अगर जिद्दी हो बच्चा

कई बार बच्चा अपनी जिद्द मनवाने के लिए रोता है. आप ने न कहा तो उस ने अपना सिर पटका, आप ने फिर न कहा. लेकिन जब वह जमीन पर लोटने लगा तो आप ने घबरा कर उसे हां कह दिया. यहीं से बच्चा समझ जाता है कि रोने से कुछ नहीं होता. जमीन पर लोटने से जिद मनवाई जा सकती है. बस, तब से वह वही काम करने लगता है. इस प्रकार मूल बात है कि बिहेवियर मौडिफिकेशन या मोल्डिंग अर्थात जिस तरह से आप उसे आकार देंगे वह वैसा ही करेगा. जैसा कि कुम्हार करता है. जो घड़ा उसे चाहिए उसे वह अपनी तरह से आकार देता है. लेकिन यहां बात बच्चे की है. अगर बच्चे को आप ने किसी वस्तु के लिए न कहा है तो आप उस का कारण अवश्य बताइए. बच्चा कितना भी रोएचिल्लाए, आप अपनी बात पर कायम रहें, दृढ़ रहें ताकि उसे अपनी सीमा रेखा पता चले. यह काम बचपन से ही करना चाहिए.

खुद को बदलें

बच्चे को बचपन से ही समझ लेना चाहिए कि अगर आप ने न कहा है तो इस का अर्थ नहीं है. पहली न के बाद दूसरी या तीसरी न कहने की गुंजाइश नहीं होनी चाहिए. बचपन में अगर आप ने एक बार न कहा, फिर थोड़ी जिद के बाद उसे हां कह दिया तो बड़ा हो कर वही बच्चा जिद्दी बनता है. अपने एक अनुभव के बारे में मुंबई के राजीव गांधी मेडिकल कालेज के मनोचिकित्सक डा. मित्तल बताते हैं कि एक दंपती का इकलौता बेटा, जो 18 वर्ष का था, वह किसी की बात नहीं मानता था. सारे पैसे उड़ा देता था. समय पर घर नहीं आता था. उस की इस जिद को तोड़ने के लिए नानानानी, दादादादी, मातापिता सब एकजुट हुए. पूरे परिवार ने उसे समय पर घर आने की चेतावनी दी. पर वह नहीं माना. पुलिस का सहारा लेना पड़ा. उस लड़के को एक रात पुलिस स्टेशन में बितानी पड़ी. तीसरी बार जब वह फिर घर लेट पहुंचा तो किसी ने दरवाजा नहीं खोला. बरसात में उसे बिल्ंिडग के चौकीदार के साथ 1 रात केबिन में गुजारनी पड़ी. अंत में जब वह समझ गया कि उसे खुद को बदलना है तो वह समय पर घर आने लगा. यहां एक बात ध्यान रखनी है कि मातापिता अगर बच्चे को अनुशासित करें तो बाकी घर के सदस्यों को भी चुप रह कर उन का साथ देना चाहिए.

बच्चे के जिद्दी होने की एक वजह आज की जीवनचर्या भी है. आज परिवार संयुक्त नहीं हैं. मातापिता दोनों ही नौकरीपेशा हैं. ऐसे में उन के पास समय की कमी होती है. दिन भर की भागदौड़ के बाद जब वे घर पहुंचते हैं तो बच्चे की जिद अनायास ही पूरी कर देते हैं.

सारे पहलू को देखना जरूरी

इस के अलावा आज के बच्चे ठीक से खातेपीते नहीं हैं. जंक फूड पर उन का ध्यान अधिक रहता है, जिस से वे एनीमिक बन जाते हैं. स्कूल का माहौल भी कभीकभी उन्हें जिद्दी बनाता है. कोई ऐसी घटना, जिसे वह किसी से बांट नहीं पाता, कह नहीं पाता तो जिद्दी बन कर ही उसे सामने लाता है. इस विषय पर मुंबई की शुश्रुत अस्पताल की मनोचिकित्सक प्रद्दान्या दीवान कहती हैं कि जब बच्चा हमेशा जिद्द करे तो उस के सारे पहलू को देखना जरूरी है. मातापिता उस की बात को सुनें. उस के साथ अपना कुछ समय बिताने की कोशिश करें, जिस से बच्चे को अकेलापन महसूस न हो. वह अपनी बात आप से कहे. अगर यह बात आप से हल नहीं हो रही हो तो किसी मनोचिकित्सक का सहारा लें.

जानें क्या है डबल बर्डन सिंड्रोम

प्रसव के डेढ़ महीने ही बीते थे कि मोनिका ने औफिस जाना शुरू कर दिया. अगले 6 महीनों तक घर पर बच्चे की देखभाल मोनिका की गैरमौजूदगी में कभी उस की सास तो कभी उस की मां करती रहीं. मगर बच्चे के साल भर के होते ही दोनों ने ही अपनीअपनी मजबूरी के चलते बच्चे को संभालने में आनाकानी शुरू कर दी.

अब बच्चे को क्रेच में डालने के अलावा मोनिका के पास और कोई रास्ता नहीं बचा था. वह जौब नहीं छोड़ना चाहती थी. मगर बच्चे को भी क्रेच में डाल कर खुश नहीं थी. औफिस में काम के दौरान कई बार उस का मन बच्चे की ओर चला जाता तो वहीं घर में बच्चे के साथ रहने पर उसे औफिस में अपनी खराब होती परफौर्मैंस का एहसास होता.

दोनों जिम्मेदारियों के बीच मोनिका पिसती जा रही थी. चिड़चिड़ाहट और घबराहट के कारण काम करने में उस से गलतियां होने लगी थीं. घर वालों के ताने और बौस की डांट धीरेधीरे मोनिका को डबल बर्डन सिंड्रोम जैसी मानसिक बीमारी का शिकार बना रही थी. एक समय ऐसा भी आया जब मोनिका खुद को बच्चे और अपने बौस का अपराधी समझने लगी. आखिरकार उस ने जौब छोड़ दी और गृहिणी बन कर बच्चे की परवरिश में जुट गई.

क्या कहता है सर्वे

मोनिका जैसी हजारों महिलाएं हैं, जो अच्छे पद, अच्छी आमदनी होने के बावजूद प्रसव के बाद या तो बच्चे और औफिस की दोहरी जिम्मेदारी निभाते हुए डबल बर्डन सिंड्रोम की शिकार हो जाती हैं या फिर अपने कैरियर से समझौता कर के घर और बच्चे तक खुद को सीमित कर लेती हैं.

केली ग्लोबल वर्कफोर्स इनसाइट सर्वे के अनुसार, शादी के बाद लगभग 40% भारतीय महिलाएं नौकरी छोड़ देती हैं वहीं 60% महिलाएं मां बनने के बाद बच्चे की परवरिश को अधिक महत्त्व देती हैं और नौकरी छोड़ देती हैं. इस के अतिरिक्त 20% महिलाएं जो घर और नौकरी दोनों जिम्मेदारियां निभा रही होती हैं, वे कभी न कभी जिम्मेदारियों के बोझ तले दब कर डबल बर्डन सिंड्रोम की शिकार हो जाती हैं.

इस बाबत एशियन इंस्टिट्यूट औफ मैडिकल साइंस की मनोचिकित्सक डाक्टर मीनाक्षी मनचंदा का कहना है, ‘‘भारतीय समाज है ही ऐसा. यहां महिला सशक्तीकरण की बड़ीबड़ी बातें की जाती हैं, मगर महिलाएं जब सशक्त  होने का प्रयास करती हैं, तो यही समाज उन्हें परिवार की जिम्मेदारी की बेडि़यों में जकड़ देता है.’’

पुष्पावती सिंघानियां रिसर्च इंस्टिट्यूट की मनोचिकित्सक डाक्टर कौस्तुबि शुक्ल का मानना है, ‘‘यह सिंड्रोम महिला और पुरुष दोनों को होता है. मगर भारत में इस सिंड्रोम की शिकार अधिकतर महिलाएं ही होती हैं. इस की बड़ी वजह यहां की संस्कृति है, जो कहती है कि महिलाएं अपने पेशेवर जीवन में कितनी भी उन्नति कर लें, मगर घर के प्रमुख कार्यों की जिम्मेदारी उन्हें ही संभालनी होगी. हालांकि नौकरों और आधुनिक तकनीकों की मदद से जिम्मेदारियों का बोझ कुछ हद तक हलका हो जाता है, मगर बच्चा होने के बाद इन जिम्मेदारियों का स्वरूप बदल जाता है. आधुनिक तकनीक और नौकरों के साथ मातापिता को खुद भी बच्चे की देखभाल में समय देना पड़ता है. इस स्थिति में भी बच्चे की जिम्मेदारी मां पर डाल दी जाती है और पिता खुद को आर्थिक मददगार बनने की बात कह कर बचा लेता है.’’

मगर सवाल यह उठता है कि इस से फायदा क्या है? देखा जाए तो घर के किसी सदस्य के नौकरी छोड़ने पर परिवार की आर्थिक स्थिति मजबूत होने के स्थान पर कमजोर ही होती है. वहीं जिम्मेदारियों का सही बंटवारा परिवार की आर्थिक जरूरतों में रुकावट भी पैदा नहीं होने देता और महिलाओं को इस सिंड्रोम का शिकार होने से भी बचा लेता है. मगर अब दूसरा सवाल यह उठता है कि जिम्मेदारियों का बंटवारा हो कैसे?

सास के साथ सही साझेदारी

मनोचिकित्सक मीनाक्षी कहती हैं, ‘‘आर्थिक मददगार तो महिलाएं भी बन सकती हैं. वर्तमान समय में ऐसा कोई क्षेत्र नहीं है, जहां महिलाओं ने पुरुषों के वर्चस्व को न तोड़ा हो.  मगर घरेलू काम में पतियों से सहायता लेना आज भी महिलाओं के लिए एक चुनौती बना हुआ है.  खासतौर पर उन घरों में जहां रिश्तेदारों का दखल ज्यादा होता है.’’

रिश्तेदारों की इस सूची में सब से पहले लड़के की मां का नाम आता है. घर के कामकाज में बेटे और बहू की हिस्सेदारी का वर्गीकरण भी यही मुहतरमा करती हैं, जिस में बच्चे के कामकाज से बेटे का कोई लेनादेना नहीं होता. बहू नौकरीपेशा है तब भी बच्चे की देखभाल की जिम्मेदारी उसी की है. भले ही बहू की घर पर गैरमौजूदगी में सास बच्चे की देखरेख कर भी लें, मगर इस बात को सुनहरे शब्दों में बहू पर जताने से भी वे पीछे नहीं हटतीं.

मीनाक्षी का मानना है कि इन स्थितियों में महिलाओं को थोड़ी सूझबूझ दिखानी चाहिए. सब का अपनाअपना स्वभाव होता है, मगर सास के साथ बहू की सही साझेदारी ऐसे मौकों पर बहुत काम आ सकती है. यह बात तो पक्की है कि रूढिवादी सोच वाली सास बेटे को भले ही घर के काम न करने दें, मगर बहू से सही तालमेल बैठा कर घर की कुछ जिम्मेदारियां वे खुद संभाल लेती हैं. यहां जरूरत है कि महिलाएं सास पर थोड़ा विश्वास करें. उन की दिल को चुभने वाली बातों को अनसुना कर दें. रिश्तों में थोड़ा तालमेल बैठा कर चलें ताकि घर और कार्यस्थल दोनों ही स्थानों पर अच्छी परफौर्मैंस दे सकें.

