कहीं हेल्थ पर भारी न पड़ जाए टैटू का क्रेज

टैटू का क्रेज आज से नहीं बल्कि पिछले कई सालो से युवाओं में देखा जा रहा है और आज भी यह जुनून लोगों में कायम है. पहले टैटू बनवाना एक एक्स्पेंसिव और पेनफुल बात हुआ करती थी लेकिन अब यह सिर्फ कहने की बात हैं आज तो लोग खुद को कूल, मार्डन दिखाने के लिए ऐसे कई अहसनीय दर्द को बर्दाश्त कर लेते है. टैटू बनवाना मानो एक रिवाज की तरह हो गया हो जैसे कपल अपने प्यार को जताने के लिए एक दूसरे का नाम लिखवा लेते है. कुछ अपनी पर्सनेलिटी टैटू के जरिये दिखाना पसंद करते हैं कुछ ऐसे भी लोग है जो भगवान के प्रति अपनी भक्ति भी टैटू बनवा कर दर्शाते हैं. आजकल तो माता-पिता के प्रति प्यार भी टैटू बनवाकर जताया जा रहा है. लेकिन क्या आपको पता है यह टैटू जो न जाने कितनों के प्यार की निशानी है यह आपके लिए नुकसानदायक भी साबित हो सकता है. जो टैटू आज लोगो का स्टाइल स्टेटमेंट है जो आज लोगो के शरीर के हर भाग में दिखाई देना कौमन हो गया है उसी टैटू से कई तरह की स्किन प्रोब्लम हो सकती है. आइए जानते हैं टैटू से होने वाली स्किन प्रौबलम क्या हो सकती हैं…

1.  टैटू से होने वाली स्किन प्रौब्लम

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टैटू आजकल इतना ट्रेंड में है की हम लगभग हर किसी के बौडी पार्ट पर बना हुआ देखते है, लेकिन टैटू से कई तरह की गंभीर समस्या आपके सामने आ सकती है. इससे हमारे स्किन पर लालिमा, मवाद, सूजन जैसी कई तरह की परेशानियां हो सकती है. इसके अलावा कई तरह के बैक्ट्रियल इन्फ़ैकशन होने का भी डर रहता है. परमानेंट टैटू के दर्द से बचने के लिए कई लोग नकली टैटू का सहारा लेते हैं, लेकिन ऐसा ना करें. इससे आपको और भी परेशानी का सामना करना पड़ सकता है.

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2. टैटू से कैंसर होने का डर

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टैटू बनाते समय हम यह सोचते हम बहुत कूल दिखेंगे लेकिन इस कूलनेस से हमे कई तरह की बीमारियां भी हो सकती है जिसमे से एक सोराइसिस हैं. टैटू से सोराइसिस नाम की बीमारी होने का डर रहता है. कई बार हम ध्यान नहीं देते और दूसरे इंसान पर इस्तेमाल की गई सुई हमारे स्किन पर इस्तेमाल कर दी जाती है जिससे स्किन संबंधित रोग, एचआईवी और हेपेटाइटिस जैसी बीमारियों का खतरा रहता है. टैटू बनवाने से कैंसर का खतरा भी बढ़ जाता है.

3. स्याही स्किन के लिए खतरनाक

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टैटू बनाने के लिए हमारे स्किन पर अलग-अलग तरह की स्याही का इस्तेमाल किया जाता है, जो कि हमारी स्किन के लिए काफी खतरनाक होती है. टैटू बनाने के लिए नीले रंग की स्याही का इस्तेमाल किया जाता है जिसमें एल्यूमिनियम और कोबाल्ट होता है. नीले रंग के अलावा और रंगों में कैडियम, क्रोमियम, निकल व टाइटेनियम जैसी कई धातुएं मिली रहती हैं, जो कि स्किन के लिए खराब होती हैं. यह स्किन की बिलकुल अंदर तक समा जाती है जिससे बाद में कई तरह की दिक्कतें भी हो सकती हैं.

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4. मांसपेशियों (mussels) को नुकसान

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हम अपनी स्किन पर बड़े शौक से टैटू बनवा तो लेते हैं, लेकिन उसके बाद होने वाले नुकसान से अंजान रहते हैं. टैटू के कुछ डिजाइन ऐसे होते हैं जिनमें सुइयों को शरीर में गहराई तक चुभाया जाता है. जिसके चलते मांसपेशियों में भी स्याही चली जाती हैं. इस कारण मांसपेशियों को काफी नुकसान पहुंचता है. स्किन स्पेशलिस्ट का कहना है की शरीर के जिस हिस्से पर तिल हो उस हिस्से पर टैटू कभी नहीं बनवाना चाहिए.

5. इन बातों का टैटू बनवाते वक्त रखें ध्यान

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– टैटू 18 साल से अधिक उम्र वाले लोगों को ही बनवाना चाहिए.

– टैटू बनवाने के लिए किसी अच्छे टैटू प्रोफेशनल के पास ही जाए.

– टैटू बनवाने से पहले हेपेटाइटिस बी का टीका जरूर लगवाएं.

– टैटू बनवाने वक़्त अपने स्किन पर इंक टेस्ट जरूर करवाए इससे आपको पता चल जाएगा की इंक से आपके स्किन पर कोई एलर्जी तो नहीं हो रहीं.

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– टैटू बनवाने वक्त देख लें नीडल नया है या नहीं.

– टैटू बनवाने के बाद करीब 2 हफ्ते पानी को उस जगह को दूर रखें. जिस जगह पर टैटू बनवाया हो उस जगह पर रोजाना एंटीबायोटिक क्रीम लगाएं.

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डॉक्टर्स भी हो रहे हैं मानसिक रोग का शिकार, पढ़ें खबर

कोरोना काल में घरों में कैद लोग जिस तरह से मानसिक रूप से बीमार हो रहे है, वैसी ही बीमारी के इलाज कर रहे डॉक्टर्स और नर्सेज भी इन दिनों मानसिक बीमारी के शिकार हो रहे है. इसकी वजह कोविड 19 का नयी बीमारी होना, बीमारी से लड़ने के लिए सही प्रोटेक्शन उन्हें न मिल पाना,लम्बे समय तक काम पर रहना,बीमार लोगों की संख्या में लगातार बढ़ना, परिवार को उनके मरीज़ के बारें में अच्छी समाचार का न दे पाना आदि कई है. इससे वे एंग्जायटी के शिकार होकर मानसिक तनाव में रहने को विवश हो रहे है. इतना ही नहीं कोरोना का इलाज कर रहे डॉक्टर्स और नर्सेज से समाज और आसपास के लोग भी अच्छा व्यवहार करने से कतराते है. कही पर उन्हें अपने घरों में रहने से भी रोका गया. उनके साथ बदसलूकी की गई. इस लॉक डाउन में भी उन्हें काम पर आना पड़ा. साथ ही वे वायरस के काफी नजदीक थे, क्योंकि वे इलाज कर रहे है, जिससे उन्हें अपने परिवार की चिंता भी रही है. इससे पाया गया कि एक बड़ी संख्या में हेल्थकेयर से जुड़े लोग एंग्जायटी, इनसोम्निया और मनोवैज्ञानिक डिस्ट्रेस के शिकार हुए.

