ऐसे करें बालों का ट्रीटमेंट

महिलाओं में हेयरफौल की समस्या बेहद आम है. इसका ट्रीटमेंट कराने में काफी पैसा बर्बाद हो जाता है. इन आर्टिफीशियल तरीकों से बेहतर है कि आप प्राकृतिक उपायों की ओर बढ़ें. इस खबर में हम आपको कुछ आसान तरीकों के बारे में बताएंगे, जिससे आप अपनी इस समस्या का इलाज कर सकेंगी.

करें हौट आयल ट्रीटमेंट

जैतून, नारियल या कनोला जैसे प्राकृतिक तेल का इस्तेमाल करें. प्रयोग करने से पहले इसे थोड़ा गर्म कर लें. ध्यान रखें कि तेल ज्यादा गर्म ना हो. इसे बालों की जड़ों तक मसाज करें. एक बार लगा कर इसे घंटे, दो घंटे के लिए छोड़ दें. इसके बाद बालों को शैंपू से धो लें.

एंटीऔक्सिडेंट

एक कप गर्म पानी में ग्रीन टी के दो बैग डालकर उसका अर्क निकाल लें. इसके बाद पानी को बालों की जड़ों तक लगा लें. करीब एक घंटे तक ऐसे रहने दें. फिर धो लें. आपको बता दें कि ग्रीन टी में एंटीऔक्सिडेंट होते हैं, जिससे हेयरफौल की समस्या कम होती है. बालों को बढने में भी ये काफी ज्यादा सहायक होते हैं.

कराएं हेड मसाज

अक्सर हेड मसाज लिया करें. इससे सिर में खून का बहाव सही रहता है. रक्त का सही बहाव होने से बाल मजबूत होते हैं. प्राकृतिक तेल से मसाज लेना आपकी बालों के लिए काफी लाभकारी है. ये आपके तनाव में भी काफी लाभकारी है.

प्राकृतिक जूस

लहसुन, प्याज या अदरक के जूस से मालिश हेयरफौल में काफी लाभकारी है. रात में इसे लगाएं और सुबह में धो लें. इससे आपके बाल मजबूत होंगे.

 

कभी ना खाएं जला ब्रेड, हो सकता है जानलेवा

स्वस्थ रहना आजकल के लोगों के लिए चुनौती बन गई है. जिस तरह की लोगों की जीवनशैली बन चुकी है, स्वस्थ रहना काफी मुश्किल है. लोगों का जंक फूड, फास्ट फूड के लिए प्यार उनकी खराब सेहत के लिए जिम्मेदार है. सुबह के नाश्ते में लोग अक्सर ब्रेड का सेवन करते हैं. खासतौर पर जो लोग घर के बाहर रहते हैं, वो और भी ज्यादा ब्रेड खाते हैं. पर क्या आपको पता है कि ब्रेड का जला हुआ हिस्सा खाने से आपको सेहत संबंधी गंभीर बीमारियां हो सकती हैं.

एक शोध में ये बात सामने आई कि जिन स्टार्च युक्त खाद्य पदार्थो को उच्च तापमान पर पकाया जाता है तो वे ‘एक्रिलामाइड’ नामक एक यौगिक को छोड़ देता है जो कैंसर का खतरा बढ़ाता है.

आपको बता दें कि ‘एक्रिलामाइड’ एक ऐसा केमिकल होता है जिससे कागज और प्लास्टिक का निर्माण किया जाता है. एक अध्ययन के अनुसार, जब कुछ खाद्य पदार्थों को बहुत उच्च तापमान पर पकाया जाता है, तो रासायनिक प्रतिक्रिया के परिणामस्वरूप एक्रिलमाइड के गठन होता है.
एक बार रिएक्शन होने के बाद, जला हुआ भोजन रसायन डीएनए में प्रवेश कर सकता है जो आगे जीवित कोशिकाओं को बदल देता है और कैंसर की संभावना बढ़ जाती है. विशेषज्ञों के मुताबिक, एक्रिलामाइड शरीर में एक न्यूरोटौक्सिन के रूप में भी कार्य कर सकता है.

स्वस्थ रहना है तो दवाइयों को भूल, जाएं प्रकृति की गोद में

किसी भी तरह की बीमारी होते ही हम दवाइयों के पीछे हो लेते हैं. इस खबर में हम आपको बताएंगे कि कुछ बीमारियों के लिए दवाइयों पर निर्भर रहने की जरूरत नहीं है. हाल ही में हुए एक अध्ययन में ये बात सामने आई कि कई बीमारियों में दवाई की जरूरत नहीं है, दवाइयों के बजाए पेड़ पौधों के बीच रहने से ये बीमारियां खुद-ब-खुद खत्म हो जाती हैं.

रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रकृति और हरियाली के बीच रहने से टाइप-2 डायबिटीज, दिल की समस्या, हाई ब्लड प्रेशर, तनाव जैसी बीमारियों के होने की संभावना बहुत कम होती जाती है.

शोधकर्ताओं ने माना कि ऐसी बीमारी में दवाइयों पर ज्यादा आश्रित रहना अच्छी बात नहीं है.  प्रकृति के बीच रहकर भी बिना दवाई खाए बीमारी को दूर किया जा सकता है. जानकारों का मानना है कि पेड़ों में सेहत को बेहतर करने के गुण होते हैं. इनसे निकलने वाले और्गेनिक कंपाउंड में एंटी बैक्टीरियल गुण पाए जाते हैं जो सेहत के लिए बेहद फायदेमंद होते हैं.

स्टडी की रिपोर्ट में बताया गया है कि, प्रकृति के करीब रहने से नींद भी अच्छी आती है. हरियाली के आस पास रहने से शरीर में सेलीवरी कोर्टीसोल का स्तर कम हो जाता है. कोर्टीसोल शरीर में पाए जाने वाला हार्मोन है जिसकी वजह से तनाव होता है.

आयरन की शक्ति से जीवन को बनाएं स्वस्थ

अकसर देखा जाता है कि महिलाएं अपने स्वास्थ्य को ले कर सतर्क नहीं रहतीं. कारण कभी प्रोफैशनल लाइफ में आगे बढ़ने की होड़ तो कभी घर के कामों को जल्दी निबटाने की जरूरत. सभी कामों को सही समय पर करने के चक्कर में वे अपना ध्यान रखना ही भूल जाती हैं. कभी इन का ब्रेकफास्ट स्किप होता है तो कभी लंच.

अगर ऐसा कभीकभी हो तो ठीक है लेकिन ऐसी रूटीन हमेशा फौलो करने पर कुछ दिनों में ही थकान महसूस होने लगती है. धीरेधीरे यह थकान कमजोरी का रूप ले लेती है. कई बार तो महिलाओं को यह समझ में ही नहीं आता कि ऐसा हो क्यों रहा है. उन्हें लगता है कि शायद ज्यादा काम करने की वजह से थकान हो गई है. यहीं पर महिलाओं को सावधान हो जाना चाहिए, क्योंकि ये लक्षण आप के शरीर में आयरन की कमी को दर्शाते हैं. अगर इस के बाद भी महिलाएं लापरवाही करती हैं तो उन के शरीर में खून की कमी हो जाती है और वे एनीमिक हो जाती हैं. और जब शरीर में खून की कमी हो जाती है तो छोटीछोटी बीमारियां भी उन्हें अपनी चपेट में ले लेती हैं.

आयरन की कमी के साइड इफैक्ट्स

जब शरीर में आयरन की कमी होती है तो महिलाओं का एनीमिया का शिकार होना आम बात है. रिसर्च में यह बात सामने आई है कि भारत की हर 3 महिलाओं में एक एनीमिया से ग्रसित होती है. आकड़ों के अनुसार एक और बात सामने आई है कि इन की उम्र 15 से 49 के बीच में होती है. साथ ही अगर कोई महिला एनीमिक है तो उस के बच्चे का एनीमिक होना स्वाभाविक है.

इस का कारण है कि महिलाएं अपने स्वास्थ्य को ले कर लापरवाही करती हैं और सही डाइट नहीं लेती हैं जिस से उन्हें कमजोरी और थकान महसूस होने लगती है. जरा सोचिए जहां तीन में एक महिला एनीमिक हो वहां फौलिक ऐसिड और आयरन सप्लिमैंट की कितनी जरूरत होगी.

