो वही जाने. पटकथा में विखराव बहुत है. बतौर निर्देशक वह बुरी तरह से मात खा गए हैं. फिल्म को बनाते समय डॉं.  चंद्र्रप्रकाश द्विवेदी यह भी भूल गए कि यह फिल्म ग्यारहवीं सदी की है न कि वर्तमान समय की. फिल्म के गीत और भाषा वर्तमान समय की है. फिल्म में पृथ्वीराज चैहान व संयोगिता के संवादो में उर्दू शब्द ठॅूंेसे गए हैं. ‘हद कर  दी. . ’गाना कहीं से भी ग्यारहवी सदी का गाना होनेे का अहसास नही कराता. ‘ये शाम है बावरी सी. . ’गाना भी एैतिहासिक फिल्म के अनुरूप नही है.  इतना ही नही शाकंभरी मंदिर में पृथ्वीराज अपनी पत्नी व अन्य के साथ डांडिया व गरबा डंास करते हैं. . क्या कहना. . यह है इतिहास के जानकार. . .  इंटरवल से पहले तराइन के पहले युद्ध के छोटे से दृश्य को नजरंदाज कर दें, तो फिल्म में एक भी युद्ध दृश्य नहीं है, जबकि कहानी वीर योद्धा पृथ्वीराज चैहान की है. फिल्म के सभी एक्शन दृश्य हाशिए पर ढकेलने लायक हैं. प्रेम कहानी व जयचंद की कहानी को ज्यादा महत्व दिया गया है. इसके साथ ही नारी सम्मान व नारी उत्थान पर भी कुछ अच्छे संवाद है. ‘चाणक्य’ सीरियल व ‘पिंजर’ जैसी फिल्म के लेखक व निर्देशक डॉं. चंद्र प्रकाश द्विवेदी के अब तक के कैरियर का यह सबसे घटिया काम है.  इतना ही नहीं वह जो बयान बाजी कर रहे हैं और फिल्म से जो बात निकलकर आती है, उसमे विरोधाभास है. फिल्म देखकर अहसास होता है कि मो. गोरी को हिंदुस्तान भारत पर आक्रमण करने में कोई दिलचस्पी नहीं थी. वह तो पृथ्वीराज चैहाण को भी नही मारना चाहता था. वह इतना चाहता था कि पृथ्वीराज उसके सामने सिर झुका लें. आखिर लेखक एवं निर्देशक स्पष्ट रूप से कहना क्या चाहते हैं?वह बार बार अंतिम ंिहंदू राजा की बात जरुर करते हैं.

फिल्म में वह पृथ्वीराज और उनके बचपन के दोस्त व राज दरबारी कवि चंद बरदाई की दोस्ती व उसके इमोशंस को भी ठीक से चित्रित नही कर पाए. मगर इसमें उनका कोई दोष नही है. कहा जाता है कि इंसान के निजी जीवन की फितरत व स्वभाव जाने अनजाने उसके लेखन व उसकी बातों सामने आ ही जाता है.

फिल्म का वीएफएक्स बहुत कमजोर है. फिल्म के शुरूआत में शेर से लड़ने वाले दृश्य का वीएफएक्स ही नही एडीटिंग भी कमजोर है.

अभिनयः

अफसोस पृथ्वीराज के किरदार में अक्षय कुमार कहीं से भी फिट नहीं बैठते. वह हर दृश्य में कमजोर साबित हुए है. संयोगिता के किरदार में विश्व सुंदरी मानुषी छिल्लर भी निराश करती है. वह विश्व सुंदरी का ताज पहने हुए जितनी खूबसूरत लगी थी, इस फिल्म में वह उतनी खूबसूरत नही लगी. जहां तक अभिनय का सवाल है, तो हर दृश्य में उनका सपाट चेहरा ही नजर आता है. यदि मानुषी को अभिनय जगत में  कामयाब होना है, तो उन्हे बहुत मेहनत करने की जरुरत है.  काका कान्हा के किरदार में संजय दत्त अपने अभिनय की छाप छोड़ जाते हैं. चंद बरादाई के किरदार में सोनू सूद प्रभावित करने में विफल रहे हैं. वास्तव में उनके किरदार को सही ढंग से लिख ही नही गया. मो. गोरी के किरदार में मानव विज का चयन ही गलत है. इसके अलावा विलेन को इतना कमजोर दिखाया गया है कि कल्पना नहीं की जा सकती. वैसे मो.  गोरी का किरदार छोटा ही है.