लेना पड़ता है कठिन निर्णय

इसके अलावा कई देशों में तो डॉक्टर्स को ये भी निर्णय लेना भारी पड़ा, जिसमें वे ये तय नहीं कर पा रहे थे कि किसे वेंटिलेटर का सपोर्ट दिया जाय किसे नहीं. इसमें पाया गया कि बुजुर्ग से वेंटिलेटर को हटाकर यूथ को दिया गया. जिसका मनोवैज्ञानिक प्रभाव डॉक्टर्स पर बहुत पड़ा, जब वे अपने आगे किसी दम तोड़ते हुए व्यक्ति को देखा और वे कुछ नहीं कर पाएं. इसकी वजह उपकरणों का सही तादाद में समय पर न मिलना हुआ है. कई हेल्थकेयर से जुड़े व्यक्ति ने तो मानसिक दबाव में आकर आत्महत्या तक कर डाली.

खुद और परिवार को सुरक्षित रखना है चुनौती

मुंबई की ग्लोबल हॉस्पिटल के मनोचिकित्सक डॉ. संतोष बांगरकहते है कि कोरोना कहर में डॉक्टर्स को सबसे अधिक उनकी खुद की रक्षा करना भारी पड़ता है, जिसमें पीपीइ किट और इलाज के लिए जरुरत के सामान की कमी, उनके परिवार की सुरक्षा आदि होती है. इससे उनकी एंग्जायटी लेवल बढ़ जाता है, इस पेंड़ेमिक में कई डॉक्टर्स में इनसोम्निया की बीमारी अधिक देखी जा रही है. इतना ही नहीं कोरोना मरीज़ की इलाज़ करते हुए डॉक्टर्स अपने परिवार के साथ भी क्वालिटी टाइम नहीं बिता पाते, क्योंकि उन्हें लम्बे समय तक हॉस्पिटल में बिताना पड़ता है. आने के बाद भी वे परिवार से दूर खुद को क्वारेंटिन करते है, क्योंकि उन्हें डर लगा रहता है कि कही उनके साथ संक्रमण तो नहीं आई. इसके अलावा कोरोना संक्रमित मरीजों के परिवार को उनके हालात के बारें में बताना भी उनके लिए मानसिक दबाव होता है, क्योंकि परिवार डॉक्टर्स से कुछ अच्छा ही सुनने की उम्मीद करते है. हालाँकि अस्पताल के प्रबंधन डॉक्टर्स के मानसिक और भावनात्मक हालात को सुधारने के लिए कोशिश कर रही है, पर इसका फायदा बहुत अधिक नहीं दिखाई पड़ रहा है, क्योंकि दिनोंदिन कोरोना के मरीज़ बढ़ते जा रहे है.

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पर्याप्त उपकरणों की कमी

इसके आगे डॉक्टर का कहना है कि भारत जैसे देश में जहाँ जनसँख्या का भार अधिक है, गरीबी अधिक है,मेडिकल इंफ्रास्ट्रक्चर सही नहीं है, कोरोना संक्रमण के व्यक्ति का इलाज करना बहुत मुश्किल होता है. ऐसे कई उदाहरण है, जहाँ डॉक्टर्स को कठिन निर्णय लेना पड़ा, मसलन रोगी को वेंटिलेटर पर रखे या नहीं, अर्जेंट जरुरत के आधार पर उसका ऑपरेशन करें या नहीं. डॉक्टर्स अधिकतर शांत रहकर सोचते है, पर कुछ विषयों में संभव नहीं होता और तनाव के शिकार होते है. इस तनाव से निकलने के लिए डॉक्टर्स को खुद की फिटनेस, डाइट और स्ट्रेस फ्री रहने के बारें में सोचना पड़ेगा और खुद को लगातार कोविड 19 को लेकर अपडेट रहने की जरुरत है, ताकि उनका मानसिक स्तर सही रहे. इसके बावजूद अगर समस्या है तो एक्सपर्ट की राय अवश्य लेना उचित होगा.

डॉक्टर्स मानते है कि इस मुश्किल घड़ी में कोरोना मरीज जिधर से उनके पास इलाज के लिए आते है वही से वापस ठीक होकर अपने घर जायें. इससे कुछ भी अलग उन्हें मानसिक पीड़ा देती है.सीरियस पेशेंट का इलाज करना आज भी तनाव पूर्ण है. हेल्थकेयर प्रोफेशन से जुड़े हुए लोग हमेशा किसी न किसी तरह के मनोवैज्ञानिक तनाव के शिकार होते है,जिससे निकलने में उन्हें मुश्किल होता है. इस बारें में डॉक्टर्स से जाने कैसे वे अपने मेंटल हेल्थ को बनाये रखते है,

 वोकहार्ड हॉस्पिटल, मुंबई सेंट्रल के इंटरनल मेडिसिन एक्सपर्टडॉ. बेहराम पार्डिवाला कहते है कि इस बात का तनाव हमेशा रहता है कि मुझे कोरोना न हो जाय और उसका रिस्क लेना भी पड़ता है, क्योंकि रोगी को देखना जरुरी है. सावधानियां लेता हूं और हर दिन अच्छा जाय इसकी कामना करता हूं. कई बार कोरोना रोगी अस्पताल में आने के बाद बेड न होने की वजह से उसे मना करना पड़ा. बहुत अफ़सोस और ख़राब लगता है. कई बार वे हाथ जोड़कर वार्ड में रखने के लिए कहते है, पर मेरी हिम्मत नहीं हुई क्योंकि वह तड़प कर मर जायेगा. इसका अफ़सोस बहुत होता है. इसका मानसिक दबाव काफी दिनों तक रहता है. उस मरीज़ की याद आती है. नींद नहीं आती. उस मरीज़ के बारें में जानने की इच्छा होती है. इसके अलावा हर डॉक्टर्स  की सोच एक जैसी नहीं होती. मैंने ये प्रोफेशन आज से सालों पहले कदम रखा था और परिवार का एकलौता डॉक्टर बना था. उस समय मैंने सोच लिया था कि ये पब्लिक सर्विस है, इसे मुझे उसी रूप में करना है और करता हूं. इससे मानसिक शांति बनी रहती है.