इस मामले में वैज्ञानिकों का कहना है कि महिलाओं की शारीरिक बनावट पुरूषों की तुलना में कमजोर होती है. इसलिए पुरूषों की अपेक्षा इन्हें ज्यादा कमजोरी महसूस होती है. यही वह समय है जब इन को अपने ऊपर ध्यान देने की जरूरत होती है.

इस मामले में मुंबई की डा. मीता बाली, जो कि एक क्रेनियो थेरैपिस्ट हैं, का कहना है कि ऐसा अकसर होता है कि पहले शादी फिर बच्चा वाली प्रक्रिया में महिलाएं खुद की बजाय पूरा ध्यान बच्चों और पति पर ही देती हैं. यानी वे अपना ध्यान रखना ही भूल जाती हैं. पूरा फोकस बच्चों और पति पर हो जाता है. वे प्रैग्नैंसी के दौरान आयरन की दवाइयां तो लेती हैं लेकिन बच्चा होने के बाद इस बात को भूल जाती हैं कि बच्चे के साथसाथ उन्हें अपना भी ध्यान रखना है. ऐसे में अगर महिलाएं डाक्टर की सलाह से आयरन सप्लिमैंट का सेवन करती हैं तो उन्हें इस तरह की समस्या नहीं झेलनी पड़ती. डा. मीता का कहना है कि कुछ महिलाओं का ध्यान तब खुद पर जाता है जब वे एनीमिक हो चुकी होती हैं. जब थकान महसूस होती है तब उन्हें समझ में आता है कि उन के शरीर में कोई परेशानी है. वे अपनी बात परिवार वालों के साथ शेयर नहीं करतीं और अकेले काम करती रहती हैं. साथ ही इस का जिम्मेदार भी वे परिवार के लोगों को ही मान बैठती हैं. डा. मीता का मानना है कि महिलाओं को अपनी परेशानियां घरवालों के साथ शेयर करनी चाहिए. ऐसा करने से वे बीमारी से भी बच जाएंगी और परिवार वाले उन के कामों में हाथ भी बटा सकेंगे. महिलाओं को परिवार का खयाल रखने के साथ ही थोड़ा समय खुद के लिए भी निकालना चाहिए और साल में एक बार अपनी जांच जरूर करवानी चाहिए ताकि समय रहते यह पता लग जाए कि आप के शरीर में किन विटामिंस और मिनरल्स की कमी है. फिर आप उस हिसाब से सप्लिमैंट ले सकती हैं. ऐसा अगर आप छोटी उम्र से शुरू कर देती हैं तो 50 की उम्र में भी आप हैल्दी रह सकती हैं.

ऐसे नहीं होगी आयरन की कमी

अगर आप थोड़ा ध्यान खुद पर भी देंगी तो आप के शरीर में आयरन की कमी नहीं होगी. इस के लिए आप सब से पहले ऐसी चीजों को अपनी डाइट में शामिल करें जिन में भरपूर मात्रा में आयरन हो. साथ ही डाक्टर की सलाह से आप आयरन की गोलियां भी ले सकती हैं. अकसर देखा जाता है कि लोग बीमारी से निबटने के लिए पूरी तरह से डाक्टर पर निर्भर हो जाते हैं और अपने स्तर पर कोशिश ही नहीं करते. आप भी शरीर में आयरन की भरपाई के लिए सिर्फ सप्लिमैंट पर निर्भर न हो कर नैचुरल चीजों का सेवन करें.

खाने में ऐसे पदार्थों को शामिल करें जिन को खाने से आयरन की कमी दूर हो सके. हरी पत्तेदार सब्जियां जैसे पालक, बथुआ, चोकरयुक्त आटा, मल्टीग्रेन आटा, चुकंदर, अनार, काबुली चना, अंकुरित अनाज, राजमा, संतरे का रस, सोयाबीन, हरी मूंग व मसूर दाल, सूखे मेवे, गुड़, अंगूर, अमरूद, अंडा और दूध, मेथी, रैड मीट, सरसों का साग, पालक, चौराई, मछली आदि अपनी डाइट में शामिल करें. साथ ही सप्लिमैंट में आप आयरन की कमी को दूर करने के लिए डाक्टर की सलाह से रुद्ब1शद्दद्गठ्ठ का भी उपयोग कर सकतीं हैं. शायद आप को पता भी हो कि आयरन की कमी से एनीमिया रोग हो जाता है. जब शरीर में आयरन की कमी होती है तो लाल रक्त कोशिकाओं का निर्माण नहीं हो पाता है. ये लाल रक्त कोशिकाएं ही दिमाग को ऊर्जा प्रदान करने का काम करती हैं.

गर्भवती महिलाओं के लिए आयरन और फौलिक ऐसिड की जरूरत ज्यादा होती है, क्योंकि फौलिक ऐसिड नई कोशिकाओं को विकसित करने का काम करता है. साथ ही गर्भ में जब बच्चा पल रहा होता है तो उस के विकास में सहायक होता है. इसी पर बच्चे का दिमाग और स्पाइनल कौर्ड का विकास भी निर्भर होता है. साथ ही लाल रक्त कोशिकाओं के निर्माण और एनीमिया से बचे रहने के लिए शरीर में इस का होना जरूरी है. यही नहीं फौलिक ऐसिड से महिलाओं में ब्रैस्ट कैंसर और कोलोन कैंसर का खतरा भी कम रहता है. आयरन और फौलिक ऐसिड की कमी को दूर करने के लिए जितनी हो सके उतनी मात्रा में हरी पत्तेदार सब्जियां, दालें और फलों का सेवन करना चाहिए.

जब शरीर में आयरन की कमी होती है तो हमारा मैटाबोलिज्म ठीक से काम नहीं करता है. नतीजतन, हमारे शरीर को भरपूर ऊर्जा नहीं मिल पाती. महिलाओं के शरीर को जब भरपूर मात्रा में ऊर्जा नहीं मिलती तो उन्हें थकान महसूस होती है. लेकिन उन्हें लगता है कि यह कामकाज और भागदौड़ की वजह से थकान हो रही है. इस के बावजूद वे अपने शरीर पर ध्यान नहीं देतीं. और जब तक उन्हें पता चलता है बहुत देर हो चुकी होती है. जो महिलाएं घर और बाहर दोनों जगह काम करती हैं उन के अंदर आयरन की कमी बाकी महिलाओं के मुकाबले ज्यादा पाई जाती है. क्योंकि कभीकभी उन्हें नाइट शिफ्ट में भी काम करना पड़ता है. नाइट शिफ्ट में काम करने के बाद जब वे घर आती हैं तो दिन में भी घर का काम करना पड़ता है. इस कारण इन के शरीर को भरपूर मात्रा में भोजन नहीं मिल पाता और शरीर कमजोर हो जाता है. महिलाएं सोचतीं हैं कि पीरियड्स में ज्यादा ब्लीडिंग होना आम बात है लेकिन ऐसा नहीं है. ज्यादा ब्लीडिंग के कारण महिलाओं में आयरन की कमी हो जाती है. ऐसे में अगर आप डाक्टर की सलाह से आयरन सप्लीमैंट जैसे रुद्ब1शद्दद्गठ्ठ का प्रयोग करती हैं तो भी आप के अंदर आयरन की कमी नहीं होगी. इस के अलावा शाकाहारी महिलाओं में आयरन की कमी ज्यादा देखने को मिलती है. ऐसा नहीं है कि आयरन की कमी सिर्फ ज्यादा उम्र की महिलाओं में होती है या सिर्फ 40 से 50 उम्र की महिलाएं ही इस के लक्षण महसूस करती हैं. यंग महिलाएं भी थक जाती हैं और उन के अंदर भी आयरन की कमी हो सकती है.