पार्टनर से बात करें

सास के साथ ही अपने पति को भी अपनी महत्त्वाकांक्षाओं के बारे में बताएं. दरअसल, भारतीय समाज की इस रूढिवादी मानसिकता के चलते ही कई औरतें स्वीकार कर लेती हैं कि सहूलत से यदि बच्चे की देखभाल और नौकरी के बीच संतुलन बैठाया जा सकता है, तो ठीक है नहीं तो मानसिक तौर पर वे खुद को नौकरी छोड़ने और बच्चे को अच्छी परवरिश देने के लिए तैयार कर लेती हैं.

इस बाबत डाक्टर कौस्तुबि कहती हैं,  ‘‘आजकल महिलाएं शादी से पूर्व अपने कैरियर को अधिक महत्त्व देती हैं. फिर अब शादी भी

देर से ही होती है. ऐसे में महिलाओं की रीप्रोडक्टिव लाइफ छोटी हो जाती है. उन्हें यह फैसला जल्दी लेना पड़ता है कि वे मां कब बनना चाहती हैं.  अब यदि यह कहा जाए कि कैरियर के लिए मां बनने की ख्वाहिश ही छोड़ दें, तो शायद यह सही नहीं होगा. लेकिन मां बनने के लिए नौकरी छोड़ दें, यह भी कोई हल नहीं है. इसलिए महिलाओं को अपने पार्टनर से पहले ही अपनी महत्त्वाकांक्षाओं का जिक्र कर लेना चाहिए और उस के हिसाब से भविष्य की प्लानिंग करनी चाहिए.’’

आज का दौर पढ़ेलिखों का है. पतिपत्नी इस बात को बखूबी समझते हैं कि महंगाई के इस जमाने में दोनों की कमाई से ही परिवार रूपी गाड़ी खींची जा सकती है. इसलिए आपस में समझौता कर लेना ही सही निर्णय है. इस समझौते में बहुत सारी बातों का जिक्र किया जा सकता है, जो महिलाओं को दोहरी जिम्मेदारी के बोझ और बेरोजगारी दोनों से बचा सकता है.

मनोचिकित्सक कौस्तुबि ऐसे ही कुछ समझौतों के बारे में बताती हैं:

– आज के वर्क कल्चर में शिफ्ट में काम करना चलन में है और यह गलत भी नहीं है.  नौकरीपेशा दंपती अपनी सहूलत के हिसाब से शिफ्ट का चुनाव कर सकते हैं और बारीबारी से अपनी जिम्मेदारियों को निभा सकते हैं.

– यदि कंपनी में वर्क फ्रौम होम की सुविधा है, तो कभीकभी पतिपत्नी इस सुविधा का फायदा भी उठा सकते हैं. इस से घर और कार्यालय दोनों का ही काम बाधित नहीं होता.

– कुछ कार्यक्षेत्रों में फ्रीलांसिंग काम भी किया जा सकता है और इस में भी अच्छी आमदनी की गुंजाइश होती है. पति या पत्नी में से कोई एक अपनी फुलटाइम नौकरी छोड़ कर फ्रीलांसिंग में भी हाथ आजमा सकता है.

दांपत्य जीवन में थोड़ी सूझबूझ से फैसले लिए जाएं, तो आपसी मनमुटाव डबल बर्डन सिंड्रोम से बचा जा सकता है.

ऐसे बनेगा बच्चा वैल बिहेव्ड

रीटा अपने 5 साल के बच्चे के साथ अपनी सहेली के घर गई. वहां पर बच्चे ने प्लेट में रखी सारी चीजें उठा कर अपनी जेब में रख लीं और फिर रीटा की सहेली की 4 साल की बेटी को धक्का दे दिया. रीटा के समझाने पर वह उस से भी ऊंची आवाज में बात करने लगा. बच्चे के इस व्यवहार से रीटा को बहुत शर्मिंदगी महसूस हुई.

जब आप अपने छोटे बच्चे को ले कर किसी के घर जाती हैं, तो वह वहां किस तरह का व्यवहार करेगा, यह समझ पाना मुश्किल होता है. कई बार वह घर में अच्छा व्यवहार करता है, लेकिन बाहर जाने पर अजीब सा व्यवहार करने लगता है. इस संबंध में वरिष्ठ मनोवैज्ञानिक डा. अतुल वर्मा का कहना है कि बच्चा जैसा भी व्यवहार करता है वह अपने परिवार से ही सीखता है. आप घर में जिस तरह से किसी से बात करती हैं बच्चा उसे ही फौलो करता है. कई बार वह ध्यान आकर्षित करने के लिए भी उलटीसीधी हरकतें करता है.

पेरैंटिंग का अर्थ अपने बच्चे की हर जायजनाजायज मांग को पूरा करना नहीं वरन अपनी सही बात को बच्चे के नजरिए का ध्यान रखते हुए उसे उसी तरीके से सिखाना है जैसे वह चाहता है. आप अपने बच्चे को अच्छीबुरी बातों की जानकारी तो देती हैं, लेकिन उसे अपने से छोटों और बड़ों को संयमित व्यवहार कैसे करना है जैसे बुनियादी बातों की सीख देना भूल जाती हैं, जिस की वजह से वह कब किस से कैसा व्यवहार करता है जैसी बातें नहीं सीख पाता.

कुछ छोटीछोटी बातों का ध्यान रख कर आप अपने बच्चे को संयमित व्यवहार करना सिखा सकती हैं. मसलन:

1. खुद को बदलें

अपने बच्चे को वैल बिहेव्ड बनाने के लिए आप को स्वयं को भी बदलना होगा. आप अपने परिवार के साथ जैसा व्यवहार करती हैं, आप का बच्चा भी वैसा ही व्यवहार करना सीखेगा. आप चाहती हैं कि आप का लाडला अपने बड़ों की इज्जत करे, उन से ऊंची आवाज में बात न करे, तो इस के लिए आप को खुद को परिवार की इज्जत करनी होगी. अपने सासससुर और परिवार के दूसरे सदस्यों के साथ मैत्रीपूर्ण और सम्मानपूर्ण व्यवहार करना होगा. यकीन मानिए, अगर आप अपने बच्चे से कहेंगी कि आप अपने बड़ों से अच्छी तरह बात करो या फिर झूठ न बोलो, तो वह नहीं करेगा. बच्चे को समझाने के लिए आप को खुद में बदलाव लाना होगा, क्योंकि बच्चे की समझ इतनी विकसित नहीं होती है कि वह आप के कहे को समझ कर उसे व्यवहार में लाए. आप अपने बच्चे के सामने किसी से झूठ बोल रही हैं और उस से यह अपेक्षा कर रही हैं कि वह झूठ न बोले तो ऐसा संभव नहीं है.

2. अपने बनाए नियम पर प्रतिबद्ध रहें

आप ने अपने बच्चे के लिए कुछ नियम बना रखे होंगे. मसलन, आप उसे सप्ताह में 2 बार चौकलेट देंगी या फिर वह दिन में 2 घंटों के लिए ही अपना मनपसंद कार्टून शो देख सकता है आदि. अगर आप चाहती हैं कि आप का  बच्चा अपने जीवन में नियमों का पालन करे, तो इस के लिए आप को भी अपने बनाए रूल्स को फौलो करना होगा. ऐसा नहीं है कि जब आप का मूड हो या फिर आप किसी काम में बिजी हों तो नियमों में ढील दे दें. जैसे कि आप घर या औफिस का जरूरी काम कर रही हैं और आप का बच्चा आप को डिस्टर्ब कर रहा है, तो आप ने उस समय भी उस के लिए टीवी चला दिया जो उस के टीवी देखने का समय नहीं है. इस तरह की बातों से बच्चा कन्फ्यूज होता है. अत: आप जो रूल्स बना रही हैं, उन पर अडिग रहें. अगर आप संयुक्त परिवार में रहती हैं, तो भी परिवार के सदस्यों से इस बाबत बात कर लें कि वे आप के बच्चे को नियमों का पालन करने में मदद करें न कि रूल्स तोड़ने में.

3. मारने पीटने से करें तोबा

आप की आदत अपने बच्चे को बिना बात के पीटने की है, तो अपनी इस आदत पर तुरंत विराम लगा दें, क्योंकि आप मारपीट कर बच्चे को कुछ सिखाने की बजाय उस से अपने संबंधों को ही खराब कर रही हैं. अगर आप को उस की किसी बात पर गुस्सा आ रहा है, तो उसे मारने के बजाय प्यार से समझाएं कि वह जो कर रहा है वह गलत है. इस के अलावा उसे डांटते समय गालीगलौज न करें. अगर आप उस से गालीगलौज करेंगी या फिर बिना बात के उसे पीटेंगी तो इन बातों से बच्चे के मन में विद्रोह की भावना पनपती है. छोटा हो या बड़ा हर किसी को इज्जत की जरूरत होती है. आप चाहती हैं कि आप का बच्चा आप की और परिवार के दूसरे सदस्यों की इज्जत करे, तो आप भी उसे पूरा सम्मान दें.

4. गलत मांगों को न करें पूरा

अपने बच्चे को प्यार करना अच्छी बात है, लेकिन इस का अर्थ यह नहीं है कि आप उस की जिद को भी पूरा करें. कभीकभार जब आप मार्केट जाती हैं या फिर कोई घर में आ जाता है तो उस समय बच्चा फालतू की जिद करने लगता है. वह बेकार में गुस्सा दिखाने लगता है. अगर आप उस की बात को पूरा करेंगी, तो उस में अपनी बात को पूरा कराने के लिए जिद करने की आदत विकसित होगी जोकि उस के संयमित विकास के लिए ठीक नहीं है. अत: उस की जिद को इग्नोर करें. 1-2 बार ऐसा करने से उसे समझ आ जाएगा कि जिद कर के सारी मांगों को पूरा नहीं कराया जा सकता है.

5. ढेर सारा प्यारदुलार और खूब सारी बातें

बच्चे की सही परवरिश के लिए यह बेहद जरूरी है कि आप उस से खूब सारी बातें करें. जब वह स्कूल से आता है, तो उस ने स्कूल में क्या किया, उसे स्कूल में कोई दिक्कत तो नहीं है या फिर उसे क्या अच्छा लगता है और क्या नहीं जैसी बातें करें. इस से आप के बच्चे में आप के साथ अपनी बातें शेयर करने की हिम्मत आएगी. बच्चा गलत व्यवहार सिर्फ आप का अटैंशन पाने के लिए करता है. इस से बचने के लिए जब भी वह कुछ अच्छा करता है उस की तारीफ करें. उसे खूब सारा प्यार करें और गले लगाएं. इस से बच्चे के मन में सुरक्षित होने का एहसास आएगा और वह अच्छा व्यवहार करना सीखेगा.

6. इन बातों का भी रखें ध्यान

– बच्चे को वैल बिहेव्ड बनाने के लिए यह बेहद जरूरी है कि आप उस के सम्मान का ध्यान रखें. अगर उस से कोई गलती हो गई है, तो उस के लिए उसे सब के सामने डांटने के बजाय अकेले में समझाने की कोशिश करें.