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अपोलो स्पेक्ट्रा हॉस्पिटल दिल्ली की नवनीत कौर कहती है कि कोरोना संक्रमण के दौरान मैं बहुत अधिक खुद के लिए सावधानियां बरत रही हूं. अस्पताल से घर जाकर भी हायजिन के सभी नियमों का पालन करती हूं. खुद के डाइट का पूरा ध्यान रखती हूं. किसी बात से अधिक तनाव नहीं है, क्योंकि मैं एक डॉक्टर हूं और कैसे क्या करना है जानती हूं. ये सही है कि डॉक्टर्स भी कई बार बहुत अधिक मानसिक तनाव के शिकार होते है. मुझे याद आता है, जब मैं अपने होम टाउन गयी थी और मेरी एक प्रेग्नेंट पेशेंट ने मेरे आने तक इंतजार किया और मेरे कहने पर भी किसी से कंसल्ट नहीं किया. मेरे आने तक उसकी हालत ख़राब हो गयी थी मैंने उसे बचाने की बहुत कोशिश की, पर उसे बचा नहीं पाई. कई दिनों तक उसका चेहरा मेरे आगे घूमता रहा. मैं मानसिक दबाव में कई दिनों तक रही. मैं सोचती रही कि काश मैं पहले उसे देख पाती तो शायद उसकी ये दशा न होती. आज भी उस महिला को याद कर मेरा मन दुखी हो जाता है. इस तरीके के तनाव से बचने के लिए सकारात्मक सोच रखनी पड़ती है और आसपास के दोस्त और परिवार से बातचीत बनाये रखना पड़ता है.

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मुंबई की जनरल फिजिशियन डॉ. सरोज शेलार कहती है कि मुझे कई बार मानसिक दबाव से गुजरना पड़ा है, कोरोना संक्रमण का इलाज़ करते हुए पूरी सावधानी मैं लेती हूं, क्योंकि मेरे दो छोटे बच्चे और बुजुर्ग सास-ससुर है. मेरे पास केवल कोरोना ही नहीं, बल्कि कई प्रकार के संक्रमित व्यक्ति आते है और मेरा शरीर इससे कुछ हद तक इम्युन हो चुका है, पर परिवार नहीं, इसलिए मानसिक तनाव रहता है. इस प्रोफेशन में मानसिक दबाव हमेशा रहता है. मुझे अभी भी याद है जब मैं एक 10 साल के बच्चे को इस लिए नहीं बचा पायी, क्योंकि मेरे पास संसाधन की कमी थी और मैं इस प्रोफेशन में नयी थी. उसकी याद कई दिनों तक रही, उससे निकलने में काफी समय लगा था. ऐसा जब भी मन समस्या ग्रस्त होता है तो मैडिटेशन, वर्कआउट, परिवार से संवाद आदि करती हूं.

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कई बार मेरी धड़कन अचानक तेज हो जाती है, ऐसा क्यों होता है?

सवाल-

मेरा नाम सुभाष है. मेरी समस्या यह है कि कई बार मेरी धड़कन अचानक तेज हो जाती है और कई बार सामान्य से धीमी हो जाती है. ऐसा होने पर मुझे सीने में भारीपन महसूस होता है. ऐसा क्यों होता है और इस का समाधान क्या है?

जवाब-

जिस समस्या का आप ने जिक्र किया है इसे एरिथमिया कहते हैं. यह एक ऐसी बीमारी है जिस में दिल की धड़कन अनियमित हो जाती है. एरिथमिया तब होता है जब दिल की धड़कन को नियंत्रित करने वाली इलेक्ट्रिक वेव्स ठीक से काम करना बंद कर देती हैं. इसी के कारण आप को सीने में भारीपन महसूस होता है. सीने में तेज दर्द, बोलने में समस्या, सांस लेने में मुश्किल, थकान आदि इस बीमारी के आम लक्षण हैं. धड़कनों में गड़बड़ी के चलते दिल की गतिविधि में कठिनाई आ जाती है, जिस के कारण व्यक्ति में दिल के दौरे, स्ट्रोक, दिल के फैल होने और दिल से जुड़ी कई अन्य गंभीर समस्याओं की संभावनाएं बढ़ जाती है. स्वस्थ जीवनशैली और सही आहार की मदद से इस बीमारी से राहत पाई जा सकती है. हालांकि, पहले इस की जांच कराना आवश्यक है. कार्डियक इलेक्ट्रोफिजियोलौजी दिल की धड़कनों की गड़बड़ी का पता लगाने के लिए दिल की गतिविधियों को रिकौर्ड करती है. बीमारी की पहचान के बाद डाक्टर आप को उचित दवाइयां लिख देगा.

 

#coronavirus: हड्डियों को न कर दें कमजोर

कोरोना ने महामारी का रूप ले लिया है, जिस में सभी को कई मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है. ऐसे में सेहत का ध्यान रखना हम सब के लिए बहुत जरूरी हो गया है. काफी दिनों से लोग घरों में बंद हैं. कहीं आजा नहीं रहे, जिस से उन की शारीरिक गतिविधियां कम हो गई हैं, जिस का सीधा असर उन की हड्डियों पर भी पड़ रहा है.

हड्डियां शरीर का सपोर्ट सिस्टम हैं. बच्चे हो या बूढ़े सभी आज के समय की गलत जीवनशैली की वजह से हड्डियों से जुड़ी बीमारियों से जूझ रहे हैं.

ऐसे में कैसे इन दिनों अपनी हड्डियों का खास खयाल रखें. आइए, जानते हैं दिल्ली के आयुस्पाइन हौस्पिटल के डाइरैक्टर डाक्टर सत्यम भास्कर से, जो जौइंट पेन स्पोर्ट्स इंजरी स्पैशलिस्ट हैं.

कोरोना की वजह से सब के जीवन में काफी बदलाव आ चुका है. पहले लोग वर्कआउट के लिए गार्डन, पार्क और जिम जाते थे, लेकिन अब ऐसा नहीं है. लोग फिजिकल ऐक्टिविटीज से बहुत दूर हो गए हैं. इस पर आप क्या कहना चाहेंगे?