आयरन की कमी को दूर करने के लिए इन चीजों को डाइट में करें शामिल

आयरन की कमी को दूर करने के लिए आप भी अपनी डाइट में ऐसी चीजों को शामिल करें जो इस के अच्छे स्रोत हैं. अपने खानपान में बदलाव ला कर भी आयरन की कमी को पूरा कर सकती हैं. हरी पत्तेदार सब्जियां खाना हमारे स्वास्थ्य के लिए अच्छा है, यह आप ने न जाने कितनी बार सुना होगा लेकिन शायद ही इसे फौलो किया हो. तो अब इसे अपनी डाइट में शामिल करने का सही समय आ गया है. इसे खाने से आप को भरपूर मात्रा में आयरन मिलेगा. इस के अलावा बींस, मटर, इमली, फलियां, चुकंदर, ब्रोकली, टमाटर, मशरूम भी खाने चाहिए. इन में से कुछ चीजें तो हर सीजन में बाजार में आसानी से मिल जाती हें, तो इन का सेवन कर आप खुद को हैल्दी रख सकती हैं.

आयरन के अन्य स्रोत

आयरन की कमी को दूर करने के लिए फलों और सब्जियों के अलावा कुछ पदार्थ हैं जिन्हें डाइट में शामिल करने से आयरन की भरपाई शरीर में तेजी से होगी. जैसे चिकन, रैड मीट, काबुली चने, सोयाबीन और साबूत अनाज इत्यादि. साथ ही अंडे, ब्रैड, मूंगफली, टूना फिश, गुड़, कद्दू के बीज और पोहा खाने से आप के अंदर आयरन की कमी नहीं होगी.

कब करें आयरन सप्लिमैंट का सेवन

आयरन की मात्रा न कम होनी चाहिए न ज्यादा. अगर आप के शरीर में आयरन की कमी ज्यादा हो गई है तो आप को डाक्टर की सलाह से आयरन सप्लिमैंट जैसे लीवोजिन लेना चाहिए. साथ ही सप्लिमैंट के साइड इफैक्ट्स से बचने के लिए अपनी डाइट में फाइबर की मात्रा को बढ़ा देना चाहिए.

आयरन की कमी से होगी यह परेशानी

महिलाएं सब से ज्यादा इस समस्या से जूझ रहीं हैं. भारत में हर तीन में से एक महिला इस की चपेट में है. अगर आप के शरीर में आयरन की कमी होगी तो थकान के साथ आप कई अन्य बीमारियों से भी ग्रसित हो सकती हैं. मसलन:

धड़कनों का तेज हो जाना

जब शरीर में आयरन की कमी होती है तो धड़कनें तेज हो जाती है क्योंकि, आक्सीजन की कमी को पूरा करने के लिए दिल अधिक रक्त पंप करता है. इस कारण धड़कनें बढ़ जाती हैं. यही नहीं अगर आप के अंदर आयरन की कमी बहुत ज्यादा है तो हार्ट फेल होने के चांसेस भी बढ़ जाते हैं.

एनीमिया

जिन महिलाओं के शरीर में आयरन की कमी होती है वे जल्द ही एनीमिया की चपेट में आ जाती हैं. कारण है पीरियड्स में अधिक ब्लीडिंग और प्रैग्नैंसी. इस तरह की समस्या से बचने के लिए आयरन से भरपूर भोजन और सप्लिमैंट ले सकती हैं.

प्रैग्नैंसी में प्रौब्लम

जिन महिलाओं में प्रैग्नैंसी के समय आयरन की कमी होती है, उन के बच्चे पर इस का गहरा असर पड़ता है. उन का विकास ठीक से नहीं हो पाता है. साथ ही समय के पहले ही डिलिवरी भी हो सकती है. इसलिए गर्भवती महिलाओं को चाहिए कि वे आयरन सप्लिमैंट लेने के साथ खाने में भी ऐसी चीजों को शामिल करें जिन में आयरन की मात्रा भरपूर हो.

विटामिन सी है सहायक

अगर आप भी आयरन सप्लिमैंट लेती हैं तो इसे विटामिन सी के साथ लें. आप पहले विटामिन सी से भरपूर कोई फल या जूस पी लें. इस के बाद आयरन की सप्लिमैंट लें. ऐसा करने से आप का पेट ज्यादा ऐसिडिक हो जाएगा और ज्यादा से ज्यादा आयरन को अवशोषित करेगा. साथ ही आयरन सप्लिमैंट लेने के दौरान 1 घंटे पहले और बाद में चाय या कौफी का सेवन करने से बचें, क्योंकि ये पेय पदार्थ शरीर में आयरन के अवशोषण की गति को धीमा कर देते हैं.

स्टेरौइड के साइड इफैक्ट्स

पिछले कुछ सालों से लोगों में बौडी बनाने के लिए जिम जा कर घंटों वर्कआउट करने का चलन तेजी से बढ़ा है. यहां तक कि महिलाएं भी छरहरी काया के लिए शरीर की अतिरिक्त चरबी कम करने की कोशिश करती हैं. लोगों के बीच व्यायाम करने के चलन को बढ़ावा मिलने के साथसाथ स्टेरौइड और प्रोटीन सप्लिमैंट जैसे अननैचुरल प्रोडक्ट्स भी चलन में आए हैं, जिन का प्रयोग लोग तेजी से मांसपेशियां बनाने की चाह में करते हैं.

मगर ज्यादातर लोगों को यह मालूम नहीं कि लंबे समय तक ली गई स्टेरौइड की मात्रा दिल के लिए घातक साबित हो सकती है. यहां तक कि इस से दिल का दौरा या अचानक कार्डिएक अरैस्ट भी हो सकता है. विशेषरूप से बौडी बिल्डर्स जो लंबे समय तक स्टेरौइड और प्रोटीन सप्लिमैंट का सेवन भारी मात्रा में करते हैं, उन के लिए जरूरी है कि वे इन से सेहत पर होने वाले बुरे असर के बारे में सजग हों.

आइए, विस्तार से जानें कि स्टेरौइड और प्रोटीन एकदूसरे से कैसे अलग हैं और इन के स्वास्थ्य पर क्या बुरे प्रभाव पड़ते हैं:

जरूरी स्टेरौइड और प्रोटीन की भूमिका

स्टेरौइड शब्द आमतौर पर दवाओं की एक श्रेणी के तहत आता है, जिस का प्रयोग विभिन्न चिकित्सा स्थितियों के इलाज के लिए किया जाता है जैसे पुरुषों में यौन हारमोन को बढ़ावा देना, प्रजनन क्षमता को बढ़ाना, मैटाबोलिज्म और रोगप्रतिरोधक क्षमता को नियमित करने के अलावा मसल मास, बोन मास बढ़ावा आदि.

प्रोटीन पाउडर मुख्यरूप से सोया, दूध या पशु प्रोटीन से बना होता है और इस का प्रयोग अधिक समय तक वर्कआउट के बाद शरीर की प्रोटीन की जरूरत को पूरा करने के लिए किया जाता है.

स्टेरौइड और प्रोटीन सप्लिमैंट के प्रभाव

बौडी बनाने में असल में प्रोटीन बहुत फायदेमंद होते हैं और पोषण सुरक्षित स्रोत भी हैं, क्योंकि ये प्रतिरक्षा प्रणाली को नुकसान नहीं पहुंचाते. यदि इन का सेवन सही मात्रा में किया जाए तो ये किसी भी शारीरिक बीमारी का कारण नहीं बनते हैं. मगर स्टेरौइड के लिए ऐसा नहीं कहा जा सकता है.

स्टेरौइड मुख्यरूप से टैस्टोस्टेरौन का बनावटी संस्करण है. यह कृत्रिम रूप से मांसपेशियों के विकास में मदद करता है. हृदय भी मांसपेशियों की तरह होता है, मगर स्टेरौइड के सेवन से इस का आकार बढ़ भी सकता है. दिक्कत तब होती है जब दिल के आसपास मौजूद सतहों यानी वौल्स तक उस की मोटाई पहुंचने लगती है, तब यह सही तरीके से काम नहीं कर पाता है और रक्तसंचार में समस्या होने लगती है.

स्टेरौइड का दिल पर प्रभाव

स्टेरौइड का सेवन करने वालों का दिल इस का सेवन न करने वालों की तुलना में बहुत कमजोर होता है. एक कमजोर दिल शरीर के लिए जरूरी पर्याप्त रक्त पंप नहीं कर पाता है और इस स्थिति में दिल काम करना बंद कर सकता है. अचानक दिल की धड़कन रुकने से मौत भी हो सकती है.