– आप जिस तरह का व्यवहार अपने बच्चे से चाहती हैं, उस के साथ वैसा ही व्यवहार करें. अगर यह कहा जाए कि बच्चा बहुत बड़ा कौफी कैट होता है, तो गलत नहीं होगा. अगर आप चाहती हैं कि आप के बच्चे में पढ़ने की आदत विकसित हो, तो इस के लिए आप को खुद भी पढ़ना होगा.

– अपने बच्चे में किसी काम के लिए आभार जताने और गलती को महसूस करने के लिए उसे थैंक्यू और सौरी जैसे छोटेछोटे शब्दों का महत्त्व बताएं. इस के लिए अगर उस ने आप का छोटा सा भी काम किया है, तो आप उसे थैंक्यू कहना न भूलें और गलती होने पर उसे सौरी बोलने से न हिचकें. आप के द्वारा किए गए ये छोटेछोटे प्रयास आप के लाड़ले को वैल बिहेव्ड बनाने में मददगार साबित होंगे.

सैक्स ऐजुकेशन

बच्चे के सही विकास के लिए यह बेहद जरूरी है कि आप के बच्चे के साथ ऐसा कुछ न हो, जिस की वजह से उस का बचपन अनायास खत्म हो जाए. हर जगह होने वाले चाइल्ड ऐब्यूज को देखते हुए यह बेहद जरूरी है कि आप अपने बच्चे को समयसमय पर सैक्स संबंधित जानकारी देती रहें. उसे यह बताएं कि अगर कोई उस के प्राइवेट पार्ट को छूने की कोशिश करता हो, तो वह इस बारे में आप से बताए. बच्चा आप से अपने मन की बातें बांट सके, इस के लिए उसे सहज बनाना जरूरी है ताकि कोई उस के साथ किसी तरह का दुराचार न कर सके.

साथ खाना बनाने के 4 फायदे

लंबे समय तक साथ रहने के बाद चाहे पतिपत्नी हों या लिव इन पार्टनर, दोनों एकदूसरे के प्रति लापरवाह होने लगते हैं. लापरवाही धीरेधीरे आदत में बदल जाती है और रिश्ते में दरार का कारण बनती है. ऐसे में समझदारी से काम न लिया जाए तो रिश्ते की नींव कमजोर होने लगती है. इसलिए रिश्ता चाहे नया हो या पुराना, समयसमय पर एकदूसरे को स्पैशल फील कराते रहना जरूरी है. इस से आपसी प्यार और भरोसा बढ़ता है .

आजकल की भागदौड़ वाली जिंदगी में अधिकतर घरों में कपल्स औफिस जाते हैं या फिर वर्क फ्रौम होम कर रहे हैं. कई बार दोनों के औफिस टाइम भी अलगअलग होते हैं, जिस के कारण उन के पास समय का अभाव बना रहता है. वे एकदूसरे के लिए भी वक्त नहीं निकल पाते हैं. ऐसे में एकदूसरे के लिए वक्त की कमी के चलते धीरेधीरे कपल्स के बीच दूरी आने लगती है, जो आगे चल कर उन के रिश्ते में दरार पैदा कर सकती है.

याद रखें किसी भी रिश्ते को सफल और मजबूत बनाए रखने के लिए व्यक्ति को उचित समय देना पड़ता है. यदि आप बहुत व्यस्त रहते हैं तो अपने पार्टनर के साथ कुछ पल क्वालिटी टाइम जरूर बिताएं. वर्क फ्रौम होम  में भी आप दोनों छुट्टी ले कर एकदूसरे के साथ एक यादगार समय बिता सकते हैं. ऐसा करने से आप न सिर्फ उन के मन में चल रही नकारात्मकता बल्कि उन के अकेलेपन को भी दूर कर पाएंगे.

भरें दांपत्य में मिठास

दांपत्य में मिठास बनाए रखने के लिए कुछ स्पैशल करें. एकदूसरे को स्पैशल फील कराने के लिए कहीं बाहर जाने के बजाय घर पर ही पार्टनर संग हैल्दी और टेस्टी डिश बनाएं. ऐसी डिश का चुनाव करें जिसे आप दोनों मिल कर बना सकें ताकि आप एकदूसरे की मदद कर सकें एवं एकदूसरे के साथ ज्यादा समय और यादगार समय बिता सकें. साथ बैठ कर खाने का मजा ले सकते हैं. भले ही आप के घर खाना बनाने के लिए प्रोफैशनल कुक हो, फिर भी किसी छुट्टी के दिन पतिपत्नी दोनों मिल कर खाना बनाएं और एकसाथ खाएं.

हो सकता है आप के हस्बैंड को खाना बनाना नहीं आता हो. ऐसे में आप उन की मदद सब्जी काटने, खाने की टेबल सजाने, खाना बनाते समय जो चीजें आप को चाहिए उन की मदद ले सकते हैं और साथसाथ बातें कर सकते हैं तथा उन्हें खाना बनाने के गुर भी सिखा सकती हैं.

पार्टनर संग साथ में कुछ भी बनाने से पहले एकदूसरे से डिस्कस जरूर कर लें और एकदूसरे से सु?ाव मांगने में संकोच न करें. इस तरह आप एकदूसरे के साथ क्वालिटी टाइम बिता सकते हैं और अपनी छुट्टी का भरपूर मजा ले सकते हैं अगर पत्नी ने पति की पसंदीदा डिश बनाई है तो पति उन की पसंद की कोई चीज बनाएं. इस से दोनों स्पैशल फील करेंगे और एकदूसरे के लिए प्यार और भरोसा बढ़ेगा.

अपने रिश्ते को मजबूत बनाए रखने के लिए मिल कर खाना बनाने के बाद या दौरान इन बातों का अवश्य ध्यान रखें:

1. थैंक्यू बोलें

किचन में उन के द्वारा की गई हर मदद के लिए उन्हें थैंक्यू कहना न भूलें आप के ऐसा करने से उन्हें काफी अच्छा फील होगा और आप की बौंडिंग भी बेहतर बनेगी.

2. कौंप्लिमैंट जरूर दें

पार्टनर को दिया आप का एक कौंप्लिमैंट बहुत बड़ा कमाल कर सकता है. आप के ऐसा करने से आप के साथी का कौन्फिडैंस बढ़ जाता है जिस से आपसी प्यार बढ़ता है.

3. तारीफ करना न भूलें

तारीफ के दो बोल दुनिया के हर रिश्ते को मजबूती देते हैं. इसलिए पार्टनर की अच्छी आदतों, अच्छे काम, केयरिंग नेचर और सकारात्मक नजरिए की हमेशा तारीफ करें. जब भी पार्टनर कुछ नया और क्रिएटिव करें उन की  तारीफ करना न भूलें. आप के द्वारा तारीफ का हर शब्द उन्हें अलग ही खुशी देगा. इस से आप एकदूसरे के और करीब आ जाएंगे और आप के रिश्ते को मजबूती मिलेगी.

4. बदलें अपने बोलने के लहजे को

यदि आप को पार्टनर के संग किसी काम से कोई परेशानी हो रही है या कोई बात पसंद न हो तब तो उसे उस लहजे में कहें कि बुरा न लगे. जैसे पार्टनर का कोई काम पसंद न आए तो यह न कहें कि यह काम आप ने अच्छे से नहीं किया या आप को नहीं आता बल्कि यों कहें कि आप ने मेरी बहुत मदद कर दी इस के लिए थैंक्यू. उन्हें सिखाएं कि देखिए ऐसे करते हैं ताकि अगली बार वे आप के हिसाब से काम कर सकें.

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तो तकरार से नहीं पड़ेगी रिश्ते में दरार

पतिपत्नी एकदूसरे के जीवनसाथी होने के साथसाथ एकदूसरे के दोस्त भी होते हैं. लेकिन भले ही दोनों एकदूसरे के साथ एक ही छत के नीचे रहते हैं, फिर भी बहुत सी चीजों में उन के विचार नहीं मिलते हैं. कभी वे नेचर में अलग होते हैं, तो कभी उन का लाइफस्टाइल एकदूसरे से मेल नहीं खाता है, जिस वजह से उन के बीच नोकझंक होनी शुरू हो जाती है और कई बार तो छोटीछोटी बातों पर यह झगड़ा इतना अधिक बढ़ जाता है कि रिश्ता टूटने तक की नौबत आ जाती है.

ऐसे में दोनों को रिश्ते में मधुरता बनाए रखने के लिए एकदूसरे की हैबिट्स को इग्नोर करने या फिर उन से इरिटेट होने के बजाय उन्हें आपसी समझ व प्यार से अपनाने की जरूरत

होती है ताकि रिश्ते में प्यार बरकरार रह सके वरना यह तकरार कब रिश्ते में दरार का कारण बन जाएगी, पता नहीं चलेगा. आइए, जानते हैं कैसे करें एडजस्टमैंट:

बैड पर टौवेल छोड़ने की आदत

वैसे तो यह हैबिट किसी की भी अच्छी नहीं होती है, लेकिन अब कर भी क्या सकते हैं. अगर आप का पार्टनर नहाने के बाद गीला टौवेल बैड पर छोड़ दे तो बजाय झगड़ने के आप उन्हें प्यार से समझएं कि माई स्वीटहार्ट, अगर तुम रोज गीला टौवेल बैड पर छोड़ दोगे तो इस से टौवेल में नमी बरकरार रहने से तुम्हें बैक्टीरिया के इन्फैक्शन का खतरा हो सकता है साथ ही इस से बैड पर भी नमी रहने से हम भी बीमार हो सकते हैं.

इसलिए अपनी इस आदत को अपनी हैल्थ के लिए बदल लो. हो सकता है कि आप का यों प्यार से समझना काम कर जाए क्योंकि कई बार झगड़े की जगह प्यार में वह बात होती है, जो अपनों की बुरी से बुरी आदत को बदल देती है. अगर फिर भी पार्टनर न सुधरे तो आप ही बैड से टौवेल को उठा कर सही जगह रख दें क्योंकि यही है अच्छे रिश्ते की पहचान.

अगर आप को पसंद हों स्टाइलिश कपड़े

आज का जमाना स्टाइलिश है. ऐसे में हरकोई खुद को स्टाइलिश दिखाना चाहता है. लेकिन जरूरी नहीं कि आप का पार्टनर आप को स्टाइलिश कपड़ों में देखना पसंद करे. उसे आप सिंपल लुक में ज्यादा पसंद आती हों या फिर ट्रैडिशनल आउटफिट्स में. ऐसे में आप अगर रोज उन से स्टाइलिश कपड़े पहनने को ले कर बहस करेंगी तो आपस में मनमुटाव पैदा होगा.

इस से बेहतर है कि आप उन की पसंद के आउटफिट्स तो पहनें ही, साथ ही आप उन्हें प्यार से, अपने रोमांस से अट्रैक्ट करते हुए उसे समझने की कोशिश करें कि स्टाइलिश कपड़े पहनने में कोई बुराई नहीं है, बल्कि आज हरकोई जमाने के साथ चल कर खुद को अपडेटेड रखना चाहता है. अगर पार्टनर की समझ में आ जाए तो अच्छा वरना आप उस के पीछे स्टाइलिश कपड़े पहन कर अपने इस शौक को पूरा कर सकती हैं.

लेकिन यह भी जरूरी है कि आप उसे धीरेधीरे इस तरह समझने की कोशिश करें कि उसे अपनी गलती का एहसास भी हो जाए और आपस में तकरार भी न हो.