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लोग फिजिकल ऐक्टिविटीज से दूर नहीं हुए उन्होंने जानबूझ कर खुद को दूर किया है. हम चाहें तो घर पर ही ऐक्सरसाइज कर सकते हैं. अपनी बालकनी में भी आसानी से ऐक्सरसाइज कर सकते हैं. ऐक्सरसाइज से हड्डियों को भी फायदा मिलता है. जब हम ऐक्सरसाइज करते हैं, तो उस समय हमारा शरीर अच्छी तरह मूव करता है. हड्डियों को हैल्दी बनाए रखने के लिए सब से आसान ऐक्सरसाइज है कि सीधे लेट जाएं और अपनी कमर के नीचे मोटा तकिया रख लें और फिर 2 मिनट तक बिलकुल सीधे लेटे रहें. इसे हम स्पाइनल ऐक्सटैंशन कहते हैं. अगर आप इस ऐक्सरसाइज को रोज सोने से पहले करते हैं, तो आप का कमर दर्द बिलकुल ठीक हो जाएगा. रोजाना 10-15 मिनट ऐक्सरसाइज करनी चाहिए.

बहुत सारे लोग इस समय औफिस का काम घर से कर रहे हैं. वे लोग घंटों सोफा या बिन बैग पर बैठ कर काम कर रहे हैं, जिस से उन का पोस्चर भी बिगड़ रहा है. हड्डियों के लिए सही पोस्चर कितना जरूरी है और क्याया इस के लिए हमें सावधानियां बरतनी चाहिए?

जब हम औफिस में काम करते हैं, तो हम बंधे होते हैं अपने काम से भी और अपनी सीट से भी. लेकिन जब हम घर पर काम करते हैं, तो हम अपने अकौर्डिंग सब मैनेज करते हैं. ऐसे में हम थोड़ीथोड़ी देर में मूवमैंट कर सकते हैं. मूवमैंट हमारे शरीर और हड्डियों के लिए बहुत जरूरी है. अगर आप घर से काम कर रहे हैं तो हर 30 मिनट में अपना पोस्चर जरूर बदलें. एक ही पोस्चर में घंटों बैठने से हड्डियों में दर्द शुरू हो जाता है, जो सर्वाइकल पेन को न्योता देता है.

पहले के समय में लोगों को हड्डियों से जुड़ी बीमारियां 35 के बाद होती थीं, लेकिन अब ये 25 की उम्र में होने लगी हैं, ऐसा क्यों?

पहले के समय में लोग शारीरिक रूप से ऐक्टिव रहते थे और खानपान का भी ध्यान रखते थे, लेकिन अब अभी और पहले की जीवनशैली में काफी अंतर आ चुका है. अब लोग कुरसी पर बैठेबैठे काम करते हैं, खाने में दूधदही की जगह पिज्जाबर्गर खाते हैं, जबकि बचपन से ही खानपान का खास ध्यान रखने को कहा जाता है. हड्डियों की सेहत के लिए सही खानपान जरूरी है.

शरीर को जब सही मात्रा में पोषण मिलता है, तो हड्डियां मजबूत होती हैं, शारीरिक ग्रोथ भी सही होती है. लेकिन आज के समय में बच्चे कोल्डड्रिंक पीना ज्यादा पसंद करते हैं. क्या कोल्डड्रिंक से शरीर को किसी प्रकार का न्यूट्रिशन मिलेगा? बिलकुल नहीं मिलेगा, बल्कि इन चीजों का सेवन करने से हमारी हड्डियां कमजोर होने लगेंगी. शरीर में कैल्शियम का लैवल कम हो जाएगा, जिस से कम उम्र में जोड़ों में दर्द की शिकायत होने लगेगी. 20 वर्ष तक शरीर को सही पोषण मिलना बहुत जरूरी है. अगर आप को यह शिकायत कम उम्र में ही शुरू हो गई है, तो डाक्टर से कैल्शियम की जांच जरूर करवाएं.

मेनोपौज के बाद महिलाओं की हड्डियां कमजोर होने लगती हैं. ऐसे में उन्हें किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?

मेनोपौज के दौरान महिलाओं में ऐस्ट्रोजन स्तर गिर जाता है, जिस से औस्टियोब्लास्ट कोशिकाएं प्रभावित होती हैं. इस से पुरुषों की तुलना में महिलाओं की हड्डियां ज्यादा कमजोर होने लगती हैं, हड्डियों की डैंसिटी पर भी असर पड़ता है. इस से महिलाओं को औस्टियोपोरोसिस और औस्टियोआर्थ्राइटिस जैसी हड्डियों से जुड़ी बीमारियां होने का रिस्क बढ़ जाता है. वैसे तो महिलाओं को खानपान का ध्यान बचपन से ही रखना चाहिए, लेकिन कोई महिला मेनोपौज से गुजर रही है, तो उसे न्यूट्रिशन से भरपूर डाइट फौलो करनी चाहिए.

इस समय लोग बाहर के खानपान को अवौइड कर रहे हैं, लेकिन घर पर मैदे से बने स्वादिष्ठ पकवानों का लुत्फ भी उठा रहे हैं. क्या मैदा हड्डियों की सेहत के लिए हानिकारक है?

मैदे का सेवन ही नहीं करना चाहिए. यह हमारे स्वास्थ्य के लिए जहर के समान है. इस में

0 प्रतिशत न्यूट्रिशन होता है, जिस से हमारे शरीर को कोई फायदा नहीं मिलता. यह डाइजैस्ट भी जल्दी नहीं होता, जिस से कब्ज की शिकायत होने लगती है. मैदा खाने से हड्डियों पर भी बुरा असर पड़ता है. मैदा बनाते वक्त इस में प्रोटीन निकल जाता है और यह ऐसिडिक बन जाता है, जो हड्डियों से कैल्शियम को खींच लेता है, जिस से वे कमजोर हो जाती हैं, इसलिए मैदे का सेवन बिलकुल न करें.

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हड्डियों को मजबूत बनाए रखने के लिए हमें किन चीजों का सेवन ज्यादा करना चाहिए?

हड्डियों को मजबूत बनाने के लिए मैग्नीशियम, कैल्शियम और विटामिन डी बहुत जरूरी है. ये सभी हड्डियों और जोड़ों को मजबूत बनाते हैं.

मैग्नीशियम: मैग्नीशियम के लिए हरी पत्तेदार सब्जियों का सेवन जरूर करें. पालक मैग्नीशियम का अच्छा स्रोत होता है. इस के अलावा टमाटर, आलू, शकरकंद भी आप आहार में शामिल कर सकते हैं.