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REVIEW: दिल को छू लेने वाली गाथा है ‘मेजर’

रेटिंगः साढ़े तीन स्टार

निर्माताः महेश बाबू और सोनी पिक्चर्स

निर्देशकः शशि किरण टिक्का

लेखकः अदिवी शेष

कलाकारः अदिवी शेष,सई मांजरेकर, शोभिता धूलिपाला,प्रकाश राज,रेवती, डॉ. मुरली शर्मा व अन्य

अवधिः दो घंटे 28 मिनट

26/11 को मुंबई में एक साथ कई जगह हुए आतंकवादी हमले में ताज होटल में छिपे आतंकियों से  बेकसूर आम जनता को बचाने के लिए मेजर संदीप उन्नीकृष्णन के नेतृत्व में एनएसजी कमांडो ताज होटल में घुसकर आतंकियों को ढूंढ ढूंढ़कर मार रहे थे. पर कुछ आतंकियों की घेरे बंदी में मेजर संदीप उन्नीकृष्णन इस कदर अकेले फंसे कि वह शहीद हो गए. ऐसे ही वीर के जीवन पर फिल्मकार शशि किरण टिक्का व लेखक व अभिनेता अदिवी शेष फिल्म ‘‘मेजर’’ लेकर आए हैं. जो कि तमिल, तेलगू मलयालम व हिंदी में एक साथ तीन जून को प्रदर्शित हुई है. पूरी फिल्म देखने के बाद एक बात उभर कर आती है कि यह फिल्म सिर्फ मेजर संदीप के बलिदानों के लिए श्रद्धांजलि नही है,बल्कि यह फिल्म एक अकेली पत्नी के बलिदानों और अपने बेटे को खोने वाले माता पिता के बलिदानों को भी श्रृद्धांजली है.  फिल्म सैनिकों के परिवार की मनः स्थिति व दर्द का सटीक चित्रण करती है.

कहानीः

स्व. मेजर संदीप उन्नीकृष्णन की बायोपिक फिल्म ‘‘मेजर’’ की कहानी की शुरूआत संदीप के बचपन से होती है,जिन्हे हर चीज से डर लगता है. लेकिन जब किसी की जिंदगी बचानी हो,तो वह खुद को नुकसान पहुंचाने से पहले दो बार नहीं सोचता. उसे वर्दी से प्यार है. इसलिए उसे जेल में खेलना पसंद है. उसे जेल में कैदियों से बात करना पसंद है. यही वजह है कि वह बचपन  से ‘वर्दी’,‘नेवी’ व सैनिक की जीवन शैली से मोहित है. कालेज में पहुॅचने के बाद भी संदीप उन्नीकृष्णन (आदिवी शेष) के डीएनए में एक सुरक्षात्मक प्रवृत्ति अंतर्निहित है. स्कूल दिनों में ही संदीप की मुलाकात ईशा से हो जाती है,जो कि अपने माता पिता की व्यस्तता के चलते घर में अकेले पन के चलते दुःखी रहती है. . फिर दोनों के बीच प्यार पनपता है और विवाह भी करते हैं. संदीप के पिता चाहते है कि बेटा डाक्टर बने,मगर संदीप तो सैनिक बनना चाहता है. और उसका एनडीए की ट्रेनिंग के लिए चयन हो जाता है. ट्रेनिंग के बाद संदीप एनएसजी कमांडो बन जाता है. बहुत जल्द वह मेजर ही नहीं बल्कि नए एनसीजी कमांडो को टे्निंग देने लगते हैं. अचानक 2008 में मुंबई पर आतंकवादी हमला होता है. जब ताज होटल के लिए कमांडो रवाना होते हैं,तो मेजर संदीप खुद से उनका नेतृत्व करते हैं और महज 31 वर्ष की अल्प उम्र में वह वीरगति को प्राप्त होते हैं.