जब हो पति को इंग्लिश मूवीज का शौक

अगर दोनों पार्टनर की हैबिट्स मैच करें तो इस से अच्छा हो ही क्या सकता है. लेकिन अगर न करें तो दिक्कत तो काफी होती ही है, लेकिन फिर भी जरूरी होता है कि एकदूसरे की हैबिट्स को खुशीखुशी अपनाने की. जैसे प्रवीण को इंग्लिश मूवीज देखने का बहुत शौक था, लेकिन उस की पत्नी दीप्ति को सीरियल्स व हिंदी मूवीज पसंद थीं, जिस कारण दोनों कभी साथ बैठ कर टीवी नहीं देखते थे और साथ ही इस बात पर दोनों में कई बार कहासुनी भी हो जाती थी.

ऐसे में प्रवीण ने तो कभी अपनी पत्नी की पसंद की मूवी उस के साथ बैठ कर देखने का मन नहीं बनाया, लेकिन दीप्ति ने सोचा कि ऐसा कब तक चल सकता है, इसलिए मु?ो भी खुद में इंग्लिश मूवीज के प्रति इंटरैस्ट पैदा करना होगा. धीरेधीरे उस ने प्रवीण के साथ इंग्लिश मूवीज देखना शुरू किया और फिर धीरेधीरे ऐंजौय करने लगी. इस से मूवी के मजे के साथसाथ दोनों साथ में एकदूसरे की कंपनी को भी ऐंजौय करने लगे. अगर इसी तरह सब पार्टनर एकदूसरे को समझ कर चलें तो रिश्ते में मधुरता आने के साथसाथ आपसी समझ भी विकसित होती है.

न हो आउटिंग पर जाने का शौक

हो सकता है कि आप के पार्टनर को अपनी छुट्टी को घर पर ही स्पैंड करने की आदत हो और आप उस के बिलकुल उलट हों यानी आप को आउटिंग पर जाना बहुत अच्छा लगता हो. ऐसे में आप अपने पार्टनर को कहीं घूमने के लिए मनाएं कि इस से मूड व माइंड दोनों फ्रैश होने के साथसाथ एक ही तरह की दिनचर्या से चेंज भी मिलता है.

ऐसे में आप खुद कहीं आउटिंग पर जाने के लिए बुकिंग करवाएं, पूरी तैयारी करें. हो सकता है कि आप की यह कोशिश आप के पार्टनर में घूमने के प्रति थोड़ाबहुत शौक पैदा कर दे. लेकिन कोशिश व मनाने की मेहनत तो आप को ही करनी होगी.

अगर फिर भी आप को लगे कि मेहनत करने का कोई फायदा नहीं है तो आप खुद ही अकेले या फिर फ्रैंड्स के साथ आउटिंग के लिए निकल जाएं क्योंकि पार्टनर पर जोरजबरदस्ती करने का कोई फायदा नहीं है. इस से आप जबरदस्ती पार्टनर को आउटिंग पर तो ले जाएंगी, लेकिन यह आउटिंग मजा नहीं बल्कि सजा जैसी लगेगी.

बातबात पर रिएक्ट करने की आदत

कुछ पार्टनर्स की यह आदत होती है कि वे बिना किसी बात के गुस्सा करने लगते हैं या फिर छोटीछोटी बात पर रिएक्ट करने लगते हैं, जिस से आपस में तनाव बढ़ने के साथसाथ इस का प्रभाव धीरेधीरे रिश्ते पर पड़ने के कारण रिश्ता कमजोर पड़ने लगता है. ऐसे में रिश्ते की नींव को मजबूत बनाने के लिए जरूरी है कि दोनों पतिपत्नी में से किसी एक को पार्टनर के रिएक्ट करने पर खुद को चुप रखने की आदत डालनी होगी वरना ऐसे वक्त में बेवजह की बहस रिश्ते को वीक बनाने का काम करेगी.

लेकिन इस का मतलब यह नहीं कि आप हमेशा ही चुप रहें बल्कि जब पार्टनर शांत हो जाए तो उसे समझएं कि आप का इस तरह से रिएक्ट करना आप की पर्सनैलिटी को खराब करने के साथसाथ हम दोनों को एकदूसरे से दूर ले जाने का काम करेगा, इसलिए खुद को शांत रखना सीखें. हो सकता है कि आप की इन बातों का असर पार्टनर पर हो जाए वरना आप की चुप्पी ही इस प्रौब्लम का समाधान है.

जब बातबात पर टोके

टोकाटोकी किसी को भी पसंद नहीं होती है. लेकिन अगर आप की पार्टनर आप को हर छोटीछोटी बात पर टोके कि तुम ने यह काम सही नहीं किया, तुम ऐसे कैसे कर सकते हो, तुम्हें यह नहीं आता, तुम ने किचन में काम क्या किया कि उसे गंदा कर के मेरे लिए ही काम को बढ़ा दिया. ऐसे में अगर आप उस की हर बात पर प्रतिक्रिया देंगी तो हर बार बात लड़ाई में बदल जाएगी. इस से अच्छा है कि आप उसे प्यार से समझएं कि जरूरी नहीं हर बात पर टोक कर ही समझया जाएं बल्कि प्यार से भी चीजों को सुलझया जा सकता है और हर बार टोकना किसी को भी बुरा लग सकता है और तुम अपनी इस टोकने की आदत को धीरेधीरे सुधारने की कोशिश करो.

इस से हो सकता है कि वह आप की इमोशनल बातों से खुद को सच में सुधारने की कोशिश करे. अगर न सुधारे तो आप थोड़े टाइम के लिए उस से कम बात करना शुरू कर दें क्योंकि कई बार गलती का एहसास करवाने के लिए रिश्ते में थोड़ी दूरी बनाना भी जरूरी हो जाता है.

घर का खाना हो पसंद

हर इंसान की अपनी पसंद होती है. किसी को घर में रहना पसंद होता है, तो किसी को आउटिंग करना, किसी को घर का खाना पसंद होता है, तो किसी को बाहर का. ऐसे में हो सकता है कि आप के पार्टनर को घर का खाना पसंद हो और आप को बाहर का, तो इस बात पर आप दोनों आपस में लड़ने के बजाय सहमति बनाएं कि हफ्ते में 6 दिन घर का खाना बनेगा तो एक दिन हम लोग बाहर जा कर खाना खाएंगे. इस से दोनों की बात भी रह जाएगी और इस वजह से बेवजह की लड़ाई से भी बचा जा सकता है.

पार्टनर को हो दाड़ी रखने का शौक

हर कोई चाहता है कि उस का पार्टनर हैंडसम लगे. लेकिन हर लड़के की अपनी आदत होती है कि वह खुद को कैसा रखना पसंद करता है. किसी को सिंपल कपड़ों में रहना पसंद होता है, तो किसी को काफी बनठन कर. किसी को शेव कर के अच्छा लगता है तो किसी को कईकई दिनों तक बिना शेव करे. ऐसे में अगर आप पार्टनर को रोज शेव बनाने के लिए टोकती रहेंगी तो खुद भी परेशान रहेंगी और पार्टनर भी आप से चिढ़ने लगेगा. इस से अच्छा है कि उस की इस आदत को आप खुशीखुशी स्वीकार करें. लेकिन आप खुद को टिपटौप रखना न छोड़ें.

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वह क्यों बनी बेवफा

पार्टनर द्वारा बेवफाई किए जाने का दर्द काफी गहरा होता है. बेवफाई खुशियों पर ग्रहण लगा सकती है, आप को अपने अजीजों से दूर कर सकती है. मगर बेवफाई की जानकारी मिलते ही अपना होशोहवाश खो बैठना ठीक नहीं.

मुंबई के नालासोपारा की एक सच्ची घटना पर जरा गौर करें:

एक दिन एक शौंपिंग सैंटर की दूसरी मंजिल पर रहने वाले होटल सुपरवाइजर की लाश मिलती है. उस लाश के साथ ही कमरे में उस के 2 नन्हे बच्चों की लाशें भी थीं, साथ ही कमरे की दीवार पर मौत की वजह भी लिखी हुई थी. सुपरवाइजर ने अपनी व अपने दोनों बच्चों की हत्या के लिए बेवफाई को जिम्मेदार ठहराया था.

जरा उस व्यक्ति की मानसिक पीड़ा की कल्पना कीजिए जिस ने सुसाइड करने से पहले चैन की नींद सो रहे अपने 2 मासूमों का गला दबाया.

दीवार पर लिखी मौत की वजह

श्रीधर ने तकिए से बच्चों की हत्या कर खुद सुसाइड करने से पहले कमरे की दीवार पर पत्नी की बेवफाई का किस्सा लिखा. दीवार पर श्रीधर ने लिखा, ‘‘मेरी औरत साथ देती तो मैं

ऐसा कदम नहीं उठाता. मेरी औरत बच्चों को छोड़ कर किसी के साथ भाग गई, इसलिए मैं ने यह कदम उठाया.’’

जानकारी के अनुसार इस दर्दनाक घटना की पटकथा लिखने की शुरुआत वैलेंटाइन डे के दिन हुई थी. 42 साल के श्रीधर की पत्नी सोनाली अपने 2 मासूम बच्चों के साथ 13 फरवरी को पड़ोस में रहने वाले तेजस के साथ भाग गई थी. हालांकि वह 16 फरवरी को घर लौट आई. उस के बाद पतिपत्नी के बीच काफी झगड़ा हुआ. सोनाली ने श्रीधर से कहा कि वह तेजस से प्यार करती है और उसी के साथ रहना चाहती है.

झगड़े के बाद श्रीधर ने सोनाली से बच्चों को छोड़ कर चले जाने को कहा. इस के बाद सोनाली घर के पास ही तेजस के साथ रहने लगी.

इस बीच श्रीधर बहुत दुखी और बैचैन

रहने लगा. पुलिस के मुताबिक 18 फरवरी को सोनाली और तेजस कहीं चले गए जिस के बाद परेशान श्रीधर ने शाम के समय इस वारदात को अंजाम दिया.

कैसे करें मैनेज ऐसी सिचुएशन

बेवफाई का सामना किसी को भी करना पड़ सकता है. मगर इस सिचुएशन में आप का रिएक्शन बहुत माने रखता है. आप को यह समझना होगा कि इंसान बेवफाई यों ही नहीं करता. इस के पीछे कोई न कोई वजह होती है, इसलिए पार्टनर द्वारा बेवफाई किए जाने का पता चलने पर एकदम से आपा खो देना, चीखनाचिल्लाना, उस से लड़नाझगड़ना, अपशब्द कहना या एकदम कोई बड़ा फैसला ले लेना उचित नहीं.

मगर साथ ही ऐसी परिस्थिति में खुद परेशान होते रहना या चुपचाप बेवफाई देखते रहना भी व्यावहारिक नहीं है. इस स्थिति में जरूरी है कि आप पार्टनर से इस मसले पर शांति से बात करें. उसे अपना पक्ष रखने दें और यदि वह झठ बोले कि ऐसा कुछ नहीं तो सुबूत पेश करें. बिना सुबूत आप अपनी बात मजबूती से नहीं कह पाएंगे.

बेहतर होगा कि पहले मन को शांत करें और सोचें कि बहुत बड़ी बात नहीं हुई है. ऐसा बहुतों के साथ होता रहता है. यह एक सामान्य घटना है और फिर से सब ठीक भी हो सकता है. यह आप के ही किसी ऐक्शन या व्यवहार में मौजूद किसी कमी का नतीजा है. इस तरह की सोच दिमाग में आते ही सामने वाले पर आप का गुस्सा कम हो जाएगा और आप वजह की तलाश करने लगेंगे. एक बार वजह मिल जाए तो फिर आप उसे दूर भी कर सकते हैं.