कैल्शियम: कैल्शियम के लिए दूध बहुत अच्छा स्रोत है. इस के लिए आप दूध से बनी चीजों का सेवन भी कर सकते हैं. इस के साथ ही हरी पत्तेदार सब्जियां भी आप को कैल्शियम और आयरन दोनों ही देने में मदद करती हैं. नौनवैज खाने वालों के लिए मछली कैल्शियम का सब से अच्छा विकल्प है. साबूत अनाज, केले, सालमन, बादाम, ब्रैड, टोफू, पनीर आदि कैल्शियम की कमी को पूरा करने के अच्छे स्रोत माने जाते हैं.

विटामिन डी: आप विटामिन डी के लिए टूना, मैकरेल, अंडे का सफेद भाग, सोया मिल्क, डेयरी प्रोडक्ट जैसे दूध, दही के अलावा मशरूम, चीज और संतरे के जूस का भी सेवन कर सकते हैं.

लंबे समय से घुटनों के पुराने दर्द से पीडि़त हूं, क्या इसका कोई सही इलाज है?

सवाल-

क्या आप बदलते मौसम में घुटनों को नुकसान से बचाने के लिए जीवनशैली में कुछ बदलाव का सुझाव दे सकते हैं? मैं एक 45 वर्षीय मरीज हूं. जो लंबे समय से घुटनों के पुराने दर्द से पीडि़त हूं?

जवाब-

तलेभुने पदार्थ न खाएं. धूम्रपान छोड़ दें. विटामिन डी सप्लिमैंट्स लें. घुटनों के इर्दगिर्द की मांसपेशियों को मजबूत करने के लिए टहलने, सैर करने के साथसाथ हलकेफुलके व्यायाम भी करने की जरूरत होगी. हलकेफुलके शारीरिक व्यायाम से घुटनों पर कम दबाव पड़ेगा. अगर चलने से आप के घुटनों में तकलीफ होती है तो आप पानी में रह कर किए जाने वाले व्यायाम जैसे वाटर ऐरोबिक्स, डीप वाटर रनिंग (गहरे पानी में जौगिंग) करने पर विचार कर सकते हैं. आप ऐक्सरसाइज करने वाली साइकिल का भी प्रयोग कर सकते हैं.

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आर्थ्राइटिस अब हमारे देश की आम बीमारी बन चुका है और इस से पीडि़त व्यक्तियों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी हो रही है. आर्थ्राइटिस से सिर्फ वयस्क ही नहीं, बल्कि आज के युवा भी पीडि़त हो रहे हैं. जिस की वजहें आज की मौडर्न जीवनशैली, खानपान, रहनसहन आदि हैं. आज हर व्यक्ति आराम चाहता है, मेहनत तो जीवनचर्या से खत्म हो चली है. फलस्वरूप ऐंडस्टेज आर्थ्राइटिस से पीडि़त अनेक रोगियों के पास जौइंट रिप्लेसमैंट सर्जरी के अलावा और कोई विकल्प नहीं रह जाता.

इस विषय पर मुंबई के फोर्टिस हौस्पिटल के डा. कौशल मल्हान, जो यहां के सीनियर और्थोपैडिक कंसल्टैंट हैं और घुटनों की सर्जरी के माहिर हैं से बातचीत की गई. वे पिछले 20 सालों से इस क्षेत्र में काम कर रहे हैं. उन का कहना है कि हमेशा से हो रही घुटनों की प्रत्यारोपण सर्जरी ही इस रोग से मुक्ति दिलाती है, पर यह पूरी तरह कारगर नहीं होती, क्योंकि सर्जरी के दौरान मांसपेशियां और टिशू क्षतिग्रस्त हो जाते हैं. परिणामस्वरूप जितना लाभ व्यक्ति को चलनेफिरने में होना चाहिए उतना नहीं हो पाता.

पूरी खबर पढ़ने के लिए- घुटने का प्रत्यारोपण, आर्थ्राइटिस से मुक्ति

क्या आप बता सकते हैं बेसिक चीजें के बारे में जिनसे मैं अपने घुटनों को दुरुस्त रख सकता हूं?

सवाल-

मैं 38 वर्षीय आईटी प्रोफैशनल हूं. जब मैं औफिस में बैठा रहता हूं तब भी मेरे घुटनों में बहुत तेज दर्द और जकड़न होती है. मुझे जिम जाने और वर्कआउट करने का समय कभीकभी ही मिल पाता है. मैं ने घुटनों के दर्द के लक्षणों की खोज की तो पाया कि घुटनों का आर्थ्राइटिस 30 वर्ष की प्रारंभिक अवस्था और 40 वर्ष की उम्र में आम समस्या है. क्या आप घुटनों के आर्थ्राइटिस को दूर रखने में जीवनशैली में बदलाव की जरूरत पर और ज्यादा विस्तार से प्रकाश डाल सकते हैं? वे बेसिक चीजें कौन सी हैं, जिन से मैं अपने घुटनों को दुरुस्त रख सकता हूं और दर्द की समस्या से छुटकारा पा सकता हूं?

जवाब-

मैं आप को डाक्टर से सलाह लेने और घुटनों का उचित इलाज कराने की सलाह दूंगा. इंटरनैट पर देख कर खुद अपना इलाज करने से आप को गलत जानकारी मिल सकती है और आप की हालत बिगड़ सकती है. अपने घुटनों को स्वस्थ रखने के लिए आप को जिम में जाने और बहुत ज्यादा देर तक नहीं बैठना है और समयसमय पर ब्रेक ले कर हलकाफुलका व्यायाम करना है. किसी भी तरह का हलका व्यायाम जैसे 30 मिनट तक चलने और एस्केलेटर की जगह सीढि़यों से आनेजाने से आप को घुटनों के दर्द से काफी आराम मिल सकता है. सब से ज्यादा महत्त्वपूर्ण बात यह है कि अगर आप का वजन ज्यादा है तो यह आप के घुटनों का मजबूत रखने में सब से बड़ी रुकावट है.

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इन तरीकों से लॉकडाउन के दौरान करें पीसीओएस चेक

पॉलीसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम (PCOS) एक हार्मोनल डिसऑर्डर होता है जो बढ़े हुए ओवरी के बाहरी किनारों पर छोटे सिस्ट के साथ होता है. यह भारत में प्रजनन से सम्बंधित  महिलाओं में कॉमन लाइफस्टाइल डिसऑर्डर होता है. यह हर 5 में से 1 महिला को होता है. अगर यह बढ़ती उम्र के साथ शुरूआती स्टेज में ठीक नहीं किया जाता है तो यह कई लाइफस्टाइल डिसऑर्डर का मूल कारण माना जाता है.