स्टेरौइड का सेवन न करने वालों की तुलना में इस का सेवन करने वालों की धमनियों में प्लेक यानी गंदगी या मैल बढ़ जाता है. जो पुरुष लंबे समय तक स्टेरौइड लेना जारी रखते हैं, उन की धमनियों की स्थिति बहुत बदतर हो जाती है.

अन्य समस्याएं

दिल को नुकसान पहुंचाने के अलावा स्टेरौइड गुरदों की विफलता, लिवर की क्षति, टैस्टिकल्स के संकुचन यानी सिकुड़ना और शुक्राणुओं की संख्या घटाने का काम भी कर सकता है. शौर्टकट के जरीए बौडी बनाना भी दिल को नुकसान पहुंचा सकता है.

डा. वनीता अरोड़ा

डायरेक्टर ऐंड हैड, कार्डिएक इलैक्ट्रोफिजियोलौजी, मैक्स स्पैश्यलिटी अस्पताल

ब्राइडल ब्यूटी के लिए आयरन है जरूरी

किसी भी लड़की के जीवन में शादी का दिन सब से महत्त्वपूर्ण दिन होता है. इस दिन वह एक खूबसूरत सफर के लिए निकल रही होती है. पहली बार अपने हमसफर से उस का सामना होता है. उस की दिली ख्वाहिश रहती है कि इस दिन वह बेहद खूबसूरत दिखे. वैसे भी हर किसी की निगाहें दुलहन पर ही टिकी होती हैं.

केवल हैवी वर्क वाला खूबसूरत लहंगाचोली पहन लेने या मेकअप कर लेने से ही दुलहन सुंदर नहीं दिख सकती. इस के लिए जरूरी है अच्छी सेहत और चमकती त्वचा. चेहरे पर स्वाभाविक लाली और कांति के बिना लाख मेकअप या महंगे कपड़े भी दुलहन का श्रृंगार पूरा नहीं कर सकते.

हमारे शरीर को स्वस्थ और ऊर्जावान बनाए रखने के लिए कई पोषक तत्त्वों में से किसी एक की भी कमी हो जाए तो सेहत बिगड़ने लगती है. खासतौर पर महिलाओं और लड़कियों को अपनी सेहत और पोषण का खास खयाल रखना चाहिए.

आजकल ज्यादातर लड़कियां कामकाजी हैं और इस वजह से व्यस्तता के चलते वे अपने खानपान से समझौता करती हैं. कई शोधों में यह बात सामने आई है कि गड़बड़ खानपान के चलते भारतीय लड़कियों को जरूरी पोषण नहीं मिलता जिस के चलते वे कई तरह की शारीरिक समस्याओं का शिकार बन रही हैं.

आयरन की कमी

आयरन की कमी की वजह से ऐनीमिक हो जाना लड़कियों में अब आम हो गया है. ऐसे में सेहत के साथसाथ उन की त्वचा पर भी बुरा असर पड़ता है. त्वचा पर पीलापन आ जाने की वजह से उन की खूबसूरती फीकी पड़ जाती है.

आयरन यानी लौह तत्त्व एक खनिज लवण है, जो शरीर के लिए काफी जरूरी होता है. शरीर को सुचारु रूप से चलाने के साथसाथ त्वचा को चमकदार और आकर्षक बनाने में आयरन का बड़ा हाथ होता है. अगर किसी वजह से शरीर में आयरन की कमी आ जाए तो शरीर में कमजोरी के साथ चेहरे की रंगत भी फीकी पड़ने लगती है.

दरअसल आयरन ही हमारे शरीर में लाल रक्त कोशिकाओं का निर्माण करता है. ये कोशिकाएं हीमोग्लोबिन बनाने का काम करती हैं और हीमोग्लोबिन फेफड़ों से औक्सीजन ले कर रक्त में औक्सीजन पहुंचाता है.

जाहिर है आयरन की कमी से हीमोग्लोबिन की कमी हो जाती है और हीमोग्लोबिन कम होने से शरीर में औक्सीजन की कमी होने लगती है. इस की वजह से कमजोरी और थकान महसूस होती है, इस स्थिति को एनीमिया कहते हैं. यही नहीं, हीमोग्लोबिन खून को उस का लाल रंग देता है, जिस से चेहरा खिला हुआ और लाली लिए हुए नजर आता है. हीमोग्लोबिन कम होने से चेहरा फीका और पीला दिखने लगता है. पुरुषों में सामान्य हीमोग्लोबिन 13.5 से 17.5 ग्राम और महिलाओं में 12.0 से 15.0 ग्राम प्रति डीएल होता है.

आयरन की कमी का सुंदरता पर असर

शरीर में आयरन की सही मात्रा का न होना आप की सुंदरता को किस तरह प्रभावित करता है, आइए जानते हैं:

त्वचा का पीलापन: जब शरीर में आयरन की कमी हो जाए तो चेहरा पीला पड़ने लगता है और उस की कुदरती लालिमा खो सी जाती है, क्योंकि आयरन की कमी से हीमोग्लोबिन का स्तर कम हो जाता है और हीमोग्लोबिन से ही खून को लाल रंग मिलता है जिस से हमारे चेहरे पर पर हलकी लालिमा वाली रंगत बनी रहती है.

टूटते नाखून: नाखून दुलहन के लुक में चार चांद लगाते हैं. इस के साथसाथ ये ब्राइडल मेकअप का अहम हिस्सा भी होते हैं. इसलिए जब आप के नाखून पीले पड़ने लगें और बेजान हो कर टूटने या मुड़ने लगें तो आप सावधान हो जाएं, क्योंकि ये शरीर में आयरन की कमी के संकेत भी हा सकते हैं. इसलिए अगर आप भी ब्यूटीफुल ब्राइड बनना चाहती हैं तो आयरन युक्त डाइट लेना शुरु करें.

बेजान बाल: आयरन की कमी शरीर में रक्त संचार को भी प्रभावित करती है जिस से आक्सीजन सही मात्रा में शरीर के अन्य हिस्सों के साथसाथ सिर की त्वचा यानी स्कैल्प तक पहुंच नहीं पाती. इस वजह से बाल धीरेधीरे बेजान हो कर झड़ने लगते हैं. इस स्थिति में मनचाही ब्राइडल हेयरस्टाइल पाने का आप का सपना सपना ही रह जाएगा.

डार्क सर्कल्स: आंखों के आसपास काले घेरे दुलहन के मेकअप को पूरी तरह खराब कर सकते हैं. अगर शरीर में आयरन की कमी होगी तो आप की आंखों के नीचे काले घेरे यानी डार्क सर्कल्स नजर आने लगेंगे.

आयरन की कमी के दुष्प्रभाव

शादी के पहले शौपिंग और दूसरी तैयारियों व शादी के बाद ससुराल में अपनी जगह बनाने के लिए दुलहन को हरदम फिट रहने की जरूरत होती है. मगर यदि उस के शरीर में आयरन की कमी होगी तो इन सब कामों को करने के लिए जो ऐनर्जी चाहिए वह भी उसे नहीं मिल पाएगी.

आयरन की कमी से शरीर में दिखने वाले संकेत:

थकान: शरीर में आयरन की कमी से शरीर सही से काम करना बंद कर देता है. बिना कोई काम किए भी थकावट रहने लगती है. यदि आप को घर या औफिस के थोड़ेबहुत काम करने में भी थकावट आने लगे और चाह कर भी आप पहले वाली फुरती महसूस नहीं कर रहीं तो एक बार अपने खून की जांच जरूर कराएं.

दम फूलना: शरीर में आयरन कम होने से रक्तचाप कम हो जाता है और सांस लेने की रफ्तार भी कम हो जाती है, जिस से थोड़ा भी दौड़नेभागने या सीढि़यां चढ़ने में भी सांस फूलने लगती है.

मांसपेशियों में दर्द: आयरन कम होने से मांसपेशियों में दर्द रहने लगता है.