याद रखें

‘‘कुछ तो मजबूरियां रही होंगी यों ही कोई बेवफा नहीं होता…’’

बेवफाई के कारण

भावनात्मक दूरी: अकसर पाया गया है कि आमतौर पर महिलाएं तभी धोखा देती हैं जब उन्हें पति से भावनात्मक रूप से दूरी का एहसास होता है. एक आदमी के लिए शारीरिक सुख ज्यादा महत्त्वपूर्ण है पर पत्नी दिल से करीब रहना चाहती है. पत्नी जब खुद को पति से इमोशनली कनैक्टेड महसूस नहीं करती तो वह उसे धोखा दे सकती है.

पति का पूरा अटैंशन न मिलने पर

पति द्वारा इग्नोर किए जाने पर पत्नी का गुस्सा इस रूप में जाहिर हो सकता है. वह पति का पूरा अटैंशन चाहती है पर अकसर काम की भागदौड़ या किसी और के साथ कनैक्टेड होने के कारण पति पत्नी पर पूरा ध्यान नहीं दे पाती. कुछ समय तक तो पत्नी सबकुछ सह लेती है, मगर जब जीवन का यही ढर्रा बन जाता है तो वह विरोध स्वरूप घर के बाहर प्यार ढूंढ़ना शुरू कर देती है.

सैक्सुअली खुश न रहने पर

रिश्तों में दरार आने और बेवफाई की ओर कदम बढ़ाने की एक वजह सैक्स भी है. अगर कोई महिला शादी के बाद अपनी सैक्सुअल लाइफ से खुश नहीं है तो वह अपनी इच्छा के हिसाब से अपने पार्टनर की तलाश कर सकती है. कई बार पति द्वारा बिना प्यार या भावना के जबरन शारीरिक संबंध बनाया जाना भी उसे गवारा नहीं होता.

जब पत्नी को पति के ऊपर हो शक

अगर पत्नी को लगे कि उस के पति का कहीं चक्कर चल रहा है तो यह बात पत्नी के लिए सब से ज्यादा पीड़ादायक होती है. वह हर दुख सह सकती है पर किसी और औरत को पति की जिंदगी में स्वीकार नहीं कर सकती. ऐसे में वह जैसे को तैसा की तर्ज पर अपने लिए भी किसी को तलाश कर सकती है. इस तरह बदला लेने और पति द्वारा उस के भरोसे को तोड़े जाने के विरोध में वह पति को धोखा दे सकती है.

अपमानित करने वाला पति

जब पति अपनी पत्नी की इज्जत नहीं करता, उस की इच्छाओं का खयाल नहीं रखता और मारपीट करता है तो ऐसे में कई बार पत्नी पति के अलावा किसी और पुरुष की तरफ झकने लगती है. ऐसे पुरुष की तरफ जो उसे सम्मान दे और उस की भावनाओं का खयाल रखे.

बेवफाई पर माफ नहीं करते पुरुष

बेवफाई करने का हक सिर्फ मर्दों के हाथ में रहे यह मुमकिन नहीं है. आज बेवफाई के खेल में कई बार महिलाएं मर्दों से आगे निकल जाती हैं. बहुत सी शादीशुदा महिलाओं के ऐक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर होते हैं.

वैसे रिलेशनशिप में महिलाओं की तुलना में पुरुषों द्वारा पार्टनर को धोखा देने की आशंका अधिक होती है, मगर जब बात आती है माफ करने की तो ज्यादातर पुरुष ऐसा नहीं कर पाते. हाल ही में हुई एक रिसर्च में यह बात सामने आई है कि जब बात बेवफाई पर पार्टनर को माफ करने की आती है तो पुरुष ऐसा नहीं कर पाते और तुरंत तलाक ले लेते हैं या कोई और बड़ा खतरनाक कदम उठा लेते हैं.

पार्टनर की बेवफाई के बावजूद पुरुषों की तुलना में महिलाएं अपनी टूटी शादी को बचाने के लिए ज्यादा कोशिशें करती हैं, जबकि पुरुषों में पत्नी की बेवफाई को सहन करने की क्षमता बेहद कम होती है.

कैसे समझें पत्नी की बेवफाई

पत्नी के मोबाइल पर बारबार कौल या मैसेज का आना, पत्नी द्वारा कुछ अलग अंदाज या धीमेधीमे बात करना जैसी बातें ऐक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर की तरफ इशारा करती हैं.

यदि पत्नी अचानक अपने कपड़ों या लुक पर ज्यादा ध्यान देने लगे या अकसर रोमांटिक गाने गाती दिखे तो सम?िए कि उसे कोई अच्छा लगने लगा है.

यदि वह अपनी किसी खास सहेली के साथ पहले की अपेक्षाज़्ज्यादा समय बिताने लगी है और फोन पर ही लंबे समय तक उस से बात करती रहती है तो संभव है कि या तो वह उस सहेली से नए पार्टनर के बारे में सारी बातें शेयर करती है या फिर सहेली के नाम पर पार्टनर से ही मिलने जाती है.

आप के द्वारा कुछ सवाल किए जाने पर वह एकदम से सचेत हो जाए या ज्यादा सफाई देने लगे तो जरूर कुछ गड़बड़ है.

यदि पत्नी शाम को कहीं से आ कर सीधे नहाने चली जाए तो समझ लें कुछ गड़बड़ है.

पत्नी के नजदीक आते ही यदि आप को किसी दूसरे पुरुष जैसी महक महसूस हो और जब आप कोई सवाल पूछें जैसेकि अब तक कहां थी या आज देर क्यों हो गई तो यदि पत्नी इन सवालों के जवाब देते समय आंखें चुराने लगे तो यह साफ है कि वह आप को धोखा दे रही है.

रिश्तों को दोबारा कैसे सुधारें

याद रखें गलती किसी से भी हो सकती है. उस गलती को भुला कर आगे बढ़ना ही जिंदगी है. इसलिए अपनी पत्नी को बातें सुनाते रहने या हमेशा के लिए कड़वाहट बनाए रखने के बजाय सबकुछ भूल कर फिर से नए विश्वास के साथ जिंदगी की शुरुआत करें.

– अपने ईगो को एक तरफ रख दें और फिर रिश्ते को बचाने की कोशिश करें. याद रखें कि ताली एक हाथ से नहीं बजती. कहीं न कहीं गलती दोनों से हुई है. इसलिए मिल कर ही स्थिति सुधारनी होगी.

– सब से पहले तो खुद को ही परखें. कहीं आप की तरफ से ही तो गलती नहीं हुई है? यदि आप से रिश्ता निभाने में कोई चूक हुई है तो पहले उसे सुधारने की कोशिश करें.

– अगर आप को जीवनसाथी की बेवफाई के बारे में पता चल गया है तो तुरंत निर्णय लेने के बजाय शांत मन और नौर्मल टोन में पहले अपने साथी से अकेले में इस बारे में बात करें और कोई समाधान निकालने की कोशिश करें.

– अगर पत्नी को अपनी गलती का एहसास हो गया है और वह सच्चे दिल से आप से माफी मांग कर सबकुछ सुधारना चाहती हो तो उसे एक मौका जरूर दें. कई बार परिस्थितिवश इंसान कुछ समय के लिए गलत हो सकता है, लेकिन इस का यह मतलब नहीं है कि उसे गलती सुधारने का मौका ही न मिले. अपना दिल बड़ा रखें और सबकुछ भूल कर फिर से पहले की तरह प्यार से जीने का प्रयास करें.

– कई कपल्स के बीच बेवफाई की बड़ी वजह एकदूसरे की भावनाओं को न समझना और एकदूसरे को अधिक समय नहीं दे पाना होती है. इस बात को समझ कर सुधार करना जरूरी होता है.

– याद रखें अगर रिश्तों में कोई कमी लंबे समय तक बनी रहे और यह कमी किसी और से पूरी होने लगे तो उस व्यक्ति की तरफ झकाव होना स्वाभाविक है. इसलिए बेवफाई करने पर भी पत्नी को नीचा दिखाने के बजाय अपने रिश्ते की कमियों को दूर करने का प्रयास करें.

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कम जगह में कैसे बढ़ाएं प्यार

परिवार एक एकल इकाई है, जहां पेरैंट्स और बच्चे एकसाथ रहते हैं. इन्हें प्रेम, करुणा, आनंद और शांति का भाव एकसूत्र में बांधता है. यही उन्हें जुड़ाव का एहसास प्रदान करता है. उन्हें मूल्यों की जानकारी बचपन से ही दी जाती है, जिस का पालन उन्हें ताउम्र करना पड़ता है. जो बच्चे संयुक्त परिवार के स्वस्थ और समरसतापूर्ण रिश्ते की अहमियत समझते हैं, वे काफी हद तक एकसाथ रहने में कामयाब हो जाते हैं.

साथ रहने के फायदे

बच्चों के साथ जुड़ाव और बेहतरीन समय बिताने से हंसीठिठोली, लाड़प्यार और मनोरंजक गतिविधियों की संभावना काफी बढ़ जाती है. इस से न सिर्फ सुहानी यादें जन्म लेती हैं बल्कि एक स्वस्थ पारिवारिक विरासत का निर्माण भी होता है.

इस का मतलब यह नहीं है कि हमेशा ही सबकुछ ठीक रहता है. एक से अधिक बच्चों वाले घर में भाईबहनों का प्यार और उन की प्रतिद्वंद्विता स्वाभाविक है. कई बार स्थितियां मातापिता को उलझन में डाल देती हैं और वे अपने स्तर पर स्थिति को नियंत्रित करने का प्रयास करते हैं तथा घर में शांतिपूर्ण स्थिति का माहौल बनाते हैं.  कम जगह में आपसी प्यार बढ़ाने के खास टिप्स बता रही हैं शैमफोर्ड फ्यूचरिस्टिक स्कूल की फाउंडर डायरैक्टर मीनल अरोड़ा :

व्यक्तिगत स्वतंत्रता की व्यवस्था : प्रत्येक बच्चे के लिए एक कमरे में व्यक्तिगत आजादी का प्रबंध करने से उन में व्यक्तिगत जुड़ाव की भावना का संचार होता है. प्रत्येक बच्चे के सामान यानी खिलौनों को उस के नाम से अलग रखें और उस की अनुमति के बिना कोई छू न सके. बच्चों में स्वामित्व की भावना परिवार से जुड़ने के लिए प्रेरित करती है जिस से अनेक सकारात्मक परिवर्तन होते हैं. कमरे को शेयर करने के विचार को दोनों के बीच आकर्षक बनाएं.

नकारात्मक स्थितियों से बचाएं बच्चों को : भाईबहनों में दृष्टिकोण के अंतर के कारण आपस में झगड़े होते हैं. इस के कारण वे कुंठा को टालने में कठिनाई महसूस करते हैं और किसी भी स्थिति में नियंत्रण स्थापित करने के लिए झगड़ते रहते हैं, आप अपने बच्चों को ऐसे समय इस स्थिति से दूर रहने के लिए गाइड करें.