AIIMS के मेटाबोलिज्म और एन्ड़ोक्रिनोलोजी डिपार्टमेंट की एक रिसर्च के अनुसार भारत की  40% बच्चें पैदा करने की उम्र की महिलाएं  पीसीओएस से पीड़ित होती है जबकि 60% पीसीओएस  से पीड़ित महिलाएं मोटापे से पीड़ित होती है. 30 से 35% महिलाओं का लीवर फैटी होता है. लगभग 70% महिलाओं में इंसुलिन की रुकावटए 60 से 70% में हाई लेवल का एण्ड्रोजन और 40 से 60% महिलाओं में ग्लूकोज इनटॉलेरेंस होता है.

हममें से कई लॉकडाउन और क्वारंटाइन में रहे. पीसीओएस और कोरोनावायरस के स्ट्रेस से निजात पाना आसान नही है. यहाँ कुछ उपाय बताये जा रहा हैं जिससे आप अपने पीसीओएस को मैनेज कर सकते हैं. सेडेंटरी डिजिटल एरा का एक प्रोडक्ट-

1. डाइट मैनेजमेंट बहुत जरूरी

चूंकि लॉकडाउन के कारण जंक फूड आसानी से उपलब्ध नहीं है, डॉक्टरों का सुझाव है कि महिलाओं को इसका सेवन नहीं करना चाहिए. लॉकडाउन में हाई-कैलोरी खाने से परहेज करके  जई, दलिया और पोइंटहेड खाकर वजन घटाने का सबसे अच्छा मौका है. फ़ूड इस कंडीशन को मैनेज करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. एक पीसीओएस महिला को अपनी डाइट चेक करनी चाहिए नहीं तो वजन बढ़ने से प्रभाव उल्टा पड़ सकता है. अनहेल्थी तले हुए फ़ूड, शुगर बेवरेज, प्रोसिज्ड मीट,लाल मीट नहीं खाना चाहिए. यहां तक कि दूध और इससे बने प्रोडक्ट्स को भी खाने से बचना चाहिए क्योंकि दूध टेस्टोस्टेरोन के लेवल को बढ़ाता है. टेस्टोस्टेरोन का लेवल इस बीमारी की कंडीशन में हाई होता है, डेयरी प्रोडक्ट समस्या को और जटिल बना सकते हैं.

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2. रेगुलर एक्सरसाइज बहुत जरूरी

पीसीओएस  मैनेज करने का सबसे अच्छा तरीका है वजन कम करें. कई रिसर्चों से पता चला है जो महिलाएं एक हफ्ते में लगभग 3 घंटे एरोबिक एक्सरसाइज करती हैं उनकी इंसुलिन सेंसिटिविटी, कोलेस्ट्राल, विसेरल फैट (जो पेट के चारो ओर होता है) इम्प्रूव होता है भले ही उनका वेट कम न हो. इसलिए दिल छोटा न करें जब वेट मशीन वेट मैनेजमेंट में कोई इम्प्रूवमेंट न शो करे तोए बस रेगुलर एक्सरसाइज को करना जारी रखें. बस आपको कुछ बेसिक आइटम की जरूरत होगी जो आप अपने आसपास पा सकते हैं. एक्सरसाइज के तीन बेसिक सिद्धांत हैं: इंस्ट्रूमेंट्स को कम युज करें: कार्डियोवैस्कुलर, वेट ट्रेनिंग,और फ्लेक्सिबिलिटी. रेगुलर एक्सरसाइज और हार्मोनल पिल्स (आपके डॉक्टर के अनुसार) से मासिक धर्म चक्र सही हो सकता है

3. मेंटल और इमोशनल हेल्थ के बारने में जागरूकता बढ़ाना

पीसीओएस महिलाओं में मूड स्विंग, डिप्रेशन और अन्य मेंटल हेल्थ प्रॉब्लम ज्यादा होता है. इसलिए यह महत्वपूर्ण हैं कि  पीसीओएस को मैनेज करने के लिए इमोशनली ठीक होना सबसे जरूरी है. पीसीओएस न केवल भारत में बल्कि दुनिया में महिलाओं में होने वाली हेल्थ प्रॉब्लम है. पर ये दुख की बात है कि इतना सामान्य एंडोक्राइन (हार्मोनलद्ध) डिसऑर्डर होने के बावजूद,यह बहुत खराब बीमारी समझी जाती है. चूंकि पीसीओएस का कोई स्थायी “इलाज” नहीं है, इसलिए महिलाएं डेली लक्षणों के आधार पर इससे जूझती रहती हैं. लगातार इस बीमारी से लड़ने से उनके मेंटल हेल्थ पर बहुत फर्क पड़ता है. इसलिए, दोस्तों और परिवार को उनके प्रति एक्स्ट्रा काइंड होना चाहिए.

मदरहुड हॉस्पिटल नॉएडाए की गायनेकोलॉजिस्ट – ऑब्स्टट्रिशन कंसल्टेंट डॉ मनीषा रंजन से बातचीत पर आधारित.

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जानें क्या हैं प्याज के हेल्थ से जुड़े अनगिनत फायदे

दोस्तों प्याज आमतौर पर सभी घरों में use किया जाता है. कभी सब्जी में तो कभी सलाद में , कई तरीकों से प्याज को खाया जाता है. इसके बिना तो खाने का स्वाद ही नहीं आता. बेशक, इसे काटते समय आंखों में पानी जरूर आता है, लेकिन इसे खाने से जो अनगिनत फायदे होते हैं, उसका कोई मुकाबला नहीं है.
वैसे तो कहा जाता है की प्याज खाने से लू नहीं लगती.आपको जानकर हैरानी होगी कि प्याज सिर्फ लू भर ही नहीं, बल्कि डायबिटीज व कैंसर जैसी बीमारियों से बचाने में भी सक्षम है.

आइय जानते है प्याज के हैरान करने वाले फायदे –

1-डायबिटीज की समस्या से ग्रसित लोगों को रोजाना प्याज सलाद के रूप में खाना चाहिए. प्याज में क्रोमियम पाया जाता है जो ब्लड शुगर लेवल को कंट्रोल करने में मददगार हो सकता है.

2-जिन लोगों के बाल बहुत झड़ते हैं उन्हें खूब प्याज खाना चाहिए.

3-प्याज खाने से कब्ज की समस्या को आसानी से दूर किया जा सकता है.

4-प्याज के सेवन से पीरियड्स के दौरान दर्द या अनियमित माहवारी जैसी समस्याओं को भी दूर किया जा सकता है.