लेखन व निर्देशनः

इस फिल्म की सबसे बड़ी खूबी यह है कि 26/11 के दुःखद आतंकवादी हमले (जिससे सभी परिचित हैं ) के गड़े मर्दे उखाड़ने में समय बर्बाद करने की बजाय लेखक अदिवि शेष  व निर्देशक शशि किरण टिक्का अपना सारा ध्यान एक इंसान के तौर पर शहीद मेजर संदीप के ही इर्द गिर्द सीमित रखते हैं. लेकिन संदीप की अपने सेना के साथियों के बारे में कुछ ट्रैक अधूरे लगते हैं. फिल्म की पटकथा जिस अंदाज में लिखी गयी है,उसके चलते ढाई घ्ंाटे तक फिल्म दर्शकों को कुछ भी सोचने का वक्त नही देती. इंटरवल से पहले फिल्म कुछ ज्यादा ही फिल्मी हो गयी है. पर इंटरवल के बाद तो हर दृश्य कमाल का है. मगर संदीप और ईशा की पहली मुलाकात का दृश्य प्रभावित नहीं करता,यह कमजोर लेखन के साथ ही कमजोर निर्देशन की वजह से होता है. इतना ही नही संदीप व ईशा के रोमांस को ठीक से उकेरा नही गया. मतलब रोमांस को कुछ वक्त दिया जा सकता था. यह अलग बात है कि बाद में दोनों की कैमिस्ट्री कमाल की उभरकर आती है.

अमूमन इस तरह की युद्ध परक या सैनिक पर बनी फिल्मों में जबरन देशभक्ति को ठॅूंसा जाता है. मगर फिल्म ‘मेजर’ में कहीं भी उपदेशात्मक देशभक्ति नही है. फिल्म रोमांचक शैली में बनी है. रोमांच के पल व एक्शन दृश्य शानदार बन पड़े हैं.  फिल्म तो मेजर के विचारों और उनकी बहदुरी का सेलीब्रेशन है. इतना ही नही फिल्म का क्लायमेक्स भी एकदम हटकर व शानदार है. यह फिल्म शहीद के पार्थिव शरीर के वक्त रूदन दिखाकर दर्शको को इमोशनल ब्लैकमेल नही करती है. क्लामेक्स में शहीद मेजर संदीप पिता के संवाद काफी प्रभाव छोड़ते हैं.

अक्षत अजय शर्मा के संवाद दिल तक पहुंचते हैं. कुछ जगहों पर श्रीचरण पकाला का संगीत कमजोर पड़ जाता है.

अभिनयः

फिल्म की कहानी व पटकथा लिखने के साथ ही चिकने चेहरे वाले किशोर संदीप के किरदार में अदिवि शेष ने जान डाल दी है. कहा जाता है कि जब अभिनेता खुद ही कहानी,पटकथा व किरदार लिखता है,तो वह किरदार लिखते लिखते उस किरदार का हिस्सा बन चुका होता है,उसके बाद उस किरदार को परदे पर पेश करना उसके लिए अति सहज होता है. कम से कम यह बात यहां अदिवि शेष के संदर्भ में एकदम सटीक बैठती है. जीवन से क्या चाहिए,इसकी समझ के साथ उसके लिए विपरीत परिस्थितियों में भी लड़ने को तैयार मेजर संदीप उन्नीकृष्णन के किरदार को अपने अभिनय से अदिवी शेष ने जीवंतता प्रदान की है.

सही मायनों में देखा जाए तो सई मंाजरेकर को पहली बार एक बेहतरीन किरदार निभाने का अवसर मिला है. ईशा के किरदार में वह न सिर्फ खूबसूरत लगी हैं, बल्कि ईशा के अकेले मन की बेबसी को बहुत ही अच्छे ढंग से परदे पर उकेरने में सफल रही हैं. मगर भावनात्मक दृश्यों में वह विफल रही हैं और उनकी अनुभवहीनता उभरकर सामने आती है. इतना ही नही आर्मी आफिसर की पत्नी के दर्द को भी व्यक्त करने में वह बुरी तरह से असफल रही हैं. इस फिल्म की कमजोर कड़ी तो सई मांजरेकर ही हैं. एक बिजनेस ओमन व एक छोटी बच्ची की मां प्रमोदा के छोटे किरदार में शोभिता धूलिपाला अपनी छाप छोड़ जाती हैं. मुरली शर्मा भी छोटी सी भूमिका में याद रह जाते हैं.

संदीप के पिता के किरदार में प्रकाश राज और मंा के किरदार में रेवती ने अपनी तरफ से सौ प्रतिशत दिया है. वैसे भी यह दोनो माहिर कलाकार हैं. यह दोनों जिस तरह से अपने बेटे से प्यार करते हैं या उसकी मौत पर बारिश में भीगते हुए शोक करते हैं,यह दृश्य अति यथार्थ परक व  दिल दहला देने वाले हैं. इन्हे रोते देख दर्शक की आंखे भी नम हो जाती हैं. मुरली शर्मा और अनीश कुरुविला का अभिनय ठीक ठाक है.