हमें अपने बच्चों को झगड़े की स्थिति को पहचानने में सहायता करनी चाहिए और इसे शुरू होने के पहले ही समाप्त करने के तरीके बताने चाहिए.  व्यक्तिगत सम्मान की शिक्षा दें : प्रत्येक व्यक्ति का अपना खुद का शारीरिक और भावनात्मक स्थान होता है, जिस की एक सीमा होती है, उस का सभी द्वारा सम्मान किया जाना चाहिए. बच्चों को समर्थन दे कर उन की सीमाओं को मजबूत करें.

उन्हें दूसरे बच्चों की दिनचर्या और जीवनशैली का सम्मान करने की शिक्षा भी दें. यदि दोनों भाईबहन पहले से निर्धारित सीमाओं से संतुष्ट हैं तो उन के बीच पारस्परिक सौहार्द बना  रहता है.

क्षतिपूर्ति सुनिश्चित करें : कभी ऐसा भी समय आता है, जब एक बच्चा दूसरे बच्चे की किसी चीज को नुकसान पहुंचा देता है या उस से जबरन ले लेता है. ऐसे में पेरैंट्स को चाहिए कि जिस बच्चे की चीज ली गई है उस बच्चे की भावनाओं का खयाल कर उस के लिए नई वस्तु का प्रबंध करें और गलत काम करने वाले बच्चे को उस की गलती का एहसास करवाएं.

इस से परिवार में अनुशासन और ईमानदारी सुनिश्चित होगी. इस से भाईबहनों को भी यह एहसास होता है कि  पेरैंट्स उन का खयाल रखते हैं और घर में न्याय की महत्ता बरकरार है.  चरित्र निर्माण में सहयोग : एकदूसरे के नजदीक रहने से दूसरे के आचारव्यवहार पर निगरानी बनी रहती है. किसी की अवांछनीय गतिविधि पर अंकुश लगा रहता है. यानी कि बच्चा चरित्रवान बना रहता है. किसी समस्या के समय दूसरे उस का साथ देते हैं. दूसरी और, सामूहिक दबाव भी पड़ता है और बच्चा गलत कार्य नहीं कर पाता. अत: मौरल विकास अच्छा होता है.

बच्चे की जागरूकता की प्रशंसा करें : यदि कोई बच्चा समस्या के समाधान की पहल करता है और नकारात्मक स्थिति से बाहर निकलने की कोशिश करता है तो उस की प्रशंसा करें.

समस्या के समाधान के सकारात्मक नजरिए को सम्मान प्रदान करें, क्योंकि इस से उस का बेहतर विकास होगा और वह परिपक्वता की दिशा में आगे बढ़ेगा. प्रोत्साहन मिलने  से हम अपने लक्ष्य की दिशा में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित होते हैं.  इस से बच्चों को अपनी उपलब्धियों पर गर्व का एहसास होगा और वे इस स्वभाव को दीर्घकालिक रूप से आगे बढ़ाएंगे. हमेशा बच्चे द्वारा नकारात्मक स्थिति में सकारात्मक समाधान तलाशने के प्रयास की प्रशंसा करें.  याद रखें इन नुस्खों को अपना कर आप अपने बच्चों को संभालने में आसानी महसूस करेंगे. भाईबहन एकदूसरे के पहले मित्र और साझीदार होते हैं, जो एक सुंदर व स्वस्थ समरसता को साझा करते हैं, इस से कम जगह में भी पूरा परिवार खुशीखुशी जीवन व्यतीत कर सकता है.

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महामारी के बाद छोटे बच्चों को स्कूल जाने और पढने की रूचि को बढ़ाएं कुछ ऐसे

कोविड के बाद रीना अपनी 5 साल के बेटे से बहुत परेशान है, क्योंकि उसका बेटा रेयान दिन भर खेलना चाहता है. स्कूल जाना नहीं चाहता, रोज कुछ न कुछ बहाने बनाता है, एक दिन उसकी माँ बहुत घबरा गयी, क्योंकि उसने माँ को बताया कि उसे पेटदर्द हो रहा है, माँ पहले उसे पेट दर्द की दवा दी और उसे लेकर डॉक्टर के पास जब जाने लगी तो उसने माँ से कहा कि उसका पेट दर्द ठीक हो गया है. फिर भी माँ नहीं मानी और डॉक्टर ने जाँच कर बताया कि कुछ सीरियस नहीं है, शायद मौसम की वजह से ऐसा हुआ है. उसे सादा खाना देना ठीक रहेगा.

कोविड महामारी की वजह से ऑनलाइन पढाई कर रहे छोटे बच्चों कीसमस्या पेरेंट्स के लिए यह भी है कि अब ऑनलाइन नहीं है,लेकिन बच्चेमोबाइल के लिए जिद करते है, न देने पर अपनी मनमानी कुछ भी करते है. मोबाइल मिलने पर कार्टून देखना शुरू कर देते है. कल्पना की 6 साल की बेटी मायरा भी कुछ कम नहीं अपनी अपर केजी की क्लास में न जाकर नर्सरी में बैठी रहती है,उसकी भोली सूरत देखकर टीचर भी कुछ नहीं कहती. कल्पना के लिए बहुत समस्या है. उन्हें हर दूसरे दिन उसे दूसरे बच्चे से क्लास की पढाई का नोट्स लेना पड़ता है. पूछने पर मायरा कहती है कि आप तो पहले ऑनलाइन पढ़ाते समय सारे नोट्स लेती थी, अब भी ले लीजिये, मैं घर आकर आपसे पढ़ लेती हूँ. ऐसे व्यवहार केवल रीना और कल्पना ही फेस नहीं कर रही, बल्कि बाकी बच्चों की माएं भी परेशान है, उन्हें इस बात की फ़िक्र है कि पहले की तरह बच्चों में स्कूल के प्रति रुझान कैसे लाई जाय. हालाँकि बच्चे स्कूल जाकर खुश है, लेकिन उनके पुराने मित्र भी नए बन चुके है. वे चुपचाप एक कोने में बैठे रहते है और टीचर के कुछ कहने पर अनसुना कर देते है. दो साल का गैप छोटे बच्चों और उनके पेरेंट्स के लिए एक समस्या अवश्य है, लेकिन उसे ठीक करने के लिए कुछ उपाय निम्न है, जिसे टीचर्स और पेरेंट्स को धैर्य के साथ पालन करना है.

बच्चों के व्यवहार को समझे

देखा जाय, तो इसमें बच्चों का दोष भी नहीं, उन्हें क्लासरूम में सारेटीचर्स उन्हें नए लग रहे है,पिछले दो सालों में कई टीचर्स बदले गए या फिर छोड़कर चले गए, जिससे बच्चे उनसे बात करने या कुछ पूछने से डर रहे है. इस बारें में मुंबई की ओर्किड्स द इंटरनेशनल स्कूल की इंग्लिश अध्यापिका नेहा लोहाना कहती है कि छोटे बच्चों को एक रूटीन और अनुसाशन में लाना अब एक बड़ी चुनौती हो चुकी है, क्योंकि अभी इन बच्चों ने अधिकतर समय अपने पेरेंट्स के साथ इनडोर गेम्स खेलते हुए बिताया है. इसे ठीक करने के लिए पेरेंट्स और टीचर्स मिलकर कदम उठाने की जरुरत है, जिसमे उन्हें लर्निंग अनुभव और एक्टिविटीज के द्वारा एक प्लान बनाने की जरुरत होती है.पेरेंट्स अपने काम को थोड़ा रोककर बच्चे की सीखने या कुछ देखने की आदतों को सुधारें. अगर बच्चा रोज-रोज घर आकर टीचर्स के बारें में कुछ आरोप लगाता है, तो उसे धैर्य से समझने की कोशिश करें, डांटे नहीं. इसके बाद टीचर से कहकर उसके लिए कुछ दूसरे एक्टिविटीज को लागू करने की कोशिश करें, जो उसके लिए रुचिपूर्ण हो. इसके अलावा टीचर्स के साथ स्कूल के नए माहौल में बच्चे को सुरक्षा और सुरक्षित महसूस करें, ये सुनिश्चित करना बहुत जरुरी है. हालाँकि ये थोड़े दिनों में ठीक हो जायेगा, पर अभी के लिए ये बहुत चुनौतीपूर्ण है.

नए क्लास में उत्तीर्ण की चुनौती

कोविड के दौरान कुछ बच्चों ने शुरू के दो साल के क्लासेस पढ़े नहीं है और उन्हें अगले कक्षा में उत्तीर्ण कर दिया गया है,ऐसे में उन्हें नयी कक्षा में पढाई को समझ पाना मुश्किल हो रहा है. इस समस्या के बारें में पूछने पर इंग्लिश टीचर नेहा कहती है कि ये समस्या वाकई सभी स्कूलों के लिए एक बड़ी चुनौती है. लॉकडाउन के दौरान घर पर ऑनलाइन पढ़ाते हुएटीचर्स ने कई प्रकार के चैलेन्ज फेस किये है, मसलन पाठ को रिवाईज करवाना, कुछ नया सिखाना आदि, क्योंकि अधिकतर बच्चे ऑनलाइन समय पर नहीं आते थे, उनकी उपस्थिति बहुत अधिक अनियमितऔर अनुपस्थित रहना होता था, जिससे टीचर्स को एक पाठ को कई बार पढाना पड़ता था. कई बच्चों ने तो कलम और पेंसिल से लिखना बंद कर दिया और उन्हें लिखने से अधिक ओरल परीक्षा अच्छी लगने लगी थी. देखा जाय,तो ये पेरेंट्स और टीचर्स के लिए मुश्किल समय है, इसे लगातार मेहनत के साथ ही इम्प्रूव किया जा सकेगा.

मुश्किल है अनुसाशन में रखना

ये सही है कि दो साल बाद बड़े बच्चों को भी एडजस्ट करने में समस्या आ रही है, क्योंकि स्कूल के अनुसाशन, सहपाठी से खेलना, किसी चीज को शेयर करना आदि सब बच्चों से दूर चले गए है, क्योंकि उन्हें अब स्कूल में मास्क पहनना, बार-बार हाथ सेनिटाइज करना, डिस्टेंस बनाए रखना आदि सब स्कूल में करना पड़ता है, ऐसे में किसी से सहज तरीके से बात करने में भी बच्चे हिचकिचाते है. ओर्किड्स द इंटरनेशनल स्कूल में बच्चों की काउंसलिंग कर रही काउंसलर और एचओडी बेथशीबा सेठ कहती है कि इतने सालों बाद बच्चे ही नहीं, टीचर्स को भी बच्चों के साथ एडजस्ट करने में मुश्किल आ रही है. महामारी के बाद मानसिक स्वास्थ्य पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण हो गया है, क्योंकि जैसे-जैसे हम जीवन के नए तरीकों को अपनाना शुरू करते है. जीवन की नई शर्तों के साथ तालमेल बिठाना पड़ता है. बच्चों और उनके मानसिक स्वास्थ्य की उपेक्षा करना असंभव है.छोटे बच्चे स्वभाव से फ्लेक्सिबल दिमाग के होते है और वे अपनी समस्या को किसी के सामने कह नहीं पाते. वे शाय और डीनायल मूड में होते है,उनके हाँव-भाँव से उनकी समस्या को पकड़ना पड़ता है. इसके अलावा उन्हें खुद को और अपने विचारों को व्यक्त करने के लिए सुरक्षित वातावरण देना पड़ता है, ताकि खुलकर वे अपनी बात रख सकें.