5-अगर आपके मुंह में इन्फेक्शन या दांत में कोई परेशानी है तो कच्चे प्याज को 2-3 मिनट तक चबाएं, ऐसा करने से इन्फेक्शन ठीक हो सकता है.

6-आंखों की रोशनी कम होने, आंखों से पानी आने पर प्याज के रस में गुलाबजल मिलाकर इसकी कुछ बूंद आंखों में डालें.

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7- प्याज में अच्छी मात्रा में Quercetin नाम का एंटीऑक्सीडेंट पाया जाता है जो कैंसर को रोकने में मदद कर सकता है. इसमें विटामिन ‘सी’ भी पाया जाता है, यह भी कैंसर रोकने के लिए कारगर है. प्याज खाने से कई तरह के कैंसर जैसे प्रोस्टेट कैंसर, ब्रेस्ट और फेफड़ों के कैंसर से बचा जा सकता है.

8-प्याज में मिथाइल सल्फाइड और अमीनो एसिड पाए जाते हैं. जो खराब कोलेस्ट्रॉल को कम और अच्छे कोलेस्ट्रॉल को बढ़ाने में मदद कर सकते हैं.

9-रोजाना प्याज खाने से दिल की बीमारियां होने का खतरा कम होता है.

10-जिन लोगों को खून की कमी होती है, प्याज उनके लिए रामबाण हैं. यहां तक की

11-प्याज के सेवन से यूरिन इंफेक्शन भी दूर किया जा सकता है.

12- प्याज का सेवन अच्छी नींद और कैलोरी बर्न करने में भी मददगार है.

13 -तनाव कम करने और इम्यून सिस्टम बढ़ाने में भी प्याज फायदेमंद होता है.

दोस्तों ये तो थे प्याज़ खाने के फायदे .पर क्या कभी आपने सिरके वाली प्याज़ खायी है. आपने सिरके वाला प्‍याज़ उत्‍तर भारत के लगभग सभी रेस्‍ट्रॉन्‍ट्स में देखा होगा.ये ज्‍यादातर लाल रंग के होते हैं . दोस्तों अक्सर जब हम लोग restaurant और होटल में खाना खाने जाते है तो खाने के साथ अक्सर सिरके वाली प्याज serve की जाती है.जो खाने में बहुत टेस्टी लगती है और इसे हम बड़े चाव से खाते हैं.पर क्या कभी आपने इसे घर में बनाने का try किया है.अगर नहीं, तो चलिए आज हम बनाते restaurent जैसी सिरके वाली प्याज़.

हमें चाहिए-

छोटे प्याज-15 से 20 ( छोटे प्याज नहीं हैं तो बड़े प्याज को ही तीन से चार पीस कर लें.)

• व्हाइट वेनेगर या एप्पल साइडर वेनेगर-2 टेबलस्‍पून
• ½ कप पानी
• चुकंदर- एक पीस कटे हुए
• चीनी-1 टेबल स्पून
• नमक- स्वादानुसार
• ¾ टेबलस्‍पून लाल मिर्च (ऑप्शनल)

बनाने का तरीका-

1- सबसे पहले प्याज को छीलकर पानी से धोलें.फिर उसे हल्का सा कट कर ले.

2-अब एक बाउल में व्हाइट विनेगर लेकर उसमें आधा कप पानी मिक्स करें.अब इसमें 1 टेबलस्पून चीनी, स्वादानुसार नमक ,लालमिर्च और चुकंदर डालकर अच्छी तहर मिक्स करें.

3- अब इसमें प्याज डालकर अच्छी तरह मिक्स करें और और एक कांच के जार में भरकर दो से तीन दिन के लिए छोड़ दें.

4-इन 2-3 दिनों में रोज जार 2 से 3 बार अच्छी तरह हिलाएं. जिससे प्‍याज में अच्‍छी तरह से सिरका लग जाए.

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5-2-3 दिन बाद सिरके वाले प्याज (वेनेगर ऑनियन) तैयार हो जाएंगे. . अब इन्हें खाने के साथ सर्व करें. आप सिरके वाले प्‍याज को किसी भी प्रकार के भोजन के साथ सर्व कर सकती हैं।

6- सिरके वाले प्याज को फ्रिज में रखकर स्टोर करें.

ध्यान रहेः प्याज खत्म होने के बाद वेनेगर वॉटर को बार-बार इस्तेमाल ना करें.
वे लोग इस बात का खास ख्याल रखें जिन्हें गैस्ट्रिक या स्ट‍मक कैंसर हैं क्योंकि वेनेगर में एसिडिक कॉन्टेंट होता है. ऐसे में वे वेनेगर के इस्तेमाल से पहले डॉक्टर की सलाह ले लें.

पढ़ाई और मनोरंजन के लिए मोबाइल के इस्तेमाल से आंखों को नुकसान हो रहा है?

सवाल-

मेरी उम्र 22 साल है. कोविड-19 के कारण लगे लौकडाउन के दौरान मेरा कालेज हमें औनलाइन क्लासेज दे रहा है जिस के लिए मैं लैपटौप का इस्तेमाल करता हूं. इस के बाद मैं मनोरंजन के लिए भी मोबाइल और लैपटौप का इस्तेमाल करता हूं. अब मेरी आंखों में मुझे समस्या होने लगी है जैसे कि दर्द और जलन. मुझे बताएं ऐसा क्यों हो रहा है और इन से छुटकारा कैसे पाऊं?

जवाब-

आप के द्वारा बताई गई समस्या से पता चलता है कि आप को ड्राई आई सिंड्रोम की समस्या है. लैपटौप की स्क्रीन का ज्यादा देर तक देखने से ड्राई आई यानी कि आंखों में सूखेपन की समस्या होती है.

इस सूखेपन के कारण ही आंखें में खुजली, दर्द और जलन का एहसास होता है. ऐसे में व्यक्ति खुजली दूर करने के लिए आंखों को तेजी से मलने लगता है, जिस से समस्या और अधिक बढ़ती है.

यदि आप को वाकई इस समस्या से छुटकारा पाना है तो सब से पहले तो मोबाइल या लैपटौप का इस्तेमाल कम कर दें. केवल जरूरत पड़ने पर ही इन का इस्तेमाल करें. लैपटौप को चलाते वक्त पलकों की जल्दीजल्दी झपकाएं. बीचबीच में ब्रैक लें और 20 फीट की दूरी पर रखें.

लैपटौप की ब्राइटनैस कम रखें और काम खत्म हो जाने के बाद आंखों पर ठंडे पानी के छींटे मारें. इस के बाद कुछ देर आंखों को बंद करें. इस से आंखों को आराम मिलेगा. अपने खानपान पर ध्यान दें और ज्यादा से ज्यादा पानी पीएं.