चेहरे की फीकी रंगत: शरीर में आयरन की कमी होने से चेहरे की रंगत भी प्रभावित होने लगती है. चेहरा मुरझाया हुआ, उदास और पीला दिखता है. अब अगर दुलहन के चेहरे पर तेज ही नहीं दिखेगा तो उस का पूरा लुक खराब हो सकता है.

पीरियड्स में तेज दर्द: अगर पीरियड्स के दौरान सामान्य से ज्यादा ब्लीडिंग हो रही है तो इस की वजह महिला में आयरन की कमी भी हो सकती है. ऐसे में अपनी डाइट का ध्यान रखें. फल, हरी पत्तेदार सब्जी व दालें ज्यादा से ज्यादा अपनी डाइट में शामिल करें.

सिर दर्द रहना: हीमोग्लोबिन शरीर के सभी हिस्सों में औक्सीजन पहुंचाने का काम करता है. अगर दिमाग तक हीमोग्लोबिन की सही मात्रा नहीं पहुंच पाती तो अक्सर सिर दर्द रहने लगता है.

घबराहट: औक्सीजन की कमी के कारण कभीकभी घबराहट भी महसूस हो सकती है.

कैसे करें आयरन की कमी पूरी

आयरन की कमी दूर करने के लिए संतुलित और पोषक तत्त्वों से भरपूर डाइट लेना जरूरी है. आहार में न केवल अच्छी मात्रा में आयरन होना जरूरी है, बल्कि ऐसे खाद्य पदार्थ भी होने चाहिए जो आयरन को शरीर में अवशोषित कर सकें. ऐसे फल और सब्जियों का सेवन करें जिन में विटामिन सी की मात्रा अधिक हो. विटामिन सी शरीर को आयरन अवशोषित करने में मदद करता है. जैसे ब्रोकोली, कीवी, आम, टमाटर, संतरा, नीबू, मिर्च आदि.

इन से मिलता है आयरन

शरीर में आयरन की कमी न हो, इस के लिए जानिए खानेपीने की कुछ ऐसी चीजों के बारे में जिन्हें अपनी डेली डाइट का हिस्सा बना कर आप शरीर में आयरन की सही मात्रा बनाए रख सकती हैं:

सब्जियां: हरी पत्तेदार सब्जियां जैसे पालक, मेथी, बथुआ आयरन के अच्छे स्रोत हैं. इन के अलावा बींस, इमली, मटर, फलियां, ब्रोकली, टमाटर, मशरूम, चुकंदर का सेवन भी आयरन की कमी को पूरा कर सकता है.

फल और ड्राई फ्रूट्स: अपनी डेली डाइट में मौसमी फलों को जरूर शामिल करें. तरबूज, अंगूर, केला, बादाम, खूबानी, किशमिश, काजू, खजूर जैसे फलों में आयरन भरपूर मात्रा में पाया जाता है.

अन्य खाद्यपदार्थ: फलों और सब्जियों के अलावा कुछ ऐसे भी खाद्यपदार्थ हैं जो आयरन के अच्छे स्रोत हैं. लाल मांस, चिकन, साबूत अनाज (सोयाबीन और काबुली चने), ब्रैड, अंडे, मूंगफली, टूना मछली, गुड़, कद्दू के बीज इत्यादि से आयरन की कमी को पूरा किया जा सकता है.

आयरन सप्लीमैंट्स: शरीर में आयरन की ज्यादा कमी हो तो डाक्टर की सलाह से आयरन सप्लीमैंट्स जैसे लीवोजिन आदि लेना काफी फायदेमंद होता है. इस का नियमित रूप से इस्तेमाल आयरन की कमी को पूरा करने के साथसाथ त्वचा को कांति भी देता है.

वजन कम करेंगे ये व्यायाम

योंतो महिलाएं हर तरह का वर्कआउट कर सकती हैं और करती भी हैं जैसे ऐरोबिक्स, बौडी बिल्डिंग, स्ट्रैंथ टे्रेनिंग, किकबौक्सिंग, जुंबा, टबाटा वर्कआउट आदि. लेकिन ये सभी वर्कआउट उम्र, बौडी टाइप, हैल्थ इशू, बौडी की नीड को ध्यान में रख कर ही और ऐक्सपर्ट की देखरेख में किए जाने चाहिए.

यहां हम कुछ ऐसे वर्कआउट्स के बारे में बता रहे हैं जो महिलाओं के लिए बेहद फायदेमंद हैं:

कार्डिओ वर्कआउट: कार्डिओ फायदेमंद है. यह वेट लौस करने में काफी मददगार है. इस से तनाव कम होता है. वर्कआउट से फेफड़ों तक औक्सीजन पहुंचने में मदद मिलती है, रक्तसंचार सही होता है, दिल मजबूत और ब्लड भी प्यूरिफाई होता है. कार्डियो वर्कआउट वजन को कम कर के बौडी में जमा अतिरिक्त फैट को कम करता है और बीमारियों से बचाता है. अलगअलग तरह के कार्डिओ वर्कआउट से आप खुद को फिट रख सकती हैं.

ऐरोबिक्स: ऐरोबिक्स आप कभी भी कहीं भी एक छोटी सी जगह पर कर सकते हैं. इस में अपनी पसंद के म्यूजिक पर कुछ स्टैप्स किए जाते हैं. ग्रेपवाइन लेग कर्ल जंपिंग जैक्स जैसे मूव्स से पूरे शरीर का वजन घटता है. पसीने के जरीए बौडी से टौक्सिन निकलना ही फैट और बीमारियों को दूर करता है. सिर्फ पसीना निकलना ही जरूरी नहीं, कड़ी मेहनत भी जरूरी है. ऐरोबिक्स वर्कआउट में आप के हार्ट रेट को लो से हाई ले जा कर एक स्तर पर मैंटैन किया जाता है, जो वेट लौस में मदद करता है.

स्ट्रैंथ वर्कआउट: महिलाओं के लिए स्ट्रेंथ वर्कआउट बहुत जरूरी भी है और ट्रैंड में भी. इस से महिलाओं में औस्टियोपोरेसिस की समस्या बहुत कम होती है. बोन डैंसिटी भी बढ़ती है. इस में बाइसैप कर्ल, ट्राइसैप ऐक्सटैंशन, हैमर कर्ल, शोल्डर प्रैस, पुशअप्स, ट्राइसैप डिप्स इत्यादि महिलाओं के लिए फायदेमंद हैं.

डांस फिटनैस: फिटनैस डांस महिलाओं के लिए बहुत ही अच्छा है और आजकल तो यह ट्रैंड बनता जा रहा है. इस में आप भांगड़ा, बेली डांस इत्यादि पर अलगअलग तरीके से थिरक कर 30-50 मिनट तक वर्कआउट कर सकती हैं. मस्ती के साथसाथ वजन भी घट जाता है.

किकबौक्सिंग: किकबौक्सिंग एक तरह का कार्डिओ वर्कआउट है. इस में बहुत सारी मसल्स एकसाथ इस्तेमाल होती हैं. महिलाओं में ज्यादातर अपनी आर्म्स और लैग्स को टोन करना ही मुख्य होता है. किकबौक्सिंग वैसे तो पूरे शरीर के लिए अच्छी है लेकिन यह उस पार्ट को जल्दी टोन करती है जिस से आप अपनी मनचाही कट स्लीव्स या वनपीस ड्रैस पहन सकती हैं. इस में शरीर के ऊपरी भाग के मूवमैंट्स जैब्स, क्रौस, हुक व अपरकट्स हैं तो शरीर के निचले भाग के मूवमैंट्स में नी स्ट्राइक, फ्रंट किक, राउंडहाउस किक, साइड किक, बैक किक इत्यादि शामिल हैं.