अपने एक अनुभव के बारें में काउंसलर बताती है कि एक बच्चे का एडमिशन क्लास वन में हुआ, उसने लोअर और अपर केजी नहीं पढ़ा है, जब वह अपनी माँ और बड़े भाई के साथ स्कूल आया, तो उसे स्कूल बहुत ही अजीब लग रहा था, जब उसने अपनी टीचर को देखा, तो भाई के पीछे छुप गया और कहने लगा कि ये टीवी वाली टीचर यहाँ क्यों आई है, फिर किसी दूसरे टीचर को बुलाकर उसे क्लास में भेजा गया. अगले दिन टीचर ऑनलाइन आकर बच्चे को समझाई कि वह अब उसके पेरेंट्स की तरह सामने दिखेगी और उन्हें पढ़ाएगी. तब जाकर बच्चे ने माना और उस टीचर की क्लास में बैठा. ये समय कठिन है, इसलिए अध्यापकों और पेरेंट्स को बहुत धैर्य के साथ बच्चों को पढाना है, ताकि उन्हें फिर से वही ख़ुशी मिले और स्कूल आने से परहेज न करें.

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घर और औफिस में यों बनाएं तालमेल

मान्या की शादी 4 महीने पहले ही हुई है. वह बैंक में है. पहले संयुक्त परिवार में रह रही थी. इसलिए उस पर काम का बोझ अधिक नहीं था. लेकिन शादी के 2 महीने बाद ही पति का ट्रांसफर दूसरे शहर में हो गया. मान्या को भी पति के साथ जाना पड़ा. वह जिस बैंक में थी उस की अन्य शाखा भी उस शहर में थी, इसलिए मान्या ने भी वहां तबादला करा लिया.

दोनों परिवार से दूर अनजाने शहर में रह रहे हैं. यहां मान्या के ऊपर घर व औफिस की दोहरी जिम्मेदारियों का बोझ आ पड़ा. बचपन से संयुक्त परिवार में रही थी. इसलिए उस ने अकेले काम का इतना अधिक बोझ कभी नहीं संभाला था. उस का टाइम मैनेजमैंट गड़बड़ाने लगा. वह घर और दफ्तर के कार्यों के बीच अपना सही संतुलन नहीं बना पा रही थी. धीरेधीरे उस की सेहत पर इस का असर दिखने लगा.

एक दिन अचानक मान्या औफिस में बेहोश  हो गई. उसे हौस्पिटल ले जाया गया. डाक्टर ने बताया कि वह तनाव से घिरी है. इस का असर उस के स्वास्थ्य पर पड़ने लगा है. उस के बेहोश होने की वजह यही है.

1 हफ्ता मान्या ने घर पर आराम किया. कई रिश्तेदार और दोस्त उस से मिलने आए. एक दिन उस की एक खास सखी भी आई, जो मल्टीनैशनल कंपनी में मैनेजर थी. उस ने बताया, ‘‘तुम्हारे तनाव और बीमारी की वजह तुम्हारे द्वारा टाइम को सही तरीके से मैनेज नहीं करना है. वर्किंग वूमन के लिए अपने टाइम को इस तरह से बांटना कि तनाव और डिप्रैशन जैसी स्थिति न आए, बहुत जरूरी होता है.’’

आधुनिक समय में कामकाजी महिलाओं को घर और औफिस की दोहरी जिम्मेदारियां उठानी पड़ रही हैं, जिन में वे उलझ जाती हैं. वे हर जगह खुद को साबित करने और अपना शतप्रतिशत देने की चाह में तनाव की शिकार हो जाती हैं. पति और बच्चों के साथ समय नहीं बिता पातीं. सोशल लाइफ से दूर होती जाती हैं. औफिस में घर की परेशानियां और घर में औफिस की परेशानियों के साथ कार्य करना, ऐसे बहुत से कारण हैं, जो उन की जिंदगी में कहीं न कहीं ठहराव सा ला देते हैं, जो उन की सुपर वूमन की छवि पर एक प्रश्नचिह्न होता है.

ऐसे में जिंदगी में आई इन मुश्किलों का सामना जिंदादिली के साथ किया जाए, तो हार के रुक जाने का मतलब ही नहीं बनता. वैसे भी जिंदगी में सफलता का मुकाम कांटों भरी राह को तय करने के बाद ही मिलता है.

दोहरी जिम्मेदारी निभाएं ऐसे

आइए जानते हैं किस तरह वर्किंग वूमन अपनी दोहरी जिम्मेदारियों को बखूबी निभाते हुए दूसरी महिलाओं के लिए कामयाबी की मिसाल बन सकती हैं:

जमाना ब्यूटी विद ब्रेन का है. अत: सुंदरता के साथसाथ बुद्धिमत्ता भी जरूरी है. हमेशा सकारात्मक सोच रखें. नकारात्मक विचारों को खुद पर हावी न होने दें.

ऐसी दिनचर्या बनाएं, जिस में आप अपनी पर्सनल और प्रोफैशनल लाइफ को समय दे सकेें.

अपने व्यक्तित्व पर ध्यान दें. अपनी कमियों को दूर करने का प्रयास करें, क्योंकि यह आप के व्यक्तित्व विकास में बाधक बनती है. अपने अंदर आत्मनिरीक्षण करने की आदत विकसित करें. इस के अलावा अपने दोस्तों, शुभचिंतकों से भी अपनी कमियां जानने की कोशिश करें.

वर्किंग वूमन के लिए टाइम मैनेजमैंट बहुत जरूरी है. इसलिए औफिस और घर पर समय की बरबादी को रोकने का हर संभव प्रयास करें. कौन सा कार्य कितने समय में करना है, इस की रूपरेखा मस्तिष्क या लिखित रूप में आप के पास होनी चाहिए.

घर के कामों में परिवार के सदस्यों और बच्चों की मदद जरूर लें. साथ ही अपनी समस्याओं को परिवार के सदस्यों से प्यार से बताएं.

औफिस में अकसर आप को आलोचना का शिकार भी होना पड़ता होगा. ऐसी बातों को नकारात्मक ढंग से न लें. अपनी कार्यक्षमता, संयमित व्यवहार और अपने आदर्शों से आप किसी न किसी दिन अपने आलोचकों को मुंह बंद कर ही देंगी.

यदि आप को औफिस में अतिरिक्त जिम्मेदारियां सौंपी गई हैं, तो उन से पीछा छुड़ाने के बजाय उन्हें सकारात्मक तरीके से निभाएं, क्योंकि ऐसी जिम्मेदारियां आप की कार्यक्षमता की, परीक्षा की जांच के लिए भी आप को दी जा सकती हैं.

वीकैंड पति व बच्चों के नाम कर दें. इस दिन मोबाइल फोन से जितनी हो सके दूरी बना कर रखें. बच्चों और पति को उन की फैवरेट डिश बना कर खिलाएं. शाम के समय मूड फ्रैश करने के लिए परिवार के साथ पिकनिक स्पौट या आउटिंग पर जाएं. इस तरह आप खुद को अगले सप्ताह के कामों के लिए फ्रैश और कूल महसूस करेंगी.

औफिस में अपने काम को पूरी ईमानदारी और लगन से करें. लंच में ज्यादा समय न खराब करें. देर तक मोबाइल पर बातें करने से बचें.

औफिस में सहकर्मियों से न तो अधिक निकटता रखें और न ही अजनबियों जैसा व्यवहार करें. औफिस में सहकर्मियों के साथ फालतू की बहस से बचें. उन के साथ आप को जादा देर तक काम करना होता है. अत: उन के साथ दोस्ताना संबंध बना कर चलें.

फिस की परेशानियों को घर न लाएं. ज्यादा देर टीवी देख कर या मोबाइल पर बातें कर के समय खराब न करें.

जहां तक हो घर जा कर खाना खुद ही बनाएं. रोजरोज बाहर का खाना और्डर न करें. यह आप और आप के परिवार के लिए सही नहीं.

आप की दोहरी भूमिका निभाने में पारिवारिक सदस्यों का सहयोग बहुत ही जरूरी है. इसलिए  व्यवहारिक जीवन में पतिपत्नी को एकदूसरे की भावनाओं का सम्मान करना चाहिए और एकदूसरे की परेशानी को हल करने के लिए आपस में काम बांट लेने चाहिए.

आप का अपने लिए भी समय निकालना जरूरी है ताकि आप इस बीच शौपिंग आदि कर के अपना मूड फ्रैश कर सकें. रोजाना औफिस और घर के बीच की भागदौड़ की थकावट आप की सुंदरता कम कर सकती है. इस के लिए पार्लर में जा कर अपने सौदर्य में चार चांद लगाएं. चाहें तो पति को एक दिन के लिए बच्चों की जिम्मेदारी सौंप कर फ्रैंड्स के साथ मूवी देखने का प्रोग्राम बनाएं.

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शादी के बाद ऐसे बनाएं कैरियर

भारत की बात करें तो यहां आज भी काफी महिलाओं को शादी के कारण अपनी पढ़ाई, अपने कैरियर को बीच में ही ड्रौप करना पड़ता है क्योंकि कभी पेरैंट्स उन्हें शादी में इतना खर्च आएगा यह कह कर उन के सपनों को उड़ने से पहले ही उन के पंख काट देते हैं तो कभी यह कह कर उन के कैरियर को बीच में ही छुड़वा देते हैं कि ये सब शादी के बाद करना और जब शादी के बाद वे अपने अधूरे सपने या कैरियर को पूरा करने की बात कहती हैं तो परिवार उन्हें यह कह कर चुप करवा देता है कि अब घरपरिवार ही तुम्हारी जिम्मेदारी है.

ऐसे में बेचारी लड़की कर ही क्या सकती है. बस बेबस हो कर रह जाती है. लेकिन इस बीच परिवार ये ताने कसे बिना रह नहीं पाता कि तुम करती ही क्या हो, कमाता तो हमार बेटा ही है. ऐसे में अपने पैरों पर खड़े होने के लिए अपनी लड़ाई आप को खुद लड़ने की जरूरत है ताकि आप खुद को आत्मनिर्भर बना सकें.

सीरियल ‘अनुपमा’ में रूपाली गांगुली जो अनुपमा का किरदार निभा रही है, उसे डांस का बहुत शौक था. वह स्टेज परफौरर्मैंस करने के साथ खुद की अकादमी भी खोलना चाहती थी. उसे शादी के बाद अपने हुनर को दिखाने के लिए विदेश जाने का भी मौका मिला, लेकिन पति, सास की सपोर्ट न मिलने के कारण उसे अपने इस हुनर को मसालों के डब्बों में ही बंद कर के रखना पड़ा और बाद में यह भी सुनने को मिला कि तुम करती ही क्या हो.

मगर जब अनुपमा को समझ आया कि घरपरिवार के साथसाथ कैरियर, पैसा, नाम कितना जरूरी है तो उस ने बच्चों के सैटल होते ही अपनी हिम्मत के दम पर छोटे से सैटअप के साथ अपनी डांस अकादमी खोली और आज उसे विदेशों में भी स्टेज परफौर्मैंस करने के कौंट्रैक्ट मिल रहे हैं.

भले ही यह वर्चुअल कहानी है, लेकिन हकीकत में भी ऐसी अनेक कहानियां आप को मिल जाएंगी, जो आप को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करने का काम करेंगी.