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वर्चुअल प्रोडक्शन तकनीकः सिनेमा जगत में नई क्रांति

वैज्ञानिक उन्नति के साथ ही सिनेमा में भी नई नई तकनीक का इजाद होता रहता है. कोविड की आपदा के दौरान जब फिल्मों की शूटिंग बंद हो गई और कई तरह की समस्याएं सामने नजर आने लगी.  तब फिल्म निर्देशक विक्रम भट्ट ने विचार करना शुरू किया कि ऐसी कौन सी तकनीक अपनाई जाए.  जिससे फिल्मों की शूटिंग कम समय में भव्य स्तर पर और कम खर्च में की जा सके. तब उन्हें वर्चुअल प्रोडक्शन तकनीक का ज्ञान मिला. उसके बाद विक्रम भट्ट ने के सेरा सेरा संग हाथ मिलाया और अब मंुबई में गोराई. बोरीवली में के सेरा सेरा और विक्रम भट्ट का स्टूडियो वर्चुअल वर्ल्ड बनकर तैयार है. जो कि भारत का पहला और सबसे बड़ा एलईडी वर्चुअल प्रोडक्शन स्टूडियो है. इस स्टूडियो में वर्चुअल कंटेंट का प्रोडक्शन जोरों पर शुरू हो गया है. विक्रम भट्ट ने इस वर्ष वर्चुअल प्रोडक्शन के तहत बनी पांच फिल्में प्रदर्शित करने की योजना पर काम कर रहा है.

‘वर्चुअल प्रोडक्शन तकनीक’ का उपयोग कर विक्रम भट्ट ने भारत की पहली वर्चुअल फिल्म ‘‘जुदा होके भी‘‘ का निर्माण कर लिया है.  जिसमें उन्हें के सेरा सेरा के सतीश का सहयोग मिला है. फिल्म ‘‘जुदा होके भी‘‘ की कहानी 20 साल पहले विक्रम भट्ट द्वारा निर्देशित सफलतम फिल्म ‘‘राज‘‘ के आगे की कहानी है.  इस फिल्म का लेखन महेश भट्ट ने किया है.  जबकि निर्देशन विक्रम भट्ट का है.  इसमें नायक की भूमिका अक्षय ओबराय ने निभाई है.  फिल्म ‘‘ जुदा होके भी‘‘ 15 जुलाई को सिनेमाघरों में पहुंचेगी.  इसका मोशन पोस्टर 30 मई को लांच किया गया.

इस अवसर पर पत्रकारों से बात करते हुए विक्रम भट्ट ने कहा-‘‘यह कोई जादू नहीं बल्कि यह दो सफर की शुरूआत है. एक सफर है मेरा और मेरे बॉस का. मेरे मेंटॉर का. मेरे पिता का. जिनके सहारे मैं बचपन से चला आ रहा हॅूं और आज वह मेरी कंपनी के क्रिएटिब हेड हैं. मेरे लिए इससे ज्यादा खुशी की बात क्या हो सकती है कि उनके गाइडेंस के तहत हमारी फिल्में बन रही हैं. नई तकनीक यानी कि ‘वर्चुअल प्रोडक्शन’ के तहत बनी मेरी नई फिल्म ‘‘जुदा होके भी ’’ मेरी बीस वर्ष पहले की सफल फिल्म ‘राज’ के आगे की कहानी है. जहां हमने ‘राज’ को छोड़ा था. वहीं से हमने ‘जुदा होके भी’ को शुरू किया है. इस सफर के साथ दूसरा सफर शुरू हुआ ‘वर्चुअल प्रोडक्शन’ का. जब लॉक डाउन आया और फिल्मों की शूटिंग रोकनी पड़ी. तो हमने इस एक नई तकनीक को ढूंढ़ा और अपनाया. जो कि ‘वर्चुअल प्रोडक्शन’ तकनीक है. इसी नई तकनीक का हिस्सा है यह स्टूडियो. जहां आप बैठे हुए हैं. यहां पर विशाल एलईडी स्क्रीन है. हमने भारत की पहली वर्चुअल फिल्म ‘जुदा होके भी’ का निर्माण यहीं पर किया है. यह साठ बाय पचास का स्टूडियो है. फिल्म में हिल स्टेशन से लेकर ट्ेन तक सब कुछ है और हमने यह सब वर्चुअली ही तैयार किया है. हमने इस तकनीक को अपनाया और फिर हमने इस संबंध में के सेरा सेरा के चेअरमैन सतीश से बात की और वह हमारे साथ आ गए. हम इस वर्ष ‘जुदा हो के भी’ को मिलाकर पांच फिल्में प्रदर्शित करने वाले है. इसके बाद प्रति वर्ष 25 वर्चुअल फिल्में बनाकर प्रदर्शित करने की हमारी योजना है. हम कम पैसे मंे इतनी बड़ी व भव्य फिल्में बनाकर दर्शकों तक पहुंचाएंगे. जिसकी कल्पना लोग नहीं कर सकते. यह दो सफर अब हमारे लिए एक सफर बन गए हैं. अब तकनीक और रचनात्मकता का अनूठा मिलन हुआ है. हमने भले ही भारत की पहली वर्चुअल फिल्म ‘जुदा होके भी’ बना ली है. पर यही सिनेमा का भविष्य है.  ’’