हाई इंटैंसिटी वर्कआउट: कुछ महिलाएं अपने लिए समय नहीं निकाल पातीं जिस की वजह से वे जिम या पार्क में जा कर वर्कआउट नहीं कर पातीं. उन के लिए हाई इंटैंसिटी वर्कआउट बढि़या विकल्प है. यह बाकी वर्कआउट्स से थोड़ा मुश्किल होता है लेकिन इस से कम समय में ज्यादा वजन कम किया जा सकता है. यह मैटाबौलिज्म को तेजी से बढ़ाता है. इस वर्कआउट में कुछ हाई इंटैंसिटी ऐक्सरसाइज का चुनाव कर के उन्हें क्रम में लगा कर सैट्स में किया जाता है जैसे, जंप, स्विंग, ऐअर पुशअप्स, रौक क्लाइम्बिंग स्टार जंप, जंप हाईनीज को मिला कर 1 सैट करने के बाद इन सभी के 3 सैट या 5 सैट किए जाते हैं. हर ऐक्सरसाइज को मिनटों में या सैकंड्स के हिसाब से किया जाता है. वेट लौस और बौडी टोनिंग के लिहाज से कम समय में ज्यादा से ज्यादा वजन कम करने के लिए यह अच्छा वर्कआउट है.

स्टैपर वर्कआउट: यह भी एक अच्छा विकल्प है. एक बौक्स या सीढ़ी का इस्तेमाल कर इस वर्कआउट को कर सकती हैं. स्टैमिना बढ़ाने में यह काफी मददगार है.

ऐब्स वर्कआउट: इस में आप लैग रेज, स्क्वाट्स, क्रंचेज इत्यादि कर सकती हैं. इस से पेट, कमर व टांगों की चरबी घटेगी. महिलाओं में ज्यादातर पेट, कमर और लैग्स की चरबी ज्यादा होती है.

महिलाओं के लिए प्लैंक, सूमो स्क्वाट्स, बैक लैग किकिंग, वुड चौपर, रशियन क्रंच, प्लैंक, लैग फ्लटर इत्यादि व्यायाम बढि़या विकल्प हैं.

नाश्ते से शांत होती है ब्रेन की भूख

अमृतसर से अमेरिका तक का सफर कुछ कर गुजरने का जनून लिए तय करने वाले शैफ विकास खन्ना आज सैलिब्रिटी शैफ के रूप में दुनियाभर में जाने जाते हैं. खानपान पर कई किताबें लिखने के अलावा कई टीवी शोज में भी वे अपनी प्रतिभा का जादू दिखा चुके हैं. इतनी शोहरत और कामयाबी के बाद भी अपनी विनम्रता से वे मिलने वालों को अपना कायल बना लेते हैं. क्विकर ओट्स इवेंट पर उन से हैल्दी ब्रेकफास्ट और उन के जीवन से जुड़ी घटनाओं पर चर्चा हुई. पेश हैं, उसी चर्चा के कुछ खास अंश:

फिटनैस के लिए ब्रेकफास्ट कितना अहम है?

फिटनैस के 2 पहलू हैं- पहला फूड और दूसरा डिसिप्लिन, पहले घर के बड़ेबुजुर्ग कभी सूर्य डूबने के बाद खाना नहीं खाते थे. लेकिन अब सब बदल गया है. लोगों की दिनचर्या बदली है, खाने का अंदाज बदला है. आज खाने का कोई समय नहीं है. पहले हर घर में यह नियम होता था कि घर से सुबह कोई बिना नाश्ता किए नहीं निकलता था. घर पर बनने वाला ब्रेकफास्ट भी देशी होता था. दलिया, पोहा, रागी, मल्टीग्रेन, स्प्राउट का नाश्ता हर घर में बनता था. लेकिन अब नाश्ते के माने ही बदल गए हैं. आज जरूरत ऐसे फूड को अपने ब्रेकफास्ट में शामिल करने की है जो इंस्टैंट कुकिंग के साथसाथ हैल्दी भी हो. ओट्स और कौर्नफ्लैक्स इस के लिए अच्छे औप्शन हैं जिन्हें कई तरह से बना सकते हैं. आज ओट्स टिक्की से ले कर ओट्स ठंडाई, पोहा, खीर सभी बना सकते हैं. मतलब आप 30 दिन रोज बदलबदल कर हैल्दी ब्रेकफास्ट का स्वाद ले सकते हैं.

क्यों जरूरी है ब्रेकफास्ट?

इस का भूख से तो संबंध है ही साइंटिफिक कारण भी है. जब हम बिना नाश्ता किए काम पर जाते हैं तो पूरा समय हमारे दिमाग में एक ही बात रहती है कि पेट में कुछ नहीं हैं. यही सोचसोच कर काम में मन नहीं लगा पाते, क्योंकि रिसर्च बताती है कि नाश्ता करने से पेट से ज्यादा ब्रेन की भूख शांत होती है या कह सकते हैं पेट नहीं हमारा ब्रेन फूड खाता है. मेरे दादाजी बिना किसी बीमारी के 93 साल तक जिंदा रहे. इस का राज उन का ब्रेकफास्ट था जिसे उन्होंने कभी मिस नहीं किया.

लोग आजकल मोटे अनाज का उपयोग जम कर कर रहे हैं, यह कितना फायदेमंद है?

पहले ज्वार, बाजरा, ओट्स हर मोटे अनाज को गरीबों का खाना माना जाता था. इस में फाइबर और प्रोटीन भरा होता है. मेहनत करने वाले किसानों और मजदूरों को इस से ताकत मिलती है. मोटा होने के कारण यह स्वाद में अच्छा नहीं होता और फिर पीसने में भी ज्यादा मेहनत लगती, इसलिए बड़े आदमी गेहूं, चावल को अपनी डाइट में शामिल करते थे. लेकिन अब ट्रैंड बदल गया है. मीडिया की वजह से लोगों में जागरूकता आई है. लोग जानने लगे हैं कि जिस अनाज को वे गरीबों का खाना मानते थे वह कितना पौष्टिक और रोगों से बचाने वाला है.

पापा के साथ कैसी बौंडिंग थी?

पापा पापा तो थे ही, साथ में एक बड़े भाई भी थे. मैं जो भी करता उन से पूछ कर ही करता था. वे मुझे शैफ नहीं आर्टिस्ट मानते थे. वे हर समय मेरे पीछे खड़े रहते थे. इस का एहसास मुझे तब हुआ जब वे हम लोगों को छोड़ कर चले गए. मैं पापा से हर तरह की बातचीत कर लिया करता था. जब मैं ने शैफ बनने की बात पापा को बताई तब वे बहुत खुश हुए.

शुरुआत कैसे हुई?

मैं जब 14 साल का था तब किटी पार्टी से काम शुरू किया था. पहली पार्टी के वे क्षण मुझे आज भी याद हैं. जब आंटियों ने मेरे खाने की खूब तारीफ की थी और मैं ने इसी उत्साह में उन से पैसे नहीं लिए. इस पर मेरे पापा ने गुस्से में पूछा था कि यह कौन सा बिजनैस है, जिस में तू पैसे नहीं लेता? मैं ने शुरुआती संघर्ष में सप्लाई करने से ले कर स्वैटर बनाने और बरतन धोने तक का काम किया.

अमेरिका में कैसे पहचान बनाई?

एक वक्त था जब यूएस में इंडियन ऐक्सैंट का मजाक उड़ाया जाता था. मैं एक होटल में काम करता था.उस का मालिक मुझे हर तरह से नीचा दिखाता था. वह कहता था कि मैं किसी काम का नहीं हूं. वह मुझे हमेशा डराता था और मेरे बोलने के लहजे का मजाक उड़ाता था. तब मैं वहां से भाग निकला और जान गया कि मेरा संघर्ष इतना आसान नहीं है.

-विकास खन्ना, सैलिब्रिटी शैफ ऐंड राइटर

जीएं हैल्दी लाइफ

सेहत है तो सब कुछ है. सनकेयर के उत्पाद आप की अच्छी सेहत सुनिश्चित करते हैं. जहां एक तरफ हेमोकाल शरीर में आयरन का संतुलन बनाए रखता है वहीं स्टोमाफिट अपच, गैस और ऐसिडिटि से छुटकारा दिला कर स्टमक को हैल्दी रखता है. आइए जानें शरीर में आयरन की सही मात्रा और फिट स्टमक के फायदों के बारे में…

स्टमक फिट तो आप फिट

पेट में गैस अथवा ऐसिडिटी की समस्या पूरा रूटीन अस्तव्यस्त कर देती है. जानिए, इन से निबटने के कारगर उपाय…

हमारा पेट नाजुक ऊतकों से बना है. खानपान में थोड़ी सी गड़बड़ी सेहत से जुड़ी कई समस्याएं खड़ी कर देती है. पेट में दर्द, जलन व सूजन का एहसास, सीने में जलन व उल्टी की शिकायत, यह सुनने में भले ही बहुत गंभीर बीमारी न लगे, पर ऐसे लक्षण उस वक्त भी दिखते हैं जब पेट में अल्सर की शिकायत होती है. जीवनशैली और खान-पान में बदलाव का नतीजा है कि किशोर और युवाओं में पेट के अल्सर के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. सामान्य भाषा में कहें तो पेट में छाले व घाव हो जाने को पेप्टिक अल्सर कहा जाता है.