तो आइए जानते हैं आप अपने अधूरे कैरियर को कैसे पूरा करें. हर व्यक्ति के अपने सपने, अपने कैरियर एरिया होते हैं. इसे वे अपने इंटरैस्ट के हिसाब से चुनती व पूरा करती हैं. ऐसे में अगर आप का भी शादी के कारण कैरियर या डिगरी अधूरी रह गई है तो उसे जरूर पूरा करें क्योंकि आज पुरुष व महिला दोनों को बराबरी के राइट व अपने मुताबिक जीने का अधिकार है.

अपनी अधूरी डिगरी को पूरा करें

हो सकता है कि आप अपनी रुचि का प्रोफैशनल कोर्स कर रही हों, लेकिन पेरैंट्स के शादी के प्रैशर के कारण आप को अपने उस कोर्स को बीच में ही छोड़ना पड़ गया हो, जिस के कारण आप काफी परेशान भी रही होंगी. लेकिन अब मौका है कि आप अपनी उस अधूरी डिगरी को पूरा करें. हो सकता है कि घर से सपोर्ट न मिले और अब ससुराल वाले यह कह कर

फिर मना करें कि तुम्हारी पढ़ाई के कारण घर बिखर जाएगा.

तब आप उन्हें समझाएं कि अब सिर्फ बाहर जा कर ही कोर्स नहीं होता बल्कि आजकल अधिकांश कोर्सेज को औनलाइन घर बैठे भी करने की सुविधा है. इस से घर भी देख लूंगी और अपना कोर्स भी पूरा कर पाऊंगी और इस कोर्स के बाद अगर अच्छीखासी नौकरी मिल गई तो फिर तो डबल इनकम से बच्चों के और बेहतर कैरियर में भी सहायता मिलेगी. फिर अब तो बच्चे भी बड़े व समझदार हो गए हैं. अब मुझे भी खुद आत्मनिर्भर बनना है ताकि छोटीछोटी जरूरतों के लिए किसी के आगे हाथ न पसारने पड़ें. अपने बच्चों के लिए कुछ करना है.

यकीन मानिए आप का इस तरह से खुद के बारे में सोचना आप को आगे बढ़ने से नहीं रोक पाएगा. इस से आप का अधूरा सपना तो पूरा होगा ही, साथ ही आप का कौन्फिडैंस भी बढ़ेगा.

टीचिंग में रुचि

आप की शुरू से ही टीचर बनने की इच्छा थी. लेकिन परिवार में पैसों की तंगी की वजह से आप अपने इस सपने को पूरा नहीं कर पाईं. लेकिन अब जब परिवार संपन्न है और किसी तरह की कोई दिक्कत भी नहीं है तो आप अपनी इस कैरियर इच्छा को जरूर पूरा करें.

इस के लिए आप ऐसे कोर्सेज सर्च करें जो औनलाइन व औफलाइन दोनों सुविधाएं हों और जिन में ज्यादा से ज्यादा प्रैक्टिकल नौलेज दी जाती हो, साथ ही कोर्स खत्म होने के बाद आप को उन्हीं की तरफ से प्लेसमैंट भी मिल जाए. इस से फायदा यह होगा कि आप का टीचिंग कोर्स भी हो जाएगा और आप को जौब भी मिल जाएगी. भले ही शुरुआत में सैलरी थोड़ी कम मिले, लेकिन यह कदम आप के आगे बढ़ने में काफी अहम रोल निभाएगा.

टैलेंट को पहचानें

हर व्यक्ति में कोई न कोई टैलेंट जरूर होता है, बस उसे पहचान कर निखारने की जरूरत होती है. ऐसे में आप में जो भी टैलेंट है जैसे ट्यूशन पढ़ाने का, अलगअलग तरह की डिशेज बनाने का शौक है, अच्छी स्टिचिंग कर लेती हों, अच्छी ड्राइंग बनाने का शौक है तो आप अपने अंदर छिपे इस टैलेंट को अपने अंदर ही समेट कर न रखें बल्कि शादी के बाद उस में अपना कैरियर बनाएं.

आप इस के लिए या फिर इस में कोर्स कर के और अपनी स्किल्स को निखार सकती हैं या फिर आप अगर इन की अच्छीखासी जानकार हैं तो शुरुआत में छोटे स्तर पर बिजनैस शुरू करें, फिर जैसेजैसे डिमांड बढ़े आप अपने इस हुनर से अपने बिजनैस को बड़े स्तर पर ले जा सकती हैं, जिस से आप पैसा व नाम दोनों कमा सकती हैं और आप का टैलेंट भी बरबाद नहीं जाएगा.

स्टार्टअप की शुरुआत

आज जिस तरह से स्टार्टअप का क्रेज बढ़ता जा रहा है, वह अपनेआप में एक बड़ा बदलाव है. ऐसे में अगर आप को भी मार्केटिंग की अच्छीखासी जानकारी है, नएनए आइडियाज आप के दिमाग में आते रहते हैं, जो काफी काम के साबित हो सकते हैं, तो आप बिजनैस की और अच्छी जानकारी लेने के लिए कोर्स कर सकती हैं या फिर अगर आप ने इस का कोर्स पहले ही किया हुआ है तो आप और लोगों को इस से जोड़ कर अपना खुद का स्टार्टअप शुरू कर सकती हैं. अगर आप के आइडियाज काम आ गए फिर तो इन के जरीए आप अपनी अच्छीखासी पहचान बना सकती हैं.

एचआर जौब

आप को कौरपोरेट कंपनीज में काम करने का शौक है और इस के लिए आप ने ह्यूमन रिसोर्स में एमबीए भी कर लिया, लेकिन जब इस में जौब की बारी आई तो घर वालों ने आप की शादी तय कर दी, जिस के कारण आप की डिगरी रखी की रखी रह गई.

अकसर कैरियर को ले कर जो सपने हम ने संजोए होते हैं, अगर वे पूरे नहीं होते तो हमारे अरमानों पर पानी फिर जाता है. ऐसे में अब जब आप शादी के बाद खुद के लिए समय निकाल पा रही हैं या फिर चीजें मैनेज कर पा रही हैं तो एचआर जौब कर के अपने कैरियर को पटरी पर लाएं या फिर इस में और एडवांस्ड कोर्स कर के खुद को और अपडेट कर के अच्छी नौकरी हासिल करें.

बता दें कि एक तो इस जौब के टाइमिंग काफी सूट करने वाले होते हैं, साथ ही यह जौब काफी सम्मानीय भी होती है. इस तरह आप जौब कर के अपने एचआर बनने के सपने को साकार कर सकती हैं.

फ्रीलांस वर्क

अगर आप को पढ़नेलिखने का शुरू से ही बहुत शौक रहा है, लेकिन आप परिवार की मजबूरियों व शादी हो जाने के कारण अपने इस जनून को पूरा नहीं कर पाई हैं, तो अभी भी देर नहीं हुई है क्योंकि आज कंटैंट राइटिंग के लिए ढेरों फ्रीलांस वर्क करने का औप्शन है, जिस में आप अपनी लेखन की कला को दिखा कर अच्छाखासा पैसा कमा सकती हैं.

एक बार आप के लेखन ने गति पकड़ ली, फिर तो यकीन मानिए आप के पास अवसरों की कमी नहीं रह जाएगी. इस से आप का शादी व बाकी मजबूरियों के चलते अधूरा सपना भी पूरा हो जाएगा और आप खुद को आत्मनिर्भर भी बना पाएंगी. बस जरूरत है अपने

अधूरे सपने, कैरियर, डिगरी को पूरे जज्बे के साथ पूरा करने की.

एयरहोस्टेस जौब

एयरहोस्टेस की जौब को काफी ग्लैमरस जौब माना जाता है. इस के लिए अच्छी पर्सनैलिटी होने के साथसाथ बौडी लैंग्वेज पर अच्छी कमांड होना भी बहुत जरूरी होता है. ऐसे में अगर आप ने शादी से पहले एयरहोस्टेस का कोर्स तो कर लिया, लेकिन जैसे ही जौब की बारी आई तो परिवार वालों ने कहीं रिश्ता तय कर दिया, जिस के कारण आप की इस फील्ड में जौब करने की ख्वाहिश धरी की धरी रह गई.

लेकिन अब जब चीजें सैटल हैं और आप की उम्र भी अभी ज्यादा नहीं है तो फिर एयरहोस्टेस बन कर अपने सपनों को ऊंचाइयों तक पहुंचाएं. अच्छीखासी सैलरी व माननीय जौब न सिर्फ आप के सपने को पूरा करेगी बल्कि आप भी घर में बराबर का सहयोग दे पाएंगी, जो आज के समय की जरूरत है.

दहेज जमा न कर लड़की को पढ़ाएं

आज भी हमारे देश में आप को अनेक परिवार ऐसे मिल जाएंगे, जो अपनी लड़की की शादी के लिए दहेज तो जमा करते हैं, लेकिन बेटी अगर अपने कैरियर को आगे बढ़ाने के बारे में उन से बात करती है तो वे यह कह कर टाल देते हैं कि तुम्हारी शादी के लिए पैसा जमा करें या फिर तुम्हें पढ़ाएं. तुम्हें तो वैसे भी दूसरे घर जाना है तो पढ़लिख कर क्या करोगी.

ऐसे में दहेज लड़कियों के आगे बढ़ने के मार्ग में बाधा बन कर खड़ा हुआ है, जबकि पेरैंट्स को इस बात को समझना चाहिए कि अगर आप अपनी लड़की को इतना शिक्षित कर दोगे तो आप को शादी में दहेज देने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी. वह जरूरत पड़ने पर किसी पर निर्भर नहीं रहेगी बल्कि खुद को व अपनों को भी पाल लेगी. इसलिए दहेज  जमा करने से ज्यादा अपनी लड़की को पढ़ाने पर ध्यान दें.

सक्सैसफुल स्टोरी

मैं इंदौर की रहने वाली थी. मेरी शादी दिल्ली में हुई. पति रमेश की जौब काफी अच्छी है. शादी के 2 साल बाद ही मैं एक बेटे की मां बन गई, जिस कारण मुझे अच्छीखासी आईटी की जौब छोड़नी पड़ी. आखिर होता भी यही है कि पत्नी को ही परिवार व बच्चों की खातिर अपने कैरियर को छोड़ना पड़ता है. दुख बहुत हुआ, लेकिन मजबूर थी कुछ कर नहीं सकती थी. धीरेधीरे 5-6 साल बीत गए. मेरा प्रोफैशनल कैरियर किचन व घर तक ही सीमित हो कर रह गया. मुझे हर चीज के लिए पति पर निर्भर रहना पड़ता था जो मुझे अंदर ही अंदर परेशान कर रहा था. फिर एक दिन मैं ने फैसला लिया कि अब मैं दोबारा से कैरियर में कमबैक करूंगी.

शुरू में परिवार में किसी की भी सपोर्ट नहीं मिली, लेकिन जब मैं कैरियर से समझौता नहीं करने के मूड पर अड़ गई तो मुझे जौब करने की परमिशन भी मिल गई. आज मैं फैमिली, बच्चे व जौब सब को अच्छे से हैंडल कर रही हूं. मुझे कैरियर में भी काफी ऊंचाइयां मिल रही हैं. कहने का मतलब यह है कि अगर आप चीजों को मैनेज करना सीख गए और कुछ करने की ठान ली, फिर तो आप को उड़ने से कोई नहीं रोक सकता. लेकिन अगर आप ने अपने सपनों के आगे घुटने टेक दिए, फिर तो आप के पास आगे पछताने के कुछ नहीं बचेगा.

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