जबकि महेश भट्ट ने कहा-‘‘जब मैं अपनी 53 वर्ष की यात्रा को देखता हॅंू. तो पाता हॅंू कि जब जब मेरा बुरा वक्त आया. तब तब कहीं न कहीं से अजीब सी ताकत या अजीब सी एनर्जी मुझे मिलती रही है. कुछ नया मेरे अंदर प्रगट हुआ. इस कोविड आपदा के दौरान कुछ ऐसा ही विक्रम के साथ हुआ. दो वर्ष तक दुनिया रूकी रही और विक्रम लगातार प्रयास रत रहा कि कुछ नई राह निकाली जाए. कोविड के दौरान हम देख रहे थे कि किसी तरह फिल्म की योजना बनती थी. सरकार से इजाजत लेकर सेट पर शूटिंग के लिए पहुॅचते थे. फिर कोई बीमार हो जाता था और शूटिंग बंद हो जाती थी. सेट बनाने में लगा पैसा पानी पानी हो रहा था. कई तरह की समस्याएं पैदा हो रही थीं. लेकिन कौन कहता है कि मिरायकल घटित नही होतेे. एक दिन विक्रम ने मुझसे अजीब जुबान मे कुछ कहा. कभी विक्रम मेरी उंगली पकड़कर चला करता था. आज मैं विक्रम का हाथ पकड़कर चलता हूं. तो विक्रम ने मुझसे  वर्चुअल प्रोडक्शन तकनीक’ के बारे में बात की. तो यह अजीब सा दौर है. इस तकनीक के चलते हम इसी सेट पर सुबह एअरपोर्ट का दृश्य. लंच के बाद घर के दृश्य और रात में न्यूयार्क.  अमरीका के दृश्य फिल्मा सकते हैं. यहां कम समय में हम भव्यतम फिल्म बना सकते हैं. कलाकार को भी ज्यादा समय देने की जरुरत नही.  हर फिल्म का बजट आधे से भी कम हो जाएगा. हम यहां दस करोड़ रूपए में सौ करोड़ का लुक दे सकते हैं. इससे पूरी फिल्म इंडस्ट्री को फायदा होगा. मैने अनुभव किया कि ‘के सेरा सेरा’ के चेअरमैन सतीश दूसरों की तरह अतीत में ही जान फंूकने की कोशिश करने की बजाय भविष्य की ओर देखते हैं. वह सदैव आगे बढ़ने में यकीन करते हैं. आज कंटेंट चलेगा.  जिसे हम इस नई तकनीक के साथ भव्यरूप में बेहतरीन कंटेंट दर्शकों तक पहुॅचा सकेंगें. ’’

‘के सेरा सेरा’के चेअरमैन सतीश ने कहा-‘‘यह पूरी फिल्म इंडस्ट्री के लिए एक रिव्यूलोशन है. इस तकनीक की जानकारी जैसे जैसे दूसरे फिल्मकारों तक पहुॅचेगी.  वैसे वैसे लोगों के लिए यह फायदेमंद साबित होगा. ’’

‘‘फिल्म ‘‘जुदा होके भी ’’ भी रहस्य प्रधान प्रेम कहानी और संगीतमय फिल्म है. इस फिल्म में प्रेम कहानी में हॉरर है. हॉरर में प्रेम कहानी नही है. फिल्म ‘जुदा होके भी ’की टैग लाइन है-‘‘लव एज ए न्यू एनिमी. ’सीधे शब्दों में कहे तो इस फिल्म में प्यार का दुश्मन हॉरर है.

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