क्यों होता है पेप्टिक अल्सर

पेट में म्यूकस की एक चिकनी परत होती है, जो पेट की भीतरी परत को पेप्सिन और हाइड्रोक्लोरिक ऐसिड के तीखेपन से बचाती है. इस ऐसिड की खासियत यह है कि जहां यह ऐसिड पाचन के लिए जरूरी होता है, वहीं शरीर के ऊतकों के सीधे संपर्क में आने पर उनको नुकसान भी पहुंचाता है. इस ऐसिड और म्यूकस परतों के बीच तालमेल होता है. इस संतुलन के बिगड़ने पर ही अल्सर होता है. व्यक्ति में शारीरिक या भावनात्मक तनाव पहले से उपस्थित हो तो यह पेप्टिक अल्सर को बढ़ा सकता है. अल्सर कुछ दवाओं के निरंतर प्रयोग, जैसे दर्द निवारक दवाओं के कारण भी हो सकता है. आमतौर पर यह अल्सर नली, पेट और छोटी आंत के ऊपरी भाग की भीतरी झिल्ली में होता है.

कारण है एच. पायलोरी बैक्टीरिया

पेप्टिक अल्सर का सबसे प्रमुख कारण एच. पायलोरी बैक्टीरिया है. वर्ष 1980 में एक ऑस्ट्रेलियाई डाक्टर बेरी जे. मार्शल ने एच. पायलोरी (हेलिकोबेक्टर पायलोरी) नामक बैक्टीरिया का पता लगाया था. इस बैक्टीरिया  को बिस्मथ के जरिए जड़ से मिटाने में सफल होने की वजह से 2005 का नोबल पुरस्कार भी उन्हें मिला. उन्होंने माना था कि सिर्फ खानपान और पेट में ऐसिड बनने से पेप्टिक अल्सर नहीं होता, बल्कि इसके लिए एक बैक्टीरिया भी दोषी है. इसका नाम एच. पायलोरी रखा गया. एच. पायलोरी का संक्रमण मल और गंदे पानी से फैलता है. बरसात के मौसम में गंदगी की समस्या दूसरे मौसमों के मुकाबले अधिक होती है. शारीरिक सक्रियता कम होने और रोग प्रतिरोधक तंत्र में होने वाले बदलाव भी इस बैक्टीरिया को बनाने में सहायक होते हैं. अधिक तला-भुना, मसालेदार भोजन और चाय-कौफी लेना पेट में ऐसिड के स्तर को बढ़ाता है, जिससे अल्सर का खतरा बढ़ जाता है. एच. पायलोरी बैक्टीरिया के संक्रमण से बचने का सबसे आसान तरीका साफ-सफाई का खास ध्यान रखना है.

अल्सर के लक्षण

अल्सर के लक्षणों में ऐसिडिटी होना, पेट फूलना, गैस बनना, बदहजमी, डायरिया, कब्ज, उल्टी, आंव, मितली व हिचकी आना प्रमुख हैं.

तला-भुना और मसालेदार खाना पेट में एच. पायलोरी बैक्टीरिया को फलनेफूलने का वातावरण देता है. इस के कारण धीरे-धीरे अल्सर की समस्या पैदा हो जाती है.

पेप्टिक अल्सर होने पर सांस लेने में भी दिक्कत होती है. बदहजमी की वजह से कभी-कभी ऐसिड ऊपर की ओर आहार नली में चला जाता है, इससे सीने में तेज जलन और दर्द महसूस होता है और ऐसा लगता है जैसे दिल संबंधी कोई रोग हो गया हो. इसका असर गले, दांत, सांस आदि पर पड़ने लगता है. आवाज भारी हो जाती है और मुंह में छाले पड़ जाते हैं. इस तरह की स्थितियों को ऐसिड रिफ्लक्स डिजीज भी कहा जाता है. यदि पेप्टिक अल्सर का जल्द उपचार न किया जाए और यह लंबे समय तक शरीर में बना रहे तो यह स्टमक कैंसर का कारण भी बन जाता है.

गंभीर लक्षण

खून की उल्टी हो या घंटों या दिनों पहले खाया भोजन उल्टी में निकले अथवा हमेशा मतली जैसी महसूस होती हो, तो यह अल्सर के गंभीर लक्षण हैं. असामान्य रूप से कमजोरी या चक्कर महसूस हो, मल में रक्त आता हो, अचानक तेज दर्द उठे जो दवाई लेने पर भी दूर न होता हो और दर्द पीठ तक पहुंचे, वजन लगातार घटने लगे, तो ये लक्षण गंभीर पेप्टिक अल्सर का संकेत हैं.

समय रहते उपचार है जरूरी

पेप्टिक अल्सर के कारण एनीमिया, मल के साथ अत्यधिक रक्तस्राव और लंबे समय तक बने रहने पर स्टमक कैंसर की आशंका बढ़ जाती है. आंतरिक रक्तस्राव होने के कारण शरीर में खून की कमी हो जाती है. पेट या छोटी आंत की दीवार में छेद हो जाते हैं, जिससे आंतों में गंभीर संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है. पेप्टिक अल्सर पेट के ऊतकों को भी क्षतिग्रस्त कर सकता है, जो पाचन मार्ग में भोजन के प्रवाह में बाधा पहुंचाता है. इस कारण पेट जल्दी भर जाना, उल्टी होना और वजन कम होने जैसी समस्याएं हो सकती हैं.

क्या न करें

  • पेप्टिक अल्सर से बचना है तो धूम्रपान न करें. तम्बाकू युक्त पदार्थों से दूर रहें.
  • मांसाहार, कैफीन तथा शराब का सेवन न करें.
  • मसालेदार भोजन से बचें यदि वे आपके पेट में जलन पैदा करते हैं.

क्या करें

  • पेट की समस्याओं से बचने और पाचनतंत्र को सही रखने के लिए इन टिप्स पर गौर करें:
  • पुदीना पेट को ठंडा रखता है. इसे पानी में उबाल कर या मिंट टी के रूप लिया जा सकता है.
  • अजवाइन पेट को हलका रखती है और दर्द से भी राहत दिलाती है.
  • बेलाडोना मरोड़ और ऐठन से राहत दिलाता है.
  • स्टोमाफिट लिक्विड और टैबलेट का सेवन पेट को फिट रखने के लिए काफी लाभकारी है. इस में मौजूद बिस्मथ पेट के विकार को  बढ़ने से रोकने के साथसाथ पाचन क्रिया को भी दुरुस्त रखता है. डाक्टर की सलाह से इस का सेवन किया जा सकता है.

न होने दें आयरन की कमी

बच्चे को जन्म देने के बाद अकसर महिलाओं को कुपोषण की समस्या से गुजरना पड़ता है. बच्चे के जन्म के तुरंत बाद कुपोषण का बुरा असर मां और बच्चे दोनों पर पड़ता है. गर्भावस्था के दौरान और उस के बाद होने वाला कुपोषण बच्चे के लिए घातक हो सकता है.

गर्भावस्था के बाद कुपोषण के कारण

स्तनपान इस का सब से पहला और मुख्य कारण है. बच्चे को दूध पिलाने वाली मां को रोजाना कम से कम 1000 कैलोरी ऊर्जा की जरूरत होती है. ज्यादातर महिलाएं या तो सही डाइट चार्ट के बारे में नहीं जानती हैं या फिर इस की अनदेखी करती हैं, जिस के कारण वे डिहाइड्रेशन, विटामिन या मिनरल्स की कमी और कभीकभी खून की कमी की भी शिकार हो जाती हैं. इसे पोस्टनेटल मालन्यूट्रिशन (बच्चे के जन्म के बाद होने वाला कुपोषण) कहा जा सकता है.