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वर्क फ्रौम होम यानी घर बैठे नौकरी करें. जी हां, कुछ काम ऐसे होते हैं जिन्हें घर बैठे किया जा सकता है. आप दुनिया में कहीं भी हों, इंटरनैट और वाईफाई की सहायता से इन कामों को बखूबी कर सकती हैं. इस से काम देने वाले और काम करने वाले दोनों को लाभ है. खासकर ऐसी मांएं या पिता अथवा दोनों के लिए जो अपने बच्चों पर ज्यादा ध्यान देना चाहते हैं. पहले यह सुविधा पश्चिमी विकसित देशों तक ही सीमित थी. मगर अब हमारे देश में इंटरनैट और वाईफाई के विस्तार के कारण वर्क फ्रौम होम यहां भी संभव है.

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दांतो को स्वस्थ रखने के लिए टार्टर को करें दूर

डॉ स्वाति अग्रवाल,
बीडीएस
श्री सिद्धि विनायक मल्टीस्पेशलिटी हॉस्पिटल, मन्दसौर

आप सभी जानते हैं कि ब्रशिंग, फ्लॉसिंग और मुंह में एंटीसेप्टिक सलूशन के साथ मुंह को अच्छे से कुल्ला करना बहुत ही अनिवार्य है. यह करने से मुंह में टारटर यानी कि प्लाक नहीं बनता है.

टार्टर क्या है?

जब आप अच्छे से ब्रश नहीं करते हैं और मुंह का अच्छे से ध्यान नहीं रखते हैं तो मुंह में कुछ प्रकार के बैक्टीरिया उत्पन्न हो जाते हैं, यह बैक्टीरिया जब अपने खाने और खाने के जो प्रोटीन है उससे मिलते हैं तो एक चिपचिपी परत बना देते हैं, उस परत को प्लाक कहते हैं. प्लाक बहुत तरह के बैक्टीरिया से बनता है जो कि अपने दांत की बाहरी परत जो कि इनेमल कहलाती है, उसे खराब करता है और उसमें कैविटी यानी कि कीड़े उतपन्न करता है. तो जब हम इसको हटा देंगे तो मुंह में कैविटी यानी कीड़े नहीं लगेंगे और मसूड़े भी स्वस्थ रहेंगे.
सबसे बड़ी दिक्कत तब आती है जब यह प्लाक आपके दांतों पर हमेशा रहता है और एक बहुत ही कड़क पर में बदल जाता है.
टाटर को हम कैलकुलस भी कहते हैं
जो कि दांत के ऊपर और मसूड़ों के अंदर बन जाती है. यह दांतो को हिला देती है और दातों में झनझनाहट कर देती है.यह परत डेंटल क्लीनिक में एक स्पेशल इंस्ट्रूमेंट से निकाली जा सकती है.

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हमारे दांतों और मसूड़ों को किस तरह से प्रभावित करता है यह टारटर?

यह हमारे दांतों और मसूड़ों के लिए बहुत ही खराब है. इसमें जो बैक्टीरिया होते हैं वह मसूड़ों को खराब कर सकते हैं और मसूड़ों की बीमारी पैदा कर सकते है, जैसे कि पायरिया,
जब हम अच्छे से ब्रश करते हैं, फ्लॉस करते हैं और मुंह में एंटीसेप्टिक माउथवॉश से मुंह को क्लीन रखते हैं, तो हम टारटर से बच सकते हैं. अन्यथा यह एक गंभीर समस्या लेकर आ सकता है. जोकि पायरिया है.
पायरिया हमारे दांतों और मसूड़ों के बीच में एक जगह बना लेता है और उसे खराब करता है हमारा प्रतिरक्षा तंत्र वहां पर कुछ रसायन भेजता है ताकि दांतों और मसूड़ों को बचा सके. वहां जाकर यह रसायन बैक्टीरिया से मिलकर एक तरह का मिश्रण बनाता है जो हमारे दांतो के आसपास की हड्डियों को खराब करता है और दांतो को हिला देता है.

टारतर और कैलकुलस से बचाव के उपाय —

सबसे अच्छा तरीका है टारटर से बचने की टारटर होने ही ना दें कैसे ??
रोजाना दिन में दो बार ब्रश करें. ब्रश के दात बहुत ही मुलायम होने चाहिए और हर जगह पर जैसे की पीछे की दाढ़े हुई सब जगह पर ब्रश का पहुंचना अनिवार्य है.

मशीनी टूथब्रश टारटर को ज्यादा अच्छे से हटा पाता है.

कुछ टूथपेस्ट ऐसे होते हैं जो टार्टर को कंट्रोल करते हैं और जिस में फ्लोराइड की मात्रा अच्छी होती है फ्लोराइड दांत के बाहरी परत को रिपेयर करता है. किसी किसी टूथपेस्ट में ट्राई क्लॉसन नामक पदार्थ होता है जो टारटर में मौजूद बैक्टीरिया से लड़ता है

चाहे आप कितना भी अच्छा ब्रश क्यों ना कर ले फ्लॉसिंग एक बहुत ही अनिवार्य चीज है जो कि आपको रोज करनी चाहिए, यह उस जगह के टार्टर को हटाती है जो दो दांत के बीच में मौजूद होता है. दोनों दांतो के बीच की जगह पर ब्रश का जाना संभव नहीं

और ब्रशिंग के बाद आता है, मुंह को एक एंटीसेप्टिक माउथवॉश से रोजाना कुल्ला करके उसको बैक्टीरिया से मुक्त करना, एंटीसेप्टिक माउथवॉश बैक्टीरिया को मार देती है और टारटर नहीं होने देती है.

अपने खान-पान पर ध्यान रखें बैक्टीरिया जो आपके मुंह में है वह शक्कर और स्टार्टर पदार्थ चाहता है — जब वह ऐसे दो पदार्थों के संपर्क में आता है तो हानिकारक एसिड छोड़ता है जिससे दांतों की बाहरी परत इनेमल गलने लगती है इसलिए यह बहुत जरूरी है कि आप अपना खानपान सही रखें और अगर ऐसे पदार्थों का सेवन आप करते हैं तो दिन में दो बार ब्रश जरूर करें और हर खाने के बाद ज्यादा से ज्यादा पानी पिया.

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धूम्रपान ना करें

जो लोग धूम्रपान या तंबाकू का किसी और तरह से सेवन करते हैं उन्हें टार्टर होने की संभावनाएं बढ़ जाती है इसलिए ऐसे पदार्थों से बचें.

 

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