स्तनपान कराने से मां को ज्यादा भूख लगती है और अकसर वह ऐसे खाद्यपदार्थ खाती है, जो पोषक एवं सेहतमंद नहीं होते. स्वाद में अच्छे लगने वाले खाद्यपदार्थों में विटामिंस और मिनरल्स की कमी होती है, जिस कारण मां कुपोषण से ग्रस्त हो जाती है.

बच्चे के जन्म से पहले और बाद में प्रीनेटल विटामिन का सेवन करना बहुत जरूरी है. प्रीनेटल विटामिन जैसे फौलिक ऐसिड पानी में घुल कर शरीर से बाहर निकलता रहता है, जिस के चलते अकसर बच्चे के जन्म के बाद महिलाएं फौलिक ऐसिड की कमी के कारण ऐनीमिया से ग्रस्त हो जाती हैं.

नवजात के लिए जोखिम

गर्भवती महिला में कुपोषण का बुरा असर उस के पेट में पल रहे बच्चे पर पड़ता है. बच्चे का विकास ठीक से नहीं हो पाता और जन्म के समय उस का वजन सामान्य से कम रह जाता है. गर्भावस्था के दौरान मां में कुपोषण आईयूजीआर और जन्म के समय कम वजन का बुरा असर बच्चे पर पड़ता है, जिस के कई परिणाम हो सकते हैं.

बच्चे पर असर

अगर गर्भावस्था के दौरान मां में पोषण की कमी हो तो बच्चे को अपने जीवन में इन बीमारियों का सामना करना पड़ सकता है:

औस्टियोपोरोसिस, क्रोनिक किडनी फेल्योर, दिल की बीमारी, टाइप 2 डायबिटीज, लंग्स डिजीज, खून में लिपिड्स की मात्रा असामान्य होना, ग्लूकोस इन्टौलरैंस (एक प्रीडायबिटिक कंडीशन, जिस में शरीर में ग्लूकोस का मैटाबोलिज्म असामान्य हो जाता है).

मां के लिए समस्याएं

अगर गर्भावस्था के दौरान मां में पोषण की कमी हो तो यह जानलेवा भी हो सकती है. इस के अलावा बच्चे का समय से पहले पैदा होना, गर्भपात जैसी समस्याएं भी हो सकती हैं. महिलाओं में और भी कई समस्याएं हो सकती हैं जैसे संक्रमण, एनीमिया यानी खूनी की कमी, उत्पादकता में कमी, सुस्ती और कमजोरी, औस्टियोपोटोसिस.

कुपोषण को कैसे रोका जा सकता है

कुपोषण को संतुलित आहार के सेवन से रोका जा सकता है. महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान पर्याप्त मात्रा में फल, सब्जियां, पानी, फाइबर, प्रोटीन, वसा एवं कार्बोहाइड्रेट का सेवन करना चाहिए.

पोषण संबंधी जरूरतें

आयरन: शरीर में हीमोग्लोबिन बनाने के लिए आयरन बहुत जरूरी है. हीमोग्लोबिन लाल रक्त कोशिकाओं में पाया जाता है और पूरे शरीर में औक्सीजन पहुंचाता है. अगर शरीर में लाल रक्त कोशिकाओं की कमी हो जाए तो शरीर के सभी अंगों तक औक्सीजन पर्याप्त मात्रा में नहीं पहुंच पाती. अगर आप आयरन का सेवन ठीक से न करें तो धीरेधीरे हीमोग्लोबिन की कमी होने लगती है और आप एनीमिक हो जाती हैं. आप अपने शरीर में ऊर्जा की कमी महसूस करती हैं. आप के शरीर में बीमारियों से लड़ने की ताकत नहीं रहती.

बच्चे को जन्म देने के बाद अकसर महिलाएं थकान और कमजोरी महसूस करती हैं. ऐसे में उन्हें आयरन से युक्त आहार का सेवन करना चाहिए. बच्चे के जन्म के दौरान कई बार बहुत ज्यादा खून बह जाने के कारण भी खून की कमी हो जाती है. अत: अपने आहार में आयरन की पर्याप्त मात्रा रखें.

ग्लूकोज: शरीर में आयरन के सही अवशोषण के लिए ग्लूकोज भी बेहद महत्त्वपूर्ण है. इस से आयरन का तेजी से अवशोषण होने के साथसाथ शरीर को उर्जा भी मिलती है.

बच्चे के जन्म के बाद पोषण और वजन में कमी: बच्चे के जन्म के बाद अकसर महिलाएं एकदम से अपना वजन कम करना चाहती हैं, जिस के कारण उचित आहार का सेवन नहीं कर पातीं. यह हानिकारक हो सकता है. स्तनपान कराने से वजन खुद ही कम हो जाता है, जबकि स्तनपान कराने वाली मां को रोजाना 300 अतिरिक्त कैलोरी की जरूरत होती है. इसलिए संतुलित आहार के साथसाथ व्यायाम करें और अतिरिक्त कैलोरी के सेवन से बचें. अगर नौर्मल डिलिवरी हुई है, तो आप बच्चे को जन्म देने के कुछ सप्ताह बाद हलका व्यायाम शुरू कर सकती हैं. हालांकि सी सैक्शन के बाद 6 सप्ताह तक व्यायाम नहीं करना चाहिए.

बिस्मथ है कारगर

पेप्टिक अलसर, एच.पायलोरी या पेट से जुड़ी अन्य समस्याओं के लिए बाजार में मौजूद ऐंटीबायोटिक दवाएं और ऐंटासिड कुछ समय के लिए राहत तो देते हैं मगर समस्या जस की तस रहती है. ऐसे में स्टोमाफिट में मौजूद बिस्मथ विकार को बढ़ने से रोकने के साथसाथ उस का निदान भी करता है. इस के प्रयोग के बाद धीरे-धीरे पाचन क्रिया भी सुचारू रूप से काम करने लगती है.

चुकंदर के इन फायदों को जान हैरान हो जाएंगी आप

चुकंदर देश भर में पाए जाने वाला खास तरह की एक सब्जी है, इसका सलाद में प्रमुखता से प्रयोग होता है. इसके कई फायदे हैं. खून के लिए भी ये काफी फायदेमंद होता है. इस खबर में हम आपको बताएंगे कि चुकंदर आपके बच्चे के लिए कैसे फायदेमंद हो सकता है.

रखे दिल को हेल्दी

दिल को स्वस्थ रखने में भी चुकंदर का काफी अहम रोल होता है. इसके प्रयोग से डायबिटीज और एनीमिया जैसी बीमारियां दूर होती हैं. चुकंदर के जूस से दिल के रोगियों की व्यायाम करने की क्षमता बढ़ने में मदद मिल सकती है.

होता है बच्चों का दिमाग तेज

छोटे बच्चों को चुकंदर खिलाना चाहिए. इसके अलावा इसके रस से बच्चों के कनपटी पर मालिश करनी चाहिए और इसका रस पिलाना चाहिए, ऐसा करने से बच्चे का दिमाग तेज होगा.

खून संबंधी समस्याओं को करें दूर

खून संबंधी समस्याओं को चुकंदर दूर करता है. इसके प्रयोग से हीमोग्लोबिन की बढ़ता है. लिवर के लिए भी ये काफी फायदेमंद होता है. इससे शरीर में खून बनने की प्रक्रिया तेज होती है.

बालों के लिए है काफी कारगर

बाल झड़ने में भी चुकंदर काफी कारगर होता है. इसके नियमित इस्तेमाल से बाल मजबूत होते हैं और इनका झड़ना भी काफी कम होता है. जानकार बताते है कि इसके पत्तों का रस दिन में 3-4 बार गंजे स्थान पर मालिश करने से तो उड़े हुए बाल फिर से उगने लगेंगे. रोज चुकंदर और आंवले का ताजा रस मिलाकर सिर की मालिश करने पर भी फायदा मिलता है.

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